*परिच्छेद ११३*
बलराम तथा गिरीश के मकान में
THE MASTER AT THE HOUSES OF BALARAM AND GIRISH
Discussion about Divine Incarnation
শ্রীরামকৃষ্ণের কলিকাতায় ভক্তমন্দিরে আগমন —
(१)
भक्तों के संग में-दिव्य अवतार की चर्चा
[नरेंद्र, मास्टर, योगिन, बाबूराम, राम, भावनाथ, बलराम, चुन्नी]
ঠাকুর শ্রীরামকৃষ্ণ বলরামের বাটীতে অন্তরঙ্গসঙ্গে
शुक्रवार, वैशाख शुक्ल दशमी, २४ अप्रैल, १८८५ । श्रीरामकृष्ण आज कलकत्ता आये हुए हैं । मास्टर ने दिन के एक बजे के लगभग बलराम के बैठकखाने में जाकर देखा, श्रीरामकृष्ण निद्रा में हैं । दो-एक भक्त पास ही विश्राम कर रहे हैं । मास्टर एक पंखा लेकर धीरे धीरे हवा करने लगे, श्रीरामकृष्ण की नींद छूटी । ढीली-देह वे उठकर बैठ गये । मास्टर ने भूमिष्ठ हो उन्हें प्रणाम किया और उनकी पदधूलि ली ।
ABOUT ONE O'CLOCK in the afternoon M. arrived at Balaram's house in Calcutta and found the Master asleep in the drawing-room, one or two devotees resting near him. M. began to fan the Master gently. A few minutes later Sri Ramakrishna woke up and sat on the bed with his clothes in a rather untidy condition. M. saluted him and took the dust of his feet.
শুক্রবার (১২ই বৈশাখ, ১২৯২) বৈশাখের শুক্লা দশমী, ২৪শে এপ্রিল, ১৮৮৫ খ্রীষ্টাব্দ। ঠাকুর শ্রীরামকৃষ্ণ আজ কলিকাতায় আসিয়াছেন। মাস্টার আন্দাজ বেলা একটার সময় বলরামের বৈঠকখানায় গিয়া দেখেন, ঠাকুর নিদ্রিত। দু-একটি ভক্ত কাছে বিশ্রাম করিতেছেন।
মাস্টার একপার্শ্বে বসিয়া সেই সুপ্ত বালক-মূর্তি দেখিতেছেন। ভাবিতেছেন, কি আশ্চর্য, এই মহাপুরুষ, ইনিও প্রাকৃত লোকের ন্যায় নিদ্রায় অভিভুত হইয়া শুইয়া আছেন। ইনিও জীবের ধর্ম স্বীকার করিয়াছেন। মাস্টার আস্তে আস্তে একখানি পাখা লইয়া হাওয়া করিতেছেন। কিছুক্ষণ পরে ঠাকুর শ্রীরামকৃষ্ণের নিদ্রাভঙ্গ হইল। এলোথেলো হইয়া তিনি উঠিয়া বসিলেন। মাস্টার ভূমিষ্ঠ হইয়া তাঁহাকে প্রণাম ও তাঁহার পদধূলি গ্রহণ করিলেন।
[( 24 अप्रैल, 1885 ) श्रीरामकृष्ण वचनामृत-113 ]
🔱🙏श्री रामकृष्ण देव के गले में व्याधि की शुरुआत - अप्रैल 1885🔱🙏
(The beginning of his cancer of the throat.)
श्रीरामकृष्ण (मास्टर से, सस्नेह) - अच्छे हो ? न जाने क्यों मुझे काफी बेचैनी महसूस हो रही है - मेरे गले की गिलटी फूल गयी है,पिछली रात से दर्द होता है ।(गले के कैंसर की शुरुआत।) क्यों जी, यह कैसे अच्छी हो ? (चिन्तित होकर) आम की खट्टी तरकारी बनी थी, और भी कई चीजें बनी थीं, थोड़ी-थोड़ीसी सब चीजें मैंने खायीं । (मास्टर से) तुम्हारी स्त्री कैसी है ? उस दिन उसे देखा था, बहुत कमजोर है । कोई ठण्डी चीज थोड़ी-थोड़ी-सी दिया करो ।
MASTER (tenderly to M.): "Are you well? I'm feeling rather uneasy. I have a sore (The beginning of his cancer of the throat.) in my throat. I suffer very much during the early hours of the morning. Can you tell me how I may be cured? (In a worried tone) They served pickled mango with the meal. I ate a little of it."How is your wife? I noticed the other day that she was looking rather sickly. Give her soothing drinks to keep her nerves cool."
শ্রীরামকৃষ্ণ (মাস্টারের প্রতি সস্নেহে) — ভাল আছ? কে জানে বাপু! আমার গলায় বিচি হয়েছে। শেষ রাত্রে বড় কষ্ট হয়। কিসে ভাল হয় বাপু? (চিন্তিত হইয়া) — আমের অম্বল করেছিল, সব একটু একটু খেলুম। (মাস্টারের প্রতি) — তোমার পরিবার কেমন আছে? সেদিন কাহিল দেখলুম; ঠাণ্ডা একটু একটু দেবে।
मास्टर - जी, कच्चा नारियल दिया करूँ ?
[***मलाई वाला नारियल खाना भी दिमाग शान्त रखता है। ]
M: "Green coconut milk, sir?"
মাস্টার — আজ্ঞা, ডাব-টাব?
श्रीरामकृष्ण - हाँ, मिश्री का शरबत पिलाना अच्छा है ।
MASTER: "Yes. A drink made of sugar candy is also good."
শ্রীরামকৃষ্ণ — হাঁ, মিছরির সরবৎ খাওয়া ভাল।
मास्टर - मैं रविवार से घर चला गया ।
M: "Since last Sunday I have been living at our house with my parents.
মাস্টার — আমি রবিবার বাড়ি গিয়েছি।
श्रीरामकृष्ण - अच्छा किया । घर में रहने पर तुम्हें सुविधा है; बाप भी है, तुम्हें संसार का काम अधिक न देखना होगा ।
MASTER: "You have done well. It will be convenient for you to live at home. Since your parents live there, you won't have to worry so much about the family."
শ্রীরামকৃষ্ণ — বেশ করেছ। বাড়িতে থাকা তোমার সুবিধে। বাপ-টাপ সকলে আছে, তোমায় সংসার তত দেখতে হবে না।
बातचीत करते हुए श्रीरामकृष्ण का मुँह सूखने लगा । तब वे बालक की तरह मास्टर से पूछने लगे - 'मेरा मुँह सूख रहा है, क्या सभी का मुँह सूख रहा है ?'
While Sri Ramakrishna was talking, his mouth became dry. He said to M., like a child: "I feel a dryness in my mouth. Do you all feel that way?
কথা কহিতে কহিতে ঠাকুরের মুখ শুকাইতে লাগিল। তখন বালকের ন্যায় জিজ্ঞাসা করিতেছেন, (মাস্টারের প্রতি) — আমার মুখ শুকুচ্চে। সবাই-এর কি মুখ শুকুচ্চে?
मास्टर - योगीन**???, क्या तुम्हारा भी मुँह सूख रहा है ?
M. (to Jogin): "Is your mouth also drying up?"
মাস্টার — যোগীনবাবু, তোমার কি মুখ শুকুচ্চে?
योगीन्द्र - नहीं, इन्हें गरमी लगी होगी ।
JOGIN: "No. Perhaps it is due to the heat."
যোগীনদ্র — না; বোধ হয়, ওঁর গরম হয়েছে।
एँड़ेदा के योगीन्द्र श्रीरामकृष्ण के एक अन्तरंग त्यागी भक्त है । श्रीरामकृष्ण शिथिल भाव से बैठे हुए हैं । भक्तों में कोई कोई हँस रहे हैं ।
Jogindra of Ariadaha was an intimate disciple of Sri Ramakrishna, and later, after the passing away of the Master, renounced the world. Sri Ramakrishna's clothes were still untidy. Some of the devotees smiled.
এঁড়েদার যোগীন ঠাকুরের অন্তরঙ্গ; একজন ত্যাগী ভক্ত। ঠাকুর এলোথেলো হয়ে বসে আছেন। ভক্তেরা কেহ কেহ হাসিতেছেন।
श्रीरामकृष्ण - मैं मानो दूध पिलाने के लिए बैठा हूँ । (ऐसा प्रतीत होता है , मानो मैं माँ हूँ और अपने शिशु शिष्यों को दूध पिला रहा हूँ -सब हँसते हैं) अच्छा, मुँह सूख रहा है, मैं नासपाती या जमरूल* खाऊँ ? (*एक प्रकार का फल)
MASTER: "I look like a mother nursing her babies. (All laugh.) Well, my tongue is drying up. Shall I eat a pear or a jamrul?" (A kind of juicy fruit.)
শ্রীরামকৃষ্ণ — যেন মাই দিতে বসেছি। (সকরের হাস্য) আচ্ছা, মুখ শুকুচ্চে, তা ন্যাশপাতি খাব? কি জামরুল?
बाबूराम - हाँ वही ठीक है । मैं जमरूल ले आऊँ ?
BABURAM: "Let me get a jamrul for you."
বাবুরাম — তাই বরং আনি গে — জামরুল।
श्रीरामकृष्ण - धूप में अब न जा ।
MASTER: "You don't have to go out in this sun."
শ্রীরামকৃষ্ণ — তোর আর রৌদ্রে গিয়ে কাজ নাই।
मास्टर पंखा झल रहे थे ।
M. was still fanning the Master.
মাস্টার পাখা করিতেছিলেন।
श्रीरामकृष्ण - तुम बड़ी देर से तो –
MASTER: "You may stop now. You have been fanning a long time."
শ্রীরামকৃষ্ণ — থাক, তুমি অনেকক্ষণ —
मास्टर – जी, मुझे कोई कष्ट नहीं हो रहा है ।
M: "I am not tired, sir."
মাস্টার — আজ্ঞা, কষ্ট হচ্চে না।
श्रीरामकृष्ण (सस्नेह) - नहीं हो रहा है ।
MASTER (tenderly): "No?"
শ্রীরামকৃষ্ণ (সস্নেহে) — হচ্চে না?
मास्टर पास ही के एक स्कूल में पढ़ाते हैं । वे एक बजे पढ़ाने से जरा देर के लिए अवसर लेकर आये हैं । अब स्कूल में फिर जाने के लिए उठे । श्रीरामकृष्ण की पाद-वन्दना की । श्रीरामकृष्ण (मास्टर से) - इस समय आओगे ?
M. taught in a school in the neighbourhood. He had a little recess at one o'clock, during which he visited Sri Ramakrishna. It was time for him to go back to the school. He saluted the Master. MASTER (to M.): "Must you go now?"
মাস্টার নিকটবর্তী একটি স্কুলে অধ্যাপনা কার্য করেন। তিনি একটার সময় পড়ান হইতে কিঞ্চিৎ অবসর পাইয়া আসিয়াছিলেন। এইবার স্কুলে আবার যাইবার জন্য গাত্রোত্থান করিলেন ও ঠাকুরের পাদবন্দনা করিলেন। শ্রীরামকৃষ্ণ (মাস্টারের প্রতি) — এক্ষণই যাবে?
एक भक्त - स्कूल की छुट्टी अभी नहीं हुई । ये बीच में ही चले आये थे ।
A DEVOTEE: "School is not over yet. He came here during recess."
একজন ভক্ত — স্কুলে এখনও ছুটি হয় নাই। উনি মাঝে একবার এসেছিলেন।
श्रीरामकृष्ण (हँसते हुए) - जैसे गृहिणी, - सात-आठ बच्चे पैदा कर चुकी - संसार में रातदिन काम करना पड़ता है, - परन्तु उसी समय के भीतर एक-एक बार आकर पति की सेवा कर जाती है । (सब हँसते हैं)
MASTER (smiling): "He is like a mother with seven or eight children. Day and night she is busy with her worldly duties. But now and then she makes time to serve her husband."
(२)
[( 24 अप्रैल, 1885 ) श्रीरामकृष्ण वचनामृत-113 ]
*श्री बलराम बसु के मकान पर अन्तरंग लीलापार्षदों के साथ*
🔱🙏'परमहंस-फौज'🔱🙏
Paramahamsa's battalion!
चार बज जाने पर स्कूल की छुट्टी हो गयी । बलराम बाबू के बाहरवाले कमरे में मास्टर ने आकर देखा, श्रीरामकृष्ण प्रसन्नतापूर्वक बैठे हैं । समाचार पाकर भक्त-मण्डली धीरे धीरे एकत्रित हो रही है । छोटे नरेन्द्र और राम आ गये हैं । नरेन्द्र आये हैं । मास्टर ने प्रणाम कर आसन ग्रहण किया । कमरे के भीतर से बलराम ने थाली में सोहन हलुआ भेज दिया है, इसलिए कि श्रीरामकृष्ण के गले में गिलटी पड़ गयी है, वे कड़ा भोजन न कर सकेंगे ।
M.'s school closed at four o'clock. He came back to Balaram's house and found the Master sitting in the drawing-room. The devotees were arriving one by one. The younger Naren arid Ram came. Narendra, too, was there. M. saluted the Master and took a seat. The ladies sent a plate of halua for Sri Ramakrishna. Because of the sore in his throat he could not eat any hard food.
চারটের ওর স্কুলের ছুটি হইল, মাস্টার বলরামবাবুর বাহিরের ঘরে আসিয়া দেখেন, ঠাকুর সহাস্যবদন, বসিয়া আছেন। সংবাদ পাইয়া একে একে ভক্তগণ আসিয়া জুটিতেছেন। ছোট নরেন ও রাম আসিয়াছেন। নরেন্দ্র আসিয়াছেন। মাস্টার প্রণাম করিয়া আসন গ্রহণ করিলেন। বাটীর ভিতর হইতে বলরাম থালায় করিয়া ঠাকুরের জন্য মোহনভোগ পাঠাইয়াছেন, কেন না, ঠাকুরের গলায় বিচি হইয়াছে।
श्रीरामकृष्ण (सोहन हलुआ देखकर, नरेन्द्र से) - अरे माल आया है - माल-माल ! खा खा ! (सब हँसते हैं)
MASTER (to Narendra): "Ah! This is nice stuff! Eat some! It is good! Eat some!" (All laugh.)
শ্রীরামকৃষ্ণ (মোহনভোগ দেখিয়া, নরেন্দ্রের প্রতি) — ওরে মাল এতেছে! মাল! মাল! খা! খা! (সকলের হাস্য)
दिन ढलने लगा । श्रीरामकृष्ण गिरीश के घर जायेंगे । वहाँ आज उत्सव है । श्रीरामकृष्ण बलराम के दुमँजले के कमरे से उतर रहे हैं । साथ मास्टर हैं, पीछे और भी दो एक भक्त हैं । ड्योढ़ी के पास आकर उन्होंने एक उत्तर प्रदेश के भिक्षुक को गाते हुए देखा । रामनाम सुनकर श्रीरामकृष्ण खड़े हो गये, देखते ही देखते मन अन्तर्मुख होने लगा । इसी भाव में कुछ देर खड़े रहे । मास्टर से कहा, इसका स्वर बड़ा अच्छा है । एक भक्त ने भिक्षुक को चार पैसे दिये ।
Dusk was coming on. Sri Ramakrishna was about to go to the house of Girish, who had arranged a festival to celebrate the Master's coming. The Master came down from the second floor of Balaram's house with M. and a few other devotees. Near the gate he saw a beggar chanting the name of Rama, and he stood still. He fell into a meditative mood and remained standing a few minutes. He said to M., "He sings well." A devotee gave the beggar four pice.
ক্রমে বেলা পড়িতে লাগিল। ঠাকুর গিরিশের বাড়ি যাইবেন, সেখানে আজ উৎসব। ঠাকুরকে লইয়া গিরিশ উৎসব করিবেন। ঠাকুর বলরামের দ্বিতল ঘর হইতে নামিতেছেন। সঙ্গে মাস্টার পশ্চাতে আরও দু-একটি ভক্ত। দেউড়ির কাছে আসিয়া দেখেন, একটি হিন্দুস্থানী ভিখারী গান গাহিতেছে। রামনাম শুনিয়া ঠাকুর দাঁড়াইলেন। দক্ষিণাস্য। দেখিতে দেখিতে মন অন্তর্মুখ হইতেছে। এইরূপভাবে খানিকক্ষণ দাঁড়াইয়া রহিলেন; মাস্টার বলিলেন, “বেশ সুর।” একজন ভক্ত ভিক্ষুককে চারিটি পয়সা দিলেন।
रामकृष्ण बोसपाड़ा की गली में घुसे । हँसते हुए मास्टर से पूछा, "क्यों जी, क्या कहता है ? - 'परमहंस-फौज' आ रही है ? साले कहते क्या हैं !"
