श्रीगुरु-स्त्रोत्रम
(२)
गुरुर्ब्रह्मा गुरुर्विष्णु गुरुर्देवो महेश्वरः ।
गुरुरेव परं ब्रह्म तस्मै श्रीगुरवे नमः ।१।
अखण्डमण्डलाकारं व्याप्तं येन चराचरम ।
तत्पदं दर्शितं येन तस्मै श्रीगुरवे नमः ।२।
अज्ञानतिमिरान्धस्य ज्ञानान्जनशलाकया ।
चक्षुरून्मीलितं येन तस्मै श्रीगुरवे नमः ।३।
न गुरोरधिकं तत्वं न गुरोरधिकं तपः ।
तत्वज्ञानात्परं नास्ति तस्मै श्रीगुरवे नमः ।४।
मन्नाथः श्रीजगन्नाथो मदगुरु : श्रीजगदगुरु : ।
मदात्मा सर्वभूतात्मा तस्मै श्रीगुरवे नमः ।५।
(३)
श्रीगुरु-प्रार्थना
भवसागर-तारण-कारण हे । रविनन्दन-बन्धन-खण्डन हे ।।
शरणागत किंकर भीत मने । गुरुदेव दया करो दीनजने ।१।
हृदिकन्दर-तामस-भास्कर हे । तुमि विष्णु प्रजापति शंकर हे ।।
परब्रह्म परात्पर वेद भणे । गुरुदेव दया करो दीन जने ।२।
मनवारण-शासन-अंकुश हे । नरत्राण तरे हरि चाक्षुष हे ।।
गुणगान -परायण देवगणे । गुरुदेव दया करो दीनजने ।३।
कुलकुण्डलिनी-घुम-भंजक हे । हृदिग्रंथि- वदारण-कारक हे ।।
मम मानस चंचल रात्रदिने ।गुरुदेव दया करो दीनजने ।४।
रिपुसूदन मंगलनायक हे। सुख शान्ति -वराभय-दायक हे ।।
त्रयताप हरे तव नाम गुणे । गुरुदेव दया करो दीनजने ।५।
अभिमान- प्रभाव-विमर्दक हे ।गतिहीन-जने तुमि रक्षक हे ।।
चित शंकित वंचित भक्तिधने । गुरुदेव दया करो दीनजने ।६।
तव नाम सदा शुभसाधक हे । पतिताधम-मानव-पावक हे ।।
महिमा तव गोचर शुद्ध मने ।गुरुदेव दया करो दीनजने ।७।
जय सद्गुरु ईश्वर-प्रापक हे । भवरोग-विकार-विनाशक हे ।।
मन जेन रहे तव श्रीचरणे । गुरुदेव दया करो दीनजने ।८।
(४)
निर्वाण षटकम
मनो-बुद्धि-Sहंकार- चित्तानि नाहं
न च श्रोत्रजिह्वे न च घ्राणनेत्रे ।
न च व्योम-भूमि न तेजो वायु-
श्चिदानन्दरूपः शिवोSहं शिवोSहम ।१।
न च प्राणसंज्ञो न वै पञ्चवायु-
र्न वा सप्तधातुर्न वा पञ्च कोषाः ।
न वाक्पाणिपादं न चोपस्थपायू
चिदानन्दरूपः शिवोSहं शिवोSहम ।२।
न मे द्वेषरागो न मे लोभमोहौ
मदो नैव मे नैव मात्सर्यभावः ।
न धर्मो न चार्थो न कामो न मोक्ष-
श्चिदानन्दरूपः शिवोSहं शिवोSहम ।३।
न पुण्यं न पापं न सौख्यं न दुःख
न मन्त्रो न तीर्थं न वेदा न यज्ञाः ।
अहं भोजनं नैव भोज्यं न भोक्ता
चिदानन्दरूपः शिवोSहं शिवोSहम ।४।
न मृत्युर्न शंका न मे जातिभेदः
पिता नैव मे नैव माता न जन्म ।
न बन्धुर्न मित्रं गुरुनैव शिष्य-
श्चिदानन्दरूपः शिवोSहं शिवोSहम ।५।
अहं निर्विकल्पो निराकाररूपो
विभुत्वाच्च सर्वत्र सर्वेन्द्रियाणाम ।
न चासंगतं नैव मुक्तिर्न मेय-
श्चिदानन्दरूपः शिवोSहं शिवोSहम ।६।
(५)
मोह मुद्गर !
