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मंगलवार, 23 मार्च 2021

🔆🙏ॐॐ ॐ ॐ ॐ परिच्छेद ~ 3, [(5 मार्च 1882) श्री रामकृष्ण वचनामृत-3 ] “मुमुक्षु (The seekers of TRUTH ! )

*परिच्छेद~ ३*

सर्वभूतस्थमात्मानं सर्वभूतानि चात्मनि । 

                 ईक्षते योगयुक्तात्मा सर्वत्र समदर्शनः ॥ (गीता, ६/२९)

[ सब जगह अपने स्वरूप को देखने वाला और ध्यानयोग से युक्त अन्तःकरणवाला योगी अपने स्वरूप को सम्पूर्ण प्राणियों में स्थित देखता है और सम्पूर्ण प्राणियों को अपने स्वरूप में देखता है।

*योगयुक्त अन्त:करण  और अहंकार से मोहित (Hypnotized) अन्तःकरण  का भेद बतलाते हुए कहते हैं - योगयुक्त अन्त:करण * de-hypnotized mind* वाला और सर्वत्र समदर्शी योगी आत्मा को सब भूतों में और भूतमात्र को आत्मा में देखता है। 

योग का फल - जिसने इन उपाधियों से परे अपने आत्मस्वरूप का  साक्षात्कार कर लिया,  वह पुरुष उस आध्यात्मिक दृष्टि से जब जगत् को देखता है;  तब उसे सर्वत्र व्याप्त आत्मा का ही अनुभव होता है। वह योगी स्वयं आत्मस्वरूप बन जाता है। मिट्टी की दृष्टि से 'घट' (नाम-रूप) मिथ्या है, और सुवर्ण की दृष्टि से 'आभूषण' भी मिथ्या (नश्वर) है। उसी प्रकार आत्मदृष्टि से आत्मा ही विद्यमान है और उससे भिन्न कोई वस्तु नहीं है।  जिसने अनेकता में एक सत्य का दर्शन कर लिया वही आत्मज्ञानी (ब्रह्मविद) पुरुष सर्वत्र समदृष्टि से ब्राह्मण, गाय, हाथी, श्वान और चाण्डाल को देख सकता है

[(5 मार्च 1882) श्री रामकृष्ण वचनामृत-3 ]

* तृतीय दर्शन* 

*नरेन्द्र भवनाथ तथा मास्टर* 

मास्टर उस समय वराहनगर में अपनी बहन के यहाँ ठहरे थे । जब से श्रीरामकृष्ण के दर्शन हुए तब से मन में सब समय उन्हीं का चिन्तन चल रहा है । मानो आँखों के सामने सदा वही आनन्दमय रूप दिखायी दे रहा हो, कानों में वही अमृतमयी वाणी सुनायी दे रही हो । मास्टर सोचने लगे, इस निर्धन ब्राह्मण ने इन गम्भीर आध्यात्मिक तत्त्वों को कैसे खोज निकाला, किस प्रकार उनका ज्ञान प्राप्त किया? इसके पहले उन्होंने इतनी सरलता से इन गूढ़ तत्त्वों को समझाते हुए कभी किसी को नहीं देखा था । मास्टर दिनरात यही विचार करने लगे कि कब उनके पास जाऊँ और उन्हें देखूँ ।

[মাস্টার তখন বরাহনগরে ভগিনীর বাড়িতে ছিলেন। ঠাকুর শ্রীরামকৃষ্ণকে দর্শন করা অবধি সর্বক্ষণ তাঁহারই চিন্তা। সর্বদাই যেন সেই আনন্দময় মূর্তি দেখিতেছেন ও তাঁহার সেই অমৃতময়ী কথা শুনিতেছেন। ভাবিতে লাগিলেন, এই দরিদ্র ব্রাহ্মণ কিরূপে এই সব গভীর তত্ত্ব অনুসন্ধান করিলেন ও জানিলেন? আর এত সহজে এই সকল কথা বুঝাইতে তিনি এ-পর্যন্ত কাহাকেও কখনও দেখেন নাই। কখন তাঁহার কাছে যাইবেন ও আবার তাঁহাকে দর্শন করিবেন এই কথা রাত্রদিন ভাবিতেছেন।
It was Sunday afternoon when M. came on his third visit to the Master. He had been profoundly impressed by his first two visits to this wonderful man. He had been thinking of the Master constantly, and of the utterly simple way he explained the deep truths of the spiritual life. Never before had he met such a man.

[(5 मार्च 1882) श्री रामकृष्ण वचनामृत-3 ]

🔆🙏श्री रामकृष्ण देव के भक्तों ( devotees ) एवं शिष्यों (disciples) में अन्तर🔆🙏
   
देखते ही देखते रविवार (५ मार्च) आ गया । वराहनगर के नेपालबाबू के साथ दोपहर को तीन-चार बजे के लगभग मास्टर दक्षिणेश्वर में आ पहुँचे । देखा, श्रीरामकृष्ण अपने कमरे में छोटे तखत के ऊपर विराजमान हैं। कमरा भक्तों ( devotees ) ^  से ठसा-ठस भरा हुआ है । रविवार के कारण अवसर पाकर कई भक्त दर्शन के लिए हैं । उस समय मास्टर का किसी के साथ परिचय नहीं हुआ था; वे भीड़ में एक ओर जाकर बैठ गए । देखा, श्रीरामकृष्ण भक्तों के साथ प्रसन्नमुख हो वार्तालाप कर रहे हैं ।

[দেখিতে দেখিতে রবিবার আসিয়া পড়িল। বরাহনগরের নেপালবাবুর সঙ্গে বেলা ৩টা-৪টার সময় তিনি দক্ষিণেশ্বরের বাগানে আসিয়া পৌঁছিলেন। দেখিলেন, সেই পূর্বপরিচিত ঘরের মধ্যে ঠাকুর শ্রীরামকৃষ্ণ ছোট তক্তপোশের উপর বসিয়া আছেন। ঘরে একঘর লোক। রবিবারে অবসর হইয়াছে, তাই ভক্তেরা দর্শন করিতে আসিয়াছেন। এখনও মাস্টারের সঙ্গে কাহারও আলাপ হয় নাই, তিনি সভামধ্যে একপার্শ্বে আসন গ্রহণ করিলেন। দেখিলেন, ভক্তসঙ্গে সহাস্যবদনে ঠাকুর কথা কহিতেছেন।
Sri Ramakrishna was sitting on the small couch. The room was filled with devotees,2 who had taken advantage of the holiday to come to see the Master. M. had not yet become acquainted with any of them; so he took his seat in a corner. The Master smiled as he talked with the devotees

[^भक्तों ( devotees ) शब्द का प्रयोग श्रीरामकृष्ण वचनामृत में आमतौर पर भगवान श्रीरामकृष्ण परमहंस को अपना इष्टदेव (Personal God) समझकर इनकी पूजा करने वाले  उन भक्तों के लिए किया गया है जो श्री रामकृष्णदेव के उपासक हैं तथा अपने जीवन में  भी उनकी शिक्षाओं का पालन करते हैं  जबकि श्री रामकृष्ण के "शिष्य" (disciple of Sri Ramakrishna) शब्द का प्रयोग जगद्गुरु श्री रामकृष्ण के उन शिष्यों के संबंध में किया जाता है, जिसे स्वयं श्री रामकृष्ण ने आध्यात्मिक जीवन में दीक्षित किया था और जो उन्हें अपना गुरु (मार्गदर्शक नेता) मानते थे।
 ^The word 'devotees' is generally used in the text to denote one devoted to God, a worshipper of the Personal God, or a follower of the path of love. A devotee of Sri Ramakrishna is one who is devoted to Sri Ramakrishna and follows his teachings. The word "disciple", when used in connexion with Sri Ramakrishna, refers to one who had been initiated into spiritual life by Sri Ramakrishna and who regarded him as his guru.]

एक उन्नीस साल के लड़के की ओर देखते हुए श्रीरामकृष्ण बड़े आनन्द के साथ वार्तालाप कर रहे हैं। लड़के का नाम है नरेन्द्र१ (१.बाद में ये ही स्वामी विवेकानन्द के नाम से प्रसिद्ध हुए)। अभी ये कालेज में पढ़ते हैं और साधारण ब्राह्मसमाज में कभी कभी जाते हैं । इनकी आँखें पानीदार और बातें जोशीली हैं । चेहरे पर भक्तिभाव है । 

[একটি ঊনবিংশতিবর্ষ বয়স্ক ছোকরাকে উদ্দেশ করিয়া ও তাঁহার দিকে তাকাইয়া ঠাকুর যেন কত আনন্দিত হইয়া অনেক কথা বলিতেছিলেন। ছেলেটির নাম নরেন্দ্র। কলেজে পড়েন ও সাধারণ ব্রাহ্মসমাজে যাতায়াত করেন। কথাগুলি তেজঃপরিপূর্ণ। চক্ষু দুটি উজ্জ্বল। ভক্তের চেহারা।
He addressed his words particularly to a young man of nineteen, named Narendranath, (Subsequently world-famous as Swami Vivekananda.) who was a college student and frequented the Sadharan Brahmo Samaj. His eyes were bright, his words were full of spirit, and he had the look of a lover of God.

[(5 मार्च 1882) श्री रामकृष्ण वचनामृत-3 ]

🔆🙏विषयासक्त दुर्जन व्यक्तियों के साथ कैसा बर्ताव करना चाहिए ?🔆🙏   

मास्टर को अनुमान से मालुम हुआ कि विषयासक्त संसारियों की बातें चल रही हैं । ये लोग ईश्वरभक्त, धर्मपरायण व्यक्तियों की निन्दा किया करते हैं । फिर संसार में कितने दुर्जन व्यक्ति हैं, उनके साथ किस प्रकार बर्ताव करना चाहिए- ये सब बातें होने लगीं ।

[মাস্টার অনুমানে বুঝিলেন যে, কথাটি বিষয়াসক্ত সংসারী ব্যক্তির সম্বন্ধে হইতেছিল। যরা কেবল ঈশ্বর ঈশ্বর করে, ধর্ম ধর্ম করে তাদের ওই সকল ব্যক্তিরা নিন্দা করে। আর সংসারে কত দুষ্ট লোক আছে, তাদের সঙ্গে কিরূপ ব্যবহার করা উচিত — এ-সব কথা হইতেছে।
M. guessed that the conversation was about worldly men, who look down on those who aspire to spiritual things. The Master was talking about the great number of such people in the world, and about how to deal with them.

