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बुधवार, 8 दिसंबर 2021

🔆🙏$$$$$$🔆🙏परिच्छेद- 96, [ (5 अक्टूबर, 1884) श्रीरामकृष्ण वचनामृत]

 परिच्छेद- 96, [ (5 अक्टूबर, 1884) श्रीरामकृष्ण वचनामृत ]  साभार ~ श्री महेन्द्रनाथ गुप्त(बंगाली), कवि श्री पं. सूर्यकान्त त्रिपाठी ‘निराला’(हिंदी अनुवाद)साभार विद्युत् संस्करण ~ रमा लाठ

परिच्छेद- ९६ 

(१)

 [ (5 अक्टूबर, 1884) श्रीरामकृष्ण वचनामृत ]  

🔆🙏अहेतुकी भक्ति-हाजरा महाशय - मुक्ति तथा षडैश्वर्य🔆🙏

रविवार, 5 अक्टूबर, 1884; श्रीरामकृष्ण दक्षिणेश्वर-मन्दिर में भक्तों के साथ दोपहर का भोजन समाप्त करके अपने कमरे में बैठे हुए हैं । पास में जमीन पर मास्टर, हाजरा, बड़े काली, बाबूराम, रामलाल, मुखर्जियों के हरि आदि उपस्थित हैं, कुछ बैठे हैं और कुछ खड़े हैं । श्रीयुत केशव की माता के निमन्त्रण में कल उनके कोलूटोलावाले मकान में जाकर श्रीरामकृष्ण को खूब कीर्तनानन्द मिला था ।

[ঠাকুর শ্রীরামকৃষ্ণ দক্ষিণেশ্বর-মন্দিরে, ভক্তসঙ্গে মধ্যাহ্নসেবার পর নিজের ঘরে বসিয়া আছেন (৫ই অক্টোবর, ১৮৮৪)। কাছে মেঝেতে মাস্টার, হাজরা, বড় কালী, বাবুরাম, রামলাল, মুখুজ্জেদের হরি প্রভৃতি — কেহ বসিয়া কেহ দাঁড়াইয়া আছেন। শ্রীযুক্ত কেশবের মাতাঠাকুরানীর নিমন্ত্রণে গতকল্য তাঁহাদের কলুটোলার বাড়িতে গিয়া ঠাকুর কীর্তনানন্দ করিয়াছিলেন।

Sri Ramakrishna was sitting in his room after the midday meal, with M., Hazra, the elder Kali, Baburam, Ramlal, Hari, and others. Some of them sat on the floor and some stood about. On the previous day the Master had visited Keshab's mother at her Calcutta house and had made her happy with his devotional songs.

श्रीरामकृष्ण - (हाजरा से) - कल मैंने केशव सेन के यहाँ (उनके बड़े भाई नवीन सेन के घर पर) खूब आनन्द से प्रसाद पाया । बड़ी भक्ति से उन लोगों ने परोसा था ।

[শ্রীরামকৃষ্ণ (হাজরার প্রতি) — আমি কাল কেশব সেনের এ বাটীতে (নবীন সেনের বাটীতে) বেশ খেলুম — বেশ ভক্তি করে দিলে।

 [ (5 अक्टूबर, 1884) श्रीरामकृष्ण वचनामृत ]  

🔆🙏हाजरा महाशय और तत्त्वज्ञान 🔆🙏

[হাজরা মহাশয় ও তত্ত্বজ্ঞান — হাজরা ও তর্কবুদ্ধি ]

हाजरा महाशय बहुत दिन से श्रीरामकृष्ण के पास रहते हैं । 'मैं ज्ञानी हूँ' यह कहकर वे कुछ अभिमान भी करते हैं । लोगों से श्रीरामकृष्ण की कुछ निन्दा भी करते हैं । इधर बरामदे में तल्लीन होकर माला भी जपते हैं।

चैतन्यदेव को 'आधुनिक अवतार है' कहकर साधारण समझते हैं । कहते हैं 'ईश्वर केवल भक्ति देते हैं, यही नहीं, उनके ऐश्वर्य का भी ओर-छोर नहीं है; वे ऐश्वर्य भी देते हैं । उन्हें पाने पर अष्टसिद्धियों से शक्ति भी प्राप्त होती है ।' अपने घर के निर्माण के लिए उन्होंने कुछ ऋण लिया था - हजार रुपये के लगभग होगा । उन्हें वह ऋण वापस लौटाना है, इसके लिए उन्हें चिन्ता रहती है ।

[হাজরা মহাশয় অনেকদিন ঠাকুরের কাছে রহিয়াছেন। “আমি জ্ঞানী”; এই বলিয়া তাঁহার একটু অভিমান আছে। লোকজনের কাছে ঠাকুরের একটু নিন্দাও করাও হয়। এদিকে বারান্দাতে নিজের আসনে বসিয়া একমন হইয়া মালা জপও করেন। চৈতন্যদেবকে “হালের অবতার” বলিয়া সামান্য জ্ঞান করেন। বলেন, “ঈশ্বর যে শুদ্ধ ভক্তি দেন, তা নয়; তাঁহার ঐশ্বর্যের অভাব নাই, — তিনি ঐশ্বর্যও দেন। তাঁকে লাভ করলে অষ্টসিদ্ধি প্রভৃতি শক্তিও হয়।” বাড়ির দরুন কিছু দেনা আছে — প্রায় হাজার টাকা। সেগুলির জন্য তিনি ভাবিত আছেন।

Hazra had been living with the Master at Dakshineswar a long time. He was a little conceited about his knowledge and even criticized the Master now and then before others. Again, he would sit on the verandah of the Master's room and tell his beads with apparent concentration. He spoke slightingly of Chaitanya as a "modern Incarnation". He would say: "God gives not only pure devotion but also wealth. He has no lack of it. By attaining God one obtains the eight occult powers as well." Hazra had a small debt to clear up, about one thousand rupees. He had incurred it for the building of his house and was worried about paying it.

बड़े काली ऑफिस में काम करते हैं । तनख्वाह बहुत कम पाते हैं । घर में स्त्री और लड़के-बच्चे भी हैं। श्रीरामकृष्ण पर इनकी बड़ी भक्ति है । कभी-कभी ऑफिस जाना बन्द करके भी श्रीरामकृष्ण के दर्शन के लिए आते हैं ।

[বড় কালী অফিসে কর্ম করেন। সামান্য বেতন। ঘরে পরিবার ছেলেপুলে আছে। পরমহংসদেবের উপর খুব ভক্তি; মাঝে মাঝে আফিস কামাই করিয়াও তাঁহাকে দর্শন করিতে আসেন।

The elder Kali had a position in an office, from which he received a small salary. He had a large family to maintain. He was devoted to the Master and visited him now and then, even absenting himself from the office.

 [ (5 अक्टूबर, 1884) श्रीरामकृष्ण वचनामृत ]  

🔆🙏हाजरा अपने को कसौटी का पत्थर (touchstone) समझते थे खरा-खोटा परखते थे🔆🙏 

बड़े काली - (हाजरा से) - तुम स्वयं अपने को तो कसौटी का पत्थर (touchstone) समझते हो और दूसरों में कौनसा सोना खरा है और कौनसा बुरा, इसकी परीक्षा लेते फिरते हो - भला इस तरह दूसरों की इतनी निन्दा क्यों करते हो ?

[বড় কালী (হাজরার প্রতি) — তুমি যে কষ্টিপাথর (कोष्टीपाथर) হয়ে, কে ভালো সোনা, কে মন্দ সোনা, পরখ করে করে বেড়াও — পরের নিন্দা অত করো কেন?

KALI (to Hazra): "You go about criticizing people; you are like a touch-stone, testing what is pure gold and what is impure. Why do you speak so much ill of others?"

हाजरा - जो कुछ कहना होता है, मैं इन्हीं के पास कहता हूँ ।

[হাজরা — যা বলতে হয়, ওঁর কাছেই বলছি।

HAZRA: "Whatever I say, I say to him [meaning Sri Ramakrishna] alone."

श्रीरामकृष्ण - और क्या !

[শ্রীরামকৃষ্ণ — তা বটে।

MASTER: "That is so."

[ (5 अक्टूबर, 1884) श्रीरामकृष्ण वचनामृत ] 

🔆🙏'कसौटी के पत्थर'- हाजरा महाशय 'षडरिपु' को भी 24 तत्व में गिनते थे🔆🙏

हाजरा तत्त्वज्ञान की व्याख्या कर रहे हैं ।

[হাজরা তত্ত্বজ্ঞান মানে ব্যাখ্যা করিতেছেন।

Hazra began to explain Tattvajnana.

हाजरा - तत्त्वज्ञान का अर्थ है चौबीस तत्त्वों का ज्ञान प्राप्त करना; चौबीस तत्त्व कौन कौन से हैं । यह प्रश्न होता है ।

[হাজরা — তত্ত্বজ্ঞান মানে কি — না চব্বিশ তত্ত্ব আছে, এইটি জানা। 

HAZRA: "The meaning of Tattvajnana is the knowledge of the existence of the twenty-four tattvas, or cosmic principles."

একজন ভক্ত — চব্বিশ তত্ত্ব কি?

A DEVOTEE: "What are they?"

“पंचभूत, छः रिपु, पाँच ज्ञानेन्द्रिय और पाँच कर्मेन्द्रिय - यही सब ।"

[হাজরা — পঞ্চভূত, ছয় রিপু, পাঁচটা জ্ঞানেন্দ্রিয়, পাঁচটা কর্মেন্দ্রিয়, এই সব।

[HAZRA: "The five elements, the six passions, the five organs of perception, the five organs of action, and so forth."

[तत्वज्ञान के बारे में हाजरा की यह धारणा त्रुटिपूर्ण  थी। 

He was wrong about the meaning of the word.

मास्टर - (श्रीरामकृष्ण से हँसकर) - ये बतलाते हैं, छ: रिपु चौबीस तत्त्वों के भीतर हैं !

[মাস্টার (ঠাকুরকে, সহাস্যে ) — ইনি বলছেন, ছয় রিপু চব্বিশ তত্ত্বের ভিতরে?

M. (to the Master, smiling): "He says that the six passions are included in the twenty-four cosmic principles."

[विवेकानन्द -कैप्टन सेवियर वेदान्त शिक्षक-प्रशिक्षण परम्परा-'Be and Make'में प्रशिक्षित CINC नवनीदा जैसे आचार्य, नेता -जीवनमुक्त शिक्षक से 3H विकास के 5 अभ्यास का  प्रशिक्षण प्राप्त करने पर, ईश्वर की कृपा से  जब  जीवात्मा (embodied soul) और परमात्मा (Supreme Self) के एकत्व की अनुभूति हो जाती है- तब 'तत्त्वज्ञान' होता है ।]

 [ (5 अक्टूबर, 1884) श्रीरामकृष्ण वचनामृत ] 

🔆🙏नेता तत्वज्ञान का अर्थ बतलाते है -आत्मज्ञान; जीवात्मा परमात्मा के एकत्व ज्ञान🔆🙏  

🔆 तत् अर्थात् परमात्मा, त्वं अर्थात् जीवात्मा-तत्वमसि🔆 

श्रीरामकृष्ण - (हँसकर) - अब इसी से समझो । और देखो, तत्त्वज्ञान का कैसा अर्थ बतलाता है ।

तत्त्वज्ञान का अर्थ है आत्मज्ञान । तत् अर्थात् परमात्मा, त्वं अर्थात् जीवात्मा ! जीवात्मा (embodied soul) और परमात्मा (Supreme Self) के एकत्व की अनुभूति होने पर तत्त्वज्ञान होता है ।

[শ্রীরামকৃষ্ণ (সহাস্যে) — ওই দেখ না। তত্ত্বজ্ঞানের মানে কি করছে আবার দেখ। তত্ত্বজ্ঞান মানে আত্মজ্ঞান! তৎ মানে পরমাত্মা, ত্বং মানে জীবাত্মা। জীবাত্মা আর পরমাত্মা এক জ্ঞান হলে তত্ত্বজ্ঞান হয়।

MASTER (smiling): "Listen to him! Notice how he explains Tattvajnana! The word really means 'knowledge of Self. The word 'Tat' means the Supreme Self, and the word 'tvam', the embodied soul. One attains Supreme Knowledge, Tattvajnana, by realizing the identity of the embodied soul and the Supreme Self."

हाजरा कुछ देर में घर से निकलकर बरामदे में जा बैठे ।

[হাজরা কিয়ৎক্ষণ পরে ঘর হইতে বারান্দায় গিয়া বসিলেন।

After a few minutes Hazra left the room and sat on the porch.

[ (5 अक्टूबर, 1884) श्रीरामकृष्ण वचनामृत ]  

🔆🙏 बंशी से मछली पकड़ने वाला नेता (The Angler) तर्क में नहीं उलझते 🔆🙏

श्रीरामकृष्ण - (मास्टर आदि से) - वह बस तर्क करता है । अभी देखते ही देखते खूब समझ गया, परन्तु थोड़ी देर बाद फिर जैसे का तैसा !

[শ্রীরামকৃষ্ণ (মাস্টার প্রভৃতিকে) — ও কেবল তর্ক করে। এই একবার বেশ বুঝে গেল — আবার খানিক পরে যেমন তেমনি।

MASTER (to M. and the others): "He [meaning Hazra] only argues. This moment perhaps he understands, but the next moment he is his old self again.

“बड़ी मछली को जोर से खींचते हुए देखकर मैं डोर ढीली कर देता हूँ । नहीं तो डोर तोड़ डालेगी और डोर पकड़नेवाला भी पानी में गिर जायगा । इसलिए मैं कुछ कहता नहीं ।

[“বড় মাছ জোর করছে দেখে আমি সুতো ছেড়ে দিই। তা নাহলে সুতো ছিঁড়ে ফেলবে, আর যে ধরেছে, সে শুদ্ধ জলে পড়বে। আমি তাই আর কিছু বলি না।

"When the angler (बंशी से मछली पकड़ने वाला) hooks a big fish and finds it pulling hard, he releases the line; otherwise it will snap and the angler himself will be thrown into the water. Therefore I do not say much to him.

[मुक्ति और षडऐश्वर्य  - हाजरा की मलिन और निःस्वार्थ भक्ति]

[হাজরা ও মুক্তি ও ষড়ৈশ্বর্য — মলিন ও অহেতুকী ভক্তি ]

  [ (5 अक्टूबर, 1884) श्रीरामकृष्ण वचनामृत ]  

🔆🙏सिर्फ निःस्वार्थ भक्ति के बल पर -'अब्राह्मण -शबरी और रैदास ' की मुक्ति हुई🔆🙏  

(मास्टर से) “हाजरा कहता है, ब्राह्मण का शरीर धारण किये बिना मुक्ति नहीं होती । मैंने कहा, यह कैसी बात ! भक्ति से ही मुक्ति होती है । शबरी व्याघ की लड़की थी, रैदास - जिसके भोजन के समय घण्टा बजता था - ये सब शुद्र थे । इनकी मुक्ति भक्ति से ही हुई है । हाजरा इसमे 'परन्तु' जोड़ता है ।

[(মাস্টারকে) — “হাজরা বলে, ‘ব্রাহ্মণ শরীর না হলে মুক্তি হয় না।’ আমি বললাম, সে কি! ভক্তি দ্বারাই মুক্তি হবে। শবরী ব্যাধের মেয়ে, রুহিদাস যার খাবার সময় ঘন্টা বাজত — এরা সব শূদ্র। এদের ভক্তি দ্বারাই মুক্তি হয়েছে! হাজরা বলে তবু!

(To M.) "Hazra said that a man could not be liberated unless he was born in a brahmin body. 'How is that?' I said. 'One attains liberation through bhakti alone. Savari was the daughter of a hunter. She, Ruhidas, and others belonged to the sudra caste. They were liberated through bhakti alone.' 'But still —' Hazra insisted. 

"ध्रुव को लेता है । प्रह्लाद को जितना लेता है, उतना ध्रुव को नहीं । लाटू ने कहा बचपन से ही परमात्मा पर ध्रुव का अनुराग था, तब वह चुप हुआ ।

[“ধ্রুবকে ল্যায়। প্রহ্লাদকে যত ল্যায়, ধ্রুবকে তত না। নটো বললে ‘ধ্রুবের ছেলেবেলা থেকে অত অনুরাগ’ — তখন আবার চুপ করে।

"He recognized Dhruva's spiritual greatness, but not as much as he recognized Prahlada's. When Latu said, 'Dhruva had great yearning for God from his boyhood', he kept still.

[ (5 अक्टूबर, 1884) श्रीरामकृष्ण वचनामृत ]  

🔆🙏हाजरा नहीं मानता कि -'ईश्वरलाभ के लिए निष्काम भक्ति आवश्यक है'🔆🙏 

“मैं कहता हूँ, कामनाशून्य अहेतुकी भक्ति होनी चाहिए । इससे अधिक और कुछ भी नहीं है, हाजरा को यह बात मान्य नहीं हुई । याचक के आने पर धनी व्यक्ति बहुत नाराज होता है । विरक्ति से कहता है - ओफ, आ रहा है । आने पर एक खास तरह की आवाज में कहता है - 'बैठिये’ । मानो अत्यधिक नाराज हो । ऐसे लोगों को वह अपने साथ गाड़ी पर नहीं बैठाता ।

[“আমি বলি কামনাশূন্য ভক্তি, অহেতুকী ভক্তি — এর বাড়া আর কিছুই নাই। ও-কথা সে কাটিয়ে দেয়। যারা কিছু চাইবে, তারা এলে, বড়মানুষ ব্যাজার হয় — বিরক্ত হয়ে বলে, ওই আসছেন। এলে পরে একরকম স্বর করে বলে ‘বসুন’! — যেন কত বিরক্ত। যারা কিছু চায়, তাদের এক গাড়িতে নিয়ে যায় না।

"I said that there was nothing greater than the bhakti that sought no end and had no selfish motive. Hazra contradicted me. I said to him, 'A wealthy man is annoyed when a petitioner comes to him. "There he comes", he says angrily. "Sit down", he says to him in an indifferent voice, and shows that he is much annoyed. He doesn't allow such a beggar to ride with him in his carriage.'

“हाजरा कहता है, वे दूसरे धनिकों की तरह नहीं है उन्हें ऐश्वर्य की क्या कमी है जो देने में उन्हें कष्ट होगा ।

"हाजरा और भी कहता है - 'आकाश का पानी जब गिरता है, तब गंगा और दूसरी बड़ी बड़ी नदियाँ, बड़े बड़े तालाब सब भर जाते हैं और गड़हियाँ भी भर जाती हैं । उनकी कृपा होती है तो वे ज्ञान-भक्ति भी देते हैं और रुपया-पैसा भी देते हैं ।"

[“হাজরা বলে, তিনি এ-সব ধনীদের মতো নয়। তাঁর কি ঐশ্বর্যের অভাব যে দিতে কষ্ট হবে?"“হাজরা তখন আরও বলে — ‘আকাশের জল যখন পড়ে তখন গঙ্গা আর সব বড় বড় নদী, বড় বড় পুকুর — এসব বেড়ে যায়; আবার ডোবা টোবাগুলোও পরিপূর্ণ হয়। তাঁর কৃপা হলে জ্ঞান-ভক্তিও দেন, — আবার টাকা-কড়িও দেন।’

But Hazra said that God was not like such wealthy people of the world; did He lack wealth, that He should feel pinched to give it away? Hazra said further: 'When rain falls from the sky, the Ganges and all the big rivers and lakes overflow with water. Small tanks, too, are filled. Likewise, God out of His grace grants wealth and riches as well as knowledge and devotion.'

