[ (24 मई ,1884)परिच्छेद- 80 , श्रीरामकृष्ण वचनामृत]
साभार ~ श्री महेन्द्रनाथ गुप्त(बंगाली), कवि श्री पं. सूर्यकान्त त्रिपाठी ‘निराला’(हिंदी अनुवाद)साभार विद्युत् संस्करण ~ रमा लाठ]
*परिच्छेद~ ८०*
(१)
[( 24 मई ,1884) श्रीरामकृष्ण वचनामृत]
🔆आत्मदर्शन के उपाय 🔆
[ फलहारिणी काली पूजा का प्रसाद और जात्रा (opera) में विद्यासुन्दर का अभिनय]
श्रीरामकृष्ण उसी पूर्वपरिचित कमरे में बैठे हैं दिन के ११ बजे का समय हुआ । राखाल, मास्टर आदि भक्तगण उसी कमरे में उपस्थित हैं । गत रात्रि में फलहारिणी काली की पूजा हो गयी । उस उत्सव के उपलक्ष्य में सभा-मण्डप में रात्रि के तीसरे पहर से "विद्यासुन्दर जात्रा ' (गीतिनाट्य, opera) का मंचन प्रारम्भ हुआ है। श्रीरामकृष्ण ने भी प्रातःकाल काली माता के दर्शन को जाते समय थोड़ा अभिनय देखा है । गीतिनाट्य करने वाले कलाकार लोग स्नान आदि कर चुकने के बाद श्रीरामकृष्ण का दर्शन करने उनके कमरे में आये हैं । शनिवार, 24 मई 1884 ई. अमावस्या । गोरे रंग का जो लड़का ‘विद्या’ बना था उसने अच्छा अभिनय किया था । श्रीरामकृष्ण आनन्द से उसके साथ ईश्वर सम्बन्धी अनेक बातें कर रहे हैं । भक्तगण उत्सुक होकर सब सुन रहे हैं ।
Saturday, May 24, 1884 : SRI RAMAKRISHNA was sitting on the small couch in his room. Rakhal, M., and several other devotees were present. A special worship of Kali had been performed in the temple the previous night. In connexion with the worship a theatrical performance of the Vidyasundar had been staged in the natmandir. The Master had watched a part of it that morning. The actors came to his room to pay him their respects. The Master, in a happy mood, became engaged in conversation with a fair complexioned young man who had taken the part of Vidya and played his part very well.
[ঠাকুর শ্রীরামকৃষ্ণ সেই পূর্বপরিচিত ঘরে বসিয়া আছেন; বেলা ১১টা হইয়াছে। রাখাল, মাস্টার প্রভৃতি ভক্তেরা সেই ঘরে উপস্থিত আছেন। গত রাত্রে ৺ফলহারিণী কালীপূজা হইয়া গিয়াছে; সেই উৎসব উপলক্ষে নাটমন্দিরে শেষ রাত্রি হইতে যাত্রা হইয়াছে — বিদ্যাসুন্দরের যাত্রা। শ্রীরামকৃষ্ণ সকালে মন্দিরে মাকে দর্শন করিতে গিয়া একটু যাত্রাও শুনিয়াছেন। যাত্রাওয়ালা স্নানান্তে ঠাকুর শ্রীরামকৃষ্ণকে দর্শন করিতে আসিয়াছেন। আজ শনিবার, ১২ই জ্যৈষ্ঠ (১২৯১), ২৪শে মে, ১৮৮৪ খ্রীষ্টাব্দ, অমাবস্যা।যে গৌরবর্ণ ছোকরাটি বিদ্যা সাজিয়াছিলেন তিনি সুন্দর অভিনয় করিয়াছিলেন। শ্রীরামকৃষ্ণ তাঁহার সহিত আনন্দে অনেক ঈশ্বরীয় কথা কহিতেছেন। ভক্তেরা আগ্রহের সহিত সমস্ত শুনিতেছেন।
[( 24 मई ,1884) श्रीरामकृष्ण वचनामृत]
🔆गायन-वादन -नृत्य या अन्य कला में में पारंगत हो , तो उसे आत्मदर्शन शीघ्र होगा 🔆
श्रीरामकृष्ण – (विद्या के अभिनेता के प्रति) – तुम्हारा अभिनय बहुत अच्छा हुआ । यदि कोई गाने में, बजाने में, नाचने में या किसी भी एक विद्या में प्रवीण हो, तो वह चेष्टा करने पर शीघ्र ही ईश्वर को प्राप्त कर सकता है ।
MASTER (to the actor): "Your acting was very good. If a person excels in singing, music, dancing, or any other art, he can also quickly realize God provided he strives sincerely.}
[{শ্রীরামকৃষ্ণ (বিদ্যা অভিনেতার প্রতি) — তোমার অভিনয়টি বেশ হয়েছে। যদি কেউ গাইতে, বাজাতে, নাচতে, কি একটা কোন বিদ্যাতে ভাল হয়, সে যদি চেষ্টা করে, শীঘ্রই ঈশ্বরলাভ করতে পারে।
[( 24 मई ,1884) श्रीरामकृष्ण वचनामृत]
🔆आत्मदर्शन (विवेकदर्शन) का अभ्यास के कौशल को मनःसंयोग कहते हैं ! 🔆
“और तुम लोग जिस प्रकार (गुरु-शिष्य परम्परा में प्रशिक्षित होकर) बहुत परिश्रम से अभ्यास करके गाना, बजाना या नाचना सीखते हो, उसी प्रकारमन को ईश्वर में लगाने की कला का भी अभ्यास करना होता है । पूजा, जप, ध्यान जैसे विषयों का (गुरु-शिष्य परम्परा में प्रशिक्षित होकर) नियमित रूप से अभ्यास करना पड़ता है ।
"Just as you practise (much in order to sing, dance, and play on instruments, so one should practise the art of fixing the mind on God. One should practise regularly such disciplines as worship, japa, and meditation.}
{“আর তোমারা যেমন অনেক অভ্যাস করে গাইতে, বাজাতে বা নাচতে শিখ, সেইরূপ ঈশ্বরেতে মনের যোগ অভ্যাস করতে হয়; পূজা, জপ, ধ্যান — এ-সব নিয়মিত অভ্যাস করতে হয়।
[स्वामी विवेकानन्द -कैप्टन स्रवियर Be and Make वेदान्त शिक्षक-प्रशिक्षण परम्परा में प्रशिक्षित नवनीदा जैसे 'C-IN-C' के निर्देशन में '3H' विकास के 5 अभ्यास पद्धति (आत्मदर्शन-पद्धति या 'उभयतोवहिनी चित्तनदी' के साथ विवेकदर्शन) का नियमित रूप से अभ्यास करना पड़ता है।]
[( 24 मई ,1884) श्रीरामकृष्ण वचनामृत]
🔆गृहस्थी में फँसकर स्वरुप न भूलो ! 'सांज सकाले भातार मोरलो कान्दबो कोतो रात !' 🔆
[सन्ध्या के समय पति मरा, (विवाह होते ही पति मरा) कितनी रात तक रोऊँगी !]
“क्या तुम्हारा विवाह हो गया है ? कोई बाल-बच्चे हैं ?”
"Are you married? Any children?"
[“তোমার কি বিবাহ হয়েছে? ছেলেপুলে?”
विद्या – जी, एक लड़की का देहान्त हो गया है, फिर एक सन्तान हुई है ।
ACTOR: "Yes, sir. I had a girl who died. Another child has been born."
[বিদ্যা — আজ্ঞা একটি কন্যা গত; আরও একটি সন্তান হয়েছে।
श्रीरामकृष्ण – इसी बीच में हुआ और मर भी गया । तुम्हारी यह कम उम्र ! बंगला में कहावत है – 'सांज सकाले भातार मोरलो कान्दबो कोतो रात !' ‘सन्ध्या के समय पति मरा, कितनी रात तक रोऊँगी !’ (सब हँस पड़े ।)
MASTER: "Ah! A death and a birth, and all so quickly! You are so young! There is a saying: 'My husband died just after our marriage. There are so many nights for me to weep!']
[শ্রীরামকৃষ্ণ — এর মধ্যে হল, গেল! তোমার এই কম বয়স। বলে — ‘সাঁজ সকালে ভাতার ম’লো কাঁদব কত রাত’। (সকলের হাস্য)
[( 24 मई ,1884) श्रीरामकृष्ण वचनामृत]
[बुढ़ापे में नट का हुलिया मुँह सूखा , पेट मोटा , बाँह पर ताबीज]
[গাল তোবড়া, পেট মোটা, হাতে তাগা।]
🔆 नट (acrobat-कलाबाज ) के गृहस्थ जीवन में सुख ! मानो हो आमड़ा, केवल आँठी चमड़ा ! 🔆
“संसार में सुख तो देख रहे हो ? मानो आमड़ाफल (Spondias Mangifera), केवल गुठली और छिलका ( pit and skin) है । और फिर खाने से उदरशूल (colic) हो जाता है !
“नाटक कम्पनी में अभिनय कर रहे हो, ठीक है, परन्तु यह बड़ा कष्टदायक पेशा है ! अभी कम उम्र है इसीलिए गोलगाल चेहरा है । इसके बाद सब बिगड़ जायगा । बुढ़ापे में प्रायः सभी नट उसी प्रकार के हो जाते हैं। मुँह सूखा, पेट मोटा, बाँह पर ताबीज । (सभी हँसे)
MASTER: "Ah! A death and a birth, and all so quickly! You are so young! There is a saying: 'My husband died just after our marriage. There are so many nights for me to weep!' You are no doubt realizing the nature of worldly happiness. The world is like a hog plum. The hog plum has only pit and skin, and after eating it you suffer from colic." You are an actor in the theatre. That's fine. But it is a very painful profession. You are young now; so you have a full, round face. Afterwards there will be hollows in your cheeks. Almost all actors become like that; they get hollow cheeks and big bellies. (Laughter.)
[“সংসারে সুখ তো দেখেছ! যেমন আমড়া, কেবল আঁটি আর চামড়া। খেলে হয় অমলশূল।“যাত্রাওয়ালার কাজ করছ তা বেশ। কিন্তু বড় যন্ত্রণা। এখন কম বয়স, তাই গোলগাল চেহারা। তারপর সব তুবড়ে যাবে। যাত্রাওয়ালারা প্রায় ওইরকমই হয়। গাল তোবড়া, পেট মোটা, হাতে তাগা। (সকলের হাস্য)
[( 24 मई ,1884) श्रीरामकृष्ण वचनामृत]
🔆विद्यासुन्दर नट के रूप में नारायण ही हैं -उनका ताल, मान, बोल सब एकदम सही 🔆
मैंने क्यों विद्यासुन्दर का गाना सुना ? देखा - ताल, मान, बोल सब एकदम सही हैं । बाद में माँ ने दिखा दिया कि नारायण ही इन नटों का रूप धारण कर नाटक कर रहे हैं ।”
"Why did I stay to watch your performance? I found the rhythm, the music, and the melody all correct. Then the Divine Mother showed me that it was God alone who acted in the performance in the roles of the players.]
[“আমি কেন বিদ্যাসুন্দর শুনলাম? দেখলাম — তাল, মান, গান বেশ। তারপর মা দেখিয়ে দিলেন যে নারায়ণই এই যাত্রাওয়ালাদের রূপ ধারণ করে যাত্রা করছেন।”
[( 24 मई ,1884) श्रीरामकृष्ण वचनामृत]
🔆मायावृक्ष का मूल है 'काम प्रवृत्ति (Lust)' 🔆
🔆'कामना (Desires लालसा, वासना )' मानो शाखा -प्रशाखायें हैं🔆
[( 24 मई ,1884) श्रीरामकृष्ण वचनामृत] मनःसंयोग की प्रथम शर्त है-वैराग्य और (षडरिपुओं का मुख मोड़ने का) अभ्यास, चित्त नदी नामो उभयतो वाहिनी ]
विद्या – जी, काम (lust) और कामना (desire) में क्या भेद है ?
ACTOR: "Sir, what is the difference between lust and desire?"
[বিদ্যা — আজ্ঞা, কাম আর কামনা তফাত কি?
श्रीरामकृष्ण – काम (lust-कामप्रवृत्ति) मानो वृक्ष का मूल है और कामना (desire) मानो शाखा-प्रशाखाएँ ।
“ये काम, क्रोध, लोभ आदि छः रिपु एकदम तो जायेंगे नहीं, इसीलिए ईश्वर की ओर उनका मुँह फेर देना होगा । यदि कामना करनी हो, लोभ करना हो तो ईश्वर की भक्ति की कामना करनी चाहिए और उन्हें पाने के लिए लोभ करना चाहिए; यदि मद अर्थात् मत्तता करनी है, अहंकार करना है, तो ‘मैं ईश्वर का दास हूँ, ईश्वर की सन्तान हूँ’ यह कहकर मत्तता, अहंकार करना चाहिए । सम्पूर्ण मन उन्हें दिये बिना उनका दर्शन नहीं होता।
“कामिनी और कांचन (woman and gold) में मन का व्यर्थ में व्यय होता है । यह देखो न, बाल-बच्चे हुए हैं, नाटक में काम करना पड़ रहा है – इन सब अनेक कर्मों में कारण ईश्वर में मन का योग नहीं हो पाता ।
MASTER: "Lust is like the root of the tree, and desires are branches and twigs. "One cannot completely get rid of the six passions: lust, anger, greed, and the like. Therefore one should direct them to God. If you must have desire and greed, then you should desire love of God and be greedy to attain Him. If you must be conceited and egotistic, then feel conceited and egotistic thinking that you are the servant of God, the child of God." A man cannot see God unless he gives his whole mind to Him. The mind is wasted on 'woman and gold'. Take your own case. You have children and are occupied with the theatre. The mind cannot he united with God on account of these different activities.
[শ্রীরামকৃষ্ণ — কাম যেন গাছের মূল, কামনা যেন ডালপালা।“এই কাম, ক্রোধ, লোভ ইত্যাদি ছয় রিপু একেবারে তো যাবে না; তাই ঈশ্বরের দিকে মোড় ফিরিয়ে দিতে হবে। যদি কামনা করতে হয়, লোভ করতে হয়, তবে ঈশ্বরে ভক্তি কামনা করতে হয়, আর তাঁকে পাবার লোভ করতে হয়। যদি মদ অর্থাৎ মত্ততা করতে হয়, অহংকার করতে হয়, তাহলে আমি ঈশ্বরের দাস, ঈশ্বরের সন্তান এই বলে মত্ততা, অহংকার করতে হয়।“সব মন তাঁকে না দিলে তাঁকে দর্শন হয় না।”“কামিনী-কাঞ্চনে মনের বাজে খরচ হয়। এই দেখ না, ছেলেমেয়ে হয়েছে, যাত্রা করা হচ্ছে — এই সব নানা কাজে ঈশ্বরেতে মনের যোগ হয় না।
[( 24 मई ,1884) श्रीरामकृष्ण वचनामृत]
🔆गृहस्थ को नट (acrobat, कलाबाज) का काम कबतक करना पड़ता है ? 🔆
[जबतक चील के मुख में मछली है !]
“भोग रहने से (कामिनी -कांचन में आसक्ति रहने से) ही योग घट जाता है । भोग रहने से ही कष्ट होता है । श्रीमद्भागवत में कहा है – अवधूत ने अपने चौबीस गुरुओं में चील को भी एक गुरु बनाया था । चील के मुँह में मछली थी, इसीलिए हजार कौओं ने उसे घेर लिया । मछली को मुँह में लेकर वह जिधर जाती थी उधर ही सब कौए काँव काँव करके उसके पीछे भागते थे । पर जब चील के मुँह से अपने आप मछली गिर गयी, तो सब कौए मछली की ओर दौड़े, चील की ओर फिर न गये ।
As long as there is bhoga, there will be less of yoga. Furthermore, bhoga begets suffering. It is said in the Bhagavata that the Avadhuta chose a kite as one of his twenty-four gurus. The kite had a fish in its beak; so it was surrounded by a thousand crows. Whichever way it flew with the fish, the crows pursued it crying, 'Caw! Caw!' When all of a sudden the fish dropped from its beak, the crows flew after the fish, leaving the kite alone.
[“ভোগ থাকলেই যোগ কমে যায়। ভোগ থাকলেই আবার জ্বালা। শ্রীমদ্ভাগবতে আছে — অবধূত চিলকে চব্বিশ গুরুর মধ্যে একজন করেছিল। চিলের মুখে মাছ ছিল, তাই হাজার কাক তাকে ঘিরে ফেললে, যেদিকে চিল মাছ মুখে যায় সেই দিকে কাকগুলো পেছনে পেছনে কা কা করতে যায়। যখন চিলের মুখ থেকে মাছটা আপনি হঠাৎ পড়ে গেল তখন যত কাক মাছের দিকে গেল, চিলের দিকে আর গেল না।"
“मछली अर्थात् भोग की चीज । कौए हैं चिन्ताएँ । जहाँ भोग है वहीँ चिन्ता है । भोगों का त्याग होने से ही शान्ति होती है ।
The 'fish' is the object of enjoyment. The 'crows' are worries and anxiety. Worries and anxiety are inevitable with enjoyment. No sooner does one give up enjoyment than one finds peace.
