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सोमवार, 24 फ़रवरी 2020

श्री नवनीहरण मुखोपाध्याय के पत्र : (31-32):मुश्किलें मुझ पर पड़ीं इतनी, के आसाँ हो गईं। "Bless you.... your Tolerance should never fall"

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Registered Office:
Bhuban Bhavan
P.O. Balaram Dharma Sopan
Khardah, North 24-Parganas (W.B)
Pin Code 743121
1 August 1992
Reference No: VYM/92-93/251 

My dear Bijoy, 
                            I was very glad to receive your joyful letter of 25th July. I am very very glad to know all you have informed .I never judge somebody through somebody else's eyes. So, Fulwariya is flowering and ABC .... has plunged in. 
                 I have seen ABC...... always very sincere who understands the Mahamandal's ideas. Difficulty arises only in personal relation. That is where in an organization the organizers have to be very cautious, preventing any misunderstanding to crop up. 
           If we are always loving , communicate clearly , do not suspect anybody , give everyone sufficient opportunity to work, there is no reason why people fall back. Anyway , without much of my handling except a few letters to him in the meantime , the episode has come to a happy end. So, in his last letter he has stated that most probably we will be meeting at the State-level camp. Tell him that we must all meet at the State-level camp.
             Now , XYZ......  has been sending Showers of letters and in the last one he has made a little amend by saying that he does not want to dissociate himself from the Mahamandal, but he could not stand the behavior of some of the members of the Mahamandal. 
              He is going to Jhumritilaiya on 7th August for his examination. On the last occasion I told you to write letters to him renewing your love for him. If you have not already done, I think you should meet him there and let him understand that you are all there to help him and to encourage him in all possible ways. 
                 Due to various relaxations in industrial and business rules , it is claimed by the government that both industry and businesses are flourishing like any thing. I do not know , there may be pockets of crises in business. You are in business and certainly you know better. 
           In business it is always accepted that a risk content is there, because there may be some rise and fall. So, you have to overcome such unusual periods [Lalu Raj] with calm resolution. I am sure doing that you will continue to work for the Mahamandal as you have been doing so long
               After the OTC, from the 20th itself I started having fever and was completely laid up from the 22nd till yesterday with high fever. Only today I had remission . So, for about two weeks I am stuck up at home


With love and all good wishes    
Yours affectionately

Nabaniharan Mukhopadhyay 

Sri Bijay Singh
Tara Plastics
Post Box No.62
Jhumritelaiya- 825 409 
Dist . Hazaribag 
Bihar. 
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[32]
Registered Office:
Bhuban Bhavan
P.O. Balaram Dharma Sopan
Khardah, North 24-Parganas (W.B)
Pin Code 743121
23 August 1992

       स्नेहास्पद विजय,
                                    तुम्हारा  दीर्घ पत्र हमें मिला। बारह दिनों तक कठिन बुखार रहने के कारण बहुत ही कमजोर हो गया हूँ। पच्चीस वर्षों में ऐसा कभी नहीं हुआ कि मैं लगातार एक महीने तक 'शहर कार्यालय ' नहीं जा पाया हूँ। आठ-दस दिनों से अपराह्न से सन्ध्या तक टेबल-चेयर पर बैठ कर थोड़ा काम कर पा रहा हूँ। अब थोड़ी ताकत आ रही है।    
                              अमुक..... ने तुम्हें परीक्षा से गुजरने का जो सुअवसर कर दिया उसे भी तुम ठाकुर जी का आशीर्वाद मान लिए हो , यह सुनकर मुझे बहुत ही प्रसन्नता हुई। घटनाचक्र के सम्बन्ध में प्रमोद के द्वारा जो जानकारी मुझे मिली वह शून्य से ज्यादा नहीं मिली। राज्य-स्तरीय शिविर के कार्यकारिणी समिति में रहना तुम अस्वीकार कर रहे हो, इतना ही उसने बताया। मैं कोई चिन्ता नहीं कर रहा हूँ, क्योंकि मुझे विश्वास है कि तुमलोगों से कोई भी बेठीक काम करना अब सम्भव नहीं होगा।  
                   
