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शुक्रवार, 28 मई 2021

🔆🙏🔆🙏ॐ परिच्छेद ~ 68, [(23 दिसंबर, 1883) श्रीरामकृष्ण वचनामृत-68 ] I have become! I am here! *अद्वैत – चैतन्य – नित्यानन्द ।* गुरु/नेता -रुपी श्रीरामकृष्ण के सानिध्य में -भाविनेताओं का दस दिन गुरुगृहवास ** मैं (निर्विकल्प समाधि से लौट) आया हूँ !’ (I have become! I am here!) जीव साज समरे , रणवेशे काल प्रवेशे तोर घरे ।'*श्रीरामकृष्ण और विशिष्ट द्वैतवाद* अवयव रहित परब्रह्म से इस विचित्र जगत का उत्पन्न होना असंगत नहीं है, *২आत्मनि चैवं विचित्राश्च हि ।। (वेदान्त सूत्र - २/१/२८)

*परिच्छेद~  ६८*

(१)

 [(23 दिसंबर, 1883)परिच्छेद ~ 68, श्रीरामकृष्ण वचनामृत-68 ]

  🔆🙏गुरु (C-IN-C) रुपी श्रीरामकृष्ण के सानिध्य में - मणि के गुरुगृहवास का 10 वां दिन🔆🙏

श्रीरामकृष्ण अपने कमरे के दक्षिण-पूर्ववाले बरामदे में राखाल, लाटू, मणि, हरीश आदि भक्तों के साथ बैठे हुए हैं । दिन के नौ बजे का समय होगा । रविवार, 23 दिसम्बर 1883। अगहन की कृष्णा नवमी है।

[ঠাকুর শ্রীরামকৃষ্ণ তাঁহার ঘরের দক্ষিণ-পূর্বের বারান্দায় রাখাল, লাটু, মণি, হরিশ প্রভৃতি ভক্তসঙ্গে বসিয়া আছেন। বেলা নয়টা হবে। রবিবার, অগ্রহায়ণ কৃষ্ণা নবমী, ২৩শে ডিসেম্বর, ১৮৮৩।

मणि को 'गुरुगृह-वास' (निर्जनवास) करते हुए आज दस दिन पूरे हो जाएंगे । श्री मनोमोहन कोन्नगर से आज सुबह आए हैं । श्रीरामकृष्ण के दर्शन और कुछ विश्राम करके आप कलकत्ता जाएंगे । हाजरा भी श्रीरामकृष्ण के पास बैठे हैं । नीलकण्ठ के गाँव के एक वैष्णव आज श्रीरामकृष्ण को गाना सुना रहे हैं ।

[মণির গুরুগৃহে বাসের আজ দশম দিবস। 10 days youth training camp -with C-IN-C]শ্রীযুত মনোমোহন কোন্নগর হইতে সকাল বেলা আসিয়াছেন। ঠাকুরকে দর্শন করিয়া ও কিয়ৎক্ষণ বিশ্রাম করিয়া আবার কলিকাতায় যাইবেন। হাজরাও ঠাকুরের কাছে বসিয়া আছেন। নীলকণ্ঠের দেশের একজন বৈষ্ণব ঠাকুরকে গান শুনাইতেছেন।

वैष्णव ने पहले नीलकण्ठ का गाना गाया –

`श्रीगौरंगसुंदर नव -नटवर तपतकांचन काय। 

करे स्वरुप विभिन्न , लुकाइये चिन्ह , अवतीर्ण नदियाय। 

(भावार्थ) – “श्रीगौरांग की सुन्दर देह तप्त-कांचन के समान है । वे नव-नटवर ही हो रहे हैं । परन्तु वे इस बार दूसरे ही स्वरूप से, अपने पहले के चिन्हों को छिपाकर नदिया में अवतीर्ण हुए हैं । कलिकाल का घोर अन्धकार दूर करने के लिए तथा उन्नत और उज्जवल प्रेमरस प्रकट करने के लिए तुम इस बार श्रीकृष्णावतार की नीली देह को महाभाव-स्वरूपिणी श्रीराधा की तप्त-कांचन जैसी उज्जवल देह से ढककर आए हो ।

 বৈষ্ণব প্রথমে নীলকণ্ঠের গান গাইলেন:

শ্রীগৌরাঙ্গসুন্দর নব-নটবর তপতকাঞ্চন কায়।

করে স্বরূপ বিভিন্ন, লুকাইয়ে চিহ্ন, অবতীর্ণ নদীয়ায়।

At nine o'clock in the morning Sri Ramakrishna was seated on the southwest porch of his room, with Rakhal, Latu, M., Harish, and. some other devotees. M. had now been nine days with the Master at Dakshineswar. Earlier in the morning Manomohan had arrived from Konnagar on his way to Calcutta. Hazra, too, was present.

नवीन संन्यासी सुतीर्थ अन्वेषी , कभू नीलाचल कभू जान काशी ;

अयाचक देन प्रेम राशि राशि , नाहि जातिभेद ताय।   

নবীন সন্ন্যাসী, সুতীর্থ অন্বেষী, কভু নীলাচলে কভু যান কাশী;

অযাচক দেন প্রেম রাশি রাশি, নাহি জাতিভেদ তায়;

तुम महाभाव में समारूढ़ हो, सात्त्विकादिक तुममें लीन हो जाते हैं । उस भावास्वाद के लिए तुम जंगलों में रोते फिरते हो । इससे प्रेम की बाढ़ हो आती है । तुम नवीन संन्यासी हो, अच्छे तीर्थों की खोज में रहते ही, कभी तुम नीलाचल और कभी वाराणसी जाते हो, अयाचकओं को भी तुम प्रेम का दान करते हो, तुम्हारे इस कार्य में जातिभेद नहीं है ।”

 [(23 दिसंबर, 1883)  श्रीरामकृष्ण वचनामृत-68 ]

🔆🙏जीव साज समरे,  रणवेशे काल प्रवेशे तोर घरे 🔆🙏

Maa Chinmastike 

[ जीव तू अमरत्व प्राप्त करने की साधना में जुट जा ; काल तेरे घर में प्रवेश कर रहा है]

 (‘জীব সাজ সমরে রণবেশে, কাল প্রবেশে তোর ঘরে।’)

एक दूसरा गाना उन्होंने मानसपूजा के सम्बन्ध में गाया ।

श्रीरामकृष्ण (हाजरा के प्रति) – यह गाना कैसा कैसा लगा ।

[শ্রীরামকৃষ্ণ (হাজরার প্রতি) — এ-গান (মানসপূজা) কি একরকম লাগল।]

हाजरा – यह गाना साधक के लिए  नहीं है, - ज्ञानदीपक, ज्ञानप्रतिमा जैसे शब्द  !

[হাজরা — এ সাধকের নয়, — জ্ঞান দীপ, জ্ঞান প্রতিমা!

श्रीरामकृष्ण – मुझे तो कैसा कैसा लगा !

“पहले के गाने कैसे ठीक होते थे ! पंचवटी में नागा के पास मैंने एक गाना गाया था –'जीव साज समरे , रणवेशे काल प्रवेशे तोर घरे ।‘जीवनसंग्राम (अमरत्व-प्राप्ति) के लिए तू तैयार हो जा, लड़ाई का सामान लेकर काल तेरे घर में प्रवेश कर रहा है।’ एक और गाना – दोष कारो नोय गो मा, आमि स्वखात सलिले डूबे मरि श्यामा।ऐ श्यामा, दोष किसी का नहीं है, मैं अपने ही हाथों द्वारा खोदे हुए गढ़े के पानी में डूबता हूँ ।’

[“আগেকার সব গান ঠিক ঠিক। পঞ্চবটীতে, ন্যাংটার কাছে আমি গান গেয়েছিলাম, — ‘জীব সাজ সমরে, রণবেশে কাল প্রবেশে তোর ঘরে।’ আর-একটা গান — ‘দোষ কারু নয় গো মা, আমি স্বখাত সলিলে ডুবে মরি শ্যামা।’

A Vaishnava was singing. Referring to one of the songs, Sri Ramakrishna said: "I didn't enjoy that song very much. The songs of the earlier writers seem to me to have more of the right spirit. Once I sang for Nangta at the Panchavati: To arms! To arms, O man! Death storms your house in battle array.' I sang another: 'O Mother, I have no one else to blame: Alas! I sink in the well these very hands have dug.'] 

“नागा एक वेदान्ती था , इतना ज्ञानी था, परन्तु इनका अर्थ बिना समझे ही रोने लगा था ।

“इन सब गानों में कैसी यथार्थ बात हैं –"भाबो श्रीकान्त नरकान्ताकारी रे नितान्त कृतान्त भायान्त होबी!   नरकान्तकारी श्रीकान्त की चिन्ता करो, फिर तुम्हें भयंकर काल का भी भय न रह जाएगा। “पद्मलोचन मेरे मुँह से रामप्रसाद का गाना सुनकर रोने लगा । पर था वह कितना विद्वान् !” 

[“ন্যাংটা অত জ্ঞানী, — মানে না বুঝেই কাঁদতে লাগল।“এ-সব গানে কেমন ঠিক ঠিক কথা —“ভাব শ্রীকান্ত নরকান্তকারীরে নিতান্ত কৃতান্ত ভয়ান্ত হবি!“পদ্মলোচন আমার মুখে রামপ্রসাদের গান শুনে কাঁদতে লাগল। দেখ, অত বড় পণ্ডিত!”

"Nangta, the Vedantist, was a man of profound knowledge. The song moved him to tears though he didn't understand its meaning. Padmalochan also wept when I sang the songs of Ramprasad about the Divine Mother. And he was truly a great pundit."