Sri Ramakrishna entered Bosepara Lane. Laughing, he said to M.: "What are these people saying? 'There comes Paramahamsa's battalion!' What these fools say!" (All laugh.)
ঠাকুর বোসপাড়ার গলিতে প্রবেশ করিয়াছেন। হাসিতে হাসিতে মাস্টারকে বললেন, “হ্যাঁগা, কি বলে? ‘পরমহংসের ফৌজ আসছে’? শালারা বলে কি।”
(३)
[( 24 अप्रैल, 1885 ) श्रीरामकृष्ण वचनामृत-113 ]
🔱🙏अवतार तथा सिद्ध-पुरुष में अन्तर पर महिमा एवं गिरीश की अनुभूति 🔱🙏
[অবতার ও সিদ্ধ-পুরুষের প্রভেদ — মহিমা ও গিরিশের বিচার]
[Difference between Avatar and Siddha-Purusha
— perception of Mahima and Girish.]
श्रीरामकृष्ण गिरीश के घर पधारे । गिरीश ने और भी बहुत से भक्तों को उस उत्सव में बुलाया था। बहुत से लोग आये थे । श्रीरामकृष्ण जब आये तो सब लोगों ने उठकर उनका स्वागत किया । मुसकराते हुए उन्होंने अपना आसन ग्रहण किया । भक्त लोग उनको घेरकर बैठ गये । गिरीश, महिमाचरण, राम, भवनाथ, बाबूराम, नरेन्द्र, योगेन, छोटे नरेन्द्र, चुनी, बलराम, मास्टर तथा अन्य भक्तगण श्रीरामकृष्ण के साथ बलराम के ही मकान से आये थे ।
Sri Ramakrishna entered Girish's house. The latter had invited a large number of devotees to join the festival. Many of them were present. They all stood up to receive the Master, who, smiling, took his seat. The devotees sat around him. Among them were Girish, Mahimacharan, Ram, and Bhavanath, and also Baburam, Narendra, Jogin, the younger Naren, Chuni, Balaram, M., and the other devotees who had accompanied the Master from Balaram's house.
ভক্তসঙ্গে ঠাকুর গিরিরশের বাহিরের ঘরে প্রবেশ করিলেন। গিরিশ অনেকগুলি ভক্তকে নিমন্ত্রণ করিয়াছিলেন। তাঁহারা অনেকেই সমবেত হইয়াছেন। ঠাকুর আসিয়াছেন শুনিয়া সকলে দণ্ডায়মান হইয়া রহিলেন। ঠাকুর সহাস্যবদনে আসন গ্রহণ করিলেন। ভক্তেরাও সকলে বসিলেন। গিরিশ, মহিমাচরণ, রাম, ভবনাথ ইত্যাদি অনেক ভক্ত বসিয়াছিলেন। এ ছাড়া ঠাকুরের সঙ্গে অনেকে আসিলেন, বাবুরাম, যোগীন, দুই নরেন্দ্র, চুনি, বলরাম ইত্যাদি।
श्रीरामकृष्ण (महिम से) - मैंने गिरीश से तुम्हारे बारे में बातचीत की थी, 'वह बहुत गहरा है, तुम सिर्फ घुटने तक हो ।' अच्छा, देखें तो भला जो मैंने कहा वह ठीक है या नहीं । मैं चाहता हूँ कि तुम दोनों में बहस हो । पर देखो, आपस में समझौता न कर लेना ! (सब हँसते हैं).
MASTER (to Mahimacharan): "I said. to Girish about you, 'There is one — very deep. You are only knee-deep.' Now you must help me check up on what I said. I want to see you two argue. But don't compromise." (All laugh.)
শ্রীরামকৃষ্ণ (মহিমাচরণের প্রতি) — গিরিশ ঘোষকে বললুম, তোমার নাম করে, ‘একজন লোক আছে — গভীর, তোমার এক হাঁটু জল।’ তা এখন যা বলেছি মিলিয়ে দাও দেখি। তোমরা দুজনে বিচার করো, কিন্তু রফা করো না। (সকলের হাস্য)
गिरीश और महिमाचरण में वाद-विवाद होने लगा । थोड़ी देर में राम ने कहा, "अब काफी हो गया। आइये, अब हम लोगों का कीर्तन हो ।"
Girish and Mahimacharan started their discussion. Soon Ram said: "Let them stop. Let us have some kirtan."
মহিমাচরণ ও গিরিশের বিচার হইতে লাগিল। একটু আরম্ভ হইতে না হইতে রাম বলিলেন, “ও-সব থাক — কীর্তন হোক।”
[( 24 अप्रैल, 1885 ) श्रीरामकृष्ण वचनामृत-113 ]
🔱🙏कौन पहले आया, मुर्गी या अंडा?🔱🙏
Which came first the chicken or the egg?
प्रकृति (जड़) बनूँ या प्रकृति का पालनहार (आत्मा) बनूँ -यही सवाल है।
"नेता दोनों प्रकार के होते हैं - वे जन्मजात भी पैदा होते हैं और बनते भी हैं।"
Nature versus Nurture?
🔱🙏महिमाचरण चक्रवर्ती का मत-`नेता बनाये जाते हैं !'🔱🙏
"होना या न होना, यही सवाल है।"
"To be, or not to be, that is the question."
श्रीरामकृष्ण (राम से) - नहीं नहीं, इस वाद-विवाद में बड़ा अर्थ है । ये लोग इंग्लिशमैन हैं । मैं सुनना चाहता हूँ कि ये क्या कहते हैं ।
MASTER (to Ram): "No, no! This has a great deal of meaning. They are 'Englishmen'. I want to hear what they say."
শ্রীরামকৃষ্ণ (রামের প্রতি) — না, না; এর অনেক মানে আছে। এরা ইংলিশম্যান, এরা কি বলে দেখি।
महिमाचरण कहते थे कि साधना के द्वारा प्रत्येक व्यक्ति श्रीकृष्ण हो सकता है । पर गिरीश कहते थे कि श्रीकृष्ण ईश्वर के अवतार थे और कोई मनुष्य चाहे कितनी भी साधना करे वह कभी अवतार नहीं हो सकता ।
[Mahimacharan contended that all could become Krishna by means of sadhana. Girish said that Sri Krishna was an Incarnation of God. However much a man practised sadhana, he could never be an Incarnation.
মহিমাচরণের মত — সকলেই শ্রীকৃষ্ণ হতে পারে, সাধন করিতে পারিলেই হইল। গিরিশের মত — শ্রীকৃষ্ণ অবতার, মানুষ হাজার সাধন করুক, অবতারের মতো হইতে পারিবে না।
महिम - तुम समझे, मैं क्या कहता हूँ ? मैं उदाहरण देकर तुम्हें समझाता हूँ । एक बेल का वृक्ष आम का वृक्ष बन सकता है, केवल यदि उसमें कुछ बाधाएँ हटा दी जायँ । और यह योगाभ्यास द्वारा सम्भव है ।
MAHIMA: "Do you know what I mean? Let me give an illustration. The bel-tree can become a mango-tree if only the obstructions are removed. It can be done by the practice of yoga."
মহিমাচরণ — কিরকম জানেন? যেমন বেলগাছটা আমগাছ হতে পারে প্রতিবন্ধক পথ থেকে গেলেই হল। যোগের প্রক্রিয়া দ্বারা প্রতিবন্ধক চলে যায়।
[( 24 अप्रैल, 1885 ) श्रीरामकृष्ण वचनामृत-113 ]
🔱🙏गिरीश का मत नेता जन्मजात पैदा होते हैं🔱🙏
गिरीश - तुम चाहे जो कुछ कहो, परन्तु ऐसा न तो योग द्वारा हो सकता है और न किसी और ही तरह से । केवल भगवान श्रीकृष्ण ही कृष्ण हो सकते हैं । यदि किसी व्यक्ति में किसी दूसरे व्यक्ति के समस्त भाव हैं, उदाहरणार्थ श्रीराधा के, तो वह व्यक्ति श्रीराधा के सिवाय और कोई हो ही नहीं सकता । वह स्वयं श्रीराधा ही है । इसी प्रकार यदि किसी व्यक्ति में मैं श्रीकृष्ण के समस्त भाव देखूँ तो मैं यही निष्कर्ष निकालूँगा कि मैं साक्षात् श्रीकृष्ण ही को देख रहा हूँ ।
GIRISH: "You may say whatever you like, but it cannot be done either by the practice of yoga or by anything else. Only a Krishna can become Krishna. If anybody has all the attributes of another person, Radha for instance, then he is none other than that person — Radha herself. If I see in a person all the attributes of Krishna, then I shall conclude that I am seeing Krishna Himself."
গিরিশ — তা মশাই যাই বলুন, যোগের প্রক্রিয়াই বলুন আর যাই বলুন, সেটি হতে পারে না। কৃষ্ণই কৃষ্ণ হতে পারেন। যদি সেই সব ভাব, মনে করুন রাধার ভাব কারু ভিতরে থাকে, তবে সে ব্যক্তি সেই-ই; অর্থাৎ সে ব্যক্তি রাধা স্বয়ং। শ্রীকৃষ্ণের সমস্ত ভাব যদি কারু ভিতর দেখতে পাই, তখন বুঝতে হবে, শ্রীকৃষ্ণকেই দেখছি।
इसके बाद महिमाचरण बहस में कुछ ढीले पड़ गये और अन्त में उन्हें गिरीश का ही मत मान लेना पड़ा ।
Mahimacharan could not argue well. At last he had to accept Girish's views.
মহিমাচরণ বিচার বেশিদূর লইয়া যাইতে পারিলেন না। অবশেষে এক-রকম গিরিশের কথায় সায় দিলেন।
[( 24 अप्रैल, 1885 ) श्रीरामकृष्ण वचनामृत-113 ]
🔱🙏ठाकुर का मत सत्य के दो प्रकार हैं, इसीलिये दोनों मत भी ठीक हैं🔱🙏
महिम (गिरीश से) - हाँ, दोनों मत ठीक हैं । ईश्वर ने ज्ञान-मार्ग बनाया है और भक्ति-मार्ग भी । (श्रीरामकृष्ण की ओर संकेत करके) जैसा आप कहते हैं भिन भिन्न पन्थों से अन्त में सब मनुष्य एक ही ध्येय को पहुँच जाते हैं ।
MAHIMA (to Girish): "Yes, sir, both views are right. God has willed the path of knowledge. He has also willed the path of bhakti. (Pointing to Sri Ramakrishna) As he says, by different paths people ultimately reach one and the same goal."
মহিমাচরণ (গিরিশের প্রতি) — হাঁ মহাশয়, দুই-ই সত্য। জ্ঞানপথ সেও তাঁর ইচ্ছা; আবার প্রেমভক্তি, তাঁর ইচ্ছা। ইনি যেমন বলেন, ভিন্ন পথ দিয়ে এক জায়গাতেই পৌঁছানো যায়।
श्रीरामकृष्ण (महिम के प्रति) - देखा तुमने ? जो मैंने कहा था वही ठीक निकला ।
MASTER (aside to Mahima): "You see, what I said was right, wasn't it?"
শ্রীরামকৃষ্ণ (মহিমার প্রতি একান্তে) — কেমন, ঠিক বলছি না?
महिम - हाँ महाराज ! जैसा आप कहते हैं, दोनों मार्ग ठीक हैं ।
MAHIMA: "Yes, sir. As you say, both paths are right."
মহিমা — আজ্ঞা, যা বলেছেন। দুই-ই সত্য।
श्रीरामकृष्ण - (गिरीश की ओर संकेत करके) - तुमने देखा नहीं इसका विश्वास कितना गहरा है ? वह अपना जलपान करना भी भूल गया । यदि तुम उसका मत स्वीकार न करते तो कुत्ते की तरह वह तुम्हारा गला फाड़ डालता । लेकिन खैर, हम लोगों को इस वाद-विवाद में आनन्द आ गया । तुम लोगों ने भी एक दूसरे को जान लिया है और मुझे भी कई बातें मालूम हो गयीं ।
MASTER (pointing to Girish): "Haven't you noticed how deep his faith is? He forgot to eat his refreshments. Like a dog, he would have torn your throat if you hadn't accepted his view. But we have enjoyed the discussion. You two have known each other and I myself have learnt many things."
শ্রীরামকৃষ্ণ — আপনি দেখলে, ওর (গিরিশের) কি বিশ্বাস! জল খেতে ভুলে গেল। আপনি যদি না মানতে, তাহলে টুঁটু ছিঁড়ে খেত, যেমন কুকুরে মাংস খায়। তা বেশ হল। দুজনের পরিচয় হল, আর আমারও অনেকটা জানা হল।
*(४)
भगवान श्रीरामकृष्ण कीर्तनानन्द में
इतने में गवैये लोग आ पहुँचे और वे लोग कमरे के बीच में बैठ गये । प्रमुख गवैया श्रीरामकृष्ण की ओर देख रहा था कि वे उससे कीर्तन करने का संकेत करें । श्रीरामकृष्ण ने उसे आज्ञा दे दी ।
The musician arrived with his party and sat in the middle of the room. He was waiting for a sign from Sri Ramakrishna to begin the kirtan. The Master gave his permission.
কীর্তনিয়া দলবলের সহিত উপস্থিত। ঘরের মাঝখানে বসিয়া আছে। ঠাকুরের ইঙ্গিত হইলেই কীর্তন আরম্ভ হয়। ঠাকুর অনুমতি দিলেন।
राम (श्रीरामकृष्ण से) – कृपया उन्हें बता दीजिये कि वे क्या गावें ।
RAM (to the Master): "Please tell them what to sing."
রাম (শ্রীরামকৃষ্ণের প্রতি) — আপনি বলুন এরা কি গাইবে?
श्रीरामकृष्ण - मैं क्या बताऊँ ? (कुछ सोचकर) अच्छा, उनसे कहो कि मंगलाचरण (prelude) के रूप में-'श्रीराधाकृष्ण-मिलन' गीत गावें ।
MASTER: "What shall I suggest? (After a little reflection) Well, let them sing the prelude to the union of Radha and Krishna."
শ্রীরামকৃষ্ণ — আমি কি বলব? — (একটু চিন্তা করিয়া) আচ্ছা, অনুরাগ।
কীর্তনিয়া পূর্বরাগ গাইতেছেন:
আরে মোর গোরা দ্বিজমণি।
রাধা রাধা বলি কান্দে, লোটায় ধরণী ॥
রাধানাম জপে গোরা পরম যতনে।
সুরধুনী ধারা বহে অরুণ নয়নে ॥
ক্ষণে ক্ষণে গোরা অক্ষগ ভূমে গড়ি যায়।
রাধানাম বলি ক্ষণে ক্ষণে মুরছায় ॥
পুলকে পুরল তনু গদ গদ বোল।
বাসু কহে গোরা কেন এত উতরোল ॥
गवैये ने गाना शुरू किया ।
आरे मोर गोरा द्विजमणि।
राधा राधा बोली कांदे, लोटाय धरणी।।
राधा नाम जपे गोरा परम् जतने।
सुरधुनी धारा बहे अरुण नयने।।
राधा नाम जपे गोरा परम् जतने।
सुरधुनी धारा बहे अरुण नयने।।
क्षणे क्षणे गोरा अक्षग भूमे गड़ी जाय।
राधानाम बोलि क्षणे क्षणे मुरछाये।।
पुलके पुरलो तनु गद गद बोल।
बासु कोहे गोरा केनो एतो उतरोल।।
"मेरा गोरा (गौरांग, श्री चैतन्य महाप्रभु), मेरा सर्वस्व जो मनुष्यों में रत्न है, श्रीराधा का नाम उच्चारण करते ही रोने लगता है, जमीन पर लोटने लगता है - असीम प्रेम से युक्त हो पुनः पुनः उन्हीं का नाम जपता है । उसकी प्रेमपूर्ण आँखों से आँसुओं की धारा बह चलती है । वह जमीन पर फिर लोटने लगता है । और उनका नाम उच्चारण करते करते बेहोश हो जाता है । उसे रोमांच हो जाता है । उसके मुँह से केवल एक ही शब्द निकलता है । वसु कहते हैं, गौरांग इतने व्याकुल क्यों है ?"
The musician sang:
My Gora, my treasure, the jewel among men, Weeps as he chants Sri Radha's name, And rolls on the ground; with fervent love, He chants her name again and again. The tears stream from his love-filled eyes;Once more he rolls upon the ground, As chanting her name he faints away. The hair on his body stands on end; His tongue can lisp but a single word. Says Basu: (The author of the song.) Why is Gora so restless?