[ (5 अक्टूबर, 1884) श्रीरामकृष्ण वचनामृत ]  

🔆🙏मिलावटी -भक्ति और शुद्धा भक्ति🔆🙏 

"परन्तु इसे मलिन-भक्ति कहते हैं । शुद्धा-भक्ति वह है, जिसमें कोई कामना नहीं रहती । तुम यहाँ कुछ चाहते नहीं, परन्तु मुझे और मेरी बातों को चाहते और प्यार करते हो । तुम्हारी ओर मेरा भी मन लगा रहता है । कैसे हो, क्यों नहीं आते, यह सब सोचता रहता हूँ ।

[“কিন্তু একে মলিন ভক্তি বলে। শুদ্ধাভক্তিতে কোন কামনা থাকবে না। তুমি এখানে কিছু চাও না কিন্তু (আমাকে) দেখতে আর (আমার) কথা শুনতে ভালবাস; — তোমার দিকেও আমার মন পড়ে থাকে — কেমন আছে — কেন আসে না — এই সব ভাবি।

(To the devotees) "But I call this impure devotion to God. Pure devotion has no desire behind it. You don't want anything from me, but you love to see me and hear my words. My mind also dwells on you. I wonder how you are and why you don't come.

“कुछ चाहते नहीं परन्तु प्यार करते हो, इसका नाम अहेतुकी भक्ति है - शुद्धा भक्ति है । यह प्रह्लाद में थी । न वह राज्य चाहता था, न ऐश्वर्य, केवल परमात्मा को चाहता था ।”

[“কিছু চাও না অথচ ভালবাস — এর নাম অহেতুকী ভক্তি। প্রহ্লাদের এটি ছিল; রাজ্য চায় না, ঐশ্বর্য চায় না, কেবল হরিকে চায়।

"You don't want anything of God but still you love Him. That is pure bhakti, love of God with no motive behind it. Prahlada had it. He sought neither kingdom nor riches; he sought Hari alone."

मास्टर - हाजरा महाशय बस यों ही कुछ ऊटपटांग बड़ा करते हैं । देखता हूँ, बिना चुप रहे कुछ होगा नहीं ।

[মাস্টার — হাজরা মহাশয় কেবল ফড়র ফড়র করে বকে। চুপ না করলে কিছু হচ্ছে না।

M: "Hazra is a chatterbox. He won't achieve anything unless he becomes silent."

[ (5 अक्टूबर, 1884) श्रीरामकृष्ण वचनामृत]  
🔆🙏किसी की निन्दा न किया करो; सब नामरूप नारायण ही धारण किये हुए हैं🔆🙏
[কারুকে নিন্দা করো না ~ নারায়ণই এই সব রূপ ধরে রয়েছেন। 
'Don't speak ill of anyone.' It is Narayana Himself who has assumed all these forms. 

श्रीरामकृष्ण - कभी कभी पास आकर खूब मुलायम हो जाता है, परन्तु दुराग्रही भी ऐसा है कि फिर तर्क करने लगता है । अहंकार का मिटना बड़ा मुश्किल है । बेर का पेड अभी काट डालो, दूसरे दिन फिर पनपेगा और जब तक उसकी जड़ है, तब तक नयी डालियों का निकलना बन्द न होगा ।

[শ্রীরামকৃষ্ণ — এক-একবার বেশ কাছে এসে নরম হয়! — কি গ্রহ, আবার তর্ক করে। অহংকার যাওয়া বড় শক্ত। অশ্বত্থগাছ, এই কেটে দিলে আবার তার পর দিন ফেঁ কড়ি বেরিয়েছে। যতক্ষণ তার শিকড় আছে ততক্ষণ আবার হবে।

MASTER: "Now and then he comes to me and becomes mellowed. But he is a pest; again he argues. It is very hard to get rid of egotism. You may cut down an aswattha tree, but the next day a sprout will spring up. As long as the roots remain, the tree will grow again.

"मैं हाजरा से कहता हूँ, किसी की निन्दा न किया करो । नारायण ही सब नामरूप धारण किये हुए हैं । दुष्ट मनुष्यों की भी पूजा की जा सकती है ।


 [ (5 अक्टूबर, 1884) श्रीरामकृष्ण वचनामृत]   

🔆🙏भक्त ईश्वर का बैठकखाना है ।🔆🙏

ভক্ত ঈশ্বরের বৈঠকখানা।

The devotee is His parlour. 

"देखो न कुमारी-पूजन । ऐसी लड़कियों की पूजा की जाती है जो देह में मल-मूत्र लगाये रहती हैं; ऐसा क्यों करते हैं ? इसलिए कि वे भगवती की एक मूर्ति हैं ।

“भक्त के भीतर वे विशेष रूप से रहते हैं । भक्त ईश्वर का बैठकखाना है

"कद्दू खूब बड़ा हो तो उसका तानपूरा बहुत अच्छा होता है - खूब बजता है ।

[“আমি হাজরাকে বলি, কারুকে নিন্দা করো না। "“নারায়ণই এই সব রূপ ধরে রয়েছেন। দুষ্ট খারাপ লোককেও পূজা করা যায়।“দেখ না কুমারীপূজা। একটা হাগে মোতে, নাক দিয়ে কফ পড়ছে এমন মেয়েকে পূজা করা কেন? ভগবতীর একটি রূপ বলে।“ভক্তের ভিতর তিনি বিশেষরূপে আছেন। ভক্ত ঈশ্বরের বৈঠকখানা।“নাউ-এর খুব ডোল হলে তানপুরা ভাল হয়, — বেশ বাজে।

I said to Hazra, 'Don't speak ill of anyone.' It is Narayana Himself who has assumed all these forms. One can worship even a wicked person. Haven't you observed the Kumari Puja? Why should you worship a girl who has all the physical limitations of a human being? It is because she is a form of the Divine Mother. But God dwells in a special way in His devotee. The devotee is His parlour. If the gourd has a large body then it makes a good tanpura. It gives a nice sound."

(हँसते हुए रामलाल से) "क्यो रे रामलाल, हाजरा ने कैसे कहा था - अन्तस् बहिस् यदि हरिस् (सकार लगाकर) ? कैसा किसी ने कहा था - 'मातारं भातारं खातारं" - अर्थात् माँ भात खा रही है ।" (सब हँसते हैं ।)

[(সহাস্য, রামলালের প্রতি) — “হ্যারে রামলাল, হাজরা ওটা কি করে বলেছিস — অন্তস্‌ বহিস্‌ যদি হরিস্‌ (স-কার দিয়ে)? যেমন একজন বলেছিল মাতারং ভাতারং খাতারং অর্থাৎ মা ভাত খাচ্ছে ।” (সকলের হাস্য)

रामलाल - (हँसते हुए) - अन्तर्बहिर्यदिहरिस्तपसा ततः किम् ?

রামলাল (সহাস্যে) — অনতর্বহির্যদিহরিস্তপসা ততঃ কিম্‌।

श्रीरामकृष्ण - (मास्टर से) - इसका अभ्यास कर लेना । कभी कभी मुझे सुनाना ।

শ্রীরামকৃষ্ণ (মাস্টারের প্রতি) — এইটে তুমি অভ্যাস করো, আমায় মাঝে মাঝে বলবে।

(२)

 [ (5 अक्टूबर, 1884) श्रीरामकृष्ण वचनामृत]   

🔆🙏निष्काम कर्म । संसारी तथा ‘सोऽहं’🔆🙏

आज पंचवटी में दो साधु आये हुए हैं । वे गीता और वेदान्त यह सब पढ़ते हैं । दोपहर के भोजन के बाद श्रीरामकृष्ण के कमरे में आकर दर्शन कर रहे हैं । श्रीरामकृष्ण अपनी छोटी खाट पर बैठे हुए हैं । साधुओं ने प्रणाम किया, फिर जमीन पर चटाई पर बैठ गये । मास्टर आदि भी बैठे हुए हैं । श्रीरामकृष्ण हिन्दी में बातचीत कर रहे हैं ।

[আজ পঞ্চবটীতে দুইটি সাধু অতিথি আসিয়াছেন। তাঁহারা গীতা, বেদান্ত এ সব অধ্যয়ন করেন। মধ্যাহ্নে সেবার পর ঠাকুরকে আসিয়া দর্শন করিতেছেন। তিনি ছোট খাটটিতে বসিয়া আছেন। সাধুরা প্রণাম করিয়া মেঝেতে মাদুরের উপর আসিয়া বসিলেন। মাস্টার প্রভৃতিও বসিয়া আছেন। ঠাকুর হিন্দিতে কথা কহিতেছেন।

Two monks had arrived at the temple garden in the morning. They were devoted to the study of the Bhagavad Gita, the Vedanta, and other scriptures. They entered the Master's room, saluted him, and sat on the mat on the floor. Sri Ramakrishna was seated on the small couch. The Master spoke to the sadhus in Hindusthani.

श्रीरामकृष्ण - क्या आप लोगों की सेवा हो चुकी है ?

साधु - जी हाँ ।

श्रीरामकृष्ण - क्या खाया ?

साधु - रोटी दाल, आप खाइयेगा ?

[ (5 अक्टूबर, 1884) श्रीरामकृष्ण वचनामृत ]  

🔆🙏साधु और निष्कामकर्म - भक्ति की कामना - वेदांत - गृहस्थ और सोऽहं '🔆🙏

[সাধু ও নিষ্কামকর্ম — ভক্তি কামনা — বেদান্ত — সংসারী ও ‘সোঽহম্‌’ ]

श्रीरामकृष्ण - नहीं, मैं तो थोड़ा-सा भात खाता हूँ । क्यों जी, आप लोग जो जप और ध्यान करते हैं, यह सब निष्काम ही करते हैं न ?

[শ্রীরামকৃষ্ণ — না, আমি দুটি ভাত খাই। আচ্ছা জী, আপনারা যা জপ ধ্যান করেন তা নিষ্কাম করেন; না?

MASTER: "No, I take only a few morsels of rice. Well, your japa and meditation must be without any desire for results. Isn't that so?"

साधु - जी महाराज ।

श्रीरामकृष्ण - यही अच्छा है । और फल ईश्वर को समर्पित कर देना चाहिए न ? गीता में लिखा है ।

[শ্রীরামকৃষ্ণ — ওই আচ্ছা হ্যায়, আর ঈশ্বরে ফল সমর্পণ করতে হয়; — না? গীতাতে ওইরূপ আছে।

MASTER: "That is good. One must surrender the result to God. What do you say? That is the view of the Gita."

साधु - (दूसरे साधु से, भगवद् गीता 9.27 में कहा है ) –

यत् करोषि यदश्नासि यज्जुहोषि ददासि यत् ।

यत्तपस्यसि कौन्तेय तत् कुरुष्व मदर्पणम् ॥

[সাধু (অন্য সাধুর প্রতি) —য়ৎ করোষি য়দশ্নাসি য়জ্জুহোষি দদাসি য়ৎ।য়ৎ তপস্যসি কৌন্তেয় তৎ কুরুষ্ব মদর্পণম্‌ ৷৷

One sadhu said to the other, quoting from the Gita: 'O Arjuna, whatever action you perform, whatever you eat, whatever you offer in sacrifice, whatever you give in charity, and whatever austerities you practise, offer everything to Me."

श्रीरामकृष्ण - उन्हें एक गुना जो कुछ दोगे, उसका हजार गुना प्राप्त होगा । इसीलिए सब काम करके जलांजलि दी जाती है - कृष्ण के लिए फल का अर्पण किया जाता है ।

শ্রীরামকৃষ্ণ — তাঁকে একগুণ যা দেবে সহস্রগুণ তাই পাবে। তাই সব কাজ করে জলের গণ্ডুষ অর্পণ — কৃষ্ণে ফল সমর্পণ।

 [ (5 अक्टूबर, 1884) श्रीरामकृष्ण वचनामृत ]  

🔆🙏सद्गुरु मंत्रदीक्षा के पहले शिष्य के सारे पाप क्यों माँग लेते हैं ?🔆🙏

"युधिष्ठिर जब सब पाप कृष्ण को अर्पित करने के लिए तैयार हुए, तब एक आदमी ने (भीम ने) उन्हें रोका । कहा, 'ऐसा कर्म न करो - कृष्ण को जो कुछ दोगें, उसका हजार गुना तुम्हें प्राप्त होगा ।' (एक अन्य साधु से) अच्छा क्यों जी, निष्काम होना चाहिए - सब कामनाओं का त्याग करना चाहिए न ?”

[“যুধিষ্ঠির যখন সব পাপ কৃষ্ণকে অর্পণ করতে যাচ্ছিল, তখন একজন (ভীম) সাবধান করলে, ‘অমন কর্ম করো না — কৃষ্ণকে যা অর্পণ করবে, সহস্রগুণ তাই হবে!’ আচ্ছা জী, নিষ্কাম হতে হয় — সব কামনা ত্যাগ করতে হয়?”

MASTER: "If you give God something, you receive it back a thousand times over. That is why after doing meritorious deeds one offers a handful of water to God. It is the symbol of offering the fruit to God. When Yudhisthira was about to offer all his sins to Krishna, Bhima warned him: 'Never do such a thing. Whatever you offer to Krishna you will receive back a thousandfold.'(To one of the sadhus) "Well, sir, one should be desireless; one should renounce all desires. Isn't that so?"

साधु - जी महाराज !

SADHU: "Yes, sir."

[ (5 अक्टूबर, 1884) श्रीरामकृष्ण वचनामृत ]  

🔆🙏जप-ध्यान करते समय समय, ज्ञान ,भक्ति,विवेक,वैराग्य की कामना अच्छी है🔆🙏

श्रीरामकृष्ण - परन्तु मेरी तो भक्ति कामना है । वह बुरी नहीं, अच्छी ही है । मीठी चीजें बुरी हैं, आम्ल पित्त ( acidity) निर्माण करती हैं, किन्तु मिश्री उलटे उपकार करती है । क्यों जी ?

[শ্রীরামকৃষ্ণ — আমার কিন্তু ভক্তিকামনা আছে। ও মন্দ নয়, বরং ভালই হয়। মিষ্ট খারাপ জিনিস — অমল হয়, কিন্তু মিছরিতে বরং উপকার হয়। কেমন?

MASTER: "But I have the desire for bhakti. That is not bad. Rather, it is good. Sweets are bad, for they produce acidity. But sugar candy is an exception. Isn't that so?"

साधु - जी महाराज ।

श्रीरामकृष्ण - अच्छा जी, वेदान्त कैसा है ?

[শ্রীরামকৃষ্ণ — আচ্ছা জী, বেদান্ত কেমন?

MASTER: "Well, sir, what do you think of the Vedanta?"

साधु - वेदान्त में षट्शास्त्र हैं ।

[সাধু — বেদান্তমে খট্‌ শাস্ত্র (ষড়দর্শন) হ্যায়।

SADHU: "It includes all the six systems of philosophy."

 [ (5 अक्टूबर, 1884) श्रीरामकृष्ण वचनामृत ]  

🔆🙏षड्दर्शन का सार - ब्रह्म सत्य और जगत मिथ्या; और मैं ब्रह्म (इन्द्रियातीत सत्य) हूँ !🔆🙏  

श्रीरामकृष्ण - परन्तु 'ब्रह्म सत्य है और संसार मिथ्या' यही वेदान्त का सार है, मेरा कोई अलग अस्तित्व नहीं है, मैं ब्रह्म हूँ - यह क्यों जी ?

[শ্রীরামকৃষ্ণ — কিন্তু বেদান্তের সার — ব্রহ্ম সত্য, জগৎ মিথ্যা। আমি আলাদা কিছু নই; আমি সেই ব্রহ্ম। কেমন?

MASTER: "But the essence of Vedanta is: 'Brahman alone is real, and the world illusory; I have no separate existence; I am that Brahman alone.' Isn't that so?"

साधु - जी हाँ ।

[ (5 अक्टूबर, 1884) श्रीरामकृष्ण वचनामृत ]  

🔆🙏 जिनमें देहबुद्धि है (अपने को M/F शरीर समझते हैं) उनके लिये 'सोऽहं ' ठीक नहीं🔆🙏 

श्रीरामकृष्ण - परन्तु जो लोग संसार में हैं, और जिनमें देहबुद्धि है (जो अपने नाम-रूप वाले शरीर से तादात्म्य रखते हैं, अपने को M/F शरीर समझते हैं ), 'सोऽहम्' भान उनके लिए अच्छा नहीं । संसारियों के लिए योगवाशिष्ठ वेदान्त अच्छा नहीं; बहुत बुरा है । संसारी सेव्य और सेवक के भाव में रहेंगे । 'हे ईश्वर, तुम सेव्य हो - प्रभु हो, मैं सेवक हूँ - तुम्हारा दास हूँ ।'

"जिनमें देह बुद्धि है, उन्हें 'सोऽहम्' की अच्छी धारणा नहीं होती ।"

[শ্রীরামকৃষ্ণ — কিন্তু যারা সংসারে আছে, আর যাদের দেহবুদ্ধি আছে, তাদের সোঽহম্‌ এ-ভাবটি ভাল নয়। সংসারীর পক্ষে যোগবাশিষ্ঠ, বেদান্ত — ভাল নয়। বড় খারাপ।সংসারীরা সেব্য-সেবক ভাবে থাকবে। ‘হে ঈশ্বর, তুমি সেব্য — প্রভু, আমি সেবক — আমি তোমার দাস।’ “যাদের দেহবুদ্ধি আছে তাদের সোঽহম্‌ এ-ভাব ভাল না।”

MASTER: "But for those who lead a householder's life, and those who identify themselves with the body, this attitude of 'I am He' is not good. It is not good for householders to read Vedanta or the Yogavasishtha. It is very harmful for them to read these books. Householders should look on God as their Master and on themselves as His servants. They should think, 'O God, You are the Master and the Lord, and I am Your servant.' People who identify themselves with the body should not have the attitude of 'I am He."

सब लोग चुपचाप बैठे हुए हैं । श्रीरामकृष्ण आप ही आप धीरे-धीरे हँस रहे हैं । आत्माराम अपने ही आनन्द में मग्न रहते हैं ।

[সকলেই চুপ করিয়া আছেন। ঠাকুর আপনা-আপনি একটু হাসিতেছেন। আত্মারাম। আপনার আনন্দে আনন্দিত।

The devotees in the room remained silent. Sri Ramakrishna was smiling a little, a picture of self-contentment. He appeared happy in his own Self.

एक साधु दूसरे के कान में कह रहा है, 'अरे देखो, इसे परमहंस अवस्था कहते हैं ।"

[একজন সাধু অপরকে ফিসফিস করিয়া বলিতেছেন — “আরে, দেখো দেখো! এস্‌ কো পরমহংস অবস্থা বোল্‌ তা হ্যায়।”

One of the sadhus whispered in the other's ear: "Look! This is the state of the paramahamsa."

श्रीरामकृष्ण - (मास्टर से) - हँसी आ रही है ।

श्रीरामकृष्ण बालक की तरह आप ही आप हँस रहे हैं ।

साधु दर्शन करके चले गये ।

[শ্রীরামকৃষ্ণ (মাস্টারকে, তাহার দিকে তাকাইয়া) — হাসি পাচ্ছে।

MASTER (to M.): "I feel like laughing."