चर्पटपञ्जरिका-स्त्रोत्रम
दीनमपि रजनी सायं प्रातः शिशिरवसन्तौ पुनरायातः ।
कालः क्रीडति गच्छत्यायुस्तद्पि न मुन्चत्याशा वायु : ।१।
भज गोविन्दं भज गोविन्दं, गोविन्दं भज मूढ़मते ।
प्राप्ते संनिहिते मरणे न हि न हि रक्षति डुकृन करणे ।।
अग्रे वह्निः पृष्ठे भानू रात्रौ चिबुक समर्पितजानु: ।
करतलभिक्षा तरुतलवाससस्तद्पि न मुन्चत्याशापाशः । भज गो... ।२।
यावद्वित्तोपार्जनसक्तस्तावन्निजपरिवारो रक्तः ।
पश्चाद्धावति जर्जरदेहे वार्तां पृच्छति कोSपी न गेहे ।भज गो... ।३।
जटिलो मुण्डी लुन्चितकेशः काषायाम्बरबहुकृतवेषः ।
पश्यन्नपि च न पश्यति मूढोउदरनिमित्तं बहुकृतवेषः । भज गो...।४।
भगवतगीता किंचिदधीता गंगाजललवकणिका पीता ।
सकृदपि यस्य मुरारिसमर्चा तस्य यमः किं कुरुते चर्चाम ।भज गो..।५।
अंग्म गलितं पलितं मुंडम दशनविहीनं जातं तुण्डम।
वृद्धो याति गृहित्वा दण्डं तदपि न मुन्चत्याशा पिण्डम । भज गो..।६।
बालस्ताव्त्क्रीडासक्तस्तरुणस्तावत्तरुणीरक्तः
वृद्धस्तावच्चीन्तामग्नः परमे ब्रह्मणि कोSपि न लग्नः ।भज गो...।७।
पुनरपि जननं पुनरपि मरणं पुनरपि जननीजठरे शयनम ।
इह संसारे खलु दुस्तारे कृपयापारे पाहि मुरारे । भज गो...।८।
पुनरपि रजनी पुनरपि दिवसः पुनरपि पक्षः पुनरपि मासः ।
पुनरप्ययनं पुनरपि वर्षं तदपि न मुन्चत्याशामर्षम ।भज गो..।९।
वयसि गते कः कामविकारः शुष्के नीरे कः कासारः।
नष्टे द्रव्ये कः परिवारो ज्ञाते तत्वे कः संसारः ।भज गो..।१०।
नारीस्तनभरनाभिनिवेशं मिथ्या मायामोहावेशम ।
एतन्मांसवसादिविकारं मनसि विचारय वारंवारम ।भज गो..।११।
कस्त्वं कोSहं कुत आयातः का मे जननी को मे तातः ।
इति परिभावय सर्वमसारं विश्वं त्यक्त्वा स्वप्नविचारम ।।भज गो..।१२ ।
गेयं गीतानामसहस्रम ध्येयं श्रीपतिरूपमजस्रम ।
नेयं सज्जनसंगे चित्तं देयं दीनजनाय च वित्तम ।भज गो..।१३।
यावज्जीवो निवसति देहे कुशलं तावत-पृच्छती गेहे ।
गतवति वायौ देहापाये भार्या बिभ्यति तस्मिन् काये । भज गो..।१४।
सुखतः क्रियते रामाभोगः पश्चाद्धन्त शरीरे रोगः ।
यद्दपि लोके मरणं शरणं तदपि न मुंचति पापाचरणम ।भज गो...।१५।
नाहं न त्वं नायं लोकस्तद्पि किमर्थं क्रियते शोकः । भज गो...।१६।
कुरुते गंगासागरगमनं व्रतपरिपालनमथवा दानम ।
ज्ञानविहीनः सर्वमतेन मुक्ति न भजति जन्मशतेन ।भज गो..।१७।
(६)
(गजल-कहरवा )
तुझसे हमने दिल को लगाया, जो कुछ है सो तू ही है ।
एक तुझको अपना पाया, जो कुछ है सो तू ही है ।।
सबके मकां दिल का मकीं तू, कौन सा दिल है जिसमें नहीं तू ।
हरेक दिल में तू ही समाया, जो कुछ है सो तू ही है ।।
क्या मलायक क्या इन्सान, क्या हिन्दू क्या मुसलमान ।
जैसे चाहा तूने बनाया, जो कुछ है सो तू ही है ।।
काबा में क्या, देवालय में क्या, तेरी परस्तिश होगी सब जाँ ।
आगे तेरे सिर सबने झुकाया, जो कुछ है सो तू ही है ।।
अर्श से लेकर फर्श जमीं तक और जमीं से अर्श वरी तक ।
जहाँ मैं देखा तू ही नजर आया जो कुछ है सो तू ही है ।।
सोचा समझा देखा-भाला, तुम जैसा कोई न ढूंढ़ निकाला ।
अब ये समझ में ' जफर ' के आया, जो कुछ है सो तू ही है ।।
(७)
प्रभु मैं गुलाम, मैं गुलाम, मैं गुलाम तेरा,
तू दीवान तू दीवान, तू दीवान मेरा ।
दो रोटी एक लंगोटी, तेरे पास मैं पाया,
भगति भाव दे और, नाम तेरा गाया ।
तू दीवान मेहरबान, नाम तेरा बढया,
दास कबीर शरण में आया, चरण लागे ताराया ।।
विविध संगीत
(१७)
भैरवी-दादरा (जलद)
शौर्य दाउ -
शौर्य दाउ वीर्य दाउ नवीन जीवन दाउ,
परा अपरा विद्या दाउ, दिव्य चेतन दाउ ।१।
कर्मे शक्ति दाउ, हृदये भकति दाउ,
निर्मल शुभ बुद्धि दाउ, ज्ञान गरिमा दाउ ।२।
' त्याग 'ते मति दाउ, ' सेवा 'ते प्रीति दाउ,
स्वार्थ-द्वन्द्व-भेद-बुद्धि चिरतरे मूछे दाउ ।३।
ए नवयुगेर नवीन तन्त्रे दीक्षित कर मिलन मन्त्रे,
सार्थक कर जीवन मोदर, चरणे शरण दाउ ।४।
-स्वामी चण्डिकानन्द
हिन्दी अनुवाद
शौर्य दो-
शौर्य दो वीर्य दो, नवीन जीवन दो,
परा-अपरा विद्या दो, दिव्य चेतना दो ।१।
कर्म में शक्ति दो, हृदय में भक्ति दो,
निर्मल शुभ बुद्धि दो, ज्ञान गरिमा दो ।२।
' त्याग 'में मति दो, ' सेवा ' में प्रीति दो,
स्वार्थ-द्वन्द्व-भेद-बुद्धि सर्वथा ही मिटा दो ।३।
हे नवयुग के नवीन तंत्र में, दीक्षित करो मिलन मन्त्र में,
सार्थक करो जीवन मेरा-2 चरण में शरण दो ।४।
शौर्य दो वीर्य दो ...........दिव्य चेतना दो ।
-स्वामी चण्डिकानन्द
(१८)
आड़ाना -झाँपताल
दाउ तेज तेजमय चित्ते आमार,
वीर्य अमृत दाउ, अमृत पाथार ।१।
दाउ देहे नव शक्ति, हृदये अचला भक्ति,
दूर करो मोह-सुप्ति, उहे सारात्सार ।२।
दाउ आलो, दाउ आशा, दाउ संजीवनी भाषा,
दाउ ज्ञान, दाउ प्राण, हे प्राण आधार,
दाउ खूले प्रेम-आँखी, सबई शिवमय देखि,
चरणे शरण दाउ तनये तोमार ।३।
स्वामी चण्डिकानन्द
(१९)
अग्निमन्त्रे दीक्षित कर सन्ताने तव आज ।
आशीर्वादेर धर्म पराउ घूचाये दैन्य साज ।१।
तप्त कर माँ ह्रदय रुधिर, दूर करे दाउ भीति-अश्रुनीर,
दाँड़ाइ आमरा माँ तोरे घिरिया विश्व सभाय माझ ।२।
मानुष आमरा, नहि त माँ हीन, तूई जार माँ से कि कभू दीन,
तबे केन मिछे, पड़े थाका पीछे, केन ए अलीक लाज ?
