रविवार, 17 नवंबर 2019

मनुष्य के दो अस्तित्व: शाश्वत-नश्वर विवेक !

 मनुष्य के दो अस्तित्व  
मनुष्य के दो अस्तित्व हैं, एक है इन्द्रियों-सहित जड़ शरीर और मन की समष्टि (body-mind complex) और दूसरा है 'शरीरी' (the Spirit) या आत्मा जो इसमें में चेतनता (animation -स्फुरण या जीवन्तता) प्रदान करता है।
मनुष्य जन्म से पहले और मृत्यु के बाद क्या है ? इस विषय को सरलता से समझने के लिए स्वामी विवेकानन्द मनुष्य को तीन प्रमुख अवयव~ 3'H ' की समष्टि या 'हैण्ड , हेड एंड हार्ट्' की समष्टि कहते थे। उनका मानना था कि इन तीनों के सामंजस्य पूर्ण विकास से ही कोई व्यक्ति यथार्थ मनुष्य [ 'आध्यात्मिक प्रज्ञा एवं वैज्ञानिक मेधा सम्पन्न' मनुष्य] बन सकता है।
5 कर्मेन्द्रिय (आँख, नाक, कान, जीभ और त्वचा) और 5 ज्ञानेन्द्रिय ( मस्तिष्क में अवस्थित रूप,रस, गंध, शब्द और स्पर्श आदि विषयों का अनुभव करने में सक्षम Sense Organs) से युक्त हमारा शरीर 'हैण्ड'  तथा मन 'हेड' दोनों (Body Mind complex) अपने आप में जड़ (inert -अगतिक या अक्रिय) हैं।  हमारा 3rd 'H' - the Self :  जो ब्रह्म (existence -consciousness-bliss) या चेतना (Witness Consciousness) का प्रतीक है, वही इन दोनों में -शरीर और मन में प्रतिबिम्बित चेतनता (reflected Consciousness) प्रदान करता है।  जिसके कारण शरीर और मन की समष्टि जो अपने आप में (inert या अक्रिय) जड़  या बेजान है, उसमें आनन्दपूर्ण सजीवता (animation-स्फुरणा ) का संचार होने लगता है। जिसके कारण यह शरीर और मन की समष्टि चेतन (जानदार) प्रतीत होती है। किन्तु  शरीर -मन का जन्म, विकास और क्षरण के बाद अन्त में यह शरीर मृत्यु के अधीन है इसलिए नश्वर है।
लेकिन मनुष्य के हृदय 'हर्ट ' में बैठकर इस जड़ शरीर (हैण्ड) और मन (हेड) को प्रतिबिंबित चेतनता  प्रदान करने वाला  'शरीरी' [ब्रह्म या आत्मा] शाश्वत और अविनाशी है, तथा अपरिवर्तनशील है। अतः मनुष्य का जो 3rd 'H' -the Self या  हार्ट् है, वह 'ब्रह्म '  का प्रतीक है, उसकी ज्योति से ही हैण्ड और हेड भी ज्योतिष्मान् (illumined) होते  हैं। इसलिए जगत-साक्षिणी माँ जगदम्बा (witness consciousness) का जो अविनाशी सर्वव्यापी विराट 'अहं' बोध, मनुष्य के नश्वर शरीर-मन या 'व्यष्टि अहं' में प्रतिबिंबित चेतनता (reflected consciousness) प्रदान करती है, उसको स्वामी जी 'हार्ट्' से इंगित करते थे।
[D Singh के मतानुसार जो 3rd 'H' -the Self या  हार्ट् है वह ब्रह्म का प्रतीक है, आचार्य-परम्परा में इस ज्ञान का अधिकाधिक विस्तार ही वह उपाय है, जिसके द्वारा वह आध्यात्मिक क्रांति सम्भव हो सकती जब बच्चा -बच्चा कह उठे ~ 'अहं ब्रह्मास्मि !']           
हिन्दी कविता में चन्द्रमा को सुन्दरता का प्रतीक माना जाता है। कहा जाता है कि चन्द्रमा 15 -15 दिन के हिसाब घटता और बढ़ता है। लेकिन ऐसा होता क्यों है? 
