नींद खुलने पर भक्तों में से कोई कोई देखते हैं कि सबेरा हुआ है (मंगलवार, 17 अक्टूबर, 1882)। श्रीरामकृष्ण बालक की भाँति दिगम्बर हैं, और देव-देवियों के नाम उच्चारण करते हुए कमरे में टहल रहे हैं । आप कभी गंगादर्शन करते हैं, कभी देव-देवियों के चित्रों के पास जाकर प्रणाम करते हैं, और कभी मधुर स्वर में नामकीर्तन करते हैं । कभी कहते हैं- वेद, पुराण, तन्त्र, गीता, गायत्री, भागवत, भक्त, भगवान् । गीता को लक्ष्य करके अनेक बार कहते हैं- ‘त्यागी, त्यागी, त्यागी, त्यागी ।’ (गीता का सार है त्याग - कामिनी -कांचन में आसक्ति का त्याग) फिर कभी-‘तुम्हीं ब्रह्म हो, तुम्हीं शक्ति; तुम्हीं पुरुष; तुम्हीं प्रकृति; तुम्हीं विराट हो, तुम्हीं स्वराट् (स्वतन्त्र अद्वितीय सत्ता)-तुम्हीं नित्य हो, तुम्हीं लीलामयी; तुम्हीं (सांख्य के) चौबीस तत्त्व हो ।’
[নিদ্রাভঙ্গের পর ভক্তেরা কেউ কেউ দেখিতেছেন যে, প্রভাত হইয়াছে (১৭ই অক্টোবর, ১৮৮২; মঙ্গলবার, ১লা কার্তিক, শুক্লা পঞ্চমী)। শ্রীরামকৃষ্ণ বালকের ন্যায় দিগম্বর, ঠাকুরদের নাম করিতে করিতে ঘরে বেড়াইতেছেন। কখন গঙ্গাদর্শন, কখন ঠাকুরদের ছবির কাছে গিয়া প্রণাম, কখন বা মধুর স্বরে নামকীর্তন। কখন বলিতেছেন, বেদ, পুরাণ, তন্ত্র, গীতা, গায়ত্রী, ভাগবত-ভক্ত-ভগবান। গীতা উদ্দেশ করিয়া অনেকবার বলিতেছেন, ত্যাগী ত্যাগী ত্যাগী ত্যাগী। কখন বা — তুমিই ব্রহ্ম, তুমিই শক্তি; তুমিই পুরুষ, তুমিই প্রকৃতি; তুমিই বিরাট, তুমিই স্বরাট; তুমিই নিত্য, তুমিই লীলাময়ী; তুমিই চতুর্বিংশতি তত্ত্ব।
{At dawn some of the devotees were up. They saw the Master, naked as a child, pacing up and down the room, repeating the names of the various gods and goddesses. His voice was sweet as nectar. Now he would look at the Ganges, now stop in front of the pictures hanging on the wall and bow down before them, chanting all the while the holy names in his sweet voice. He chanted: "Veda, Purana, Tantra; Gita, Gayatri; Bhagavata, Bhakta, Bhagavan." Referring to the Gita, he repeated many times, "Tagi, tagi, tagi." (This word is formed by reversing the letters of "Gita". "Tagi" means "one who has renounced". Renunciation is the import of this sacred book.) Now and then he would say: "O Mother, Thou art verily Brahman, and Thou art verily Sakti. Thou art Purusha and Thou art Prakriti. Thou art Virat. Thou art the Absolute, and Thou dost manifest Thyself as the Relative. Thou art verily the twenty-four cosmic principles."