ঠাকুর বালকের ন্যায় আপনা-আপনি ঈষৎ হাসিতেছেন।সাধুরা দর্শন করিয়া চলিয়া গেলেন।

Sri Ramakrishna smiled like a child. The monks left the room. 

(३)

[ (5 अक्टूबर, 1884) श्रीरामकृष्ण वचनामृत ]  

🔆🙏कामिनी-त्याग🔆🙏

 श्रीरामकृष्ण, बाबूराम, मास्टर, मुखर्जियों के हरि आदि भक्त-समुदाय कमरे में और बरामदे में टहल रहे हैं ।

[ঠাকুর ও বাবুরাম, মাস্টার, মুখুজ্জেদের হরি প্রভৃতি ভক্তেরা ঘরে ও বারান্দায় বেড়াইতেছেন।

The devotees were moving about in the room and on the porch.

श्रीरामकृष्ण - (मास्टर से) - क्या तुम नवीन सेन (केशव सेन के बड़े भाई)  के यहाँ गये थे ?

[শ্রীরামকৃষ্ণ (মাস্টারকে) — নবীন সেনের ওখানে তুমি গিছলে?

MASTER (to M.): "Did you go to Nabin Sen's house?"

मास्टर - जी हाँ, गया था । नीचे बैठा हुआ सब गाने सुन रहा था ।

[মাস্টার — আজ্ঞা, গিছলাম। নিচে বসে সব গান শুনেছিলাম।

M: "Yes, sir. I listened to the songs from downstairs."

🔆🙏'M' की धर्मपत्नी केशव सेन की चचेरी बहन थीं ?🔆🙏  

श्रीरामकृष्ण - यह तुमने अच्छा किया । तुम्हारी धर्मपत्नी भी वहाँ थी , केशव सेन क्या उनका चचेरा भाई है ?

[শ্রীরামকৃষ্ণ — তা বেশ করেছ। তোমার ওরা গিছল। কেশব সেন ওদের খুড়তাতো ভাই?

MASTER: "That was well done. Your wife was there. She is a cousin of Keshab Sen, isn't she?"

मास्टर - कुछ अन्तर है । (वह केशव सेन की अपनी चचेरी बहन नहीं , दूर के रिश्ते में लगती है.)  

[মাস্টার — একটু তফাত আছে।

M: "A distant cousin."

नवीन सेन आदि, एक भक्त के ससुरालवालों के कोई सम्बन्धी हैं ।

मणि के साथ टहलते हुए एकान्त में श्रीरामकृष्ण उनसे बातचीत कर रहे हैं ।

[মণির সহিত বেড়াইতে বেড়াইতে ঠাকুর নিভৃতে কথা কহিতেছেন।

Sri Ramakrishna strolled up and down with M. No one else was with them.

[ (5 अक्टूबर, 1884) श्रीरामकृष्ण वचनामृत ]  

🔆🙏CINC नवनीदा और पालकी में बैठकर " जानिबीघा " जाने का आनन्द🔆🙏

श्रीरामकृष्ण - लोग ससुराल जाते हैं । मैंने कितना सोचा विवाह करूँगा, ससुराल जाऊँगा, आनन्द की साधें पूरी कर लूंगा; परन्तु क्या हो गया है ?

[শ্রীরামকৃষ্ণ — লোকে শ্বশুরবাড়ি যায়। এত ভেবেছিলুম, বিয়ে করব, শ্বশুরঘর যাব — সাধ আহ্লাদ করব! কি হয়ে গেল!

MASTER: "A man visits his father-in-law's house. I, too, often used to think that I should marry, go to my father-in-law's house, and have great fun. But see what has come of it!"

[ (5 अक्टूबर, 1884) श्रीरामकृष्ण वचनामृत ] 

🔆🙏जिसका हाथ  स्वामी जी ने पकड़ लिया है , उसके गिरने का भय नहीं🔆🙏 

 [बाप रे, बाघ जैसे आदमी को पकड़ता है, वैसे ही ईश्वर इन्हें पकड़े हुए हैं ?] 

‘বাবা, বাঘ যেমন মানুষকে ধরে, তেমনই ঈশ্বরী এঁকে ধরে রয়েছেন!’ 

मणि - जी, आप कहा करते हैं - 'लड़का अगर बाप का हाथ पकड़े तो वह गिर सकता है, परन्तु बाप अगर लड़के का हाथ पकड़े तो वह नहीं गिरता ।' आपकी बिलकुल यही अवस्था है । माता ने तो आपको सदा ही पकड़ रखा है ।

[মণি — আজ্ঞা, ‘ছেলে যদি বাপকে ধরে, সে পড়তে পারে; বাপ যে ছেলেকে ধরেছেন সে আর পড়ে না।’ — এই কথা আপনি বলেন। আপনারও ঠিক সেই অবস্থা। মা আপনাকে ধরে রয়েছেন।

M: "Sir, you say, 'If the boy holds his father's hand, he may slip; but he doesn't if the father holds his hand.' That is exactly your condition. The Mother has taken hold of your hand."

श्रीरामकृष्ण - उलो के वामनदास के साथ विश्वास परिवार के यहाँ मुलाकत हुई थी । मैंने कहा, मैं तुम्हें देखने के लिए आया हूँ । जब चला आया, तब सुना, वह (वामनदास)  कह रहा था - 'बाप रे, बाघ जैसे आदमी को पकड़ता है, वैसे ही ईश्वर इन्हें पकड़े हुए हैं ?' तब वह नौजवान था - खूब मोटा था - सदा ही सेवाभाव रहता था ।

[শ্রীরামকৃষ্ণ — উলোর বামনদাসের সঙ্গে — বিশ্বাসদের বাড়িতে — দেখা হল। আমি বললাম, আমি তোমাকে দেখতে এসেছি। যখন চলে এলাম, শুনতে পেলাম, সে বলছে, ‘বাবা, বাঘ যেমন মানুষকে ধরে, তেমনই ঈশ্বরী এঁকে ধরে রয়েছেন!’ তখন সমর্থ বয়স — খুব মোটা। সর্বদাই ভাবে!

MASTER: "I met Bamandas ^* at the Viswases' house. I said to him, 'I have come to see you.' As I was leaving the place I heard him say: 'Goodness gracious! The Divine Mother has caught hold of him, like a tiger seizing a man.' At that time I was a young man, very stout, and always in ecstasy.

[उलो के वामनदास  (श्री वामनदास मुखर्जी) - नदिया जिले के बीरनगर (उलो) में निवास करते थे ।  उत्तरी कलकत्ता के काशीपुर में उन्होंने माँ-काली का एक विशाल मंदिर स्थापित किया था। एक बार दक्षिणेश्वर में  विश्वास के घर पर रहते समय , ठाकुर ह्रदय को साथ लेकर उनसे मिलने गए थे। उस दिन ठाकुरदेव के मधुर आवाज  में  श्यामा संगीत सुनकर वामनदास मुग्ध हो गए थे ; और अप्रत्याशित रूप से ठाकुर का दर्शन प्राप्त कर स्वयं को धन्य समझते थे ।

উলোর বামনদাস (শ্রীবামনদাস মুখোপাধ্যায়) — নিবাস নদীয়া জেলার বীরনগর বা উলোতে। উত্তর কলিকাতার কাশীপুরে তিনি মা-কালীর এক বৃহৎ মন্দির প্রতিষ্ঠা করিয়াছিলেন। একদা দক্ষিণেশ্বরে জনৈক বিশ্বাসদের বাড়িতে অবস্থানকালে ঠাকুর হৃদয়কে সঙ্গেলইয়া তাঁহার সহিত দেখা করিতে যান। সেদিন ঠাকুরের কণ্ঠে শ্যামাসংগীত শুনিয়া বামনদাস মুগ্ধ হন এবং অপ্রত্যাশিতভাবে ঠাকুরের দর্শন লাভ হওয়াতে তিনি নিজেকে ধন্য মনে করেন।]

[ (5 अक्टूबर, 1884) श्रीरामकृष्ण वचनामृत ]

🔆🙏माँ काली के भक्तों के लिए  सभी स्त्रियाँ माँ आनन्दमयी की एक मूर्ति हैं🔆🙏 

[लकिन स्त्री चाहे भक्तिन ही क्यों न हो बहुत देर तक अपने निकट बैठने मत दो]   

"मैं औरतों से बहुत डरता हूँ । देखता हूँ, जैसे बाघिन खा जाने के लिए आ रही हो । और उसके अंग, प्रत्यंग और सब छेद बहुत बड़े बड़े दीख पड़ते हैं । उसके सब आकार राक्षसी-से दीख पड़ते हैं ।

"पहले बड़ा भय था । मैं किसी को पास न आने देता था । इस समय तो बहुत ही मन को समझाकर उन्हें माँ आनन्दमयी की एक मूर्ति देखता हूँ ।

[“আমি মেয়ে বড় ভয় করি। দেখি যেন বাঘিনী খেতে আসছে! আর অঙ্গ, প্রত্যঙ্গ, ছিদ্র সব খুব বড় বড় দেখি। সব রাক্ষসীর মতো দেখি।"“আগে ভারী ভয় ছিল! কারুকে কাছে আসতে দিতাম না। এখন তবু অনেক করে মনকে বুঝিয়ে, মা আনন্দময়ীর এক-একটি রূপ বলে দেখি।

I am very much afraid of women. When I look at one I feel as if a tigress were coming to devour me. Besides, I find that their bodies, their limbs, and even their pores are very large. This makes me look upon them as she-monsters. I used to be much more afraid of women than I am at present. I wouldn't allow one to come near me. Now I persuade my mind in various ways to look upon women as forms of the Blissful Mother.

"भगवती का अंश तो है; परन्तु पुरुषों के लिए, विशेष कर साधुओं के लिए और भक्तों के लिए वह त्याज्य है ।

“चाहे ऊँचे दर्जे की भक्तिन हो, परन्तु स्त्री को मैं बड़ी देर तक अपने पास नहीं बैठने देता । थोड़ी ही देर में कहता हूँ, जाओ, ठाकुरजी का दर्शन करो, इस पर भी अगर वह न चली गयी, तो तम्बाकू पीने के बहाने मैं स्वयं ही उठकर चला जाता हूँ ।

[“ভগবতীর অংশ। কিন্তু পুরুষের পক্ষে — সাধুর পক্ষে — ভক্তের পক্ষে — ত্যাজ্য। "“হাজার ভক্ত হলেও মেয়েমানুষকে বেশিক্ষণ কাছে বসতে দিই না। একটু পরে, হয়ে বলি, ঠাকুর দেখো গে যাও; তাতেও যদি না উঠে, তামাক খাবার নাম করে ঘর থেকে বেরিয়ে পড়ি।

A woman is, no doubt, a part of the Divine Mother. But as far as a man is concerned, especially a sannyasi or a devotee of God, she is to be shunned. I don't allow a woman to sit near me very long, no matter how great her devotion may be. After a little while I say to her, 'Go and see the temples.' If that doesn't make her move, I myself leave the room on the pretext of smoking.

🔆🙏 हरिबाबू, निरंजन, पांडे खोट्टा, जयनारायण🔆🙏

[হরিবাবু, নিরঞ্জন, পাঁড়ে খোট্টা, জয়নারায়ণ ]

"देखता हूँ, किसी किसी का मन स्त्रियों की ओर बिलकुल ही नहीं जाता । निरंजन कहता है, मेरा तो मन स्त्रियों की ओर नहीं जाता ।

“हरि से मैंने पूछा, और उसने भी कहा था - ना, स्त्रियों की ओर मन नहीं जाता ।

[“দেখতে পাই, কারু কারু মেয়েমানুষের দিকে আদপে মন নাই। নিরঞ্জন বলে, ‘কই আমার মেয়েমানুষের দিকে মন নাই’।”“হরি (উপেন ডাক্তারের ভাই)-কে জিজ্ঞাসা করলাম, সে বলে, ‘না, মেয়েমানুষের দিকে মন নাই।’

"I find that some men are not at all interested in women. Niranjan says, 'A woman never enters my thought.' I asked Hari (Later Swami Turiyananda.) about it. He too says that his mind does not dwell on woman.

"जो मन परमात्मा को दिया जाता है, उसका बारह आना स्त्री ले लेती है । फिर "लड़कों के होने पर प्रायः सब मन खर्च हो जाता है । इस तरह फिर परमात्मा के लिए क्या दिया जाय ?

[“যে মন ভগবানকে দিতে হবে, সে মনের বারো আনা মেয়েমানুষ নিয়ে ফেলে। তারপর তার ছেলে হলে প্রায় সব মনটাই খরচ হয়ে যায়। তাহলে ভগবানকে আর কি দেবে?"

Woman monopolizes three quarters of the mind, which should be given to God. And then, after the birth of a child, almost the whole mind is frittered away on the family. Then what is left to give to God?

[ (5 अक्टूबर, 1884) श्रीरामकृष्ण वचनामृत ]  

🔆🙏बूढ़े दरबान (चनेशरबाबू) की दूसरी पत्नी 14 साल की थी -मियाँ भगा ले गया🔆🙏 

“स्त्री की देखभाल करते करते किसी किसी के प्राणों पर आ बनती है । पांडेय दरबान बुड्डा है, पश्चिम का रहनेवाला है । उसकी स्त्री की उम्र चौदह साल की है । बूढ़े के साथ उसे रहना पड़ता है । रहने को एक फूस की कुटिया है । फूस फाड़फाड़कर लोग उसकी स्त्री को झाँककर देखा करते हैं । अब वह स्त्री निकल गयी है ।

[“আবার কারু কারু তাকে আগলাতে আগলাতেই প্রাণ বেরিয়ে যায়। পাঁড়ে জমাদার খোট্টা বুড়ো — তার চৌদ্দ বছরের বউ! বুড়োর সঙ্গে তার থাকতে হয়! গোলপাতার ঘর। গোলপাতা খুলে খুলে লোক দেখে। এখন মেয়েটা বেরিয়ে এসেছে।"

Again, there are some men who shed their last drop of blood, as it were, to keep their wives out of mischief. There is the gate-keeper, an old man, whose wife is only fourteen years old. She had to live with him. They lived in a thatched hut with walls made of dry leaves. People made holes in the wall to peep in. Now she has left him and run away.

"एक आदमी अपनी स्त्री को कहाँ लेकर रखे, कुछ ठीक नहीं कर सकता था । घर में बड़ा शोर गुल मचा था । वह बड़ी चिन्ता मैं है । परन्तु इस बात की चर्चा अनावश्यक है ।

[“একজনের বউ — কোথায় রাখে এখন ঠিক পাচ্ছে না। বাড়িতে বড় গোল কয়েছিল। মহা ভাবিত। সে কথা আর কাজ নাই।"

I know another man. He doesn't know where to keep his wife. There was some trouble at home, and now he is greatly worried. Let's not talk about these things any more.

 [ (5 अक्टूबर, 1884) श्रीरामकृष्ण वचनामृत ]  

🔆🙏सभी विवाहित पुरुष अपनी बीबी की तारीफ करने को बाध्य हैं -उनके वश में हैं !🔆🙏

"और औरतों के साथ रहने से ही उनके वश हो जाना पड़ता है । औरत की बात पर संसारी आदमी उठते-बैठते हैं । सब के सब अपनी अपनी बीबी की तारीफ करते हैं ।

[“আর মেয়েমানুষের সঙ্গে থাকলেই তাদের বশ হয়ে যেতে হয়। সংসারীরা মেয়েদের কথায় উঠতে বললে উঠে, বসতে বললে বসে। সকলেই আপনার পরিবারদের সুখ্যাত করে।

"If a man lives with a woman, he cannot help coming under her control. Worldly men get up and sit down at the bidding of women. They all speak highly of their wives.

"मैं एक जगह जाना चाहता था । रामलाल की चाची* से पूछने पर उसने मना किया । फिर मेरा जाना न हुआ । थोड़ी देर बाद सोचा - 'यह क्या ! मैने संसार-धर्म नहीं किया – कामिनी-कांचन त्यागी हूँ, इतने पर भी ऐसा ! जो संसारी है, परमात्मा जाने, स्त्रियों के वश में वह कितना है ।'” (*श्रीरामकृष्णदेव की लीलासहधर्मिणी श्रीसारदादेवी ।)

[“আমি একজায়গায় যেতে চেয়েছিলাম। রামলালের খুড়ীকে জিজ্ঞাসা করাতে বারণ করলে, আর যাওয়া হল না। খানিক পরে ভাবলুম — উঃ, আমি সংসার করি নাই, কামিনী-কাঞ্চনত্যাগী, তাতেই এই! — সংসারীরা না জানি পরিবারদের আছে কিরকম বশ!”

"Once I wanted to go to a certain place. I asked Ramlal's aunt (His own wife) about it. She forbade me to go; so I could not. A little while later I said to myself: 'I am not a householder. I have renounced "woman and gold". If, in spite of that, this is my plight, one can well imagine how much worldly people are controlled by their wives.'"

मणि - कामिनी और कांचन में रहने से कुछ न कुछ आँच तो देह में जरूर ही लग जायेगी । आपने कहा था - 'जयनारायण बहुत बड़ा पण्डित था, बुड्ढा हो गया था परन्तु जब मैं गया तब देखा, धूप में तकिए डाल रहा था ।

[মণি — কামিনী-কাঞ্চনের মাঝখানে থাকলেই একটু না একটু গায়ে আঁচ লাগবেই। আপনি বলেছিলেন, জয়নারায়ণ অতো পণ্ডিত — বুড়ো হয়েছিল — আপনি যখন গেলেন, বালিস-টালিস শুকুতে দিচ্ছিলেন।

M: "One who lives in the midst of 'woman and gold' can't help being stained by it, even if only slightly. You told us about Jaynarayan. He was such a great scholar. When you visited him he was an old man. You found him warming pillows and blankets in the sun."

श्रीरामकृष्ण - परन्तु पण्डिताई का अहंकार उसे न था । और जैसा उसने कहा था, उसी के अनुसार अन्त में काशी में जाकर रहा ।

"बच्चों को मैने देखा, पैरों में बूट डाले हुए थे, अंग्रेजी पढ़े-लिखे हैं ।"

[শ্রীরামকৃষ্ণ — কিন্তু পণ্ডিত বলে অহংকার ছিল না। আর যা বলেছিল, শেষে আইন মাফিক্‌ কাশীতে গিয়ে বাস হল।“ছেলেগুনো দেখলাম, বুট পায়ে দেওয়া ইংরাজী পড়া।”

MASTER: "But he had no vanity of scholarship. Further, what he said about the last days of his life came to pass. He spent them in Benares, following the injunctions of the scriptures. I saw his children. They were wearing high boots and had been educated in English schools."

🔆🙏ठाकुर देव की 'प्रेमोन्माद' के साथ साथ 'सहज' (natural) इत्यादि विभिन्न अवस्थायें 🔆🙏

[ঠাকুরের প্রেমোন্মাদ প্রভৃতি নানা অবস্থা ]

श्रीरामकृष्ण प्रश्नोत्तरों के द्वारा मणि को अपनी अवस्था समझा रहे हैं ।

[ঠাকুর মণিকে প্রশ্নচ্ছলে নিজের অবস্থা বুঝাইতেছেন।

By means of questions and answers Sri Ramakrishna now explained to M. his own exalted state.