[“মাছ অর্থাৎ ভোগের বস্তু। কাকগুলো ভাবনা চিন্তা। যেখানে ভোগ সেখানেই ভাবনা চিন্তা; ভোগ ত্যাগ হয়ে গেলেই শান্তি।"
[ভোগান্তে যোগ — ভ্রাতৃস্নেহ ও সংসার ]
[( 24 मई ,1884) श्रीरामकृष्ण वचनामृत]
[भ्रातृप्रेम और संयुक्त-परिवार के बलपर भोग त्यागने से योग। ]
🔆लीडरशिप -एक साथ उड़ो और जाल को एक दिशा में खींचो ! 🔆
[ Leadership : Fly together and drag the net in one direction,]
“फिर देखो, अर्थ ही अनर्थ हो जाता है । तुम भाई भाई अच्छे हो, परन्तु भाई भाई में बटवारे के प्रश्न पर झगड़ा होता है । कुत्ते आपस में एक दूसरे को चाटते हैं, खूब प्रेम भाव रहता है । परन्तु उन्हें यदि कोई भात, रोटी आदि कुछ फेंक दे, तो आपस में वे एक दूसरे को काटने लगेंगे ।
What is more, money itself becomes a source of trouble. Brothers may live happily, but they get into trouble when the property is divided. Dogs lick one another's bodies; they are perfectly friendly. But when the householder throws them a little food, they get into a scrap.
[“আবার দেখ, অর্থ-ই আবার অনর্থ হয়। তোমরা ভাই ভাই বেশ আছ, কিন্তু ভাইয়ে ভাইয়ে হিস্যে নিয়ে গোল হয়। কুকুররা গা চাটাচাটি করছে, পরস্পর বেশ ভাব। কিন্তু গৃহস্থ যদি ভাত দুটি ফেলে দেয় তাহলে পরস্পর কামড়াকামড়ি করবে।"
“बीच-बीच में यहाँ पर आते जाना । (मास्टर आदि को दिखाकर) ये लोग आते हैं, रविवार या किसी दूसरे अवकाश के दिन आते हैं ।”
"Come here now and then. (Pointing to M. and the others) They come here on Sundays and other holidays."
[“মাঝে মাঝে এখানে আসবে। (মাস্টার প্রভৃতিকে দেখাইয়া) এঁরা আসেন। রবিবার কিম্বা অন্য ছুটিতে আসেন।”
विद्या – हमारा रविवार तीन मास का होता है । श्रावण, भाद्रपद और पौष – वर्षाकाल और धान काटने का समय । जी, आपके पास आये, यह तो हमारा अहोभाग्य है ! “दक्षिणेश्वर में आते समय दो व्यक्तियों का नाम सुना था – आपका और ज्ञानार्णव का ।”
ACTOR: "We have holidays for three months, during the rainy and harvest seasons. It is our good fortune to be able to visit you. On our way to Dakshineswar we heard of two persons — yourself and Jnanarnava."
[বিদ্যা — আমাদের রবিবার তিন মাস। শ্রাবণ, ভাদ্র আর পৌষ — বর্ষা আর ধান কাটার সময়। আজ্ঞা, আপনার কাছে আসব সে তো আমাদের ভাগ্য।
श्रीरामकृष्ण – भाइयों के साथ मेल रखकर रहना । मेल रहने से ही देखने सुनने में सब भला होता है । नाटक में नहीं देखा ? चार व्यक्ति गाना गा रहे हैं, परन्तु यदि प्रत्येक व्यक्ति अलग अलग तान छेड़ दे तो नाटक पर ही पानी फिर जायगा !
MASTER: "Be on friendly terms with your brothers. It looks well. You must have noticed in your theatrical performance that if four singers sing each in a different way, the play is spoiled."
[শ্রীরামকৃষ্ণ — ভাইদের সঙ্গে মিল হয়ে থাকবে। মিল থাকলেই দেখতে শুনতে সব ভাল। যাত্রাতে দেখ নাই? চারজন গান গাইতেছে কিন্তু প্রত্যেকে যদি ভিন্ন সুর ধরে, তাহলে যাত্রা ভেঙে যায়।
विद्या – जाल में अनेक पक्षी फँसे पड़े हैं । यदि एक साथ चेष्टा करके जाल लेकर एक ही दिशा में उड़ जायँ तो बहतु कुछ बचाव हो सकता है । परन्तु यदि प्रत्येक पक्षी अलग अलग दिशा में उड़ने की चेष्टा करे, तो कुछ नहीं होता ।
ACTOR: "Yes, sir. Many birds are trapped in a net; if they all fly together and drag the net in one direction, then many of them may be saved. But that doesn't happen if they try to fly in different directions.
[বিদ্যা — জালের নিচে অনেক পাখি পড়েছে, যদি একসঙ্গে চেষ্টা করে একদিকে জালটা নিয়ে যায় তাহলে অনেকটা রক্ষা হয়। কিন্তু নানাদিকে যদি নানান পাখি উড়বার চেষ্টা করে তাহলে হয় না।
[যাত্রাওয়ালাকে ও চানকের সিপাইদিগকে শিক্ষা — অভ্যাস যোগ; “মৃত্যু স্মরণ কর” ]
[( 24 मई ,1884) श्रीरामकृष्ण वचनामृत]
🔆अभ्यासयोग- 'मृत्यु रूपा माँ काली' की याद करो' 🔆
🔱🙏उत्तिष्ठत जाग्रत 'मृत्युरूपी मूसल' हाथ पर पड़ेगा' परन्तु आत्मा अविनाशी है🔱🙏
श्रीरामकृष्ण –" नाटक (theatrical performance,मंचीय अभिनय) में भी देखने में आता है, सिर पर (7) घड़ा, और नाच रहा है ।
"One also sees in a theatrical performance a person keeping a pitcher of water on his head and at the same time dancing about."
[“যাত্রাতেও দেখা যায় মাথায় কলসী রেখেছে অথচ নাচছে।”
" गृहस्थी करो, परन्तु सिर पर घड़े को ठीक रखो अर्थात् ईश्वर की ओर मन को स्थिर रखो।
I once said to the sepoys from the barracks: 'Do your duty in the world but remember that the "pestle of death" will some time smash your hand. Be alert about it.'
[“আমি চানকে পল্টনের সিপাইদিগকে বলেছিলাম, তোমরা সংসারের কাজ করবে, কিন্তু কালরূপ (মৃত্যুরূপ) ঢেঁকি হাতে পড়বে, এটি হুঁশ রেখো।"
“उस देश में बढ़ई लोगों की औरतें ढेंकी में चिउड़ा कूटती है । एक औरत मूसल को उठाती और गिराती है, और दूसरी चिउड़ा उलट देती है – यह ध्यान रखती है कि कहीं मूसल हाथ पर न पड़ जाय । इधर बच्चे को स्तन-पान भी कराती है और एक हाथ से भीगे धान को चूल्हे पर रखकर पतीले में भून लेती है । फिर ग्राहक के साथ बातचीत भी करती है, कहती है, तुम्हारे ऊपर इतने पैसे पहले के उधार हैं, दे जाना ।
“ईश्वर में मन रखकर इसी प्रकार संसार में अनेकानेक कामकाज कर सकते हो, परन्तु अभ्यास चाहिए और होशियार रहना चाहिए, तब दोनों ओर की रक्षा (विवेकदर्शन की साधना और गृहस्थी दोनों की रक्षा) होती है ।”
"In Kamarpukur I have seen the women of carpenter families making flattened rice with a husking-machine. One woman kicks the end of the wooden beam, and another woman, while nursing her baby, turns the paddy in the mortar dug in the earth. The second woman is always alert' lest the pestle of the machine should fall on her hand. With the other hand she fries the soaked paddy in a pan. Besides, she is talking with customers; she says: 'You owe us so much money. Please pay it before you go.' Likewise, do your different duties in the world, fixing your mind on God. But practice is necessary, and one should also be alert. Only in this way can one safeguard both — God and the world."
[“ও-দেশে ছুতোরদের মেয়েরা ঢেঁকি দিয়ে চিঁড়ে কাঁড়ে। একজন পা দিয়ে ঢেঁকি টেপে, আর-একজন নেড়ে চেড়ে দেয়। সে হুঁশ রাখে যাতে ঢেঁকির মুষলটা হাতের উপর না পড়ে। এদিকে ছেলেকে মাই দেয়, আর-একহাতে ভিজে ধান খোলায় ভেজে লয়। আবার খদ্দেরের সঙ্গে কথা হচ্ছে, ‘তোমার কাছে এত বাকী পাওনা আছে দিয়ে যেও।’“ঈশ্বরেতে মন রেখে তেমনি সংসারে নানা কাজ করতে পার। কিন্তু অভ্যাস চাই; আর হুঁশিয়ার হওয়া চাই; তবে দুদিকে রাখা হয়।”
{"मोहग्रस्त लोगों की ओर दृष्टिपात करो। हाय! हृदय-भेदकारी करुणापूर्ण उनके आर्तनाद को सुनो। हे वीरों, बद्धों को पाशमुक्त करने,दरिद्रों के कष्ट को कम करने तथा 'अज्ञ-जनों के हृदय के अंधकार' को दूर करने के लिये आगे बढ़ो! " 'अभिः,अभिः'! 'डरो नहीं','डरो नहीं'- यही वेदान्त-दुन्दुभि का स्पष्ट उद्घोष है। " कोई कृति खो नहीं सकती ,और न कोई संघर्ष व्यर्थ जायेगा। भले ही आशाएँ क्षीण हो जायें, और शक्तियाँ जवाब दे दें।फिर भी धैर्य धरो कुछ देर- हे वीर हृदय, तुम्हारे उत्तराधिकारी अवश्य जन्मेंगे ! और कोई भी सत्कर्म निष्फल न होगा ! " (वि० सा० १० /पृष्ठ १८९ )]
[अभ्यासयोगेन ततो मामिच्छाप्तुं धनञ्जय।।गीता -12.9।। हे धनंजय ! यदि तुम अपने मन को मुझमें स्थिर करने में समर्थ नहीं हो, तो अभ्यासयोग के द्वारा तुम मुझे (अमरत्व) प्राप्त करने की इच्छा (अर्थात् प्रयत्न) करो।[ भय ही मृत्यु है तुम अभिः बनो ! द्वन्द्वों को सह लो ! श्री रामकृष्णदेव अपनी सहज सरल भाषा में कहते हैं -"देखो, 'स' के तीन भेद हैं -श, ष और स। जानते हो, इसका क्या तात्पर्य है? तात्पर्य है -स, स, स यानी सहो, सहो,सहो।" अतएव, द्वन्द्वों से छुटकारा पाने का एकमात्र उपाय हैं उनको सह लेना। भगवान् कृष्ण ने भी गीता (2 . 15)में अर्जुन से कहा था , कि हे नरश्रेष्ठ! तुम स्वजनों के वियोग की कल्पना से जो दुःखित हो रहे हो, वह उचित नहीं। जब वियोग का समय आएगा, तो उसे अनिवार्य मान कर लेना। जो इस प्रकार सुख-दुःख द्वन्द्वों का विचार करता हुआ उनमें समान रहता है और उनसे पीड़ित नहीं होता, वह 'धीर' बन जाता है और फलस्वरूप अमरता का अधिकारी होता है। अमरता से तात्पर्य है (De-Hypnotized ,भ्रममुक्त) हो जाना - भय से मुक्ति। भय ही मृत्यु है। हम जीवन में सतत् डरते हैं। परिस्थितियां हमें डराती रहती हैं। जो परिस्थितियों से डरता है और उनके दबाव में आ जाता है, वह जीवन में सदैव मृत्यु को ही देखता है। लड़के को रोग हो गया, मानो हमीं मर गए! व्यापार में पैसा डूब गया, मानो हमीं मर गए! परंतु जो परिस्थितियों के दबाव को हटा देता है, वह अभय का, अमरता का अधिकारी हो जाता है। परिस्थितियों और परिवेश का आत्मविश्वास पर हावी होना मृत्यु है और आत्मविश्वास का परिस्थितियों पर हावी होना अमरता है। ]
[আত্মদর্শন বা ঈশ্বরদর্শনের উপায় — সাধুসঙ্গ — NOT SCIENCE ]
[( 24 मई ,1884) श्रीरामकृष्ण वचनामृत]
[वेदान्त-दुन्दुभि का स्पष्ट उद्घोष है--'अभिः,अभिः'! 'डरो नहीं','डरो नहीं'।]
🔱🙏 आत्मदर्शन या ईश्वरदर्शन का उपाय है -साधुसंग,निर्जनवास , साइन्स नहीं 🔱🙏
विद्या – जी, इस बात का क्या प्रमाण है कि आत्मा शरीर और मन (2H) से पृथक् है ?
ACTOR: "Sir, what is the proof that the soul is separate from the body?"
[বিদ্যা — আজ্ঞা, আত্মা যে দেহ থেকে পৃথক তার প্রমাণ কি?
श्रीरामकृष्ण – प्रमाण ? ईश्वर को देखा जा सकता है । तपस्या (आध्यात्मिक -साधना) करने पर उनकी कृपा से ईश्वर का दर्शन होता है । ऋषियों ने आत्मा (इन्द्रियातीत वस्तु) का साक्षात्कार किया था। साइन्स से ईश्वरतत्त्व जाना नहीं जाता, उसके द्वारा केवल इन इन्द्रियग्राह्य वस्तु का पता लगता है कि इसके साथ उसे मिलाने पर यह होता है और उसके साथ इसे मिलाने पर यह होता है; इसीलिए इस बुद्धि के द्वारा यह सब (आत्मा का रहस्य) समझा नहीं जाता । साधुसंग करना होता है । वैद्य के साथ रहते रहते (१^*) नाड़ी परखना आ जाता है ।
[१^* Internship-अनिवार्य गुरुगृहवास की निवासी सेवा में रहते रहते ]
MASTER: "Proof? God can be seen. By practising spiritual discipline one sees God, through His grace. The rishis directly realized the Self. One cannot know the truth about God through science. Science gives us information only about things perceived by the senses, as for instance: this material mixed with that material gives such and such a result, and that material mixed with this material gives such and such a result. "For this reason a man cannot comprehend spiritual things with his ordinary intelligence. To understand them he must live in the company of holy persons. You learn to feel the pulse by living with a physician."]
[শ্রীরামকৃষ্ণ — প্রমাণ? ঈশ্বরকে দেখা যায়; তপস্যা করলে তাঁর কৃপায় ঈশ্বরদর্শন হয়। ঋষিরা আত্মার সাক্ষাৎকার করেছিলেন। সায়েন্স্এ ঈশ্বরতত্ত্ব জানা যায় না, তাতে কেবল এটার সঙ্গে ওটা মিশালে এই হয়; আর ওটার সঙ্গে এটা মিশালে এই হয় — এই সব ইনিদ্রয়গ্রাহ্য জিনিসের খবর পাওয়া যায়। “তাই এ-বুদ্ধির দ্বারা এ-সব (आध्यात्मिक -इन्द्रियातीत अनुभूति) বুঝা যায় না। সাধুসঙ্গ করতে হয়। বৈদ্যের সঙ্গে বেড়াতে বেড়াতে নাড়ী টেপা শেখা যায়।”
विद्या – जी, अब समझा ।
[বিদ্যা — আজ্ঞা, এইবার বুঝেছি।
ACTOR: "Yes, sir. Now I understand."
श्रीरामकृष्ण – तपस्या चाहिये (मनःसंयोग आदि 3H विकास के 5 अभ्यास का प्रशिक्षण लेना चाहिए), तब 'वस्तु' (इन्द्रियातीत सत्य) की प्राप्ति होगी । शास्त्र के श्लोकों को रट लेने से भी कुछ न होगा । ‘भांग ,भांग’ मुँह से कहने से कहने से नशा नहीं होता । भांग पीना पड़ता है ।
MASTER: "You must practise tapasya. Only then can you attain the goal. It will avail you nothing even if you learn the texts of the scriptures by heart. You cannot become intoxicated by merely saying 'siddhi' over and over. You must swallow some.
[শ্রীরামকৃষ্ণ — তপস্যা চাই, তবে বস্তুলাভ হবে। শাস্ত্রের শ্লোক মুখস্থ করলেও কিছু হবে না। “সিদ্ধি সিদ্ধি” মুখে বললে নেশা হয় না। সিদ্ধি খেতে হয়।
“ईश्वर-दर्शन की बात लोगों को समझायी नहीं जा सकती । पाँच वर्ष के बालक को पति-पत्नी के मिलने के आनन्द की बात समझायी नहीं जा सकती ।”
"One cannot explain the vision of God to others. One cannot explain conjugal happiness to a child five years old."
[“ঈশ্বরদর্শনের কথা লোককে বোঝানো যায় না। পাঁচ বৎসরের বালককে স্বামী-স্ত্রীর মিলনের আনন্দের কথা বোঝানো যায় না।”
(२)
[রাখালের প্রতি শ্রীরামকৃষ্ণের গোপালভাব ]
[( 24 मई ,1884) श्रीरामकृष्ण वचनामृत]
🔆 संघनेता (गुरु) श्री रामकृष्ण यशोदा के वात्सल्य भाव से राखाल का जीवनगठन करते थे 🔆
इसी समय राखाल कमरे में भोजन करने बैठ रहे थे । परन्तु वहाँ अनेक लोग हैं, इसलिए सोच-विचार कर रहे हैं । श्रीरामकृष्ण आजकल राखाल का पालन गोपाल-भाव से कर रहे हैं । - ठीक मानो माँ यशोदा का वात्सल्य-भाव ।
Just then Rakhal was about to take his meal in the Master's room. He hesitated at the sight of so many people. During those days the Master looked on Rakhal as Gopala and on himself as Mother Yasoda.]
