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शुक्रवार, 21 मई 2021

ॐपरिच्छेद ~ 52, [(9 सितम्बर, 1883) श्रीरामकृष्ण वचनामृत ] *Attitude of a "Hero" toward Women *सच्ची चालाकी कौनसी है ?*या राका शशिशोभना गतघना सा यामिनी यामिनी !या लोकद्वय साधिनी चतुरता, सा चातुरी चातुरी ! * तान्त्रिक अचलानन्द वीरभाव की साधना तुम क्यों नहीं मानोगे ? / और श्रीरामकृष्ण का सन्तान-भाव (दिव्यभाव)*आत्मश्रद्धा या अपने आप पर विश्वास का मूल है ईश्वर में विश्वास ! * ईश्वर ही वस्तु है और सब अवस्तु । माँ काली का चिन्मय रूप (The Spirit-form of God ) क्या है ?- ज्ञान और विज्ञान - ‘ईश्वर ही वस्तु है’* कर्ताभजा दल की-भगवतिया तेलिन/“चोर धर्म की बात नहीं सुनते ।’* अपने-आप पर विश्वास (आत्मश्रद्धा) का मूल~ ईश्वर में विश्वास !* कृष्णकिशोर की आत्मश्रद्धा - हलधारी के पिता का विश्वास।*ज्ञान और विज्ञान * ब्रह्मज्ञान के बाद विज्ञान (ऋतम्भरा प्रज्ञा?) - उनके साथ वार्तालाप, उन्हें लेकर आनन्द करना-चाहे जिस भाव से हो, दास्य या सख्य या वात्सल्य या मधुर से-इसका नाम है विज्ञान ।*"What is vijnana? It is knowing God in a special way. "चिन्मय रूप (The Spirit-form of God ) क्या है ?

[(9 सितम्बर, 1883)परिच्छेद ~ 52, श्रीरामकृष्ण वचनामृत]

 [साभार ~ श्री महेन्द्रनाथ गुप्त(बंगाली), कवि श्री पं. सूर्यकान्त त्रिपाठी ‘निराला’(हिंदी अनुवाद)साभार विद्युत् संस्करण ~ रमा लाठ]

परिच्छेद ~ ५२ 

(१)

[दक्षिणेश्वर मंदिर में रतन आदि भक्तों के साथ]

*श्रीरामकृष्ण के चिन्तन और वाणी का एकमात्र बिषय, ईश्वर : " सा चातुरी चातुरी "*

श्रीरामकृष्ण कालीमन्दिरवाले अपने कमरे में प्रसन्नतापूर्वक बैठे हुए भक्तों के साथ वार्तालाप कर रहे हैं। आपका भोजन हो चुका है, दिन के एक दो बजे होंगे ।

आज रविवार है, 9 सितम्बर 1883, भादों की शुक्ला सप्तमी । कमरे में राखाल, मास्टर और रतन बैठे हुए हैं । रामलाल, राम चटर्जी और हाजरा भी एक-एक करके आते और आसन ग्रहण करते हैं । रतन  यदु मल्लिक के बगीचे के प्रबन्धक (steward) हैं , बगीचे की देखभाल करते हैं । वे श्रीरामकृष्ण की भक्ति करते हैं, तथा कभी कभी उनके दर्शन कर जाया करते हैं । श्रीरामकृष्ण उन्हीं से बातचीत कर रहे हैं । रतन कह रहे हैं, यदु मल्लिक के कलकत्तेवाले मकान में नीलकण्ठ का जात्रा (नाटक) होगा

[Ratan told the Master that a yatra performance by Nilkantha had been arranged in Jadu Mallick's house in Calcutta.

रतन- आपको जाना होगा । उन लोगों ने कहला भेजा है अमुक दिन नाटक होगा । 

[রতন — আপনার যেতে হবে। তাঁরা বলে পাঠিয়েছেন, অমুক দিনে যাত্রা হবে।

RATAN (to the Master): "You must go. The date has been set."

श्रीरामकृष्ण- अच्छा है, मेरी भी जाने की इच्छा है ,नीलकण्ठ कितना भक्तिपूर्वक गाता है !

[ শ্রীরামকৃষ্ণ — তা বেশ, আমার যাবার ইচ্ছা আছে। আহা! নীলকণ্ঠের কি ভক্তির সহিত গান!

MASTER: "That's good. I want to go. Nilkantha sings with great devotion."

एक भक्त- जी हाँ ।

श्रीरामकृष्ण- गाना गाते हुए वह आँसुओं से तर हो जाता है । (रतन से) सोचता हूँ रात को वहीँ रह जाऊँगा ।

[শ্রীরামকৃষ্ণ — গান গাইতে গাইতে সে চক্ষের জলে ভেসে যায়। (রতনের প্রতি) — মনে কচ্ছি রাত্রে রয়ে যাব।

MASTER: "Tears flow from his eyes as he sings. (To Ratan) I am thinking of spending the night in Calcutta when I go to see the yatra."

रतन- अच्छा तो है ।

राम चटर्जी आदि ने यदु मल्लिक के पूजा -घर में हुई खड़ाऊँ चोरी वाली बात पूछी ।

[রাম চাটুজ্যে প্রভৃতি অনেকে খড়ম চুরির কথা জিজ্ঞাসা করিলেন।

Ram Chatterji and the other devotees asked Ratan about a theft in Jadu Mallick's house.

रतन- यदुबाबू के गृहदेवता की सोने की खड़ाऊँ चोरी गयी है । इसके कारण घर में बड़ा हो-हल्ला मचा हुआ है । थाली चलायी जाएँगी ।* सब बैठे रहेंगे, जिसने लिया है, उसकी ओर थाली चली जाएगी ! (*यह एक तरह का टोना है ।)

[রতন — যদুবাবুর বাড়ির ঠাকুরের সোনার খড়ম চুরি হয়েছে। তার জন্য বাড়িতে হুলস্থূল পড়ে গেছে। থালা চালা হবে, সব্বাই বসে থাকবে, যে নিয়েছে তারদিকে থালা চলে যাবে।

"Yes, the golden sandals of the Deity were stolen from the shrine room in Jadu Babu's house. It has created an uproar. They are going to try to discover the thief by means of a 'charmed plate'. Everybody will sit in one room, and the plate will move in the direction of the man who stole the sandals."

श्रीरामकृष्ण (हँसते हुए) - किस तरह थाली चलती है ? अपने आप चलती है ?

[শ্রীরামকৃষ্ণ (সহাস্যে) — কিরকম থালা চলে? আপনি চলে?

MASTER (with a smile): "How does the plate move? By itself?"

रतन- नहीं, हाथ से दबायी हुई रहती है । 

[রতন — না, হাত চাপা থাকে। RATAN: "No. A man presses it to the ground."

भक्त- हाथ ही की कोई कारीगरी होगी – हाथ की चालाकी ।

 [ভক্ত — কি একটা হাতের কৌশল আছে — হাতের চাতুরী আছে।

"It is a kind of sleight of hand. It is a clever trick."]

श्रीरामकृष्ण (हँसते हुए)- जिस चालाकी से लोग ईश्वर को पाते हैं, वही चालाकी चालाकी है । ‘सा चातुरी चातुरी !’ *1

[শ্রীরামকৃষ্ণ — যে চাতুরীতে ভগবানকে পাওয়া যায়, সেই চাতুরীই চাতুরী। “সা চাতুরী চাতুরী!”

"The real cleverness is the cleverness by which one realizes God. That trick is the best of all tricks."

]*1 परमपूज्य नवनीदा ने महामण्डल की मासिक संवाद पत्रिका 'विवेक -जीवन' के एक सम्पादकीय में इस प्रकार की थी -  

या राका शशिशोभना गतघना सा यामिनी यामिनी !

 या सौर्न्दययुता मन पतिरता सा कामिनी कामिनी !

या गोविन्द पदारविन्द मधुरा सा माधुरी माधुरी ! 

" या लोकद्वय साधिनी चतुरता सा चातुरी चातुरी ! "

   ---पूर्णिमा की रात्रि मेँ चन्द्रमा जब पूर्ण रुप से उदय होता है, वह रात्रि बहुत शोभायमान होती है।सौर्न्दय से युक्त जिस नारी के जीवन मेँ, पतिव्रत धर्म होता है, वही धन्य है- वही सुन्दरी है !भगवान के पदारविन्दो मेँ जिनका प्रेम हो, वही मानव जीवन की मधुरिमा है !और जिस चतुरता से लोक और परलोक दोनो सुधर जाय वही मानव जीवन की चतुरता है

वही चालाकी चालाकी है जिससे ईश्वर की प्राप्ति होती है – ‘सा चातुरी चातुरी ‘-जैसे हनुमान जी की चतुराई --- 'विद्यावान गुनी अति चातुर। राम काज करिबे को आतुर।।

(२)

*तान्त्रिक साधना और श्रीरामकृष्ण का सन्तान-भाव (दिव्यभाव) *

बातचीत हो रही है, इसी समय कुछ बंगाली सज्जन कमरे में आए और श्रीरामकृष्ण को प्रणाम करके उन्होंने आसन ग्रहण किया । उनमें एक व्यक्ति श्रीरामकृष्ण के पहले के परिचित हैं । ये लोग तन्त्र के मत से साधना करते हैं – पंच-मकार साधन । श्रीरामकृष्ण अन्तर्यामी हैं, उनका सम्पूर्ण भाव समझ गए। उनमें एक आदमी धर्म के नाम से पापाचरण भी करता है, यह बात श्रीरामकृष्ण सुन चुके हैं । उसने किसी बड़े आदमी के भाई की विधवा के साथ अवैध प्रेम कर लिया है और धर्म का नाम लेकर उसके साथ पंच-मकार की साधना करता है, यह भी श्रीरामकृष्ण सुन चुके हैं ।

श्रीरामकृष्ण का सन्तान-भाव (दिव्य भाव)  है । वे हर एक नारी को माता समझते हैं – वेश्या को भी; और स्त्रियों को भगवती का एक-एक रूप समझते हैं ।

[কথাবার্তা চলিতেছে, এমন সময় কতকগুলি বাঙালী ভদ্রলোক ঘরের মধ্যে আসিয়া ঠাকুরকে প্রণাম করিলেন ও আসন গ্রহণ করিলেন। তাহাদের মধ্যে একজন ঠাকুরের পূর্বপরিচিত। ইঁহারা তন্ত্রমতে সাধন করেন। পঞ্চ-মকার সাধন। ঠাকুর অন্তর্যামী, তাহাদের সমস্ত ভাব বুঝিয়াছেন। তাহাদের মধ্যে একজন ধর্মের নাম করিয়া পাপাচারণ করেন, তাহাও শুনিয়াছেন। সে ব্যক্তি একজন বড়মানুষের ভ্রাতার বিধবার সহিত অবৈধ প্রণয় করিয়াছে ও ধর্মের নাম করিয়া তাহার সহিত পঞ্চ-মকার সাধন করে, ইহাও শুনিয়াছেন।শ্রীরামকৃষ্ণের সন্তানভাব। প্রত্যেক স্ত্রীলোককে মা বলিয়া জানেন — বেশ্যা পর্যন্ত! — আর ভগবতীর এক-একটি রূপ বলিয়া জানেন।

As the conversation went on, several Bengali gentlemen entered the room and, after saluting the Master, sat down. One of them was already known to Sri Ramakrishna. These gentlemen followed the cult of Tantra. The Master knew that one of them indulged in immoral acts in the name of religion. The Tantra rituals, under certain conditions, allow the mixing of men and women devotees. But Sri Ramakrishna regarded all women, even prostitutes, as manifestations of the Divine Mother. He addressed them all as "Mother".

श्रीरामकृष्ण (सहास्य)- अचलानन्द कहाँ है ? उस दिन कालीकिंकर आया था – और एक जन था। (मास्टर आदि से) अचलानन्द और उसके शिष्यों का और ही भाव है । मेरा सन्तान-भाव है ।

{শ্রীরামকৃষ্ণ (সহাস্যে) — অচলানন্দ কোথায়? কালীকিঙ্কর সেদিন এসেছিল, আর একজন কি সিঙ্গি, — (মাস্টার প্রভৃতির প্রতি) অচলানন্দ ও তার শিষ্যদের ভাব আলাদা। আমার সন্তানভাব।

MASTER (with a smile): "Where is Achalananda? My ideal is different from that of Achalananda and his disciples. As for myself, I look on all women as my mother."

आए हुए बाबू लोग चुपचाप बैठे हुए हैं, कुछ बोलते नहीं ।

 *अचलानन्द की तान्त्रिक साधना *

श्रीरामकृष्ण-मेरा सन्तान-भाव है । अचलानन्द यहाँ आकर कभी कभी रहता था । खूब शराब पीता था। मेरा सन्तान-भाव है, यह सुनकर अन्त में उसने हठ पकड़ा । कहने लगा- ‘स्त्री को लेकर वीरभाव की साधना तुम क्यों नहीं मानोगे ? शिव की रेख भी नहीं मानोगे ? स्वयं शिवजी ने तन्त्र लिखा है । उसमें सब भावों की साधना है, वीरभाव की भी है ।’

मैंने कहा, ‘मैं क्या जानूँ जी ! मुझे वह सब अच्छा नहीं लगता – मेरा सन्तान-भाव है ।’ 

{শ্রীরামকৃষ্ণ — আমার সন্তানভাব। অচলানন্দ এখানে এসে মাঝে মাঝে থাকত। খুব কারণ করত। আমার সন্তানভাব শুনে শেষে জিদ্-জিদ্‌ করে বলতে লাগল, — ‘স্ত্রীলোক লয়ে বীরভাবে তুমি কেন মানবে না? শিবের কলম মানবে না? শিব তন্ত্র লিখে গেছেন, তাতে সব ভাবের সাধন আছে — বীরভাবেরও সাধন আছে।’“আমি বললাম, কে জানে বাপু আমার ও-সব কিছুই ভাল লাগে না — আমার সন্তানভাব।” 

"Every woman is a mother to me. Achalananda used to stay here now and then. He would drink a great deal of consecrated wine. Hearing about my attitude toward women, he stubbornly justified his own views. He insisted again and again: 'Why should you not recognize the attitude of a "hero" toward women? Won't you admit the injunctions of Siva? Siva Himself is the author of the Tantra, which prescribes various disciplines, including the "heroic".' I said to him: 'But, my dear sir, I don't know. I don't like these ideas. To me every woman is a mother.'

