*श्रीरामकृष्ण दोहावली की सामग्री *
(Contents of the 500 couplets in Sri Ramakrishna Dohavali)
अखिल भारत विवेकानन्द युवा महामण्डल के कार्यकताओं के लिए उपयोगी, भगवान श्री रामकृष्ण देव के उपदेशों का संग्रह - 'अमृतवाणी ' पर आधारित तथा स्वामी राम'तत्वानन्द द्वारा रचित *श्रीरामकृष्ण दोहावली--1* की विषयसूची (Content of Sri Ramakrishna Dohavali-1):
मनुष्यजीवन का उद्देश्य : 1.क्या तुम "भविष्य के वैश्विक धर्म ~ बी एंड मेक " के नेता (प्रचारक,पैगंबर) बनना चाहते हो ? Do you want to be the LEADER (preacher, prophet) of "The would be Global Religion - Be and Make"?
तो जगतगुरु श्रीरामकृष्ण की सलाह है - " पहले प्रभु का दरस कर , फिर जग का सुधार,जो अस होय शान्ति है , नहि तो क्लेश अपार।।
अर्थात 'चरित्रवान मनुष्य मनुष्य बनो और बनाओ आन्दोलन " का नेतृत्व करना चाहते हो ?.... तो 'पहले भगवत्प्राप्ति कर लो। # अर्थात श्रवण , मनन द्वारा सत्य-असत्य-मिथ्या का विवेक करना सीखकर, निदिध्यासन करो, अर्थात मिथ्या वस्तुओं में आसक्ति (कामिनी-कांचन में आसक्ति) को त्याग दो। और महामण्डल द्वारा निर्देशित 3H विकास के 5 अभ्यास के द्वारा अपने जीवन में चरित्र के 24 गुणों को विकसित कर तुम स्वयं 'मनुष्य ' बनो और दूसरों को भी मनुष्य बनने में सहायता करो ! 'Be and Make' को अपना ध्येय बना लो, फिर लेक्चर देने या समाज-सुधार आदि की बात सोचना।
" 8 कर निश्चित डेरा प्रथम , फिर शहर घूम देख।। " भावी नेता को घर-परिवार में आसक्ति को त्याग कर निर्जन में [दक्षिणेशर माँ काली, ठाकुर -माँ - स्वामीजी का दास के पवित्र कमरे में के दास (P.A) की निगरानी में] प्रशिक्षण लेना पड़ता है।
"15 ब्रह्ममयी का दरस कर , ज्ञान नयन उघार।। " उस गृहस्थ प्रशिक्षणार्थी को गुरु के खजांची द्वारा निर्दिष्ट कमरे में रहते हुए अपने भोजन का खर्च स्वयं उठाना चाहिए।
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*Magician true and magic false*श्री रामकृष्ण दोहावली -२/
*जादूगर सच और जादू झूठ * *जीव का सच्चा स्वरुप* १ -अंक ईश्वर बिना सौ शुन भी शून्य है * जैसे आग के कारण आलू -परवल उछलते हैं , ब्रह्मशक्ति (आत्मा की शक्ति) के कारण ही मन, बुद्धि , इन्द्रियाँ कार्य करती हैं।
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*Wrong Identification -अस्मिता * श्री रामकृष्ण दोहावली (3)
23 रामकृष्ण कह जीव के , हौवत चार प्रकार। * जीव तथा बन्धन * तीन प्रकार की गुड़ियाँ हैं - एक नमक की , एक कपड़े की और एक पत्थर की। नमक की गुड़िया : मानो (जीव कोटि का मनुष्य ) अपने अस्तित्व को सर्वव्यापी विराट ब्रह्म के अस्तित्व में लीन कर उसके साथ एकरूप हो जाता है, मार्गदर्शन के लिए वापस नहीं लौटता । कपड़े की गुड़िया : मानो भक्ति रस से सराबोर उस माँ काली के भक्त मार्गदर्शक नेता 'C-IN-C नवनीदा' का प्रतीक है; जो भावी पीढ़ी का मार्गदर्शन करने के लिए निर्विकल्प समाधि का भी त्याग कर (अर्थात अपने व्यष्टि अहं को माँ जगदम्बा के मातृहृदय के सर्वव्यापी विराट 'मैं '-बोध में रूपांतरित कर) वापस लौट आता है ! पत्थर की गुड़िया : मानो बद्ध संसारी जीव की प्रतिक है *सभी मनुष्य स्वरूपतः सच्चिदानन्द ही हैं , अवस्थाभेद से चार श्रेणी के होते हैं --बद्ध , मुमक्षु , मुक्त और नित्यमुक्त ! मनुष्य वास्तव में सच्चिदानन्द-स्वरुप ही है, लेकिन अहं के आवरण से अपने यथार्थ स्वरुप को भूल बैठा है !