কীর্তন চলিতে লাগিল। যমুনাতটে প্রথম কৃষ্ণদর্শন অবধি শ্রীমতীর অবস্থা সখীগণ বলিতেছেন:
ঘরের বাহিরে দণ্ডে শতবার, তিলে তিলে আইসে যায়।
মন উচাটন নিঃশ্বাস সঘন, কদম্ব কাননে চায় ॥
(রাই এমন কেনে বা হৈল)।
গুরু দুরু জন, ভয় নাহি মন, কোথা বা কি দেব পাইল ॥
সদাই চঞ্চল, বসন অঞ্চল, সম্বরণ নাহি করে।
বসি বসি থাকি, উঠয়ে চমকি, ভূষণ খসিয়া পড়ে ॥
বয়সে কিশোরী রাজার কুমারী, তাহে কুলবধূ বালা।
কিবা অভিলাষে, আছয়ে লালসে, না বুঝি তাহার ছলা ॥
তাহার চরিতে, হেন বুঝি চিতে, হাত বাড়াইল চান্দে।
চণ্ডীদাস কয়, করি অনুনয়, ঠেকেছে কালিয়া ফান্দে ॥
[( 24 अप्रैल, 1885 ) श्रीरामकृष्ण वचनामृत-113 ]
🔱🙏चण्डीदास कोय , कोरी अनुनय , ठेकेछे कालिया फ़ांदे🔱🙏
[चण्डीदास कहते हैं, राधा, कृष्ण के जाल में फँस गयी हैं ।]
कीर्तन जारी रहा ।
श्रीमती (राधा) ने यमुना के तट पर कदम्ब के नीचे जब पहली बार श्रीकृष्ण का दर्शन किया था, उनकी सखियाँ अब राधा की मानसिक और शारीरिक अवस्था का वर्णन कर रही हैं-
घरेर बाहिरे दण्डे शतबार , तिले तिले आइसे जाय।
मन उचाटन निःश्वास सघन , कदम्ब कानने चाय।।
(राई एमन केनो बा होईलो। )
गुरु दुरु जन, भय नाही मन, कोथा बा कि देबो पाईल।
सदाई चंचल , बसन अंचल , संवरण नाही कोरे।
बसि बसि थाकि , उठये चमकी , भूषण खसिया पड़े।।
बयसे किशोरी राजार कुमारी , ताहे कुलबधू बाला।
किबा अभिलाषे , आछ्ये लालसे , ना बुझी ताहार छला।।
ताहार चरिते , हेन बुझी चिते , हात बाड़ाईलो चांदे।
चण्डीदास कोय , कोरी अनुनय , ठेकेछे कालिया फ़ांदे।।
"वह हर घंटे सौ बार कमरे के भीतर और बाहर जाती है; कैसी बेचैन हैं, लम्बी लम्बी साँसें भरती हैं और वही एकटक कदम्ब की ओर दृष्टि लगी है । शंका उत्पन्न होती है क्या वे अपने बड़े-बूढ़ों के डर से भयभीत है अथवा उन पर कोई भूत सवार हो गया है - कैसी व्याकुल हैं वे ! अपने वस्त्रों का भी ध्यान नहीं है । उनके आभूषण इधर-उधर गिर गये हैं । शरीर कम्पायमान हो रहा है और खेद तो यह है कि अभी वे इतनी अल्प-वयस्क हैं । ये एक राजकुमारी रही हैं और किसी की पत्नी भी हैं, ऐसा क्या है जिसके लिए ये लालायित हैं । उनके मन में क्या है ?- हमें कुछ समझ नहीं आता । हमें तो इतना ही प्रतीत होता है कि वे चन्द्रमा को पकड़ने के लिए हाथ बढ़ा रही हैं । चण्डीदास कहते हैं, राधा, कृष्ण के जाल में फँस गयी हैं ।"
The kirtan continued.
(Radha had met Krishna on the bank of the Jamuna under the kadamba tree. Her companions describe her physical and mental condition:
A hundred times each hour, in and out of the room she goes; Restless, breathing hard, she looks toward the kadamba grove. Is she afraid of the elders? Has she been possessed by a ghost? Filled with restlessness, she cannot keep her dress arranged; Her jewels have fallen off; she trembles every now and then.Alas, she is so young! A princess born, and a wife besides! What is it that she craves? We do not understand her mind; But we can guess her hand is reaching out to catch the moon. Humbly says Chandidas: (The author of the song.) Radha has fallen in Krishna's trap.
কীর্তন চলিতে লাগিল — শ্রীমতীকে সখীগণ বলিতেছেন:
কহ কহ সুবদনী রাধে! কি তোর হইল বিরোধে ॥
কেন তোরে আনমন দেখি। কাহে নখে ক্ষিতি তলে লিখি ॥
হেমকান্তি ঝামর হৈল। রাঙ্গাবাস খসিয়া পড়িল ॥
আঁখিযুগ অরুণ হইল। মুখপদ্ম শুকাইয়া গেল ॥
এমন হইল কি লাগিয়া। না কহিলে ফাটি যায় হিয়া ॥
এত শুনি কহে ধনি রাই। শ্রীযদুনন্দন মুখ চাই ॥
कीर्तन जारी है ।
राधा की सखियाँ उनसे कह रही हैं –
कोहो कोहो सुबदनी राधे ! कि तोर होईलो बिरोधे।।
केनो तोरे आनमन देखि। काहे नोथे क्षिति तले लिखि।।
हेमकान्ति झामर हेलो। रांगाबास खोसिया पौड़ीलो।।
आँखियुग अरुण होईलो। मुखपद्म शुकाइया गेलो।।
एमन होईलो कि लागिया। ना कोहिले फाटि जाय हिया।।
एतो शुनि कोहे धनि राई। श्रीयदुनन्दन मुख चाई।।
"ऐ सुकुमारि चन्द्रवदनि राधा, हमें यह तो बताओ तुम्हें कौनसी व्यथा है ? तुम्हारा मन क्यों और कहाँ घूम रहा है ? तुम जमीन क्यों कुरेद रही हो ? हमें बताओ तो सही तुम्हारा यह सुकुमार फूल-सा मुखड़ा क्यों कुम्हला गया है ? उसकी कान्ति क्यों फीकी पड़ गयी है ? उसमें साँवलापन कैसे आ गया है ? तुम्हारी लाल चुँदरी भी जमीन पर गिर पड़ी है । सखि राधा, देखो तो, तुम्हारी आँखें रोते रोते लाल हो गयी हैं । तुम्हारा कमल सा मुखड़ा कुम्हला गया है । बताओ तो सही, तुम्हें कौनसा दर्द है और देखो तो, हमारे हृदय भी तो दुःख से विदीर्ण हुए जा रहे हैं ।" राधा अपनी सखियों से कहती हैं – ‘मैं कृष्ण का मुखड़ा देखने के लिए छटपटा रही हूँ ।’
কীর্তনিয়া আবার গাইল — শ্রীমতী বংশীধ্বনি শুনিয়া পাগলের ন্যায় হইয়াছেন। সখীগণের প্রতি শ্রীমতীর উক্তি:
কদম্বের বনে, থাকে কোন্ জনে, কেমন শবদ্ আসি।
এক আচম্বিতে, শ্রবণের পথে, মরমে রহল পশি ॥
সান্ধায়ে মরমে, ঘুচায়া ধরমে, করিল পাগলি পারা।
চিত স্থির নহে, শোয়াস বারহে, নয়নে বহয়ে ধারা ॥
কি জানি কেমন, সেই কোন জন, এমন শবদ্ করে।
না দেখি তাহারে, হৃদয় বিদরে, রহিতে না পারি ঘরে ॥
পরাণ না ধরে, কন কন করে, রহে দরশন আশে।
যবহুঁ দেখিবে, পরাণ পাইবে, কহয়ে উদ্ধব দাসে ॥
[( 24 अप्रैल, 1885 ) श्रीरामकृष्ण वचनामृत-113 ]
🔱🙏श्री कृष्ण का दर्शन होते ही राधा का अहं मिट जायेगा🔱🙏
गवैये ने फिर गाया । - बांसुरी की आवाज सुनकर श्रीमति पागल जैसी हो गईं। सखियों के प्रति राधा जी उत्तर देते हुए कहती हैं -
कदम्बेर बने , थाके कोन जने , केमन शबद आसि।
एक आचंबिते, श्रवणेर पथे, मरमे रहल पशि।।
सान्धाये मरमे , घुचाया धरमे , कोरिलो पागली पारा।
चित स्थिर नोहे , शोयास बारहे, नोयने बहये धारा।।
की जानि केमोन , सेई कोन जन, एमन शबद कोरे।
ना देखि ताहारे , हृदय बिदरे , रहिते ना पारी घरे।।
पराण ना धरे , कन कन कोरे , रोहे दर्शन आशे।
जोबेई देखिबो , परान पाईबो , कोहये उद्धव दासे।।
"कृष्ण की बाँसुरी सुनते ही राधा बावली हो गयी थीं । वे अपनी सखियों से कहती हैं, 'वह कौन जादूगर है जो उस कदम्बकुंज में रहता है । उसकी बन्सी की ध्वनि एकाएक मेरे कान में पड़ती है और हृद्-तन्त्री को झंकार देती है, मेरी आत्मा को मानो भेद जाती है । मेरा धर्म न जाने कहाँ भूल जाता है और मैं बावली हो जाती हूँ । इस व्यथित मन और तृषित आँखों से मुझे साँस भी तो लेते नहीं बनती । कैसा जादू है उसकी बंसरी में, जिसकी ध्वनि मेरी आत्मा तक को हिला देती है । वह मेरी दृष्टि के बाहर है इससे मेरा हृदय बैठा जाता है । मैं घर पर कैसे ठहर सकती हूँ ? मेरी आत्मा उसके लिए छटपटा रही है, कितना दर्द होता है ! उसकी एक झलक - बस एक झलक पाने के लिए मैं छटपटा रही हूँ ।' उद्धव कहते हैं, 'पर राधा, जानती हो, उसे एक बार देख लेने पर फिर तुम क्या जीवित रह सकती हो ?’"
The Kirtan went on. Radha's friends say to her. Tell us, O Radha of comely face! Tell us what it is that ails you. Why has your mind wandered away? Why do you claw the earth in frenzy? Tell us why your golden skin has taken the ashy hue of cinders. From your body the scarlet cloth has dropped unheeded to the ground; Ah! Your eyes are red with tears; your lovely lotus face has withered. Tell us what it is that ails you, lest our hearts should break with grief. Radha says to her friends: I long for the sight of Krishna's face. The musician sang again. Hearing Krishna's flute, Radha has gone mad. She says to her friends: Who is the Sorcerer that dwells in the kadamba grove? His flute-notes suddenly enter my ears and strike a chord in my heart; Piercing my very soul, they slay my dharma and drive me mad. With restless mind and streaming eyes, alas! I can scarcely breathe: How He plays His magic flute, whose music thrills my soul! Because He is out of my sight, my heart expires; I cannot stay home. My soul yearns for Him; racked with pain, it longs to see Him once more. Says Uddhava Das: But you will die, O Radha, when you behold Him!
গান চলিতে লাগিল। শ্রীমতীর কৃষ্ণদর্শন জন্য প্রাণ ব্যাকুল হইয়াছে। শ্রীমতী বলিতেছেন:
পহিলে শুনিনু, অপরূপ ধ্বনি, কদম্ব কানন হৈতে। তারপর দিনে, ভাটের বর্ণনে, শুনি চমকিত চিতে ॥
আর একদিন, মোর প্রাণ-সখী কহিলে যাহার নাম,
(আহা সকল মাধুর্যময় কৃষ্ণ নাম)।
গুণিগণ গানে, শুনিনু শ্রবণে, তাহার এ গুণগ্রাম ॥
সহজে অবলা, তাহে কুলবালা, গুরুজন জ্বালা ঘরে।
সে হেন নাগরে, আরতি বাঢ়য়ে, কেমনে পরাণ ধরে।
ভাবিয়া চিন্তিয়া, মনে দঢ়াইনু, পরাণ বহিবার নয়।
কহত উপায় কৈছে মিলয়ে, দাস উদ্ধবে কয় ॥
गवैया गाता रहा, राधा का हृदय कृष्ण की एक झलक के लिए व्याकुल है । वे अपनी सखियों से कहती हैं -
पहिले शुनिनू, अपरूप ध्वनि , कदम्ब कानन हेते।
तारपोर दिने , भाटेर वर्णने, शुनि चमकित चिते।।
आर एकदिन , मोर प्राण-सखी कोहिलो जाहार नाम ,
(आहा सकल माधुर्यमय कृष्ण नाम। )
गुणिगण गाने , शुनिनु श्रवणे , ताहार ए गुनग्राम।।
सहजे अबला , ताहे कुलबाला , गुरुजन ज्वाला घरे।
से हेन नागरे , आरती बाढ़ये , केमने प्राण धरे।
भाविया चिन्तिया, मने दढाईनु, प्राण बहिबार नोय।
कहत उपाय केछे मिलये , दास उद्धवे कोय।।
"पहली बार मैंने उनकी बंसरी की ध्वनि कदम्ब-कुंज से आती हुई सुनी और दूसरे दिन राजगवैये ने भी आकर उनका सन्देशा दिया - मेरी आत्मा तो मचल उठी । दूसरे दिन, ऐ मेरी प्यारी सखि, तुमने उनका दिव्य नाम हमारे सामने लिया । आह ! कैसा मधुर, कैसा मीठा, कैसा सरस है वह पुण्यनाम - कृष्ण । कितने ही विद्वान् लोगों ने भी मुझसे उनके अगणित गुणों का वर्णन किया, पर हाय, मैं क्या करूँ ! मैं एक सीधी-सादी बालिका हूँ, और फिर घर में बड़े-बूढ़े भी तो हैं । मैं क्या करूँ, उन मेरे प्राणसर्वस्व के लिए मेरा प्रेम बढ़ता जा रहा है । उनके बिना मैं एक क्षण भी कैसे रह सकती हूँ ! लेकिन इतने समय के बाद क्या मुझे अब यही दिखेगा कि उनको बिना देखे ही मुझे मर जाना होगा – ये दुखिया अँखियाँ अधखुली रह जायेंगी, ऐ सखि, कोई ऐसा उपाय तो बताओ जिससे मैं एक बार तो उन्हें देख लूँ । एक ही बार सही ।’"
The music continued. Radha's heart yearns for the vision of Krishna. She says to her friends: First I heard His magic flute from the kadamba grove, And the next day the minstrel told me of Him and thrilled my soul; Another day, O friend of my heart, you chanted His blessed name.(Ah, the blessed name of Krishna, full of honeyed sweetness!)The wise men, too, described to me His virtues without number. I am a weak and simple girl, and stern, alas! are my elders; My love for my Beloved grows; how can I live any longer? After reflecting long, I find that I must die at last: Can you not tell me a way, O friend, by which I may meet my Krishna?
श्रीरामकृष्ण ने जैसे ही यह वाक्य सुना - "आह ! कैसा मधुर, कैसा मीठा, कैसा सरस है वह पुण्यनाम - कृष्ण" वे अधिक बैठे नहीं रह सके । वे खड़े हो गये और बाह्यशून्य हो उन्हें गहरी समाधि लग गयी । छोटे नरेन्द्र उनकी दाहिनी ओर खड़े हो गये । श्रीरामकृष्ण जब किंचित् प्रकृतिस्थ हुए तो उन्होंने बड़े मधुर स्वर में श्रीकृष्ण का नाम उच्चारण किया । उनकी आँखों से प्रेमाश्रु बहने लगे और वे फिर बैठ गये ।
As Sri Ramakrishna heard the line, "Ah, the blessed name of Krishna, full of honeyed sweetness!", he could not remain seated any longer. He stood up in a state of unconsciousness and went into deep samadhi. The younger Naren stood at his right. Regaining partial consciousness, the Master repeated the name of Krishna in his melodious voice. Tears flowed down his cheeks. He sat down again. The musician continued his singing.
