परिच्छेद १३८~नरेन्द्र के प्रति उपदेश"
(१)
नरेन्द्र आदि भक्तों के संग में
श्रीरामकृष्ण भक्तों के साथ काशीपुर के बगीचे में हैं । शरीर बहुत ही अस्वस्थ है, परन्तु सदा ही व्याकुल भाव से ईश्वर के निकट भक्तों की कल्याणकामना किया करते हैं । आज शनिवार है, चैत्र की शुक्ला चतुर्दशी, १७ अप्रैल १८८६ । पूर्णिमा लग गयी है । कुछ दिनों से नरेन्द्र लगातार दक्षिणेश्वर जा रहे हैं । वहाँ पंचवटी में ईश्वर-चिन्तन, ध्यान-साधना आदि किया करते हैं । आज शाम को वे लौटे, साथ में श्रीयुत तारक और काली भी हैं ।
It was the night of the full moon. For some time Narendra had been going to Dakshineswar daily. He spent a great deal of time in the Panchavati in meditation and contemplation. This day he returned from Dakshineswar in the evening. Tarak and Kali were with him.
শ্রীরামকৃষ্ণ কাশীপুর বাগানে ভক্তসঙ্গে বাস করিতেছেন। শরীর খুব অসুস্থ — কিন্তু ভক্তদের মঙ্গলের জন্য সর্বদাই ব্যাকুল। আজ শনিবার, ৫ই বৈশাখ, চৈত্র শুক্লা চতুর্দশী (১৭ই এপ্রিল, ১৮৮৬)। পূর্ণিমাও পড়িয়াছে। কয়দিন ধরিয়া প্রায় প্রত্যহ নরেন্দ্র দক্ষিণেশ্বরে যাইতেছেন — পঞ্চবটীতে ঈশ্বরচিন্তা করেন — সাধনা করেন। আজ সন্ধ্যার সময় ফিরিলেন। সঙ্গে শ্রীযুক্ত তারক ও কালী।
[(17 अप्रैल, 1886) -श्री रामकृष्ण वचनामृत-138]
🏹ध्यान द्वारा मनुष्य उपाधियों से छूट कर अपने यथार्थ स्वरुप को पहचानता है🏹
रात के आठ बजे का समय होगा । चाँदनी और दक्षिणी वायु ने उद्यान को और भी मनोहर बना दिया है । भक्तों में से कितने ही नीचे के कमरे में बैठे हुए ध्यान कर रहे हैं । नरेन्द्र मणि से कह रहे हैं - 'ये लोग अब छूट रहे हैं, (अर्थात् ध्यान करते हुए उपाधियों से मुक्त हो रहे हैं) ।
[ ध्यान करके उपाधियों से मुक्त होने का तात्पर्य है कि व्यक्ति अपने आप को विभिन्न उपाधियों या पहचानों (M/F के देहाध्यास) से मुक्त कर लेता है, जो उसे समाज, परिवार, या अपने आप द्वारा दी गई हैं। ये उपाधियाँ हो सकती हैं:1. नाम 2. पद 3. धर्म 4. जाति 5. राष्ट्रीयता 6. लिंग 7. आयु 8. शिक्षा 9. पेशा। ध्यान के माध्यम से, व्यक्ति अपने आप को इन उपाधियों से परे देखता है और अपने असली स्वरूप को पहचानता है; जो कि शुद्ध चेतना या आत्मा है। यह पहचान व्यक्ति को अपने आप में (मिथ्या अहं में) सीमित नहीं होने देती, और उसे अपने असली स्वरूप (सच्चिदानन्द स्वरुप) को समझने में मदद करती है। उपाधियों से मुक्त होने के फायदे:1. आत्म-ज्ञान, 2. मन की गुलामी से स्वतंत्रता 3. शांति 4. आनंद 5. आत्म-विश्वास 6. रचनात्मक चिंतन 7. करुणा 8. सहानुभूति 9.अविचलता..... ध्यान के माध्यम से, व्यक्ति अपने आप को उपाधियों से मुक्त कर चरित्र के 24 गुणों से विभूषित कर सकता है और अपने असली देहधारी स्वरूप को पहचान सकता है, जो कि शुद्ध चेतना या आत्मा है। ]
It was eight o'clock in the evening: moonlight and the south wind added to the charm of the garden house. Many of the devotees were meditating in the room downstairs. Referring to them, Narendra said to M., "They are shedding their upadhis one by one."
রাত আটটা হইয়াছে। জ্যোৎস্না ও দক্ষিণে হাওয়া বাগানটিকে সুন্দর করিয়াছে। ভক্তেরা অনেকে নিচের ঘরে ধ্যান করিতেছেন। নরেন্দ্র মণিকে বলিতেছেন — “এরা ছাড়াচ্ছে” (অর্থাৎ ধ্যান করিতে করিতে উপাধি বর্জন করিতেছে)।
[(17 अप्रैल, 1886) -श्री रामकृष्ण वचनामृत-138]
🔱पुत्र -शोक भक्ति को हटा देता है 🔱
कुछ देर बाद मणि ऊपरवाले कमरे में श्रीरामकृष्ण के पास जाकर बैठे । श्रीरामकृष्ण ने उनसे पीकदान और अँगौछे धो लाने के लिए कहा । वे पश्चिमवाले तालाब से चन्द्रमा के प्रकाश में सब धोकर ले आये ।
A few minutes later M. came into Sri Ramakrishna's room and sat down on the floor. The Master asked him to wash his towel and the spittoon. M. washed them in the reservoir.
কিয়ৎক্ষণ পরে মণি উপরের হলঘরে ঠাকুরের কাছে বসিয়া আছেন। ঠাকুর তাঁহাকে ডাবর ও গামছা পরিষ্কার করিয়া আনিতে আজ্ঞা করিলেন। তিনি পশ্চিমের পুষ্করিণীর ঘাট হইতে চাঁদের আলোতে ওইগুলি ধুইয়া আনিলেন।
दूसरे दिन सबेरे श्रीरामकृष्ण ने मणि को बुला भेजा । गंगास्नान करके श्रीरामकृष्ण के दर्शन करने के पश्चात् वे छत पर गये हुए थे ।उनकी स्त्री पुत्र के शोक से पागल हो रही है । श्रीरामकृष्ण ने उसे बगीचे में आकर प्रसाद पाने के लिए कहा ।
Next morning Sri Ramakrishna sent for M. After taking his hath in the Ganges and saluting the Master, he had gone to the roof. Sri Ramakrishna asked M. to bring his grief-stricken wife to the garden house, where she could have her meal.
পরদিন সকালে (১৮ই এপ্রিল, ৬ই বৈশাখ, ১২৯৩, পূর্ণিমা) ঠাকুর মণিকে ডাকিয়া পাঠাইলেন। তিনি গঙ্গাস্নানের পর ঠাকুরকে দর্শন করিয়া হলঘরের ছাদে গিয়াছিলেন।মণির পরিবার পুত্রশোকে ক্ষিপ্তপ্রায় হইয়াছেন। ঠাকুর তাঁহাকে বাগানে আসিবার কথা ও এখানে আসিয়া প্রসাদ পাইতে বলিলেন।
श्रीरामकृष्ण इशारे से बतला रहे हैं - “उसे यहाँ आने के लिए कहना । गोद में जो लड़का है, उसे भी ले आवे, - और यहाँ आकर भोजन करे ।"
The Master said to M., by a sign: "Ask her to come. Let her stay here a couple of days. She may bring the baby."
