No idea here is an out-flow of any particular individual human brain.Every idea is borrowed from Swami Vivekananda and their linking has only one purpose:Regeneration or ushering in a new India.If use of a new coinage is allowed,it may be said:Here is an attempt to study "Applied Vivekananda" in the national context.
"If you like something, leave a comment!"
--Bijay Kumar Singh, Jhumritelaiya Vivekananda Yuva Mahamandal .
[साभार ~ श्री महेन्द्रनाथ गुप्त(बंगाली), कवि श्री पं. सूर्यकान्त त्रिपाठी ‘निराला’(हिंदी अनुवाद)/साभार विद्युत् संस्करण ~ रमा लाठ]
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*परिच्छेद ५९*
*केशव सेन के मकान पर*
(१)
*कमल-कुटीर (Lily Cottage) के सामने – पश्यति तव पन्थानम्*
[ पतति पतत्रे विचलति पत्रे शंकित-भवदुपयानम्।
रचयति शयनं सचकित-नयनं पश्यति तव पन्थानम्॥
धीर समीरे यमुना तीरे...
-(जयदेव गीत-गोविन्दम्।)
बाल-बोधिनी सखी, श्रीराधा से कह रही है, कि" राधे! श्रीकृष्ण अति उल्लास और अतिशय स्फूर्त्ति से शय्या का निर्माण कर रहे हैं और वृक्ष के पत्ते गिरने से या वायु के संचालन से अथवा पक्षियों के इधर-उधर घूमने-फिरने से सामान्य 'मर्मर' शब्द होते ही वे मन में शंका करते हैं- कहीं श्रीराधा तो नहीं आ रही हैं ? अत: बड़े ही उल्लास से वे जल्दी ही शय्या-निर्माण करने में लग जाते हैं और चकित दृष्टि से तुम्हारे आगमन-पथ की ओर देखने लगते हैं।" साभार krishnakosh.org]
कार्तिक की कृष्णा चतुर्दशी, २८ नवम्बर १८८३, दिन बुधवार है । आज एक भक्त कमल-कुटीर (Lily Cottage) के पूर्ववाले रास्ते पर टहल रहे हैं; जैसे व्याकुल हो किसी की प्रतीक्षा कर रहे हों । कमल-कुटीर के उत्तर की तरफ मंगलबाड़ी है । वहाँ बहुत से ब्राह्मभक्त रहते हैं । कमल-कुटीर में केशव रहते हैं । उनकी पीड़ा बढ़ गयी है । कितने ही लोग कहते हैं, अब की बार शायद वे न बचेंगे ।
श्रीरामकृष्ण केशव को बहुत प्यार करते हैं, आज इन्हें देखने के लिए आनेवाले हैं । वे दक्षिणेश्वर कालीमन्दिर से आ रहे हैं । इसीलिए भक्तलोग उनकी बाट जोह रहे हैं ।
कमल-कुटीर सर्क्यूलर रोड के पश्चिम ओर है । इसीलिए भक्त महोदय रास्ते में ही टहल रहे हैं । वे दो बजे दिन से प्रतीक्षा कर रहे हैं । कितने ही लोग जाते हैं, वे उन्हें देख भर लेते हैं ।
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रास्ते के पूर्व ओर विक्टोरिया कालेज है । यहाँ केशव के समाज की बहुत सी ब्राह्म महिलाएँ और उनकी कन्याएँ पढ़ती हैं । रास्ते से कालेज का बहुत सा भाग दिखायी पड़ता है । कालेज के उत्तर की ओर एक बड़ा उद्यानगृह है, उसमें कोई अंग्रेज सज्जन रहते हैं । भक्त महोदय बड़ी देर से देख रहे है कि उनके यहाँ कोई विपत्ति आयी हैं । थोड़ी देर बाद काले कपड़े पहने कोचवान मृतदेह ले जानेवाली गाड़ी ले आए । करीब डेढ़-दो घण्टों से यह सब तैयारी चल रही है ।
[কমলকুটির সার্কুলার রোডের পশ্চিমধারে। তাই রাস্তাতেই ভক্তটি বেড়াইতেছিলেন। বেলা ২টা হইতে তিনি অপেক্ষা করিতেছেন। কত লোকজন যাইতেছে, তিনি দেখিতেছেন।রাস্তার পূর্বধারে ভিক্টোরিয়া কলেজ। এখানে কেশবের সমাজের ব্রাহ্মিকাগণ ও তাঁহাদের মেয়েরা অনেকে পড়েন। রাস্তা হইতে স্কুলের ভিতর অনেকটা দেখা যায়। উহার উত্তরে একটি বড় বাগানবাড়িতে কোন ইংরেজ ভদ্রলোক থাকেন। ভক্তটি অনেকক্ষণ ধরিয়া দেখিতেছেন যে, তাঁহাদের বাড়িতে কোন বিপদ হইয়াছে। ক্রমে কালোপরিচ্ছদধারী কোচম্যান ও সহিস মৃতদেহের গাড়ি লইয়া উপস্থিত হইল। দেড় দুই ঘন্টা ধরিয়া ওই সকল আয়োজন হইতেছে।
এই মর্ত্যধাম ছাড়িয়া কে চলিয়া গিয়াছে — তাই আয়োজন।
AT TWO O'CLOCK in the afternoon, M. was pacing the foot-path of the Circular Road in front of the Lily Cottage, where Keshab Chandra Sen lived. He was eagerly awaiting the arrival of Sri Ramakrishna. Keshab's illness had taken a serious turn, and there was very little chance of his recovery. Since the Master loved Keshab dearly, he was coming from Dakshineswar to pay him a visit.
On the east side of the Circular Road was Victoria College, where the ladies of Keshab's Brahmo Samaj and their daughters received their education. To the north of the college was a spacious garden house inhabited by an English family. M. noticed that there was a commotion in the house and wondered what was going on. Presently a hearse arrived with the drivers dressed in black, and the members of the household appeared, looking very sad. There had been a death in the family.
इस मृत्यु-लोक को छोड़कर कोई चला गया है; इसीलिए यह तैयारी हो रही थी । (এই মর্ত্যধাম ছাড়িয়া কে চলিয়া গিয়াছে — তাই আয়োজন।)भक्त सोच रहे हैं – कहाँ ? देह को त्यागकर मनुष्य कहाँ जाता है ?
["Whither does the soul go, leaving behind this mortal body?" Pondering the age-old question, M. waited, watching the carriages that came from the north.]
उत्तर से दक्षिण की और कितनी ही गाड़ियाँ आ रही हैं । भक्त एक एक बार देख रहे हैं – वे आ रहे हैं या नहीं ।
शाम हो आयी, पाँच बज गए ।इसी समय श्रीरामकृष्ण की गाड़ी भी आ पहुँची । साथ लाटू तथा दो-एक भक्त और भी हैं । राखाल भी आये हैं ।
केशव के घर के आदमी आकर श्रीरामकृष्ण को अपने साथ ऊपर ले गए । बैठकखाने के दक्षिण ओर वाले बरामदे में एक पलंग रखा हुआ था । उसी पर श्रीरामकृष्ण को उन्होंने बैठाया ।
(२)
* ईश्वरावेश में जगन्माता काली के साथ वार्तालाप*
(केशब श्री ठाकुर को छूकर सोना बन गए हैं)
श्रीरामकृष्ण बड़ी देर से बैठे हुए हैं । आप केशव को देखने के लिए अधीर हो रहे हैं । केशव के शिष्यगण विनीत भाव से कह रहे हैं कि वे अभी थोड़ा विश्राम कर रहे हैं, थोड़ी ही देर में आनेवाले हैं ।
केशव की पीड़ा इतनी बढ़ी हुई है कि दशा संकटापन्न हो रही है । इसीलिए उनकी शिष्यमण्डली और घरवाले इतनी सावधानी से काम कर रहे हैं । परन्तु श्रीरामकृष्ण केशव को देखने के लिए उत्तरोत्तर अधीर हो रहे हैं ।
श्रीरामकृष्ण (केशव के शिष्यों से) – क्यों जी, उनके आने की क्या आवश्यकता है ? मैं ही क्यों न भीतर चला जाऊँ ?
[ঠাকুর অনেকক্ষণ বসিয়া আছেন। কেশবকে দেখিবার জন্য অধৈর্য হইয়াছেন। কেশবের শিষ্যেরা বিনীতভাবে বলিতেছেন, তিনি একটু এই বিশ্রাম করছেন, এইবার একটু পরে আসছেন। কেশবের সঙ্কটাপন্ন পীড়া। তাই শিষ্যেরা ও বাড়ির লোকেরা এত সাবধান। ঠাকুর কিন্তু কেশবকে দেখিতে উত্তরোত্তর ব্যস্ত হইতেছেন।শ্রীরামকৃষ্ণ (কেশবের শিষ্যদের প্রতি) — হ্যাঁগা! তাঁর আসবার কি দরকার? আমিই ভেতরে যাই না কেন?
After a long wait he became impatient to see Keshab. Keshab's disciples said that he was resting and would be there presently. Sri Ramakrishna became more and more impatient and said to Keshab's disciples: "Look here, what need is there of his coming to me? Why can't I go in and see him?"]
प्रसन्न (विनयपूर्वक) – अब वे थोड़ी ही देर में आते हैं ।
श्रीरामकृष्ण – जाओ, तुम्हीं लोग ऐसा कर रहे हो । मैं भीतर जाता हूँ ।
प्रसन्न – उनकी अवस्था एक दूसरे ही प्रकार की हो गयी है । आपकी ही तरह माँ के साथ बातचीत करते हैं । माँ जो कुछ कहती हैं, उसे सुनकर कभी हँसते हैं और कभी रोते हैं ।
[প্রসন্ন — তাঁর অবস্থা আর-একরকম হয়ে গেছে। আপনারই মতো মার সঙ্গে কথা কন। মা কি বলেন, শুনে হাসেন-কাঁদেন।
Prasanna began to talk about Keshab in order to divert the Master's attention. He said: "Keshab is now an altogether different person. Like you, sir, he talks to the Divine Mother. He hears what the Mother says, and laughs and cries."]
केशव जगन्माता के साथ बातचीत करते हैं, हँसते हैं, रोते हैं, यह सुनते ही श्रीरामकृष्ण भावावेश में आ गए । देखते ही देखते समाधिस्थ हो गये ।
[কেশব জগতের মার সঙ্গে কথা কন, হাসেন-কাঁদেন — এই কথা শুনিবামাত্র ঠাকুর ভাবাবিষ্ট হইতেছেন। দেখিতে দেখিতে সমাধিস্থ!
When he was told that Keshab talked to the Divine Mother and laughed and cried, the Master became ecstatic. Presently he went into samadhi.]
श्रीरामकृष्ण समाधिस्थ हैं । जाड़े का समय है, हरी बनात का कुरता पहने हुए हैं । ऊपर से एक शाल डाले हुए हैं । उन्नत देह, दृष्टि स्थिर हो रही है । बिलकुल ही मग्न हैं । बड़ी देर तक यह अवस्था रही । समाधि छूटती ही नहीं ।
[ঠাকুর সমাধিস্থ! শীতকাল, গায়ে সবুজ রঙের বনাতের গরম জামা; জামার উপর একখানি বনাত। উন্নত দেহ, দৃষ্টি স্থির। একেবারে মগ্ন! অনেকক্ষণ এই অবস্থায়। সমাধিভঙ্গ আর হইতেছে না।
It was winter and the Master was wearing a green flannel coat with a shawl thrown over it. He sat straight, with his eyes fixed, deep in ecstasy. A long time passed in this way. There was no indication of his returning to the normal plane of consciousness.]
सन्ध्या हो आयी । श्रीरामकृष्ण कुछ प्रकृतिस्थ हुए । पास के बैठकखाने में दीप जलाया जा चुका है । श्रीरामकृष्ण को उसी कमरे में बिठाने की चेष्टा की जा रही है ।
बड़ी कठिनाई से लोग उन्हें बैठकखाने के कमरे में ले गए ।
कमरे में बहुतसी चीजें हैं – कोच, टेबिल, कुर्सी, गैसबत्ती आदि । श्रीरामकृष्ण को लोगों ने एक कोच पर ले जाकर बैठाया ।
कोच पर बैठते ही श्रीरामकृष्ण फिर बाह्यज्ञान-रहित भावाविष्ट हो गये ।
*जगन्माता के साथ वार्तालाप-आत्मा पृथक है और देह भी*
कोच पर दृष्टि डालकर आवेश में मानो कुछ कह रहे हैं, - “पहले इन सब चीजों की आवश्यकता थी, अब क्या आवश्यकता है?”
(राखाल को देखकर) “राखाल, तू भी आया है ?”
“यह लो, माँ आ गयीं । और अब बनारसी साड़ी पहनकर क्या दिखलाती हो ! माँ, गोलमाल न करो, शान्ति से बैठ जाओ ।”
[ঘরে অনেকগুলি আসবাব — কৌচ, কেদারা, আলনা, গ্যাসের আলো। ঠাকুরকে একখানা কৌচের উপর বসানো হইল।কৌচের উপর বসিয়াই আবার বাহ্যশূন্য, ভাবাবিষ্ট।কৌচের উপর দৃষ্টিপাত করিয়া যেন নেশার ঘোরে কি বলিতেছেন, “আগে এ-সব দরকার ছিল। এখন আর কি দরকার?
(রাখাল দৃষ্টে) — “রাখাল, তুই এসেছিস?”
“এই যে মা এসেছো! আবার বারাণসী কাপড় পরে কি দেখাও। মা হ্যাঙ্গাম করো না! বসো গো বসো!”] ॐ
Then, seating himself on a couch, he again lost consciousness of the outer world, and, looking around as if seeing someone, he said: "Hello, Mother! I see that You too have come. How You are showing off in Your Benares sari! Don't bother me now, please. Sit down and be quiet."Gradually it became dark. Lamps were lighted in the drawing-room, where the Master was now to go. While he was slowly coming down to the plane of ordinary consciousness, he was taken there, though with great difficulty. The room was well furnished. At the sight of the furniture, the Master muttered to himself, "These things were necessary before, but of what use are they now?" Seeing Rakhal, he said, "Oh, hello! Are you here?" Then, seating himself on a couch, he again lost consciousness of the outer world, and, looking around as if seeing someone, he said: "Hello, Mother! I see that You too have come.How You are showing off in Your Benares sari! Don't bother me now, please. Sit down and be quiet."]
श्रीरामकृष्ण पर महाभाव का नशा ( state of intense divine intoxication) चढ़ा हुआ है । कमरे में प्रकाश भर रहा है । ब्राह्मभक्त चारों ओर से घेरे हुए हैं । लाटू, राखाल, मास्टर आदि पास बैठे हुए हैं ।
श्रीरामकृष्ण भावावस्था में आप ही आप कह रहे हैं-
“देह और आत्मा । देह बनी हैं और बिगड़ भी जाएगी आत्मा अमर है । जैसे सुपारी – पकी सुपारी छिलके से अलग रहती है; कच्ची अवस्था में फल और छिलके को अलग अलग करना बड़ा कठिन है । उनके दर्शन करने पर, उन्हें प्राप्त करने पर देहबुद्धि दूर हो जाती है । तब समझ में आ जाता है कि आत्मा पृथक है और देह भी ।”
{“দেহ আর আত্মা। দেহ হয়েছে আবার যাবে! আত্মার মৃত্যু নাই। যেমন সুপারি; পাকা সুপারি ছাল থেকে আলাদা হয়ে থাকে, কাঁচা বেলায় ফল আলাদা আর ছাল আলাদা করা বড় শক্ত। তাঁকে দর্শন করলে, তাঁকে লাভ করলে দেহবুদ্ধি যায়! তখন দেহ আলাদা, আত্মা আলাদা বোধ হয়।”]
"The body and the soul! The body was born and it will die. But for the soul there is no death. It is like the betel-nut. When the nut is ripe it does not stick to the shell. But when it is green it is difficult to separate it from the shell. After realizing God, one does not identify oneself any more with the body. Then one knows that body and soul are two different things."
केशव कमरे में आ रहे हैं । पूर्व ओर के द्वार से आ रहे हैं । जिन लोगों ने उन्हें ब्राह्मसमाज-मन्दिर में अथवा टाउन-हाल में देखा था, वे उनकी अस्थि-चर्मावशिष्ट मूर्ति (skeleton covered with skin) देखकर चकित हो गए । केशव खड़े नहीं हो सकते, दिवार के सहारे आगे बढ़ रहे हैं ।बहुत कष्ट करके कोच के सामने आकर बैठे ।
श्रीरामकृष्ण इतने ही में कोच से उतरकर नीचे बैठे । केशव श्रीरामकृष्ण के दर्शन पाकर भूमिष्ठ हो बड़े देर तक उन्हें प्रणाम करते रहे । प्रणाम करके उठ कर बैठ गए श्रीरामकृष्ण अब भी भावावेश में हैं । आप ही आप कुछ कह रहे हैं । श्रीरामकृष्ण माता के साथ बातचीत कर रहे हैं ।
[[কেশবের প্রবেশ]
কেশব ঘরে প্রবেশ করিতেছেন। পূর্বদিকে দ্বার দিয়া আসিতেছেন। যাঁহারা তাঁহাকে ব্রাহ্মসমাজ-মন্দিরে বা টাউনহলে দেখিয়াছিলেন, তাঁহারা তাঁহার অস্থিচর্মসার মূর্তি দেখিয়া অবাক্ হইয়া রহিলেন। কেশব দাঁড়াইতে পারিতেছেন না, দেয়াল ধরিয়া ধরিয়া অগ্রসর হইতেছেন। অনেক কষ্টের পর কৌচের সম্মুখে আসিয়া বসিলেন।
ঠাকুর ইতিমধ্যে কৌচ হইতে নামিয়া নিচে বসিয়াছেন। কেশব ঠাকুরকে দর্শনলাভ করিয়া ভূমিষ্ঠ হইয়া অনেকক্ষণ ধরিয়া প্রণাম করিতেছেন। প্রণামান্তর উঠিয়া বসিলেন। ঠাকুর এখনও ভাবাবস্থায়। আপনা-আপনি কি বলিতেছেন। ঠাকুর মার সঙ্গে কথা কহিতেছেন।
At this moment Keshab entered the room. He came through the east door. Those who remembered the man who, had preached in the Town Hall or the Brahmo Samaj temple were shocked to see this skeleton covered with skin. He could hardly stand. He walked holding to the wall for support. With great difficulty he sat down in front of the couch. In the mean time Sri Ramakrishna had got down from the couch and was sitting on the floor, Keshab bowed low before the Master and remained in that position a long time, touching the Master's feet with his forehead. Then he sat up. Sri Ramakrishna was still in a state of ecstasy. He muttered to himself. He talked to the Divine Mother.]
(३)
*ब्रह्म और शक्ति अभेद - नरलीला *
अब केशव ने उच्च स्वर से कहा, “मैं आया – मैं आया ।” यह कहकर उन्होंने श्रीरामकृष्ण का बायाँ हाथ पकड़ लिया और हाथ पर अपना हाथ फेरने लगे । श्रीरामकृष्ण भावावेश में पूरे मतवाले हो गये हैं; आप ही आप कितनी ही बातें कर रहे हैं । भक्तगण निर्वाक् होकर सुन रहे हैं ।
[এইবার কেশব উচ্চৈঃস্বরে বলছেন, “আমি এসেছি”, “আমি এসেছি!” এই বলিয়া ঠাকুর শ্রীরামকৃষ্ণের বাম হাত ধারণ করিলেন ও সেই হাতে হাত বুলাইতে লাগিলেন। ঠাকুর ভাবে গরগর মাতোয়ারা। আপনা-আপনি কত কথা বলিতেছেন। ভক্তেরা সকলে হাঁ করিয়া শুনিতেছেন।
Raising his voice, Keshab said: "I am here, sir. I am here." He took Sri Ramakrishna's left hand and stroked it gently. But the Master was in deep samadhi, completely intoxicated with divine love. A stream of words came from his lips as he talked to himself, and the devotees listened to him spellbound.
श्रीरामकृष्ण – जब तक उपाधि है, तभी तक अनेक का बोध हो सकता है, जैसे केशव, प्रसन्न, अमृत – ये सब । पूर्ण ज्ञान होने पर एकमात्र चैतन्य का ही बोध होता है ।
“पूर्ण ज्ञान होने पर मनुष्य देखता है, वही एकमात्र चैतन्य यह जीव-प्रपंच, ये चौबीसों तत्त्व बने हैं ।
“परन्तु शक्ति की विशेषता पायी जाती है । यह सच है कि सब कुछ वे ही बने हैं, परन्तु कहीं तो उनकी शक्ति का प्रकाश अधिक है और कहीं कम ।
[শ্রীরামকৃষ্ণ — যতক্ষণ উপাধি, ততক্ষণ নানা বোধ। যেমন কেশব, প্রসন্ন, অমৃত — এই সব। পূর্ণজ্ঞান হলে এক চৈতন্য-বোধ হয়। “আবার পূর্ণজ্ঞানে দেখে যে, সেই এক চৈতন্য এই জীবজগৎ, এই চতুর্বিংশতি তত্ত্ব হয়েছেন।“তবে শক্তিবিশেষ। তিনিই সব হয়েছেন বটে, কিন্তু কোনখানে বেশি শক্তির প্রকাশ, কোনখানে কম শক্তির প্রকাশ।
MASTER: "As long as a man associates himself with upadhis, so long he sees the manifold, such as Keshab, Prasanna, Amrita, and so on; but on attaining Perfect Knowledge he sees only one Consciousness everywhere. The same Perfect Knowledge, again, makes him realize that the one Consciousness has become the universe and its living beings and the twenty-four cosmic principles. But the manifestations of Divine Power are different in different beings. It is He, undoubtedly, who has become everything; but in some cases there is a greater manifestation than in others.]
“विद्यासागर ने कहा था, क्या ईश्वर ने किसी को अधिक शक्ति और किसी को कम शक्ति दी हैं मैंने कहा, अगर ऐसा न होता तो एक आदमी पचास आदमियों को हराता कैसे – और तुम्हें ही फिर क्यों हम लोग देखने आते ?
[“বিদ্যাসাগর বলেছিল, ‘তা ঈশ্বর কি কারুকে বেশি শক্তি, কারুকে কম শক্তি দিয়েছেন?’ আমি বললুম, ‘তা যদি না হতো, তাহলে একজন লোক পঞ্চাশজন লোককে হারিয়ে দেয় কেমন করে, আর তোমাকেই বা আমরা দেখতে এসেছি কেন?’]
"Vidyasagar once asked me, 'Can it be true that God has endowed some with greater power and some with less?' I replied: 'If that were not so, how is it that one man may be stronger than fifty'? If that were not the case, again, how is it that we have all come here to see you?']
“वे जिस आधार में अपनी लीला का विकास दिखलाते हैं, वहाँ शक्ति की विशेषता रहती है ।
“जमींदार सब जगह पर रहते हैं । परन्तु उन्हें लोग किसी खास बैठकखाने में अक्सर बैठते हुए देखते हैं।
भक्त लोग ईश्वर का बैठकखाना हैं। भक्तों के हृदय में अपनी लीला दिखाना उन्हें अधिक पसन्द है । भक्तों के हृदय में उनकी विशेष शक्ति अवतीर्ण होती है ।
[“তাঁর লীলা যে আধারে প্রকাশ করেন, সেখানে বিশেষ শক্তি। জমিদার সব জায়গায় থাকেন। কিন্তু অমুক বৈঠকখানায় তিনি প্রায় বসেন। ভক্ত তাঁর বৈঠকখানা। ভক্তের হদয়ে তিনি লীলা করতে ভালবাসেন। ভক্তের হৃদয়ে তাঁর বিশেষ শক্তি অবতীর্ণ হয়।
.["The soul through which God sports is endowed with His special power, The landlord may reside in any part of his estate, but he is generally to be found in a particular drawing-room. The devotee is God's drawing-room,God loves to sport in the heart of His devotee. It is there that His special power is manifest.]
*नेता (पारस C-IN-C, आद्याशक्ति) को पहचाने कैसे*
(Sign of such a Leader-CINC)
“इसका लक्षण क्या है? जहाँ कार्य की अधिकता है वहाँ शक्ति का विशेष प्रकाश है ।
[“তাঁর লক্ষণ কি? যেখানে কার্য বেশি, সেখানে বিশেষ শক্তির প্রকাশ।
"What is the sign of such a devotee? When you see a man doing great works, you may know that God's special power is manifested through him.]