दरअसल, चन्द्रमा में खुद का कोई प्रकाश नहीं होता है, बल्कि वह सूर्य के प्रकाश से प्रकाशवान होता है।चन्द्रमा हमेशा पृथ्वी के चारों ओर परिक्रमा लगाते हुए अपनी धुरी पर चक्कर लगाते रहता है। जिस वजह से चन्द्रमा का एक भाग हमेशा पृथ्वी के सामने रहता है। 
क्योंकि चन्द्रमा स्वयं प्रकाशवान नहीं होता, इसलिये उसका जो भाग सूर्य के प्रकाश के सामने होता है, वो चमकता हुआ नज़र आता है। चन्द्रमा का बचा हुआ हिस्सा काले आकाश में दिखाई नहीं देता है। यही कारण है कि हमें चन्‍द्रमा का आकार घटता बढता दिखाई देता है। सच तो यह है कि चन्द्रमा कभी छोटा और बड़ा नहीं होता बल्कि यह हमें छोटा और बड़ा होता दिखाई देता है। पूरे चाँद को हम पूर्णिमा का चाँद कहते हैं और जब चाँद दिखाई नहीं देता तो अमावस्या का चाँद कहलाता है।
[सदियों से हम सभी जानते हैं कि हमारे पूर्वज चांद को देखकर समय का पता लगाते थे। चाँद के बदलते चेहरे को देखकर उस समय टाइम बताया जाता था।  क्या आप जानते हैं कि अमावस्या के दिन चाँद आसमान में होता है या नहीं? यदि होता है तो कहाँ पर हो सकता है? आप इसके बारे में सोचकर देखिए। चाँद का एक और आकार होता है जिसे हम अर्धचन्द्राकार चाँद (crescent moon-वर्धमान चन्द्रमा) कहते हैं। पूर्णिमा के बाद चमकदार सतह के दिखाई देने वाले हिस्से का आकार घटने लगता है। और अमावस्या के दिन चाँद का वो हिस्सा हमारे सामने होता है जिस पर सूर्य का प्रकाश नहीं पड़ रहा है।
दिन में तारे सूर्य के प्रकाश के कारण दिखाई नहीं देते। रात्रि में प्रकाश नहीं होने के कारण दिखाई देते। तारों को आंखों से देखते हैं तो आंंखों की रोशनी सीधी नहीं पहुंचती, क्योकि वायुमंडल में बादल, धूल कण, गैसों आदि के कारण। जिससे तारे झिलमिलाते दिखाई देते हैं।]

Indian Philosophy of Reincarnation Takes Humankind Towards Idea of Basic Morality: Justice RF Nariman : 
सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीश और एक प्रमुख धार्मिक विद्वान जस्टिस रोहिंटन फली नरीमन ने शनिवार, 16  नवम्बर 2019 को सातवें डॉ. एल.एम. सिंघवी मेमोरियल व्याख्यान में 'पुनर्जन्म : तुलनात्मक धार्मिक अवधारणा' ("Reincarnation: Comparative Religious Perspectives") विषय पर संबोधित करते हुए कहा कि, 'कर्म मॉडल' सब कुछ समझा देता है। (karma model tends to explain everything.) क्योंकि पुनर्जन्म और कर्म का सिद्धान्त  न्यूटन के तीसरे नियम की तरह काम करता है।  
उन्होंने प्रारब्ध कर्म ( passive karma) और क्रियमाण कर्म ( active karma) की व्याख्या करते हुए कहा कि - प्रारब्ध कर्म वह सब कार्य हैं, जो आपने पिछले जीवन में किया था।  जबकि क्रियमाण कर्म उन कार्यों को कहा जाता है, जिन्हें आप वर्तमान जीवन में क्या कर रहे हैं, और जो आपके जीवन में घटित होने वाली हर घटना का हिसाब रखता है।

उन्होंने विभिन्न धर्म ग्रन्थों का उल्लेख करते हुए कहा कि, यद्यपि जीवन, पत्नी, बच्चे और मृत्यु सभी पूर्वनिर्धारित हैंlife, wife, children and death are all predestined), तथापि कर्म का सिद्धान्त (karma model) वर्तमान जीवन में 'क्या और क्यों' घटित हो रहा है, इस बात को अच्छी तरह समझा देने की चेष्टा करता है। 