[এই সময়ে রাখাল ঘরের মধ্যে আহার করিতে বসিতেছেন। কিন্তু অনেকে ঘরে আছেন বলিয়া ইতস্তত করিতেছেন। ঠাকুর আজকাল রাখালকে গোপালের ভাবে পালন করিতেছেন; ঠিক যেমন যশোদার বাৎসল্যভাব।
श्रीरामकृष्ण (राखाल के प्रति) – खा न रे ! ये लोग नहीं तो उठकर एक और खड़े हो जायँ । (एक भक्त के प्रति) राखाल के लिए बर्फ रखो । (राखाल के प्रति) तू फिर बन-हुगली जायगा ? धूप में न जाना ।
MASTER (to Rakhal): "Why don't you eat? Let the people stand aside if you wish it. (To a devotee) Keep some ice for Rakhal. (To Rakhal) Do you intend to go to Vanhooghly? Don't go in this sun."
[শ্রীরামকৃষ্ণ (রাখালের প্রতি) — খা না রে! এরা না হয় উঠে দাঁড়াক্! (একজন ভক্তপ্রতি) রাখালের জন্য বরফ রাখো। (রাখালের প্রতি) বনহুগলি তুই আবার যাবি। রৌদ্রে যাসনি।
[( 24 मई ,1884) श्रीरामकृष्ण वचनामृत]
🔆संघनेता श्रीरामकृष्ण का आगन्तुक स्पीकर्स , आर्टिस्ट को कैम्प में भोजन का आग्रह 🔆
राखाल भोजन करने बैठे । श्रीरामकृष्ण फिर विद्या का अभिनय करने वाले लड़के के साथ वार्तालाप कर रहे हैं ।
Rakhal sat down to his meal. Sri Ramakrishna again spoke to the actor.
[রাখাল আহার করিতে বসিলেন। ঠাকুর আবার বিদ্যা অভিনেতা যাত্রাওয়ালা ছোকরাটির সঙ্গে কথা কহিতেছেন।
[जैसा कैम्प-प्रोग्राम के संध्याकालीन सत्र में आमंत्रित सभी गवैया लोग के साथ अपने कमरे में उनके गायन-वादन में ताल-सुर की चर्चा करते हुए दादा उन्हें कैम्प के डायनिंग हॉल में खाकर जाने आग्रह करते थे!]
श्रीरामकृष्ण -(विद्या के प्रति) तुम सब ने मन्दिर में प्रसाद क्यों नहीं लिया ? यहीं पर भोजन करते।
MASTER: "Why didn't all of you take your meal from the kitchen of the Kali temple? That would have been nice."]
[শ্রীরামকৃষ্ণ (বিদ্যার প্রতি) — তোমরা সকলে ঠাকুরবাড়িতে প্রসাদ পেলে না কেন? এখানে খেলেই হত।
विद्या -जी , भोजन के सम्बन्ध में हम सबों की राय एक सी नहीं है, इसीलिए अलग रसोई बन रही है। सभी लोग अतिथिशाला (guest-house) में भोजन करना नहीं चाहते।
ACTOR: "All of us don't have the same opinion about food; so our food is cooked separately. All don't like to eat in the guest-house."
[বিদ্যা — আজ্ঞা, সবাইয়ের মত তো সমান নয়, তাই আলাদা রান্নাবাড়া হচ্ছে। সকলে অতিথিশালায় খেতে চায় না।
राखाल कमरे में भोजन करने बैठे हैं; श्रीरामकृष्ण भक्तों के साथ बरामदे में बैठकर फिर बातचीत कर रहे हैं।
While Rakhal was taking his meal, the Master and the devotees sat on the porch and continued their conversation.
[রাখাল খাইতে বসিয়াছেন। ঠাকুর ভক্তসঙ্গে বারান্দায় বসিয়া আবার কথা কহিতেছেন।
[( 24 मई ,1884) श्रीरामकृष्ण वचनामृत]
🔆थियेटर में नट और परिवार में रहकर साधना : ईश्वरदर्शन (आत्मदर्शन) का उपाय 🔆
[যাত্রাওয়ালা ও সংসারে সাধনা — ঈশ্বরদর্শনের (আত্মদর্শনের) উপায়]
विद्या – जी, आत्मदर्शन किस उपाय से हो सकता है ?
ACTOR: "How does one realize the Atman?"
[বিদ্যা (শ্রীরামকৃষ্ণের প্রতি) — আজ্ঞে, আত্মদর্শন কি উপায়ে হতে পারে?
श्रीरामकृष्ण – (विद्या अभिनेता के प्रति) – आत्मदर्शन का उपाय है व्याकुलता । मन, वचन और कर्म से उन्हें पाने की चेष्टा । जब देह में काफी पित्त जम जाता है, तो सभी चीजें पीली दीखती हैं; पीले के अतिरिक्त दूसरा कोई रंग नहीं दिखता ।
“तुम नाटकवालों में जो लोग केवल औरतों का काम करते हैं, उनका प्रकृतिभाव हो जाता है । औरतों का चिन्तन करके औरतों की तरह चलना-फिरना, सभी कुछ उनके समान हो जात है । इसी प्रकार रात-दिन ईश्वर का चिन्तन करने पर उन्हीं का स्वभाव प्राप्त हो जाता है ।
MASTER (to the actor): "You asked me about Self-realization. Longing is the means of realizing Atman. A man must strive to attain God with all his body, with all his mind, and with all his speech. Because of an excess of bile one gets jaundice. Then one sees everything as yellow; one perceives no colour but yellow. Among you actors, those who take only the roles of women acquire the nature of a woman; by thinking of woman your ways and thoughts become womanly. Just so, by thinking day and night of God one acquires the nature of God.
[শ্রীরামকৃষ্ণ (বিদ্যা অভিনেতার প্রতি) — আত্মদর্শনের উপায় ব্যাকুলতা। কায়মনোবাক্যে তাঁকে পাবার চেষ্টা। যখন অনেক পিত্ত জমে তখন ন্যাবা লাগে; সকল জিনিস হলদে দেখায়। হলদে ছাড়া কোন রঙ দেখা যায় না। “তোমাদের যাত্রাওয়ালাদের ভিতর যারা কেবল মেয়ে সাজে তাদের প্রকৃতি ভাব হয়ে যায়। মেয়েকে চিন্তা করে মেয়ের মতো হাবভাব সব হয়। সেইরূপ ঈশ্বরকে রাতদিন চিন্তা করলে তাঁরই সত্তা পেয়ে যায়।
[( 24 मई ,1884) श्रीरामकृष्ण वचनामृत]
🔆 चित्तशुद्धि के लिए मन में उच्च विचारों को भरना अनिवार्य है 🔆
[मुक्ताभिमानी मुक्तो हि बद्धा बद्धाभिमान्यपि | किंवदन्तीय सत्येयं या मतिः सा गतिर्भवेत्। ]
“मन को जिस रंग में रँगवाओगे उसका वही रंग हो जाता है । मन मानो धोबी के घर का धुला हुआ कपड़ा है ।”
"The mind is like white linen just returned from the laundry. It takes on the colour you dip it in."
[“মনকে যে রঙে ছোপাবে সেই রঙ হয়ে যায়। মন ধোপাঘরের কাপড়।”
विद्या – तो इसे एक बार पहले धोबी के घर भेजना होगा ।
ACTOR : "But it must first be sent to the laundry."
[বিদ্যা — তবে একবার ধোপাবাড়ি দিতে হবে।
श्रीरामकृष्ण – हाँ, पहले चित्तशुद्धि, उसके बाद मन को यदि ईश्वर-चिन्तन में छोड़ दो, तो उसी रंग का बन जायगा । फिर यदि गृहस्थी में रहो, नाटकवाले का काम करो या जो कुछ भी करो, उसी प्रकार का बन जायगा ।
MASTER: "Yes. First is the purification of the mind. Afterwards, if you direct the mind to the contemplation of God, it will be coloured by God-Consciousness. Again, if you direct the mind to worldly duties, such as the acting of a play, it will be coloured by worldliness."]
[শ্রীরামকৃষ্ণ — হ্যাঁ, আগে চিত্তশুদ্ধি; তারপর মনকে যদি ঈশ্বরচিন্তাতে পেলে রাখ তবে সেই রঙই হবে। আবার যদি সংসার করা, যাত্রাওয়ালার কাজ করা — এতে ফেলে রাখো, তাহলে সেই রকমই হয়ে যাবে।
(३)
[( 24 मई ,1884) श्रीरामकृष्ण वचनामृत-80]
[हरि , नारायण आदि भक्तों के साथ ]
[হরি (তুরীয়ানন্দ) নারাণ প্রভৃতি ভক্তসঙ্গে]
श्रीरामकृष्ण ने थोड़ा सा ही विश्राम किया था कि कलकत्ते से हरि (स्वामी तुरियानन्द) नारायण, नरेंद्र बन्ध्योपाध्याय आदि ने आकर भूमिष्ठ हो उन्हें प्रणाम किया । नरेंद्र बन्ध्योपाध्याय प्रेसीडेन्सी कॉलेज के संस्कृत अध्यापक राजकृष्ण बन्ध्योपाध्याय के पुत्र हैं । घर में मेल न होने के कारण श्यामपुकुर में अलग मकान लेकर स्त्री-पुत्र के साथ रहते हैं । बहुत ही सरलचित्त व्यक्ति हैं; २९-३० साल की उम्र होगी । जीवन के शेष भाग में उन्होंने प्रयाग में निवास किया था । ५८ वर्ष में उनका देहान्त हुआ था । ध्यान के समय वे घण्टा-ध्वनि आदि नाना प्रकार के शब्द सुनते थे । भूटान, उत्तर पश्चिम तथा अन्य अनेक प्रदेशों में उन्होंने भ्रमण किया था, बीच-बीच में श्रीरामकृष्ण का दर्शन करने आते थे ।
Sri Ramakrishna had rested on his bed only a few minutes when Hari,1 Narayan, Narendra Bannerji, and other devotees arrived from Calcutta and saluted him. Narendra Bannerji was the son of the professor of Sanskrit at the Presidency College of Calcutta. Because of friction with other members of the family, he had rented a separate house where he lived with his wife and children. Narendra was a very simple and guileless man. He practised spiritual discipline and, at the time of meditation, heard various sounds — the sound of a gong, and so on. He had travelled in different parts of India and he visited the Master now and then.Narayan was a schoolboy sixteen or seventeen years old. He often visited the Master, who was very fond of him.
[শ্রীরামকৃষ্ণ একটু বিশ্রাম করিতে না করিতেই কলিকাতা হইতে হরি, নারাণ, নরেন্দ্র বন্দ্যোপাধ্যায় প্রভৃতি আসিয়া তাঁহাকে ভূমিষ্ঠ হইয়া প্রণাম করিলেন। নরেন্দ্র বন্দ্যোপাধ্যায় “প্রেসিডেন্সী কলেজ”-এর সংস্কৃত অধ্যাপক রাজকৃষ্ণ বন্দ্যোপাধ্যায়ের পুত্র। বাড়িতে বনিবনাও না হওয়াতে শ্যামপুকুরে আলাদা বাসা করিয়া স্ত্রী-পুত্র লইয়া আছেন। লোকটি ভারী সরল। এক্ষণে বয়স ২৯/৩০ হইবে। শেষজীবনে তিনি এলাহাবাদে বাস করিয়াছিলেন। ৫৮ বৎসর বয়সে তাঁর শরীরত্যাগ হইয়াছিল। তিনি ধ্যানের সময় ঘন্টা-নিনাদ প্রভৃতি অনেকরকম শুনিতে ও দেখিতে পাইতেন। ভূটান, উত্তর-পশ্চিমে ও নানা স্থানে অনেক ভ্রমণ করিয়াছিলেন। ঠাকুরকে মাঝে মাঝে দর্শন করিতে আসিতেন।
हरि (स्वामी तुरीयानन्द) उन दिनों अपने बागबाजार के मकान में भाइयों के साथ रहते थे । जनरल असेम्बली में प्रवेशिका (मैट्रिक) तक पढ़कर उस समय घर पर ईश्वर-चिन्तन, शास्त्र-पाठ तथा योग का अभ्यास किया करते थे । कभी कभी दक्षिणेश्वर में जाकर श्रीरामकृष्ण का दर्शन करते थे । श्रीरामकृष्ण बागबाजार में बलराम के घर जाने पर उन्हें कभी कभी बुला लेते थे ।
Hari lived with his brothers at their Baghbazar house. He had studied up to the matriculation class in the General Assembly Institution. Then he had given up his studies and devoted his time at home to the contemplation of God, the reading of the scriptures, and the practice of yoga. He also visited the Master now and then. Sri Ramakrishna often sent for Hari when he went to Balaram's house in Baghbazar.
[হরি (স্বামী তুরীয়ানন্দ) তখন তাঁর বাগবাজারের বাড়িতে ভাইদের সঙ্গে থাকিতেন। জেনার্যাল অ্যাসেমব্লি-তে প্রবেশিকা পর্যন্ত পড়িয়া আপাতত বাড়িতে ঈশ্বরচিন্তা, শাস্ত্রপাঠ ও যোগাভ্যাস করিতেন। মাঝে মাঝে শ্রীরামকৃষ্ণকে দক্ষিণেশ্বরে আসিয়া দর্শন করিতেন। ঠাকুর বাগবাজারে বলরামের বাটীতে গমন করিলে তাঁহাকে কখন কখন ডাকাইয়া পাঠাইতেন।
[( 24 मई ,1884) श्रीरामकृष्ण वचनामृत-80]
[बौद्धधर्म की बात - ब्रह्म ज्ञानस्वरूप है -ठाकुर को तोतापुरी के उपदेश]
[বৌদ্ধধর্মের কথা — ব্রহ্ম বোধ-স্বরূপ — ঠাকুরকে তোতাপুরীর শিক্ষা ]
🔆आत्मदर्शन होने पर अहं अपने वश में आ जाता है, बुद्धत्व की प्राप्ति होती है 🔆
🔱🙏समाधि में क्या होता है :सूर्य सिर पर ,अपनी परछाई आधे हाथ के भीतर🔱🙏
श्रीरामकृष्ण – (भक्तों के प्रति) – बुद्धदेव की बात हमने अनेक बार सुनी है । वे दस अवतारों में से एक हैं । ब्रह्म अचल, अटल है, निष्क्रिय है और ज्ञानस्वरूप है । जब बुद्धि उस ज्ञानस्वरूप (Pure Consciousness, शुद्ध चेतना) में लीन हो जाती है, उस समय ब्रह्मज्ञान होता है, उस समय मनुष्य बुद्ध (enlightened- ब्रह्मविद या ब्रह्मवेत्ता) बन जाता है ।
MASTER (to the devotees): "I have heard a great deal about Buddha. He is one of the ten Incarnations of God. (Hindu mythology speaks of ten Incarnations of God.) Brahman is immovable, immutable, inactive, and of the nature of Consciousness. When a man merges his buddhi, his intelligence, in Bodha, Consciousness, then he attains the Knowledge of Brahman; he becomes buddha, enlightened.]
[শ্রীরামকৃষ্ণ (ভক্তদের প্রতি) — বুদ্ধদেবের কথা অনেক শুনেছি, তিনি দশাবতারের ভিতর একজন অবতার। ব্রহ্ম অচল, অটল, নিষ্ক্রিয় বোধ স্বরূপ। বুদ্ধি যখন এই বোধ-স্বরূপে লয় হয় তখন ব্রহ্মজ্ঞান হয়; তখন মানুষ বুদ্ধ হয়ে যায়।
“न्यांगटा (तोतापुरी) कहा करता था, मन का लय बुद्धि में, और बुद्धि का लय ज्ञानस्वरूप (witness consciousness) में हो जाता है।
"Nangta used to say that the mind merges in the buddhi, and the buddhi in Bodha, Consciousness.}
{“ন্যাংটা বলত মনের লয় বুদ্ধিতে, বুদ্ধির লয় বোধ-স্বরূপে।
“जब तक ‘अहं” भाव रहता है, तब तक ब्रह्मज्ञान नहीं होता । ब्रह्मज्ञान होने पर, ईश्वर का दर्शन होने पर ‘अहं’ अपने वश में आ जाता है । ऐसा न होने पर ‘अहं’ को वशीभूत नहीं किया जा सकता । अपनी परछाई को पकड़ना कठिन है परन्तु सूर्य जब सिर पर आ जाता है तो परछाई आधे हाथ के भीतर रहती है ।”
"The aspirant does not attain the Knowledge of Brahman as long as he is conscious of his ego. The ego comes under one's control after one has obtained the Knowledge of Brahman and seen God. Otherwise the ego cannot be controlled. It is difficult to catch one's own shadow. But when the sun is overhead, the shadow is within a few inches of the body."}
{“যতক্ষণ অহং থাকে ততক্ষণ ব্রহ্মজ্ঞান হয় না। ব্রহ্মজ্ঞান হলে, ঈশ্বরকে দর্শন হলে, তবে অহং নিজের বশে আসে; তা না হলে অহংকে বশ করা যায় না। নিজের ছায়াকে ধরা শক্ত; তবে সূর্য মাথার উপর এলে ছায়া আধহাতের মধ্যে থাকে।”
[( 24 मई ,1884) श्रीरामकृष्ण वचनामृत-80]
[बन्दोपाध्याय को उपदेश- 'भगवन्त दुर्लभ नहीं ,सन्त महापुरुष का आश्रय मिलना दुर्लभ है !']
