[(1 जनवरी, 1881),श्री रामकृष्ण वचनामृत- परिशिष्ट]
(क)
परिच्छेद- 1
🔱🕊 🏹केशव के साथ दक्षिणेश्वर मन्दिर में🔱🕊 🏹
কেশবের সহিত দক্ষিণেশ্বর-মন্দিরে
(१)
* श्रीरामकृष्ण तथा श्री केशवचन्द्र सेन*
शनिवार, 1 जनवरी, 1881 ई. ब्राह्मसमाज का माघोत्सव आनेवाला है । राम, मनोमोहन आदि अनेक व्यक्ति उपस्थित हैं । ब्राह्म भक्तगण तथा अन्य लोग केशव के आने से पहले ही कालीबाड़ी में आ गये हैं और श्रीरामकृष्णदेव के पास बैठे हुए हैं । सभी बेचैन हैं, बार-बार दक्षिण की ओर देख रहे हैं कि कब केशव आयेंगे, कब केशव जहाज से आकर उतरेंगे । प्रताप, त्रैलोक्य, जयगोपाल सेन आदि अनेक ब्राह्मभक्तों को साथ लेकर केशवचन्द्र सेन श्रीरामकृष्ण का दर्शन करने के लिए दक्षिणेश्वर के मन्दिर में आये ।
.KESHAB CHANDRA SEN, the leader of the Brahmo Samaj, was expected to visit Sri Ramakrishna at the temple garden at Dakshineswar. With the Master were many Brahmo celebrities — Pratap, Trailokya, Jaygopal, and others. It was only a few days before the annual festival of the Brahmo Samaj, and the Brahmos were eagerly awaiting the arrival of their leader, who was to come by steamer. They were restless and talking rather noisily. Ram, Manomohan, and several other devotees of the Master were also there.
ব্রাহ্মসমাজের মাঘোৎসব সম্মুখে। প্রতাপ, ত্রৈলোক্য, জয়গোপাল সেন প্রভৃতি অনেক ব্রাহ্মভক্ত লইয়া কেশবচন্দ্র সেন শ্রীরামকৃষ্ণকে দর্শন করিতে দক্ষিণেশ্বর-মন্দিরে আসিয়াছেন। রাম, মনোমোহন প্রভৃতি অনেকে উপস্থিত। ব্রাহ্মভক্তেরা অনেকেই কেশবের আসিবার আগে কালীবাড়িতেই আসিয়াছেন ও ঠাকুরের কাছে বসিয়া আছেন। সকলেই ব্যস্ত, কেবল দক্ষিণদিকে তাকাইতেছেন, কখন কেশব আসিবেন, কখন কেশব জাহাজে করিয়া আসিয়া অবতরণ করিবেন। তাঁহার আসা পর্যন্ত ঘরে গোলমাল হইতে লাগিল।
हाथ में दो बेल फल तथा फूल का एक गुच्छा है । उन्होंने श्रीरामकृष्ण के चरण स्पर्श कर उन चीजों को उनके पास रख दिया और भूमिष्ठ होकर प्रणाम किया । श्रीरामकृष्ण ने भी भूमिष्ठ होकर प्रति-नमस्कार किया । श्रीरामकृष्ण आनन्द से हँस रहे हैं और केशव के साथ बात कर रहे हैं ।
At last Keshab entered the Master's room with two fruits and a bouquet of flowers in his hands. Touching the Master's feet, he laid the offering at his side. Then he saluted Sri Ramakrishna with great reverence, bowing very low before him. Sri Ramakrishna returned in like manner his distinguished visitor's salutation. Then he laughingly began the conversation.
এইবার কেশব আসিয়াছেন। হাতে দুইটি বেল ও ফুলের একটি তোড়া। কেশব শ্রীরামকৃষ্ণের চরণ স্পর্শ করিয়া ওইগুলি কাছে রাখিয়া দিলেন এবং ভূমিষ্ঠ হইয়া প্রণাম করিলেন। ঠাকুরও ভূমিষ্ঠ হইয়া প্রতিনমস্কার করিলেন।
श्रीरामकृष्ण (केशव के प्रति, हँसते हुए) - केशव, तुम मुझे चाहते हो, परन्तु तुम्हारे चेले लोग मुझे नहीं चाहते । तुम्हारे चेलों से कहा था, 'आओ, हम खंजन-मंजन करें, उसके बाद गोविन्द आ जायेंगे ।' (केशव के शिष्यों के प्रति) “वह देखो जी, तुम्हारे गोविन्द आ गये । मैं इतनी देर तक खंजन-मंजन कर रहा था, भला आयेंगे क्यों नहीं ? (सभी हँसे)
MASTER: "You, Keshab, want me; but your disciples don't. I was saying to them: 'Let us be restless. Then Govinda will come.' (To Keshab's disciples) See, here is your Govinda!