यह स्पष्ट है कि पृथ्वी पर बार -बार जन्म लेना, या पुनर्जन्म होते रहना (reincarnation on earth is a suffering) कष्टदायक है, किन्तु इसके लिए बहुत हद तक हमारी तीव्र भीग इच्छायें (कामिनी -कांचन में आसक्ति ) ही इसका -कारण हैं ! उन्होंने आगे कहा कि पुनर्जन्म का सिद्धान्त न केवल सुख-दुःख के कारणों की सही व्याख्या करता है, अपितु यह आपको वर्तमान जीवन में अपने कर्म को बेहतर बनाने के लिए एक नैतिक सीढ़ी ( moral ladder-नैतिक शिक्षा) भी प्रदान करता है।
 जस्टिस फली नरीमन ने कहा कि पुनर्जन्म का भारतीय दर्शन मनुष्य को नैतिकता की ओर ले जाता है। 'यह विचार कि यदि आप कुछ गलत करते हैं तो आपको सजा मिलेगी' ~यह सिद्धान्त सम्पूर्ण पृथ्वी के कल्याण पर आधारित है। पशुओं और पौधों के लिए कर्म का ऐसा कोई नियम नहीं है। मनुष्य के तौर पैदा होना सबसे अच्छा जीवन है। अर्थात मनुष्य योनि सर्वश्रेष्ठ योनि है, पशुओं और देवताओं से भी श्रेष्ठ जीवन है।' आचार्य शकंर तो 'त्रय दुर्लभं ' कहा है, अर्थात मनुष्य जीवन, कर्म-बंधन से मुक्त होने की इच्छा और किसी महापुष का आश्रय' प्राप्त होने का कारण केवल ईश्वर की कृपा कहा है।
[He also said that all the three indic religions — Jainism, Buddhism and Hinduism — talk about the idea of 'transmigration' (स्थानांतरगमन, देहान्तरण)  
and that the "karma model by and large tends to explain everything". He said there are three great faiths that permeate India talk about reincarnation.] 
उन्होंने कहा कि भारतीय मूल के तीनों ही महान धर्म हिंदू, जैन, और बौद्ध - पुनर्जन्म (transmigration) या आत्मा (3rd 'H') की अमरता की बात करते हैं। 
उन्होंने कहा कि जैन धर्म की बात करें तो भगवान महावीर ने 'जीव' के शाश्वत सत्ता को ध्यान में रखते हुए कहा है कि 'पुनर्जन्म' (जन्म-मृत्यु) एक चक्र (पहिया) है, जिसके माध्यम से आप देहान्तरण (transmigration) को प्राप्त होते हैं, और कर्म का अटल नियम वह संग्रहणालय -अध्यक्ष (curator) जो पहिये को घुमाता रहता है , या संरक्षित रखता है। बौद्ध मत की बात करें तो वह दो महत्वपूर्ण विचारों को हमारे समक्ष रखता है , एक तरफ वो कहता है कि जो 'वस्तु' देहान्तरण (what transmigrates) को प्राप्त होती है, वह मनुष्य का अनुवांशिक गुण (heredity) और उसका चरित्र (character) ही होता है। उन्होंने कहा कि बौद्ध मत में आत्मा की बात को स्वीकार नहीं किया गया है, लेकिन यह कहा गया है कि आप अभी इस जीवन में जो कर्म कर रहे हैं, वे कर्म ही आपके भविष्य को तय करते हैं। बुद्ध ने कहा कि आपके सभी कर्मों का- 'good vs bad' अच्छे बनाम बुरे सभी कर्मों का हिसाब रखा जाता है, यदि कर्म अच्छे हैं तो आपका भाग्य अच्छा होगा, आपके कर्मों के द्वारा ही आपका भाग्य तय होता है। 
उन्होंने कहा कि ऋग्वेद का पूरा जोर जीवन निर्माण ( creation of life) के ऊपर केन्द्रित है। गरुड़ पुराण में 'पिण्ड दान' की पद्धति का विचार रखा गया है, जो पुनर्जन्म के सिद्धान्त पर प्रकाश डालता है। न्यायमूर्ति नरीमन ने कहा कि हिन्दू धर्म के अनुसार, आपका अगला जन्म किस योनि में होगा -पशु, मनुष्य या देव योनि में होगा, उसका निर्धारण आपके वर्तमान जीवन के कर्मानुसार तय होता होता है।         