एसो एसो एसो, एसो माँ आमार, दश-प्रहरण-धारिणी,
हास माँ अट्ट अट्ट हास्य भूलोक-दयूलोक-नादिनी,
मोरा करि विदूरित स्वार्थ-द्वन्द्व साधिया तोमार काज ।३।
-स्वामी चण्डिकानन्द
अग्निमन्त्र में दीक्षित करो सन्तन को आज।
आशीर्वाद का धर्म पहनाओ हटा दो दैन्य साज ।१।
तप्त करो माँ रक्त-हृदय, दूर करो माँ मन का भय,
घेरे तुमको माँ खड़े हों हमसब विश्व-सभा को छाय।२।
मनुष्य हैं हमसब, नहीं हैं माँ हम हीन, तू है माँ जिसकी क्या वो है कभी दीन ?
तब क्यों भ्रम में आँखे मीचे, पड़ा हुआ है सबके पीछे, क्यों यह भ्रामक लाज ?
आओ आओ आओ, आओ माँ तू मेरी, दश-प्रहरण-धारिणी,
हँसों माँ अट्ट अट्ट हास भूलोक-द्यूलोक-नादिनी,
हम सब करें विदूरित स्वार्थ-द्वन्द्व साधें तुम्हारा काज।३।
-स्वामी चण्डिकानन्द
(२०)
हेमन कल्याण -तेउड़ा
लक्ष प्राणेर दुःख यदि वक्षे रे तोर बाजे ।
मूर्त क'रे तोल रे तोरे सकल काजेर माझे ।१।
जा छूटे जा उरे पागल, वज्र-रोले सबारे बल,
उठ रे तोरा, मोछ आँखिजल, भोल रे अलीक लाजे ।२।
प्राण दिये तोर ज्वले आगुन ज्वाला सकल घरे;
स्वार्थ-द्वन्द्व मृत्युभीति छाई हये जाक पूड़े ।३।
आबार चेये देखुक जगत, तोराउ मानुष तोराउ महत,
आजउ तोदेर शिराय शिराय तप्त शोणित आछे ।४।
-स्वामी चण्डिकानन्द
लक्ष प्राणों के दुःख - यदि सीने को तेरी बेधे,
मूर्त करो उसे अपने समस्त कार्यों में मुट्ठी बाँधे ।१।
जाओ दौड़े जाओ अरे पागल, वज्र-गर्जन से सबको बोलो,
उठो रे तुम-सब, पोछ के नेत्र-जल, भूलो रे भ्रामक लाज ।२।
प्राणों में तेरे प्रज्वलित हो अग्नि, दहके ज्वाला गृहे गृहे;
स्वार्थ-द्वन्द्व मृत्यु का भय खाक हो जाय जल के ।३।
फिर से आवक हो देखे जगत, तुमलोग भी मनुष्य तुम भी हो महत,
आज भी तुम्हारी नसों-नाड़ियों में गर्म-लहू उबाल मारे ।४।
स्वामी चण्डिकानन्द
(२१)
बागेश्री -एकताल
माँ आमादेर मानुष करो एई मिनती उ राँगा पाय ।
तोमार छेले हये जेन दीन काटे ना धूलो खेलाय ।१।
मिथ्या जतई मोहन वेशे मन भूलाते आसूक हेसे ।
आमरा जेन अटल थाकि माँ तोमारई चरण सेवाय ।२।
तूमि मोदेर प्राणेर तूमि मोदेर ध्यान-ज्ञान ।
तोमार तरे गेये गान माँ जेन मोदेर जीवन जाय ।३।
स्वामी चण्डिकानन्द
भावानुवाद (भैरवी -दादरा )
' माँ ' हमें मनुष्य बना दे - यह विनती तेरे चरणों में ।
तेरे बेटे होके फिर माँ - २ दीन बीते ना धुल कीचड़ में, यह विनती तेरे चरणों में ।१।
माँ मुझे मनुष्य बना दे ...
झूठ प्रपंच मोहक रूपों में मन को भुलाये आकर हँसते ।
ऐसा कर हम अचल रहें माँ-२ तेरे चरणों की सेवा में ।२। माँ मुझे .....
तू ही हमारे प्राणों की प्राण-2 तू ही हमारा ध्यान ज्ञान ।
तेरी लीला गाते गाते-२ जीवन जायें अन्त में -
यह विनती तेरे चरणों में ।३।
माँ मुझे मनुष्य बना दे .
-स्वामी चण्डिकानन्द
(२२)
शंकरा वेहाग -एकताल
आदर्श तव शंकर सीता, भूलीउ ना तूमि भूलीउ ना ।
भूलीउ ना तूमि महा पवित्र एई भारतेर धूलिकना ।१।
भारत सन्तान देवता तोमार, खूँजिते ईश्वर कोथा जाबे आर,
महा उपचारे त्याग उ सेवार कर तार आराधना ।२।
उच्चकण्ठे बल बल तूमि, ' भारत सन्तान आमार भाई '
मुर्ख कांगाल द्विज उ चाण्डाल देवता आमार एँरा सबाई '।
प्राणपणे तूमि बल दिनरात, उमा जगदम्बा, उगो उमानाथ,
मानुष करिया दाउ गो आमाय, आर किछू आमि चाईब ना ।३।
(२२)
भावानुवाद (मिश्र विहाग-त्रिताल)
तव आदर्श है शंकर सीता, भूलो ना तुम भूलो ना ।
महा पवित्र है धूलकण इसके यह कभी तुम भूलोना ।१।
देवता तेरे भारत सन्तान- खोजने कहाँ जाते हो भगवान ?