শ্রীরামকৃষ্ণ আনন্দে হাসিতেছেন। আর কেশবের সহিত কথা কহিতেছেন।শ্রীরামকৃষ্ণ (কেশবের প্রতি সহাস্যে) — কেশব তুমি আমায় চাও কিন্তু তোমার চেলারা আমায় চায় না। তোমার চেলাদের বলছিলুম, এখন আমরা খচমচ করি, তারপর গোবিন্দ আসবেন। (কেশবের শিষ্যদের প্রতি) — “ওইগো, তোমাদের গোবিন্দ এসেছেন। আমি এতক্ষণ খচমচ করছিলুম, জমবে কেন। (সকলের হাস্য)
"गोविन्द का दर्शन सहज नहीं मिलता । कृष्ण-लीला में देखा होगा, नारद जब व्याकुल होकर ब्रज में कहते हैं - 'प्राण ! हे गोविन्द ! मम जीवन !' - उस समय गोपालों के साथ श्रीकृष्ण आते हैं, पीछे पीछे सखियाँ और गोपियाँ । व्याकुल हुए बिना ईश्वर का दर्शन नहीं होता । (केशव के प्रति) "केशव, तुम कुछ कहो, ये सब तुम्हारी बात सुनना चाहते हैं ।"
"We have been showing signs of restlessness all this while to set the stage for your arrival. It isn't easy to have the vision of Govinda. You must have noticed in the Krishnayatra.1 that Narada enters Vrindavan and prays with great yearning: 'O Govinda! O my soul! O Life of my life!', and then Krishna comes on the stage with the cowherd boys, followed by the gopis. No one can see God without that yearning. "Well, Keshab, say something! They are eager to hear your words."
केशव - (विनीत भाव से हँसते हुए) - यहाँ पर बात करना लुहार के पास सूई बेचने की चेष्टा-जैसा होगा !
KESHAB (humbly, with a smile): "To open my lips here would be like trying to 'sell needles to a blacksmith'."
কেশব (বিনীতভাবে, সহাস্যে) — এখানে কথা কওয়া কামারের নিকট ছুঁচ বিক্রি করতে আসা!
श्रीरामकृष्ण - (हँसते हुए) - बात क्या है, जानते हो ? भक्तों का स्वभाव गाँजा पीनेवालों-जैसा है । तुमने एक बार गाँजे की चिलम लेकर दम लगाया, और मैंने भी एक बार लगाया । (सभी हँसे)
MASTER (smiling): "But don't you know that the nature of devotees is like that of hemp-smokers? One hemp-smoker says to another, 'Please take a puff for yourself and give me one.'" (All laugh.)
শ্রীরামকৃষ্ণ (সহাস্যে) — তবে কি জানো, ভক্তের স্বভাব গাঁজাখোরের স্বভাব। তুমি একবার গাঁজার কলকেটা নিয়ে টানলে আমিও একবার টানলাম। (সকলের হাস্য)
दिन के चार बजे का समय है । कालीबाड़ी के नौबतखाने का वाद्य सुनायी दे रहा है ।
श्रीरामकृष्ण - (केशव के प्रति) - देखा, कैसा सुन्दर वाद्य है ! लेकिन एक आदमी केवल एक राग - 'पों' - निकाल रहा है और दूसरा अनेक सुरों की लहर उठाकर कितनी ही राग-रागिनियाँ निकाल रहा है । मेरा भी वही भाव है ।
It was about four o'clock in the afternoon. They heard the music from the nahabat in the temple garden. MASTER (to Keshab and the others): "Do you hear how melodious that music is? One player is producing only a monotone on his flute, while another is creating waves of melodies in different ragas and raginis. (Modes in Indian music.) That is my attitude.
