शुक्रवार, 19 अगस्त 2011

' भ्रष्टाचार रूपी कैंसर की कीमोथेरेपी '( सम्पादकीय -७ )

एक यूथ-ब्रिगेड (युवा-व्यूह) का निर्माण ! "-एपीजे अब्दुल कलाम


गोचर-भ्रष्टाचार के स्तर  को दर्शाने वाले ट्रांसपेरेंसी इंटरनेशनल ( Transparency International ) के  विगत वर्ष के वार्षिक रिपोर्ट के अनुसार भारत का स्तर ८४ से गिर कर ८७ हो गया है. लोकसभा के एक भूतपूर्व स्पीकर (अध्यक्ष) ने हाल में ही टिप्पणी करते हुए कहा था, 
" भारत एक भ्रष्ट-लोगों के देश के रूप में परिवर्तित हो रहा है, एवम् आजकल देश के बारे लोगों की धारणा इतने निम्न स्तर तक गिर चुकी है कि, अब प्रत्येक व्यक्ति को ही संदेह की दृष्टि से देखा जा रहा है, ....आज के समय की माँग है ' वास्तविक  शिक्षा ' -  जो केवलटैलेंटेड( प्रतिभावान ) लोगों का ही उत्पादन न करती हो, बल्कि उसीके साथ साथ चरित्रवान मनुष्यों का भी निर्माण करने में भी समर्थ हो ! "
क्या सचमुच हमारा देश व्यापक स्तर पर भ्रष्टाचार के नयी उँचाइयों पर नहीं जा पहुँचा है ? भ्रष्टाचार में शामिल धन का परिमाण तो दिन दूना रात चौगुना बढ़ता ही जा रहा है. आज से लगभग २० वर्ष पहले एक घोटाला हुआ था, जिसने पहले पार्लियामेंट को हिला कर रख दिया था, बाद में पूरे देश में भूचाल पैदा कर दिया था, उसमें केवल ६४ करोड़ रुपये की राशि शामिल थी. 
अभी कॉमन वेल्थ गेम्स के आयोजकों पर आरोप है कि उन्होने ७० हज़ार करोड़ रुपये चुरा लिए हैं. केंद्रीय सरकार के एक जाँच एजेन्सी के अनुसार कहा गया है कि 2 G स्पेक्ट्रम घोटाले में सरकारी राजकोष को १७६ हज़ार करोड़ की राशि का नुकसान हुआ है. अब कहा जा रहा है कि S- बैण्ड घोटाला इससे भी बड़ा हो सकता है; एवं  इससे भी महत्वपूर्ण बात यह है कि इसमें ह्मारे प्रसिद्ध इंडियन स्पेस रिसर्च ऑर्गनाईजेसन का नाम जुड़ा हुआ है. 
केवल घोटालों की राशि का बड़ा होता जाना ही ज़्यादा महत्वपूर्ण न्हीं है. हमारी सुरक्षा सेना जिसे कभी बिल्कुल साफ-सुथरा माना जाता था, वहाँ भी बड़े पैमाने पर फैले भ्रष्टाचार को देख कर यह स्पष्ट हो जाता है कि सरकारी प्रशासन तन्त्र का कोई भी विभाग इसका अपवाद नहीं है.
       ह्मलोग इतने नीचे गिर चुके हैं कि, हमारे जो सैनिक कारगिल में लड़ते हुए वीरगति को प्राप्त हुए थे, उन कारगिल के शहीदों के शवों के लिए एक विदेशी कंपनी से ऊँचे दाम चूका कर घटिया ताबूत खरीदा गया.
 सत्येन्द्र दूबे नाम का IIT का भूतपूर्व छात्र ने, जब  चतुर्भुज सड़क योजना में व्याप्त भ्रष्टाचार को उधेड़ने का प्रयास किया तो, २००३ ई० में केवल ३० वर्ष की उम्र में उसकी हत्या कर दी गयी. 
एक अन्य ईमानदार नवयुवक सांमुगम मंजुनाथ को, जो IIM लखनउ, का छात्र था और जो तेल माफ़िया के साथ पूरे जोश के साथ लड़ने का प्रयास कर रहा था, तो इसके केवल २ वर्ष बाद उसकी भी हत्या कर दी गयी थी. अभी हाल में ही एक एडीशनल कलक्टर को महाराष्ट्र में मनमॅड में जिन्दा जला दिया गया, उसने भी तेल माफ़िया पर शिकनजा कसने का प्रयास किया था.