                तुम्हारी सहिष्णुता दिनों दिन बढ़ रही है - यह तो खूब अच्छा है। अमुक  के मौखिक कथन को भी तुम्हारी चिट्ठी से सुन लिया। पिछले शिविर के समय rally के बाद उसको जो कुछ तुमने कहा , उस तरह की बातें मेरे पास रहकर जो काम करते हैं, उनको हजार गुना सुनना पड़ता है। किसी किसी को इसके कारण यदि थोड़ा गुस्सा भी आता है, तो वे ऐसा मान लेते हैं कि ये बातें काम को अच्छे से बनाने के लिए ही कहा जाता है। ऐसा कहने के पीछे किसी को अपमानित करने का तो कोई सवाल ही पैदा नहीं होता। 
                 यद्यपि मुझे अभी तक यह नहीं पता कि तुमने अमुक ...को क्या कहा था, तथापि कहूँगा कि हर समय हमें यह ध्यान रखना चाहिए कि, कहने/ झिड़की के पीछे मेरा उद्देश्य चाहे जो भी हो, जिनको कह रहा हूँ, वे क्या सोच सकते हैं, उसको किस ढंग से लेंगे - इस पर ध्यान रखते हुए ही कुछ भी कहना उचित माना जाता है। प्रेम से काम लेना और करना ही सही है। " यदि 'तुम' राजपूत ('पुत्र- आमी') है, तो 'मैं' क्या 'राजा' ('पिता-आमी') नहीं ?" लेकिन अपने को चाहे (व्यष्टि अहं या समष्टि अहं) जो कुछ भी सोंचते हो, वह होते हुए भी, अपनी जबान के ऊपर संयम हर समय हर समय रहना ही चाहिए। 
          
           क्या स्वामी जी भी बहुत बार, हमलोगों से मामूली सी गलती हो जाने पर , बहुत 'तेज' से नहीं डांट दिया करते थे ?...?....?  लेकिन कारण ....  को कौन देखना चाहता है ?.... ? कर्मियों को, यदि काम करना सीखना हो तो यह समझना चाहिए कि ये बातें केवल सही ढंग से काम करने के लिए ही कही गयी हैं। तुम बहुत ठीक बताये हो कि सहिष्णुता छोड़ देना ही, जड़ का दास बनना है। और अगर इसी के लिए आशीर्वाद चाहते हो, तो आशीर्वाद करता हूँ कि चाहे जैसी भी परिस्थिति क्यों न हो, तुम्हारी सहिष्णुता कभी न गिर पड़े ! तुम अब, जो सब कुछ सुनकर भी अपनी गलती के लिए क्षमा माँगने में सक्षम हो गए हो, यह तुम्हारी सबसे बड़ी विजय ! 
                 
       जैसा कहा, ठीक है कि तुम महामण्डल को अपनी जायदाद नहीं समझते हो, लेकिन यह बात दूसरों को समझाने का दायित्व भी तुम्हारा ही है। किन्तु यहाँ एक बात  सभी कर्मियों को समझना जरुरी है कि, हर कर्मी को महामण्डल की चीज अपनी चीज (सम्पत्ति ) है, यही समझना पहला काम है। यदि हमलोग ऐसा नहीं सोचेंगे तो महामण्डल के किसी वस्तु से प्रेम नहीं होगा। और बिना प्रेम से किया हुआ कोई भी काम ठीक से नहीं बनता है। 
           शायद समझते हो, मैं क्या कहना चाहता हूँ ? अगर मैं महामण्डल को  मेरी चीज (?) नहीं समझता हूँ , तो उसकी रक्षा और उन्नति मुझसे कैसे हो पायेगी ? जैसे तुम महामण्डल को अपना समझते हो, सबको बताओ कि महामण्डल की भलाई के लिए  सब कोई इसे अपनी सम्पत्ति के रूप में ग्रहण कर सकें। 
             तुमने यह सही कहा कि जिसकी गलती हो, उसे केवल उसी के सामने कहना चाहिए, सभी के सामने या दूसरों के पास नहीं। पाठचक्र में कुछ दिनों के लिए तुम बोलना छोड़ दो। देखो इसका क्या फल होता है ? 
                   'गमप' ने और भी दो-तीन पत्र देहली से लिखा था। सभी का उत्तर झुमरीतिलैया के पते पर भेज चुका हूँ। शायद उसे मिल चुका होगा। 'गमप'  के बारे में तुमने जो कहा वो ठीक है। उसके ऊपर अभी 'अमुक'  का अधिक प्रभाव पड़ना अच्छा नहीं होगा। 'गमप' को और भी कुछ दिनों तक दवाई खाना अच्छा होगा। मैं बताता हूँ। यदि सम्भव हो तो उसके पिताजी से कहना। उसी से आत्मविश्वास भी चला आएगा। उसके साथ तुम्हारा सरल प्रेम का व्यवहार होना चाहिए। ज्यादा जटिल या गूढ़ विषयों पर अधिक बातचीत नहीं करके केवल उत्साह की बातें कहनी अच्छी होगी। घर में बुलाकर वार्तालाप करना ठीक होगा। तुम्हारी पत्नी ने उसको जो बातें बतलाई वो बिल्कुल ठीक हैं। 
                  हमलोगों के लिये केवल स्वामी जी का काम ठीक से करने के लिये पागल बन जाना ही सही रास्ता है, अन्य किसी दुनियावी चीज को पाने के लिए नहीं। तुमने लिखा - " मुश्किलें मुझ पर पड़ीं इतनी, के  आसाँ हो गईं। **"--- तो फिर अब चिन्ता की बात ही क्या है ? आशा है कि राज्य-स्तरीय शिविर में हमलोगों के बीच इस पर आगे और विमर्श होगी। प्रमोद को कहकर वहाँ जी.....  को कुछ class लेने का व्यवस्था करने का प्रयास करो। तुम अब स्वयं इस विषय पर उससे कुछ मत बोलना। भीतर की दृष्टि (अन्तर्दृष्टि ) ऑंसू के बीच से ही आती (खुलती) है।  
 आशीर्वाद !
इसकी प्राप्ति सूचना भेजा करो ! 
शुभाकांक्षी 