 [(23 दिसंबर, 1883)  श्रीरामकृष्ण वचनामृत-68 ]

🔆🙏 मणि का लीडरशिप ट्रेनिंग>  विशिष्ट द्वैतवाद-'एक' ही 'अनेक' बन गया है !🔆🙏

[भारतीय ईश्वर दर्शन (God-vision) ‘सियाराम मय सब जग जानी करहुं प्रनाम जोरि जुग पानी’ :' One has become many > Unity in Diversity ) की विशेषता- 'एक' ही 'अनेक' बन गया है ~  'अनेकता में एकता।" ब्रह्म ही जीव-जगत सब कुछ बन गए हैं !] 

भोजन के बाद श्रीरामकृष्ण कुछ विश्राम कर रहे हैं । जमीन पर मणि बैठे हुए हैं । नौबतखाने में शहनाई का वाद्य सुनते हुए श्रीरामकृष्ण आनन्द कर रहे हैं । फिर मणि को समझाने लगे--- 'ब्रह्म ही जीव-जगत् हुए हैं'। ( that Brahman alone has become the universe and all living beings.) 

[আহারের পর ঠাকুর একটু বিশ্রাম করিয়াছেন। মেঝেতে মণি বসিয়া আছেন। নহবতের রোশনচৌকি বাজনা শুনিতে শুনিতে ঠাকুর আনন্দ করিতেছেন। শ্রবণের পর মণিকে বুঝাইতেছেন, ব্রহ্মই জীবজগৎ হয়ে আছেন

After the midday meal Sri Ramakrishna rested a few minutes in his room. M. was sitting on the door. The Master was delighted to hear the music that was being played in the nahabat. He then explained to M. that Brahman alone has become the universe and all living beings.

श्रीरामकृष्ण – किसी ने कहा, 'अमुक स्थान पर हरिनाम नहीं है' -वहाँ का वातावरण पवित्र नहीं है। उसके कहते ही मैंने देखा, वही सब जीव * हुए हैं । मानो सच्चिदानन्द सागर (Pure Consciousness) के असंख्य बुलबुले – असंख्य जलबिम्ब ! 

(১* सर्वभूतस्थमात्मानं सर्वभूतानि चात्मनि।। गीता 6.29।। योगयुक्त अन्त:करण वाला और सर्वत्र समदर्शी योगी आत्मा को सब भूतों में और भूतमात्र को आत्मा में देखता है।।)

[ শ্রীরামকৃষ্ণ (মণির প্রতি) — কেউ বললে, অমুক স্থানে হরিনাম নাই। বলবামাত্রই দেখলাম, তিনিই সব জীব১* হয়ে আছেন। যেন অসংখ্য জলের ভুড়ভুড়ি — জলের বিম্ব! আবার দেখছি যেন অসংখ্য বড়ি বড়ি!

MASTER: "Referring to a certain place, someone once said to me: 'Nobody sings the name of God there. It has no holy atmosphere.' No sooner did he say this than I perceived that it was God alone who had become all living beings. They appeared as countless bubbles or reflections in the Ocean of Satchidananda.]

  [(23 दिसंबर, 1883)  श्रीरामकृष्ण वचनामृत-68 ] 

🙏जीवात्मा स्वप्न में दृश्य रचती है;  परमात्मा (जादूगर) अपनी माया (जादू) से सृष्टि रचता है 🙏

[वेदान्त सूत्र - २/१/२८ कहता है `आत्मनि चैवं विचित्राश् च हि ।।' (जैसे जीवात्मा स्वप्न में दृश्य रचती है ;ऐसे ही परमात्मा सृष्टि रचता है । ) अवयव रहित परब्रह्म से इस विचित्र जगत का उत्पन्न होना असंगत नहीं है!  इस विषय पर विवाद करने की आवश्यकता नहीं कि किस प्रकार एक ब्रह्मा के स्वरूप के तप से अनेक प्रकार के आकार हो जाते हैं? ]

“उस दिन से बर्दवान आते आते दौड़कर एक बार मैदान की ओर चला गया – यह देखने के लिए कि यहाँ के जीव किस तरह खाते हैं और रहते हैं ! जाकर देखा, मैदान में चींटियाँ रेंग रही हैं ! सभी जगह चैतन्यमय है !” 

.[ “ও-দেশ থেকে বর্ধমানে আসতে আসতে দৌড়ে একবার মাঠের পানে গেলাম, — বলি, দেখি, এখানে জীবরা কেমন করে খায়, থাকে! গিয়ে দেখি মাঠে পিঁপড়ে চলেছে! সব স্থানই চৈতন্যময়!”

"Again, I find sometimes that living beings are like so many pills made of Indivisible Consciousness. Once I was on my way to Burdwan from Kamarpukur. At one place I ran to the meadow to see how living beings are sustained. I saw ants crawling there. It appeared to me that every place was filled with Consciousness."]

हाजरा कमरे में आकर जमीन पर बैठ गए । 

श्रीरामकृष्ण – अनेक प्रकार के फूल – तह के तह पँखुड़ियाँ – यह भी देखा ! – छोटा बिम्ब और बड़ा बिम्ब । 

[শ্রীরামকৃষ্ণ — নানা ফুল — পাপড়ি থাক থাক২ তাও দেখেছি! — ছোট বিম্ব, বড় বিম্ব!

MASTER: "Again, I perceive that living beings are like different flowers with various layers of petals. They are also revealed to me as bubbles, some big, some small."

[ 🌼২ब्रह्म सूत्र : `आत्मनि चैवं विचित्राश् च हि ।।' (जैसे स्वप्न में दृश्य रचती है जीवात्मा;ऐसे ही सृष्टि रचता है परमात्मा। वेदान्त सूत्र - २/१/२८) अवयव रहित परब्रह्म से इस विचित्र जगत का उत्पन्न होना असंगत नहीं है, क्योंकि स्वप्न अवस्था में इस अवयव रहित निर्विकार जीवात्मा से नाना प्रकार की विचित्र श्रृष्टि होती देखी जाती है, यह सबके अनुभव की बात है । 28. And because in the individual soul also (as in the case of magicians etc.) diverse (creation exists). Similarly (with Brahman).In the dream state there appears in the individual self, which is one and indivisible, diversity resembling the waking state , and yet the indivisible character of the self is not marred by it. We see also magicians, for instance, producing a multiple creation without any change in themselves. Similarly this diverse creation springs from Brahman through Its inscrutable power of Maya, though Brahman Itself remains unchanged.

 [(23 दिसंबर, 1883)  श्रीरामकृष्ण वचनामृत-68 ]

🔆🙏 “मैं हुआ हूँ ! मैं आया हूँ !’ "I have become ! I am here!" 🔆🙏

[आमि होयेचि ! आमि ऐसेचि ! 

আমি হয়েছি! আমি এসেছি! -]

ईश्वरीय रूप-दर्शन की ये सब बातें कहते कहते श्रीरामकृष्ण समाधिस्थ हो रहे हैं । कह रहे हैं, “मैं हुआ हूँ ! मैं आया हूँ !’ यह बात कहकर ही एकदम समाधिस्थ हो गए । सब कुछ स्थिर हो गया । 

[এই সকল ঈশ্বরীয়রূপদর্শন-কথা বলিতে বলিতে ঠাকুর সমাধিস্থ হইতেছেন। বলিতেছেন, আমি হয়েছি! আমি এসেছি!এই কথা বলিয়াই একেবারে সমাধিস্থ হইলেন। সমস্ত স্থির! অনেকক্ষণ সম্ভোগের পর বাহিরের একটু হুঁশ আসিতেছে।

While describing in this way the vision of different divine forms, the Master went into an ecstatic state and said, "I have become! I am here!" Uttering these words he went into samadhi. ]

बड़ी देर तक समाधि के आनन्द में मग्न रह लेने पर कुछ होश आ रहा है । अब बालक की तरह हँस रहे हैं, हँस-हँसकर कमरे में टहल रहे हैं । अद्भुत दर्शन के बाद आँखों से जैसे आनन्द-ज्योति निकलती है, श्रीरामकृष्ण की आँखों का भाव वैसा ही हो गया । सहास्य मुख, शून्य दृष्टि ।  

श्रीरामकृष्ण टहलते हुए कह रहे हैं – “बटवृक्ष के नीचे एक परमहंस को देखा था, इसी तरह हँसकर चल रहा था ! – वही स्वरूप मेरा भी हो गया क्या ?” 

[অদ্ভুতদর্শনের পর চক্ষু হইতে যেরূপ আনন্দ-জ্যোতিঃ বাহির হয়, সেইরূপ ঠাকুরের চক্ষের ভাব হইল। মুখে হাস্য। শূন্যদৃষ্টি।ঠাকুর পায়চারি করিতে করিতে বলিতেছেন —“বটতলায় পরমহংস দেখলম — এইরকম হেসে চলছিল! — সেই স্বরূপ কি আমার হল!”

While describing in this way the vision of different divine forms, the Master went into an ecstatic state and said, "I have become! I am here!" Uttering these words he went into samadhi. His body was motionless. He remained in that state a long time and then gradually regained partial consciousness of the world. He began to laugh like a boy and pace the room. His eyes radiated bliss as if he had seen a wondrous vision. His gaze was not fixed on any particular object, and his face beamed with joy. Still pacing the room, the Master said: "I saw the paramahamsa who stayed under the banyan tree walking thus with just such a smile. Am I too in that state of mind?"

इस तरह टहलकर श्रीरामकृष्ण अपने छोटे तख्त पर जा बैठे और जगन्माता से बातचीत करने लगे ।

[এইরূপ পাদচারণের পর ঠাকুর ছোট খাটটিতে গিয়া বসিয়াছেন ও জগন্মাতার সহিত কথা কহিতেছেন।

He sat on the small couch and engaged in conversation with the Divine Mother.]

