मेरे बारे में

शुक्रवार, 31 दिसंबर 2021

$$$ परिच्छेद ~ 98 [ (18 अक्टूबर, 1884) श्रीरामकृष्ण वचनामृत ] "आत्मानन्द में "- बाबूराम (स्वामी प्रेमानन्द) श्री रामलाल और हरिपद के साथ .

परिच्छेद ~ ९८  [ (18 अक्टूबर, 1884) श्रीरामकृष्ण वचनामृत ] साभार ~ श्री महेन्द्रनाथ गुप्त(बंगाली), कवि श्री पं. सूर्यकान्त त्रिपाठी ‘निराला’(हिंदी अनुवाद) साभार विद्युत् संस्करण ~ रमा लाठ ] 

परिच्छेद~ ९८

आत्मानन्द में 

(१)

🔆 श्री रामकृष्ण काली पूजा की महानिशा में दक्षिणेश्वर मन्दिर में भक्तों के संग🔆

[শ্রীরামকৃষ্ণ দক্ষিণেশ্বরে কালীপূজা মহানিশায় ভক্তসঙ্গে] 

[মাস্টার, বাবুরাম, গোপাল, হরিপদ, নিরঞ্জনের আত্মীয়, রামলাল, হাজরা ]

आज काली-पूजा है, शनिवार, 18 अक्टूबर, 1884 ई.। रात के दस -ग्यारह बजे से काली-पूजा शुरू होगी। कुछ लोग इस गम्भीर अमावस की रात में श्रीरामकृष्ण के दर्शन करेंगे । इसलिए वे कदम बढ़ाये चले आ रहे हैं । रात आठ बजे के लगभग मास्टर अकेले आ पहुंचे ।

[আজ ৺কালীপূজা, ১৮ই অক্টোবর, ১৮৮৪ খ্রীষ্টাব্দ, শনিবার (৩রা কার্তিক, অমাবস্যা)। রাত দশটা-এগারটার সময় ৺কালীপূজা আরম্ভ হইবে। কয়েকজন ভক্ত এই গভীর অমাবস্যা নিশিতে ঠাকুর শ্রীরামকৃষ্ণকে দর্শন করিবেন, তাই ত্বরা করিয়া আসিতেছেন। মাস্টার রাত্রি আন্দাজ আটটার সময় একাকী আসিয়া পৌঁছিলেন। 

It was the day of the worship of Kali, the Divine Mother. The worship was to begin at eleven o'clock at night. Several devotees arrived at the temple garden early in the evening. They wanted to visit Sri Ramakrishna during the holy hours of the night of the new moon. M. came alone to the garden about eight o'clock in the evening.

बगीचे में आकर उन्होंने देखा, काली-मन्दिर की पूजा आरम्भ हो चुकी है । बगीचे में कहीं कहीं दीपक जलाये गये थे और काली-मन्दिर में तो रोशनी ही रोशनी दीख पड़ती है । बीच बीच में शहनाई भी बज रही है । कर्मचारीगण दौड़-दौड़कर इधर-इधर देखरेख कर रहे हैं ।

आज रानी रासमणि के काली-मन्दिर में बड़े समारोह के साथ पूजा होगी । दक्षिणेश्वर के आदमियों को यह सूचना पहले ही मिल चुकी थी । अन्त में नाटक होगा यह भी वे लोग सुन चुके हैं । गाँव से लड़के, जवान, बूढे और स्त्रियाँ सब देवीदर्शन के लिए चले आ रहे हैं ।

[বাগানে আসিয়া দেখিলেন, কালীমন্দিরে মহোৎসব আরম্ভ হইয়াছে। উদ্যানমধ্যে মাঝে মাঝে দীপ — দেবমন্দির আলোকে সুশোভিত হইয়াছে। মাঝে মাঝে রোশনচৌকি বাজিতেছে, কর্মচারীরা দ্রুতপদে মন্দিরের এ-স্থান হইতে ও-স্থানে যাতায়াত করিতেছেন। আজ রাসমণির কালীবাড়িতে ঘটা হইবে, দক্ষিণেশ্বরের গ্রামবাসীরা শুনিয়াছেন, আবার শেষরাত্রে যাত্রা হইবে। গ্রাম হইতে আবাল-বৃদ্ধ-বনিতা বহুসংখ্যক লোক ঠাকুরদর্শন করিতে সর্বদা আসিতেছে।

The great religious festival had already begun. Lamps had been lighted here and there in the garden, and the temples were brightly illuminated. Music could be heard in the nahabat. The temple officers were moving about hurriedly. There was to be a theatrical performance in the early hours of the morning. The villagers had heard of the festive occasion, and a large crowd of men and women, young and old, was streaming in..

दिन के पिछले पहर चण्डी-गीत हो रहा था, गवैये थे राजनारायण । श्रीरामकृष्ण ने भक्तों के साथ बड़े प्रेम से गाना सुना । देवी की पूजा की याद कर श्रीरामकृष्ण को अपार आनन्द हो रहा है ।

[বৈকালে চণ্ডীর গান হইতেছিল — রাজনারায়ণের চণ্ডীর গান। ঠাকুর ভক্তসঙ্গে প্রেমানন্দে গান শুনিয়াছেন। আজ আবার জগতের মার পূজা হইবে। ঠাকুর আনন্দে বিভোর হইয়াছেন।

In the afternoon there had been a musical recital of the Chandi by Rajnarayan. Sri Ramakrishna had been present with the devotees and had enjoyed the recital immensely. As the time for the worship approached, he was overwhelmed with ecstasy.