नवनीदा 
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** रंज से ख़ूगर हुआ इन्सां, तो मिट जाता है रंज,
मुश्किलें मुझ पर पड़ीं इतनी, के आसाँ हो गईं। 
(रंज = कष्ट, दुःख, आघात, पीड़ा), (ख़ूगर = अभ्यस्त, आदी)
यूं ही गर रोता रहा ग़ालिब, तो अय अहल-ए-जहाँ,
देखना इन बस्तियों को तुम, के वीराँ हो गईं। 
(अहल-ए-जहाँ = दुनियावालों), (वीराँ = वीरान, निर्जन, उजाड़)
-मिर्ज़ा ग़ालिब
[ स्वामी जी कहते हैं - " मैं किसी द --राजा पर पूरा भरोसा नहीं रखता। वे राजपूत तो हैं नहीं- राजपूत अपने प्राण दे सकते हैं , किन्तु अपने वचन से कभी विमुख नहीं होते। अस्तु, 'जब तक जीना, तब तक सीखना ' --अनुभव ही जगत में सर्वश्रेष्ठ शिक्षक है। " 21 फरवरी, 1893 को आलासिंगा को लिखित पत्र]  
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रविवार, 23 फ़रवरी 2020

'Good boxers avoid blows from touching' श्री नवनीहरण मुखोपाध्याय के पत्र : (29-30)

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Registered Office:
Bhuban Bhavan
P.O. Balaram Dharma Sopan
Khardah, North 24-Parganas (W.B)
Pin Code 743121
21 May 1992 
My dear Bijay, 
                          I have received both the letters from you dated 3.5.92 one official and the other personal .Not being well disposed. I did not move out during the first three months of the year, but from April there is flood of programmes and I have been continually moving . So, there is a little delay in replying to your letters which I got on my return from a tour of North Bengal. 
                    
                     I came to know about your accident and also got your news over telephone. Do you think it was possible that you would die ? No. So, I am not at all surprised to know that you were saved miraculously. It was not a 'miracle, as it does not happen'- Swamiji said. It was merely a matter of course. 
                
                    Certainly I would like to here from you about the incident personally when we meet. Certainly you have things to do and you will do them. So, even if you want, you will not be allowed to leave the field. 
                     
            I will hear from you also the incident in the camp where certain remarks by some campers hurt your sentiments. Don't take such encounters seriously. It is better to forget such things. Because, pondering on things like that engages  the mind and takes it away from things you should concentrate upon. 
                  
         Of course when we meet , remember to tell me the details so that I can advise you something. Blows always come from the world and we have to be good boxers and avoid all the blows from touching us. I will try to tell you something on the Discipleship of Ajoy when we meet. 
             
              I am glad that the small difficulties you were facing from your family have now gone away and all are cooperating .
                           
               I have got the report on the new committee etc. In the report it was stated that J..... had resigned from the Secretaryship and also from membership and that is why I asked your Secretary to let me know the reason. Instead of doing that he asked J.......  to explain. So, J....  wrote a letter to me in a mystic language and that does not actually explain the situation . 
        
              I think that he never resigned from the membership of the unit. It seems to be corroborated from what he has written . He seems to be very much with the movement and sincerely desires to do as much as possible on his part.  
                       
                It is very good that you are happy with the new committee and with the new spirit with which the work is being carried on with the Study Circle being held twice a week and many new faces are getting interest in the quiz.
              
               The report on the activities , I think , you should submit in English so that others working here can prepare the reports suitably for 'Vivek-Jivan' . All are not conversant with Hindi. 
              
