गुरुवार, 21 जून 2012

" रस्सी में सर्प का भ्रम " [15] कहानियों में वेदान्त

किस शक्ति के प्रभाव से मिथ्याबोध उत्पन्न होता है ?
रात्रि के नौ बज रहे थे। मदन सिनेमा देखकर घर लौट रहा था। लौटने के क्रम में सिनेमा के बारे में ही सोचता हुआ अकेले अकेले चल रहा था। उसका पूरा मन सिनेमा में देखे हुए दृश्यों में ही अटका हुआ था। अरे ! उस  समय जब हिरण के उपर बाघ ने अचानक झपट्टा मारा, तब तो वह कितना डर गया था ! हिरण जब घास चर रहा था, उसी समय पास वाले जंगल से एक बाघ अचानक निकला और छलांग मार कर ' धड़ाम ' से उसके सामने खड़ा हो गया, उस समय तो डर के मारे मदन चेयर से लगभग उछल कर खड़ा ही हो गया था।
 वह तो सिनेमा के टेकनिक को समझता था, प्रकाश और प्रकाश के निकलने के मार्ग में बाधा-जनित प्रतिबिम्ब के  खेल के आलावा सिनेमा और कुछ नहीं है।
 फिर भी उस दृश्य को इतने अच्छे तरीके से फिल्माया गया था, कि बाघ के आने पर उसने उसको जीता-जागता सचमुच का बाघ मान लिया था। और जिसके परिणाम स्वरूप उस समय वह बिल्कुल ही डर गया था। कैसा अजीब दृश्य था ! 
चलते चलते अचानक मदन कूद कर दो-डेग पीछे हो गया। उसकी छाती एकबार फिर से धड़कने लगी थी। रास्ते के बीचोबीच एक काला नाग (Cobra) साँप पड़ा हुआ है। उसने तो उसकी पूंछ पर अपने पैरों को लगभग रख ही दिया था, किन्तु अचानक नजर पड़ गयी इसीलिये बहुत बल लगाकर उसने अपने पैरों को दो डेग पीछे खींच लिया था। वरना वह तो बहुत कसकर उसे काट ही लेने वाला था ! यदि इसने सचमुच काट लिया होता, तब क्या होता ? मदन थोड़ा और पीछे हट गया; और दूर से ही साँप को देखने लगा। हाँ, सचमुच बड़ा विषधर साँप है। रंग तो उसी प्रकार एकदम काला है। अभी हाल में ही उसने एक सँपेरे के पास एक विषधर काले नाग को देखा था। यह साँप बिल्कुल वैसा ही लग रहा था। 
मदन विचार करने लगा, क्या करना चाहिए ? इससे बचकर पार हो जाना चाहिये, या दूसरे रास्ते से जाना ठीक रहेगा ? मदन यही सोच रहा था। उसी समय एक दूसरा व्यक्ति वहाँ पहुंचा, उसके हाथ में टॉर्च भी था। नजदीक आते ही मदन ने उस को रोक कर साँप की ओर ईशारा किया। वह व्यक्ति हँस कर बोला- " अरे, वह साँप नहीं, एक रस्सी है ! मैंने इसको जाते समय भी देखा था, तब भी यह वहीं पड़ा हुआ था। " यह कहकर उसने टॉर्च को  जलाया, और आगे बढ़ गया। उसके साथ साथ मदन जितना आगे बढ़ रहा था, रस्सी उतना ही साफ-साफ नजर आने लगा था। एकदम निकट जाकर जब टॉर्च की तीव्र रौशनी में देखा, तो सचमुच वह रस्सी ही था, अब मदन के मन में कोई संशय नहीं रह गया था।
 
(जनता का पैसा ! मेरा ?)