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*Death and Rebirth*श्री रामकृष्ण दोहावली (4)
" मृत्यु तथा पुनर्जन्म " / गीता [ श्लोक ८ / २४ -२५ ] 31 मरन समय जस सोच करे , पावे तस पुनि देह। " अंतमति - सोगति" /पुनरावृत्ति के मार्ग को पितृयाण (पितरों का मार्ग) कहते हैं।बद्धजीव मृत्यु के समय में भी संसार की ही बातें करते हैं। यदि जीवन भर ईश्वर-चिन्तन का अभ्यास किया जाय तो 'अन्त समय' * में भी मन में ईश्वर का ही विचार आएगा।
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*Two powers of Maya* श्री रामकृष्ण दोहावली (5)
माया = नाम -रूप (cover and deflection) हरि की शक्ति है , धर शक्ति का ध्यान/१२ वर्ष तक कामवासना को वसीभूत करने से मेधा नाड़ी ** नाम की एक सूक्ष्म नाड़ी उत्पन्न होती है, वह निम्नगामी शक्ति को उर्ध्वगामी बना देती है।" माया क्या है ? यह काम या भोगासक्ति ही है, जो आध्यात्मिक उन्नति में विघ्नस्वरूप है/ निचला काँटा (मन) उपरवाले काँटे (T) /
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*Lust and Gold *श्री रामकृष्ण दोहावली (6)
* साधक और कांचनरूपी विघ्न * ~ रुपया को नहीं मानिये , जीवन का उद्देश्य, कर ले हरि की चाकरी ,भज ले सीता राम।धन का गरब न कीजिये , जग में धनी अनेक/ विषयासक्ति पर विजय पाने का उपाय ~कनक काम के पंक में , मगन सकल संसार।~मंत्र विवेक विराग पढ़ , घर ले आया साँप।
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*'I' of the devotee*श्री रामकृष्ण दोहावली (7)
" माया -अहंकार " / *अहंकार के दोष ~ 'जीव' 'ब्रह्म' के बीच में , पड़ा 'अहम' अज्ञान। /अहम् मेघ जब तक रहै , हृदय रूप आकाश।तब तक भगवन सूर्य का , होत न उदय प्रकाश।'मैं ' मरतहि बला टले , टले जगत जंजाल। /* अहंकार पर विजय पाना आसान नहीं है ~71 पीपल को जो काटिये , कल पुनि कोपल आय।
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*Argument is useless *श्री रामकृष्ण दोहावली (8)
*धर्म के सिद्धांतों पर तर्क-वितर्क करना व्यर्थ है *यही समझना चाहिए कि उसे धर्मामृत का स्वाद नहीं मिला, ज्ञानी व्यक्ति का जीवन चरित्रगत धर्म की अभिव्यक्ति है /*विद्याध्यन का बन्धन *
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श्री रामकृष्ण दोहावली (9) " विद्या का यथार्थ उद्देश्य
"~ “सत्यं वद | धर्मं चर |” * सत्य बोलो, धर्म का आचरण करो * ग्रंथन्ह मार्ग ही कहहि बस , पढ़ पढ़ मनवा जान। / एक बार मार्ग --उपाय जान लेने पर फिर शास्त्र -ग्रंथों की क्या जरूरत ? त्याग गीता का सार है , कह ठाकुर निरमोही/ महाभारत में धर्म को अर्थ और काम का स्रोत माना गया है/
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श्री रामकृष्ण दोहावली (10) ~ नेतृत्व की उत्पत्ति और अवधारणा ~ 'गुरुर्गरीयान्' का तात्पर्य : "सच्चिदानन्द ही सब के गुरु हैं" हे प्रचारक (Leader) , क्या तुम्हें बिल्ला (badge of Leadership) मिला है ?