[বন্দ্যোপাধ্যায়কে শিক্ষা — ঈশ্বরদর্শন — উপায় সাধুসঙ্গ ]
🔱🙏ईश्वर के दर्शन का मार्ग~ साधु-संग (महापुरुषों की संगति) सदैव ही आवश्यक 🔱🙏
भक्त – ईश्वर-दर्शन का स्वरूप कैसा है ?
"What is the vision of God like?"}
{ভক্ত — ঈশ্বরদর্শন কিরূপ?
श्रीरामकृष्ण – नाटक का अभिनय नहीं देखा है ? लोग सब आपस में बातचीत कर रहे हैं; ऐसे समय परदा उठ गया तब सब लोगों के सारा मन अभिनय में लग जाता है । फिर बाहर की ओर दृष्टि नहीं रहती । इसी का नाम है समाधिस्थ होना ।
“फिर परदा गिरने पर पुनः बाहर की ओर दृष्टि । मायारूपी परदा गिरने पर फिर मनुष्य बहिर्मुख हो जाता है ।
MASTER: "Haven't you seen a theatrical performance? The people are engaged in conversation, when suddenly the curtain goes up. Then the entire mind of the audience is directed to the play. The people don't look at other things any longer. Samadhi is to go within oneself like that. When the curtain is rung down, people look around again. Just so, when the curtain of maya falls, the mind becomes externalized.
[শ্রীরামকৃষ্ণ — থিয়েটারে অভিনয় দেখ নাই? লোক সব পরস্পর কথা কচ্ছে, এমন সময় পর্দা উঠে গেল; তখন সকলের সমস্ত মনটা অভিনয়ে যায়; আর বাহ্যদৃষ্টি থাকে না — এরই নাম সমাধিস্থ হওয়া। “আবার পর্দা পড়ে গেলে বাহিরে দৃষ্টি। মায়ারূপ যবনিকা পড়ে গেলে আবার মানুষ বহির্মুখ হয়।
(नरेंद्र बन्द्योपाध्याय के प्रति) तुमने अनेक देशों में भ्रमण किया है । कुछ साधुओं की कहानी सुनाओ।”
(To Narendra Bannerji) "You have travelled a great deal. Tell us something about the sadhus."
[(নরেন্দ্র বন্দ্যোপাধ্যায়ের প্রতি) — “তুমি অনেক ভ্রমণ করেছ, সাধুদের কিছু গল্প কর।”
बन्ध्योपाध्याय ने भूटान में दो योगियों को देखा था, वे आधा सेर नीम का रस पी जाते थे, ये ही सब कहानियाँ कह रहे हैं । फिर नर्मदा के तट पर साधु के आश्रम में गये थे । उस आश्रम के साधु ने पैण्ट पहने बंगाली बाबू को देखकर कहा था, ‘इसके पेट में छुरी है ।’
Narendra told the story of two yogis in Bhutan who used to drink daily a pound of the bitter juice of neem-leaves. He had also visited the hermitage of a holy man on the bank of the Narmada. At the sight of the Bengali Babu dressed in European clothes, the sadhu had remarked, "He has a knife hidden under his clothes, next to his belly."
[বন্দ্যোপাধ্যায় ভূটানে দুইজন যোগী দেখেছিলেন, তাঁহারা আধসের নিমের রস খান; এই সব গল্প করিতেছেন। আবার নর্মদাতীরে সাধুর আশ্রমে গিয়াছিলেন। সেই আশ্রমের সাধু পেন্টেলুন-পরা বাঙালী বাবুকে দেখে বলেছিলেন, “ইসকা পেটমে ছুরি হ্যায়।”
श्रीरामकृष्ण - देखो, साधुओं के चित्र घर में रखने चाहिए, इससे सदा ईश्वर का उद्दीपन होता है ।
MASTER: "One should keep pictures of holy men in one's room. That constantly quickens divine ideas."
[শ্রীরামকৃষ্ণ — দেখ, সাধুদের ছবি ঘরে রাখতে হয়; তাহলে সর্বদা ঈশ্বরের উদ্দীপন হয়।
बन्ध्योपाध्याय – मैंने आपका चित्र कमरे में रखा है और साथ ही एक पहाड़ी साधु का चित्र भी रखा है – हाथ में गांजा की चिलम में आग जल रही है ।
BANNERJI: "I have your picture in my room; also the picture of a sadhu living in the mountains, blowing on a piece of lighted charcoal in a bowl of hemp." (Many wandering monks smoke Indian hemp.)
[বন্দ্যোপাধ্যায় — আপনার ছবি ঘরে রেখেছি; আর পাহাড়ে সাধুর ছবি, হাতে গাঁজার কলকেতে আগুন দেওয়া হচ্চে।
श्रीरामकृष्ण – हाँ, साधुओं का चित्र देखने से उद्दीपन होता है । जैसे मिट्टी का बना हुआ आम देखने से वास्तविक आम का उद्दिपन होता है, जिस प्रकार युवती स्त्री देखने से लोगों के मन में भोग का उद्दीपन होता है ।“इसीलिए तुम लोगों से कहता हूँ कि सदैव ही साधु-संग आवश्यक है ।
MASTER: "It is true that one's spiritual feelings are awakened by looking at the picture of a sadhu. It is like being reminded of the custard-apple by looking at an imitation one, or like stimulating the desire for enjoyment by looking at a young woman. Therefore I tell you that you should constantly live in the company of holy men.
[শ্রীরামকৃষ্ণ — হাঁ; সাধুদের ছবি দেখলে উদ্দীপন হয়; শোলার আতা দেখলে যেমন সত্যকার আতার উদ্দীপন হয়; যুবতী স্ত্রীলোক দেখলে লোকের যেমন ভোগের উদ্দীপন হয়। “তাই তোমাদের বলি — সর্বদাই সাধুসঙ্গ দরকার।
[( 24 मई ,1884) श्रीरामकृष्ण वचनामृत-80]
🔱🙏साधु-संग से शान्ति , घड़ियाल में साँस रोकने की क्षमता 15 मिनट से 2 घंटे🔱🙏
(बन्ध्योपाध्याय के प्रति) संसार की ज्वाला तो देखी है । भोग लेने में ही ज्वाला है । चील के मुँह में जब तक मछली थी, तब तक झुण्ड के झुण्ड कौए आकर उसे तंग कर रहे थे ।
(To Bannerji) "You know very well the suffering of the world. You suffer whenever you accept enjoyment. As long as the kite kept the fish in its beak, it was tormented by the flock of crows.
[(বন্দ্যোপাধ্যায়ের প্রতি) — “সংসারে জ্বালা তো দেখছ। ভোগ নিতে গেলেই জ্বালা। চিলের মুখে যতক্ষণ মাছ ছিল, ততক্ষণ ঝাঁকে ঝাঁকে কাক এসে তাকে জ্বালাতন করেছিল।
‘साधु-संगति में शान्ति होती है । मगरमच्छ (alligator) जल के भीतर बहुत देर तक रहता है, लेकिन एक एकबार साँस लेने के लिए जल के ऊपर चला आता है । उस समय साँस लेकर शान्त हो जाता है।”
[मगरमच्छ में पानी के अंदर सांस रोकने की क्षमता 15 मिनट से लेकर 1–2 घंटे तक होती है।]
"One finds peace of mind in the company of holy men. The alligator (घड़ियाल) remains under water a long time. But every now and then it rises to the surface and breathes with a deep wheezing noise. Then it gives a sigh of relief."]
[“সাধুসঙ্গে শান্তি হয়; জলে কুম্ভীর অনেকক্ষণ থাকে; এক-একবার জলে ভাসে, নিঃশ্বাস লবার জন্য। তখন হাঁপ ছেড়ে বাঁচে।”
,[( 24 मई ,1884) श्रीरामकृष्ण वचनामृत-80]
🔆ईश्वर 'कल्पतरु' हैं - सकाम प्रार्थना में खतरा, Hear the Holy,पूर्णाहुति मंत्र 🔆
[ঈশ্বর ‘কল্পতরু’ — সকাম প্রার্থনার বিপদ ]
संगीत-नाटक (Opera) का अभिनेता – जी आपने भोग की बातें कहीं सो ठीक है । ईश्वर कल्पतरु हैं। मनुष्य उनसे जो भी कुछ माँगता है, वही उसे प्राप्त होता है । अब उसके मन में यदि भावना हो कि ‘ये तो कल्पतरु हैं अच्छा, देखें, यदि बाघ यहाँ पर आ जाय तो जानें ।’ बस बाघ की याद करते ही बाघ आ खड़ा होता है और उसे खा जाता है ।
ACTOR: "Revered sir, what you have just said about enjoyment is very true. One ultimately courts disaster if one prays to God for enjoyment. Various desires come to the mind and by no means all of them are good. God is the Kalpataru, the Wish-fulfilling Tree. A man gets whatever he asks of God. Suppose it comes to his mind: 'God is the Kalpataru. Well, let me see if a tiger will appear before me.' Because he thinks of the tiger, it really appears and devours him."]
[যাত্রাওয়ালা — আজ্ঞা, আপনি ভোগের কথা যে বললেন, তা ঠিক। ঈশ্বরের কাছে ভোগের কামনা করলে শেষকালে বিপদে পড়তে হয়। মনে কতরকম কামনা বাসনা উঠছে, সব কামনাতে তো মঙ্গল হয় না। ঈশ্বর কল্পতরু, তাঁর কাছে যা কামনা করে চাইবে তা এসে পড়বে। এখন মনে যদি উঠে, ‘ইনি কল্পতরু, আচ্ছা দেখি বাঘ যদি আসে।’ বাঘকে মনে করতে বাঘ এসে পড়ল; আর লোকটাকে খেয়ে ফেললে।
श्रीरामकृष्ण – हाँ, यह ध्यान में रखना कि बाघ आता है । अधिक और क्या कहूँ, इधर मन रखो, ईश्वर को न भूलो – सरल भाव से उन्हें पुकारने पर वे दर्शन देंगे ।
“एक और बात – नाटक के अन्त में कुछ हरिनाम का पाठ *(पूर्णाहुति मंत्र) करके समाप्त किया करो । इससे जो लोग गाते हैं और जो लोग सुनते हैं वे सभी ईश्वर का चिन्तन करते करते अपने अपने स्थानों में जायेंगे।”
गीतिनाट्य के सभी कलाकार ठाकुरदेव को प्रणाम करके बिदा हुए ।
MASTER: "Yes, you must remember that the tiger comes. What more shall I tell you? Keep your mind on God. Don't forget Him. God will certainly reveal Himself to you if you pray to Him with sincerity. Another thing, Sing the name of God at the end of each performance. Then the actors, the singers, and the audience will go home with the thought of God in their minds." ]
[শ্রীরামকৃষ্ণ — হাঁ, ওই বোধ, যে বাঘ আসে।“আর কি বলব, ওইদিকে মন রেখো, ঈশ্বরকে ভুলো না — সরলভাবে তাঁকে ডাকলে তিনি দেখা দিবেন। “ আর একটি কথা, — যাত্রা শেষে কিছু হরিনাম করে উঠো। তাহলে জারা গায় এবং যারা শুনে সকলে ঈশ্বরচিন্তা করতে করতে নিজ নিজ স্থানে যাবে।”যাত্রাওয়ালারা প্রণাম করিয়া বিদায় গ্রহণ করিলেন।
[ *पूर्णाहुति मंत्र : जैसे महामण्डल के युवा-प्रशिक्षण शिविर को पूर्णाहुति मंत्र पढ़कर समाप्त किया जाता है -"ॐ पूर्णमदः पूर्णमिदं पूर्णात् पूर्णमुदच्यते। पूर्णस्य पूर्णमादाय पूर्णमेवावशिष्यते॥ॐ शांतिः शांतिः शांतिः॥ अर्थ: वह (अद:) परब्रह्म पुरुषोत्तम परमात्मा सभी प्रकार से पूर्ण है। यह जगत भी पूर्ण है, क्योंकि यह पूर्ण उस पूर्ण पुरुषोत्तम से ही उत्पन्न हुआ है। इस प्रकार जगत भी उस परब्रह्म से परिपूर्ण है। उस पूर्ण में से पूर्ण को निकाल देने पर भी वह पूर्ण ही शेष रहता है। ॐ त्रिविध ताप की शांति हो! यहाँ पूर्ण से पूर्ण निकाल देने पर भी पूर्ण बचना - थोड़ा अजीब लग सकता है। लेकिन यहाँ पूर्ण से तात्पर्य है - अनंत (infinite) या अथाह। एक सर्वमान्य गणितीय सिद्धान्त (coordinate geometry) है: -( ∞ - ∞ = ∞ ) अर्थात Infinite (अनंत) - Infinite (अनंत) = Infinite (अनंत) की संभावना! और यदि गुणात्मक तौर पर देखें तो, पूर्ण परमात्मा से जो भी भी उत्पन्न होगा उसमें वह सारी पूर्णता होगी।अंत में तीन बार ‘शान्तिः’ का उच्चारण त्रिविध तापों के शमन हेतु किया गया है । ये ताप हैं- आधिभौतिक, आधिदैविक, एवं आध्यात्मिक – (आधिभौतिक: सांसारिक वस्तुओं/जीवों से प्राप्त ताप/कष्ट। आधिदैविक: दैवी शक्तियों द्वारा दिया गया या पूर्व में स्वयं के किए गये कर्मों से प्राप्त ताप/कष्ट, और आध्यात्मिक: वांछित स्तर की आध्यात्मिक मनोवृति के अभाव के कारण (चित्तवृत्ति निरोध के अभाव में जगत को ब्रह्ममय न देखने के कारण) ताप/कष्ट ।) त्रिविध ताप की शांति अर्थात पूर्ण शांति ।
इसके पाठ का लाभ यह है कि "स्वामी विवेकानन्द -कैप्टन सेवियर वेदान्त शिक्षक-प्रशिक्षण परम्परा " में आयोजित युवा प्रशिक्षण शिविर के वे प्रशिक्षक -जो इसे गायेंगे; तथा प्रशिक्षणार्थी लोग -जो इसे सुनेंगे ,वे सभी "श्रीरामकृष्ण -विवेकानन्द शिक्षक परम्परा - Be and Make " के विषय में चिंतन करते करते अपने -अपने घर जायेंगे ! ]
[( 24 मई ,1884) श्रीरामकृष्ण वचनामृत-80]
🔱🙏घूँघटवाली भक्त-स्त्रियों को उपदेश-शिवपूजा और देवताओं पर चर्चा करो🔱🙏
[শ্রীরামকৃষ্ণ ও গৃহস্থাশ্রমের ভক্ত-অবগুন্ঠনবতী বধূগণের প্রতি উপদেশ ]
दो भक्तों की स्त्रियों ने आकर श्रीरामकृष्ण को प्रणाम किया । वे श्रीरामकृष्ण का दर्शन करने आयी हैं, इसलिए उपवास किये हुई है । दोनों ही घूँघटवाली, दो भाइयों की पत्नियाँ हैं । उम्र यही २२-२३ वर्ष के भीतर ही होगी । दोनों ही पुत्रों की माताएँ हैं ।
Two ladies, devotees of Sri Ramakrishna, entered the room and saluted the Master. They had been fasting in preparation for this visit. They were sisters-in-law, the wives of two brothers, and were twenty-two or twenty- three years old. They were mothers of children. Both of them had their faces covered with veils.]
[দুটি ভক্তদের পরিবারেরা আসিয়া ঠাকুরকে প্রণাম করিলেন। তাঁহারা ঠাকুরকে দর্শন করিতে আসিয়াছেন, এই জন্য উপবাস করিয়া আছেন। দুই জা অবগুন্ঠনবতী, দুই ভায়ের বধূ। বয়স ২২/২৩-এর মধ্যে, দুই জনেই ছেলেদের মা।
श्रीरामकृष्ण – (स्त्रियों के प्रति) – देखो, तुम लोग शिवपूजा किया करो । कैसे पूजा करनी होती है, ‘नित्यकर्म’ नाम की पुस्तक है, उसे पढ़कर देख लेना । देवपूजा करने से बहुत देर तक देवता का काम कर सकोगी । फूल चुनना, चंदन घिसना, देवता के बर्तनों को मलना, देवता के लिए जलपान की सामग्री को सजाना – ये सब काम करने से उधर ही मन लगा रहेगा । नीच बुद्धि, क्रोध ये सब भाग जायेंगे । तुम दोनों –(गोतनी) देवरानी, जेठानी जब आपस में बातचीत किया करो, तो देवताओं की ही बातें किया करो ।
MASTER (to the ladies): "Worship Siva. This worship is described in a book called the Nityakarma. Learn the rituals from it. In order to perform the worship of God you will be preoccupied for a long time with such religious duties as plucking flowers, making sandal-paste, polishing the utensils of worship, and arranging offerings. As you perform these duties your mind will naturally be directed to God. You will get rid of meanness, anger, jealousy, and so forth. When you two sisters talk to each other, always talk about spiritual matters.