श्रीरामकृष्ण कह रहे हैं – “ख़ैर, मैं जानना भी नहीं चाहता ! माँ, तुम्हारे पादपद्मों में मेरी शुद्ध भक्ति बनी रहे ।”  

[ঠাকুর বলিতেছেন, “যাক আমি জানতেও চাই না! — মা, তোমার পাদপদ্মে যেন শুদ্ধাভক্তি থাকে।”

MASTER: "I don't even care to know. Mother, may I have pure love for Thy Lotus Feet!

(मणि से) – “क्षोभ और वासना के जाने से ही यह अवस्था होती है ।” 

[(মণির প্রতি) — ক্ষোভ বাসনা গেলেই এই অবস্থা!

(To M.) "One attains this state immediately after freeing oneself of all grief and desire.

[(23 दिसंबर, 1883)  श्रीरामकृष्ण वचनामृत-68 ]  

🔆🙏 श्रीरामकृष्ण की परमहंस-अवस्था, केवल अद्वैतज्ञान की नहीं, नित्यानन्द की अवस्था है🔆🙏

 ['अद्वैत – चैतन्य – नित्यानन्द] 

फिर माँ से कहने लगे – “माँ, पूजा तो तुमने उठा दी, परन्तु देखो, मेरी सब वासनाएँ चली न जाएँ ! माँ, परमहंस तो बालक है – बालक को माँ चाहिए या नहीं ? इसलिए तुम मेरी माँ हो, मैं तुम्हारा बच्चा । माँ का बच्चा माँ को छोड़कर कैसे रहे ?”

[আবার মাকে বলিতেছেন, “মা! পূজা উঠিয়েছ; — সব বাসনা যেন যায় না! পরমহংস তো বালক — বালকের মা চাই না? তাই তুমি মা, আমি ছেলে। মার ছেলে মাকে ছেড়ে কেমন করে থাকে!”

(To the Divine Mother) "Mother, Thou hast done away with my worship. Please see, Mother, that I don't give up all desire. Mother, the paramahamsa is but a child. Doesn't a child need a mother? Therefore Thou art the Mother and I am the child. How can the child live without the Mother?"

श्रीरामकृष्ण ऐसे स्वर से बातचीत कर रहे हैं कि पत्थर भी पिघल जय । फिर माँ से कह रहे हैं – “केवल अद्वैत ज्ञान ! थू थू ! जब तक ‘मैं’ रखा है, तब तक ‘तुम’ हो । (Thou dost exist as long as Thou dost keep the ego in me.) परमहंस तो बालक है; बालक को माँ चाहिए या नहीं ?”  

[ঠাকুর এরূপ স্বরে মার সঙ্গে কথা বলিতেছেন যে, পাষাণ পর্যন্ত বিগলিত হইয়া যায়। আবার মাকে বলিতেছেন, “শুধু অদ্বৈতজ্ঞান! হ্যাক্‌ থু!! যতক্ষণ ‘আমি’ রেখেছ ততক্ষণ তুমি! পরমহংস তো বালক, বালকের মা চাই না?”

Sri Ramakrishna was talking to the Divine Mother in a voice that would have melted even a stone. Again he addressed Her, saying: "Mere knowledge of Advaita! I spit on it! Thou dost exist as long as Thou dost keep the ego in me. The paramahamsa is but a child. Doesn't a child need a mother?"

मणि आश्चर्यचकित होकर श्रीरामकृष्ण की यह देवदुर्लभ अवस्था  देख रहे हैं । वे सोच रहे हैं – ‘श्रीरामकृष्ण अहेतुक दयासिन्धु हैं । मुझ में विश्वास उत्पन्न हो, चैतन्य जागृत हो और जीवों को शिक्षा प्राप्त हो, इसीलिए `गुरु (C-IN-C) रुपी श्रीरामकृष्ण' की यह परमहंस अवस्था है !’

[মণি অবাক্‌ হইয়া ঠাকুরের এই দেবদুর্লভ অবস্থা দেখিতেছেন। ভাবিতেছেন ঠাকুর অহেতুক কৃপাসিন্ধু। তাঁহারই বিশ্বাসের জন্য — তাঁহারই চৈতন্যের জন্য — আর জীবশিক্ষার জন্য গুরুরূপী ঠাকুর শ্রীরামকৃষ্ণের এই পরমহংস অবস্থা।

M. sat there speechless and looked at the divine manifestation in the Master. He said to himself: "The Master is an ocean of mercy that knows no motive. He has kept himself in the state of a paramahamsa that he might, as teacher, awaken the spiritual consciousness of myself and other earnest souls."

मणि और भी सोचते हैं – ‘श्रीरामकृष्ण कहते हैं, अद्वैत – चैतन्य – नित्यानन्द अद्वैतज्ञान होने पर चैतन्य प्राप्त होता है, तभी नित्यानन्द का लाभ होता है । श्रीरामकृष्ण की केवल अद्वैतज्ञान की नहीं – नित्यानन्द की अवस्था है । जगदम्बा के प्रेम में सदा विभोर हैं – मतवाले से !’

[মণি আরও ভাবিতেছেন — “ঠাকুর বলেন, অদ্বৈত — চৈতন্য — নিত্যানন্দ। অদ্বৈতজ্ঞান হলে চৈতন্য হয়, — তবেই নিত্যনন্দ হয়। ঠাকুরের শুধু অদ্বৈতজ্ঞান নয়, — নিত্যানন্দের অবস্থা। জগন্মাতার প্রেমানন্দে সর্বদাই বিভোর, — মাতোয়ারা!”

M. further thought: "The Master says, 'Advaita — Chaitanya — Nityananda'; that is to say, through the knowledge of the Non-dual Brahman one attains Consciousness and enjoys Eternal Bliss. The Master has not only attained the knowledge of non-duality but is in a state of Eternal Bliss. He is always drunk with ecstatic love for the Mother of the Universe."]

 [(23 दिसंबर, 1883)  श्रीरामकृष्ण वचनामृत-68 ]  

🔆🙏ईश्वरकोटि-अवतार  के अलावा दूसरा कोई निर्विकल्प समाधि से लौट नहीं  सकता 🔆🙏

[ঈশ্বরকোটি  না হলে নির্বিকল্পসমাধি হতে নেমে আসতে পারে না।] 

(No one but an Incarnation can come down 

to the phenomenal plane from the state of nirvikalpa samadhi.)

हाजरा श्रीरामकृष्ण की यह अवस्था देख हाथ जोड़कर कहने लगे – “धन्य है ! धन्य है !”

[হাজরা ঠাকুরের এই অবস্থা হঠাৎ দেখিয়া হাতজোড় করিয়া মাঝে মাঝে বলিতে লাগিলেন — “ধন্য! ধন্য!”

With folded hands Hazra looked at the Master and said every now and then: "How blessed you are! How blessed you are!"

श्रीरामकृष्ण हाजरा से कह रहे हैं – “तुम्हें विश्वास कहाँ है ? तुम तो यहाँ उसी तरह हो जैसे जटिला और कुटिला व्रज में थीं, - लीला की पुष्टि के लिए ।”

[শ্রীরামকৃষ্ণ হাজরাকে বলিতেছেন, “তোমার বিশ্বাস কই? তবে তুমি এখানে আছ যেমন জটিলে-কুটিলে — লীলা পোষ্টাই জন্য।”

MASTER (to Hazra): "But you have hardly any faith; you simply live here to add to the play, like Jatila and Kutila."]

तीसरा प्रहर हुआ । मणि अकेले देवालय के निकट निर्जन में टहल रहे हैं और श्रीरामकृष्ण की इस अद्भुत अवस्था के बारे में सोच रहे हैं । सोच रहे हैं – श्रीरामकृष्ण ने ऐसा क्यों कहा कि क्षोभ (grief-विषाद ) और वासना (desire-लालसा) के जाने से ही यह अवस्था (परमहंस अवस्था)  होती है ? ये गुरु-रुपी श्रीरामकृष्ण कौन हैं ? क्या भगवान् स्वयं ही हमारे लिए देहधारण कर आए हैं ? श्रीरामकृष्ण तो कहते हैं कि ईश्वरकोटि-अवतार आदि के अलावा दूसरा कोई जड़समाधि, निर्विकल्प समाधि से लौट नहीं आ सकता।’ 

[বৈকাল হইয়াছে। মণি একাকী দেবালয়ে নির্জনে বেড়াইতেছেন। ঠাকুর শ্রীরামকৃষ্ণের এই অদ্ভুত অবস্থা ভাবিতেছেন। আর ভাবিতেছেন, ঠাকুর কেন বলিলেন, “ক্ষোভ বাসনা গেলেই এই অবস্থা।” এই গুরুরূপী ঠাকুর শ্রীরামকৃষ্ণ কে? স্বয়ং ভগবান কি আমাদের জন্য দেহধারণ করে এসেছেন? ঠাকুর বলেন, ঈশ্বরকোটি — অবতারাদি — না হলে জড়সমাধি (নির্বিকল্পসমাধি) হতে নেমে আসতে পারে না।

In the afternoon M. paced the temple garden alone. He was deeply absorbed in the thought of the Master and was pondering the Master's words concerning the attainment of the exalted state of the paramahamsa, after the elimination of grief and desire. M. said to himself: "Who is this Sri Ramakrishna, acting as my teacher? Has God embodied Himself for our welfare? The Master himself says that no one but an Incarnation can come down to the phenomenal plane from the state of nirvikalpa samadhi."