                    It is good that 15 to 35 youths are attending .The way in which you are placing the questions is very good. You, Satish , and others should exert yours life much more to see that you can bring about a real change and inspire the youths to take up the ideas of Swami Vivekananda. I am happy to learn that Kevatji is taking good interest, but I don't think I will be able to write him separately     
                        
                I note that Rajat has gone to Delhi for studies, but left four of his like to work in the unit. Why don't you ask Rajat to attend the study circle in Delhi, if possible? I don't know where he resides ? The study circle is held in the house of Sri Ramdhan Das, Z-17 House Khas, New Delhi -16. It sits every Sunday in the afternoon .I don't know the exact time. He can meet Mr. Das any day and know the details.  
             
            Pramod attended the OTC and we could know why you could not come. Pramod again came to Calcutta yesterday and will be with us at the Midnapur District -level Camp 22nd to 24 th of May. 
           
            About a visit to Jhumritelaiya , I will take a decision only when you send a concrete proposal. 
                 
               Glad to know that the parents of R......  came to you and they intended to read Swami Vivekananda. 

With love and blessings for a long and active life in Swamiji's service.




Yours affectionately
   Nabaniharan Mukhopadhyay 

                                                                                
Sri Bijoy Singh 
Tara Plastics 
Post Box No. 62
Jhumritelaiya- 825 409 
Koderma , E.R ( Bihar) 
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[30] 
                                                                                          Registered Office:
Bhuban Bhavan
P.O. Balaram Dharma Sopan
Khardah, North 24-Parganas (W.B)
Pin Code 743121
30 June 1992
 Reference No : VYM/92-93/ 190

My dear Bijay, 
                          I was glad to receive a detailed report about the new study circle started at Janibigha in Gaya district. I have replied with as much details as possible . But you have to keep contact with them and see that they get the proper guidance. 
                         It seems from their report that they are very sincere and have in the meantime understood in essence the message of Swami Vivekananda.
                        Orientation of Swamiji's message as it obtaining in the Mahamandal plan should be made clear to them. They are a hundred kilometers off. So, it may be difficult for them to come to Jhumritelaiya often. 
           I think , at intervals you may visit their study circle and encourage them suitably. I expect , they will attend the State-level camp in a large number. 
          
With love 
   Yours affectionately 
 Nabaniharan Mukhopadhyay 

P.S. Hope you have received the notice for OTC to be held on 18-19 July at Andul-Mouri.  
        N.M.
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श्री नवनीहरण मुखोपाध्याय के पत्र : (27-28) "How many are there to work with me?"

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Bhuban Bhavan
P.O. Balaram Dharma Sopan
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5 December 1991
स्नेहभाजन विजय, 
                         तुम्हारी २ दिसम्बर की खत अब ही मिली। कैसेट का हिन्दी अनुवाद कल मिला। "स्वामीजी के विचार " शीर्षक कैसेट बन गये हैं। कैम्प में मिलेंगे। " आदर्श और उद्देश्य " के ऊपर भी कैसेट बनकर तैयार हो जायेगा। पर उसमें और भी कुछ बातें हैं। आजकल ऐसी व्यस्तता चल रही है कि चिट्ठी लिखने का भी समय नहीं मिलता है। 
                        तुम लोगों के लिए कैम्प का आवेदन-पत्र कल भेज दूँगा। हिन्दी स्पीकर के तौर पर केवटजी यदि कैम्प में नहीं आ रहे हैं, तो कोई बात नहीं। तुम थोड़ा प्रस्तुत रहोगे। अगर इसी दौरान हिन्दी में बोलने वाला न मिला तो तुमको बोलने की जरूरत हो सकती है।
                      'Leadership' के हिन्दी अनुवाद को पुस्तक के रूप में कब तक प्रकाशित कर सकोगे - उसके बारे में कुछ तो और बताया नहीं ? 
                        निराश होने का कोई कारण नहीं है।  अगर मेरी अवस्था के विषय में सोंचोगे तो क्या देखोगे ? प्रकाश कहीं भी नहीं है। पर अँधरे से घिरा हुआ रहकर भी कितने उत्साह और तेज के साथ कार्य करता जा रहा हूँ। इस कार्य में सहृदयता कितनी मिलती है ? मेरे साथ साथ कार्य करने वाले कितने हैं ?   
                         उत्साह ! उत्साह ! और विश्वास ! सफलता में हार्दिक विश्वास रखो !  क्या नहीं होगा? सब कुछ होगा ! होना ही है ! स्वामीजी की इच्छा , उनकी शक्ति क्या हमलोगों के साथ काम नहीं करती है? फिर कैसे नहीं होगा ? सफलता नहीं मिले, ऐसा हो नहीं सकता है ! 
    