श्रीरामकृष्ण - पहले बहुत अधिक उन्माद था - अब घट क्यों गया ? - परन्तु कभी कभी अब भी होता है।

[শ্রীরামকৃষ্ণ — আগে খুব উন্মাদ ছিল, এখন কমলো কেন? — কিন্তু মাঝে মাঝে হয়।

MASTER: "At first I went stark mad. Why am I less so now? But I get into that state now and then."

मणि - आपकी अवस्था कुछ एक तरह की तो है ही नहीं । जैसा आपने कहा था, कभी बालवत् - कभी उन्मादवत् - कभी जड़वत् - कभी पिशाचवत्, ये ही सब अवस्थाएँ कभी कभी हुआ करती हैं । और कभी कभी सहज अवस्था भी होती है ।

[মণি — আপনার একরকম অবস্থা তো নয়। যেমন বলেছিলেন, কখনও বালকবৎ — কখনও উন্মাদবৎ — কখনও জড়বৎ — কখনও পিশাচবৎ — এই সব অবস্থা মাঝে মাঝে হয়। আবার মাঝে মাঝে সহজ অবস্থাও হয়।

M: "You don't have just one mood. As you said, you experience various moods. Sometimes you are like a child, sometimes like a madman, sometimes like an inert thing, and sometimes like a ghoul. And now and then you are a natural person."

 [ (5 अक्टूबर, 1884) श्रीरामकृष्ण वचनामृत]   

🔆🙏तत्वज्ञान का उपदेश देते समय युवा अवस्था हो जाती है !🔆🙏

श्रीरामकृष्ण - हाँ बालवत् । और उसी के साथ बाल्य, किशोर और युवा, ये अवस्थाएँ भी होती हैं । जब ज्ञानोपदेश दिया जाता है, तब युवा अवस्था होती है ।

"और किशोर अवस्था में तेरह साल के बच्चे की तरह मजाक सूझता है; इसीलिए लड़कों के बीच में मजाक किया जाता है ।

[শ্রীরামকৃষ্ণ — হাঁ, বালকবৎ। আবার ওই সঙ্গে বাল্য, পৌগণ্ড, যুবা — এ-সব অবস্থা হয়। যখন জ্ঞান উপদেশ দেবে, তখন যুবার অবস্থা।“আবার পৌগণ্ড অবস্থা! বারো-তেরো বছরের ছোকরার মতো ফচকিমি করতে ইচ্ছা হয়। তাই ছোকরাদের নিয়ে ফষ্টিনাষ্টি হয়।”

MASTER: "Yes, like a child. But I also experience the moods of a boy and a young man. When I give instruction I feel like a young man. Then there is my boyishness: like a boy twelve or thirteen years old, I want to be frivolous. That is why I joke and make merry with the youngsters.

[ (5 अक्टूबर, 1884) श्रीरामकृष्ण वचनामृत ]  

🔆🙏नारायण ने कम उम्र में ही  पहचान लिया था कि ठाकुर अवतार वरिष्ठ है ! 🔆🙏

[Narayan recognized at an early age that Thakur was an Avatar.]

[নারাণের গুণ — নারাণ  আমায় বলে, আপনি সবই (অর্থাৎ অবতার) । 

“अच्छा, नारायण कैसा है ?"

[“আচ্ছা, নারাণ কেমন?”

"What do you think of Naran?"

[नारायण कलकत्ता के एक सुसंगत  ब्राह्मण परिवार की सन्तान थे । ठाकुर  उनके सरल और पवित्र स्वभाव के लिए उन्हें बहुत प्यार करते थे। नारायण कथामृत के लेखक श्री महेंद्रनाथ गुप्ता के छात्र थे । वे अपने परिवार के कड़े विरोध के बावजूद शारीरिक प्रताड़ना सहकर भी दक्षिणेश्वर आया करते थे (जैसे धनेश्वर जैसा भींगे कपड़े में कैम्प आया करता था । उसकी इस शारीरिक प्रताड़ना का दर्द ठाकुर को अपने दर्द जैसा महसूस होता था। कम उम्र में ही नारायण का निधन हो गया था ।

নারায়ণ — কলিকাতার সঙ্গতিপন্ন ব্রাহ্মণ পরিবারের সন্তান। সরল ও পবিত্র স্বভাবের জন্য ঠাকুর তাঁহাকে খুব স্নেহ করিতেন। নারায়ণ কথামৃত প্রণেতা মহেন্দ্রনাথ গুপ্তের ছাত্র। বাড়ির লোকের প্রবল আপত্তি সত্ত্বেও দৈহিক নির্যাতন সহ্য করিয়া তিনি দক্ষিণেশ্বরে আসিতেন। তাঁহার প্রতি এই শারীরিক অত্যাচারের জন্য ঠাকুর ব্যাথা বোধ করিতেন। অল্প বয়সেই নারায়ণ দেহত্যাগ করেন।]

मणि - जी, उसके सभी लक्षण (खासियत trait) अच्छे हैं ।

[মণি — আজ্ঞা, লক্ষণ সব ভাল আছে।

M: "He has good traits, sir."

श्रीरामकृष्ण - कद्दू की गढ़न अच्छी है - तानपूरा खूब बजेगा ।

"वह मुझे कहता है, आप सब कुछ (अर्थात अवतार वरिष्ठ) हैं । जिसकी जैसी धारणा है, वह वैसा ही कहता है । कोई कहता है, ये ऐसे ही साधु और भक्त हैं ।

[শ্রীরামকৃষ্ণ — নাউ-এর ডোলটা ভাল — তানপুরা বেশ বাজবে।“সে আমায় বলে, আপনি সবই (অর্থাৎ অবতার) । যার যা ধারণা, সে তাই বলে। কেউ বলে, এমনি শুধু সাধুভক্ত। ​

MASTER: "Yes, the shell of the gourd is good. The tanpura made out of it will give good music. He says to me, 'You are everything.' Everyone speaks of me according to his comprehension. Some say that I am simply a sadhu, a devotee of God.

 [ (5 अक्टूबर, 1884) श्रीरामकृष्ण वचनामृत ]  

🔆🙏कामिनी-कांचन त्याग ही एक साधु की कठिन साधना है।🔆🙏

 [কামিনী-কাঞ্চনত্যাগই সন্ন্যাসীর কঠিন সাধনা ]

"जिसके लिए मैंने मना कर दिया है, उसकी उसने खूब धारणा कर ली है । उस दिन परदा समेटने के लिए मैंने कहा था, उसने न समेटा ।

"गिरह लगाना, सीना, परदा लपेटना, दरवाजे में और सन्दूक में ताला लगाना, इस तरह के कामों के लिए मैंने मना कर दिया था - उसने ठीक धारणा कर रखी है । जिसे त्याग करना है, उसे इन बातों का साधन कर लेना चाहिए । यह सब संन्यासी के लिए है ।

[“যেটি বারণ করে দিয়েছি, সেটি বেশ ধারণা করে। পরদা গুটোতে বললাম। তা গুটোলে না।" “গেরো দেওয়া, সেলাই করা, পরদা গুটোনো, দোর বাস্ক চাবি দিয়ে বন্ধ করা — এসব বারণ করেছিলাম — তাই ঠিক ধারণা। যে ত্যাগ করবে, তার এই সব সাধন করতে হয়। সন্ন্যাসীর পক্ষে এই সব সাধন।

If I forbid Naran to do something, he understands it very well. The other day I asked him to pull up the curtain, but he didn't do it. I had forbidden him to tie a knot, to sew his clothes, to lock a box, to pull up a curtain, and similar things. He understood it all. He who would renounce the world must practise all these disciplines. They are meant for sannyasis.

[ (5 अक्टूबर, 1884) श्रीरामकृष्ण वचनामृत ]  

🔆🙏साधना की अवस्था में कामिनी दावाग्नि-सी है - कालनागिनी-सी !🔆🙏

"While practising - regard a woman as a raging forest fire or a black cobra.

“সাধনের অবস্থায় ‘কামিনী’ দাবানল স্বরূপ — কালসাপের স্বরূপ।

"साधना की अवस्था में कामिनी दावाग्नि-सी है - कालनागिनी-सी । सिद्ध अवस्था के पश्चात्, ईश्वर-प्राप्ति हो जाने पर, वह माँ आनन्दमयी की मूर्ति हो जाती है; तभी मनुष्य स्त्रियों को माता की एक एक मूर्ति देख सकता है ।"

[“সাধনের অবস্থায় ‘কামিনী’ দাবানল স্বরূপ — কালসাপের স্বরূপ। সিদ্ধ অবস্তায় ভগবানদর্শনের পর — তবে মা আনন্দময়ী! তবে মার এক-একটি রূপ বলে দেখবে।”

"While practising sadhana a man should regard a woman as a raging forest fire or a black cobra. But in the state of perfection, after the realization of God, she appears as the Blissful Mother. Then you will look on her as a form of the Divine Mother."

  [ (5 अक्टूबर, 1884) श्रीरामकृष्ण वचनामृत ]  

🔆🙏भक्त (नेता) को साधनावस्था में स्त्रीयों  से 8 हाथ दूर रहना चाहिये🔆🙏 

कई दिन हो गये, श्रीरामकृष्ण ने नारायण को कामिनी के सम्बन्ध में बहुत सावधान कर दिया था । कहा था - "स्त्रियों की हवा भी देह में न लगने पाये, मोटा कपड़ा देह में डाले रहना, कहीं ऐसा न हो कि उनके देह की हवा तेरे शरीर में लग जाय - और माता को छोड़कर दूसरी स्त्रियों से आठ हाथ, दो हाथ, नहीं तो कम से कम एक हाथ दूर जरूर रहना ।"

[কয়েকদিন হইল, ঠাকুর নারাণকে কামিনী সম্বন্ধে অনেক সতর্ক করেছিলেন। বলেছিলেন — ‘মেয়েমানুষের গায়ের হাওয়া লাগাবে না; মোটা কাপড় গায়ে দিয়ে থাকবে, পাছে তাদের হাওয়া গায় লাগে; — আর মা ছাড়া সকলের সঙ্গে আটহাত, নয় দুহাত, নয় অন্ততঃ একহাত সর্বদা তফাত থাকবে।”

A few days earlier Sri Ramakrishna had spoken many words of warning to Narayan about women. He had said: "Don't let yourself touch the air near a woman's body. Cover yourself with a heavy sheet lest the air should touch your body. And keep yourself eight cubits, two cubits, or at least one cubit away from all women except your mother."

श्रीरामकृष्ण - (मणि से) - उसकी माँ ने नारायण से कहा है - 'उन्हें देखकर हम लोग मुग्ध हो जाती हैं, तू तो भला अभी लड़का है ।’ और बिना सरल हुए कोई ईश्वर को पा नहीं सकता, निरंजन कैसा सरल है ?

[শ্রীরামকৃষ্ণ (মণির প্রতি) — তার মা নারাণকে বলেছে, তাঁকে দেখে আমরাই মুগ্ধ হই, তুই তো ছেলেমানুষ! আর সরল না হলে ঈশ্বরকে পাওয়া যায় না। নিরঞ্জন কেমন সরল!

MASTER (to M.): "Naran's mother said to him about me, 'Even we are enchanted by the sight of him, not to speak of you, a mere child.' None but the guileless can realize God. How guileless Niranjan is!"

मणि - जी हाँ !

M: "True, sir."

[ (5 अक्टूबर, 1884) श्रीरामकृष्ण वचनामृत ]  

🔆🙏निरंजन और नरेन्द्र कितने निष्कपट हैं ? नरेन्द्र तो अग्रसोची-बुद्धि का भी है !🔆🙏

[घर में हो या बाहर - हमेशा वही -निश्छल,निष्कपट ! always the same — without guile.!] 

[নিরঞ্জন, নরেন্দ্র কি সরল? সব সময়েই এক ভাব-guileless ]

श्रीरामकृष्ण - उस दिन गाड़ी से आते समय कलकत्ते में तुमने देखा था या नहीं ? हर समय उसका एक ही भाव रहता है - सरल है । आदमी अपने घर में तो एक तरह के होते हैं, परन्तु जब बाहर जाते हैं, तब दूसरी तरह के हो जाते हैं । अपने पिता की मृत्यु के बाद नरेन्द्र अब सांसारिक मामलों की चिन्ता में पड़ गया है । वह निश्छल होने के साथ-साथ थोड़ा अग्रसोची बुद्धि (calculating mind) का भी है काश कि दूसरे युवा भी - निरंजन और नरेन्द्र जैसे होते! 

[শ্রীরামকৃষ্ণ — সেদিন কলকাতা যাবার সময় গাড়িতে দেখলে না? সব সময়েই এক ভাব — সরল। লোক ঘরের ভিতর একরকম আবার বাড়ির বাহিরে গেলে আর-একরকম হয়! নরেন্দ্র এখন (বাপের মৃত্যুর পর) সংসারের ভাবনায় পড়েছে। ওর একটু হিসাব বুদ্ধি আছে। সব ছোকরা এদের মতো কি হয়?

MASTER: "Didn't you notice him that day in the carriage on the way to Calcutta? He is always the same — without guile. A man shows one side of his nature inside his house and another to the outside world. Since his father's death Narendra has been worried about his worldly affairs. He has a slightly calculating mind--अग्रसोची दिमाग . How I wish that other, youngsters were like Niranjan and Narendra!

 🔆🙏नीलकंठ की जात्रा नाटक देखने -श्री रामकृष्ण का नवीन नियोगी के घर पर जाना🔆🙏 

[শ্রীরামকৃষ্ণ নবীন নিয়োগীর বাড়ি — নীলকণ্ঠের যাত্রা ]

"आज मैं नीलकण्ठ ^*१  का नाटक देखने गया था - दक्षिणेश्वर में नवीन नियोगी ^* २  के यहाँ । वहाँ के लड़के बड़े दुष्ट हैं । वे सब इसकी उसकी निन्दा किया करते हैं । इस तरह की जगहों में भाव रुक जाता है ।

"उस बार नाटक देखते समय मधु डाक्टर की आँखों में आँसू देखकर मैने उनकी ओर देखा था । किसी दूसरे की ओर मैं नहीं देख सका ।"

[“নীলকণ্ঠের যাত্রা আজ শুনতে গিছলাম — দক্ষিণেশ্বরে। নবীন নিয়োগীর বাড়ি। সেখানকার ছোঁড়াগুলো বড় খারাপ। কেবল এর নিন্দা, ওর নিন্দা! ওরকম স্থলে ভাব সম্বরণ হয়ে যায়।"“সেবার যাত্রার সময় মধু ডাক্তারের চক্ষে ধারা দেখে, তার দিকে চেয়েছিলাম। আর কারু দিকে তাকাতে পারলাম না।”

Today I went to the village to see Nilkantha's theatrical performance. It was given at Nabin Niyogi's house. The children there are very bad; they have nothing to do but find fault. In such a place a person's spiritual feeling is restrained. During a performance the other day I saw Doctor Madhu shedding tears. I looked at him alone.

[नवीन नियोगी ^*२ (नविन चंद्र नियोगी) - दक्षिणेश्वर निवासी ठाकुर के भक्त नवीन  नियोगी अक्सर ठाकुर के दर्शन करने आते थे। 5 अक्टूबर 188 4 ई. को नवीन नियोगी के घर पर आयोजित -नीलकण्ठ मुखर्जी का जात्रा -नाटक देखने के लिए ठाकुरदेव उसके घर पर पधारे थे। उस दिन ठाकुर ने नवीन चन्द्र और उनके पुत्र के भक्ति की प्रशंसा की थी । ठाकुर ने कहा था कि उनके पास योग और भोग दोनों हैं। दुर्गा पूजा के समय नवीन और उनके पुत्र मां दुर्गा के समक्ष बली चढ़ाते थे। दक्षिणेश्वर में ठाकुर की तन्त्र साधना के समय , उन्होंने  भैरवी ब्राह्मणी से ठाकुर मंडल घाट पर रहने का अनुरोध किया था। भैरवी ब्राह्मणी जब तक वहाँ रहीं, नवीन नियोगी की भक्तिमति स्त्री ने उनकी सेवा और देखभाल की अच्छी व्यवस्था की थी। 

নবীন নিয়োগী (নবীনচন্দ্র নিয়োগী) — দক্ষিণেশ্বর নিবাসী ভক্ত নবীন নিয়োগী প্রায়ই ঠাকুরকে দর্শন করিতে আসিতেন। ১৮৮৪ খ্রীষ্টাব্দের ৫ই অক্টোবর নবীন নিয়োগীর গৃহে আয়োজিত নীলকণ্ঠ মুখার্জীর যাত্রা উপলক্ষে ঠাকুরের পদার্পণ হয়। সেদিন ঠাকুর নবীনচন্দ্র ও তাঁহার পুত্রের ভক্তির প্রশংসা করেন। ঠাকুর বলিয়াছিলেন তাঁহার যোগ ও ভোগ দুইই আছে। দুর্গাপূজার সময় নবীন ও তাঁহার পুত্র মা-দুর্গাকে ব্যজন করিতেন। সাধনকালে দক্ষিণেশ্বরে ভৈরবী ব্রাহ্মণীকে ঠাকুর মণ্ডল ঘাটে থাকিবার অনুরোধ করিয়াছিলেন। ভৈরবীর সেখানে অবস্থানকালে নবীন নিয়োগীর ভক্তিমতী স্ত্রী তাঁহার সেবা ও যত্নের সুব্যবস্থা করিয়াছিলেন।]

(४)

 सर्वधर्म समन्वय के बारे में उपदेश । दान और ध्यान

🔆🙏श्री रामकृष्ण, केशव और ब्रह्म समाज - सर्वधर्म समन्वय का उपदेश🔆🙏 

[শ্রীরামকৃষ্ণ, কেশব ও ব্রাহ্মসমাজ — সমন্বয় উপদেশ]

श्री रामकृष्ण का सार्वभौमिक कैथोलिक (उदार) चर्च आन्दोलन

The Universal Catholic Church of Sree Ramkrishna

श्रीरामकृष्ण - (मणि से) - अच्छा, इतने आदमी जो यहाँ खिचकर चले आते हैं, इसका क्या अर्थ ?

[শ্রীরামকৃষ্ণ (মণির প্রতি) — আচ্ছা, লোক যে এত আকর্ষণ হয়ে আসে এখানে, তার মানে কি?

(To M.) "Can you tell me why people feel so much attracted to this place [meaning himself]? What does it mean?"

मणि - मुझे तो व्रज की लीला याद आती है । कृष्ण जब चरवाहे और गौएँ बन गये, तब चरवाहों पर गोपियों का और बछड़ों पर गौओं का प्यार बढ़ गया अधिक आकर्षण हो गया ।

[মণি — আমার ব্রজের লীলা মনে পড়ে। কৃষ্ণ যখন রাখাল আর বৎস হলেন, তখন রাখালদের উপর গোপীদের, আর বৎসদের উপর গাভীদের, বেশি আকর্ষণ হতে লাগল।

M: "It reminds me of an episode in Krishna's life at Vrindavan. Krishna transformed Himself into the cowherd boys and the calves, whereupon the cows began to feel more strongly attracted to the cowherd boys, the gopis, and the calves."