श्रीरामकृष्ण (नरेन्द्र से)- क्यों नरेन्द्र, भला तू क्या कहेगा? संसारी मनुष्य तो आध्यात्मिक लोगों के बारे में न जाने क्या-क्या कहते हैं। पर याद रहे कि हाथी जब चलता है, तब उसके पीछे पीछे कितने ही जानवर बेतरह चिल्लाते हैं । पर हाथी पलटकर उन्हें देखता तक नहीं । तेरी कोई निन्दा करे तो तू उन्हें क्या समझेगा?

[শ্রীরামকৃষ্ণ (নরেন্দ্রের প্রতি) — নরেন্দ্র তুই কি বলিস? সংসারী লোকেরা কত কি বলে! কিন্তু দেখ, হাতি যখন চলে যায়, পেছনে কত জানোয়ার কত রকম চিৎকার করে। কিন্তু হাতি ফিরেও চায় না। তোকে যদি কেউ নিন্দা করে, তুই কি মনে করবি?
 "How do you feel about it? Worldly people say all kinds of things about the spiritually minded. But look here! When an elephant moves along the street, any number of curs and other small animals may bark and cry after it; but the elephant doesn't even look back at them. If people speak ill of you, what will you think of them?"

नरेन्द्र- मैं तो समझूँगा कि कुत्ते भौंकते हैं ।

[নরেন্দ্র — আমি মনে করব, কুকুর ঘেউ ঘেউ করছে।
NARENDRA: "I shall think that dogs are barking at me."

[(5 मार्च 1882) श्री रामकृष्ण वचनामृत-3 ]

🔆🙏योगयुक्तात्मा सर्वत्र समदर्शनः ~ हाथी नारायण है तो महावत भी नारायण है🔆🙏 

श्रीरामकृष्ण(सहास्य)- अरे नहीं, यहाँ तक नहीं । (सब का हास्य) सर्वभूतों में परमात्मा का ही वास है। पर मेल-मिलाप करना हो तो भले आदमियों से ही करना चाहिए, बुरे आदमियों से अलग ही रहना चाहिए । बाघ में भी परमात्मा का वास है, इसलिये क्या बाघ को भी गले लगाना चाहिए? (लोग हँस पड़े।) यदि कहो कि बाघ भी तो नारायण है, इसलिये क्यों भागें? इसका उत्तर यह है कि जो लोग कहते हैं कि भाग चलो, वे भी तो नारायण हैं, उनकी बात क्यों न मानो ?

[শ্রীরামকৃষ্ণ (সহাস্যে) — না রে, অত দূর নয়। (সকলের হাস্য) ঈশ্বর সর্বভূতে আছেন। তবে ভাল লোকের সঙ্গে মাখামাখি চলে; মন্দ লোকের কাছ থেকে তফাত থাকতে হয়। বাঘের ভিতরেও নারায়ণ আছেন; তা বলে বাঘকে আলিঙ্গন করা চলে না। (সকলের হাস্য) যদি বল বাঘ তো নারায়ণ, তবে কেন পালাব। তার উত্তর — যারা বলছে “পালিয়ে এস” তারাও নারায়ণ, তাদের কথা কেন না শুনি?
MASTER (smiling): "Oh, no! You mustn't go that far, my child! (Laughter.) God dwells in all beings. But you may be intimate only with good people; you must keep away from the evil-minded. God is even in the tiger; but you cannot embrace the tiger on that account. (Laughter.) You may say, 'Why run away from a tiger, which is also a manifestation of God?' The answer to that is: 'Those who tell you to run away are also manifestations of God — and why shouldn't you listen to them?'
 
“एक कहानी सुनो । किसी जंगल में एक महात्मा थे । उनके कई शिष्य थे । एक दिन उन्होंने अपने शिष्यों को उपदेश दिया कि सर्वभूतों में नारायण का वास है, यह जानकर सभी को नमस्कार करो । एक दिन एक शिष्य हवन के लिए जंगल में लकड़ी लेने गया । उस समय जंगल में यह शोरगुल मचा था कि कोई कहीं हो तो भागो, पागल हाथी जा रहा है । सभी भाग गए, पर एक शिष्य न भागा । 

[“একটা গল্প শোন্‌। কোন এক বনে একটি সাধু থাকেন। তাঁর অনেকগুলি শিষ্য। তিনি একদিন শিষ্যদের উপদেশ দিলেন যে, সর্বভূতে নারায়ণ আছেন, এইটি জেনে সকলকে নমস্কার করবে। একদিন একটি শিষ্য হোমের জন্য কাঠ আনতে বনে গিছল। এমন সময়ে একটা রব উঠল, ‘কে কোথায় আছ পালাও — একটা পাগলা হাতি যাচ্ছে।’ সবাই পালিয়ে গেল, কিন্তু শিষ্যটি পালাল না! 
"Let me tell you a story. In a forest there lived a holy man who had many disciples. One day he taught them to see God in all beings and, knowing this, to bow low before them all. A disciple went to the forest to gather wood for the sacrificial fire. Suddenly he heard an outcry: 'Get out of the way! A mad elephant is coming!' All but the disciple of the holy man took to their heels. 
  
" उसे तो यह विश्वास था कि हाथी भी नारायण है, इसलिये भागने का क्या काम? वह खड़ा ही रहा । हाथी को नमस्कार किया और उसकी स्तुति करने लगा । इधर महावत के ऊँची आवाज लगाने पर भी कि भागो भागो, उसने पैर न उठाए । पास पहुँचकर हाथी ने उसे सूँड से लपेटकर एक ओर फेंक दिया और अपना रास्ता लिया । शिष्य घायल हो गया और बेहोश पड़ा रहा ।

[সে জানে যে, হাতিও যে নারায়ণ তবে কেন পালাব? এই বলিয়া দাঁড়িয়ে রইল। নমস্কার করে স্তবস্তুতি করতে লাগল। এদিকে মাহুত চেঁচিয়ে বলছে ‘পালাও, পালাও’; শিষ্যটি তবুও নড়ল না। শেষে হাতিটা শুঁড়ে করে তুলে নিয়ে তাকে একধারে ছুঁড়ে ফেলে দিয়ে চলে গেল। শিষ্য ক্ষতবিক্ষত হয়ে ও অচৈতন্য হয়ে পড়ে রইল।
He reasoned that the elephant was also God in another form. Then why should he run away from it? He stood still, bowed before the animal, and began to sing its praises. The mahut of the elephant was shouting: 'Run away! Run away!' But the disciple didn't move. The animal seized him with its trunk, cast him to one side, and went on its way. Hurt and bruised, the disciple lay unconscious on the ground. 
         
 “ यह खबर गुरु के कान तक पहुँची । वे अन्य शिष्यों को साथ लेकर वहाँ गए और उसे आश्रम में उठा लाए । वहाँ उसकी दवा-दारू की, तब वह होश में आया । कुछ देर बाद किसी ने उससे पूछा, हाथी को आते सुनकर तुम वहाँ से हट क्यों न गए? उसने कहा कि गुरुजी ने कह तो दिया था कि जीव, जन्तु आदि सब में परमात्मा का ही वास है, नारायण ही सब कुछ हुए हैं, इसी से हाथी नारायण को आते देख मैं नहीं भागा ।    

[“এই সংবাদ পেয়ে গুরু ও অন্যান্য শিষ্যেরা তাকে আশ্রমে ধরাধরি করে নিয়ে গেল। আর ঔষধ দিতে লাগল। খানিক্ষণ পরে চেতনা হলে ওকে কেউ জিজ্ঞাসা করলে, ‘তুমি হাতি আসছে শুনেও কেন চলে গেলে না?’ সে বললে, ‘গুরুদেব আমায় বলে দিয়েছিলেন যে, নারায়ণই মানুষ, জীবজন্তু সব হয়েছেন। তাই আমি হাতি নারায়ণ আসছে দেখে সেখান থেকে সরে যাই নাই।’ 
Hearing what had happened, his teacher and his brother disciples came to him and carried him to the hermitage. With the help of some medicine he soon regained consciousness. Someone asked him, 'You knew the elephant was coming — why didn't you leave the place?' 'But', he said, 'our teacher has told us that God Himself has taken all these forms, of animals as well as men. Therefore, thinking it was only the elephant God that was coming, I didn't run away.' 

गुरुजी पास ही थे । उन्होंने कहा- बेटा, हाथी नारायण आ रहे थे, ठीक है; पर, महावत नारायण ने तो तुम्हें मना किया था । यदि सभी नारायण हैं तो उस महावत की बात पर विश्वास क्यों न किया? महावत नारायण की भी बात मान लेनी चाहिए थी । (सब हँस पड़े ।)

[গুরু তখন বললেন, ‘বাবা, হাতি নারায়ণ আসছিলেন বটে, তা সত্য; কিন্তু বাবা, মাহুত নারায়ণ তো তোমায় বারণ করেছিলেন। যদি সবই নারায়ণ তবে তার কথা বিশ্বাস করলে না কেন? মাহুত নারায়ণের কথাও শুনতে হয়।’ (সকলের হাস্য)
At this the teacher said: 'Yes, my child, it is true that the elephant God was coming; but the mahut God forbade you to stay there. Since all are manifestations of God, why didn't you trust the mahut's words? You should have heeded the words of the mahut God.' (Laughter.) 
   
 “शास्त्रों में है ‘आपो नारायणः’ –जल नारायण है । परन्तु किसी जल से देवता की सेवा होती है और किसी से लोग मुँह-हाथ धोते हैं, कपड़े धोते हैं और बर्तन माँजते हैं; किन्तु वह जल न पीते हैं, न ठाकुरजी की सेवा में ही लगाते हैं । इसी प्रकार साधु-असाधु, भक्त-अभक्त सभी के हृदय में नारायण का वास है; किन्तु असाधुओं, अभक्तों से व्यवहार या अधिक हेल-मेल नहीं चल सकता । किसी से सिर्फ बातचीत भर कर लेनी चाहिए और किसी से वह भी नहीं । ऐसे आदमियों से अलग रहना चाहिए।
[“শাস্ত্রে আছে ‘অপো নারায়ণঃ’ জল নারায়ণ। কিন্তু কোন জল ঠাকুর সেবায় চলে; আবার কোন জলে আঁচানো, বাসনমাজা, কাপড়কাচা কেবল চলে; কিন্তু খাওয়া বা ঠাকুরসেবা চলে না। তেমনি সাধু, অসাধু, ভক্ত, অভক্ত — সকলেরই হৃদয়ে নারায়ণ আছেন। কিন্তু অসাধু, অভক্ত, দুষ্ট লোকের সঙ্গে ব্যবহার চলে না। মাখামাখি চলে না। কারও সঙ্গে কেবল মুখের আলাপ পর্যন্ত চলে, আবার কারও সঙ্গে তাও চলে না। ওইরূপ লোকের কাছ থেকে তফাতে থাকতে হয়।”
"It is said in the scriptures that water is a form of God. But some water is fit to be used for worship, some water tor washing the face, and some only for washing plates or dirty linen. This last sort cannot be used for drinking or for a holy purpose. In like manner, God undoubtedly dwells in the hearts of all — holy and unholy, righteous and unrighteous; but a man should not have dealings with the unholy, the wicked, the impure. He must not be intimate with them. With some of them he may exchange words, but with others he shouldn't go even that far. He should keep aloof from such people."