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श्री रामकृष्ण दोहावली (11) * संसारी जीव (सम्मोहित-Hypnotized मनुष्य) के लक्षण * मनुष्य दो प्रकार के होते हैं - 'मानुष' और 'मन-होश'।सम्भोगसुख और ब्रह्मानन्द
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श्री रामकृष्ण दोहावली (12) संसारी नहीं भजन करे ,
करे न धर्म क्षणिक है और संस्कार ---अर्थात मनुष्य बनो और बनाओ - " Be and Make " एक दीर्धकालीन प्रक्रिया है
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श्री रामकृष्ण दोहावली (13) गर्म तवा बून्द सम , विषयी जन का मन।~ कितना beautiful -फूल बनाया है ?
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श्री रामकृष्ण दोहावली (14) गुरु (भ्रमर ) का मानसिक सुमिरण (विवेक-दर्शन)/संसारी जीव और साधना ~ सरसों के दानों के भीतर अगर भूत घुस जाये तो उनके द्वारा भूत कैसे उतरे !
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श्री रामकृष्ण दोहावली (15) नित्यसिद्ध (नेता) को ईश्वर का लाभ पहले हो जाता है , साधना पीछे से होती है; जैसे लौकी , कुम्हड़े लत्तर में पहले फल और उसके बाद फूल होते हैं।
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श्री रामकृष्ण दोहावली (16) " यथार्थ साधक के लक्षण "/एक बार भगवान का नाम सुनते ही जिसके शरीर में रोमांच उत्पन्न होता है , और आँखों से प्रेमाश्रु की धार बहने लग जाती है , उसका यह निश्चित ही आखरी जन्म है।
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श्री रामकृष्ण दोहावली (17) एक हाथ जग करम करो , दूजे धर प्रभु पाद ~" साँप के मुँह में मेढक को नचाओ, पर साँप उसे निगल न पाए। " गृहस्थ जीवन व्यतीत करने वाले साधकों के प्रति उपदेश/भक्त ह्रदय आनन्द झरे , करत प्रभु से बात- " भक्तों का आपसी नाता "
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$$$$श्री रामकृष्ण दोहावली (18) "पूर्ण नीतिपरायण और साहसी बनो ! एक पूर्ण-हृदयवान मनुष्य बनो ! दृढ़ चरित्रसम्पन्न, अटल साहसी और निर्भीक ! और इसके लिए ~छू हरिचरण जो जग करे , माया बांध न पाहिं। " प्रवृत्ति मार्ग' सरल और सुरक्षित है, 'निवृत्ति मार्ग' खतरनाक ! "
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श्री रामकृष्ण दोहावली (19) " निवृत्ति मार्ग का अधिकारी कौन है ? " जो देखहि नारिहि मातु सम , कांचन माटी समान।"
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श्री रामकृष्ण दोहावली (20 B,C,D):- साधक जीवन के लिए कुछ सहायक बातें (B) " तीर्थ यात्रा का महत्व " (C) " सत्संग के लाभ * (D) " सद्गुरु से प्राप्त 'नाम' के जप का माहात्म्य
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श्री रामकृष्ण दोहावली (21)* कूपमण्डूक की तरह न बनो* 'शास्त्र -निषिद्ध कर्म' करने को 'पाप' कहते
हैं'
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श्री रामकृष्ण दोहावली (22) - (A) संगत का प्रभाव (B) सिद्धियों से हानि (C) दान-धर्म (D) शरीर विषयक दृष्टिकोण
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श्री रामकृष्ण दोहावली (23) -साधक का जीवन पथ : (A) धैर्य और सहनशीलता (B) नम्रता - नम्रता आसान नहीं (C)सरलता
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श्री रामकृष्ण दोहावली (24) वासनात्याग ~फल आने पर फूल अपने आप झड़ जाता है !
