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सोमवार, 8 फ़रवरी 2021

$$ SANATANA DHARMA - (2) - "सेंट्रल हिन्दू कॉलेज" के प्राथमिक पाठ्यपुस्तक की प्रस्तावना। [" FOREWORD : Central Hindu College.(BHU )]

 प्रस्तावना 

(Preface to "Central Hindu College")  

 "सेंट्रल हिन्दू कॉलेज"  (Banaras Hindu University ) के न्यासी बोर्ड ने निम्नलिखित सिद्धांत निर्धारित किए हैं, जिन्हें आधार मानकर इसके नियंत्रण में संचालित समस्त संस्थानों में 'धार्मिक और नैतिक ' शिक्षा प्रदान की जाएगी। 
सेंट्रल हिंदू कॉलेज का उद्देश्य यह है कि इसके द्वारा संचालित सभी संस्थानों में समय की आवश्यकता के अनुरूप पाश्चात्य शिक्षा (Western Education) के साथ साथ 'Hindu religious and ethical training ' - अथवा हिन्दू परम्परा में धर्म और नैतिकता के प्रशिक्षण पद्धति को भी अनिवार्य रूप से सम्मिलित किया जायेगा।    
[अर्थात प्रचलित पाश्चात्य शिक्षा के साथ -साथ " धर्म और नैतिकता " का प्रशिक्षण देने के लिए ' इंटर्नशिप ट्रेनिंग या अनिवार्य गुरुगृहवास परम्परा में आयोजित छः दिवसीय वार्षिक युवा प्रशिक्षण शिविर के कार्यक्रम में प्राचीन भारतीय संस्कृति की गुरु-शिष्य प्रशिक्षण परम्परा में  " मनःसंयोग" (मानसिक एकाग्रता सहित "3H" विकास के 5 अभ्यास) या  " Training of mind :  Mental Concentration' को भी अनिवार्य रूप से सम्मिलित किया जायेगा।]
और चूँकि भविष्य में इस ' बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय ' में सभी देशों के और सभी धर्मों के छात्र शिक्षा ग्रहण करने के लिए आएंगे अतः यह आवश्यक है कि 'मनःसंयोग ' (अष्टांग योग ) का यह 'religious and ethical training' धर्म और नैतिकता'  का यह प्रशिक्षण - यद्यपि व्‍यापक (अनेक विषयों तक व्‍याप्‍त), उदार तथा असाम्प्रदायिक शैली या स्वरुप वाला होगा - ' wide-ranging, liberal and unsectarian character'-में होगा;  बावजूद इसके वह प्रशिक्षण निश्चितरूप से तथा विशिष्ट रूप से  हिन्दू परम्परा अर्थात गुरु-शिष्य परम्परा ( 'मन एव मनुष्याणां कारणं बन्धमोक्षयोः' की परम्परा) में ही दिया जायेगा !   