“আহা সকল মাধুর্যময় কৃষ্ণনাম!” এই কথা শুনিয়া ঠাকুর আর বসিতে পারিলেন না। একেবারে বাহ্যশূন্য, দণ্ডায়মান। সমাধিস্থ! ডানদিকে ছোট নরেন দাঁড়াইয়া। একটু প্রকৃতিস্থ হইয়া মধুর কণ্ঠে “কৃষ্ণ” “কৃষ্ণ” এই কথা সাশ্রুনয়নে বলিতেছেন। ক্রমে পুনর্বার আসন গ্রহণ করিলেন।
কীর্তনিয়া আবার গাইতেছেন। বিশাখা দৌড়িয়া গিয়া একখানি চিত্রপট আনিয়া শ্রীমতীর সম্মুখে ধরিলেন। চিত্রপটে সেই ভুবনরঞ্জনরূপ। শ্রীমতী পটদর্শনে বলিলেন, এই পটে যাঁকে দেখছি, তাঁকে যমুনাতটে দেখা অবধি আমার এই দশা হয়েছে।
কীর্তন — শ্রীমতির উক্তি —
যে দেখেছি যমুনাতটে। সেই দেখি এই চিত্রপটে ॥
যার নাম কহিল বিশাখা। সেই এই পটে আছে লেখা ॥
যাহার মুরলী ধ্বনি। সেই বটে এই রসিকমণি ॥
আধমুখে যার গুণ গাঁথা। দূতীমুখে শুনি যার কথা ॥
এই মোর হইয়াছে প্রাণ। ইহা বিনে কেহ নহে আন ॥
এত কহি মূরছি পড়য়ে। সখীগণ ধরিয়া তোলয়ে ॥
পুনঃ কহে পাইয়া চেতনে। কি দেখিনু দেখায় সে জনে ॥
সখীগণ করয়ে আশ্বাস। ভণে ঘনশ্যাম দাস ॥
🔱🙏प्रेम का त्रिकोण 🔱🙏
Love Triangle
गवैये का गाना जारी रहा । राधा की एक सखी विशाखा दौड़कर जाती है और श्रीकृष्ण का एक चित्र ले आती है और उसे राधा की आँखों के सामने कर देती है । राधा कहती हैं, 'मैं उन्हीं का चित्र देख रही हूँ जिन्हें मैंने जमुना के किनारे देखा था । तभी से मेरी यह दशा हो गयी है ।'
Visakha, a friend of Radha, runs out and brings a portrait of Krishna. She holds it before Radha's eyes. Radha says: "I see the picture of Him whom I beheld on the Jamuna's bank. Ever since then I have been in this plight.
फिर वे कह रही हैं –"मैं उन्हीं का चित्र देख रही हूँ जिन्हें मैने कालिन्दी के तट पर देखा था जिनका नाम विशाखा ने लिया है वे वही हैं जिनका यह चित्र है । जिन्होंने बाँसुरी बजायी थी, वे ही मेरे प्राणों के प्यारे हैं । राजगवैये उनका गुणगान मुझसे कर चुके हैं । उन्होंने मेरे हृदय पर जादू कर दिया है । यह और कोई नहीं, ... वे .. ही ... हैं ।" यह कहते ही राधा बेहोश हो गयी । थोड़ी देर बाद जब उनकी सखियाँ उन्हें होश में लायीं तो उनके मुँह से यही निकला, ‘सखियों, मुझे उन्हीं को दिखा दो जिनकी झलक मैंने अपनी आत्मा में देखी है ।’ सखियों ने वादा किया, 'अच्छा, जरूर दिखा देंगी।'
I see the picture of Him whom I beheld on the Jamuna's bank; The name Visakha spoke is the name of Him who is painted here.He who played on the flute is the Beloved of my soul;His virtues the minstrel sang to me; He has bewitched my heart.It is none other than He!" So saying, Radha falls in a swoon. Restored to her senses by her friends, at once she says to them, "Show me Him, O friends, whom I saw reflected in my soul. "And they promise her that they will.
ঠাকুর আবার উঠিলেন, নরেন্দ্রাদি সাঙ্গোপাঙ্গ লইয়া উচ্চ সংকীর্তন করিতেছেন:
গান — যাদের হরি বলতে নয়ন ঝরে তারা তারা দুভাই এসেছে রে।
(যারা আপনি কেঁদে জগৎ কাঁদায়) (যারা মার খেয়ে প্রেম যাচে)
(যারা ব্রজের কানাই বলাই) (যারা ব্রজের মাখন চোর)
(যারা জাতির বিচার নাহি করে) (যারা আপামরে কোল দেয়)
(যারা আপনি মেতে জগৎ মাতায়) (যারা হরি হয়ে হরি বলে)।
(যারা জগাই মাধাই উদ্ধারিল) (যারা আপন পর নাহি বাচে)।
জীব তরাতে তারা দুভাই এসেছে রে। (নিতাই গৌর)
अब श्रीरामकृष्ण नरेन्द्र तथा अन्य भक्तों के साथ बड़े ऊँचे स्वर में कीर्तन गान करने लगे । उन्होंने गाया –
গান —
जादेर हरि बोलते नयन झरे तारा दूभाई ऐसेछे रे।
(जारा आपनि केन्दे जगत कांदाय) (जारा मार खेये प्रेम याचे )
(जारा ब्रजेर कानाई बलाई ) (जारा ब्रजेर माखन चोर)
(जारा जातिर बिचार नाहि कोरे) ( जारा आपामरे कोल देय)
(जारा आपनि मेते जगत माताय ) ( जारा हरि होय हरि बोले। )
(जारा जगाई -मधाई उद्धारिलो ) (जारा आपन पर नाहि बाचे।)
जीव तराते तारा दूभाई ऐसेछे रे। (निताई गौर )
"देखो, वे दोनों भाई आ गये हैं जो हरि का नाम लेते लेते रोने लगते हैं ।"
গান — নদে টলমল টলমল করে, গৌরপ্রেমের হিল্লোলে রে।
ঠাকুর আবার সমাধিস্থ!
ভাব উপষম হইলে আবার আসন গ্রহণ করিলেন। শ্রীরামকৃষ্ণ (মাস্টারের প্রতি) — কোন্ দিকে সুমুখ ফিরে বসেছিলাম, এখন মনে নাই।
उन्होंने फिर गाया –
" नदे टलमल करे , गौर प्रेमेर हिल्लोले रे। "
"और देखो, श्रीगौरांग के प्रेम के कारण समस्त नदिया (श्री गौरांग का निवासस्थान) झूम रहा है ।"
इतना कहकर फिर श्रीरामकृष्ण समाधिमग्न हो गये । समाधि उतरने पर वे अपने आसन पर बैठ गये । 'एम', की ओर देखकर उन्होंने कहा, 'मुझे स्मरण नहीं कि मैं पहले किस ओर मुँह करके बैठा था ।' फिर वे भक्तों से बातचीत करने लगे ।
Now Sri Ramakrishna with Narendra and the other devotees began to sing the kirtan in a loud voice. They sang: Behold, the two brothers have come, who weep while chanting Hari's name. . . .They continued: See how all Nadia is shaking -Under the waves of Gauranga's love. . . .
Again Sri Ramakrishna went into samadhi. After regaining consciousness of the outer world, he returned to his seat. Turning to M., he said, "I don't remember which way I was facing before." Then he began to talk to the devotees.
(५)
[( 24 अप्रैल, 1885 ) श्रीरामकृष्ण वचनामृत-113 ]
*श्रीरामकृष्ण तथा नरेन्द्र । हाजरा की कथा*
শ্রীরামকৃষ্ণ ও নরেন্দ্র — হাজরার কথা — ছলরূপী নারায়ণ
🔱🙏हाजरा प्रिंस हैमलेट का चाचा क्लॉडियस जैसा धोखेबाज था🔱🙏
नरेन्द्र - (श्रीरामकृष्ण से) - हाजरा अब भला आदमी हो गया है ।
NARENDRA (to the Master): " Hazra has now become a good man."
নরেন্দ্র (শ্রীরামকৃষ্ণের প্রতি) — হাজরা এখন ভাল হয়েছে।
श्रीरामकृष्ण - तुम नहीं जानते कि लोग ऐसे भी होते हैं जिनके मुँह में तो रामनाम रहता है पर बगल में छुरी होती है ।
MASTER: "You don't know. There are people who repeat Rama's name with their tongues but hide stones under their arms to throw at others."
শ্রীরামকৃষ্ণ — তুই জানিস নি, এমন লোক আছে, বগলে ইট, মুখে রাম রাম বলে।
नरेन्द्र - महाराज, इस बात में मैं आपसे सहमत नहीं हूँ । मैंने स्वयं उससे उन बातों की जाँच की जिनके बारे में लोग शिकायत करते हैं, पर उसने साफ इन्कार किया ।
NARENDRA: "I don't agree with you, sir. I asked him about the things people complain of. He denied them."
নরেন্দ্র — আজ্ঞা না, সব জিজ্ঞাসা করলুম, তা সে বলে, ‘না’।
श्रीरामकृष्ण - वह भक्ति में जरूर दृढ़ है । थोड़ा-बहुत जप भी करता है, पर कभी कभी उसका व्यवहार विचित्र होता है । गाड़ीवाले का भाड़ा नहीं देता ।
MASTER: "He is steadfast in his devotions. He practises japa a little. But he also behaves in a queer way. He doesn't pay the coachman his fare."
শ্রীরামকৃষ্ণ — তার নিষ্ঠা আছে, একটু জপটপ করে। কিন্তু অমন! — গাড়োয়ানকে ভাড়া দেয় না!
नरेन्द्र - महाराज, नहीं, ऐसी बात नहीं है । वह कहता था, उसने दे दिया है ।
NARENDRA: "That isn't true, sir. He said he had paid it."
নরেন্দ্র — আজ্ঞা না, সে বলে তো ‘দিয়েছি’ —
श्रीरामकृष्ण - उसके पास पैसा कहाँ से आया ?
MASTER: "Where did he get the money?"
শ্রীরামকৃষ্ণ — কোথা থেকে দেবে?
नरेन्द्र - रामलाल अथवा और किसी ने दिया होगा ।
NARENDRA: "From Ramlal or someone else."
নরেন্দ্র — রামলাল টামলালের কাছ থেকে দিয়েছে, বোধ হয়।
श्रीरामकृष्ण - क्या तुमने उससे सब बातें विस्तारपूर्वक पूछी थीं ? एक बार मैंने जगदम्बा से प्रार्थना की थी, 'माँ ! यदि हाजरा ढोंगी है, तो बड़ी कृपा होगी यदि तुम यहाँ से उसे हटा दो ।' उसके बाद मैंने हाजरा से कह भी दिया था कि मैंने तुम्हारे बारे में माँ से ऐसी प्रार्थना की है ।
MASTER: "Did you ask him all these things in detail? Once I prayed to the Divine Mother, O Mother, if Hazra is a hypocrite then please remove him from here.' Later on I told him of my prayer. After a few days he came to me and said, 'You see, I am still here.' (The Master and the others laugh.) But soon afterwards he left.
শ্রীরামকৃষ্ণ — তুই সব কথা জিজ্ঞাসা কি করেছিস?“মাকে প্রার্থনা করেছিলাম, মা, হাজরা যদি ছল হয়, এখান থেকে সরিয়ে দাও। ওকে সেই কথা বলেছিলাম। ও কিছুদিন পরে এসে বলে, দেখলে আমি এখনও রয়েছি। (ঠাকুরের ও সকলের হাস্য) কিন্তু তারপরে চলে গেল।
थोड़े दिनों बाद वह फिर आया और मुझसे कहा, 'देखिये, मैं तो अब भी यहाँ बना हूँ ।' (श्रीरामकृष्ण तथा अन्य सब हँसे) पर शीघ्र ही कुछ दिनों बाद उसने यहाँ आना बन्द कर दिया । "हाजरा की बेचारी माँ ने मेरे पास रामलाल द्वारा कहलाया कि मैं हाजरा से कह दूँ कि वह कभी कभी जाकर अपनी बूढ़ी माँ को देख आया करे । वह बेचारी करीब करीब अन्धी ही थी और रोती रहती थी । मैंने हाजरा को तरह तरह से समझाया कि वह जाकर देख आया करे । मैंने उससे कहा, 'देखो, तुम्हारी माँ वृद्धा है, कम से कम उसे एक बार जाकर तो देख आओ ।' पर मेरे कहने पर भी नहीं गया । अन्त में वह बेचारी बुढ़िया रोते रोते मर गयी ।”
"Hazra's mother begged me through Ramlal to ask Hazra to come home. She was almost blind with weeping. I tried in various ways to persuade him to visit her. I said: 'Your mother is old. Go and see her once.' I couldn't make him go. Afterwards the poor mother died weeping for him."
“হাজরার মা রামলালকে দিয়ে বলে পাঠিয়েছিল, ‘হাজরাকে একবার রামলালের খুড়োমশায় যেন পাঠিয়ে দেন। আমি কেঁদে কেঁদে চোখে দেখতে পাই না।’ আমি হাজরাকে অনেক করে বললুম, বুড়ো মা, একবার দেখা দিয়ে এস; তা কোন মতে গেল না। তার মা শেষে কেঁদে কেঁদে মরে গেল।”
नरेन्द्र - पर इस बार वह घर जायेगा ।
NARENDRA: "This time he will go home."
নরেন্দ্র — এবারে দেশে যাবে।
श्रीरामकृष्ण - हाँ हाँ, मुझे मालूम है वह घर जायेगा । वह बड़ा दुष्ट है, धूर्त है, तुम उसे नहीं जानते । गोपाल कहता था कि हाजरा सींती में कुछ दिन रहा था । लोग उसके लिए घी लाते थे, चावल लाते थे और भी तरह तरह की खाद्य-सामग्री उसे लाकर देते थे, पर उसकी उद्दण्डता तो देखो कि वह उन लोगों से कह देता था, 'मैं ऐसा मोटा चावल नहीं खा सकता । मुझे ऐसा खराब घी नहीं चाहिये ।' भाटपारा का ईशान भी उसके साथ गया था । उसने ईशान से कहा, 'शौच के लिए पानी ले आओ ।' इससे वहाँ के अन्य ब्राह्मण उससे बहुत नाराज हो गये थे ।
MASTER: "Yes, yes! He will go home! He is a rogue. He is a rascal. You don't understand him. You are a fool. Gopal said that Hazra stayed at Sinthi a few days. People used to supply him with butter, rice, and other food. He had the impudence to tell them he couldn't swallow such coarse rice and bad butter. Ishan of Bhatpara accompanied him there. He ordered Ishan to carry water for him. That made the other brahmins very angry."
শ্রীরামকৃষ্ণ — এখন দেশে যাবে, ঢ্যামনা শালা! দূর দূর, তুই বুঝিস না। গোপাল বলেছে, সিঁথিতে হাজরা কদিন ছিল। তারা চাল ঘি সব জিনিস দিত। তা বলেছিল, এ ঘি এ চাল কি আমি খাই? ভাটপাড়ায় ঈশেনের সঙ্গে গিছল। ঈশেনকে নাকি বলেছে, বাহ্যে যাবার জল আনতে। এই বামুনরা সব রেগে গিছল।
नरेन्द्र – मैंने उससे वह बात पूछी थी । वह कहता था, ईशान बाबू मेरे लिए खुद पानी लाये थे और इतना ही नहीं, वह कहता था कि भाटपारा के बहुत से ब्राह्मण लोग भी उसे मान देते हैं और श्रद्धा करते हैं ।
NARENDRA: "I asked him about that too. He said that Ishan Babu had himself come forward with the water. Besides, many brahmins of Bhatpara showed him respect."
নরেন্দ্র — জিজ্ঞাসা করেছিলুম, তা সে বলে, ঈশানবাবু এগিয়ে দিতে গিছল। আর ভাটপাড়ায় অনেক বামুনের কাছে মানও হয়েছিল!
[( 24 अप्रैल, 1885 ) श्रीरामकृष्ण वचनामृत-113
🔱🙏मनुष्य के शारीरिक लक्षण भी उसके चरित्र पर अपना प्रभाव डालते हैं🔱🙏
श्रीरामकृष्ण (मुसकराते हुए) - वह सब उसके जप और तपस्या का फल था । जानते हो, मनुष्य की शारीरिक बनावट भी उसके चरित्र पर अपना बहुत प्रभाव डालती है । नाटा कद और शरीर में इधर-उधर गड्ढे या कूबड़ अच्छे लक्षण नहीं हैं । जिन लोगों के ऐसे लक्षण होते हैं उन्हें आध्यात्मिक ज्ञान प्राप्त करने को बहुत समय लगता है ।
MASTER (smiling): "That was the result of his japa and austerity. You see, physical traits to a great extent influence character. Short stature and a body with dents here and there are not good traits. People with such traits take a long time to acquire spiritual knowledge."
শ্রীরামকৃষ্ণ (হাসিতে হাসিতে) — ওইটুকু জপতপের ফল।“আর কি জানো, অনেকটা লক্ষণে হয়। বেঁটে, ডোব কাটা কাটা গা, ভাল লক্ষণ নয়। অনেক দেরিতে জ্ঞান হয়।”
भवनाथ - खैर महाराज, जाने दीजिये इन बातों को ।
BHAVANATH: "Let us stop talking about these things."
