परिच्छेद ~ १३३
*भक्तों का तीव्र वैराग्य*
(१)
[ (4 जनवरी, 1886) , श्री रामकृष्ण वचनामृत-133 ]
🔱🕊🏹ईश्वर के लिए नरेन्द्र की व्याकुलता🔱🕊🏹
श्रीरामकृष्ण काशीपुर के बगीचे में, मकान के ऊपरवाले मँजले में बैठे हुए हैं। दक्षिणेश्वर के कालीमन्दिर से श्रीयुत राम चटर्जी उनका कुशल-समाचार लेने के लिए आये थे। श्रीरामकृष्ण मणि के साथ इसी सम्बन्ध में बातचीत करते हुए पूछ रहे हैं – ‘क्या इस समय वहाँ (दक्षिणेश्वर में) ठण्डक ज्यादा है ?’ आज पौष कृष्णा चतुर्दशी, सोमवार है, 4 जनवरी, 1886 । दिन के चार बजे का समय होगा।
It was the fourteenth day of the dark fortnight of the moon. At four o'clock in the afternoon, Sri Ramakrishna was sitting in his room. He told M. that Ram Chatterji had come from the Kali temple at Dakshineswar to inquire about his health. He asked M. whether it was now very cold at the temple garden.
ঠাকুর শ্রীরামকৃষ্ণ কাশীপুরের বাগানে উপরের সেই পূর্বপরিচিত ঘরে বসিয়া আছেন। দক্ষিণেশ্বর-কালীমন্দির হইতে শ্রীযুক্ত রাম চাটুজ্যে তাঁহার কুশল সংবাদ লইতে আসিয়াছিলেন। ঠাকুর মণির সহিত সেই সকল কথা কহিতেছেন — বলিতেছেন — ওখানে (দক্ষিণেশ্বরে) কি এখন বড় ঠাণ্ডা? আজ ২১শে পৌষ, কৃষ্ণা চতুর্দশী, সোমবার, ৪ঠা জানুয়ারি, ১৮৮৬ খ্রীষ্টাব্দ। অপরাহ্ন — বেলা ৪টা বাজিয়া গিয়াছে।
नरेन्द्र आये और आसन ग्रहण किया । श्रीरामकृष्ण उन्हें रह-रहकर देख रहे हैं और मुस्करा रहे हैं - मानो उनका स्नेह उछला जा रहा हो । श्रीरामकृष्ण ने मणि से इशारे से कहा कि नरेन्द्र रोये थे । फिर वे चुप हो गये । इसके बाद उन्होंने फिर इशारा किया कि नरेन्द्र घर से रास्ते भर रोते हुए आये थे ।
Narendra arrived. Now and then the Master looked at him and smiled. It appeared to M. that that day the Master's love for his beloved disciple was boundless. He indicated to M. by a sign that Narendra had wept. Then he remained quiet. Again he indicated that Narendra had cried all the way from home.
নরেন্দ্র আসিয়া বসিলেন। ঠাকুর তাঁহাকে মাঝে মাঝে দেখিতেছেন ও তাঁহার দিকে চাহিয়া ঈষৎ হাসিতেছেন, — যেন তাঁহার স্নেহ উথলিয়া পড়িতেছে। মণিকে সঙ্কেত করিয়া বলিতেছেন, “কেঁদেছিল!” ঠাকুর কিঞ্চিৎ চুপ করিলেন। আবার মণিকে সঙ্কেত করিয়া বলিতেছেন, “কাঁদতে কাঁদতে বাড়ি থেকে এসেছিল!”
सब लोग चुप हैं । अब नरेन्द्र बातचीत कर रहे हैं ।
No one spoke. Narendra broke the silence.
সকলে চুপ করিয়া আছেন। এইবার নরেন্দ্র কথা কহিতেছেন —
नरेन्द्र - सोच रहा हूँ, आज वहाँ चला जाऊँ ।
NARENDRA: "I have been thinking of going there today."
নরেন্দ্র — ওখানে আজ যাব মনে করেছি।
श्रीरामकृष्ण - कहाँ ?
MASTER: "Where?"
শ্রীরামকৃষ্ণ — কোথায়?
नरेन्द्र - दक्षिणेश्वर के बेलतल्ले में, - वहाँ रात को धूनि जलाऊँगा ।
NARENDRA: "To Dakshineswar. I intend to light a fire under the bel-tree and meditate."
নরেন্দ্র — দক্ষিণেশ্বরে — বেলতলায় — ওখানে রাত্রে ধুনি জ্বালাব।
श्रीरामकृष्ण - नहीं, वे लोग (पड़ोस में 'मैगनीज' के पदाधिकारी) जलाने नहीं देंगे । पंचवटी बहुत अच्छी जगह है, - बहुत से साधुओं ने वहाँ जप-ध्यान किया है । "परन्तु बहुत ठण्डा है, और अँधेरा भी है ।"
MASTER: "No, the authorities of the powder-magazine will not allow it. The, Panchavati is a nice place. Many sadhus have practised japa and meditation there. But it is very cold there. The place is dark, too."
শ্রীরামকৃষ্ণ — না; ওরা (ম্যাগাজিনের কর্তৃপক্ষীয়েরা) দেবে না। পঞ্চবটী বেশ জায়গা, — অনেক সাধু ধ্যান-জপ করেছে!“কিন্তু বড় শীত আর অন্ধকার।”
सब लोग चुप हैं । श्रीरामकृष्ण फिर बोले ।
Again for a few moments all sat in silence.
সকলে চুপ করিয়া আছেন। ঠাকুর আবার কথা কহিতেছেন।
श्रीरामकृष्ण - (नरेन्द्र से, सहास्य) - तू पढ़ेगा नहीं ?