अतः हमारी " मनःसंयोग प्रशिक्षण -पद्धति " हिन्दू मतवादों के सबसे भिन्न (मुक्तलिफ़ या divergent-शैव-शाक्त -वैष्णव आदि ) रूपों को भी एकजुट रखने के लिए, पर्याप्त रूप से सर्व-समावेशी होनी चाहिए। लेकिन इसके साथ ही साथ -वैसे विचार (मतवाद )  जो 'अनेकता में एकता ' के हिन्दू विचारों से मेल नहीं खाते (forms of thought which are non-Hindu ) हैं; उन्हें निश्चित रूप से इसके प्रशिक्षण पाठ्यक्रम से बाहर ही रखना चाहिए। 
इस ' बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय ' को उन सभी सिद्धांतों से बचना चाहिए जो  मान्यता प्राप्त दकियानूसी (orthodox) स्कूलों के बीच विवाद (controversy) का विषय हैं। इसे वर्तमान समय के किसी भी सामाजिक या राजनितिक विवादों में शामिल नहीं होना चाहिए। लेकिन इसे छात्रों के समक्ष 'धर्म और नैतिकता' -अर्थात 'चरित्र-निर्माण ' की ऐसी ठोस नींव, (अर्थात उपनिषद के चार महावाक्यों को योग्य शिक्षकों के माध्यम से) रखनी चाहिए जिससे छात्रों में 'मनुष्यत्व ' (ब्रह्मत्व ) का उन्मेष हो सके। 
इसके प्रशिक्षण-कार्यक्रम को इस प्रकार निर्देशित किया जाना चाहिये जिससे छात्र अपने -बलवान, सदाचारी , कर्तव्य-परायण, आत्म-निर्भर, ईमानदार,  सज्जन मनुष्य के संतुलित चरित्र का निर्माण कर सकें। एक ऐसे सुंदर जीवन को गठित कर सकें, जो एक अच्छा मनुष्य होने के साथ-साथ ' जाग्रत मनुष्य ' (Awakened Person ) एवं 'प्रबुद्ध -नागरिक ' (Enlightened-Citizen) भी हो ! धर्म के मूल सिद्धान्त - ही जीवन के प्रति सामान्य दृष्टि-कोण को नियंत्रित करने , तथा जीवन के दायित्वों का निर्वहन करने योग्य चरित्र का निर्माण करने में पर्याप्त रूप से समर्थ बनाते हैं। 
छात्रों को स्पष्ट रूप से और सरल भाषा में केवल उन सिद्धान्तों को ही सिखाया जाना चाहिये जो सम्पूर्ण हिन्दू जाति को एक सामान्य विचारधारा या आम धार्मिक निष्ठा ( common faith) के प्रति एकजुट (unite) रहने में सहायक सिद्ध होता हो। तथा विभाजनकारी सिद्धांतों को पूरी तरह से अनदेखा कर देना चाहिए जो अलगाववाद और आतंकवाद को बढ़ावा देती हों।
 [जैसे " मिलजुल कर एक साथ रहेंगे और बढ़ेगी एकता , उद्देश्य हमारा देश की सेवा -विवेकानन्द हमारे नेता' , 'चरैवेति चरैवेति हुँकारो स्माकं , विवेकानंदो नेतानः विभीमः कस्माद वयं ', 'निवेदिता वज्र होक अक्षय ', 'वन्दे मातरम ' या 'जय श्रीराम' जैसे सरल नारे को ही सिखाया जाना चाहिए , जो सम्पूर्ण हिन्दू जाति को राष्ट्रभक्ति की एक सामान्य विचारधारा (common faith-सामान्य निष्ठा ) राष्ट्रीय आदर्श - " त्याग और सेवा " के प्रति एकजुट रखने में सहायक सिद्ध होती हो। धर्म-जाति के नाम पर समाज में विभाजन को बढ़ावा देने वाली 'आरक्षण-नीति' जैसे सिद्धांतों को अनदेखा करना चाहिए।  That which unites Hindus in a common faith must be clearly and simply taught ; all that divides them must be ignored. ]
 
अन्ततोगत्वा , इस बात पर विशेष ध्यान रखना चाहिए कि विभिन्न जाति और धर्म के छात्रों के बीच परस्पर सहिष्णुता का भाव (spirit of tolerance) अधिकाधिक विकसित होता रहे। जो न केवल हिन्दुओं सम्प्रदायों के बीच ' विचार और व्यवहार ' (thought and practice) के विभन्नता का सम्मान करता हो , बल्कि गैर-हिन्दुओं के बीच धार्मिक विभिन्नता का भी सम्मान करता हो , तथा दुनिया के सभी धर्म एक ही परम् सत्य तक पहुँचने का विविध मार्ग समझकर , सभी धर्मों के प्रति श्रद्धा के साथ सहिष्णुता का भाव रखता हो।