  आमतौर से जैसा कहा जाता है, महाराष्ट्र के पुलिस प्रमुख कहते हैं, इसकी जाँच चल रही है और दोषी को कभी बकसा नहीं जायेगा. अवैध ढंग से माईनिंग करने का विरोध करने वाले कितने ही सक्रीय कर्मियों को मार डाला गया. असहाय गरीब ग्रामीणों को अपनी आजीविका चलाने के लिए माफियाओं के लिए कार्य करना पड़ता है. चाहे यह कर्णाटक, गुजरात या हरियाणा की बात हो, अब अपनी जान जाने के भय से भ्रष्टाचारियों- माफियाओं से टकराने का साहस अब शायद ही कोई व्यक्ति कर पाता है.
  दुर्भाग्यवश हमारा लोकतंत्र व्यापक तौर पर इन्हीं गैर-क़ानूनी धंधों से प्राप्त काले-धन के बल पर फलफूल रहा है. उसी प्रकार काला धन भी विदेशी बैकों में जमा हो रहा है.
यूरोपियन प्रशासक वर्ग अब कहीं जाकर बहुत अनिच्छापूर्वक उन टैक्स-चोरों के बारे में, जिन्हों ने भारत के भूखे-नंगों के अरबों खरबों रुपये चुरा कर उनके बैंकों में छुप रखे हैं; की जानकारी देने को तैयार तो हुआ है; पर उनकी भी एक शर्त है- इस तरह की जानकारियों को सार्वजनिक नहीं करना होगा !
इस सब से बचा जा सकता था, किंतु राजनीतिज्ञ- नौकर-शाह- व्यापारी का गठबन्धन पूरी व्यवस्था के बहुत भीतर तक अपनी जड़ों को मजबुत कर चुका है. भारत के पूर्व राष्ट्रपति डाक्टर ए.पी. जे. अब्दुल कलाम ने हाल में ही वर्तमान परिस्थितियों का गहराई से अवलोकन करने के बाद कहा था- 
" राजनीतिज्ञ-नौकरशाही- न्यायलय व्यवस्था को भ्रष्टाचार-रूपी कैंसर पूरी तरह से निगल लेने की चेष्टा कर रहा है, जो हमारे विकास के लिए बहुत नुकसान दायक है. निःसन्देह इस संकट की घड़ी में देश को केमोथेरेपी देने की आवश्यकता है.' 
    वे आगे कहते हैं- ' समाज के हर वर्ग का प्रतिन्धित्व करने वाले- चाहे युवा, वरिष्ठ नागरिक, सभ्य-समाज के नेता, मनीषी, राजनीतिग्य, वरिष्ठ प्रबन्धकर्ता, या न्यायपालिका से ही क्यों न आते हों- जिस किसी से भी मैं मिला हूँ, उन सबों में गिरते हुए लोकतन्त्रिक मूल्यों एवम् विकृत होती हुई व्यवस्था, जो कि दिन प्रतिदिन बढ़ती ही जाती है,  को देख कर तीव्रव्यथा, निराशा, और चिन्ता व्याप्त हो गयी है. लिहाजा असाधारण सुधार के लिए अब अविलम्ब रोग-निवारक कार्यवाही 
( कीमो-थेरेपी )  करने की आवश्यकता है.'
' यदि इस स्थिति (सर्वव्यापी भ्रष्टाचार) को प्रचलित रहने दिया गया या जारी रखने की अनुमति दी गयी, तो अब ह्म जनता को  और अधिक दिनों तक- सड़कों पर निकल आने से नहीं रोक सकते; एवम् इसके फ़्लस्वरूप  ऐसा वीनाशकारी तरंगें उठेंगी जिसे देश इस क्षण बर्दास्त नहीं कर सकेगा, जबकी भारत एक विकसित देश बन जाने के लिए बिल्कुल तैयारखड़ा है.
      भारतवर्ष के प्रत्येक क्षेत्र के शीर्ष-नेतृत्व को, बिना इस बात का विचार किये कि - उसका व्यवसाय क्या है, या वह किस राजनितिक दल से जुड़ा हुआ है;  अब देश को, इसके विकास को,  एवम् इसके गौरव को अपने निजी-स्वार्थ एवं व्यक्तिवाद के ऊपर रखना ही होगा.' 
  ' क्योंकि राष्ट्र-भक्त जनसमूह, निष्पाप अवगुण रहित साफ-सुथरा जीवन् जीने वाले नेता, अपने देश को विकसित-देश के रूप में देखने की महतवकांक्षा और उत्साह से सुलगते हुए युवा, अब इस स्थिति को चुप-चाप देखते नहीं रह सकते.