 [जैन धर्म के महानतम् 24वें तीर्थकार प्रभु महावीर स्वामी जी का जन्म चैत्र मास के शुक्ल पक्ष की त्रयोदशी के दिन हुआ था। उन्होंने अपने जीवन में पूरे समाज को हमेशा सत्य और अंहिसा का मार्ग दिखाया है।जैन मान्‍यताओं के अनुसार इस दिव्य आत्मा का जन्‍म बिहार के कुंडलपुर के राज परिवार में हुआ था जिनका बचपन का नाम ‘वर्धमान’ था। ऐसा कहा जाता है कि इन्होंने 30 साल की उम्र में घर छोड़ दिया और दीक्षा लेने के बाद 12 साल की बेहद कठिन तपस्या की और आध्यात्म को यानि स्वंय की खोज की व पूरी दुनिया को ज्ञान और वैराग्य व अहिंसा की शिक्षा दी। उन्होंने कहा है कि- हर जीवित प्राणी के प्रति दयाभाव ही अहिंसा है। घृणा से हम ना केवल अपना विनाश करते हैं बल्कि दूसरों के लिए भी कष्टकारी हो सकता है। उनके अनमोल वचनों में यह भी कहा गया है कि हम मनुष्यों के हमेशा दुखी होने की वजह खुद की गलतियां ही हैं, जो मनुष्य अपनी गलतियों पर नियंत्रण पा लेता है। वही मनुष्य सच्चे सुख की प्राप्ति कर सकता है। वो कहते हैं कि सब मनुष्यों की आत्मा अपने आप में सर्वज्ञ (परिपूर्ण) और आनंदमय है। आनंद को कभी बाहर से प्राप्त नहीं किया जा सकता।  उन्होंने हमेशा जियो और जीने दो का संदेश अपनाया। उन्होंने कहा प्रत्येक आत्मा स्वयं में सर्वज्ञ और आनंदमय है। आनंद बाहर से नहीं आता, वह हृदय में ही अन्तर्निहित है। खुद पर विजय प्राप्त करना लाखों शत्रुओं पर विजय पाने से बेहतर है। हर कोई सही दिशा में सर्वोच्च प्रयास कर के देवत्त्व प्राप्त कर सकता है। हर इंसान को उनके सत्य, अहिंसा, दया और प्रेम पर दिए गए उपदेशों से सीख लेनी चाहिए। ]  
उन्होंने कहा कि - In reincarnation you don’t remember anything of past life while in resurrection you remember everything you have done until judgement day."- अर्थात पुनर्जन्म (reincarnation) होने के बाद, हमें अपने पिछले जीवन की कुछ भी बातें याद नहीं रहती हैं, जबकि पुनरुत्थान (resurrection या निर्विकल्प समाधि से व्युत्थान होने) के बाद आपको वह सब (मुर्खतायें) याद रहती हैं, जिन्हें आपने 'Judgement Day' (कयामत का दिन - या डीहिप्नोटाइज्ड होने के क्षण ) तक किया था !  
{किन्तु अवतार वरिष्ठ भगवान श्री रामकृष्ण देव और माँ सारदा देवी को वह सब बातें (लीलायें)  याद थीं जो उन्होंने सीता-राम और राधा-कृष्ण अवतार में  किये थे !}       
[ resurrection- जैसे  ईसा मसीह का पुनरुत्थान, christ's resurrection, न्यू टेस्टामेन्ट (नया नियम) के अनुसार क्रूसिफ़िकेशन के बाद तीसरे दिन ईसा मसीह को पुनर्जीवन प्राप्त हुआ था। उसी प्रकार काशी के गंगा-जमुनी तहजीब की मान्यता के अनुसार बनारस के मुस्लिम जुलाहा के परिवार (निरु और नीमा के घर)  में जन्मे (?) या पले -बढे (?) सन्त कबीर के अनुयायी, तथा करतापुर गुरुद्वारा खुलने के बाद गुरु नानक के अनुयायी भी यह मानते हैं कि जब उनका शरीर मृत होने के बाद पुनरुज्जीवित हो उठा था। तब उनका फूल लेने के हिन्दू -मुसलमान परस्पर झगड़ने लगे। उसी प्रकार श्रीरामकृष्ण देव के शरीर त्याग के बाद गृहस्थ लोगों ने कांकुरगाँछि में और त्यागी सन्यासियों ने बेलुड़ मठ में 'आत्माराम की डिबिया' को रखा गया था। उसी प्रकार नवनीदा के शरीर त्याग के बाद उनके (नवनीदा के) आत्माराम की एक  डिबिया कोन्नगर में है, और दूसरी डिबिया D Singh के घर पर झुमरीतिलैया में है।   