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श्री रामकृष्ण दोहावली (25) * स्त्रियों के प्रति मनोभाव * देवीमाहात्म्यम् * (देवी का महात्म्य~Glory of the Goddess)
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श्री रामकृष्ण दोहावली (26) (A) प्रार्थना तथा भक्तिभाव (B)भक्त का परिवार * "कृतार्थता की आकांक्षा और भागवत"
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श्री रामकृष्ण दोहावली (27-A) *सभी धर्मों का ईश्वर एक ही है ~एक राम उनके हजार नाम* (27-B) *विभिन्न धर्म ईश्वरप्राप्ति के विभिन्न पथ हैं *
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श्री रामकृष्ण दोहावली - (28 -A)*धर्मान्धता का कारण तथा उसे दूर करने का उपाय * ( 28 -B) *विभिन्न धर्मों के प्रति उचित मनोभाव*
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$$श्री रामकृष्ण दोहावली (29)-ज्ञानलाभ के लिए कुछ शर्तें -- *मन और उसका स्वभाव*[एकाग्रता (विवेक-दर्शन) का अभ्यास और अनासक्ति (dispassion)
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श्री रामकृष्ण दोहावली (30)- * भ्रमर-कीट न्याय *विश्वास की डोर को प्रभु संग बाँधें ! *
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श्री रामकृष्ण दोहावली (31)~ अपने इष्टदेवता पर एकनिष्ट भक्ति हो तो ईश्वरदर्शन होता है।
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$$$$श्री रामकृष्ण दोहावली (32)*आध्यात्मिक जीवन के लिए आवश्यक बातें * विवेकप्रयोग ~ चावल पका है या नहीं , एक ही सीथ को दबाकर जान लेते हो ,सभी सीथों को एक-एक करके परखकर नहीं देखते, जो भी वस्तु 'नाम' और 'रूप ' से युक्त है --उसकी यही गति है। पृथ्वी, सूर्यलोक, चन्द्रलोक - सभी के नाम और रूप हैं *प्रश्न - क्या संसार मिथ्या है ? * ज्ञानी के लिए संसार मिथ्या है , विज्ञानी के लिए 'आनन्द की हवेली '(mansion of mirth)* सत्यनिष्ठा =ह्रदय के भीतर भक्तिभाव रखो , कपट चतुराई छोड़ दो* बारह वर्ष तक अखण्ड ब्रह्मचर्य~मेधानाड़ी खुलहि अरु, बाढ़-हि 'विवेक'- प्रचण्ड*
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$$$$ श्री रामकृष्ण दोहावली (33) ~ * विवेक-वैराग्यरूपी पंख (अनासक्ति रूपी पंख) के महाबल से - 'निर्गच्छति जगज्जालात् पिंजरादिव केसरी * वैराग्य= समूचे मैदान को चमड़े से मढ़ना असंभव है , अतः पैरों में जूते पहनना ही उचित * Full text of "Shree Ram Krishan Lila Prasang"/https://vivek-jivan.blogspot.com/2013/04/18.html]
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श्री रामकृष्ण दोहावली (34)~*चरित्रगठन हुए बिना ईश्वर लाभ नहीं होता* उद्यमशीलता-धैर्य - अध्यवसाय के साथ, 3-H विकास के 5 अभ्यास *
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श्री रामकृष्ण दोहावली (35)~ * ईश्वर दर्शन का उपाय है ~ गुरुवाक्य पर विश्वास * गुरु के उपदेश - (तत्त्वमसि) पर विश्वास रखकर, साधना किये बिना शास्त्रों की अवधारणा नहीं होती*
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श्री रामकृष्ण दोहावली (36)~* मनःसंयोग * Practice of Discernment (विवेकदर्शन का अभ्यास)*
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श्री रामकृष्ण दोहावली (37)~ईश्वर के लिए व्याकुलता (सती का पति, कृपण का धन तथा विषयी का विषय की ओर जो आकर्षण - वैसी व्याकुलता)
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श्री रामकृष्ण दोहावली (38)~ * भगवान और भक्त ** भगवान क्यों नहीं दिखाई देते *