MASTER (to Narendra, smiling): "Won't you continue your studies?"
শ্রীরামকৃষ্ণ (নরেন্দ্রের প্রতি, সহাস্যে) — পড়বি না?
नरेन्द्र - (श्रीरामकृष्ण और मणि की ओर देखकर) - एक दवा पाऊँ तो जी में जी आये, - वह दवा ऐसी कि उससे जो कुछ मैने पढ़ा है, सब भूल जाऊँ ।
NARENDRA (looking at the Master and M.): "I shall feel greatly relieved if I find a medicine that will make me forget all I have studied."
নরেন্দ্র (ঠাকুর ও মণির দিকে চাহিয়া) — ঔষধ পেলে বাঁচি, যাতে পড়া-টড়া যা হয়েছে সব ভুলে যাই!
श्रीयुत गोपाल भी बैठे हुए हैं । उन्होंने कहा - 'साथ मैं भी चलूँगा ।'
The elder Gopal, who was also in the room, said, "I shall accompany Narendra."
শ্রীযুক্ত (বুড়ো) গোপাল বসিয়া আছেন। তিনি বলিতেছেন — আমিও ওই সঙ্গে যাব।
श्रीयुत कालीपद घोष श्रीरामकृष्ण के लिए अंगूर लाये हैं । अंगूरों का डब्बा श्रीरामकृष्ण के पास ही रखा था । श्रीरामकृष्ण भक्तों को अंगूर दे रहे हैं । नरेन्द्र को पहले दिया । फिर प्रसादी बताशों की तरह सब अंगूर लुटा दिये । भक्तों ने, जिसने जहाँ पाया, बीन लिया ।
Kalipada Ghosh had brought a box of grapes for Sri Ramakrishna; it lay beside the Master. The Master gave Narendra a few and poured the rest on the floor for the devotees to pick up.
শ্রীযুক্ত কালীপদ (ঘোষ) ঠাকুরের জন্য আঙ্গুর আনিয়াছিলেন। আঙ্গুরের বাক্স ঠাকুরের পার্শ্বে ছিল। ঠাকুর ভক্তদের আঙ্গুর বিতরণ করিতেছেন। প্রথমেই নরেন্দ্রকে দিলেন — তাহার পর হরিরলুঠের মতো ছড়াইয়া দিলেন, ভক্তেরা যে যেমন পাইলেন কুড়াইয়া লইলেন!
(२)
[ (4 जनवरी, 1886), श्री रामकृष्ण वचनामृत-133 ]
🔱* नरेन्द्र का तीव्र वैराग्य -कुण्डलिनी जागरण *🔱
शाम हो गयी है, नरेन्द्र नीचे बैठे हुए एकान्त में मणि से अपने प्राणों की विकलता के सम्बन्ध में बातें कर रहे हैं ।
It was evening. Narendra was sitting in a room downstairs. He was smoking and describing to M. the yearning of his soul. No one else was with them.
সন্ধ্যা হইয়াছে, নরেন্দ্র নিচে বসিয়া তামাক খাইতেছেন ও নিভৃতে মণির কাছে নিজের প্রাণ কিরূপ ব্যাকুল গল্প করিতেছেন।
नरेन्द्र - (मणि से) - गत शनिवार को मैं यहाँ ध्यान कर रहा था, एकाएक छाती के भीतर न जाने कैसा होने लगा ।
NARENDRA: "I was meditating here last Saturday when suddenly I felt a peculiar sensation in my heart."
নরেন্দ্র (মণির প্রতি) — গত শনিবার এখানে ধ্যান করছিলাম। হঠাৎ বুকের ভিতর কিরকম করে এল!
मणि - कुण्डलिनी का जागरण हुआ होगा ।
M: "It was the awakening of the Kundalini."
মণি — কুণ্ডলিনী জাগরণ।
नरेन्द्र - सम्भव है, वही हो । इड़ा और पिंगला का बिलकुल स्पष्ट अनुभव हुआ । हाजरा से मैंने कहा, छाती पर हाथ रखकर देखने के लिए । कल रविवार था, ऊपर जाकर मैं इनसे (श्रीरामकृष्ण से) मिला और सब बातें उन्हें कह सुनायीं ।
मैंने कहा, "सब की तो बन गयी, कुछ मुझे भी दीजिये । सब का तो काम हो गया और मेरा क्या न होगा ?"
NARENDRA: "Probably it was. I clearly perceived the Ida and the Pingala nerves. I asked Hazra to feel my chest. Yesterday I saw him [meaning the Master] upstairs and told him about it. I said to him: 'All the others have had their realization; please give me some. All have succeeded; shall I alone remain unsatisfied?'"
নরেন্দ্র — তাই হবে, বেশ বোধ হল — ইড়া-পিঙ্গলা। হাজরাকে বললাম, বুকে হাত দিয়ে দেখতে। “কাল রবিবার, উপরে গিয়ে এঁর সঙ্গে দেখা কল্লাম, ওঁকে সব বললাম।“আমি বললাম, ‘সব্বাই-এর হল, আমায় কিছু দিন। সব্বাই-এর হল, আমার হবে না’?”
मणि - उन्होंने तुमसे क्या कहा ?
M: "What did he say to you?"
মণি — তিনি তোমায় কি বললেন?
[ (4 जनवरी, 1886), श्री रामकृष्ण वचनामृत-133 ]
(ईश्वर कोटि ही समाधि से उतर सकता है, जीव कोटि नहीं ?)
🔱🔆🙏समाधिलाभ की अवस्था से भी ऊँची अवस्था है -वैष्णवी मुद्रा 🔆🙏🔱
"जगत को नहीं बदलना है -अपनी दृष्टि को बदलो !"