गौरतलब यह है कि आर.एफ नरीमन सबरीमला और तीन तलाक जैसे अहम मसलों पर फैसला देने वाली संवैधानिक बेंच का हिस्सा रहे हैं। न्यायमूर्ति नरीमन, जो इतिहास, दर्शन, साहित्य और विज्ञान के एक उत्साही पाठक (avid reader) हैं, वे पहले बांद्रा एग्रिअरि ( पारसियों के मन्दिर Bandra Agiary) में पुजारी थे। सबरीमाला मामले में जो पुराना निर्णय था उस बेंच में चीफ जस्टिस के साथ जस्टिस आर.एफ. नरीमन, जस्टिस एएम खानविलकर, जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ और जस्टिस इंदु मल्होत्रा शामिल थे । ... अदालत ने कहा कि सबरीमाला में महिलाओं को गैर धार्मिक कारणों से प्रतिबंधित किया गया है,जो सदियों से जारी भेदभाव है। पितृसत्ता के नाम पर समानता के साथ खिलवाड़ करने की अनुमति नहीं दी जा सकती। संविधान पीठ में शामिल एकमात्र महिला जज जस्टिस इंदु मल्होत्रा का फैसला बाकी चार जजों के विपरीत था।] 
 सम्मानित श्रोता के रूप में सुप्रीम कोर्ट के वर्तमान और पूर्व न्यायाधीशों, वकीलों के आलावा पश्चिम बंगाल के पूर्व राज्यपाल गोपालकृष्ण गांधी और वरिष्ठ अधिवक्ता अभिषेक मनु सिंघवी भी मंच पर विराजमान थे। इस अवसर पर "द जर्नी ऑफ ए वाइज मैन: एलएम सिंघवी" नामक एक चित्रात्मक जीवनी का विमोचन भी उनके बेटे अभिषेक मनु सिंघवी द्वारा किया गया 

 [प्रख्यात वैज्ञानिक स्टीफन हॉकिंग की मौत के आसपास ही भारतीय विज्ञान कांग्रेस का आयोजन होता है, जिसके उद्घाटन सत्र में हमारे विज्ञान और प्रौद्योगिकी मंत्री डॉ. हर्षवर्धन, स्टीफन हॉकिंग को याद करते हुए कहते हैं, ‘हमने हाल ही में एक प्रख्यात वैज्ञानिक और ब्रह्मांड विज्ञानी स्टीफन हॉकिंग को खो दिया है जो मानते थे कि वेदों में निहित सूत्र अल्बर्ट आइंस्टीन के सापेक्षता सिद्धांत से बेहतर थे। ’ 
 हॉकिंग ने अपनी पूरी जिंदगी ब्रह्मांड को समझने और सवालों के उत्तर खोजने की कोशिश में लगा दिया, वो एक जन वैज्ञानिक और स्वप्नद्रष्टा थे जो अनंत ब्रह्मांड के गुणरहस्यों को हमें बहुत ही आम भाषा में समझाते थे। 
स्टीफन हॉकिंग 8 जनवरी 1942 में लंदन में पैदा हुए थे. जब वो 13 साल के थे तो आइंस्टाइन ने इस दुनिया से विदा लिया था और अपने पीछे हॉकिंग को छोड़ गए. हॉकिंग ने अपनी पूरी जिंदगी ब्रह्मांड को समझने और सवालों के उत्तर खोजने की कोशिश में लगा दिया, वो एक जन वैज्ञानिक और स्वप्नद्रष्टा थे जो अनंत ब्रह्मांड के गुणरहस्यों को हमें बहुत ही आम भाषा में समझाते थे। 
स्टीफन हॉकिंग के पहले ब्रह्मांड के बारे में इंसान का नजरिया कुछ और था लेकिन हॉकिंग के बाद आज मानव समाज ब्रह्मांड को ज्यादा बेहतर तरीके से समझता है। हॉकिंग की खोज से पहले हम समझते थे कि हम एक ब्रह्मांड में रहते हैं, लेकिन हॉकिंग ने बताया कि हम बहुब्रह्मांड में रहते हैं जोकि लगातार फैल रही है। वे इस नतीजे पर पहुंचे थे कि समय की शुरुआत बिग बैंग के साथ ही हुई थी और इसको बनाने में ईश्वर का कोई रोल नहीं है। 
लेकिन उनके रास्ते में रुकावटें भी कम नहीं थीं. 1962 में डॉक्टरों द्वारा उन्हें बताया गया कि वो एक ऐसे लाइलाज बीमारी से पीड़ित हैं जिसमें उनका शरीर धीरे-धीरे काम करना बंद कर देगा और उनकी जिंदगी महज कुछ वर्षों की ही बची है. इसके बावजूद भी हॉकिंग ने किसी भी कमजोरी को अपने पर हावी नहीं होने दिया और वे इन तमाम रुकावटों को मात देते हुए 76 साल तक जीवित रहे.