इधर कालीमन्दिर और राधाकान्त के मन्दिर में मंगलारती हो रही है और शंख-घण्टे बज रहे हैं । भक्त उठकर देखते हैं कि मन्दिर की फुलवाड़ी में देव-देवियों की पूजा के लिए फूल तोड़े जा रहे हैं, और प्रभाती रागों की लहरें फैलाती हुई नौबत बज रही है । नरेन्द्र आदि भक्त प्रातःक्रिया से निपटकर श्रीरामकृष्ण के पास आए । श्रीरामकृष्ण सहास्यमुख हो उत्तर-पूर्ववाले बरामदे में पश्चिम की ओर खड़े हैं।
[এদিকে ৺কালীমন্দিরে ও ৺রাধাকান্তের মন্দিরে মঙ্গল আরতি হইতেছে ও শাঁখঘন্টা বাজিতেছে। ভক্তেরা উঠিয়া দেখিতেছেন কালীবাড়ির পুষ্পোদ্যানে ঠাকুরদের পূজার্থ পুষ্পচয়ন আরম্ভ হইয়াছে ও প্রভাতী রাগের লহরী উঠাইয়া নহবত বাজিতেছে।
In the mean time the morning service had begun in the temples of Kali and Radhakanta. Sounds of conch-shells and cymbals were carried on the air. The devotees came outside the room and saw the priests and servants gathering flowers in the garden for the divine service in the temples. From the nahabat floated the sweet melody of musical instruments, befitting the morning hours.
नरेंद्र आदि भक्तगण प्रातः क्रिया से निपटकर श्रीरामकृष्ण के पास पहुंचे। श्रीरामकृष्ण सहास्य-मुख हो उत्तर-पूर्वी बरामदे के पश्चिम दिशा में खड़े हैं।
[নরেন্দ্রাদি ভক্তগণ প্রাতঃকৃত্য সমাপন করিয়া ঠাকুরের কাছে আসিয়া উপস্থিত হইলেন। ঠাকুর হাস্যমুখ, উত্তর-পূর্ব বারান্দার পশ্চিমাংশে দাঁড়াইয়া আছেন।
Narendra and the other devotees finished their morning duties and came to the Master. With a sweet smile on his lips Sri Ramakrishna was standing on the northeast verandah, close to his own room.
नरेन्द्र- (आते वक्त) मैंने देखा कि पंचवटी में कुछ नानकपन्थी साधु बैठे हैं ।
[নরেন্দ্র — পঞ্চবটীতে কয়েকজন নানাকপন্থী সাধু বসে আছে দেখলুম।
NARENDRA: "We noticed several sannyasis belonging to the sect of Nanak in the Panchavati."
श्रीरामकृष्ण- हाँ, वे कल आए थे । (नरेन्द्र से) तुम सब एक साथ चटाई पर बैठो, मैं देखूँ ।
{শ্রীরামকৃষ্ণ — হাঁ, তারা কাল এসেছিল! (নরেন্দ্রকে) তোমরা সকলে একসঙ্গে মাদুরে বস, আমি দেখি।
MASTER: "Yes, they arrived here yesterday. (To Narendra) I'd like to see you all sitting together on the mat."
सब भक्तों के चटाई पर बैठने के बाद श्रीरामकृष्ण आनन्द से देखने और उनसे बातचीत करने लगे। नरेन्द्र ने साधना (spiritual discipline) की बात छेड़ी ।
[ভক্তেরা সকলে মাদুরে বসিলে ঠাকুর আনন্দে দেখিতে লাগিলেন ও তাঁহাদের সহিত গল্প করিতে লাগিলেন। নরেন্দ্র সাধনের কথা তুলিলেন।
MASTER: "Yes, they arrived here yesterday. (To Narendra) I'd like to see you all sitting together on the mat."
[(17 अक्टूबर, 1882) श्रीरामकृष्ण वचनामृत- 10]
🔆🙏 वीरभाव की साधना कठिन है, सन्तानभाव अतिशुद्ध है 🔆🙏
[नरेन्द्रादि निवृत्ति- मार्ग (त्यागी मार्ग) के अधिकारी शिष्यों को 'वीरभाव'
से साधना करने का निषेध - 'सन्तानभाव' अतिशुद्ध]
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श्रीरामकृष्ण (नरेन्द्र आदि से)- भक्ति ही सार वस्तु है । ईश्वर को (के सगुण ब्रह्म श्रीरामकृष्ण को) प्यार करने से विवेक-वैराग्य आप ही आप आ जाते हैं ।
{শ্রীরামকৃষ্ণ (নরেন্দ্রাদির প্রতি) — ভক্তিই সার। তাঁকে ভালবাসলে বিবেক বৈরাগ্য আপনি আসে।
MASTER: "Bhakti, love of God, is the essence of all spiritual discipline. Through love one acquires renunciation and discrimination naturally."}
[माँ काली के अवतार वरिष्ठ श्रीरामकृष्ण को प्यार करने से - अर्थात उनके प्रिय शिष्य स्वामी विवेकानन्द की छवि पर मन को एकाग्र करने से - नवनीदा की भाषा में - "विवेक-दर्शन " का अभ्यास करने से `विवेक-स्रोत ' स्वतः उद्घाटित हो जाता है !
