३. प्रश्न : क्या स्वामी विवेकानन्द की
शिक्षाओं के अनुरूप चरित्र-गठन करने का अधिकार केवल पुरुषों को ही है?
महामण्डल के प्रशिक्षण शिविर में लड़कियों को भाग लेने का अवसर क्यों नहीं
मिलता ?
उत्तर: नहीं, वैसा क्यों होगा ?
स्वामीजी की शिक्षा के अनुरूप सभी चरित्र-गठन कर सकते हैं, लड़कियां भी कर
सकती हैं. किन्तु लड़कियों को महामण्डल के युवा प्रशिक्षण शिविर में इसलिए
भाग नहीं लेने दिया जाता क्योंकि स्वामीजी का वैसा ही निर्देश है. लड़के एवं
लड़कियों को एकसाथ रखकर इस प्रकार का अनुष्ठान करने से स्वामीजी ने मना
किया है, क्योंकि इससे हानी होने की सम्भावना है.
कई स्थानों में महामण्डल केन्द्रों के साथ साथ जो महामण्डल केन्द्रों के सदस्यों की मातायें, बहने, दीदी लोग इस विषय के प्रति आग्रही होकर संगठित प्रयास कर रही हैं. उनसे कह दिया गया है, कि आप अपने कार्यक्रमों को स्वयं ही संचालित करें. वे लोग स्वामीजी के विचारों से उद्बुद्ध होकर श्रीश्री माँ सारदा देवी के आदर्श के सांचे में ढाल कर अपना जीवन-गठन करने का प्रयास कर रही हैं. इस समय भारत में कई स्थानों पर इस प्रकार की संस्थाएं ' सारदा नारी संगठन ' के नाम से बहुत अच्छा कार्य कर रही हैं.
इसीलिए केवल लड़के लोग ही एकमात्र अधिकारी
हैं-ऐसा नहीं कहा जा सकता, लड़कियां भी समानरूप से अधिकारी हैं. किन्तु
उन्हें अपना कार्यक्रम अलग आयोजित करने होंगे, लड़कों के साथ एक ही स्थान पर
एकत्र होकर नहीं. वे स्वविवेक से अपने कर्क्रमों को संचालित करेंगी, लड़के
लोग उनको निर्देशित नहीं करेंगे. लड़के एवं लड़कियों को एक स्थान में रख कर
कार्य करने के लिए स्वामीजी ने मना किया है, इसीलिए महामण्डल शिक्षण शिविर
में लड़कियों को भाग नहीं लेने नहीं मिलता है.
स्वामीजी ने जिस प्रकार कार्य करने का निर्देश दिया है, उनके निर्देश की अवहेलना करके दुसरे ढंग से कार्य करने का साहस हममें नहीं है, वैसी कोई इच्छा भी नहीं है. क्योंकि उसका परिणाम अच्छा नहीं होगा. इसका बहुत उपयुक्त कारण है, इसीलिए स्वामीजी ने मना किया है. किन्तु इसका तात्पर्य लड़कियों को इस आदर्श से वंचित करना नहीं है.
एक साथ कार्यक्रम नहीं करने का अर्थ है नारियों के प्रति अधिक श्रद्धा का भाव रखना। नारियों को अधिक महत्व देना है. वे लोग इतनी हेय या तुच्छ नहीं हैं कि, हमलोग उनको संचालित करेंगे, या उनको अपने संरक्षण में रखेंगे. जबतक हमलोग स्वयं अपना जीवन सुंदर ढंग से गठित नहीं कर लेते तब तक लड़कियों के प्रति दूर से ही सम्मान दिखाना अच्छा है। उनको संचालित करने की बात सोचना भी ठीक नहीं है.
इस प्रकार के जीवन-गठन को समर्पित कार्यक्रमों में लड़के-लड़कियों को एक साथ रखकर कोई अनुष्ठान करना स्वामीजी नहीं चाहते थे. इसीलिए उन्होंने जब मठ का निर्माण किया था उसी समय कह दिया था कि स्त्रियों के लिए अलग से मठ बनाने की आवश्यकता है, किन्तु उनके मठ के संचालन में पुरुषों का कोई अधिकार या सम्पर्क नहीं होगा.
उन्हीं के विचारों के अनुसार बाद में दक्षिणेश्वर में श्री सारदा मठ स्थापित हुआ, उस मठ का संचालन वे स्वयं ही करती हैं. ठीक उसी प्रकार महामण्डल के बीच रहे बिना, इसके बाहर रहते हुए किन्तु एक ही उद्देश्य- ' जीवन-गठन ' को प्राप्त करने के लिए लड़कियां भी संघ-बद्ध होकर ' सारदा नारी संगठन ' के झण्डे तले अपने जीवन-गठन के कार्य को आगे बढ़ाने का प्रयास कर रही हैं; तथा क्रमशः उनका संगठन बहुत सुन्दर रूप ले रहा है.