आगन्तुक सज्जन चुप हैं, कुछ बात नहीं निकल रही है ।

*सिद्धाई और पंच-मकार साधना की निन्दा- पिता का कर्तव्य  *

“अचलानन्द अपने बच्चों की खबर नहीं लेता था । मुझसे कहता था, ‘बच्चों को ईश्वर देखेंगे – यह सब ईश्वर की इच्छा है ।’ मैं सुनकर चुप हो जाता था । बात यह है कि लड़कों की देखरेख कौन करे ? लड़के-बाले, घर-द्वार सब छोड़ दिया यह कहीं रुपये कमाने का साधन नहीं बन बैठे, क्योंकि, लोग सोचेंगे, इसने तो सब कुछ त्याग कर दिया है, और इस तरह बहुत सा धन देने लगेंगे।

{“অচলানন্দ ছেলেপিলের খবর নিত না। আমায় বলত, ‘ছেলে ঈশ্বর দেখবেন, — এ-সব ঈশ্বরেচ্ছা!’ আমি শুনে চুপ করে থাকতুম। বলি ছেলেদের দেখে কে? ছেলেপুলে, পরিবার ত্যাগ করেছি বলে, টাকা রোজগারের একটা ছুতা না করা হয়। লোকে ভাববে উনি সব ত্যাগ করেছেন, আর অনেক টাকা এসে পড়বে।

"Achalananda did not support his own children. He said to me, 'God will support them.' I said nothing. But this is the way I felt about it: 'Who will support your children? I hope your renunciation of wife and children is not a way of earning money. People will think you are a holy man because you have renounced everything; so they will give you money. In that way you will earn plenty of money.'

“मुकदमा जीतूँगा, खूब धन होगा, मुकदमा जिता दूँगा, जायदाद दिला दूँगा, क्या इसीलिए साधना है ? ये सब बड़ी ही नीच प्रकृति की बातें हैं ।’ 

{“মোকদ্দমা জিতব, খুব টাকা হবে, মোকদ্দমা জিতিয়ে দেব, বিষয় পাইয়ে দেব, — এইজন্য সাধন? এ-ভারী হীনবুদ্ধির কথা।

"Spiritual practice with a view to winning a lawsuit and earning money, or to helping others win in court and acquire property, shows a very mean understanding.

“रुपये से भोजन-पान होता है, रहने की जगह होती है, देवताओं की सेवा होती है, साधुओं का सत्कार होता है, सामने कोई गरीब आ गया तो उसका उपकार हो जाता है, ये सब रुपये के सदुपयोग हैं । रुपये ऐश्वर्य का भोग करने के लिए नहीं हैं, न देहसुख के लिए हैं, न लोकसम्मान के लिए ।

{“টাকায় খাওয়া-দাওয়া হয়, একটা থাকবার জায়গা হয়, ঠাকুরের সেবা হয়, সাধু-ভক্তের সেবা হয়, সম্মুখে কেউ গরিব পড়লে তার উপকার হয়। এই সব টাকার সদ্ব্যবহার। ঐশ্বর্য ভোগের জন্য টাকা নয়। দেহের সুখের জন্য টাকা নয়। লোকমান্যের জন্য টাকা নয়।

"Money enables a man to get food and drink, build a house, worship the Deity, serve devotees and holy men, and help the poor when he happens to meet them. These are the good uses of money. Money is not meant tor luxuries or creature comforts or for buying a position in society.

विभूतियों के लिए लोग तन्त्र के मत्त से पंच-मकार की साधना करते हैं । परन्तु उनकी बुद्धि कितनी हीन है ! कृष्ण ने अर्जुन से कहा है – भाई ! अष्टसिद्धियों में किसी एक के रहने पर तुम्हारी शक्ति तो थोड़ी बढ़ सकती है, परन्तु तुम मुझे न पाओगे विभूति (सिद्धियों )के रहते माया दूर नहीं होती । माया से फिर अहंकार होता है । कैसी हीन बुद्धि है, घृणास्पद स्थान से तीन घूँट कारणवारि (शराब) पीकर लाभ क्या हुआ? – मुकदमा जीतना ।”

{“সিদ্ধাইয়ের জন্য লোক পঞ্চ-মকার তন্ত্রমতে সাধন করে। কিন্তু কি হীনবুদ্ধি! কৃষ্ণ অর্জুনকে বলেছিলেন, ‘ভাই! অষ্টসিদ্ধির মধ্যে কটি সিদ্ধি থাকলে তোমার একটু শক্তি বাড়তে পারে, কিন্তু আমায় পাবে না। ’ সিদ্ধাই থাকলে মায়া যায় না — মায়া থেকে আবার অহংকার। কি হীনবুদ্ধি! ঘৃণার স্থান থেকে তিন টোসা কারণ বারি খেয়ে লাভ কি হল? — না মোকদ্দমা জেতা!”}

"People practise various Tantrik disciplines to acquire supernatural powers. How mean such people are! Krishna said to Arjuna, 'Friend, by acquiring one of the eight siddhis you may add a little to your power, but you will not be able to realize Me.' One cannot get rid of maya as long as one exercises supernatural powers. And maya begets egotism.

[दीर्घायु होने के लिए हठयोग करने की क्या आवश्यकता? ]

*श्रीरामकृष्ण तथा हठयोग*

“शरीर, रुपया, यह सब अनित्य है । इसके लिए इतना हठ क्यों ? हठयोगियों की दशा देखो न ! शरीर किसी तरह दीर्घायु हो, बस इसी और ध्यान लगा रहता है । ईश्वर की ओर लक्ष नहीं है । नेति-धौति बस पेट साफ कर रहे हैं ! नल लगाकर दूध ग्रहण कर रहे हैं ।

{“শরীর, টাকা, — এ-সব অনিত্য। এর জন্য — এত কেন? দেখ না, হঠযোগীদের দশা। শরীর কিসে দীর্ঘায়ু হবে এই দিকেই নজর! ঈশ্বরের দিকে লক্ষ্য নাই! নেতি, ধৌতি — কেবল পেট সাফ করছেন! নল দিয়ে দুধ গ্রহণ করছেন!} 

"Body and wealth are impermanent. Why go to so much trouble for their sakes? Just think of the plight of the hathayogis. Their attention is fixed on one ideal only — longevity. They do not aim at the realization of God at all. They practise such exercises as washing out the intestines, drinking milk through a tube, and the like, with that one aim in view.

एक सुनार था । उसकी जीभ उलटकर तालू पर चढ़ गयी थी । तब जड़-समाधि की तरह उसकी अवस्था हो गयी । फिर वह हिलता-डुलता न था । बहुत दिनों तक उसी अवस्था में रहा । लोग आकर पूजा करते थे । कुछ साल बाद एकाएक उसकी जीभ सीधी हो गयी । तब उसे पहले की तरह चेतना हो गयी । फिर वही सुनार का काम करने लगा ! (सब हँसते हैं ।)

{“একজন স্যাকরা তার তালুতে জিব উলটে গিছল, তখন তার জড় সমাধির মতো হয়ে গেল। — আর নড়ে-চড়ে না। অনেকদিন ওই ভাবে ছিল, সকলে এসে পূজা করত। কয়েক বৎসর পরে তার জিব হঠাৎ সোজা হয়ে গেল। তখন আগেকার মতো চৈতন্য হল, আবার স্যাকরার কাজ করতে লাগল! (সকলের হাস্য)

"There was once a goldsmith whose tongue suddenly turned up and stuck to his palate. He looked like a man in samadhi. He became completely inert and remained so a long time. People came to worship him. After several years, his tongue suddenly returned to its natural position, and he became conscious of things as before. So he went back to his work as a goldsmith. (All laugh.)

“ वे सब शरीर के कर्म हैं । उससे प्रायः ईश्वर के साथ कोई सम्बन्ध नहीं रहता । शालग्राम का भाई –[उसका लड़का वंशलोचन (दवा) का व्यवसाय करता था ]- बयासी तरह के आसन जानता था । वह योग-समाधि की भी बहुत सी बातें कहता था । परन्तु भीतर ही भीतर उसका कामिनी-कांचन में मन था। दीवान मदन भट्ट की कुछ हजार रुपयों की एक नोट पड़ी थी, रुपयों की लालच से वह उसे झट निगल गया । बाद में फिर किसी तरह निकाल लेता । परन्तु नोट उससे वसूल हो गयी । अन्त में तीन साल के लिए वह जेल भेजा गया । मैं सरल भाव से सोचता था, शायद उसकी आध्यात्मिक उन्नति बहुत हो चुकी है, सच कहता हूँ – रामदुहाई !” 

{“ও-সব শরীরের কার্য, ওতে প্রায় ঈশ্বরের সঙ্গে সম্বন্ধ থাকে না। শালগ্রামের ভাই (তার ছেলের বংশলোচনের কারবার ছিল) — বিরাশিরকম আসন জানত, আর নিজে যোগসমাধির কথা কত বলত! কিন্তু ভিতরে ভিতরে কামিনী-কাঞ্চনে মন। দাওয়ান মদন ভট্টের কত হাজার টাকার একখানা নোট পড়ে ছিল। টাকার লোভে সে টপ করে খেয়ে ফেলেছে — গিলে ফেলেছে — পরে কোনও রূপে বার করবে। কিন্তু নোট আদায় হল। শেষে তিন বৎসর মেয়াদ। আমি সরল বুদ্ধিতে ভাবতুম, বুঝি বেশি এগিয়ে পড়েছে, — মাইরি বলছি!”}

"These are physical things and have nothing to do with God. There was a man who knew eighty-two postures and talked big about yoga-samadhi. But inwardly he was drawn to 'woman and gold'. Once he found a bank-note worth several thousand rupees. He could not resist the temptation, and swallowed it, thinking he would get it out somehow later on. The note was got out of him all right, but he was sent to jail for three years. In my guilelessness I used to think that the man had made great spiritual progress. Really, I say it upon my word!

*श्रीरामकृष्ण तथा कामिनी-कांचन*

[भगवतीया तेलिन , कर्ताभजा सम्प्रदाय में स्त्रियों को साथ लेकर साधना की निंदा]

“यहाँ सींती का महेन्द्र पाल पाँच रुपये दे गया था, रामलाल के पास । उसके चले जाने के बाद रामलाल ने मुझसे कहा । मैंने पूछा, क्यों दिया ? रामलाल ने कहा, यहाँ के खर्च के लिए दिया है । तब याद आया, दूधवाले को कुछ देना है; हो न हो, इन्हीं रुपयों से कुछ दे दिया जाय । परन्तु यह क्या आश्चर्य ! मैं रात को सोया हुआ था, एकाएक उठ पड़ा । छाती के भीतर मानो कोई बिल्ली की तरह खरोंचने लगा । तब रामलाल के पास जाकर मैंने कहा, किसे दिया है? – तेरी चाची को ? रामलाल ने कहा , नहीं, आपके लिए । तब मैंने कहा, नहीं, रुपये जाकर अभी वापस दे आ, नहीं तो मुझे शान्ति न होगी ।

“रामलाल सुबह को उठकर जब रुपये वापस दे आया, तब तबियत ठीक हुई !”

{“এখানে সিঁথির মহিন্দোর পাল পাঁচটি টাকা দিয়ে গিছল — রামলালের কাছে। সে চলে গেলে পর রামলাল আমায় বললে। আমি জিজ্ঞাসা করলাম, কেন দিয়েছে? রামলাল বললে, এখানের জন্যে দিয়েছে। তখন মনে উঠতে লাগল যে — দুধের দেনা রয়েছে, না হয় কতক শোধ দেওয়া যাবে। ওমা, রাত্রে শুয়ে আছি হঠাৎ উঠে পড়লাম। একবার বুকের ভিতর বিল্লী আঁচড়াতে লাগল! তখন রামলালকে গিয়ে বললাম, কাকে দিয়েছে? তোর খুড়ীকে কি দিয়েছে? রামলাল বললে, না আপনার জন্য দিয়েছে। তখন বললাম, না; এক্ষুণি টাকা ফিরিয়ে দিয়ে আয়, তা না হলে আমার শান্তি হবে না।} 

"Mahendra Pal of Sinthi once gave Ramlal five rupees. Ramlal told me about it after he had gone. I asked him what the gift was for, and Ramlal said "that it was meant for me. I thought it might enable me to pay off some of my debt for milk. That night I went to bed and, if you will believe me, I suddenly woke up with a pain. I felt as if a cat were scratching inside my chest. I at once went to Ramlal and asked him: 'For whom did Mahendra give this money? Was it for your aunt?'5 'No,' said Ramlal, 'it is meant for you.' I said to him, 'Go and return the money at once, or I shall have no peace of mind.' Ramlal returned the money early in the morning and I felt relieved.