सेवा अरु त्याग सरल उपाय उससे करो आरधना ।२।
ऊच्च कंठ से लगाओ नारे ' भारत सन्तान भाई मेरे '।
मूर्ख कंगाल द्विज चंडाल देवता हैं ये मेरे ।।
प्राणपन से कहो दिनरात - हे जगदम्बा, हे उमानाथ ।
मनुष्य मुझको तुम बना दो और कुछ मैं चाहूँ ना ।।
(२३)
देशकार- एकताल
ताथेईया, ताथेईया नाचे भोला, बोम बब बाजे गाल,
डिमि डिमि डिमि डमरू बाजे, दूलिछे कपाल-माल ।
गरजे गंगा जटा-माझे, ऊगरे अनल त्रिशूल राजे,
धक धक धक मौलीबन्ध, ज्वले शशांक-भाल ।।
-स्वामी विवेकानन्द
(२४)
दरबारी- कानाड़ा-स्वर फाँकताल
हर हर हर भूतनाथ पशुपति,
योगीश्वर महादेव शिव पिनाक पाणि ।।
ऊर्ध्व जलत जटाजाल, नाचत ब्योमकेश भाल,
सप्तभूवन धरत ताल, टलमल अवनी ।।
-स्वामी विवेकानन्द
(२५)
बाउल-एकताल
माँ आछेन आर आमि आछि भावना कि आछे आमार;
मार हाते खाई परि, माँ नियेछेन आमार भार ।।
पड़े संसार पाके घोर बिपाके जखन देखबि अंधकार,
देखबि अन्धकारेर बिपद हते माँ जे करेछेन उद्धार ।।
भूले थाकि तबूउ देखि भोले ना माँ एकटि बार,
बड़ स्नेहेर आधार माँ जे आमार, आमि जे मार, माँ आमार ।।
-मनोमोहन चक्रवर्ती
भावानुवाद (खमाज-कहरवा )
माँ है मैं हूँ फिर तो मुझको चिन्ता कैसी अबकी बार ।
माँ के हाथों खाता पीता, माँ ने लिया मेरा भार ।।
जग माया के घोर क्षणों में जब भी देखूँ अन्धकार ।
माँ उस घन तम में है कहती ' डर मत ' -' डर मत ' बारम्बार ।।
तार स्वरों में करूँ पुकार तारा तेरी कितनी बार,
दयामयी होकर भी माँ यह तेरा कैसा व्यवहार ।।
सुत को छोड़ घर के बहार खुद सोये तू घर के भीतर,
माँ माँ की रट लगा के बची मेरी अस्थि-चर्म केवल बाहर ।।
मत्त रहा मैं डूब खेल में इससे तूने दिया बिसार,
और नहीं मैं जाऊं खेलने पड़ जाये तेरी प्रेम नजर ।।
दीन राम कहता है माँ मैं जाऊं किसके पास किधर,
माँ के बिना उठाये कौन अकृत अधम इस जनका भार ।।
(२६)
मिश्र-दादरा
आमरा मायेर छेले, आमरा मायेर छेले ।
आमरा कि कम आसूक ना यम, जीवन अवहेले ।।
पथेर परे बिपद पेले, दलते पारि पदतले,
मोदेर हुंकारते सागर झुकाय, पाहाड़ पड़े टले ।।
चन्द्र- सूर्य ग्रह-तारा, मायेर कथाय घूरछे तारा,
एमन मायेर छेले मोरा दूर्बल के बले ।।
मोदेर आबार पाप कोथाय, स्वर्ग नरक के बल चाय ?
काज फूराले संध्या बेलाय माँ करिबे कोले ।।
(२७)
मालकोष-तेउरा
शक्तिस्वरूपिणी विश्वजननी देह माँ शक्ति देह माँ जय ।
सकल जड़ता दूर करे दाउ, दूर करे दाउ सकल भय ।।
जातिर जीवने जत सब ग्लानि बज्र अनले दाउ दाउ हानि ।
भेद- व्यवधान होक अवसान, सबे जेन एक प्राण ह्य ।
जय माँ विश्वजननी दुर्गे, जय महामायी जय माँ जय ।।
-स्वामी वेदानन्द
सत्व भजनांजलि
(१)
श्रीसरस्वतीस्त्रोत्रम
या कुन्देन्दुतुषारहारधवला या शुभ्रवस्त्रावृता
या वीणावरदण्डमण्डितकरा या श्वेतपद्मासना ।
या ब्रह्माच्युतशंकरप्रभृतिभिर्देवै: सदा वन्दिता
सा मां पातु सरस्वती भगवती निःशेषजाडयापहा ।।
(२)
(बहार -तीनताल )
वरदे वीणावादिनी वर दे ।
प्रिय स्वतंत्र रव अमृतमन्त्र नव, भारत में भर दे ।।
काट अंध उर के बंधन स्तर, बहा जननि ज्योतिर्मय निर्झर ।
कलुष भेद, तम हर, प्रकाश भर, जगमग जग कर दे ।।
नव गति, नव लय, ताल-छंद नव, नवल कंठ नव जलद मंद्र नव,
नव नभ के नव विहगवृन्द को नव पर, नव स्वर दे ।।
-सूर्यकान्त त्रिपाठी ' निराला '
(३)
(मनोहरसाही-झपताल )
सकलि तोमारि इच्छा इच्छामयी तारा तुमि ।
तोमार कर्म तुमि करो माँ, लोके बोले करि आमि।।
पंके बद्ध करो करि, पंगुरे लंघाओ गिरि,
कारे दाओ माँ ब्रह्मपद, कारे करो अधोगामी ।।
आमि यंत्र तुमि यंत्री, आमि घर तुमि घरनी,
आमि रथ तुमि रथी, जेमन चालाओ तेमनि चलि ।।
भावानुवाद
सभी तेरी इच्छा है माँ इच्छामयी तारा तुम्हीं ।
अपना कर्म तुम्हीं करती माँ लोग कहते करते हमहीं ।।
फँसाती कीच में हाथी, लंघाती पंगु को गिरि ।
देती हो किसी को ब्रह्मपद माँ, करती किसी को अधोगामी ।।
मैं हूँ यंत्र तुम हो यंत्री, मैं हूँ घर तुम हो घरनी ।
मैं हूँ रथ तुम हो रथी माँ, चलता जैसा चलाती माँ ।।
(२८)
अखिल भारत विवेकानन्द युवा महामण्डल का प्रार्थना-गीत