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*गुप्त वैष्णवीमुद्रा* श्री रामकृष्ण दोहावली (39)~* भक्तों की सांसारिक परिस्थिति ~संग सदा श्री कृष्ण रहे , पाण्डव दुःख न जाये *
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$$$श्री रामकृष्ण दोहावली (40)~पुरुषार्थ और हरिकृपा355 जस अँधियारा तुरत नशे , पाकर तीली प्रकाश।
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श्री रामकृष्ण दोहावली (41)~* सच्चे नेता का स्वरुप * Character of True Leader *गुरुगृह-वास* धर्मपथ के सहायक गुरु ~ मार्गदर्शक नेता का स्वरुप *
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$$$$श्री रामकृष्ण दोहावली (42)~ *मनुष्य बनने के लिए गुरु-गृहवास की अनिवार्यता* (मार्गदर्शक नेता की अनिवार्यता) *
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$$$श्री रामकृष्ण दोहावली (43) *गुरु-शिष्य सम्बन्ध*सिद्धिलाभ होने तक साधना में लगा रहता है।
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$$$ श्री रामकृष्ण दोहावली (44)~ *अनन्त हरि अवतार बन , लीला करे अपार* धर्मपथ के सहायक गुरु (अवतार, नेता) क्या हैं * महामण्डल के प्राणपुरुष "C-IN-C श्री नवनी दा" क्या हैं ? *गुरु (नेता) ईश्वर की ही अभिव्यक्ति है *अवतारों (सच्चे मार्गदर्शक नेता) को पहचानना कठिन है**चपरास (C-IN-C) प्राप्त नेता का सामर्थ्य *
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*Male-female distinction*ज्ञानयोग*श्री रामकृष्ण दोहावली (45) ~
* ज्ञान मार्ग क्या है ~ व्यक्ति-व्यक्ति के ज्ञान में तारतम्य होता है * ज्ञानयोग की प्रणाली *ज्ञानयोग की कठिनाइयाँ*
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* श्री रामकृष्ण दोहावली (46) *closer to ocean, higher the tide*भक्ति योग उन्हें- (माँ काली को) खूब अपना मानो तभी तो उन्हें पा सकोगे।
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*भक्तिमार्ग * श्री रामकृष्ण दोहावली (47) ~जगातिक प्रेम का ईश्वर ~ भक्ति (शिव ज्ञान से जीव सेवा) में रूपान्तरण
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$$$ श्री रामकृष्ण दोहावली (48)*result of devotion to Mother Kali~ चरित्र के २४ गुण * "दया सत्संग नाम गुण , सत्य विवेक वैराग् ~अनुरागरूपी बाघ ' "
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श्री रामकृष्ण दोहावली (49) *Three Types of Love ~ समर्था , सामञ्जसा और साधारणी * *तीन गुणों के तारतम्य अनुसार तीन प्रकार की भक्ति भक्ति के विविध सोपान और पहलू /रागा भक्ति जानिए , चखत कोई बड़ भाग।।
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$$श्री रामकृष्ण दोहावली (50) ~*Jagannath or Gopinath *पराभक्ति के कृष्ण जगन्नाथ नहीं, गोपीनाथ हैं !*प्रेमाभक्ति बहुत कम लोगों को होती है। चैतन्यदेव की तरह अवतारी ईश्वरकोटि के महापुरुषों के लिए ही सम्भव है। " सच्चिदानन्द को बांधने की डोर है ~ मातृभक्ति "
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श्री रामकृष्ण दोहावली (51)~*tide of greatness**विरह तथा महाभाव का ज्वार*
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$ श्री रामकृष्ण दोहावली (52)~*Binding the fens of knowledge and devotion**ज्ञान और भक्ति के बाड़ों को बांधना *
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श्री रामकृष्ण दोहावली (53)~* Name and Form is "Blanket Energy"(आवरण शक्ति)* *Devotion to Ma Kali leads to knowledge.*भक्तिमार्ग ही सार है -माँ जगदम्बा -सम्पूर्ण ईश्वरों की भी अधीश्वरी हैं ,की भक्ति ज्ञान की ओर ले जाती है !