हालांकि बीमारी के बाद आने वाले कई सालों तक वे व्हीलचेयर पर सीमित हो कर रह गए थे जहां वे ना कुछ सुन सकते थे, ना बोल सकते थे और ना ही अपने हाथ-पैरों को हरकत दे सकते थे, लेकिन इन सबके बावजूद उनका दिमाग अनंत ब्रह्मांड की सैर करता था वे अपने दाएं गाल को थोड़ा सा हिला कर लोगों को ब्रह्मांड की सैर करा देते थे. हमारे बीच वे एकलौते इंसान थे जो अपनी पलकों से बोलते थे और पूरी दुनिया उन्हें सुनती थी.
स्टीफन हॉकिंग को उनके जीवटता के लिए भी याद किया जाएगा उन्होंने दुनियाभर के मायूस लोगों में विश्वास पैदा करने काम किया है. अपने एक भाषण में उन्होंने कहा था कि ‘अगर मैं अपनी इस शारीरिक असमर्थता के बावजूद कामयाब हो सकता हूं, मेडिकल साइंस को शिकस्त दे सकता हूं, मौत का रास्ता रोक सकता हूं तो आप लोग जिनके सारे अंग सलामत हैं, जो चल सकते हैं, दोनों हाथों से काम कर सकते हैं, खा-पी सकते हैं, हंस सकते हैं और अपने तमाम विचारों को दूसरे लोगों तक पंहुचा सकते हैं भला वो मायूस क्यों हैं ?’
पिछले सदियों में विज्ञान पर चर्च का बड़ा दबाव रहा है, एक जमाने तक चर्च ताकत के बल पर यह मनवाता रहा कि पृथ्वी ही केंद्र में है और बाकी के ग्रह इसके इर्द-गिर्द घूमते हैं।  लेकिन जब गैलीलियो ने कहा कि पृथ्वी समेत सभी ग्रह सूर्य की परिक्रमा करते है तो चर्च ने इसे ईश्वरीय मान्यताओं से छेड़छाड़ माना और अपने इस ‘जुर्म’ के लिये गैलीलियो को सारी उम्र जेल में बितानी पड़ी. धार्मिक पुस्तकें और मान्यताओं का संबंध आध्यात्म से होता है और उन्हें इसी रूप में ही ग्रहण करना चाहिए। 
गैलीलियो से लेकर हॉकिंग तक ने अपनी खोजों से दुनिया से अज्ञानता के अंधेरे को दूर करने का काम किया है वरना हम तो अभी तक यही मानते रहते कि पृथ्वी चपटी है, स्थिर है और ब्रह्मांड के केंद्र में है जिसकी सूरज परिक्रमा करता है, सूरज एक झरने में डूब जाता है और फिर सुबह वहीं से निकल आता है, चंद्रमा की अपनी रोशनी है, सात आसमान हैं और बादलों में पानी आसमान से इकट्ठा होता है.