বেলা ৪টা বাজিয়াছে। কালীবাড়ির নহবতে বাজনা শুনা যাইতেছে। শ্রীরামকৃষ্ণ (কেশব প্রভৃতির প্রতি) — দেখলে কেমন সুন্দর বাজনা। তবে একজন কেবল পোঁ করছে, আর-একজন নানা সুরের লহরী তুলে কত রাগ-রাগিণীর আলাপ করছে। আমারও ওই ভাব।
मेरे सात सूराख रहते हुए फिर मैं क्यों केवल 'पों' निकालूँ - क्यों केवल 'सोऽहम्' 'सोऽहम्' करूँ ? मैं सात सूराखों से अनेक प्रकार की राग-रागिनियाँ बजाऊँगा । केवल 'ब्रह्म-ब्रह्म' ही क्यों करूँ? शान्त, दास्य, वात्सल्य, सख्य, मधुर सभी भावों से उन्हें पुकारूँगा, आनन्द करूँगा, विलास करूँगा ।
Why should I produce only a monotone when I have an instrument with seven holes? Why should I say nothing but, 'I am He, I am He'? I want to play various melodies on my instrument with seven holes. Why should I say only, 'Brahma! Brahma!'? I want to call on God through all the moods — through santa, dasya, sakhya, vatsalya, and madhur. I want to make merry with God. I want to sport with God."
আমার সাত ফোকর থাকতে কেন শুধু পোঁ করব — কেন শুধি সোহং সোহং করব। আমি সাত ফোকরে নানা রাগ-রাগিণী বাজাব। শুধু ব্রহ্ম ব্রহ্ম কেন করব! শান্ত, দাস্য, বাৎসল্য, সখ্য, মধুর সবভাবে তাঁকে ডাকব — আনন্দ করব, বিলাস করব।
केशव अवाक् होकर इन बातों को सुन रहे हैं और कह रहे हैं, “ज्ञान और भक्ति की इस प्रकार अद्भुत और सुन्दर व्याख्या मैंने कभी नहीं सुनी ।”
Keshab listened to these words with wonder in his eyes and said to the Brahmo devotees, "I have never before heard such a wonderful and beautiful interpretation of jnana and bhakti."
কেশব অবাক্ হইয়া এই কথাগুলি শুনিতেছেন। আর বলিতেছেন, জ্ঞান ও ভক্তির এরূপ আশ্চর্য, সুন্দর ব্যাখ্যা কখনও শুনি নাই।
केशव - (श्रीरामकृष्ण के प्रति) - आप कितने दिन इस प्रकार गुप्त रूप में रहेंगे - धीरे धीरे यहाँ पर लोगों का मेला लग जायगा ।
KESHAB (to the Master): "How long will you hide yourself in this way? I dare say people will be thronging here by and by in great crowds."
কেশব (শ্রীরামকৃষ্ণের প্রতি) — আপনি কতদিন এরূপ গোপনে থাকবেন — ক্রমে এখানে লোকে লোকারণ্য হবে।
श्रीरामकृष्ण - तुम्हारी यह कैसी बात है ! मैं खाता-पीता रहता हूँ और उनका नाम लेता हूँ । लोगों का मेला लगाना में नहीं जानता । हनुमानजी ने कहा था, 'मैं वार, तिथि, नक्षत्र यह सब कुछ नहीं जानता, केवल एक राम का चिन्तन करता हूँ ।"
MASTER: "What are you talking of? I only eat and drink and sing God's name. I know nothing about gathering crowds. Hanuman once declared: 'I know nothing about the day of the week or the position of the moon and stars in the sky. I simply meditate on Rama.'"
শ্রীরামকৃষ্ণ — ও তোমার কি কথা। আমি খাই দাই থাকি, তাঁর নাম করি। লোক জড় করাকরি আমি জানি না। কে জানে তোর গাঁইগুঁই, বীরভূমের বামুন মুই। হনুমান বলেছিল — আমি বার, তিথি, নক্ষত্র ও-সব জানি না কেবল এক রামচিন্তা করি।
केशव - अच्छा, मैं लोगों का मेला लगाऊँगा, परन्तु आपके यहाँ सभी को आना पड़ेगा ।
KESHAB: "All right, sir, I shall gather the crowd. But they all must come to your place."
কেশব — আচ্ছা, আমি লোক জড় করব। কিন্তু আপনার এখানে সকলের আসতে হবে।
श्रीरामकृष्ण - मैं सभी के चरणों की धूलि की धूलि हूँ । जो दया करके आयेंगे, वे आवें !