ঠাকুর ইশারা করিয়া বলিতেছেন — “এখানে আসতে বলবে — দুদিন থাকবে; — কোলের ছেলেটিকে যেন নিয়ে আসে; — আর এখানে এসে খাবে।”
मणि - जी । ईश्वर पर उसकी भक्ति हो तो बहुत अच्छा है । श्रीरामकृष्ण इशारा करके बतला रहे हैं - "नहीं, शोक भक्ति को हटा देता है । और इतना बड़ा लड़का था !
M: "Yes, sir. It would be fine if she developed intense love of God." Sri Ramakrishna again answered by signs: "Oh, grief pushes out devotion. And he was such a big boy!
মণি — যে আজ্ঞা। খুব ঈশ্বরে ভক্তি হয়, তাহলে বেশ হয়।শ্রীরামকৃষ্ণ ইশারা করিয়া বলিতেছেন — “উহুঁ: — (শোক) ঠেলে দেয় (ভক্তিকে)। আর এত বড় ছেলে!
(बचपन के मित्र कृष्णकिशोर के बारे में ठाकुर बता रहे है - “कृष्णकिशोर के भवनाथ की तरह दो लड़के थे, युनिवर्सिटी की दो-दो परीक्षाएँ पास की थीं । जब उनका देहान्त हुआ, तब कृष्णकिशोर इतना बड़ा ज्ञानी, परन्तु फिर भी सम्हल न सका ! मुझे ईश्वर ही ने नहीं दिया, मेरा भाग्य !
"Krishnakishore had two sons. They were of the same age as Bhavanath, and each had two university degrees. They both died. And Krishnakishore, jnani that he was, could not at first control himself. How lucky I am that I have none!
“কৃষ্ণকিশোরের ভবনাথের মতো দুই ছেলে। দুটো আড়াইটে পাস। মারা গেল। অত বড় জ্ঞানী! — প্রথম প্রথম সামলাতে পারলে না। আমায় ভাগ্যিস ঈশ্বর দেন নি!
"अर्जुन इतना बड़ा ज्ञानी था, साथ कृष्ण थे । फिर भी अभिमन्यु के शोक से बिलकुल अधीर हो गया ।
"Arjuna was a great jnani; and Krishna was his constant companion. Nevertheless he was completely overwhelmed with grief at the death of his son Abhimanyu.
“অর্জুন অত বড় জ্ঞানী। সঙ্গে কৃষ্ণ। তবু অভিমন্যুর শোকে একেবারে অধীর! কিশোরী আসে না কেন?”
“किशोरी भला क्यों नहीं आता ?"
"Why doesn't Kishori come?"
एक भक्त - वह रोज गंगा नहाने जाया करता है ।
A DEVOTEE: "He comes to the Ganges every day for his bath."
একজন ভক্ত — সে রোজ গঙ্গাস্নানে যায়।
श्रीरामकृष्ण - यहाँ क्यों नहीं आता ?
MASTER: "But why doesn't he come here?"
শ্রীরামকৃষ্ণ — এখানে আসে না কেন?
भक्त - जी, आने के लिए कहूँगा ।
DEVOTEE: "I shall ask him to come, sir."
श्रीरामकृष्ण - (लाटू से) - हरीश क्यों नहीं आता ?
MASTER: "Why doesn't Harish come?"
ভক্ত — আজ্ঞে আসতে বলব।
[(17 अप्रैल, 1886) -श्री रामकृष्ण वचनामृत-138]
🔱लज्जा (modesty-शील) नारीजाति का आभूषण है 🔱
मास्टर के घर की ९-१० साल की दो लड़कियाँ श्रीरामकृष्ण को गाना सुना रही हैं । इन लड़कियों ने उस समय भी श्रीरामकृष्ण को गाना सुनाया था, जब श्रीरामकृष्ण मास्टर के श्यामपुकुर के तेलीपारावाले मकान में पधारे थे । श्रीरामकृष्ण उनका गाना सुनकर बहुत ही सन्तुष्ट हुए थे । श्रीरामकृष्ण के पास गाना हो जाने पर भक्तों ने लड़कियों को नीचे बुलाकर फिर गवाया ।
Two young girls aged nine and ten, who belonged to M.'s family; sang several songs about the Divine Mother for the Master. They had sung for him when he had visited M.'s house at Syampukur. The Master was very much pleased with their songs. After they had finished, they were sent for by the devotees to sing for them downstairs.
মাস্টারের বাটীর নয়-দশ বছরের দুইটি মেয়ে ঠাকুরের কাছে কাশীপুর বাগানে আসিয়া ‘দুর্গানাম জপ সদা’, ‘মজলো আমার মন ভ্রমরা’ ইত্যাদি গান শুনিয়াছিল। ঠাকুর যখন মাস্টারের শ্যামপুকুরের তেলিপাড়ার বাটিতে শুভাগমন করেন (৩০শে অক্টোবর, ১৮৮৪; ১৫ই কার্তিক, বৃসস্পতিবার, উত্থান একাদশীর দিন) তখন এই দুটি মেয়ে ঠাকুরকে গান শুনাইয়াছিল। ঠাকুর গান শুনিয়া অতিশয় সন্তুষ্ট হইয়াছিলেন। যখন ঠাকুরের কাছে কাশীপুর বাগানে আজ তাহারা উপরে গান গাহিতেছিল, ভক্তেরা নিচে হইতে শুনিয়াছিলেন। তাঁহারা আবার তাহাদের নিচে ডাকাইয়া গান শুনিলেন।
श्रीरामकृष्ण - (मास्टर से) - अपनी लड़कियों को अब गाना मत सिखाना । आप ही आप ये गावें तो और बात है । जिस-तिस के पास गाने से लज्जा जाती रहेगी । स्त्रियों के लिए लज्जा (शालीनता-modest होना) बड़ी आवश्यक है ।
MASTER (to M.): "Don't teach the girls any more songs. It is different if they sing spontaneously. But they will lose-their modesty by singing before anyone and everyone. It is very necessary for women to be modest."
শ্রীরামকৃষ্ণ (মাস্টারের প্রতি) — তোমার মেয়েদের আর গান শিখিও না। আপনা-আপনি গায় সে এক। যার তার কাছে গাইলে লজ্জা ভেঙে যাবে, লজ্জা মেয়েদের বড় দরকার।
[(17 अप्रैल, 1886) -श्री रामकृष्ण वचनामृत-138]
🙋श्रीरामकृष्ण 'परमहंस' फूलचन्दन से अपनी पूजा (=अपने अन्तरात्मा की पूजा)
स्वयं करते हैं-भक्तों को प्रसाद देते हैं। 🙋
श्रीरामकृष्ण के सामने पुष्पपात्र में फूल-चन्दन लाकर रखा गया । श्रीरामकृष्ण पलंग पर बैठे हुए हैं। फूल-चन्दन से वे अपनी ही पूजा कर रहे हैं । सचन्दन पुष्प कभी (१) मस्तक पर धारण कर रहे हैं, कभी (२) कण्ठ में, कभी (3) हृदय में और कभी (4) नाभिस्थल में ।
[पुष्पांजलि दुर्गा पूजा उत्सव के दौरान की जाने वाली सबसे महत्वपूर्ण रस्मों में से एक है। पुष्पांजलि का अर्थ है देवी-देवताओं को फूल चढ़ाना। पुष्पांजलि शब्द दो शब्दों पुष्पम और अंजलि से मिलकर बना है।
प्रथम पुष्पांजली मंत्र
ॐ जयन्ती, मङ्गला, काली, भद्रकाली, कपालिनी ।
दुर्गा, शिवा, क्षमा, धात्री, स्वाहा, स्वधा नमोऽस्तु ते॥
एष सचन्दन गन्ध पुष्प बिल्व पत्राञ्जली ॐ ह्रीं दुर्गायै नमः॥
द्वितीय पुष्पांजली मंत्र
ॐ महिषघ्नी महामाये चामुण्डे मुण्डमालिनी ।
आयुरारोग्यविजयं देहि देवि! नमोऽस्तु ते ॥
एष सचन्दन गन्ध पुष्प बिल्व पत्राञ्जली ॐ ह्रीं दुर्गायै नमः ॥
तृतीया पुष्पांजली मंत्र
ॐ सर्व मङ्गल माङ्गल्ये शिवे सर्वार्थ साधिके ।
शरण्ये त्र्यम्बके गौरी नारायणि नमोऽस्तु ते ॥१॥
सृष्टि स्थिति विनाशानां शक्तिभूते सनातनि ।
गुणाश्रये गुणमये नारायणि! नमोऽस्तु ते ॥२॥
शरणागत दीनार्त परित्राण परायणे ।
सर्वस्यार्तिहरे देवि! नारायणि! नमोऽस्तु ते ॥३॥]
Flowers and sandal-paste were placed before the Master in a flower-basket. He sat on his bed and worshipped himself with these offerings. Sometimes he placed flowers and sandal-paste on his head, sometimes on his throat, sometimes on his heart, and sometimes on his navel.