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🔆🙏🔆🙏🔆🙏🔆🙏परिच्छेद ~ 67, [(22 दिसंबर, 1883) श्रीरामकृष्ण वचनामृत-67 ] 🔆🙏बद्री-केदार के उस पार जाने से ,जीवकोटि का शरीर नहीं रहता, इक्कीस दिनों में मृत्यु हो जाती है ।🔆🙏

  [(21 दिसंबर, 1883)परिच्छेद ~ 67, श्रीरामकृष्ण वचनामृत ]

*परिच्छेद ६७* 

(१)

 [(22 दिसंबर, 1883) श्रीरामकृष्ण वचनामृत-67 ]

🔆🙏नेता (अवतार) के प्रति उन्मत्तप्रेम (ecstatic love) और भक्ति मानो चारा हैं🔆🙏

शनिवार, २२ दिसम्बर ई., सबेरे नौ बजे का समय होगा । बलराम के पिता आए हैं । राखाल, हरीश, मास्टर, लाटू यहाँ पर निवास कर रहे हैं । श्यामपुकुर के देवेन्द्र घोष आए हैं । श्रीरामकृष्ण दक्षिणपूर्ववाले बरामदे में भक्तों के साथ बैठे हैं ।

एक भक्त पूछ रहे हैं – भक्ति कैसे हो ?

[একজন ভক্ত জিজ্ঞাসা করিতেছেন — ভক্তি কিসে হয়?

A DEVOTEE: "Sir, how does one obtain love for God?"

श्रीरामकृष्ण(बलराम के पिता आदि भक्तों के प्रति) - बढ़े चलो । सात फाटकों के बाद राजा विराजमान हैं । सब फाटक पार हो जाने पर ही तो राजा को देख सकोगे ।

[শ্রীরামকৃষ্ণ (বলরামের পিতা প্রভৃতি ভক্তদের প্রতি) — এগিয়ে পড়। সাত দেউড়ির পর রাজা আছেন। সব দেউড়ি পার হয়ে গেলে তবে তো রাজাকে দেখবে।

"Go forward. The king dwells beyond the seven gates. You can see him only after passing through all the gates.]

“मैं चानक में अन्नपूर्णा की स्थापना के समय द्वारकाबाबू से कहा था, बड़े तालाब के गम्भीर जल में बड़ी बड़ी मछलियाँ आ जाएगी । कभी कभी उछल-कूद भी करेंगी । उन्मत्तप्रेम (ecstatic love) और भक्ति (Devotion) मानो चारा (spiced bait-प्रलोभन) हैं  !  

[“আমি চানকে অন্নপূর্ণা প্রতিষ্ঠার সময় দ্বারিকবাবুকে বলেছিলাম, (১৮৭৪-৭৫) বড় দীঘিতে বড় মাছ আছে গভীর জলে। চার ফেলে, সেই চারের গন্ধে ওই বড় মাছ আসবে। এক-একবার ঘাই দেবে। প্রেম-ভক্তিরূপ চার।”

"At the time of the installation of Annapurna at Chanak, I said to Dwarika Babu: "Large fish live in the deep water of a big lake. Throw some spiced bait into the water; then the fish will come, attracted by its smell; now and then they will make the water splash. Devotion and ecstatic love are like the spiced bait.] 

[(22 दिसंबर, 1883) श्रीरामकृष्ण वचनामृत-67 ]

🔆🙏ईश्वर (जगन्माता-काली) को खोजना है तो अवतारों (नेता-कृष्ण) के भीतर खोजो 🔆🙏

[ ঈশ্বরকে খুঁজতে হলে অবতারের ভিতর খুঁজতে হয়। ]

[If you seek God, you must seek Him in the Incarnations.]

“ईश्वर नरलीला करते हैं । मनुष्य रूप में वे अवतीर्ण होते हैं, जिस प्रकार श्रीकृष्ण, श्रीरामचन्द्र, श्रीचैतन्यदेव । मैंने केशव सेन से कहा था कि मनुष्य में ईश्वर का अधिक प्रकाश है । मैदान में छोटे छोटे गड्ढे रहते हैं; उन गड्ढों के भीतर मछली, केकड़े रहते हैं । मछली, केकड़े खोजना हो तो उन गड्ढों के भीतर खोजना होता है । ईश्वर को खोजना हो तो अवतारों के भीतर खोजना चाहिए । 

[“ঈশ্বর নরলীলা করেন। মানুষে তিনি অবতীর্ণ হন, যেমন শ্রীকৃষ্ণ, রামচন্দ্র, চৈতন্যদেব। “আমি কেশব সেনকে বলেছিলাম যে, মানুষের ভিতর তিনি বেশি প্রকাশ। মাঠের আলোর ভিতে ছোট ছোট গর্ত থাকে; তাহাদের বলে ঘুটী। ঘুটীর ভিতর মাছ, কাঁকড়া জমে থাকে। মাছ, কাঁকড়া খুঁজতে গেলে ওই ঘুটীর ভিতর খুঁজতে হয়; ঈশ্বরকে খুঁজতে হলে অবতারের ভিতর খুঁজতে হয়।

God sports in the world as man. He/ She incarnates Himself as man — as in the case of Krishna, Rama, and Chaitanya. Once I said to Keshab: The greatest manifestation of God is in man. There are small holes in the balk or a field, where crabs and fish accumulate in the rainy season. If you want to find them you must seek them in the holes. If you seek God, you must seek Him in the Incarnations.']

 [(22 दिसंबर, 1883) श्रीरामकृष्ण वचनामृत-67 ]

🔆🙏साढ़ेतीन हाथ की  मानव देह में जगन्माता काली (universal ego) अवतीर्ण होती हैं🔆🙏 

“उस साढ़े तीन हाथ की मानवदेह में जगन्माता अवतीर्ण होती हैं । गाने में कहा है –

` श्यामा मा कि एक कल कोरेछे, 

चोद्यपोया कोलेर भितरी, कोतो रंग देखातेछे। 

आपनी थाकी कलेर भितरी, 

कल घुराय धोरे कलडूरि,

कल बोले आपनी घुरी, जाने ना के घूरातेछे

जे कले जेनेछे तारे, कल होते होबे ना तारे

कोन कलेर भक्ति-डोरे आपनी श्यामा बाँधा आछे **

(कवि - काली मिर्जा)

(भावार्थ) – “श्यामा माँ ने कैसी कल बनायी है । साढ़े तीन हाथ की कल के भीतर कितने ही तमाशे दिखा रही है । स्वयं कल के भीतर रहकर वह रस्सी पकड़कर उसे घूमाती है । कल कहती है कि मैं अपने आप ही घूम रही हूँ । वह नहीं जानती कि उसे कौन घूमा रहा है ।

[“ওই চৌদ্দপোয়া মানুষের ভিতরে জগন্মাতা প্রকাশ হন। গানে আছে —

শ্যামা মা কি কল করেছে!

চৌদ্দপোয়া কলের ভিতরি কত রঙ্গ দেখাতেছে!

আপনি থাকি কলের ভিতরি 

      কল ঘুরায় ধরে কলডুরি,

কল বলে আপনি ঘুরি জানে না কে ঘোরাতেছে।

The Divine Mother of the Universe manifests Herself through this three-and-a-half cubit man. There is a song that says: O Mother, what a machine is this that Thou hast made! What pranks Thou playest with this toy, Three and a half cubits high! . . .

‘परन्तु ईश्वर को जानना हो, अवतार को पहचानना हो तो साधना की आवश्यकता है । तालाब में बड़ी बड़ी मछलियाँ हैं, उनके लिए चारा डालना पड़ता है । दूध में मक्खन है, उसे मन्थन करना पड़ता है । राई में तेल है, उसे पेरना पड़ता है । मेहँदी से हाथ लाल होता है, उसे पीसना पड़ता है ।’

[“কিন্তু ঈশ্বরকে জানতে হলে, অবতারকে চিনতে গেলে, সাধনের প্রয়োজন। দীঘিতে বড় বড় মাছ আছে, চার ফেলতে হয়। দুধেতে মাখন আছে, মন্থন করতে হয়। সরিষার ভিতর তেল আছে, সরিষাকে পিষতে হয়। মেথিতে হাত রাঙা হয়, মেথি বাটতে হয়।”

"One needs spiritual practice in order to know God and recognize Divine Incarnations. Big fish live in the large lake, but to see them one must throw spiced bait in the water. There is butter in milk, but one must churn the milk to get it. There is oil in mustard-seed, but one must press the seed to extract the oil."

[(22 दिसंबर, 1883) श्रीरामकृष्ण वचनामृत-67 ]

🔆🙏 खड़दह के 'ब्राह्मण पाड़ा'  ['भुवन-भवन ' -कुलीन पाड़ा] में जाना है,

 तो पहले खड़दह पहुंचना होगा🔆🙏

[খড়দা বামুনপাড়া যেতে হলে আগে তো খড়দায় পৌঁছুতে হবে।]

[If you want to go to Kharada Bamunpara, you have to reach Kharada first.]

भक्त (श्रीरामकृष्ण के प्रति) – अच्छा, वे साकार हैं या निराकार ?

 [ভক্ত (শ্রীরামকৃষ্ণের প্রতি) — আচ্ছা, তিনি সাকার না নিরাকার?

"Has God form, or is He formless?"

श्रीरामकृष्ण – ठहरो, पहले कलकत्ता तो जाओ, तभी तो जानोगे कि कहाँ है किले का मैदान, कहाँ एशियाटिक सोसायटी है और कहाँ बंगाल बैंक है ।

“खड़दा ब्राह्मण-पाड़ा ~ ['भुवन-भवन ' -कुलीन पाड़ा]  में जाने के लिए पहले तो खड़दा पहुँचना ही होगा !