[(5 मार्च 1882) श्री रामकृष्ण वचनामृत-3 ]

🔆🙏गृहस्थ तथा तमोगुण-`काटना मत फुँफकारना जरूर '🔆🙏 

एक भक्त- महाराज, यदि दुष्टजन अनिष्ट करने पर उतारू हों या कर डालें तो क्या चुपचाप बैठे रहना चाहिए? 
[একজন ভক্ত — মহাশয়, যদি দুষ্ট লোকে অনিষ্ট করতে আসে বা অনিষ্ট করে, তাহলে কি চুপ করে থাকা উচিত?
A DEVOTEE: "Sir, if a wicked man is about to do harm, or actually does so, should we keep quiet then?"

श्रीरामकृष्ण- दुष्टजनों के बीच रहने से उनसे अपना जी बचाने के लिए कुछ तमोगुण दिखाना चाहिए, परन्तु कोई अनर्थ कर सकता है, यह सोचकर उलटा उसी का अनर्थ न करना चाहिए । 

[শ্রীরামকৃষ্ণ — লোকের সঙ্গে বাস করতে গেলেই দুষ্ট লোকের হাত থেকে আপনাকে রক্ষা করবার জন্য একটু তমোগুণ দেখানো দরকার! কিন্তু সে অনিষ্ট করবে বলে উলটে তার অনিষ্ট করা উচিত নয়।
"A man living in society should make a show of tamas to protect himself from evil-minded people. But he should not harm anybody in anticipation of harm likely to be done him.
     
“एक कहानी सुनो।  किसी जंगल में कुछ चरवाहे गौएँ चराते थे । वहाँ एक बड़ा विषधर सर्प रहता था । उसके डर से लोग बड़ी सावधानी से आया-जाया करते थे । किसी दिन एक ब्रह्मचारीजी उसी रास्ते से आ रहे थे। चरवाहे दौड़ते हुए उनके पास आये और उनसे कहा- ‘महाराज, इस रास्ते से न जाइए; यहाँ एक साँप रहता है, बड़ा विषधर है ।’ ब्रह्मचारीजी ने कहा-‘तो क्या हुआ, बेटा, मुझे कोई डर नहीं, मैं मन्त्र जानता हूँ ।’ 
[“এক মাঠে এক রাখাল গরু চরাত। সেই মাঠে একটা ভয়ানক বিষাক্ত সাপ ছিল। সকলেই সেই সাপের ভয়ে অত্যন্ত সাবধানে থাকত। একদিন একটি ব্রহ্মচারী সেই মাঠের পথ দিয়ে আসছিল। রাখালেরা দৌড়ে এসে বললে, ‘ঠাকুর মহাশয়! ওদিক দিয়ে যাবেন না। ওদিকে একটা ভয়ানক বিষাক্ত সাপ আছে।’ ব্রহ্মচারী বললে, ‘বাবা, তা হোক; আমার তাতে ভয় নাই, আমি মন্ত্র জানি!’ 
"Listen to a story. Some cowherd boys used to tend their cows in a meadow where a terrible poisonous snake lived. Everyone was on the alert for fear of it. One day a brahmachari was going along the meadow. The boys ran to him and said; 'Revered sir, please don't go that way. A venomous snake lives over there.' 'What of it, my good children?' said the brahmachari. 'I am not afraid of the snake. I know some mantras.' 
  
यह कहकर ब्रह्मचारीजी उसी ओर चले गए । डर के मारे चरवाहे उनके साथ न गए । इधर साँप फन उठाये झपटता चला आ रहा था, परन्तु पास पहुँचने के पहले ही ब्रह्मचारीजी ने मन्त्र पढ़ा । साँप आकर उनके पैरों पर लोटने लगा । ब्रह्मचारीजी ने कहा-‘तू भला हिंसा क्यों करता है? ले, मैं तुझे मन्त्र देता हूँ । इस मन्त्र को जपेगा तो ईश्वर पर भक्ति होगी, तुझे ईश्वर के दर्शन होंगे; फिर यह हिंसावृत्ति न रह जाएगी ।’ यह कहकर ब्रह्मचारीजी ने साँप को मन्त्र दिया, और आध्यात्मिक जीवन में दीक्षित कर दिया । 

[এই কথা বলে ব্রহ্মচারী সেইদিকে চলে গেল। রাখালেরা ভয়ে কেউ সঙ্গে গেল না। এদিকে সাপটা ফণা তুলে দৌড়ে আসছে, কিন্তু কাছে না আসতে আসতে ব্রহ্মচারী যেই একটি মন্ত্র পড়লে, আমনি সাপটা কেঁচোর মতন পায়ের কাছে পড়ে রইল। ব্রহ্মচারী বললে, ‘ওরে, তুই কেন পরের হিংসা করে বেড়াস; আয় তোকে মন্ত্র দিব। এই মন্ত্র জপলে তোর ভগবানে ভক্তি হবে, ভগবানলাভ হবে, আর হিংসা প্রবৃত্তি থাকবে না।’ এই বলে সে সাপকে মন্ত্র দিল।
So saying, he continued on his way along the meadow. But the cowherd boys, being afraid, did not accompany him. In the mean time the snake moved swiftly toward him with upraised hood. As soon as it came near, he recited a mantra, and the snake lay at his feet like an earthworm. The brahmachari said: 'Look here. Why do you go about doing harm? Come, I will give you a holy word. By repeating it you will learn to love God. Ultimately you will realize Him and so get rid of your violent nature.'  Saying this, he taught the snake a holy word and initiated him into spiritual life. 

मन्त्र पाकर साँप ने गुरु को प्रणाम किया, और पूछा- ‘भगवन्, मैं क्या साधना करूँ?’ गुरु ने कहा- ‘इस मन्त्र को जप और हिंसा छोड़ दे ।’ चलते समय ब्रह्मचारीजी फिर आने का वचन दे गए। 

[ সাপটা মন্ত্র পেয়ে গুরুকে প্রণাম করলে আর জিজ্ঞাসা করলে, ‘ঠাকুর! কি করে সাধনা করব, বলুন?’ গুরু বললেন, ‘এই মন্ত্র জপ কর, আর কারও হিংসা করো না।’ ব্রহ্মচারী যাবার সময়ে বললে, ‘আমি আবার আসব।’
The snake bowed before the teacher and said, 'Revered sir, how shall I practise spiritual discipline?' 'Repeat that sacred word', said the teacher, 'and do no harm to anybody.' As he was about to depart, the brahmachari said, 'I shall see you again.'
 
 “इस प्रकार कुछ दिन बीत गए । चरवाहों ने देखा कि साँप अब काटता नहीं, ढेला मारने पर भी गुस्सा नहीं होता, केंचुए की तरह हो गया है । एक दिन चरवाहों ने उसके पास जाकर पूँछ पकड़कर उसे घुमाया और वहीँ पटक दिया । साँप के मुँह से खून बह चला, वह बेहोश पड़ा रहा; हिल-डुल तक न सकता था । चरवाहों ने सोचा कि साँप मर गया और यह सोचकर वहाँ से वे चले गए । 

[“এইরকম কিছুদিন যায়। রাখালেরা দেখে যে, সাপটা আর কামড়াতে আসে না! ঢ্যালা মারে তবুও রাগ হয় না, যেন কেঁচোর মতন হয়ে গেছে। একদিন একজন রাখাল কাছে গিয়ে ল্যাজ ধরে খুব ঘুরপাক দিয়ে তাকে আছড়ে ফেলে দিলে। সাপটার মুখ দিয়ে রক্ত উঠতে লাগল, আর সে অচেতন হয়ে পড়ল। নড়ে না, চড়ে না। রাখালেরা মনে করলে যে, সাপটা মরে গেছে। এই মনে করে তারা সব চলে গেল।
"Some days passed and the cowherd boys noticed that the snake would not bite. They threw stones at it. Still it showed no anger; it behaved as if it were an earthworm. One day one of the boys came close to it, caught it by the tail, and, whirling it round and round, dashed it again and again on the ground and threw it away. The snake vomited blood and became unconscious. It was stunned. It could not move. So, thinking it dead, the boys went their way.
 
“जब बहुत रात बीती तब साँप होश में आया और धीरे धीरे अपने बिल के भीतर गया । देह चूर चूर हो गयी थी, हिलने तक की शक्ति नहीं रह गयी थी । बहुत दिनों के बाद जब चोट कुछ अच्छी हुई तब भोजन की खोज में बाहर निकला । जब से मारा गया तब से सिर्फ रात को ही बाहर निकलता था । हिंसा करता ही न था । सिर्फ घास-फूस, फल-फूल खाकर रह जाता था । 

[“অনেক রাত্রে সাপের চেতনা হল। সে আস্তে আস্তে অতি কষ্টে তার গর্তের ভিতর চলে গেল। শরীর চূর্ণ — নড়বার শক্তি নাই। অনেকদিন পরে যখন অস্থিচর্মসার তখন বাহিরে আহারের চেষ্টায় রাত্রে এক-একবার চরতে আসত; ভয়ে দিনের বেলা আসত না, মন্ত্র লওয়া অবধি আর হিংসা করে না। মাটি, পাতা, গাছ থেকে পড়ে গেছে এমন ফল খেয়ে প্রাণধারণ করত।
"Late at night the snake regained consciousness. Slowly and with great difficulty it dragged itself into its hole; its bones were broken and it could scarcely move. Many days passed. The snake became a mere skeleton covered with a skin. Now and then, at night, it would come out in search of food. For fear of the boys it would not leave its hole during the day-time. Since receiving the sacred word from the teacher, it had given up doing harm to others. It maintained its life on dirt, leaves, or the fruit that dropped from the trees.
     