“यह आद्याशक्ति (The Primordial Energy) और परब्रह्म (Supreme Brahman)दोनों अभेद हैं । एक को छोड़ दूसरे का चिन्तन नहीं किया जा सकता । जैसे ज्योति और मणि । मणि को छोड़ मणि की ज्योति के बारे में सोचा नहीं जा सकता और न ज्योति को अलग करके मणि के बारे में ही सोचा जा सकता है । जैसे सर्प और उसकी वक्रगति । न सर्प को छोड़ उसकी तिर्यग्-गति सोची जा सकती और न तिर्यग्-गति को छोड़ सर्प को ।
[“এই আদ্যাশক্তি আর পরব্রহ্ম অভেদ। একটিকে ছেড়ে আর-একটিকে চিন্তা করবার জো নাই। যেমন জ্যোতিঃ আর মণি! মণিকে ছেড়ে মণির জ্যোতিঃকে ভাববার জো নাই, আবার জ্যোতিঃকে ছেড়ে মণিকে ভাববার জো নাই। সাপ আর তির্যগ্গতি। সাপকে ছেড়ে তির্যগ্গতি ভাববার জো নাই, আবার সাপের তির্যগ্গতি ছেড়ে সাপকে ভাববার জো নাই।”
"The Primordial Power and the Supreme Brahman are identical. You can never think of the one without the other. They are like the gem and its brilliance. One cannot think of the brilliance without the gem, or of the gem without its brilliance. Again, it is like the snake and its wriggling motion. One cannot think of the wriggling motion without the snake, or of the snake without its wriggling motion.]
*सिद्ध और साधक में भेद :-नित्य से लीला में आने के बाद सतोगुणी पार्षद आवश्यक *
[ नर में नारायण दृष्टि - पूर्ण (नेता) और (साधक -भाविनेता) के बीच अंतर]
“आद्याशक्ति ने ही इस जीव-प्रपंच, इस चतुर्विंशति तत्त्व का स्वरूप धारण किया है – अनुलोम (क्रमविकास -बीज से वृक्ष) और विलोम (क्रमसंकोच - वृक्ष से बीज) ।
राखाल, नरेन्द्र तथा और और लड़कों के लिए क्यों मै इतना सोच विचार किया करता हूँ ? हाजरा ने कहा, तुम उन लोगों के लिए इतना सोचते क्यों हो, ईश्वर-चिन्तन फिर कब करोगे ? (केशव तथा दूसरों का मुसकराना)
[“আদ্যাশক্তিই এই জীবজগৎ, এই চতুর্বিংশতি তত্ত্ব হয়েছেন। অনুলোম, বিলোম। রাখাল, নরেন্দ্র আর আর ছোকরাদের জন্য ব্যস্ত হই কেন? হাজরা বললে, তুমি ওদের জন্য ব্যস্ত হয়ে বেড়াচ্ছ; তা ঈশ্বরকে ভাববে কখন? (কেশব ও সকলের ঈষৎ হাস্য)
"It is the Primordial Power that has become the universe and its living beings and the twenty-four cosmic principles. It is a case of involution and evolution.1
^That is to say, before the creation, the universe and its living beings and the twenty-four cosmic principles lie involved in the Primordial Power, and after the creation these gradually evolve from It.]
“तब मुझे बड़ी चिन्ता हुई । मैंने कहा, माँ यह क्या हुआ ! हाजरा कहता है, उन लोगों के लिए क्यों सोचते रहते हो ? फिर मैंने भोलानाथ से पूछा ।उसने कहा, इसका उदाहरण महाभारत में है । समाधिस्थ मनुष्य समाधि से उतरकर ठहरे कहाँ ? वह इसीलिये सतोगुणी मनुष्यों को लेकर रहता है । महाभारत का यह उदाहरण जब मिला तब जी में जी आया । (सब हँसते हैं ।)
["Why do I feel so restless for Rakhal, Narendra, and the other youngsters? Hazra once asked me, 'When will you think of God if you are always anxious about these boys?' (Keshab and the others smile.)
[তখন মহা চিন্তিত হলুম। বললুম, মা একি হল। হাজরা বলে, ওদের জন্য ভাব কেন? তারপর ভোলানাথকে জিজ্ঞাসা করলুম। ভোলানাথ বললে, ভারতে ওই কথা আছে।সমাধিস্থ লোক সমাধি থেকে নেমে কোথায় দাঁড়াবে? তাই সত্ত্বগুণী ভক্ত নিয়ে থাকে। ভারতের এই নজির পেয়ে তবে বাঁচলুম! (সকলের হাস্য)
That worried me greatly. I prayed to the Divine Mother: 'Mother, see what a fix I am in! Hazra scolds me because I worry about these young men.' Afterwards I asked Bholanath about it. He said to me that such a state of mind is described in the Mahabharata. How else will a man established in samadhi occupy his mind in the phenomenal world, after coming down from samadhi? That is why he seeks the company of devotees endowed with sattva. I gave a sigh of relief when Bholanath told me of the Mahabharata.
“हाजरा का दोष नहीं है । साधक अवस्था में संपूर्ण मन ‘नेति’ ‘नेति’ करके उन्हें दे देना पड़ता है । सिद्ध-अवस्था की बात दूसरी है । उन्हें प्राप्त कर लेने पर अनुलोम (क्रमविकास) और विलोम (क्रमसंकोच) एक से प्रतीत होते हैं । मट्ठा अलग करने पर जब मक्खन मिलता है तब जान पड़ता है कि मट्ठा का ही मक्खन है और मक्खन का ही मट्ठा है । तब ठीक ठीक समझ में आता है कि सब कुछ वे ही हुए हैं । कहीं उनका अधिक प्रकाश है, कहीं कम ।
{ “হাজরার দোষ নাই। সাধক অবস্থায় [विवेक-दर्शन और विवेक-प्रयोग का अभ्यास करते हुए]সব মনটা ‘নেতি’ ‘নেতি’ করে তাঁর দিকে দিতে হয়।সিদ্ধ অবস্থায় আলাদা কথা, তাঁকে লাভ করবার পর অনুলোম বিলোম।ঘোল ছেড়ে মাখন পেয়ে, তখন বোধ হয়, ‘ঘোলেরই মাখন, মাখনেরই ঘোল।’ তখন ঠিক বোধ হয়, তিনিই সব হয়েছেন। কোনখানে বেশি প্রকাশ, কোনখানে কম প্রকাশ।
"Hazra is not to blame. During the period of struggle one should follow the method of discrimination — 'Not this, not this' — and direct the whole mind to God.But the state of perfection is quite different. After reaching God one reaffirms what formerly one denied. To extract butter you must separate it from the buttermilk. Then you discover that butter and buttermilk are intrinsically related to one another. They belong to the same stuff. The butter is not essentially different from the buttermilk, nor the buttermilk essentially different from the butter. After realizing God one knows definitely that it is He who has become everything. In some objects He is manifested more clearly, and in others less clearly.}
“भावसमुद्र उमड़ने पर स्थल में भी एक बाँस पानी हो जाता है । पहले नदी से होकर समुद्र में जाते समय नदी के कई मोड़ (घुमाव) से चक्कर लगाकर जाना पड़ता है, और जब बाढ़ आती है तब सूखी जमीन पर भी एक बाँस पानी हो जाता है । तब नाव सीधे चलाकर लोग जगह पर पहुँच जाते हैं । फिर चक्कर मारकर नहीं जाना पड़ता । इसी तरह धान कट जाने पर मेंड़ से चक्कर काटकर नहीं आना पड़ता । सीधे एक रास्ते से निकल जाओ ।
.{“ভাবসমুদ্র উথলালে ডাঙায় একবাঁশ জল। আগে নদী দিয়ে সমুদ্রে আসতে হলে এঁকেবেঁকে ঘুরে আসতে হত। (दादा की आत्मकथा - "जीवन नदी के हर मोड़ पर " winding course of the river.) বন্যে এলে ডাঙায় একবাঁশ জল। তখন সোজা নৌকা চালিয়ে দিলেই হল। আর ঘুরে যেতে হয় না। ধানকাটা হলে, আর আলের উপর দিয়ে ঘুরে ঘুরে আসতে হয় না! সোজা একদিক দিয়ে গেলেই হয়।}
"When a flood comes from the ocean, all the land is deep under water. Before the flood, the boat could have reached the ocean only by following the winding course of the river. But after the flood, one can row straight to the ocean. One need not take a roundabout course. After the harvest has been reaped, one need not take the roundabout course along the balk of the field. One can cross the field at any point.
“उन्हें प्राप्त कर लेने पर फिर सभी वस्तुओं में उनके दर्शन होते हैं । मनुष्य के भीतर उनका अधिक प्रकाश है ।मनुष्यों में सतोगुणी भक्तों में उनका और अधिक प्रकाश रहता है – जिनमें कामिनी और कांचन के भोग की बिलकुल ही इच्छा नहीं रहती । (सब स्तब्ध हैं ।)समाधिस्थ मनुष्य जब उतरता है तब भला वह कहाँ ठहरे ? – किस पर अपना मन रमाये ? कामिनी और कांचन का त्याग करने वाले सतोगुणी शुद्ध भक्तों की आवश्यकता उन्हें इसीलिए होती है । नहीं तो फिर वे क्या लेकर रहें ?
{“লাভের পর তাঁকে সবতাতেই দেখা যায়। মানুষে তাঁর বেশি প্রকাশ। মানুষের মধ্যে সত্ত্বগুণী ভক্তের ভিতের আরও বেশি প্রকাশ — যাদের কামিনী-কাঞ্চন ভোগ করবার একেবারে ইচ্ছা নাই।(সকলে নিস্তব্ধ) সমাধিস্থ ব্যক্তি যদি নেমে আসে, তাহলে সে কিসে মন দাঁড় করাবে? তাই কামিনী-কাঞ্চনত্যাগী সত্ত্বগুণী শুদ্ধভক্তের সঙ্গ দরকার হয়। না হলে সমাধিস্থ লোক কি নিয়ে থাকে?”
"After the realization of God, He is seen in all beings. But His greater manifestation is in man. Again, among men, God manifests Himself more clearly in those devotees who are sattvic, in those who have no desire whatever to enjoy 'woman and gold'. Where can a man of samadhi rest his mind, after coming down from the plane of samadhi? That is why he feels the need of seeking the company of pure-hearted devotees, endowed with sattva and free from attachment to 'woman and gold'. How else could such a person occupy himself in the relative plane of consciousness?}
[ईश्वर का मातृत्व - विश्व की माता]
“जो ब्रह्म हैं, वे ही आद्याशक्ति भी हैं । जब वे निष्क्रिय हैं, तब उन्हें ब्रह्म कहते हैं, पुरुष कहते हैं । जब सृष्टि, स्थिति, प्रलय ये सब करते हैं, तब उन्हें शक्ति कहते हैं, प्रकृति कहते हैं । पुरुष और प्रकृति । जो पुरुष हैं, वे ही प्रकृति भी हैं । आनन्दमय और आनन्दमयी ।
{“যিনি ব্রহ্ম, তিনিই আদ্যাশক্তি। যখন নিষ্ক্রিয়, তখন তাঁকে ব্রহ্ম বলি। পুরুষ বলি। যখন সৃষ্টি, স্থিতি, প্রলয় এই সব করেন তাঁকে শক্তি বলি। প্রকৃতি বলি। পুরুষ আর প্রকৃতি। যিনিই পুরুষ তিনিই প্রকৃতি। আনন্দময় আর আনন্দময়ী।
"He who' is Brahman is the Adyasakti, the Primal Energy. When inactive He is called Brahman, the Purusha; He is called Sakti, or Prakriti, when engaged in creation, preservation, and destruction. These are the two aspects of Reality: Purusha and Prakriti. He who is the Purusha is also Prakriti. Both are the embodiment of Bliss.}
“जिसे पुरुष-ज्ञान है, उसे स्त्री-ज्ञान भी है । जिसे पिता का बोध है, उसे माता का भी बोध है ।” (केशव हँसते हैं ।)
{“যার পুরুষ জ্ঞান আছে, তার মেয়ে জ্ঞানও আছে। যার বাপ জ্ঞান আছে, তার মা জ্ঞানও আছে। (কেশবের হাস্য)
"If you are aware of the Male Principle, you cannot ignore the Female Principle. He who is aware of the father must also think of the mother. (Keshab laughs.)}
“जिसे अँधेरे का ज्ञान है, उसे उजाले का भी ज्ञान है । जिसे रात का ज्ञान है, उसे दिन का भी ज्ञान है । जिसे सुख का ज्ञान है, उसे दुःख का भी । यह बात समझे” ?
{“যার অন্ধকার জ্ঞান আছে, তার আলো জ্ঞানও আছে। যার রাত জ্ঞান আছে, তার দিন জ্ঞানও আছে। যার সুখ জ্ঞান আছে, তার দুঃখ জ্ঞানও আছে। তুমি ওটা বুঝেছ? --दादा के शब्दों में समझते हो भाई ? ”
He who knows darkness also knows light. He who knows night also knows day. He who knows happiness also knows misery. You understand this, don't you?"}
केशव(सहास्य) – जी हाँ, समझा ।
श्रीरामकृष्ण- माँ ! कौनसी माँ ! जगत् की माँ – जिन्होंने जगत् की सृष्टि की; जो उसका पालन कर रही हैं; जो अपनी सन्तानों की सदा रक्षा करती हैं; और धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष – जो जो कुछ चाहता है, उसे वही देती हैं । जो उनकी यथार्थ सन्तान है, वह उन्हें छोड़कर नहीं रह सकती । उसकी माता ही सब कुछ जानती हैं । वह तो बस खाता है, खेलता है, और घूमता है । इसके सिवाय वह और कुछ नहीं जानता ।
{শ্রীরামকৃষ্ণ — মা — কি মা? জগতের মা। যিনি জগৎ সৃষ্টি করেছেন, পালন করছেন। যিনি তাঁর ছেলেদের সর্বদা রক্ষা করছেন। আর ধর্ম, অর্থ, কাম, মোক্ষ — যে যা চায়, তাই দেন। ঠিক ছেলে মা ছাড়া থাকতে পারে না। তার মা সব জানে। ছেলে খায়, দায়, বেড়ায়; অত শত জানে না।
MASTER: "My Mother! Who is my Mother? Ah, She is the Mother of the Universe. It is She who creates and preserves the world, who always protects Her children, and who grants whatever they desire: dharma, artha, kama, moksha. A true son cannot live away from his mother. The mother knows everything. The child only eats, drinks, and makes merry; he doesn't worry himself about the things of the world."}
केशव – जी हाँ ।
KESHAB: "Yes, sir. It is quite true.
(४)
*ब्राह्मसमाज और ईश्वर का ऐश्वर्य-वर्णन ।*
*बगीचा बड़ा है या मालिक ?*
* বাগান বড় না বাবু বড়? *
[Who is greater, the garden or its owner?]
वार्तालाप करते हुए श्रीरामकृष्ण प्रकृतिस्थ हो गए हैं । केशव के साथ हँसते हुए बातचीत कर रहे हैं । कमरे भर के लोग एकाग्र चित्त से उनकी सब बातें सुनते और उन्हें देखते हैं ।सभी निर्वाक् हैं कि [बीमार केशव से भी ]...... ‘तुम कैसे हो’ आदि व्यावहारिक बातें तो होती ही नहीं, केवल भगवत्-प्रसंग छिड़ा हुआ है ।
[শ্রীরামকৃষ্ণ কথা কহিতে কহিতে প্রকৃতিস্থ হইয়াছেন। কেশবের সহিত সহাস্যে কথা কহিতেছেন। একঘর লোক উৎকর্ণ হইয়া সমস্ত শুনিতেছেন ও দেখিতেছেন। সকলে অবাক্ যে, “তুমি কেমন আছ” ইত্যাদি কথা আদৌ হইতেছে না। কেবল ঈশ্বরের কথা!
" While talking, Sri Ramakrishna regained the normal consciousness of the world. With a smile on his face he conversed with Keshab. The roomful of men watched them eagerly, and listened to their words. Everybody was amazed to find that neither Keshab nor the Master inquired about each other's health. They talked only of God.
श्रीरामकृष्ण (केशव से) – ब्राह्मभक्त इतनी महिमा क्यों गाया करते हैं ? – ‘हे ईश्वर, तुमने चन्द्र की सृष्टि की, सूर्य को पैदा किया, नक्षत्र बनाए’ – इन सब बातों की क्या आवश्यकता है ? बहुत से लोग बगीचे की ही प्रशंसा करते हैं; पर मालिक से कितने लोग मिलना चाहते हैं ? बगीचा बड़ा है या मालिक ?
[শ্রীরামকৃষ্ণ (কেশবের প্রতি) — ব্রহ্মজ্ঞানীরা অত মহিমা-বর্ণন করে কেন? “হে ঈশ্বর তুমি চন্দ্র করিয়াছ, সূর্য করিয়াছ, নক্ষত্র করিয়াছ!” এ-সব কথা এত কি দরকার? অনেকে বাগান দেখেই তারিফ করে। বাবুকে দেখতে চায় কজন। বাগান বড় না বাবু বড়?
MASTER (to Keshab): "Why do the members of the Brahmo Samaj dwell so much on God's glories? Is there any great need of repeating such things as 'O God, Thou hast created the moon, the sun, and the stars'? Most people are filled with admiration for the garden only. How few care to see its owner! Who is greater, the garden or its owner?
“शराब पी चुकने पर कलाल की दूकान में कितने मन शराब है, इसकी जाँच-पड़ताल से हमारा क्या काम ? हमारा तो मतलब एक ही बोतल से निकल जाता है ।
[“মদ খাওয়া হলে শুঁড়ির দোকানে কত মন মদ আছে, তার হিসাবে আমার কি দরকার? আমার এক বোতলেই কাজ হয়ে যায়।”
"After a few drinks at a tavern, do I care to know how many gallons of wine are stored there? One bottle is enough for me.
“नरेन्द्र को देखकर मैंने कभी नहीं पूछा, तेरे पिता का क्या नाम है ? तेरे पिता की कितनी कोठियाँ हैं ?
{নরেন্দ্রকে যখন দেখি, কখনও জিজ্ঞাসা করি নাই, ‘তোর বাপের নাম কি? তোর বাপের কখানা বাড়ি?’
"When I met Narendra, I never asked him: 'Who is your father? How many houses does he own?'}
“कारण जानते हो ? मनुष्य स्वयं ऐश्वर्य का आदर करता है, इसलिए वह समझता है कि ईश्वर भी उसका आदर करते हैं । सोचता है, उनके ऐश्वर्य की प्रशंसा करने पर वे प्रसन्न होंगे । शम्भु ने कहा था, ‘अब तो इस समय यही आशीर्वाद दीजिये जिससे यह ऐश्वर्य उनके पादपद्मों में अर्पित करके मरूँ ।’ मैंने कहा, ‘यह तुम्हारे लिए ही ऐश्वर्य है; उन्हें तुम क्या दे सकते हो ! उनके लिए यह सब काठ और मिट्टी के बराबर है ।’
.{“কি জান? মানুষ নিজে ঐশ্বর্যের আদর করে বলে, ভাবে ঈশ্বরও আদর করেন। ভাবে, তাঁর ঐশ্বর্যের প্রশংসা করলে তিনি খুশি হবেন। শম্ভু বলেছিল, আর এখন এই আশীর্বাদ কর, যাতে এই ঐশ্বর্য তাঁর পাদপদ্মে দিয়ে মরতে পারি। আমি বললুম, এ তোমার পক্ষেই ঐশ্বর্য, তাঁকে তুমি কি দিবে? তাঁর পক্ষে এগুলো কাঠ মাটি!
"Shall I tell you the truth? Man loves his own riches, and so he thinks that God loves His, too. He thinks that God will be pleased if we glorify His riches. Once Sambhu said to me, 'Please bless me, that I may die leaving my riches at the Lotus Feet of God.' I answered: 'These are riches only to you. What riches can you offer God? To Him these are mere dust and straw.'}
“जब विष्णुधर के कुल गहने चुरा लिए गए तब मैं और मथुरबाबू, दोनों श्रीठाकुरजी को देखने के लिए गए । मथुरबाबू ने कहा, ‘चलो महाराज, तुममें कोई शक्ति नहीं है । तुम्हारी देह से कुल गहने निकाल लिये गये और तुम कुछ न कर सके !’ मैंने उससे कहा, ‘यह तुम्हारी कैसी बात है ! तुम जिसके सामने गहने गहने चिल्लाते हो, उनके लिए ये सब मिट्टी के ढेले हैं । लक्ष्मी ( the Goddess of Fortune,) जिनकी शक्ति हैं, क्या वे तुम्हारे चोरी गए इन कुछ रुपयों के लिए परशान होंगे ! ऐसी बात नहीं कहनी चाहिए ।’
[“কি জান? মানুষ নিজে ঐশ্বর্যের আদর করে বলে, ভাবে ঈশ্বরও আদর করেন। ভাবে, তাঁর ঐশ্বর্যের প্রশংসা করলে তিনি খুশি হবেন। শম্ভু বলেছিল, আর এখন এই আশীর্বাদ কর, যাতে এই ঐশ্বর্য তাঁর পাদপদ্মে দিয়ে মরতে পারি। আমি বললুম, এ তোমার পক্ষেই ঐশ্বর্য, তাঁকে তুমি কি দিবে? তাঁর পক্ষে এগুলো কাঠ মাটি!
"Once a thief broke into the temple of Vishnu and robbed the image of its jewels. Mathur Babu and I went to the temple to see what was the matter. Addressing the image, Mathur said bitterly: 'What a shame, Lord! You are so worthless! The thief took all the ornaments from Your body, and You couldn't do a thing about it.' Thereupon I said to'Mathur: 'Shame on you! How improper your words are! To God, the jewels you talk so much about are only lumps of clay. Lakshmi, the Goddess of Fortune, is His Consort. Do you mean to say that He should spend sleepless nights because a thief has taken your few rupees? You mustn't say such things.'
“क्या ईश्वर ऐश्वर्य के भी वश है? वे तो भक्ति के वश हैं । जानते हो, वे क्या चाहते हैं ? वे रुपया नहीं चाहते – भाव, प्रेम, भक्ति, विवेक, वैराग्य यह सब चाहते हैं ।
{“ঈশ্বর কি ঐশ্বর্যের বশ? তিনি ভক্তির বশ। তিনি কি চান? টাকা নয়। ভাব, প্রেম, ভক্তি, বিবেক, বৈরাগ্য — এই সব চান।”
"Can one ever bring God under control through wealth? He can be tamed only through love. What does He want? Certainly not wealth! He wants from His devotees love, devotion, feeling, discrimination, and renunciation.}
[ईश्वर का स्वरुप और उपासक के बीच अंतर - त्रिगुणातीत भक्त]
“जिसका जैसा भाव होता है, वह ईश्वर को वैसा ही देखता है । जो तमोगुणी भक्त है, वह देखता है कि माँ बकरा खाती है वह बकरे की बलि भी देता है । रजोगुणी भक्त नाना प्रकार के व्यन्जन और अन्न-पकवान चढ़ाता है । सतोगुणी भक्त की पूजा में आडम्बर नहीं होता उनकी पूजा लोग समझ भी नहीं पाते । फूल नहीं मिलते तो वह बिल्वपत्र और गंगाजल से ही पूजा कर लेता है । थोड़े से चावलों या दो बताशों का ही भोग लगा देता है । कभी कभी खीर पकाकर ही ठाकुरजी को निवेदित कर देता है ।
“एक और है – त्रिगुणातीत भक्त । उसका स्वभाव बालकों जैसा होता है । ईश्वर का नाम लेना ही उसकी पूजा है । वह बस उनका नाम ही जपता रहता है ।”
[“যার যেমন ভাব ঈশ্বরকে সে তেমনই দেখে। তমোগুণী ভক্ত, সে দেখে মা পাঁঠা খায় আর বলিদান দেয়। রজোগুণী ভক্ত নানা ব্যঞ্জন ভাত করে দেয়। সত্ত্বগুণী ভক্তের পূজার আড়ম্বর নাই। তার পূজা লোকে জানতে পারে না। ফুল নাই, তো বিল্বপত্র, গঙ্গাজল দিয়ে পূজা করে। দুটি মুড়কি দিয়ে কি বাতাসা দিয়ে শীতল দেয়। কখনও বা ঠাকুরকে একটু পায়েস রেঁধে দেয়।“আর আছে, ত্রিগুনাতীত ভক্ত। তাঁর বালকের স্বভাব। ঈশ্বরের নাম করাই তাঁর পূজা। শুদ্ধ তাঁর নাম।”
"One looks on God exactly according to one's own inner feeling. Take, for instance, a devotee with an excess of tamas. He thinks that the Divine Mother eats goat. So he slaughters one for Her. Again, the devotee endowed with rajas cooks rice and various other dishes for the Mother. But the sattvic devotee doesn't make any outer show of his worship. People don't even know he is worshipping. If he has no flowers, he worships God with mere Ganges water and the leaves of the bel-tree. His food offering to the Deity consists of sweetened puffed rice or a few candies. Occasionally he cooks a little rice pudding for the Deity.