মা কালীর জ্যেষ্ঠ অবতার শ্রী রামকৃষ্ণ কে ভালবাসার মাধ্যমে - অর্থাৎ, তার প্রিয় শিষ্য স্বামী বিবেকানন্দের প্রতি মনকে কেন্দ্রীভূত করার মাধ্যমে - নবনিদার ভাষায় - "বিবেক-দর্শন" অনুশীলনের মাধ্যমে 'বিবেক উত্স' স্বয়ংক্রিয়ভাবে খুলে যায়!
By loving Sri Ramakrishna, an incarnation of Maa Kali - that is, by concentrating the mind on the image of his beloved disciple Swami Vivekananda - in the language of Navnida - by practicing "Vivek-darshan" the 'Vivek-source' automatically opens!]
नरेन्द्र- एक बात पूछूँ- क्या तन्त्रों में औरतों से मिलकर साधना करना कहा गया है?
[नरेंद्र: "क्या यह सच नहीं है कि तंत्र-मार्ग में स्त्री को साथ में रखकर आध्यात्मिक साधना करने का निर्देश दिया गया है?"}
{নরেন্দ্র — আচ্ছা, স্ত্রীলোক নিয়ে সাধন তন্ত্রে আছে?
NARENDRA: "Isn't it true that the Tantra prescribes spiritual discipline in the company of woman?"}
श्रीरामकृष्ण- वे सब अच्छे रास्ते नहीं; बड़े कठिन हैं, और उनसे प्रायः पतन हुआ करता है । तीन प्रकार की साधनाएँ हैं- वीरभाव, दासीभाव, मातृभाव । मेरी मातृभाव की साधना है । दासीभाव भी अच्छा है । `वीरभाव की साधना ' बड़ी कठिन है । सन्तानभाव (दिव्यभाव) बड़ा शुद्ध भाव है ।
[ किसी स्त्री को अपनी 'Mistress' (गुरुवाइन या रखैल) मानकर आध्यात्मिक साधना करना अत्यन्त कठिन है, उससे प्रायः मनुष्य देवभाव (100 %निःस्वार्थपरता) से पुनः पशुभाव (0 % निःस्वार्थपरता) में पतित हो जाता है। सन्तान भाव शुद्ध भाव है। ]
{শ্রীরামকৃষ্ণ — ও-সব ভাল পথ নয়, বড় কঠিন, আর পতন প্রায়ই হয়। বীরভাবে সাধন, দাসীভাবে সাধন, আর মাতৃভাবে সাধন! আমার মাতৃভাব। দাসীভাবও ভাল। বীরভাবে সাধন বড় কঠিন। সন্তানভাব বড় শুদ্ধভাব।
MASTER: "That is not desirable. It is a very difficult path and often causes the aspirant's downfall. There are three such kinds of discipline. One may regard woman (Woman is the symbol of the Divine Mother.) as one's mistress or look on oneself as her handmaid or as her child. I look on woman as my mother. To look on oneself as her handmaid is also good; but it is extremely difficult to practise spiritual discipline looking on woman as one's mistress. To regard oneself as her child is a very pure attitude."}
नानकपन्थी साधुओं ने आकर श्रीरामकृष्ण को ‘नमो नारायण’ कहकर अभिवादन किया । श्रीरामकृष्ण ने उनसे बैठने को कहा ।
[নানাকপন্থী সাধুরা ঠাকুরকে অভিবাদন করিয়া বলিলেন, “নমো নারায়ণায়।” ঠাকুর তাঁহাদের আসন গ্রহণ করিতে বলিলেন।
The sannyasis belonging to the sect of Nanak entered the room and greeted the Master, saying "Namo Narayanaya." ("Salutations to God." This is the way sadhus greet one another.) Sri Ramakrishna asked them to sit down.