MASTER: "I am the dust of the dust of everybody's feet. If anyone is gracious enough to come here, he is welcome."
শ্রীরামকৃষ্ণ — আমি সকলের রেণুর রেণু। যিনি দয়া করে আসবেন, আসবেন।
केशव - आप जो भी कहें, आपका आगमन (अवतार ग्रहण) व्यर्थ न होगा ।
KESHAB: "Whatever you may say, sir, your advent cannot be in vain."
কেশব — আপনি যা বলুন, আপনার আসা বিফল হবে না।
(२)
[(1 जनवरी, 1881),श्री रामकृष्ण वचनामृत- परिशिष्ट]
🏹*ईश्वर-दर्शन का उपाय -अहं का त्याग * 🏹
इधर कीर्तन का आयोजन हो रहा है । अनेक भक्त जुट गये हैं । पंचवटी से कीर्तन का दल दक्षिण की ओर आ रहा है । हृदय शहनाई बजा रहा है । गोपीदास मृदंग तथा अन्य दो व्यक्ति करताल बजा रहे हैं ।
In the mean time the devotees had arranged a kirtan. Many of them had joined it. The party started at the Panchavati and moved toward the Master's room. Hriday blew the horn, Gopidas played the drum, and two devotees played the cymbals.
Sri Ramakrishna sang: O man, if you would live in bliss, repeat Lord Hari's name;Then you will lead a life of joy and go to paradise,And feed upon the fruit of moksha evermore:Such is the glory of His name! I give you the name of Hari, which Siva, God of Gods, Repeats aloud with His five mouths.
এদিকে সংকীর্তনের আয়োজন হইতেছে। অনেকগুলি ভক্ত যোগ দিয়াছেন। পঞ্চবটী হইতে সংকীর্তনের দল দক্ষিণদিকে আসিতেছে। হৃদয় শিঙা বাজাইতেছেন। গোপীদাস খোল বাজাইতেছেন আর দুইজন করতাল বাজাইতেছেন। শ্রীরামকৃষ্ণ গান ধরিলেন:
হরিনাম নিসে রে জীব যদি সুখে থাকবি।
সুখে থাকবি বৈকুণ্ঠে যাবি, ওরে মোক্ষফল সদা পাবি ॥
(হরিণাম গুণেরে)
যে নাম শিব জপেন পঞ্চমুখে
আজ সেই হরিনাম দিব তোকে।
श्रीरामकृष्ण गाना गाने लगे –
हरिनाम निसे रे जीव यदि सूखे थाकबि।
सूखे थाकबि बैकुण्ठ जाबी , ओरे मोक्षफल सदा पाबि।।
(हरिनाम गुनेरे)
जे नाम शिव जपेन पञ्चमुखे ,
आज सेई हरिनाम दिबो तोके।
संगीत - (भावार्थ) –"रे मन ! यदि सुख से रहना चाहता है तो हरि का नाम ले । हरिनाम के गुण से सुख से रहेगा, वैकुण्ठ में जायगा, सदा मोक्षफल प्राप्त करेगा । जिस नाम का जप शिवजी पंचमुखों से करते हैं, आज तुझे वही हरिनाम दूँगा ।"
श्रीरामकृष्ण सिंह-बल से नृत्य कर रहे हैं । अब समाधिमग्न हो गये ।समाधि-भंग होने के बाद कमरे में बैठे हैं ।
The Master danced with the strength of a lion and went into samadhi. Regaining consciousness of the outer world, he sat down in his room and began to talk with Keshab and the other devotees.
শ্রীরামকৃষ্ণ সিংহবিক্রমে নৃত্য করিতেছেন।এইবার সমাধিস্থ হইলেন।সমাধিভঙ্গের পর ঘরে উপবিষ্ট হইয়াছেন।
[(1 जनवरी, 1881),श्री रामकृष्ण वचनामृत परिशिष्ट]
🏹[ब्रह्मसमाजी-आर्यसमाजी-मूर्तिपूजा पर विश्वास नहीं करने वाले]
केशव के साथ सर्वधर्म समन्वय : विषय पर चर्चा 🏹
श्रीरामकृष्ण केशव आदि के साथ वार्तालाप कर रहे हैं ।
"- सभी पथों से उन्हें प्राप्त किया जा सकता है - जैसे, तुममें से कोई गाड़ी पर, कोई नौका पर, कोई जहाज पर सवार होकर और कोई पैदल आया है - जिसकी जिसमें सुविधा और जिसकी जैसी प्रकृति है, वह उसी के अनुसार आया है । उद्देश्य एक ही है । कोई पहले आया, कोई बाद में ।
[जैसे स्वामी विवेकानन्द ने अलवर (राजस्थान) के राजा मंगलसिंह को उनके पिता का चित्र (2D) पर विश्वास और उनकी मूर्ति (3D) पर अविश्वास को तार्किक तौर से प्रमाणित किया था ।]
MASTER: "God can be realized through all paths, it is like your coming to Dakshineswar by carriage, by boat, by steamer, or on foot. You have chosen the way according to your convenience and taste; but the destination is the same. Some of you have arrived earlier than others; but all have arrived.