"There is also another class of devotees, those who are beyond the three gunas. They have the nature of a child. Their worship consists in chanting God's name — just His name.]
(५)
* ईश्वर के अस्पताल में आत्मा की रोग-चिकित्सा*
श्रीरामकृष्ण(केशव के प्रति सहास्य) – तुम्हें बीमारी हुई इसका अर्थ है । शरीर के भीतर कितने ही भावों का उदयास्त हो चुका है; इसीलिए ऐसा हुआ है । जब भाव होता है तब कुछ समझ में नहीं आता, बहुत दिनों के बाद शरीर पर झोंका लगता हैं । मैंने देखा है, बड़ा जहाज जब गंगा से चला जाता है, तब कुछ भी मालुम नहीं होता, परन्तु थोड़ी ही देर बाद देखा कि किनारों पर लहरें जोरों से थपेड़े जमा रही हैं, और पानी में उथल-पुथल मच जाती है । कभी कभी तो किनारों का कुछ अंश भी धँसकर पानी में गिर जाता है ।
.{ শ্রীরামকৃষ্ণ (কেশবের প্রতি, সহাস্যে) — তোমার অসুখ হয়েছে কেন তার মানে আছে। শরীরের ভিতর দিয়ে অনেক ভাব চলে গেছে, তাই ওইরকম হয়েছে। যখন ভাব হয় তখন কিছু বোঝা যায় না, অনেকদিন পরে শরীরে আঘাত লাগে। আমি দেখেছি, বড় জাহাজ গঙ্গা দিয়ে চলে গেল, তখন কিছু টের পাওয়া গেল না; ও মা! খানিকক্ষণ পরে দেখি, কিনারার উপরে জল ধপাস ধপাস করছে; আর তোলপাড় করে দিচ্ছে। হয় তো কিনারার খানিকটা ভেঙে জলে পড়ল!
(To Keshab, with a smile) "Why is it that you are ill? There is a reason for it. Many spiritual feelings have passed through your body; therefore it has fallen ill. At the time an emotion is aroused, one understands very little about it. The blow that it delivers to the body is felt only after a long while. I have seen big steamers going by on the Ganges, at the time hardly noticing their passing. But oh, my! What a terrific noise is heard after a while, when the waves splash against the banks! Perhaps a piece of the bank breaks loose and falls into the water.}
“किसी कुटिया में घुसकर हाथी उसे हिला-डुलाकर तहस-नहस कर देता है । भावरुपी हाथी जब देहरूपी कमरे में घुसता है, तो उसे डाँवाडोल कर देता है ।
[“কুঁড়েঘরে হাতি প্রবেশ করলে ঘর তোলপাড় করে ভেঙে চুরে দেয়। ভাবহস্তী দেহঘরে প্রবেশ করে, আর তোলপাড় করে।
"An elephant entering a hut creates havoc within and ultimately shakes it down. The elephant of divine emotion enters the hut of this body and shatters it to pieces.]
“इससे क्या होता है, जानते हो? आग लगने पर कुछ चीजों को वह जलाकर खाक कर देती है; एक महा ऊधम मचा देती है । ज्ञानाग्नि पहले काम, क्रोध आदि रिपुओं को जलाती है, फिर अहंबुद्धि को । इसके बाद एक बहुत बड़ी उथल-पुथल मचा देती है ।
[“হয় কি জান? আগুন লাগলে কতক গুলো জিনিস পুড়িয়ে-টুড়িয়ে ফেলে, আর একটা হইহই কাণ্ড আরম্ভ করে দেয়। জ্ঞানাগ্নি প্রথমে কামক্রোধ এই সব রিপু নাশ করে, তারপর অহংবুদ্ধি নাশ করে। তারপর একটা তোলপাড় আরম্ভ করে!
"Do you know what actually happens? When a house is on fire, at first a few things inside burn. Then comes the great commotion. Just so, the fire of Knowledge at first destroys such enemies of spiritual life as passion, anger, and so forth. Then comes the turn of ego. And lastly a violent commotion is seen in the physical frame.
“तुम सोचते हो कि बस, सब मामला तय है । परन्तु जब तक रोग की कुछ कसर रहेगी, तब तक वे तुम्हें नहीं छोड़ सकते । अगर तुम अस्पताल में नाम लिखाओ तो फिर तुम्हें चले आने का अधिकार नहीं है । जब तक रोग में कोई त्रुटि पायी जाएगी, तब तक डाक्टर साहब तुम्हें आने नहीं देंगे । तुमने नाम क्यों लिखाया ? (सब हँसते हैं ।)
{“তুমি মনে কচ্ছো সব ফুরিয়ে গেল! কিন্তু যতক্ষণ রোগের কিছু বাকী থাকে, ততক্ষণ তিনি ছাড়বেন না। হাসপাতালে যদি তুমি নাম লেখাও, আর চলে আসবার জো নাই। যতক্ষণ রোগের একটু কসুর থাকে, ততক্ষণ ডাক্তার সাহেব চলে আসতে দেবে না। তুমি নাম লিখালে কেন!” (সকলের হাস্য)
"You may think that everything is going to be over. But God will not release you as long as the slightest trace of your illness is left. You simply cannot leave the hospital if your name is registered there. As long as the illness is not perfectly cured, the doctor won't give you a permit to go. Why did you register your name in the hospital at all?" (All laugh.)}
केशव अस्पताल की बात सुनकर बार बार हँस रहे हैं । हँसी रोक नहीं सकते; रह-रहकर फिर हँस रहे हैं । श्रीरामकृष्ण पुनः वार्तालाप करने लगे ।
श्रीरामकृष्ण(केशव से) –हृदू कहता था, न तो मैंने ऐसा भाव देखा, और न ऐसा रोग ! उस समय मैं बहुत बीमार था । क्षण क्षण में दस्त होते थे और बहुत अधिक मात्रा में । सिर पर जान पड़ता था दो लाख चींटियाँ काट रही हैं । परन्तु ईश्वरीय प्रसंग दिनरात जारी रहता था !नाटागढ़ का राम कविराज देखने के लिए आया । उसने देखा कि मैं बैठा हुआ विचार कर रहा हूँ ।तब उसने कहा, ‘क्या यह पागल है ? दो हाड़ लेकर विचार कर रहा हैं !”
[কেশব হাসপাতালের কথা শুনিয়া বারবার হাসিতেছেন। হাসি সংবরণ করিতে পারিতেছেন না। থাকেন থাকেন, আবার হাসিতেছেন। ঠাকুর আবার কথা কহিতেছেন।শ্রীরামকৃষ্ণ (কেশবের প্রতি) — হৃদু বলত, এমন ভাবও দেখি নাই! এমন রোগও দেখি নাই। তখন আমার খুব অসুখ। সরা সরা বাহ্যে যাচ্ছি। মাথায় যেন দুলাখ পিঁপড়ে কামড়াচ্ছে। কিন্তু ঈশ্বরীয় কথা রাতদিন চলছে। নাটগড়ের রাম কবিরাজ দেখতে এল। সে দেখে, আমি বসে বিচার করছি। তখন সে বললে, “একি পাগল। দুখানা হাড় নিয়ে, বিচার করছে!”
Keshab laughed again and again at the Master's allusion to the hospital.Then Sri Ramakrishna spoke of his own illness. (To Keshab) -"Hriday used to say, 'Never before have I seen such ecstasy for God, and never before have I seen such illness.' I was then seriously ill with stubborn diarrhoea. It was as if millions of ants were gnawing at my brain. But all the same, spiritual talk went on day and night. Dr. Rama of Natagore was called in to see me. He found me discussing spiritual truth. 'What a madman!' he said. 'Nothing is left of him but a few bones, and still he is reasoning like that!"]
(केशव से) – ‘उसकी इच्छा माँ, सब तुम्हारी ही इच्छा है ।’“ऐ तारा, तुम इच्छामयी हो, सब तुम्हारी ही इच्छा है । माँ, कर्म तुम्हारे हैं, करती भी तुम्हीं हो, परन्तु मनुष्य कहते हैं, मैं करता हूँ ।’
[“সকলই তোমার ইচ্ছা, ইচ্ছাময়ী তারা তুমি।তোমার কর্ম তুমি কর মা, লোকে বলে করি আমি।
सकलि तोमार इच्छा इच्छामयी तारा तुमि |तोमार कर्म तूमि करो मा लोके बोले करि आमि॥
MASTER (to Keshab): "All depends on God's will. O Mother, all is done after Thine own sweet will;Thou art in truth self-willed, Redeemer of mankind! Thou workest Thine own work; men only call it theirs.]
“सर्दी लगाने के उद्देश्य से माली बसरा-गुलाब को छाँटकर उसकी जड़ खोल देता है । सर्दी लगने से पेड़ अच्छी तरह उगता है । शायद इसीलिए वह तुम्हारी जड़ खोल रही है । (श्रीरामकृष्ण और केशव हँसते हैं ।) जान पड़ता है, अगली बार एक बड़ी घटना होनेवाली है ।
.{“শিশির পাবে বলে মালী বসরাই গোলাপের গাছ শিকড়সুদ্ধ তুলে দেয়। শিশির পেলে গাছ ভাল করে গজাবে। তাই বুঝি তোমার শিকড়সুদ্ধ তুলে দিচ্ছে। (ঠাকুরের ও কেশবের হাস্য) ফিরে ফিরতি বুঝি একটা বড় কাণ্ড হবে।”
"In order to take full advantage of the dew, the gardener removes the soil from the Basra rose down to the very root. The plant thrives better on account of the moisture. Perhaps that is why you too are being shaken to the very root. (Keshab and the Master laugh.)It may be that you will do tremendous things when you come back.}
“जब कभी तुम बीमार पड़ जाते हो तब मुझे बड़ी घबराहट होती है । पहली बार भी जब तुम बीमार पड़े थे, तब रात के पिछले पहर मैं रोया करता था । कहता था, माँ, केशव को अगर कुछ हो गया तो फिर किससे बातचीत करूँगा ! तब कलकत्ता आने पर मैंने सिद्धेश्वरी को नारियल और चीनी चढ़ायी थी । माँ के पास मनौती मानी थी जिससे बीमारी अच्छी हो जाए ।”
[“তোমার অসুখ হলেই আমার প্রাণটা বড় ব্যাকুল হয়। আগের বারে তোমার যখন অসুখ হয়, রাত্রি শেষ প্রহরে আমি কাঁদতুম। বলতুম, মা! কেশবের যদি কিছু হয়, তবে কার সঙ্গে কথা কবো। তখন কলকাতায় এলে ডাব-চিনি সিদ্ধেশ্বরীকে দিয়েছিলুম। মার কাছে মেনেছিলুম যাতে অসুখ ভাল হয়।”
"Whenever I hear that you are ill I become extremely restless. After hearing of your last illness I used to weep to the Divine Mother in the small hours of the morning. I prayed to Her, 'O Mother, if anything happens to Keshab, with whom, then, shall I talk in Calcutta?' Coming to Calcutta, I offered fruits and sweets to the Divine Mother with a prayer for your well-being."]
केशव पर श्रीरामकृष्ण के इस अकृत्रिम स्नेह और उनके लिए व्याकुलता की बात की लोग निर्वाक् होकर सुन रहे हैं ।
[কেশবের উপর ঠাকুরের এই অকৃত্রিম ভালবাসা ও তাঁহার জন্য ব্যাকুলতা কথা সকলে অবাক্ হইয়া শুনিতেছেন।
The devotees were deeply touched to hear of Sri Ramakrishna's love for Keshab and his longing for the Brahmo leader.
श्रीरामकृष्ण-परन्तु इस बार उतना नहीं हुआ । मैं सच कहूँगा । हाँ, दो-तीन दिन कुछ थोड़ा कलेजा मसोसा करता था ।
[শ্রীরামকৃষ্ণ — এবার কিন্তু অত হয় নাই। ঠিক কথা বলব।“কিন্তু দু-তিনদিন একটু হয়েছে।”
MASTER: "But this time, to tell the truth, I didn't feel anxious to that extent. Only for two or three days did I feel a little worried."
केशव जिस पूर्ववाले द्वार से बैठकखाने में आए थे, उसी द्वार के पास केशव की पूजनीय माता खड़ी हैं। वहीँ से उमानाथ जरा ऊँचे स्वर में श्रीरामकृष्ण से कह रहे हैं, ‘माँ, आपको प्रणाम कर ही हैं ।”
श्रीरामकृष्ण हँसने लगे । उमानाथ कहते हैं, “माँ कह रही हैं, ऐसा आशीर्वाद दीजिए जिससे केशव की बीमारी अच्छी हो जाय ।”श्रीरामकृष्ण ने कहा,“माँ आनन्दमयी को पुकारो, दुःख वही दूर कर सकती हैं ।”
[পূর্বদিকে যে দ্বার দিয়া কেশব বৈঠকখানায় প্রবেশ করিয়াছিলেন, সেই দ্বারের কাছে কেশবের পূজনীয়া জননী আসিয়াছেন।সেই দ্বারদেশ হইতে উমানাথ ঠাকুর শ্রীরামকৃষ্ণকে উচ্চৈঃস্বরে বলিতেছেন, “মা আপনাকে প্রণাম করিতেছেন।”ঠাকুর হাসিতে লাগিলেন। উমানাথ বলিতেছেন, “মা বলছেন, কেশবের অসুখটি যাতে সারে।” ঠাকুর বলিতেছেন, “মা সুবচনী আনন্দময়ীকে ডাকো, তিনি দুঃখ দূর করবেন।”
Keshab's venerable mother came to the east door of the room, the same door through which Keshab had entered. Umanath said aloud to the Master, "Sir, here is mother saluting you."Sri Ramakrishna smiled. Umanath said again, "Mother asks you to bless Keshab that he may be cured of his illness."MASTER (to Keshab's mother): "Please pray to the Divine Mother, who is the Bestower of all bliss. She will take away your troubles.
श्रीरामकृष्ण केशव से कहने लगे-“अहो केशव, घर के भीतर इतना न रहा करो । पुत्र-कन्याओं के बीच में रहने से और डूबोगे, ईश्वरीय चर्चा होने पर और अच्छे रहोगे ।”
{“বাড়ির ভিতরে অত থেকো না। মেয়েছেলেদের মধ্যে থাকলে আরও ডুববে, ঈশ্বরীয় কথা হলে আরও ভাল থাকবে।”
(To Keshab)"Don't spend long hours in the inner apartments. You will sink down and down in the company of women. You will feel better if you hear only talk of God."}
गम्भीर भाव से ये बातें कहकर श्रीरामकृष्ण फिर बालक की तरह हँसने लगे । केशव से कह रहे हैं,“देखूँ, तुम्हारा हाथ देखूँ ।”बालक की तरह केशव के हाथ को अपने हाथ पर रखकर ,मानो तौल रहे हैं। अन्त में कहने लगे, “नहीं, तुम्हारा हाथ हलका है, खलों का हाथ भारी होता हैं ।”(लोग हँसते हैं ।)
उमानाथ दरवाजे से फिर कहने लगे, “माँ कह रही हैं – केशव को आशीर्वाद दीजिए ।”
[গম্ভীরভাবে কথাগুলি বলিয়া আবার বালকের ন্যায় হাসিতেছেন। কেশবকে বলছেন, “দেখি, তোমার হাত দেখি।” ছেলেমানুষের মতো হাত লইয়া যেন ওজন করিতেছেন। অবশেষে বলিতেছেন, “না, তোমার হাত হালকা আছে, খলদের হাত ভারী হয়।” (সকলের হাস্য)উমানাথ দ্বারদেশ হইতে আবার বলিতেছেন, “মা বলছেন, কেশবকে আর্শীবাদ করুন।
”The Master uttered these words in a serious voice and then began to laugh like a boy. He said to Keshab, "Let me see your hand." He weighed it playfully, like a child. At last he said: "No, your hand is light. Hypocrites have heavy hands." (All laugh.)
श्रीरामकृष्ण(गम्भीर स्वरों में) –मेरी क्या (औकात) शक्ति है ! वे ही आशीर्वाद देंगी । माँ, अपना काम तुम करती हो, लोग कहते हैं, मैं कर रहा हूँ ।’
“ईश्वर दो बार हँसते हैं । एक बार उस समय हँसते हैं जब दो भाई जमीन बाँटते हैं, और रस्सी से नापकर कहते हैं, ‘इस ओर की मेरी है और उस ओर की तुम्हारी ।’ ईश्वर यह सोचकर हँसते हैं कि संसार तो है मेरा और ये लोग थोड़ी सी मिट्टी लेकर इस ओर की मेरी, उस ओर की तुम्हारी कर रहे हैं ।
“फिर ईश्वर एक बार ओर हँसते हैं । बच्चे की बीमारी बढ़ी हुई है । उसकी माँ रो रही है । वैद्य आकर कह रहा है, ‘डरने की क्या बात है, माँ ! मैं अच्छा कर दूँगा ।’ वैद्य नहीं जानता कि ईश्वर यदि मारना चाहें तो किसकी शक्ति है जो अच्छा कर सके ?” (सब सन्न हो रहे)
{শ্রীরামকৃষ্ণ (গম্ভীর স্বরে) — আমার কি সাধ্য! তিনিই আশীর্বাদ করবেন। ‘তোমার কর্ম তুমি কর মা, লোকে বলে করি আমি।’“ঈশ্বর দুইবার হাসেন। একবার হাসেন যখন দুই ভাই জমি বখরা করে; আর দড়ি মেপে বলে, ‘এ-দিক্টা আমার, ও-দিক্টা তোমার’! ঈশ্বর এই ভেবে হাসেন, আমার জগৎ, তার খানিকটা মাটি নিয়ে করছে এ-দিক্টা আমার ও-দিক্টা তোমার!“ঈশ্বর আর-একবার হাসেন। ছেলের অসুখ সঙ্কটাপন্ন। মা কাঁদছে। বৈদ্য এসে বলছে, ‘ভয় কি মা, আমি ভাল করব।’বৈদ্য জানে না ঈশ্বর যদি মারেন, কার সাধ্য রক্ষা করে।” (সকলেই নিস্তব্ধ)
MASTER (gravely): "What can I do? God alone blesses all. 'Thou workest Thine own work; men only call it theirs.'God laughs on two occasions. He laughs when two brothers divide land between them. They put a string across the land and say to each other, 'This side is mine, and that side is yours.' God laughs and says to Himself, 'Why, this whole universe is Mine; and about a little clod they say, "This side is mine, and that side is yours"!'
"God laughs again when the physician says to the mother weeping bitterly because of her child's desperate illness: 'Don't be afraid, mother. I shall cure your child.' The physician does not know that no one can save the child if God wills that he should die."(All are silent.)
ठीक इसी समय केशव बड़ी देर तक खाँसते रहे । वह खाँसी रूकती ही न थी । खाँसने की आवाज सुनकर सब को कष्ट हो रहा है । बड़ी देर तक बहुत कुछ कष्ट झेलते रहने के बाद खाँसी कुछ बन्द हुई। केशव से अब और नहीं रहा जाता । श्रीरामकृष्ण को उन्होंने भूमिष्ठ होकर प्रणाम किया । प्रणाम करके बड़े कष्ट से दीवार टेक-टेककर उसी द्वार से अपने कमरे में चले गये ।
[ঠিক এই সময় কেশব অনেকক্ষণ ধরিয়া কাশিতে লাগিলেন। সে কাশি আর থামিতেছে না। সে কাশির শব্দ শুনিয়া সকলেরই কষ্ট হইতেছে। অনেক্ষণ পরে ও অনেক কষ্টের পর কাশি একটু বন্ধ হইল। কেশব আর থাকিতে পারিতেছেন না। ঠাকুরকে ভূমিষ্ঠ হইয়া প্রণাম করিলেন। কেশব প্রণাম করিয়া অনেক কষ্টে দেয়াল ধরিয়া সেই দ্বার দিয়া নিজের কামরায় পুনরায় গমন করিলেন।
Just then Keshab was seized with a fit of coughing, which lasted for a long time. The sight of his suffering made everyone sad. He became exhausted and could stay no longer. He bowed low before the Master and left the room, holding to the wall as before.
(६)
*ब्राह्मसमाज और वेदोल्लिखित देवता । 'गुरूगीर' नीच बुद्धि*
श्रीरामकृष्ण कुछ मिष्ठान ग्रहण करके जाएंगे । केशव के बड़े लड़के उनके पास आकर बैठे ।
अमृत ने कहा, “यह केशव का बड़ा लड़का है । आप आशीर्वाद दीजिये । यह क्या ! सिर पर हाथ रखकर आशीर्वाद दीजिए ।”
श्रीरामकृष्ण ने कहा, “मुझे आशीर्वाद न देना चाहिए ।” यह कहकर मुसकराते हुए बच्चे की देह पर हाथ फेरने लगे ।
अमृत(हँसते हुए) – अच्छा, तो देह पर हाथ फेरिये । (सब हँसते हैं ।)
[ঠাকুর শ্রীরামকৃষ্ণ কিছু মিষ্টমুখ করিয়া যাইবেন। কেশবের বড় ছেলেটি কাছে আসিয়া বসিয়াছেন। অমৃত বলিলেন, এইটি বড় ছেলে। আপনি অশির্বাদ করুন। ও কি! মাথায় হাত দিয়া আশির্বাদ করুন।
Some refreshments had been arranged for the Master. Keshab's eldest son was seated near him. Amrita introduced the boy and requested Sri Ramakrishna to bless him. The Master said,"It is not given to me to bless anyone."With a sweet smile he stroked the boy's body gently.
श्रीरामकृष्ण अमृत आदि ब्राह्मभक्तों से केशव की बातचीत करने लगे ।
श्रीरामकृष्ण(अमृत आदि से) – बीमारी अच्छी हो – ये सब बातें मैं नहीं कह सकता । यह शक्ति मैं माँ से चाहता भी नहीं । मैं माँ से यही कहता हूँ, मुझे शुद्ध भक्ति दो ।
{.শ্রীরামকৃষ্ণ (অমৃত প্রভৃতির প্রতি) —“অসুখ ভাল হোক” — এ-সব কথা আমি বলতে পারি না। ও-ক্ষমতা আমি মার কাছে চাইও না। আমি মাকে শুধু বলি, মা আমাকে শুদ্ধাভক্তি দাও।
MASTER (to the devotees): "I cannot say such a thing as 'May you be healed.' I never ask the Divine Mother to give me the power of healing. I pray to Her only for pure love.}
‘ये(केशव) क्या कुछ कम आदमी हैं ? जो लोग रूपये चाहते हैं, वे भी इन्हें मानते हैं और साधु भी ।दयानन्द को देखा, वे बगीचे में ठहरे हुए थे । ‘केशव सेन – केशव सेन’ कहकर छटपटा रहे थे कि कब केशव आए । उस दिन शायद केशव के वहाँ आने की बात थी । “दयानन्द बंगला भाषा को कहते थे – ‘गौड़ाण्ड भाषा ।’
“ये(केशव) शायद होम और देवता नहीं मानते थे । इसीलिए वे (दयानन्द) कहते थे, ‘ईश्वर ने इतनी चीजें तो तैयार कीं, और देवता नहीं तैयार कर सके ?”