“उस देश की भगवतिया तेलिन कर्ताभजा दल की है । वे सब औरत लेकर साधना किया करते हैं। एक पुरुष के हुए बिना स्त्री की साधना होगी ही नहीं । उस पुरुष को ‘रागकृष्ण’ कहते हैं । तीन बार स्त्री से पूछा जाता है, तूने कृष्ण को पाया? वह स्त्री तीनों बार कहती है, पाया ।

{“ও-দেশে ভগি তেলী কর্তাভজার দলের। ওই মেয়েমানুষ নিয়ে সাধন। একটি পুরুষ না হলে মেয়েমানুষের সাধন-ভজন হবে না। সেই পুরুষটিকে বলে ‘রাগকৃষ্ণ’। তিনবার জিজ্ঞাসা করে, কৃষ্ণ পেয়েছিস? সে মেয়েমানুষটা তিনবার বলে, পেয়েছি इसका इंग्लिश ट्रांसलेशन नहीं है ?}

“भगवतिया शुद्र है, तेलिन है, परन्तु सब उसके पास जाकर उसके पैरों की धूल लेते थे, उसे नमस्कार करते थे । तब जमींदार को इस पर बड़ा क्रोध आ गया । मैंने उसे देखा है । जमींदार ने उसके पास एक बदमाश भेज दिया । उससे वह फँस गयी और उसके गर्भ रहा ।”

{“ভগী (ভগবতী) শূদ্র, তেলী। সকলে গিয়ে তার পায়ের ধুলো নিয়ে নমস্কার করত, তখন জমিদারের বড় রাগ হল। আমি তাকে দেখেছি। জমিদার একটা দুষ্ট লোক পাঠিয়ে দেয় — তার পাল্লায় পড়ে তার আবার পেটে ছেলে হয়।

(👆इसका इंग्लिश ट्रांसलेशन नहीं है ?

*चोरा न शुने धर्मेर काहिनी *

 “चोर धर्म की बात नहीं सुनते ।’ 

“एक दिन एक बड़ा आदमी आया था । मुझसे कहा, ‘महाराज, इस मुक़दमे में ऐसा कर दीजिये कि मैं जीत जाऊँ । आपका नाम सुनकर आया हूँ ।’ मैंने कहा, ‘भाई, वह मैं नहीं हूँ । तुम्हारी भूल हुई । वह अचलानन्द है ।’

{“একদিন একজন বড়মানুষ এসেছিল। আমায় বলে, মহাশয় এই মোকদ্দমাটি কিসে জিত হয় আপনার করে দিতে হবে। আপনার নাম শুনে এসেছি। আমি বললাম, বাপু, সে আমি নই — তোমার ভুল হয়েছে। সে অচলানন্দ।}

"Once a rich man came here and said to me: 'Sir, you must do something so that I may win my lawsuit. I have heard of your reputation and so I have come here.' 'My dear sir,' I said to him, 'you have made a mistake. I am not the person you are looking for ; Achalananda is your man.

“ईश्वर पर जिसकी सच्ची भक्ति है, वह शरीर, रुपया आदि की थोड़ी भी परवाह नहीं करता । वह सोचता है, देहसुख के लिए, लोकसम्मान के लिए, रुपयों के लिए, क्या जप और तप करूँ ? ये सब अनित्य हैं, चार दिन के लिए हैं ।”

{“যার ঠিক ঠিক ঈশ্বরে ভক্তি আছে, সে শরীর, টাকা — এ-সব গ্রাহ্য করে না। সে ভাবে, দেহসুখের জন্য, কি লোকমান্যের জন্য, কি টাকার জন্য, আবার তপ-জপ কি! এ-সব অনিত্য, দিন দুই-তিনের জন্য।”} 

"A true devotee of God does not care for such things as wealth or health. He thinks: 'Why should I practise spiritual austerities for creature comforts, money, or name and fame? These are all impermanent. They last only a day or two.'"

आये हुए सब बाबू लोग उठे । उन्होंने नमस्कार करके कहा, ‘तो हम चलें ।’ वे चले गए । श्रीरामकृष्ण मुस्करा रहे हैं और मास्टर से कह रहे हैं – “चोर धर्म की बात नहीं सुनते ।’ (सब हँसते हैं ।)

(আগন্তুক বাবুরা এইবার গাত্রোত্থান করিলেন ও নমস্কার করিয়া বলিলেন, তবে আমারা আসি। তাঁহারা চলিয়া গেলেন। ঠাকুর শ্রীরামকৃষ্ণ ঈষৎ হাস্য করিতেছেন ও মাস্টারকে বলিতেছেন, “চোরা না শুনে ধর্মের কাহিনী।” (সকলের হাস্য)

The visiting gentlemen took leave of the Master after saluting him. When they had departed, Sri Ramakrishna smiled and said to M., "You can never make a thief listen to religion. (All laugh.)

(४)

[ अपने-आप पर विश्वास (आत्मश्रद्धा) का मूल~ ईश्वर में विश्वास !]

*विश्वास चाहिए* 

श्रीरामकृष्ण (मणि से सहास्य)- अच्छा, नरेन्द्र कैसा है ?

मणि- जी, बहुत अच्छा है ।

श्रीरामकृष्ण- देखो, उसकी जैसी विद्या है, वैसी ही बुद्धि भी है । और गाना-बजाना भी जानता है । इधर जितेन्द्रिय भी है; कहता है, विवाह न करूँगा । 

{ "শ্রীরামকৃষ্ণ — দেখ, তার যেমন বিদ্যে তেমনি বুদ্ধি! আবার গাইতে বাজাতে। এদিকে জিতেন্দ্রিয়, বলেছে বিয়ে করবে না!} 

"Yes. His intelligence is as great as his learning. Besides, he is gifted in music, both as a singer and player. Then too, he has control over his passions. He says he will never marry.

मणि- आपने कहा है, जो पाप पाप सोचता रहता है, वह पापी हो जाता है, फिर वह उठ नहीं सकता । मैं ईश्वर की सन्तान हूँ , यह विश्वास यदि हुआ तो बहुत शीघ्रता से उन्नति होती है । 

{ "মণি — আপনি বলেছেন, যে পাপ পাপ মনে করে সেই পাপী হয়ে যায়। আর উঠতে পারে না। আমি ঈশ্বরের ছেলে — এ-বিশ্বাস থাকলে শীঘ্র শীঘ্র উন্নতি হয়।} 

"You once said that one who constantly talks of his sin really becomes a sinner; he cannot extricate himself from sin. But if a man has firm faith that he is the son of God, then he makes rapid strides in spiritual life.

[पृष्ठभूमि - कृष्णकिशोर की आत्मश्रद्धा - हलधारी के पिता का विश्वास। ]

श्रीरामकृष्ण- हाँ, विश्वास चाहिए ।

“कृष्णकिशोर का कैसा विश्वास है । कहता था, ‘मैं एक बार उनका नाम ले चुका, अब मुझमें पाप कहाँ रह गया ? मैं शुद्ध और निर्मल हो गया हूँ ।’ हलधारी ने कहा था, ‘अजामिल फिर नारायण की तपस्या करने गया था; तपस्या न करने पर क्या उनकी कृपा होती है ? – केवल एक बार नारायण कहने से क्या होगा ?’ यह बात सुनकर कृष्णकिशोर को इतना क्रोध आया कि बगीचे में फूल तोड़ने आया था – उसने हलधारी की ओर फिर एक दृष्टि भी नहीं फेरी ।

{“কৃষ্ণকিশোরের কি বিশ্বাস! বলত, একবার তাঁর নাম করেছি আমার আবার পাপ কি? আমি শুদ্ধ নির্মল হয়ে গেছি। হলধারী বলেছিল, ‘অজামিল আবার নারায়ণের তপস্যায় গিছিল, তপস্যা না করলে কি তাঁর কৃপা পাওয়া যায়! শুধু একবার নারায়ণ বললে কি হবে!’ ওই কথা শুনে কৃষ্ণকিশোরের যে রাগ! এই বাগানে ফুল তুলতে এসেছিল, হলধারীর মুখের দিকে চেয়ে দেখলে না!}

MASTER: "Yes, faith. What tremendous faith Krishnakishore had! He used to say: 'I have spoken the name of God once. That is enough. How can I remain a sinner? I have become pure and stainless.' One day Haladhari said: 'Even Ajamila had to perform austerities to gratify God. Can one receive the grace of God without austerities? What will one gain by speaking the name of Narayana only once?' At these remarks Krishnakishore's anger knew no bounds. The next time he came to this garden to pick flowers he wouldn't even look at Haladhari.

“हलधारी का बाप बड़ा भक्त था । स्नान करते हुए कमरभर पानी में जब वह मन्त्र पढ़ता था, - ‘रक्तवर्ण चतुर्मुखम्’ आदि कहते हुए ध्यान करता था, - तब उसकी आँखों से अनर्गल प्रेमाश्रु बह चलते थे । 

{“হলধারীর বাপ ভারী ভক্ত ছিল। স্নানের সময় কোমর জলে গিয়ে যখন মন্ত্র উচ্চারণ করত, — ‘রক্তবর্ণং চতুর্মুখম্‌’ এই সব ধ্যান যখন করত, — তখন চক্ষু দিয়ে প্রেমাশ্রু পড়ত।}

"Haladhari's father was a great devotee. At bathing-time he would stand waist-deep in the water and meditate on God, uttering the sacred mantra; then the tears would flow from his eyes.

“एक दिन एँड़ेदेह के घाट पर एक साधु आया । बात हुई, हम लोग भी देखने जाएँगे । हलधारी ने कहा, ‘उस पंचभूतों के गिलाफ को देखकर क्या होगा ?’

इसके बाद कृष्णकिशोर ने यह बात सुनकर कहा था, ‘क्या ! साधु के दर्शन से क्या होगा ऐसी बात भी उसके मुँह से निकली ! जो लोग कृष्ण का नाम लेते हैं या रामनाम का जप करते हैं, उनकी देह चिन्मय होती है और वे सब चिन्मय देखते हैं – चिन्मय शाम, चिन्मय धाम !’ उसने कहा था, ‘एक बार कृष्ण या राम का नाम लेने पर सौ बार के सन्ध्या करने का फल होता है ।’ जब उसके लड़के की मृत्यु होने लगी तब मरते समय राम का नाम लेकर उसने देह छोड़ी थी । कृष्णकिशोर कहता था, ‘उसने राम का नाम लिया है, उसे अब क्या चिन्ता है ?’ परन्तु कभी कभी रो पड़ता था। पुत्र का शोक !

{“একদিন এঁড়েদার ঘাটে একটি সাধু এসেছে। আমরা দেখতে যাব কথা হল। হলধারী বললে, সেই পঞ্চভূতের খোলটা দেখতে গিয়ে কি হবে? তারপরে সেই কথা কৃষ্ণকিশোর শুনে কি বলেছিল, কি! সাধুকে দর্শন করে কি হবে, এই কথা বললে! — যে কৃষ্ণনাম করে, বা রামনাম করে, তার চিন্ময় দেহ হয়। আর সে সব চিন্ময় দেখে — ‘চিন্ময় শ্যাম’, ‘চিন্ময় ধাম’। বলেছিল, একবার কৃষ্ণনাম কি একবার রামনাম করলে শতবার সন্ধ্যার ফল পাওয়া যায়। তার একটি ছেলে যখন মারা গেল, প্রাণ যাবার সময় রামনাম বলেছিল। কৃষ্ণকিশোর বলেছিল, ও রাম বলেছে, ওর আর ভাবনা কি! তবে মাঝে মাঝে এক-একবার কাঁদত। পুত্রশোক!} 

"One day a holy man came to the bathing-place on the Ganges at Ariadaha. We talked about seeing him. Haladhari said, 'What shall we gain by seeing the body of a man, a mere cage made of the five elements?' Krishnakishore heard about it and said: 'What? Did Haladhari ask what would be gained by visiting a holy man? By repeating the name of Krishna or Rama a man transforms his physical body into a spiritual body. To such a man everything is the embodiment of Spirit. To him Krishna is the embodiment of Spirit, and His sacred Abode is the embodiment of Spirit.' He also said, 'A man who utters the name of Krishna or Rama even once reaps the result of a hundred sandhyas."One of his sons chanted the name of Rama on his death-bed. Krishnakishore said, 'He has nothing to worry about; he has chanted the name of Rama.' But now and then he wept. After all, it was the death of his own son.'

“वृन्दावन में उसे प्यास लगी थी । मोची से उसने कहा, ‘तू शिव का नाम ले ।’ उसने शिव का नाम लेकर पानी भर दिया – उस तरह का आचारी ब्राह्मण होकर भी उसने वह पानी पी लिया कितना बड़ा विश्वास है ।

[“বৃন্দাবনে জলতৃষ্ণা পেয়েছে, মুচিকে বললে, তুই বল শিব। সে শিবনাম করে জল তুলে দিলে — অমন আচারী ব্রাহ্মণ সেই জল খেলে! কি বিশ্বাস!  पाश्चात्य देशों के भक्त , जो भारतीय संस्कृति के वर्णाश्रम धर्म से परिचित नहीं हैं , वे कहीं इसका गलत अर्थ न समझें , इसीलिए शायद महाराज ने इसको इंग्लिश में ट्रांसलेट नहीं किया है ?' ] 

“विश्वास नहीं है, और पूजा, जप, सन्ध्यादि कर्म करता है, इससे कुछ नहीं होगा ! क्यों जी ?”

{“বিশ্বাস নাই, অথচ পূজা, জপ, সন্ধ্যাদি কর্ম করছে — তাতে কিছুই হয় না! কি বল?”} 

"Nothing whatsoever is achieved by the performance of worship, japa, and devotions, without faith. Isn't that so?"