[শ্রীরামকৃষ্ণ — (বধূদিগের প্রতি) — দেখ তোমরা শিবপূজা করো। কি করে করতে হয় ‘নিত্যকর্ম’ বলে বই আছে, সেই বই পড়ে দেখে লবে। ঠাকুর পূজা করতে হলে ঠাকুরের কাজ অনেকক্ষণ ধরে করতে পারবে। ফুল তোলা, চন্দন ঘষা, ঠাকুরের বাসন মাজা, ঠাকুরের জলখাবার সাজানো — এই সকল করতে হলে ওই দিকেই মন থাকবে। হীন বুদ্ধি, রাগ, হিংসা — এ-সব চলে যাবে। দুই জায়ে যখন কথাবার্তা কইবে তখন ঠাকুরদেরই কথাবার্তা কইবে।
[( 24 मई ,1884) श्रीरामकृष्ण वचनामृत-80]
🔱🙏तेल धारवत भक्ति के साथ' प्रतिमापूजा करो ,उनकी कृपा से ईश्वरदर्शन हो सकता है🔱🙏
[Sree Ramakrishna and the value of Image Worship]
“किसी प्रकार से ईश्वर में मन को लगा देना । एक बार भी उनकी विस्मृति न हो । जैसे तेल की धार – उसके बीच कुछ और नहीं है । एक ईंट या पत्थर को भी यदि ईश्वर मानकर भक्ति के साथ उसकी पूजा करो, तो उससे भी उनकी कृपा से ईश्वर-दर्शन हो सकता है ।
The thing is somehow to unite the mind with God. You must not forget Him, not even once. Your thought of Him should be like the flow of oil, without any interruption. It you worship with love even a brick or stone as God, then through His grace you can see Him.
[ কোনরকম করে ঈশ্বরেতে মনের যোগ করা। একবারও যেন তাঁকে ভোলা না হয়; যেমন তেলের ধারা, তার ভিতর ফাঁক নাই। একটা ইটকে বা পাথরকে ঈশ্বর বলে যদি ভক্তিভাবে পূজা কর, তাতেও তাঁর কৃপায় ঈশ্বর দর্শন হতে পারে।"
“पहले जो कहा, शिवपूजा – यह सब पूजा करनी चाहिए । उसके बाद मन पक्का हो जाने पर अधिक दिन पूजा नहीं करनी पड़ती । उस समय सदा ही मन का योग बना रहता है – सदा ही स्मरण-मनन होता रहता है ।”
"Remember what I have just said to you. One should perform such worship as the Siva Puja. Once the mind has become mature, one doesn't have to continue formal worship for long. The mind then always remains united with God; meditation and contemplation become a constant habit of mind."
[“আগে যা বললুম শিবপূজা — এই সব পূজা করতে হয়; তারপর পাকা হয়ে গেলে বেশিদিন পূজা করতে হয় না। তখন সর্বদাই মনের যোগ হয়ে থাকে; সর্বদাই স্মরণ মনন থাকে।”
बड़ी बहू – (श्रीरामकृष्ण के प्रति) – हमें क्या कृपा कर कुछ मन्त्र दे देंगे ?
ELDER SISTER-IN-LAW: "Will you please give us some instruction?"
[বড় বধূ (শ্রীরামকৃষ্ণের প্রতি) — আমাদের কি একটু কিছু বলে দিবেন?
श्रीरामकृष्ण – (स्नेह के साथ) – मैं तो मन्त्र नहीं देता ? मन्त्र देने से शिष्य का पाप-ताप लेना पड़ता है। माँ ने मुझे बच्चे की स्थिति में रखा है । अब तुम्हें जो शिवपूजा के लिए कह दिया है वही करो । बीच-बीच में आती रहना, बाद में ईश्वर की इच्छा से जो होने का है, होगा । स्नान-यात्रा के दिन फिर आने की चेष्टा करना ।
“घर पर हरिनाम करने के लिए मैंने जो कहा था, क्या वह हो रहा है ?”
MASTER (affectionately): "I don't give initiation. If a guru gives initiation he must assume responsibility for the disciple's sin and suffering. The Divine Mother has placed me in the state of a child. Perform the Siva Puja as I told you. Come here now and then. We shall see what happens later on through the will of God. I asked you to chant the name of Hari at home. Are you doing that?"
[শ্রীরামকৃষ্ণ (সস্নেহে) — আমি তো মন্ত্র দিই না। মন্ত্র দিলে শিষ্যের পাপতাপ নিতে হয়। মা আমায় বালকের অবস্থায় রেখেছেন। এখন তোমরা শিবপূজা যা বলে দিলাম তাই করো। মাঝে মাঝে আসবে — পরে ঈশ্বরের ইচ্ছায় যা হয় হবে। স্নানযাত্রার দিন আবার আসবার চেষ্টা করবে। স্নানযাত্রার দিন আবার আসবার চেষ্টা করবে। “বাড়িতে হরিনাম করতে আমি যে বলেছিলাম, তা কি হচ্ছে?”
बहू – जी हाँ ।
ELDER SISTER-IN-LAW: "Yes.
বধূ (শ্রীরামকৃষ্ণের প্রতি) — আজ্ঞা, হাঁ।
[( 24 मई ,1884) श्रीरामकृष्ण वचनामृत-80]
🔱🙏सभी स्त्रियाँ मेरी माँ जगदम्बा का एक -एक रूप हैं 🔱🙏
श्रीरामकृष्ण – तुम लोग उपवास करके क्यों आयी हो ? खाकर आना चाहिए ।
”स्त्रियाँ मेरी माँ का एक-एक रूप हैं न *; इसीलिए मैं उनका कष्ट नहीं देख सकता । जगन्माता का एक-एक रूप । खाकर आओगी, आनन्द में रहोगी ।”
[* विद्याः समस्तास्तव देवि भेदाः, स्त्रियः समस्ताः सकला जगत्सु |
त्वयैकया पूरितमम्बयैतत्, का ते स्तुतिः स्तव्यपरा परोक्ति || -- दुर्गा सप्तशती (११/६)
सभी विद्याएं देवी आपके ही विभिन्न स्वरुप हैं, संसार की सभी स्त्रियाँ मेरी माँ की ही एक -एक मूर्ती हैं। यह सब (संसार) आपसे ही भरा (व्याप्त) हुआ है, (तो फिर) आपकी क्या स्तुति क्या हो सकती है, (आप तो) स्तुति से परात्पर हैं |]
MASTER: "Why have you fasted? You should take your meal before you come here. Women are but so many forms of my Divine Mother. I cannot bear to see them suffer. You are all images of the Mother of the Universe. Come here after you have eaten, and you will feel happy."
[শ্রীরামকৃষ্ণ — তোমরা উপবাস করে এসেছ কেন? খেয়ে আসতে হয়।“মেয়েরা আমার মার এক-একটি রূপ কি না; তাই তাদের কষ্ট আমি দেখতে পারি না; জগন্মাতার এক-একটি রূপ। খেয়ে আসবে, আনন্দে থাকবে।”
यह कहकर श्री रामलाल को आदेश दिया कि वह उन बहुओं को जलपान कराये । फलहारिणी काली पूजा का प्रसाद – लूची, तरह-तरह के फल, ग्लास ग्लास भर शरबत और मिठाई आदि उन्होंने ग्रहण किया ।
Saying this, Sri Ramakrishna asked Ramlal to give the ladies some food. They were given fruit, sweets, drinks, and other offerings from the temple.
[এই বলিয়া শ্রীযুক্ত রামলালকে বধূদের বসাইয়া জল খাওয়াইতে আদেশ করিলেন। ফলহারিণীপূজার প্রসাদ, লুচি, নানাবিধ ফল, গ্লাস ভরিয়া চিনির পানা ও মিষ্টান্নাদি তাঁহারা পাইলেন।
श्रीरामकृष्ण ने कहा, “तुम लोगों ने कुछ खा लिया तो अब मेरा मन शान्त हुआ । मैं स्त्रियों को उपवासी नहीं देख सकता ।”
The Master said: "You have eaten something. Now my mind is at peace. I cannot bear to see women fast."
[ঠাকুর বলিলেন, “তোমরা কিছু খেলে, এখন আমার মনটা শীতল হল; আমি মেয়েদের উপবাসী দেখতে পারি না।”
[( 24 मई ,1884) श्रीरामकृष्ण वचनामृत-80]
[भक्तों के साथ गुह्यकथा - श्री केशब सेन।
[ভক্তসঙ্গে গুহ্যকথা — শ্রীযুক্ত কেশব সেন]
श्रीरामकृष्ण शिवमन्दिर की सीढ़ी पर बैठे हैं । दिन के पाँच बजे का समय होगा । पास ही अधर, डॉक्टर, निताई, मास्टर आदि दो-एक भक्त बैठे हैं ।
It was about five o'clock in the afternoon. Sri Ramakrishna was sitting on the steps of the Siva temples. Adhar, Dr. Nitai, M., and several other devotees were with him.
[শ্রীরামকৃষ্ণ শিবের সিঁড়িতে বসিয়া আছেন। বেলা অপরাহ্ন ৫টা হইয়াছে; কাছে অধর, ডাক্তার নিতাই, মাস্টার প্রভৃতি দু-একটি ভক্ত বসিয়া আছেন।
श्रीरामकृष्ण - (भक्तों के प्रति) – देखो, मेरा स्वभाव बदलता जा रहा ।
MASTER (to the devotees): "I want to tell you something. A change has been coming over my nature."
[শ্রীরামকৃষ্ণ (ভক্তদের প্রতি) — দেখ, আমার স্বভাব বদলে যাচ্ছে।
अब कुछ गुह्य बातें कहने के उद्देश्य से एक सीढ़ी नीचे उतरकर भक्तों के पास जा बैठे ।
The Master came down a step and sat near the devotees. It seemed that he intended to communicate some of his deeper experiences to them.
[এইবার কি গুহ্যকথা বলিবেন বলিয়া সিঁড়ির এক ধাপ নামিয়া ভক্তদের কাছে বসিলেন। আবার কি বলিতেছেন —
[( 24 मई ,1884) श्रीरामकृष्ण वचनामृत-80]
🔆मनुष्य में परमेश्वर की सर्वोच्च अभिव्यक्ति—दिव्य अवतार का रहस्य 🔆
[God's highest Manifestation in Man —The Mystery of Divine Incarnation]
[हिन्दू मान्यता के अनुसार "ईश्वर का पृथ्वी पर अवतरण (जन्म लेना) अथवा उतरना ही 'अवतार' कहलाता है"। हिन्दुओं का विश्वास है कि ईश्वर यद्यपि सर्वव्यापी, सर्वदा सर्वत्र वर्तमान है, तथापि समय-समय पर आवश्यकतानुसार पृथ्वी पर विशिष्ट रूपों में स्वयं अपनी योगमाया से उत्पन्न होता है। हिन्दू धर्म में सर्वोच्च माने गये भगवान विष्णु के दस अवतारों का पुराणों में अत्यंन्त कलात्मक और कथात्मक चित्रण हुआ है। उनके दस अवतार निम्नलिखित हैं-1. मत्स्य अवतार 2.वराह अवतार 3.कूर्म अवतार 4.नृसिंह अवतार 5. वामन अवतार 6. परशुराम अवतार 7. राम अवतार 8.कृष्ण अवतार 9.बुद्ध अवतार10. कल्कि अवतार। ]
🔆ईश्वर (माँ जगदम्बा) अवतार-वरिष्ठ में अधिक प्रकट हैं ! 🔆
🔆तुमने (अवतार) शरीर धारण किया है, साकार नर-रूपों के साथ आनन्द करो 🔆
श्रीरामकृष्ण - तुम लोग भक्त हो, तुमसे कहने में हानि नहीं – आजकल मुझे ईश्वर के चिन्मय रूप का दर्शन नहीं होता । साकार नर-रूप में उनका दर्शन करता हूँ । ईश्वर के रूप का दर्शन, स्पर्श तथा आलिंगन करना मेरा स्वभाव है । अब ईश्वर (माँ काली) मुझसे कह रहे हैं, ‘तुमने देह धारण की है, साकार नर-रूपों के साथ आनन्द करो ।’
"You are devotees. I have no hesitation in telling you this. Nowadays I don't see the Spirit-form of God. He is revealed to me in human form. It is my nature to see the form of God, to touch and embrace Him. God is saying to me, 'You have assumed a body; therefore enjoy God through His human forms.'}
{“ভক্ত তোমরা, তোমাদের বলতে কি; আজকাল ঈশ্বরের চিন্ময় রূপ দর্শন হয় না। এখন সাকার নররূপ এইটে বলে দিচ্ছে। আমার স্বভাব ঈশ্বরের রূপ দর্শন-স্পর্শন-আলিঙ্গন করা। এখন বলে দিচ্ছে, ‘তুমি দেহধারণ করেছ, সাকার নররূপ লয়ে আনন্দ কর।’
“वे तो सभी भूतों में विद्यमान हैं, परन्तु मनुष्य में अधिक प्रकट हैं ।
“मनुष्य क्या कम है जी ! ईश्वर का चिन्तन कर सकता है, अनन्त का चिन्तन कर सकता है; दूसरा कोई प्राणी ऐसा नहीं कर सकता ।
“दूसरे प्राणियों में, वृक्षलताओं में तथा सर्व भूतों में वे हैं, परन्तु मनुष्य में उनका अधिक प्रकाश है । “अग्नि-तत्त्व सर्व भूतों में है, सब चीजों में है, परन्तु लकड़ी में अधिक प्रकट है ।
“राम ने लक्ष्मण कहा था, ‘भाई, देखो हाथी इतना बड़ा जानवर है, परन्तु ईश्वर का चिन्तन नहीं कर सकता ।’
"God no doubt dwells in all, but He manifests Himself more through man than through other beings. Is man an insignificant thing? He can think of God, he can think of the Infinite, while other living beings cannot. God exists in other living beings — animals, plants, nay, in all beings —, but He manifests Himself more through man than through these others. Fire exists in all beings, in all things; but its presence is felt more in wood. Rama said to Lakshmana: 'Look at the elephant, brother. He is such a big animal, but he cannot think of God.'}
{“তিনি তো সকল ভূতেই আছেন, তবে মানুষের ভিতর বেশি প্রকাশ।“মানুষ কি কম গা? ঈশ্বর চিন্তা করতে পারে, অনন্তকে চিন্তা করতে পারে, অন্য জীবজন্তু পারে না।“অন্য জীবজন্তুর ভিতরে; গাছপালার ভিতরে, আবার সর্বভূতে তিনি আছেন; কিন্তু মানুষে বেশি প্রকাশ।“অগ্নিতত্ত্ব সর্বভূতে আছে, সব জিনিসে আছে; কিন্তু কাষ্ঠে বেশি প্রকাশ।“রাম লক্ষ্মণকে বলেছিলেন, ভাই, দেখ হাতি এত বড় জানোয়ার; কিন্তু ঈশ্বরচিন্তা করতে পারে না।
“फिर अवतार में अधिक प्रकट हैं । राम ने लक्ष्मण से कहा था, ‘जिस मनुष्य में राग-भक्ति देखो – भाव में हँसता है, रोता है, नाचता है – वहीँ पर मैं हूँ ।’”
"But in the Incarnation there is a greater manifestation of God than in other men. Rama said to Lakshmana, 'Brother, if you see in a man ecstatic love of God, if he laughs, weeps, and dances in divine ecstasy, then know for certain that I dwell in him."}
{“আবার অবতারে বেশি প্রকাশ। রাম লক্ষ্মণকে বলেছিলেন, ভাই, যে মানুষে দেখবে ঊর্জিতা ভক্তি; ভাবে হাসে কাঁদে নাচে গায়, সেইখানেই আমি আছি।”
श्रीरामकृष्ण चुपचाप बैठे हैं । थोड़ी देर बाद फिर बातचीत करने लगे ।
The Master remained silent. After a few minutes he resumed the conversation.
[ঠাকুর চুপ করিয়া আছেন। কিয়ৎক্ষণ পরে আবার কথা কহিতেছেন।
[( 24 मई ,1884) श्रीरामकृष्ण वचनामृत-80]
🙏केशव चंद्र सेन तथा ब्रह्मसमाज (शुष्क -ज्ञान) पर श्री रामकृष्ण (भक्ति) का प्रभाव 🙏
[Influence of Sree Ramakrishna on Sj. Keshab Chandra Sen]
श्रीरामकृष्ण – अच्छा, केशव सेन बहुत आता था । यहाँ पर आकर तो वह बहुत बदल गया । हाल में तो उसमें बहुत कुछ विशेषता आ गयी थी । यहाँ दलबल के साथ कई बार आया था । फिर अकेले आने की इच्छा थी । केशव का पहले वैसा साधुसंग नहीं हुआ था ।
MASTER: "Keshab Sen used to come here frequently. As a result he changed a great deal. Of late he became quite a remarkable man. Many a time he came here with his party; but he also wanted to come alone. In the earlier years of his life Keshab didn't have much opportunity to live in the company of holy men.