              आशीर्वाद 
नवनीदा  
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Pin Code 743121
 22.4.1992 
Reference No : VYM/92-93/ 44 

प्रीतिभाजन सतीश, 
                              यूनिट के सचिव को पत्र संख्या VYM/92-93/ 44 dated 22.4.1992 लिखने के बाद तुम्हारी चिट्ठी मिली। और वार्षिक कार्य-विवरणी के साथ आय-व्यय का हिसाब भी मिला। 
                            'xyz' ने किस कारण से सदस्यता से भी पदत्याग कर दिया समझे नहीं। उनके यहाँ अलग से पाठचक्र चल रहा है, यह तो बहुत अच्छी बात है। 
                           नवयुवक लोग आ रहे हैं, और पदाधिकारी भी बन रहे हैं, यह भी अच्छा है। परन्तु महामण्डल के हाल (হাল -पतवार) को ठीक से पकड़ने के लिए, तुम जैसे कुछ अंग्रेजी लिखने -पढ़ने वाले व्यक्ति भी रहने जरुरी हैं। 
                              काम तेजी से चल रहा है , और पुस्तकालय भी जनप्रिय हो रहा है, जानकर मुझे बड़ा सन्तोष हुआ। 
        
                       सबको मेरी शुभकामनायें और प्यार पहुँचे - 
तुम्हारे 
श्रीनवनीहरण मुखोपाध्याय 
पुनश्च : -
       १. जी .....  को उनके काम के विषय में रिपोर्ट भेजने को कहना। 
       २. तुम्हारी चिट्ठी में उपयुक्त postage नहीं था, bearing होकर आया। 
       ३. अगले वर्ष का account , audit करना अच्छा होगा। 
न ० मु ०         
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श्री नवनीहरण मुखोपाध्याय के पत्र : (25-26)'Easy spread of the work cannot be expected'

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Bhuban Bhavan
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27 November 1991  
Reference No : VYM/91-92/ 586 

My dear Jitendra, 
                                Received your letter and noted the contents. I was told that you were translating the whole book, see how far you can do. 
                               It is good that from Jhumri Telaiya and Phulwariya a good number of youths will participate in the annual camp. I am sure you will personally come along with Bijay and others. 
                       The work that the Mahamandal has taken up is tough indeed. Easy success and spread of the work cannot be expected. Continues hard labour is necessary. Then some result will follow. If we do not take sufficient pains, ultimately things will go worse .Therefore , there is no alternative to working hard for what absolutely necessary and urgent for our country.  
                         I am happy to know that Sarada Nari Sangathan is continuing its study circle. Ask them to send reports at least every 2/3 months. The Sarada Nari Sangathan also is having its annual camp and one OTC every year for the last 3/4 years. This year both are over. Next time I have asked its Secretary to intimate about such camps to the Sarada Nari Sangathan at Jhumri Telaiya.
                      This year up till now we have not found anybody to speak in Hindi at the inaugural function of the camp. So, I have intimated Bijay over phone so that someone amongst you may be ready to speak at the inaugural meeting in Hindi for a short time. Someone amongst you may be asked to do so if in the meantime we do not find any suitable speaker.  
              
         With love to you all 

Yours affectionately

Nabaniharan Mukhopadhyay 

Sri Jitendra Singh 
Bank of India 
Vill. & P.O Navalsahi 
Dist . Hazaribagh
Bihar. 
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[26] 

[Postcard]

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Bhuban Bhavan
P.O. Balaram Dharma Sopan
Khardah, North 24-Parganas (W.B)
Pin Code 743121
15.11.1991  
My dear Vijay, 
                           Received your letter dated. 8.11.91 . Now the portion from the book which has to be given in the Cassette is urgently required . Rest may be done leisurely. 
                     XYZ's father wrote a letter and I have replied. Hope , a large number from Jhumri Tilaiya will join the camp. 
           With love to you all 
                                                                     -- Nabanida 
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शनिवार, 22 फ़रवरी 2020

श्री नवनीहरण मुखोपाध्याय के पत्र : (23-24)'Test of Poise-in adverse situations'