तब मदन भी हँसने लगा। मानों उसकी छाती पर से कोई बड़ा भारी बोझ उतर गया था। सोचने लगा; कितनी अजीब बात है ? इसका मतलब यह हुआ, कि इतना बड़ा भ्रम भी हो सकता है ! और इस विभ्रम में पड़कर वह कितना अधिक डर गया था ? रस्सी तो हमेशा रस्सी ही था, साँप तो कभी बना ही नहीं था ? किन्तु उसीको साँप समझ लेने के कारण उसको इतनी देर तक इतना भयभीत होना पड़ा था।
किसी एक वस्तु को कोई अन्य वस्तु मान लेने से कैसा भ्रम हो जाता है ! और वह भ्रम जबतक दूर नहीं हो जाता, तबतक उसको लेकर भय-चिन्ता सताती रहती है। और भ्रम टूटने के साथ ही साथ सारी चिन्ता, सारा भय मिट जाता है। 
वेदान्त कहता है, हमलोगों को अपने जीवन में जितने भी सुख-दुःख, जितनी भी चिंतायें आती हैं, जिस किसी बात का भी डर होता है, उन सब की जड़ में यह मिथ्याबोध या गलतफहमी ही रहती है। जन्म-मृत्यु और सुख-दुःख से परे, असीम, एकरस (Undifferentiated), अभेद, चेतना को ही हमलोग विभ्रम में पड़कर विभिन्न नामों और विविध रूपों की सीमाओं में घिरे अलग अलग वस्तु के रूप में देखते हैं।
 और स्वयं को भी उन्हीं ससीम वस्तुओं में से एक मानकर जन्म-मृत्यु, सुख-दुःख मिश्रित एक पृथक सत्ता के रूप में सोचते हैं।
यह भ्रम जिस समय टूट जाता है, उसी समय हमलोग उस शुद्ध-शाश्वत चैतन्य (Vibrations) के साथ एक और अभिन्न अनुभव कर पाते हैं। और अपने अनुभव से यह जान लेते हैं, कि उस चैतन्य के सिवा बाकी सारे नाम-रूप आदि मिथ्या हैं। जिस शक्ति के प्रभाव से ऐसा मिथ्याबोध या भ्रम हो जाया करता है, शास्त्रों में उस शक्ति को ही 'माया ' कहा जाता है।
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[ रामकृष्ण कौन हैं ? इष्टदेव ठाकुर का स्मरण करके गुरु ने कहा - जिनको नहीं जानने से यह झूठा जगत सच दिखाई देता है, और जिनको जान लेने से यह जगत अदृश्य हो जाता है, वे हैं भगवान श्रीरामकृष्ण परमात्मा ]
रामचरितमानस के बालकाण्ड [108-11]  में माता पार्वती भगवान शंकर से पूछती हैं- हे कामदेव के शत्रु ! आप जिस राम के नाम का आदरपूर्वक जप करते रहते हैं, ये राम क्या वही अयोध्या के राजा के पुत्र हैं ? या अजन्मा, निर्गुण ( समझदार के लिये बर्फ भी जल है, बच्चे उसको जल से अलग समझते हैं ) और अगोचर कोई और राम हैं ? यदि वे राजपुत्र हैं तो ब्रह्म कैसे ? और यदि ब्रह्म हैं तो स्त्री के विरह में उनकी मति बावली कैसे हो गयी ? यदि इच्छारहित, व्यापक, समर्थ ब्रह्म कोई और है, तो हे नाथ, मुझे उसे समझाकर कहिये। वह कारण विचारकर बतलाइये जिससे निर्गुण ब्रह्म सगुण रूप धारण करता है।( वे केवल हमलोगों के अज्ञान को मिटाने के लिये ही सगुण बनते हैं। बिना पैर के चलते हैं, बिना कान के सुनते हैं।)