रात के आठ बजे वहाँ पहुँचकर मास्टर ने देखा, श्रीरामकृष्ण छोटी खाट पर बैठे हुए हैं, उन्हें सामने करके कई भक्त जमीन पर बैठे हैं - बाबूराम, छोटे गोपाल, हरिपद, किशोरी, निरंजन के एक आत्मीय नवयुवक और ऐंड़ेदा के एक और किशोर बालक । रामलाल और हाजरा कभी कभी आते हैं, फिर चले जाते हैं ।

निरंजन के आत्मीय नवयुवक श्रीरामकृष्ण के सामने बैठे हुए ध्यान कर रहे हैं - श्रीरामकृष्ण ने उन्हें ध्यान करने के लिए कहा है ।

[রাত্রি আটটার সময় পৌঁছিয়া মাস্টার দেখিতেছেন, ঠাকুর ছোট খাটটিতে বসিয়া আছেন, তাঁহাকে সম্মুখে করিয়া মেঝের উপর কয়েকটি ভক্ত বসিয়া আছেন — বাবুরাম, ছোট গোপাল, হরিপদ, কিশোরী, নিরঞ্জনের একটি আত্মীয় ছোকরা ও এঁড়েদার আর একটি ছেলে। রামলাল ও হাজরা মাঝে মাঝে আসিতেছেন ও যাইতেছেন।নিরঞ্জনের আত্মীয় ছোকরাটি ঠাকুরের সম্মুখে ধ্যান করিতেছেন, — ঠাকুর তাঁহাকে ধ্যান করিতে বলিয়াছেন —

M. found Sri Ramakrishna seated on the small couch in his room. Baburam, the younger Gopal, Haripada, Kishori, a relative of Niranjan, a young man from Ariadaha, and other devotees were seated on the floor facing him. Ramlal and Hazra were in the room part of the time. Niranjan's young relative was meditating in front of Sri Ramakrishna, as the Master had bidden.

मास्टर प्रणाम करके बैठे । कुछ देर बाद निरंजन के आत्मीय प्रणाम करके बिदा हुए । ऐंड़ेदा के दूसरे युवक भी प्रणाम कर खड़े हो गये । उनके साथ जायेंगे ।

श्रीरामकृष्ण (निरंजन के आत्मीय से)- तुम फिर कब आओगे ?

[মাস্টার প্রণাম করিয়া উপবিষ্ট হইলেন। কিয়ৎক্ষণ পরে নিরঞ্জনের আত্মীয় প্রণাম করিয়া বিদায় গ্রহণ করিলেন। এঁড়েদার দ্বিতীয় ছেলেটিও প্রণাম করিয়া দাঁড়াইলেন — ওই সঙ্গে যাবেন।শ্রীরামকৃষ্ণ (নিরঞ্জনের আত্মীয়ের প্রতি) — তুমি কবে আসবে?

M. saluted the Master and took a seat. After a while Niranjan's relative bowed low before Sri Ramakrishna and was about to depart. The young man from Ariadaha also wished to leave. The Master said to Niranjan's relative, "When will you come again?"

भक्त - जी, सोमवार तक – शायद ।

[ভক্ত — আজ্ঞা, সোমবার — বোধ হয়।

DEVOTEE: "Perhaps next Monday."

श्रीरामकृष्ण - (आग्रहपूर्वक) - लालटेन चाहिए ? - साथ ले जाओ ।

[শ্রীরামকৃষ্ণ (আগ্রহের সহিত) — লণ্ঠন চাই, সঙ্গে নিয়ে যাবে?

MASTER (eagerly): "Do you want a lantern to take with you?"

भक्त - जी नहीं, इस बगीचे के आस-पास तो रोशनी है - कोई जरूरत नहीं ।

[ভক্ত — আজ্ঞা না, এই বাগানের পাশে; — আর দরকার নাই।

DEVOTEE: "No, sir, I live next to this garden. I don't need a lantern."

श्रीरामकृष्ण - (ऐंड़ेदा के लड़के से) - क्या तू भी जा रहा है ?

[শ্রীরামকৃষ্ণ (এঁড়েদার ছোকরাটির প্রতি) — তুইও চললি?

MASTER (to the young man from Ariadaha): "Are you going too?"

लड़का - जी हाँ, बड़ी सर्दी है ।

[ছোকরা — আজ্ঞা, সর্দি —

YOUNG MAN: "Yes, sir, I have a slight cold."

श्रीरामकृष्ण - अच्छा; सिर पर कपड़ा लपेट लेना ।

[শ্রীরামকৃষ্ণ — আচ্ছা, বরং মাথায় কাপড় দিয়ে যেও।

MASTER: "All right. Cover your head."

दोनों लड़कों ने फिर से प्रणाम किया और चल दिये ।

[ছেলে দুটি আবার প্রণাম করিয়া চলিয়া গেলেন।

They again saluted the Master and took their leave.

(२)

[ (18 अक्टूबर, 1884) श्रीरामकृष्ण वचनामृत ] 

🔆🙏कालीपूजा की महानिशा और कीर्तनानन्द में श्रीरामकृष्ण 🔆🙏 

( দক্ষিণেশ্বরে ৺কালীপূজা মহানিশায় শ্রীরামকৃষ্ণ ভজনানন্দে)

अमावस की घोर रात्रि है । तिस पर जगन्माता की पूजा है । श्रीरामकृष्ण छोटी खाट पर तकिए के सहारे बैठे हुए हैं । अन्तर्मुख हैं । रह-रहकर भक्तों से दो-एक बातें करते हैं ।

एकाएक मास्टर तथा अन्य भक्तों की ओर देखकर कह रहे हैं - अहा, उस लड़के का कितना गम्भीर ध्यान था ! (हरिपद से) कैसा ध्यान था ?

[গভীর অমাবশ্যা নিশি। আবার জগতের মার পূজা। শ্রীরামকৃষ্ণ ছোট খাটটিতে বালিশে হেলান দিয়া আছেন। কিন্তু অন্তর্মুখ, মাঝে মাঝে ভক্তদের সঙ্গে একটি-দুইটি কথা কহিতেছেন। হঠাৎ মাস্টার ও ভক্তদের প্রতি তাকাইয়া বলিতেছেন, আহা, ছেলেটির কি ধ্যান! (হরিপদের প্রতি) — কেমন রে? কি ধ্যান!

It was the awe-inspiring night of the new moon. The worship of the Divine Mother added to its solemnity. Sri Ramakrishna was seated on the couch, leaning against a pillow. His mind was indrawn. Now and then he exchanged a word or two with the devotees. Suddenly he looked at M. and the other devotees and said: "Ah, how deep the young man's meditation was! (To Haripada) Wasn't it deep?"