{ “ইনি কি কম লোক গা। যারা টাকা চায়, তারাও মানে, আবার সাধুতেও মানে। দয়ানন্দকে দেখেছিলাম। তখন বাগানে ছিল। কেশব সেন, কেশব সেন, করে ঘর-বাহির করছে, — কখন কেশব আসবে! সেদিন বুঝি কেশবের যাবার কথা ছিল।
“দয়ানন্দ বাঙলা ভাষাকে বলত — ‘গৌড়াণ্ড ভাষা’।“ইনি বুঝি হোম আর দেবতা মানতেন না। তাই বলেছিল ঈশ্বর এত জিনিস করেছেন আর দেবতা করতে পারেন না?”ঠাকুর কেশবের শিষ্যদের কাছে কেশবের সুখ্যাতি করিতেছেন।
"Is Keshab a small person? He is respected by all, seekers after wealth as well as holy men. Once I visited Dayananda, who was then staying at a garden house. I saw he was extremely anxious about Keshab's coming; he went out every few minutes to see whether he had arrived. I learnt later on that Keshab had made an appointment with him that day.Keshab, I understood, had no faith in the sacrifices and the deities mentioned in the Vedas. Referring to this, Dayananda said: 'Why, the Lord has created so many things. Could He not make deities as well?'}
श्रीरामकृष्ण केशव के शिष्यों से केशव की प्रशंसा कर रहे हैं ।
श्रीरामकृष्ण – केशव हीनबुद्धि (गुरुगिरि करने वाले) नहीं है । इन्होंने बहुतों से कहा है, ‘जो कुछ सन्देह हो, वहाँ* जाकर पूछ लो ।’ मेरा भी यही स्वभाव है । मैं कहता हूँ, ये कोटि गुण और बढ़ें । मैं मान लेकर क्या करूँगा? (*श्रीरामकृष्ण के पास)
“ये निश्चय ही बड़े आदमी हैं । जो लोग धन चाहते हैं, वे भी इन्हें मानते हैं और साधु भी मानते हैं ।”
{শ্রীরামকৃষ্ণ — কেশব হীনবুদ্ধি নয়। ইনি অনেককে বলেছেন, “যা যা সন্দেহ সেখানে গিয়া জিজ্ঞাসা করবে।” আমারও স্বভাব এই। আমি বলি, ইনি আরও কোটিগুনে বাড়ুন। আমি মান নিয়ে কি করব?“ইনি বড়লোক। টাকা চায়, তারাও মানে, আবার সাধুরাও মানে।”
Continuing, the Master said: "Keshab is free from the pride of a small-minded religious teacher.(आचार्य केशव सेव गुरुगिरी के अहंकार से मुक्त थे !) To many people he has said, 'If you have any doubts, go there ( To Sri Ramakrishna.) to have them solved.' It is my way, too, to say: 'What shall I do with people's respect? Let Keshab's virtues increase a millionfold.' Keshab is certainly a great man. Everyone respects him, seekers after wealth as well as holy men."}
श्रीरामकृष्ण कुछ मिष्ठान ग्रहण करके अब गाड़ी पर चढ़नेवाले हैं । ब्राह्मभक्त उन्हें चढ़ाने के लिए जा रहे हैं ।
जीने से उतरते समय श्रीरामकृष्ण ने देखा, नीचे उजाला नहीं है । तब अमृत आदि भक्तों से उन्होंने कहा,“इन सब स्थानों में अच्छा प्रकाश चाहिए, नहीं तो गरीबी आ घेरती है । ऐसी अब फिर कभी न हो।”
श्रीरामकृष्ण एक-दो भक्तों को साथ लेकर उसी रात को कालीमन्दिर की ओर चल पड़े ।
[ঠাকুর কিছু মিষ্টমুখ করিয়া এইবার গাড়িতে উঠিবেন। ব্রাহ্মভক্তেরা সঙ্গে আসিয়া তুলিয়া দিতেছেন।সিঁড়ি দিয়া নামিবার সময় ঠাকুর দেখিলেন, নিচে আলো নাই। তখন অমৃতাদি ভক্তদের বলিলেন, এ-সব জায়গায় ভাল করে আলো দিতে হয়। আলো না দিলে দারিদ্র হয়। এরকম যেন আর না হয়। ঠাকুর দু-একটি ভক্তসঙ্গে সেই রাত্রে কালীবাড়ি যাত্রা করিলেন।
After partaking of the refreshments the Master was ready to leave. The Brahmo devotees accompanied him to the cab, which was standing in the street. While coming down the stairs the Master noticed that there was no light on the ground floor. He said to Amrita and Keshab's other disciples: "These places should be well lighted. A house without light becomes stricken with poverty. Please see that it doesn't happen again."
(७)
*श्रीरामकृष्ण का विवाह और साधारण गृहस्थों का विवाह *
केशव को देखकर, केशव कॉटेज से दक्षिणेश्वर लौटते समय रात में सात बजे के बाद, श्रीरामकृष्ण माथाघसा लेन में श्रीजयगोपाल के घर पर आए ।
On his way, to Dakshineswar from Keshab's cottage Sri Ramakrishna stopped at Jaygopal Sen's house. It was about seven o'clock in the evening. In the drawing-room Jaygopal's relatives and neighbours had gathered.
भक्तगण न जाने क्या-क्या विचार कर रहे हैं । वे सोच रहे हैं, ‘श्रीरामकृष्ण दिनरात ईश्वरप्रेम में मस्त रहते हैं । विवाह तो किया है, परन्तु धर्मपत्नी से सांसारिक कोई सम्बन्ध नहीं रखते; बल्कि उन पर भक्ति रखते हैं, उनकी पूजा करते हैं, उनके साथ केवल ईश्वरीय प्रसंग किया करते हैं; सदा भगवद्गीत गाते, परमात्मा की पूजा करते तथा ध्यान करते हैं; किसी से कोई मायिक सम्बन्ध रखते ही नहीं ।उनके लिए ईश्वर ही यथार्थ वस्तु हैं और शेष सब असार पदार्थ ।
रुपया, धातुद्रव्य, लोटा, कटोरा यह कुछ छू भी नहीं सकते । स्त्रियों को भी नहीं छू सकते ।अगर कभी छू लेते हैं तो जहाँ छू जाता है वहाँ सींगी मछली के काँटे के चुभ जाने के समान पीड़ा होने लगती है । रुपया या सोना अगर हाथ पर रख दिया जाता है तो कलाई मुरक जाती है, अवस्था विकृत हो जाती है, साँस रुक जाती है । जब वह धातु हटा ली जाती है, तब वे अपनी सच्ची अवस्था को प्राप्त होते हैं – तब उनकी साँस फिर चलने लगती है ।’
[ভক্তেরা কত কি ভাবিতেছেন। ঠাকুর দেখিতেছি, নিশিদিন হরিপ্রেমে বিহ্বল। বিবাহ করিয়াছেন, কিন্তু ধর্মপত্নীর সহিত এইরূপ সংসার করেন নাই। ধর্মপত্নীকে ভক্তি করেন, পূজা করেন, তাঁহার সহিত কেবল ঈশ্বরীয় কথা কহেন, ঈশ্বরের গান করেন, ঈশ্বরের পূজা করেন, ধ্যান করেন — মায়িক কোন সম্বন্ধই নাই। ঈশ্বরই বস্তু আর সব অবস্তু, ঠাকুর দেখিতেছেন। টাকা, ধাতুদ্রব্য, ঘটি-বাটি স্পর্শ করিতে পারেন না। স্ত্রীলোকেক স্পর্শ করিতে পারেন না। স্পর্শ করিলে সিঙি মাছের কাঁটা ফোটার মতো সেইস্থানে ঝনঝন কনকন করে! টাকা, সোনা হাতে দিলে হাত তেউড়ে যায়, বিকৃত অবস্থা প্রাপ্ত হয়, নিশ্বাস রুদ্ধ হয়। অবশেষে ফেলিয়া দিলে আবার পূর্বের ন্যায় নিশ্বাস বহিতে থাকে!
भक्तगण कितनी ही बातों का विचार कर रहे हैं ‘क्या संसार छोड़ देना होगा ? पढ़ाई-लिखाई करने की जब अब क्या आवश्यकता है ? यदि विवाह ही न किया जाय तो फिर नौकरी क्यों करनी पड़ेगी ? क्या माता-पिता को छोड़ देना होगा ?मैंने तो विवाह कर लिया है, मेरे सन्तान भी हो चुकी है; मुझे तो परिवार का पालन-पोषण करना होगा; मेरा क्या हाल होगा ?मेरी भी इच्छा होती है कि मैं दिनरात ईश्वर के प्रेम मैं मग्न रहूँ ।
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श्रीरामकृष्ण को देख मुझे लगता है कि मैं क्या कर रहा हूँ ! ये तो दिनरात तेल की धार के सदृश निरन्तर ईश्वर चिन्तन कर रहे हैं, और मैं दिनरात विषयचिन्ता करता हुआ घूम रहा हूँ । एकमात्र इनके दर्शन ही मेघ से घिरे हुए आकाश में बीच बीच में चमक जानेवाली विद्युत्-ज्योति के समान हैं । अब इस जीवन समस्या को कैसे सुलझाया जाय ?
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‘इन्होंने तो स्वयं कर दिखाया ! फिर अब भी सन्देह क्यों ?
“क्या संसार सचमुच बालू की भीत की तरह क्षणभंगुर है ? मैं इसे छोड़ क्यों नहीं पा रहा हूँ ? शायद मुझमें शक्ति कम है । यदि ईश्वर पर वैसा तीव्र प्रेम हो जाय तो फिर कोई हिसाब नहीं रह जाता । जब गंगा में बाढ़ आकर पानी वेग से बहने लगता है तब कौन रोक सकता है ?
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जिस प्रेम का उदय होने के कारण श्रीगौरांग कौपीन धारण कर संन्यासी बन गये, जिस प्रेम के कारण ईसा मसीह अन्य सब चिन्ताएँ भूलकर वनवासी हुए शरीर छोड़ दिया, जिस प्रेम के कारण राजवैभव त्यागकर बुद्धदेव वैरागी बने उस प्रेम का एक बिन्दु भी यदि प्राप्त हो जाय तो यह अनित्य संसार कहाँ पड़ा रह जाय !
‘अच्छा, जो दुर्बल हैं, जिनमें प्रेम उदित नहीं हुआ, जो संसारी जीव हैं, जिनके पैर माया की जंजीर से बँधे हुए हैं उनका क्या उपाय हो ? जो हो, मैं इन प्रेममय वैरागी महापुरुष का संग न छोडूँगा देखूँ, ये क्या कहते हैं !”
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भक्तगण इसी प्रकार की कल्पनाएँ कर रहे थे । श्रीरामकृष्ण जयगोपाल के बैठकखाने में भक्तों के साथ बैठे हुए हैं, सामने जयगोपाल उनके आत्मीय तथा पड़ोसी आदि हैं । एक पड़ोसी वार्तालाप करने के लिए पहले ही से तैयार थे । वही अग्रणी होकर कुछ पूछने लगे । जयगोपाल के भाई वैकुण्ठ भी हैं ।
ভক্তেরা কত কি ভাবিতেছেন। সংসার কি ত্যাগ করিতে হইবে? পড়াশুনা আর করিবার প্রয়োজন কি? যদি বিবাহ না করি, চাকরি তো করিতে হইবে না। মা-বাপকে কি ত্যাগ করিতে হইবে? আর আমি বিবাহ করিয়াছি, সন্তান হইয়াছে, পরিবার প্রতিপালন করিতে হইবে, — আমার কি হইবে? আমারও ইচ্ছা করে, নিশিদিন হরিপ্রেমে মগ্ন হইয়া থাকি! শ্রীরামকৃষ্ণকে দেখি আর ভাবি, কি করিতেছি! ইনি রাতদিন তৈলধারার ন্যায় নিরবছিন্ন ঈশ্বর-চিন্তা করিতেছেন, আর আমি রাতদিন বিষয়চিন্তা করিতে ছুটিতেছি। একমাত্র ইঁহারই দর্শন যেন মেঘাছন্ন আকাশের একস্থানে একটু জ্যোতিঃ এখন জীবনসমস্যা কিরূপে পূরণ করিতে হইবে?
“ইনি তো নিজে করে দেখালেন। তবে এখনও সন্দেহ?
“ভেঙে বালির বাঁধ পূরাই মনের সাধ! সত্য কি ‘বালির বাঁধ’? তবে ছাড়িতে পারিতেছি না কেন? বুঝি শক্তি কম। যদি তাঁর উপর সেরূপ ভালবাসা আসে, আর হিসাব আসবে না। যদি জোয়ার গাঙে জল ছুটে কে রোধ করবে? সে প্রেমোদয় হওয়াতে শ্রীগৌরাঙ্গ কৌপীন ধারণ করেছিলেন, যে প্রেমে ঈশা অনন্যচিন্ত হয়ে বনবাসী হয়েছিলেন আর প্রেমময় পিতার মুখ চেয়ে শরীরত্যাগ করেছিলেন, যে প্রেমে বুদ্ধ রাজভোগ ত্যাগ করে বৈরাগী হয়েছিলেন, সেই প্রেমের একবিন্দু যদি উদয় হয়, এই অনিত্য সংসার কোথায় পড়ে থাকে!
“আচ্ছা, যারা দুর্বল, যাদের সে প্রেমোদয় হয় না, যারা সংসারী জীব, যাদের পায়ে মায়ার বেড়ি, তাদের কি উপায়? দেখি, এই প্রেমিক বৈরাগী কি বলেন।”
*गृहस्थाश्रम में एक हाथ से श्रीरामकृष्ण के चरणों को पकड़ो -दूसरे से कर्म करो *
श्रीवैकुण्ठ – हम संसारी मनुष्य हैं, हमारे लिए कुछ कहिए ।
[Vaikuntha, Jaygopal's brother, said to the Master: "Sir, we are worldly people. Please give us some advice."
श्रीरामकृष्ण – ईश्वर को जानकर, एक हाथ उनके पैरों पर रखकर दूसरे हाथ से संसार का काम करो ।
{.শ্রীরামকৃষ্ণ — তাঁকে জেনে — একহাত ঈশ্বরের পাদপদ্মে রেখে আর-একহাতে সংসারের কার্য কর।
MASTER: "Do your duty to the world after knowing God, With one hand hold to the Lotus Feet of the Lord and with the other do your work."}
वैकुण्ठ – महाराज, संसार क्या मिथ्या है ?
[বৈকুণ্ঠ — মহাশয়, সংসার কি মিথ্যা?
VAIKUNTHA: "Is the world unreal?"
श्रीरामकृष्ण –हाँ , जब तक उनका ज्ञान नहीं होता, तब तक मिथ्या है । तब मनुष्य उन्हें भूलकर ‘मेरा मेरा’ कहता रहता है – माया में फँसकर, कामिनी-कांचन में मुग्ध होकर और भी डूब जाता है । माया में मनुष्य ऐसा अज्ञानी हो जाता है कि भागने का रस्ता रहने पर भी नहीं भाग सकता ।
]শ্রীরামকৃষ্ণ — যতক্ষন তাঁকে না জানা যায়, ততক্ষণ মিথ্যা। তখন তাঁকে ভুলে মানুষ ‘আমার আমার’ করে, মায়ার বদ্ধ হয়ে কামিনী-কাঞ্চনে মুগ্ধ হয়ে আরও ডোবে! মায়াতে এমনই মানুষ অজ্ঞান হয় যে, পালাবার পথ থাকলেও পালাতে পারে না!
MASTER: "Yes, it is unreal as long as one has not realized God. Through ignorance man forgets God and speaks always of 'I' and 'mine'. He sinks down and down, entangled in maya, deluded by 'woman and gold'. Maya robs him of his knowledge to such an extent that he cannot find the way of escape, though such a way exists.
एक गाना है-
एमनी महामायार माया रेखेछे की कुहक कोरे
ब्रह्मा विष्णु अचैतन्य जीवे की जानीते पारे
एमनी महामायार माया, रेखेछे की कुहक करे !
ब्रह्मा विष्णु अचैतन्य, जीवे की जानते पारे।
बिल कोरे घूनि पाते, मीन प्रवेश कोरे ताते।।
जाता-याते पोथो आछे, तोबू मीन पालाते नारे।
एमनी महामायार माया, रेखेछे की कुहक करे !
गुटिपोका गुटि कोरे, पालाले ओ पालाते पारे।
महामायार बद्ध गुटि, आपनार जाले आपनि मरे।।
एमनी महामायार माया, रेखेछे की कुहक कोरे !
ब्रह्मा विष्णु अचैतन्य जीवे की जानते पारे।
এমনি মহামায়ার মায়া রেখেছ কি কুহক করে।
ব্রহ্মা বিষ্ণু অচৈতন্য জীবে কি জানিতে পারে ৷৷
বিল করে ঘুনি পাতে মীন প্রবেশ করে তাতে।
গতায়াতের পথ আছে তবু মীন পালাতে নারে ৷৷
গুটিপোকায় গুটি করে পালালেও পালাতে পারে।
মহামায়ায় বদ্ধ গুটি, আপনার নালে আপনি মরে ৷৷]
(भावार्थ) – “महामाया की कैसी विचित्र माया है ! कैसे भ्रम में उन्होंने डाल रखा है ! उनकी माया में ब्रह्मा और विष्णु भी अचेत हो रहे हैं, तो जीव बेचारा भला क्या जान सकता है ? मछली जाल में पकड़ी जाती है, परन्तु आने-जाने की राह रहने पर भी वह उससे भाग नहीं सकती । रेशम के कीड़े रेशम की गोटियाँ बनाते हैं, वे चाहें तो उसे काटकर उससे निकल सकते हैं, परन्तु महामाया के प्रभाव से वे इस तरह बद्ध हैं कि अपनी बनायी हुई गोटियों में ही अपनी जान दे देते हैं ।’
{শ্রীরামকৃষ্ণ — যতক্ষন তাঁকে না জানা যায়, ততক্ষণ মিথ্যা। তখন তাঁকে ভুলে মানুষ ‘আমার আমার’ করে, মায়ার বদ্ধ হয়ে কামিনী-কাঞ্চনে মুগ্ধ হয়ে আরও ডোবে! মায়াতে এমনই মানুষ অজ্ঞান হয় যে, পালাবার পথ থাকলেও পালাতে পারে না! একটি গান আছে:
"Listen to a song:When such delusion veils the world, through Mahamaya's spell,That Brahma is bereft of sense And Vishnu loses consciousness,What hope is left for men? . . .
“तुम लोग तो स्वयं भी देख रहे हो कि संसार अनित्य है । देखो न, कितने आदमी आए और गए । कितने पैदा हुआ और कितनों ने देह छोड़ी । संसार अभी अभी तो है और थोड़ी ही देर में नहीं ! अनित्य ! जिन्हें लेकर इतना ‘मेरा’ ‘मेरा’ कर रहे हो, आँखें बन्द करते ही कहीं कुछ नहीं है । है कोई नहीं, फिर भी नाती (हारु) की बाँह पकड़े बैठे हैं – उसके लिए वाराणसी नहीं जा सकते !कहते हैं – मेरे लाल का क्या होगा ? आने जाने की राह है, फिर भी मछली भाग नहीं सकती । रेशम के कीड़े अपनी बनायी गोटियों में ही अपनी जान दे देते हैं । इस प्रकार का संसार मिथ्या है, अनित्य है ।”
{“তোমরা তো নিজে নিজে দেখছ সংসার অনিত্য। এই দেখ না কেন? কত লোক এল গেল! কত জন্মালো কত দেহত্যাগ করলে! সংসার এই আছে এই নাই। অনিত্য! যাদের এত ‘আমার আমার’ করছ চোখ বুজলেই নাই। কেউ নাই, তবু নাতির জন্য কাশী যাওয়া হয় না। ‘আমার হারুর কি হবে?’ ‘গতায়াতের পথ আছে তবু মীন পালাতে নারে!’ ‘গুটিপোকা আপন নালে আপনি মরে।’ এরূপ সংসার মিথ্যা, অনিত্য।”
"You all know from your experience how impermanent the world is. Look at it this way. How many people have come into the world and again passed away! People are born and they die. This moment the world is and the next it is not. It is impermanent. Those you think to be your very own will not exist for you when you close your eyes in death. Again, you see people who have no immediate relatives, and yetfor the sake of a grandson they will not go to Benares to lead a holy life. 'Oh, what will become of my Haru then?' they argue.}
पड़ोसी – महाराज, एक हाथ ईश्वर में और दूसरा संसार में क्यों रखें ? अगर संसार अनित्य है, तो एक हाथ भी संसार में क्यों रखें ?
{প্রতিবেশী — মহাশয়, একহাত ঈশ্বরে আর-একহাত সংসারে রাখব কেন? যদি সংসার অনিত্য, একহাতই বা সংসারে দিব কেন?
.A NEIGHBOUR: "Why, sir, should one hold to God with one hand and to the world with the other? Why should one even stretch out one hand to hold to the world, if it is impermanent?"}
श्रीरामकृष्ण –उन्हें जानकर संसार में रहने से संसार अनित्य नहीं रह जाता । एक गाना सुनो -
मन रे कृषिकाज जानो ना।
एमोन मानव जमिन रोईलो पतित,
आबाद कोरले फलतो सोना।।
कालीनाम दाओ रे बेडा, फसले तछ्छरुप होबे ना।
शे जे मुक्तकेशीर शक्त बेडा, तार काछेते यम घेंसे ना।
गुरुदत्त बीज रोपण कोरे, भक्तिबारी सेंचे दे ना,
एका जदि ना पारिस मन, रामप्रसाद के संगे ने ना।
মন রে কৃষি-কাজ জান না ৷
এমন মানব-জমিন রইল পতিত, আবাদ করলে ফলত সোনা ৷৷
Man re, krishi-kaaj jano na, Man re, krishi-kaaj jano na
Eman manab-jamin railo patit, abad karle phalto sona.
O Mind, you know not to till; Mind, you know not to till
Such human-land stays fallow, tended would gold yield.
কালীনামে দাওরে বেড়া, ফসলে তছরূপ হবে না ৷
সে যে মুক্তকেশীর শক্ত বেড়া, তার কাছেতে যম ঘেঁসে না ৷৷
Kali-name daore bera, fasale tachhrup habena
Se je mukta-keshi'r shakto bera, tar kachhete Yama ghneshena.
Make fence of Kali's name, none the harvest embezzle would
Strong fence - of She of unpinned locks - who Death'd elude.
অদ্য কিম্বা শতাব্দান্তে, বাজাপ্ত হবে জান না ৷
এখন আপন একতারে (মনরে) চুটিয়ে ফসল কেটে নেনা ৷৷
Adya abda-shatante ba, fasal bajapta habe jano na
Achhe ek-taare Man eibela, tui chutiye fasal kete ne na.
Today or century-end somewhen, confiscated the harvest will be Keep Mind on one Tune while you can, bring in the harvest free.
গুরুদত্ত বীজ রোপণ করে, ভক্তিবারি সেঁচে দেনা ৷
একা যদি না পারিস মন, রামপ্রসাদকে সঙ্গে নেনা ৷৷
Guru-datta beej ropan kare, bhakti-bari tai secho na
Ore eka jadi na paris Man, Ramprasad-ke sange ne na.
Plant the Guru-given seed, irrigate with devotion all day
If you can't by yourself, Mind, let Ramprasad with you stay.
(गीत का मर्म) – “ऐ मन, तू खेती का काम नहीं जानता । ऐसी मनुष्यदेहरूपी जमीन पड़ी ही रह गयी ! अगर तू काश्तकारी करता तो इसमें सोना फल सकता था । पहले तू उसमें कालीनाम का घेरा लगा दे, इस तरह फसल नष्ट न हो सकेगी । वह मुक्तकेशी का बड़ा ही दृढ़ घेरा है, उसके पास यम की भी हिम्मत नहीं जो कदम बढ़ा सके । आज या शताब्दी भर के बाद यह जमीन बेदखल हो जाएगी, क्या यह तू नहीं जानता ? अतएव अब तू लगन लगाकर उसे जोतकर फसल क्यों नहीं तैयार कर लेता ? गुरुप्रदत्त बीज डालकर भक्तिवारि से खेत सींचता जा । अगर तू अकेला यह काम न कर सके तो ‘रामप्रसाद’ को भी अपने साथ ले ले ।”
[O mind, you do not know how to farm! Fallow lies the field of your life.If you had only worked it well,How rich a harvest you might reap! Hedge it about with Kali's name If you would keep your harvest safe;This is the stoutest hedge of all,For Death himself cannot come near it. . . ."Did you listen to the song?Hedge it about with Kali's name If you would keep your harvest safe.Surrender yourself to God and you will achieve everything.This is the stoutest hedge of all,For Death himself cannot come near it.