ভবনাথ — থাক্ থাক্ — ও-সব কথায়।
[( 24 अप्रैल, 1885 ) श्रीरामकृष्ण वचनामृत-113
🔱🙏ईश्वर ही धोखेबाज,लुच्चा और दुष्ट नारायण बने हैं 🔱🙏
श्रीरामकृष्ण - नहीं, मुझे गलत न समझना । (नरेन्द्र से) तुम कहते हो कि तुम्हें लोगों की पहचान है, इसीलिए यह सब तुम्हें बता रहा हूँ । जानते हो, हाजरा-ऐसे लोगों को मैं किस दृष्टि से देखता हूँ?"जिस प्रकार ईश्वर सत्पुरुषों के रूप में अवतार लेता है उसी प्रकार वह धोखेबाज और दुष्टों के रूप में भी अवतीर्ण होता है । (महिमाचरण से) क्यों, तुम्हारी क्या राय है ? वैसे तो सभी ईश्वर हैं ।
MASTER: "Don't misunderstand me. (To Narendra) You say you understand people; that is why I am telling you all this. Do you know how I look on people like Hazra? I know that just as God takes the form of holy men, so He also takes the form of cheats and rogues. (To Mahimacharan) What do you say? All are God."
महिम - हाँ महाराज, सभी ईश्वर हैं ।
MAHIMA: "Yes, sir. All are God."
মহিমাচরণ — আজ্ঞা, সবই নারায়ণ।
(६)
[( 24 अप्रैल, 1885 ) श्रीरामकृष्ण वचनामृत-113 ]
🔱🙏एकतरफा प्रेम (one-sided love) का उदाहरण है -गोपीप्रेम 🔱🙏
[जैसे -पानी बतक को नहीं चाहता, बतक को ही पानी से प्रेम होता है]
water does not seek the duck, but the duck loves water.
गिरीश (श्रीरामकृष्ण से) - महाराज, एकांगी प्रेम क्या चीज है ?
GIRISH (to the Master): "Sir, what is ekangi prema?"
গিরিশ (শ্রীরামকৃষ্ণের প্রতি) — মহাশয়, একাঙ্গী প্রেম কাকে বলে?
श्रीरामकृष्ण - इसका अर्थ है केवल एक ओर से प्रेम । उदाहरणार्थ, पानी बतक को ढूँढ़ने नहीं जाता वरन् बतक ही पानी को चाहता है । प्रेम और भी कई प्रकार के होते हैं, जैसे 'साधारण' 'समंजस' और 'समर्थ' । पहला जो 'साधारण' प्रेम है उसमें प्रेमी केवल अपना ही सुख देखता है । वह इस बात की चिन्ता नहीं करता कि दूसरे व्यक्ति को भी उससे सुख है अथवा नहीं । इस प्रकार का प्रेम चन्द्रावली का श्रीकृष्ण के प्रति था ।
[चंद्रावली करति चतुराई, सुनत बचन मुख मूँदि रही। ज्वाब नहीं कछु देति सखी कौ, हाँ, नाही कछुवै न कही।।]
MASTER: "It means one-sided love. For instance, the water does not seek the duck, but the duck loves water. There are other kinds of love: sadharani, samanjasa, and samartha. In the first, which is ordinary love, the lover seeks his own happiness; he doesn't care whether the other person is happy or not. That was Chandravali's attitude toward Krishna.
শ্রীরামকৃষ্ণ — একাঙ্গী, কিনা, ভালবাসা একদিক থেকে। যেমন জল হাঁসকে চাচ্চে না, কিন্তু হাঁস জলকে ভালবাসে। আবার আছে সাধারণী, সমঞ্জসা, সমর্থা। সাধারণী প্রেম — নিজের সুখ চায়, তুমি সুখী হও আর না হও, যেমন চন্দ্রাবলীর ভাব।
दूसरा प्रेम जो 'सामंजस्य' रूप होता है उसमें दोनों एक दूसरे के सुख के इच्छुक होते हैं । यह एक ऊँचे दर्जे का प्रेम है, परन्तु तीसरा प्रेम सबसे उच्च है । इस 'समर्थ' प्रेम में प्रेमी अपनी प्रेमिका से कहता है, 'तुम सुखी रहो, मुझे चाहे कुछ भी हो ।' राधा में यह प्रेम विद्यमान था । श्रीकृष्ण के सुख में ही उन्हें सुख था । गोपियों ने भी यह उच्चावस्था प्राप्त की थी ।
In the second, which is a compromise, both seek each other's happiness. This is a noble kind of love. But the third is the highest of all. Such a lover says to his beloved, 'Be happy yourself, whatever may happen to me.' Radha had this highest love. She was happy in Krishna's happiness. The gopis, too, had attained this exalted state.
আবার সমঞ্জসা, আমারও সুখ হোক, তোমারও হোক। এ খুব ভাল অবস্থা। “সকলের উচ্চ অবস্থা, — সমর্থা। যেমন শ্রীমতীর। কৃষ্ণসুখে সুখী, তুমি সুখে থাক, আমার যাই হোক। “গোপীদের এই ভাব বড় উচ্চ ভাব।
"जानते हो गोपियाँ कौन थी ? श्रीरामचन्द्रजी उस घने जंगल में घूमते थे जिसमें साठ हजार ऋषि रहते थे । वे सब श्रीरामजी को देखने के लिए बड़े उत्सुक थे । उन्होंने उन सब पर एक दिव्य दृष्टि डाल दी । कुछ पुराणों का कथन है कि बाद में वे ही सब ऋषि वृन्दावन में गोपियों के रूप में अवतीर्ण हुए ।"
"Do you know who the gopis were? Ramachandra was wandering in the forest where sixty thousand rishis dwelt. They were very eager to see Him. He cast a tender glance at them. According to a certain Purana, they were born later on as the gopis of Vrindavan."
“গোপীরা কে জান? রামচন্দ্র বনে বনে ভ্রমণ করতে করতে — ষষ্টি সহস্র ঋষি বসেছিলেন, তাদের দিকে একবার চেয়ে দেখেছিলেন, সস্নেহে! তাঁরা রামচন্দ্রকে দেখবার জন্য ব্যাকুল হয়েছিলেন। কোন কোন পুরাণে আছে, তারাই গোপী।”
[( 24 अप्रैल, 1885 ) श्रीरामकृष्ण वचनामृत-113 ]
🔱🙏जो सदैव गुरु (C-IN-C) के समीप रहते हैं -वे अन्तरंग भक्त हैं🔱🙏
एक भक्त - महाराज, अन्तरंग किसे कहते हैं ?
A DEVOTEE: "Sir, who may be called an antaranga?"
একজন ভক্ত — মহাশয়! অন্তরঙ্গ কাহাকে বলে?
श्रीरामकृष्ण - मैं एक उदाहरण देकर समझाता हूँ । एक सभामण्डप में भीतर भी खम्भे होते हैं और बाहर भी । अन्तरंग भीतरवाले खम्भों के सदृश हैं । जो सदैव गुरु के समीप रहते हैं वे अन्तरंग कहलाते हैं ।
MASTER: "Let me give an illustration. A natmandir has pillars inside and outside. An antaranga is like the inside pillars. Those who always live near the guru are the antarangas.
শ্রীরামকৃষ্ণ — কিরকম জানো? যেমন নাটমন্দিরের ভিতরে থাম, বাইরের থাম। যারা সর্বদা কাছে থাকে, তারাই অন্তরঙ্গ।
[( 24 अप्रैल, 1885 ) श्रीरामकृष्ण वचनामृत-113 ]
🔱🙏ज्ञान योग और भक्ति योग का समन्वय - भरद्वाज आदि ऋषि और राम।🔱🙏
[जन्मजात नेता वे हैं जो अवतार लेते हैं , जैसे श्रीराम।]
(महिमाचरण से) "ज्ञानी अपने लिए न तो ईश्वर का रूप चाहता है, न अवतार ही । श्रीरामचन्द्रजी जब वन में घूम रहे थे तो उन्होंने कुछ ऋषियों को देखा । ऋषियों ने बड़े स्नेह से उनका अपने आश्रम में स्वागत किया और कहा, 'प्रभो, आज तुम्हारे दर्शन प्राप्त करके हमारा जीवन कृतकृत्य हो गया, पर हम जानते हैं कि तुम दशरथ के पुत्र हो । भरद्वाज तथा अन्य ऋषि तुमको ईश्वरी अवतार कहते हैं, पर हमारा वह दृष्टिकोण नहीं है । हम तो निर्गुण, निराकार सच्चिदानन्द का ध्यान करते हैं ।' श्रीराम यह सुनकर प्रसन्न हुए और मुस्करा दिये ।
(To Mahimacharan) "The jnani wants neither a form of God nor His Incarnation. While wandering in the forest, Ramachandra saw a number of rishis. They welcomed Him to their asrama with great love and said to Him: 'O Rama, today our life is blessed because we have seen You. But we know You as the son of Dasaratha. Bharadvaja and other sages call You a Divine Incarnation; but that is not our view. We meditate on the Indivisible Satchidananda.' Rama was pleased with them and smiled.
শ্রীরামকৃষ্ণ (মহিমাচরণের প্রতি) — কিন্তু জ্ঞানী রূপও চায় না, অবতারও চায় না। রামচন্দ্র বনে যেতে যেতে কতকগুলি ঋষিদের দেখতে পেলেন। তাঁরা রামকে খুব আদর করে আশ্রমে বসালেন। সেই ঋষিরা বললেন, রাম তোমাকে আজ আমরা দেখলুম, আমাদের সকল সফল হল। কিন্তু আমরা তোমাকে জানি দশরথের বেটা। ভরদ্বাজাদি তোমাকে অবতার বলে; আমরা কিন্তু তা বলি না, আমরা সেই অখণ্ড সচ্চিদানন্দের চিন্তা করি। রাম প্রসন্ন হয়ে হাসতে লাগলেন।
"ओह ! मुझे भी कैसी कैसी मानसिक परिस्थितियों में से होकर गुजरना पड़ा । मेरा मन कभी कभी निराकार परमेश्वर में लीन हो जाता था । कितने ही दिन मैंने इस अवस्था में बिताये । मैने भक्ति और भक्त का भी त्याग कर दिया था । मैं जड़वत् हो गया था । मुझे अपने सिर तक का ध्यान नहीं था । मैं मरणासन्न हो गया था । तब तो मैंने रामलाल की चाची* को अपने पास रखने का सोचा था ।
"Ah, what a state of mind I passed through! My mind would lose itself in the Indivisible Absolute. How many days I spent that way! I renounced bhakti and bhakta, devotion and devotee. I became inert. I could not feel the form of my own head. I was about to die. I thought of keeping Ramlal's aunt (Referring to his own wife.) near me.
“উঃ, আমার কি অবস্থা গেছে! মন অখণ্ডে লয় হয়ে যেত! এমন কতদিন! সব ভক্তি-ভক্ত ত্যাগ করলুম! জড় হলুম! দেখলুম, মাথাটা নিরাকার, প্রাণ যায় যায়! রামলালের খুড়ীকে ডাকব মনে করলুম!
[( 24 अप्रैल, 1885 ) श्रीरामकृष्ण वचनामृत-113 ]
🔱🙏समाधि से लौटने पर भक्ति और भक्त का संग अनिवार्य है🔱🙏
मैंने अपने कमरे से सभी चित्रों को हटाने के लिए कह दिया । जब मुझे बाह्य ज्ञान प्राप्त हुआ और जब मेरा मन उस अवस्था से उतरकर साधारण अवस्था पर आ गया तो मुझे ऐसा अनुभव हुआ कि मानो एक डूबते हुए मनुष्य के समान मेरा दम घुट रहा हो । अन्त में मैंने अपने मन में कहा, 'मैं तो लोगों का अपने पास रहना भी नहीं सह सकता हूँ, फिर मैं जीवित कैसे रहूँगा ?" तब मेरा मन एक बार फिर भक्ति और भक्त की ओर झुक गया । मैं लोगों से यही लगातार पूछता था कि मुझे क्या हो गया है ।
भोलानाथ# ने मुझसे कहा, 'आपकी इस मानसिक स्थिति का वर्णन महाभारत में है ।' समाधि-अवस्था से उतरने के बाद फिर भला मनुष्य कैसे रह सकता है ? निश्चय ही उसे ईश्वर-भक्ति की आवश्यकता होती है तथा ईश्वर-भक्तों का संग । नहीं तो वह अपना मन किस बात में लगायेगा ?" (*श्रीरामकृष्ण की लीलासहधर्मिणी, #दक्षिणेश्वर-मन्दिर के एक मुन्शी ।)
"I ordered the removal of all pictures and portraits from my room. When I regained outer consciousness, when the mind climbed down to the ordinary level, I felt as if I were being suffocated like a drowning person. At last I said to myself, 'If I can't bear people, then how shall I live?' Then my mind was again directed to bhakti and bhakta .. 'What has happened to me?' I kept asking people. Bholanath (A clerk at the Dakshineswar temple garden.) said to me, 'This state of mind has been described in the Mahabharata.'How can a man live, on coming down from the plane of samadhi? Surely he requires devotion to God and the company of devotees. Otherwise, how will he keep his mind occupied?"
“ঘরে ছবি-টবি যা ছিল, সব সরিয়ে ফেলতে বললুম। আবার হুঁশ যখন আসে, তখন মন নেমে আসবার সময় প্রাণ আটুপাটু করতে থাকে! শেষে ভাবতে লাগলুম, তবে কি নিয়ে থাকব! তখন ভক্তি-ভক্তের উপর মন এল। “তখন লোকদের জিজ্ঞাসা করে বেড়াতে লাগলুম যে, এ আমার কি হল! ভোলানাথ১ বললে, ভারতে২ আছে’। সমাধিস্থ লোক যখন সমাধি থেকে ফিরবে, তখন কি নিয়ে থাকবে? কাজেই ভক্তি-ভক্ত চাই। তা না হলে মন দাঁড়ায় কোথা?
[( 24 अप्रैल, 1885 ) श्रीरामकृष्ण वचनामृत-113 ]
🔱🙏ईश्वरकोटि का प्रशिक्षित नेता निर्विकल्प समाधि से वापस लौट सकता है🔱🙏
(समाधिस्थ व्यक्ति 'अहं' बोध कैसे रख सकता है ?
-जैसे शंकर और रामानुज ने विद्या का मैं रखा था ! )
সমাধিস্থ কি ফিরতে পারে?
महिमाचरण (श्रीरामकृष्ण से) - महाराज, क्या कोई व्यक्ति समाधि की अवस्था से फिर साधारण सांसारिक अवस्था पर आ सकता है ?
MAHIMACHARAN (to the Master): "Sir, can a man return from the plane of samadhi to the plane of the ordinary world?"
মহিমাচরণ (শ্রীরামকৃষ্ণের প্রতি) — মহাশয়, সমাধিস্থ কি ফিরতে পারে?
श्रीरामकृष्ण (महिम से, धीरे से)- मैं तुम्हें एकान्त में समझाऊंगा । केवल तुम्ही इस योग्य हो कि तुमसे कहा जाय ।
MASTER (in a low voice, to Mahima): "I shall tell you privately. You are the only one fit to hear it.
শ্রীরামকৃষ্ণ (মহিমার প্রতি একান্তে) — তোমায় একলা একলা বলব; তুমিই একথা শোনবার উপযুক্ত।
"कुँवर सिंह ने भी मुझसे यही प्रश्न किया था । तुम जानते हो कि जीव और ईश्वर में बड़ा अन्तर है । उपासना तथा तपस्या द्वारा जीव अधिक से अधिक समाधि-अवस्था प्राप्त कर सकता है । पर फिर वह उस अवस्था से वापस नहीं आ सकता । परन्तु जो ईश्वर का अवतार होता है वह समाधि अवस्था से नीचे उतर भी सकता है ।
"Koar Singh also asked me that question. You see, there is a vast difference between the jiva and Isvara. Through worship and austerity, a jiva can at the utmost attain samadhi; but he cannot come down from that state. On the other hand, an Incarnation of God can come down from samadhi.
“কুয়ার সিং ওই কথা জিজ্ঞাসা করত। জীব আর ঈশ্বর অনেক তফাত। সাধন-ভজন করে সমাধি পর্যন্ত জীবের হতে পারে। ঈশ্বর যখন অবতীর্ণ হন, তিনি সমাধিস্থ হয়েও আবার ফিরতে পারেন।
उदाहरणार्थ, जीव उसी प्रकार का है जैसे किसी राजा के यहाँ एक अफसर । वह राजा के सातमंजिला महल में अधिक से अधिक बाहर के दरबार तक जा सकता है, परन्तु राजा के लड़के की पहुँच सातों मंजिलों तक होती है, और वह बाहर भी जा सकता है । यह बात हरएक आदमी कहता है कि समाधि की अवस्था से फिर कोई लौट नहीं सकता, अगर ऐसी बात है तो शंकर तथा रामानुज जैसे महात्माओं के बारे में तुम क्या कहोगे ? उन्होंने ‘विद्या का मैं’ रखा था ।"
A jiva is like an officer of the king; he can go as far as the outer court of the seven-storey palace. But the king's son has access to all the seven floors; he can also go outside. Everybody says that no one can return from the plane of samadhi. In that case, how do you account for sages like Sankara and Ramanuja? They retained the 'ego of Knowledge'."