[अगर आपको खड़दह के ब्राह्मण पाड़ा में अवस्थित , महामण्डल नेता (अवतार ,C-IN-C ,नवनीदा) के  के पैतृक निवास ' भुवन-भवन' पहुँचना हो, तो कोन्नगर से महामण्डल के जहाज द्वारा खड़दह पहुँचना होगा। 

[আপনি যদি খড়দহের ব্রাহ্মণ পাড়া অবস্থিত মহামণ্ডল নেতার (অবতার, C-IN-C, নবনিদার) পৈতৃক বাসভবন 'ভুবন-ভবন'-এ পৌঁছতে চান, তাহলে আপনাকে মহামণ্ডলের জাহাজে করে কোননগর থিকে খড়দা পৌঁছতে হবে।

[If  you want to reach 'Bhuvan-Bhawan', the ancestral residence of Mahamandal leader (Avatar, C-IN-C, Navanida ON '26-27 September 2016 for the first time) located in the Brahmin para of Khardah, with the commanders of VIVEK-VAHINI, follwed by a huge, disciplined procession, then you will have to reach Khardah by ship of Mahamandal from Konnagar. ] 

[শ্রীরামকৃষ্ণ — দাঁড়াও, আগে কলকাতায় যাও তবে তো জানবে, কোথায় গড়ের মাঠ, কোথায় এসিয়াটিক সোসাইটি, কোথায় বাঙ্গাল ব্যাঙ্ক! “খড়দা বামুনপাড়া যেতে হলে আগে তো খড়দায় পৌঁছুতে হবে।

If you want to go to the brahmin quarter of Khardaha, you must first of all go to Khardaha.

“निराकार साधना होगी क्यों नहीं ? परन्तु बड़ी कठिन है । कामिनी-कांचन का त्याग हुए बिना नहीं होता । बाहर त्याग, फिर भीतर त्याग ! विषयबुद्धि का लवलेश रहते काम नहीं बनेगा ।

[“নিরাকার সাধনা হবে না কেন; তবে বড় কঠিন। কামিনী-কাঞ্চন ত্যাগ না হলে হয় না! বাহিরে ত্যাগ আবার ভিতরে ত্যাগ। বিষয়বুদ্ধির লেশ থাকলে হবে না।

"Why should it not be possible to practise the discipline of the formless God? But it is very difficult to follow that path. One cannot follow it without renouncing 'woman and gold'. There must be complete renunciation, both inner and outer. You cannot succeed in this path if you have the slightest trace of worldliness.] 

“साकार की साधना सरल है – परन्तु उतनी सरल भी नहीं है ।

[“সাকার সাধনা সোজা। তবে তেমন সোজা নয়।

"It is easy to worship God with form. But it is not as easy as all that.

“निराकार साधना, ज्ञानयोग की साधना की चर्चा भक्तों के पास नहीं करनी चाहिए । बड़ी कठिनाई से उसे थोड़ीसी भक्ति प्राप्त हो रही है; उसके पास यह कहने से कि सब कुछ स्वप्नतुल्य है, उसकी भक्ति की हानि होती है ।

[“নিরাকার সাধনা, জ্ঞানযোগের সাধনা, ভক্তদের কাছে বলতে নাই। অনেক কষ্টে একটু ভক্তি হচ্ছে, সব স্বপ্নবৎ বললে ভক্তির হানি হয়।

"One should not discuss the discipline of the Impersonal God or the path of knowledge with a bhakta. Through great effort perhaps he is just cultivating a little devotion. You will injure it if you explain away everything as a mere dream.

कबीरदास निराकारवादी थे । शिव, काली, कृष्ण को नहीं मानते थे । वे कहते थे, काली चावल-केला खाती है, कृष्ण गोपियों के हथेली बजाने पर बन्दर की तरह नाचते थे (सभी हँस पड़े ।)

“निराकार साधक मानो पहले (16 भुजा या ) दशभुजा का दर्शन करते हैं, उसके बाद चतुर्भुज का, उसके बाद द्विभुज गोपाल का और अन्त में अखण्ड ज्योति का दर्शन कर उसी में लीन होते हैं ।

[“কবীর দাস নিরাকারবাদী। শিব, কালী, কৃষ্ণ এদের মানত না। কবীর বলত, কালী চাল কলা খান; কৃষ্ণ গোপীদের হাততালিতে বানর নাচ নাচতেন। (সকলের হাস্য) 

“নিরাকার সাধক হয়তো আগে দশভুজা দর্শন করলে; তারপর চতুর্ভুজ, তারপর দ্বিভুজ গোপাল; শেষে অখণ্ড জ্যোতিঃ দর্শন করে তাইতে লীন।

"Kabir was a worshipper of the Impersonal God. He did not believe in Siva, Kali, or Krishna. He used to make fun of them and say that Kali lived on the offerings of rice and banana, and that Krishna danced like a monkey when the gopis clapped their hands. (All laugh."One who worships God without form perhaps sees at first the deity with ten arms, then the deity with four arms, then the Baby Krishna with two arms. At last he sees the Indivisible Light and merges in It.

“कहा जाता है, दत्तात्रेय, जड़भरत ब्रह्मदर्शन के बाद नहीं लौटे ।

“कहते हैं कि शुकदेव ने उस ब्रह्मसमुद्र की एक बूँद मात्र का आस्वादन किया था । समुद्र की तरंगों की उछल-कूद देखी थी, गर्जना सुनी थी, परन्तु समुद्र में डूबे न थे ।

[“দত্তাত্রেয়, জড়ভরত ব্রহ্মদর্শনের পর আর ফের নাই — এরূপ আছে।“একমতে আছে শুকদেব সেই ব্রহ্ম-সমুদ্রের একটি বিন্দুমাত্র আস্বাদ করেছিলেন। সমুদ্রের হিল্লোল-কল্লোল দর্শন, শ্রবণ করেছিলেন; কিন্তু সমুদ্রে ডুব দেন নাই।

"It is said that sages like Dattatreya and Jadabharata did not return to the relative plane after having the vision of Brahman. According to some people, Sukadeva tasted only a drop of that Ocean of Brahman-Consciousness. He saw and heard the rumbling of the waves of that Ocean, but he did not dive into It.

 [(22 दिसंबर, 1883) श्रीरामकृष्ण वचनामृत-67 ]

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🔆🙏बद्री-केदार के उस पार जाने से , जीवकोटि का शरीर नहीं रहता, 

इक्कीस दिनों में मृत्यु हो जाती है ।🔆🙏

“किसी ब्रह्मचारी ने कहा था, बद्री-केदार के उस पार जाने से शरीर नहीं रहता । उसी प्रकार ब्रह्म-ज्ञान के बाद  फिर शरीर नहीं रहता । इक्कीस दिनों में मृत्यु हो जाती है ।

[“একজন ব্রহ্মচারী বলেছিল, কেদারের ওদিকে গেলে শরীর থাকে না। সেইরূপ ব্রহ্মজ্ঞানের পর আর শরীর থাকে না। একুশ দিনে মৃত্যু।

"A brahmachari once said to me, 'One who goes beyond Kedar cannot keep his body alive.' Likewise, a man cannot preserve his body after attaining Brahmajnana. The body drops off in twenty-one days.

[^  एक सामान्य साधक (जीवकोटि का साधक)  के मामले में ब्रह्म-ज्ञान प्राप्त करने के बाद शरीर छूट  जाता है। लेकिन एक नेता (दैवीय अवतार या पैगम्बर-ईश्वरकोटि )  के मामले में ऐसा नहीं है, क्योंकि वह पैदा ही हुआ है, एक विशेष मिशन के साथ--मानव जाति का मार्गदर्शन करने के लिए ।
^In the case of an ordinary aspirant the body drops off after he attains the Knowledge of Brahman, but this is not so in the case of a Divine Incarnation, because He is born, with a special mission to teach mankind.
 बद्री-केदार के उस पार जाने से , अर्थात  ब्रह्म-ज्ञान के बाद- जीवकोटि का शरीर नहीं रहता, इक्कीस दिनों में मृत्यु हो जाती है । Vivekananda - Captain Sevier Be and Make Vedanta Leadership Training/ विवेकानन्द- कैप्टन सेवियर वेदांत नेतृत्व प्रशिक्षण परम्परा-- में `भक्ति और ज्ञान'  एक ही आधार में रखने वाले  'ब्रह्मविद मनुष्य (theologian) बनो और बनाओ' !'/ नेता (पैगम्बर ,अवतार, ईश्वरकोटि) के देह की विशेषता-जगत्जननी की भक्ति और ज्ञान /Characteristic of the leader (Prophet, Avatar, C-IN-C)- devotion and knowledge ]

“दीवाल के उस पार अनन्त मैदान है । चार मित्रों ने दीवाल के उस पार क्या है, यह देखने की चेष्टा की। एक-एक व्यक्ति दीवाल पर चढ़ता है; उस मैदान को देखकर ‘हो हो’ करके हँसता हुआ दूसरी ओर कूद जाता है । तीन व्यक्तियों ने कोई खबर न दी । सिर्फ एक ने खबर दी । ब्रह्मज्ञान के बाद भी उसका शरीर रहा, लोकशिक्षा के लिए - जैसे अवतार/नेता आदि का ।

[“প্রাচীরের ওপারে অনন্ত মাঠ। চারজন বন্ধু প্রাচীরের ওপারে কি আছে দেখতে চেষ্টা করলে। এক-একজন প্রাচিরের উপর উঠে, ওই মাঠ দর্শন করে হা হা করে হেসে অপরপারে পড়ে যেতে লাগল। তিনজন কোন খপর দিলে না। একজন শুধু খপর দিলে। তার ব্রহ্মজ্ঞানের পরও শরীর রইল, লোকশিক্ষার জন্য। যেমন অবতার আদির।

"There was an infinite field beyond a high wall. Four friends tried to find out what was beyond the wall. Three of them, one after the other, climbed the wall, saw the field, burst into loud laughter, and dropped to the other side. These three could not give any information about the field. Only the fourth man came back and told people about it. He is like those who retain their bodies, even after attaining Brahmajnana, in order to teach others. Divine Incarnations belong to this class.