“সব পথ দিয়েই তাঁকে পাওয়া যায়। যেমন তোমরা কেউ গাড়ি, কেউ নৌকা, কেউ জাহাজে করে, কেউ পদব্রজে এসেছ, যার যাতে সুবিধা, আর যার যা প্রকৃতি সেই অনুসারে এসেছ। উদ্দেশ্য এক — কেউ আগে এসেছে, কেউ পরে এসেছে। কেশব প্রভৃতির সঙ্গে কথা কহিতেছেন।
[(1 जनवरी, 1881),श्री रामकृष्ण वचनामृत परिशिष्ट]
🏹ईश्वर को देखने का उपाय है - उपाधि के अहंकार का त्याग और सेवा 🏹
"उपाधि जितनी दूर रहेगी, ईश्वर उतना ही निकट अनुभूत होंगे । अर्थात जितना अधिक तुम उपाधियों से मुक्त होते जाओगे उतना ही अधिक तुम अपने ह्रदय में ईश्वर की उपस्थिति का अनुभव करोगे। ऊँचे टिले पर वर्षा का जल एकत्र नहीं होता, यह केवल नीची जमीन पर ही एकत्र होता है । इसी प्रकार जहाँ अहंकार के उपाधि का टिला ऊँचा है, वहाँ पर ईश्वर की कृपा का जल नहीं जमता। ईश्वर के समक्ष दीनभाव रखना ही अच्छा है ।
[अर्थात विद्या का 'मैं', या ठाकुर,माँ -स्वामी जी के दास का 'मैं', के अलावा-किसी भी पद का मैं, या धनी-मानी होने का अहंकार ही ऊँचा टिला है। जितना अधिक तुम Director, अध्यक्ष, सचिव, बड़ा बाबू, किसी फर्म के मालिक बाबू या पार्टनर बाबू, आदि उपाधियों से मुक्त होते जाओगे, उतना ही अधिक तुम अपने ह्रदय में ईश्वर की उपस्थिति का अनुभव करोगे।]
The more you rid yourself of upadhis, the nearer you will feel the presence of God. Rain-water never collects on a high mound; it collects only in low land. Similarly, the water of God's grace cannot remain on the high mound of egotism. Before God one should feel lowly and poor.
(কেশব প্রভৃতির প্রতি) — “উপাধি যতই যাবে, ততই তিনি কাছে হবেন। উঁচু ঢিপিতে বৃষ্টির জল জমে না। খাল জমিতে জমে; তেমনি তাঁর কৃপাবারি, যেখানে অহংকার, সেখানে জমে না। তাঁর কাছে দীনহীন ভাবই ভাল।
"बहुत सावधान रहना चाहिए, यहाँ तक कि वस्त्र से भी अहंकार होता है । तिल्ली के रोगी को देखा, काली किनारवाली धोती पहनी है और साथ ही निधुबाबू की गजल गा रहा है ! "किसी ने बूट पहना नहीं कि मुँह से अंग्रेजी बोली निकलने लगी ! यदि कोई छोटा आधार हो तो गेरुआ वस्त्र पहनने से अहंकार होता है । उसके प्रति सम्मान प्रदर्शन करने में जरा सी त्रुटि उसके क्रोध और नाराजगी को भड़का देती है ।
"One should be extremely watchful. Even clothes create vanity. I notice that even a man suffering from an enlarged spleen sings Nidhu Babu's light songs when he is dressed up in a black-bordered cloth. There are men who spout English whenever they put on high boots. And when an unfit person puts on an ochre cloth he becomes vain; the slightest sign of indifference to him arouses his anger and pique.