[(17 अक्टूबर, 1882) श्रीरामकृष्ण वचनामृत- 10]
🔆🙏ईश्वर- कोटि के लिए सुई के छेद में ऊँट-हाथी घुसाना और निकालना सम्भव है🔆🙏
[ঈশ্বরে সব সম্ভব — Miracles]
श्रीरामकृष्ण कहते हैं- “ईश्वर के लिए कुछ भी असम्भव नहीं । उनका यथार्थ स्वरूप कोई नहीं बता सकता । सभी सम्भव है । दो योगी थे, ईश्वर की साधना करते थे । नारद ऋषि जा रहे थे । उनका परिचय पाकर एक ने कहा ‘तुम नारायण के पास से आते हो? वे क्या कर रहे हैं?’ नारदजी ने कहा, ‘मैं देख आया कि वे एक सुई के छेद में ऊँट-हाथी घुसाते हैं और फिर निकालते हैं ।’ उस पर एक ने कहा, इसमें आश्चर्य ही क्या है? उनके लिए सभी सम्भव है ।’ पर दूसरे ने कहा, ‘भला ऐसा कभी हो सकता है? तुम वहाँ गए ही नहीं ।’
{ঠাকুর বলিতেছেন, ঈশ্বরের পক্ষে কিছুই অসম্ভব নয়। তাঁর স্বরূপ কেউ মুখে বলতে পারে না। সকলই সম্ভব। দুজন যোগী ছিল, ঈশ্বরের সাধনা করে। নারদ ঋষি যাচ্ছিলেন। একজন পরিচয় পেয়ে বললেন, “তুমি নারায়ণের কাছ থেকে আসছ, তিনি কি করছেন?” নারদ বললেন, “দেখে এলাম, তিনি ছুচের ভিতর দিয়ে উট হাতি প্রবেশ করাচ্ছেন, আবার বার করছেন।” একজন বললে, “তার আর আশ্চর্য কি! তাঁর পক্ষে সবই সম্ভব।” কিন্তু অপরটি বললে, “তাও কি হতে পারে! তুমি কখনও সেখানে যাও নাই।”
MASTER: "Nothing is impossible for God. Nobody can describe His nature in words. Everything is possible for Him. There lived at a certain place two yogis who were practising spiritual discipline. The sage Narada was passing that way one day. Realizing who he was, one of the yogis said: 'You have just come from God Himself. What is He doing now?' Narada replied, 'Why, I saw Him making camels and elephants pass and repass through the eye of a needle.' At this the yogi said: 'Is that anything to wonder at? Everything is possible for God.' But the other yogi said: 'What? Making elephants pass through the eye of a needle — is that ever possible? You have never been to the Lord's dwelling-place.'}
दिन के नौ बजे होंगे । श्रीरामकृष्ण अपने कमरे में बैठे हैं । कोन्नगर से मनोमोहन सपरिवार आए हैं। उन्होंने प्रणाम करके कहा, “ इन्हें कलकत्ते ले जा रहा हूँ ! ” कुशल प्रश्न पूछने के बाद श्रीरामकृष्ण ने कहा, “आज माह का पहला दिन है और तुम तो कलकत्ते जा रहे हो; -क्या जाने कहीं कुछ खराबी न हो!” यह कहकर जरा हँसे और दूसरी बात कहने लगे ।
[বেলা প্রায় নয়টা। ঠাকুর নিজের ঘরে বসিয়া আছেন। মনোমহন কোন্নগর হইতে সপরিবারে আসিয়াছেন। মনোমোহন প্রণাম করিয়া বলিলেন, “এদের কলকাতায় নিয়ে যাচ্ছি।” ঠাকুর কুশল প্রশ্ন করিয়া বলিলেন, “আজ ১লা, অগস্ত্য, কলকাতায় যাচ্ছ; কে জানে বাপু!” এই বলিয়া একটু হাসিয়া অন্য কথা কহিতে লাগিলেন।
At nine o'clock in the morning, while the Master was still sitting in his room, Manomohan arrived from Konnagar with some members of his family. In answer to Sri Ramakrishna's kind inquiries, Manomohan explained that he was taking them to Calcutta. The Master said: "Today is the first day of the Bengali month, an inauspicious day for undertaking a journey. I hope everything will be well with you." With a smile he began to talk of other matters.