“हिमालय के घर में पार्वती ने जन्मग्रहण किया, और अपने अनेक रूप पिता को दिखाने लगीं । हिमालय ने कहा, ‘बेटी, ये सब रूप तो देखे । परन्तु तुम्हारा एक `ब्रह्मस्वरूप' है – उसे एकबार दिखा दो।’ 

पार्वती ने कहा, ‘पिताजी, यदि तुम ब्रह्मज्ञान चाहते हो तो संसार छोड़कर सत्संग करना पड़ेगा ।’ 

“पर हिमालय किसी भी तरह संसार नहीं छोड़ते थे । तब पार्वतीजी ने एक बार अपना ब्रह्मस्वरूप दिखाया । देखते ही गिरिराज एकदम मूर्छित हो गए ।

[“হিমালয়ের ঘরে পার্বতী জন্মগ্রহণ করলেন; আর পিতাকে তাঁর নানান রূপ দেখাতে লাগলেন। হিমালয় বললেন, মা, এ-সব রূপ তো দেখলাম। কিন্তু তোমার একটি ব্রহ্মস্বরূপ আছে — সেইটি একবার দেখাও। পার্বতী বললেন, বাবা, তুমি যদি ব্রহ্মজ্ঞান চাও, তাহলে সংসারত্যাগ করে সাদুসঙ্গ করতে হবে।“হিমালয় কোনমতে ছাড়েন না। তখন পার্বতী একবার দেখালেন। দেখতেই গিরিরাজ একেবারে মূর্ছিত।”

"Parvati was born as the daughter of King Himalaya. After Her birth She revealed to the king Her various divine forms. The father said: 'Well, Daughter, You have shown me all these forms. That is nice. But You have another aspect, which is Brahman. Please show me that.' 'Father,' replied Parvati, 'if you seek the Knowledge of Brahman, then renounce the world and live in the company of holy men.' But King Himalaya insisted. Thereupon Parvati revealed Her Brahman-form, and immediately the king fell down unconscious.]

[(22 दिसंबर, 1883) श्रीरामकृष्ण वचनामृत-67 ] 

🔆🙏  ईश्वर अवतीर्ण होकर भक्ति का उपदेश देते हैं – शरणागत होने के लिए कहते हैं 🔆🙏

[माँ भक्त की भक्तिरूपी रस्सी से स्वयं बँधी हुई हैं ।]

[ঈশ্বর অবতীর্ণ হয়ে ভক্তির উপদেশ দেন -

 “কোন কলের ভক্তিডোরে আপনি শ্যামা বাঁধা আছে! ]

[God incarnates Himself as man and teaches people the path of devotion.] 

“यह जो कुछ कहा, सब तर्क-विचार की बाते हैं । ‘ब्रह्मसत्य जगत् मिथ्या’ यही विचार है । सब स्वप्न की तरह है बड़ा कठिन मार्ग है । इस पथ में उनकी लीला स्वप्न जैसी मिथ्या बन जाती है । फिर ‘मैं’ उड़ जाता है । इस पथ में अवतार भी नहीं माना जाता । बड़ा कठिन है । ये सब विचार की बातें भक्तों को अधिक सुननी नहीं चाहिए । 

“इसीलिए ईश्वर अवतीर्ण होकर भक्ति का उपदेश देते हैं – शरणागत होने के लिए कहते हैं । भक्ति से, उनकी कृपा से सभी कुछ हो जाता है – ज्ञान, विज्ञान सब कुछ होता है।

[“এ যা বললুম সব বিচারের কথা। ব্রহ্ম সত্য জগৎ মিথ্যা — এই বিচার। সব স্বপ্নবৎ! বড় কঠিন পথ। এ-পথে তাঁর লীলা স্বপ্নবৎ, মিথ্যা হয়ে যায়। আবার ‘আমি’টাও উড়ে যায়। এ-পথে অবতারও মানে না। বড় কঠিন। এ-সব বিচারের কথা ভক্তদের বেশি শুনতে নাই।

“তাই ঈশ্বর অবতীর্ণ হয়ে ভক্তির উপদেশ দেন। শরণাগত হতে বলেন। ভক্তি থেকে তাঁর কৃপায় সব হয় — জ্ঞান, বিজ্ঞান সব হয়।

"All that I have just said belongs to the realm of reasoning. Brahman alone is real and the world illusory — that is reasoning. And everything but Brahman is like a dream. But this is an extremely difficult path. To one who follows it even the divine play in the world becomes like a dream and appears unreal; his 'I' also vanishes. The followers of this path do not accept the Divine Incarnation. It is a very difficult path. The lovers of God should not hear much of such reasoning.

"That is why God incarnates Himself as man and teaches people the path of devotion. He exhorts people to cultivate self-surrender to God. Following the path of devotion, one realizes everything through His grace — both Knowledge and Supreme Wisdom.]

“वे लीला कर रहे हैं – वे भक्त के अधीन हैं । (श्यामा मा कि एक कल कोरेछे,..आबार " कोन कलेर भक्ति डोरे आपनी श्यामा बाँधा आछे) अर्थात  ‘माँ भक्त की भक्तिरूपी रस्सी से स्वयं बँधी हुई हैं ।’

[“তিনি লীলা করছেন — তিনি ভক্তের অধীন।  “কোন কলের ভক্তিডোরে আপনি শ্যামা বাঁধা আছে!"

God sports in this world. He is under the control of His devotee. 'Syama, the Divine Mother, is Herself tied by the cord of the love of Her devotee.']

[(22 दिसंबर, 1883) श्रीरामकृष्ण वचनामृत-67 ]

🔆🙏राम सीता के खोज में रोये थे – ‘पंचभूत के फन्दे में पड़कर ब्रह्म भी रोते हैं' 🔆🙏 

 [अवतार को सभी लोग नहीं पहचान सकते -`पञ्चभूतेर फाँदे , ब्रह्म पड़े काँदे']

[“অবতারকে সকলে চিনতে পারে না — ‘পঞ্চভূতের ফাঁদে, ব্রহ্ম পড়ে কাঁদে।’]

Not all, by any means, can recognize an Incarnation of God. 

 [Brahman weeps, entrapped in the snare of the five elements.]

“ईश्वर कभी 'चुम्बक' बनते हैं, भक्त 'सूई' होता है । फिर कभी भक्त चुम्बक और वे सूई होते हैं । भक्त उन्हें खींच लेते हैं – वे भक्तवत्सल, भक्ताधीन हैं ।

“एक मत यह है कि यशोदा तथा अन्य गोपीगण पूर्वजन्म में निराकारवादी थीं । उससे उनकी तृप्ति न हुई, इसीलिए उन्होंने वृन्दावनलीला में श्रीकृष्ण को लेकर आनन्द किया । श्रीकृष्ण ने एक दिन कहा, ‘तुम्हें नित्यधाम का दर्शन कराऊँगा, चलो, यमुना में स्नान करने चलें !’ ज्योंही उन्होंने डुबकी लगायी – एकदम गोलोक का दर्शन ! फिर उसके बाद अखण्ड ज्योति का दर्शन ! तब यशोदा बोलीं, ‘कृष्ण, ये सब और अधिक देखना नहीं चाहती, अब तेरे उसी मानवरूपी का दर्शन करूँगी, तुझे गोदी में लूँगी, खिलाऊँगी !!’

“কখনও ঈশ্বর চুম্বক হন, ভক্ত ছুঁচ হয়। আবার কখনও ভক্ত চুম্বক হয়, তিনি ছুঁচ হন। ভক্ত তাঁকে টেনে লয় — তিনি ভক্তবৎসল, ভক্তাধীন।

“এক মতে আছে যশোদাদি গোপীগণ পূর্বজন্মে নিরাকারাবাদী ছিলেন। তাঁদের তাতে তৃপ্তি হয় নাই। বৃন্দাবনলীলায় তাই শ্রীকৃষ্ণকে লয়ে আনন্দ। শ্রীকৃষ্ণ একদিন বললেন, তোমাদের নিত্যধাম দর্শন করাবো, এসো যমুনায় স্নান করতে যাই। তাঁরা যাই ডুব দিয়েছেন — একেবারে গোলকদর্শন। আবার তারপর অখণ্ড জ্যোতিঃ দর্শন। যশোদা তখন বললেন, কৃষ্ণ রে ও-সব আর দেখতে চাই না — এখন তোর সেই মানুষরূপ দেখবো! তোকে কোলে করবো, খাওয়াবো।

"Sometimes God becomes the magnet and the devotee the needle, and sometimes the devotee becomes the magnet and God the needle. The devotee attracts God to him. God is the Beloved of His devotee and is under his control.

"According to one school, the gopis of Vrindavan, like Yasoda, had believed in the formless God in their previous births; but they did not derive any satisfaction from this belief. That is why later on they enjoyed so much bliss in the company of Sri Krishna in the Vrindavan episode of His life. One day Krishna said to the gopis: 'Come along. I shall show you the Abode of the Eternal. Let us go to the Jamuna for a bath.' As they dived into the water of the river, they at once saw Goloka. Next they saw the Indivisible Light. Thereupon Yasoda exclaimed: 'O Krishna, we don't care for these things any more. We would like to see You in Your human form. I want to take You in my arms and feed You.']