इस लोकतंत्र एवं शासन-प्रणाली को पुनः पटरी पर लाने के लिए, हम सबों को  एकसाथ मिल कर, संघ-बद्ध प्रयास के द्वारा देश को उन्नति की ओर बढ़ने का मार्ग दिखलाना होगा.' 
 डाक्टर कलाम-साहब इस भ्रष्टाचार रूपी कैंसर से रोगमुक्त करने वाली विशेष कीमोथेरेपी की औषधि बताते हुए कहते हैं-
" I propose a youth brigade as the solution.
' I can do it, We can do it, India will do it '- should be the spirit."  
-अर्थात 
" मैं आपके समक्ष एक यूथ-ब्रिगेड (युवा-व्यूह) का निर्माण ! "
 को भ्रष्टाचार रूपी कैंसर से मुक्त होने की दवा के रूप में पेश करता हूँ.एवं इस युवा-ब्रिगेड से जुड़े लोगों के मन में संकल्प रहना चाहिए-' मैं यह कर सकता हूँ. ह्मसब यह कर सकते हैं. भारतवर्ष इसे पूरा कर दिखाएगा.'   
 इसी सिलसिले में वे ( डाक्टर अब्दुल  कलाम )अन्यत्र कहते हैं- " भारतवर्ष को २०२० ई० तक अगर भ्रष्टाचार-मुक्त देश बना कर इसे एक विकसित राष्ट्र में रूपांतरित कर देना है, तो केवल एक सशक्त युवा-आन्दोलन ही संपूर्ण देश से भ्रष्टाचार को जड़ से उखाड़ देने में सक्षम हो सकता है. ह्मलोग एक अरब की जनसंख्या का देश हैं, जिसमें कम से कम २० करोड़ घर हैं.
एवम् जैसा एक प्रसिद्ध कहावत है- ' Corruption begins at home.' - ' भ्रष्टाचार की शुरुआत घर से ही होती है.' और अनुमानित तौर पर लगभग ६० मिलियन ( या ६ करोड़ ) घर ऐसे हैं, जहाँ भ्रष्टाचार पहुँच चुका है, और प्रत्येक विद्यार्थी का यह कर्तव्य है कि पहले वह अपने घर से भ्रष्टाचार को रोकने में जुट जाए.'  
-                         जिस किसी विद्यार्थी के ' पापाजी ' ( पिता ) या कोई अन्य रिश्तेदार अपने अपने क्षेत्र के शीर्ष-नेतृत्व के पद पर रहते हुए भी भ्रष्टाचार से अर्जित किये लाखों-करोड़ों रूपये घर लाते हों,  तो उस देशभक्त विद्यार्थी को भी, कठोपनिषद के छोटे से बालक नचिकेता के सामान श्रद्धावान होकर, अपने पिता के भ्रष्टाचार करने से रोकने का प्रयत्न करना चाहिए.
           वह कहानी इस प्रकार है- " वाजश्रवस उद्दालक ऋषि ने स्वर्ग-प्राप्ति की कामना से विश्वजीत नामक एक महान यज्ञ  किया. इस यज्ञ में सर्वस्व दान करना पड़ता है. उस समय गो-धन ही प्रधान धन था और
और वाजश्रवस उद्दलक के घर में इस धन की प्रचुरता थी.
नियमानुसार जब दक्षिणा के रूप में देने के लिए जब गौएँ लायी जा रही थीं, उस समय बालक नचिकेता उन गौओं को देख लिया. उनकी दयनीय दशा देखते ही उसके निर्मल अंतःकरण में श्रद्धा- आस्तिकता ने प्रवेश किया और सोचने लगा- पिताजी ये कैसी गौएँ दक्षिणा में दे रहे हैं !..इनके मुख में घास चबाने के लिये न दाँत ही रह गये हैं और न इनके स्तनों में तनिक-सा दूध ही बचा है
 ...दान तो उसी वस्तु का करना चाहिए जो अपने को सुख देनेवाली हो, प्रिय हो और उपयोगी हो तथा वह जिनको दी जाय, उन्हें भी सुख और लाभ पहुँचानेवाली हो...इस प्रकार के दान से दाताको वे नीच योनियाँ और नरकादि लोक मिलते हैं, जिसमें सुख का नामोनिशान नहीं है. पिताजी (नचिकेता के पपाजी ) इस दान से क्या स्वर्ग का सुख पाएँगे ?