श्रीरामकृष्ण - वह ईश्वर का आकर्षण था । बात यह है कि माँ ऐसा ही जादू डाल देती हैं जिससे आकर्षण होता है ।

[শ্রীরামকৃষ্ণ — সে ঈশ্বরের আকর্ষণ। কি জানো, মা এইরূপ ভেলকি লাগিয়ে দেন আর আকর্ষণ হয়।

MASTER: "That is the attraction of God. The truth is, the Divine Mother creates the spell and it is that which attracts people.

 [ (5 अक्टूबर, 1884) श्रीरामकृष्ण वचनामृत ]  

🔆🙏श्री रामकृष्ण, केशव और ब्रह्म समाज 🔆🙏

“अच्छा, केशव सेन के यहाँ जितने आदमी जाते थे, यहाँ तो उतने आदमी नहीं आते । और केशव सेन को कितने आदमी जानते-मानते हैं, विलायत तक उसका नाम है, विक्टोरिया ने उससे बातचीत की थी। गीता में तो है कि जिसे बहुत से आदमी जानते-मानते हैं, वहाँ ईश्वर की ही शक्ति रहती है । यहाँ तो उतना नहीं होता ।"

[“আচ্ছা, কেশব সেনের কাছে যত লোক যেত, এখানে তো তত আসে না। আর কেশব সেনকে কত লোক গণে মানে, বিলাতে পর্যন্ত জানে — কুইন (রানী ভিক্টোরিয়া) কেশবের সঙ্গে কথা কয়েছে। গীতায় তো বলেছে, যাকে অনেকে গণে মানে, সেখানে ঈশ্বরের শক্তি। এখানে তো অত হয় না?”

"Well, not as many people come here as used to go to Keshab Sen. And how many people respect and honour Keshab! He is known even in England. Queen Victoria spoke with him. It is said in the Gita that God's power is manifest in him who is honoured and respected by many. But so many people do not come here."

 [ (5 अक्टूबर, 1884) श्रीरामकृष्ण वचनामृत]   

🔆🙏 श्रीरामकृष्ण देव से आध्यात्मिकता की जो बाढ़ निकलेगी 

उस प्लावन में निराकारवादी -साकारवादी सभी बह जायेंगे ! 🔆🙏 

[केशव सेन के पास केवल भौतिकवादी गृहस्थ लोग ही जाते थे, भक्त नहीं !]

मणि - केशव सेन के पास संसारी (भौतिकवादी -worldly-minded) आदमी गये थे ।

[মণি — কেশব সেনের কাছে সংসারী লোক গিয়েছে।

M: "It was the householders who went to Keshab Sen."

श्रीरामकृष्ण - हाँ, यह ठीक है, वे ऐहिक कामनाएँ (कामिनी -कांचन में आसक्ति)  रखने वाले थे ।

[শ্রীরামকৃষ্ণ — হাঁ, তা বটে। ঐহিক লোক।

MASTER: "Yes, that is true. The worldly-minded."

मणि - केशव सेन जो कुछ कर गये हैं, क्या वह टिक सकेगा ?

[মণি — কেশব সেন যা করে গেলেন, তা কি থাকবে?

M: "Will what Keshab has founded remain a long time?"

श्रीरामकृष्ण - क्यों, वे एक संहिता लिख गये हैं, उसमें उनके ब्राह्मसमाजी अनुवायियों के लिए नियमादि तो लिखे हैं ।

[শ্রীরামকৃষ্ণ — কেন, সংহিতা করে গেছে, — তাতে কত নিয়ম!

MASTER: "Why, he has written a samhita, a book of rules for the guidance of the members of his Brahmo Samaj."

मणि – अवतारी पुरुष जब स्वयं कार्य करते हैं, तब एक और ही बात होती है, जैसे चैतन्यदेव का कार्य ।

[মণি — অবতার যখন নিজে কাজ করেন, তখন আলাদা কথা। যেমন চৈতন্যদেবের কাজ।

M: "But it is quite different with the work done by a Divine Incarnation Himself — Chaitanya's work, for instance."

श्रीरामकृष्ण - हाँ हाँ, यह ठीक है ।

[শ্রীরামকৃষ্ণ — হাঁ, হাঁ, ঠিক।

MASTER: "Yes, yes. That is true."

मणि - आप तो कहते हैं - चैतन्यदेव ने कहा था - 'मैं जो बीज डाले जा रहा हूँ, कभी न कभी इसका कार्य अवश्य होगा ।’ छत पर बीज था, जब घर ढह गया, तब उस बीज से पेड़ पैदा हुआ ।

[মণি — আপনি তো বলেন, — চৈতন্যদেব বলেছিলেন, আমি যা বীজ ছড়িয়ে দিয়ে গেলাম, কখন না কখন এর কাজ হবে। কার্ণিশের উপর বীজ রেখেছিল, বাড়ি পড়ে গেলে সেই বীজ আবার গাছ হবে।

M: "You yourself tell us that Chaitanyadeva said, 'The seeds I have sown will certainly bear fruit some time or other.' A man left some seeds on the cornice of a house. Later on the house fell down and trees grew from those seeds."

श्रीरामकृष्ण - अच्छा, शिवनाथ आदि ने जो समाज बनाया है, उसमें भी बहुत से आदमी जाते हैं ।

[শ্রীরামকৃষ্ণ — আচ্ছা, শিবনাথরা যে সমাজ করেছে, তাতেও অনেক লোক যায়।

MASTER: "Many people go to the Samaj founded by Shivanath and his friends. Isn't that so?"

मणि - जी, वैसे ही आदमी जाते हैं ।

[মণি — আজ্ঞা, তেমনি লোক যায়।

M: "Yes, sir. People of that sort."

श्रीरामकृष्ण - हाँ हाँ, सब संसारी आदमी जाते हैं । जो ईश्वर के लिए व्याकुल कामिनी-कांचन के त्याग करने की चेष्टा कर रहे हैं, ऐसे आदमी बहुत कम जाते हैं, यह ठीक है ।

[শ্রীরামকৃষ্ণ (সহাস্য) — হাঁ, হাঁ সংসারী লোক সব যায়। যারা ঈশ্বরের জন্য ব্যাকুল — কামিনী-কাঞ্চন ত্যাগ করতে চেষ্টা করছে — এমন সব লোক কম যায় বটে।

MASTER (smiling): "Yes, yes. The worldly-minded go there, but not many of those who long for God and are trying to renounce 'woman and gold'."

मणि - अगर यहाँ से एक प्रवाह बहे, तो बड़ा अच्छा हो - उस प्रवाह के वेग में सब बह जायँ । यहाँ से जो कुछ होगा, वह अवश्य ही एक विशेष ढर्रें का  न होगा ।

[মণি — এখান থেকে একটা স্রোত যদি বয়, তাহলে বেশ হয়। সে স্রোতের টানেতে সব ভেসে যাবে। এখান থেকে যা হবে সে তো আর একঘেয়ে হবে না।

M: "It will be fine if a current flows from this place. Everything will be carried away by its force. Nothing that comes out of this place will be monotonous."

[ (5 अक्टूबर, 1884) श्रीरामकृष्ण वचनामृत ]  

🔆🙏श्री रामकृष्ण और हिंदू, मुस्लिम, ईसाई - वैष्णव और ब्रह्मज्ञानी 🔆🙏

यह मत कहो कि हमारा ही मार्ग सत्य है और बाकी सब मिथ्या - भ्रम है ।

[শ্রীরামকৃষ্ণ ও হিন্দু, মুসলমান, খ্রীষ্টান — বৈষ্ণব ও ব্রহ্মজ্ঞানী ]

‘এ কথা বলো না — আমারই পথ সত্য আর সব মিথ্যা, ভুল।’ 

 "Never say your path alone is right and that the paths of others are wrong and full of errors.'

श्रीरामकृष्ण - (सहास्य) - जिस मनुष्य का जो भाव है, मैं उसके उस भाव की रक्षा करता हूँ । वैष्णवों से वैष्णव-भाव ही रखने के लिए कहता हूँ, शाक्तों से शाक्त-भाव; परन्तु इतना उनसे और कह देता हूँ कि यह मत कहो कि हमारा ही मार्ग सत्य है और बाकी सब मिथ्या - भ्रम है ।

"हिन्दू, मुसलमान, ईसाई ये सब अनेक मार्गों से होकर एक ही जगह जा रहे हैं । अपने भाव की रक्षा करते हुए, उन्हें हृदय से पुकारने पर उनके दर्शन होते हैं ।

[শ্রীরামকৃষ্ণ (সহাস্য) — আমি যার যা ভাব তার সেই ভাব রক্ষা করি। বৈষ্ণবকে বৈষ্ণবের ভাবটিই রাখতে বলি, শাক্তকে শাক্তের ভাব। তবে বলি, ‘এ কথা বলো না — আমারই পথ সত্য আর সব মিথ্যা, ভুল।’ হিন্দু, মুসলমান, খ্রীষ্টান — নানা পথ দিয়ে এক জায়গায়ই যাচ্ছে। নিজের নিজের ভাব রক্ষা করে, আন্তরিক তাঁকে ডাকলে, ভগবান লাভ হবে!

MASTER (smiling): "I keep men's own ideals intact. I ask a Vaishnava to hold to his Vaishnava attitude and a Sakta to his. But this also I say to them: "Never feel that your path alone is right and that the paths of others are wrong and full of errors.' Hindus, Mussalmans, and Christians are going to the same destination by different paths. A man can realize God by following his own path if his prayer is sincere.

[ (5 अक्टूबर, 1884) श्रीरामकृष्ण वचनामृत ]  

🔆🙏रुचिभेद ,अधिकारि- भेद के अनुसार एक ही वस्तु नाना रूपों में दिखाई देती है 🔆🙏 

[उसी तरह देश, काल और पात्र के भेद से ईश्वर तक पहुँचने के विभिन्न मार्ग बने हैं]

"विजय की सास कहती हैं, 'तुम बलराम आदि से कह दो, साकार-पूजन की क्या जरूरत है ? निराकार - सच्चिदानन्द को पुकारने से ही काम सिद्ध हो जायगा ।’

"मैंने कहा, ऐसी बात मैं ही क्यों कहूँ और वे ही क्यों सुनने लगे ? रुचिभेद के अनुसार - अधिकारियों में भेद देखकर एक ही चीज के कितने ही रूप कर दिये जाते हैं ।"

[“বিজয়ের শাশুড়ি বলে, তুমি বলরামদের বলে দাও না, সাকার পুজোর কি দরকার? নিরাকার সচ্চিদানন্দকে ডাকলেই হল। “আমি বললাল, ‘অমন কথা আমিই বা বলতে যাব কেন — আর তারাই বা শুনবে কেন?’ মা মাছ রেঁধেছে — কোনও ছেলেকে পোলোয়া রেঁধে দেয়, যার পেট ভাল নয় তাকে মাছের ঝোল করে দেয়। রুচিভেদ, অধিকারীভেদে, একই জিনিস নানারূপ করে দিতে হয়।”

"Vijay's mother-in-law said to me, 'Why don't you tell Balaram that it is unnecessary to worship God with form; that it will be enough if he prays to the formless Satchidananda?' I replied, 'Why should I say such a thing, and why should he listen to me even if I should say it?'"

मणि - जी हाँ, देश, काल और पात्र के भेद से सब अलग अलग रास्ते हैं । परन्तु चाहे जिस रास्ते से आदमी जाय, मन को शुद्ध करके और हृदय से व्याकुल हो जब उन्हें पुकारता है, तो उन्हें पाता अवश्य है । यही बात आप कहते हैं ।

[মণি — আজ্ঞা, হাঁ। দেশ-কাল-পাত্র ভেদে সব আলাদা রাস্তা। তবে যে রাস্তা দিয়েই যাওয়া হোক না কেন, শুদ্ধমন দিয়ে আন্তরিক ব্যাকুল হয়ে ডাকলে তবে তাঁকে পাওয়া যায়। এই কথা আপনি বলেন।

M: "That is true, sir. There are different paths to suit time, place, and the fitness of the candidate. Whatever path a man may follow, he will ultimately reach God if he is pure of heart and has sincere longing. That is what you say."

[मुखर्जी बन्धुओं के हरि - श्री रामकृष्ण और दान-ध्यान]

[মুখুজ্জেদের হরি — শ্রীরামকৃষ্ণ ও দান-ধ্যান ]

[ (5 अक्टूबर, 1884) श्रीरामकृष्ण वचनामृत ]  

🔆🙏शरीर के लक्षण से छली-कपटी  या भाग्यवान निष्कपट व्यक्तित्व की पहचान 🔆🙏

कमरे में श्रीरामकृष्ण अपने आसन पर बैठे हुए हैं । जमीन पर मुखर्जियों के सम्बन्धी हरि तथा मास्टर आदि बैठे हैं । एक अनजान आदमी श्रीरामकृष्ण को प्रणाम करके बैठा । श्रीरामकृष्ण ने बाद में कहा था, उसकी आँखों के लक्षण अच्छे नहीं थे - बिल्ली जैसी कंजी आँखें थीं ।

[ঘরের ভিতর ঠাকুর নিজের আসনে বসিয়া আছেন। মেঝেতে মুখুজ্জেদের হরি, মাস্টার প্রভৃতি বসিয়া আছেন। একটি অপরিচিত ব্যক্তি ঠাকুরকে প্রণাম করিয়া বসিলেন। ঠাকুর পরে বলিয়াছিলেন, তাঁহার চক্ষুর লক্ষণ ভাল না — বিড়ালের ন্যায় কটাচক্ষু।

Sri Ramakrishna was sitting in his room. Hari, the relative of the Mukherjis, M., and other devotees were on the floor. An unknown person saluted the Master and took a seat. The Master remarked later that his eyes were not good. They were yellow, like a cat's.

हरि ^* श्रीरामकृष्ण के लिए हुक्का सुलगा कर सामने रखते हैं। 

[हरि ^* : बागबाजार निवासी हरि ब्राह्मण वंश की संतान है। श्री रामकृष्ण के स्नेह से धन्य एक युवा भक्त हैं।   ठाकुर के भक्त दो मुखर्जी  भाइयों महेंद्रनाथ और प्रियनाथ के रिश्तेदार हैं। श्रीरामकृष्ण वचनामृत में उनका उल्लेख 'मुखर्जियों के हरि' के रूप में किया गया है।  हरि कभी अकेले, कभी मुखर्जी भाइयों  के साथ श्री रामकृष्ण के पास जाया करते थे।  उन्होंने ठाकुर को अपना गुरु रूप में  स्वीकार किया था ।  ठाकुर उससे इतना प्यार करते थे कि अगर उन्हें दक्षिणेश्वर जाने में कुछ देर हो जाती, तो ठाकुर उन्हें फटकार लगाते थे ।  एक बार, हरि ने ठाकुर से मंत्र-दीक्षा देने की प्रार्थना की थी , लेकिन ठाकुर ने मना कर दिया था; किन्तु माँ काली से यह प्रार्थना भी की थी कि , जो कोई भी जिज्ञासु आन्तरिक रूप से उनके (ठाकुर देव) की शरण में आ जायेंगे वे सभी सिद्ध हो जायेंगे - पूर्णत्व को प्राप्त होंगे ! भाग्यवान हरि का हाथ अपने हाथ के ऊपर रखकर ठाकुर ने परीक्षा ली थी और उन्हें उनके शुभ लक्षण बताए थे तथा उनकी भक्ति की प्रशंसा भी की थी ।

হরি — বাগবাজার নিবাসী ব্রাহ্মণ বংশীয় সন্তান। শ্রীরামকৃষ্ণের স্নেহ ধন্য যুবক ভক্ত। ঠাকুরের ভক্ত মুখুজ্যে ভ্রাতৃদ্বয়, মহেন্দ্রনাথ ও প্রিয়নাথ মুখোপাধ্যায়ের আত্মীয়। ‘মুখুজ্যেদের হরি’ নামে কথামৃতে পরিচিত। হরি কখনো একাকী, কখনো মুখুজ্যেদের সহিত শ্রীরামকৃষ্ণের নিকটে যাইতেন। ঠাকুরকে গুরুরূপে বরণ করেন। ঠাকুরের এত স্নেহপাত্র ছিলেন যে তাঁহার দক্ষিণেশ্বরে যাইতে কিছুদিন বিলম্ব হইলে ঠাকুর তাঁহাকে ভর্ৎসনা করিতেন। একদা হরি ঠাকুরের নিকট দীক্ষালাভের প্রার্থনা করায় ঠাকুর অসম্মত হন; তবে প্রার্থনা করেন যে যাহারা আন্তরিক টানে তাঁহার নিকট আসিবেন তাহারা যেন সবাই সিদ্ধ হয়। ভাগ্যবান হরির হাত নিজের হাতের উপর রাখিয়া পরীক্ষাপূর্বক ঠাকুর তাঁহার ভাল লক্ষণের কথা জানান এবং তাঁহার ভক্তির প্রশংসা করেন।]

श्रीरामकृष्ण - (हरि से) - देखूं तो जरा तेरा हाथ । सब कुछ तो है - बड़े अच्छे लक्षण हैं ।"मुट्ठी खोल जरा। (अपने हाथ में हरि का हाथ लेकर जैसे तौल रहे हों) लड़कपन अब भी है । दोष अभी तक तो कुछ नहीं किया । (भक्तों से) हाथ देखकर मैं कह सकता हूँ कि अमुक खल है या सरल (हरि से) क्या हुआ, तू ससुराल जाया कर - अपनी स्त्री से बातचीत किया कर - और इच्छा हो तो जरा आमोद-प्रमोद भी कर लिया कर ।

[ঠাকুরকে হরি তামাক সাজিয়া আনিয়া দিলেন।শ্রীরামকৃষ্ণ (হুঁকা হাতে করিয়া, হরির প্রতি) — দেখি তোর — হাতদেখি। এই যে যব রয়েছে — এ বেশ ভাল লক্ষণ।“হাত আলগা কর দেখি। (নিজের হাতে হরির হাত লইয়া যেন ওজন করিতেছেন) — ছেলেমানষি বুদ্ধি এখনও আছে; — দোষ এখনও কিছু হয় নাই। (ভক্তদের প্রতি) — আমি হাত দেখলে খল কি সরল বলতে পারি। (হরির প্রতি) — কেন, শ্বশুরবাড়ি যাবি — বউর সঙ্গে কথাবার্তা কইবি — আর ইচ্ছে হয় একটু আমোদ-আহ্লাদ করবি।

Hari prepared a smoke for Sri Ramakrishna.MASTER (to Hari): "Let me see the palm of your hand. This mark is a good sign. Relax your hand."He took Hari's hand into his as if to feel its weight.MASTER: "He is still childlike. As yet there is no blemish in him. (To the devotees) From the hand I can tell whether a person is deceitful or guileless. (To Hari) Why, you should go to your father-in-law's house. You should talk to your wife and have a little fun with her if you like. 

(मास्टर से) “क्यों जी ?” (मास्टर आदि हँसते हैं ।)

(মাস্টারের প্রতি) — “কেমন গো?” (মাস্টার প্রভৃতির হাস্য)

(To M.) What do you say?" (M. and the others laugh.)

मास्टर – जी, नयी हण्डी अगर खराब हो जाय, तो उसमें दूध फिर नहीं रखा जा सकता ।

श्रीरामकृष्ण - (सहास्य)- अभी खराब नहीं हुई, यह तुमने कैसे जाना ?

[শ্রীরামকৃষ্ণ (সহাস্যে) — এখন যে হয় নাই তা কি করে জানলে?

MASTER (smiling): "How do you know that it is not already bad?"