मास्टर- जी हाँ ।

श्रीरामकृष्ण (सहास्य) - गंगा के घाट में नहाने के लिए लोग आते हैं । मैंने देखा है, उस समय दुनिया भर की बातें करते हैं । किसी की विधवा बुआ कह रही है – “बहू, मेरे बिना रहे दुर्गापूजा नहीं होती । मैं न रहूँ तो ‘श्री’ मूर्ति भी सुडौल न हो ! घर में शादी-ब्याह कुछ हुआ तो सब काम मुझे ही करना पड़ता है, नहीं तो अधूरा रह जाय । फूलशय्या का बन्दोबस्त, कत्थे के बगीचे की तैयारी सब मैं ही करती हूँ ।”

['শ্রীরামকৃষ্ণ (সহাস্যে) — গঙ্গার ঘাটে নাইতে এসেছে দেখেছি। যত রাজ্যের কথা! বিধবা পিসি বলছে, মা, দুর্গাপূজা আমি না হলে হয় না — শ্রীটি গড়া পর্যন্ত! বাটীতে বিয়ে-থাওয়া হলে সব আমায় করতে হবে মা — তবে হবে। এই ফুলশয্যের যোগাড়, খয়েরের বাগানটি পর্যন্ত!}

MASTER: "I see people coming to the Ganges to bathe. They talk their heads off about everything under the sun. The widowed aunt says: 'Without me they cannot perform the Durga Puja. I have to look after even the smallest detail. Again, I have to supervise everything when there is a marriage festival in the family, even the bed of the bride and groom.

मणि- जी, इनका भी क्या दोष – क्या लेकर रहें ।

{ "Why should we blame them? How else will they pass the time?

"মণি — আজ্ঞে, এদেরই বা দোষ কি, কি নিয়ে থাকে!}

श्रीरामकृष्ण (सहास्य)- छत पर ठाकुरजी के लिए घर बनाया है । नारायण की पूजा हो रही है । पूजा का नैवेद्य, चन्दन यह सब तैयार किया जा रहा है । परन्तु ईश्वर की बात कहीं एक भी नहीं होती । क्या पकाना चाहिए, - आज बाजार में कोई अच्छी चीज नहीं मिली, कल अमुक व्यंजन अच्छा बना था, - वह लड़का मेरा चचेरा भाई हैं, - क्यों रे, तेरी वह नौकरी है न ? – और मैं अब कैसी हूँ ! – मेरा हरि चल बसा !’ बस यही सब बातें होती हैं !

“देखो भला, ठाकुरजी की पूजा के समय ये सब दुनिया भर की बातें !”

{ শ্রীরামকৃষ্ণ (সহাস্যে) — ছাদের উপর ঠাকুরঘর, নারায়ণপূজা হচ্ছে। পূজার নৈবেদ্য, চন্দন ঘষা — এই সব হচ্ছে। কিন্তু ঈশ্বরের কথা একটি নাই। কি রাঁধতে হবে, — আজ বাজারে কিছু ভাল পেলে না, — কাল অমুক ব্যঞ্জনটি বেশ হয়েছিল! ওছে লেটি আমার খুড়তুত ভাই হয়, — হাঁরে তোর সে কর্মটি আছে? — আর আমি কেমন আছি! — আমার হরি নাই! এই সব কথা।} 

"Some people have their shrine rooms in their attics. The women arrange the offerings and flowers and make the sandal-paste. But, while doing so, they never say a word about God. The burden of the conversation is: 'What shall we cook today? I couldn't get good vegetables in the market. That curry was delicious yesterday. That boy is my cousin. Hello there! Have you that job still? Don't ask me how I am. My Hari is no more.' Just fancy! They talk of such things in the shrine room at the time of worship!"

मणि- जी, अधिक संख्या ऐसे ही लोगों की है । आप जैसा कहते हैं, ईश्वर पर जिसका अनुराग है, उसे अधिक दिनों तक पूजा और सन्ध्या थोड़े ही करनी पड़ती है !

(5) 

[ माँ काली का चिन्मय रूप (The Spirit-form of God ) क्या है >'पानी' का......'आइसबर्ग '!] 

*चिन्मय रूप । ज्ञान और विज्ञान । ‘ईश्वर ही वस्तु है’*

श्रीरामकृष्ण एकान्त में मणि के साथ बातचीत कर रहे हैं ।

मणि- अच्छा, वही अगर सब कुछ हुए हैं, तो इस तरह के अनेक भाव क्यों दीख पड़ते हैं ?

["মণি — আজ্ঞে, তিনিই যদি সব হয়েছেন, এরূপ নানাভাব কেন?]

M: "Sir, if it is God Himself who has become everything, then why do people have so many different feelings?

श्रीरामकृष्ण- विभु ( All-pervading Spirit) के स्वरूप से वे सर्वभूतों में हैं परन्तु शक्ति की विशेषता है । कहीं तो उनकी विद्याशक्ति है और कहीं अविद्याशक्ति, कहीं ज्यादा शक्ति है और कम । देखो न, आदमियों के भीतर ठग-चोर भी हैं और बाघ जैसे भयानक प्रकृतिवाले भी हैं । मैं कहता हूँ, ठग-नारायण हैं, बाघ-नारायण है।

[শ্রীরামকৃষ্ণ — বিভুরূপে তিনি সর্বভূতে আছেন, কিন্তু শক্তিবিশেষ, কোনখানে বিদ্যাশক্তি (Metaphysics) , কোনখানে অবিদ্যাশক্তি (Physics), কোনখানে বেশি শক্তি, কোনখানে কম শক্তি। দেখ না, মানুষের ভিতর ঠগ, জুয়াচোর আছে, আবার বাঘের মতো ভয়ানক লোকও আছে। আমি বলি, ঠগ নারায়ণ, বাঘ নারায়ণ।

MASTER: "Undoubtedly God exists in all beings as the All-pervading Spirit, but the manifestations of His Power are different in different beings. In some places there is a manifestation of the power of Knowledge; in others, of the power of ignorance. In some places there is a greater manifestation of power than in others. Don't you see that among human beings there are cheats and gamblers, to say nothing of men who are like tigers. I think of them as the 'cheat God', the 'tiger God'."

मणि-(सहास्य)- जी, उन्हें तो दूर ही से नमस्कार करना चाहिए । बाघनारायण के पास जाकर अगर कोई उन्हें भर बाँह भेंटने लगे, तब तो वे उसे कलेवा ही कर जाएँ ।

"মণি (সহাস্যে) — আজ্ঞা, তাদের দূর থেকে নমস্কার করতে হয়। বাঘ নারায়ণকে কাছে গিয়ে আলিঙ্গন করলে খেয়ে ফেলবে।} 

"We should salute them from a distance. If we go near the 'tiger God' and embrace him, he may devour us.

श्रीरामकृष्ण- वे और उनकी शक्ति – ब्रह्म और शक्ति – इसके सिवाय और कुछ नहीं है । नारद ने रामचन्द्रजी से स्तव करते हुए कहा – हे राम, तुम्हीं शिव हो, सीता भगवती हैं; तुम ब्रह्मा हो, सीता ब्रह्माणी हैं; तुम इन्द्र हो, सीता इन्द्राणी हैं; तुम नारायण हो, सीता लक्ष्मी; पुरुषवाचक जो कुछ हैं, सब तुम्हीं हो, स्त्रीवाचक जो कुछ है, सब सीता ।

{শ্রীরামকৃষ্ণ — তিনি আর তাঁর শক্তি, ব্রহ্ম আর শক্তি — বই আর কিছুই নাই। নারদ রামচন্দ্রকে স্তব করতে বললেন, হে রাম তুমিই শিব, সীতা ভগবতী; তুমি ব্রহ্মা, সীতা ব্রহ্মাণী; তুমি ইন্দ্র, সীতা ইন্দ্রাণী; তুমিই নারায়ণ, সীতা লক্ষ্মী; পুরুষ-বাচক যা কিছু আছে সব তুমি, স্ত্রী-বাচক সব সীতা।}

MASTER : "He and His Power, Brahman and Its Power — nothing else exists but this. In a hymn to Rama, Narada said: 'O Rama, You are. Siva, and Sita is Bhagavati; You are Brahma, and Sita is Brahmani; You are Indra, and Sita is Indrani; You are Narayana, and Sita is Lakshmi. O 'Rama, You are the symbol of all that is masculine, and Sita of all that is feminine.'

मणि- और चिन्मय रूप ?

{ "Sir, what is the Spirit-form of God like?"মণি — আর চিন্ময় রূপ?} 

श्रीरामकृष्ण कुछ देर बाद विचार करने लगे । फिर धीमे स्वर में कहा, “वह किस तरह है बताऊँ – जैसे पानी का......(आइसबर्ग ?)। ये सब बातें साधना करने पर समझ में आती है

{শ্রীরামকৃষ্ণ একটু চিন্তা করিতেছেন। আস্তে আস্তে বলিতেছেন, “কিরকম জানো — যেমন জলের — এ-সব সাধন করলে জানা যায়।}

Sri Ramakrishna reflected a moment and said softly: "Shall I tell you what it is like? It is like water. . . . One understands all this through spiritual discipline.

 * ब्रह्मज्ञान के बाद विज्ञान (ऋतम्भरा प्रज्ञा?) - जल और आइसबर्ग अभेद  

“रूप पर विश्वास करना । जब ब्रह्मज्ञान होता है, अभेदता तब होती है । ब्रह्म और शक्ति अभेद हैं। जैसे अग्नि और उसकी दाहिका शक्ति । 

अग्नि को सोचने पर साथ ही उसकी दाहिका शक्ति को भी सोचना पड़ता है; और दाहिका शक्ति को सोचने पर अग्नि को भी सोचना पड़ता है; जैसे दूध और दूध की धवलता, जल और उसकी हिमशक्ति

[“তুমি ‘রূপে’ বিশ্বাস করো। ব্রহ্মজ্ঞান হলে তবে অভেদ — ব্রহ্ম আর শক্তি অভেদ। যেমন অগ্নি আর তার দাহিকাশক্তি। অগ্নি ভাবলেই দাহিকাশক্তি ভাবতে হয়, আর দাহিকাশক্তি ভাবলেই অগ্নি ভাবতে হয়। দুগ্ধ আর দুগ্ধের ধবলত্ব। জল আর হিম শক্তি।

"Believe in the form of God. It is only after attaining Brahmajnana that one sees non-duality, the oneness of Brahman and Its Sakti. Brahman and Sakti are identical, like fire and its power to burn. When a man thinks of fire, he must also think of its power to burn. Again, when he thinks of the power to bum, he must also think of fire. Further, Brahman and Sakti are like milk and its whiteness, water and its wetness.

“ परन्तु ब्रह्मज्ञान के बाद भी अवस्था है । ज्ञान के बाद विज्ञान है । जिसे ज्ञान है, जिसे बोध हो गया, उसमें अज्ञान भी है । शत पुत्रों के शोक से वशिष्ठ को भी रोना पड़ा था । लक्ष्मण के पूछने पर राम ने कहा, 'भाई, ज्ञान और अज्ञान के पार जाओ; जिसे ज्ञान है, उसे अज्ञान भी है । पैर में अगर काँटा चुभ जाय, तो एक दूसरा काँटा लेकर वह निकाल दिया जात है, फिर उसके साथ दूसरा काँटा भी फेंक दिया जाता है ।

[“কিন্তু ব্রহ্মজ্ঞানের পরও আছে। জ্ঞানের পর বিজ্ঞান। যার জ্ঞান আছে, বোধ হয়েছে, তার অজ্ঞানও আছে। বশিষ্ঠ শত পুত্রশোকে কাতর হলেন। লক্ষ্মণ জিজ্ঞাসা করাতে রাম বললেন, ভাই, জ্ঞান অজ্ঞানের পার হও, যার আছে জ্ঞান, তার আছে অজ্ঞান। পায়ে যদি কাঁটা ফোটে, আর-একটি আহরণ করে সেই কাঁটাটি তুলে দিতে হয়। তারপর দ্বিতীয় কাঁটাটিও ফেলে দেয়।”]

"But there is a stage beyond even Brahmajnana. After jnana comes vijnana. He who is aware of knowledge is also aware of ignorance. The sage Vasishtha was stricken with grief at the death of his hundred sons. Asked by Lakshmana why a man of knowledge should grieve for such a reason, Rama said, 'Brother, go beyond both knowledge and ignorance.' He who has knowledge has ignorance also. If a thorn has entered your foot, get another thorn and with its help take out the first; then throw away the second also."

मणि- क्या अज्ञान और ज्ञान दोनों फेंक दिये जाते हैं ?

{মণি — অজ্ঞান, জ্ঞান দুই-ই ফেলে দিতে হয়?}

M: "Should one throw away both knowledge and ignorance?"

श्रीरामकृष्ण- हाँ, इसीलिए विज्ञान की आवश्यकता है ।

“देखो न, जिसे उजाले का ज्ञान है, उसे अँधेरे का भी है; जिसे सुख का बोध है, उसे दुःख का भी है; जिसे पुण्य का विचार है, उसे पाप का भी है; जिसे भले का स्मरण है, उसे बुरे का भी है; जिसे शुचिता का अनुभव है, उसे अशुचिता का भी है; जिसे ‘अहं’ का ध्यान ही, उसे ‘तुम’ का भी है ! 

{“শ্রীরামকৃষ্ণ — হাঁ, তাই বিজ্ঞানের প্রয়োজন!দেখ না, যার আলো জ্ঞান আছে, তার অন্ধকার জ্ঞান আছে; যার সুখ বোধ আছে, তার দুঃখ বোধ আছে; যার পুণ্য বোধ আছে, তার পাপ বোধ আছে; যার ভাল বোধ আছে, তার মন্দ বোধও আছে; যার শুচি বোধ আছে, তার অশুচি বোধ আছে; যার আমি বোধ আছে, তার তুমি বোধও আছে।परमपूज्य नवनी दा ने संत रबिया के रूपक से समझाया था - " 'I' am 'You' My dear ! " और दरवाजा खुल गया !

 "Yes. That is why one should acquire vijnana. You see, he who is aware of light is also aware of darkness. He who is aware of happiness is also aware of suffering. He who is aware of virtue is also aware of vice. He who is aware of good is also aware of evil. He who is aware of holiness is also aware of unholiness. He who is aware of 'I' is also aware of 'you'.