জীবের থাক — এরা যেন রাজার কর্মচারী। রাজার বারবাড়ি পর্যন্ত এদের গতায়াত। রাজার বাড়ি সাততলা, কিন্তু রাজার ছেলে সাততলায় আনাগোনা করতে পারে, আবার বাইরেও আসতে পারে। ফেরে না, ফেরে না, সব বলে। তবে শঙ্করাচার্য রামানুজ এরা সব কি? এরা ‘বিদ্যার আমি’ রেখেছিল।”
महिम – हाँ, यह बात सचमुच ठीक है; नहीं तो वे इतने बड़े ग्रंथ कैसे लिख सकते थे ?
MAHIMA: "That is true, indeed. Otherwise, how could they write books?"
মহিমাচরণ — তাই তো; তা না হলে গ্রন্থ লিখলে কেমন করে?
[( 24 अप्रैल, 1885 ) श्रीरामकृष्ण वचनामृत-113 ]
🔱🙏प्रह्लाद-नारद-हनुमान आदि भक्तों ने समाधि के बाद भक्त का मैं रखा था।🔱🙏
श्रीरामकृष्ण - और देखो, प्रह्लाद, नारद तथा हनुमान जैसे ऋषियों के भी उदाहरण हैं । उन्होंने भी समाधि प्राप्ति कर लेने के बाद भक्ति रखी थी ।
MASTER: "Again, there are the instances of sages like Prahlada, Narada, and Hanuman. They too retained bhakti after attaining samadhi."
শ্রীরামকৃষ্ণ — আবার দেখ, প্রহ্লাদ, নারদ, হনুমান, এরাও সমাধির পর ভক্তি রেখেছিল।
महिम – हाँ महाराज, यह बात ठीक है ।
MAHIMA: "That is true, sir."
মহিমাচরণ — আজ্ঞা হাঁ।
[( 24 अप्रैल, 1885 ) श्रीरामकृष्ण वचनामृत-113 ]
🔱🙏जिसे समाधि हुआ है, उसमें 'अहं' नहीं रहता🔱🙏
समाधि के बिना सच्चा ज्ञान असम्भव है ।
श्रीरामकृष्ण - बहुत से लोग ऐसे होते हैं कि वे दार्शनिक वादविवाद में ही पड़े रहते हैं और अपने को बहुत बड़ा समझते हैं । शायद वे थोड़ा-बहुत वेदान्त भी जान लेते हैं, परन्तु यदि किसी मनुष्य में सच्चा ज्ञान है तो उसमें अहंकार नहीं हो सकता, अर्थात् समाधि-अवस्था में यदि मनुष्य ईश्वर से एकरूप हो जाय तो उसमें अहंकार नहीं रह जाता । समाधि के बिना सच्चा ज्ञान असम्भव है । समाधि में मनुष्य ईश्वर से एक हो जाता है । फिर उसमें अहंकार नहीं रह जाता ।
MASTER: "Some people indulge in philosophical speculation and think much of themselves. Perhaps they have studied a little Vedanta. But a man cannot be egotistic if he has true knowledge. In other words, in samadhi man becomes one with God and gets rid of his egotism. True knowledge is impossible without samadhi. In samadhi man becomes one with God. Then he can have no egotism.
শ্রীরামকৃষ্ণ — কেউ কেউ জ্ঞানচর্চা করে বলে মনে করে, আমি কি হইছি। হয়তো একটু বেদান্ত পড়েছে। কিন্তু ঠিক জ্ঞান হলে অহংকার হয় না, অর্থাৎ যদি সমাধি হয়, আর মানুষ তাঁর সঙ্গে এক হয়ে যায়, তাহলে আর অহংকার থাকে না। সমাধি না হলে ঠিক জ্ঞান হয় না। সমাধি হলে তাঁর সঙ্গে এক হওয়া যায়। অহং থাকে না।
"जानते हो यह किस प्रकार से होता है ? देखो, जैसे दोपहर को सूरज बिलकुल ठीक सिर पर होता है । उस समय यदि तुम अपने चारों ओर देखो तो तुम्हें अपनी परछाई नहीं दिखायी देगी । इसी प्रकार तुममें ज्ञान अथवा समाधि प्राप्त कर लेने के बाद अहंकार की परछाई नहीं रह जाती ।
"Do you know what it is like? Just at noon the sun is directly overhead. If you look around then, you do not see your shadow. Likewise, you will not find the 'shadow' of ego after attaining Knowledge, samadhi.
“কিরকম জানো? ঠিক দুপুর বেলা সূর্য ঠিক মাথার উপর উঠে। তখন মানুষটা চারিদিকে চেয়ে দেখে, আর ছায়া নাই। তাই ঠিক জ্ঞান হলে — সমাধিস্থ হলে — অহংরূপ ছায়া থাকে না।
"परन्तु यदि तुम किसी में सत्यज्ञान-प्राप्ति के बाद भी अहंकार का भास देखो तो समझ लो कि या तो यह 'विद्या का मैं' है अथवा 'भक्ति का मैं' अथवा 'दास मै'; वह 'अविद्या का मैं’ नहीं होता ।
"But if you see in anyone a trace of 'I-consciousness' after the attainment of true Knowledge, then know that it is either the 'ego of Knowledge' or the 'ego of Devotion' or the 'servant ego'. It is not the 'ego of ignorance'.
“ঠিক জ্ঞান হবার পর যদি অহং থাকে, তবে জেনো, ‘বিদ্যার আমি’ ‘ভক্তির আমি’ ‘দাস আমি’। সে ‘অবিদ্যার আমি’ নয়।
[( 24 अप्रैल, 1885 ) श्रीरामकृष्ण वचनामृत-113 ]
"सर्वभूते सेई प्रेममय !"
🔱🙏भक्त के ईश्वर प्रेममय (नवनीदा) हैं ! (ज्ञानी का तेजोमय ॐ) 🔱🙏
"फिर यह भी समझ लो कि ज्ञान और भक्ति दोनों समानान्तर मार्ग हैं । इनमें से तुम किसी का भी अनुसरण करो, अन्त में पहुँचोगे ईश्वर को ही । ज्ञानी ईश्वर को एक दृष्टि से देखता है और भक्त दूसरी से । ज्ञानी का ईश्वर तेजोमय होता है और भक्त का रसमय ।"
"Again, jnana and bhakti are twin paths. Whichever you follow, it is God that you will, ultimately reach. The jnani looks on God in one way and the bhakta looks on Him in another way. The God of the jnani is full of brilliance, and the God of the bhakta full of sweetness."
“আবার জ্ঞান ভক্তি দুইটিই পথ — যে পথ দিয়ে যাও, তাঁকেই পাবে। জ্ঞানী একভাবে তাঁকে দেখে, ভক্ত আর-একভাবে তাঁকে দেখে। জ্ঞানীর ঈশ্বর তেজোময়, ভক্তের রসময়।”
[( 24 अप्रैल, 1885 ) श्रीरामकृष्ण वचनामृत-113 ]
🔱🙏श्रीरामकृष्ण और दुर्गासप्तशती में वर्णित राक्षसों के विनाश का अर्थ🔱🙏
[শ্রীরামকৃষ্ণ ও মার্কণ্ডেয়চণ্ডীবর্ণিত অসুরবিনাশের অর্থ ]
भवनाथ श्रीरामकृष्ण के पास ही बैठे ये सब बातें सुन रहे थे । 'भवनाथ' नरेंद्र के बहुत बड़े भक्त थे और पहले ब्रह्म समाज में अक्सर आते थे। [जैसे कैप्टन सेवियर स्वामीजी के बहुत बड़े भक्त थे]
Bhavanath was seated near the Master, listening to these words.
ভবনাথ কাছে বসিয়াছেন ও সমস্ত শুনিতেছেন। ভবনাথ নরেন্দ্রের ভারী অনুগত ও প্রথম প্রথম ব্রাহ্মসমাজে সর্বদা যাইতেন।
भवनाथ (श्रीरामकृष्ण से) - महाराज, क्या मैं एक प्रश्न पूछूँ ? 'चण्डी' को मैं ठीक से नहीं समझ सका । उसमें ऐसा लिखा है कि जगदम्बा सब जीवों का संहार करती है - इसका क्या अर्थ है ?
BHAVANATH (to the Master): "Sir, I have a question to ask. I don't quite understand the Chandi. It is written there that the Divine Mother kills all beings. What does that mean?"
ভবনাথ (শ্রীরামকৃষ্ণের প্রতি) — আমার একটা জিজ্ঞাসা আছে। আমি চণ্ডী বুঝতে পারছি না। চণ্ডীতে লেখা আছে যে, তিনি সব টক টক মারছেন। এর মানে কি?
[( 24 अप्रैल, 1885 ) श्रीरामकृष्ण वचनामृत-113 ]
🔱🙏 उत्पत्ति (जन्म) और संहार (मृत्यु) ईश्वर की माया है🔱🙏
[Both creation and destruction are God's maya."
তাঁর সৃষ্টিও মায়া, তাঁর সংহারও মায়া।
श्रीरामकृष्ण - यह सब उनकी लीला है । यह विचार मेरे मन में भी आया करता था, पर बाद में मैं समझ गया कि यह सब माया है । उत्पत्ति और संहार ईश्वर की माया है ।
MASTER: "This is all Her lila. Her sportive pleasure. That question used to bother me too. Later I found out that all is maya. Both creation and destruction are God's maya."
শ্রীরামকৃষ্ণ — ও-সব লীলা। আমিও ভাবতুম ওই কথা। তারপর দেখলুম সবই মায়া। তাঁর সৃষ্টিও মায়া, তাঁর সংহারও মায়া।
गिरीश श्रीरामकृष्ण तथा अन्य भक्तों को ऊपर छत पर ले गये जहाँ भोजन परोसा गया । आकाश में अच्छी चाँदनी छिटकी हुई थी । सब भक्त अपने अपने स्थान पर बैठ गये । उन सबके सामने श्रीरामकृष्ण एक आसन पर बैठे । सब लोग बड़े प्रसन्नचित थे ।
Girish conducted Sri Ramakrishna and the devotees to the roof, where the meal was served. There was a bright moon in the sky. The devotees took their seats. The Master occupied a seat in front of them. All were in a joyous mood.
ঘরের পশ্চিমদিকের ছাদে পাতা হইয়াছে। এইবার গিরিশ ঠাকুরকে ও ভক্তদিগকে আহ্বান করিয়া লইয়া গেলেন। বৈশাখ শুক্লা দশমী। জগৎ হাসিতেছে। ছাদ চন্দ্রকিরণে প্লাবিত। এ-দিকে ঠাকুর শ্রীরামকৃষ্ণকে সম্মুখে রাখিয়া ভক্তেরা প্রসাদ পাইতে বসিয়াছেন। সকলেই আনন্দে পরিপূর্ণ।
श्रीरामकृष्ण नरेन्द्र को देखकर अत्यन्त प्रसन्न हुए । वे उनके सामने की पंक्ति में बैठे । बीच-बीच में श्रीरामकृष्ण उनसे पूछते जाते थे, 'कहो क्या हाल है - आनन्द से होने दो ।' श्रीरामकृष्ण भोजन कर ही रहे थे कि बीच में से उठकर वे नरेन्द्र के पास आये और अपनी थाली में से कुछ तरबूज का शरबत और दही लेकर उनको दिया और बड़े मधुर शब्दों में उनसे कहा, 'लो, यह खा लो ।' इसके बाद वे फिर अपने आसन पर चले गये ।
Sri Ramakrishna was beside himself with joy at the sight of Narendra. The beloved disciple sat in the front row. Every now and then the Master asked how he was getting along. He had hardly finished half his meal when he came to Narendra with some water-melon sherbet and curd from his own plate. Tenderly he said to the disciple, "Please eat this." Then he went back to his own place.