*गृहस्थाश्रम में ईश्वरलाभ का उपाय : मनःसंयोग, विवेक-प्रयोग *
श्रीरामकृष्ण – गाना सुना ? ‘कालीनाम का घेरा लगा दो, इससे फसल नष्ट न होगी ।’ ईश्वर की शरण में जाओ, सब कुछ पाओगे । ‘वह मुक्तकेशी माँ का बड़ा ही मजबूत घेरा है, उसके अन्दर यमराज पैर नहीं बढ़ा सकते ।’ बड़ा ही मजबूत घेरा है । उन्हें अगर प्राप्त कर सको तो फिर संसार असार न प्रतीत होगा। जिसने उन्हें जान लिया है, वह देखता है, जीव-जगत् सब वही बने हैं ! बच्चों को खिलाओ तो यह जानकर कि गोपाल को खिला रहे हो । पिता और माता को ईश्वर और जगन्माता देखो और उनकी सेवा करो ।
उन्हें जानकर संसार में रहने से ब्याही हुई स्त्री से फिर सांसारिक सम्बन्ध नहीं रह जाता । दोनों ही भक्त हो जाते हैं, केवल ईश्वरीय बातचीत करते हैं, ईश्वरीय प्रसंग लेकर रहते हैं, तथा भक्तों की सेवा करते हैं । सर्वभूतों में वे हैं, अतएव दोनों उन्हें की सेवा करते हैं ।
[শ্রীরামকৃষ্ণ — গান শুনলে? “কালীনামে দাওরে বেড়া, ফসলে তছরূপ হবে না।” ঈশ্বরের শরণাগত হও, সব পাবে। “সে যে মুক্তকেশীর শক্ত বেড়া, তার কাছেতে যম ঘেঁসে না।” শক্ত বেড়া। তাঁকে যদি লাভ করতে পার, সংসার অসার বলে বোধ হবে না। যে তাঁকে জেনেছে, সে দেখে যে জীবজগৎ সে তিনিই হয়েছেন। ছেলেদের খাওয়াবে, যেন গোপালকে খাওয়াচ্ছে। পিতা মাতাকে ঈশ্বর-ঈশ্বরী দেখবে ও সেবা করবে। তাঁকে জেনে সংসার করলে বিবাহিতা স্ত্রীর সঙ্গে প্রায় ঐহিক সম্বন্ধ থাকে না। দুজনেই ভক্ত, কেবল ঈশ্বরের কথা কয়, ঈশ্বরের প্রসঙ্গ লয়ে থাকে। ভক্তের সেবা করে। সর্বভূতে তিনি আছেন, তাঁর সেবা দুজনে করে।
"Yes, it is a strong hedge indeed. If you but realize God, you won't see the world as unsubstantial. He who has realized God knows that God Himself has become the world and all living beings. When you feed your child, you should feel that you are feeding God. You should look on your father and mother as veritable manifestations of God and the Divine Mother, and serve them as such. If a man enters the world after realizing God, he does not generally keep up physical relations with his wife. Both of them are devotees; they love to talk only of God and pass their time in spiritual conversation. They serve other devotees of God, for they know that God alone has become all living beings; and, knowing this, they devote their lives to the service of others."
पड़ोसी – महाराज, ऐसे स्त्री-पुरुष दीख क्यों नहीं पड़ते ?
[প্রতিবেশী — মহাশয়, এরূপ স্ত্রী-পুরুষ তো দেখা যায় না।
NEIGHBOUR: "But, sir, such a husband and wife are not to be found anywhere."
श्रीरामकृष्ण – दीख पड़ते हैं, परन्तु बहुत कम । विषयी मनुष्य उन्हें पहचान नहीं पाते । परन्तु ऐसा तभी होता है, जब दोनों ही भले हों । जब दोनों ही ईश्वरप्रेम-प्राप्त हों तभी ऐसा हो सकता है । इसके लिए परमात्मा की विशेष कृपा चाहिए । नहीं तो सदा ही अनमेल रहता है । एक को अलग हो जाना पड़ता है । अगर मेल न हुआ तो बड़ा कष्ट होता है ।
स्त्री दिनरात कोसती रहती है, ‘बाबूजी ने क्यों यहाँ मेरा विवाह किया ? न मुझे ही कुछ खाने को मिला, न बच्चों को ही; न मुझे ही कुछ पहनने को मिला, न बच्चों को ही मैं कुछ पहना सकी । एक गहना भी तो नहीं हैं ! तुमने मुझे क्या सुख में रखा है ! आँखें मूँदकर ईश्वर ईश्वर कर रहे हैं । यह सब पागलपन छोड़ो ।’
{.শ্রীরামকৃষ্ণ — আছে, অতি বিরল। বিষয়ী লোকেরা তাদের চিনতে পারে না। তবে এরূপটি হতে গেলে দুজনেরই ভাল হওয়া চাই। দুজনেই যদি সেই ঈশ্বরানন্দ পেয়ে থাকে, তাহলেই এটি সম্ভব হয়। ভগবানের বিশেষ কৃপা চাই। না হলে সর্বদা অমিল হয়। একজনকে তফাতে যেতে হয়। যদি না মিল হয়, তাহলে বড় যন্ত্রণা। স্ত্রী হয়তো রাতদিন বলে, ‘বাবা কেন এখানে বিয়ে দিলে! না খেতে পেলুম, না বাছাদের খাওয়াতে পারলুম; না পরতে পেলুম, না বাছাদের পরাতে পেলুম, না একখানা গয়না! তুমি আমায় কি সুখে রেখেছো! চক্ষু বুজে ঈশ্বর ঈশ্বর করছেন! ও-সব পাগলামি ছাড়ো!’
MASTER: "Yes, they can be found, though they may be very rare. Worldly people cannot recognize them. In order to lead such a life both husband and wife must be spiritual. It is possible to lead such a life if both of them have tasted the Bliss of God. God's special grace is necessary to create such a couple; otherwise there will always be misunderstanding between them. In that case the one has to leave the other. Life becomes very miserable if husband and wife do not agree. The wife will say to her husband day and night: 'Why did my father marry me to such a person? I can't get enough to eat or to feed my children. I haven't clothes enough to cover mv body or to give to my children. I haven't received a single piece of jewelry from you. How happy you have made me! Ah! You keep your eyes closed and mutter the name of God! Now do give up all these crazy ideas.}
भक्त -अच्छा, ये सब बाधाएँ तो हैं ही, ऊपर से कभी कभी यह भी होता है कि लड़के कहना ही नहीं मानते । इस पर और भी कितनी ही आपदाएँ हैं । महाराज, तो फिर उपाय क्या है ?
[ভক্ত — এ-সব প্রতিবন্ধক আছে, আবার হয়তো ছেলেরা অবাধ্য। তারপর কত আপদ আছে। তবে, মহাশয় উপায় কি?
DEVOTEE: "There are such obstacles, certainly. Besides, the children may be disobedient. There is no end of difficulties. Now, sir, what is the way?"
श्रीरामकृष्ण – संसार में रहकर साधना करना कठिन है । बड़ी बाधाएँ हैं । ये सब तुम्हें बतलाने की जरूरत नहीं है – रोग, शोक, दारिद्र, उस पर पत्नी से अनबन, लड़के आवारा, मूर्ख और गँवार ।
“परन्तु उपाय है । कभी कभी एकान्त में जाकर उनसे प्रार्थना करनी पड़ती है, उन्हें पाने के लिए चेष्टा करनी पड़ती है ।”
[শ্রীরামকৃষ্ণ — সংসারে থেকে সাধন করা বড় কঠিন। অনেক ব্যাঘাত। তা আর তোমাদের বলতে হবে না। — রোগ-শোক, দারিদ্র, আবার স্ত্রীর সঙ্গে মিল নাই, ছেলে অবাধ্য, মূর্খ, গোঁয়ার।“তবে উপায় আছে। মাঝে মাজে নির্জনে গিয়ে তাঁকে প্রার্থনা করতে হয়, তাঁকে লাভ করবার জন্য চেষ্টা করতে হয়।”
MASTER: "It is extremely difficult to practise spiritual discipline and at the same time lead a householder's life. There are many handicaps: disease, grief, poverty, misunderstanding with one's wife, and disobedient, stupid, and stubborn children. I don't have to give you a list of them."But still there is a way out. One should pray to God, going now and then into solitude, and make efforts to realize Him."
पड़ोसी – क्या घर से निकल जाना होगा ?
[প্রতিবেশী — বাড়ি থেকে বেরিয়ে যেতে হবে?
NEIGHBOUR: "Must one leave home then?"
श्रीरामकृष्ण – एकदम नहीं । जब अवकाश हो तब निर्जन में जाकर एक-दो दिन रहो – परन्तु संसार से कोई सम्बन्ध न रहे, किसी विषयी मनुष्य के साथ किसी सांसारिक विषय की चर्चा न करनी पड़े । या तो निर्जन में रहो या सत्संग करो ।
{.শ্রীরামকৃষ্ণ — একেবারে নয়। যখন অবসর পাবে, কোন নির্জন স্থানে গিয়ে (6 days All India Youth Training Camp of Mahamandal) একদিন-দুদিন ((6 days) থাকবে — যেন কোন সংসারের সঙ্গে সম্বন্ধ না থাকে, যেন কোন বিষয়ী লোকদের সঙ্গে সাংসারিক বিষয় লয়ে আলাপ না করতে হয়। হয় নির্জনে বাস, নয় সাধুসঙ্গ।
MASTER: "No, not altogether. Whenever you have leisure, go into solitude for a day or two. At that time don't have any relations with the outside world and don't hold any conversation with worldly people on worldly affairs. You must live either in solitude or in the company of holy men."}
पड़ोसी – सत्संग के लिए साधु-महात्मा [C-IN-C नवनीदा] की पहचान कैसे हो ?
[প্রতিবেশী — সাধু চিনব কেমন করে?
NEIGHBOUR: "How can one recognize a holy man?"
श्रीरामकृष्ण – जिनका मन, जिनका जीवन, जिनकी अन्तरात्मा ईश्वर में लीन हो गयी है, वही महात्मा हैं। जिन्होंने कामिनी और कांचन का त्याग कर दिया है, वही महात्मा हैं । जो महात्मा हैं, वे स्त्रियों को संसार की दृष्टि से नहीं देखते । यदि स्त्रियों के पास वे कभी जाते हैं तो उन्हें मातृवत् देखते हैं और उनकी पूजा करते हैं । साधु-महात्मा सदा ईश्वर का ही चिन्तन करते हैं । ईश्वरीय प्रसंग के सिवाय और कोई बात उनके मुँह से नहीं निकलती । और सर्वभूतों में ईश्वर का ही वास है यह जानकर वे सब की सेवा करते हैं । संक्षेप में यही साधुओं के लक्षण हैं ।
{শ্রীরামকৃষ্ণ — যাঁর মন প্রাণ অন্তরাত্মা ঈশ্বরে গত হয়েছে, তিনিই সাধু। যিনি কামিনী-কাঞ্চনত্যাগী, তিনিই সাধু। যিনি সাধু তিনি স্ত্রীলোককে ঐহিক চক্ষে দেখেন না, সর্বদাই তাদের অন্তরে থাকেন, — যদি স্ত্রীলোকের কাছে আসেন, তাঁকে মাতৃবৎ দেখেন ও পূজা করেন। সাধু সর্বদা ঈশ্বরচিন্তা করেন, ঈশ্বরীয় কথা বই কথা কন না। আর সর্বভূতে ঈশ্বর আছেন জেনে তাদের সেবা করেন। মোটামুটি এইগুলি সাধুর লক্ষণ।
MASTER: "He who has surrendered his body, mind, and innermost self to God is surely a holy man. He who has renounced 'woman and gold' is surely a holy man. He is a holy man who does not regard woman with the eyes of a worldly person. He never forgets to look upon a woman as his mother, and to offer her his worship if he happens to be near her. The holy man constantly thinks of God and does not indulge in any talk except about spiritual things. Furthermore, he serves all beings, knowing that God resides in everybody's heart. These, in general, are the signs of a holy man."}
पड़ोसी – क्या बराबर एकान्त में रहना होगा ?
[প্রতিবেশী — নির্জনে বরাবর থাকতে হবে?
NEIGHBOUR: "Must one always live in solitude?"
श्रीरामकृष्ण – फुटपाथ के पेड़ तुमने देखे हैं ? जब तक वे पौधे रहते हैं तब तक चारों ओर से उन्हें घेर रखना पड़ता है । नहीं तो बकरे और चौपाये उन्हें चर जाते हैं । जब पेड़ मोटे हो जाता हैं तब उन्हें घेरने की जरूरत नहीं रहती । तब हाथी बाँध देने पर भी पेड़ नहीं टूट सकता । तैयार पेड़ अगर बना ले सको तो फिर क्या चिन्ता है – क्या भय है ? विवेक लाभ करने की चेष्टा पहले करो । तेल लगाकर कटहल काटो, उससे दूध नहीं चिपक सकता ।
[শ্রীরামকৃষ্ণ — ফুটপাতের গাছ দেখেছ? যতদিন চারা, ততদিন চারিদিকে বেড়া দিতে হয়। না হলে ছাগল-গরুতে খেয়ে ফেলবে। গাছের গুঁড়ি মোটা হলে আর বেড়ার দরকার নাই। তখন হাতি বেঁধে দিলেও গাছ ভাঙবে না। গুঁড়ি যদি করে নিতে পার আর ভাবনা কি, ভয় কি? বিবেক লাভ করবার চেষ্টা আগে কর। তেল মেখে কাঁঠাল ভাঙ, হাতে আঠা জড়াবে না।
MASTER: "Haven't you seen the trees on the foot-path along a street? They are fenced around as long as they are very young; otherwise cattle destroy them. But there is no longer any need of fences when their trunks grow thick and strong. Then they won't break even if an elephant is tied to them. Just so, there will be no need for you to worry and fear if you make your mind as strong as a thick tree-trunk. First of all try to acquire discrimination. Break the jack-fruit open only after you have rubbed your hands with oil; then its sticky milk won't smear them."
पड़ोसी – विवेक किसे कहते हैं ?
श्रीरामकृष्ण – ईश्वर सत् है और सब असत् – इस विचार का नाम विवेक है । सत् का अर्थ नित्य, असत् का अनित्य । जिसे विवेक हो गया है वह जानता है, ईश्वर ही वस्तु हैं, और सब अवस्तु है । विवेक के उदय होने पर ईश्वर को जानने की इच्छा होती है । असत् को प्यार करने पर – जैसे देहसुख, लोकसम्मान, धन इन्हें प्यार करने पर – सत्स्वरूप ईश्वर को जानने की इच्छा नहीं होती । सत्-असत् विचार के आने पर ईश्वर की ढूँढ़-तलाश की ओर मन जाता है ।
{.প্রতিবেশী — বিবেক কাহাকে বলে?
শ্রীরামকৃষ্ণ — ঈশ্বর সৎ আর সব অসৎ — এই বিচার। সৎ মানে নিত্য। অসৎ — অনিত্য। যার বিবেক হয়েছে, সে জানে ঈশ্বরই বস্তু আর সব অবস্তু। বিবেক উদয় হলে ঈশ্বরকে জানবার ইচ্ছা হয়। অসৎকে ভালবাসলে — যেমন দেহসুখ, লোকমান্য, টাকা — এই সব ভালবাসলে — ঈশ্বর, যিনি সৎস্বরূপ, তাঁকে জানতে ইচ্ছা হয় না। সদসৎ বিচার এলে তবে ঈশ্বরকে খুঁজতে ইচ্ছা করে।
NEIGHBOUR: "What is discrimination?"
MASTER: "Discrimination is the reasoning by which one knows that God alone is real and all else is unreal. Real means eternal, and unreal means impermanent. He who has acquired discrimination knows that God is the only Substance and all else is non-existent. With the awakening of this spirit of discrimination a man wants to know God. On the contrary, if a man loves the unreal — such things as creature comforts, name, fame, and wealth —, then he doesn't want to know God, who is of the very nature of Reality. Through discrimination between the Real and the unreal one seeks to know God.}
“सुनो यह एक गाना सुनो । -आय मन बेड़ाते जाबी |
---Aay man bedaate jaabi
Kaali -kalpataoomoole ( re man chari ) phal kudaaye paabi ||
Come O mind, let us go for a walk, O mind, to Kali, the Wish-fulfilling Tree, And there beneath It gather the four fruits of life. Of your two wives, Dispassion and Worldliness,Bring along Dispassion only, on your way to the Tree,And ask her son Discrimination about the Truth. . . .
প্রবৃত্তি নিবৃত্তি জায়া, (তার) নিবৃত্তিরে সঙ্গে লবি।
ওরে বিবেক নামে তার বেটা, তত্ত্ব-কথা তায় সুধাবি ৷৷
শুচি অশুচিরে লয় দিব্য ঘরে কবে শুবি।
যখন দুই সতীনে পিরিত হবে, তখন শ্যামা মাকে পাবি ৷৷
অহংকার অবিদ্যা তোর, পিতামাতায় তাড়িয়ে দিবি।
যদি মোহ-গর্তে টেনে লয়, ধৈর্য-খোঁটা ধরে রবি ৷৷
ধর্মাধর্ম দুটো অজা, তুচ্ছ খোঁটায় বেঁধে থুবি।
যদি না মানে নিষেধ, তবে জ্ঞান-খড়্গে বলি দিবি ৷৷
প্রথম ভার্যার সন্তানেরে দূর হতে বুঝাইবি।
যদি না মানে প্রবোধ, জ্ঞান-সিন্ধু মাঝে ডুবাইবি ৷৷
প্রসাদ বলে, এমন হলে কালের কাছে জবাব দিবি।
তবে বাপু বাছা বাপের ঠাকুর মনের মতো মন হবি ৷৷
(भावार्थ) – “मन आ घूमने चलें । काली-कल्पतरु के नीचे, ऐ मन, चारों फल तुझे पड़े हुए मिलेंगे । प्रवृत्ति और निवृत्ति तेरी स्त्रियाँ हैं; उनमें से निवृत्ति को अपने साथ लेना । उसके आत्मज विवेक से तत्त्व की बातें पूछ लेना । शुचि-अशुचि को लेकर दिव्य घर में तू कब सोयेगा ? उन दोनों सौतों में जब प्रीति होगी, तभी तू श्यामा माँ को पाएगा । तेरे पिता माता ये जो अहंकार और अविद्या हैं, इन्हें दूर कर देना । अगर कभी मोहगर्त में तू खिंचकर गिर जाय तो धैर्य का खूँटा पकड़े रहना ।
[Come, let us go for a walk, O mind, to Kali, the Wish-fulfilling Tree,And there beneath It gather the four fruits of life.Of your two wives, Dispassion and Worldliness,Bring along Dispassion only, on your way to the Tree,And ask her son Discrimination about the Truth. . .
धर्माधर्मरूपी दोनों बकरों को एक तुच्छ खूँटे में बाँध रखना । अगर ये निषेध न मानें तो ज्ञान-खड्ग लेकर इनकी बलि दे देना । पहली पत्नी की सन्तान को दूर से समझा देना । अगर यह तेरे प्रबोध-वाक्यों पर ध्यान न दे तो उसे ज्ञान-सिन्धु में डूबा देना । ‘प्रसाद’ कहता है, इस तरह का जब तू बन जाएगा, तभी तू काल के पास उत्तर दे सकेगा और ऐ प्यारे, तभी तू सच्चा मन बन सकेगा ।’
“मन में निवृत्ति के आने पर विवेक होता है । विवेक के होने पर ही तत्त्व की बात हृदय में पैदा होती है । तभी कालीकल्पतरु के नीचे घूमने के लिए मन जाना चाहता है । उस पेड़ के नीचे जाने पर, ईश्वर के पास जाने पर, चारों फल – धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष – पड़े हुए मिलेंगे, अनायास मिल जाएँगे । उन्हें पा जाने पर, धर्म, अर्थ, काम जो कुछ संसारियों को चाहिए, वह भी मिलता है – अगर कोई चाहे ।
पड़ोसी – तो फिर संसार को माया क्यों कहते हैं ?
NEIGHBOUR: "Then why should one call the world maya?"
*विशिष्टाद्वैतवाद और श्रीरामकृष्ण*
[विवेकज -ज्ञान हो जाने पर- बेल का खोपडा ,गूदा और बीज सब एक जान पड़ता है ]
श्रीरामकृष्ण – जब तक ईश्वर नहीं मिलते तब तक ‘नेति’ ‘नेति’ करके त्याग करना पड़ता है । उन्हें जिन लोगों ने पा लिया है, वे जानते हैं कि वे ही सब कुछ हुए हैं । तब बोध हो जाता है – ईश्वर ही माया और जीव-जगत् हैं । जीव-जगत् भी वही है । अगर कसी बेल का खोपड़ा, गूदा और बीज अलग कर दिए जाए, और कोई कहे, देखो तो जरा बेल तौल में कितना था, तो क्या तुम खोपड़ा और बीज अलग करके सिर्फ गूदा तौल पर रखोगे या तौलते समय खोपड़ा और बीज भी साथ ले लोगे ? एक साथ लेने पर ही तुम कह सकोगे, बेल तौल में कितना था ।
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खोपड़ा मानो संसार है, और बीज मानो जीव । विचार के समय तुमने जीव और संसार को अनात्मा कहा था, अवस्तु कहा था । विचार करते समय गूदा ही सार, तथा खोपड़ा और बीज असार जान पड़े थे। (विवेकज-ज्ञान) विचार हो जाने पर. सब मिलकर एक जान पड़ता है । और यह प्रतीत होता है कि जिस सत्ता का गूदा है, उसी से बेल का खोपड़ा और बीज भी तैयार हुआ है । बेल को समझने चलो तो सब कुछ समझ में आ जाता है ।
.[শ্রীরামকৃষ্ণ — যতক্ষণ ইশ্বরকে না পাওয়া যায়, ততক্ষণ “নেতি নেতি” করে ত্যাগ করতে হয়। তাঁকে যারা পেয়েছে, তারা জানে যে তিনিই সব হয়েছেন। তখন বোধ হয় — ঈশ্বর-মায়া-জীব-জগৎ। জীবজগৎসুদ্ধ তিনি। যদি একটা বেলের খোলা, শাঁস, বিচি আলাদা করা যায়, আর একজন বলে, বেলটা কত ওজনে ছিল দেখ তো, তুমি কি খোলা বিচি ফেলে শাঁসটা কেবল ওজন করবে? না; ওজন করতে হলে খোলা বিচি সমস্ত ধরতে হবে। ধরলে তবে বলতে পারবে, বেলটা এত ওজনে ছিল। খোলাটা যেন জগৎ। জীবগুলি যেন বিচি। বিচারের সময় জীব আর জগৎকে অনাত্মা বলেছিলে, অবস্তু বলেছিলে। বিচার করবার সময় শাঁসকেই সার, খোলা আর বিচিকে অসার বলে বোধ হয়। বিচার হয়ে গেলে, সমস্ত জড়িয়ে এক বলে বোধ হয়। আর বোধ হয়, যে সত্ত্বাতে শাঁস সেই সত্ত্বা দিয়েই বেলের খোলা আর বিচি হয়েছে। বেল বুঝতে গেলে সব বুঝিয়ে যাবে।
MASTER: "As long as one has not realized God, one should renounce the world, following the process of 'Neti, neti'. But he who has attained God knows that it is God who has become all this. Then he sees that God, maya, living beings, and the universe form one whole. God includes the universe and its living beings. Suppose you have separated the shell, flesh, and seeds of a bel-fruit and someone asks you the weight of the fruit. Will you leave aside the shell and the seeds, and weigh only the flesh? Not at all. To know the real weight of the fruit, you must weigh the whole of it — the shell, the flesh, and the seeds. Only then can you tell its real weight. The shell may be likened to the universe, and the seeds to living beings. While one is engaged in discrimination one says to oneself that the universe and the living beings are non-Self and unsubstantial. At that time one thinks of the flesh alone as the substance, and the shell and seeds as unsubstantial. But after discrimination is over, one feels that all three parts of the fruit together form a unity. Then one further realizes that the stuff that has produced the flesh of the fruit has also produced the shell and seeds. To know the real nature of the bel-fruit one must know all three.
“अनुलोम (evolution ) और विलोम (involution)मट्ठे ही का मक्खन है और मक्खन ही का मट्ठा । अगर मट्ठा तैयार हो गया हो तो मक्खन भी हो गया है । यदि मक्खन हो गया हो तो मट्ठा भी हो गया है । आत्मा अगर रहे तो अनात्मा भी है ।
{“অনুলোম বিলোম। ঘোলেরই মাখন, মাখনেরই ঘোল। যদি ঘোল হয়ে থাকে তো মাখনও হয়েছে। যদি মাখন হয়ে থাকে, তাহলে ঘোলও হয়েছে। আত্মা যদি থাকেন, তো অনাত্মাও আছে।
"It is the process of evolution and involution. The world, after its dissolution, remains involved in God; and God, at the time of creation, evolves as the world. Butter goes with buttermilk, and buttermilk goes with butter. If there is a thing called buttermilk, then butter also exists; and if there is a thing called butter, then buttermilk also exists. If the Self exists, then the non-Self must also exist.
“जिनकी नित्यता है, लीला भी उन्हीं की है । जिनकी लीला है, उन्हीं की नित्यता भी है । जो ईश्वर के रूप से प्रकट होते है, वही जीव-जगत् भी हुए है । जिसने जान लिया है, वह देखता है कि वही सब कुछ हुए हैं – बाप, माँ, बच्चा, पड़ोसी, जीव-जन्तु, भला-बुरा, शुद्ध-अशुद्ध सब कुछ ।”
{“যাঁরই নিত্য তাঁরই লীলা (Phenomenal world)। যাঁরই লীলা তাঁরই নিত্য (Absolute)। যিনি ঈশ্বর বলে গোচর হন, তিনিই জীবজগৎ হয়েছেন। যে জেনেছে সে দেখে যে তিনিই সব হয়েছেন — বাপ, মা, ছেলে প্রতিবেশী, জীবজন্তু, ভাল-মন্দ, শুচি, অশুচি সমস্ত।”
"The phenomenal world belongs to that very Reality to which the Absolute belongs; again, the Absolute belongs to that very Reality to which the phenomenal world belongs. He who is realized as God has also become the universe and its living beings. One who knows the Truth knows that it is He alone who has become father and mother, child and neighbour, man and animal, good and bad, holy and unholy, and so forth."}
*पापबोध तथा जवाबदेही — Sense of Sin and Responsibility. *
पड़ोसी – तो पाप-पुण्य नहीं है ?