[শ্রীরামকৃষ্ণ — আচ্ছা, কেশব সেন খুব আসত। এখানে এসে অনেক বদলে গেল। ইদানীং খুব লোক হয়েছিল। এখানে অনেকবার এসেছিল দলবল নিয়ে। আবার একলা একলা আসবার ইচ্ছা ছিল।“কেশবের আগে তেমন সাধুসঙ্গ হয় নাই।
[( 24 मई ,1884) श्रीरामकृष्ण वचनामृत-80]
🔆साधु के सामने पैर पर पैर रखकर नहीं बैठना चाहिए; उससे रजोगुण की वृद्धि होती है 🔆
“कोलूटोला के मकान पर भेंट हुई । हृदय साथ था । केशव सेन जिस कमरे में था, उसी कमरे में हमें बैठाया । मेज पर शायद कुछ लिख रहा था, बहुत देर बाद कलम छोड़कर कुर्सी से नीचे उतरकर बैठा। हमें नमस्कार आदि कुछ नहीं किया ।
I visited him at his house in Colootola Street. Hriday was with me. We were shown into the room where Keshab was working. He was writing something. After a long while he put aside his pen, got off his chair, and sat on the floor with us. But he didn't salute us or show us respect in any other way.
[“কলুটোলার বাড়িতে দেখা হল; হৃদে সঙ্গে ছিল। কেশব সেন যে-ঘরে ছিল, সেই ঘরে আমাদের বসালে। টেবিলে কি লিখছিল, অনেকক্ষণ পরে কলম ছেড়ে কেদারা থেকে নেমে বসল; তা আমাদের নমস্কার-টমস্কার করা নাই।"
“यहाँ पर कभी आता था । मैंने एक दिन भावविभोर स्थिति में कहा, ‘साधु के सामने पैर पर पैर रखकर नहीं बैठना चाहिए; उससे रजोगुण की वृद्धि होती है ।’ वह जब भी आता, मैं स्वयं उसे नमस्कार करता था; तब उसने धीरे धीरे भूमिष्ठ होकर नमस्कार करना सीखा ।
He used to come here now and then. One day in a spiritual mood I said to him: 'One should not sit before a sadhu with one leg over the other. That increases one's rajas.' As soon as he and his friends would arrive, I would salute them before they bowed to me. Thus they gradually learnt to salute a holy man, touching the ground with their foreheads.}
{“এখানে মাঝে মাঝে আসত। আমি একদিন ভাবাবস্থাতে বললাম সাধুর সম্মুখে পা তুলতে নাই। ওতে রজোগুণ বৃদ্ধি হয়। তারা এলেই আমি নমস্কার করতুম, তখন ওরা ক্রমে ভূমিষ্ঠ হয়ে নমস্কার করতে শিখলে।”
[( 24 मई ,1884) श्रीरामकृष्ण वचनामृत-80]
🔱🙏पाश्चात्य शिक्षा से प्रभावित ब्रह्मसमाज में 'हरिनाम और कालीकीर्तन' का प्रवेश 🔱🙏
[ব্রাহ্মসমাজে হরিনাম ও মার নাম — ভক্ত হৃদয়ে ঈশ্বরদর্শন ]
“फिर मैंने केशव से कहा, ‘तुम लोग /हरिनाम लिया करो, कलियुग में उनके नाम-गुणों का कीर्तन करना चाहिए ।’ तब उन लोगों ने खोल-करताल लेकर हरिनाम करना प्रारम्भ किया ।*
"I said to Keshab: 'Chant the name of Hari. In the Kaliyuga one should sing the name and glories of God.' After that they began to sing the name of God with drums and cymbals.2
[^For some years before meeting the Master, Keshab and his followers had been singing the name of "Brahma" to the accompaniment of drums and cymbals. After Meeting Sri Ramakrishna in 1875, Keshab showed particular devotion to the singing of the names of Hari and the Divine Mother. [Foot-note by M. in the Bengali Gospel of Sri Ramakrishna, vol. v, p. 113.]
[“আর কেশবকে বললাম, ‘তোমরা হরিনাম করো, কলিতে তাঁর নামগুণকীর্তন করতে হয়। তখন ওরা খোল-করতাল নিয়ে হরিনাম ধরলে।
(^ " ठाकुरदेव से मिलने के कुछ वर्ष पहले से ही केशव और उनके अनुयायी अपने ब्राह्म -अधिवेषणों में खोल-करताल लेकर "ब्रह्म " का नाम-संकीर्तन करते थे। श्रीरामकृष्ण के साथ १८७५ में साक्षात्कार होने के बाद से,*श्री केशव सेन विशेष रूप से हरिनाम तथा माँ काली के नाम का कीर्तन ‘खोल-करताल’ लेकर करने लगे । [ यह बात श्री रामकृष्ण कथामृत में दर्ज है, ११३.]
ॐ 🔆मुल्तान ^* (सूर्य मन्दिर) के साधु ने उपाय बताया था- नारदीय भक्ति 🔆ॐ
श्रीरामकृष्ण - “हरिनाम में मेरा और भी विश्वास क्यों हुआ ? इसी देवमंदिर में बीच बीच में संत लोग आया करते हैं । एक मुलतान का साधु ^* आया था, गंगासागर के यात्रियों के लिए प्रतीक्षा कर रहा था । (मास्टर को दिखाकर) इन्हीं की उम्र का होगा वह साधु । उसीने कहा था उपाय - नारदीय भक्ति ।
"Do you know how my faith in the name of Hari was all the more strengthened? Holy men, as you know, frequently visit the temple garden. Once a sadhu from Multan arrived. He was waiting for a party going to Gangasagar. (Pointing to M.) The sadhu was of his age. It was he who said to me, 'The way to realize God in the Kaliyuga is the path of bhakti as prescribed by Narada.'
[“হরিনামে বিশ্বাস আমার আরও হলো কেন? এই ঠাকুরবাড়িতে সাধুরা মাঝে মাঝে আসে; একটি মুলতানের সাধু এসেছিল, গঙ্গাসাগরের লোকের জন্য অপেক্ষা করছিল। (মাস্টারকে দেখাইয়া) এদের বয়সের সাধু। সেই বলেছিল, ‘উপায় নারদীয় ভক্তি’।”
[भारत में योग दिवस और खासकर सूर्य नमस्कार को लेकर कुछ कट्टर मुल्लाओं और कुछ मुस्लिम नेताओं ने काफी विवाद खड़ा किया था। उन्होंने सूर्य नमस्कार किए जाने की आपत्ति जताई थी। इस तरह की धार्मिक कट्टरता और राजनीति का कारण समझ से परे है। लेकिन सूर्य नमस्कार और मुस्लिम नेताओं के विरोध के कारण अचानक ध्यान पाकिस्तान की ओर चला जाता है। इसकी वजह है एक सूर्य मंदिर जो पाकिस्तान के मुल्तान में है। इस शहर का हिंदू भावनाओं और मान्यताओं (छठपूजा में सूर्य को अर्ग देने) के साथ गहरा नाता है। कार्तिक माह में सूर्य पूजा या छठ पूजा करने की परंपरा है। इसीलिए पौष-कार्तिक मास में सूर्य मंदिरों में दर्शन के लिए श्रद्धालु पहुंचते हैं। मुल्तान अथवा मुलतान आधुनिक पश्चिमी पाकिस्तान में चिनाब नदी के तट पर स्थित पश्चिमी पंजाब का एक महत्त्वपूर्ण प्राचीन नगर है। प्राचीन समय में मुल्तान को 'मूलस्थान' के नाम से जाना जाता था। इस स्थान का वर्णन हिन्दू धर्म के स्कन्दपुराण में भी आता है। देश-दुनिया में कई ऐसे सूर्य मंदिर हैं, जिनका इतिहास हजारों साल पुराना है, ऐसा ही एक मंदिर पाकिस्तान के मुल्तान क्षेत्र में स्थित है। यहां आदित्य सूर्य मंदिर है। इस मंदिर का इतिहास पांच हजार साल पुराना है। वही काल जहां श्रीकृष्ण अपने सखा अर्जुन को युद्ध में गीता का उपदेश दे रहे हैं। इसी कालखंड के सामानांतर श्रीकृष्ण की एक और कहानी है जो उनके खुद के पुत्र सांब से जुड़ी है.दरअसल श्रीकृष्ण और जामवन्त का पुत्र सांब निरंकुश हो गया था। अपने पिता की महानता और उनकी प्रसिद्धि और यश के कारण उसे गर्व हो गया था। वहीं उसका रूप भी श्रीकृष्ण जैसा ही था इसलिए उसे इसका भी अभिमान था. वह अक्सर अपने धन-बल, रूप का लाभ उठाकर स्त्रियों के साथ अनुचित व्यवहार करता था। एक बार उसने एक ऋषि का अपमान कर दिया, तब क्रोधित ऋषि ने उसे कुष्ठ रोग हो जाने का श्राप दे दिया। सांब को अपनी गलतियों का अहसास हुआ तब ऋषि ने अपने पुत्र को क्षमा करते हुए कहा कि तुम अगर सूर्य आराधना करो तब यह रोग समाप्त हो सकता है। मुल्तान मुस्लिमों द्वारा सबसे पहले विजित प्रदेशों में था। यह सिन्ध से पंजाब जाने वाले राजमार्ग पर स्थित है। प्रचलित कथा के अनुसार एक मणी की वजह से श्रीकृष्ण और जामवंत के बीच युद्ध हुआ था। इस युद्ध में जामवंत पराजित हुए। इसके बाद जामवंत ने अपनी पुत्री जामवंती का विवाह श्रीकृष्ण के करवा दिया। साम्ब श्रीकृष्ण और जामवंती के ही पुत्र थे। सांब के अधार्मिक कर्मों से क्रोधित होकर एक ऋषि ने सांब को गंभीर रोगी होने का शाप दे दिया। धीरे-धीरे सांब कमजोर होने लगा तब वे महर्षि कटक के पास गए। महर्षि ने उन्हें सूर्यदेव की आराधना करने के लिए कहा। ऋषि की बात मानकर साम्ब ने चंद्रभागा नदी के किनारे 12 वर्षों तक सूर्यदेव को प्रसन्न करने के लिए तपस्या की। इस तप के प्रभाव से वे स्वस्थ हो गए। इसके बाद में सांब ने मुल्तान में सूर्यदेव का मंदिर बनवाया। 10वीं शताब्दी में मंदिर में स्थित सूर्य मूर्ति मुल्तान के शासकों द्वारा नष्ट कर दी गई थी। जिसके अब अवशेष ही शेष हैं, मंदिर के संबंध में मान्यता है कि इस मंदिर का निर्माण द्वापर युग में यानी करीब 5000 साल पहले श्रीकृष्ण के पुत्र साम्ब ने करवाया था। 1947 को आजादी के साथ-साथ पाकिस्तान बनकर देश का एक हिस्सा भारत से अलग हुआ था। इसी के साथ सनातन काल से चली आ रही एकता की संस्कृति खंडित हो गई थी। यह सिर्फ दो मुल्कों का बंटवारा नहीं हुआ था, बल्कि एक देश में बसने वाली विविध संस्कृतियों और परंपराओं का बंटवारा हुआ था। आज भी भले ही पाकिस्तान अलग है, लेकिन आस्था के जो निशान अब भी वहां मौजूद हैं उनके प्रति अभी भी भारतीयों की श्रद्धा वैसी ही है, जैसी कि अपनी विरासत से होती है।]
[( 24 मई ,1884) श्रीरामकृष्ण वचनामृत]
🔆कामिनी-कांचन मछली की गंध - साधुसंग फूल की सुगंध - बीचबीच में गुरुगृहवास 🔆
[কামিনী-কাঞ্চন আঁষচুপড়ি — সাধুসঙ্গ ফুলের গন্ধ — মাঝে মাঝে নির্জনে সাধন ]
“केशव एक दिन आया था । रात के दस बजे तक रहा । प्रताप तथा अन्य किसी किसी ने कहा, ‘आज यहीं रहेंगे ।’ हम सब लोग वटवृक्ष के नीचे (पंचवटी में) बैठे थे । केशव ने कहा, ‘नहीं, काम है, जाना होगा ।’
“उस समय मैंने हँसकर कहा, मछली की टोकरी की गन्ध न होने पर क्या नींद नहीं आयेगी ?
एक मछली बेचनेवाली एक माली के घर अतिथि बनी थी । मछली बेचकर आ रही थी, साथ में मछली की टोकरी थी । उसे फूलवाले कमरे में सोने को दिया गया । फूलों की गन्ध स यूसे अधिक रात तक नींद नहीं आयी । घरवाली ने उसकी यह दशा देखकर कहा, ‘क्यों तुम छटपटा क्यों रही हो ?’ उसने कहा, ‘कौन जाने भाई ! शायद इस फूल की गन्ध से ही नींद नहीं आ रही है । मेरी मछली की टोकरी जरा ला दो तो सम्भव है नींद आ जाय ।’ अन्त में मछली की टोकरी लायी । उस पर जल छिड़ककर उसने नाक के पास रख ली । फिर खर्राटे के साथ सो गयी ।
One day Keshab came here with his followers. They stayed till ten at night. We were all seated in the Panchavati. Pratap and several others said they would like to spend the night here. Keshab said: 'No, I must go. I have some work to do.' I laughed and said: 'Can't you sleep without the smell of your fish-basket? Once a fishwife was a guest in the house of a gardener who raised flowers. She came there with her empty basket, after selling fish in the market, and was asked to sleep in a room where flowers were kept. But, because of the fragrance of the flowers, she couldn't get to sleep for a long time. Her hostess saw her condition and said, "Hello! Why are you tossing from side to side so restlessly?" The fishwife said: "I don't know, friend. Perhaps the smell of the flowers has been disturbing my sleep. Can you give me my fish-basket? Perhaps that will put me to sleep." The basket was brought to her. She sprinkled water on it and set it near her nose. Then she fell sound asleep and snored all night.'
[“কেশব একদিন এসেছিল; রাত দশটা পর্যন্ত ছিল। প্রতাপ আর কেউ কেউ বললে, আজ থেকে যাব; সব বটতলায় (পঞ্চবটীতে) বসে; কেশব বললে, না কাজ আছে, যেতে হবে।"“তখন আমি হেসে বললাম, আঁষচুপড়ির গন্ধ না হলে কি ঘুম হবে না? একজন মেছুনী মালীর বাড়িতে অতিথি হয়েছিল; মাছ বিক্রি করে আসছে; চুপড়ি হাতে আছে। তাকে ফুলের ঘরে শুতে দেওয়া হল। অনেক রাত পর্যন্ত ফুলের গন্ধে ঘুম হচ্ছে না; বাড়ির গিন্নী সেই অবস্থা দেখে বললে, কিগো, তুই ছটফট করছিস কেন? সে বললে, কে জানে বাবু, বুঝি এই ফুলের গন্ধে ঘুম হচ্ছে না; আমার আঁষচুপড়িটা আনিয়ে দিতে পার? তা হলে বোধহয় ঘুম হতে পারে। শেষে আঁষচুপড়ি আনাতে জল ছিটে দিয়ে নাকের কাছে রেখে ভোঁস ভোঁস করে ঘুমাতে লাগল।
“कहानी सुनकर केशव के दलवाले जोर से हँसने लगे ।
At this story the followers of Keshab burst into loud laughter.
[“গল্প শুনে কেশবের দলের লোকেরা হো-হো করে হাসতে লাগল।"
[( 24 मई ,1884) श्रीरामकृष्ण वचनामृत]
🔆भक्त (शिविरार्थी भाइयों) की पूजा से भगवान् की पूजा होती है 🔆
“केशव ने सायंकाल के बाद गंगाघाट में उपासना की । उपासना के बाद मैंने केशव से कहा, ‘देखो, भगवान् ही एक रूप में भागवत बने हैं, इसीलिए वेद, पुराण, तन्त्र इन सब की पूजा करनी चाहिए । फिर एक रूप में वे भक्त बने हैं; भक्त का हृदय उनका बैठकघर है । बैठकघर में जाने से अनायास ही बाबू का दर्शन होता है । इसीलिए भक्त की पूजा से भगवान् की पूजा होती है ।’
"Keshab conducted the prayer that evening at the bathing-ghat on the river. After the worship I said to him: 'It is God who manifests Himself, in one aspect, as the scriptures; therefore one should worship the sacred books, such as the Vedas, the Puranas, and the Tantras. In another aspect He has become the devotee. The heart of the devotee is God's drawing-room. One can easily find one's master in the drawing-room. Therefore, by worshipping His devotee, one worships God Himself.'}
{“কেশব সন্ধ্যার পর ঘাটে উপাসনা করলে। উপাসনার পর আমি কেশবকে বললুম, দেখ, ভগবানই একরূপে ভাগবত হয়েছেন, তাই বেদ, পুরাণ, তন্ত্র — এ-সব পূজা করতে হয়। আবার একরূপে তিনি ভক্ত হয়েছেন, ভক্তের হৃদয় তাঁর বৈঠকখানা; বৈঠকখানায় গেলে যেমন বাবুকে অনায়াসে দেখা যায়। তাই ভক্তের পূজাতে ভগবানের পূজা হয়।
“केशव तथा उनके दलवालों ने इन बातों को बड़े ध्यान से सुना । पूर्णिमा की रात, चारों ओर चाँदनी फैली हुई थी । गंगातट पर सीढ़ी के ऊपर हम लोग बैठे हुए थे । मैंने कहा, सभी लोग कहो, ‘भागवत भक्त भगवान ।’
“उस समय सभी ने एक स्वर से कहा, ‘भागवत भक्त भगवान ।’ फिर मैंने कहा, ‘कहो ब्रह्म ही शक्ति, शक्ति ही ब्रह्म है ।’ उन्होंने फिर एक स्वर में कहा, ‘ब्रह्म ही शक्ति, शक्ति ही ब्रह्म है ।’ मैंने उनसे कहा, ‘जिसे तुम ब्रह्म कहते हो, उसी को मैं माँ कहता हूँ । माँ बहुत मीठा नाम है ।’
"Keshab and his followers listened to my words with great attention. It was a full-moon night. The sky was flooded with light. We were seated in the open court at the top of the stairs leading to the river. I said, 'Now let us all chant, "Bhagavata — Bhakta — Bhagavan."' All chanted in unison, 'Bhagavata — Bhakta — Bhagavan.' Next I said to them, 'Say, "Brahman is verily Sakti; Sakti is verily Brahman."' Again they chanted in unison, 'Brahman is verily Sakti; Sakti is verily Brahman.' I said to them: 'He whom you address as Brahma is none other than She whom I call Mother. Mother is a very sweet name.'