ঠাকুর “নরেন্দ্র” “নরেন্দ্র” করিয়া পাগল। নরেন্দ্র সম্মুখে পঙ্ক্তিতে অন্যান্য ভক্তসঙ্গে বসিয়াছেন। মাঝে মাঝে ঠাকুর নরেন্দ্রের খবর লইতেছেন। অর্ধেক খাওয়া হইতে না হইতে ঠাকুর হঠাৎ নরেন্দ্রের কাছে নিজের পাত থেকে দই ও তরমুজের পানা লইয়া উপস্থিত। বলিলেন, “নরেন্দ্র তুই এইটুকু খা।” ঠাকুর বালকের ন্যায় আবার ভোজনের আসনে গিয়া উপবিষ্ট হইলেন।
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🔱🙏द ट्रेजेडी ऑफ़ हैमलेट, प्रिंस ऑफ़ डेनमार्क🔱🙏
[ The Tragedy of Hamlet, Prince of Denmark]
हैमलेट (Hamlet) शेक्सपियर का एक दु:खांत नाटक है। इस नाटक का पूरा नाम डेनमार्क के राजकुमार हैमलेट की त्रासदी ( The Tragedy of Hamlet, Prince of Denmark) है। इस नाटक का प्रथम मंचन सन् 1603 ई० में हुआ था।
नाटक की कथावस्तु : हम भारतवासी राम -लक्ष्मण के भ्रातृप्रेम और माता सीता के सतीत्व का आदर्श को जानते हैं। किन्तु यह कहानी यूरोपीय देशों के दो भाइयों एवं नोर्वे और डेनमार्क के आपसी झगड़े की पृष्ठभूमि को बयान करती है। वास्तव में इसका कथानक पाश्चात्य देशों के भ्रातृप्रेम और भारत के भ्रातृप्रेम में पार्थक्य को वर्णित करती है। डेनमार्क में एक राजा हुए थे जिनका नाम हैमलेट था, उनके छोटे भाई का नाम क्लॉडियस (लक्ष्मण?) था। वासना और धन (Lust and Lucre) के लालच में क्लॉडियस अपने बड़े भाई और डेनमार्क के राजा हैमलेट की हत्या कर देता है। उसके इस षडयंत्र में मृत राजा हैमलेट की पत्नी गरट्रूड भी उसका साथ देती है।
राजा के हत्या की बात सुनकर कहीं प्रजा में कहीं बगावत न हो जाये, इसलिए क्लॉडियस और उसकी भाभी गरट्रूड (मृतराजा हैमलेट की पत्नी) वो दोनों ये अफवाह फैला देते हैं कि राजा हैमलेट की मौत सांप के काटने से हुई है। डेनमार्क के राजा हैमलेट की मृत्यु के कुछ ही दिनों बाद उसकी पत्नी गरट्रूड अपने देवर से अर्थात हैमलेट के छोटे भाई क्लॉडियस से शादी कर लेती है। इस प्रकार अब क्लॉडियस डेनमार्क का नया राजा बन जाता है।
इस कहानी का असली नायक (हीरो) है डेनमार्क के किंग हैमलेट का पुत्र प्रिंस हैमलेट। जिस समय प्रिंस हैमलेट का चाचा क्लॉडियस अपने बड़े भाई किंग हैमलेट की हत्या का साजिश रच रहा होता है, उस समय प्रिंस हैमलेट पढाई करने के लिए विटेनबर्ग गया हुआ था। जब उसे वहाँ अपने पिता की साँप काटने से अकस्मात मृत्यु की खबर, और अपनी माता के उसके चाचा के साथ विवाह करने की खबर मिलती है। उसके मन में यह प्रश्न उठना बड़ा स्वाभविक था कि आखिर उसकी माँ अपने देवर के साथ दूसरी शादी करने को तैयार कैसे हो गयी ? विशेष रूप से उसे अपनी माँ की इतनी जल्दी दूसरी शादी से बहुत हैरानी होती है। तो वह खबर सुनते ही तुरन्त डेनमार्क वापिस लौट आता है।
एक रात उसे अपने पिता का भूत (प्रेतात्मा) दिखाई देता है, जो उसे उसके चाचा और उसकी माँ के षडयंत्र से अवगत करवाता है। और उसे अपने चाचा क्लॉडियस से बदला लेने लिए प्रेरित करता है। लेकिन किंग हैमलेट रूपी वह प्रेत अपने पुत्र प्रिंस हैमलेट से यह वचन भी लेता है कि वह अपनी माँ गरट्रूड को कोई नुक्सान न पहुचाये।
प्रिंस हैमलेट जब अपनी बदले की भावना को छुपा कर बदले की तक़रीब सोंच रहा होता है तब उसका व्यवहार कुछ अजीब सा हो जाता है। जिससे लोगों के मन में यह धारण होती है कि वह लार्ड चेंबरलेन पोलोनियस की पुत्री ओफीलिया के प्रेम में पागल हो गया है। ओफीलिया भी उससे प्यार तो करती है, लेकिन उसका अजीब व्यवहार ओफीलिया को परेशानी में डाल देता है।
प्रिंस हैमलेट के पागलपन और अपने पिता की मौत के सदमे के कारण ओफीलिया पागल हो जाती है और उसकी मृत्यु हो जाती है। लेयरटीज पोलोनियस का पुत्र और ओफीलिया का भाई है। क्लॉडियस (मंथरा SDD) उसे भी बहकाने की कोशिश करता है,और कानाफूसी करके उसे ये विश्वास दिला देता है कि उसकी बहन और पिता की मौत का कारण प्रिंस हैमलेट ही है। ओफीलिया का भाई लेयरटीज प्रिंस हैमलेट को तलवारबाजी- युद्ध के लिए चुनौती देता है। उधर लेयरटीज को वर्तमान राजा क्लाडियस का समर्थन प्राप्त है। क्लाडियस लेयरटीज को विष से बुझी हुई तलवार देता है ताकि हैमलेट को मारना आसान हो जाये। शातिर दिमाग क्लाडियस, पहले से यह इंतजाम भी कर लेता है कि यदि प्रिंस हैमलेट ही तलवारबाजी युद्ध में लेयरटीज को मार देता है; तो वह उसकी जीत की ख़ुशी में प्रिंस हैमलेट को शराब में घातक विष मिला हुआ मदिरा का प्याला उसे दे देगा। हैमलेट और लेयरटीज दोनों घायल हो जाते हैं और उनकी तलवारें भी आपस में बदल जाती हैं। लेयरटीज पहले मर जाता है और मरने से पहले हैमलेट से माफ़ी मांगता है और गरट्रूड भी अनजाने में विष मिली हुई मदिरा पीकर मर जाती है। अन्त में प्रिंस हैमलेट अपने धोखेबाज चाचा क्लाडियस को मार देता है और मरने से पहले अपने ख़ास मित्र होरेशियो को सम्बोधित करते हुए कहता है कि अब वह डेनमार्क के सम्राज्य को संभाले।
इस नाटक में अनेक महत्वपूर्ण नैतिक और मनोवैज्ञानिक प्रश्नों का समावेश हुआ है तथा समीक्षकों ने इसमें निबद्ध समस्याओं पर गंभीर विचार प्रकट किए हैं।
[ "To be or not to be" means "To live or not to live" (or "To live or to die" "To be, or not to be, that is the question."-- "होना या न होना" का अर्थ है "अब इस जगत में जीना है या मर जाना अच्छा है ? " (या "जीना है या मरना ?") अंग्रेजी की इस कहावत को हम सभी ने कभी न कभी सुना अवश्य है। (जो सम्भवतः मजाक के रूप में उद्धृत किया जाता है। ) लेकिन क्या आप जानते हैं कि यह कहां से आया है और शब्दों के पीछे का अर्थ क्या है? "टू बी ऑर नॉट टू बी" वास्तव में विलियम शेक्सपियर के नाटक हैमलेट की एक प्रसिद्ध 'soliloquy' या आत्मसंवाद (स्वयं से बातचीत करने का अभिनय-अंक 3, दृश्य 1 में नाममात्र के प्रिंस हैमलेट द्वारा बोली जाती है, 35 लाइन लंबी है।) की पहली पंक्ति है। शेक्सपियर "होना या न होना" में कई रूपकों का उपयोग करते हैं, जो इसे आत्मभाषण में अब तक का सबसे प्रमुख साहित्यिक काव्य बनाता है। [Shakespeare uses several metaphors in "To be or not to be," making it by far the most prominent literary device in the soliloquy. ]
🔱🙏🔱1: Metaphor: प्रथम रूपक :"The undiscover'd country from whose bourn / No traveller returns." "एक ऐसा अनदेखा देश (ब्रह्म या परम् सत्य पूर्ण) जिसके सीमा से / कोई यात्री नहीं लौटता।"
यहाँ हम पाते है कि प्रिन्स हैमलेट भी नचिकेता की तरह श्रद्धावान युवा है ? वह हेमलेट भी नचिकेता की तरह मृत्यु के बाद क्या होता है, यह जानना चाहता है। ब्रह्म की तुलना वह एक ऐसे "undiscovered country" 'अज्ञात देश ' या अनोखे देश से कर रहा है , जहाँ पहुँच जाने के बाद कोई लौटता नहीं है। [अर्थात मृत्यु के बाद, या देश-काल -निमित्त का अतिक्रमण करके आत्मसाक्षात्कार करने के बाद कोई व्यक्ति जीवित नहीं लौटता ? केवल ईश्वरकोटि का मनुष्य माँ काली की कृपा से ही वापस लौट सकता है।
"होना या न होना" में, शेक्सपियर सुषुप्ति अवस्था की धारणा को मृत्यु के विकल्प के रूप में उपयोग करता है जब हेमलेट कहता है, "क्या मरना भी, गाढ़ी नींद में सो जाने जैसा है ?" क्योंकि सुषुप्ति की अवस्था भी बहुत कुछ मृत्यु के समान मालूम पड़ती है। हम लोग अक्सर मृत्यु को "शाश्वत नींद" या "eternal slumber" के रूप में वर्णित करते हैं। अन्त में उसे यह पता चलता है कि मृत्यु की तुलना स्वप्नावस्था से करना बेहतर होगा , क्योंकि हम यह नहीं जानते कि हमारा अगला जन्म किस रूप में होगा ? (यदि पुनर्जन्म होता हो , या जीवन शाश्वत होता हो)
[Here, Hamlet is comparing the afterlife, or what happens after death, to an "undiscovered country" from which nobody comes back (meaning you can’t be resurrected once you’ve died). In "To be or not to be," Shakespeare uses the notion of sleep as a substitute for death when Hamlet says, "To die, to sleep." Because the act of sleeping looks very much like death. we often describe death as an "eternal sleep" or "eternal slumber," when he realizes that it’s actually better to compare death to dreaming because we don’t know what kind of afterlife (if any) there is. ]
"To die, to sleep; / To sleep: perchance to dream." "मरने के लिए, सोने के लिए; / मर जाना सुषुप्ति नहीं है, यदि मृत्यु की तुलना स्वप्नवस्था से करें तो शायद हमें भी अगले जन्म को देखने का मौका मिलेगा ।" [Here, the phrase "to sleep" comes at the end of one clause and at the start of the next clause.]
यद्यपि प्रिंस हैमलेट सोंचता है कि जब वह आत्मसंवाद कर रहा होता है,उस समय वहाँ कोई नहीं है, और वहाँ अकेला है। जबकि किंग क्लॉडियस (उसका विश्वासघाती चाचा और उसके पिता का हत्यारा) और पोलोनियस (राजा के पार्षद-उसकी प्रेमिका ओलिफिया का पिता) दोनों छिप कर सुन रहे हैं, और फुसफुसाकर बातें कर रहे हैं।) इससे पहले कि हैमलेट अपना आत्मभाषण शुरू करे, क्लॉडियस और पोलोनियस हेमलेट (और बाद में ओफेलिया भी दृश्य में प्रवेश करती है) किन्तु छिपकर बातें सुनने के प्रयास में छिपते हुए दिखाई देते हैं। अब, दर्शकों को यह नहीं पता कि क्या हेमलेट जानता है कि उसकी बात सुनी जा रही है।
प्रिंस हैमलेट जीवन, मृत्यु और आत्महत्या के बारे में सोचता है। विशेष रूप से, वह सोचता है कि क्या किसी के दुख को समाप्त करने और जीवन से जुड़े दर्द और पीड़ा को पीछे छोड़ने के लिए आत्महत्या करना बेहतर हो सकता है।
अज्ञानवश वह मरने की क्रिया की तुलना शांतिपूर्ण नींद से करता है:"And by a sleep to say we end / सुषुप्ति की अवस्था में जैसे अहं नहीं रहता है, तो लगता है हम भी जैसे समाप्त हो गए हों / The heart-ache and the thousand natural shocks / That flesh is heir to." दिल का दर्द और हज़ारों कुदरती झटके/आखिर यह शरीर ही तो इसका वारिस है।"
हालाँकि, जब वह समझता है कि कोई भी यह निश्चित रूप से नहीं जानता कि मृत्यु के बाद क्या होता है ? अर्थात् क्या पुनर्जन्म होता है, पुनर्जन्म होता है या नहीं ? यदि आत्महत्या करने के बाद दुबारा जन्म लेना पड़ा तो हो सकता है कि अगला जन्म इस जीवन से भी बदतर हो ? तब वह जल्दी से अपने आत्महत्या के विचार को बदल देता है।
हमलोग जानते हैं कि प्रिंस हैमलेट के मन में तूफान उठ रहे थे कि क्या उसे अपने धोखेबाज चाचा क्लॉडियस को मार कर अपने पिता की मौत का बदला लेना चाहिए या नहीं ? इस आत्मभाषण से पहले और उसके दौरान हेमलेट द्वारा पूछे गए प्रश्न इस प्रकार हैं: क्या वह सचमुच में उसके पिता का ही भूत (प्रेतात्मा) था जिसे उसने बिल्कुल स्पष्ट रूप से सुना और देखा था? क्या वास्तव में क्लॉडियस ने उसके पिता को जहर दिया था? अर्जुन की तरह प्रिंस हैमलेट भी निर्णय नहीं कर पा रहा होता है कि उसे अपने दुष्ट दुर्यधन रूपी चाचा क्लॉडियस को मार देना चाहिए या नहीं ? क्या उसे क्लॉडियस को मार देना चाहिए अथवा क्या उसे खुद आत्महत्या कर लेनी चाहिए ? यदि वह क्लॉडियस को मार देता है, तो उसका परिणाम क्या होगा ? और यदि उसे नहीं मारता है, तब उसका परिणाम क्या होगा ? यहाँ प्रिंस हैमलेट अनिर्णय की स्थिति में फँस जाता है। (2022 शिविर उद्घाटन सत्र में स्वामी दिव्यानन्द जी कह रहे थे कि एक कुत्ता है, जो नियमित रूप से एकादशी करता है !!) मृत्यु के बाद, अगले जन्म में मनुष्य को क्या बनना पड़ेगा; इसकी अनिश्चितता ही वह मुख्य कारण है कि अधिकांश लोग आत्महत्या नहीं करते; और प्रिंस हैमलेट भी आत्महत्या के विचार को त्याग देता है। 'leading him to straddle the line between action and inaction.' युद्ध में तो हत्या होगी और हत्या जैसा घोर कर्म करूँ या अकर्मण्य बन जाऊँ ? ['Be and Make ' आन्दोलन के अभियान मंत्र के अनुसार 'बहुजन हिताय, बहुजन सुखाय चरैवेति, चरैवेति" करते हुए एक रणनीति या 'strategy ' बनाकर आगे बढ़ता जाऊँ ?
(ब्रह्म और जगत, The Absolute and Manifestation) जगत और मृत्यु ( The World and Death, रूपा माँ काली) को तार्किक रूप से समझने की हैमलेट की कोशिशों के बावजूद, कुछ ऐसी चीज़ें हैं जिन्हें वह तब तक नहीं जान पाएगा जब तक कि वह खुद मर नहीं जाता, जिससे उसकी उभयभाविता (ambivalence) का अन्तर्द्वन्द्व और अधिक बढ़ जाती है। (अर्थात गुरु-शिष्य परम्परा में जब तक ज्ञाता-ज्ञेय-ज्ञान एक नहीं हो जाता, उसका अहं मिट नहीं जाता, या सच्चिदानन्द की अनुभूति नहीं होजाती, मनुष्य जीवन के उद्देश्य को समझा नहीं जा सकता। )
[Despite Hamlet's attempts to logically understand the world and death, there are some things he will simply never know until he himself dies, further fueling his ambivalence.]
एक अत्यधिक तनावग्रस्त, लगभग "पागल" जैसे विचारमग्न मनुष्य के सरल चिंतन के रूप में "होना या न होना" एक ऐसा आत्मभाषण है, जिसे जीवन क्या है? मृत्यु क्या है? यदि मैं आत्मा हूँ तो मरता कौन है ? फिर समग्र रूप से एक गृहस्थ मनुष्य का धर्म क्या है ? इन सब प्रश्नों का सही उत्तर क्या है ? साधारण मनुष्य को इसके बारे में अब और क्या सोचना है, इसका कोई पता नहीं है। जो भी हो, यह स्पष्ट है कि प्रिंस हेमलेट एक बुद्धिमान व्यक्ति है जो एक कठिन निर्णय लेने का प्रयास कर रहा है। चाहे वह वास्तव में "पागल" है या पागल होने का ढोंग तो नहीं कर रहा है ? नाटक देखते समय या बाद में यह तय करना आपके ऊपर है!
"To be or not to be" soliloquy as the simple musings of a highly stressed-out, possibly "mad" man, who has no idea what to think anymore when it comes to life, death, and religion as a whole.]
[However, he quickly changes his tune when he considers that nobody knows for sure what happens after death, namely whether there is an afterlife and whether this afterlife might be even worse than life.
साभार /https://blog.prepscholar.com/to-be-or-not-to-be-soliloquy/ हन्ना मुनीज़ (Hannah Muniz) : हन्नाह ने मिशिगन विश्वविद्यालय से जापानी अध्ययन में एमए किया है और दक्षिणी कैलिफोर्निया विश्वविद्यालय से स्नातक की डिग्री प्राप्त की है। 2013 से 2015 तक, उसने JET प्रोग्राम के माध्यम से जापान में अंग्रेजी सिखाई। वह शिक्षा, लेखन और यात्रा के प्रति रूचि रखती हैं । Hannah received her MA in Japanese Studies from the University of Michigan and holds a bachelor's degree from the University of Southern California. From 2013 to 2015, she taught English in Japan via the JET Program. She is passionate about education, writing, and travel.