[23]  
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Bhuban Bhavan
P.O. Balaram Dharma Sopan
Khardah, North 24-Parganas (W.B)
Pin Code 743121
29 August 1991  
My dear Vijay, 
                           Just day before yesterday, I replied to your earlier letter, Right now I open your letter dt 24/8/91 conveying the news of XYZ..... I am very sorry . But immediate treatment will certainly make him all right. There is nothing to worry. 
                            Due to various  factors operating in society , such cases are very common nowadays. Many do not have correct ideas and therefore accuse  somebody for such things. Nobody else is responsible for the his insanity. You should not also make yourself responsible , even the least.
               I think in the meantime Pramod came and make people understand things properly . You can only see that proper arrangements for his treatment is done.   
               Try to remain calm in adverse situations . This what is called 'Poise' , among the 24 character qualities. Vairagya and insanity are not the same thing. Such a person should be treated as a patient. His condition does not prove anything beyond that he does not have sufficient power to digest the bad things and lacks in self-control. 
               It does not prove your insufficiency in any way. Those who with poise go on working steadfastly even when situations are unfavourable will see Light and succeed. At least there must be one such person , when others get perplexed , Be that one person. Yes, certainly it is something that will make everyone feel sorry. But the world is not always a smooth sailing . Storm rise , thunder strike, but you must be steadfast. 
                  Why such a thing comes to somebody nobody can explain. It has been said in Shastras : 
सुखस्य दुःखस्य न कोऽपि दाता
परो ददातीति कुबुद्धिरेषा ।
अहं करोमीति वृथाभिमानः
स्वकर्मसूत्रे ग्रथितो हि लोकः ॥**
[लक्ष्मणजी ने अध्यात्म रामायण में निषादराज गुह से कहा है‒‘सुख-दुःख को देने वाला दूसरा कोई नहीं है । दूसरा सुख-दुःख देता है‒यह समझना कुबुद्धि है । मैं करता हूँ‒यह वृथा अभिमान है । सब लोग अपने-अपने कर्मों की डोरी से बँधे हुए हैं ।’] 
              It will be foolish on the part of anybody who charges you for this ailment from which XYZ is suffering at present . What is wrong in trusting somebody who works hard and is a good soul ? How can one foresee that somebody will later run mad ? Have we not seen many such cases ? Perhaps he was practicing too hard and may be taking guidance from some sadhu or some body else. We know all that and therefore prescribe moderate practice.
              If someone follows the instructions thoroughly , he cannot suffer like this. I have seen this many times. Don't worry , .... the people who do not know things well. Anyway let me know regularly..how he improve , let us all pray for him. 
Nabanida .
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** हम जो सुखी-दुःखी होते हैं, यह हमारी गलती है । इसमें गलती क्या है ? यही बात तुलसीकृत रामायण में भी आयी है‒
काहु न कोउ सुख दुख कर दाता ।
निज कृत करम भोग सबु भ्राता ॥
                                                                  (मानस २/९२/२)
              सुख-दुःख देनेवाला दूसरा कोई नहीं है‒यह एक विशेष सूत्र है ! 'दूसरा' कोई व्यक्ति मुझे दुःख देता है‒ऐसी समझ कुबुद्धि है, कुत्सित बुद्धि है, खोटी बुद्धि है । अमुक व्यक्ति ने मुझे दुःख दे दिया‒यह वेदान्त की दृष्टि से गलत है । 
           इस विषय में एक बात तो यह है कि परमात्मा परम दयालु हैं, परम हितैषी हैं, अन्तर्यामी हैं और सर्वसमर्थ हैं। ऐसे परमात्मा के रहते हुए, उनकी जानकारी में कोई भी किसी को दुःख दे सकता है क्या ? दूसरी बात यह है कि अगर दूसरा दुःख देता है तो दुःख कभी मिटने का है ही नहीं; क्योंकि दूसरा तो कोई-न-कोई रहेगा ही 
     हमारे सामने सुख और दुःख दोनों आते-जाते रहते हैं । सुख-दुःख देनेवाला दूसरा कोई नहीं है, प्रत्युत सब अपने किये हुए कर्मों के फल को भोगते हैं । पातञ्जलयोगदर्शन में लिखा है‒‘सति मूले तद्विपाको जात्यायुर्भोगाः’ (२/१३) अर्थात्‌ पहले किये हुए कर्मों के फल से जन्म, आयु और भोग होता है । 
         'भोग' कहने से क्या समझते हैं? ‘अनुकूलवेदनीयं सुखम्’, ‘प्रतिकूलवेदनीयं दुःखम्’ और ‘सुखदुःख अन्यतरः साक्षात्कारो भोगः’ अथात् सुखदायी और दुःखदायी परिस्थिति सामने आ जाय और उस परिस्थिति का अनुभव हो जाय, उसमें अनुकूल-प्रतिकूल की मान्यता हो जाय, इसका नाम ‘भोग’ है । अब एक बात बड़े रहस्य की, बहुत मार्मिक और काम की है । आप ध्यान दें ।
         आपने अच्छा काम किया है तो सुखदायी परिस्थिति आपके सामने आयेगी और बुरा काम किया है तो दुःखदायी परिस्थिति आपके सामने आयेगी । यह तो है कर्मों की बात । अब परिस्थिति को लेकर सुखी-दुःखी होना केवल मूर्खता है । वह परमात्मा का कर्म-विधान है, जो हमारे कर्मोंका नाश करके हमें शुद्ध करनेके लिये हुआ है । वह सच्चिदानन्द परमात्मा कैसे किसी को दुःख देगा ?
[ साभार : सन्त वाणी : http://satcharcha.blogspot.com/2013/05/blog-post_27.html
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25.10.1991
My dear Vijay, 
........on the occasion of Vijayadashami .the matter of the ..... Bengali book 
' Ekti Yuva Andolan ' there are some changes at places. Can you translate this matter into Hindi ? If you can send it by November. I may try to make a ins..... (not clearly readable)  cassette in Hindi , which may be taken by ... at the Annual Camp. 
Yours affly
Nabanida.
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श्री नवनीहरण मुखोपाध्याय के पत्र : (21-22) 'It is very difficult to mould elderly people'

