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मंगलवार, 3 मार्च 2020

श्री नवनीहरण मुखोपाध्याय के पत्र : (49 -50) "Common Logic (बकलमा) : Family work first to do Swamiji's work."

[49]  
Bhuban Bhavan,
P.O. Balaram Dharma Sopan.
Khardah, North 24-Parganas (W.B)
Pin Code 743121
26 November 1994  
 Reference No : VYM/

कल्याणीय विजय , 
                           तुम्हारी १५ दिनांक की चिट्ठी मुझे आज मिली, बहुत अधिक व्यस्तता के कारण अब मैं ज्यादा पत्र नहीं लिख पाता हूँ। नोखा में प्रैक्टिस करने वाले तुम्हारे मौसरे भाई (साढू-डॉ विजय) की मौत का खबर सुनकर दुःखित हुआ। गया में काम होगा तो अच्छा ही है। कैम्प के बाद बची हुई राशि को केन्द्रीय संस्था के लिए भेज रहे हो, जानकर प्रसन्नता हुई।  

                       शरीर ही धर्म का पहला साधन है। शरीर से ही सब कुछ मिलता है। इसीलिये शरीर को झट से न छोड़ना। दुष्ट अहम् काल में चला जायेगा। किन्तु कल्याणकारी कार्यों को करने के लिए जितने अहम् की जरूरत होती है, वह तो रहना चाहिये। 

                   आत्मा किसी का दास नहीं है, न प्रारब्ध का न संचित का ! जब ज्ञान आ जाता है, तब कर्मबन्धन टूट जाता है। कर्मफल के बारे में कभी न सोचना। इतना मान लो कि जो अपने को ठाकुर और माँ की सन्तान समझता है, उसके लिये कर्मफल बेकार है। मैं तो उसे बिल्कुल भी नहीं मानता हूँ।  

                    तुम्हें डॉक्टर के पास नहीं जाना पड़ेगा, यह तो बहुत अच्छी बात है। परन्तु 'अन्दर की शान्ति भंग नहीं होना, और हृदयहीन होना ' --इन दोनों में बहुत फर्क है। 

                    सहनशील रहते हुए भी कुशाग्र -बुद्धि (acumenपर अधिकार प्राप्त करना सम्भव है। कुशाग्रबुद्धि और सहनशीलता - ये दोनों परस्पर विरोधी नहीं हैं। ये दोनों अलग -अलग गुण हैं, और दोनों को रखना चाहिये। जो निर्बुद्धि है, उसकी सहनशीलता का कई मतलब ही नहीं होता है। 'पुरुषकार' तो और एक तीसरा गुण है, जिसके बिना मानवजीवन - व्यर्थ हो जाता है। 
                
                  स्वामी जी में पुरुषकार कितना था ; पर उनकी सहनशीलता भी आकाश जैसी थी। यदि तुम यह समझते हो कि 'पुरुषकार' - संचित को भी नष्ट कर सकता है, तब तुम स्वामी जी को भी कुछ समझ सकोगे। यही सत्य है, मान लो

                    केवल गृहस्थ ही क्यों संन्यास में भी त्यागी होना बहुत ही कठिन है। श्री रामकृष्ण देव कहते थे - 'एक कौपीन के वास्ते क्या -क्या हो जाता है !' गृहस्थ के लिए यह और कठिन है, पर धीरे धीरे सम्भव हो जाता है ---मैंने अपने जीवन में खुद देखा है। 

                     रजत ने मुझे झुमरीतिलैया से ही एक पत्र भेजा था। उसमें केवल वहां की इकाई के अध्यक्ष के बारे में कुछ आशंका उसने व्यक्त की थी। उसको तुमने जो कुछ बताया वह ठीक ही है, किन्तु -" मुझसे तब तक मत मिलो" --इतना कहना भी प्रेमविरोधी माना जायेगा। 

                      फुलवरिया, बरही, हजारीबाग, बसरिया आदि से जो लड़के आ रहे हैं, उनसे पता चलता है कि कुछ खास काम बनने वाला है। उनको हर प्रकार से मदद देते रहना उचित होगा। 