“विज्ञान –अर्थात् उन्हें विशेष रूप से जानना । 

लकड़ी में आग है, इस बोध इस विश्वास-का नाम है ज्ञान, और उस आग से खाना पकाना, खाना खाकर हृष्ट-पुष्ट होना, इसका नाम है विज्ञान । ईश्वर हैं, हृदय में यह बोध होना इसका नाम है ज्ञान और उनके साथ वार्तालाप, उन्हें लेकर आनन्द करना-चाहे जिस भाव से हो, दास्य या सख्य या वात्सल्य या मधुर से-इसका नाम है विज्ञान ।

{“বিজ্ঞান — কিনা তাঁকে বিশেষরূপে জানা। কাষ্ঠে আছে অগ্নি, এই বোধ — এই বিশ্বাসের নাম জ্ঞান। সেই আগুনে ভাত রাঁধা, খাওয়া, খেয়ে হৃষ্টপুষ্ট হওয়ার নাম বিজ্ঞান। ঈশ্বর আছেন এইটি বোধে বোধ, তার নাম জ্ঞান; তাঁর সঙ্গে আলাপ, তাঁকে নিয়ে আনন্দ করা — বাৎসল্যভাবে, সখ্যভাবে, দাসভাবে, মধুরভাবে — এরই নাম বিজ্ঞান। জীবজগৎ তিনি হয়েছেন, এইটি দর্শন করার নাম বিজ্ঞান।} 

"What is vijnana? It is knowing God in a special way. The awareness and conviction that fire exists in wood is jnana, knowledge. But to cook rice on that fire, eat the rice, and get nourishment from it is vijnana. To know by one's inner experience that God exists is jnana. But to talk to Him, to enjoy Him as Child, as Friend, as Master, as Beloved, is vijnana. The realization that God alone has become the universe and all living beings is vijnana.

जीव और यह प्रपंच वे ही हुए हैं, इसके दर्शन करने का नाम है विज्ञान । एक विशेष मत के अनुसार कहा जाता है कि दर्शन हो नहीं सकते, कौन किसके दर्शन करे ? वह तो अपने ही स्वरूप के दर्शन करता है । कालेपानी में जहाज जब चला जाता है, तब लौट नहीं सकता, लौटकर खबर नहीं दे सकता।”

[এক মতে দর্শন হয় না — কে কাকে দর্শন করে। আপনিই আপনাকে দেখে। কালাপানিতে জাহাজ গেলে ফেরে না — আর ফিরে খবর দেয় না।”}

"According to one school of thought, God cannot be seen. Who sees whom? Is God outside you, that you can see Him? One sees only oneself. Having once entered the 'black waters' of the ocean, the ship does not come back and so cannot describe what it experiences."]

मणि- जैसा आप कहते हैं, मानूमेण्ट के ऊपर चढ़ जाने पर फिर नीचे की खबर नहीं रहती कि गाड़ी, घोड़े, मेम, साहब, घर-द्वार, दूकाने, आफिस कहाँ है ।

{মণি — যেমন আপনি বলেন, মনুমেন্টের উপরে উঠলে আর নিচের খবর থাকে না —  গাড়ি, ঘোড়া, মেম, সাহেব, বাড়ি, ঘর, দ্বার, দোকান, অফিস ইত্যাদি। जैसे धजाधारी पहाड़ पर चढ़ के देखने से -कोडरमा -तिलैया अभेद !

"It is true, sir. As you say, having climbed to the top of the monument, one becomes unaware of what is below: horses and carriages, men and women, houses, shops and offices, and so on."

श्रीरामकृष्ण- अच्छा, आजकल कालीमन्दिर मैं नहीं जाया करता, कुछ अपराध तो न होगा ? नरेन्द्र कहता था, ये अब भी कालीमन्दिर जाया करते हैं ?

{শ্রীরামকৃষ্ণ — আচ্ছা, আজকাল কালীঘরে যাই না, কিছু অপরাধ হবে কি? নরেন্দ্র বলত, ইনি এখনও কালীঘরে যান।

"I don't go to the Kali temple nowadays. Is that an offence? At one time Narendra used to say, 'What? He still goes to the Kali temple!'

मणि- जी, आपकी नयी नयी अवस्थाएँ हुआ करती हैं । आपका भला अपराध क्या है !

"Every day you are in a new state of mind. How can you ever offend God?"মণি — আজ্ঞা, আপনার নূতন নূতন অবস্থা — আপনার আবার অপরাধ কি?}

श्रीरामकृष्ण- अच्छा, हृदय के लिए उन लोगों ने सेन से कहा था, ‘हृदय बहुत बीमार है, उसके लिए आप दो धोतियाँ और दो कमीज लेते आइयेगा, हम लोग उसके गाँव में भेज देंगे ।” सेन बस दो ही रुपये लाया । यह भला क्या है ? इतना धन है और यह दान ! कहो जी !

{শ্রীরামকৃষ্ণ — আচ্ছা, হৃদের জন্য সেনকে ওরা বলেছিল, “হৃদয়ের বড় অসুখ, আপনি তার জন্য দুইখান কাপড়, দুইটি জামা আনবেন, আমরা তাকে দেশে (সিওড়ে) পাঠিয়ে দিব।” সেন এনেছিল দুটি টাকা! এ কি বল দেখি, — এত টাকা! কিন্তু এই দেওয়া! বল না।}

MASTER: "Someone said to Sen, about Hriday: 'He is very ill. Please bring two pieces of cloth and a couple of shirts for him. We will send them to his village.' Sen offered only two rupees. How do you explain that? He has so much money, and yet he is so miserly! What do you say to that?"

मणि- जी, मेरी समझ में तो यह आता है कि जिसे ईश्वर की जिज्ञासा है, ज्ञानलाभ जिसका उद्देश्य है, वह कभी ऐसा नहीं कर सकता ।

{মণি — আজ্ঞে, যারা ঈশ্বরকে জানবার জন্য বেড়াচ্ছে, তারা এরূপ করতে পারে না; — যাদের জ্ঞানলাভই উদ্দেশ্য।} 

M: "Those who seek God cannot behave that way — I mean those whose goal is the attainment of Knowledge."

श्रीरामकृष्ण- ईश्वर ही वस्तु है और सब अवस्तु । 

{শ্রীরামকৃষ্ণ — ঈশ্বরই বস্তু, আর সবই অবস্তু।}

MASTER: "God alone is the Reality and all else is unreal."

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$$$$$ परिच्छेद ~ 51, [(7 सितम्बर, 1883)श्रीरामकृष्ण वचनामृत] *Vision of non-dual and indivisible Consciousness *अवतार क्यों होते हैं* * मनुष्य रूप में अवतरित होने पर, गोप-भक्त भी आसानी से 'गोपाल' की धारणा कर सकते हैं *गोपाल अर्थात सभी दिव्य- शक्तियों से रहित बालक श्रीकृष्ण*Loves God for the sake of love does not care to see God's powers.*शौक़-ए-दीदार है अगर, - तो 'नज़र' पैदा कर* सब भूतों में एक चैतन्य दर्शन*My very Own.~I am dying to see you!'*जो शुद्धा भक्ति चाहते हैं वे सिद्धियाँ नहीं चाहते अंग्रेजों का अनुकरण -भोग-विलास - Stomach-Worry * *महानगरों में सभी का ध्यान - पेट की चिन्ता तथा कामिनी-कांचन पर ! * हाँ, दो-एक को देखा कि वे ऊर्ध्वदृष्टि हैं – ईश्वर की ओर उनका मन है ।*सब भूतों में एक चैतन्य का दर्शन*सत्य, असत्य , मिथ्या का विवेक हुआ है !* चित्त का विज्ञान :विचारों के बीच के अन्तराल का आनंद'* चित्त की चंचलता का रूपांतरण है समाधि !योगसूत्र (3.52 ) क्षणतत्क्रमयोः – क्षण और उसके क्रम में, संयमात् – संयम करने से, विवेकजम् – विवेकजनित, ज्ञानम् – ज्ञान उत्पन्न होता है।श्रीरामकृष्ण अपनी ब्रह्मज्ञानदशा का वर्णन कर रहे हैं ।*ब्रह्मज्ञान और अभेदबुद्धि । अवतार क्यों होते हैं**क्या ठाकुर एक ‘अनचीन्हा पेड़’ अर्थात अवतार हैं?अगर तुम्हे एक बार भी विचारों के बीच के अन्तराल का आनंद मालूम हो जाता है तो एक अदभुत आनंद (नित्यानन्द) की वर्षा हो जाती है।

  [(7 सितम्बर, 1883) परिच्छेद ~ 51, श्रीरामकृष्ण वचनामृत]

[*साभार ~ श्री महेन्द्रनाथ गुप्त(बंगाली), कवि श्री पं. सूर्यकान्त त्रिपाठी ‘निराला’(हिंदी अनुवाद)**साभार विद्युत् संस्करण ~ रमा लाठ*]

परिच्छेद~ ५१

*गुरुशिष्य-संवाद – गुह्य कथा* 

(१)

*अंग्रेजों का अनुकरण -भोग-विलास - Stomach-Worry *

श्रीरामकृष्ण अपने कमरे में उस छोटे तख्त पर बैठे मणि से गुह्य बातें कर रहे हैं । मणि जमीन पर बैठे हैं । आज शुक्रवार, 7 सितम्बर 1883 ई. है । भाद्र की शुक्ला षष्ठी तिथि है । रात के लगभग साढ़े सात बजे हैं ।

श्रीरामकृष्ण- उस दिन कलकत्ते गया । गाड़ी पर जाते जाते देखा, सभी निम्नदृष्टि हैं । सभी को अपने पेट की चिन्ता लगी हुई थी । सभी अपना पेट पालने के लिए (होटलों में या ठेला पर चाट खाने के लिए) दौड़ रहे थे । सभी का मन कामिनी-कांचन पर था । हाँ, दो-एक को देखा कि वे ऊर्ध्वदृष्टि हैं – ईश्वर की ओर उनका मन है ।

[শ্রীরামকৃষ্ণ — সেদিন কলকাতায় গেলাম। গাড়িতে যেতে যেতে দেখলাম, জীব সব নিম্নদৃষ্টি — সব্বাইয়ের পেটের চিন্তা। সব পেটের জন্য দৌড়ুচ্ছে! সকলেরই মন কামিনী-কাঞ্চনে। তবে দুই-একটি দেখলাম, ঊর্ধ্বদৃষ্টি — ঈশ্বরের দিকে মন আছে।

 "The other day I went to Calcutta. As I drove along the streets in the carriage, I observed that everyone's attention was fixed on low things. Everyone was brooding over his stomach and running after nothing but food. Everyone's mind was turned to 'woman and gold'. I saw only one or two with their attention fixed on higher things, with their minds turned to God."

मणि- आजकल पेट की चिन्ता और भी बढ़ गयी है । अंग्रेजों का अनुकरण करने में लगे हुए लोगों का मन विलास की ओर अधिक मुड़ गया है इसीलिए अभावों की वृद्धि हुई है । 

[মণি — আজকাল আরও পেটের চিন্তা বাড়িয়া দিয়েছে। ইংরেজদের অনুকরণ করতে গিয়ে লোকদের বিলাসের আরও মন হয়েছে, তাই অভাব বেড়েছে।

Trying to imitate the English, people have turned their attention to more luxuries; therefore their wants have also increased."}

श्रीरामकृष्ण- ईश्वर के विषय में उनका (अंग्रेजों का) कैसा मत है ?

[শ্রীরামকৃষ্ণ — ওদের ঈশ্বর সম্বন্ধে কি মত? 

"What do the English think about God?"

मणि- वे निराकारवादी हैं । [ उनका विश्वास निराकार भगवान 'formless God' में है

]মণি — ওরা নিরাকারবাদী।

M: "They believe in a formless God."

*सब भूतों में एक चैतन्य का दर्शन*

[ 'नजरें तेरी बदली तो नजारे बदल गए, कश्ती ने रुख मोड़ा तो किनारे बदल गए'>  "नजर को बदलो तो नजारे बदल जाते है। सोच को बदलो तो सितारे बदल जाते  हैं। कश्तियाँ बदलने की जरुरत नहीं,दिशा को बदलो तो किनारे खुद व् खुद बदल जाते हैं ! अमीर मीनाई का प्रसिद्ध शेर है - "कौन सी जा ( जगह) है, जहाँ जल्वा-ए-माशूक़ नहीं? शौक़-ए-दीदार है अगर,  तो 'नज़र' पैदा कर! " ]

श्रीरामकृष्ण- हमारे यहाँ भी वह मत है ।

[শ্রীরামকৃষ্ণ — আমাদের এখানেও ওই মত আছে।

 "That is also one of our beliefs."

थोड़ी देर तक दोनों चुप रहे । अब श्रीरामकृष्ण अपनी ब्रह्मज्ञानदशा का वर्णन कर रहे हैं ।

Then Sri Ramakrishna began to describe his experiences of Brahman.

श्रीरामकृष्ण- मैंने एक दिन देखा कि एक ही चैतन्य सर्वत्र है – कहीं भेद नहीं है । पहले (ईश्वर ने) दिखाया कि बहुत से मनुष्य और जीव-जन्तु हैं – उनमें बाबू लोग हैं, अंग्रेज और मुसलमान हैं, मैं स्वयं (अवतार-वरिष्ठ) हूँ, मेहतर है, कुत्ता है, फिर एक दाढ़ीवाला मुसलमान है – उसके हाथ में एक छोटी थाली है, जिसमें भात है । उस छोटी थाली का भात वह सब के मुँह में थोड़ा थोड़ा दे गया । मैंने भी थोड़ा सा चखा

[শ্রীরামকৃষ্ণ — আমি একদিন দেখলাম, এক চৈতন্য — অভেদ। প্রথমে দেখালে, অনেক মানুষ, জীবজন্তু রয়েছে — তার ভিতর বাবুরা আছে, ইংরেজ, মুসলমান, আমি নিজে, মুদ্দোফরাস, কুকুর, আবার একজন দেড়ে মুসলমান হাতে এক সানকি, তাতে ভাত রয়েছে। সেই সানকির ভাত সব্বাইয়ের মুখে একটু একটু দিয়ে গেল, আমিও একটু আস্বাদ করলুম!