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18 July 1991 
  Reference No : VYM/91-92/225  

My dear Bijay, 
                            I just received your letter dated 11 July and go through it to come to know all that has happened  since the last State -level camp. I don't think there is anything to worry ; for problems will always be there and we have to face them boldly at the same time calmly and overcome them. That is what is to be learnt.  
                           Everyone who builds his life properly , will be able to handle any untoward situation with correct decision and firmness. Though every action has to conduce to the progress of the work leading to the goal set forth. I hope, Pramod will come to your help to settle the matter about the resignation.  
                    I am happy to learn that Kewat Ji and Satish are taking good interest in the work and there are other young people who are also enthusiastic. It will be very fine of 'Leadership' in Hindi comes out before the next All-India Camp. 
                     Occasional celebrations may of course be necessary and on some such occasions a small drama by children may be enjoyable, but to spread the work of the Mahamandal through drama and celebrations is not sound proposal. All methods of work have been examined for long years in Mahamandal and ultimately its method of working has taken a shape which for the good of the organization should not be altered arbitrarily to make new experiments 
                     We should devote more time to mould and enthuse young members rather than older people, though some of them may be very useful. It is very difficult to give a new mould to the thinking of elderly people and it is no use wasting time over such attempts.  
                     It is better to work harder for young people so that they can form correct notions about things and are able to analyse objective situations and understand clearly the correctness of the diagnosis and remedies offered by Swami Vivekananda so that with conviction of purpose they may work relentlessly for translating Swamiji's ideas into action for their own benefit and for the good of the society at large .
                         It is good that some boys from Moriyavaan village (D.Pandit of Janibigha.) are attending your study circle. Give as much time for them as possible. Why not go to their village to start a study circle ? Why wait for others to come for aid ? You should be prepared to do things alone and if somebody comes to help you, welcome it .It is really unfortunate that Jitendra with all his good qualities of head and heart wants to part away 
                   It is indeed heartening that the study circle of 'Sarada Nari Sangathan' is going on and the members are taking interest in it. The best thing will be , if you ask them to write to me direct so that I can post them with all necessary information. Actually , from 20th to 22nd July a camp for women is being held under the aegis of the Sarada Nari Sangathan. There is hardly any time left , otherwise a few of them could have come and joined this camp. It will be held in the premises of Vivekananda  Student's  Home  run by Balibhara Vivekananda Yuva Mahamandal , near Naihati. Last Sunday , there was a day-long discussion arranged by a unit of the Mahamandal in Hooghly  District where girl members of Sarda Nari Sangathan from three nearby areas had a special meeting for about one and half hours. Nearly 100 women participated in it.   
                   I am happy to know about things at your home and that both your son and daughter have been admitted in colleges. 
              I talked to Pranab . He told me that he had already asked you to write to President Maharaj with the request to initiate your children . In such cases , it is the usual way to approach. They will send the forms to you and later on will give the dates etc. This cannot be arranged from here unless you send an application direct. 
                   Yes, that is the only thing that you can do. You can only pray for your father and other good members of your family. 
            