हरिपद - जी हाँ, वह ठीक काठ की तरह स्थिर था ।

[হরিপদ — আজ্ঞা হাঁ, ঠিক কাষ্ঠের মতো।

HARIPADA: "Yes, sir, he was motionless as a log."

श्रीरामकृष्ण - (किशोरी से) - उस लड़के को जानते हो ? किसी सम्बन्ध से निरंजन का भाई लगता है ।

[শ্রীরামকৃষ্ণ (কিশোরীর প্রতি) — ও ছেলেটিকে জান? নিরঞ্জনের কিরকম ভাই হয়।

MASTER (to Kishori): "Do you know that boy? He is a cousin of Niranjan."

फिर सब चुपचाप बैठे हुए हैं । हरिपद श्रीरामकृष्ण के पैर दबा रहे हैं । श्रीरामकृष्ण धीरे धीरे गा रहे हैं, एकाएक उठकर बैठ गये और बड़े उत्साह से गाने लगे –

"यह सब उस पागल स्त्री का खेल है । वह खुद भी पागल है, उसके पति महेश भी पागल हैं, और दो चेले हैं वे भी पागल हैं । उसका रूप क्या है, गुण क्या है, चाल-ढाल कैसी है, कुछ कहा नहीं जाता । जिनके गले में विष की ज्वाला है, वे शिव उसका नाम बार बार लेते हैं । सगुण और निर्गुण का विवाद लगाकर वह रोड़े से रोड़ा फोड़ती है । वह सब विषयों में राजी है, बस कर्तव्यों के समय ही उसकी नाराजगी होती है । रामप्रसाद कहते हैं, संसार-सागर में अपना डोंगा डालकर बैठे रहो । जब ज्वार आये तब वह जहाँ तक ले जाय, चढ़ते जाओ और जब भाटा हो, तब जहाँ तक उतरना हो, उतरते जाओ ।"

[আবার সকলেই নিঃস্তব্ধ। হরিপদ ঠাকুরের পদসেবা করিতেছেন। ঠাকুর বৈকালে চণ্ডীর গান শুনিয়াছেন। গানের ফুট উঠিতেছে। আস্তে আস্তে গাইতেছেন:কে জানে কালী কেমন, ষড়দর্শনে না পায় দরশন।।মূলাধারে সহস্রারে সদা যোগী করে মনন।কালী পদ্মবনে হংসসনে হংসীরূপে করে রমণ।। আত্মারামের আত্মাকালী, প্রমাণ প্রণবের মতন।তিনি ঘটে ঘটে বিরাজ করেন ইচ্ছাময়ীর ইচ্ছা যেমন।।মায়ের উদরে ব্রহ্মাণ্ড-ভাণ্ড প্রকাণ্ড তা জান কেমন।মহাকাল জেনেছেন কালীর মর্ম অন্য কেবা জানে তেমন।।প্রসাদ ভাষে লোকে হাসে সন্তরণে সিন্ধু তরণ।আমার মন বুঝেছে প্রাণ বুঝে না, ধরবে শশী হয়ে বামন।।

Again there was silence in the room. Haripada was gently stroking the Master's feet. The Master was humming some of the songs he had heard that evening during the recital of the Chandi. He sang softly:Who is there that can understand what Mother Kali is? Even the six darsanas are powerless to reveal Her. . . .

गाते ही गाते श्रीरामकृष्ण मतवाले हो गये । उसी आवेश में उन्होंने और कई गाने गाये । एक और गाने का भाव नीचे दिया जाता है –

"काली ! तुम सदानन्दमयी हो, महाकाल के मन को भी मुग्ध कर लेती हो । तुम आप नाचती हो, आप गाती हो और आप ही तालियाँ बजाती हो । तुम आदिभूता हो, सनातनी हो, शून्यरूपा हो, तुम्हारे मस्तक पर चन्द्र शोभा दे रहा है । अच्छा माँ, तुम यह तो बतलाओ, जब ब्रह्माण्ड ही नहीं था, तब तुम्हें मुण्ड-माला कैसे मिली ? तुम्हीं यन्त्री हो, हम लोग तुम्हारे ही इशारे पर चलते हैं । तुम जिस तरह रखती हो, उसी तरह रहते हैं और जो कुछ कहलाती हो, वही कहते हैं । अशान्त होकर कमलाकान्त तुम्हें गालियाँ देता हुआ कहता है, अबकी बार तो, ऐ सर्वहरे ! खड्ग धारण करके मेरे धर्म और अधर्म दोनों को तुम खा गयी ।”

[ঠাকুর উঠিয়া বসিলেন। আজ মায়ের পূজা — মায়ের নাম করিবেন! আবার উৎসাহের সহিত গাইতেছেন: 

(৩) - সদানন্দময়ী কালী, মহাকালের মনোমোহিনী।তুমি আপনি নাচ, আপনি গাও, আপনি দাও মা করতালি।।আদিভূতা সনাতনী, শূন্যরূপা শশীভালী।ব্রহ্মাণ্ড ছিল না যখন, মুণ্ডমালা কোথায় পেলি।। সবে রাত্রে তুমি যন্ত্রী, আমরা তোমার তন্ত্রে চলি।যেমন রাখ তেমনি থাকি মা, যেমন বলাও তেমনি বলি।।অশান্ত কমলাকান্ত দিয়ে বলে গালাগালি। এবার সর্বনাশী ধরে অসি, ধর্মাধর্ম দুটো খেলি।।

এ সব ক্ষেপা মায়ের খেলা, (যার মায়ার ত্রিভুবন বিভোলা) (মাগীর আপ্তভাবে গুপ্তলীলা) সে যে আপনি ক্ষেপা, কর্তা ক্ষেপা, ক্ষেপা দুটো চেলা।।কি রূপ কি গুণ ভঙ্গী, কি ভাব কিছুই যায় না বলা। যার নাম জপিয়ে কপাল পোড়ে কণ্ঠে বিষের জ্বালা।।সগুণে নির্গুণে বাঁধিয়ে বিবাদ, ঢ্যালা দিয়ে ভাঙছে ঢ্যালা।মাগী সকল বিষয়ে সমান রাজী নারাজ কেবল কাজের বেলা।।প্রসাদ বলে থাকো বসে ভবর্ণবে ভাসিয়ে ভেলা। যখন আসবে জোয়ার উজিয়ে যাবে, ভাঁটিয়ে যাবে ভাঁটার বেলা।।