ঠাকুরের সম্মুখে পুষ্পপাত্রে ফুল-চন্দন আনিয়া দেওয়া হইয়াছে। ঠাকুর শয্যায় বসিয়া আছেন। ফুল-চন্দন দিয়া আপনাকেই পূজা করিতেছেন। সচন্দন পুষ্প কখনও মস্তকে, কখনও কণ্ঠে, কখনও হৃদয়ে, কখনও নাভিদেশে, ধারণ করিতেছেন।
मनोमोहन कोन्नगर से आये । श्रीरामकृष्ण को प्रणाम कर आसन ग्रहण किया । श्रीरामकृष्ण अब भी अपनी पूजा (=अपने अन्तरात्मा की पूजा) कर रहे हैं । अपने गले में उन्होंने फूलों की माला डाल ली । कुछ देर बाद मानो प्रसन्न होकर मनोमोहन को निर्माल्य प्रदान किया । मणि को भी एक फूल दिया ।
Manomohan of Konnagar came in and took a seat after saluting the Master. Sri Ramakrishna was still busy with the worship of his inner Self. He put a garland of flowers on his own neck.
After a while he seemed to be pleased with Manomohan and gave him some flowers. M., too, received a flower.
মনোমোহন কোন্নগর হইতে আসিলেন ও ঠাকুরকে প্রণাম করিয়া উপবিষ্ট হইলেন। ঠাকুর আপনাকে এখনও পূজা করিতেছেন। নিজের গলায় পুষ্পমালা দিলেন।
কিয়ৎক্ষণ পরে যেন প্রসন্ন হইয়া মনোমোহনকে নির্মাল্য প্রদান করিলেন। মণিকে একটি চম্পক দিলেন।
(२)
[(17 अप्रैल, 1886) -श्री रामकृष्ण वचनामृत-138]
*नरेंद्र को शिक्षा*
🏹 🙋*क्या बुद्ध ईश्वर के अस्तित्व में विश्वास करते थे? 🏹 🙋
[Transcendental Idealism : अतीन्द्रिय मायावाद (बाह्य शून्यवाद) का सिद्धान्त- ब्रिटिश अनुभववादी (empiricist) जॉर्ज बर्कले का 'एस्से एस्ट परसिपी': "Esse est percipi" (“To be is to be perceived”)अर्थात बाह्य वस्तुओं का अस्तित्व उनके अनुभव होने पर ही निर्भर है। बर्कले का मानना था कि हमारे आस-पास की हर चीज़ एक विचार है, और उनका अस्तित्व धारणा पर निर्भर है। जब तक इन्द्रियों का काम चल रहा है, तभी तक संसार है। उदाहरण खँस्सीं और बकरी के बली देने का फर्क दाँत नहीं रहने या मीट नहीं खाने वाले को फर्क नहीं पड़ता।]
दिन के नौ बजे का समय है । श्रीरामकृष्ण मास्टर के साथ वार्तालाप कर रहे हैं । कमरे में शशि भी हैं ।
It was about nine o'clock in the morning. The Master and M. were talking. Sashi was also in the room.
বেলা নয়টা হইয়াছে, ঠাকুর মাস্টারের সহিত কথা কহিতেছেন, ঘরে শশীও আছেন।
श्रीरामकृष्ण - (मास्टर से) - नरेन्द्र और शशि ये दोनों क्या कह रहे थे ? क्या विचार कर रहे थे ?
MASTER (to M.): "What were Narendra and Sashi talking about? What did they discuss?"
শ্রীরামকৃষ্ণ (মাস্টারের প্রতি) — নরেন্দ্র আর শশী কি বলছিল — কি বিচার করছিল?
मास्टर – (शशि से) – क्या बातें हो रही थीं, जी ?
M. (to Sashi): "What were you talking about?"
মাস্টার (শশীর প্রতি) — কি কথা হচ্ছিল গা?
शशि – शायद निरंजन ने कहा है ?
SASHI: "Was it Niranjan that told you about it?"
শশী — নিরঞ্জন বুঝি বলেছে?
श्रीरामकृष्ण – मैंने सुना ईश्वर, नास्ति-अस्ति, ये सब बातें हो रही थीं ?
MASTER: "What were you discussing? I heard 'God', 'Being', 'Non-being', and so forth."
শ্রীরামকৃষ্ণ — ‘ঈশ্বর নাস্তি অস্তি’, এই সব কি কথা হচ্ছিল?
शशि - (सहास्य) - नरेन्द्र को बुलाऊँ ?
SASHI (smiling): "Shall I call Narendra?"
শশী (সহাস্যে) — নরেন্দ্রকে ডাকব?
श्रीरामकृष्ण – बुला ।
MASTER: "Yes."
শ্রীরামকৃষ্ণ — ডাক।
नरेन्द्र आकर बैठे ।
Narendra came in and took a seat.
[নরেন্দ্র আসিয়া উপবেশন করিলেন।]
श्रीरामकृष्ण - (मास्टर से) - तुम भी कुछ पूछो । क्या बातें हो रही थीं ? – बता ।
MASTER (to M.): "Ask him something. (To Narendra) Tell us what you were talking about."
(মাস্টারের প্রতি) — “তুমি কিছু জিজ্ঞাসা কর। কি কথা হচ্ছিল, বল।”
नरेन्द्र - पेट कुछ ठीक नहीं है । उन बातों को अब और क्या कहूँ ?
NARENDRA: "I have indigestion. What's there to tell you about?"
নরেন্দ্র — পেট গরম হয়েছে। ও আর কি বলবো।
श्रीरामकृष्ण - पेट अच्छा हो जायगा ।
MASTER: "You will get over your indigestion."
শ্রীরামকৃষ্ণ — সেরে যাবে।
मास्टर - (सहास्य) - बुद्ध की अवस्था कैसी है ?
M. (smiling): "Tell, us about the experience of Buddha."
মাস্টার (সহাস্যে) — বুদ্ধ অবস্থা কিরকম?
नरेन्द्र - क्या मुझे वह अवस्था हुई है जो मैं बतलाऊँ ?
NARENDRA: "Have I become a Buddha, that you want me to talk about him?"
নরেন্দ্র — আমার কি হয়েছে, তাই বলবো।
मास्टर - ईश्वर हैं, इस सम्बन्ध में बुद्ध क्या कहते हैं ?
M: "What does Buddha say about the existence of God?"
মাস্টার — ঈশ্বর আছেন — তিনি কি বলেন?
नरेन्द्र - ईश्वर हैं, यह बात कैसे कह सकते हो ? तुम्हीं इस संसार की सृष्टि कर रहे हो । बर्कले ने क्या कहा है, जानते हो ?