[ (5 अक्टूबर, 1884) श्रीरामकृष्ण वचनामृत]   

🔆🙏भक्त मुखर्जी भाई नौकरी नहीं करते थे उनकी अपनी आटा -चक्की थी !🔆🙏

मुखर्जी दो भाई हैं, महेन्द्र और प्रियनाथ । ये नौकरी नहीं करते । उनकी आटे की चक्की है । प्रियनाथ पहले इंजीनियर का काम करते थे । श्रीरामकृष्ण हरि से मुखर्जी भाइयों की बात कह रहे हैं ।

[মুখুজ্জেরা দুই ভাই — মহেন্দ্র ও প্রিয়নাথ। তাঁহারা চাকরি করেন না। তাঁহাদের ময়দার কল আছে। প্রিয়নাথ পূর্বে ইঞ্জিনিয়ারের কর্ম করিতেন। ঠাকুর হরির নিকট মুখুজ্জে ভ্রাতৃদ্বয়ের কথা কহিতেছেন।

The two Mukherjis, Mahendra and Priyanath, were brothers. They did not work in an office, but had their own flour-mill. Priyanath had been an engineer. Sri Ramakrishna talked to Hari about the Mukherji brothers.

श्रीरामकृष्ण – (हरि से) - बड़ा भाई अच्छा है न ? - बड़ा सरल (artless-निष्कपट) है ।

[শ্রীরামকৃষ্ণ (হরির প্রতি) — বড় ভাইটি বেশ, না? বেশ সরল।

MASTER: "The elder brother is nice, isn't he? He is artless."

हरि - जी हाँ ।

HARI: "Yes, sir."

श्रीरामकृष्ण - (भक्तों से) - सुनता हूँ, छोटा बड़ा कंजूस है, पर यहाँ आकर कुछ अच्छा हुआ है । उसने मुझसे कहा, 'मैं पहले कुछ नहीं जानता था ।' (हरि से) क्या ये लोग कुछ दान आदि करते हैं ?

[শ্রীরামকৃষ্ণ (ভক্তদের প্রতি) — ছোট নাকি বড় সন (কৃপণ)? — এখানে এসে নাকি অনেক ভাল হয়েছে। আমায় বললে আমি কিছু জানতুম না। (হরিকে) এরা কিছু দান-টান করে কি?

MASTER: "Isn't the younger brother very miserly? I understand that since coming here he has improved a great deal. He once said to me, 'I didn't know anything before.' (To Hari) Do they give anything in charity?"

हरि - ऐसा कुछ दीख तो नहीं पड़ता, इनके जो बड़े भाई थे, उनका देहान्त हो गया है । वे बड़े अच्छे थे, दान-इत्यादि खूब करते थे ।

[হরি — তেমন দেখতে পাই না। এদের বড়ভাই যিনি ছিলেন — তাঁর কাল হয়েছে — তিনি বড় ভাল ছিলেন — খুব দান-ধ্যান ছিল।

HARI: "Not much, as far as I can see. Their elder brother, now dead, was a very good man. He was very charitable."

[ (5 अक्टूबर, 1884) श्रीरामकृष्ण वचनामृत ]  

🔆 शरीर के लक्षण से ईश्वर-दर्शन होगी या नहीं की पहचान - पंडित महेश न्याय-रत्न के छात्र🔆

[ঠাকুর শ্রীরামকৃষ্ণ ওদেহের লক্ষণ — ৺ মহেশ ন্যায়রত্নের ছাত্র ]

श्रीरामकृष्ण - (मास्टर आदि से) - किसी के शरीर के लक्षणों को देखकर कहा जा सकता है कि उसकी बन जायेगी या नहीं । खल होने पर हाथ वजनदार होता है ।

“नाक बैठी हुई (snub nose-चपटी नाक ) होना अच्छा नहीं । शम्भू की नाक बैठी थी । इसीलिए इतने ज्ञान के होने पर भी वह सरल न था ।

"कबूतर जैसा वक्षःस्थल, टेढ़ी-मेढ़ी हड्डियाँ, मोटी कुहनी तथा बिल्ली के समान कंजी आँखें खराब लक्षण हैं ।

[শ্রীরামকৃষ্ণ (মাস্টার প্রভৃতিকে) — শরিরে লক্ষণ দেখে অনেকটা বুঝা ঝায়, তার হবে কি না। খল হলে হাত ভারী হয়। “নাক টেপা হওয়া ভাল না। শম্ভুর নাকটি টেপা ছিল। তাই অত জ্ঞান থেকেও তত সরল ছিল না।““উনপাঁজুরে লক্ষণ ভাল না। আর হাড় পেকে — কনুয়ের গাঁট মোটা, হাত ছিনে। আর বিড়াল চক্ষু — বিড়ালের মত কটাচোখ।

MASTER (to M. and the others): "Whether a person will make spiritual progress or not can be known to a great extent by his physical marks. The hand of a deceitful person is heavy. A snub nose (चपटी नाक)  is not a good sign. Sambhu had that kind of nose; hence he was not quite sincere in spite of all his wisdom. Pigeon-breast is not a good sign either. Hard bones and heavy elbow-joints are bad signs too; and yellow eyes, like a cat's.

"ओठ अगर डोमों के जैसे होते हैं, तो उसकी बुद्धि नीच होती है । विष्णुमन्दिर का पुजारी कुछ महीने के लिए बदले में काम करने आया था । उसके हाथ का मैं खाता नहीं था । एकाएक मेरे मुँह से निकल गया, वह डोम है । इसके बाद उसने एक दिन कहा - हाँ, मेरा घर डोम-टोले में है, मैं डोमों की तरह सूप इत्यादि बना लेता हूँ ।

[ঠোঁট — ডোমের মতো হলে — নীচবুদ্ধি হয়। বিষ্ণুঘরের পুরুত কয়মাস একটিং কর্মে এসেছিল। তার হাতে খেতুম না — হঠাৎ মুখ দিয়ে বলে ফেলেছিলুম, ‘ও ডোম’। তারপর সে একদিন বললে ‘হাঁ, আমাদের ঘর ডোম পাড়ায়। আমি ডোমের বাসন চাঙ্গারী বুনতে জানি’।

["A man becomes very mean if he has lips that are thick, like a dome's. (One of the lowest castes among the Hindus.) A brahmin was here for a few months acting as priest of the Vishnu temple. I couldn't eat the food he touched. One day I suddenly exclaimed, 'He is a dome!' Afterwards he said to me: 'Yes, sir. We live in the dome quarters. I know how to make wicker baskets and such things, just like a dome.'

"और भी बुरे लक्षण हैं - एक आँख का काना होना, तिस पर वह भी कंजी आँख । काना फिर भी अच्छा है, परन्तु कंजा [Squint-eyed भेंगा -जिसके आँख की पुतली टेढ़ी रहती हो, यह जानना बहुत कठिन होता है कि भेंगा व्यक्ति किधर देख रहा है] बड़ा खतरनाक होता है ।

“আরও খারাপ লক্ষণ — এক চক্ষু আর ট্যারা। বরং এক চক্ষু কানা ভাল, তো ট্যারা ভাল নয়। ভারী দুষ্ট ও খল হয়।

"There are other bad physical signs: one eye and squint eyes. It is rather better to have one eye, but never squint eyes. Squint-eyed (भेंगा ) people are wicked and deceitful.

[ (5 अक्टूबर, 1884) श्रीरामकृष्ण वचनामृत ]  

🔆🙏बिल्ली जैसे भूरी आँखों वाले नास्तिक होते हैं !ज्योतिष खोजते हैं 🔆🙏

"महेश्वर का एक छात्र आया था । वह कहता था, मैं नास्तिक हूँ । उसने हृदय से कहा, 'मैं नास्तिक हूँ, तुम आस्तिक होकर मेरे साथ चर्चा करो ।' तब मैंने उसे अच्छी तरह, देखा । देखा - उसकी आँख बिल्ली जैसी थी ।

[”মহেশের (৺ মহেশ ন্যায়রত্নের) একজন ছাত্র এসেছিল। সে বলে, ‘আমি নাস্তিক’। সে হৃদেকে বললে, ‘আমি নাস্তিক, তুমি আস্তিক হয়ে আমার সঙ্গে বিচার কর’। তখন তাকে ভাল করে দেখলাম। দেখি, বিড়াল চক্ষু!

"A student of Mahesh Nyayaratna's came here. He described himself as an atheist. He said to Hriday: 'I am an atheist. You may take up the position of a believer in God and argue with me.' Thereupon I watched him closely and noticed that his eyes were yellow, like a cat's.

“चाल देखकर भी अच्छे और बुरे लक्षण समझे जाते हैं ।

[“আবার চলনেতে লক্ষণ ভাল মন্দ টের পাওয়া যায়।"

Whether a person is good or bad can also be known from the way he walks."

{ हिन्दी वचनामृत में नहीं है -" पुरुष लिंग के ऊपर की  त्वचा यदि  मुसलमानों की तरह कटी हुई हो , तो यह एक बुरा लक्षण है। (मास्टर आदि हँस रहे हैं) (मास्टर से हँसते हुए ) तुम उसकी परीक्षा लेते हो या नहीं,  - यह एक बुरा लक्षण है।" (सब हंसते हैं)

পুরুষাঙ্গের উপর চামরাটি মুসলমানদের মতো যদি কাটা হয়, সে একটি খারাপ লক্ষণ। (মাস্টার প্রভৃতির হাস্য) (মাস্টারকে সহাস্যে) তুমি ওটা দেখো — ও খারাপ লক্ষণ।” (সকলের হাস্য)

श्रीरामकृष्ण कमरे से बरामदे में आकर टहलने लगे । साथ मास्टर और बाबूराम हैं ।

ঘর হইতে ঠাকুর বারান্দায় বেড়াইতেছেন। সঙ্গে মাস্টার ও বাবুরাম।

Sri Ramakrishna paced the verandah. M. and Baburam walked with him.

श्रीरामकृष्ण - (हाजरा से) - एक आदमी आया था । मैंने देखा - उसकी आँखें बिल्ली जैसी थीं । उसने मुझसे पूछा - 'क्या आप ज्योतिष भी जानते हैं ? - मुझे कुछ कष्ट मिल रहा है ।’ मैंने कहा - नहीं, तुम वराहनगर जाओ, वहाँ इसके पण्डित हैं ।

[ঘর হইতে ঠাকুর বারান্দায় বেড়াইতেছেন। সঙ্গে মাস্টার ও বাবুরাম। শ্রীরামকৃষ্ণ (হাজরার প্রতি) — একজন এসেছিল, — দেখলাম বিড়ালের মতো চক্ষু। সে বলে, ‘আপনি জ্যোতিষ জানেন? — আমার কিছু কষ্ট আছে।’ আমি বললাম, ‘না, বরাহনগরে যাও, সেখানে জ্যোতিষের পণ্ডিত আছে।’

MASTER (to Hazra): "A man came here. I saw that his eyes were like a cat's. He asked me: 'Do you know astrology? I am in some difficulty.' I said: 'No, I don't. Go to Baranagore. There you will find astrologers.'"

[ (5 अक्टूबर, 1884) श्रीरामकृष्ण वचनामृत ] 

🔆🙏श्री रामकृष्ण, मणि और गोपनीय विचार - "ईश्वर की इच्छा" - नारायण के प्रति विचार🔆🙏

[শ্রীরামকৃষ্ণ, মণি ও নিভৃত চিন্তা — “ঈশ্বরের ইচ্ছা” — নারাণের জন্য ভাবনা ]

बाबूराम और मास्टर नीलकण्ठ ^* के नाटक की बात कह रहे हैं । बाबूराम नवीन सेन के घर से दक्षिणेश्वर लौटकर कल रात को यहीं थे । सुबह श्रीरामकृष्ण के साथ दक्षिणेश्वर में नवीन नियोगी के यहाँ नीलकण्ठ का नाटक उन्होंने देखा था ।

[नीलकण्ठ ^*१   बंगाल के गीति नाट्य मंचन' के ज्ञानिगुणी  निर्माता-निर्देशक - नीलकंठ मुखर्जी (1841 - 1911) :  नीलकण्ठ जी  बर्दवान जिले के धरणी ग्राम के रहने वाले थे , तथा एक प्रसिद्ध जात्रावाला  थे । पहले ये गोविन्द अधिकारी के नाटक-दल (जात्रा दल) में काम करते थे। नीलकण्ठ जी की आवाज बहुत मधुर थी , इसलिए 'कृष्ण लीला नाट्य मंचन ' के समय अग्रदूती (messenger) की भूमिका में अभिनय करते थे। वे संस्कृत भाषा के अच्छे जानकार भी थे। गोविन्द अधिकारी की मृत्यु के बाद वे उनके जात्रा -कम्पनी (नाट्यशाला ) के मालिक बन गए थे। ये अपनी  कवित्व- शक्ति के लिए सुविख्यात थे। उनके द्वारा लिखित और निर्देशित  'कृष्ण-जात्रा ' बर्दवान, बीरभूम, मुर्शिदाबाद और बाँकुड़ा जिले में बहुत लोकप्रिय थी नीलकंठ द्वारा लिखित 'कालिया दमन' (कृष्णालीला) सर्वश्रेष्ठ 'पाला' (वाच्य -अभिनय) है।  ‘কালীর দমন’ (কৃষ্ণলীলা) নীলকণ্ঠের রচিত শ্রেষ্ঠ পালা।  वे स्वयं उस गीति-नाट्य  (पाला-टर्न अभिनय) में राधा की सखी का रूप धार कर बहुत ही सुन्दर अभिनय और गायन किया करते थे। नवद्वीप के दिग्गज पण्डितों ने उन्हें   'गीत-रत्न' की उपाधि प्रदान की थी । नीलकंठ ने श्री रामकृष्ण को दक्षिणेश्वर में गीत सुनाकर मुग्ध कर दिया था।  ठाकुरदेव  ने भी अपने  गीत सुनाकर  नीलकण्ठ को धन्य कर दिया था । श्री रामकृष्ण स्वयं नीलकंठ की जात्रा नाटक देखने के उत्सुक होकर हाटखोला के 'बरोयारी महल्ला' गए थे।  बाद में, 5 अक्टूबर 188 4 ई. में ठाकुर को एक बार फिर नवीन नियोगी के घर आमंत्रित किया गया था और उन्होंने वहां नीलकंठ की गीतिनाट्य को देखा था ।  उस दिन भी उन्हें समाधि लग गयी थी। नीलकंठ ठाकुर से पूछा था कि उसके जैसे सांसारिक प्राणी की क्या गति होगी ठाकुर ने उनसे कहा था कि -  वे (नीलकंठ) तो स्वयं ईश्वर के द्वारा निर्देशित होकर उनका नाम गुण-गान करते हुए भक्तिरस की धारा, को जन-जन तक पहुँचाने का महान कार्य करने में लगे हुए हैं। उसके बाद उन्होंने नीलकंठ को  माँ जगदम्बा के गीत सुनाने का अनुरोध किया था।  उनके  मधुर कण्ठ से गीत सुनकर ठाकुरदेव भावविभोर होकर नृत्य करने लगे थे। इसी बहाने नीलकंठ को उनकी गायकी के लिए सच्चा  पुरष्कार प्राप्त हो गया था !  ठाकुर ने उनसे कहा था कि वह दुर्लभ रत्न (ईश्वर) तो नीलकंठ के पास ही हैं ! 

নীলকণ্ঠ [নীলকণ্ঠ মুখোপাধ্যায়] (১৮৪১ - ১৯১১) — ইনি বর্ধমানের ধরণী গ্রাম নিবাসী বিখ্যাত যাত্রাওয়ালা। গোবিন্দ অধিকারীর যাত্রা দলে প্রথম ছিলেন। সুগায়ক নীলকণ্ঠ কৃষ্ণযাত্রায় দূতীর ভূমিকায় অভিনয় করিতেন। তিনি সংস্কৃত ভাল জানিতেন। গোবিন্দ অধিকারীর মৃত্যুর পর তিনি তাঁহার যাত্রা দলের মালিক হন। কবিত্ব শক্তির জন্য বিখ্যাত ছিলেন। তাঁহার রচিত ‘কৃষ্ণযাত্রা’ বর্ধমান, বীরভূম, মুর্শিদাবাদ এবং বাঁকুড়ায় খুব খ্যাতিলাভ করিয়াছিল। ‘কালীর দমন’ (কৃষ্ণলীলা) নীলকণ্ঠের রচিত শ্রেষ্ঠ পালা। তিনি নিজে ওই যাত্রায় রাধার সখীরূপে অত্যন্ত সুন্দর অভিনয় ও গান করিতেন। নবদ্বীপের পণ্ডিতদের নিকট হইতে ‘গীতরত্ন’ উপাধি লাভ করেন। নীলকণ্ঠ দক্ষিণেশ্বরে শ্রীরামকৃষ্ণকে গান শুনাইয়া মুগ্ধ করেন। ঠাকুরও তাঁহাকে গান শুনাইয়া ধন্য করিয়াছিলেন। নীলকণ্ঠের যাত্রা অনুষ্ঠান দেখিতে আগ্রহী শ্রীরামকৃষ্ণ হাটখোলার বারোয়ারী তলায় গিয়াছিলেন। পরে আর একবার ঠাকুর ১৮৮৪ খ্রীষ্টাব্দের অক্টোবর মাসে নবীন নিয়োগীর গৃহে আমন্ত্রিত হইয়া নীলকণ্ঠের যাত্রা শুনেন। সেদিনও তিনি সমাধিস্থ হন। নীলকণ্ঠ ঠাকুরকে প্রশ্ন করেন যে, তাঁহার মতো সংসারী জীবের গতি কি। ঠাকুর তাঁহাকে বলেন যে, তিনি (নীলকণ্ঠ) ভগবান দ্বারা পরিচালিত হইয়াই তাঁহার নামগান, ভক্তিরসের ধারা সাধারণ মানুষের মনে পৌঁছাইয়া দিতেছেন। তাহার পর তিনি নীলকণ্ঠকে মায়ের গান করিতে অনুরোধ করিলেন। মধুর কণ্ঠে গান শুনিয়া তিনি ভাববিভোর হইয়া নৃত্য করিতে আরম্ভ করেন। এইভাবে নীলকণ্ঠ তাঁহার গানের যথার্থ পুরস্কার পাইলেন। ঠাকুর তাঁহাকে বলিয়াছিলেন যে, দুর্লভ রত্ন নীলকণ্ঠের নিজের কাছেই আছে।]

[বাবুরাম ও মাস্টার নীলকণ্ঠের যাত্রার কথা কহিতেছেন। বাবুরাম নবীন সেনের বাটী হইতে দক্ষিণেশ্বরে ফিরিয়া আসিয়া কাল রাত্রে এখানে ছিলেন। সকালে ঠাকুরের সঙ্গে দক্ষিণেশ্বরে নবীন নিয়োগীর বাড়িতে নীলকণ্ঠের যাত্রা শুনিয়াছিলেন।

Baburam and M. talked about Nilkantha's theatrical performance. Baburam had spent the previous night at the temple garden after his return from Nabin Sen's house. In the morning he had attended Nilkantha's performance with the Master.

श्रीरामकृष्ण - (मास्टर और बाबूराम से) - तुम लोगों की क्या बातचीत हो रही है ?

[শ্রীরামকৃষ্ণ (মাস্টার ও বাবুরামের প্রতি) — তোমাদের কি কথা হচ্ছে?