“খুব সাবধানে থাকতে হয়, এমন কি কাপড়চোপড়েও অহংকার হয়। পিলে রোগী দেখেছি কালাপেড়ে কাপড় পরেছে, অমনি নিধুবাবুর টপ্পা গাইছে!“কেউ বুট পরেছে অমনি মুখে ইংরাজী কথা বেরুচ্ছে! “সামান্য আধার হলে গেরুয়া পরলে অহংকার হয়; একটু ত্রুটি হলে ক্রোধ, অভিমান হয়।”
[(1 जनवरी, 1881),श्री रामकृष्ण वचनामृत परिशिष्ट]
[भोगों (3 ऐषणा) का विवेकपूर्ण अन्त हुए बिना, विवेकदर्शन की तड़प नहीं होती !]
🏹 ईश्वर लाभ के तीन चरण : भोगान्त, व्याकुलता और आत्मसाक्षात्कार ! 🏹
[ভোগান্ত, ব্যাকুলতা ও ঈশ্বরলাভ ]
"व्याकुल हुए बिना उनका दर्शन नहीं किया जा सकता । यह व्याकुलता भोग का अन्त हुए बिना नहीं होती । जो लोग कामिनीकांचन के बीच में हैं, जिनके भोग का अन्त नहीं हुआ, उनमें व्याकुलता नहीं आती ।
[ "व्याकुल हुए बिना ईश्वर का दर्शन नहीं किया जा सकता । और यह व्याकुलता (ईश्वर को देखने की तड़प -मन तड़पत हरि दर्शन को आज ) भोग का अन्त हुए बिना नहीं होती । जो लोग कामिनी-कांचन के बीच घिरे रहते हैं, जिनके भोग का (स्वयं को M/F शरीर मानकर तीनों ऐषणाओं में Bh आसक्ति का) अन्त नहीं हुआ, उनमें व्याकुलता नहीं आती ।]
"God cannot be seen without yearning of heart, and this yearning is impossible unless one has finished with the experiences of life. Those who live surrounded by 'woman and gold', and have not yet come to the end of their experiences, do not yearn for God.
“ব্যাকুল না হলে তাঁকে দেখা যায় না। এই ব্যাকুলতা ভোগান্ত না হলে হয় না। যারা কামিনী-কাঞ্চনের মধ্যে আছে ভোগান্ত হয় নাই, তাদের ব্যাকুলতা আসে না।
"उस देश (कामारपुकुर) में जब मैं था, हृदय का लड़का, जो चार-पाँच वर्ष का था सारा दिन मेरे पास रहता था, मेरे सामने इधर उधर खेला करता था, एक तरह से भूला रहता था । पर ज्योंही सन्ध्या होती वह कहने लगता - 'माँ के पास जाऊँगा ।' मैं कितना कहता - 'कबूतर दूँगा' आदि आदि, अनेक तरह से समझाता, पर वह भूलता न था, रो-रोकर कहता था – ‘माँ के पास जाऊँगा ।’ खेल, खिलौना कुछ भी उसे अच्छा नहीं लगता था । मैं उसकी दशा देखकर रोता था ।
"When I lived at Kamarpukur, Hriday's son, a child four or five years old, used to spend the whole day with me. He played with his toys and almost forgot everything else. But no sooner did evening come than he would say, 'I want to go to my mother.' I would try to cajole him in various ways and would say, 'Here, I'll give you a pigeon.' But he wouldn't be consoled with such things; he would weep and cry, 'I want to go to my mother.' He didn't enjoy playing any more. I myself wept to see his state.
“ও-দেশে হৃদয়ের ছেলে সমস্ত দিন আমার কাছে থাকত, চার-পাঁচ বছরের চেলে। আমার সামনে এটা ওটা খেলা করত, একরকম ভুলে থাকত। যাই সন্ধ্যা হয় হয় অমনি বলে — মা যাব। অমি কত বলতুম — পায়রা দিব, এই সব কথা, সে ভুলত না; কেঁদে কেঁদে বলত — মা যাব। খেলা-টেলা কিছুই ভাল লাগছে না। আমি তার অবস্থা দেখে কাঁদতুম।
"यही हैं बालक की तरह ईश्वर के लिए रोना ! यही है व्याकुलता ! फिर खेल, खाना-पीना कुछ भी अच्छा नहीं लगता । यह व्याकुलता तथा उनके लिए रोना, भोग के क्षय होने पर होता है ।"
"One should cry for God that way, like a child. That is what it means to be restless for God. One doesn't enjoy play or food any longer. After one's experiences of the world are over, one feels this restlessness and weeps for God."