[“কেশব আর তার দলের লোকগুলি এই কথাগুলি খুব মন দিয়ে শুনলে। পূর্ণিমা, চারিদিকে চাঁদের আলোক। গঙ্গাকূলে সিঁড়ির চাতালে সকলে বসে আছে। আমি বললাম, সকলে বল, ‘ভাগবত-ভক্ত-ভগবান।’তখন সকলে একসুরে বললে, ‘ভাগবত-ভক্ত-ভগবান’। আবার বললাম, বল, ‘ব্রহ্মই শক্তি, শক্তিই ব্রহ্ম।’ তারা আবার একসুরে বললে, ‘ব্রহ্মই শক্তি, শক্তিই ব্রহ্ম।’ তাদের বললাম, যাঁকে তোমরা ব্রহ্ম বল, তাঁকেই আমি মা বলি; মা বড় মধুর নাম।
“जब फिर उनसे कहा, ‘फिर कहो, गुरु -कृष्ण - वैष्णव ।’^ उस समय केशव बोला, ‘महाराज, उतनी दूर नहीं । इससे तो सभी लोग हमें कट्टर वैष्णव समझेंगे ।’ॐ
"Then I said to them, 'Say, "Guru — Krishna — Vaishnava."'3 At this Keshab said: 'We must not go so far, sir. If we do that, then all will take us for orthodox Vaishnavas.'
[“যখন আবার তাদের বললাম, আবার বল, ‘গুরু কৃষ্ণ বৈষ্ণব’। তখন কেশব বললে, মহাশয় অতদূর নয়! তাহলে সকলে আমাদের গোঁড়া বৈষ্ণব মনে করবে।
[^ ठाकुर देव के तीन नारे -(१) कहो भागवत,भक्त और भगवान समानरूप से पूजनीय हैं ! (२ ) कहो , ब्रह्म ही शक्ति हैं , शक्ति ही ब्रह्म है ! दोनों समान रूप से पूजनीय हैं ! (३) कहो , गुरु, कृष्ण और वैष्णव (महामण्डल कर्मी) सामान रूप से पूजनीय हैं ! ठाकुरदेव के कहने का तात्पर्य था कि गुरु (नेता-CINC नवनीदा) , कृष्ण (पुरुषोत्तम-ठाकुरदेव, माँ और स्वामीजी ) और वैष्णव (ज्ञानी -भक्त) समान रूप से पूजनीय थे। वैष्णव का सम्मान (महामण्डल कर्मियों का सम्मान ) करना चाहिए, क्योंकि भगवान (स्वामी जी, माँ और ठाकुर ) प्रत्येक महामण्डल कर्मी के हृदय में निवास करते हैं।^The Master meant that the guru, Krishna, and the Vaishnava were to be equally revered. One should honour the Vaishnava because God dwells in his heart.]
“केशव से बीच बीच में कहता था, जिसे तुम लोग ब्रह्म कहते हो, उसी को मैं शक्ति, आद्याशक्ति कहता हूँ । जिस समय वे वाणी एवं मन से परे, निर्गुण, निष्क्रिय हैं, उस समय वेद में उन्हें ब्रह्म कहा है । जब देखता हूँ कि वे सृष्टि, स्थिति, प्रलय कर रहे हैं, तब उन्हें शक्ति, आद्याशक्ति आदि सब कहता हूँ ।
I used to tell Keshab now and then: 'He whom you address as Brahma is none other than She whom I call Sakti, the Primal Energy. It is called Brahman in the Vedas when It transcends speech and thought and is without attributes and action. I call It Sakti, Adyasakti, and so forth, when I find It creating, preserving, and destroying the universe.'
[“কেশবকে মাঝে মাঝে বলতাম, তোমরা যাঁকে ব্রহ্ম বল, তাঁকেই আমি শক্তি, আদ্যাশক্তি বলি। যখন বাক্য-মনের অতীত, নির্গুণ, নিষ্ক্রিয়, তখন বেদে তাঁকে ব্রহ্ম বলেছে। যখন দেখি যে তিনি সৃষ্টি-স্থিতি-প্রলয় করছেন তখন তাঁকে শক্তি, আদ্যাশক্তি — এই সব বলি।"
[( 24 मई ,1884) श्रीरामकृष्ण वचनामृत]
🔆पक्के होकर (अवतार वरिष्ठ में नारदीय भक्ति प्राप्त कर) संसार (गृहस्थ जीवन में) में रहो ! 🔆
“केशव से कहा, ‘गृहस्थी में रहकर साधना होना बड़ा कठिन है – जिस कमरे में अचार, इमली और जल का घड़ा हो उस कमरे में रहकर सन्निपात का रोगी कैसे अच्छा हो सकता है ? इसीलिए बीच बीच में साधन-भजन करने के लिए निर्जन स्थान (महामण्डल कैम्प ) में चले जाना चाहिए । वृक्ष का तना मोटा होने पर उसमें हाथी बाँध दिया जा सकता है, परन्तु पौधों को गाय-बछिया-बकरे चर जाते हैं ।’ इसीलिए केशव ने व्याख्यान में कहा, ‘तुम लोग पक्के बनकर संसार में रहो ।’
"I said to Keshab: 'It is extremely difficult to realize God while leading a worldly life. How can a typhoid patient be cured if he is kept in a room where tamarind, pickle, and jars of water are kept? Therefore one should go into solitude now and then to practise spiritual discipline. When the trunk of a tree becomes thick and strong, an elephant can be tied to it; but a young sapling is eaten by cattle.' That is why Keshab would say in his lectures, "Live in the world after being strengthened in spiritual life.'
[“কেশবকে বললাম, সংসারে হওয়া বড় কঠিন — যে-ঘরে আচার আর তেঁতুল আর জলের জালা, সেই ঘরেই বিকারী রোগী কেমন করে ভাল হয়; তাই মাঝে মাঝে সাধন-ভজন করবার জন্য নির্জনে চলে যেতে হয়। গুঁড়ি মোটা হলে হাতি বেঁধে দেওয়া যায়, কিন্তু চারা গাছ ছাগল-গরুতে খেয়ে ফেলে। তাই কেশব লেকচারে বললে, তোমরা পাকা হয়ে সংসারে থাক।”
[( 24 मई ,1884) श्रीरामकृष्ण वचनामृत]
🔆ठाकुदेव का भक्तों को उपदेश - " आगे बढ़ो !" जब तक नवनीदा जैसे नेता न मिलें रुको मत 🔆
[অধর, মাস্টার, নিতাই প্রভৃতিকে উপদেশ — “এগিয়ে পড়” ]
(भक्तों के प्रति) “देखो, केशव इतना बड़ा पण्डित, अंग्रेजी में लेक्चर देता था, कितने लोग उसे मानते थे, स्वयं सम्राज्ञी विक्टोरिया ने उसके साथ बैठकर बातचीत की है । परन्तु वह जब यहाँ आता था, तो नंगे बदन; साधुओं का दर्शन करना हो तो हाथ में कुछ लाना चाहिए, इसीलिए फल हाथ में लेकर आता था । बिलकुल अभिमानशून्य ।
(To the devotees) "You see, Keshab was a great scholar. He lectured in English. Many people honoured him. Queen Victoria herself talked to him. But when Keshab came here he would be bare-bodied and bring some fruit, as one should when visiting a holy man. He was totally free from egotism.
[(ভক্তদের প্রতি) — “দেখ, কেশব এত পণ্ডিত ইংরাজীতে লেকচার দিত, কত লোকে মানত; স্বয়ং কুইন ভিক্টোরিয়া তার সঙ্গে বসে কথা কয়েছে। সে কিন্তু এখানে যখন আসত, শুধু গায়ে; সাধুদর্শন করতে হলে হাতে কিছু আনতে হয়, তাই ফল হাতে করে আসত। একেবারে অভিমানশূন্য।
(अधर के प्रति) “देखो तुम इतने बड़े विद्वान्, फिर डेपुटी हो, फिर भी स्त्री के ऐसे वश में हो । आगे बढ़ो। चन्दन की लकड़ी के बाद भी और अच्छी अच्छी चीजें; चाँदी की खान, उसके बाद सोने की खान, उनके बाद हीरा, जवाहिरात । लकड़हारा वन में लकड़ी काट रहा था, इसीलिए ब्रह्मचारी ने उससे कहा, ‘आगे बढ़ो ।’
(To Adhar) "You are a scholar and a deputy magistrate, but with all that you are hen-pecked. Go forward. Beyond the forest of sandal-wood there are many more valuable things: silver-mines, gold-mines, diamonds, and other gems. The wood-cutter was chopping wood in the forest; the brahmachari said to him, 'Go forward.'"
[(অধরের প্রতি) — “দেখ, তুমি এত বিদ্বান আবার ডেপুটি, তবু তুমি খাঁদী-ফাঁদির বশ। এগিয়ে পড়। চন্দন কাঠের পরেও আরও ভাল ভাল জিনিস আছে; রূপার খনি, তারপর সোনার খনি, তারপর হীরা মাণিক। কাঠুরে বনে কাঠ কাটছিল, তাই ব্রহ্মচারী তাকে বললে, ‘এগিয়ে পড়’।”
शिवमन्दिर से उतरकर श्रीरामकृष्ण आँगन में से होकर अपने कमरे की ओर आ रहे हैं । साथ हैं अधर, मास्टर आदि भक्तगण । इसी समय विष्णुघर के सेवक पुजारी श्री राम चैटर्जी ने आकर समाचार दिया – श्री श्रीमाँ की नौकरानी को हैजा हुआ है ।
Sri Ramakrishna came down from the steps of the Siva temples and went to his own room through the courtyard. The devotees were with him. Just then Ram Chatterji came and said that the Holy Mother's attendant had had an attack of cholera.
[শিবের মন্দির হইতে অবতরণ করিয়া শ্রীরামকৃষ্ণ প্রাঙ্গণের মধ্য দিয়া নিজের ঘরের দিকে আসিতেছেন। সঙ্গে অধর, মাস্টার প্রভৃতি ভক্তেরা। এমন সময় বিষ্ণুঘরের সেবক পূজারী শ্রীযুক্ত রাম চাটুজ্যে আসিয়া খবর দিলেন শ্রীশ্রীমার পরিচারিকার কলেরা হইয়াছে।
राम चैटर्जी – (श्रीरामकृष्ण के प्रति) – मैंने तो दस बजे ही कहा था, आप लोगों ने नहीं सुना ।
RAM (to the Master): "I told you about it at ten o'clock this morning, but you didn't pay any attention to me."
[রাম চাটুজ্জে (শ্রীরামকৃষ্ণের প্রতি) — আমি তো দশটার সময় বললুম, আপনারা শুনলেন না।
[রাম চাটুজ্যে — কথামৃতে তাঁহাকেও কখনও রাম চক্তবর্তী বলিয়া উল্লেখ করা আছে। দক্ষিণেশ্বরেই থাকিতেন। ঠাকুরের ভক্ত। ঠাকুর তাঁহার তত্ত্বাবধানের প্রশংসা করিতেন, কারণ ঠাকুরের ভক্তদের আহারাদি সম্পর্কে তিনি সর্বদা যত্নবান ছিলেন। তিনি দক্ষিণেশ্বরে ৺রাধা-গোবিন্দ মন্দিরের পূজারী ছিলেন। দক্ষিণেশ্বর ত্যাগ করিয়া অসুস্থ অবস্থায় ঠাকুর কাশীপুরে থাকাকালীন রাম চাটুজ্যে নিয়মিত তাঁহার খোঁজখবর লইতেন।
श्रीरामकृष्ण – मैं क्या करूँ ?
MASTER: "What could I do?"
[শ্রীরামকৃষ্ণ — আমি কি করব?
राम चैटर्जी – आप क्या करेंगे ? राखाल, रामलाल ये सब थे, उनमें से किसी ने कुछ न किया ।
RAM: "Yes, what could you do! But there were Rakhal, Ramlal, and others. Even they didn't pay any attention."
[রাম চাটুজ্জে — আপনি কি করবেন? রাখাল, রামলাল এরা সব ছিল, ওরা কেউ কিছু করলে না।
मास्टर – किशोरी (गुप्त) दवा लाने गया है, आलमबाजार से ।
M: "Kishori has gone to Alambazar to get medicine."
[মাস্টার — কিশোরী (গুপ্ত) ঔষধ আনতে গেছে আলমবাজারে।
श्रीरामकृष्ण – क्या अकेला ही ? कहाँ से लायेगा ?
MASTER: "Alone? Where will he get medicine?"
[শ্রীরামকৃষ্ণ — কি, একলা? কোথা থেকে আনবে?
मास्टर – और कोई साथ नहीं है । आलमबाजार से लायेगा ।
[মাস্টার — আর কেহ সঙ্গে নাই। আলমবাজার থেকে আনবে।
M: "Yes, alone. He will get it at Alambazar."
श्रीरामकृष्ण – (मास्टर के प्रति) – जो लोग रोगी की देखभाल कर रहे हैं उन्हें समझा दो कि रोग बढ़ने पर क्या करना होगा । और रोग कम होने पर क्या खायेगी यह भी बता दो ।
MASTER (to M.): "Tell the nurse what to do if the illness takes a turn for the worse or if the patient feels better."
[শ্রীরামকৃষ্ণ (মাস্টারের প্রতি) — যারা রোগীকে দেখেছে তাদের বলে দাও বাড়লে কি করতে হবে; কমলেই বা কি খাবে।
मास्टर – जी, अच्छा ।
[মাস্টার — যে আজ্ঞা।
M: "Yes, sir."
अब घूँघटवाली भक्त स्त्रियों ने आकर प्रणाम किया । उन्हने बिदा ली ।
श्रीरामकृष्ण उनसे फिर बोले, “शिवपूजा जैसे कहा वैसे किया करो; और खा-पीकर आया करो । नहीं तो मुझे कष्ट होता है । स्नान-यात्रा के दिन फिर आने की चेष्टा करना ।”
The ladies mentioned before saluted the Master and were about to take their leave. Sri Ramakrishna again said to them: "Perform the Siva Puja according to my instruction. And have something to eat before you come here. Otherwise I shall feel unhappy. Come another day."
[ভক্তবধুগণ এইবারে আসিয়া প্রণাম করিলেন। তাঁহারা বিদায় গ্রহণ করিলেন। শ্রীরামকৃষ্ণ তাঁদের আবার বললেন, “শিবপূজা যেমন বললাম ওইরূপ করবে। আর খেয়ে দেয়ে এসো, তা না হলে আমার কষ্ট হয়। স্নানযাত্রার দিন আবার আসবার চেষ্টা করো।”
अब श्रीरामकृष्ण पश्चिम के गोल बरामदे में आकर बैठे हैं । बन्ध्योपाध्याय, हरि, मास्टर आदि पास बैठे हैं। बन्ध्योपाध्याय के सब पारिवारिक कष्ट श्रीरामकृष्ण जानते हैं ।
Sri Ramakrishna sat down on the porch west of his room. Narendra Bannerji, Hari, M., and others sat by his side. The Master knew about Narendra's family difficulties.
[শ্রীরামকৃষ্ণ এইবার পশ্চিমের গোল বারান্দায় আসিয়া বসিয়াছেন। বন্দ্যোপাধ্যায়, হরি, মাস্টার প্রভৃতি কাছে বসিয়া আছেন। বন্দ্যোপাধ্যায়ের সংসারে কষ্ট ঠাকুর সব জানেন।
[( 24 मई ,1884) श्रीरामकृष्ण वचनामृत]
🔆गृहस्थ भक्त को उपदेश - 'देखो एक कौपीन के वास्ते यतो कष्ट' 🔆
[शुन शुन नित्यानन्द भाई संसारी जीवेर कोभु गति नाई]
[বন্দ্যোকে শিক্ষা — ভার্যা সংসারের কারণ — শরণাগত হও ]
"শুন শুন নিত্যানন্দ ভাই সংসারী জীবের কভু গতি নাই।"
श्रीरामकृष्ण – देखो, ‘एक कौपीन’ के लिए सब कष्ट हैं । विवाह करके बालबच्चे हुए हैं, इसीलिए नौकरी करनी पड़ती है । साधु कौपीन लेकर परेशान है । संसारी परेशान है भार्या लेकर । फिर घरवालों के साथ बनाव नहीं है, इसीलिए अलग मकान करना पड़ा । (हँसकर) चैतन्यदेव ने नित्यानन्द से कहा था, ‘सुनो, सुनो, नित्यानन्दभाई, संसारी जीव (entangled in worldliness) की कभी गति नहीं है ।’
MASTER: "You see, all these sufferings are 'because of a piece of loin-cloth'.^ A man takes a wife and begets children; therefore he must secure a job. The sadhu is worried about his loin-cloth, and the householder about his wife. Further, the householder may not live on good terms with his relatives; so he must live separately with his wife. (With a laugh) Chaitanya once said to Nityananda: 'Listen to me, brother. A man entangled in worldliness can never be free.'