“सालभर बाद ब्रह्मचारी फिर आए । आते ही साँप की खोज करने लगे । चरवाहों ने कहा, ‘वह तो मर गया है’, पर ब्रह्मचारीजी को इस बात पर विश्वास न आया । वे जानते थे कि जो मन्त्र वे दे गए हैं, वह जब तक सिद्ध न होगा तब तक उसकी देह छूट नहीं सकती । ढूँढ़ते हुए उसी ओर वे अपने दिए हुए नाम से साँप को पुकारने लगे । बिल से गुरुदेव की आवाज सुनकर साँप निकल आया और बड़े भक्तिभाव से प्रणाम किया । 

[“প্রায় এক বৎসর পরে ব্রহ্মচারী সেইপথে আবার এল। এসেই সাপের সন্ধান করলে। রাখালেরা বললে, ‘সে সাপটা মরে গেছে।’ ব্রহ্মচারীর কিন্তু ও-কথা বিশ্বাস হল না! সে জানে, যে মন্ত্র ও নিয়েছে তা সাধন না হলে দেহত্যাগ হবে না। খুঁজে খুঁজে সেইদিকে তার নাম ধরে ডাকতে লাগল। সে গুরুদেবের আওয়াজ শুনে গর্ত থেকে বেড়িয়ে এল ও খুব ভক্তিভাবে প্রণাম করলে। 
"About a year later the brahmachari came that way again and asked after the snake. The cowherd boys told him that it was dead. But he couldn't believe them. He knew that the snake would not die before attaining the fruit of the holy word with which it had been initiated. He found his way to the place and, searching here and there, called it by the name he had given it. Hearing the teacher's voice, it came out of its hole and bowed before him with great reverence.
     
 ब्रह्मचारीजी ने पूछा, ‘क्यों कैसा है?’ उसने कहा, ‘जी अच्छा हूँ ।’ ब्रह्मचारीजी- ‘तो तू इतना दुर्बल क्यों हो गया?’ साँप ने कहा- ‘महाराज, जब से आप आज्ञा दे गए, तब से मैं हिंसा नहीं करता; फल-फूल, घास-पात खाकर पेट भर लेता हूँ; इसीलिए शायद दुबला हो गया हूँ ।’ 

[ব্রহ্মচারী জিজ্ঞাসা করলে, ‘তুই কেমন আছিস?’ সে বললে, ‘আজ্ঞে ভাল আছি।’ ব্রহ্মচারী বললে, ‘তবে তুই এত রোগা হয়ে গিছিস কেন?’ সাপ বললে, ‘ঠাকুর আপনি আদেশ করেছেন — কারও হিংসা করো না, তাই পাতাটা ফলটা খাই বলে বোধ হয় রোগা হয়ে গিছি!’ 
 'How are you?' asked the brahmachari. 'I am well, sir', replied the snake. 'But', the teacher asked, 'why are you so thin?' The snake replied: 'Revered sir, you ordered me not to harm anybody. So I have been living only on leaves and fruit. Perhaps that has made me thinner.'

सत्त्वगुण (quality of sattva) बढ़ जाने के कारण किसी पर वह क्रोध न कर सकता था । इसी से मार की बात भी वह भूल गया था । 

[ওর সত্ত্বগুণ হয়েছে কি না, তাই কারু উপর ক্রোধ নাই।  সে ভুলেই গিয়েছিল যে, রাখালেরা মেরে ফেলবার যোগাড় করেছিল।
"The snake had developed the quality of sattva; it could not be angry with anyone. It had totally forgotten that the cowherd boys had almost killed it.
   
ब्रह्मचारीजी ने कहा, ‘सिर्फ न खाने ही से किसी की यह दशा नहीं होती, कोई दूसरा कारण अवश्य होगा, तू अच्छी तरह सोच तो ।’ साँप को चरवाहों की मार याद आ गयी । उसने कहा- ‘हाँ महाराज, अब याद आयी, चरवाहों ने एक दिन मुझे पटक-पटककर मारा था । उन अज्ञानियों को तो मेरे मन की अवस्था मालुम थी नहीं । वे क्या जानें कि मैंने हिंसा छोड़ दिया है !’ 

[ ব্রহ্মচারী বললে, ‘শুধু না খাওয়ার দরুন এরূপ অবস্থা হয় না, অবশ্য আরও কারণ আছে, ভেবে দেখ।’ সাপটার মনে পড়ল যে, রাখালেরা আছাড় মেরেছিল। তখন সে বললে, ‘ঠাকুর মনে পড়েছে বটে, রাখালেরা একদিন আছাড় মেরেছিল। তারা অজ্ঞান, জানে না যে আমার মনের কি অবস্থা; আমি যে কাহাকেও কামড়াব না বা কোনরূপ অনিষ্ট করব না, কেমন করে জানবে?’
"The brahmachari said: 'It can't be mere want of food that has reduced you to this state. There must be some other reason. Think a little.' Then the snake remembered that the boys had dashed it against the ground. It said: 'Yes, revered sir, now I remember. The boys one day dashed me violently against the ground. They are ignorant, after all. They didn't realize what a great change had come over my mind. How could they know I wouldn't bite or harm anyone?'
    
 ब्रह्मचारीजी बोले- ‘राम राम, तू ऐसा मुर्ख है? अपनी रक्षा करना भी तू नहीं जानता? मैंने तो तुझे काटने ही को मना किया था, पर फुफकारने से तुझे कब रोका था? फुफकार मारकर उन्हें भय क्यों नहीं दिखाया?’ 

[ ব্রহ্মচারী বললে, ‘ছি! তুই এত বোকা, আপনাকে রক্ষা করতে জানিস না; আমি কামড়াতে বারণ করেছি, ফোঁস করতে নয়! ফোঁস করে তাদের ভয় দেখাস নাই কেন?’
The brahmachari exclaimed: 'What a shame! You are such a fool! You don't know how to protect yourself. I asked you not to bite, but I didn't forbid you to hiss. Why didn't you scare them by hissing?'

“इस तरह दुष्टों के पास फुफकार मारना चाहिए, भय दिखाना चाहिए, जिससे कि वे अनिष्ट न कर बैठें; पर उनमें विष न डालना चाहिए, उनका अनिष्ट न करना चाहिए ।” 
[“দুষ্ট লোকের কাছে ফোঁস করতে হয়, ভয় দেখাতে হয়, পাছে অনিষ্ট করে। তাদের গায়ে বিষ ঢালতে নাই, অনিষ্ট করতে নাই।”
"So you must hiss at wicked people. You must frighten them lest they should do you harm. But never inject your venom into them. One must not injure others.

 [(5 मार्च 1882) श्री रामकृष्ण वचनामृत-3 ]

🔆🙏चार प्रकार के मनुष्य -बद्ध, मुमुक्षु, मुक्त और नित्यमुक्त 🔆🙏 
         
श्रीरामकृष्ण-परमात्मा की सृष्टि में नाना प्रकार के जीव-जन्तु और पेड़-पौधे हैं । पशुओं में अच्छे हैं और बुरे भी। उनमें बाघ जैसा हिंस्त्र प्राणी भी है । पेड़ों में अमृत जैसे फल लगें ऐसे भी पेड़ हैं और विष जैसे फल हों ऐसे भी हैं । इसी प्रकार मनुष्यों में भी भले-बुरे और साधु-असाधु हैं । उनमें संसारी जीव (कामिनी -कांचन में आसक्त गृहस्थ) भी हैं और भक्त भी । 

[“ঈশ্বরের সৃষ্টিতে নানারকম জীবজন্তু, গাছপালা আছে। জানোয়ারের মধ্যে ভাল আছে মন্দ আছে। বাঘের মতো হিংস্র জন্তু আছে। গাছের মধ্যে অমৃতের ন্যায় ফল হয় এমন আছে; আবার বিষফলও আছে। তেমনি মানুষের মধ্যে ভাল আছে, মন্দও আছে; সাধু আছে, অসাধুও আছে; সংসারী জীব আছে আবার ভক্ত আছে।
["In this creation of God there is a variety of things: men, animals, trees, plants. Among the animals some are good, some bad. There are ferocious animals like the tiger. Some trees bear fruit sweet as nectar, and others bear fruit that is poisonous. Likewise, among human beings, there are the good and the wicked, the holy and the unholy. There are some who are devoted to God, and others who are attached to the world.

*जीव चार प्रकार के होते हैं। बद्ध, मुमुक्षु, मुक्त और नित्यमुक्त ।* 

[“জীব চারপ্রকার: — বদ্ধজীব, মুমুক্ষজীব, মুক্তজীব ও নিত্যজীব।
"Men may be divided into four classes: those bound by the fetters of the world, the seekers after liberation, the liberated, and the ever-free.

“नारदादि नित्यजीव हैं। ऐसे जीव औरों के हित के लिए उन्हें शिक्षा देने के लिए संसार में रहते हैं । 
[“নিত্যজীব: — যেমন নারদাদি। এরা সংসারে থাকে জীবের মঙ্গলের জন্য — জীবদিগকে শিক্ষা দিবার জন্য।
["Among the ever-free we may count sages like Narada. They live in the world for the good of others, to teach men spiritual truth.

“बद्ध जीव इन्द्रिय विषयों में फँसा रहता है। (रूप,रस, शब्द,गंध और स्पर्श जैसे विषयों में  फँसा रहता है, 
" अली-मृग-मीन-पतंग-गज जरै एक ही आँच ! 
तुलसी वे कैसे जियें जिन्हें जरावे पाँच।।  

वह ईश्वर को भूल जाता है, भगवच्चिन्तन वह कभी नहीं करता । 

[“বদ্ধজীব: — বিষয়ে আসক্ত হয়ে থাকে, আর ভগবানকে ভুলে থাকে — ভুলেও ভগবানের চিন্তা করে না।
"Those in bondage are sunk in worldliness and forgetful of God. Not even by mistake do they think of God.

“मुमुक्षु (The seekers after liberation, The seekers of TRUTH !) जीव वह है जो मुक्ति की इच्छा रखता है । मुमुक्षुओं में से कोई कोई मुक्त हो जाते हैं, कोई कोई नहीं हो सकते ।

[उन एथेन्स के सत्यार्थियों में से कुछ `सिंह-शावक ' तो अपने गुरु/नेता की कृपा से उस इन्द्रियातीत सत्य का साक्षात्कार करके भ्रम-मुक्त (de-hypnotized) हो जाते हैं , और कुछ नहीं हो पाते ! ] 
 
[“মুমুক্ষজীব: — যারা মুক্ত হবার ইচ্ছা করে। কিন্তু তাদের মধ্যে কেউ মুক্ত হতে পারে, কেউ বা পারে না।
"The seekers after liberation want to free themselves from attachment to the world. Some of them  succeed and others do not.