                      बहुत से लोग मुँह से कहेंगे कि महामण्डल का काम बहुत अच्छा है, लेकिन कहने से भी वे काम में भाग नहीं लेंगे। इससे नाराज न होना। ऐसी ही संसार की गति। 

                  अब तुम्हें और जितेन्द्र को कैम्प में आवश्यक कार्यों में लगना पड़ेगा। उद्घाटन सभा में जितेन्द्र बोलेगा। अनुवाद आदि कार्य तुमसे होगा। 

                 आशीर्वाद के साथ  
नवनीदा   
     
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[50] 
Bhuban Bhavan,
P.O. Balaram Dharma Sopan.
Khardah, North 24-Parganas (W.B)
Pin Code 743121
1 March 1995  
  Reference No : VYM/

May dear Bijay, 
                                 I received your long letter of 3rd February a few days back. Your doubts seem to be same as you have been experiencing., from time to time .
            
               No doubt without 'Vairagya' one can not be completely fearless . Bhartriharihari has said -वैराग्यमेवाभयम्‌॥ But even Sanyasins often are not found to have real Vairagya. So don't hurry for it. Swamiji said, 'First Bhog and then Yoga or Vairagya'. If you try Vairagya when you are not fit for it, you will lose both.That is not a good idea.

                 So, you have to look after your business, kids and day to day affairs. Do that with great care. If you cannot do it, know that Vairagya will not help you. I have repeated these again and again , but you have not yet understood.  

                   You need not try to convince everybody or look for cooperation from all. It will never come. It does not come from the world.  If you study Swamiji , you will know this. 

               Better read Mahamandal books repeatedly and clearly before you try to understand Swamiji. Swamiji said many things for all kinds of people, but everything is not for everybody. Do not commit this mistake that the highest teachings of Swamiji are for you now

                  Don't worry. You have repeated almost the same things about which I wrote several times in the past. Do you think you can shake off your attachment to Body -mind at one moment ? No, it is not possible. And trying to do that you are losing your peace and practical efficiency .  If you do Mahamandal work without emotion, I assure you will get Mukti in the long run . But if hurry for it now you will lose everything. 
                   
                       As you will not be allowed to do Swamiji's work without doing service to family, common logic will ask you to do family work first, so that you  can do some work for Swamiji. Self-restraint does not mean keep aloof from wife , children, parents. Who has taught you such wrong things ? Even Thakur did not say so. Lead a normal life of a householder and do Swamiji's work.

           Time will come when when you can detach yourself from this . I take the responsibility to guide you suitably at all times. Give me your destiny in my hands. Don't think about it again.    

                       Translating into Hindi all the Mahamandal books is an important work.Do as much as you can. But, your wife is quite right when she reminds you of your duties to family, first. This is what the Mahamandal prescribes. Thank her for this reminder, she will then help you in your work

                     Yes, life after life we should desire to work for Swamiji's ideas. I am happy to know that Jitendra has changed.  Have you recognized the the medicine that worked ? It was nothing but Love ! I am very happy to know that a great change has come in all members of the unit there. 

                  Some people will cut jokes, That was the case with Ramakrishna and Vivekananda also. You are expected to swallow these and make no replies. A great western thinker said; ' Some insane persons are necessary to keep the- 'Sanity of the World.' What do fools understand about it ?  
  
            Blessings, blessings, blessings 
Yours affectionately

Nabanida.


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 ' বকলমা ' মানে- মনে মনে ভগবানকে সমস্ত ভার অর্পন করা। বকলমা দেওয়ার পরেও ইষ্টমন্ত্র জপ, কিম্বা দিনান্তেও ভগবানকে একবার স্মরণ করতে হয়। একেবারে বাসনাশূন্য হয় দু'একটি। যদি নির্বাসনা হতে পার,এক্ষুণি হয়। যতক্ষণ 'আমি' রয়েছে ততক্ষণ বাসনা তো থাকবেই। ওসব বাসনায় তোমাদের কিছু হবে না।তিনিই রক্ষা করবেন
- শ্রীশ্রীমা সারদামণি 
     








           









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