Sri Ramakrishna sat up. With intense fervour he began to sing about the Divine Mother: All creation is the sport of my mad Mother Kali; By Her maya the three worlds are bewitched. Mad is She and mad is Her Husband; mad are Her two disciples! None can describe Her loveliness, Her glories, gestures, moods; Siva, with the agony of the poison in His throat, Chants Her name again and again. The Personal does She oppose to the Impersonal, Breaking one stone with another; Though to all else She is agreeable, Where duties are concerned She will not yield. Keep your raft, says Ramprasad, afloat on the sea of life, Drifting up with the flood-tide, drifting down with the ebb.

[ঠাকুর গান করিতে করিতে মাতোয়ারা হইয়াছেন। বলিলেন, এ-সব মাতালের ভাবে গান। বলিয়া গাইতেছেন:
     (১) - এবার কালী তোমায় খাব।
     (২) - তাই তোমাকে সুধাই কালী।
The Master was quite overwhelmed with the song. He said that songs like these denoted a state of divine inebriation. He sang one after another: This time I shall devour Thee utterly, Mother Kali! For I was born under an evil star, And one so born becomes, they say, the eater of his mother. . . .
Then: O Kali, my Mother full of Bliss! Enchantress of the almighty Siva! In Thy delirious joy Thou dancest, clapping Thy hands together! . . .

श्रीरामकृष्ण ने फिर गाया –

"जय काली जय काली कहते हुए अगर मेरा प्राणान्त हो, तो मैं शिवत्व को प्राप्त करूँगा । वाराणसी की मुझे क्या जरूरत है ? काली अनन्तरूपिणी हैं, उनका अन्त पा सके, ऐसा कौन है ? उनका थोड़ासा ही माहात्म्य समझकर शिव उनके पैरों पर लोटते हैं ।”

.[(৪) - জয় কালী জয় কালী বলে যদি আমার প্রাণ যায়। শিবত্ব হইব প্রাপ্ত, কাজ কি বারাণসীতায়।।অনন্তরূপিণী কালী, কালীর অন্ত কেবা পায়?কিঞ্চিৎ মাহাত্ম জেনে শিব পড়েছেন রাঙা পায়।।

And then:If at the last my life-breath leaves me as I repeat the name of Kali, I shall attain the realm of Siva. What does Benares mean to me? Infinite are my Mother's glories; who can find the end of Her virtues? Siva, beholding their smallest part, lies prostrate at Her Lotus Feet.

गाना समाप्त हो गया । इसी समय राजनारायण के दो लड़कों ने आकर श्रीरामकृष्ण को प्रणाम किया । सभामण्डप में दिन के पिछले पहर राजनारायण ने चण्डी-गीत गाया था । उनके साथ उन दोनों लड़कों ने भी गाया था । श्रीरामकृष्ण दोनों लड़कों के साथ फिर गाने लगे ।

[গান সমাপ্ত হইল এমন সময়ে রাজনারায়ণের ছেলে দুটি আসিয়া প্রণাম করিল। নাটমন্দিরে বৈকালে রাজনারায়ণ চন্ডীর গান গাইয়াছিলেন, ছেলে দুটিও সঙ্গে সঙ্গে গাইয়াছিল। ঠাকুর ছেলে দুটির আঙ্গে আবার গাইতেছেন: ‘এ সব ক্ষেপা মেয়ের খেলা’।

ছোট ছেলেটি ঠাকুরকে বলিতেছেন, — ওই গানটি একবার যদি —‘পরম দয়াল হে প্রভু’ —ঠাকুর বলিলেন, “গৌর নিতাই তোমরা দুভাই?” — এই বলিয়া গানটি গাইতেছেন:গৌর নিতাই তোমরা দুভাই পরম দয়াল হে প্রভু।

The singing was over. Two sons of Rajnarayan entered the room and bowed low before the Master. In the afternoon they had sung with their father the glories of the Divine Mother. The Master sang again with them: All creation is the sport of my mad Mother Kali . . .The younger brother requested Sri Ramakrishna to sing a certain song about Sri Gauranga. The Master sang: Gaur and Nitai, ye blessed brothers! I have heard how kind you are, And therefore I have come to you. . . .

श्रीरामकृष्ण के कई गाने गा चुकने पर कमरे में रामलाल आये । श्रीरामकृष्ण कहते हैं, तू भी कुछ गा, आज पूजा है । रामलाल गा रहे हैं –

"यह किसकी कामिनी है - समर को आलोकित कर रही है ? सजल जलद-सी इसकी देह की कान्ति है, दर्शनों में दामिनी की ध्युति दीख पड़ती है ! इसकी केशराशि खुली हुई है, सुरों और असुरों के बीच में भी इसे भय नहीं होता । इसके अट्टहास से ही दानवों का नाश हो जाता है । कमलाकान्त कहते हैं, जरा समझो तो, यह गजगामिनी कौन है !”

[গান সমাপ্ত হইল। রামলালের ঘরে আসিয়াছেন। ঠাকুর বলিতেছেন, ‘একটু গা, আজ পূজা।’ রামলাল গাইতেছেন:   (১) - সমর আলো করে কার কামিনী!সজল জলদ জিনিয়া কায়, দশনে প্রকাশে দামিনী।।এলায়ে চাঁচর চিকুর পাশ, সুরাসুর মাঝে না করে ত্রাস অট্টহাসে দানব নাশে, রণ প্রকাশে রঙ্গিণী।। কিবা শোভা করে শ্রমজ বিন্দু, ঘনতনু ঘেরি কুমুদবন্ধু,অমিয় সিন্ধু হেরিয়ে ইন্দু, মলিন এ কোন মোহিনী।।এ কি অসম্ভব ভব পরাভব, পদতলে শবসদৃশ নীরব,কমলাকান্ত কর অনুভব, কে বটে ও গজগামিনী।।(২) - কে রণে নাচিছে বামা নীরদবরণী।

Ramlal entered the room. The Master said to him: "Please sing something about the Divine Mother. It is the day of Her worship."Ramlal sang: Who is the Woman yonder who lights the field of battle?Darker Her body gleams even than the darkest storm-cloud, And from Her teeth there flash the lightning's blinding flames! Dishevelled Her hair is flying behind as She rushes about, Undaunted in this war between the gods and the demons. Laughing Her terrible laugh. She slays the fleeing asuras, And with Her dazzling flashes She bares the horror of war. . . .Again Ramlal sang: Who is this terrible Woman, dark as the sky at midnight? Who is this Woman dancing over the field of battle? . . .