[हमारा देश महान इसीलिए है क्योंकि भारत भूमि पर अनेकों दिव्य आत्माओं ने (मानवजाति के मार्गदर्शक नेताओं ने) जन्म लिया और चहुँओर प्रेम और शांति का ही संदेश दिया। हम सब को अपने पूर्वजों के प्रति श्रद्धावान होना चाहिए तभी हम हमारी अनमोल विरासत भारतीय संस्कृति की रक्षा कर सकेगें।] 
जीवन के दोनों क्षेत्र (भौतिक और आध्यात्मिक) में सफलता प्राप्त करने के लिए हमें हमारे दोनों अस्तित्व - शरीर और शरीरी -  का सामंजस्यपूर्ण  विकास करने की शिक्षा या मार्गदर्शन किसी " गुरु-शिष्य वेदान्त शिक्षक  -प्रशिक्षण परम्परा"  में प्रशिक्षित योग्य शिक्षक/गुरु (नेता ) से प्राप्त करना आवश्यक है।  इसके लिए , अगर हम इतिहास के पन्नों पर नजर दौड़ायें तो हमें अपने उपनिषदों, धार्मिक ग्रंथों और कहानियों में कई जगह पर ' आर्थिक रूप से सम्पन्न और आध्यात्मिक दृष्टि से जागृत ' मनुष्य बनने और बनाने (3'H' का संतुलित विकास करनेका प्रशिक्षण देने में समर्थ भारतीय आध्यात्मिक संस्कृति और श्रुति परम्परा के प्रचारक/ राजर्षि  की भूमिका, उनकी महत्ता  और उनके पूरे स्वरूप के दर्शन हो जाएंगे।
 सांख्य दर्शन में, संसार (प्रकृति) के सभी गुणों की पहचान तीन मूल गुण  (शक्ति) सत् , रजस् और तमस्  के रूप में की गई है। जड़ता (Inertia-अक्रियता ) को तमस,  सक्रियता ( Activity) को रजस, और  पारगमन या  त्रिगुणातीत (Transcendence) अवस्था को सत्व कहा गया है। तीन शक्तियों में से तमस -निम्नतम शक्ति है- आकर्षण-शक्ति स्वरुप। ... तथा आकर्षण और विकर्षण में संतुलन स्वरुप शक्ति का नाम सत्व-शक्ति है। 
 [All the qualities of the world have been identified as three basic gunas, tamas, rajas, and sattva. Inertia is called tamas. Activity is called rajas. Transcendence is called sattva.- श्रीश्री रामकृष्ण महिमा : अक्षय कुमार सेन :ब्लॉग शनिवार, 7 जुलाई 2018/ जैसे अक्रिय गैस (Inert gas) उन गैसों को कहते हैं जो केमिकल रिएक्शन  में भाग नहीं लेतीं और सदा मुक्त अवस्था में प्राप्य हैं। जैसे  हीलियम, निऑन, आदि।  गहरे समुद्र में गोता लगाने वाले साँस लेने के लिए वायु के स्थान पर हीलियम और आक्सीजन का मिश्रण काम में लाते हैं।  मेटलर्जी में जहाँ अक्रिय वायुमंडल की आवश्यकता होती है, हीलियम का प्रयोग किया जाता है।]
 तीनों गुणों में से प्रत्येक की अपनी विशिष्ट विशेषताएं हैं और यह माना जाता है कि दृष्टिगोचर जगत का सब कुछ इन तीनों से बना है। प्रकृति के तीनों गुणों की वृत्तियाँ बदलने वाली हैं और इनके परिवर्तन को जानने वाले पुरुष में कभी कोई परिवर्तन नहीं होता।  इन तीनों गुणों (शक्तियों) के कारण विभिन्न व्यक्तियों में दिव्यता की अभिव्यक्ति में भी तारतम्य होता है और ये गुण नित्य, अनन्तस्वरूप आत्मा को मानो अनित्य और परिच्छिन्न बना देते हैं। तीनों गुणों की वृत्तियाँ दृश्य हैं और पुरुष इनको देखने वाला होने से द्रष्टा है। द्रष्टा दृश्य से सर्वथा भिन्न होता है -- यह नियम है।  भूल यह होती है कि दृश्य को अपने में आरोपित करके वह मैं कामी हूँ, मैं क्रोधी हूँ आदि मान लेता है। 
प्रकृति और पुरुष -- दोनों विजातीय हैं। तमस् गुण के प्रधान होने पर व्यक्ति को सत्य-असत्य का कुछ पता नहीं चलता, यानि वो अज्ञान के अंधकार (तम) में रहता है। यानि कौन सी बात उसके लिए अच्छी है वा कौन सी बुरी ये यथार्थ पता नहीं चलता और इस स्वभाव के व्यक्ति को ये जानने की जिज्ञासा भी नहीं होती।
गीता 14.8 में भगवान कहते हैं - तमः तु अज्ञानजम् विद्धि  मोहनम्  सर्वदेहिनाम् ! --हे भरतवंशी अर्जुन, सम्पूर्ण देहधारियों को (embodied beings) मोहित करने वाले (deluding) तमो गुण (inertia) को तुम अज्ञानसे उत्पन्न (born of ignorance) होने वाला समझो। वह प्रमाद, आलस्य और निद्रा के द्वारा देहधारियों  को  बाँधता है।
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