MASTER (to M. and Baburam): "What are you talking about?"

मास्टर और बाबूराम - जी, नीलकण्ठ के नाटक की बातचीत हो रही है - और उसी गाने की बात - 'श्यामापदे आस, नदीतीरे वास ।'

[মাস্টার ও বাবুরাম — আজ্ঞা নীলকণ্ঠের যাত্রার কথা হচ্ছে, — আর সেই গানটির কথা — ‘শ্যামাপদে আশ, নদীর তীরে বাস।’

M. AND BABURAM: "About Nilkantha's performance."

श्रीरामकृष्ण बरामदे में हैं । टहलते हुए एकाएक मणि को एकान्त में ले जाकर कहने लगे - 'ईश्वर की चिन्ता में जितना दूसरे आदमियों को भाव मालूम न हो उतना ही अच्छा है ।’ एकाएक यह कहकर श्रीरामकृष्ण चले गये ।

[ঠাকুর বারান্দায় বেড়াইতে বেড়াইতে হঠাৎ মণিকে নিভৃতে হইয়া বলিতেছেন — ঈশ্বরচিন্তা যত লোকে টের না পায় ততই ভাল। হঠাৎ এই কথা বলিয়াই ঠাকুর চলিয়া গেলেন।

While pacing the verandah Sri Ramakrishna suddenly took M. aside and said, "The less people know about your thoughts of God, the better for you." Saying these words the Master abruptly went away. A short time afterwards he began to talk with Hazra.

श्रीरामकृष्ण हाजरा से बातचीत कर रहे हैं ।

ঠাকুর হাজরার সঙ্গে কথা কহিতেছেন।

हाजरा - नीलकण्ठ ने तो आप से कहा है कि वह आयेगा ।

[হাজরা — নীলকণ্ঠ তো আপনাকে বলেছে, সে আসবে। তা ডাকতে গেলে হয়।

HAZRA: "Nilkantha told you he would pay you a visit. It would be good to send for him."

श्रीरामकृष्ण - नहीं, रात में जागता रहा है - ईश्वर की इच्छा से आप आये, दूसरी बात है ।

[শ্রীরামকৃষ্ণ — না, রাত্রি জেগেছে, — ঈশ্বরের ইচ্ছায় আপনি আসে, সে এক। 

MASTER: "No, he didn't sleep at all last night. It will be different if he comes here through the will of God."

श्रीरामकृष्ण बाबूराम से नारायण के यहाँ जाकर मिलने के लिए कह रहे हैं । आप नारायण को साक्षात् नारायण देखते हैं । इसीलिए उसे देखने को व्याकुल हो रहे हैं । बाबूराम से कह रहे हैं - 'तू बल्कि एक अंग्रेजी पुस्तक लेकर उसके पास जाना ।’

[বাবুরামকে নারাণের বাড়ি গিয়া দেখা করিতে বলিতেছেন। নারাণকে সাক্ষাৎ নারায়ণ দেখেন। তাই তাকে দেখবার জন্য ব্যাকুল হইয়াছেন। বাবুরামকে বলিতেছেন — “তুই বরং একখান ইংরাজী বই নিয়ে তার কাছে যাস।”

Sri Ramakrishna asked Baburam to visit Narayan at his house. He looked on Narayan as God Himself, and so he longed to see him. The Master said to Baburam, "You may go to him with one of your English text-books."

*(५)

 [ (5 अक्टूबर, 1884) श्रीरामकृष्ण वचनामृत]   

🔆🙏नीलकंठ आदि भक्तों के साथ कीर्तनानन्द में 🔆🙏

নীলকণ্ঠ প্রভৃতি ভক্তগণসঙ্গে সংকীর্তনানন্দে

श्रीरामकृष्ण कमरे में अपने आसन पर बैठे हुए हैं । दिन के तीन बजे का समय होगा । नीलकण्ठ पाँच-सात साथियों के साथ श्रीरामकृष्ण के कमरे में आये । श्रीरामकृष्ण उनकी अभ्यर्थना के लिए उठकर कुछ बढ़े । नीलकण्ठ कमरे के पूर्व द्वार से आये और श्रीरामकृष्ण को भूमिष्ठ हो प्रणाम किया ।

[ঠাকুর শ্রীরামকৃষ্ণ ঘরে নিজের আসনে বসিয়া আছেন। বেলা প্রায় তিনটা হইবে। নীলকণ্ঠ পাঁচ-সাতজন সাঙ্গোপাঙ্গ লইয়া ঠাকুরের ঘরে আসিয়া উপস্থিত। ঠাকুর পূর্বাস্য হইয়া তাহাকে যেন অভ্যর্থনা করিতে অগ্রসর হইলেন। নীলকণ্ঠ ঘরের পূর্ব দ্বার দিয়া আসিয়া ঠাকুরকে ভূমিষ্ঠ হইয়া প্রণাম করিতেছেন।

About three o'clock in the afternoon Sri Ramakrishna was sitting in his room. Nilkantha arrived with five or six of his companions. The Master went toward the east door as if to welcome him. The musicians bowed before the Master, touching the ground with their foreheads.

श्रीरामकृष्ण समाधिलीन हो गये हैं, उनके पीछे बाबूराम है, सामने नीलकण्ठ, मास्टर और आश्चर्य में डूबे हुए नीलकण्ठ के साथी । खाट के उत्तर की ओर दीनानाथ खजानची आकर दर्शन कर रहे हैं । देखते ही देखते कमरा श्री ठाकूर-मन्दिर के आदमियों से भर गया । कुछ देर बाद श्रीरामकृष्ण के भाव में कुछ उपशम हुआ । श्रीरामकृष्ण जमीन पर चटाई पर बैठे हुए हैं । सामने नीलकण्ठ हैं और चारों ओर भक्त-मण्डली ।

[ঠাকুর সমাধিস্ত! — তাঁহার পশ্চাতে বাবুরাম, সম্মুখে মাস্টার, নীলকণ্ঠ ও চমৎকৃত অন্যান্য যাত্রাওয়ালারা। খাটের উত্তর ধারে দীননাথ খাজাঞ্চী আসিয়া দর্শন করিতেছেন। দেখিতে দেখিতে ঘর ঠাকুরবাড়ির লোকে পরিপূর্ণ হইল। কিয়ৎক্ষণ পরে ঠাকুরের কিঞ্চিত ভাব উপশম হইতেছে। ঠাকুর মেঝেতে মাদুরে বসিয়াছেন — সম্মুখে নীলকণ্ঠ ও চতুর্দিকে ভক্তগণ।

Sri Ramakrishna went into samadhi. Baburam stood behind him. M., Nilkantha, and the musicians were in front of him, watching him in great amazement. Dinanath, an officer of the temple, looked on from the north side of the bed. Soon the room was filled with officers of the temple garden. Sri Ramakrishna's ecstasy abated a little. He seated himself on a mat on the floor, surrounded by Nilkantha and other devotees.

🔆🙏मैं दुनियादारी में उलझा हुआ हूँ; मुझे भी अच्छा कर लीजिये !🔆🙏

तुम तो पहले से ही अच्छे हो !'का' पर एक और आकार लगाने से 'का' का 'का' ही रहता है ! 

আমায়ও ভাল করুন।"Make me all right too."

श्रीरामकृष्ण – (आवेश में) - मैं अच्छा हूँ ।

শ্রীরামকৃষ্ণ (আবিষ্ট হইয়া) — আমি ভাল আছি।

MASTER (still in an ecstatic mood): "I am all right."

नीलकण्ठ - (हाथ जोड़कर) - मुझे भी अच्छा कर लीजिये !

নীলকণ্ঠ (কৃতাঞ্জলি হইয়া) — আমায়ও ভাল করুন।

NILKANTHA (with folded hands): "Make me all right too."

श्रीरामकृष्ण – (सहास्य) - तुम तो पहले से ही अच्छे हो । 'क' में आकार लगाने से 'का' होता है, उस पर फिर आकार लगाने से क्या फल होगा ? 'का' पर एक और आकार लगाने से 'का' का 'का' ही रहता है ! (सब हँसते हैं ।)

[শ্রীরামকৃষ্ণ (সহাস্যে) — তুমি তো ভাল আছ। ‘ক’য়ে আকার ‘কা’, আবার আকার দিয়ে কি হবে? ‘কা’-এর উপর আবার আকার দিলে সেই ‘কা’-ই থাকে। (সকলের হাস্য)

MASTER (smiling): "Why, you are already all right. Adding the letter 'a' to 'ka', one gets 'ka'. By adding another 'a' to 'ka', one still gets the same • ka'." (All laugh.)

नीलकण्ठ - इस संसार में पड़ा हुआ हूँ । (मैं दुनियादारी में उलझा हुआ हूँ !)

[নীলকণ্ঠ — আজ্ঞা, এই সংসারে পড়ে রয়েছি!

NILKANTHA: "Revered sir, I am entangled in worldliness."

[ (5 अक्टूबर, 1884) श्रीरामकृष्ण वचनामृत]   

🔆🙏माँ जगदम्बा ने अपनी समस्त संतानों के कल्याण के लिए तुम्हें संसार में रखा है🔆🙏 

श्रीरामकृष्ण - (सहास्य) - तुम्हें संसार में उन्होंने और पाँच आदमियों के लिए रखा है ।

[শ্রীরামকৃষ্ণ (সহাস্যে) — তোমায় সংসারে রেখেছেন পাঁচজনের জন্য।

MASTER (smiling): "God has kept you in the world for the sake of others. 

"अष्ट पाश हैं । ये सब नहीं जाते । दो-एक पाश वे रख देते हैं लोकशिक्षा के लिए । तुमने यह नाटक किया है, तुम्हारी भक्ति देखकर कितने ही आदमियों का उपकार होता है । और तुम अगर सब छोड़ दोगे, तो ये लोग (साथ के नाटकवाले) फिर कहाँ जायेंगे ?

[“অষ্টপাশ। তা সব যায় না। দু-একটা পাশ তিনি রেখে দেন — লোকশিক্ষার জন্য! তুমি যাত্রাটি করেছো, তোমার ভক্তি দেখে কত লোকের উপকার হচ্ছে। আর তুমি সব ছেড়ে দিলে এঁরা (যাত্রাওয়ালারা) কোথায় যাবেন।

There are eight fetters. One cannot get rid of them all. God keeps one or two so that a man may live in the world and teach others. You have organized this theatrical company. How many people are being benefited by seeing your bhakti! If you give up everything, then where will these musicians go?

"वे तुम्हारे द्वारा काम कराये लेते हैं, काम पूरा हो जाने पर फिर तुम्हें लौटना न होगा । गृहिणी जब घर का कुल काम कर लेती है, सब को खिला-पिला लेती है - दास दासियों को भी - तब खुद नहाने के लिए जाती है, उस समय बुलाने पर भी वह नहीं लौटती ।"

[“তিনি তোমার দ্বারা কাজ করিয়ে নিচ্ছেন। কাজ শেষ হলে তুমি আর ফিরবে না। গৃহিণী সমস্ত সংসারের কাজ সেরে, — সকলকে খাইয়ে-দাইয়ে, দাস-দাসীদের পর্যন্ত খাইয়ে-দাইয়ে — নাইতে যায়; — তখন আর ডাকাডাকি করলেও ফিরে আসে না।”

"God is now doing all these works through you. When they are finished, you will not return to them. The housewife finishes her household duties, feeds everyone, including the menservants and maidservants, and then goes to take her bath. She doesn't come back then even if people shout for her."

नीलकण्ठ - मुझे आशीर्वाद दीजिये ।

[নীলকণ্ঠ — আমায় আশীর্বাদ করুন।

NILKANTHA: "Please bless me."

श्रीरामकृष्ण - कृष्ण के वियोग से यशोदा की उन्मादावस्था थी । वे राधिका के पास गयी थीं । उस समय राधिका ध्यान कर रही थीं । उन्होंने भावावेश में यशोदा से कहा - "मैं वही मूल प्रकृति हूँ - आद्याशक्ति हूँ, तुम मुझसे वर की प्रार्थना करो ।’

यशोदा ने कहा, 'और क्या वर दोगी, यही कहो, जिससे मन, वाणी और कर्मों से भगवान की सेवा कर सकूँ, कानों से उनका नाम, उनके गुण सुनूं, हाथों से उनकी और उनके भक्तों की सेवा कर सकूँ; आँखों से उनके रूप और उनके भक्तों के दर्शन कर सकूँ ।'

[শ্রীরামকৃষ্ণ — কৃষ্ণের বিরহে যশোদা উন্মাদিনী, — শ্রীমতীর কাছে গিয়েছেন। শ্রীমতী তখন ধ্যান কচ্ছিলেন। তিনি আবিষ্ট হয়ে যশোদাকে বললেন — ”আমি সেই মূল প্রকৃতি আদ্যাশক্তি! তুমি আমার কাছে বর নাও!” যশোদা বললেন, ‘আর কি বর দেবে! এই বলো যেন কায়মনোবাক্যে তাঁর চিন্তা, তাঁর সেবা করতে পারি। কর্ণেতে যেন তাঁর নামগুণগান শুনতে পাই, হাতে যেন তাঁর ও তাঁর ভক্তের সেবা করতে পারি, — চক্ষে যেন তাঁর রূপ, তাঁর ভক্ত, দর্শন করতে পারি।

MASTER: "Yasoda went mad with grief because she was separated from Krishna. She went to Radhika, who was meditating. Radhika said to her in an ecstatic state: 'I am the Ultimate Prakriti, the Primal Power. Ask a boon of Me.' Yasoda said to her: 'What shall I ask of You? Please bless me, that with all my body, mind, and speech I may think of God and serve Him; that with my ears I may hear the singing of God's name and glories; that with my hands I may serve Hari and His devotees; that with. my eyes I may behold His form and His devotees.'

[ (5 अक्टूबर, 1884) श्रीरामकृष्ण वचनामृत]

🔆उनका नाम लेते हुए जब तुम्हारे नेत्र भर आयें तो समझना तुम्हें ठाकुर से प्रेम हो गया है !🔆

“उनका नाम लेते हुए जब तुम्हारी आँखों में आँसुओं की धारा बह चलती है, तो तुम्हें चिन्ता किस बात की है ? - उन पर तुम्हारा प्यार हो गया है ।

[“তোমার যেকালে তাঁর নাম করতে চক্ষু জলে ভেসে যায়, সেকালে আর তোমার ভাবনা কি? — তাঁর উপর তোমার ভালবাসা এসেছে।"

Your eyes fill with tears when you utter the name of God. Why then should you worry about anything? Divine love has grown in you.

 [ (5 अक्टूबर, 1884) श्रीरामकृष्ण वचनामृत]   

🔆ईश्वर की अनुभूति हो जाने के बाद, विभिन्न तरीकों से ईश्वर से प्रेम करने का नाम है विज्ञान🔆

তাঁকে লাভ করে নানাভাবে ভালবাসার নাম বিজ্ঞান। 

To love God in different ways, after realizing Him, is vijnana.

"अनेक के जानने का नाम है अज्ञान और एक के जानने का नाम है ज्ञान - अर्थात् एक ही ईश्वर सत्य हैं और सर्व भूतों में विराजमान हैं । उनके साथ बातचीत करने का नाम है विज्ञान - उन्हें प्राप्त कर अनेक प्रकार से प्यार करने का नाम है विज्ञान ।

[“অনেক জানার নাম অজ্ঞান, — এক জানার নাম জ্ঞান — অর্থাৎ এক ঈশ্বর সত্য সর্বভূতে রয়েছেন। তাঁর সঙ্গে আলাপের নাম বিজ্ঞান — তাঁকে লাভ করে নানাভাবে ভালবাসার নাম বিজ্ঞান।

"To know many things is ajnana, ignorance. To know only one" thing is jnana, Knowledge — the realization that God alone is real and that He dwells in all. And to talk to Him is vijnana, a fuller Knowledge. To love God in different ways, after realizing Him, is vijnana.

 [ (5 अक्टूबर, 1884) श्रीरामकृष्ण वचनामृत]

🔆🙏जब तुम लीला से नित्य में जाकर फिर वहाँ से लीला में लौट सके -तब भक्ति पक्की🔆🙏 

"और यह भी है कि वे एक-दो के पार हैं, मन और वाणी से अतीत हैं । लीला से नित्य में जाना और नित्य से लीला में आना - इसका नाम है पक्की भक्ति ।

[यह यदि हो गया ,  समझो सब हो गया ! (नित्य से लीला में लौटना) सबकुछ उनकी कृपा पर ही निर्भर करता है !]

[“আবার আছে — তিনি এক-দুয়ের পার — বাক্য মনের অতীত। লীলা থেকে নিত্য, আবার নিত্য থেকে লীলায় আসা, — এর নাম পাকা ভক্তি।

"It is also said that God is beyond one and two. He is beyond speech and mind. To go up from the Lila to the Nitya and come down again from the. Nitya to the Lila is mature bhakti.

"तुम्हारा वह गाना बड़ा सुन्दर है - 'श्यामापदे आस, नदी तीरे वास ।’"इसी से बन जायेगी - सब उनकी कृपा पर निर्भर है ।"लेकिन यह समझकर भी उनको (माँ सारदा को) पुकारते रहना , चुप रहने से काम नहीं बनेगा। वकील जब अदालत में बहस करता है ,  उस समय अपनी तरफ से हर प्रकार की दलील रखता है ; लेकिन अन्त में कहता है - " महामहिम ! मुझे जो कहना था मैंने कह दिया , अब निर्णय आपकी हाथों में है ! [आपकी इच्छा पूर्ण हो ! ]

[“তাহলেই হল, — তাঁর কৃপার উপর সব নির্ভর করছে।“কিন্তু তা বলে তাঁকে ডাকতে হবে — চুপ করে থাকলে হবে না। উকিল হাকিমকে সব বলে শেষে বলে — “আমি যা বলবার বললাম এখন হাকিমের হাত’।”

I love that song of yours about aspiring to reach the Lotus Feet of the Divine Mother. It is enough to know that everything depends on the grace of God. But one must pray to God; it will not do to remain inactive. The lawyer gives all the arguments and finishes his pleading by saying to the judge: 'I have said all I have to say. Now the decision rests with Your Honour.'"

[ (5 अक्टूबर, 1884) श्रीरामकृष्ण वचनामृत]   

🔆🙏यहाँ लेकिन केवल सम्मानानार्थ (honorary) है !🔆🙏

"कुछ देर बाद श्रीरामकृष्ण ने कहा –- तुमने सुबह में इतना  गाया,  फिर बहुत कष्ट करके यहाँ पहुँचे हो।  यहाँ लेकिन सब सम्मानानार्थ (honorary) है !

“কিয়ৎক্ষণ পরে ঠাকুর বলিতেছেন — তুমি সকালে অত গাইলে, আবার এখানে এসেছ কষ্ট করে। এখানে কিন্তু অনারারী (Honorary)।

After a few minutes Sri Ramakrishna said to Nilkantha: "You sang so much in the morning, and now you have taken the trouble to come here. But here everything is 'honorary'."

नीलकण्ठ - क्यों ?

নীলকণ্ঠ — কেন?

श्रीरामकृष्ण - (सहास्य) - मैं समझ गया , आप क्या कहने वाले हैं ! 

[শ্রীরামকৃষ্ণ (সহাস্যে) — বুঝেছি, আপনি যা বলবেন।

MASTER (smiling): "I know what you will say."