NARENDRA: "How can you say that God exists? It is you who have created this universe. Don't you know what Berkeley says about it?"
নরেন্দ্র — ঈশ্বর আছেন কি করে বলছেন? তুমিই জগৎ সৃষ্টি করছো। Berkely কি বলেছেন, জানো তো?
मास्टर - हाँ, उन्होंने कहा है, 'Esse est percipi' (बाह्य वस्तुओं का अस्तित्व उनके अनुभव होने पर ही निर्भर है)। जब तक इन्द्रियों का काम चल रहा है, तभी तक संसार है ।
M: "Yes, I do. According to him, esse est percipi. (The existence of external objects depends on their perception.) The world exists as long as the sense-organs perceive it."
মাস্টার — হাঁ, তিনি বলেছেন বটে — Their esse is percipii (The existence of external objects depends upon their perception.) — “যতক্ষণ ইন্দ্রিয়ের কাজ চলেছে, ততক্ষণই জগৎ!’
[(17 अप्रैल, 1886) -श्री रामकृष्ण वचनामृत-138]
🏹 🙋तोतापुरी के द्वारा ठाकुर देव को दिया गया उपदेश - "मन में ही जगत है"🏹 🙋
श्रीरामकृष्ण - न्यांगटा कहता था, मन ही से संसार की उत्पत्ति है और मन ही में उनका लय भी होता है । “परन्तु जब तक 'मैं' है तब तक सेव्य-सेवक का भाव ही अच्छा है ।”
MASTER: "Nangta used to say, 'The world exists in mind alone and disappears in mind alone.' But as long as 'I-consciousness' exists, one should assume the servant-and-master relationship with God."
শ্রীরামকৃষ্ণ — ন্যাংটা বলত, “মনেই জগৎ, আবার মনেতেই লয় হয়।’ “কিন্তু যতক্ষণ আমি আছে, ততক্ষণ সেব্য-সেবকই ভাল।”
नरेन्द्र - (मास्टर से) - विचार अगर करो, तो ईश्वर हैं यह कैसे कह सकते हो ? और विश्वास पर अगर जाओ तो सेव्य-सेवक मानना ही होगा । यह अगर मानो - और मानना ही होगा - तो दयामय भी कहना होगा ।
NARENDRA (to M.): "How can you prove by reasoning that God exists? But if you depend on faith, then you must accept the relationship of servant and Master. And if you accept that — and you can't help it — then you must also say that God is kind.
নরেন্দ্র (মাস্টারের প্রতি) — বিচার যদি কর, তাহলে ঈশ্বর আছেন, কেমন করে বলবে? আর বিশ্বাসের উপর যদি যাও, তাহলে সেব্য-সেবক মানতেই হবে। তা যাদি মানো — আর মানতেই হবে — তাহলে দয়াময়ও বলতে হবে।
[(17 अप्रैल, 1886) -श्री रामकृष्ण वचनामृत-138]
🏹 🙋ईश्वर के द्वारा मनुष्य को दिए गए तीन अनमोल उपहार🏹 🙋
"तुमने केवल दुःख को ही सोच रखा है । उन्होंने जो इतना सुख दिया है, इसे क्यों भूल जाते हो ? उनकी कितनी कृपा है ! ईश्वर ने हमें तीन बड़ी बड़ी चीजें दी हैं - मनुष्य-जन्म, ईश्वर को जानने की व्याकुलता और महापुरुष का संग: 'मनुष्यत्वं मुमुक्षुत्वं महापुरुष-संश्रयः। " (सब लोग चुप हैं)
"You think only of the suffering in the world — why do you forget that God has also given you so much happiness? How kind He is to us! He has granted us three very great things: human birth, the yearning to know God, and the companionship of a great soul."All were silent.
“তুমি কেবল দুঃখটাই মনে করে রেখেছো। তিনি যে এত সুখ দিয়েছেন — তা ভুলে যাও কেন? তাঁর কত কৃপা! তিনটি বড় বড় জিনিস আমাদের দিয়েছেন — মানুষজন্ম, ঈশ্বরকে জানবার ব্যাকুলতা, আর মহাপুরুষের সঙ্গ দিয়েছেন। মনুষ্যত্বং মুমুক্ষুত্বং মহাপুরুষসংশ্রয়ঃ।”সকলে চুপ করিয়া আছেন।
[(17 अप्रैल, 1886) -श्री रामकृष्ण वचनामृत-138]
🏹 🙋 महापुरुष-संश्रयः भक्तिमार्ग में रहने पर ही देह की ओर मन आता हैं !🏹 🙋
श्रीरामकृष्ण – (नरेन्द्र से) – परन्तु मुझे बहुत साफ अनुभव होता है कि- "मेरे भीतर कोई एक है।
MASTER (to Narendra): "I feel very clearly that there is Someone within me.
শ্রীরামকৃষ্ণ (নরেন্দ্রের প্রতি) — আমার কিন্তু বেশ বোধ হয়, ভিতরে একটি আছে।
राजेन्द्रलाल दत्त आकर बैठे । वे होमिओपैथिक मत से श्रीरामकृष्ण की चिकित्सा कर रहे हैं । औषधि आदि की बातें हो जाने पर, श्रीरामकृष्ण मनोमोहन की ओर उँगली के इशारे से बतला रहे हैं ।
Dr. Rajendralal Dutta arrived and took a seat. He had been treating the Master with homeopathic medicine. When the talk about medicine was over, Sri Ramakrishna pointed out Manomohan to the doctor.
রাজেন্দ্রলাল দত্ত আসিয়া বসিলেন। হোমিওপ্যাথিক মতে ঠাকুরের চিকিৎসা করিতেছেন। ঔষধাদির কথা হইয়া গেলে, ঠাকুর অঙ্গুলি নির্দেশ করিয়া মনোমোহনকে দেখাইতেছেন।
डाक्टर राजेन्द्र - ये मेरे ममेरे भाई के लड़के हैं ।
RAJENDRA: "He is a distant relative of mine."
ডাক্তার রাজেন্দ্র — উনি আমার মামাতো ভাইয়ের ছেলে।
नरेन्द्र नीचे आये हैं । आप ही आप गा रहे हैं -
(भावार्थ) - "प्रभो, तुमने दर्शन देकर मेरा समस्त दुःख दूर कर दिया है,
और मेरे प्राणों को मोह लिया है ।
तुम्हें पाकर तो सप्त लोक अपना दारुण शोक भूल जाते हैं,
फिर, नाथ, मुझ अति दीन-हीन की बात ही क्या ? ....
Narendra went downstairs. He was singing to himself:
Lord, Thou hast lifted all my sorrow with the vision of Thy face,
And the magic of Thy beauty has bewitched my mind;
Beholding Thee, the seven worlds forget their never-ending woe;
What shall I say, then, of myself, a poor and lowly soul? . . .