श्रीरामकृष्ण नृत्य करते हैं, प्रेमानन्द में पागल हो रहे हैं । नाचते ही नाचते वे गाने लगे – “मेरा मनमिलिन्द काली के नीलकमलचरणों पर लुब्ध हो गया ।"

[ঠাকুর প্রেমানন্দে নাচিতেছেন। নাচিতে নাচিতে গান ধরিলেন: মজলো আমার মন ভ্রমরা শ্যামাপদ নীলকমলে!

Sri Ramakrishna began to dance to the song. Then he himself sang: The black bee of my mind is drawn in sheer delight, To the blue lotus flower of Mother Syama's feet, The blue flower of the feet of Kali, Siva's Consort. Tasteless, to the bee, are the blossoms of desire. My Mother's feet are black, and black, too, is the bee; Black is made one with black! This much of the mystery, These mortal eyes behold, then hastily retreat. But Kamalakanta's hopes are answered in the end; He swims in the Sea of Bliss, unmoved by joy or pain.

गाना और नृत्य समाप्त हो गया । श्रीरामकृष्ण अपनी छोटी खाट पर बैठे । भक्तगण भी जमीन पर बैठे।

मास्टर से श्रीरामकृष्ण कह रहे हैं - तुम न आये, चण्डीगीत कितना सुन्दर हुआ !

[গান ও নৃত্য সমাপ্ত হইল। ভক্তেরা আবার সকলে মেঝেতে বসিয়াছেন। ঠাকুরও ছোট খাটটিতে বসিলেন।মাস্টারকে বলিতেছেন, তুমি এলে না, চণ্ডীর গান কেমন হলো।

After the music and dancing Sri Ramakrishna sat on the couch and the devotees sat on the floor. He said to M.: "It is a pity you weren't here in the afternoon. The musical recital of the Chandi was very fine."

(३)

 [ (18 अक्टूबर, 1884) श्रीरामकृष्ण वचनामृत ]

🔆कालीपूजा की रात्रि और समाधि में श्रीरामकृष्ण-अन्तरंग पार्षदों के विषय में भविष्यवाणी🔆 

[কালীপূজা রাত্রে সমাধিস্থ — সাঙ্গোপাঙ্গ সম্বন্ধে দৈববাণী]

भक्तों में से कोई कोई काली-मन्दिर में देवीदर्शन करने के लिए चले गये । कोई कोई दर्शन करके अकेले गंगा के पक्के घाट पर बैठे हुए निर्जन में चुपचाप नाम-जप कर रहे हैं । रात के ग्यारह बजे होंगे। घोर अँधेरा छाया हुआ है । अभी ज्वार आने ही लगा है - भागीरथी उत्तरवाहिनी हो रही हैं ।

[ভক্তেরা কেহ কেহ কালীমন্দিরে ঠাকুর দর্শন করিতে গমন করিলেন। কেহ বা দর্শন করিয়া একাকী গঙ্গাতীরে বাঁধাঘাটের উপর বসিয়া নির্জনে নিঃশব্দে নামজপ করিতেছেন। রাত্রি প্রায় ১১টা। মহানিশা। জোয়ার সবে আসিয়াছে — ভাগীরথী উত্তরবাহিনী। তীরস্থ দীপালোকে এক-একবার কালো জল দেখা যাইতেছে।

Some of the devotees went to the temple to salute the image of the Divine Mother. Others sat quietly performing japa on the steps leading to the Ganges. It was about eleven o'clock, the most auspicious time for contemplation of the Divine Mother. The flood-tide was rising in the Ganges, and the lights on its banks were reflected here and there in its dark waters.

रामलाल 'पूजापद्धति' नाम की पुस्तक बगल में दबाये हुए माता के मन्दिर में एक बार आये । पुस्तक मन्दिर के भीतर रखना चाहते थे । मणि माता को तृषित लोचनों से देख रहे थे, उन्हें देखकर रामलाल ने पूछा, क्या आप भीतर आइयेगा ? अनुग्रह प्राप्त कर मणि मन्दिर के भीतर गये ।

देखा, माता की अपूर्व छटा थी । घर जगमगा रहा था । माता के सामने अदो-दीपदान थे, ऊपर झाड़, नीचे नैवेद्य सजाकर रखा गया था, जिससे घर भरा हुआ था । माता के पादपद्मों में जवा-पुष्प और बिल्वदल थे, श्रृंगार करनेवाले ने अनेक प्रकार के फूलों और मालाओं से माता को सजा रखा था । मणि ने देखा, सामने चामर लटक रहा है ।

एकाएक उन्हें याद आ गयी कि इसे लेकर श्रीरामकृष्ण व्यजन करते हैं । तब उन्हें संकोच हुआ । उसी संकुचित स्वर में उन्होंने रामलाल से कहा, क्या मैं यह चामर ले सकता हूँ ? रामलाल ने आज्ञा दी । मणि चामर लेकर व्यजन करने लगे । उस समय भी पूजा का आरम्भ नहीं हुआ था ।