“এই বালকের মতো ঈশ্বরের জন্য কান্না। এই ব্যাকুলতা। আর খেলা, খাওয়া কিছুই ভাল লাগে না। ভোগান্তে এই ব্যাকুলতা ও তাঁর জন্য কান্না!”
सब लोग विस्मित होकर इन बातों को सुन रहे हैं । सायंकाल हो गया है, बत्तीवाला बत्ती जलाकर चला गया । केशव आदि ब्राह्म भक्तगण जलपान करके जायेंगे । जलपान का आयोजन हो रहा है।
The devotees sat in silence, listening to the Master's words. When evening came, a lamp was lighted in the room. Preparations were being made for feeding Keshab and the devotees.
केशव - (हँसते हुए) - आज भी क्या लाई-मुरमुरा है ?
KESHAB (with a smile): "What? Puffed rice again today?"
কেশব (সহাস্যে) — আজও কি মুড়ি?
श्रीरामकृष्ण – (हँसते हुए) - हृदय जानता है ।
MASTER (smiling): "Hriday knows."
শ্রীরামকৃষ্ণ (সহাস্যে) — হৃদু জানে।
पत्तल बिछाये गये । पहले लाई-मुरमुरा, उसके बाद पूड़ी और उसके बाद तरकारी । (सभी हँसते हैं) सब समाप्त होते होते रात के दस बज गये ।
The devotees were served first with puffed rice, and then with luchi and curries on leaf-plates. All enjoyed the meal very much. It was about ten o'clock when supper was over.
পাতা পড়িল। প্রথমে মুড়ি, তারপর লুচি, তারপর তরকারি। (সকলের খুব আনন্দ ও হাসি) সব শেষ হইতে রাত দশটা বাজিয়া গেল।
[(1 जनवरी, 1881),श्री रामकृष्ण वचनामृत परिशिष्ट]
🙋*बूढ़ी* (ढाई) को पहले छू लो, और फिर खेल करो 🙋
श्रीरामकृष्ण पंचवटी के नीचे ब्राह्म भक्तों के साथ फिर बातचीत कर रहे हैं ।
The Master went to the Panchavati with Keshab and the devotees.
ঠাকুর পঞ্চবটীমূলে ব্রাহ্মভক্তগণের সঙ্গে আবার কথা কহিতেছেন।
श्रीरामकृष्ण - (हँसते हुए, केशव के प्रति) - ईश्वर को प्राप्त करने के बाद गृहस्थी में भलीभाँति रहा जा सकता है । *बूढ़ी* (ढाई) को पहले छू लो, और फिर खेल करो ।(*बच्चों के एक खेल में एक बालक 'चोर' बनता है, जो एक खूंटी के पास रहता है और अन्य बालक इधर-उधर रहते हैं । वह 'चोर' बालक जिस बालक को छुएगा, वही 'चोर' बनेगा । लेकिन जिसने उस खूँटी को छू लिया वह फिर 'चोर' नहीं बन सकता । उस खूँटी को बूढ़ी कहते हैं ।)
MASTER (to Keshab and the others): "One can very well live in the world after realizing God. Why don't you first touch the 'granny' and then play hide-and-seek?
শ্রীরামকৃষ্ণ (সহাস্যে কেশব প্রভৃতির প্রতি) — ঈশ্বরলাভের পর সংসারে বেশ থাকা যায়। বুড়ী ছুঁয়ে তারপর খেলা কর না।
"ईश्वर-प्राप्ति के बाद भक्त निर्लिप्त हो जाता है, जैसे कीचड़ की मछली - कीचड़ के बीच में रहकर भी उसके बदन पर कीच नहीं लगता ।"
"After attaining God, a devotee becomes unattached to the world. He lives like a mudfish. The mudfish keeps its body unstained though it lives in mud."
“লাভের পর ভক্ত নির্লিপ্ত হয়, যেমন পাঁকাল মাছ। পাঁকের ভিতর থেকেও গায়ে পাঁক লেগে থাকে না।”
लगभग ११ बजे रात का समय हुआ, सभी जाने की तैयारी में हैं । प्रताप ने कहा, ‘आज रात को यहीं पर रह जाना ठीक होगा ।’
About eleven o'clock the Brahmos became eager to go home. Pratap said, "It would be nice if we could spend the night here."