[(17 अक्टूबर, 1882) श्रीरामकृष्ण वचनामृत- 10]
🔆🙏नरेन्द्र को मग्न होकर ध्यान करने का उपदेश🔆🙏
[নরেন্দ্রকে মগ্ন হইয়া ধ্যানের উপদেশ ]
नरेन्द्र और उनके मित्र स्नान करके आए । श्रीरामकृष्ण ने व्यग्र होकर नरेन्द्र से कहा, “जाओ, बट के नीचे जाकर ध्यान करो । आसन दूँ?”
[নরেন্দ্র ও তাঁহার বন্ধুরা স্নান করিয়া আসিলেন। ঠাকুর ব্যগ্র হইয়া নরেন্দ্রকে বলিলেন, “যাও বটতলায় ধ্যান কর গে, আসন দেব?”
When Narendra and his friends had finished bathing in the Ganges, the Master said to them earnestly: "Go to the Panchavati and meditate there under the banyan-tree. Shall I give you something to sit on?"
नरेन्द्र और उनके कुछ मित्र पंचवटी के नीचे ध्यान कर रहे हैं । करीब साढ़े दस बजे होंगे । थोड़ी देर में श्रीरामकृष्ण वहाँ आए; मास्टर भी साथ हैं ।
[নরেন্দ্র ও তাঁহার কয়টি ব্রাহ্মবন্ধু পঞ্চবটীমূলে ধ্যান করিতেছিলেন। বেলা প্রায় সাড়ে দশটা। ঠাকুর শ্রীরামকৃষ্ণ কিয়ৎক্ষণ পরে সেইখানে উপস্থিত; মাস্টারও আসিয়াছেন। ঠাকুর কথা কহিতেছেন —
About half past ten Narendra and his Brahmo friends were meditating in the Panchavati. After a while Sri Ramakrishna came to them. M., too, was present.
श्रीरामकृष्ण कहते हैं- (ब्राह्म भक्तों से)- “ध्यान करते समय ईश्वर में डूब जाना चाहिए, ऊपर ऊपर तैरने से क्या पानी के नीचेवाले लाल मिल सकता है न?”
फिर आपने रामप्रसाद का एक गीत गाया-
डूब दे रे मन काली बोले। हृदी-रत्नाकरेर अगाध जले।
रत्नाकर नय शून्य कोखोन, दू -चार डूबे धन ना पेले,
तुमि दम- सामर्थ्ये एकडूबे जाओ, कूलकुंडलिनीर कूले।
ज्ञान-समुद्रेर माझे रे मन, शांतिरुपा मुक्ता फले,
तुमि भक्ती कोरे कूड़ाये पाबे, शिवजुक्ती मतो चाइले।
कामादी छय कुम्भीर आछे, आहार- लोभे सदाई चोले,
तुमि विवेक- हलदी गाये मेखे जाओ, छोबे ना तार गंध पेले।
रतन- माणिक्य कोतो पड़े आछे शेइ जले,
रामप्रसाद बोले झांप दिले, मिलबे रतन फले फले।
जिसका आशय इस प्रकार है- “ऐ मन, काली कहकर हृदयरूपी रत्नाकर के अथाह जल में डुबकी लगा । यदि दो ही चार डुबकियों में धन हाथ न लगा, तो भी रत्नाकर शून्य नहीं हो सकता । पूरा दम लेकर एक ऐसी डुबकी लगा कि तू कुलकुण्डलिनी के पास पहुँच जाय । ऐ मन, ज्ञानसमुद्र में शक्तिरूपी मुक्ताएँ पैदा होती हैं । यदि तू शिव की युक्ति के अनुसार भक्तिपूर्वक ढूँढ़ेगा तो तू उन्हें पा सकेगा । उस समुद्र में काम आदि छः घड़ियाल हैं, जो खाने के लोभ से सदा ही घूमते रहते हैं ।