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श्री रामकृष्ण दोहावली (54 )~*Ebb -tide in devotee **ज्ञानी तथा भक्त में अन्तर* ज्ञानी के भीतर मानो एक ही दिशा में गंगा बहती है।भक्त के भीतर गंगा एक दिशा में नहीं बहती , उसमें ज्वार-भाटा होता रहता है।
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श्री रामकृष्ण दोहावली (55 )~*Secret of Work *First Bhakti then Karma.* सही मार्ग है ---पहले भक्ति फिर कर्म *
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श्री रामकृष्ण दोहावली (56 )-*सेवाभाव से किया जानेवाला कर्म (समाज सेवा : Be and Make) पूजा के समान है * कर्म * Be and Make*उपाय है , उद्देश्य नहीं **कर्म तथा नैष्कर्म्य*
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श्री रामकृष्ण दोहावली (57 )-----* Brahma is Power of duality*ब्रह्म/गुरु ने दो अँगुलियाँ उठाकर संकेत किया - 'V ' , अर्थात -'ब्रह्म और माया। ' फिर एक अंगुली नीचे करके संकेत किया - " माया (आवरण और विक्षेप शक्ति ) के दूर हो जाने पर ब्रह्म ही रह जाता है , जगत ब्रह्ममय हो जाता है। "
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श्री रामकृष्ण दोहावली (58 )-*मेरी माँ काली ब्रह्म का व्यक्त रूप है * *Sagun Brahma is personal God *" ईश्वर -माया -शक्ति "मेरी ब्रह्ममयी माँ ही सब कुछ बनी है।
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r*श्री रामकृष्ण दोहावली (59 )-**What color are you in? I want that colo तुम जिस रंग में रंगे हो , मुझे वही रंग चाहिए ! *ईश्वर साकार-निराकार रूप से 'मन' में ही विराजमान हैं *
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श्री रामकृष्ण दोहावली (60)-**Some Divine Form *साकार और निराकार - कुछ ईश्वरीय रूप *ईश्वरीय रूपों पर विश्वास रखना चाहिए* Faith in Divine forms
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श्री रामकृष्ण दोहावली (61)-*ईश्वर की सर्वव्यापकता **Moral responsibility of God and man*The Omnipresence of God* एक राम घट घट में लेटा ( माँ काली के भक्त अपने व्यष्टि अहं को माँ जगदम्बा के मातृहृदय के सर्वव्यापी विराट 'अहं' -बोध रूपांतरित कर लेते हैं ?)
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$श्री रामकृष्ण दोहावली (62)-*Divine-appearance and Sound hearing**ईश्वरीय-रूपदर्शन तथा ध्वनिश्रवण* बनारस में ज्ञान, कोलकाता में भक्ति*
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श्री रामकृष्ण दोहावली (63) ~*Sentiment of Transcendental- state**समाधि तथा ब्रह्मज्ञान *एक ईश्वर सर्वभूतों में विराजमान हैं -इस निश्चयात्मक बुद्धि का नाम ज्ञान है*अतीन्द्रिय -अवस्था का मनोभाव*
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*Ovum and sperm *श्री रामकृष्ण दोहावली (64) ~*समाधि के पश्चात् होने वाला विज्ञान ~ जो आत्मा है , वही पंचभूत बना है*क्या रज-वीर्य से हड्डी और मांस का निर्माण नहीं होता *(That which is the soul, has become the Panchabhuta. उनकी इच्छा से (आत्मा की शक्ति या माँ काली की इच्छा से ) सब कुछ सम्भव हो सकता है*