[Sri Ramakrishna and the Vedanta — নিত্যলীলা দুই গ্রহণ ]
उन्होंने कहा, ‘तू तो बड़ी नीच बुद्धि का है । उस अवस्था से भी ऊँची अवस्था है । तू गाता भी तो है - जो कुछ है, सो तू ही है ।’
Thereupon he said to me: 'You are a very small-minded person. There is a State higher even than that. "All that exists art Thou" — it is you who sing that song.'"
“তিনি বললেন, ‘তুই তো বড় হীনবুদ্ধি! ও অবস্থার উঁচু অবস্থা আছে। তুই তো গান গাস, ‘যো কুছ্ হ্যায় সো তুঁহি হ্যায়’।”
मणि - हाँ, वे तो सदा ही कहते हैं कि समाधि से उतरकर मन/आत्मा देखता है कि वे (ब्रह्म) ही जीव और जगत् हुए हैं । यह अवस्था ईश्वरकोटि की हो सकती है । वे कहते है, जीवकोटि समाधिअवस्था को प्राप्त करते हैं, परन्तु फिर वे वहाँ से उत्तर नहीं सकते ।
M: "Yes, he always says that after coming down from samadhi one sees that it is God Himself who has become the universe, the living beings, and all that exists. The Isvarakotis alone can attain that state. An ordinary man (Jivakoti) can at the most attain samadhi; but he cannot come down from that state."
মণি — হাঁ, উনি সর্বদাই বলেন যে, সমাধি থেকে নেমে এসে দেখে — তিনিই জীবজগৎ, এই সমস্ত হয়েছেন। ঈশ্বরকোটির এই অবস্থা হতে পারে। উনি বলেন, জীবকোটি সমাধি অবস্থা যদিও লাভ করে আর নামতে পারে না।
[ (4 जनवरी, 1886), श्री रामकृष्ण वचनामृत-133 ]
🔆🙏जो ईश्वरकोटि का है - केवल वही आत्मवत् सर्वभूतेषु दर्शन कर सकता है !🔆🙏
नरेन्द्र - उन्होंने कहा, 'तू घर के लिए कोई व्यवस्था करके आ । समाधिलाभ की अवस्था से भी ऊँची अवस्था हो सकेगी ।'
NARENDRA: "He [the Master] said: 'Settle your family affairs and then come to me. You will attain a state higher than samadhi.'
নরেন্দ্র — উনি বললেন, — তুই বাড়ির একটা ঠিক করে আয়, সমাধিলাভের অবস্থার চেয়েও উঁচু অবস্থা হতে পারবে।
"आज सबेरे मैं घर गया तो सब लोग डाँटने लगे और कहा, 'तुम क्या इधर-उधर घूमते रहते हो ! कानून की परीक्षा सिर पर आ गयी और तुम्हें न पढ़ना न लिखना - आवारा घूमते फिरते हो !"
I went home this morning. My people scolded me, saying: 'Why do you wander about like a vagabond? Your law examination is near at hand and you are not paying any attention to your studies. You wander about aimlessly.'"
“আজ সকালে বাড়ি গেলাম। সকলে বকতে লাগল, — আর বললে, ‘কি হো-হো করে বেড়াচ্ছিস? আইন একজামিন (বি. এল.) এত নিকটে, পড়াশুনা নাই, হো-হো করে বেড়াচ্ছে’।”
मणि - तुम्हारी माँ ने भी कुछ कहा ?
M: "Did your mother say anything?"
মণি — তোমার মা কিছু বললেন?
नरेन्द्र - नहीं, वे मुझे हिरण का मांस (venison) खिलाने के लिए व्यस्त हो रही थीं ।
NARENDRA: "No. She was very eager to feed me. She gave me venison. I ate a little, though I didn't feel like eating meat."
নরেন্দ্র — না, তিনি খাওয়াবার জন্য ব্যস্ত, হরিণের মাংস ছিল; খেলুম, — কিন্তু খেতে ইচ্ছা ছিল না।
मणि – फिर ?
M: "And then?"
মণি — তারপর?
नरेन्द्र - दादी के घर में, उसी पढ़नेवाले कमरे में मैं पढ़ने लगा । पर पढ़ने बैठा तो हृदय में एक बहुत बड़ा आतंक छा गया, जैसे पढ़ना एक भय का विषय हो ! छाती धड़कने लगी ! - इस तरह मैं और कभी नहीं रोया ।
NARENDRA: "I went to my study at my grandmother's. As I tried to read I was seized with a great fear, as if studying were a terrible thing. My heart struggled within me. I burst into tears: I never wept so bitterly in my life.
নরেন্দ্র — দিদিমার বাড়িতে, সেই পড়বার ঘরে পড়তে গেলাম। পড়তে গিয়ে পড়াতে একটা ভয়ানক আতঙ্ক এল, — পড়াটা যেন কি ভয়ের জিনিস! বুক আটুপাটু করতে লাগল! — অমন কান্না কখনও কাঁদি নাই।
"फिर पुस्तकें फेंककर भागा ! - रास्ते से होकर भागता गया । जूते रास्ते में न जाने कहाँ पड़े रह गये ! धान के पयाल के ढेर के पास से होकर भाग रहा था । देह भर में पयाल लिपट गया। मैं काशीपुर (कासी) के रास्ते की ओर भाग रहा था ।"
I left my books and ran away. I ran along the streets. My shoes slipped from my feet — I didn't know where. I ran past a haystack and got hay all over me. I kept on running along the road to Cossipore."