अतएव : 1. यहाँ के अध्यापकों या प्रशिक्षकों के द्वारा दिए गए सभी धार्मिक और नैतिक निर्देश ऐसा होना चाहिए जिसे सभी हिंदू स्वीकार कर सकें।
2. निर्देशों में उन विशिष्ट शिक्षाओं ( जैसे गीता, उपनिषद और ब्रह्मसूत्र में आधारित वेदान्तिक साम्यभाव आदि) को भी सम्मिलित करना चाहिए जो हिन्दू धर्म को अन्य धर्मों से अलग चिन्हित करते हों। 
3.  इसके पाठ्यक्रम (syllabus) में हिन्दू धर्म के किसी विशिष्ट 'school (द्वैत, विशिष्टाद्वैत , अद्वैत )' या खास सम्प्रदाय (शैव-शाक्त-वैष्णव) की शिक्षाओं को ही शामिल नहीं करना चाहिए। 
          इस प्राथमिक पाठ्यपुस्तक (elementary Text-Book) को उपरोक्त योजना के अनुसार ही  भारत के उच्च विद्यालयों (High Schools) के माध्यमिक कक्षा और उच्च कक्षा के हिन्दू विद्यार्थियों के उपयोग में लाने के लिए लिखा गया है। तथा इस पुस्तक को उन्हें अपने राष्ट्रीय धर्म का एक सामान्य लेकिन सही विचार देने के लिए इस प्रकार डिज़ाइन किया गया है कि, बाद के जीवन में या कॉलेज में पढ़ने के दौरान "पूर्ण अध्यन" के द्वारा भरा जा सकेगा,लेकिन इस पुस्तक के बुनियादी सिद्धान्तों को बदलने की कोई आवश्यकता नहीं होगी। 
इस प्राथमिक पुस्तक में वैसे सभी मौलिक विचार और सिद्धान्त भी शामिल हैं, जिन्हें आमतौर से रूढ़िवादी धर्म -ग्रन्थों (प्राचीन शास्त्रों) से प्राप्त किया जाता है, लेकिन इसमें वैसी बातें बिल्कुल शामिल नहीं की गयी हैं जिससे देश और समाज में विभाजन और साम्प्रदायिक मतभेद पैदा होता हो। ऐसा माना जाता है कि कोई कट्टरपंथी (sectarian ) या साम्प्रदायिक सोंच वाले शिक्षक या अभिभावक इस खाई को शायद और अधिक चौड़ी करने की इच्छा रखते होंगे , किन्तु उन्हें भी इसमें वैसा कुछ नहीं मिलेगा जिसका खण्डन करने की इच्छा उसके मन में पैदा हो। 
इस पुस्तक को स्वयं अध्यन करने के लिए जहाँ छात्रों के हाथों में रखा जा सकता है , वहीं शिक्षकों से यह अपेक्षा की जाती है कि वे मौखिक रूप से इसकी सरल व्याख्या करके इसके सिद्धान्तों को और अधिक स्पष्ट रूप से विद्यार्थियों को समझा सकेंगे। इस पुस्तक का प्रत्येक अध्याय एकाधिक शिक्षाओं (lessons) के  सारांश को दर्शाता है। 
सभी छात्रों को प्रत्येक अध्याय के अंत में दिए गए संस्कृत श्लोकों को कण्ठस्थ करने के लिए प्रोत्साहित करना चाहिए। ऐसा करने से वे लोग अपने धर्म के जीवनोपयोगी उपदेशों के पवित्र भण्डार पर अधिकार अर्जित कर सकेंगे। 
 इस पाठ्य-शृंखला का नाम 'सनातन धर्म '  पूरी चर्चा करने के बाद ही, इसके न्यासियों द्वारा चुना गया था ; क्योंकि इसमें दिए गए सत्य के मौलिक विचारों को सच्चा और सबसे अच्छा प्रतिनिधित्व यही नाम करता है। यद्यपि भारत के कुछ क्षेत्रों में यह नाम कुछ कुछ साम्प्रदायिक जैसा बन गया है , तथापि यहाँ इस नाम का तात्पर्य उस धर्म से है जो 'शाश्वत धर्म' (eternal religion) है - अर्थात जिसकी स्थापना किसी व्यक्ति ने नहीं की है, और जो सृष्टि के प्रारम्भ से ही चलता चला आ रहा है !