            With love 

Yours affectionately

Nabaniharan Mukhopadhyay 


Sri Bijay Kumar Singh
Jhumritelaiya -825 409
Dist. Hazaribag
Bihar.
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27 August 1991
कल्याणीय विजय , 
                       तुम्हारे 15 अगस्त के पत्र को पाकर परम् हर्ष हो रहा है। प्रमोद , साधुलोग और बादल भी झुमरीतिलैया में आये और जो जो हुए हैं - {'तारा निकेतन ' में तात्कालीन राँची रामकृष्ण मिशन आश्रम, मोराबादी के सचिव वेंकट महाराज (स्वामी आत्मविदानन्द) तथा टुपुदाना आश्रम के सचिव के साथ अन्य तीन साधु , नाम प्रमोद दा को पता होगा; आये थे और घर के पूजाघर में ठाकुर, माँ, स्वामीजी की छवि की स्थापना तथा श्री रामकृष्ण वचनामृत से पाठ आदि जो जो आयोजन हुए हैं। } सब जानकर विशेष प्रसन्नता प्राप्त किया। तुमलोग महा भाग्यवान हो। 
                  पहले भी कहा था कि जीवन में सहनशीलता की जरूरत सबसे अधिक होती है, विशेष रूप से संघ में। या संसार में भी (गृहस्थ जीवन में भी), कितनी क्लीवता को मुझको बर्दास्त करना पड़ता है जिसकी कल्पना करना भी तुम्हारे लिए कठिन होगा। 
               जीतेन्द्र पूर्व की तरह फिर से लौट आया और काम में लगता है जानकर मुझे ख़ुशी होती है।  महामण्डल का नया ऑफिस हर रोज खुला रहता है और पुस्तकालय भी शुरू होने वाला है जानते हुए ख़ुशी होती है। 
               मोरियावां गाँव के लड़के के लिए आर्थिक सहायता जहाँ तक सम्भव हो सके जरूर करोगे। वैसे किसी लड़के के लिए कुछ करने से भविष्य में बहुत बड़ा काम होता है, तुम्हें यह बाद में मालूम होगा।
              सारदा नारी संगठन की एक OTC 1- 2 अक्टूबर को होने वाली है। शायद कलकत्ता में होगी। एक notice भेजी जाएगी।  अगर कोई (?) आ सकती है तो अच्छा होगा। उनसे कोई पत्र अभी तक नहीं मिला।             
   महामण्डल के आदर्श और उद्देश्य के अनुसार-- जो कुछ भी कार्य चलता हो, (चाहे जितना भी नगण्य काम क्यों न हुआ हो) रिपोर्ट नियमित रूप से आनी चाहिये। व्यक्तिगत पत्र की बात दूसरी है। लेकिन कोई खास ज्यादा काम नहीं हुआ, इस कारण के लिए बहुत दिन तक बिल्कुल चुपचाप रहना -बहुत ठीक नहीं मालूम पड़ता है। 
                 आशा है कि घर के सब अच्छे हैं।  
             ठाकुर-माँ -स्वामीजी के आशीर्वाद से तुमलोगों का सार्विक मंगल हो यही मेरा प्रार्थना है। 
श्रीनवनीहरण मुखोपाध्याय  
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"श्री नवनीहरण मुखोपाध्याय के पत्र : (19-20)" Mahamandal booklet Leadership-p 16

                                                                              [19] 
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13 March 1991 
  Reference No : VYM/90-91/1026 

My dear Vijay, 
                             Your letter of 6/3 reached today. In the meantime I replied to your previous letter and also returned the translation of " Leadership" with some corrections. You may take the final decision about the corrections .Only if you think that they will be better then only you may change. But about p 16 of the original version should be kept and..... the new one should be discarded . 
                          From here beside me Dipak Mukherjee , Utpal Sinha and Pranab Jana Ray will be going , Swapan Panda cannot go. I will write to B.B. Panda, (Swami Tanmayananda) of Endor, but I don't know whether he will come. I don't know why you want detain me three or 2 more day. If so, I cannot come alone. In that case Pranab will come with me. Others may start on 14 th April at night . We are arranging for reservation for the onward journey only. 
                        It is great that you have been enjoying your experience while working for the camp. Let the hammer fall on the head , but it will not break if you have Swamiji in you  

                 With blessings and all good wishes 

yours affectionately

नवनीहरण मुखोपाध्याय  

P.S. Some of you and Badal (Professor Dr. B.N. Ghosh, Ranchi.)  and Pramod must be prepared to take some classes , because it will be difficult for me to continue discussing all the time during the whole camp
N.M. 
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5 May 1991

My dear Vijay, 
                           What is the matter ? You are absolutely silent since we parted. What is the effect of the camp ? What about follow up actions ? How is Satish (sharmaji) ? What about your reports on the camp and accounts ? How about Kevat ji ? (respected teacher of high school) 
                        Did you do anything about printing the Hindi version of " Leadership" ?  
                       Hope everything is fine at home and your own affairs.  Pramod has also not written in the meantime though I wrote .
                 
                      With love 
as ever
   
Nabaniharan Mukhopadhyay 

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"The distance between insanity and genius is measured only by success." - Bruce Feirstein
"पागलपन और प्रतिभा के बीच की दूरी को केवल सफलता से मापा जाता है।" - ब्रूस फ़र्स्टीन
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