शिवजी दो घड़ी तक ध्यान के रस (आनन्द ) में डूबे रहे; फिर उन्होंने ने मन को बाहर खींचा और तब वे प्रसन्न होकर श्रीराम की कथा का वर्णन करते हुए कहते हैं- (जो इस घोर कलयुग में रामजी की कथा सुनाते हैं, वे धन्य हैं। शिवजी तो समाधि में जा रहे थे, माँ पार्वती धन्य हैं, जो शिवजी को राम की महिमा सुनाने पर प्रेरित कर देती हैं। 
झूठेउ सत्य जाहि बिनु जानें। जिमी भुजंग बिनु रजु पहिचानें।।
जेहि जानें जग जाई हेराई। जागें जथा सपन भ्रम जाई ।।
जिस एक (श्रीराम) को जाने बिना यह झूठा जगत भी सत्य मालूम होता है, जैसे बिना पहचाने रस्सी में साँप का भ्रम हो जाता है; और जिसे जान लेनेपर जगत उसी तरह लोप हो जाता है, जैसे जागने पर स्वप्न का भ्रम जाता रहता है। मैं उन्हीं श्रीरामचन्द्र के बालरूप की वन्दना करता हूँ, जिनका नाम जपने से सब सिद्धियाँ सहज ही प्राप्त हो जाती है। 
बंदऊँ बालरूप सोइ रामू। सब सिधि सुलभ जपत जिसु नामू ।।
मंगल भवन अमंगल हारी। द्रवउ सो दसरथ अजिर बिहारी ।।
वे श्रीराम ही मंगल के धाम, अमंगल को हरने वाले और श्री दसरथ जी के आँगन में खेलने वाले (बालरूप) श्रीरामचन्द्र जी मुझपर कृपा करें। 
वही श्रीराम जो द्वापर में श्रीकृष्ण बने थे, और इस युग में मेरा अज्ञान हरने के लिये भगवान श्रीरामकृष्ण बने हैं, तथा शिवजी स्वामी विवेकानन्द बने हैं- उनकी कृपा से हमलोग भी यह समझ सकते हैं कि श्रीरामकृष्ण कौन है ? और तब रस्सी में सर्प कभी नहीं दिखेगा।
 जो लाखो पापियों को तारे हैं, जो लाखो अधम उद्धारे हैं।
हम रामजी के रामजी हमारे हैं। हम रामजी के रामजी हमारे हैं।
 राम कहो आराम मिलेगा, सुबह शाम आठो याम मिलेगा।-सन्त प्रेमभूषणजी।
राम का परिचय देते हैं-
"रामो विग्रहवान धर्मः धर्मो विग्रहवान रामः " "Rama is the embodiment of dharma. Dharma,if it were to be sculpted,the statue would be a carbon copy of Rama"
-" एषः रामः विग्रहवान धर्मः "  
13 रामॊ विग्रहवान धर्मः साधुः सत्यपराक्रमः
   राजा सर्वस्य लॊकस्य देवानाम इव वासवः
धर्म पालन करने वाले की रक्षा करता है। अम्बरीश राजा के शरण में जाना पड़ा था दुर्वाषा जी को।  धर्म और कर्तव्य एक है, माता-पिता की सेवा धर्म है, और वही कर्तव्य भी है। धर्म-भीरुता अलग है, धर्म-शील होना अलग है। रामचरितमानस शाश्त्र नहीं पुराण है। शास्त्र केवल 6 है। जो वेदांग को समझने के लिये पढना है। वेद भगवान भी शास्त्र नहीं है। सब आदमी खुश हो जाये यह हो नहीं सकता, भगवान को खुश रखो। खुश किया नहीं जा सकता खुश रहा जा सकता है। राम ने माँ कौशल्या को दो बार अपना स्वरूप दिखलाया है- एक बार जन्म लेने के समय दूसरी बार पालने में और मन्दिर में एक साथ दिखलाई पड़ते हैं।