“তারপর বই-টই ফেলে দৌড়! রাস্তা দিয়ে ছুট! জুতো-টুতো রাস্তায় কোথায় একদিকে পড়ে রইল! খড়ের গাদার কাছ দিয়ে যাচ্ছিলাম, — গায়েময়ে খড়, আমি দৌড়ুচ্চি, — কাশীপুরের রাস্তায়।”
[(4 जनवरी, 1886), श्री रामकृष्ण वचनामृत-133 ]
🔱🏹संन्यासी बनने की पात्रता - संसार में कोई रूचि न रहे !🏹🔱
(कितने युवा ऐसे हैं जो कह सकते हों - "I have no more taste for the world.?)
नरेन्द्र कुछ देर चुप रहे । फिर कहने लगे - “विवेकचूड़ामणि सुनकर मन और बिगड़ गया है । शंकराचार्य लिखते हैं - इन तीन संयोगों को बड़ी ही तपस्या का फल समझना चाहिए, ये बड़े भाग्य से मिलते हैं, - मनुष्यत्वं मुमुक्षत्वं महापुरुष संश्रयः । "मैंने सोचा, मेरे लिए तीनों का संयोग हो गया है । बड़ी तपस्या का फल तो यह है कि मनुष्य-जन्म हुआ है, बड़ी तपस्या से मुक्ति की इच्छा हुई है, और सब से बड़ी तपस्या का फल यह है कि ऐसे महापुरुष (C-IN-C नवनीदा) का संग प्राप्त हुआ है !"
Narendra remained silent a few minutes and then resumed.
NARENDRA: "Since reading the Vivekachudamani I have felt very much depressed. In it Sankaracharya says that only through great tapasya and good fortune does one acquire these three things: a human birth, the desire for liberation, and refuge with a great soul. I said to myself: 'I have surely gained all these three. As a result of great tapasya I have been born a human being; through great tapasya, again, I have the desire for liberation; and through great tapasya I have secured the companionship of such a great soul.'"
নরেন্দ্র একটু চুপ করিয়া আছেন। আবার কথা কহিতেছেন।নরেন্দ্র — বিবেক চূড়ামণি শুনে আরও মন খারাপ হয়েছে! শঙ্করাচার্য বলেন — যে, এই তিনটি জিনিস অনেক তপস্যায়, অনেক ভাগ্যে মেলে, — মনুষ্যত্বং মুমুক্ষুত্বং মহাপুরুষসংশ্রয়ঃ।“ভাবলাম আমার তো তিনটিই হয়েছে! — অনেক তপস্যার ফলে মানুষ জন্ম হয়েছে, অনেক তপস্যার ফলে মুক্তির ইচ্ছা হয়েছে, — আর অনেক তপস্যার ফলে এরূপ মহাপুরুষের সঙ্গ লাভ হয়েছে।”
[दुर्लभं त्रयमेवैतत् देवानुग्रहहेतुकम्। मनुष्यत्वं मुमुक्षुत्वं महापुरूषसंश्रय: ॥ मनुष्य जन्म, मुक्ति की इच्छा तथा महापुरूषों का आश्रय (C-IN-C नवनीदा जैसे सन्त गुरु की संगति) का यह तीन चीजें परमेश्वर की कृपा पर निर्भर रहते है। ]
मणि- अहा !
M: "Ah!"
মণি — আহা!
नरेन्द्र - संसार अब अच्छा नहीं लगता । संसार (घर-परिवार ?) में जो लोग हैं, उनसे भी जी हट गया है । दो-एक भक्तों को छोड़कर और कुछ अच्छा नहीं लगता ।
NARENDRA: "I have no more taste for the world. I do not relish the company of those who live in the world — of course, with the exception of one or two devotees."
নরেন্দ্র — সংসার আর ভাল লাগে না। সংসারে যারা আছে তাদেরও ভাল লাগে না। দুই-একজন ভক্ত ছাড়া।
नरेन्द्र फिर चुप हो रहे । नरेन्द्र के भीतर तीव्र वैराग्य है । इस समय भी प्राणों में उथल-पुथल मची हुई है । नरेन्द्र फिर बातचीत कर रहे हैं ।
Narendra became silent again. A fire of intense renunciation was burning within him. His soul was restless tor the vision of God. He resumed the conversation.
নরেন্দ্র অমনি আবার চুপ করিয়া আছেন। নরেন্দ্রের ভিতর তীব্র বৈরাগ্য! এখনও প্রাণ আটুপাটু করিতেছে। নরেন্দ্র আবার কথা কহিতেছেন।
नरेन्द्र (मणि के प्रति ) - आप लोगों को तो शान्ति मिल गयी है, परन्तु मेरे प्राण अस्थिर हो रहे हैं । आप ही लोग धन्य हैं ।
NARENDRA (to M.): "You have found peace, but my soul is restless. You are blessed indeed."
নরেন্দ্র (মণির প্রতি) — আপনাদের শান্তি হয়েছে, আমার প্রাণ অস্থির হচ্ছে! আপনারাই ধন্য!
मणि ने कोई उत्तर नहीं दिया । चुप हैं । सोच रहे हैं - श्रीरामकृष्ण ने कहा था, ईश्वर के लिए व्याकुल होना चाहिए, तब उनके दर्शन होते हैं ।
M. did not reply, but sat in silence. He said to himself, "Sri Ramakrishna said that one must pant and pine for God; only then may one have the vision of Him."