নরেন্দ্র নিচে আসিয়াছেন। আপনা-আপনি গান গাহিতেছেন:
সব দুঃখ দূর করিলে দরশন দিয়ে, মোহিলে প্রাণ।
সপ্তলোক ভুলে শোক, তোমারে পাইয়ে,
কোথা আমি অতি দীন-হীন।
नरेन्द्र को पेट की कुछ शिकायत है, मास्टर से कह रहे हैं - 'प्रेम और भक्ति के मार्ग में रहने पर देह की ओर मन आता है । नहीं तो मैं हूँ कौन ? मैं न मनुष्य हूँ, न देवता हूँ; न मेरे सुख हैं, न दुःख हैं ।'
[जब आदि गुरु शन्कराचार्य जी की अपने गुरु से प्रथम भेंट हुई तो उनके गुरु ने बालक शंकर से उनका परिचय माँगा । बालक शंकर ने अपना परिचय किस रूप में दिया ये जानना ही एक सुखद अनुभूति बन जाता है… 'चिदानन्द रूपः शिवोऽहं ' यह परिचय ‘निर्वाण-षटकम्’ के नाम से प्रसिद्ध हुआ ।
मनोबुद्धयहंकारचित्तानि नाहम् न च श्रोत्र जिह्वे न च घ्राण नेत्रे
न च व्योम भूमिर्न तेजॊ न वायु: चिदानन्द रूप: शिवोऽहम् शिवोऽहम् ॥1॥
न च प्राण संज्ञो न वै पञ्चवायु: न वा सप्तधातुर्न वा पञ्चकोश:
न वाक्पाणिपादौ न चोपस्थपायू चिदानन्द रूप:शिवोऽहम् शिवोऽहम् ॥2॥
न मे द्वेष रागौ न मे लोभ मोहौ मदो नैव मे नैव मात्सर्य भाव:
न धर्मो न चार्थो न कामो ना मोक्ष: चिदानन्द रूप: शिवोऽहम् शिवोऽहम् ॥3॥
न पुण्यं न पापं न सौख्यं न दु:खम् न मन्त्रो न तीर्थं न वेदार् न यज्ञा:
अहं भोजनं नैव भोज्यं न भोक्ता चिदानन्द रूप:शिवोऽहम् शिवोऽहम् ॥4॥
न मे मृत्यु शंका न मे जातिभेद:पिता नैव मे नैव माता न जन्म:
न बन्धुर्न मित्रं गुरुर्नैव शिष्य: चिदानन्द रूप: शिवोऽहम् शिवोऽहम् ॥5॥
अहं निर्विकल्पॊ निराकार रूपॊ विभुत्वाच्च सर्वत्र सर्वेन्द्रियाणाम्
न चासंगतं नैव मुक्तिर्न मेय: चिदानन्द रूप: शिवोऽहम् शिवोऽहम् ॥6॥]
Narendra had a little indigestion. He said to M.: "If one follows the path of bhakti, then the mind comes down a little to the body. Otherwise, who am I? Neither man nor God. I have neither pleasure nor pain."
নরেন্দ্রের একটু পেটের অসুখ করিয়াছে। মাস্টারকে বলিতেছেন — “প্রেম-ভক্তির পথে থাকলে দেহে মন আসে। তা না হলে আমি কে? মানুষও নই — দেবতাও নই — আমার সুখও নাই, দুঃখও নাই।”
[(17 अप्रैल, 1886) -श्री रामकृष्ण वचनामृत-138]
🏹🙋ठाकुरदेव की आत्म-पूजा - सुरेंद्र को प्रसाद - सुरेंद्र की सेवा🏹🙋
रात के नौ बजे का समय हुआ । सुरेन्द्र आदि भक्तों ने श्रीरामकृष्ण को फूलों की माला लाकर समर्पण की । कमरे में बाबूराम, सुरेन्द्र, लाटू, मास्टर आदि हैं । श्रीरामकृष्ण ने सुरेन्द्र की माला स्वयं अपने गले में धारण कर ली । सब लोग चुपचाप बैठे हैं ।
It was about nine o'clock in the evening. Surendra and a few other devotees entered Sri Ramakrishna's room and offered him garlands of flowers. Baburam, Latu, and M. were also in the room.
Sri Ramakrishna put Surendra's garland on his own neck. All sat quietly. Suddenly the Master made a sign to Surendra to come near him. When the disciple came near the bed, Sri Ramakrishna took the garland from his neck and put it around Surendra's. Surendra saluted the Master. Sri Ramakrishna asked him, by a sign, to rub his feet. Surendra gave them a gentle massage.
রাত্রি নয়টা হইল। সুরেন্দ্র প্রভৃতি ভক্তেরা ঠাকুরের কাছে পুষ্পমালা আনিয়া নিবেদন করিয়াছেন! ঘরে বাবুরাম, সুরেন্দ্র, লাটু, মাস্টার প্রভৃতি আছেন। ঠাকুর সুরেন্দ্রের মালা নিজে গলায় ধারণ করিয়াছেন, সকলেই চুপ করিয়া বসিয়া আছেন। যিনি অন্তরে আছেন, ঠাকুর তাঁহারই বুঝি পূজা করিতেছেন!
श्रीरामकृष्ण एकाएक सुरेन्द्र को इशारे से बुला रहे हैं । सुरेन्द्र जब पलंग के पास आये, तब उस प्रसादी माला को लेकर श्रीरामकृष्ण ने सुरेन्द्र को पहना दिया ।
হঠাৎ সুরেন্দ্রকে ইঙ্গিত করিয়া ডাকিতেছেন। সুরেন্দ্র শয্যার কাছে আসিলে প্রসাদীমালা (যে মালা নিজে পরিয়াছিলেন) লইয়া নিজে তাঁহার গলায় পরাইয়া দিলেন!
माला पाकर सुरेन्द्र ने प्रणाम किया । श्रीरामकृष्ण फिर उन्हें इशारा करके पैरों पर हाथ फेरने के लिए कह रहे हैं । कुछ देर तक सुरेन्द्र ने उनके पैर दबाये ।
সুরেন্দ্র মালা পাইয়া প্রণাম করিলেন। ঠাকুর আবার তাঁহাকে ইঙ্গিত করিয়া পায়ে হাত বুলাইয়া দিতে বলিতেছেন। সুরেন্দ্র কিয়ৎক্ষণ ঠাকুরের পদসেবা করিলেন।
[(17 अप्रैल, 1886) -श्री रामकृष्ण वचनामृत-138]
🏹🙋काशीपुर उद्यान में भक्तों का संकीर्तन🏹🙋
[CINC अपने कमरे में मास्टर और बाबूराम के साथ बैठकर गाने का आनन्द लेते हैं]
श्रीरामकृष्ण जिस कमरे में हैं, उसकी पश्चिम ओर एक पुष्करिणी (तालाब) है । इस तालाब के घाट में कई भक्त खोल करताल लेकर गा रहे हैं । श्रीरामकृष्ण ने लाटू से कहला भेजा, 'तुम लोग कुछ देर हरिनाम-कीर्तन करो ।'
Several devotees were sitting on the bank of the reservoir in the garden, singing to the accompaniment of drum and cymbals. Sri Ramakrishna sent them word through Latu to sing the name of Hari.
ঠাকুর যে ঘরে আছেন, তাহার পশ্চিমদিকে একটি পুষ্করিণী আছে। এই পুষ্করিনীর ঘাটের চাতালে কয়েকটি ভক্ত খোল-করতাল লইয়া গান গাইতেছেন। ঠাকুর লাটুকে দিয়া বলিয়া পাঠাইলেন — “তোমরা একটু হরিনাম কর।”
मास्टर और बाबूराम [बाबूराम घोष - स्वामी प्रेमानन्द (1861 - 1918)] आदि अभी भी श्रीरामकृष्ण के पास बैठे हैं । वे वहीं से भक्तों का गाना सुन रहे हैं ।
M., Baburam, and several others were still sitting in the Master's room. They heard the devotees singing:
There dances my Gora, chanting Hari's name! . . .