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*Shri Navani Da (Narasimha) *श्री रामकृष्ण दोहावली (65) ~ *He is within everyone *इस गुरु वाक्य (महावाक्य)-एक राम घट-घट में लेटा' One Rama is residing in all " पर विश्वास * 'जय श्री रामकृष्ण *The later stage of realization of Sri Ramakrishna *ईश्वरोपलब्धि के बाद की अवस्था*
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श्री रामकृष्ण दोहावली (66) ~*"नरसिंह जयंती "*Characteristics of a Thrice Born Leader * = "वैशाख शुक्ल, चतुर्दशी" के ही दिन "भगवान नरसिंह " का अवतार लिया था* श्री नवनीदा की जन्म शतवार्षिकी 15 August 2031] " तीन बार जन्मे नेता " सिद्धिप्राप्त-मनुष्य के कुछ लक्षण *ईसामसीह से भी हजारों वर्ष पहले भक्त प्रह्लाद ने नरसिंह भगवान से अपने बैरी पिता को क्षमा कर देने की प्रार्थना की थी * 'C-IN-C' नवनीदा, ईसा, प्रह्लाद जैसे कुछ मार्गदर्शक नेताओं (गुरु) के लक्षण*
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श्री रामकृष्ण दोहावली (67) ~*Immutability of the Leader**नेता की कूटस्थता *सिद्ध पुरुषों की निर्विकारिता*
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$ श्री रामकृष्ण दोहावली (68) ~ *परमहंस बालक सम , नहि नर-नारी भेद* *To set an ideal before world be careful with Kamini*परमहंस नर-नारी में भेद नहीं करता ,तथापि कामिनी से सावधान* सिद्ध पुरुष अच्छे और बुरे के पार होते हैं, परन्तु फिर भी संसार के सामने आदर्श रखने के लिए उसे कामिनी से सावधानी बरतनी चाहिए।*Acid turns the Milk into Curd*
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'श्रीरामकृष्ण दोहावली ' के ग्रंथकार स्वामी राम'तत्वानन्द जी का निवेदन : विवेकानन्द विद्यापीठ, रामकृष्ण परमहंस नगर , कोटा, रायपुर (छत्तीसगढ़) पिनकोड -492010, द्वारा प्रकाशित "अमृतवाणी" श्री रामकृष्ण देव के जीवन एवं सन्देश रूपी सुगंध विभिन्न माध्यमों से होते हुए मनुष्य एवं समाज को प्रभावित कर रही है। उसी पुस्तक के आधार पर रचित यह दोहावली भी अगर उन अनन्त माध्यमों की कड़ी मात्र साबित हो तो यह प्रभु का आशीर्वाद माना जावे।
किसी समय उत्तरकाशी के शिखर पर , शिखरेश्वर महादेव के पादपद्मों में बैठ , प्रभु श्री रामकृष्ण देव के लीला चिंतन करते हुए कुछ दिन व्यतीत किया था। इसी समय नागपुर मठ द्वारा प्रकाशित 'अमृतवाणी ' (भगवान श्री रामकृष्ण देव के उपदेशों का संग्रह) के कुछ अंशों को दोहा रूप दिया था। यह दोहावली रूपी माला प्रभु को ही समर्पित करते हुए उनके चरणों में बारम्बार प्रणाम निवेदित करता हूँ।
दोहा के पूर्व दी हुई प्रथम नम्बर क्रम संख्या दर्शाती है, और दूसरी नम्बर अमृतवाणी पर सम्बन्धित उपदेश नम्बर।
स्वामी राम'तत्वानन्द
*फिल्म 'जगतगुरु श्रीरामकृष्ण' की प्रस्तावना*
धर्मभूमि -पुण्यभूमि भारत का आध्यात्मिक इसिहास इस बात का प्रमाण है कि जब जब भारत के आध्यात्मिक जीवन पर भोगवादी संस्कृति में लिप्त होने का संकट आया , तब तब भगवान ने नरदेह धारण कर अवतीर्ण हुए और उसे उबारा।