[ ^षड्रिपु - (संस्कृत-अर्थ:छह शत्रु) कहते है, जो है: काम, क्रोध, लोभ, मोह, मद (अहं) और मात्सर्य (ईर्ष्या)।^The six passions: lust (काम का अर्थ है अत्यधिक लालसा। (कामना,वासना), anger ( क्रोध का अर्थ है गुस्सा और चिड़चिड़ाहट), avarice (लोभ का अर्थ है लालच), delusion ( मोह का अर्थ है लगाव,आकर्षण, क्षणभंगुर वस्तुओं के साथ मन का जुड़ाव), pride ( मद का अर्थ हैअभिमान, अहंकार), and envy (मात्सर्य का अर्थ है ईर्ष्या, घृणा, जलन, दूसरों की समृद्धि और प्रगति सहन न होना। ये सभी नकारात्मक लक्षण है, जो मनुष्य को मोक्ष या मोक्ष प्राप्त करने से रोकते हैं।इन भावनाओं के कारण मन अशांत रहता है और एकाग्र नहीं हो पाता।]
तो तू विवेक -प्रयोग (covishield vaccine) रूपी हल्दी बदन में चुपड़ ले-उसकी बू से वे तुझे छुएँगे नहीं। कितने ही लाल और मणिक उस जल में पड़े हैं । रामप्रसाद का कहना है कि यदि तू कूद पड़ेगा तो तुझे वे सब के सब मिल जाएँगे ।
{শ্রীরামকৃষ্ণ (ব্রাহ্মভক্তদের প্রতি) — ধ্যান করবার সময় তাঁতে মগ্ন হতে হয়। উপর উপর ভাসলে কি জলের নিচে রত্ন পাওয়া যায়?
এই বলিয়া ঠাকুর মধুর স্বরে গান গাহিতে লাগিলেন:
ডুব দে মন কালী বলে। হৃদি-রত্নাকরের অগাধ জলে।
রত্নাকর নয় শূন্য কখন, দু-চার ডুবে ধন না পেলে,
তুমি দম-সামর্থ্যে একডুবে যাও, কুলকুণ্ডলিনীর কূলে।
জ্ঞান-সমুদ্রের মাঝে রে মন, শান্তিরূপা মুক্তা ফলে,
তুমি ভক্তি করে কুড়ায়ে পাবে, শিবযুক্তি মতো চাইলে।
কামাদি ছয় কুম্ভীর আছে, আহার-লোভে সদাই চলে,
তুমি বিবেক-হলদি গায়ে মেখে যাও, ছোঁবে না তার গন্ধ পেলে।
রতন-মাণিক্য কতপড়ে আছে সেই জলে,
রামপ্রসাদ বলে ঝম্প দিলে, মিলবে রতন ফলে ফলে।
The Master said to the Brahmo devotees: "In meditation one must be absorbed in God. By merely floating on the surface of the water, can you reach the gems lying at the bottom of the sea?"Then he sang:
" Taking the name of Kali, dive deep down, O mind, Into the heart's fathomless depths, Where many a precious gem lies hid. But never believe the bed of the ocean bare of gems, If in the first few dives you fail; With firm resolve and self-control, Dive deep and make your way to Mother Kali's realm. Down in the ocean depths of heavenly Wisdom lie, The wondrous pearls of Peace, O mind; And you yourself can gather them. If you but have pure love and follow the scriptures' rule. Within those ocean depths, as well, Six alligators lurk ^lust, anger, and the rest —Swimming about in search of prey. Smear yourself with the turmeric of discrimination; The very smell of it will shield you from their jaws. Upon the ocean bed lie strewn, Unnumbered pearls and precious gems; Plunge in, says Ramprasad, and gather up handfuls there!}
* ब्राह्मसमाज वक्तृता और समाज संस्कार (Social Reforms)*
[(17 अक्टूबर, 1882) श्रीरामकृष्ण वचनामृत- 10]
🔆🙏 पहले ईश्वरलाभ (चपरास ), उसके बाद लोकशिक्षा 🔆🙏
[ব্রাহ্মসমাজ, বক্তৃতা ও সমাজসংস্কার (Social Reforms)
— আগে ঈশ্বরলাভ, পরে লোকশিক্ষা প্রদান ]