মাস্টার, বাবুরাম প্রভৃতি এখনও ঠাকুরের কাছে বসিয়া আছেন। তাঁহারা শুনিতেছেন, ভক্তেরা গাইতেছেন: হরি বোলে আমার গৌর নাচে।
श्रीरामकृष्ण गाना सुनते सुनते बाबूराम और मास्टर से कह रहे हैं, 'तुम लोग नीचे जाओ । उनके साथ मिलकर गाना और नाचना ।' वे लोग भी नीचे आकर कीर्तनवालों के साथ गाने लगे ।
When the Master heard the song he made a sign to Baburam and M. to join them. He also asked them to dance,
ঠাকুর গান শুনিতে শুনিতে বাবুরাম, মাস্টার প্রভৃতিকে ইঙ্গিত করিয়া বলিতেছেন — “তোমরা নিচে যাও। ওদের সঙ্গে গান কর, — আর নাচবে।”তাঁহারা নিচে আসিয়া কীর্তনে যোগদান করিলেন।
कुछ देर बाद श्रीरामकृष्ण ने फिर आदमी भेजा । उससे उन्होंने कीर्तन के खास-खास पद गवाने के लिए कह दिया ।
....."आह, मेरा गोरा तो नाचना भी जानता है!"
"मैं अपने गोरा की मनोदशा का वर्णन कैसे कर सकता हूँ?"
"मेरा गोरा दोनों हाथ ऊपर उठाकर नाचता है।"
A few minutes later Sri Ramakrishna sent another devotee to the singers to ask them to sing the following improvised lines:
"Ah, my Gora even knows how to dance!"
"How can I describe my Gora's moods?"
"My Gora dances with both his hands upraised."
কিয়ৎক্ষণ পরে ঠাকুর আবার লোক পাঠাইয়াছেন। বলেছেন, এই আখরগুলি দেবে — “গৌর নাচতেও জানে রে!
গৌরের ভাবের বালাই যাই রে!
গৌর আমার নাচে দুই বাহু তুলে!”
कीर्तन समाप्त हो गया । सुरेन्द्र भावावेश में आकर गा रहे हैं । गाना शंकर के सम्बन्ध में है ---
आमार पागल बाबा , पागली आमार माँ।
आमि तादेर पागल छेले , आमार मायेर नाम श्यामा।।
बाबा बब बम बोले, मद खेये माँ गाये पड़े टले,
श्यामारे एलोकेशे दोले;
रांगा पाये भ्रमर गाजे , ओई नूपुर बाजे शुन ना।
" पागल है मेरा पिता, (शिव) पागल है मेरी माँ, और मैं, उनका बेटा, भी पागल हूँ! श्यामा मेरी माँ का नाम है। मेरे पिता जब अपने गालों को फुला कर पर थपकी देते हैं और- "बमक बमक बं ! बमक बमक बं ! बमक बमक बं ! की पोली आवाज़ निकालते हैं, और मेरी माँ, नशे में धुत और लड़खड़ाती हुई, मेरे पिता के शरीर पर गिर जाती है! श्यामा की लहराती लटें बहुत अव्यवस्थित रूप से लटकी हुई हैं; मधुमक्खियाँ असंख्य झुंड में हैं .उसके लाल कमल के पैरों के चारों ओर..सुनो, जब वह नाचती है, तो उसकी पायल कैसे बजती है!
The music was over. Surendra was almost in an ecstatic mood. He sang:
Crazy is my Father, (Siva.) crazy is my Mother, And I, their son, am crazy too! Syama is my Mother's name. My Father strikes His cheeks and makes a hollow sound: Ba-ba-bom! Ba-ba-bom! And my Mother, drunk and reeling, Falls across my Father's body! Syama's streaming tresses hang in vast disorder; Bees are swarming numberless About Her crimson Lotus Feet.. Listen, as She dances, how Her anklets ring!
কীর্তন সমাপ্ত হইল। সুরেন্দ্র ভাবাবিষ্টপ্রায় হইয়া গাইতেছেন —
আমার পাগল বাবা, পাগলী আমার মা।
আমি তাদের পাগল ছেলে, আমার মায়ের নাম শ্যামা ॥
বাবা বব বম্ বলে, মদ খেয়ে মা গায়ে পড়ে ঢলে,
শ্যামার এলোকেশে দোলে;
রাঙা পায়ে ভ্রমর গাজে, ওই নূপুর বাজে শুন না।
(३)
[(21अप्रैल, 1886) -श्री रामकृष्ण वचनामृत-138]
*नरेन्द्र तथा ईश्वर का अस्तित्व*
🏹 🙋संशयवाद ईश्वर-प्राप्ति के मार्ग में एक पड़ाव है🏹 🙋
Skepticism is a stage in the path of God-realization.
श्रीरामकृष्ण के दर्शन कर हीरानन्द (सिन्धी) गाड़ी पर चढ़ रहे हैं । गाड़ी के पास नरेन्द्र और राखाल खड़े हुए उनसे साधारण कुशल प्रश्न-सम्बन्धी बातचीत कर रहे हैं । दिन के दस बजे का समय होगा । हीरानन्द कल फिर आयेंगे ।
ঠাকুর শ্রীরামকৃষ্ণকে দর্শন করিয়া হীরানন্দ গাড়িতে উঠিতেছেন। গাড়ির কাছে নরেন্দ্র, রাখাল দাঁড়াইয়া তাঁহার সহিত মিষ্টালাপ করিতেছেন। বেলা দশটা। হীরানন্দ আবার কাল আসিবেন।
आज बुधवार है, चैत्र की कृष्णा तृतीया, 21 अप्रैल, 1886 नरेन्द्र बगीचे में टहलते हुए मणि से वार्तालाप कर रहे हैं । घर में उनकी माता और भाइयों को बड़ा कष्ट है । अभी भी वे कोई उत्तम प्रबन्ध नहीं कर सके । इसके लिए उन्हें चिन्ता रहती है ।
M AND NARENDRA were strolling in the garden of the house at Cossipore. Narendra was very much worried because he had not yet been able to solve the financial difficulties of his family.
আজ বুধবার, ৯ই বৈশাখ, চৈত্র কৃষ্ণা তৃতীয়া। ২১শে এপ্রিল, ১৮৮৬। নরেন্দ্র উদ্যানপথে বেড়াইতে বেড়াইতে মণির সহিত কথা কহিতেছেন। বাটিতে মা ও ভাইদের বড় কষ্ট — এখনও সুবন্দোবস্ত করিয়া দিতে পারেন নাই। তজ্জন্য চিন্তিত আছেন।
नरेन्द्र - विद्यासागर के स्कूल का काम मुझे नहीं चाहिए । मैं गया जाने की सोच रहा हूँ । वहाँ एक जमींदार के मैनेजर की जगह है, एक आदमी ने उसके सम्बन्ध में कहा था । ईश्वर फीश्वर कहीं कुछ नहीं है ।
NARENDRA: "I don't care for the job at the Vidyasagar School. I have been thinking of going to Gaya. I have been told that a zemindar there needs the services of a manager for his estate. There is no such thing as God."
নরেন্দ্র — বিদ্যাসাগরের ইস্কুলের কর্ম আর আমার দরকার নাই। গয়াতে যাব মনে করেছি। একটা জমিদারীর ম্যানেজারের কর্মের কথা একজন বলেছে। ঈশ্বর-টীশ্বর নাই।
मणि - (हँसकर) - तुम इस समय तो कहते हो, परन्तु बाद में फिर नहीं कहोगे । संशय भी ईश्वर प्राप्ति के मार्ग की एक अवस्था है, इन सब अवस्थाओं को पार कर जाने पर, और भी आगे बढ़ जाने पर ईश्वर मिलते हैं - ऐसा श्रीरामकृष्णदेव कहते हैं ।
M. (smiling): "You may say that now, but later on you will talk differently. Scepticism is a stage in the path of God-realization. One must pass through stages like this and go much farther; only thus can one realize God. That is what the Master says."