[প্রতিবেশী — তবে পাপ পূণ্য নাই?
NEIGHBOUR: "Then is there no virtue and no sin?"
श्रीरामकृष्ण – है भी और नहीं भी है । वे यदि अहंतत्त्व रख देते हैं तो भेदबुद्धि भी रख देते हैं, पाप-पुण्य का ज्ञान भी रख देते हैं ।वे एक-दो मनुष्यों का अहंकार बिलकुल पोंछ डालते हैं – वे पाप-पुण्य, भले-बुरे के परे चले जाते हैं । ईश्वरदर्शन जब तक नहीं होता तब तक भेदबुद्धि और भले-बुरे का ज्ञान रहता ही है, तुम मुँह से कह सकते हो, ‘हमारे लिए पाप और पुण्य बराबर हैं, वे जैसा कराते हैं वैसा ही करता हूँ’, परन्तु हृदय से यही जानते हो कि यह सब एक कहावत मात्र है; बुरा काम करने से छाती धड़कने लगेगी ।
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ईश्वरदर्शन के बाद भी अगर उनकी इच्छा होती है तो वे ‘दास मैं’ रख देते हैं । उस अवस्था में भक्त कहता हैं, मैं दास हूँ, तुम प्रभु हो । ईश्वरीय प्रसंग, ईश्वरीय कर्म, ये सब उस भक्त को रुचिकर होते हैं; ईश्वर-विमुख मनुष्य उसे अच्छा नहीं लगता; उसको ईश्वरीय कर्मों के सिवा दूसरे कार्य नहीं सुहाते । इतने ही से बात सिद्ध हो जाती है कि ऐसे भक्तों में भी वे भेदबुद्धि रख छोड़ते हैं ।
[শ্রীরামকৃষ্ণ — আছে, আবার নাই। তিনি যদি অহংতত্ত্ব, (Ego) রেখে দেন, তাহলে ভেদবুদ্ধিও রেখে দেন। তিনি দু-একজনেতে অহংকার একেবারে পুঁছে ফেলেন — তারা পাপ-পুণ্য ভাল-মন্দের পার হয়ে যায়। ঈশ্বরদর্শন যতক্ষণ না হয় ততক্ষণ ভেদবুদ্ধি ভাল-মন্দ জ্ঞান থাকবেই থাকবে। তুমি মূখে বলতে পার, আমার পাপ-পুণ্য সমান হয়ে গেছে; তিনি যেমন করাচ্ছেন, তেমনি করছি। কিন্তু অন্তরে জান যে, ও-সব কথা মাত্র; মন্দ কাজটি করলেই মন ধুকধুক করবে। ঈশ্বরদর্শনের পরও তাঁর যদি ইচ্ছা হয়, তিনি “দাস আমি” রেখে দেন। সে অবস্থায় ভক্ত বলে — আমি দাস, তুমি প্রভু। সে ভক্তের ঈশ্বরীয় কথা, ঈশ্বরীয় কাজ ভাল লাগে; ঈশ্বরবিমুখ লোককে ভাল লাগে না; ইশ্বর ছাড়া কাজ ভাল লাগে না। তবেই হল, এরূপ ভক্তেতেও তিনি ভেদবুদ্ধি রাখেন।
MASTER: "They both exist and do not exist. If God keeps the ego in a man, then He keeps in him the sense of differentiation and also the sense of virtue and sin. But in a rare few He completely effaces the ego, and these go beyond virtue and sin, good and bad. As long as a man has not realized God, he retains the sense of differentiation and the knowledge of good and bad. You may say: 'Virtue and sin are the same to me. I am doing only as God bids me.' But you know in your heart of hearts that those are mere words. No sooner do you commit an evil deed than you feel a palpitation in your heart. Even after God has been realized, He keeps in the mind of the devotee, if He so desires, the feeling of the 'servant ego'. In that state the devotee says, 'O God, Thou art the Master and I am Thy servant.' Such a devotee enjoys only spiritual talk and spiritual deeds. He does not enjoy the company of ungodly people. He does not care for any work that is not of a holy nature. So you see that God keeps the sense of differentiation even in such a devotee."
*क्या अज्ञात और अज्ञेय को जाना जा सकता है *
पड़ोसी – महाराज, आप कहते हैं ईश्वर को जानकर संसार करो । क्या उन्हें कोई जान सकता है?
[প্রতিবেশী — মহাশয় বলছেন, ঈশ্বরকে জেনে সংসার কর। তাঁকে কি জানা যায়?
NEIGHBOUR: "You ask us, sir, to live in the world after knowing God. Can God really be known?"
श्रीरामकृष्ण – उन्हें इन्द्रियों द्वारा अथवा इस मन के द्वारा (अहंयुक्त मन के द्वारा ?)कोई जान नहीं सकता । जिस मन में विषय-वासना नहीं उस शुद्ध मन के द्वारा ही मनुष्य उन्हें जान सकता है ।
[শ্রীরামকৃষ্ণ — তাঁকে ইন্দ্রিয় দ্বারা বা এ-মনের দ্বারা জানা যায় না। যে-মনে বিষয়বাসনা নাই সেই শুদ্ধমনের দ্বারা তাঁকে জানা যায়।
"God cannot be known by the sense-organs or by this mind; but He can be known by the PURE MIND,the mind that is free from worldly desires."]
पड़ोसी – ईश्वर को कौन जान सकता है ?
श्रीरामकृष्ण – ठीक-ठीक उन्हें कौन जान सकता है ? हमारे लिए जितना जानने की जरूरत है, उतना होने ही से हो गया । हमें कुएँ भर पानी की क्या जरूरत है ? हमारे लिए तो लोटाभर पानी पर्याप्त है । एक चींटी चीनी के पहाड़ के पास गयी थी । सब पहाड़ लेकर भला क्या करेगी ? उसके छकने के लिए तो दो-एक दाने ही बहुत हैं ।
[শ্রীরামকৃষ্ণ — ঠিক কে জানবে? আমাদের যতটুকু দরকার, ততটুকু হলেই হল। আমার এক পাতকুয়া জলের কি দরকার? একঘটি হলেই খুব হল। চিনির পাহারের কাছে একটা পিঁপড়ে গিছল। তার সব পাহাড়টার কি দরকার? একটা-দুটো দানা হলেই হেউ-ঢেউ হয়।
"Right. Who can really know Him? But as for us, it is enough to know as much of Him as we need. What need have I of a whole well of water? One jar is more than enough for me. An ant went to a sugar hill. Did it need the entire hill?A grain or two of sugar was more than enough."
पड़ोसी – हमें जैसा विकार है, इससे लोटा भर पानी से क्या होता है ? इच्छा होती है, ईश्वर को सोलहों आने समझ लें ।
[ প্রতিবেশী — আমাদের যে বিকার, একঘটি জলে হয় কি? ইচ্ছা করে ঈশ্বকে সব বুঝে ফেলি!
"Sir, we are like typhoid patients. How can we be satisfied with one jar of water? We feel like knowing the whole of God."
*भवरोग (typhoid) की रामबाण दवा – ‘मामेकं शरणं व्रज’*
श्रीरामकृष्ण – यह ठीक है, परन्तु 'भवरोग ' की दवा भी तो है ।
[শ্রীরামকৃষ্ণ — তা বটে। কিন্তু বিকারের ঔষধও আছে।
"That's true. But there is also medicine for typhoid."
पड़ोसी – महाराज, वह कौनसी दवा है ?
[প্রতিবেশী — মহাশয়, কি ঔষধ?
NEIGHBOUR: "What is that medicine, sir?"
श्रीरामकृष्ण – साधुओं का संग, उनका नामगुण-कीर्तन, उनसे सर्वदा प्रार्थना करना । मैंने कहा था – माँ, मैं ज्ञान नहीं चाहता; यह लो अपना ज्ञान और यह लो अपना अज्ञान; माँ, मुझे अपने चरणकमलों में केवल शुद्ध भक्ति दो । मैं और कुछ नहीं चाहता ।
[শ্রীরামকৃষ্ণ — সাধুসঙ্গ, তাঁর নামগুণগান, তাঁকে সর্বদা প্রার্থনা। আমি বলেছিলাম, মা, আমি জ্ঞান চাই না; এই নাও তোমার জ্ঞান, এই নাও তোমার অজ্ঞান, — মা আমায় তোমার পাদপদ্মে কেবল শুদ্ধাভক্তি দাও। আর আমি কিছুই চাই নাই।
"The company of holy men, repeating the name of God and singing His glories, and unceasing prayer. I prayed to the Divine Mother: 'Mother, I don't seek knowledge. Here, take Thy knowledge, take Thy ignorance. Give me only pure love for Thy Lotus Feet.' I didn't ask for anything else.
“जैसा रोग होता है, उसकी दवा भी वैसी ही होती है । गीता में उन्होंने कहा है, "As is the disease, so must the remedy (COVID-19, vaccine) be. The Lord says in the Gita:‘हे अर्जुन, तुम मेरी शरण लो, तुम्हें मैं सब तरह के पापों से मुक्त कर दूँगा ।’ उनकी शरण में जाओ; वे सुबुद्धि देंगे, वे सब भार ले लेंगे । तब सब तरह के विकार दूर हट जाएँगे । इस बुद्धि से क्या कोई उन्हें समझ सकता है ? सेर भर के लोटे में क्या कभी चार सेर दूध रह सकता है ?और बिना उनके समझाए क्या उन्हें कोई समझ सकता है ? इसीलिए कहता हूँ उनकी शरण में जाओ – उनकी जो इच्छा हो, वे करें । वे इच्छामय हैं । मनुष्य की क्या शक्ति है ?”
[“যেমন রোগ, তার তেমনি ঔষধ। গীতায় তিনি বলেছেন, ‘হে অর্জুন, তুমি আমার শরণ লও, তোমাকে সবরকম পাপ থেকে আমি মুক্ত করব।’ তাঁর শরণাগত হও, তিনি সদ্বুদ্ধি দেবেন। তিনি সব ভার লবেন। তখন সবরকম বিকার দূরে যাবে। এ-বুদ্ধি দিয়ে কি তাঁকে বুঝা যায়? একসের ঘটিতে কি চারসের দূধ ধরে? আর তিনি না বুঝালে কি বুঝা যায়? তাই বলছি — তাঁর শরণাগত হও — তাঁর যা ইচ্ছা তিনি করুন। তিনি ইচ্ছাময়। মানুষের কি শক্তি আছে?”
'O Arjuna, take refuge in Me. I shall deliver you from all sins.' Take shelter at His feet. He will give you right understanding. He will take entire responsibility for you. Then you will get rid of the typhoid. Can one ever know God with such a mind as this? Can one pour four seers of milk into a one-seer pot? Can we ever know God unless He lets us know Him? Therefore I say, take shelter in God. Let Him do whatever He likes. He is self-willed. What power is there in a man?"
[साभार ~ श्री महेन्द्रनाथ गुप्त(बंगाली), कवि श्री पं. सूर्यकान्त त्रिपाठी ‘निराला’(हिंदी अनुवाद) साभार विद्युत् संस्करण ~ रमा लाठ]
परिच्छेद -58
(१)
*सिन्दुरिया पट्टी ब्रह्मसमाज के नेताओं द्वारा के वार्षिक अधिवेशन में श्री रामकृष्ण का सम्मान *
कार्तिक की कृष्णा एकादशी है, सोमवार, 26 नवम्बर 1883 ईं. । श्री मणिलाल मल्लिक के मकान मेंसिन्दुरिया-पट्टी ब्राह्मसमाज का अधिवेशन हुआ करता है । मकान चितपुर रास्ते पर है । समाज का अधिवेशन राजपथ के पास ही दुमँझले के सभागृह में हुआ करता है । आज समाज की वार्षिकी है; इसीलिए मणिलाल महोत्सव मना रहा हैं ।
उपासनागृह आज आनन्दपूर्ण है, बाहर और भीतर हरे हरे पल्लवों, नाना प्रकार के फूलों और पुष्पमालाओं से सुशोभित हो रहा है । कमरे में भक्तगण बैठे हुए उपासना कब शुरू होगी इसकी प्रतीक्षा कर रहे हैं । कमरे के भीतर सब को जगह नहीं मिल पायी है, कई लोग पश्चिम ओर वाले छत पर टहल रहे हैं या जगह जगह पर रखी सुन्दर कुर्सियों पर बैठे हैं । बीच बीच में गृहस्वामी तथा उनके स्वजन आकर मधुर शब्दों से अभ्यागत भक्तों का स्वागत कर रहे हैं । शाम के पहले से ही (दूर-दूर से) ब्राह्मभक्तगण आने लगे हैं ।
उन्हें आज एक विशेष उत्साह है – वहाँ आज श्रीरामकृष्णदेव का शुभागमन होगा ।केशव, विजय, शिवनाथ आदि ब्राह्म-समाज के नेताओं को(Leaders of the Brahmo Samaj ) श्रीरामकृष्णदेव बहुत प्यार करते थे ।यही कारण है कि ब्राह्मभक्तों के वे इतने प्यारे हो गए थे । वे भगवत्प्रेम में मस्त रहते हैं; उनका प्रेम, उनका प्रांजल विश्वास, ईश्वर के साथ बालक की तरह उनकी बातचीत, ईश्वर के लिए उनका व्याकुल होकर रोना, महिलाओं के प्रति उनका सम्मान तथा माता मानकर स्त्री-जाति की पूजा, उनका विषयप्रसंग-वर्जन, तैलधारावत् सदा ही ईश्वर-प्रसंग करते रहना, उनका सर्वधर्म-समन्वय और अन्य धर्मों के प्रति लेशमात्र भी द्वेषभाव का न रहना, भगवद्भक्तों के लिए उनका रोना, इन सब कारणों से ब्राह्मभक्तों का चित्त उनकी ओर आकर्षित हो चुका था; इसीलिए आज कितने ही भक्त बहुत दूर से उनके दर्शन के लिए आए हुए हैं ।
[It was the day of the annual festival of the Sinduriapatti Brahmo Samaj. The ceremony was to be performed in Manilal Mallick's house. The worship hall was beautifully decorated with flowers, wreaths, and evergreens, and many devotees were assembled, eagerly awaiting the worship. Their enthusiasm had been greatly heightened by the news that Sri Ramakrishna was going to grace the occasion with his presence. Keshab, Vijay, Shivanath, and other leaders of the Brahmo Samaj held him in high respect. His God-intoxicated state of mind, his intense love of spiritual life, his burning faith, his intimate communion with God, and his respect for women, whom he regarded as veritable manifestations of the Divine Mother,together with the unsullied purity of his character, his complete renunciation of worldly talk, his love and respect for all religious faiths, and his eagerness to meet devotees of all creeds, attracted the members of the Brahmo Samaj to him. Devotees came that day from far-off places to join the festival, for it would give them a chance to get a glimpse of the Master and listen to his inspiring talk.]
*सत्य बोलना ही कलिकाल की तपस्या है *
उपासना के पूर्व श्रीरामकृष्ण विजयकृष्ण गोस्वामी और दूसरे ब्राह्मभक्तों के साथ प्रसन्नतापूर्वक वार्तालाप कर रहे हैं । समाजगृह में दीप जल चुका है, अब शीघ्र ही उपासना शुरू होगी ।
[Sri Ramakrishna arrived at the house before the worship began, and became engaged in conversation with Vijaykrishna Goswami and the other devotees. The lamps were lighted and the divine service was about to begin.
श्रीरामकृष्ण बोले, “क्योंजी, क्या शिवनाथ न आएगा ?” एक ब्राह्मभक्त ने कहा, “जी नहीं, आज उनको कई काम हैं आ न सकेंगे ।”
श्रीरामकृष्ण- शिवनाथ को देखने से मुझे बड़ा आनन्द होता है । मानो भक्तिरस में डूबा हुआ है । और जिसे बहुत लोग मानते-जानते हैं उसमें ईश्वर की कुछ शक्ति अवश्य रहती है ।परन्तु शिवनाथ में एक बहुत बड़ा दोष है-उसकी बात का कोई निश्चय नहीं रहता ।मुझसे उसने कहा था, एक बार वहाँ (दक्षिणेश्वर) जाएँगे, परन्तु फिर नहीं आया और न कोई खबर ही भेजी; यह अच्छा नहीं है ।
एक यह भी कहा है कि सत्य बोलना कलिकाल की तपस्या है । दृढ़ता के साथ सत्य को पकड़े रहने से ईश्वरलाभ होता है ।सत्य की दृढ़ता न रहने से क्रमशः सब नष्ट हो जाता है ।यही सोचकर मैं अगर कभी कह डालता हूँ, मुझे शौच को जाना है, फिर शौच को जाने की आवश्यकता न भी रहे, तो भी एक बार गड़वा लेकर झाऊतल्ले की ओर जाता हूँ ।यही भय लगा रहता है कि कहीं सत्य की दृढ़ता न खो जाए।
इस अवस्था के बाद हाथ में फूल लेकर माँ से मैंने कहा था, ‘माँ, यह लो तुम अपना ज्ञान, यह लो अपना अज्ञान, मुझे शुद्धा भक्ति दो माँ; यह लो अपना भला, यह लो अपना बुरा, मुझे शुद्धा भक्ति दो माँ; यह लो अपना पुण्य, यह लो अपना पाप, मुझे शुद्धा भक्ति दो माँ ।’ जब यह सब मैंने कहा था, तब यह बात नहीं कह सका कि माँ, यह लो अपना सत्य, यह लो अपना असत्य । माँ को सब कुछ तो दे सका, परन्तु सत्य न दे सका ।
[পরমহংসদেব বলিতেছেন, “হ্যাগা, শিবনাথ আসবে না?” একজন ব্রাহ্মভক্ত বলিতেছেন, “না, আজ তাঁর অনেক কাজ আছে, আসতে পারবেন না।” পরমহংসদেব বলিলেন, “শিবনাথকে দেখলে আমার আনন্দ হয়, যেন ভক্তিরসে ডুবে আছে; আর যাকে অনেকে গণে-মানে, তাতে নিশ্চয়ই ঈশ্বরের কিছু শক্তি আছে। তবে শিবনাথের একটা ভারী দোষ আছে — কথার ঠিক নাই। আমাকে বলেছিল যে, একবার ওখানে (দক্ষিণেশ্বরের কালীবাড়িতে) যাবে, কিন্তু যায় নাই, আর কোন খবরও পাঠায় নাই, ওটা ভাল নয়। এইরকম আছে যে, সত্য কথাই কলির তপস্যা। সত্যকে আঁট করে ধরে থাকলে ভগবানলাভ হয়। সত্যে আঁট না থাকলে ক্রমে ক্রমে সব নষ্ট হয়। আমি এই ভেবে যদিও কখন বলে ফেলি যে বাহ্যে যাব, যদি বাহ্যে নাও পায় তবুও একবার গাড়ুটা সঙ্গে করে ঝাউতলার দিকে যাই। ভয় এই — পাছে সত্যের আঁট যায়। আমার এই অবস্থার পর মাকে ফুল হাতে করে বলেছিলাম, ‘মা! এই নাও তোমার জ্ঞান, এই নাও তোমার অজ্ঞান, আমায় শুদ্ধাভক্তি দাও মা; এই নাও তোমার শুচি, এই নাও তোমার অশুচি, আমায় শুদ্ধাভক্তি দাও মা; এই নাও তোমার ভাল, এই নাও তোমার মন্দ, আমায় শুদ্ধাভক্তি দাও মা; এই নাও তোমার পুণ্য, এই নাও তোমার পাপ, আমায় শুদ্ধাভক্তি দাও।’ যখন এই সব বলেছিলুম, তখন এ-কথা বলিতে পারি নাই, ‘মা! এই নাও তোমার সত্য, এই নাও তোমার অসত্য।’ সব মাকে দিতে পারলুম, ‘সত্য’ মাকে দিতে পারলুম না।”
"I feel very happy when I see Shivanath. He always seems to be absorbed in the bliss of bhakti. Further, a man who is respected by so many surely possesses some divine power. But he has one great defect: he doesn't keep his word. Once he said to me that he would come to Dakshineswar, but he neither came nor sent me word. That is not good. It is said that truthfulness alone constitutes the spiritual discipline of the Kaliyuga.If a man clings tenaciously to truth he ultimately realizes God. Without this regard for truth, one gradually loses everything.
If by chance I say that I will go to the pine-grove, I must go there even if there is no further need of it, lest I lose my attachment to truth. After my vision of the Divine Mother, I prayed to Her, taking a flower in my hands: 'Mother, here is Thy knowledge and here is Thy ignorance. Take them both, and give me only pure love. Here is Thy holiness and here is Thy unholiness. Take them both, Mother, and give me pure love. Here is Thy good and here is Thy evil. Take them both, Mother, and give me pure love. Here is Thy righteousness and here is Thy unrighteousness. Take them both, Mother, and give me pure love.' I mentioned all these, but I could not say: 'Mother, here is Thy truth and here is Thy falsehood. Take them both.' I gave up everything at Her feet but could not bring myself to give up truth."]
ब्राह्मसमाज की पद्धति के अनुसार उपासना होने लगी । आचार्यजी वेदी पर बैठ गए । उद्बोधन-मन्त्र के बाद आचार्यजी परब्रह्म को लक्ष्य करके वेदोक्त महामन्त्रों का उच्चारण करने लगे । ब्राह्मभ्क्तगण स्वर मिलाकर प्राचीन आर्य-ऋषियों के मुख से निकले हुए, उनकी पवित्र रसनाओं द्वारा उच्चारित नामों का कीर्तन करने लगे; कहने लगे-
“सत्यं ज्ञानमनन्तं ब्रह्म, ( "Brahman is Truth, Knowledge, and Infinity.),आनन्दरुपममृतं यद्विभाति, ( It shines as Bliss and Immortality.अर्थात् वह (ब्रह्म या परम् सत्य ) आनन्द रूप में प्रकाशित होता है।)शान्तम् शिवमद्वैतम् शुद्धमपापविद्धम् ।”( Brahman is Peace, Blessedness, the One without a Second; It is pure and unstained by sin." ) प्रणव-संयुक्त यह ध्वनि भक्तों के हृदयाकाश में प्रतिध्वनित होने लगी । अनेकों के अन्तस्तल में वासना का निर्वाण-सा हो गया । चित्त बहुत-कुछ स्थिर और ध्यानोन्मुख होने लगा । सब की आँखें मूँदी हुई हैं- थोड़ा देर के लिए सब कोई वेदोक्त सगुण ब्रह्म का चिन्तन करने लगे ।
[ব্রাহ্মসমাজের পদ্ধতি অনুসারে উপাসনা আরম্ভ হইল। বেদীর উপর আচার্য, সম্মুখে সেজ। উদ্বোধনের পর আচার্য পরব্রহ্মের উদ্দেশে বেদোক্ত মহামন্ত্র উচ্চারণ করিতে লাগিলেন। ব্রাহ্মভক্তগণ সমস্বরে সেই পুরাতন আর্য ঋষির শ্রীমুখ-নিঃসৃত, তাঁহাদের সেই পবিত্র রসনার দ্বারা উচ্চারিত নামগান করিতে লাগিলেন। বলিতে লাগিলেন, “সত্যং জ্ঞানংমনন্তং ব্রহ্ম, আনন্দস্বরূপমমৃতং যদ্বিভাতি, শান্তং শিবমদ্বৈতম্, শুদ্ধমপাপবিদ্ধম্।” প্রণবসংযুক্ত এই ধ্বনি ভক্তদের হৃদয়াকাশে প্রতিধ্বনিত হইল। অনেকের অন্তরে বাসনা নির্বাপিতপ্রায় হইল। চিত্ত অনেকটা স্থির ও ধ্যানপ্রবণ হইতে লাগিল। সকলেরই চক্ষু মুদ্রিত! — ক্ষণকালের জন্য বেদোক্ত সগুণ ব্রহ্মের চিন্তা করিতে লাগিলেন।
Soon the service began according to the rules of the Brahmo Samaj. The preacher was seated on the dais. After the opening prayer he recited holy texts of the Vedas and was joined by the congregation in the invocation to the Supreme Brahman. They chanted in chorus: "Brahman is Truth, Knowledge, and Infinity. It shines as Bliss and Immortality. Brahman is Peace, Blessedness, the One without a Second; It is pure and unstained by sin." The minds of the devotees were stilled, and they closed their eyes in meditation.