(संज्ञानसूकतम : ' संघ-मन्त्र ')
सं गच्छध्वं सं वदध्वं सं वो मनांसि जानताम ।
देवा भागं यथा पूर्वे संजानाना उपासते ।१।
समानो मन्त्रः समितिः समानी
समानं मनः सह चित्तमेषाम।
समानं मन्त्रमभिमन्त्रये वः
समानेन वो हविषा जुहोमि ।२।
समानी व आकूतिः समाना हृदयानि वः ।
समानमस्तु वो मनो यथा वः सुसहासति ।३।
-ऋगवेद : १०/ १९१/२-४
( २९ )
(' सं गच्छध्वं ' के सुर में गेय )
एक पथे चलिब, एक कथा बलिब,
आमादेर मनगुलि एक भाबे गड़ीब ।
देवगन जेमन भाग क'रे हवि नेन,
आमराउ सब किछू भाग करे लईब ।
आमादेर चाउया पाउया अन्तःकरण एकरूप,
आमादेर ज्ञाने सब एकेरई बहुरूप,
ऐक्य विधानेर मन्त्र पड़िया
देवगन तोमादेर आहुति प्रदान करिब ।
संकल्प समान, हृदयउ समान,
भावगुलि समान करे
परम ऐक्य लभिब।
भावानुवाद : श्रीवीरेश्वर चक्रवर्ती
=============
हिन्दी भावानुवाद
( संघ-मन्त्र )
एक साथ चलेंगे एक बात बोलेंगे,
हम सबके मन को एक भाव से गढ़ेंगे ।
देवगण जैसे बाँट हवि लेते हैं,
हम सब सबकुछ बाँट कर ही लेंगे ।।
याचना हमारी हो एक, अन्तःकरण एक हो,
हमारे विचार में सब जीव एक हैं;
ऐक्य विधान के मन्त्र को गाकर,
देवगण तुम्हें हम आहुति प्रदान करेंगे ।।
संकल्प समान हृदय भी समान,
भावना को एक करके, परम ऐक्य पायेंगे ।
एक साथ चलेंगे, एक बात बोलेंगे, हम सबके मन को एक भाव से गढ़ेंगे ।।
हिन्दी भावानुवाद : श्रीबलेन्द्रनाथ नन्दी
English translation
(हिन्दी संघ-मन्त्र- ' एक साथ चलेंगे एक बात बोलेंगे....... के सुर में गेय )
Let us move together,
Let us speak in harmony,
Let our minds think in unison,
As Gods share with one another,
We too shall care to share,
Let us pray in consistency,
Let our hearts be in uniformity,
Let us be one with infinity,
Let us chant in unison,
Let us act in unison,
Let that unison be our prayer.
We'll unify our heart, feelings and determination,
To realise and to be - One with All !
Let us move together,
Let us speak in harmony.
========
- Translated by Sri Ajay agarwal on 20/4/2012
(३०)
(असतो मा सदगमय। तमसो मा ज्योतिर्गमय ।
मृत्योर्माSमृतं गमय ।)
असत हईते मोरे सतपथे नाउ ।
ज्ञानेर आलोक ज्वले आँधार घुचाउ।।
मरनेर भय जाक अमर करो ।
देखा दिये भगवान शंका हरो ।।
करुना आशीष ढालो रूद्र ! शिरे ।
चिरदिन थाको मोर जीवन घिरे ।।
झरिया पडुक शान्ति चराचरमय ।
चिरशान्ति परिमले भरुक हृदय ।।
भावानुवाद -स्वामी विश्वाश्रयानन्द
असत राह से मुझे सत राह पर लो ।
ज्ञान आलोक देके मन का अँधेरा हटाओ ।।
भय जाय मन का, अमर करो ।
दर्शन देकर भगवान, शंका हरो ।।
करुणा आशीष ढालो रूद्र ! सिर पे ।
चिरदिन रहो मेरे जीवन घेरे ।।
चारों ओर शान्ति झरती रहे ।
चिरशान्ति परिमल से भरो हृदय को ।
असत राह से मुझे सत राह पर लो ।।
हिन्दी भावानुवाद : श्रीसुकान्त मजुमदार
(३१)
तेजोSसी तेजो मयि धेहि । वीर्यमसि वीर्यं मयि धेहि ।
बलमसि बलं मयि धेहि । ओजोSसि ओजो मयि धेहि ।
मन्युरसी मन्युं मयि धेहि । सहोSसि सहो मयि धेहि ।।
भावानुवाद
( मिश्र चौताल )
तेज तुम- तेज दो, वीर्य तुम- करो वीर्यवान,
ओज तुम - ओज दो, बल तुम- करो बलवान ।१।
अन्याय सहते न तुम, अन्याय विद्रोही करो हमें,
सहन- रूपी शक्ति दो, दुःख-कष्ट सहिष्णु बनें ।२।
(३२)
ॐ सह नाववतु । सह नौ भुनक्तु ।
सह वीर्यं करवावहै । तेजस्वी नावधीतमस्तु मा विद्विषावहै ।।
ॐ शान्ति: शान्ति : शान्ति :।।
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(मिश्र त्रिताल )
हे ईश्वर, आमादेर रक्षा करो
उभयके समभावे रक्षा करो
विद्यार सूफल प्रकाश करे
( आमादेर ) उभयके समभावे पालन करो ।
समान सामर्थवान करो ।
आमादेर उभय के हे ईश्वर ..............
अधीत विद्या उभयेर जीवने
तुल्यभावे तेजोदीप्त करो ।
विद्वेष बुद्धि विनाश करो
( आमादेर ) (आमादेर परस्पर )
हे ईश्वर ....
आध्यात्मिक, आधिभौतिक, आधिदैविक
शान्ति विधान करो ।
हे ईश्वर .....