মণি কিছু উত্তর করিলেন না, চুপ করিয়া আছেন। ভাবিতেছেন, ঠাকুর বলিয়াছিলেন, ঈশ্বরের জন্য ব্যাকুল হতে হয়, তবে ঈশ্বরদর্শন হয়। সন্ধ্যার পরেই মণি উপরের ঘরে গেলেন। দেখলেন, ঠাকুর নিদ্রিত।
सन्ध्या के बाद ही मणि ऊपरवाले कमरे में गये । देखा, श्रीरामकृष्ण सो रहे हैं । रात के नौ बजे का समय है । श्रीरामकृष्ण के पास निरंजन और शशी हैं । श्रीरामकृष्ण जागे । रह-रहकर वे नरेन्द्र की ही बातें कर रहे हैं ।
Immediately after dusk M. went upstairs. He found Sri Ramakrishna asleep. It was about nine o'clock in the evening. Niranjan and Sashi were sitting near the Master. He was awake. Every now and then he talked of Narendra.
সন্ধ্যার পরেই মণি উপরের ঘরে গেলেন। দেখলেন, ঠাকুর নিদ্রিত।রাত্রি প্রায় ৯টা। ঠাকুরের কাছে নিরঞ্জন, শশী। ঠাকুর জাগিয়াছেন। থাকিয়া থাকিয়া নরেন্দ্রের কথাই বলিতেছেন।
श्रीरामकृष्ण - नरेन्द्र की अवस्था कितने आश्चर्य की है ! देखो, यही नरेन्द्र पहले साकार नहीं मानता था । अब इसके प्राणों में कैसी खलबली मची हुई है, तुमने देखा ? जैसा उस कहानी में है - किसी ने पूछा था, 'ईश्वर किस तह मिल सकेंगे ?' तब गुरु ने कहा, 'मेरे साथ चलो, मै तुम्हें दिखलाता हूँ कि किस तरह की अवस्था में ईश्वर मिलते हैं ।' यह कहकर गुरु ने एक तालाब में उसे ले जाकर डुबो दिया और ऊपर से दबाकर रखा, फिर कुछ देर बाद उसे छोड़कर गुरु ने पूछा - 'कहो तुम्हारे प्राण कैसे हो रहे थे?' उसने कहा, 'प्राण छटपटा रहे थे - मानो अब निकलते ही हों ।'
MASTER: "How wonderful Narendra's state of mind is! You see, this very Narendra did not believe in the forms of God. And now you see how his soul is panting for God! You know that story of the man who asked his guru how God could be realized. The guru said to him: 'Come with me. I shall show you how one can realize God.' Saying this, he took the disciple to a lake and held his head under the water. After a short time he released the disciple and asked him, 'How did you feel?' 'I was dying for a breath of air!' said the disciple.
শ্রীরামকৃষ্ণ — নরেন্দ্রের অবস্থা কি আশ্চর্য! দেখো, এই নরেন্দ্র আগে সাকার মানত না! এর প্রাণ কিরূপ আটুপাটু হয়েছে দেখছিল। সেই যে আছে — একজন জিজ্ঞাসা করেছিল, ঈশ্বরকে কেমন করে পাওয়া যায়। গুরু বললেন, ‘এস আমার সঙ্গে; তোমায় দেখিয়ে দিই কি হলে ঈশ্বরকে পাওয়া যায়।’ এই বলে একটা পুকুরে নিয়ে গিয়ে তাকে জলে চুবিয়ে ধরলেন! খানিকক্ষণ পরে তাকে ছেড়ে দেওয়ার পর শিষ্যকে জিজ্ঞাসা করলেন, ‘তোমার প্রাণটা কি-রকম হচ্ছিল?’ সে বললে, ‘প্রাণ যায় যায় হচ্ছিল!’
"ईश्वर के लिए प्राणों के छटपटाते रहने पर समझना कि अब दर्शन में देर नहीं है । अरुणोदय होने पर, पूर्व में लाली छा जाने पर समझ पड़ता है कि अब सूर्योदय होगा।"
"When the soul longs and yearns for God like that, then you will know that you do not have long to wait for His vision. The rosy colour on the eastern horizon shows that the sun will soon rise."
“ঈশ্বরের জন্য প্রাণ আটুবাটু করলে জানবে যে দর্শনের আর দেরি নাই। অরুণ উদয় হলে — পূর্বদিক লাল হলে — বুঝা যায় সূর্য উঠবে।”
आज श्रीरामकृष्ण की बीमारी बढ़ गयी है । शरीर को इतना कष्ट है, फिर भी नरेन्द्र के सम्बन्ध में ये सब बातें संकेत द्वारा भक्तों को बतला रहे हैं ।
This day Sri Ramakrishna's illness was worse. In spite of much suffering he said many things about Narendra — though mostly by means of signs.
ঠাকুরের আজ অসুখ বাড়িয়াছে। শরীরের এত কষ্ট। তবুও নরেন্দ্র সম্বন্ধে এই সকল কথা, — সঙ্কেত করিয়া বলিতেছেন।
आज रात को नरेन्द्र दक्षिणेश्वर चले गये । अमावस्या की रात्रि, घोर अन्धकारमयी हो रही है । नरेन्द्र के साथ दो-एक भक्त भी गये । रात को मणि बगीचे में ही हैं । स्वप्न में देख रहे हैं, वे संन्यासियों की मण्डली के बीच में बैठे हुए हैं ।
At night Narendra left for Dakshineswar. It was very dark, being the night of the new moon. He was accompanied by one or two devotees. M. spent the night at the Cossipore garden. He dreamt that he was seated in an assembly of sannyasis.