“मुक्त जीव संसार के कामिनी-कांचन में नहीं फँसते, जैसे साधु-महात्मा । इनके मन में विषय-बुद्धि नहीं रहती । ये सदा ईश्वर के ही पादपद्मों की चिन्ता करते हैं । 

[“মুক্তজীব: — যারা সংসারে কামিনী-কাঞ্চনে আবদ্ধ নয় — যেমন সাধু-মহাত্মারা; যাদের মনে বিষয়বুদ্ধি নাই, আর যারা সর্বদা হরিপাদপদ্ম চিন্তা করে।
"The liberated souls, such as the sadhus and mahatmas, are not entangled in the world, in 'woman and gold'. Their minds are free from worldliness. Besides, they always meditate on the Lotus Feet of God.

[1. बद्ध (bound by the fetters of the world) -
`मन ही मनुष्य के मोक्ष और बंधन का कारण है' - जानकर भी
 मन के गुलाम ,कामिनी-कांचन में आसक्त,माया-जाल में फंसे हुए मनुष्य
 
2. मुमुक्षु (The seekers after liberation)- मन की गुलामी से मुक्ति 
की इच्छा रखने वाले, अतः मनःसंयोग का अभ्यास करने वाले। 

3. मुक्त (the liberated)-मुमुक्षुओं में कोई-कोई राजर्षि जनक जैसे सद्गुरु की कृपा से कामिनी-कांचन में आसक्ति त्याग कर गुरु आज्ञा से नेता के कर्तव्य-पालन करते हैं। 

4.नित्यमुक्त (the ever-free)-नारद, शुकदेव,आचार्य शंकरऔर 
युवा आदर्श स्वामी विवेकानन्द  जैसे मानवजाति के मार्गदर्शक नेता।  
     
“जब जाल तालाब में फेंका जाता है, तब जो दो-चार होशियार मछलियाँ होती हैं, वे जाल में नहीं आतीं । यह नित्य जीवों की उपमा है । किन्तु अनेक मछलियाँ जाल में फँस जाती हैं । इनमें से कुछ निकल भागने की भी चेष्टा करती हैं । यह मुमुक्षुओं की उपमा है । परन्तु सब मछलियाँ नहीं भाग सकतीं । केवल दो चार उछल-उछलकर जाल से बाहर हो जाती हैं । तब मछुआ कहता है, अरे एक बड़ी मछली बह गयी । किन्तु जो जाल में पड़ी हैं, उनमें से अधिकांश मछलियाँ निकल नहीं सकतीं । वे भागने की चेष्टा भी नहीं करतीं, जाल को मुँह में फाँसकर मिट्टी के नीचे सिर घुसेड़कर चुपचाप पड़ी रहती हैं और सोचती हैं, अब कोई भय की बात नहीं, बड़े आनन्द में हैं । पर वे नहीं जानतीं कि मछुआ घसीटकर उन्हें ले जाएगा । यह बद्ध जीवों की उपमा है । 

[“যেমন জাল ফেলা হয়েছে পুকুরে। দু-চারটা মাছ এমন সেয়ানা যে, কখনও জালে পড়ে না — এরা নিত্যজীবের উপমাস্থল। কিন্তু অনেক মাছই জালে পড়ে। এদের মধ্যে কতকগুলি পালাবার চেষ্টা করে। এরা মুমুক্ষুজীবের উপমাস্থল। কিন্তু সব মাছই পালাতে পারে না। দু-চারটে ধপাঙ ধপাঙ করে জাল থেকে পালিয়ে যায়, তখন জেলেরা বলে, ওই একটা মস্ত মাছ পালিয়ে গেল! কিন্তু যারা জালে পড়েছে, অধিকাংশই পালাতেও পারে না; আর পালাবার চেষ্টাও করে না। বরং জাল মুখে করে, পুকুরের পাঁকের ভিতরে গিয়ে চুপ করে মুখ গুঁজরে শুয়ে থাকে — মনে করে, আর কোন ভয় নাই, আমরা বেশ আছি। কিন্তু জানে না যে, জেলে হড় হড় করে টেনে আড়ায় তুলবে। এরাই বদ্ধজীবের উপমাস্থল।”
["Suppose a net has been cast into a lake to catch fish. Some fish are so clever that they are never caught in the net. They are like the ever-free. But most of the fish are entangled in the net. Some of them try to free themselves from it, and they are like those who seek liberation. But not all the fish that struggle succeed; A very few do jump out of the net, making a big splash in the water. Then the fishermen shout, 'Look! There goes a big one!' But most of the fish caught in the net cannot escape, nor do they make any effort to get out. On the contrary, they burrow into the mud with the net in their mouths and lie there quietly, thinking, 'We need not fear any more; we are quite safe here.' But the poor things do not know that the fishermen will drag them out with the net. These are like the men bound to the world.

 [(5 मार्च 1882) श्री रामकृष्ण वचनामृत-3 ]

🔆🙏कामिनी-कांचन में आसक्त गृहस्थ ही बद्ध जीव हैं 🔆🙏  
   
 “बद्ध जीव संसार के कामिनी-कांचन  (woman and gold *) में फँसे हैं। उनके हाथ पैर बँधे हैं; किन्तु फिर भी वे सोचते हैं कि संसार में कामिनी-कांचन में ही सुख है और यहाँ हम निर्भय हैं। वे नहीं जानते, इन्हीं में उनकी मृत्यु होगी । बद्ध जीव जब मरता है, तब उसकी स्त्री कहती है, तुम तो चले, पर मेरे लिए क्या कर गए?’ माया भी ऐसी होती है कि बद्ध जीव पड़ा तो है मृत्युशय्या पर, पर चिराग में ज्यादा बत्ती जलती हुई देखकर कहता है, ‘तेल बहुत जल रहा है, बत्ती कम करो !’ 

[“বদ্ধজীবেরা সংসারে কামিনী-কাঞ্চনে বদ্ধ হয়েছে, হাত-পা বাঁধা। আবার মনে করে যে, সংসারের ওই কামিনী ও কাঞ্চনেতেই সুখ হবে, আর নির্ভয়ে থাকবে। জানে না যে, ওতেই মৃত্যু হবে। বদ্ধজীব যখন মরে তার পরিবার বলে, ‘তুমি তো চললে, আমার কি করে গেলে?’ আবার এমনি মায়া যে, প্রদীপটাতে বেশি সলতে জ্বললে বদ্ধজীব বলে, ‘তেল পুড়ে যাবে সলতে কমিয়ে দাও।’ এদিকে মৃত্যুশয্যায় শুয়ে রয়েছে!
"The bound souls are tied to the world by the fetters of 'woman and gold'. They are bound hand and-foot. Thinking that 'woman and gold' will make them happy and give them security, they do not realize that it will lead them to annihilation. When a man thus bound to the world is about to die, his wife asks, 'You are about to go; but what have you done for me?' Again, such is his attachment to the things of the world that, when he sees the lamp burning brightly, he says: 'Dim the light. Too much oil is being used.' And he is on his death-bed!]

“बद्ध जीव ईश्वर का स्मरण नहीं करता । यदि अवकाश मिला तो या तो गप करता है या फालतू काम करता है । पूछने पर कहता है, ‘क्या करूँ, चुपचाप बैठ नहीं सकता, इसी से घेरा बाँध रहा हूँ ।’ कभी ताश ही खेलकर समय काटता है ।” (सब स्तब्ध होकर सुन रहे हैं ।)

[“বদ্ধজীবেরা ঈশ্বরচিন্তা করে না। যদি অবসর হয় তাহলে হয় আবোল-তাবোল ফালতো গল্প করে, নয় মিছে কাজ করে। জিজ্ঞাসা করলে বলে, আমি চুপ করে থাকতে পারি না, তাই বেড়া বাঁধছি। হয়তো সময় কাটে না দেখে তাস খেলতে আরম্ভ করে।” (সকলে স্তব্ধ)
"The bound souls never think of God. If they get any leisure they indulge in idle gossip and foolish talk, or they engage in fruitless work. If you ask one of them the reason, he answers, 'Oh, I cannot keep still; so I am making a hedge,' When time hangs heavy on their hands they perhaps start playing cards."

(2)

यो मामजमनादिं च वेत्ति लोकमहेश्वरम् । 
            असंमूढः स मर्त्येषु सर्वपापैः प्रमुच्यते ॥ 

(गीता, १०/३)

[ जो मुझे (श्रीरामकृष्ण को माँ काली का अवतार) होने पर भी अजन्मा, अनादि और लोकों के महान् ईश्वर के रूप में जानता है, मर्त्य मनुष्यों में ऐसा असंमूढः अर्थात 'सम्मोह-रहित पुरुष' 
(DeHypnotized- ज्ञानी) सब पापों से मुक्त हो जाता है।। 

क्योंकि मैं माँ काली का अवतार हूँ , इसलिए सभी महर्षियों का और देवों का आदिकारण हूँ।  मेरा आदि कारण दूसरा कोई नहीं है,  इसलिये मैं अजन्मा और अनादि हूँ। अनादित्व ही जन्मरहित होने में कारण है। इस प्रकार जो मुझे जन्मरहित अनादि और लोकोंका महान् ईश्वर अर्थात् अज्ञान और उसके कार्यसे रहित ( जाग्रत, स्वप्न, सुषुप्ति -- इन तीनों अवस्थाओं से अतीत) चतुर्थअवस्था-युक्त जानता है;  वह ( इस प्रकार जाननेवाला ) मनुष्यों में ज्ञानी है, असंमूढः अर्थात् मोह से रहित श्रेष्ठ पुरुष है और वह जानबूझकर किये हुए या बिना जाने किये हुए सभी पापों से मुक्त हो जाता है।] 

 [(5 मार्च 1882) श्री रामकृष्ण वचनामृत-3 ]

🔆🙏विषयासक्त गृहस्थों की मुक्ति का उपाय~ श्रद्धा और विवेक-प्रयोग 🔆🙏 

एक भक्त- महाराज, इस प्रकार के संसारी जीवों के लिए क्या कोई उपाय नहीं है? 

[একজন ভক্ত — মহাশয়, এরূপ সংসারী জীবের কি উপায় নাই?
A DEVOTEE: "Sir, is there no help, then, for such a worldly person?"