 3 लोक 14 भुवन में एक हमारा यह मृत्यु लोक में धरती पर हमारा- ' घर ' इतना छोटा है, फिर भी हमारा अहंकार कम नहीं होता, भगवान मौन रहते हैं। यहाँ अहंकार करने जैसा कुछ नहीं है। भजन प्रेम से करिये डर कर नहीं, प्रेम में रहिये। लाला 5 साल के हो गये हैं, पय-पान करना चाहते हैं। रहो आंचल में मुखड़ा छुपाये नजर तोहे लग जाएगी। बाल लीला के बाद ब्रह्मचर्य लीला - जनेऊ-संस्कार के बाद गुरु से पढने गये। क्या पढ़े ? माता-पिता को प्रातः काल में सिर झुकाना सीखा। प्रेम करना -प्रातः जगना -वन्दन करना। दिनचर्या मधुर हो, बच्चों  को श्रेष्ठ जनों को प्रणाम करना सिखाओ। रिश्तों में अपना मानने से, बहु को परायी मानोगे तो उसमें कमी दिखाई देगी, कमी गैर में दिखाई देती है, हम जिसको अपना मानते हैं, उसमें केवल अच्छायी ही देख पाते हैं। अ माने नहीं, असुर सुर में नहीं है। मनु भव -मनुष्य बनो, जाति पाती का भेद मत देखो। सबको कर प्रणाम श्रीराम जय जय राम, गोरे उसके काले उसके पूरब पच्छिम वाले उसको सब में उसी के नूर समाया, कौन है अपना कौन पराया। शेख-ब्राह्मण-मुल्ला- पण्डे सब हैं इक मिटटी के भांडे. बेटियाँ परिवार से प्रेम करें, आप चाहोगे, सब आपको चाहेंगे।बेटी बीड़ा होती है तो बीड़ा होती है, हम आयेंगे, आप नहीं आना। अपने परिवार के समत्व में बेटी का विवाह करो। 10% ऊँचे परिवार में करना। जो बोयेगा,पायेगा, तेरा किया सामने आयेगा। जैसी करनी वैसी भरनी। सबसे बड़ी पूजा है मात-पिता की सेवा। किस्मत वाले को ये मौका। महापुरुष किसी पार्टी का नहीं होता है। जो राम का है, वही मेरे कम का है। कोई बदलेगा नहीं हम बदल जाएँ यही अच्छा है। लड़कियां पराये घर से अपने घर आयीं है। बेटी ये नहीं समझती हैं कि अपना घर कौन सा है? दामाद वह जिसका नाम लेते दम फूलने लगे। रामजी दामाद नहीं जमाता हैं। बहु को कैसे रखना- पुतली को जैसे पलक रखती है। हमने ममता दी है, तभी लोग मेरे निकट बने रहते हैं। सबको ममत्व चाहिए। विश्वामित्र जब पुत्र माँगने आये थे तब मना कर दिया था।आज बाबा को दसरथ भेजना नहीं चाह रहे हैं। आदमी का स्टेटमेंट कितना जल्दी बदलता है, देखिये। अलभ्य लाभ होता है, वही मेरी कथा कराता है। सतना में मेरे लाडले हैं। सजधज के जिस दिन मौत की सहजादी आएगी, न सोना काम आएगा, न चाँदी आएगी।मेरे घर साधू-सन्त महापुरुष आते रहें। उनको तो तजा भोजन कराना ही पड़ेगा।जो सुधरना चाहता है, वैसी सुधरेगा, इन लडको पर भी कृपा बनाये रखियेगा। आप चारो का इतना सुंदर व्याह करा के ले आये । दान करते रहो, तेरा ही दिया मैंने खाया पिया है, तेरा शुक्रिया है, तेरा शुक्रिया है। सीता राम राम राम राम सीता राम राम राम राम।हर समय केवल प्रशंशा करने की आदत डालो। नेता की भी बुरे मत करो। हर समय रक दुसरे की वंदना करिये. सब की प्रशंशा करो। वामदेव ने विश्वामित्र की प्रशंशा किये। किसी में बुरा मत देखो।

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