"One day I had the vision of Consciousness, non-dual and indivisible. At first it had been revealed to me that there were innumerable men, animals, and other creatures. Among them there were aristocrats, the English, the Mussalmans, myself, scavengers, dogs, and also a bearded Mussalman with an earthenware tray of rice in his hand. He put a few grains of rice into everybody's mouth. I too tasted a little.}

*ब्रह्मज्ञान और अभेदबुद्धि*

“एक दूसरे दिन दिखाया कि विष्ठा-मूत्र, अन्न-व्यंजन, तरह तरह की खाने की चीजें पड़ी हुई हैं । एकाएक मेरे शरीर से आत्मा निकली और आग की लौ की तरह सब चीजों को चखा, - मानो जीभ हिलाते हुए सभी चीजों का एक बार स्वाद ले लिया, विष्ठा, मूत्र, सब कुछ चखा । इससे (ईश्वर ने) दिखा दिया कि सब एक है-अभेद हैं ।  

[“আর-একদিন দেখালে, বিষ্ঠা, মূত্র, অন্ন ব্যঞ্জন সবরকম খাবার জিনিস, — সব পড়ে রয়েছে। হঠাৎ ভিতর থেকে জীবাত্মা বেরিয়ে গিয়ে একটি আগুনের শিখার মতো সব আস্বাদ করলে। যেন জিহ্বা লকলক করতে করতে সব জিনিস একবার আস্বাদ করলে! বিষ্ঠা, মূত্র — সব আস্বাদ করলে! দেখালে যে, সব এক — অভেদ!”

"Another day I saw rice, vegetables, and other food-stuff, and filth and dirt as well, lying around. Suddenly the soul came out of my body and, like a flame, touched everything. It was like a protruding tongue of fire and tasted everything once, even the excreta. It was revealed to me that all these are one Substance, the non-dual and indivisible Consciousness.

[भक्त  (Devotees) और शिष्य (Disciple, Intimate Companions,लीला पार्षद )

“फिर एक बार दिखाया कि 'यहाँ' के ^ अनेक भक्त हैं – पार्षद – अपने जन । ज्योंही आरती का शंख और घण्टा बज उठता, मैं कोठी की छत पर चढ़कर व्याकुल हो चिल्लाकर कहता, ‘अरे, तुम लोग कौन कहाँ हो ? आओ, तुम्हें देखने के लिए मेरे प्राण छटपटा रहे हैं ।’ 

[শ্রীরামকৃষ্ণ (মণির প্রতি) — আবার একবার দেখালে যে, এখানকার সব ভক্ত আছে পার্ষদ — আপনার লোক। যাই আরতির শাঁখঘন্টা বেজে উঠত, অমনি কুঠির ছাদের উপর উঠে ব্যকুল হয়ে চিৎকার করে বলতাম, “ওরে তোরা কে কোথায় আছিস আয়! তোদের দেখবার জন্য আমার প্রাণ যায়।”

"Another day it was revealed ^* to me that I had devotees my intimate companions, my very own. Thereafter I would climb to the roof of the kuthi as soon as the bells and the conch-shells of the evening service sounded in the temples, and cry out with a longing heart: 'Oh, where are you all? Come here! I am dying to see you!'

(^This happened before any of the Master's intimate disciples came to him.^

[यह श्रीठाकुर देव  के किसी अन्तरंग शिष्य के आने से पहले घटित -घटना थी। * श्रीरामकृष्ण अपने लिए गुरुभाव से ‘मैं’ या ‘हम’ शब्द का प्रयोग साधारण दशा में कदाचित् करते थे । किसी और ढंग से वह भाव वे सूचित करते थे । जैसे – ‘मेरे पास’ न कहकर ‘यहाँ’ कहते थे । ‘मेरा’ न कहकर ‘यहाँ का’ अथवा अपना शरीर दिखाकर ‘इसका’ कहते थे । हाँ, जगन्माता के सन्तान-भाव से वे ‘मैं’ या ‘हम’ शब्द का व्यवहार करते थे । भावावस्था में गुरुभाव के अर्थ में भी इन शब्दों का प्रयोग करते थे ।)

“अच्छा, 'मेरे' इन दिव्य -दर्शनों (दीदार-visions) के बारे में तुम्हें क्या मालुम होता है ?” 

[“আচ্ছা, আমার এই দর্শন বিষয়ে তোমার কিরূপ বোধ হয়?”

(To M.) "Well, what do you think of these visions?"

मणि- आप ईश्वर के विलास का स्थान हैं । मैंने यही समझा कि आप यन्त्र हैं और वे यन्त्री (चलानेवाले) हैं। दूसरों को उन्होंने मानो साँचे में डालकर तैयार किया है, परन्तु आपको स्वयं के हाथों से गढ़ा हैं ।

[মণি — আপনি তাঁর বিলাসের স্থান! — এই বুঝেছি, আপনি যন্ত্র, তিনি যন্ত্রী; জীবদের যেন তিনি কলে ফেলে তৈয়ার করেছেন, কিন্তু আপনাকে তিনি নিজের হাতে গড়েছেন।

M: "God sports through you. This I have realized, that you are the instrument and God is the Master. God has created other beings as if with a machine, but yourself with His own hands.

*जो शुद्धा भक्ति चाहते हैं वे छः सिद्धियाँ नहीं चाहते * 

श्रीरामकृष्ण- अच्छा, हाजरा कहता है कि ईश्वर के दर्शन के बाद षडैश्वर्य ^* मिलते हैं ।

[শ্রীরামকৃষ্ণ — আচ্ছা, হাজরা বলে, দর্শনের পরে ষড়ৈশ্বর্য হয়।

"Well, Hazra says that after the vision of God one acquires the six divine powers."

[षडैश्वर्य ^*(विभूति पाद -३.३६):  

परार्थत्वात्स्वार्थसंयमात्पुरुषज्ञानम् ॥ 36 ॥

परार्थत्वात् स्वार्थ संयमात् पुरुष ज्ञानम् > परार्थत्वात् ( उस बुद्धि के परार्थ अर्थात विपरीत ज्ञान से अलग ) स्वार्थ ( जो भोग से अलग जो पुरुष के विषय में ) संयमात् ( संयम करने से ) पुरुषज्ञानम् ( उस पुरुष अर्थात आत्मा का ज्ञान हो जाता है। )

बुद्धि और पुरुष दोनों एक दूसरे से बिलकुल भिन्न अर्थात अलग- अलग होते हैं । इन दोनों को अभिन्न अर्थात एक ही मानना भोग कहलाता है । जिसका कारण बुद्धि का विपरीत ज्ञान है । इस अवस्था से अलग स्वार्थ अर्थात केवल पुरुष के ही ज्ञान में संयम करने से आत्मा का ज्ञान होता है ।

बुद्धि और पुरुष दो अलग- अलग पदार्थ हैं । यहाँ सत्त्व शब्द से बुद्धि को सम्बोधित किया गया है । बुद्धि व पुरुष एक दूसरे से सर्वथा अर्थात पूरी तरह से भिन्न हैं । बुद्धि जड़ ( निर्जीव ) पदार्थ है । जिसकी उत्त्पत्ति सत्त्व, रज और तम नामक गुणों से हुई है । जबकि पुरुष अर्थात आत्मा किसी भी पदार्थ या तत्त्व से उत्पन्न नहीं होती है । यह शुद्ध चेतन स्वरूप है । ये दोनों एक दूसरे से इस प्रकार अलग – अलग हैं । जिस प्रकार पूर्व और पश्चिम दिशा एक दूसरी से बिलकुल अलग होती हैं ।

बुद्धि व पुरुष दोनों को एक पदार्थ मानने को ही भोग कहा गया है । मनुष्य इस भोग (कामिनी -कांचन)  में आसक्ति के फलस्वरूप ही बुद्धि व पुरुष को एक मानने की भूल करता है । इस भोग के अतिरिक्त दूसरी स्वार्थ अवस्था भी होती है । जिसमें केवल आत्मा के स्वरूप का ही ज्ञान होता है । जब योगी इस पुरुष में संयम करता है तो उसे पुरुष अर्थात आत्मा का ज्ञान हो जाता है । या ये कहें कि योगी को आत्मा का साक्षात्कार हो जाता है ।

 ततः प्रातिभश्रावणवेदनादर्शास्वादवार्ता जायन्ते ॥ 37 ॥

[ततः  – from this, प्रातिभ – intuition, श्रावण – hearing, वेदना – touch, अदर्शा – vision, स्वाद – taste, वार्ता – smell, जायन्ते – are born] 

From this, intuition as well as higher touch, vision, taste and smell are born . 

पुरुष-साक्षात्कार से पूर्व, ऊपर कहे गए संयम के द्वारा निम्नलिखित सिद्धियाँ प्राप्त होती हैं :-  प्रातिभ – ( intuition- सहज बोध ) इससे भूत, भविष्य, वर्तमान, सूक्ष्म, ढके हुए एवं दूर-स्थित पदार्थों का प्रत्यक्ष ज्ञान होता है।  श्रावण ( hearing) – इससे दिव्य शब्दों का श्रवण होता है। वेदना ( touch, स्पर्श) – इससे दिव्य स्पर्श की क्षमता मिलती है।अदर्शा (vision) इससे दिव्य रूप का दर्शन होता है। आस्वाद (taste) – इससे दिव्य रस का स्वाद मिलता है। वार्ता (smell) – इससे दिव्य गंध का अनुभव करने की शक्ति, जायन्ते (are born) प्राप्त होती है। ये छः सिद्धियाँ सामान्य रूप से तो सिद्धियाँ हैं किन्तु समाधि की अवस्था में विघ्न हैं।  (३.३७)]

मणि- जो शुद्धा भक्ति चाहते हैं वे ईश्वर के ऐश्वर्य की इच्छा नहीं करते ।

[মণি — যারা শুদ্ধাভক্তি চায় তারা ঈশ্বরের ঐশ্বর্য দেখতে চায় না।

M: "Those who seek pure love don't want powers."

श्रीरामकृष्ण- शायद हाजरा पूर्वजन्म में गरीब था, इसीलिए उसे ऐश्वर्य देखने की उतनी तीव्र इच्छा है । हाल में हाजरा ने कहा है – ‘क्या मैं रसोइया ब्राह्मणों से बातचीत करता हूँ !’ फिर कहता है – ‘मैं खजांनची से कहकर तुम्हें वे सब चीजें दिला दूंगा !’ (मणि का उच्च हास्य)

[শ্রীরামকৃষ্ণ — বোধ হয়, হাজরা আর-জন্মে দরিদ্র ছিল, তাই অত ঐশ্বর্য দেখতে চায়। হাজরা এখন আবার বলেছে, রাঁধুনি-বামুনের সঙ্গে আমি কি কথা কই! আবার বলে, খাজাঞ্চীকে বলে তোমাকে ওই সব জিনিস দেওয়াব! (মণির উচ্চহাস্য) 

"Perhaps Hazra was a poor man in his previous life, and that is why he wants so much to see the manifestation of power. He wants to know what I talk about with the cook. He says to me: 'You don't have to talk to the cook. I shall talk to the manager of the temple myself and see that you get everything you want.' (M. laughs aloud.) 

श्रीरामकृष्ण(सहास्य)- वह ये सब बातें कहता रहता है और मैं चुप रह जाता हूँ ।

[(সহাস্যে) — ও ওই সব কথা বলতে থাকে, আর আমি চুপ করে থাকি।

He talks to me that way and I say nothing."

 *अवतार क्यों होते हैं*

[ मनुष्य रूप में अवतरित होने पर, गोप-भक्त भी आसानी से 'गोपाल' की धारणा कर सकते हैं।] 

मणि- आप तो बहुत बार कह चुके हैं कि शुद्ध भक्त (गोप-गोपियाँ) ऐश्वर्य देखना नहीं चाहता । वह ईश्वर का गोपाल रूप ^ (^ गोपाल (राखाल) = सभी दिव्य- शक्तियों से रहित चरवाहा श्रीकृष्ण) देखना चाहता है । प्रथम अवस्था में  ईश्वर चुम्बक-पत्थर और ईश्वर भक्त सुई होते हैं; फिर तो भक्त ही चुम्बक-पत्थर और ईश्वर सुई बन जाते हैं – अर्थात् भक्त के पास ईश्वर छोटे हो जाते हैं

[ মণি — আপনি তো অনেকবার বলে দিয়েছেন, যে শুদ্ধভক্ত সে ঐশ্বর্য দেখতে চায় না। যে শুদ্ধভক্ত সে ঈশ্বরকে গোপালভাবে দেখতে চায়। — প্রথমে ঈশ্বর চুম্বক পাথর হন আর ভক্ত ছুঁচ হন — শেষে ভক্তই চুম্বক পাথর হন আর ঈশ্বর ছুঁচ হন — অর্থাৎ ভক্তের কাছে ঈশ্বর ছোট হয়ে যান।

  "Many a time you have said that a devotee who loves God for the sake of love does not care to see God's powers. A true devotee wants to see God as Gopala.4 In the beginning God becomes the magnet, and the devotee the needle. But in the end the devotee himself becomes the magnet, and God the needle; that is to say, God becomes small to His devotee."