हम ईश्वर से प्रार्थना करते हैं कि यह पुस्तक हिन्दू युवाओं के मन सही सोच की एक मजबूत नींव रखने में उपयोगी सिद्ध हो ; तथा उनके जीवन को अपनी मातृभूमि और साम्राज्य ( Motherland and of the Empire) के प्रति एक निष्ठावान (loyal-देशभक्त ) , कर्तव्य-पारायण, चरित्रवान और उपयोगी नागरिक (प्रबुद्ध-नागरिक) के रूप में गठित करने में उनकी सहायता कर सके। यही वह प्रार्थना है जो इसके लेखक जनता-जनार्दन के समक्ष निवेदित करते हैं। 
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FOREWORD
THE Board of Trustees of the Central Hindu College has laid down the following principles on which religious and moral teaching is to be given in all institutions under its control. 
        The object of the Central Hindu College being to combine Hindu religious and ethical training with the western education suited to the needs of the time, it is necessary that this religious and ethical training shall be of a wide, liberal and unsectarian character, while at the same time it shall be definitely and distinctively Hindu.
             It must be inclusive enough to unite the most divergent forms of Hindu thought, but exclusive enough to leave outside it, forms of thought which are non-Hindu. It must avoid all doctrines which are the subject of controversy between schools recognised as orthodox ; it must not enter into any of the social and political questions of the day ; but it must lay a solid foundation of religion and ethics on which the student may build, in his manhood, the more specialised principles suited to his intellectual and emotional temperament.
            It must be directed to the building up of a character pious, dutiful, strong, self-reliant, upright, righteous, gentle and well-balanced a character which will be that of a good man and a good citizen ; the fundamental principles of religion, governing the general view of life and of life's obligations, are alone sufficient to form such a character. That which unites Hindus in a common faith must be clearly and simply taught ; all that divides them must be ignored. 
           Lastly,care must be taken to cultivate a wide spirit of tolerance, which not only respects the differences of thought and practice among Hindus, but which also respects the differences of religion among non- Hindus, regarding all faiths with reverence, as roads whereby men approach the Supreme.
        Therefore : 1. The religious and ethical instruction must be such as all Hindus can accept.
2. It must include the special teachings which mark out Hinduism from other religions.
3. It must not include the distinctive views of any special school or sect. 
               This elementary Text-Book, written in accordance with this scheme, is intended for the use of Hindu boys in the middle and upper sections of the High Schools of India, and is designed to give them a general but correct idea of their national religion, such as may be filled in by fuller study in College and in later life, but will not need to be changed in any essential respect.
         It contains the fundamental ideas and doctrines which are generally received as orthodox, but does not entei* into the details as to which sectarian divisions have arisen. It is believed that while a sectarian parent or teacher will probably make additions to it, he will not find in it anything which he will wish positively to repudiate.
          While the book may be placed in the hands of the boys for their own study, it is intended to be simplified by the oral explanations of the teacher, and each chapter serves as an outline on which one or more lessons may be based.
     The shlokas given at the end of the chapters should be committed to memory by the boys.They will thus acquire a useful store of sacred authorities on their religion.
       The name of this series, 'Sanatan Dharma'  was chosen after full discussion, as best representing the idea of the fundamental truths presented.It has become somewhat of a sectarian name in some part* of India, but it is here taken only as meaning the eternal religion. 
         That this book may prove useful in laying a firm foundation of right thinking in the minds of Hindu youths, and may help in shaping them into pious, moral, loyal and useful citizens of their Motherland and of the Empire, is the prayer with which its compilers send it forth to the world.
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