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🔱🙏नेता पैदा होते हैं बनाए नहीं जाते 🔱🙏
🔱🙏नेता पैदा नहीं होते, गुरु-शिष्य परम्परा में बनते भी हैं🔱🙏
Which came first the chicken or the egg? To be or not to be? Nature versus Nurture? कौन पहले आया, मुर्गा या अंडा? होना या नहीं होना ? प्रकृति बनाम पालने वाला? क्या प्रकृति (शक्ति) के मुकाबले पालने वाले ब्रह्म (अवतार) बड़े हैं ? नहीं -ब्रह्म और शक्ति अभेद हैं ! किन्तु जगत माँ काली का राज्य है यहाँ ब्रह्म को भी माँ का पुत्र या दास बनकर ही रहना पड़ेगा। स्त्री-मात्र ही मृत्युरूपा माँ काली हैं।
>>>The Great Man Theory of Leadership द ग्रेट मैन थ्योरी की संकल्पना 19 वीं शताब्दी में इतिहासकार थॉमस कार्लाइल (Thomas Carlyle) जैसे विचारकों द्वारा की गई थी, जिन्होंने इस विचार को सामने रखा कि जगत का इतिहास छः महापुरुषों की जीवनियों के संग्रह से ज्यादा कुछ नहीं है।
ग्रेट मैन थ्योरी के विपरीत विचार : हर्बर्ट स्पेंसर, विक्टोरियन युग के राजनीतिक सिद्धांतकार, दार्शनिक, समाजशास्त्री और जीवविज्ञानी थे और उन्होंने प्रतिवाद किया कि ग्रेट मैन थ्योरी अवैज्ञानिक थी। उनका मानना था कि नेता अपने परिवेश की उपज होते हैं। उन्होंने वकालत की कि इससे पहले कि एक "महान व्यक्ति" अपने समाज का पुनर्निर्माण कर सके, उस समाज को उसे बनाना होगा। नेतृत्व एक ऐसा विज्ञान है जिसे सीखा और पोषित किया जा सकता है। विरोधी विचारों वाले लोगों का कहना है कि महान नेता अपने समय के अनुसार आकार और ढाले जाते हैं क्योंकि नेतृत्व करने के लिए आवश्यक गुणों को सीखा और सम्मानित किया जाता है ।
हालाँकि, प्रकृति बनाम पोषण (Nature versus Nurture?) के सवाल की तरह, ऐसे लोग भी हैं जो अभी भी ग्रेट मैन थ्योरी ऑफ़ लीडरशिप और इस विचार का समर्थन करते हैं कि पुरुष और महिला नेता पैदा होते हैं, बनाए नहीं जाते।
(द ग्रेट मैन थ्योरी ऑफ़ लीडरशिप) दो मुख्य मान्यताओं पर केंद्रित है:
(1.) महान नेता जन्म से ही कुछ ऐसे गुण रखते हैं जो उन्हें आगे बढ़ने और नेतृत्व करने में सक्षम बनाते हैं।
(2.) महान नेता तब पैदा हो सकते हैं जब उनकी बहुत आवश्यकता हो।
Trait Theory of Leadership: नेतृत्व की विशेषता सिद्धांत :
नेतृत्व का गुण मॉडल कई नेताओं की विशेषताओं पर आधारित है - सफल और असफल दोनों - और इसका उपयोग नेतृत्व प्रभावशीलता की भविष्यवाणी करने के लिए किया जाता है। सफलता या असफलता की संभावना का आकलन करने के लिए लक्षणों की परिणामी सूचियों की तुलना संभावित नेताओं से की जाती है।
सफल नेताओं में निश्चित रूप से रुचियां, क्षमताएं और व्यक्तित्व लक्षण होते हैं जो कम प्रभावी नेताओं से अलग होते हैं । 20वीं शताब्दी के पिछले तीन दशकों में किए गए कई शोधों के माध्यम से, सफल नेताओं के मूल लक्षणों के एक समूह की पहचान की गई है। ये लक्षण केवल यह पहचानने के लिए जिम्मेदार नहीं हैं कि कोई व्यक्ति एक सफल नेता होगा या नहीं, लेकिन उन्हें अनिवार्य रूप से पूर्व शर्त के रूप में देखा जाता है जो लोगों को नेतृत्व क्षमता प्रदान करता है।
विशेषता दृष्टिकोण लेने वाले विद्वानों ने शारीरिक (उपस्थिति, ऊंचाई और वजन), जनसांख्यिकीय (आयु, शिक्षा और सामाजिक आर्थिक पृष्ठभूमि), व्यक्तित्व, आत्मविश्वास और आक्रामकता), बौद्धिक (बुद्धिमत्ता, निर्णायकता, निर्णय और ज्ञान) की पहचान करने का प्रयास किया। कार्य-संबंधी (उपलब्धि ड्राइव, पहल, और दृढ़ता), और नेता के उद्भव और नेता की प्रभावशीलता के साथ सामाजिक विशेषताएं (सामाजिकता और सहयोग)।
" सृष्टि का अर्थ ही है बिभिन्नता। सृष्टि होने से पहले साम्य की अवस्था थी। यह सुझाव देने के लिए कि नेता असाधारण क्षमता के साथ दुनिया में प्रवेश नहीं करते हैं, इसका अर्थ यह है कि लोग समान क्षमताओं के साथ, समान प्रतिभाओं के साथ दुनिया में प्रवेश करते हैं, तो क्या सृष्टि में विभिन्नता नहीं होती ? (थॉमस कार्लाइल 1840)
कुछ जन्मजात विशेषताएं हैं जो लोगों को नेता बनने और नेता हो उठने के लिए उन्हें प्रेरित करती हैं। (There are certain inborn characteristics that predispose people to be and become leaders.)
जन्मजात (प्राकृतिक) नेता निर्मित (कृत्रिम नेता) से भिन्न होते हैं। सभी उल्लेखनीय नेताओं के पीछे महान इतिहास है। वे अपनी जीवन-यात्रा की शुरुआत से ही नेता थे।
Born (natural) Leaders are different to made (artificial leaders). All remarkable leaders have great history behind them. They were leaders from the onset of their journey.
यदि नेता पूरी तरह से पैदा हुए थे तो हममें से बाकी लोगों द्वारा नेतृत्व या प्रबंधन का अध्ययन करने का क्या मतलब है? If leaders were solely born what is the point of the rest of us studying leadership or management?
>>>नेता पैदा नहीं होते बनते हैं: Leaders are made not born: सेना इस सिद्धांत को अपनाती है जो इसके नेतृत्व प्रशिक्षण कार्यक्रम के माध्यम से स्पष्ट है। (The military embraces this doctrine which is evident through its leadership training programme.) क्या प्रबंधन और नेतृत्व पर एक कार्यक्रम कर लेने से, नामांकन पूरा होने पर कोई नेता बन सकता है? 'Can Charisma, Influence, Integrity and the ability to Inspire be taught?' क्या करिश्मा, प्रभाव, ईमानदारी और प्रेरित करने की क्षमता सिखाई जा सकती है? क्या किसी के नाम के बाद एक प्रमाण पत्र और कुछ अक्षर देना उन्हें नेता बना देगा?Soft skills can be explained, but not implanted.' सॉफ्ट स्किल्स को समझाया जा सकता है, लेकिन इम्प्लांट नहीं किया जा सकता। नेतृत्व एक सुनिश्चित विज्ञान के बजाय एक कला-कौशल सीखना है। यह शिक्षा, प्रशिक्षण और अनुभव के साथ समय के साथ परिष्कृत और सिद्ध जन्मजात गुणों का एक समूह है।
व्यवहारिक सिद्धांतों का मानना है कि लोग शिक्षण, सीखने और अवलोकन की प्रक्रिया के माध्यम से नेता बन सकते हैं। नेतृत्व कौशल का एक समूह है जिसे समय के साथ प्रशिक्षण, धारणा, अभ्यास और अनुभव से सीखा जा सकता है। नेतृत्व सीखना जीवन भर की गतिविधि है। अच्छे नेता विकास के अवसरों की तलाश करते हैं जो उन्हें नए कौशल सीखने में मदद करें।
उल्लेखनीय मानवजाति के मार्गदर्शक प्रेम स्वरुप नेताओं में- श्री राम, श्री कृष्ण, ईसा, बुद्ध, गुरु नानक, पैगम्बर मोहम्मद, श्रीरामकृष्ण -स्वामी विवेकानन्द- कैप्टन सेवियर -नवनीदा (राजीनीतिक नेताओं नेल्सन मंडेला, महात्मा गांधी, मार्टिन लूथर किंग जूनियर, आंग सान सू की)... आदि शामिल होंगे। ऐसे व्यक्ति जो न तो दौलत चाहते हैं और न ही शोहरत, जो पूर्णतः निस्वार्थ हों, न्याय से प्यार करते हैं, आम लोगों के कल्याण के लिए जुनूनी हैं और दूसरों की भलाई के लिए- "बहुजन हिताय , बहुजन सुखाय चरैवेति, चरैवेति" का काम करते रहते हैं।
Behavioral Theories believe that people can become leaders through the process of teaching, learning and observation. Leadership is a set of skills that can be learned by training, perception, practice and experience over time. Leadership learning is lifetime activity. Good leaders seek out development opportunities that will help them learn new skills.
Remarkable Leaders would include the likes of Nelson Mandela, Mahatma Ghandi, Martin Luther King Jr, Aung San Suu Kyi…etc. Individuals that seek neither wealth nor fame, selfless, loved justice, passionate about people and worked for the greater good of others.
Great Man theory and Trait theories believe that people inherit certain qualities and traits that make them better suited to leadership.
"To suggest that leaders do not enter the world with extraordinary endowment is to imply that people enter the world with equal abilities, with equal talents.” (Thomas Carlyle 1840)
Are Leaders Born or Made? A True Story [Brigette Hyacinth: Author of Leading the Workforce of the Future - Keynote Speaker]
In studying leadership, the theories can be overwhelming. It is evident you cannot really support a side and negate the other. Although there are thousands of books, decade’s worth of well documented studies, the debate can go on forever without converging to a logical conclusion.That’s why I would like to share a true story. Well, my story.
My Story: जब मैं छोटा था, तब से सभी बुजुर्ग ग्रामीण (जिनका पुराना अतीत है) मेरी माँ से कहते थे, "यह बच्चा अलग है"। मैं हमेशा केंद्रित और संचालित था और नेतृत्व करने का जुनून और इच्छा थी। मैं सोने का चम्मच या चांदी का चम्मच या किसी अन्य चम्मच के साथ पैदा नहीं हुआ था। बड़े होने में चीजें बेहद कठिन थीं। मैं वास्तव में अपने सभी रिश्तेदारों में केवल एक ही हूँ जिसने विज्ञान स्नातक शिक्षा प्राप्त करने के बाद अपनी इण्डस्ट्री की स्थापना की है। मेरी मां मेरी प्रथम शिक्षक हैं - और मुझे उन पर बहुत गर्व है। मुझे अपने बचपन की दो घटनायें बहुत स्पष्ट रूप से याद हैं। पहला मेरी माँ के साथ बातचीत कर रहा था जब मैं लगभग 5 साल का था और उन्हें बता रहा था कि मैं उन्हें जहाज में घुमाऊँगा। दूसरा लगभग 7 या 8 साल से एक पड़ोसी के साथ कंचे खेल रहा था और अपनी माँ को कहते सुन रहा था , मन से कभी हार मत मानना,तुम जो चाहोगे बन जाओगे, मुझे तुम्हीं पर भरोसा है ,अपने छोटे भाई को देखना, उसमें तो आत्मविश्वास ही नहीं है। किसी को पहले मत मारना, कोई बिना अपराध मारे तो उसका हाथ तोड़ देना, संगत हमेशा अच्छी रखना, सन्तोष के डाली पर मेवा फलता है।
Whilst most of the people in my community accepted being a victim of circumstances and floated downstream, I instinctively paddled upstream against the prevailing currents. Was it hard? “Yes”. Was it lonely? “Yes”. Did I get depressed? “Yes”. Yet, I was compelled to keep moving forward. Thank God!
जबकि मेरे समुदाय के अधिकांश लोगों ने परिस्थितियों का शिकार होना स्वीकार किया और नीचे की ओर तैरते रहे, मैं सहज रूप से प्रचलित धाराओं के खिलाफ ऊपर की ओर तैरता रहा। क्या यह कठिन था? "हां"। क्या यह अकेला था? "हां"। क्या मैं उदास हो गया? "हां"। फिर भी, मुझे आगे बढ़ते रहने के लिए मजबूर किया गया। सुकर है!
मेरा मानना है कि भीतर एक तीव्र प्रेमाग्नि नहीं तो उस प्रेम या निःस्वार्थपरता की कुछ गहरी चिंगारी अवश्य होनी चाहिए। यदि मुझे पूछें - नेता पैदा होते हैं या बनते हैं? मैं दोनों पर सहमति दूंगा। नेता दोनों प्रकार के होते हैं - वे पैदा भी होते हैं और बनते भी हैं।
I believe there must be some deep rooted spark if not an intense fire within. Are leaders born OR made? I beg to differ and shift the gauge to read both. Leaders are both born and made.
The Pareto principle named after economist Vilfredo Pareto, also known as the 80—20 rule states that for many events, roughly 80% of the effects come from 20% of the causes. It observes that most things have an unequal distribution. According to this principle, leaders are 80 percent made and 20 percent born.
However, studies conducted out of the University of Illinois, support past research that leadership is 30 percent genetic and 70 percent learned. As to how the percentage is precisely divided between both born and made, I believe this may be subject to individual circumstances, since no two leaders will have the exact ratios listed above. What is your story?
[योगिंद्र [योगिंद्रनाथ रायचौधरी - स्वामी योगानन्द (1861 - 1899)] - दक्षिणेश्वर के प्रसिद्ध सवर्ण चौधरी के परिवार में जन्म हुआ था। पिता नवीनचंद्र एक धर्मनिष्ठ ब्राह्मण थे। हालाँकि वे दक्षिणेश्वर में रहते थे, लेकिन वे श्री रामकृष्ण से कभी मिले नहीं थे। इसीलिए जब योगिनाद्रनाथ ने उन्हें पहली बार देखा तो ठाकुर देव को कालीबाड़ी का माली समझा। लेकिन श्री रामकृष्ण ने पहले ही दिन योगीन्द्र को 'ईश्वरकोटि' (..... अर्थात जो ब्रह्म-काली ऐक्य से साक्षात्कार करके वापस लौटने में समर्थ हो ?) के रूप में पहचान लिया था। बाद में, स्वामी निरंजनानंद ने एक बार कहा था -"योगीन हमलोगों के माथे का मुकुट है।" केशवचंद्र के निबंधों को पढ़ने के बाद, योगिन की श्री रामकृष्ण के दर्शन में (काली के दर्शन को समझने में) रुचि हो गई थी । अपने प्रथम परिचय में ही श्री रामकृष्ण ने कहा था “महान वंश में तुम्हारा जन्म हुआ है- तुम्हारे सारे लक्षण अच्छे हैं। उच्च आधार है - तुम्हें ईश्वर में प्रचुर (भक्ति) होगी।" इसलिए विवाह के बाद जब वे एक अपराधी की तरह ठाकुर देव के समक्ष उपस्थित हुए तब ठाकुर ने उनसे कहा था, यहां की कृपा (श्री रामकृष्ण देव की कृपा) जिस पर हो गयी हो तो, उसके लाख शादी करने से भी कोई क्षति नहीं है। सांसारिक दाँव-पेंच से अनभिज्ञ योगिंद्रनाथ को ठाकुर ने विभिन्न शिक्षाओं के माध्यम से सांसारिक-विघ्नो पर विजय प्राप्त करने में प्रशिक्षित किया था। (इनकम टैक्स को दिखाकर धन अर्जित करो।) इसी क्रम में एक बार उन्होंने योगिन से कहा था - " भक्त होबी, तो बोका होबी केनो ? " अर्थात यदि तुम यहाँ के भक्त (माँ काली के भक्त ?) हो तो, मूर्ख भक्त क्यों बनोगे ? काशीपुर उद्यान बाटी में उन्होंने प्राणपण से ठाकुर देव की सेवा-सुश्रुषा की थी। ठाकुर देव के निर्देश पर, स्वयं श्रीश्री माँ ने उन्हें मंत्र -दीक्षा भी दी थी। उसके बाद लगभग हमेशा श्री माँ के चरणों में रहते हुए उन्होंने अपना शेष जीवन उनकी सेवा करते हुए में बिताया था। इसी क्रम में श्रीश्री माँ सारदा देवी के साथ तीर्थ यात्रा पर जाने का सौभाग्य भी प्राप्त किया था। अत्यधिक परिश्रम और पेट की बीमारियों से पीड़ित होने के कारण मात्र 38 वर्ष की आयु में उनका निधन हो गया। बेलूर मठ के लिए भूमि की खरीद में उनका योगदान उल्लेखनीय है। ]
>>>Drinking coconut water is necessary to keep the brain nerves calm !! 29.12.2022 -गंगाधरपुर कैम्प में, प्रमोद दा ने सुबह में नारियल पानी दिया था -मृत्यु काल की बेचैनी का अनुभव होने पर दादा के दादू ने अपनी माँ के हाथों से नारियल पानी पीया था। कैम्प शुरू होने के पहले आन्दुल दर्शन - दादा का स्कूल, माँ अन्नपूर्णा मन्दिर, गोपाल भी हैं उनका दर्शन माँ-सारदा के बालिका रूप में कहने पर हुआ। माँ सिद्धेश्वरी का दर्शन,राजबाड़ी का नाचघर, प्रेमिक महाराज के घर पर स्वामीजी के पिताजी जाते थे। स्वामीजी की माँ-पिताजी के गुरु के यहाँ दादू भी जाते थे। भास्कर सेन, गार्ड ड्यूटी, C/O सुशान्तो बन्दोपाध्याय, जहीरुल C/O समीर दास गुप्ता, अजय पाण्डे, अनिन्दो, अरुणाभ, [पिन्टू, शशि,] एक रूम में, प्रशान्त चक्रवर्ती गुडबुक ऑफ़ केजेन, -पदतले, नवनीदा के बाद क्या आप? प्रमोद दा, बिकास दा,जितेन्द्र सिंह, दुखीराम देवांगन, जज, तुहिन, दीपक सरकार, नरेन दा, बासु दा की इच्छा, ये सभी मेरे शुभ चिन्तक आदमी।के साथ सफ़ेद दाढ़ी वाला बिजनेस मैन, ट्रक से माल लेकर ,सिटी ऑफिस आया , मुझे प्रणाम किया। इस बार मिन्टू दा का कोई हेल्प नहीं मिला सामान ढोने में या डेकोरेशन में। सौमेन दा ने बहुत अच्छा थीम दिया था, रथपर सवार स्वामीजी का चित्र बनाना कष्टकर था। शोला का काम करने वाला शिल्पी मिला था -" भारत का पुनरुत्थान शरीर की शक्ति से नहीं, आत्मा की शक्ति द्वारा होगा ! "{[भारत का पुनरुत्थान होगा, पर वह जड़ की शक्ति से नहीं , वरन आत्मा की शक्ति द्वारा। "९/३८० India will be raised not with the power of the flesh but by the power of spirit" -(Volume 4, Writings: Prose)]
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