श्रीरामकृष्णदेव भावमग्न हैं । निःस्पन्द, स्थिरदृष्टि, निर्वाक्, चित्रपुत्तलिका की तरह बैठे हुए हैं । आत्मापक्षी न जाने कहाँ आनन्दपूर्वक विहार कर रहे हैं, शरीर शून्य मन्दिर-सा पड़ा हुआ है ।
समाधि के कुछ समय बाद श्रीरामकृष्णदेव आँखें खोलकर चारों और देख रहे हैं । देखा, सभा के सभी मनुष्य आँखें बन्द किए हुए हैं ।
तब श्रीरामकृष्णदेव ‘ब्रह्म’ ‘ब्रह्म’ कह कर एका एक खड़े हो गए । उपासना के बाद ब्राह्मभक्त-मण्डली मृदंग और करताल लेकर संकीर्तन करने लगी । प्रेम और आनन्द में मग्न होकर श्रीरामकृष्ण भी उनके साथ मिल गए और नृत्य करने लगे । सब लोग मुग्ध होकर वह नृत्य देख रहे हैं । विजय और दूसरे भक्त भी उन्हें घेरकर नाच रहे हैं ।
कितने लोग तो यह दृश्य देखकर ही कीर्तन का आनन्द लेते हुए संसार को भूल गए – नामामृत पीकर थोड़ी देर के लिए विषय का आनन्द भूल गए – विषयसुख का स्वाद कटु जान पड़ने लगा ।
[পরমহংসদেব ভাবে নিমগ্ন। স্পন্দহীন, স্থিরদৃষ্টি, অবাক্ চিত্রপুত্তলিকার ন্যায় বসিয়া আছেন। আত্মাপক্ষী কোথায় আনন্দে বিচরণ করিতেছেন, আর দেহটি মাত্র শূন্যমন্দিরে পড়িয়া রহিয়াছে। সমাধির অব্যবহিত পরেই চক্ষু মেলিয়া চারিদিকে চাহিতেছেন। দেখিলেন, সভাস্থ সকলেই নিমীলিত নেত্র। তখন ‘ব্রহ্ম’ ‘ব্রহ্ম’ বলিয়া হঠাৎ দণ্ডায়মান হইলেন। উপাসনান্তে ব্রাহ্মভক্তেরা খোল-করতাল লইয়া সংকীর্তন করিতেছেন। শ্রীরামকৃষ্ণ প্রেমানন্দে মত্ত হইয়া তাঁহাদের সঙ্গে যোগ দিলেন আর নৃত্য করিতে লাগিলেন। সকলে মুগ্ধ হইয়া সেই নৃত্য দেখিতেছেন। বিজয় ও অন্যান্য ভক্তেরাও তাঁহাকে বেড়িয়া বেড়িয়া নাচিতেছেন। অনেকে এই অদ্ভুত দৃশ্য দেখিয়া ও কীর্তনানন্দ সম্ভোগ করিয়া এককালে সংসার ভুলিয়া গেলেন — ক্ষণকালের জন্য হরি-রস-মদিরা পান করিয়া বিষয়ানন্দ ভুলিয়া গেলেন। বিষয়সুখের রস তিক্তবোধ হইতে লাগিল।
The Master went into deep samadhi. He sat there transfixed and speechless. After some time he opened his eyes, looked around, and suddenly stood up with the words "Brahma! Brahma!" on his lips. Soon the devotional music began, accompanied by drums and cymbals. In a state of divine fervour the Master began to dance with the devotees. Vijay and the other Brahmos danced around him. The guests and the devotees were enchanted. Many of them drank the sweet bliss of God's name and forgot the world. The happiness ness of the material world appeared bitter to them, at least for the time being.
कीर्तन हो जाने पर सब ने आसन ग्रहण किया । श्रीरामकृष्ण क्या कहते हैं, यह सुनने के लिए सब लोग उन्हें घेरकर बैठे ।
(२)
[राजर्षि जनक जैसे नेता -निर्माणकारी छः दिवसीय वार्षिक प्रशिक्षण शिविर की रुपरेखा* Outline of the six-day annual Leadership Training camp for the householders .]
*गृहस्थों के प्रति उपदेश*
ब्राह्मभक्त-मण्डली को सम्बोधित करके श्रीरामकृष्ण ने कहा-“निर्लिप्त होकर संसार में रहना कठिन है। प्रताप ^ (^ ब्रह्म समाज के एक प्रसिद्ध नेता प्रताप चंद्र मजूमदार)ने कहा था, ‘महाराज, हमारा वह मत है जो राजर्षि जनक का था; जनक निर्लिप्त होकर संसार में रहते थे , वैसा ही हम लोग भी करेंगे ।’ मैंने कहा, ‘सोचने ही से क्या कोई जनक हो सकता है? राजर्षि जनक को कितनी तपस्या करने के बाद ज्ञानलाभ हुआ था ! नतमस्तक और ऊर्ध्वपद होकर उग्र तपस्या में कितना काल व्यतीत करने के बाद वे संसार में लौटे थे !’
[সমবেত ব্রাহ্মভক্তগণকে সম্বোধন করিয়া তিনি বলিতেছেন, “নির্লিপ্ত হয়ে সংসার করা কঠিন। প্রতাপ বলেছিল, মহাশয়, আমাদের জনক রাজার মত। জনক নির্লিপ্ত হয়ে সংসার করেছিলেন, আমরাও তাই করব। আমি বললুম, মনে করলেই কি জনক রাজা হওয়া যায়! জনক রাজা কত তপস্যা করে জ্ঞানলাভ করেছিলেন, হেঁটমুণ্ড ঊর্ধ্বপদ হয়ে অনেক বৎসর ঘোরতর তপস্যা করে তবে সংসারে ফিরে গিছলেন।
MASTER: "It is difficult to lead the life of a householder in a spirit of detachment. Once Pratap said to me: 'Sir, we follow the example of King Janaka. He led the life of a householder in a detached spirit. We shall follow him.' I said to him: 'Can one be like King Janaka by merely wishing it? How many austerities he practised in order to acquire divine knowledge! He practised the most intense form of asceticism for many years and only then returned to the life of the world.'
“परन्तु क्या संसारियों (householders) के लिए उपाय नहीं है ? – हाँ, अवश्य है । कुछ दिन (कमसे कम छः दिन का वार्षिक युवा-प्रशिक्षण शिविर) एकान्त में साधना करनी पड़ती है, तब भक्ति होती है, तब ज्ञान होता है, इसके बाद जाकर संसार में रहो, फिर कोई दोष नहीं । जब निर्जन में साधना करोगे, उस समय संसार से बिलकुल अलग रहो; तब स्त्री, पुत्र, कन्या, माता, पिता, भाई, बहन, आत्मीय, कुटुम्ब कोई भी पास न रहे; निर्जन में साधना करते समय सोचो, हमारे कोई नहीं हैं, ईश्वर ही हमारे सर्वस्व हैं । और रो-रोकर उनके पास ज्ञान और भक्ति की प्रार्थना करो ।
[“তবে সংসারীর কি উপায় নাই? — হাঁ অবশ্য আছে। দিন কতক নির্জনে সাধন করতে হয়। তবে ভক্তিলাভ হয়, জ্ঞানলাভ হয়; তারপর গিয়ে সংসার কর, দোষ নাই। যখন নির্জনে সাধন করবে, সংসার থেকে একেবারে তফাতে যাবে। তখন যেন স্ত্রী, পুত্র, কন্যা, মাতা, পিতা, ভাই, ভগিনী, আত্মীয়-কুটুম্ব কেহ কাছে না থাকে। নির্জনে সাধনের সময় ভাববে, আমার কেউ নাই; ঈশ্বরই আমার সর্বস্ব। আর কেঁদে কেঁদে তাঁর কাছে জ্ঞান-ভক্তির জন্য প্রার্থনা করবে।
"Is there, then, no hope for householders? Certainly there is. They must practise spiritual discipline in solitude for some days. Thus they will acquire knowledge and devotion. Then it will not hurt them to lead the life of the world. But when you practise discipline in solitude, keep yourself entirely away from your family. You must not allow your wife, son, daughter, mother, father, sister, brother, friends, or relatives near you. While thus practising discipline in solitude, you should think: 'I have no one else in the world. God is my all,' You must also pray to Him, with tears in your eyes, for knowledge and devotion.
*निर्जन में मनःसंयोग का प्रशिक्षण*
“यदि कहो, कितने दिन संसार छोड़कर निर्जन में रहें ? तो इसके लिए यदि एक दिन भी इस तरह रह सको तो वह अच्छा; तीन दिन रहो तो ओर अच्छा है; अथवा बारह दिन,महीने भर, तीन महीने, सालभर – जो जितने दिन रह सके । ज्ञान-भक्ति प्राप्त करके संसार में रहने से फिर अधिक भय नहीं रहता ।
[“যদি বল কতদিন সংসার ছেড়ে নির্জনে থাকবো? তা একদিন যদি এইরকম করে থাক, সেও ভাল; তিনদিন থাকলে আরও ভাল; বা বারোদিন, একমাস, তিনমাস, একবৎসর — যে যেমন পারে। জ্ঞান-ভক্তিলাভ করে সংসার করলে আর বেশি ভয় নাই।
"If you ask me how long you should live in solitude away from your family, I should say that it would be good for you if you could spend even one day in such a manner. Three days at a time are still better. One may live in solitude for twelve days, a month, three months, or a year, according to one's convenience and ability. One hasn't much to fear if one leads the life of a householder after attaining knowledge and devotion.]
“हाथों में तेल लगाकर कटहल काटने से फिर हाथों में उसका दूध नहीं चिपकता । छुई-छुऔवल खेलो तो पार छू लेने से फिर डर नहीं रहता ।एक बार पारस पत्थर को छूकर सोना बन जाओ, फिर हजार वर्ष तक मिट्टी के नीचे गड़े रहने पर भी जब मिट्टी से निकाले जाओगे, तो सोना का सोना ही रहोगे ।
[“হাতে তেল মেখে কাঁঠাল ভাঙলে হাতে আঠা লাগে না। চোর চোর যদি খেল বুড়ি ছুঁয়ে ফেললে আর ভয় নাই। একবার পরশমণিকে ছুঁয়ে সোনা হও, সোনা হবার পর হাজার বৎসর যদি মাটিতে পোঁতা থাক, মাটি থেকে তোলবার সময় সেই সোনাই থাকবে।
"If you break a jack-fruit after rubbing your hands with oil, then its sticky milk will not smear your hands. While playing the game of hide-and-seek, you are safe if you but once touch the 'granny'. Be turned into gold by touching the philosopher's stone. After that you may remain buried underground a thousand years; when you are taken out you will still be gold.
“मन दूध की तरह है । उस मन को अगर संसाररूपी जल में रखो तो दूध पानी से मिल जायगा; इसीलिए दूध को निर्जन में दही बनाकर उससे मक्खन निकाला जात है । जब निर्जन में साधना (एकाग्रता का अभ्यास) करके मनरूपी दूध से ज्ञानभक्ति-रूपी मक्खन निकाला गया, तब वह मक्खन अनायास ही संसार-रूपी पानी में रखा जा सकता है । वह मक्खन कभी संसार-रूपी जल से मिल नहीं सकता – संसार जल पर निर्लिप्त होकर उतराता रहता है ।”
[“মনটি দুধের মতো। সেই মনকে যদি সংসার-জলে রাখ, তাহলে দুধেজলে মিশে যাবে। তাই দুধকে নির্জনে দই পেতে মাখন তুলতে হয়। যখন নির্জনে সাধন করে মনরূপ দুধ থেকে জ্ঞান-ভক্তিরূপ মাখন তোলা হল, তখন সেই মাখন অনায়াসে সংসার-জলে রাখা যায়। সে মাখন কখনও সংসার-জলের সঙ্গে মিশে যাবে না — সংসার-জলের উপর নির্লিপ্ত হয়ে ভাসবে।”
'Mental Concentration Class' by Sri Ramakrishna :"The mind is like milk. If you keep the mind in the world, which is like water, then the milk and water will get mixed. That is why people keep milk in a quiet place and let it set into curd, and then churn butter from it. Likewise, through spiritual discipline practised in solitude, churn the butter of knowledge and devotion from the milk of the mind. Then that butter can easily be kept in the water of the world. It will not get mixed with the world. The mind will float detached on the water of the world."]
(३)
*श्रीयुत विजयकृष्ण गोस्वामी की निर्जन में साधना और साधुसंग *
[Solitude and Holy company]
श्रीयुत विजय अभी अभी गया से लौटे हैं । वहाँ बहुत दिनों तक निर्जन में रहकर वे साधुओं से मिलते रहे थे । इस समय उन्होंने भगवा धारण कर लिया है । उनकी अवस्था बड़ी ही सुन्दर है; जान पड़ता है, सदा ही अन्तर्मुख रहते हैं । श्रीरामकृष्णदेव के पास सिर झुकाए हुए हैं, जैसे मग्न होकर कुछ सोचते हों।
[শ্রীযুক্ত বিজয় গোস্বামী সবে গয়া হইতে ফিরিয়াছেন। সেখানে অনেকদিন নির্জনে বাস ও সাধুসঙ্গ হইয়াছিল। এক্ষণে তিনি গৈরিকবসন পরিধান করিয়াছেন। অবস্থা ভারী সুন্দর, যেন সর্বদা অন্তর্মুখ। পরমহংসদেবের নিকট হেঁটমুখ হইয়া রহিয়াছেন, যেন মগ্ন হইয়া কি ভাবিতেছেন।
Vijay had just returned from Gaya, where he had spent a long time in solitude and holy company. He had put on the ochre robe of a monk and was in an exalted state of mind, always indrawn. He was sitting before the Master with his head bent down, as if absorbed in some deep thought.]
विजय को देखते ही श्रीरामकृष्णदेव ने कहा, -' विजय ! तुमि कि बासा पाकड़ेछो ? (“বিজয়! তুমি কি বাসা পাকড়েছ?) “विजय, क्या तुमने घर ढूँढ लिया है ?
Casting his benign glance on Vijay, the Master said; "Vijay, have you found your room?]
“देखो, दो साधु विचरण करते हुए एक शहर में आ पहुँचे । आश्चर्यचकित होकर उनमें से एक शहर, बाजार, दुकानें और इमारतें देख रहा था, इसी समय दूसरे से उसकी भेंट हो गयी । तब दूसरे साधु ने कहा, “तुम दंग होकर शहर देख रहे हो; तुम्हारा डेरा-डण्डा कहा है ? पहले साधु ने कहा,‘मैं पहले घर की खोज करके, डेरा-डण्डा रख, ताला लगाकर, निश्चिन्त होकर निकला हूँ, अब शहर का रंग-ढंग देख रहा हूँ ।’
इसीलिए तुमसे मैं पूछ रहा हूँ, क्या तुमने घर ढूँढ लिया ? (मास्टर आदि से-দেখ, বিজয়ের এতদিন ফোয়ারা চাপা ছিল, এইবার খুলে গেছে।”) देखो, इतने दिनों तक विजय का फौआरा दबा हुआ था, अब खुल गया है ।
[“দেখ, দুজন সাধু ভ্রমণ করতে করতে একটি শহরে এসে পড়েছিল। একজন হাঁ করে শহরের বাজার, দোকান, বাড়ি দেখছিল; এমন সময় অপরটির সঙ্গে দেখা হল। তখন সে সাধুটি বললে, তুমি হাঁ করে শহর দেখছ — তল্পি-তল্পা কোথায়? প্রথম সাধুটি বললে, আমি আগে বাসা পাকড়ে, তল্পি-তল্পা রেখে, ঘরে চাবি দিয়ে, নিশ্চিন্ত হয়ে বেরিয়েছি। এখন শহরে রঙ দেখে বেড়াচ্ছি। তাই তোমায় জিজ্ঞাসা করছি, তুমি কি বাসা পাকড়েছ? (মাস্টার ইত্যদির প্রতি), দেখ, বিজয়ের এতদিন ফোয়ারা চাপা ছিল, এইবার খুলে গেছে।”
"Let me tell you a parable: Once two holy men, in the course of their wanderings, entered a city. One of them, with wondering eyes and mouth agape, was looking at the market-place, the stalls, and the buildings, when he met his companion. The latter said: 'You seem to be filled with wonder at the city. Where is your baggage?' He replied: 'First of all I found a room. I put my things in it, locked the door, and felt totally relieved. Now I am going about the city enjoying all the fun.'
"So I am asking you, Vijay, if you have found your room. (To M. and the others) You see, the spring in Vijay's heart has been covered all these days. Now it is open.]
*गृहस्थ के लिए उपाय निष्काम कर्म- 'Be and Make': संन्यासी के लिए वासनात्याग*
(विजय से) – “देखो, शिवनाथ बड़ी उलझन में है । अखबार में लिखना पड़ता है, और भी बहुत से काम उसे करने पड़ते हैं । विषय-कर्म ही से अशान्ति होती है, कितनी चिन्ताएँ आ इकट्ठी होती हैं ।
[(বিজয়ের প্রতি) — দেখ, শিবনাথের ভারী ঝঞ্ঝাট। খবরের কাগজ লিখতে হয়, আর অনেক কর্ম করতে হয়। বিষয়কর্ম করলেই অশান্তি হয়, অনেক ভাবনা-চিন্তা জোটে।
(To Vijay) "Well, Shivanath is always in trouble and turmoil. He has to write for magazines and perform many other duties. Worldly duties bring much worry and anxiety along with them.]
“श्रीमद्भागवत में है, अवधूत ने चौबीस गुरुओं में चील को भी एक गुरु बनाया था । एक जगह धीवर मछली मार रहे थे, एक चील झपटकर एक मछली ले गयी, परन्तु मछली को देखकर करीब एक हजार कौए उसके पीछे लग गए, और साथ ही काँव-काँव करके बड़ा हल्ला मचाना शुरू कर दिया ।
मछली को लेकर चील जिस तरफ जाती, तब कौए भी उसी ओर गये । जब वह उत्तर की तरफ गयी, तब वे भी उसी ओर गये । इसी तरह पूर्व और पश्चिन की ओर भी चील चक्कर काटने लगी । अन्त में घबराहट के मारे चक्कर लगते हुए मछली उससे छूट कर जमीन पर गिर पड़ी । तब वे कौए चील को छोड़ मछली की ओर उड़े । चील तब निश्चिन्त होकर एक पेड़ की डाल पर जा बैठी । बैठी हुयी सोचने लगी, ‘कुल बखेड़े की जड़ यही मछली थी; अब वह मेरे पास नहीं है इसीलिए मैं निश्चिन्त हूँ ।’
[“শ্রীমদ্ভাগবতে আছে যে, অবধূত চব্বিশ গুরুর মধ্যে চিলকে একটি গুরু করেছিলেন। এক জায়গায় জেলেরা মাছ ধরছিল, একটি চিল এসে মাছ ছোঁ মেরে নিয়ে গেল। কিন্তু মাছ দেখে পেছনে পেছনে প্রায় এক হাজার কাক চিলকে তাড়া করে গেল, আর সঙ্গে সঙ্গে কা কা করে বড় গোলমাল করতে লাগল। মাছ নিয়ে চিল যেদিকে যায়, কাকগুলোও তাড়া করে সেইদিকে যেতে লাগল। দক্ষিণদিকে চিলটা গেল, কাকগুলোও সেইদিকে গেল; আবার উত্তরদিকে যখন সে গেল, ওরাও সেইদিকে গেল। এইরূপে পূর্বদিকে ও পশ্চিমদিকে চিল ঘুরতে লাগল। শেষে ব্যতি ব্যস্ত হয়ে ঘুরতে ঘুরতে মাছটা তার কাছ থেকে পড়ে গেল। তখন কাকগুলো চিলকে ছেড়ে মাছের দিকে গেল। চিল তখন নিশ্চিন্ত হয়ে একটা গাছের ডালের উপর গিয়ে বসল। বসে ভাবতে লাগল — ওই মাছটা যত গোল করেছিল। এখন মাছ কাছে নাই, আমি নিশ্চিন্ত হলুম।
"It is narrated in the Bhagavata that the Avadhuta had twenty-four gurus, one of whom was a kite. In a certain place the fishermen were catching fish. A kite swooped down and snatched a fish. At the sight of the fish, about a thousand crows chased the kite and made a great noise with their cawing. Whichever way the kite flew with the fish, the crows followed it. The kite flew to the south and the crows followed it there. The kite flew to the north and still the crows followed after it. The kite went east and west, but with the same result. As the kite began to fly about in confusion, lo, the fish dropped from its mouth. The crows at once let the kite alone and flew after the fish. Thus relieved of its worries, the kite sat on the branch of a tree and thought: 'That wretched fish was at the root of all my troubles. I have now got rid of it and therefore I am at peace.']
“अवधूत ने चील से यह शिक्षा प्राप्त की कि जब तक मछली साथ रहेगी अर्थात् वासना रहेगी, तब तक कर्म भी रहेगा, और कर्म के कारण चिन्ता और अशान्ति भी रहेगी । वासना का त्याग होने से ही कर्मों का क्षय हो जाता है और शान्ति मिलती है ।
[“অবধূত চিলের কাছে এই শিক্ষা করলেন যে, যতক্ষণ সঙ্গে মাছ থাকে অর্থাৎ বাসনা থাকে ততক্ষণ কর্ম থাকে আর কর্মের দরুন ভাবনা, চিন্তা, অশান্তি। বাসনাত্যাগ হলেই কর্মক্ষয় হয় আর শান্তি হয়।
"The Avadhuta learnt this lesson from the kite, that as long as a man has the fish, that is, worldly desires, he must perform actions and consequently suffer from worry, anxiety, and restlessness. No sooner does he renounce these desires than his activities fall away and he enjoys peace of soul.]
“परन्तु निष्काम कर्म ('Be and Make ' )अच्छा है । उससे अशान्ति नहीं होती । पर निष्काम कर्म करना बड़ा कठिन है । मनुष्य सोचता है कि मैं निष्काम कर्म कर रहा हूँ परन्तु कहाँ से कामना (लोकैषणा ?) निकल पड़ती है, यह समझ में नहीं आता ।
यदि पहले की साधना अधिक हो तो 'उसके बल से' कोई कोई निष्काम कर्म कर सकते हैं । ईश्वर-दर्शन के बाद निष्काम कर्म अनायास ही किए जा सकते हैं । ईश्वरदर्शन (विवेक-दर्शन?) के बाद प्रायः कर्म छूट जाते हैं । दो-एक मनुष्य (नारदादि-नवनीदा आदि) लोकशिक्षा के लिए कर्म करते हैं ।
[“তবে নিষ্কামকর্ম ভাল। তাতে অশান্তি হয় না। কিন্তু নিষ্কামকর্ম করা বড় কঠিন। মনে করছি, নিষ্কামকর্ম করছি, কিন্তু কোথা থেকে কামনা এসে পড়ে, জানতে দেয় না। আগে যদি অনেক সাধন থাকে, সাধনের বলে কেউ কেউ নিষ্কামকর্ম করতে পারে। ঈশ্বরদর্শনের পর নিষ্কামকর্ম অনায়াসে করা যায়। ঈশ্বরদর্শনের পর প্রায় কর্মত্যাগ হয়; দুই-একজন (নারদাদি) লোকশিক্ষার জন্য কর্ম করে।”
"But work without any selfish motive is good. It does not create any worry. But it is very difficult to be totally Unselfish. We may think that our work is selfless, but selfishness comes, unknown to us, from no one knows where. But if a man has already undergone great spiritual discipline, then as a result of it he may be able to do work without any selfish motive. After the vision of God a man can easily do unselfish work. In most cases action drops away after the attainment of God. Only a few, like Narada, work to bring light to mankind.}
{पूर्वजन्म में ही यदि " स्वामी विवेकानन्द -कैप्टन सेवियर वेदान्त शिक्षक-प्रशिक्षण परम्परा- 'Be and Make ' में प्रशिक्षण मिल चुका हो तो उसके बल से कोई -"नवनीदा" निष्काम कर्म कर सकते हैं!