श्रीरामकृष्ण- जैसे ठीक उदय के समय का सूर्य । अनायास ही देखा जा सकता है, वह आँखों को झुलसाता नहीं, बल्कि उनको तृप्त कर देता है । भक्त के लिए भगवान् का भाव कोमल हो जाता है – वे अपना ऐश्वर्य छोड़ भक्तों के पास आ जाते हैं

[শ্রীরামকৃষ্ণ — যেমন ঠিক সূর্যোদয়ের সময়ে সূর্য। সে সূর্যকে অনায়াসে দেখতে পারা যায় — চক্ষু ঝলসে যায় না — বরং চক্ষের তৃপ্তি হয়। ভক্তের জন্য ভগবানের নরম ভাব হয়ে যায় — তিনি ঐশ্বর্য ত্যাগ করে ভক্তের কাছে আসেন।

"Yes, it is just like the sun at dawn. You can easily look at that sun. It doesn't dazzle the eyes; rather it satisfies them. God becomes tender for the sake of His devotees. He appears before them, setting aside His powers."

फिर दोनों चुप रहे ।

मणि- मैं सोचता हूँ, क्यों ये दर्शन सत्य नहीं होंगे ? यदि ये मिथ्या हुए तो यह संसार और भी मिथ्या ठहरा, क्योंकि देखने का साधन, मन तो एक ही है । फिर वे दर्शन शुद्ध मन से होते हैं और सांसारिक पदार्थ इसी अशुद्ध मन से देखे जाते हैं । 

[মণি — এ-সব দর্শন ভাবি, কেন সত্য হবে না — যদি এ-সব অসত্য হয় এ-সংসার আরও অসত্য — কেননা যন্ত্র মন একই। ও-সব দর্শন শুদ্ধমনে হচ্ছে আর সংসারের বস্তু এই মনে দেখা হচ্ছে।

M: "Why should your visions not be real? If they are unreal, then the world is still more unreal; for there is only one mind that is the instrument of perception. Your pure mind sees those visions, and our ordinary minds see worldly objects."]

श्रीरामकृष्ण- इस बार देखता हूँ कि तुम्हें खूब अनित्य का बोध हुआ है । अच्छा, कहो, हाजरा कैसा है ?

{শ্রীরামকৃষ্ণ — এবার দেখছি, তোমার খুব অনিত্য বোধ হয়েছে! আচ্ছা, হাজরা কেমন বল।

MASTER: "I see that you have grasped the idea of unreality (सत्य, असत्य , मिथ्या का विवेक हुआ है !). Well, tell me what you think of Hazra."

मणि- वह है एक तरह का आदमी । (श्रीरामकृष्ण हँसे ।)

[মণি — ও একরকমের লোক! (ঠাকুরের হাস্য)

M: "Oh, I don't know." (The Master laughs.)

श्रीरामकृष्ण- अच्छा, मुझसे तथा किसी और से कुछ मिलता जुलता है ?

[শ্রীরামকৃষ্ণ — আচ্ছা, আমার সঙ্গে আর কারু মেলে?

MASTER: "Well, do you find me to be like anybody else?"

मणि- जी नहीं ।

श्रीरामकृष्ण- किसी परमहंस से ?

मणि- जी नहीं । आपकी तुलना नहीं है ।

श्रीरामकृष्ण(सहास्य)- तुमने ‘अनचीन्हा पेड़’ सुना है ? 

[শ্রীরামকৃষ্ণ (সহাস্যে) — অচিনে গাছ শুনেছ?

 "Have you heard of a tree called the 'achina'?" (Literally, "unrecognizable".) 

मणि- जी नहीं ।

श्रीरामकृष्ण- वह है एक प्रकार का पेड़ जिसे कोई देखकर पहचान नहीं सकता । 

[শ্রীরামকৃষ্ণ — সে একরকম গাছ আছে — তাকে কেউ দেখে চিনতে পারে না।

MASTER (smiling): "Have you heard of a tree called the 'achina'?" (Literally, "unrecognizable".)

मणि- जी, आपको भी पहचानना कठिन है । आपको जो जितना समझेगा वह उतना ही उन्नत होगा ।

[মণি — আজ্ঞে, আপনাকেও চিনবার জো নাই। আপনাকে যে যত বুঝবে সে ততই উন্নত হবে!

M: "Likewise, it is not possible to recognize you. The more a man understands you, the more uplifted he will be."

मणि शान्त होकर विचार कर रहे हैं, - श्रीरामकृष्ण ने जो ‘उदय के समय का सूर्य’, ‘अनचीन्हा पेड़’ आदि बातें कही, क्या यही अवतार के लक्षण हैं ? क्या इसी का नाम नरलीला है ? क्या श्रीरामकृष्ण अवतार हैं ? क्या इसीलिए वे पार्षदों को देखने के लिए व्याकुल होकर कोठी की छत पर चढ़कर पुकारते थे कि अरे, तुम लोग कौन कहाँ हो, आओ !

[মণি চুপ করিয়া ভাবিতেছেন, ঠাকুর “সূর্যোদয়ের সূর্য” আর “অচিনে গাছ” এই সব কথা যা বললেন, এরই নাম কি অবতার? এরই নাম কি নরলীলা? ঠাকুর কি অবতার? তাই পার্ষদদের দেখবার জন্য ব্যাকুল হয়ে কুঠির ছাদে দাঁড়িয়ে ডাকতেন, “ওরে তোরা কে কোথায় আছিস আয়?”

M. was silent. He said to himself: "The Master referred to 'the sun at dawn' and 'the tree unrecognizable by man'. Did he mean an Incarnation of God? Is this the play of God through man? Is the Master himself an Incarnation? Was this why he cried to the devotees from the root of the kuthi: 'Where are you? Come to me!'?"

[Some of the devotees wondered, "Is Sri Ramakrishna an Incarnation of God, like Krishna, Chaitanya, and Christ?"] 

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*ॐ * चित्त का विज्ञान : चित्त की चंचलता का रूपांतरण है समाधि !

योगसूत्र (3.52 )   क्षणतत्क्रमयोः – क्षण और उसके क्रम में, संयमात् – संयम करने से, विवेकजम् – विवेकजनित, ज्ञानम् – ज्ञान उत्पन्न होता है।


गुरुवार, 20 मई 2021

परिच्छेद ~ 50, [(20 अगस्त, 1883)श्रीरामकृष्ण वचनामृत ] *Elder, the pumpkin-cutter'.*सत्संग । गृहस्थ के कर्तव्य*भक्तिशास्त्र पढ़ा करो – जैसे श्रीमद्भागवत या चैतन्यचरितामृत आदि * कुम्हड़ा काटनेवाले जेठजी~ और अच्छे 'मनुष्य' का स्वभाव*

  [(19 अगस्त, 1883)परिच्छेद ~ 50, श्रीरामकृष्ण वचनामृत ]

[*साभार ~ श्री महेन्द्रनाथ गुप्त(बंगाली), कवि श्री पं. सूर्यकान्त त्रिपाठी ‘निराला’(हिंदी अनुवाद)**साभार विद्युत् संस्करण ~ रमा लाठ*]

*परिच्छेद~५०* 

*दक्षिणेश्वर मन्दिर में भक्तों के साथ*

*मणिमोहन को शिक्षा, ब्रह्मज्ञान के लक्षण । ध्यानयोग*

श्रीरामकृष्ण अपनी छोटी खाट पर बैठे मसहरी के भीतर ध्यान कर रहे हैं । रात सात-आठ बजे होंगे । मास्टर और उनके एक मित्र हरिबाबू जमीन पर बैठे हैं । आज सोमवार, तारीख 20 अगस्त 1883 ई. है।

आजकल हाजरा महाशय यहाँ रहते हैं । राखाल भी प्रायः रहा करते हैं – और कभी कभी अधर के यहाँ रहते हैं । नरेन्द्र, भवनाथ, अधर, बलराम, राम, मनोमोहन, मास्टर आदि प्रायः प्रति सप्ताह आया करते हैं ।

हृदय ने श्रीरामकृष्ण की बड़ी सेवा की थी । वे घर पर बीमार हैं, यह सुनकर श्रीरामकृष्ण बहुत चिन्तित हुए हैं । इसीलिए एक भक्त ने राम चटर्जी के हाथ आज दस रुपये भेजे हैं – हृदय को भेजने के लिए । देने के समय श्रीरामकृष्ण वहाँ उपस्थित नहीं थे । वही भक्त एक लोटा भी लाए हैं । श्रीरामकृष्ण ने उनसे कहा था, “यहाँ के लिए एक लोटा लाना; भक्त लोग पानी पीएँगे ।”

मास्टर के मित्र हरिबाबू को लगभग ग्यारह वर्ष हुए, पत्नीवियोग हुआ है । फिर उन्होंने विवाह नहीं किया। उनके मातापिता, भाई-बहन, सभी हैं । उन पर उनका बड़ा स्नेह है, और उनकी सेवा वे करते हैं। उनकी आयु अट्ठाईस-उनतीस वर्ष होगी । भक्तों के आते ही श्रीरामकृष्ण मसहरी से बाहर आए । मास्टर आदि ने उनको भूमिष्ठ हो प्रणाम किया । मसहरी उठा दी गयी । आप छोटे तख्त पर बैठकर बातें करने लगे ।

श्रीरामकृष्ण (मास्टर से)- मसहरी के भीतर ध्यान कर रहा था । फिर सोचा कि यह तो केवल एक रूप की कल्पना ही है । इसीलिए फिर अच्छा न लगा ।  सन्तोष तो तब  होता है , जब  ईश्वर बिजली की चमक की तरह अपने आपको झट से प्रकट करते हैं  ! फिर मैंने सोचा, कौन ध्यान करनेवाला है, और ध्यान करूँ ही किसका ?

[ শ্রীরামকৃষ্ণ (মাস্টারের প্রতি) — মশারির ভিতর ধ্যান করছিলাম। ভাবলাম, কেবল একটা রূপ কল্পনা বই তো না, তাই ভাল লাগল না। তিনি দপ্‌ করে দেখিয়ে দেন তো হয়। আবার মনে করলাম, কেবা ধ্যান করে, কারই বা ধ্যান করি।

"I was meditating inside the net. It occurred to me that meditation, after all, was nothing but the imagining of a form, and so I did not enjoy it. One gets satisfaction if God reveals Himself in a flash. Again, I said to myself, 'Who is it that meditates, and on whom does he meditate?'"

मास्टर- जी हाँ । आपने कह दिया है कि ईश्वर ही जीव और जगत् आदि सब कुछ हुए हैं । जो ध्यान कर रहा है वह भी तो ईश्वर ही है ।

[মাস্টার — আজ্ঞা হাঁ। আপনি বলেছেন যে, তিনিই জীব, জগৎ এই সব হয়েছেন — যে ধ্যান করছে সেও তিনি।

M: "Yes, sir. You said that God Himself has become everything — the universe and all living beings. Even he who meditates is God."

श्रीरामकृष्ण- फिर बिना ईश्वर के कराए तो कुछ होनेवाला नहीं । वे अगर ध्यान कराए, तो ध्यान होगा । इस पर तुम्हारा क्या मत है ?

{শ্রীরামকৃষ্ণ — আর তিনি না করালে তো আর হবে না। তিনি ধ্যান করালে তবেই ধ্যান হবে। তুমি কি বল?

"What is more, one cannot meditate unless God wills it. One can meditate when God makes it possible for one to do so. What do you say?"

मास्टर- जी, आप के भीतर ‘अहं’ का भाव नहीं है, इसीलिए ऐसा प्रतीत हो रहा है । जहाँ ‘अहं’ नहीं रहता वहाँ ऐसा ही हुआ करता है ।

[মাস্টার — আজ্ঞে, আপনার ভিতর ‘আমি’ নাই তাই এইরূপ হচ্ছে। যেখানে ‘আমি’ নাই সেখানে এরূপই অবস্থা।

"True, sir. You feel like that because there is no 'I' in you. When there is no ego, one feels like that."

श्रीरामकृष्ण- पर ‘मैं दास हूँ, सेवक हूँ’ – इतना अहंभाव रहना अच्छा है । जहाँ यह बोध रहता है कि मैं ही सब कुछ कर रहा हूँ वहाँ ‘मैं दास हूँ और तुम प्रभु हो’ – यह भाव बहुत अच्छा है । जब सभी कुछ किया जा रहा है, तो सेव्य-सेवक भाव से रहना ही अच्छा है ।

{শ্রীরামকৃষ্ণ — কিন্তু “আমি দাস, সেবক” এটুকু থাকা ভাল। যেখানে “আমি সব কাজ করছি” বোধ, সেখানে “আমি দাস, তুমি প্রভু” এ-ভাব খুব ভাল। সবই করা যাচ্ছে, সেব্য-সেবক ভাবে থাকাই ভাল।

"But it is good to have a trace of ego, which makes it possible for a man to feel that he is the servant of God. As long as a man thinks that it is he who is doing his duties, it is very good for him to feel that God is the Master and he God's servant. When one is conscious of doing work, one should establish with God the relationship of servant and Master."