[রামলাল পূজাপদ্ধতি নামক পুঁথি হস্তে মায়ের মন্দিরে একবার আসিলেন। পুঁথিখানি মন্দিরমধ্যে রাখিয়া দিবেন। মণি মাকে সতৃষ্ণ নয়নে দর্শন করিতেছেন দেখিয়া রামলাল বলিলেন, ভিতরে আসবেন কি? মণি অনুগৃহীত হইয়া প্রবেশ করিলেন। দেখিলেন, মা বেশ সাজিয়াছেন। ঘর আলোকাকীর্ণ। মার সম্মুখে দুই সেজ; উপরে ঝাড় ঝুলিতেছে। মন্দিরতল নৈবেদ্যে পরিপূর্ণ। মার পাদপদ্মে জবাবিল্ব। নানাবিধ পুষ্প মালায় বেশকারী মাকে সাজাইয়াছেন। মণি দেখিলেন, সম্মুখে চামর ঝুলিতেছে। হঠাৎ মনে পড়িল, ঠাকুর শ্রীরামকৃষ্ণ এই চামর লইয়া ঠাকুরকে কত ব্যজন করেন। তখন তিনি সঙ্কুচিতভাবে রামলালকে বলিতেছেন, “এই চামরটি একবার নিতে পারি?”রামলাল অনুমতি প্রদান করিলেন; তিনি মাকে ব্যজন করিতে লাগিলেন। তখনও পূজা আরম্ভ হয় নাই।

From outside the shrine M. was looking wistfully at the image. Ramlal came to the temple with a book in his hand containing the rules of the worship. He asked M. if he wanted to come in. M. felt highly favoured and entered the shrine. He saw that the Divine Mother was profusely decorated. The room was brilliantly illuminated by a large chandelier that hung from the ceiling. Two candles were burning in front of the image. On the floor were trays full of offerings. Red hibiscus flowers and bel-leaves adorned Her feet. She wore garlands round Her neck M.'s eyes fell on the chamara. Suddenly he remembered that Sri Ramakrishna often fanned the Divine Mother with it. With some hesitation he asked Ramlal if he might fan the image. The priest gave his permission. M. joyously fanned the image. The regular worship had not yet begun.

जो सब भक्त बाहर गये हुए थे, वे फिर श्रीरामकृष्ण के कमरे में आकर सम्मिलित हुए । श्रीयुत वेणीपाल ने न्योता दिया है । कल सींती के ब्राह्मसमाज में जाने के लिए श्रीरामकृष्ण को निमन्त्रण आया है । निमन्त्रणपत्र में तारीख की गलती है ।

[যে সকল ভক্তেরা বাহিরে গিয়াছিলেন, তাঁহারা আবার ঠাকুর শ্রীরামকৃষ্ণের ঘরে আসিয়া মিলিত হইলেন।শ্রীযুক্ত বেণী পাল নিমন্ত্রণ করিয়াছেন। আগামীকল্য সিঁথি ব্রাহ্মসমাজে যাইতে হইবে। ঠাকুরের নিমন্ত্রণ। নিমন্ত্রণ পত্রে কিন্তু তারিখ ভুল হইয়াছে।

The devotees again entered the Master's room. Beni Pal had invited Sri Ramakrishna to visit the Sinthi Brahmo Samaj the next day, but had made a mistake in his letter with regard to the date.

श्रीरामकृष्ण - (मास्टर से) - वेणीपाल ने न्योता भेजा है । परन्तु भला इस तरह क्यों लिखा ?

मास्टर - जी, लिखना ठीक नहीं हुआ । जान पड़ता है सोच-विचार कर नहीं लिखा ।

[শ্রীরামকৃষ্ণ (মাস্টারের প্রতি) — বেণী পাল নিমন্ত্রণ করেছে। তবে এরকম লিখলে কেন বল দেখি?

মাস্টার — আজ্ঞে, লেখাটি ঠিক হয় নাই। তবে অত ভেবে-চিন্তে লেখেন নাই।

MASTER (to M.): "Beni Pal has sent me an invitation. But why has he put the wrong date?" M: "The date was not written correctly. He wrote the letter carelessly."

श्रीरामकृष्ण कमरे में खड़े हैं । पास में बाबूराम हैं । श्रीरामकृष्ण पाल की चिट्ठी की बातचीत कर रहे हैं। बाबूराम के सहारे खड़े हुए एकाएक समाधिमग्न हो गये ।

[ঘরের মধ্যে ঠাকুর দাঁড়াইয়া, বাবুরাম কাছে দাঁড়াইয়া। ঠাকুর বেণী পালের চিঠির কথা কহিতেছেন। বাবুরামকে স্পর্শ করিয়া দাঁড়াইয়া আছেন। হঠাৎ সমাধিস্থ!

As Sri Ramakrishna spoke, he was standing in the middle of the room with Baburam by his side. He leaned toward the disciple, touching his body.

भक्तगण उन्हें घेरकर खड़े हो गये । सभी इस समाधिमग्न महापुरुष को टकटकी लगाये देख रहे हैं । श्रीरामकृष्ण समाधि अवस्था में बायाँ पैर बढ़ाये हुए खड़े हैं, कन्धा कुछ झुका हुआ है । बाबूराम की गरदन के पीछे श्रीरामकृष्ण का हाथ है ।

कुछ देर बाद समाधि छूटी । तब भी आप खड़े ही रहे । इस समय गाल पर हाथ रखे हुए जैसे बहुत चिन्तित भाव से खड़े हों ।

कुछ हँसकर भक्तों से बोले - “मैंने सब देखा - कौन कितना बढ़ा, राखाल, ये (मणि), सुरेन्द्र, बाबूराम, बहुतों को देखा ।"

[ভক্তেরা সকলে তাঁহাকে ঘেরিয়া দাঁড়াইয়াছেন। এই সমাধিস্থ মহাপুরুষকে অবাক্‌ হইয়া দেখিতেছেন। ঠাকুর সমাধিস্থ; বাম পা বাড়াইয়া দাঁড়াইয়া আছেন — গ্রীবাদেশ ঈষৎ আকুঞ্চিত। বাবুরামের গ্রীবার পশ্চাদ্দেশে কানের কাছে হাতটি রহিয়াছে। কিয়ৎক্ষণ পরে সমাধিভঙ্গ হইল। তখনও দাঁড়াইয়া। এইবার গালে হাত দিয়া যেন কত চিন্তিত হইয়া দাঁড়াইলেন। ঈষৎ হাস্য করিয়া এইবার ভক্তদের সম্বোধন করিয়া বলিতেছেন —শ্রীরামকৃষ্ণ — সব দেখলুম — কার কত দূর এগিয়েছে। রাখাল, ইনি (মণি), সুরেন্দ্র, বাবুরাম, অনেককে দেখলুম।

Suddenly he went into samadhi. The devotees stood around with their eyes fixed on him. The Master's left foot was advanced a little; the shoulder was slightly inclined to one side; his arm rested on Baburam's neck near the ear. After a while he came down from the ecstatic state. As he stood there he put one hand to his cheek and appeared to be brooding over something. Then, smiling, he addressed the devotees. MASTER: "I saw everything — how far the devotees had advanced. I saw Rakhal, him (pointing to M.), Surendra, Baburam, and many others."