 [(22 दिसंबर, 1883) श्रीरामकृष्ण वचनामृत-67 ]

🔆🙏अवतार (नेता,C-IN-C,नवनीदा) का शरीर रहते उनकी पूजा-सेवा करनी चाहिए 🔆🙏 

“इसीलिए अवतार  में उनका अधिक प्रकाश है । अवतार  का शरीर रहते उनकी पूजा-सेवा करनी चाहिए । `से जे कोठार भीतर चोरकूठरि भोर होले से लुकाबे रे। ' --  वह जो कोठरी के भीतर चोर-कोठरी  है, भोर होते ही वह उसमें छिप जाएगा रे ।’

[“তাই অবতারে তিনি বেশি প্রকাশ। অবতারের শরীর থাকতে থাকতে তাঁর পূজা সেবা করতে হয়।- ‘সে যে কোঠার ভিতর চোরকুঠরি ভোর হলে সে লুকাবে রে।’

"So the greatest manifestation of God is through His Incarnations. The devotee should worship and serve an Incarnation of God as long as He lives in a human body. 'At the break of day He disappears into the secret chamber of His House.'] 

“अवतार को सभी लोग नहीं पहचान सकते । देहधारण करने पर रोग, शोक, क्षुधा, तृष्णा सभी कुछ होता है, ऐसा लगता है मानो वे हमारी ही तरह हैं ! राम सीता के खोज में रोये थे – ‘पंचभूत के फन्दे में पड़कर ब्रह्म भी रोते हैं ।’

.[“অবতারকে সকলে চিনতে পারে না। দেহধারণ করলে রোগ, শোক, ক্ষুধা, তৃষ্ণা সবই আছে, মনে হয়, আমাদেরই মতো। রাম সীতার শোকে কেঁদেছিলেন — ‘পঞ্চভূতের ফাঁদে, ব্রহ্ম পড়ে কাঁদে।’

Not all, by any means, can recognize an Incarnation of God. Assuming a human body, the Incarnation falls a victim to disease, grief, hunger, thirst, and all such things, like ordinary mortals. Rama wept for Sita. 'Brahman weeps, entrapped in the snare of the five elements.']

“पुराण में कहा है, हिरण्याक्ष-वध के बाद वराह-अवतार बच्चों को लेकर रहने लगे – उन्हें स्तनपान करा रहे थे । (सभी हँसे ।) स्वधाम में जाने का नाम तक नहीं । अन्त में शिव ने आकर त्रिशूल द्वारा उनके शरीर का विनाश किया, तब वे हँसते हुए स्वधाम में पधारे ।

[“পুরাণে আছে, হিরণ্যাক্ষ বধের পর বরাহ অবতার নাকি ছানা-পোনা নিয়ে ছিলেন — তাদের মাই দিচ্ছিলেন। (সকলের হাস্য) স্বধামে যাবার নামটি নাই। শেষে শিব এসে ত্রিশূল দিয়ে শরীর নাশ করলে, তিনি হি-হি করে হেসে স্বধামে গেলেন।

"It is said in the Purana that God, in His Incarnation as the Sow, lived happily with His young ones even after the destruction of Hiranyaksha.2 As the Sow, He nursed them and forgot all about His abode in heaven. At last Siva killed the sow body with his trident, and God, laughing aloud, went to His own abode."] 

(२)

 [(22 दिसंबर, 1883) श्रीरामकृष्ण वचनामृत-67] 

🔆🙏प्रेमोन्मत्त नेता (अवतार,C-IN-C,नवनीदा) पर प्रेम होने से ही सब हो गया 🔆🙏

[ অবতারের উপর ভালবাসা এলেই হল।]

["To love an Incarnation of God — that is enough. ]

तीसरा प्रहर है । भवनाथ आए हैं । कमरे में राखाल, मास्टर, हरीश, आदि हैं । 

श्रीरामकृष्ण(भवनाथ के प्रति) - अवतार (प्रेमोन्मत्त नेता -नवनीदा) पर प्रेम होने से ही हो गया । अहा, गोपियों का कैसा प्रेम था !

[শ্রীরামকৃষ্ণ (ভবনাথের প্রতি) — অবতারের উপর ভালবাসা এলেই হল। আহা গোপীদের কি ভালবাসা!

MASTER (to Bhavanath): "To love an Incarnation of God — that is enough. Ah, what ecstatic love the gopis had for Krishna!"] 

यह कहकर आप गोपियों के भाव में गाना गा रहे हैं –

(१) (भावार्थ) – “श्याम तुम प्राणों के प्राण हो ........।”

(२) (भावार्थ) – “सखि, मैं घर बिलकुल नहीं जाऊँगी ......।”

(३) (भावार्थ) – “उस दिन, जिस समय तुम वन जा रहे थे, मैं द्वार पर खड़ी थी । प्रिय (বঁধু-बन्धु ), इच्छा होती है, गोपाल बनकर तुम्हारा भार अपने सिर पर उठा लूँ ! ........”

.গান — শ্যাম তুমি পরাণের পরাণ।

গান — ঘরে যাবই যে না গো (সঙ্গিনীয়া)

গান — সেদিন আমি দুয়ারে দাঁড়ায়ে।

(বঁধু যখন বিপিন যাও, বিপিন যাও)

(বঁধু ইচ্ছা হয়, ইচ্ছা হয় রাখাল হয়ে তোমার বাধা মাথায় বই!)

श्रीरामकृष्ण – रास के बीच में जिस समय श्रीकृष्ण छिप गए, गोपिकाएँ एकदम पागल बन गयीं । एक वृक्ष देखकर कहती हैं, ‘तुम कोई तपस्वी होंगे ! श्रीकृष्ण को तुमने अवश्य ही देखा होगा ! नहीं तो समाधिमग्न होकर क्यों खड़े हो ?’ तृणों से ढकी हुई पृथ्वी को देखकर कहती हैं, ‘हे पृथ्वी, तुमने अवश्य ही उनके दर्शन किये हैं; नहीं तो तुम्हारे रोंगटे क्यों खड़े हुए हैं ? अवश्य ही तुमने उनके स्पर्शसुख का उपभोग किया होगा ! फिर माधवीलता को देखकर कहती हैं, ‘हे माधवी, मुझे माधव ला दे !’ गोपियों का कैसा प्रेमोन्माद है ! 

[“রাসমধ্যে যখন শ্রীকৃষ্ণ অন্তর্হিত হলেন, গোপীরা একেবারে উন্মাদিনী। বৃক্ষ দেখে বলে, তুমি বুঝি তপস্বী, শ্রীকৃষ্ণকে নিশ্চয় দেখেছ! তা না হলে নিশ্চল, সমাধিস্থ হয়ে রয়েছ কেন? তৃণাচ্ছাদিত পৃথিবী দেখে বলে, হে পৃথিবী, তুমি নিশ্চিত তাঁকে দর্শন করেছ, না হলে তুমি রোমাঞ্চিত হয়ে রয়েছ কেন? অবশ্য তুমি তাঁর স্পর্শসুখ সম্ভোগ করেছ! আবার মাধবীকে দেখে বলে, ‘ও মাধবী, আমায় মাধব দে!’ গোপীদের প্রেমোন্মাদ!

Continuing, the Master said: "When Krishna suddenly disappeared (2016) in the act of dancing and playing with the gopis, they were beside themselves with grief. Looking at a tree, they said: "O tree, you must be a great hermit. You must have seen Krishna. Otherwise, why do you stand there motionless, as if absorbed in samadhi?' Looking at the earth covered with green grass, they said: 'O earth, you must have seen Krishna. Otherwise, why does your hair stand on end? You must have enjoyed the thrill of His touch.' Looking at the madhavi creeper, they said, 'O madhavi, give us back our Madhava!' The gopis were intoxicated with ecstatic love for Krishna. Akrura came to Vrindavan to take Krishna and Balarama to Mathura. When they mounted the chariot, the gopis clung to the wheels. They would not let the chariot move."

जब अक्रूर जी आए और श्रीकृष्ण तथा बलराम मथुरा जाने के लिए रथ पर बैठे, तो गोपीगण रथ के पहिये पकड़कर कहने लगीं, ‘जाने नहीं देंगे ।”

इतना कहकर श्रीरामकृष्ण फिर गाना गा रहे हैं –

` धरो ना धरो ना रथचक्र , रथ कि चक्रे चले ! 

जे चक्रेर चक्री हरि , जार चक्रे जगत चले !  

[ধরো না ধরো না রথচক্র, রথ কি চক্রে চলে!

যে চক্রের চক্রী হরি, যাঁর চক্রে জগৎ চলে!]

(भावार्थ) –“रथचक्र को न पकड़ो, न पकड़ो, क्या रथ चक्र से चलता है । इस चक्र के चक्री हरि हैं, जिनके चक्र से जगत् चलता है ।” 

श्रीरामकृष्ण कह रहे हैं – “क्या रथ चक्र से चलता है’ ये बातें मुझे बहुत ही हृदयस्पर्शी लगती हैं । ‘जिस चक्र से ब्रह्माण्ड घूमता है !’ (उसी चक्र को ) रथी (कृष्ण-बलराम ) की आज्ञा से सारथि (अक्रूर) चलाता है !”

[শ্রীরামকৃষ্ণ বলিতেছেন, “রথ কি চক্রে চলে” — এ-কথাগুলি আমার বড় লাগে।

“যে চক্রে ব্রহ্মাণ্ড ঘোরে!”

 “রথীর আজ্ঞা লয়ে সারথি চালায়!”