মণি (সহাস্যে) — সে তুমি এখন বলছ; পরে বলবে না। Skepticism ঈশ্বরলাভের পথের একটা স্টেজ; এই সব স্টেজ পার হলে আরও এগিয়ে পড়লে তবে ভগবানকে পাওয়া যায়, — পরমহংসদেব বলেছেন।
नरेन्द्र - जिस तरह इस पेड़ को देख रहा हूँ, इसी तरह क्या किसी ने ईश्वर को देखा है ?
NARENDRA: "Has anybody seen God as I see that tree?"
নরেন্দ্র — যেমন গাছ দেখছি, অমনি করে কেউ ভগবানকে দেখেছে?
मणि - हाँ, श्रीरामकृष्ण ने देखा है ।
M: "Yes, our Master has seen God that way."
মণি — হাঁ, ঠাকুর দেখেছেন।
नरेन्द्र - वह मन की भूल हो सकती है ।
NARENDRA: "It may be his hallucination."
নরেন্দ্র — সে মনের ভুল হতে পারে।
मणि - जो जिस अवस्था में जैसा दर्शन करता है, उस अवस्था के लिए वही सत्य होता है । जब स्वप्न देख रहे हो कि तुम किसी के बगीचे में गये हुए हो, तब वह बगीचा तुम्हारे लिए सत्य हैं, परंतु तुम्हारी उस अवस्था के बदलने पर - अर्थात् जाग्रत अवस्था में – तुम्हें वह बात भ्रम मालूम होगी । जिस अवस्था में ईश्वर के दर्शन होते हैं, उस अवस्था के होने पर ईश्वर सत्य ही मालूम होगें ।
M: "Whatever a person experiences in a particular state is real for him in that state. Suppose you are dreaming that you have gone to a garden. As long as the dream lasts, the garden is real for you. But you think of it as unreal when your mind undergoes a change, as, for instance, when you awake. When your mind attains the state in which one sees God, you will know God to be real."
মণি — জে যে অবস্থায় যা দেখে, সেই অবস্থায় তা তার পক্ষে রীয়্যালিটি (সত্য)। যতক্ষণ স্বপন দেখছ। একটা বাগানে গিয়েছ, ততক্ষণ বাগানটি তোমার পক্ষে রীয়্যালিটি; কিন্তু তোমার অবস্থা বদলালে — যেমন জাগরণ অবস্থায় — তোমার ওটা ভুল বলে বোধ হতে পারে! যে অবস্থায় ঈশ্বরদর্শন করা যায়, — সে অবস্থা হলে তখন রীয়্যালিটি (সত্য) বোধ হবে।
नरेन्द्र - मैं सत्य चाहता हूँ । उस दिन श्रीरामकृष्णदेव के साथ ही मैंने घोर तर्क किया ।
NARENDRA: "I want truth. The other day I had a great argument with Sri Ramakrishna himself."
নরেন্দ্র — আমি ট্রুথ চাই। সেদিন পরমহংস মহাশয়ের সঙ্গেই খুব তর্ক করলাম।
मणि - (सहास्य) - क्या हुआ था ?
M. (smiling): "What happened?"
মণি (সহাস্যে) — কি হয়েছিল?
नरेन्द्र - उन्होंने मुझसे कहा था, 'मुझे कोई कोई ईश्वर कहते हैं ।' मैंने कहा, ‘दूसरे चाहे लाख कहें, परंतु जब तक मुझे वह बात सच नहीं जँचेगी, तब तक मैं कदापि न कहूँगा ।’ "उन्होंने कहा, 'अधिक तर लोग जो कुछ कहेंगे, वही तो सत्य है - वही तो धर्म है !’
“मैंने कहा, 'मैं स्वयं जब तक अच्छी तरह समझ न लूँगा, तब तक मैं दूसरों की बातें नहीं मान सकता ।'”
NARENDRA: "He said to me, 'Some people call me God.' I replied, 'Let a thousand people call you God, but I shall certainly not call you God as long as I do not know it to be true.' He said, 'Whatever many people say is indeed truth; that is dharma.' Thereupon I replied, 'Let others proclaim a thing as truth, but I shall certainly not listen to them unless I myself realize it as truth.'"
নরেন্দ্র — উনি আমায় বলছিলেন, ‘আমাকে কেউ কেউ ঈশ্বর বলে।’ আমি বললাম, ‘হাজার লোকে ঈশ্বর বলুক, আমার যতক্ষণ সত্য বলে না বোধ হয়, ততক্ষণ বলব না।’ “তিনি বললেন — ‘অনেকে যা বলবে, তাই তো সত্য — তাই তো ধর্ম!’
“আমি বললাম, ‘নিজে ঠিক না বুঝলে অন্য লোকের কথা শুনব না’।”
मणि - (सहास्य) - तुम्हारा भाव कोपरनिकस, बर्कले आदि की तरह का है । संसार के आदमी कहते हैं, 'सूर्य ही चलता है', पर कोपरनिकस ने उनकी बातों पर ध्यान नहीं दिया । संसार के आदमी कहते हैं, 'बाह्य संसार है,’ पर बर्कले ने यह बात नहीं मानी । इसलिए लीविस कहते हैं, 'क्यों, बर्कले क्या एक दार्शनिक कोपरनिकस नहीं था ?
M. (smiling): "Your attitude is like that of Western savants — Copernicus and Berkeley, for instance. The whole world said it was the sun that moved, but Copernicus did not listen. Everybody said the external world was real, but Berkeley paid no heed. Therefore Lewis says, 'Why was Berkeley not a philosophical Copernicus?'"
মণি (সহাস্যে) — তোমার ভাব Copernicus, Berkeley — এদের মতো। জগতের লোক বললছে, — সূর্য চলছে, Copernicus তা শুনলে না; জগতের লোক বলছে External World (জগৎ) আছে, Berkeley তা শুনলে না। তাই Lewis বলেছেন, ‘Why was not Berkeley a philosophical Copernicus?’
नरेन्द्र - एक History of Philosophy (दर्शन का इतिहास) आप दे सकेंगे ?
NARENDRA: "Can you give me a History of Philosophy?"
নরেন্দ্র — একখানা History of philosophy দিতে পারেন?
मणि - क्या लीविस का लिखा हुआ ?
M: "By whom? Lewis?"
মণি — কি, Lewis?
नरेन्द्र - नहीं उहबरवेग का, - मैं जर्मन लेखक की पुस्तक पढूँगा ।
NARENDRA: "No, Überweg. I must read a German author."
নরেন্দ্র — না, Ueberweg; — German পড়তে হবে।
[(21अप्रैल, 1886) -श्री रामकृष्ण वचनामृत-138]
🏹🙋ईश्वर (परम् सत्य-Oneness) को तर्क से नहीं जाना जा सकता।🏹🙋
[केवल विश्वास (अनुभव-1987 बेलघड़िया कैम्प ) से
ही मनुष्य ईश्वर को देख सकता है, और उसके साथ घनिष्ठ हो सकता है]
मणि - तुम कहते तो हो कि सामने के पेड़ की तरह क्या किसी ने ईश्वर को देखा है, परन्तु ईश्वर अगर आदमी बनकर तुम्हारे सामने आयें और कहें कि मैं ईश्वर हूँ, तो क्या तुम विश्वास करोगे ? तुम लेजरस की कहानी जानते हो न ? जब लेजरस ने परलोक में एब्राहम से जाकर कहा कि अपने आत्मीयों और मित्रों से कह आऊँ कि परलोक वास्तव में है, तब एब्राहम ने कहा, 'तुम्हारे जाकर कहने से वे लोग क्या विश्वास करेंगे ? वे कहेंगे, यह एक झूठा यहाँ आकर बेसिर-पैर की उड़ा रहा है ।'
M: "You just said, 'Has anybody seen God as I see that tree?' Suppose God comes to you as a man and says, 'I am God.' Will you believe it then? You certainly remember the story of Lazarus. After his death, Lazarus said to Abraham, 'Let me go back to the earth and tell my friends and relatives that hell and the after-life exist.' Abraham replied: 'Do you think they will believe you? They will say it is a charlatan who is telling them such things.'