हाजरा - मुझको भी ?

श्रीरामकृष्ण – हाँ ।

हाजरा - अब भी अनेक बन्धन हैं ?

श्रीरामकृष्ण – नहीं ।

हाजरा - नरेन्द्र का भी देखा ?

श्रीरामकृष्ण - नहीं - परन्तु अब भी कह सकता हूँ, कुछ फँस गया है; परन्तु देखा कि सब की बन जायेगी ।

(मणि की और देखकर) "सब को देखा, सब के सब तैयार हैं (पार जाने के लिए) ।"

भक्तगण निर्वाक् होकर यह देववाणी  [oracle, भविष्यवाणी] सुन रहे हैं ।

[ভক্তেরা অবাক্‌, দৈববাণীর ন্যায় অদ্ভুত সংবাদ শুনিতেছেন।

The devotees listened to these words with great wonder. It seemed to them that they were hearing an oracle (भविष्यवाणी) .

श्रीरामकृष्ण - परन्तु इसको (बाबूराम को) छूने पर ऐसा हुआ ।

[শ্রীরামকৃষ্ণ — কিন্তু একে (বাবুরামকে) ছুঁয়ে ওরূপ হল!

MASTER: "But I got into that mood by touching Baburam."

हाजरा - पहला दर्जा किसका है ?

श्रीरामकृष्ण चुप हैं । कुछ देर बाद कहा - “नित्यगोपाल जैसे कुछ और भी मिल जाते तो बड़ा अच्छा होता !"

फिर चिन्ता कर रहे हैं । अब भी उसी भाव में खड़े हैं ।

फिर कहते हैं - “अधर सेन - अगर काम घट जाता, परन्तु भय होता है कि साहब डाँटने लगेगा । यह न कह बैठे - यह क्या है ?" (सब मुस्कराते हैं ।)

श्रीरामकृष्ण फिर अपने आसन पर जा बैठे । जमीन पर भक्तगण बैठे । बाबूराम और किशोरी श्रीरामकृष्ण की चारपाई पर जाकर उनके पैर दबाने लगे ।

श्रीरामकृष्ण - (किशोरी की ओर ताककर) - आज तो खूब सेवा कर रहे हो !

रामलाल ने आकर सिर टेककर प्रणाम किया और बड़े ही भक्ति-भाव से पैरों की धूलि ली । माता की पूजा करने जा रहे हैं ।

[রামলাল আসিয়া ভূমিষ্ঠ হইয়া প্রণাম করিলেন; ও আতিশয় ভক্তিভাবে পদধূলি গ্রহণ করিলেন। মায়ের পূজা করিতে যাইতেছেন।

Ramlal entered the room and saluted Sri Ramakrishna, touching the ground with his forehead. Then with great respect he touched the Master's feet. He was ready to worship the Divine Mother in the temple.

[रामलाल - ठाकुर के मँझले बड़े भाई रामेश्वर चट्टोपाध्याय के सबसे बड़े पुत्र। ठाकुर उन्हें प्यार से "रामनेलो" कहते थे। और बेलूर मठ के सभी लोग "रामलाल दादा" के नाम से जाने जाते थे। रामेश्वर के निधन के बाद, उन्हें दक्षिणेश्वर में माँ भवतारिणी के पुजारी के रूप में नियुक्त किया गया ,और उन्होंने  जीवन भर उस कर्तव्य को निभाया। वे  एक अच्छे गायक थे। उन्होंने श्री श्री ठाकुर के लिए कई बार गीत गाए हैं। ठाकुर ने काशीपुर में कल्पतरु दिवस पर रामलाल के ऊपर भी कृपा की थी। রামলাল — ঠাকুরের মধ্যম অগ্রজ রামেশ্বর চট্টোপাধ্যায়ের জ্যেষ্ঠ পুত্র। ঠাকুর তাঁহাকে স্নেহভরে “রামনেলো” বলিয়া ডাকিতেন। এবং বেলুড় মঠের সকলের নিকট তিনি “রামলাল দাদা” নামে পরিচিত ছিলেন। রামেশ্বর দেহত্যাগের পর তিনি দক্ষিণেশ্বরে ৺ভবতারিণীর পূজকের পদে নিযুক্ত হন এবং আজীবন সেই দায়িত্ব পালন করেন। তিনি সুগায়ক ছিলেন। শ্রীশ্রীঠাকুরকে অনেকবার গান শুনাইয়াছেন। ঠাকুর কাশীপুরে কল্পতরু দিবসে রামলালকেও কৃপা করেন।] 

रामलाल - तो मैं चलूँ ?

[রামলাল (ঠাকুরের প্রতি) — তবে আমি আসি।

RAMLAL: "Please permit me to go to the shrine."

श्रीरामकृष्ण - ॐ काली, ॐ काली । सावधानी से पूजा करना । [एक भेंड़ की बली भी देनी होगी।] 

[শ্রীরামকৃষ্ণ — ওঁ কালী, ওঁ কালী। সাবধানে পূজা করো। আবার মেড়া বলি দিতে হবে।

The Master twice uttered the words "Om Kali" and said: "Perform the worship carefully. There is also a sheep to be slaughtered."