MASTER: "'Is it the wheels that make it move?' 'By whose will the worlds are moved.' The driver moves the chariot at his Master's bidding.' I feel deeply touched by these lines."]

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[🔆🙏नेता (पैगम्बर ,अवतार) के देह की विशेषता🔆🙏  हिन्दी 'जीवन-नदी के हर मोड़ पर' नामक पुस्तक के संस्मरणात्मक निबंध पृष्ठ ४० पर , लेख १८-`दर्शन बनाम फिलॉसफी' तथा 'लेख ५६-अल्मोड़ा यात्रा' में] "....." যাই হোক, I had small pox ডিসেম্বরের শেষের দিকে। ১লা জানুয়ারী আমি আর উঠতে পারছি না। दिसम्बर के अन्त में -'I had small pox' मुझे स्माल पॉक्स हो ही गया। मैं 1 जनवरी (वर्ष) को ही अचेत हो गया। उसके बाद क्या हुआ, कितने दिनों तक अचेत-अवस्था (या समाधि ?) में था- कुछ पता नहीं। हठात ऐसा लगा मानो मेरे कानों में जो ध्वनी आ रही है, वह मेरी जानी-पहचानी है, ऐसा लगा कि आज नेताजी का जन्मदिन (23 जनवरी?) है और उसी उपलक्ष्य में कोई शोभायात्रा जा रही है। मैं उन नारों को  (..... नेताजी अमर रहें जैसी ?) जानता हूँ। मैं भी अपने गले से आवाज निकालने की चेष्टा करता हूँ -'नेताजी अमर रहें' कहना चाहता हूँ; किन्तु कह नहीं पा रहा हूँ। अरे अरे, यह क्या हुआ, क्या हुआ?  मुझे ऐसा लग रहा था ... मानो मैं हाथ उठाकर कह रहा हूँ -'मैं जिन्दा हूँ अभी!' किन्तु, गले से आवाज नहीं निकल पा रही थी - और इस तरह २३ दिन बीत गये थे! 

इस बीच जो समय बीता था वह स्वप्न के समान अनुभव हो रहा था।  .... इसी क्रम में मैंने एक बार देखा कि मैं मर गया हूँ, और मुझे सजा-धजा कर बहुत से लोग ले जा रहे हैं। सभी बहुत उदास हैं, मैं भी सब कुछ देख पा रहा हूँ। ... कितनी दूर ले जा रहे हैं ये लोग ! वहाँ की धरती,आकाश, पेड़-पौधे, अदभुत-अदभुत पेड़ के पत्ते हैं, जिन पर रंग-बिरंगे फूल, सुंदर-सुन्दर फल लगे हुए हैं! ऊँची चढ़ाई -वृक्ष सुंदर फूल जिन्हें मैं पहचानता भी नहीं। एक छोटी सी पहाड़ी पर चढ़ने के बाद, मुझे धीरे-धीरे नीचे ले जा रहे हैं। बहुत दूर... बहुत दूर। उस छोटी सी पहाड़ी को पार करने के बाद मुझे धीरे से नीचे रख दिया गया। चिता सजाई गयी। उसके ऊपर शरीर को रख दिया गया, चिता में अग्नि प्रदान की गयी, मेरा शरीर जलकर राख में परिणत हो गया। 

[Compare the above scene by the folowing scene of chapter- 'The body falls ' of Mahamandal booklet - ` Sri Nabaniharan Mukhopadhyay- A Short Biography' published by ABVYM , in November, 2016. ...... " He passed away On 26 September 2016 -- at the Mahamandal Bhavan , Konnagar, West Bengal ...... Next day the body was taken to his ancestral home [Bhuvan Bhavan, Kulin Para] at Khardah. In Accordance with his last wishes the body was cremated at the cremation ground near his house, where his ancestors were also creamated. The body, duly dressed and garlanded , was carried there by Commanders of Vivek-Vahini, follwed by huge , disciplined procession. Cremation was comlete by 3.30 pm.     

उपरोक्त दृश्य की तुलना एबीवीवाईएम द्वारा नवंबर, 2016 में प्रकाशित महामंडल पुस्तिका - 'श्री नबानी हरन मुखोपाध्याय- एक लघु जीवनी' के अध्याय- 'द बॉडी फॉल्स' (The body falls) के निम्न दृश्य से करें। ......उनका निधन 26 सितंबर 2016 को - महामंडल भवन, कोन्नगर, पश्चिम बंगाल में …… अगले दिन पार्थिव शरीर को उनके पैतृक घर [भुवन भवन, कुलिन पारा] खरदह ले जाया गया। उनकी अंतिम इच्छा के अनुसार उनके घर के पास श्मशान घाट पर उनका अंतिम संस्कार किया गया, जहां उनके पूर्वजों का भी अंतिम संस्कार किया गया था। विवेक-वाहिनी के कमांडरों द्वारा विधिवत कपड़े पहने और माला पहनाई गई, जिसके बाद विशाल, अनुशासित जुलूस निकाला गया। दोपहर 3.30 बजे अंतिम संस्कार किया गया।

कई वर्षों बाद जब मैं अद्वैत आश्रम, मायावती गया हुआ था।  तब उस स्वप्न में देखे गए ठीक उसी दृश्य के समान वहाँ का  दृश्य भी दिखाई दिया ! मायावती में जहाँ पर कैप्टन सेवियर की समाधि -स्थल पर स्मृति फलक लगी हुई है, वहाँ जिस प्रकार के वृक्ष, पत्ते, फल-फूल लगे हुए हैं तथा थोड़ी सी चढ़ाई चढ़ने के बाद नीचे समतल भूमि है -ऐसा लगा उस दिन स्वप्न में मैंने ठीक इसी जगह को देखा था !

 (निर्विकल्प समाधि में ? ठाकुरदेव कहते थे जीवकोटि का मनुष्य 21 दिनों तक निर्विकल्प समाधि में रह सकता है, उसके बाद उसका शरीर सूखे पत्ते की तरह झड़ जाता है; पूज्य दादा 22 वें दिन पुनः अपने शरीर में लौट आये ! तो क्या दादा ईश्वर कोटि के मनुष्य नहीं थे ? ) इन्द्रियातीत सत्य का साक्षात्कार करने के बाद समाधि से पुनः शरीर में लौटा हुआ ईश्वर कोटि का मनुष्य ही महामण्डल आंदोलन का वुड बी लीडर/ भावी आध्यात्मिक शिक्षक बन सकता है।

किन्तु स्वामीजी के अद्वैत आश्रम के स्वप्न को साकार करने में अथक परिश्रम करने के कारण कैप्टन जेम्स हेनरी सेवियर आश्रम की स्थापना के बाद अधिक दिनों तक जीवित नहीं रह सके। 28 अक्तूबर, 1900 को उनका देहावसान हो गया। उनकी इच्छानुसार उनका दाहसंस्कार बिल्कुल शुद्ध-ब्राह्मण परम्परा में किया गया था। उनकी अर्थी को फूल मालाओं से ढँक दिया गया था, तथा केवल ब्राह्मण लोग ही उनकी अर्थी को कन्धा पर उठाकर ले जा रहे थे। और साथ में ब्राह्मण कुमार लोग वेदों का पाठ करते हुए चल रहे थे।

उनकी अर्थी को आश्रम से 2.5 की.मी. दूर जंगल के बीच से होकर गुजरती हुई जिस पगडंडी से होकर ले जाया जा रहा था, उसके दोनों ओर तरह-तरह के फूलों और फलों के पेड़ हैं। वहाँ की मिट्टी, आकाश, अदभुत-अदभुत पेड़ के पत्ते हैं, जिन पर रंग-बिरंगे फूल, सुंदर-सुन्दर फल लगे रहते हैं! एक छोटी सी पहाड़ी पर चढ़ने के बाद, धीरे-धीरे पगडण्डी नीचे घाटी की ओर चली जाती है। नीचे घाटी का वन भी सघन और सुंदर है। आश्रम से नीचे की ओर घाटी में जाने पर सारदा नदी है। मायावती में नदी के किनारे, जिस स्थान पर उनका अंतिम संस्कार पूर्ण हिन्दू परम्परा में किया गया,वहाँ के समाधि -स्थल पर कैप्टन सेवियर की 'स्मृतिफलक' लगी हुई है। 

 कैप्टन सेवियर की मृत्यु के समय स्वामी विवेकानन्द अपने दूसरे विदेश प्रवास पर थे। किन्तु उनको अपने समर्पित शिष्य कैप्टन सेवियर के गुजर जाने का पूर्वाभास (प्रिमोनीशन premonition) हो गया। स्वामीजी अपने विदेश-प्रवास को समय से पहले समाप्त कर,श्रीमती सेवियर को सांत्वना देने के लिए  अद्वैत आश्रम आए। सन 1901 ई. के प्रारम्भ में 3 जनवरी से 18 जनवरी तक वे यहाँ रहे। यह स्वामीजी की अद्वैत आश्रम की पहली और अंतिम यात्रा थी।

अद्वैत आश्रम, मायावती, हिमालय के प्रोस्पेक्ट्स को पढ़ने तथा कैप्टन सेवियर का दाह-संस्कार जिस नदी के किनारे हुआ था, वहां जाने की पगडंडी का विवरण पढ़ने के बाद, बरबस यह स्मरण हो आता है कि नवनीदा ने अपने पुनर्जन्म में  कैप्टन सेवियर होने का उल्लेख "জীবন নদীর বাঁকে বাঁকে-পৃষ্ঠ,২৯-৩০" में दो स्थानों पर किया है।

[मंगलवार, 17 जुलाई 2018/http://vivek-anjan.blogspot.com/2018/07/6.html]