श्रीरामकृष्ण- “उपाय अवश्य है । कभी कभी साधुओं का संग करना चाहिए और कभी कभी निर्जन स्थान में ईश्वर का स्मरण और विचार । परमात्मा से भक्ति और विश्वास की प्रार्थना करनी चाहिए । विश्वास हुआ कि सफलता मिली । विश्वास से बढ़कर और कुछ नहीं है ।” 

[শ্রীরামকৃষ্ণ — অবশ্য উপায় আছে। মাঝে মাঝে সাধুসঙ্গ আর মাঝে মাঝে নির্জনে থেকে ঈশ্বরচিন্তা করতে হয়। আর বিচার করতে হয়। তাঁর কাছে প্রার্থনা করতে হয়, আমাকে ভক্তি বিশ্বাস দাও। “বিশ্বাস হয়ে গেলেই হল। বিশ্বাসের চেয়ে আর জিনিস নাই।
MASTER: "Certainly there is. From time to time he should live in the company of holy men, and from time to time go into solitude to meditate on God (or Annual Camp). Furthermore, he should practise discrimination and pray to God, 'Give me faith and devotion.' Once a person has faith he has achieved everything. There is nothing greater than faith.] 
       
“(केदार के प्रति) विश्वास में कितना बल है, यह तो तुमने सुना है न? पुराणों में लिखा है कि रामचन्द्र को, जो साक्षात् पूर्णब्रह्म नारायण हैं, लंका जाने ले लिए सेतु बाँधना पड़ा था, परन्तु हनुमान रामनाम के विश्वास ही से कूदकर समुद्र के पार चले गए, उन्होंने सेतु की परवाह नहीं की।(सब हँसते हैं) 

[(কেদারের প্রতি) — “বিশ্বাসের কত জোর তা তো শুনেছ? পুরাণে আছে, রামচন্দ্র যিনি সাক্ষাৎ পূর্ণব্রহ্ম নারায়ণ, তাঁর লঙ্কায় যেতে সেতু বাঁধতে হল। কিন্তু হনুমান রামনামে বিশ্বাস করে লাফ দিয়ে সমুদ্রের পারে গিয়ে পড়ল। তার সেতুর দরকার হয় নাই। (সকলের হাস্য)
(To Kedar) "You must have heard about the tremendous power of faith. It is said in the Purana that Rama, who was God Himself — the embodiment of Absolute Brahman — had to build a bridge to cross the sea to Ceylon. But Hanuman, trusting in Rama's name, cleared the sea in one jump and reached the other side. He had no need of a bridge. (All laugh.) 

 “किसी को समुद्र के पार जाना था । विभीषण ने एक पत्ते पर रामनाम लिखकर उसके कपड़े के खूँटे में बाँधकर कहा कि तुम्हें अब कोई भय नहीं, विश्वास करके पानी के ऊपर से चले जाओ, किन्तु यदि तुम्हें अविश्वास हुआ तो तुम डूब जाओगे । वह मनुष्य बड़े मजे में समुद्र के ऊपर से चला जा रहा था । उसी समय उसकी यह इच्छा हुई कि गाँठ को खोलकर देखूँ तो इसमें क्या बँधा है । गाँठ खोलकर उसने देखा तो एक पत्ते पर रामनाम लिखा था । ज्योंही उसने सोचा कि अरे इसमें तो सिर्फ रामनाम लिखा है- अविश्वास हुआ कि वह डूब गया ।” 

[“বিভীষণ একটি পাতায় রামনাম লিখে ওই পাতাটি একটি লোকের কাপড়ের খোঁটে বেঁধে দিছল। সে লোকটি সমুদ্রের পারে যাবে। বিভীষণ তাকে বললে, ‘তোমার ভয় নাই, তুমি বিশ্বাস করে জলের উপর দিয়ে চলে যাও, কিন্তু দেখ যাই অবিশ্বাস করবে, অমনি জলে ডুবে যাবে।’ লোকটি বেশ সমুদ্রের উপর দিয়ে চলে যাচ্ছিল; এমন সময়ে তার ভারী ইচ্ছা হল যে, কাপড়ের খোঁটে কি বাঁধা আছে একবার দেখে! খুলে দেখে যে, কেবল ‘রামনাম’ লেখা রয়েছে! তখন সে ভাবলে, ‘এ কি! শুধু রামনাম একটি লেখা রয়েছে!’ যাই অবিশ্বাস, অমনি ডুবে গেল।
"Once a man was about to cross the sea. Bibhishana wrote Rama's name on a leaf, tied it in a corner of the man's wearing-cloth, and said to him: 'Don't be afraid. Have faith and walk on the water. But look here — the moment you lose faith you will be drowned.' The man was walking easily on the water. Suddenly he had an intense desire to see what was tied in his cloth. He opened it and found only a leaf with the name of Rama written on it. 'What is this?' he thought. 'Just the name of Rama!' As soon as doubt entered his mind he sank under the water.

 [(5 मार्च 1882) श्री रामकृष्ण वचनामृत-3 ]

🔆🙏बड़े-से-बड़ा पाप और नाममहात्मय🔆🙏 

“जिसका ईश्वर पर विश्वास है, (जिसे गुरु प्रदत्त इष्टदेव अवतार के नाम युक्त बीजमंत्र में विश्वास है) वह यदि महापातक करे-गो-ब्राह्मण-स्त्री हत्या भी करे- तो भी इस विश्वास के बल से वह बड़े बड़े पापों से मुक्त हो सकता है । वह यदि कहें कि ऐसा काम कभी न करूँगा तो उसे फिर किसी बात का भय नहीं ।”  यह कहकर श्रीरामकृष्ण ने इस मर्म का एक बँगला गीत गया- 

आमि दूर्गा दूर्गा दूर्गा बोले मा जदि मरी।  
आखेरे दिने ना तारो केमने जाना जाबी गो शंकरी।।  
नाशि गो ब्राह्मण, हत्या करी भ्रूण,  सुरापान आदि बिनाशी नारी।  
ए सब पातक न भाबी तिलेक, ब्रह्म पद निते पारि।। 

“दुर्गा दुर्गा अगर जपूँ मैं, जब मेरे निकलेंगे प्राण । 
देखूँ कैसे नहीं तारती, कैसे हो करुणा की खान ॥ 
गो-ब्राह्मण की हत्या करके, करके भी मदिरा का पान । 
जरा नहीं परवा पापों की, लूँगा निश्चय पद निर्वाण ॥” 

[“যার ঈশ্বরে বিশ্বাস আছে, সে যদি মহাপাতক করে — গো, ব্রাহ্মণ, স্ত্রী হত্যা করে, তবুও ভগবানে এই বিশ্বাসের বলে ভারী ভারী পাপ থেকে উদ্ধার হতে পারে। সে যদি বলে আর আমি এমন কাজ করব না, তার কিছুতেই ভয় হয় না।” এই বলিয়া ঠাকুর গান ধরিলেন:
আমি দুর্গা দুর্গা বলে মা যদি মরি।
আখেরে এ-দীনে, না তারো কেমনে, জানা যাবে গো শঙ্করী ৷৷
নাশি গো ব্রাহ্মণ, হত্যা করি ভ্রূণ, সুরাপান আদি বিনাশি নারী ৷
এ-সব পাতক, না ভাবি তিলেক, ব্রহ্মপদ নিতে পারি ৷৷

"If a man has faith in God, then even if he has committed the most heinous sins — such as killing a cow, a brahmin, or a woman — he will certainly be saved through his faith. Let him only say to God, 'O Lord,! will not repeat such an action', and he need not be afraid of anything."
When he had said this, the Master sang:' If only I can pass away repeating Durga's name, How canst Thou then, O Blessed One, Withhold from me deliverance, Wretched though I may be? I may have stolen a drink of wine, or killed a child unborn, Or slain a woman or a cow, Or even caused a brahmin's death; But, though it all be true, Nothing of this can make me feel the least uneasiness; For through the power of Thy sweet name My wretched soul may still aspire Even to Brahmanhood." 


 [(5 मार्च 1882) श्री रामकृष्ण वचनामृत-3 ]

🔆🙏नरेन्द्र-होमापक्षी जैसा नित्यमुक्त है 🙏 

[নরেন্দ্র — হোমাপাখি ]

नरेन्द्र की बात चली । श्रीरामकृष्ण भक्तों से कहने लगे, “इस लड़के को यहाँ एक प्रकार देखते हो। चुलबुला लड़का जब बाप के पास बैठता है, तब चुपचाप बैठा रहता है और जब चाँदनी पर खेलता है, तब उसकी और ही मूर्ति हो जाती है । ये लड़के नित्यसिद्ध हैं । ये कभी संसार में नहीं बँधते । थोड़ी ही उम्र में इन्हें चैतन्य होता है, और ये ईश्वर की ओर चले जाते हैं । ये संसार में जीवों को शिक्षा देने के लिए आते हैं । संसार की कोई वस्तु इन्हें अच्छी नहीं लगती; कामिनी-कांचन में ये कभी नहीं पड़ते ।” 
[“এই ছেলেটিকে দেখছ, এখানে একরকম। দুরন্ত ছেলে বাবার কাছে যখন বসে, যেমন জুজুটি, আবার চাঁদনিতে যখন খেলে, তখন আর এক মূর্তি। এরা নিত্যসিদ্ধের থাক। এরা সংসারে কখনও বদ্ধ হয় না। একটু বয়স হলেই চৈতন্য হয়, আর ভগবানের দিকে চলে যায়। এরা সংসারে আসে জীবশিক্ষার জন্য। এদের সংসারের বস্তু কিছু ভাল লাগে না — এরা কামিনীকাঞ্চনে কখনও আসক্ত হয় না।
Pointing to Narendra, the Master said: "You all see this boy. He behaves that way here. A naughty boy seems very gentle when with his father. But he is quite another person when he plays in the chandni. Narendra and people of his type belong to the class of the ever-free. They are never entangled in the world. When they grow a little older they feel the awakening of inner consciousness and go directly toward God. They come to the world only to teach others. They never care for anything of the world. They are never attached to 'woman and gold'.
    