প্রায় ১১টা বাজে, সকলে যাইবার জন্য অধৈর্য। প্রতাপ বললেন, আজ রাত্রে এখানে থেকে গেলে হয়।
श्रीरामकृष्ण केशव से कह रहे हैं, 'आज यहीं रहो न ।'
MASTER (to Keshab): "Why not stay here tonight?"
শ্রীরামকৃষ্ণ কেশবকে বলিতেছেন, আজ এখানে থাক না।
केशव - (हँसते हुए) - काम-काज है, जाना होगा ।
KESHAB (smiling): "No, I have business to attend to. I must go."
কেশব (সহাস্যে) — কাজ-টাজ আছে; যেতে হবে।
श्रीरामकृष्ण - क्यों जी, तुम्हें क्या मछली की टोकरी की गन्ध न होने से नींद न आयगी ? एक मछलीवाली रात को एक बागवान के घर अतिथि बनी थी । उसे फूलवाले कमरे में सुलाया गया, पर उसे नींद न आयी । वह करवटें बदल रही थी, उसे देख बागवान की स्त्री ने आकर कहा, 'क्यों री, सो क्यों नहीं रही हो ?' मछलीवाली बोली, 'क्या जानूँ बहन, शायद फूलों की गन्ध से नींद नहीं आ रही है । क्या तुम जरा मछली की टोकरी मँगा सकती हो ?'“तब मछलीवाली मछली की टोकरी पर जल छिड़ककर उसकी गन्ध सूँघती सो गयी !" (सभी हँसे)
MASTER: "Why must you, my dear sir? Can't you sleep without your fish-basket? Once a fishwife was a guest in a gardener's house. She was asked to sleep in a room full of flowers. But she couldn't get any sleep there. (All laugh.) She was restless and began to fidget about. The gardener called to her: 'Hello there! Why aren't you asleep?' 'Oh, I don't know', said the fishwife. 'There are flowers here. The smell keeps me awake. Can't you bring me my fish-basket?' She sprinkled a little water in the basket, and when she smelled the fish she fell fast asleep." (All laugh heartily.)
শ্রীরামকৃষ্ণ — কেন গো, তোমার আঁষচুবড়ির গন্দ না হলে কি ঘুম হবে না। মেছুনী মালীর বাড়িতে রাত্রে অতিথি হয়েছিল। তাকে ফুলের ঘরে শুতে দেওয়াতে তার আর ঘুম হয় না। (সকলের হাস্য) উসখুস করছে, তাকে দেখে মালিনী এসে বললে — কেন গো — ঘুমুচ্ছিস নি কেন গো? মেছুনী বললে কি জানি মা কেমন ফুলের গন্ধে ঘুম হচ্ছে না, তুমি একবার আঁষচুবড়িটা আনিয়ে দিতে পার? তখন মেছুনী আঁষচুবড়িতে জল ছিটিয়ে সেই গন্ধ আঘ্রাণ করতে করতে নিদ্রায় অভিভূত হল। (সকলের হাস্য)
बिदा के समय केशव ने श्रीरामकृष्ण के चरणों में अपने द्वारा चढ़ाये हुए पुष्पों में से एक गुच्छा लिया और भूमि पर माथा लगाकर श्रीरामकृष्ण को प्रणाम करके भक्तों के साथ कहने लगे, 'विधान की जय हो ।'
Keshab took a few of the flowers that he had offered at Sri Ramakrishna's feet on his arrival. He and his Brahmo devotees cried out as they saluted the Master, "Hail, Navavidhan!" Thus they bade him adieu.
বিদায়ের সময় কেশব ঠাকুরের চরণ স্পর্শ করে একটি ফুলের তোড়া গ্রহণ করিলেন ও ভূমিষ্ঠ প্রণাম করিয়া ‘বিধানের জয় হউক’ এই কথা ভক্তসঙ্গে বলিতে লাগিলেন।
केशव ब्राह्मभक्त जयगोपाल सेन की गाड़ी में बैठे । वे कलकत्ता जायेंगे ।
ব্রাহ্মভক্ত জয়গোপাল সেনের গাড়িতে কেশব উঠিলেন; কলিকাতায় যাইবেন।
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