নরেন্দ্র এই রাত্রেই দক্ষিণেশ্বর চলিয়া গিয়াছেন। গভীর অন্ধকার — অমাবস্যা পড়িয়াছে। নরেন্দ্রের সঙ্গে দু-একটি ভক্ত। মণি রাত্রে বাগানেই আছেন। স্বপ্নে দেখিতেছেন, সন্ন্যাসীমণ্ডলের ভিতর বসিয়া আছেন।
(३)
[(5 जनवरी, 1886), श्री रामकृष्ण वचनामृत-133 ]
🕊🏹भक्तों का तीव्र वैराग्य-संसार और नरक की पीड़ा🕊🏹
दूसरे दिन मंगलवार है, ५ जनवरी । दिन के चार बजे का समय होगा । श्रीरामकृष्ण शय्या पर बैठे हुए मणि से बातचीत कर रहे हैं ।
Sri Ramakrishna was sitting on his bed and talking to M. No one else was in the room. It was about four o'clock in the afternoon.
পরদিন মঙ্গলবার, ৫ই জানুয়ারি ২২শে পৌষ। অনেকক্ষণ অমাবস্যা আছে। বেলা ৪টা বাজিয়াছে। ঠাকুর শ্রীরামকৃষ্ণ শয্যায় বসিয়া আছেন, মণির সহিত নিভৃতে কথা কহিতেছেন।
श्रीरामकृष्ण - क्षीरोद अगर गंगासागर जाय, तो उसे एक कम्बल खरीद देना ।
MASTER: "If Kshirode makes a pilgrimage to Gangasagar, then please buy a blanket for him."
শ্রীরামকৃষ্ণ — ক্ষীরোদ যদি ৺গঙ্গাসাগর যায় তাহলে তুমি কম্বল একখানা কিনে দিও।
मणि - जी महाराज, जो आज्ञा ।
M: "Yes, sir."
মণি — যে আজ্ঞা।
श्रीरामकृष्ण - अच्छा, इन लड़कों को भला यह क्या हो रहा है ? कोई पुरी भाग रहा है तो कोई गंगासागर जा रहा है ! “सब घर छोड़-छोड़कर आ रहे हैं ! देखो न नरेन्द्र को । तीव्र वैराग्य के होने पर संसार कुआँ तथा आत्मीय काले साँप जैसे जान पड़ते हैं ।”
Sri Ramakrishna was silent a few minutes. Then he continued. MASTER: "Well, can you tell me what is happening to these youngsters? Some are running off to Puri and some to Gangasagar. All have renounced their homes. Look at Narendra! When a man is seized with the spirit of intense renunciation, he regards the world as a deep well and his relatives as venomous cobras."
ঠাকুর একটু চুপ করিয়া আছেন। আবার কথা কহিতেছেন।
শ্রীরামকৃষ্ণ — আচ্ছা, ছোকরাদের একি হচ্ছে বল দেখি? কেউ শ্রীক্ষেত্রে পালাচ্ছে — কেউ গঙ্গাসাগরে!“বাড়ি ত্যাগ করে করে সব আসছে। দেখ না নরেন্দ্র। তীব্র বৈরাগ্য হলে সংসার পাতকুয়ো বোধ হয়, আত্মীয়েরা কালসাপ বোধ হয়।”
मणि - जी, संसार में बड़ा कष्ट है ।
M: "Yes, sir. Life in the world is full of suffering."
মণি — আজ্ঞা, সংসারে ভারী যন্ত্রণা!
श्रीरामकृष्ण - जन्म से ही नरक-यन्त्रणा होती है । देख रहे हो न, बीबी और बच्चों को लेकर कितना कष्ट होता है !
MASTER: "Yes, it is the suffering of hell — and that from the very moment of birth! Don't you see what a trouble one's wife and children are?"
শ্রীরামকৃষ্ণ — নরকযন্ত্রণা! জন্ম থেকে। দেখছ না। — মাগছেলে নিয়ে কি যন্ত্রণা!
मणि - जी हाँ, और आपने कहा था, उनको(बालक भक्तों को) न किसी से लेना है, न देना; इस बीबी- बच्चों के बाद नाती -पोतों के प्रति दायित्व की भावना --लेने-देने के लिए ही अटका रहना पड़ता है ।
M: "Yes, sir. You yourself said: 'These youngsters (The Master had meant his young disciples.) have no relationship whatsoever with the world. They owe nothing to the world, nor do they expect anything from it. It is the sense of obligation that entangles a man in the world.'"
মণি — আজ্ঞা হাঁ। আর আপনি বলেছিলেন, ওদের (সংসারে ঢুকে নাই তাদের) লেনাদেনা নাই, লেনাদেনার জন্য আটকে থাকতে হয়।
श्रीरामकृष्ण - देखते हो न निरंजन को ! उसका भाव है - 'यह ले अपना और इधर ला मेरा ।' बस, और कोई सम्बन्ध नहीं, और कोई खिंचाव नहीं ।
MASTER: "Don't you see how Niranjan is? His attitude toward the world is this: 'Here, take what is thine, and give me what is mine.' That is all. He has no further relationship with the world. There is nothing to pull him from behind.
শ্রীরামকৃষ্ণ — দেখছ না — নিরঞ্জনকে! ‘তোর এই নে আমার এই দে’ — বাস! আর কোনও সম্পর্ক নাই। পেছুটান নাই!
[(5 जनवरी, 1886), श्री रामकृष्ण वचनामृत-133 ]
🔱🕊🏹बड़ी शक्ति पाने के लिये माँ की भक्ति की कामना की गिनती में नहीं है !🔱🕊🏹
"कामिनी-कांचन, यही संसार है । देखो न, धन होता है तो तुम्हें उसे भविष्य के लिए सुरक्षित (FIXED Deposit-तन्मयानन्द) रख छोड़ने की सूझती है ।"
यह सुनकर मणि ठहाका मारकर हँसने लगे । श्रीरामकृष्ण भी हँसे ।
"'Woman and gold' alone is the world. Don't you see that if you have money you want to lay it by?" M. burst out laughing. Sri Ramakrishna also laughed.