 “वेदों में ‘होमा’ पक्षी ^  की कथा है । यह चिड़िया आकाश में बहुत ऊँचाई पर रहती है । वहीँ यह अण्डे देती है । अण्डा देते ही वह गिरने लगता है; परन्तु इतने ऊँचे से वह गिरता है कि गिरते गिरते बीच ही में फूट जाता है । तब बच्चा गिरने लगता है । गिरते ही गिरते उसकी आँखें खुलती और पंख निकल आते हैं । आँखें खुलने से जब वह बच्चा देखता है कि मैं गिर रहा हूँ और जमीन पर गिरकर चूर चूर हो जाऊँगा, तब वह एकदम अपनी माँ की ओर फिर ऊँचे चढ़ जाता है ।

[“বেদে আছে হোমাপাখির কথা। খুব উঁচু আকাশে সে পাখি থাকে। সেই আকাশেতেই ডিম পাড়ে। ডিম পাড়লে ডিমটা পড়তে থাকে — কিন্তু এত উঁচু যে, অনেকদিন থেকে ডিমটা পড়তে থাকে। ডিম পড়তে পড়তে ফুটে যায়। তখন ছানাটা পড়তে থাকে। পড়তে পড়তে তার চোখ ফোটে ও ডানা বেরোয়। চোখ ফুটলেই দেখতে পায় যে, সে পড়ে যাচ্ছে, মাটিতে লাগলে একেবারে চুরমার হয়ে যাবে। তখন সে পাখি মার দিকে একেবারে চোঁচা দৌড় দেয়, আর উঁচুতে উঠে যায়।”
"The Vedas speak of the homa bird. It lives high up in the sky and there it lays its egg. As soon as the egg is laid it begins to fall; but it is so high up that it continues to fall for many days. As it falls it hatches, and the chick falls. As the chick falls its eyes open; it grows wings. As soon as its eyes open, it realizes that it is falling and will be dashed to pieces on touching the earth. Then it at once shoots up toward the mother bird high in the sky."]

नरेन्द्र उठ कर कमरे से बाहर चले गए । सभा में केदार, प्राणकृष्ण, मास्टर आदि और भी कई सज्जन थे । 

[নরেন্দ্র উঠিয়া গেলেন।সভামধ্যে কেদার, প্রাণকৃষ্ণ, মাস্টার ইত্যাদি অনেকে আছেন।
At this point Narendra left the room. Kedar, Prankrishna, M., and many others remained.

श्रीरामकृष्ण- देखो, नरेन्द्र गाने में, बजाने में, पढ़ने-लिखने में, सब विषयों में अच्छा है । उस दिन केदार के साथ उसने तर्क किया था, केदार की बातों को खटाखट काटता गया । (श्रीरामकृष्ण और सब लोग हँस पड़े।)-

(मास्टर से) अंग्रेजी में क्या कोई तर्क की किताब है? 

[শ্রীরামকৃষ্ণ — দেখ নরেন্দ্র গাইতে, বাজাতে, পড়াশুনায় — সব তাতেই ভাল। সেদিন কেদারের সঙ্গে তর্ক করছিল। কেদারের কথাগুলো কচকচ করে কেটে দিতে লাগল। (ঠাকুর ও সকলের হাস্য) (মাস্টারের প্রতি) — ইংরাজীতে কি কোন তর্কের বই আছে গা?
MASTER: "You see, Narendra excels in singing, playing on instruments, study, and everything. The other day he had a discussion with Kedar and tore his arguments to shreds. (All laugh.) 
(To M.) "Is there any book in English on reasoning?"

मास्टर- जी हाँ है, अंग्रेजी में इसको न्यायशास्त्र (logic) कहते हैं । 

[মাস্টার — আজ্ঞে হাঁ, ইংরেজীতে ন্যায়শাস্ত্র (Logic) আছে।
M: "Yes, sir, there is. It is called Logic."


श्रीरामकृष्ण- अच्छा, कैसा है कुछ सुनाओ तो । 

[শ্রীরামকৃষ্ণ — আচ্ছা, কিরকম একটু বল দেখি।
MASTER: "Tell me what it says."

मास्टर अब मुश्किल में पड़े । आखिर कहने लगे- एक बात यह है कि साधारण सिद्धान्त से विशेष सिद्धान्त पर पहुंचना; जैसे, सब मनुष्य मरेंगे, पण्डित भी मनुष्य हैं, इसलिये वे भी मरेंगे । 

[মাস্টার এইবার মুশকিলে পড়িলেন। বলিলেন, একরকম আছে সাধারণ সিদ্ধান্ত থেকে বিশেষ সিদ্ধান্তে পৌঁছানো। যেমন: "
সব মানুষ মরে যাবে,পণ্ডিতেরা মানুষ,অতএব পণ্ডিতেরা মরে যাবে | 
M. was a little embarrassed. He said: "One part of the book deals with deduction from the general to the particular. For example: All men are mortal. Scholars are men. Therefore scholars are mortal. 

 “और एक बात यह है कि विशेष दृष्टान्त या घटना को देखकर साधारण सिद्धान्त पर पहुँचना । जैसे यह कौआ काला है, वह कौआ काला है और जितने कौए दीख पड़ते हैं, वे भी काले हैं, इसलिये सब कौए काले हैं। 

[“আর একরকম আছে, বিশেষ দৃষ্টান্ত বা ঘটনা দেখে সাধারণ সিদ্ধান্তে পৌঁছানো। যেমন:
এ কাকটা কালো,ও কাকটা কালো (আবার) যত কাক দেখছি সবই কালো,অতএব সব কাকই কালো।
Another part deals with the method of reasoning from the particular to the general. For example: This crow is black. That crow is black. The crows we see everywhere are black. Therefore all crows are black. 

“किन्तु उस प्रकार के सिद्धान्त से भूल भी हो सकती है; क्योंकि सम्भव है ढूँढ़-तलाश करने से किसी देश में सफेद कौआ मिल जाय । 

[“কিন্তু এরকম সিদ্ধান্ত করলে ভুল হতে পারে, কেননা হয়তো খুঁজতে খুঁজতে আর এক দেশে সাদা কাক দেখা গেল। 
But there may be a fallacy in a conclusion arrived at in this way; for on inquiry one may find a white crow in some country. 

एक और दृष्टान्त- जहाँ वृष्टि है, वहाँ मेघ भी है, अतएव यह साधारण सिद्धान्त हुआ कि मेघ से वृष्टि होती है ।

[আর এক দৃষ্টান্ত — যেখানে বৃষ্টি সেইখানে মেঘ ছিল বা আছে; অতএব এই সাধারণ সিদ্ধান্ত হল যে, মেঘ থেকে বৃষ্টি হয়।
There is another illustration: If there is rain, there is or has been a cloud. Therefore rain comes from a cloud.  
      
और भी एक दृष्टान्त- इस मनुष्य के बत्तीस दाँत हैं, उस मनुष्य के बत्तीस दाँत हैं, और जिस मनुष्य को देखते हैं, उसी के बत्तीस दाँत हैं, अतएव सब मनुष्यों के बत्तीस दाँत हैं । 

[ আরও এক দৃষ্টান্ত — এ-মানুষটির বত্রিশ দাঁত আছে, ও-মানুষটির বত্রিশ দাঁত, আবার যে-কোন মানুষ দেখছি তারই বত্রিশ দাঁত আছে। অতএব সব মানুষেরই বত্রিশ দাঁত আছে।
Still another example: This man has thirty-two teeth. That man has thirty-two teeth. All the men we see have thirty-two teeth. Therefore men have thirty-two teeth. 

“इस प्रकार के साधारण सिद्धान्त की बातें अंग्रेजी न्यायशास्त्र में हैं ।” 

[“এরূপ সাধারণ সিদ্ধান্তের কথা ইংরেজী ন্যায়শাস্ত্রে আছে।”
English logic deals with such inductions and deductions."

श्रीरामकृष्ण ने इन बातों को सुन भर लिया । फिर वे अन्यमनस्क हो गए इसलिये यह प्रसंग और आगे न बढ़ा ।

[শ্রীরামকৃষ্ণ কথাগুলি শুনিলেন মাত্র। শুনিতে শুনিতেই অন্যমনস্ক হইলেন। কাজে কাজেই আর এ-বিষয়ে বেশি প্রসঙ্গ হইল না | 
Sri Ramakrishna barely heard these words. While listening he became absent-minded. So the conversation did not proceed far.

(3)

श्रुतिविप्रतिपन्ना ते यदा स्थास्यति निश्चला ।
समाधावचला बुद्धिस्तदा योगमवाप्स्यसि ॥ 
(गीता, २।५३)  
{।।2.53।। जब अनेक प्रकार के विषयों को सुनने से विचलित हुई तुम्हारी बुद्धि आत्मस्वरूप में अचल और स्थिर हो जायेगी तब तुम (परमार्थ) योग को प्राप्त करोगे।।
अनेक व्याख्याकार इसका अर्थ इस प्रकार करते हैं कि विभिन्न दार्शनिकों के परस्पर विरोधी प्रतीत होने वाले सिद्धान्तों को सुनकर जिसकी बुद्धि विचलित नहीं होती वह योग में स्थित हुआ समझा जाता है।}

[(5 मार्च 1882) श्री रामकृष्ण वचनामृत-3 ]
  
🔆🙏 समाधि में पहुंचे योगी की बुद्धि विभिन्न तर्कों को सुनकर भी विचलित नहीं होती 🔆🙏 

सभा भंग हुई । भक्त सब इधर-उधर घूमने लगे । मास्टर भी पंचवटी आदि स्थानों में घूम रहे थे । समय पाँच के लगभग होगा । कुछ देर बाद वे श्रीरामकृष्ण के कमरे में आए और देखा उसके उत्तर की ओर छोटे बरामदे में अद्भुत घटना हो रही है ।

[সভা ভঙ্গ হইল। ভক্তেরা এদিক ওদিক পায়চারি করিতেছেন। মাস্টারও পঞ্চবটী ইত্যাদি স্থানে বেড়াইতেছেন, বেলা আন্দাজ পাঁচটা। কিয়ৎক্ষণ পরে তিনি শ্রীরামকৃষ্ণের ঘরের দিকে আসিয়া দেখিলেন, ঘরের উত্তরদিকের ছোট বারান্দার মধ্যে অদ্ভুত ব্যাপার হইতেছে!
When the meeting broke up, the devotees sauntered in the temple garden. M. went in the direction of the Panchavati. It was about five o'clock in the afternoon. After a while he returned to the Master's room. There, on the small north verandah, he witnessed an amazing sight.
        