महानिशा है । पूजा का आरम्भ हो गया । श्रीरामकृष्ण पूजा देखने के लिए गये । माता के दर्शन कर रहे हैं । [अब भेंड़ की  बली दी जाने वाली है। भेंड़ को देवी के सामने उत्सर्ग किया गया। जब भेड़ को  बलिवेदी के तरफ ले जाने का उपक्रम होने लगा, तब श्री रामकृष्ण मंदिर से अपने कमरे में लौट आए। वह बलि पड़ने के दृश्य को सहन नहीं कर सकते थे।

[মহানিশা। পূজা আরম্ভ হইয়াছে। ঠাকুর শ্রীরামকৃষ্ণ পূজা দেখিতে আসিয়াছেন। মার কাছে গিয়া দর্শন করিতেছেন। এইবার বলি হইবে — লোক কাতার দিয়া দাঁড়াইয়াছে। বধ্য পশুর উৎসর্গ হইল। পশুকে বলিদানের জন্য লইয়া যাইবার উদ্যোগ হইতেছে। ঠাকুর শ্রীরামকৃষ্ণ মন্দির ত্যাগ করিয়া নিজের ঘরে ফিরিয়া আসিলেন।ঠাকুরের সে অবস্থা নয়, পশুবধ দেখিতে পারিবেন না।

It was midnight. The worship began in the Kali temple. The Master went to watch the ceremony. During the worship he stood near the image. Now the sheep was going to be slaughtered. The animal was consecrated before the Deity. People stood in lines watching the ceremony. While the sheep was being taken to the block Sri Ramakrishna returned to his room. He could not bear the sight.

रात को दो बजे तक कोई कोई भक्त काली-मन्दिर में बैठे रहे । हरिपद ने काली-मन्दिर में जाकर सब से कहा, चलो, बुलाते हैं - भोजन तैयार है । भक्तों ने देवी का प्रसाद पाया और जिसको जहाँ जगह मिली, वहीं लेटा रहा ।

[রাত দুইটা পর্যন্ত কোন কোন ভক্ত মা-কালীর মন্দিরে বসিয়াছিলেন। হরিপদ কালীঘরে আসিয়া বলিলেন, চলুন, তিনি ডাকছেন, খাবার সব প্রস্তুত। ভক্তেরা ঠাকুরের প্রসাদ পাইলেন ও যে যেখানে পাইলেন, একটু শুইয়া পড়িলেন।

Several devotees remained in the temple till two o'clock in the morning. Haripada came and asked them to take the prasad to the Master's room. After finishing their meal they lay down wherever they could for the remainder of the night. 

[हरिपद - श्री रामकृष्ण के किशोर -भक्त थे । मास्टर महाशय द्वारा ठाकुर के पास लाये गए थे । वे समय-समय पर दक्षिणेश्वर जाया करता था। वे घोषपाड़ा मत के अनुसार  साधना करते थे। वे कथा- वाचन करना जानते थे;  और ध्यान करने पर उनका जोर रहता था।

হরিপদ — শ্রীরামকৃষ্ণের বালক ভক্ত। মাস্টার মহাশয় কর্তৃক ঠাকুরের নিকট আনীত। দক্ষিণেশ্বরে মাঝে মাঝে যাইতেন। ঘোষপাড়া মতে সাধন-ভজন করিতেন। কথকতা জানিতেন এবং খুব ধ্যান করিতেন।] 

सबेरा हुआ । माता की मंगल-आरती हो चुकी है । माता के सामने सभामण्डप में नाटक हो रहा है । श्रीरामकृष्ण भी नाटक देखने के लिए जा रहे हैं । मणि साथ जा रहे हैं - श्रीरामकृष्ण से बिदा होने के लिए ।

[ভোর হইল; মার মঙ্গল আরতি হইয়া গিয়াছে। মার সম্মুখে নাটমন্দির। নাটমন্দিরে যাত্রা হইতেছে, মা যাত্রা শুনিতেছেন। ঠাকুর শ্রীরামকৃষ্ণ কালীবাড়ির বৃহৎ পাকা উঠান দিয়া যাত্রা শুনিতে আসিতেছেন। মণি সঙ্গে সঙ্গে আসিতেছেন — ঠাকুরের কাছে বিদায় লইবেন।

It was morning. The dawn service in the temples was over and the theatrical performance was going on in the open hall in front of the shrine. M. was coming through the courtyard with Sri Ramakrishna. He wanted to take leave of the Master.]

श्रीरामकृष्ण - क्या तुम इसी समय जाना चाहते हो ?

[শ্রীরামকৃষ্ণ — কেন তুমি এখন যাবে?

MASTER: "Why should you go now?"

मणि - आज आप दिन के पिछले पहर सींती जायेंगे, मेरी भी जाने की इच्छा है; इसलिए घर होकर जाना चाहता हूँ ।

[মণি — আজ আপনি সিঁথিতে বৈকালে যাবেন, আমারও ইচ্ছা আছে, তাই বাড়িতে একবার যাচ্ছি।

M: "You are going to Sinthi in the afternoon. I too intend to be there. So I should like to go home for a few hours."

बातचीत करते हुए मणि काली-मन्दिर के पास आ गये । पास ही सभामण्डप है, नाटक हो रहा है । मणि ने सीढ़ियों के नीचे भूमिष्ठ हो श्रीरामकृष्ण को प्रणाम किया ।

[কথা কহিতে কহিতে মা-কালীর মন্দিরের কাছে আসিয়া উপস্থিত। অদূরে নাটমন্দির, যাত্রা হইতেছে। মণি সোপানমূলে ভূমিষ্ঠ হইয়া চরণ বন্দনা করিতেছেন।

They came to the Kali temple. At the foot of the steps M. saluted the Master.

श्रीरामकृष्ण ने कहा, 'अच्छा, चलो, और आठ हाथ वाली दो धोतियाँ मेरे लिए लेते आना ।' स्नान करते समय मैं उनका उपयोग करूँगा। 

[ঠাকুর বলিলেন, “আচ্ছা এসো। আর দুখানা আটপৌরে নাইবার কাপড় আমার জন্য এনো।”

MASTER: "You are going? All right. Please bring two pieces of cheap cloth for me. I shall use them while taking my bath."

==============




कोई टिप्पणी नहीं: