परीवर्तनशील जगत में, एकमात्र नित्य वस्तु आत्मा ही हैं !
किसी गाँव में एक किसान रहता था। वह बहुत ज्ञानी था। जमीन-जायदाद की कमी नहीं थी। खेती से ही परिवार बड़े आराम से चल जाता था। विवाह हुए कई वर्ष हो गये थे, किन्तु कोई बाल-बच्चा नहीं हुआ था। बहुत मन्नत और साधना के बाद, उम्र के अन्तिम पड़ाव पर एक पुत्र उत्पन्न हुआ।वह लड़का सभी की आँखों का तारा बन गया। माँ-बाप तो जान से बढ़ कर मानते ही थे, मुहल्ले के लोग भी उसको बहुत प्यार करते थे। उस लड़के का नामकरण हुआ, हाराधन। प्यार से लोग उसको हारू कह कर बुलाते थे।
हँसते-खेलते हारू बड़ा होने लगा। अपनी दिनचर्या के अनुसार, एक दिन वह किसान सुबह में खेत पर खेती करने गया हुआ था। न जाने क्यों आज उसका मन बहुत अच्छा नहीं लग रहा था। फिर भी खेती करने लगा, उसी समय गाँव की ओर से उसका एक पड़ोसी दौड़ता हुआ, आकर समाचार दिया, " जल्दी घर चलो, तुम्हारे हारू को हैजा (Cholera) हो गया है।"
हँसते-खेलते हारू बड़ा होने लगा। अपनी दिनचर्या के अनुसार, एक दिन वह किसान सुबह में खेत पर खेती करने गया हुआ था। न जाने क्यों आज उसका मन बहुत अच्छा नहीं लग रहा था। फिर भी खेती करने लगा, उसी समय गाँव की ओर से उसका एक पड़ोसी दौड़ता हुआ, आकर समाचार दिया, " जल्दी घर चलो, तुम्हारे हारू को हैजा (Cholera) हो गया है।"
घर लौट कर किसान ने देखा कि सचमुच लड़के की हालत बहुत खराब थी। वह जल्दी से जाकर एक डाक्टर को ले आया। उसके ईलाज के लिए जो भी अच्छी से अच्छी व्यवस्था हो सकती वह सब उसने किया। पति-पत्नी दोनों मिलकर उसकी सेवा करने लगे।
किन्तु ईलाज का कोई नतीजा न निकला, लड़का बीमारी से मर गया।
ऐसा सोना जैसा चाँद का टुकड़ा था, कितना सुन्दर और सूशील लड़का था ! कितनी मन्नतों और साधना से उसको पाया था, इसीलिये माँ के दुःख की तो सीमा नहीं थी, वह दहाड़ मार कर रोने लगी। पड़ोसी लोग भी अपने को रोक न सके, सबों की आँखों से अश्रु झरने लगे।
किन्तु उस किसान के चेहरे पर इतने भारी दुःख के कोई लक्ष्ण दिखाई नहीं पड़ रहे थे। वह दूसरे लोगों को सांत्वना देने लगा, इतना रोने-पीटने से क्या होगा ? उसको बचाने के लिये हमलोग जितनी कोशिशें कर सकते थे, वह सब तो हमने किया था। उसमें कोई कमी तो हमने होने नहीं होने दी। अन्तिम संस्कार समाप्त हो जाने के बाद, अपनी स्त्री और पड़ोसिओं को समझा-बुझा कर शाम को वह फिर खेत में काम करने चला गया। जैसे सुबह में कुछ हुआ ही न हो ?
किन्तु उस किसान के चेहरे पर इतने भारी दुःख के कोई लक्ष्ण दिखाई नहीं पड़ रहे थे। वह दूसरे लोगों को सांत्वना देने लगा, इतना रोने-पीटने से क्या होगा ? उसको बचाने के लिये हमलोग जितनी कोशिशें कर सकते थे, वह सब तो हमने किया था। उसमें कोई कमी तो हमने होने नहीं होने दी। अन्तिम संस्कार समाप्त हो जाने के बाद, अपनी स्त्री और पड़ोसिओं को समझा-बुझा कर शाम को वह फिर खेत में काम करने चला गया। जैसे सुबह में कुछ हुआ ही न हो ?
पड़ोसी लोग तो यह देखकर दंग रह गये थे। इसका इकलौता बेटा था, जो अभी अभी मर गया, और उसके पिता की आँखों में अश्रू नहीं हैं ? दुःख का कोई लक्षण ही नहीं है ! क्या इसकी छाती पत्थर से बनी हुई है ?
किसान जब संध्या में घर लौटा तो उसने देखा, कि उसकी पत्नी उस समय भी रो रही है ! उसको देख कर और जोर जोर से रोने लगी थी। किसान को देखने से उसका दुःख और अधिक बढ़ गया था।
वह रोते हुए कहने लगी, " तुम कितने निष्ठुर हो ! अपने इकलौते बेटे के मर जाने पर तुम एक बार रोये भी नहीं ? "
किसान अविचलित रहते हुए शांत भाव से बोला, " इसका कारण जानना चाहोगी, कि मैं क्यों नहीं रोया ?
मैंने कल एक असाधारण स्वप्न देखा था। स्वप्न में मैंने देखा, कि मैं बहुत बड़े देश का राजा बन गया हूँ, और आठ लड़कों का पिता हूँ। बड़े सुख-विलास में जीवन व्यतीत हो रहा है। उसके बाद मेरी नीन्द टूट गयी। उस स्वप्न के बाद से, मैं घोर चिन्ता में फँस गया हूँ, अपने उन आठ लड़कों के खो जाने पर शोक मनाऊँ, या एक बेटे के चले जाने का शोक मनाऊँ ? "
किसान को ज्ञान (अपने सच्चे स्वरुप का ज्ञान) हो चूका था। इसीलिये वह जानता था, कि जिस प्रकार वह स्वप्न अवस्था मिथ्या थी, उसी प्रकार यह जाग्रत अवस्था भी मिथ्या है। इस नित्य परीवर्तनशील जगत में, एकमात्र नित्य वस्तु आत्मा ही हैं !
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