মণি — তুমি বলছো, সামনে গাছের মতন কেউ কি দেখেছে? তা ঈশ্বর মানুষ হয়ে যদি এসে বলেন, ‘আমি ঈশ্বর!’ তাহলে তুমি কি বিশ্বাস করবে? তুমি ল্যাজারাস্-এর গল্প তো জান? যখন ল্যাজারাস্ পরলোকে গিয়ে এব্রাহাম-কে বললে যে, আমি আত্মীয়বন্ধুদের বলে আসি যে সত্যই পরলোক আর নরক আছে। এব্রাহাম বললেন, তুমি গিয়ে বললে কি তারা বিশ্বাস করবে? তারা বলবে, কে একটা জোচ্চোর এসে এই সব কথা বলছে।
"श्रीरामकृष्ण ने कहा है, उन्हें विचार करके कोई जान नहीं सकता । विश्वास से ही सब कुछ होता है - ज्ञान और विज्ञान, दर्शन और आलाप, सब कुछ ।"
The Master says that God cannot be known by reasoning. By faith alone one attains everything — knowledge and super-knowledge. By faith alone one sees God and becomes intimate with Him."
“ঠাকুর বলছেন, তাঁকে বিচার করে জানা যায় না। বিশ্বাসেই সমস্ত হয়, — জ্ঞান, বিজ্ঞান। দর্শন, আলাপ, — সব।”
भवनाथ ने विवाह किया है । उन्हें अब भोजन-वस्त्र की चिन्ता हो रही है । वे मास्टर के पास आकर कहते हैं, 'विद्यासागर का नया स्कूल खुलनेवाला है, मुझे भी तो भोजन-वस्त्र का प्रबन्ध करना है । अगर स्कूल का कोई काम कर लूँ तो क्या बुरा है ?’
ভবনাথ বিবাহ করিয়াছেন। তাঁহার অন্নচিন্তা হইয়াছে। তিনি মাস্টারের কাছে আসিয়া বলিতেছেন, “বিদ্যাসাগরের নূতন ইস্কুল হবে, শুনলাম। আমারও তো খ্যাঁটের যোগাড় করতে হবে। ইস্কুলের একটা কাজ করলে হয় না?”
[(21अप्रैल, 1886) -श्री रामकृष्ण वचनामृत-138]
[रामलाल - पूर्ण की बग्घी का किराया दिलवाना - सुरेंद्र का खसखस पर्दा]
[রামলাল — পূর্ণের গাড়িভাড়া — সুরেন্দ্রের খসখসের পরদা ]
🏹 गुरु-भक्ति के बिना सेवा नहीं हो सकती🏹
दिन के तीन-चार बजे का समय है । श्रीरामकृष्ण लेटे हुए हैं । रामलाल पैर दबा रहे हैं, कमरे में सींती के गोपाल और मणि भी हैं । रामलाल दक्षिणेश्वर से आज श्रीरामकृष्ण को देखने के लिए आये हुए हैं ।
বেলা তিনটে-চারটে। ঠাকুর শুইয়া আছেন। রামলাল পদসেবা করিতেছেন। ঘরে সিঁথির গোপাল ও মণি আছেন। রামলাল দক্ষিণেশ্বর হইতে আজ ঠাকুরকে দেখিতে আসিয়াছেন।
श्रीरामकृष्ण मणि से खिड़कियाँ बन्द कर देने और पैरों पर हाथ फेरने के लिए कह रहे हैं ।
Sri Ramakrishna asked M. to shut the windows and massage his feet.
ঠাকুর মণিকে জানালা বন্ধ করিয়া দিতে — ও পায়ে হাত বুলাইয়া দিতে বলিতেছেন।
श्रीयुत पूर्ण को किराये की गाड़ी करके काशीपुर के बगीचे में ले आने के लिए श्रीरामकृष्ण ने कहा था । वे आकर दर्शन कर गये । गाड़ी का किराया मणि देंगे । श्रीरामकृष्ण गोपाल को इशारा करके पूछ रहे हैं, 'इनके पास से मिला ?’
At the Master's request Purna had come to the Cossipore garden in a hired carriage. M. was to pay the carriage hire. Sri Ramakrishna made a sign to Gopal, asking whether he had obtained the money from M. Gopal answered in the affirmative.
শ্রীযুক্ত পূর্ণকে গাড়িভাড়া করিয়া কাশীপুরের উদ্যানে আসিতে বলিয়াছিলেন। তিনি দর্শন করিয়া গিয়াছেন। গাড়িভাড়া মণি দিবেন। ঠাকুর গোপালকে ইঙ্গিত করিয়া জিজ্ঞাসা করিতেছেন, “এঁর কাছে (টাকা) পেয়েছ?”
गोपाल - जी हाँ ।
रात के नौ बजे का समय है । सुरेन्द्र राम आदि कलकत्ता लौट जाने का प्रबन्ध कर रहे हैं ।
রাত নয়টা হইল। সুরেন্দ্র, রাম প্রভৃতি কলিকাতায় ফিরিয়া যাইবার উদ্যোগ করিতেছেন।
वैशाख की धूप - दिन के समय श्रीरामकृष्ण का कमरा बहुत ही तप जाता है । सुरेन्द्र इसीलिए खस की टट्टियाँ ले आये हैं । इन्हें खिड़कियों में लगा देने से कमरा खूब ठण्डा रहता है ।
At nine o'clock in the evening Surendra, Ram, and the others were about to return to Calcutta. It was the sultry month of April and Sri Ramakrishna's room became very hot during the day; so Surendra had brought some straw screens to keep the room cool.
বৈশাখ মাসের রৌদ্র — দিনের বেলা ঠাকুরের ঘর বড়ই গরম হয়। সুরেন্দ্র তাই খসখস আনিয়া দিয়াছেন। পরদা করিয়া জানালায় টাঙ্গাইয়া দিলে ঘর বেশ ঠাণ্ডা হইবে।
सुरेन्द्र - खस की टट्टी अभी तक किसी ने नहीं लगायी, - मालूम होता है कोई ध्यान ही नहीं देता ।
SURENDRA: "Why, nobody has hung up these straw screens. Nobody here pays attention to anything."
সুরেন্দ্র — কই, খসখস কেউ পরদা করে টাঙ্গিয়ে দিলে না? — কেউ মনোযোগ করে না।
एक भक्त - (सहास्य) - भक्तों को इस समय ब्रह्मज्ञान की अवस्था है । इस समय सब 'सोऽहम्' है -वे अनुभव करते हैं, 'मैं ही वह हूं।' संसार मिथ्या हो रहा है । फिर जब 'तुम प्रभु हो, मैं दास हूँ' यह भाव आयगा, तब यह सब सेवा होगी ।(सब हँसते हैं ।)
A DEVOTEE (smiling): "The devotees here are now in the state of Brahmajnana. They feel, 'I am He.' The world is unreal to them. When they come down to a lower plane and regard God as the Master and themselves as His servants, they will pay attention to the service of Sri Ramakrishna." (All laugh.)
একজন ভক্ত (সহাস্যে) — ভক্তদের এখন ব্রহ্মজ্ঞানের অবস্থা। এখন ‘সোঽহম্’ — জগৎ মিথ্যা। আবার ‘তুমি প্রভু, আমি দাস’ এই ভাব যখন আসবে তখন এই সব সেবা হবে! (সকলের হাস্য)
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