  पर मैं इनका प्यारा पुत्र हूँ, अतएव मैं पापाजी को इसके अनिष्टकारी परिणाम से बचाने के लिये अपना बलिदान कर दूँगा. यही मेरा धर्म है.धर्मभीरु और पुत्र का कर्तव्य जानने वाले नचिकेता से नहीं रहा गया. उसने जब तीसरी बार अपने पिता से कहा - ' पिताजी ! मैं भी तो आपका धन हूँ, आप मुझे किसको देते हैं ? अब ऋषि को क्रोध आ गया और उन्होंने आवेश में आकर कहा-' तुझे देता हूँ मृत्यु को ! '  
  विद्यार्थियों की तीन श्रेणियाँ होती हैं- उत्तम, मध्यम और अधम. जो गुरु या नेता का मनोरथ समझकर उनकी आज्ञा की प्रतीक्षा किए बिना ही उनकी रूचि के अनुसार कार्य करने लगते हैं, वे उत्तम हैं. जो आज्ञा पाने पर कार्य करते हैं, वे मध्यम हैं ; और जो मनोरथ जान लेने के और स्पष्ट आदेश सुन लेने पर भी तदनुसार कार्य नहीं करते, वे अधम हैं.
      अपने पिता के गुरुकुल में वे भी पढ़ते थे. उनके भीतर श्रद्धा जाग उठी और वे विचार करने लगे.... अपने सभी सहपाठियों में बहुत से तो प्रथम श्रेणी का हूँ; बहुत से विद्यार्थियों से मध्यम श्रेणी का भी हूँ, परंतु अधम श्रेणी का मनुष्य तो हूँ ही नहीं. आज्ञा मिले और और सेवा न करूँ, ऐसा तो मैंने कभी किया ही नहीं. अपने पिता से कहते है- ' आप शोक का त्याग कीजिये और अपने वचन का पालन कर मुझे मृत्यु (यमराज ) के पास जाने की अनुमति दीजिए. नचिकेता यम के यहाँ पहुँच कर, उनसे जो बातचीत करते हैं, उसका पूरा विवरण -' कठोपनिषद ' मे दिया गया है.
  भारत को आज नचिकेता जैसे चरित्रवान युवाओं, नैतिक रूप से प्रशिक्षित युवाओं की आवश्यकता है. ऐसे युवा ही अपने घरों में भी चरित्र और सौहार्द-पूर्ण सम्बन्ध के सौंदर्य को प्रतिष्ठित करा सकते हैं. ह्मलोग निश्चित रूप से एक भ्रष्टाचार मुक्त भारत का निर्माण करना चाहते हैं, किन्तु ह्में यह भी स्मरण रहना चाहिए कि भ्रष्टाचार का प्रारंभ घर से ही होता है.  यदि विद्यार्थी लोग यह निश्चय कर लें कि उनका परिवार तो भ्रष्टाचार मुक्त होकर ही रहेगा, तो भारतवर्ष को इस कैंसर की व्याधि से बहुत हद तक मुक्ति मिल जाएगी. '   
 विगत ४४ वर्षों से महामण्डल वास्तव में इसी नैतिक शिक्षा में युवाओं को प्रशिक्षित करने का प्रयत्न करता आ रहा है. जबकी डाक्टर कलाम उचित खेद व्यक्त करते हैं- ' We should be proud of our role models, but unfortunately, we don't have such role models. '
- अर्थात ' ह्में अपने अनुकरणीय-आदर्श व्यक्ति पर गर्व करना चाहिए, किन्तु दुर्भाग्यवश अभी हमारे सामने वैसा कोई राष्ट्रीय तौर पर मान्य अनुकरणीय व्यक्तिव दिखाई नहीं देता है. '
  किन्तु भारत के सौभाग्य से, देश के एक ऐसा सर्वमान्य अनुकरणीय व्यक्तित्व हैं, यूवा आदर्श! भारत का आधुनिक युवा भी एक अनुकारिणिय आश्चर्यजनक यूवा-आदर्श या ' वंडरफुल रोल-मॉडेल ' के रूप में स्वामी विवेकानंद को अपना नेता मान सकता है.जिनकी ' आत्मा ' समय की सीमा को लाँघ कर आज भी पहले की अपेक्षा अधिक सतत बढ़ते हुए जोश एवम् पौरुष के साथ कार्यरत है. 
 आज से १०० वर्ष पूर्व ही उन्होंने अपनी ऋषि-दृष्टि से भारत की वास्तविक आवश्यकता को देख लिया था, तथा विशेष तौर से  भारतवर्ष के युवाओं  से अनुरोध करते हुए कहा था- ' अन्य बड़ी बड़ी योजनाओं को आरंभ करने के पहले ' Man-making, Character building Education ' को भारत के गाँव-गाँव तक एक युवा-आंदोलन के रूप में फैला दो. ' उन्होंने कहा था-
' And, therefore, make men first ' he advised again and again. Let us listen his advice given us, specially - the youth of India.   

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