भावानुवाद : श्रीवीरेश्वर चक्रवर्ती
( हे ईश्वर ! आप हम गुरु-शिष्य दोनों की साथ साथ सब प्रकारसे रक्षा करें, हम दोनों का आप साथ-साथ समुचित रूप से पालन-पोषण करें, हम दोनों साथ-ही-साथ सब प्रकारसे बल प्राप्त करें, हम दोनों की अध्यन की हुई विद्या तेजपूर्ण हो-कहीं किसी से हम विद्या में परास्त न हों और हम दोनों जीवनभर परस्पर स्नेह-सूत्र से बँधे रहें, हमारे अन्दर परस्पर कभी द्वेष न हों ।हे ईश्वर ! तीनों तापों की निवृत्ति हों )
(३३)
आमरा सबाई एई भारतेर
ताल -दादरा
आमरा सबाई एई भारतेर नवीन युवक दल ।
आमादेर पथ देखाबे अखिल भारत विवेकानन्द युव महामण्डल ।१।
आमादेर देहे आछे शक्ति, आमादेर मने आछे भक्ति,
आमरा एगिये जाबो संगे निये श्रद्धा महाबल ।२।
मूर्ख गरीब मानुष जारा भारतेर सन्तान -
तादेर सेवाय नियोजित मोदेर मन प्राण ।३।
स्वामीजीर वानी संगे करे चलब मोरा लक्ष्य धरे ।
शिव ज्ञाने सब जीवेर सेवा आमादेर सम्बल ।४।
-श्रीसनातन सिंह
हिन्दी भावानुवाद
हमसब हैं भाई इस भारत के
हमसब हैं भाई इस भारत के नवीन युवक दल ।
हमें तो पथ दिखाये-२ अखिल भारत विवेकानन्द युवा महामण्डल ।।
हमारे तन में है शक्ति, हमारे मन में है भक्ति;
हमसब आगे बढ़ेंगे संग लिये श्रद्धा महाबल -२
हमें तो पथ दिखाये -२ अखिल भारत विवेकानन्द युवा महामण्डल ।।
मूर्ख गरीब मानव जो हैं भारत की सन्तान -२
उनकी सेवा में समर्पित अपना मन और प्राण -२
स्वामीजी की वाणी, संग में लेकर, चलेंगे हमसब लक्ष्य रखकर ।
शिव-ज्ञान से सब जीव की सेवा-२ हमारा संबल-२
हमें तो पथ दिखाये .......
(३४)
भैरव-तीव्रा
भैरव रवे डाको जगजने, आर कि घुमानो साजे ?
कत ना क्लेशे दहिछे जगत- से यातना बुके बाजे ।
' आमार, आमार ' करिये पागल
होस नेको आर भांग ए आगल -
तोमार आमार सब एकाकार जार हृदे प्रेम राजे ।।
' चरैवेति चरैवेति ' -एगिये चलार गान
अभय मन्त्रे हृदयतन्त्री जागाये तोले प्राण ।
विवेक-दीप्त जाग्रत शत सिंह शिशुर दल,
' प्रेह्यभीहि धर्ष्णुहि ' हाँक कम्पित हिमाचल ।
तमसा सागरे उत्थित उई आशार सूर्य देख,
युव अवतार फुत्कारे तर अभय तुर्ष बाजे ।।
(३५)
सत्व भजनांजलि
(१)
हिन्द देश के निवासी, सभी जन एक हैं,
रंग-रूप वेश-भाषा, चाहे अनेक हैं।
बेला, गुलाब, जूही, चम्पा, चमेली,
प्यारे-प्यारे फूल गूँथे, माला में एक हैं ।
गंगा, जमुना, ब्रह्मपुत्र, कृष्णा, कावेरी
जाके मिल गई सागर में हुई मगर एक हैं ।
कोयल की कूंक न्यारी, पपीहे की टेर प्यारी,
गा रही तराना बुलबुल, राग मगर एक हैं ।
(२)
धन धान्य पुष्पे भरा आमादेर एई बसुन्धरा,
ताहर माझे आछे देश एक-सकल देशेर सेरा;
(सेजे) स्वप्न दिये तैरी से जे स्मृति दिये घेरा;
एमन देशटि कोथाओ खूंजे पाबे ना को तुमि;
सकल देशेर रानी से जे आमार जन्मभूमि ।।
चन्द्र सूर्य ग्रह तारा, कोथाय एमन उजल धारा ?
कोथाय एमन खेले तड़ित एमन कालो मेघे ?
(ओ तार ) पाखीर डाके घुमिये उठि, पाखीर डाके जेगे ।
एमन देशटि कोथाओ .................................।।
एमन स्निग्ध नदी काहार ? कोथाय एमन धूम्र पाहाड़ ?
कोथाय एमन हरित क्षेत्र आकाश तले मेशे ?
(एमन ) धानेर उपर ढेउ खेले जाय बातास काहार देशे ?
एमन देशटि कोथाओ ................................।।
पुष्पे पुष्पे भरा शाखी, कुंजे कुंजे गाहे पाखी;
गुजरिया आसे अलि पुन्जे पुन्जे थेये,
(तारा ) फूलेर उपर घुमिये पड़े फूलेर मधु खेये ।
एमन देशटि ........................................।।
भायेर मायेर एतो स्नेह, कोथाय गेले पाबे केह ?