पूर्व पूर्व युगों की अपेक्षा वर्तमानयुग का संकट अधिक भयंकर था , क्योंकि यह 1835 में लार्ड मैकाले की शिक्षानीति के परिणाम स्वरूप उत्पन्न वह वैज्ञानिक भौतिकवाद (scientific materialism) था अतिद्रुत गति से असंख्य अंग्रेजी पढ़ेलिखे भारतवासियों के अंतस्तल में बैठता हुआ उनके हृदय के श्रद्धा-विश्वास और भक्ति को समूल नष्ट कर देने पर उतारू था।
इसके आकर्षक मोहजाल में फंसकर भारतवासी वर्णाश्रमधर्म (चार पुरुषार्थ, चार आश्रम और चार वर्ण) में आधारित सनातन धर्ममार्ग को भूलकर, गीता, उपनिषद में निहित त्याग की परम्परा से दूर चले जा रहे थे।
मानवजाति को इस महान संकट से बचाने के लिए सनातन धर्म की पुनःप्रतिष्ठा आवश्यक थी , लेकिन इस बार सत्ययुग की प्रतिष्ठा इस रूप में करनी थी, जिससे वैज्ञानिक मनोभाव रखने वाला , पाश्चात्य शिक्षा में पलाबढ़ा युवा भी -चरित्रवान मनुष्य बनने और बनाने वाली प्रशिक्षण-प्रक्रिया "Be and Make ' को सरलता से समझ सके और जीवन में अपना सके।
इस कार्य की पूर्ति के लिए भगवान श्रीरामकृष्णदेव को निवृत्तिमार्ग के सप्तऋषियों में से एक स्वामी विवेकानन्द तथा अन्य पार्षदों के साथ अवतीर्ण होना पड़ा। उन्होंने श्रीरामकृष्ण -विवेकानन्द वेदान्त शिक्षक-प्रशिक्षण में प्रशिक्षित जीवनमुक्त शिक्षकों / नेताओं के जीवन द्वारा भारत की सुप्त आध्यात्मिक शक्ति को 'पुनर्जागृत' कर दिया। जिसकी एक झलक आपको 'हजारीबाग विवेकानन्द युवा महामण्डल ' के तत्वाधान में बनी पहली 'पुनर्जागरण' में मिल चुकी है।
इसी कड़ी में अब दूसरी फिल्म प्रस्तुत है - 'जगतगुरु श्रीरामकृष्ण '! क्योंकि श्रीरामकृष्ण ने न केवल हिन्दुधर्म को , बल्कि संसार के प्रायः सभी विख्यात धर्मों को पुनरुज्जीवित कर , सम्पूर्ण संसार की धर्मग्लानि को दूर किया तथा भ्रान्त होने के कारण अशांत , अतृप्त [सिंह शावक होकर भी अपने को भेंड़ समझने के सम्मोहन से सम्मोहित (hypnotized) होने के कारण अशांत और अतृप्त] जगद-वासियों को 'अमृतत्व ' का संधान देकर धन्य कर दिया, (de- hypnotized) कर दिया और अपने सच्चिदानंद स्वरुप में प्रतिष्ठित होने का मार्ग बतला दिया।
'अवतारवरिष्ठ' भगवान श्रीरामकृष्णदेव अत्यंत सरल और मनोहर भाषा में उपदेश देते थे तथा उनके उपदेशों में उनकी गहन-गंभीर आध्यात्मिक अनुभूति की शक्ति भरी होती थी।
इसलिए सीधा श्रोता के हृदय को छू लेती थी। श्रोता के मन पर उनका विलक्षण प्रभाव पड़ता था। उन उपदेशों को सुनने से श्रोता के मन से सारे संशय , द्वंद्व , अविश्वास दूर हो जाते, और उनके हृदय में श्रद्धा-भक्ति का संचार होता। इस प्रकार अपने अलौकिक उपदेशों द्वारा उन्होंने अगणित नर-नारियों को आध्यात्मिक दृष्टि प्रदान कर जगत को ब्रह्ममय (सिया-राममय) देखने का मार्ग बताया।
हमें विश्वास है 'फिल्म पुनर्जागरण' में व्यवहृत और स्वामी राम'तत्वानन्द जी द्वारा रचित 'श्रीरामकृष्ण दोहावली ' के 500 दोहों में समाहित श्रीरामकृष्ण के अमृतमय उपदेशों के अनुशीलन से पाठकों और दर्शकों का सर्वांगीण कल्याण -दैहिक , ममानसिक और आध्यात्मिक कल्याण होगा।
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