नीलकण्ठ - अनमोल रत्न ले जाऊँगा ।

[নীলকণ্ঠ — অমূল্য রতন নিয়ে যাব!!!

NILKANTHA: "I shall get a precious gem from here."

 [ (5 अक्टूबर, 1884) श्रीरामकृष्ण वचनामृत]   

🔆🙏जिनको चैतन्य हो गया है (अर्थात आत्मानुभूति हो गयी है), वे ही 'मान हूंस' हैं🔆🙏 

श्रीरामकृष्ण - वह अनमोल रत्न तुम्हारे ही पास है । 'का' में फिर से आकार लगाने से क्या लाभ ? यदि तुम्हारे पास रत्न न होता तो, तुम्हारा गाना मुझे इतना अच्छा कैसे लगता ? रामप्रसाद सिद्ध है, इसीलिए उसका गाना अच्छा लगता है ।

[শ্রীরামকৃষ্ণ — সে অমূল্য রতন আপনার কাছে। আবার ‘ক’য়ে আকার দিলে কি হবে? না হলে তোমার গান অত ভাল লাগে কেন? রামপ্রসাদ সিদ্ধ, তাই তার গান ভাল লাগে।

MASTER: "You already have that precious gem. What will you gain by adding again the letter 'a' to 'ka'? If you didn't have the gem, should I like your songs so much? Ramprasad had attained divine realization; that is why his songs appeal so much.

" साधारण जीव को मनुष्य कहते हैं। जिनको चैतन्य हो गया है (अर्थात आत्मानुभूति हो गयी है), वे ही 'मान हूंस' हैं - अर्थात उनको ही अपनी अन्तर्निहित गरिमा का बोध होता है। और तुम वही 'मान हूंस' हो ! "तुम्हारे गाने की बात सुनकर मैं स्वयं जा रहा था, परन्तु नियोगी फिर आया था कहने के लिए ।

“সাধারণ জীবকে বলে মানুষ। যার চৈতন্য হয়েছে, সেই মানহুঁস। তুমি তাই মানহুঁস। “তোমার গান হবে শুনে আমি আপনি যাচ্ছিলাম — তা নিয়োগীও বলতে এসেছিল।

"I had already planned to hear your music. Later on Niyogi, too, came here to invite me."

श्रीरामकृष्ण छोटे तख्त पर अपने आसन पर जा बैठे । नीलकण्ठ से कहते हैं, जरा माता का नाम सुनने की इच्छा है ।

[ঠাকুর ছোট তক্তপোশের উপর নিজের আসনে গিয়া বসিয়াছেন। নীলকণ্ঠকে বলিতেছেন, একটু মায়ের নাম শুনব।

The Master was sitting on the small couch. He told Nilkantha that he would like to hear a song or two about the Divine Mother.

नीलकण्ठ अपने साथियों के साथ गाने लगे । कई गाने गाये । एक गाने में एक जगह था - 'जिसकी जटा में गंगाजी शोभा पा रही हैं, उसने हृदय में राजराजेश्री को धारण कर रखा है ।'

श्रीरामकृष्ण की प्रेमोन्मत्त अवस्था हो गयी । वे नृत्य करने लगे । नीलकण्ठ और भक्तगण उन्हें घेरकर गा रहे हैं और नृत्य कर रहे हैं ।

[নীলকণ্ঠ গানে বলিতেছেন, ‘যার জটায় গঙ্গা, তিনি রাজরাজেশ্বরীকে হদয়ে ধারণ করিয়া আছেন।’ঠাকুর প্রেমোন্মত্ত হইয়া নৃত্য করিতেছেন। নীলকণ্ঠ ও ভক্তগণ তাঁহাকে বেড়িয়া বেড়িয়া গান গাহিতেছেন ও নৃত্য করিতেছেন।গান - শিব শিব।এই গানের সঙ্গেও ঠাকুর ভক্তসঙ্গে নৃত্য করিতে লাগিলেন।নীলকণ্ঠ সাঙ্গোপাঙ্গ লইয়া গান গাইতেছেন:গান - শ্যামাপদে আশ, নদীর তীরে বাস।গান - মহিষমর্দিনী।এই গান শুনিতে শুনিতে ঠাকুর দাঁড়াইয়া সমাধিস্থ!

Nilkantha sang two songs with his companions. When the Master heard the second song he stood up and went into samadhi. Presently he began to dance in an ecstasy of divine love. Nilkantha and the devotees sang and danced around him. Then Nilkantha sang a song about Siva, and the Master danced with the devotees.

गाना समाप्त हो गया । श्रीरामकृष्ण नीलकण्ठ से कह रहे हैं - मैं तुम्हारा वह गाना सुनूँगा, कलकत्ते में जो सुना था ।

[গান সমাপ্ত হইল। ঠাকুর নীলকণ্ঠকে বলিতেছেন, — আমি আপনার সেই-গানটি শুনব, কলকাতায় যা শুনেছিলাম।

When the singing was over, Sri Ramakrishna said to Nilkantha, "I should like to hear that song of yours I heard in Calcutta."

मास्टर - वह है - 'श्रीगौरांग सुन्दर नव नटवर तप्त -कांचन काय ।' उसी के एक पद का अर्धांश गाते हुए श्रीरामकृष्ण फिर नाचने लगे । वह अपूर्व नृत्य जिन लोगों ने देखा है, वे कभी भूल न सकेंगे । कमरे में आदमी ठसाठस भर गये । सब लोग उन्मत्त हो रहे हैं । कमरा मानो श्रीवास का आँगन हो रहा है ।

[মাস্টার — শ্রীগৌরাঙ্গসুন্দর নব নটবর, তপত কাঞ্চন কায়।শ্রীরামকৃষ্ণ — হাঁ, হাঁ।নীলকন্ঠ গাইতেছেন:শ্রীগৌরাঙ্গসুন্দর, নব নটবর, তপত কাঞ্চন কায়।‘প্রেমের বন্যে ভেসে যায়’ — এই ধুয়া ধরিয়া ঠাকুর নীলকণ্ঠাদি ভক্তসঙ্গে আবার নাচিতেছেন, সে অপূর্ব নৃত্য যাঁহারা দেখিয়াছিলেন তাঁহারা কখনই ভুলিবেন না। ঘর লোকে পরিপূর্ণ সকলেই উন্মত্তপ্রায়। ঘরটি যেন শ্রীবাসের আঙ্গিনা হইয়াছে। 

M: "About Sri Gauranga?"MASTER: "Yes, yes!"Nilkantha sang the song, "The beautiful Gauranga, the youthful dancer, fair as molten gold".Sri Ramakrishna sang again and again the line, "Everything is swept away by the onrush of love", and danced with Nilkantha and the other devotees. Those who saw that indescribable dancing were never to forget it. The room was filled with people, all intoxicated with divine joy. It seemed as if Chaitanya himself were dancing with his companions.

श्रीयुत मनोमोहन को भावावेश हो गया । उनके घर को कुछ स्त्रियाँ भी आयी हैं । वे उत्तर के बरामदे से यह अपूर्व नृत्य और संकीर्तन देख रही हैं । उनमें भी एक स्त्री को भावावेश हो गया था । मनोमोहन श्रीरामकृष्ण के भक्त हैं और राखाल के सम्बन्धी ।

[শ্রীযুক্ত মনোমোহন ভাবাবিষ্ট হইলেন। তাঁহার বাটীর কয়েকটি মেয়ে আসিয়াছেন; তাঁহারা উত্তরের বারান্দা হইতে এই অপূর্ব নৃত্য ও সংকীর্তন দর্শন করিতেছেন। তাঁহাদের মধ্যেও একজনের ভাব হইয়াছিল। মনোমোহন ঠাকুরের ভক্ত ও শ্রীযুক্ত রাখালের সম্বন্ধী।

Manomohan was in an ecstatic mood. He was a devotee of Sri Rama- krishna and a brother-jn-law of Rakhal. Several ladies of his family had come with him. They were witnessing this divine music and dancing from the north verandah.

श्रीरामकृष्ण फिर गाने लगे । उच्च संकीर्तन सुनकर चारों ओर के आदमी आकर जम गये । दक्षिण और उत्तर-पश्चिमवाले बरामदे में ठसाठस आदमी भर गये । जो लोग नाव पर जा रहे थे, उन्हें भी इस मधुर संकीर्तन के स्वर से आकर्षित होकर आना ही पड़ा ।

[ঠাকুর আবার গান ধরিলেন:যাদের হরি বলতে নয়ন ঝুরে, তারা দুভাই এসেছে রে!সংকীর্তন করিতে করিতে ঠাকুর নীলকণ্ঠাদি ভক্তসঙ্গে নৃত্য করিতেছেন। ও আখর দিতেছেন —‘রাধার প্রেমে মাতোয়ারা, তারা দুভাই এসেছে রে।’উচ্চ সংকীর্তন শুনিয়া চতুর্দিকে লোক আসিয়া জমিয়াছে। দক্ষিণের, উত্তরের ও পশ্চিমের গোল বারান্দায়, সব লোক দাঁড়াইয়া। যাঁহারা নৌকা করিয়া যাইতেছেন, তাঁহারাও এই মধুর সংকীর্তনের শব্দ শুনিয়া আকৃষ্ট হইয়াছেন।

Sri Ramakrishna sang again, this time about Gauranga and Nityananda:Behold, the two brothers have come, who weep while chanting Hari's name. . . .He danced with Nilkantha and the other devotees, improvising the-line:Behold, the two brothers have come, they who are mad with love of Radha.Hearing the loud music, many people gathered about the room. The verandahs to the south and north, and the semicircular porch to the west of the room, were crowded with people. Even passengers in the boats going along the Ganges were attracted by the kirtan.

कीर्तन समाप्त हो गया । श्रीरामकृष्ण जगन्माता को प्रणाम कर रहे हैं । कह रहे हैं – “भागवत, भक्त, भगवान् – ज्ञानियों को नमस्कार, योगियों को नमस्कार, भक्तों को नमस्कार ।"

[কীর্তন সমাপ্ত হইল। ঠাকুর জগন্মাতাকে প্রণাম করিতেছেন ও বলিতেছেন — ভাগবত-ভক্ত-ভগবান — জ্ঞানীদের নমস্কার, যোগীদের নমস্কার, ভক্তদের নমস্কার।

The music was over. Sri Ramakrishna bowed to the Divine Mother and said, "Bhagavata — Bhakta — Bhagavan. My salutations to the jnanis, my salutations to the yogis, my salutations to the bhaktas."

अब श्रीरामकृष्ण नीलकण्ठादि भक्तों के साथ पश्चिमवाले गोल बरामदे में आकर बैठे । शाम हो गयी है । आज रास-पूर्णिमा का दूसरा दिन है । चारों ओर चाँदनी फैली हुई है । श्रीरामकृष्ण नीलकण्ठ से आनन्दपूर्वक वार्तालाप कर रहे हैं ।

এইবার ঠাকুর নীলকণ্ঠাদি ভক্তসঙ্গে পশ্চিমের গোল বারান্দায় আসিয়া বসিয়াছেন। সন্ধ্যা হইয়া গিয়াছে। আজ কোজাগর পূর্ণিমার পরদিন। চতুর্দিকে চাঁদের আলো। ঠাকুর নীলকণ্ঠের সহিত আনন্দে কথা কহিতেছেন।

The Master was seated on the semicircular porch with Nilkantha and the other devotees. The autumn moon flooded all the quarters with light. Sri Ramakrishna and Nilkantha talked.

🔆🙏ठाकुर कौन है? 'मैं' को खोजने से भी नहीं मिलता  - "मैं चंडी को घर लाऊंगा"🔆🙏

[ঠাকুর কে? ‘আমি’ খুঁজে পাই নাই — “ঘরে আনবো চণ্ডী” ]

नीलकण्ठ - आप साक्षात् गौरांग हैं ।

[নীলকণ্ঠ — আপনিই সাক্ষাৎ গৌরাঙ্গ।

NILKANTHA: "You are none other than Gauranga."

श्रीरामकृष्ण - यह सब क्या है ! - मैं सब के दासों का दास हूँ ।

“गंगा की ही तरंगें हैं, तरंगों की भी कभी गंगा होती है ?"

[শ্রীরামকৃষ্ণ — ও গুনো কি! — আমি সকলের দাস।“গঙ্গারই ঢেউ। ঢেউ-এর কখন গঙ্গা হয়?”

MASTER: "Why should you say such a thing? I am the servant of the servant of all. The waves belong to the Ganges; but does the Ganges belong to the waves?"

नीलकण्ठ - आप कुछ भी कहें, हम लोग तो आपको ऐसा ही समझते हैं ।

নীলকণ্ঠ — আপনি যা বলুন, আমরা আপনাকে তাই দেখছি!

NILKANTHA: "You may say whatever you like, but we regard you as Gauranga himself."

श्रीरामकृष्ण - (कुछ भावावेश में करुणापूर्ण स्वर से) - भाई, अपने 'मैं' की तलाश करता हूँ, परन्तु कहीं खोजने पर भी नहीं मिलता ।

"हनुमान ने कहा था - हे राम, कभी तो सोचता हूँ, तुम पूर्ण हो, मैं अंश हूँ - तुम प्रभु हो, मैं दास हूँ, और जब तत्त्वज्ञान होता है, तब देखता हूँ, तुम्हीं 'मैं' हो और मैं ही 'तुम' हूँ ।"

[শ্রীরামকৃষ্ণ (কিঞ্চিৎ ভাবাবিষ্ট হইয়া, করুণস্বরে) — বাপু, আমার ‘আমি’ খুঁজতে যাই, কিন্তু খুঁজে পাই না।“হনুমান বলেছিলেন — হে রাম, কখন ভাবি তুমি পূর্ণ, আমি অংশ — তুমি প্রভু আমি দাস, — আবার যখন তত্ত্বজ্ঞান হয় — তখন দেখি, তুমিই আমি, আমিই তুমি!”

MASTER (tenderly, in an ecstatic mood): "My dear sir, I try to seek my 'I', but I do not find it. Hanuman said: 'O Rama, sometimes I think that You are .the whole and I am a part, and sometimes that You are the Master and I am Your servant. But when I have the Knowledge of Reality, I see that You are I and I am You.'"

नीलकण्ठ - और क्या कहूँ, हम लोगों पर कृपा रखियेगा ।

[নীলকণ্ঠ — আর কি বলব আমাদের কৃপা করবেন।

NILKANTHA: "What shall I say, sir? Please be gracious to us."

श्रीरामकृष्ण - (सहास्य) - तुम कितने ही आदमियों को पार कर रहे हो – तुम्हारा गाना सुनकर कितने ही आदमियों में उद्दीपना होती है ।

[শ্রীরামকৃষ্ণ (সহাস্যে) — তুমি কত লোককে পার করছ — তোমার গান শুনে কত লোকের উদ্দীপন হচ্ছে।

MASTER (smiling): "You are ferrying many people across the ocean of the world. How many hearts are illumined by hearing your music!"

नीलकण्ठ - मैं पार कर रहा हूँ, आप कहते हैं; देखिये, खुद न डूबूँ ।

[নীলকণ্ঠ — পার করছি বলছেন। কিন্তু আশীর্বাদ করুন, যেন নিজে ডুবি না!

NILKANTHA: "You talk of ferrying. But bless me that I may not be drowned in the ocean myself."

श्रीरामकृष्ण - (सहास्य) - अगर डूबोगे तो उसी अमृत -कुण्ड (सुधा-हृद) में। [जिसमें डूबने आदमी मरता नहीं है , अमर  हो जाता है !]

[শ্রীরামকৃষ্ণ (সহাস্যে) — যদি ডোবো তো ওই সুধাহ্রদে!

MASTER (smiling): "If you get drowned, it will be in the Sea of Immortality."

नीलकण्ठ से मिलकर श्रीरामकृष्ण को आनन्द हुआ है । उनसे फिर कह रहे हैं - "तुम्हारा यहाँ आना ! - जो बड़ी साध्यसाधना के बाद कहीं मिलता हैं ।” यह कहकर श्रीरामकृष्ण एक गाना गाने लगे । अन्तिम पद में एक जगह है - “चण्डी को ले आऊँगा ।”

श्रीरामकृष्ण - चण्डी जब आ गयी हैं, तब कितने ही जटाधारी और योगी आयेंगे ।

[ঠাকুর নীলকণ্ঠকে পাইয়া আনন্দিত হইয়াছেন। তাঁহাকে আবার বলিতেছেন “তোমার এখানে আসা! — যাকে অনেক সাধ্য-সাধনা করে তবে পাওয়া যায়! তবে একটা গান শোন:গিরি! গণেশ আমার শুভকারী। —পূজে গণপতি, পেলাম হৈমবতী,যাও হে গিরিরাজ, আন গিয়ে গৌরী।।বিল্ববৃক্ষমূলে পাতিয়ে বোধন, গণেশের কল্যাণে গৌরীর আগমন।ঘরে আনবো চণ্ডী, শুনবো কত চণ্ডী,  কত আসবেন দণ্ডী, যোগী জটাধারী।।

Sri Ramakrishna was delighted with Nilkantha's company. He said to the musician: "For you to have come here! You whom people see as a result of many austerities and prayers! Listen to a song."The Master sang a song, two lines of which ran:When the Blissful Mother comes to my house, how much of the Chandi I shall hear!How many monks will come here, and how many yogis with matted locks!He said, continuing, "As long as the Divine Mother has come here, many yogis with matted locks will come too."

श्रीरामकृष्ण हँस रहे हैं । कुछ देर के बाद बाबूराम और मास्टर आदि से कह रहे हैं - "मुझे बड़ी हँसी आ रही है । सोचता हूँ - इन्हें (नाटकवालों को) भी मैं गाना सुना रहा हूँ ।"

[“চণ্ডী যেকালে এসেছেন — সেকালে কত যোগী জটাধারীও আসবে।”ঠাকুর হাসিতেছেন। কিয়ৎক্ষণ পরে মাস্টার, বাবুরাম প্রভৃতি ভক্তদের বলিতেছেন — “আমার বড় হাসি পাচ্ছে। ভাবছি — এঁদের (যাত্রাওয়ালাদের) আবার আমি গান শোনাচ্ছি।”

Sri Ramakrishna laughed. To M, Baburam, and the other devotees he said: "I feel very much like laughing. Just fancy, I am singing for these musicians!"

नीलकण्ठ - हम लोग जो चारों ओर गाते फिरते हैं, उसका पुरस्कार आज मिला ।

[নীলকণ্ঠ — আমরা যে গান গেয়ে বেড়াই, তার পুরস্কার আজ হল।

NILKANTHA: "We go about singing; but today we have had our true reward."

श्रीरामकृष्ण - (सहास्य) - कोई चीज बेचने पर दूकानदार एक मुट्ठी और ऊपर से डाल देता है । वैसे ही तुम लोगों ने वहाँ गाया और एक मुट्ठी यहाँ भी डाल दी । (सभी हँसते हैं) 

[শ্রীরামকৃষ্ণ (সহাস্য) — কোন জিনিস বেচলে এক খাঁমচা ফাউ দেয় — তোমরা ওখানে গাইলে, এখানে ফাউ দিলে। (সকলের হাস্য)

MASTER (smiling): "When a shopkeeper sells an article, he sometimes gives a little extra something to the buyer. You sang at Nabin's house and have given the extra something here." All laughed.

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