ओमा, तोमार चरण दूटि वक्षे आमार धरि,
(आमार ) एई देशते जन्म-जेनो एई देशेतेई मरि ।
एमन देशटि कोथाओ ..............................।।
-द्विजेन्द्र लाल राय
(३)
होंगे कामयाब, होंगे कामयाब
हम होंगे कामयाब एक दिन
हो हो मन में है विश्वास पूरा है विश्वास
हम होंगे कामयाब एक दिन ।
होगी शांति चारों ओर, होगी शांति चारों ओर
होगी शांति चारों ओर एक दिन ।
हम चलेंगे साथ-साथ डाले हाथों में हाथ
हम चलेंगे साथ-साथ एक दिन ।
नहीं डर किसी का आज, नहीं भय किसी का आज
नहीं डर किसी का आज के दिन ।
(४)
हिमाद्रि तुंग श्रृंग से प्रबुद्ध शुद्ध भारती ।
स्वयं प्रभा समुज्ज्वला स्वतंत्रता पुकारती ।।
अमर्त्य वीर-पुत्र हो दृढ-प्रतिज्ञ सोच लो ।
प्रशस्त पुण्य पंथ है बढ़े चलो, बढ़े चलो ।।
असंख्य-कीर्ति रश्मियाँ विकीर्ण दिव्य दाह सी ।
सपूत मातृभूमि के रुको न शूर साहसी ।।
अराति-सैन्य-सिन्धु में सुबाड़वाग्नि से जलो ।
प्रवीर हो जयी बनो बढ़े चलो बढ़े चलो ।।
(५)
सारे जहाँ से अच्छा हिन्दोस्ताँ हमारा ।
हम बुलबुले हैं उसकी वह गुलिस्ताँ हमारा ।
गुरबत में हों अगर हम रहता है दिल वतन में ।
समझो हमें वहीँ पर, दिल हो जहाँ हमारा ।
पर्वत वह सबसे ऊँचा हम साया आसमाँ का ।
वह संतरी हमारा वह पासवां हमारा ।
गोदी में खेलती हैं जिसके हजारों नदियाँ ।
गुलशन है जिनके दम से रश्के जिनाँ हमारा ।
ऐ आवे रोदे गंगा, वह दिन है यद् तुझको ।
उतरा तेरे किनारे जब कारवां हमारा ।
मजहब नहीं सिखाता आपस में बैर रखना ।
हिंदी हैं हम वतन है हिन्दोस्तां हमारा ।
यूनान, मिश्र, रोमा, सब मिट गये जहाँ से ।
अब तक मगर है बाकी नामो निशाँ हमारा ।
कुछ बात है कि हस्ती मिटती नहीं मिटाये ।
सदियों रहा है दुश्मन दौरे जमाँ हमारा ।
' इकबाल ' कोई मरहम अपना नहीं जहाँ में ।
मालूम क्या किसी को दर्दे निहाँ हमारा ।
(६)
जय हो जय हो जय हो
जय जनम भूमि माता, जय जनम भूमि माता ।।
रामकृष्ण उपजाए तूने, वीर विवेकानन्द दिया ;
कर्मी धर्मी बालक तेरे तू सबकी माता ।।
वीर मराठा शिवाजी जायो अमरसिंह राठौर बनायो;
जग जग जननी मातु सभी की कृपा करो दाता ।।
भेंट करेंगे अपनी जान होगा न तेरा अपमान,
तेरी शान पर मरने वाले तू सबकी दाता ।।
जय जनम भूमि माता ....।
(७)
भैरवी-कहारवा
साधन करना चाही रे मनवा भजन करना चाहिये ।
प्रेम लगाना चाही रे मनवा प्रीत करना चाहिये ।।
नित नाहन से हरि मिले तो जल-जन्तु बहु होय ;
फल मूल खाके हरि मिले तो भरे बान्दुर बाँद्राय ।।
तुलसी पूजन से हरि मिले तो मैं पूजूँ तुलसी झाड़ ;
पत्थर पूजन से हरि मिले तो मैं पूजूँ पहाड़ ।।
तीरण भखन से हरि मिले तो भरे हैं मृगी अजा;
स्त्री छोड़न से हरि मिले तो बहुत रहे हैं खोजा ।।
दूध पीवन से हरि मिले तो बहुत रहे वत्स वाला ;
' मीरा ' कहे बिना प्रेम के नहीं मिले नन्दलाला ।।
मनवा साधन करना चाहिये ........।
(८)
देश हमारा धरती अपनी हम धरती के लाल
नया भारत बनायेंगे, हम चरित्रवान मनुष्य बनायेंगे।
सौ-सौ स्वर्ग उतर आयेंगे सूरज सोना बरसाएंगे ,
रोज त्यौहार मनायेंगे, हम जब चरित्रवान बन जायेंगे ।
सुख सपनों के सुर गूंजेंगे मानव की मेहनत पूजेंगे,
नई चेतना नये विचारों - सतचरित्र की लिए मशाल ।
समय को राह दिखायेंगे नया संसार बसायेंगे ,
चरित्रवान मनुष्य बनायेंगे ।।
एक करेंगे मनुष्यता को, सींचेंगे ममता-समता को,
नई पौध के लिए बदल देंगे तारों की चाल ।
नया भूगोल बनायेंगे नया संसार बनायेंगे,
चरित्रवान मनुष्य बनायेंगे ।। =============================================
🔱🙏विवेक वाहिनी के गाने 🔱🙏
Vivek Vahini's songs
[বিবেক বাহিনীর গান]
[21 अक्टूबर, 2022]
1.
🔱🙏बड़े बनने के लिये चरित्र अच्छा होना चाहिए।🔱🙏
होबो, बोड़ो
भीम पलश्री -कहरवा
बड़ ह्बो बड़ ह्बो बड़ ह्बो भाई,
बड़ हते गेले आगे चरित्र ठिक चाई ।
चरित्र ठिक गड़ते हले कोथाय जाबि बोल,
विवेक-वाहिनी नामे रयेछे एक दल ।
छोटोरा आज सबाई मिले चलो सेथाय जाई,
बड़ हते गेले आगे चरित्र ठिक चाई ।
एई वाहिनीर पीछे आछे बड़देर एक दल,
अखिल भारत विवेकानन्द युवा महामण्डल ।
स्वामीजीर आदर्शे सेथाय नित्य चले काज,
युवकरा सब जड़ हलो ताईतो सेथाय आज
जीवन सफल करते तार विकल्प नाई,
बड़ होते गेले आगे चरित्र ठिक चाई ।।
2.