*संन्यासी को संचय न करना चाहिए*
*प्रेम के फल-स्वरूप कर्मत्याग*
“अवधूत की एक आचार्या और थी – मधुमक्खी - बड़े परिश्रम से कितने ही दिनों में मधु-संचय करती है, परन्तु उस मधु का भोग वह स्वयं नहीं कर पाती । छत्ता कोई दूसरा ही आकर तोड़ ले जाता है । मधुमक्खी से अवधूत को यह शिक्षा मिली कि संचय न करना चाहिए । साधु-सन्तों को सोलहों आने ईश्वर पर अवलम्बित रहना चाहिए । उन्हें संचय न करना चाहिए ।
“यह संसारियों के लिए (प्रवृत्ति मार्गी गृहस्थों के लिए) नहीं है । संसारी (गृहस्थ) को संसार (परिवार) का भरणपोषण करना पड़ता है । इसीलिए उन्हें संचय की आवश्यकता होती है । पक्षी और संत संचयी नहीं होते, परन्तु चिड़ियाँ बच्चे देने पर संचय करती हैं- चोंच में दबाकर बच्चे के लिए खाना ले आती हैं ।
[“অবধূতের আর-একটি গুরু ছিল — মৌমাছি! মৌমাছি অনেক কষ্টে অনেকদিন ধরে মধু সঞ্চয় করে। কিন্তু সে মধু নিজের ভোগ হয় না। আর-একজন এসে চাক ভেঙে নিয়ে যায়। মৌমাছির কাছে অবধূত এই শিখলেন যে, সঞ্চয় করতে নাই। সাধুরা ঈশ্বরের উপর ষোল আনা নির্ভর করবে। তাদের সঞ্চয় করতে নাই। “এটি সংসারীর পক্ষে নয়। সংসারীর সংসার পরতিপালন করতে হয়। তাই সঞ্চয়ের দরকার হয়! পন্ছী (পাখি) আউর দরবেশ (সাধু) সঞ্চয় করে না। কিন্তু পাখির ছানা হলে সঞ্চয় করে — ছানার জন্য মুখে করে খাবার আনে।
"The Avadhuta accepted a bee as another teacher. Bees accumulate their honey by days of hard labour. But they cannot enjoy their honey, for a man soon breaks the comb and takes it away. The Avadhuta learnt this lesson from the bees, that one should not lay things up. Sadhus should depend one hundred per cent on God. They must not gather for the morrow. But this does not apply to the householder. He must bring up his-family; therefore it is necessary for him to provide. Birds and monks do not hoard. Yet birds also hoard after their chicks are hatched: they collect food in their beaks for their young ones.]
“देखो विजय, साधु के साथ अगर बोरिया-बधना रहे- कपड़े की पन्द्रह गिरहवाली गठरी रहे, तो उस पर विश्वास न करना । (10 लाख का F.D. बैंक में जमा कर संन्यासी बने) मैंने बटतल्ले में ऐसे साधु देखे थे । दो-तीन बैठे हुए थे, कोई दाल के कंकड़ चुन रहा था, कोई कपड़ा सी रहा था और कोई बड़े आदमी के घर के भण्डारे की गप्प लड़ा रहा था, ‘अरे उस बाबू ने लाखों रूपये खर्च किए, साधुओं को खूब खिलाया – पूड़ी, जलेबी, पेड़ा, बरफी मालपुआ, बहुत सी चीजें तैयार करायीं’ ।” (सब हँसते हैं ।)
{“দেখ বিজয়, সাধুর সঙ্গে যদি পুঁটলি-পাটলা থাকে, পনেরটা গাঁটোয়ালা যদি কাপড়-বুচকি থাকে তাহলে তাদের বিশ্বাস করো না। আমি বটতলায় ওইরকম সাধু দেখেছিলাম। দু-তিনজন বসে আছে, কেউ ডাল বাছছে, কেউ কেউ কাপড় সেলাই করছে, আর বড় মানুষের বাড়ির ভাণ্ডারার গল্প করছে। বলছে, ‘আরে ও বাবুনে লাখো রূপেয়া খরচ কিয়া, সাধু লোককো বহুৎ খিলায়া — পুরি, জিলেবী, পেড়া, বরফী, মালপুয়া, বহুৎ চিজ তৈয়ার কিয়া।” (সকলের হাস্য)
"Let me tell you one thing, Vijay. Don't trust a sadhu if he keeps bag and baggage with him and a bundle of clothes with many knots. I have seen such sadhus under the banyan tree in the Panchavati. Two or three of them were seated there. One was picking over lentils, some were sewing their clothes, and all were gossiping about a feast they had enjoyed in a rich man's house. They said among themselves, 'That rich man spent a hundred thousand rupees on the feast and fed the sadhus sumptuously with cake, sweets, and many such delicious things.'" (All laugh.)}
विजय-जी हाँ, गया में इस तरह के साधु मुझे भी देखने को मिले हैं । गया के साधु लोटावाले होते हैं । (सब हँसते हैं ।)
VIJAY: "It is true, sir. I have seen such sadhus at Gaya. They are called the lotawalla sadhus14 of Gaya."]
श्रीरामकृष्ण(विजय के प्रति) – ईश्वर पर जब प्रेम हो जाता है तब कर्म आप ही आप छूट जाते हैं । ईश्वर जिनसे कर्म कराते हैं, वे करते रहें । अब तुम्हारा समय हो गया है; अब सब छोड़कर तुम कहो, मन, तू देख और मैं देखूँ, कोई दूसरा न देखे’ ।
[শ্রীরামকৃষ্ণ (বিজয়ের প্রতি) — ঈশ্বরের প্রতি প্রেম আসলে কর্মত্যাগ আপনি হয়ে যায়। যাদের ঈশ্বর কর্ম করাচ্ছেন, তারা করুক। তোমার এখন সময় হয়েছে। — সব ছেড়ে তুমি বলো, “মন, তুই দেখ আর আমি দেখি, আর যেন কেউ নাহি দেখে।”
MASTER (to Vijay): "When love of God is awakened, work drops away of itself. If God makes some men work, let them work. It is now time for you to give up everything. Renounce all and say, 'O mind, may you and I alone behold the Mother, letting no one else intrude.']
यह कहकर श्रीरामकृष्ण उस अतुलनीय कण्ठ से माधुरी बरसाते हुए गाने लगे-
जतने हृदये रेखो , आदरिणी श्यामा मा के,
मन तुई देख आर आमि देखि, आर जेनो केहू नाहि देखे।
कामादिरे दिये फाँकी, आय मन विरले देखि,
रसनारे संगे राखि, से जेनो मा बोले डाके।
(माझे माझे से जॅनो माँ बोले डाके)।।
कुरुचि कुमंत्री जतो, निकट होते दिओ नाको,
ज्ञान-नयन के प्रहरी रेखो, शे जेनो सावधाने थाके।
(खुब जॅनो सावधाने थाके) ।।
যতনে হৃদয়ে রেখো আদরিণী শ্যামা মাকে,
মন তুই দেখ আর আমি দেখি, আর যেন কেউ নাহি দেখে।
কামাদিরে দিয়ে ফাঁকি, আয় মন বিরলে দেখি,
রসনার সঙ্গে রাখি, সে যেন মা বলে ডাকে।
(মাঝে মাঝে সে যেন মা বলে ডাকে) ৷৷
কুরুচি কুমন্ত্রী যত, নিকট হতে দিও নাকো
জ্ঞাননয়নকে প্রহরী রেখো, সে যেন সাবধানে থাকে।
(খুব যেন সাবধানে থাকে) ৷৷
(भावार्थ) –
“आदरणीय श्यामा माँ को यत्नपूर्वक हृदय में धारण करो । मन ! तू देख और मैं देखूँ; कोई दूसरा न देखने पाए । कामादि को धोखा देकर, मन ! आ, निर्जन, में उसे देखें, साथ रसना को भी रखेंगे ताकि वह ‘माँ माँ’ कहकर पुकारती रहे ! कुमंत्रणाएँ देनेवाली जितनी कुरुचियाँ हैं उन्हें पास भी न फटकने देना । ज्ञान-नयन (स्वामी विवेकानन्द) को पहरेदार रखो, वह सतर्क रहे ।”
[Cherish my precious Mother SyamaTenderly within, O mind; May you and I alone behold Her,Letting no one else intrude.O mind, in solitude enjoy Her, Keeping the passions all outside; Take but the tongue, that now and again It may cry out, "O Mother! Mother!" Suffer no breath of base desire To enter and approach us there,But bid true knowledge stand on guard, Alert and watchful evermore.
श्रीरामकृष्ण (विजय के प्रति) – भगवान् की शरण में जाकर अब लज्जा, भय, यह सब छोड़ो । मैं अगर भगवत्कीर्तन में नाचूँ तो लोग मुझे कहेंगे, यह सब भाव छोड़ो ।
“लज्जा, घृणा और भय, इन तीनों में किसी के रहते ईश्वर नहीं मिलते । लज्जा, घृणा, भय, जाति-अभिमान, गुप्त रखने की इच्छा, ये सब पाश हैं । इन सब के चले जाने से जीव की मुक्ति होती है ।
[(বিজয়ের প্রতি) — “ভগবানের শরণাগত হয়ে এখন লজ্জা, ভয় — এ-সব ত্যাগ কর। ‘আমি হরিনামে যদি নাচি, লোকে আমায় কি বলবে’ — এ-সব ভাব ত্যাগ কর।”“লজ্জা, ঘৃণা, ভয় তিন থাকতে নয়। লজ্জা, ঘৃণা, ভয়, জাতি আভিমান, গোপন ইচ্ছা — এ-সব পাশ। এ-সব গেলে জীবের মুক্তি হয়।
The Master said to Vijay: "Surrender yourself completely to God, and set aside all such things as fear and shame. Give up such feelings as, What will people think of me if I dance in the ecstasy of God's holy name?' The saying, 'One cannot have the vision of God as long as one has these three — shame, hatred, and tear', is very true. Shame, hatred, fear, caste, pride, secretiveness, and the like are so many bonds. Man is free when he is liberated from all these.]
“पाशों में जो बँधा हुआ है वह जीव है और उनसे जो मुक्त है वह शिव है । भगवत्प्रेम दुर्लभ वस्तु है । पहले-पहल, पति के प्रति पत्नी की जैसी निष्ठा होती है वैसी ही यदि ईश्वर के प्रति हो तो ही भक्ति होती है। शुद्धा भक्ति का होने बड़ा कठिन है । भक्ति द्वारा मन और प्राण ईश्वर में लय हो जाते हैं ।
"When bound by ties one is jiva, and when free from ties one is Siva. Prema, ecstatic love of God, is a rare thing. "First of all one acquires bhakti. Bhakti is single-minded devotion to God, like the devotion a wife feels for her husband. It is very difficult to have unalloyed devotion to God. Through such devotion one's mind and soul merge in Him.]
इसके बाद भाव होता है । भाव में मनुष्य निर्वाक् हो जाता है । वायु स्थिर हो जाती है । कुम्भक आप ही आप होता है । जैसे बन्दूक दागते समय गोली चलानेवाला मनुष्य निर्वाक् हो जाता है और उसकी वायु स्थिर हो जाती है ।
[“তারপর ভাব। ভাবেতে মানুষ অবাক্ হয়। বায়ু স্থির হয়ে যায়। আপনি কুম্ভক হয়। যেমন বন্দুকে গুলি ছোড়বার সময়, যে ব্যক্তি গুলি ছোড়ে সে বাক্যশূন্য হয় ও তার বায়ু স্থির হয়ে যায়।"
Then comes bhava, intense love. Through bhava a man becomes speechless. His nerve currents are stilled. Kumbhaka comes by itself. It is like the case of a man whose breath and speech stop when he fires a gun.
“प्रेम का होना बड़ी दूर की बात है । प्रेम चैतन्यदेव को हुआ था । ईश्वर पर जब प्रेम होता है, तब बाहर की चीजें भूल जाती हैं । संसार भूल जाता है । अपना शरीर जो इतना प्यारा है, वह भी भूल जाता है ।”
[“প্রেম হওয়া অনেক দূরের কথা। চৈতন্যদেবের প্রেম হয়েছিল। ঈশ্বরে প্রেম হলে বাহিরের জিনিস ভুল হয়ে যায়। জগৎ ভুল হয়ে যায়। নিজের দেহ যে এত প্রিয় জিনিস — তাও ভুল হয়ে যায়।”
"But prema, ecstatic love, is an extremely rare thing. Chaitanya had that love. When one has prema one forgets all-outer things. One forgets the world. One even forgets one's own body, which is so dear to a man."]
यह कहकर श्रीरामकृष्णदेव फिर गाने लगे- से दिन कबे बा हबे
সেদিন কবে বা হবে?
হরি বলিতে ধারা বেয়ে পড়বে (সেদিন কবে বা হবে?)
সংসার বাসনা যাবে (সেদিন কবে বা হবে?)
অঙ্গে পুলক হবে (সেদিন কবে বা হবে?)।
से दिन कबे बा हबे
से दिन कबे बा हबे
हरि बोलिते धारा बेये पड़बे
से दिन कबे बा हबे
संसार वासना जाबे
से दिन कबे बा हबे
अंगे पुलक हबे
से दिन कबे बा हबे
(भावार्थ) – “नहीं मालूम, कब वह दिन होगा जब हरिनाम कहते हुए मेरी आँखों से धारा बह चलेगी, संसार-वासना दूर हो जाएगी, शरीर पुलकित हो जाएगा !”
[Oh, when will dawn the blessed day,When tears of joy will flow from my eyes As I repeat Lord Hari's name? Oh, when will dawn the blessed day, When all my craving for the world Will vanish straightway from my heart,And with the thrill of His holy name All of my hair will stand on end?Oh, when will dawn that blessed day?
(४)
*भाव, कुम्भक तथा ईश्वरदर्शन*
ऐसी बातचीत हो रही है, ठीक इस समय कुछ और निमन्त्रित ब्राह्मभक्त आकर उपस्थित हुए । उनमें कुछ तो पण्डित थे और कुछ उच्चपदाधिकारी राजकर्मचारी । उनमें एक श्री रजनीनाथ राय भी थे ।
[এইরূপ কথাবার্তা চলিতেছে, এমন সময় নিমন্ত্রিত আর কয়েকটি ব্রাহ্মভক্ত আসিয়া উপস্থিত হইলেন। তন্মধ্যে কয়েকটি পণ্ডিত ও উচ্চপদস্থ রাজকর্মচারী। তাঁহাদের মধ্যে একজন শ্রীরজনীনাথ রায়।
So the talk of divine things was proceeding, when some invited Brahmo devotees entered the room. There were among them a few pundits and high government officials.]
श्रीरामकृष्ण कहते हैं, “भाव के होने पर वायु स्थिर हो जाती है । अर्जुन ने जब लक्ष्य-भेद किया, तब उनकी दृष्टि मछली की आँख पर ही थी – किसी दूसरी ओर नहीं । यहाँ तक कि आँख के सिवाय कोई दूसरा अंग उन्हें दीख ही नहीं पड़ा । ऐसी अवस्था में वायु स्थिर होती है, कुम्भक होता है ।
{ঠাকুর বলিতেছেন,ভাব হইলে (चित्त की वृत्तियों का निरोध होने पर) বায়ু স্থির হয়; আর বলিতেছেন, অর্জুন যখন লক্ষ্য বিঁধেছিল, কেবল মাছের চোখের দিকে দৃষ্টি ছিল — আর কোন দিকে দৃষ্টি ছিল না। এমন কি চোখ ছাড়া আর কোন অঙ্গ দেখতে পায় নাই। এরূপ অবস্থায় বায়ু স্থির হয়, কুম্ভক হয়।
Sri Ramakrishna had said that bhava stills the nerve currents of the devotee. He continued: "When Arjuna was about to shoot at the target, the eye of a fish, his eyes were fixed on the eye of the fish, and on nothing else. He didn't even notice any part of the fish except the eye. In such a state the breathing stops and one experiences kumbhaka.}
“ईश्वरदर्शन का एक लक्षण यह है कि भीतर से महावायु घरघराती हुई सिर की ओर जाती है; तब समाधि होती है, भगवान् के दर्शन होते हैं ।
[“ঈশ্বরদর্শনের একটি লক্ষণ, — ভিতর থেকে মহাবায়ু গর্গর্ করে উঠে দিকে যায়! তখন সমাধি হয়, ভগবানের দর্শন হয়।”
"Another characteristic of God-vision is that a great spiritual current rushes up along the spine and goes toward the brain. If then the devotee goes into samadhi, he sees God."
कोरा पाण्डित्य मिथ्या है । ऐश्वर्य, वैभव, मान, पद सब मिथ्या है ।
“जो पण्डित मात्र हैं किन्तु ईश्वर पर जिनकी भक्ति नहीं है उनकी बातें उलझनदार होती है । सामाध्यायी नाम के एक पण्डित ने कहा था, ‘ईश्वर नीरस है, तुम लोग अपनी भक्ति और प्रेम के द्वारा उसे सरस कर लो ।’ जिन्हें वेदों ने ‘रसस्वरूप’ कहा है, उन्हें नीरस बतलाता है ! इससे ज्ञात होता है कि वह मनुष्य नहीं जानता ईश्वर कौन सी वस्तु है; इसीलिए उसकी बातें इतनी उलझनदार हैं ।
[(অভ্যাগত ব্রাহ্মভক্ত দৃষ্টে) — “যাঁরা শুধু পণ্ডিত, কিন্তু যাদের ভগবানে ভক্তি নাই, তাদের কথা গোলমেলে। সামাধ্যায়ী বলে এক পণ্ডিত বলেছিল, ‘ঈশ্বর নীরস, তোমরা নিজের প্রেমভক্তি দিয়ে সরস করো।’ বেদে যাঁকে ‘রসস্বরূপ’ বলেছে তাঁকে কি না নীরস বলে! আর এত বোধ হচ্ছে, সে ব্যক্তি ঈশ্বর কি বস্তু কখনও জানে নাই। তাই এরূপ গোলমেলে কথা।
Looking at the Brahmo devotees who had just arrived, the Master said: "Mere pundits, devoid of divine love, talk incoherently. Pundit Samadhyayi once said, in the course of his sermon: 'God is dry. Make Him sweet by your love and devotion.' Imagine! To describe Him as dry, whom the Vedas declare as the Essence of Bliss! It makes one feel that the pundit didn't know what God really is. That was why his words were so incoherent.]
“एक ने कहा था, मेरे मामा के यहाँ घोड़ों की एक बड़ी गोशाला है ! उसकी इस बात से समझना चाहिए कि घोड़ा एक भी नहीं है; क्योंकि घोड़े कभी गोशाला में नहीं रहते । (सब हँसते हैं ।)
{“একজন বলেছিল, ‘আমার মামার বাড়িতে এক গোয়াল ঘোড়া আছে।’ এ-কথায় বুঝতে হবে, ঘোড়া আদবেই নাই, কেননা গোয়ালে ঘোড়া থাকে না। (সকলের হাস্য)
"A man once said, 'There are many horses in my uncle's cow-shed.' From that one could know that the man had no horses at all. No one keeps a horse in a cow-shed.}
“किसी को ऐश्वर्य का-वैभव, सम्मान, पद आदि का – अहंकार होता है । यह सब दो दिन के लिए हैं । साथ कुछ भी न जाएगा ।
[“কেউ ঐশ্বর্যের — বিভব, মান, পদ — এই সবের অহংকার করে। এ-সব দুই দিনের জন্য, কিছুই সঙ্গে যাবে না। একটা গানে আছে:
"Some people pride themselves on their riches and power — their wealth, honour, and social position. But these are only transitory. Nothing will remain with you in death.
एक गीत में हैं-भेवे देख मन केउ कारो नय
ভেবে দেখ মন কেউ কারু নয়, মিছে ভ্রম ভূমণ্ডলে।
ভুল না দক্ষিণাকালী বদ্ধ হয়ে মায়াজালে ৷৷
যার জন্য মর ভেবে, সে কি তোমার সঙ্গে যাবে।
সেই প্রেয়সী দিবে ছড়া, অমঙ্গল হবে বলে ৷৷
দিন দুই-তিনের জন্য ভবে কর্তা বলে সবাই মানে।
সেই কর্তারে দেবে ফেলে, কালাকালের কর্তা এলে ৷৷’
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भेबे देख मन केउ कारो नय,
भेबे देख मन केउ कारो नय,मिछे भ्रम भूमंडले |
भुलना दक्षिणाकाली, बद्ध ह्ये मायाजाले।
जार जन्य मोरो भेबे से की तोमार संगे जाबे?
सेइ प्रेयसि दिबे छड़ा , अमंगल होए बोले।
दिन दुई दिनेर जोन्ने भावे, कर्ता बोले सबइ माने ,
से कर्तार देबे फेले, कालाकालेर कर्ता एले ||
(गीत का आशय) – ‘ऐ मन सोच ले, कोई किसी का नहीं है । तू इस संसार में वृथा ही मारा मारा फिरता है । मायाजाल में फँसकर दक्षिणाकाली की भूल न जाना । जिसके लिए तू इतना सोचता है, क्या वह तेरे साथ भी जाएगा ? तेरी वही प्रेयसी, जब तू मर जाएगा तब तेरी लाश से अमंगल की शंका करके घर में पानी का छिड़काव करेगी । यह सोचना कि मुझे लोग मालिक जो कहते हैं, वह सिर्फ दो ही दिन के लिए है । जब कालाकाल के मालिक आ जाते हैं तब पहले के वही मालिक शमशानघाट में फेंक दिये जाते हैं ।’
[Remember this, O mind! Nobody is your own:Vain is your wandering in this world.Trapped in the subtle snare of maya as you are,Do not forget the Mother's name.Only a day or two men honour you on earth As lord and master; all too soon.That form, so honoured now, must needs be cast away, When Death, the Master, seizes you.Even your beloved wife, for whom, while yet you live,You fret yourself almost to death,Will not go with you then; she too will say farewell,And shun your corpse as an evil thing.
[अहंकार की महाऔषधि — 'तुम से भी बड़े लोग हैं !' ]
“और धन का अहंकार भी न करना चाहिए । अगर कहो, मैं धनी हूँ । तो धनी भी एक-एक से बढ़कर हैं । सन्ध्या के बाद जब जुगुनू उड़ता है, तब वह सोचता है, इस संसार को प्रकाश मैं दे रहा हूँ । परन्तु तारे ज्यों ही उगते हैं कि उसका अहंकार चला जाता है । तब तारे सोचने लगे, हमीं लोग संसार को प्रकाश देते हैं । कुछ देर बाद चन्द्रोदय हुआ । तब तारे लज्जा से म्लान हो गये । चन्द्रदेव सोचने लगे । मेरे ही आलोक से संसार हँस रहा है, संसार को प्रकाश मैं देता हं । देखते ही देखते सूर्य उगे, चन्द्र मलिन होकर ऐसे छिपे कि फिर दीख भी न पड़े ।
{ আর টাকার অহংকার করতে নাই। যদি বল আমি ধনী, — তো ধনীর আবার তারে বাড়া তারে বাড়া আছে। সন্ধ্যার পর যখন জোনাকি পোকা উঠে, সে মনে করে, আমি এই জগৎকে আলো দিচ্ছি! কিন্তু নক্ষত্র যাই উঠল অমনি তার অভিমান চলে গেল। তখন নক্ষত্রেরা ভাবতে লাগল আমরা জগৎকে আলো দিচ্ছি! কিছু পরে চন্দ্র উঠল, তখন নক্ষত্রেরা লজ্জায় মলিন হয়ে গেল। চন্দ্র মনে করলেন আমার আলোতে জগৎ হাসছে, আমি জগৎকে আলো দিচ্ছি। দেখতে দেখতে অরুণ উদয় হল, সূর্য উঠছেন। চাঁদ মলিন হয়ে গেল, — খানিকক্ষণ পরে আর দেখাই গেল না।
"One must not be proud of one's money. If you say that you are rich, then one can remind you that there are richer men than you, and others richer still, and so on. At dusk the glow-worm comes out and thinks that it lights the world. But its pride is crushed when the stars appear in the sky. The stars feel that they give light to the earth. But when the moon rises the stars fade in shame. The moon feels that the world smiles at its light and that it lights the earth. Then the eastern horizon becomes red, and the sun rises. The moon fades and after a while is no longer seen.}
“धनी मनुष्य अगर यह सब सोचे तो धन का अहंकार न हो ।”
[“ধনীরা যদি এইগুলি ভাবে, তাহলে ধনের অহংকার হয় না।”
"If wealthy people would think that way, they would get rid of their pride in their wealth."
उत्सव के कारण मणिलाल ने खान-पान का बहुत बड़ा आयोजन किया था । उन्होंने यत्नपूर्वक श्रीरामकृष्ण और समवेत भक्तमण्डली को भोजन कराया । जब सब लोग घर लौटे, तब रात बहुत हो गयी थी, परन्तु किसी को कोई कष्ट नहीं हुआ ।
[উৎসব উপলক্ষে মণিলাল অনেক উপাদেয় খাদ্যসামগ্রীর আয়োজন করিয়াছেন। তিনি অনেক যত্ন করিয়া শ্রীরামকৃষ্ণ ও সমবেত ভক্তগণকে পরিতোষ করিয়া খাওয়াইলেন। যখন সকলে বাড়ি প্রত্যাগমন করিলেন, তখন রাত্রি অনেক, কিন্তু কাহারও কোন কষ্ট হয় নাই।
Manilal had provided a sumptuous feast in celebration of the festival. He entertained the Master and the other guests with great love and attention. It was late at night when they returned to their homes.