मास्टर सदा परब्रह्म के स्वरूप का चिन्तन करते हैं । [M. was always reflecting on the nature of the Supreme Brahman.] इसीलिए श्रीरामकृष्ण उनको लक्ष्य करके फिर कह रहे हैं- 

“ब्रह्म आकाश की तरह हैं । उनमें कोई विकार नहीं है । जैसे आग के कोई रंग नहीं है । पर हाँ, अपनी शक्ति के द्वारा वे विविध आकार के हुए हैं । सत्त्व, रज, तम – ये तीन गुण शक्ति ही के गुण हैं । आग में यदि सफेद रंग डाल दो, तो वह सफेद दिखेगी । यदि लाल रंग डाल दो, तो वह लाल दिखेगी । यदि काला रंग डाल दो, तो वह काली दिखेगी । ब्रह्म सत्त्व, रज और तम – इन तीनों गुणों से परे हैं । वे यथार्थ में क्या हैं, यह मुँह से नहीं कहा जा सकता । वे वाक्य से परे हैं । ‘नेति नेति’(ब्रह्म यह नहीं, यह नहीं) करके विचार करते हुए जो बाकी रह जाता है, और जहाँ आनन्द है, वही ब्रह्म हैं ।

{শ্রীরামকৃষ্ণ — ব্রহ্ম আকাশবৎ। ব্রহ্মের ভিতর বিকার নাই। যেমন অগ্নির কোন রঙই নাই। তবে শক্তিতে তিনি নানা হয়েছেন। সত্ত্ব, রজঃ, তমঃ — এই তিনগুণ শক্তিরই গুণ। আগুনে যদি সাদা রঙ ফেলে দাও সাদা দেখাবে। যদি লাল রঙ ফেলে দাও লাল দেখাবে। যদি কালো রঙ ফেলে দাও তবে আগুন কালো দেখাবে। ব্রহ্ম — সত্ত্ব, রজঃ, তমঃ তিনগুণের অতীত। তিনি যে কি, মুখে বলা যায় না। তিনি বাক্যের অতীত। নেতি নেতি করে করে যা বাকি থাকে, আর যেখানে আনন্দ সেই ব্রহ্ম।

"Like the akasa, Brahman is without any modification. It has become manifold because of Sakti. Again, Brahman is like fire, which itself has no colour. The fire appears white if you throw a white substance' into it, red if you throw a red, black it you throw a black. The three gunas — sattva, rajas, and tamas — belong to Sakti alone. Brahman Itself is beyond the three gunas. What Brahman is cannot be described. It is beyond words. That which remains after everything is eliminated by the Vedantic process of 'Not this, not this', and which is of the nature of Bliss, is Brahman.

“एक लड़की का पति आया है । वह अपने बराबरी के युवकों के साथ बाहरवाले कमरे में बैठा है । इधर वह लड़की और उसकी सहेलियाँ खिड़की से देख रही हैं । सहेलियाँ उसके पति को नहीं पहचानतीं । वे उस लड़की से पूछ रही है, ‘क्या वह तेरा पति है?’ लड़की मुस्कराकर कहती है, - ‘नहीं ।’ एक दूसरे युवक को दिखलाकर वे पूछती हैं, ‘क्या वह तेरा पति है?’ वह फिर कहती है – ‘नहीं ।’ एक तीसरे युवक को दिखाकर वे फिर पूछती हैं, ‘क्या वह तेरा पति है?’ वह फिर कहती है – ‘नहीं ।’ अन्त में उसके पति की ओर इशारा करके उन्होंने पूछा, ‘क्या वह तेरा पति है?’ तब उसने ‘हाँ’ या ‘नहीं’ कुछ नहीं कहा; केवल मुस्करायी और चुप्पी साध ली ! तब सहेलियों ने समझा कि वही इसका पति है । जहाँ ठीक ब्रह्मज्ञान होता है, वहाँ सब चुप हो जाते हैं । 

[“একটি মেয়ের স্বামী এসেছে; অন্য অন্য সমবয়স্ক ছোকরাদের সহিত বাহিরের ঘরে বসেছে। এদিকে ওই মেয়েটি ও তার সমবয়স্কা মেয়েরা জানালা দিয়ে দেখছে। তারা বরটিকে চেনে না — ওই মেয়েটিকে জিজ্ঞাসা করছে, ওইটি কি তোর বর? তখন সে একটু হেসে বলছে, না। আর একজনকে দেখিয়ে বলছে, ওইটি কি তোর বর? সে আবার বলছে, না। আবার একজনকে দেখিয়ে বলছে, ওইটি কি তোর বর? সে আবার বলছে, না। শেষে তার স্বামীকে লক্ষ্য করে জিজ্ঞাসা করলে, ওইটি তোর বর? তখন সে হাঁও বললে না, নাও বললে না — কেবল একটু ফিক্‌ করে হেসে চুপ করে রইল। তখন সমবয়স্কারা বুঝলে যে, ওইটিই তার স্বামী। যেখানে ঠিক ব্রহ্মজ্ঞান সেখানে চুপ।”

"Suppose the husband of a young girl has come to his father-in-law's house and is seated in the drawing-room with other young men of his age. The girl and her friends are looking at them through the window. Her friends do not know her husband and ask her, pointing to one young man, 'Is that your husband?' 'No', she answers, smiling. They point to another young man and ask if he is her husband. Again she answers no. They repeat the question, referring to a third, and she gives the same answer. At last they point to her husband and ask, 'Is he the one?' She says neither yes nor no, but only smiles and keeps quiet. Her friends realize that he is her husband.

*सत्संग । गृहस्थ के कर्तव्य* 

(मास्टर से) “अच्छा, मैं बकता क्यों हूँ ?”

मास्टर- जैसा आपने कहा कि पके हुए घी में अगर कच्ची पूड़ी छोड़ दी जाय, तो फिर आवाज होने लगती है । आप बोलते हैं भक्तों का चैतन्य कराने के लिए ।

[মণি — আপনি যেমন বলেছেন, পাকা ঘিয়ে যদি আবার কাঁচা লুচি পড়ে তবে আবার ছ্যাঁক কলকল করে। ভক্তদের চৈতন্য হবার জন্য আপনি কথা কন।

M: "You talk in order to awaken the spiritual consciousness of the devotees. You once said that when an uncooked luchi is dropped into boiling ghee it makes a sizzling noise."

 श्रीरामकृष्ण मास्टर से हाजरा महाशय की चर्चा करते हैं ।

श्रीरामकृष्ण- अच्छे 'मनुष्य' का स्वभाव कैसा है, मालुम है ? वह किसी को दुःख नहीं देता – किसी को झमेले में नहीं डालता । किसी-किसी का ऐसा स्वभाव है कि कहीं न्यौता खाने गया हो तो शायद कह दिया – मैं अलग बैठूँगा । [The nature of some people (IAS) is such that when they go to a feast they want special seats.] ईश्वर पर यथार्थ भक्ति रहने से ताल के विरुद्ध पैर नहीं पड़ते – मनुष्य किसी को झूठमूठ कष्ट नहीं देता ।

[ শ্রীরামকৃষ্ণ — সতের কি স্বভাব জানো? সে কাহাকেও কষ্ট দেয় না — ব্যতিব্যস্ত করে না। নিমন্ত্রণ গিয়েছে, কারু কারু এমন স্বভাব — হয়তো বললে, আমি আলাদা বসব। ঠিক ঈশ্বরে ভক্তি থাকলে বেতালে পা পড়ে না — কারুকে মিথ্যা কষ্ট দেয় না।

"Do you know the nature of a good man? He never troubles others. He doesn't harass people. The nature of some people is such that when they go to a feast they want special seats. A man who has true devotion to God never makes a false step, never gives others trouble for nothing.

“दुष्ट लोगों का संग करना अच्छा नहीं । उनसे अलग रहना पड़ता है । अपने को उनसे बचाकर चलना पड़ता है । (मास्टर से) तुम्हारा क्या मत है ?”

[“আর অসতের সঙ্গ ভাল না। তাদের কাছ থেকে তফাত থাকতে হয়। গা বাঁচিয়ে চলতে হয়। (মণির প্রতি) তুমি কি বল?”

"It is not good to live in the company of bad people. A man should stay away from them and thus protect himself. (To M.) Isn't that so?"

मास्टर- जी, दुष्टों के संग रहने से मन बहुत गिर जाता है । हाँ, जैसा आपने कहा 'वीरों ' की बात दूसरी है। 

{মণি — আজ্ঞে, অসৎসঙ্গে মনটা অনেক নেমে যায়। তবে আপনি বলেছেন, বীরের কথা আলাদা।

M: "Yes, sir. The mind sinks far down in the company of the wicked. But it is quite different with a hero, as you say."

श्रीरामकृष्ण - कैसे ?

मास्टर- कम आग में थोड़ी सी लकड़ी डाल दो तो बूझ जाती है । पर धधकती हुई आग में केले का पेड़ झोंक देने से आग का कुछ नहीं बिगड़ता । वह पेड़ ही जलकर भस्म हो जाता है ।

[মণি — কম আগুনে একটু কাঠ ঠেলে দিলে নিবে যায়। আগুন যখন দাউ দাউ করে জ্বলে তখন কলাগাছটাও ফেলে দিলে কিছু হয় না। কলাগাছ পুড়ে ভস্ম হয়ে যায়।

M: "When a fire is feeble it goes out when even a small stick is thrown into it; but a blazing fire is not affected even if a plantain-tree is thrown into it. The tree itself is burnt to ashes."

श्रीरामकृष्ण मास्टर के मित्र हरिबाबू की बात पूछ रहे हैं ।

मास्टर- ये आपके दर्शन करने आये हैं । "He lost his wife long ago." ये बहुत दिनों से विपत्नीक हैं ।

श्रीरामकृष्ण (हरिबाबू से) - तुम क्या काम करते हो ?

[শ্রীরামকৃষ্ণ — তুমি কি কর গা?

MASTER (to Hari): "What kind of work do you do?"

मास्टर ने उनकी ओर से कहा, “ऐसा कुछ नहीं करते, पर माता-पिता, भाई-बहन आदि की बड़ी सेवा करते हैं ।”

श्रीरामकृष्ण (हँसते हुए) - यह क्या है ! तुम तो ‘कुम्हड़ा काटनेवाले जेठजी’ बने ! तुम न संसारी हुए, न हरिभक्त । यह अच्छा नहीं । किसी किसी परिवार में एक पुरुष होता है, जो रातदिन लड़के-बच्चों से घिरा रहता है । वह बाहरवाले कमरे में बैठकर खाली तम्बाकू पिया करता है । निकम्मा ही बैठा रहता है। हाँ, कभी कभी अन्दर जाकर कुम्हड़ा काट देता है ! स्त्रियों के लिए कुम्हड़ा काटना मना है । इसीलिए वे लड़कों से कहती हैं, ‘जेठजी को यहाँ बुला लाओ, वे कुम्हड़ा काट देंगे ।’ तब वह कुम्हड़े के दो टुकड़े कर देता है ! बस, यहीं तक मर्द का व्यवहार है । इसलिए उसका नाम ‘कुम्हड़ा काटनेवाले जेठजी’ पड़ा है ।

 [শ্রীরামকৃষ্ণ (সহাস্যে) — সে কি? তুমি যে “কুমড়োকাটা বঠ্‌ঠাকুর” হলে। তুমি না সংসারী, না হরিভক্ত। এ ভাল নয়। এক-একজন বাড়িতে পুরুষ থাকে, — মেয়েছেলেদের নিয়ে রাতদিন থাকে, আর বাহিরের ঘরে বসে ভুড়ুর ভুড়ুর করে তামাক খায়, নিষ্কর্মা হয়ে বসে থাকে। তবে বাড়ির ভিতরে কখনও গিয়ে কুমড়ো কেটে দেয়। মেয়েদের কুমড়ো কাটতে নাই, তাই ছেলেদের দিয়ে তারা বলে পাঠায়, বঠ্‌ঠাকুরকে ডেকে আন। তিনি কুমড়োটা দুখানা করে দিবেন। তখন সে কুমড়োটা দুখানা করে দেয়, এই পর্যন্ত পুরুষের ব্যবহার। তাই নাম হয়েছে “কুমড়োকাটা বঠ্‌ঠাকুর”।

"How is that? You are like 'Elder, the pumpkin-cutter'. You are neither a man of the world nor a devotee of God. That is not good. You must have seen the sort of elderly man who lives in a family and is always ready, day or night, to entertain the children. He sits in the parlour and smokes the hubble-bubble. With nothing in particular to do, he leads a lazy life. Now and again he goes to the inner court and cuts a pumpkin; for, since women do not cut pumpkins, they send the children to ask him to come and do it. That is the extent of his usefulness — hence his nickname, 'Elder, the pumpkin-cutter'.

तुम यह भी करो, वह भी करो । ईश्वर के चरणकमलों में मन रखकर संसार का कामकाज करो । और जब अकेले रहो तब भक्तिशास्त्र पढ़ा करो – जैसे श्रीमद्भागवत या चैतन्यचरितामृत आदि ।”

[“তুমি এ-ও কর — ও-ও কর। ঈশ্বরের পাদপদ্মে মন রেখে সংসারের কাজ কর। আর যখন একলা থাকবে তখন পড়বে ভক্তিশাস্ত্র — শ্রীমদ্ভাগবত বা চৈতন্যচরিতামৃত — এই সমস্ত পড়বে।”

"You must do 'this' as well as 'that'. Do your duties in the world, and also fix your mind on the Lotus Feet of the Lord. Read books of devotion like the Bhagavata or the life of Chaitanya when you are alone and have nothing else to do."

रात के लगभग दस बजे हैं । अभी कालीमन्दिर बन्द नहीं हुआ है । मास्टर ने राम चटर्जी के साथ जाकर पहले राधाकान्त के मन्दिर में और फिर कालीमाता के मन्दिर में प्रणाम किया । चाँद निकला था । श्रावण की कृष्णा द्वितीया थी । आँगन और मन्दिरों के शीर्ष बड़े सुन्दर दिखते थे ।

श्रीरामकृष्ण के कमरे में लौटकर मास्टर ने देखा कि वे भोजन करने बैठ रहे हैं । वे दक्षिण की ओर मुँह करके बैठे । थोड़ा सूजी का पायस और एक-दो पतली पुड़ियाँ – बस यही भोजन था । थोड़ी देर बाद मास्टर और उनके मित्र ने श्रीरामकृष्ण को प्रणाम करके बिदा ली । वे उसी दिन कलकत्ते लौट जाएँगे ।

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