🙏मनुष्य बनो आन्दोलन में हम मनुष्य बनना चाहते🙏
ताल -दादरा
मानुष होवार आन्दोलने मानुष होते चाई,
मानुष होय देशेर तरे जीवन देबो भाई।
ए आन्दोलन तोमार आमार एका कारोर नय,
सबाई मिले ऐसो आजि मानुष होते जाई।
अग्निमन्त्रे दीक्षा मोदेर भय बा कोरी कारे ,
वीर सेनानी सोबाई मोरा स्वमीजीर तरे।
डाक दियेचेन सेनापति आर देरि नय भाई ,
एगिये चोलो एगिये एसो देशेर काजे जाई।।
(हिन्दी भाव)
मनुष्य बनो आन्दोलन में हम मनुष्य बनेंगे भाई,
मनुष्य बनकर देश के लिये हम जीवन देंगे भाई।
यह आन्दोलन तुम्हारा- हमारा एक किसी का है नहीं,
आओ सब मिल कर आज इन्सान बनने को चलें।
अग्निमन्त्र में दीक्षा हमारी हमें किसी का भय नहीं,
हम सभी हैं वीर सैनिक स्वामीजी के लिये।
हमें पुकारा है सेनापति ने अब देर न कर भाई,
आगे चलो आगे बढ़ो देश -सेवा करने चलें।।
মানুষ হওয়ার আন্দোলনে মানুষ হতে চাই ,
মানুষ হয় দেশের তরে জীবন দেব ভাই।
এ আন্দোলন তোমার আমার একা কারোর নয় ,
সবাই মিলে এসো আজি মানুষ হতে যাই।
অগ্নিমন্ত্রে দীক্ষা মোদের ভয় বা করি কারে,
বীর সেনানী সবাই মোরা স্বামীজীর তরে।
ডাক দিয়েছেন সেনাপতি আর দেরি নয় ভাই,
এগিয়ে চল এগিয়ে এস দেশের কাজে যাই।।
3.
ताल -कहरवा
🙏आये आये आये आयरे सब छूटे🙏
आये आये आये आयरे सब छूटे
सब बाधाके पिछने फेले -
आयरे छूटे सबाई।
मानुष होये मानुष गड़ार-
सङ्कल्प नियेचि मोरा
(सेई) सङ्कल्प सार्थक कोरते
नियेचि स्वामीजीर भावधारा।
त्यागेरई मन्त्रे दीक्षा निये जे ,
ह्रदयके विराट कोरि,
सब मानुषेर माझे निजेके देखार
साधना जे नियत कोरि।
(हिन्दी भाव)
आओ आओ आओ भाई सब दौड़े आओ
सब बाधा को पीछे छोड़ते -
आओरे भाई दौड़े सभी।
मनुष्य बनके मनुष्य गढ़ेंगे -
यही संकल्प है हमारा
(उसी) संकल्प को सार्थक करने
लिया हूँ स्वामीजी की भावधारा।
त्याग -मंत्र से दीक्षित होकर ,
ह्रदय को विराट करें,
सभी मानव के भीतर यदि स्वयं को देख
सेवा ही साधना है यदि नियत करें।
আয় আয় আয় আয়রে সব ছুটে
সব বাধাকে পিছনে ফেলে -
আয়রে ছুটে সবাই।
মানুষ হয়ে মানুষ গড়ার -
সংকল্প নিয়েছি মোরা
(সেই)সংকল্প সার্থক করতে
নিয়েছি স্বামীজীর ভাবধারা।
ত্যাগেরই মন্ত্রে দীক্ষা নিয়ে যে,
হৃদয়কে বিরাট করি ,
সব মানুষের মাঝে নিজেকে দেখার
সাধনা যে নিয়ত করি। -উৎপল সিংহ
4.
🙏एकही मत, एकही पथ , हम सब हैं भाई भाई🙏
एकई मत, एकई पथ , आमरा भाई भाई -
हिंसा द्वेष भूले, मोरा बाँचते सबाई चाई।
मिशे मिशे स्फूर्ति कोरे हासि खेलि गान गाई -
गान गान , गाई गान।।
एकही मत, एकही पथ , हम सब हैं भाई भाई-
हिंसा द्वेष भूल के हमने नई जिंदगी पायी।
आओ मिलकर हँसें-खेलें, मिलकर गायें गीत -
गीत गीत , गायें गीत।।
একই মত , একই পথ , আমরা ভাই ভাই -
হিংসা দ্বেষ ভুলে , মোরা বাঁচতে সবাই চাই।
মিশে মিশে স্ফূর্তি ক'রে হাসি খেলি গান গাই -
গান গান , গাই গান।।
Same mind, same path, we all are brothers-
Everyone wants to forget hatred and live together.
Let's laugh together and sing -
Song song, sing song.
5.
🙏प्रयाण गीत : चलो मस मस मस🙏
ताल -दादरा
[Marching song]
चलो मस मस मस
बां -डान मस मस
सबचेये ताल पा -गाड़ी।
रेलेते चढ़ि ना बड़ झकमारी ,
ट्रामे -बासे बड़ भीड़, होय मारामारी।
मोटरेते चढ़ी ना पेट्रोल नाई,
घोड़ाते चढ़ि ना आमि पाछे पड़े जाई।
ट्रेनेते चढ़ि ना बड़ ताड़ा ताड़ी ,
दरदेते चढ़ि ना घोड़ाय टाना गाड़ी।
नौकाये चढ़ि ना अति धीरे जाय,
रिक्सा, गोरूर गाड़िते एई दशा हाय।
टैक्सी चढ़ि ना आमि लागे बेसी टाका ,
चढ़िते जानि ना हाय गाड़ी दूई चाका।।
চলে মস্ মস্ মস্
বাঁ -ডান মস্ মস্,
সবচেয়ে তাল পা -গাড়ী।
রেলেতে চড়ি না বড় ঝকমারী ,
ট্রামে -বাসে বড় ভীড় হয় মারামারি।
মোটরেতে চড়ি না প্রেট্রোল নাই,
ঘোড়াতে চড়ি না আমি পাছে পড়ে যাই।
ট্রেনেতে চড়ি না বড় তাড়াতাড়ি ,
দরদেতে চড়ি না ঘোড়ায় টানা গাড়ী।
নৌকায় চড়ি না অতি ধীরে যায় ,
রিক্সা গরুর গাড়িতে ঐ দশা হায়।
ট্যাক্সি চড়ি না আমি লাগে বেশি টাকা ,
চড়িতে জানি না হায় গাড়ী দুই চাকা।।
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