“কামিনী-কাঞ্চনই সংসার। দেখ না, টাকা থাকলেই বাঁধতে ইচ্ছা করে।” মণি হো-হো করিয়া হাসিয়া ফেলিলেন। ঠাকুরও হাসিলেন।
श्रीरामकृष्ण - हाँ, बालक की तरह ।
MASTER: "Yes — like a child!"
শ্রীরামকৃষ্ণ — হাঁ বালকের মতো।
मणि- जी, परन्तु है बड़ा कठिन, बड़ी शक्ति चाहिए ।
M: "Yes, sir. But it is exceedingly difficult; it requires tremendous power."
মণি — আজ্ঞা, কিন্তু বড় কঠিন, বড় শক্তি চাই।
श्रीरामकृष्ण कुछ चुप हैं ।
Sri Ramakrishna remained silent.
ঠাকুর একটু চুপ করিয়া আছেন।
मणि - कल वे लोग दक्षिणेश्वर में ध्यान करने के लिए गये । मैंने स्वप्न देखा ।
M: "Yesterday they went to Dakshineswar to meditate. I had a dream."
মণি — কাল ওরা দক্ষিণেশ্বরে ধ্যান করতে গেল। আমি স্বপ্ন দেখলাম।
श्रीरामकृष्ण - क्या देखा ?
শ্রীরামকৃষ্ণ — কি দেখলে?
मणि - देखा, नरेन्द्र आदि संन्यासी हो गये हैं, धूनी जलाकर बैठे हुए हैं-चिलम पी रहे हैं । उनके बीच में मैं भी बैठा हुआ हूँ ।
M: "I dreamt that Narendra and some others had become sannyasis. They were sitting around a lighted fire. I too was there. They were smoking tobacco and blowing out puffs of smoke. I told them that I could smell hemp (चिलम) ."4
মণি — দেখলাম যেন নরেন্দ্র প্রভৃতি সন্ন্যাসী হয়েছেন — ধুনি জ্বেলে বসে আছেন। আমিও তাদের মধ্যে বসে আছি। ওরা তামাক খেয়ে ধোঁয়া মুখ দিয়ে বার ক’চ্চে, আমি বললাম, গাঁজার ধোঁয়ার গন্ধ।
[(5 जनवरी, 1886), श्री रामकृष्ण वचनामृत-133 ]
🔱संन्यासी किसे कहेंगे ? ठाकुर देव का कष्ट और बालक की अवस्था🔱
(गृहस्थ होकर भी यदि कोई बिल्कुल अनासक्त है तो वह संन्यासी है)
श्रीरामकृष्ण - मन से त्याग होने से ही हुआ; अगर ऐसा कोई कर सका तो वह भी संन्यासी है ।
MASTER: "Mental renunciation is the essential thing. That, too, makes one a sannyasi."
শ্রীরামকৃষ্ণ — মনে ত্যাগ হলেই হল, তাহলেও সন্ন্যাসী।
श्रीरामकृष्ण चुप हैं । फिर बातचीत कर रहे हैं ।
Sri Ramakrishna kept silent a few minutes and then went on.
ঠাকুর চুপ করিয়া আছেন। আবার কথা কহিতেছেন।
श्रीरामकृष्ण - परन्तु वासना में (=तीनों ऐषणाओं में) आग लगाओ, तब होगा ।
MASTER: "But one must set fire to one's desires. Then alone can one succeed."
শ্রীরামকৃষ্ণ — কিন্তু বাসনায় আগুন দিতে হয়, তবে তো!
मणि - बड़ाबाजार में मारवाड़ियों के पण्डित से आपने कहा था, ‘मुझमें भक्ति की कामना है’, - भक्ति की कामना की गणना शायद कामनाओं में नहीं होती ।
M: "You said to the pundit of the Marwaris from Burrabazar that you had the desire for bhakti. Isn't the desire for bhakti to be counted as a desire?"
মণি — বড়বাজারে মারোয়াড়ীদের পণ্ডিতজীকে বলেছিলেন, ‘ভক্তিকামনা আমার আছে।‘ — ভক্তিকামনা বুঝি কামনার মধ্যে নয়?
श्रीरामकृष्ण - जैसे 'हिंचे' का साग सागों में नहीं गिना जाता, क्योंकि उससे पित्त का दमन होता है ।
MASTER: "No, just as hinche greens are not to be counted as greens. Hinche restrains the secretion of bile.
শ্রীরামকৃষ্ণ — যেমন হিঞ্চেশাক শাকের মধ্যে নয়। পিত্ত দমন হয়।
"अच्छा, इतना आनन्द-भाव था, वह सब कहाँ गया ?"
"Well, all my joy, all my ecstasy — where are they now?"
“আচ্ছা, এত আনন্দ, ভাব — এ-সব কোথায় গেল?”
मणि - गीता में जो त्रिगुणातीत अवस्था लिखी है, वही हुई होगी । सत्त्व, रज और तमोगुण आप ही आप काम कर रहे हैं, आप स्वयं निर्लिप्त हैं - सत्त्वगुण से भी आप निर्लिप्त हैं ।
M: "Perhaps you are now in the state of mind that the Gita describes as beyond the three gunas. Sattva, rajas, and tamas are performing their own functions, and you yourself are unattached — unattached even to sattva."
মণি — বোধ হয় গীতায় যে ত্রিগুণাতীতের কথা বলা আছে সেই অবস্থা হয়েছে। সত্ত্ব রজঃ তমোগুণ নিজে নিজে কাজ করছে, আপনি স্বয়ং নির্লিপ্ত — সত্ত্ব গুণেতেও নির্লিপ্ত।
श्रीरामकृष्ण - हाँ, जगन्माता ने मुझे बालक की अवस्था में रखा है ।"क्या अबकी बार देह न रहेगी ?"