श्रीरामकृष्ण स्थिर भाव से खड़े हैं और नरेन्द्र गा रहे हैं।  दो-चार भक्त भी खड़े हैं । मास्टर आकर गाना सुनने लगे । गाना सुनते हुए वे मुग्ध हो गए । श्रीरामकृष्ण के गाने को छोड़कर ऐसा मधुर गाना उन्होंने कभी कहीं नहीं सुना था । अकस्मात् श्रीरामकृष्ण की ओर देखकर वे स्तब्ध हो गए । श्रीरामकृष्ण की देह निःस्पन्द हो गयी थी और नेत्र निर्निमेष ।श्वासोच्छ्वास चल रहा था या नहीं-बताना कठिन है । पूछने पर एक भक्त ने कहा, यह ‘समाधि’ है । मास्टर ने ऐसा न कभी देखा था, न सुना था । वे विस्मित होकर सोचने लगे, भगवच्चिन्तन करते हुए मनुष्यों का बाह्यज्ञान क्या यहाँ तक चला जाता है? न जाने कितनी भक्ति और विश्वास हो तो मनुष्यों की यह अवस्था होती है!

[শ্রীরামকৃষ্ণ স্থির হইয়া দাঁড়াইয়া রহিয়াছেন। নরেন্দ্র গান করিতেছেন, দুই-চারিজন ভক্ত দাঁড়াইয়া আছেন। মাস্টার আসিয়া গান শুনিতেছেন। গান শুনিয়া আকৃষ্ট হইয়া রহিলেন। ঠাকুরের গান ছাড়া এমন মধুর গান তিনি কখনও কোথাও শুনেন নাই। হঠাৎ ঠাকুরের দিকে দৃষ্টিপাত করিয়া অবাক্‌ হইয়া রহিলেন। ঠাকুর দাঁড়াইয়া নিস্পন্দ, চক্ষুর পাতা পড়িতেছে না; নিঃশ্বাস-প্রশ্বাস বহিছে কিনা বহিছে! জিজ্ঞাসা করাতে একজন ভক্ত বলিলেন, এর নাম সমাধি! মাস্টার এরূপ কখনও দেখেন নাই, শুনেন নাই। অবাক্‌ হইয়া তিনি ভাবিতেছেন, ভগবানকে চিন্তা করিয়া মানুষ কি এত বাহ্যজ্ঞানশূন্য হয়? না জানি কতদূর বিশ্বাস-ভক্তি থাকলে এরূপ হয়। 
Sri Ramakrishna was standing still, surrounded by a few devotees, and Narendra was singing. M. had never heard anyone except the Master sing so sweetly. When he looked at Sri Ramakrishna he was struck with wonder; for the Master stood motionless, with eyes transfixed. He seemed not even to breathe. A devotee told M. that the Master was in samadhi. M. had never before seen or heard of such a thing. Silent with wonder, he thought: "Is it possible for a man to be so oblivious of the outer world in the consciousness of God? How deep his faith and devotion must be to bring about such a state!"

         नरेन्द्र जो गीत गा रहे थे, --

चिन्तय मम मानस हरि चिद्घन निरंजन।
किबा अनूपम भाति, मोहन मूरति, भकत-हृदय-रंजन॥

नव रागे रंजित  कोटि शशी बिनिन्दित,
किबा बिजली चमके, अरूप आलोके, पूलके शिहरे जीवन॥

हृदि-कमलासने, भाब तांर चरण,
देखी शांत मने, प्रेम नयने, अपरूप प्रिय-दर्शन।
चिदानंद-रसे भक्तियोगाबेशे हो ओ रे चिर मगन॥ 
उसका भाव यह है-
“ऐ मन, तू चिद्घन हरि का चिन्तन कर । उसकी मोहनमूर्ति की कैसी अनुपम छटा है, जो भक्तों का मन हर लेती है वह रूप नये नये वर्णों से मनोहर है, कोटि चन्द्रमाओं को लजानेवाला है, -उसकी छटा क्या है मानो बिजली चमकती है ! उसे देख पुलकित ह्रदय आनन्द से भर जाता है।”

গানটি এই: 
চিন্তয় মম মানস হরি চিদঘন নিরঞ্জন।
কিবা, অনুপমভাতি, মোহনমূরতি, ভকত-হৃদয়-রঞ্জন।
নবরাগে রঞ্জিত, কোটি শশী-বিনিন্দিত;
(কিবা) বিজলি চমকে, সেরূপ আলোকে, পুলকে শিহরে জীবন।

[Narendra was singing:
Meditate, O my mind, on the Lord Hari, The Stainless One, Pure Spirit through and through. How peerless is the Light that in Him shines! How soul-bewitching is His wondrous form! How dear is He to all His devotees! Ever more beauteous in fresh-blossoming love That shames the splendour of a million moons, Like lightning gleams the glory of His form, Raising erect the hair for very joy.
      

गीत के इस चरण को गाते समय श्रीरामकृष्ण चौंकने लगे । देह पुलकायमान हुई । आँखों से आनन्द के आँसू बहने लगे । बीच बीच में मानो कुछ देखकर मुस्कराते हैं । कोटि चन्द्रमाओं को लजानेवाली उस अनुपम रूप का वे अवश्य दर्शन करते होंगे । क्या यही ईश्वर-दर्शन है? कितनी साधना, कितनी तपस्या, कितनी भक्ति और विश्वास से ईश्वर का ऐसा दर्शन होता है? 

[গানের এই চরণটি গাহিবার সময় ঠাকুর শ্রীরামকৃষ্ণ শিহরিতে লাগিলেন। দেহ রোমাঞ্চিত! চক্ষু হইতে আনন্দাশ্রু বিগলিত হইতেছে। মাঝে মাঝে যেন কি দেখিয়া হাসিতেছেন। না জানি ‘কোটি শশী-বিনিন্দিত’ কী অনুপম রূপদর্শন করিতেছেন! এরই নাম কি ভগবানের চিন্ময়-রূপ-দর্শন? কত সাধন করিলে, কত তপস্যার ফলে, কতখানি ভক্তি-বিশ্বাসের বলে, এরূপ ঈশ্বর-দর্শন হয়? 
The Master shuddered when this last line was sung. His hair stood on end, and tears of joy streamed down his cheeks. Now and then his lips parted in a smile. Was he seeing the peerless beauty of God, "that shames the splendour of a million moons"? Was this the vision of God, the Essence of Spirit? How much austerity and discipline, how much faith and devotion, must be necessary for such a vision!

फिर गाना होने लगा -
हृदि -कमलासने , भज ताँर चरण , 
देखो शान्त मने , प्रेम नयने , अपरूप प्रियदर्शन !  
(भावार्थ)-“हृदय-रूपी कमलासन पर उनके चरणों का भजन कर, शान्त मन और प्रेमभरे नेत्रों से उस अपूर्व मनोहर दृश्य को देख ले ।” 

[আবার গান চলিতেছে: 
হৃদি-কমলাসনে,       ভজ তাঁর চরণ,
দেখ শান্ত মনে, প্রেম নয়নে, অপরূপ প্রিয়দর্শন!
The song went on:Worship His feet in the lotus of your heart;With mind serene and eyes made radiant,With heavenly love, behold that matchless sight.

फिर वही जगत् को मोहनेवाली मुस्कराहट ! शरीर वैसा ही निश्चल हो गया । आँखें बन्द हो गयीं-मानो कुछ अलौकिक रूप देख रहे हैं, और देखकर आनन्द से भरपूर हो रहे हैं

[আবার সেই ভুবনমোহন হাস্য! শরীর সেইরূপ নিস্পন্দ! স্তিমিত লোচন! কিন্তু কি যেন অপরূপ রূপদর্শন করিতেছেন! আর সেই অপরূপ রূপদর্শন করিয়া যেন মহানন্দে ভাসিতেছেন!
Again that bewitching smile. The body motionless as before, the eyes half shut, as if beholding a strange inner vision.

     अब गीत समाप्त हुआ । नरेन्द्र ने गाया-
चिदानन्दरसे, भक्तियोगावेशे , होउ रे चिरमग्न।  
(चिदानन्दरसे, हाय रे) (प्रेमानन्दरसे) ।।  

 (भावार्थ)-“चिदानन्द-रस में-प्रेमानन्द रस में-परम भक्ति से चिरदिन के लिए मग्न हो जा ।”
समाधि और प्रेमानन्द की इस अद्भुत छबि को हृदय में रखते हुए मास्टर घर लौटने लगे । बीच बीच में दिल को मतवाला करनेवाली वह मधुर गीत याद आता रहा । 

[সমাধির ও প্রেমানন্দের এই অদ্ভুত ছবি হৃদয়মধ্যে গ্রহণ করিয়া মাস্টার গৃহে প্রত্যাবর্তন করিতে লাগিলেন। মাঝে মাঝে হৃদয়মধ্যে সেই হৃদয়োন্মত্তকারী মধুর সঙ্গীতের ফুট উঠিতে লাগিল:
এইবার গানের শেষ হইল। নরেন্দ্র গাইলেন:
চিদানন্দরসে, ভক্তিযোগাবেশে, হও রে চিরগমন ৷
(চিদানন্দরসে, হায় রে) (প্রেমানন্দরসে) ৷৷
The song drew to a close. Narendra sang the last lines:Caught in the spell of His love's ecstasy,Immerse yourself for evermore, O mind,In Him who is Pure Knowledge and Pure Bliss.
The sight of the samadhi, and the divine bliss he had witnessed, left an indelible impression on M.'s mind. He returned home deeply moved. Now and then he could hear within himself the echo of those soul-intoxicating lines: Immerse yourself for evermore, O mind,In Him who is Pure Knowledge and Pure Bliss.

[*साभार ~ श्रीरामकृष्ण-वचनामृत{श्री महेन्द्रनाथ गुप्त(बंगाली), कवि श्री पं. सूर्यकान्त त्रिपाठी ‘निराला’(हिंदी अनुवाद)}*साभार विद्युत् संस्करण ~ रमा लाठ ]

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*योगयुक्त (विसम्मोहित) अन्त:करण  और अहंकार से मोहित (Hypnotized) अन्तःकरण * 
सर्वभूतस्थमात्मानं सर्वभूतानि चात्मनि।ईक्षते योगयुक्तात्मा सर्वत्र समदर्शनः।।गीता 6 /29 में योग का फल बतलाते हुए श्री भगवान  कहते हैं - " योगयुक्त अन्त:करण ** (=समाहित चित्त या मन,the mind harmonised by Yoga  ) वाला और सर्वत्र समदर्शी (विसम्मोहित) योगी आत्मा को सब भूतों में और भूतमात्र को आत्मा में देखता है।" 
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