[শ্রীরামকৃষ্ণ — দেখ, “এক কপ্নিকে বাস্তে” যত কষ্ট। বিবাহ করে, ছেলেপুলে হয়েছে, তাই চাকরি করতে হয়; সাধু কপ্নি লয়ে ব্যস্ত, সংসারী ভার্যা লয়ে। আবার বাড়ির সঙ্গে বনিবনাও নাই, তাই — আলাদা বাসা করতে হয়েছে। (সহাস্য) চৈতন্যদেব নিতাইকে বলেছিলেন, "শুন শুন নিত্যানন্দ ভাই সংসারী জীবের কভু গতি নাই।"
^ श्री रामकृष्ण अक्सर अपने भक्तों को निम्नलिखित कहानी- " केवल एक कौपीन के कारण सारे कष्ट हैं ! " सुनाया करते थे। कहीं एक संन्यासी रहता था , जिसके पास केवल दो जोड़ी लंगोटी थी। एक दिन एक चूहे ने एक लंगोटी को कुतर दिया। इसलिए साधु ने अपनी लंगोटी को चूहे से बचाने के लिए एक बिल्ली पाल ली। फिर उसे बिल्ली को दूध देने के लिए एक गाय रखनी पड़ी। बाद में उन्हें गाय की देखभाल के लिए एक नौकर रखना पड़ा। धीरे-धीरे उनकी गायों की संख्या कई गुना बढ़ गई। तब उन्होंने उन गायों को चराने के चारागाह और कृषि योग्य भूमि को भी खरीद लिया। फिर उन्हें कई नौकरों को नियुक्त करना पड़ा। इस प्रकार वह कालांतर में वह संन्यासी एक प्रकार का जमींदार बन गया। और, आखिरकार, उसे अपने बड़े घर की देखभाल के लिए एक पत्नी भी स्वीकार करनी पड़ी। ले एक दिन, " उसके एक गुरुभाई उससे मिलने आये , और उसकी बदली हुई परिस्थितियों को देखकर हैरान रह गए ! कारण पूछने पर, उस पुराने संन्यासी गुरुभाई ने कहा, "यह सब एक कौपीन के कारण हुआ है! "
मास्टर – (मन ही मन) – सम्भव है, श्रीरामकृष्ण अविद्या के संसार की बात कर रहे हैं । सम्भव है, अविद्या के संसार में ‘संसारी जीव’ (A man entangled in worldliness) रहते हैं ।
^A reference to the following story, which Sri Ramakrishna often told his devotees: There was a sannyasi whose only possession was two pairs of loin-cloths. One day a mouse nibbled at one piece. So the holy man kept a cat to protect his loin-cloths from the mouse. Then he had to keep a cow to supply milk for the cat. Later he had to engage a servant to look after the cow. Gradually the number of his cows multiplied. He acquired pastures and farm land. He had to engage a number of servants. Thus he became, in course of time, a sort of landlord. And, last of all, he had to take a wife to look after his big household. One day, one of "is friends, another monk, happened to visit him and was surprised to see his altered circumstances. When asked the reason, the holy man said, "It is all for the sake of a piece of loin-cloth!"
[M. (to himself): "Perhaps the Master is referring to the world of avidya. It is the world of avidya that entangles a householder."M. was still living in a separate house with his wife, on account of a misunderstanding with the other members of his family.]
[(মাস্টার (স্বগত) — ঠাকুর বুঝি অবিদ্যার, সংসারের কথা বলছেন। অবিদ্যার সংসারেই বুঝি “সংসারী জীব” থাকে।
श्रीरामकृष्ण – (मास्टर को दिखाकर बन्ध्योपाध्याय के प्रति) – ये सभी अलग मकान लेकर रहते हैं । एक समय दो मनुष्यों की भेंट हुई । एक ने दूसरे से पूछा, ‘तुम कौन हो ?’ दूसरे ने कहा, ‘मैं हूँ विदेशी।’ फिर उसने पहले से पूछा, ‘और तुम कौन हो ?’ – ‘मैं हूँ विरही ।’ (सभी हँसे ।) दोनों में अच्छा मेल होगा!
{“তবে তাঁর শরণাগত হলে আর ভয় নাই। তিনিই রক্ষা করবেন।”
"But one need not have any fear if one takes refuge in God. God protects His devotee."}
[( 24 मई ,1884) श्रीरामकृष्ण वचनामृत]
🔆कुछ लोगों को आत्मदर्शन में उतना विलम्ब क्यों होता है ?🔆
हरि – अच्छा, कुछ लोगों को उन्हें प्राप्त करने में उतना विलम्ब क्यों होता है ?
HARI: "Well, why does it take many people such a long time to realize Him?"
[হরি প্রভৃতি — আচ্ছা, অনেকের তাঁকে লাভ করতে অত দেরি হয় কেন?
श्रीरामकृष्ण – बात क्या है, जानते हो ? – भोग और कर्म सामप्त हुए बिना व्याकुलता नहीं आती । वैद्य कहता है, दिन बीतने दो, उसके बाद साधारण औषधि से ही लाभ होगा ।’
"The truth is that a man doesn't feel restless for God unless he is finished with his enjoyments and duties. The physician says, referring to the patient: 'Let a few days pass first. Then a little medicine will do him good.')
{শ্রীরামকৃষ্ণ — কি জানো, ভোগ আর কর্ম শেষ না হলে ব্যাকুলতা আসে না। বৈদ্য বলে দিন কাটুক — তারপর সামান্য ঔষধে উপকার হবে।
“नारद ने राम से कहा, ‘राम ! तुम अयोध्या में बैठे हो, रावण का वध कैसे होगा ? तुम तो उसी के लिए अवतीर्ण हुए हो ।’ राम ने कहा, ‘नारद ! समय होने दो, रावण का कर्मक्षय होने दो, तब उसके वध की तैयारी होगी ।’”
"Narada said to Rama: 'Rama, You are passing Your time in Ayodhya. How will Ravana be killed? You have taken this human body for that purpose alone.' Rama replied: 'Narada, let the right time come. Let Ravana's past actions begin to bear fruit. Then everything will be made ready for his death.'}
{“নারদ রামকে বললেন, ‘রাম! তুমি অযোধ্যায় বসে রইলে রাবণবধ কেমন করে হবে? তুমি যে সেইজন্যে অবতীর্ণ হয়েছ!’ রাম বললেন, ‘নারদ! সময় হউক, রাবণের কর্ম-ক্ষয় হোক; তবে তার বধের উদ্যোগ হবে’।”
[( 24 मई ,1884) श्रीरामकृष्ण वचनामृत]
🔆विज्ञानी देखता है कि वे ही यह सब बने हुए हैं ~ श्रीरामकृष्ण की विज्ञानि स्थिति 🔆
[The problem of Evil and Hari (Turiyananda) — ঠাকুরের বিজ্ঞানীর অবস্থা ]
हरि – अच्छा, संसार में इतने दुःख क्यों है ?
HARI: "Why is there so much suffering in the world?"
[হরি — আচ্ছা, সংসারে এত দুঃখ কেন?
श्रीरामकृष्ण – यह संसार उनकी लीला है, खेल की तरह । इस लीला में सुख-दुःख, पाप-पुण्य, ज्ञान-अज्ञान भला-बुरा सब कुछ है; दुःख, पाप ये सब न रहने से लीला नहीं चलती ।”
MASTER: "This world is the lila of God. It is like a game. In this game there are joy and sorrow, virtue and vice, knowledge and ignorance, good and evil. The game cannot continue if sin and suffering are altogether eliminated from the creation.
[শ্রীরামকৃষ্ণ — এ সংসার তাঁর লীলা; খেলার মতো। এই লীলায় সুখ-দুঃখ, পাপ-পুণ্য, জ্ঞান-অজ্ঞান, ভাল-মন্দ — সব আছে। দুঃখ, পাপ — এ-সব গেলে লীলা চলে না।
“लुका-लुकौवल खेल में खूँटी छूना पड़ता है । खेल के प्रारम्भ में ही ढाई छूने पर वह सन्तुष्ट नहीं होती । ईश्वर(ढाई) की इच्छा है कि खेल कुछ देर तक चलता रहे । उसके बाद – ‘लाखों पतंगों में से दो एक कटते हैं, माँ, तब तुम हँसती हुई हथेली बजाती हो !’
"In the game of hide-and-seek one must touch the 'granny' in order to be free. But the 'granny' is never pleased if she is touched at the very outset. It is God's wish that the play should continue for some time. Then —Out of a hundred thousand kites, at best but one or two break free;And Thou dost laugh and clap Thy hands, O Mother, watching them!
[“চোর চোর খেলায় বুড়ীকে ছুঁতে হয়। খেলার গোড়াতেই বুড়ী ছুঁলে বুড়ী সন্তুষ্ট হয় না। ঈশ্বরের (বুড়ির) ইচ্ছা যে খেলাটা খানিকক্ষণ চলে। তারপর। —ঘুড়ি লক্ষের দুটা-একটা কাটে,হেসে দাও মা, হাত-চাপড়ী।
“अर्थात् ईश्वर का दर्शन करके एक-दो व्यक्ति मुक्त हो जाते हैं – बहुत तपस्या के बाद, उनकी कृपा से । तब माँ आनन्द से हथेली बजाती है – ‘ओहो ! कट गया’ यह कहकर ।”
In other words, after the practice of hard spiritual discipline, one or two have the vision of God, through His grace, and are liberated. Then the Divine Mother claps Her hands in joy and exclaims, 'Bravo! There they go!'"
[ অর্থাৎ ঈশ্বরদর্শন করে দুই-একজন মুক্ত হয়ে যায়, অনেক তপস্যার পর, তাঁর কৃপায়। তখন মা আনন্দে হাততালি দেন, ‘ভো! কাটা!’ এই বলে।”
हरि – परन्तु इसी खेल में तो हमारे प्राण जो निकलते हैं !
HARI: "But this play of God is our death."
[হরি — খেলায় যে আমাদের প্রাণ যায়।
श्रीरामकृष्ण – (हँसकर) – तुम कौन हो कहो न ! ईश्वर ही सब कुछ बने हुए हैं – माया, जीव, जगत्, चौबीस तत्त्व ।
“साँप बनकर काटता हूँ, और ओझा बनकर झाड़-फूँक करता हूँ । वे विद्या, अविद्या दोनों ही बने हुए हैं। अविद्या-माया द्वार अज्ञानी जीव बने हुए है । विद्या-माया द्वारा तथा गुरु के रूप में ओझा बनाकर झाड़ –फूक कर रहे हैं ।
MASTER (smiling): "Please tell me who you are. God alone has become all this — maya, the universe, living beings, and the twenty-four cosmic principles. 'As the snake I bite, and as the charmer I cure.' It is God Himself who has become both vidya and avidya. He remains deluded by the maya of avidya, ignorance. Again, with the help of the guru, He is cured by the maya of vidya, Knowledge. As the snake I bite, and as the charmer I cure.' It is God Himself who has become both vidya and avidya. He remains deluded by the maya of avidya, ignorance. Again, with the help of the guru, He is cured by the maya of vidya, Knowledge.}
{'শ্রীরামকৃষ্ণ (সহাস্যে) — তুমি কে বল দেখি; ঈশ্বরই সব হয়ে রয়েছেন — মায়া, জীব, জগৎ, চতুর্বিংশতি তত্ত্ব। “সাপ হয়ে খাই, আবার রোজা হয়ে ঝাড়ি! তিনি বিদ্যা-অবিদ্যা দুই-ই হয়ে রয়েছেন। অবিদ্যা মায়ার অজ্ঞান হয়ে রয়েছেন, বিদ্যা মায়ার ও গুরুরূপে রোজা হয়ে ঝাড়ছেন।
“अज्ञान, ज्ञान, विज्ञान । ज्ञानी देखते हैं, वे ही कर्ता हैं । सृष्टि, स्थिति तथा संहार कर रहे हैं । विज्ञानी देखता है कि वे ही यह सब बने हुए हैं ।
[“অজ্ঞান, জ্ঞান, বিজ্ঞান। জ্ঞানী দেখেন তিনিই আছেন, তিনিই কর্তা — সৃষ্টি, স্থিতি, সংহার করছেন। বিজ্ঞানী দেখেন, তিনিই সব হয়ে রয়েছেন।"
Ignorance, Knowledge, and Perfect Wisdom. The jnani sees that God alone exists and is the Doer, that He creates, preserves, and destroys. The vijnani sees that it is God who has become all this.
[( 24 मई ,1884) श्रीरामकृष्ण वचनामृत]
🔆महाभाव की अवस्था 'लोटा ब्रह्म -थाली ब्रह्म ' के सामने भक्ति फीकी है 🔆
“महाभाव, प्रेम होने पर देखता है, उनके अतिरिक्त और कुछ भी नहीं है ।
“भाव के सामने भक्ति फीकी है । भाव पकने पर महाभाव, प्रेम !
After attaining mahabhava and prema one realizes that nothing exists but God. Bhakti pales before bhava. Bhava ripens into mahabhava and prema.}
{“মহাভাব, প্রেম হলে দেখে তিনি ছাড়া আর কিছুই নাই।“ভাবের কাছে ভক্তি ফিকে, ভাব পাকলে মহাভাব, প্রেম।"
(बन्ध्योपाध्याय के प्रति) “क्या तुम अभी भी ध्यान के समय घण्टे का शब्द सुनते हो ?”
"(To Bannerji) "Do you still hear that gong-like sound at the time of meditation?"
[(বন্দ্যোপাধ্যায়ের প্রতি) — “ধ্যানের সময় ঘন্টাশব্দ এখনও কি শোনা?”
बन्ध्यो. – रोज उसी शब्द को सुनता हूँ । फिर रूप का दर्शन ! एक बार मन द्वारा अनुभव कर लेने पर क्या वह फिर रुकता है ?
BANNERJI: "Yes, sir. Every day. Besides, I have visions of God's form. Do such things stop after the mind has once experienced them?"
[বন্দ্যো — রোজ ওই শব্দ শোনা! আবার রূপদর্শন! একবার মন ধরলে কি আর বিরাম হয়?
श्रीरामकृष्ण – (हँसकर) – हा; लकड़ी में एक बार आग लग जाने पर फिर बुझती नहीं । (भक्तों के प्रति) ये विश्वास की अनेक बातें जानते हैं ।
MASTER: "True. Once the wood catches fire, it cannot be put out. (To the devotees) He knows many things about faith."
[শ্রীরামকৃষ্ণ (সহাস্যে) — হাঁ, কাঠে একবার আগুন ধরলে আর নেবে না। (ভক্তদের প্রতি) — ইনি বিশ্বাসের কথা অনেক জানেন।
बन्ध्यो. – मेरा विश्वास बहुत अधिक है !
[বন্দ্যো — আমার বিশ্বাসটা বড় বেশি।
BANNERJI: "I have too much faith."
श्रीरामकृष्ण – अपने घर की औरतों को बलराम की लड़कियों के साथ लाना ।
MASTER: "Bring the women of your family with those of Balaram's."
[শ্রীরামকৃষ্ণ — তোমার বাড়ির মেয়েদের বলরামের মেয়েদের সঙ্গে এনো।
बन्ध्यो. – बलराम कौन हैं ?
[বন্দ্যো — বলরাম কে?
BANNERJI: "Who is Balaram?"
श्रीरामकृष्ण – बलराम को नहीं जानते ? बोसपाड़ा में घर है ।
[শ্রীরামকৃষ্ণ — বলরাম কে জানো না? বোসপাড়ায় বাড়ি।
MASTER: "Don't you know Balaram? He lives at Bosepara."
किसी सरलचित्त व्यक्ति को देखकर श्रीरामकृष्ण आनन्द में विभोर हो जाते हैं । बन्ध्योपाध्याय बहुत सरल हैं । निरन्जन ^ भी सरल हैं । इसीलिए उसे भी बहुत चाहते हैं ।
Sri Ramakrishna loved guileless people. Narendra Bannerji was absolutely guileless. The Master loved Niranjan5 because he, too, was without guile.
[সরলকে দেখিলে শ্রীরামকৃষ্ণ আনন্দে বিভোর হয়েন। বন্দ্যোপাধ্যায় খুব সরল; নিরঞ্জনকেও সরল বলে খুব ভালবাসেন।
श्रीरामकृष्ण – (मास्टर के प्रति) – तुम्हें निरन्जन से मिलने के लिए क्यों कह रहा हूँ ? यह देखने के लिए कि वह वास्तव में सरल है या नहीं ।
Sri Ramakrishna loved guileless people. Narendra Bannerji was absolutely guileless. The Master loved Niranjan5 because he, too, was without guile.
[শ্রীরামকৃষ্ণ (মাস্টারের প্রতি) — তোমায় নিরঞ্জনের সঙ্গে দেখা করতে বলছি কেন? সে সরল, সত্য কি না। এইটি দেখবে বলে।
[^ श्रीरामकृष्ण के एक युवा शिष्य, जो बाद में स्वामी निरंजनानन्द के नाम से स्वामी जी के गुरुभाई बन गए। ^A young disciple of the Master, who later became a monk under the name of Swami Niranjanananda.
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