MASTER: "Yes, the Divine Mother has put me into the state of a child. Tell me, won't the body live through this illness?"
শ্রীরামকৃষ্ণ — হাঁ; বালকের অবস্থায় রেখেছে। “আচ্ছা, দেহ কি এবার থাকবে না?”
श्रीरामकृष्ण और मणि चुप हैं । नरेन्द्र नीचे से आये । एक बार घर जायेंगे । वहाँ की व्यवस्था करके आयेंगे ।
The Master and M. became silent. Narendra entered the room. He was going home to settle his family affairs.
ঠাকুর ও মণি চুপ করিয়া আছেন। নরেন্দ্র নিচে হইতে আসিলেন। একবার বাড়ি যাইবেন। বন্দোবস্ত করিয়া আসিবেন।
[(5 जनवरी, 1886), श्री रामकृष्ण वचनामृत-133 ]
🔱महिमाचरण से तीन महीने तक घर के खर्च प्रबन्ध होने के बाद ठाकुर की सेवा 🔱
पिता के स्वर्गवास के बाद से नरेन्द्र की माँ और भाई बड़े कष्ट में हैं । कभी कभी फाके भी हो जाते हैं । नरेन्द्र ही उनका एकमात्र भरोसा है कि वे रोजगार करके उन्हें खिलायेंगे । परन्तु कानून की परीक्षा नरेन्द्र दे नहीं सके । इस समय उन्हें तीव्र वैराग्य है । इसीलिए आज का प्रबन्ध करने के लिए वे जा रहे हैं । एक मित्र ने उन्हें सौ रुपया कर्ज देने के लिए कहा है । उन्हीं रुपयों से घर के लिए तीन महीने तक के भोजन का प्रबन्ध करके आयेंगे ।
Since his father's death Narendra had been in great distress about his mother and brothers. Now and then they had been threatened with starvation. Narendra was the family's only hope: they expected him to earn money and feed them. But Narendra could not appear for his law examination; he was passing through a state of intense renunciation. He was going to Calcutta that day to make some provision for the family. A friend had agreed to lend him one hundred rupees. That would take care of the family for three months.
পিতার পরলোক প্রাপ্তির পর তাঁহার মা ও ভাইরা অতি কষ্টে আছেন, — মাঝে মাঝে অন্নকষ্ট। নরেন্দ্র একমাত্র তাঁহাদের ভরসা, — তিনি রোজগার করিয়া তাঁহাদের খাওয়াইবেন। কিন্তু নরেন্দ্রের আইন পরীক্ষা দেওয়া হইল না। এখন তীব্র বৈরাগ্য! তাই আজ বাড়ির কিছু বন্দোবস্ত করিতে কলিকাতায় যাইতেছেন। একজন বন্ধু তাঁহাকে একশত টাকা ধার দিবেন। সেই টাকায় বাড়ির তিন মাসের খাওয়ার যোগাড় করিয়া দিয়া আসিবেন।
नरेन्द्र - जरा घर जाता हूँ एक बार । (मणि से) महिम चक्रवर्ती के घर से होकर जाऊँगा, क्या आप चलेंगे ?
NARENDRA: "I am going home. (To M.) I shall visit Mahimacharan on the way. Will you come with me?"
নরেন্দ্র — যাই বাড়ি একবার। (মণির প্রতি) মহিম চক্রবর্তীর বাড়ি হয়ে যাচ্ছি, আপনি কি যাবেন?
मणि की जाने की इच्छा नहीं है । श्रीरामकृष्ण ने उनकी ओर देखकर नरेन्द्र से पूछा – ‘क्यों ?’
M. did not want to go. Looking at M., Sri Ramakrishna asked Narendra, "Why?"
মণির যাইবার ইচ্ছা নাই; ঠাকুর তাঁহার দিকে তাকাইয়া নরেন্দ্রকে জিজ্ঞাসা করিতেছেন, “কেন”?
नरेन्द्र - उसी रास्ते से जा रहा हूँ, उनके साथ जरा बातें करता ।
NARENDRA: "I am going that way; so I shall stop at Mahima's place and have a chat with him."
নরেন্দ্র — ওই রাস্তা দিয়ে যাচ্ছি, তাঁর সঙ্গে বলসে একটু গল্পটল্প করব।
श्रीरामकृष्ण एकदृष्टि से नरेन्द्र को देख रहे हैं ।
Sri Ramakrishna looked at Narendra intently.
ঠাকুর একদৃষ্টে নরেন্দ্রকে দেখিতেছেন।
नरेन्द्र - यहाँ के एक मित्र ने सौ रुपये उधार देने के लिए कहा है । उन्हीं रुपयों से घर का तीन महीने के लिए प्रबन्ध करके आऊँगा ।
NARENDRA: "A friend who comes here said he would lend me a hundred rupees. That will take care of the family for three months. I am going home to make that arrangement."
নরেন্দ্র — এখানকার একজন বন্ধু বলেছেন, আমায় একশ টাকা ধার দিবেন। সেই টাকাতে বাড়ির তিন মাসের বন্দোবস্ত করে আসব।
श्रीरामकृष्ण चुप हैं । मणि की ओर उन्होंने देखा ।
Sri Ramakrishna remained silent and looked at M.
ঠাকুর চুপ করিয়া আছেন। মণির দিকে তাকাইলেন।
मणि - (नरेन्द्र से) - नहीं, तुम लोग चलो, मैं बाद में आऊँगा ।
M. (to Narendra): "No, you go ahead. I shall go later."
মণি (নরেন্দ্রকে) — না, তোমরা এগোও, — আমি পরে যাব।
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