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गुरुवार, 1 सितंबर 2022

🙏卐 परिच्छेद ~109 , [( 7 मार्च 1885 ) श्रीरामकृष्ण वचनामृत-109 ] 🙏राखाल की असाधारण अवस्था -नींद, जागृत अवस्था से भिन्न 'समाधि' अवस्था🙏🙏卐 'ज्ञान -अज्ञान' के परे होकर 'ज्ञान और कर्म 'दोनों ओर सम्भालने का उपदेश🙏卐 🙏卐श्रीरामकृष्ण कामिनी कांचन-त्यागी (संन्यासी) खोज रहे हैं !🙏卐 [श्रीरामकृष्ण ऐसा गृहस्थ खोज रहे हैं जिसने धन और वासना में आसक्ति का त्याग कर दिया हो।] [কামিনী কাঞ্চন-ত্যাগীকে খুঁজছেন শ্রীরামকৃষ্ণ!] [Sri Ramakrishna is looking for a householder who has given up attachment to money and lust.] 🙏卐जो किसी अवतार को एक बार भी प्रणाम करता है, उसे मोक्ष की प्राप्ति होती है।🙏卐🙏पाश्चत्य सभ्यता या औद्योगिक सभ्यता का भारतीय संस्कृति पर दुष्प्रभाव🙏 🙏卐 आह्निक जप ^ और गंगा स्नान के समय सांसारिक बातें🙏卐 🙏नेता के प्रति स्वतःस्फूर्त भक्ति और तर्क आधार पर भक्ति🙏卐🙏ब्रह्मज्ञान के बाद भागवत पण्डित को लोकशिक्षा के लिए माँ पुनः शरीर में रख देती हैं 🙏 🙏卐गुरुगृह वास का तीसरा दिन- ब्रह्मज्ञानी की अवस्था और जीवनमुक्त 🙏卐🙏卐शुद्ध आत्मा में विद्या और अविद्या दोनों है किन्तु वह उनसे निर्लिप्त है🙏🙏गुरु-शिष्य परम्परा में समाधि जन्य ब्रह्मज्ञान और ईसा के इल्हाम का अन्तर🙏 🙏卐 सिंह-शावक का अज्ञान और भ्रम गुरुदेव की पदसेवा करने से दूर हो जाता है🙏卐 🙏卐 सच्चिदानन्द को हर युग में अवतार लेकर शक्ति की पूजा करनी पड़ती है🙏卐 🙏शेर (CINC) की मांद में जाने वालों के पदचिन्ह मिलते हैं लौटने वालों के नहीं- क्यों ?🙏 🙏किशोर विवेक -वाहिनी का पाठचक्र 🙏🙏विशालाक्षी नदी का भँवर-'धन और वासना (कामिनी)' से 'साधु सावधान'🙏🙏केवल भगवान के लिए गुरु-वाक्य (पासवर्ड) का उल्लंघन🙏

परिच्छेद -१०९

 (१)

*भक्तों के प्रति उपदेश*

[राखाल, भवनाथ, नरेन्द्र, बाबूराम]

श्रीरामकृष्ण भक्तों के साथ आनन्दपूर्वक बैठे हुए हैं । बाबूराम, छोटे नरेन्द्र, पल्टू, हरिपद, मोहिनीमोहन आदि भक्त जमीन पर बैठे हुए हैं । एक ब्राह्मण युवक दो-तीन दिन से श्रीरामकृष्ण के पास हैं, वे भी बैठे हुए हैं । आज शनिवार है, ७ मार्च १८८५ दिन के तीन बजे का समय होगा । चैत की कृष्णा सप्तमी है ।

শ্রীরামকৃষ্ণ ভক্তসঙ্গে আনন্দে বসিয়া আছেন। বাবুরাম, ছোট নরেন, পল্টু, হরিপদ, মোহিনীমোহন ইত্যাদি ভক্তেরা মেঝেতে বসিয়া আছেন। একটি ব্রাহ্মণ যুবক দুই-তিনদিন ঠাকুরের কাছে আছেন। তিনিও বসিয়া আছেন। আজ শনিবার, ২৫শে ফাল্গুন, ৭ই মার্চ, ১৮৮৫, বেলা আন্দাজ তিনটা। চৈত্র কৃষ্ণা সপ্তমী।

At three o'clock in the afternoon Sri Ramakrishna was in his room at Dakshineswar conversing happily with his devotees. Baburam, the younger Naren, Paltu, Haripada, Mohinimohan, and others were. present. A young brahmin who had been staying with the Master a few days was also there.

श्रीमाताजी* भी आजकल नौबतखाने में रहती हैं । श्रीरामकृष्ण की सेवा के लिए वे कभी कभी यहाँ आया करती हैं । मोहिनीमोहन के साथ उनकी स्त्री और नवीनबाबू की माँ, गाड़ी पर आयी हुई हैं। (*श्री सारदादेवी – श्रीरामकृष्ण की लीलासहधर्मिणीऔरतें नौबतखाने में श्रीरामकृष्ण के दर्शन कर वहीं पर रह गयीं । भक्तों के जरा हट जाने पर वे आकर श्रीरामकृष्ण को प्रणाम करेंगी । श्रीरामकृष्ण छोटे तखत पर बैठे हुए भक्त बालकों को देख रहे हैं और आनन्द में मग्न हो रहे हैं ।

শ্রীশ্রীমা নহবতে আজকাল আছেন। তিনি মাঝে মাঝে ঠাকুরবাড়িতে আসিয়া থাকেন — শ্রীরামকৃষ্ণের সেবার জন্য। মোহিনীমোহনের সঙ্গে স্ত্রী, নবীনবাবুর মা, গাড়ি করিয়া আসিয়াছেন। মেয়েরা নহবতে গিয়া শ্রীশ্রীমাকে দর্শন ও প্রণাম করিয়া সেইখানেই আছেন। ভক্তেরা একটু সরিয়া গেলে ঠাকুরকে আসিয়া প্রণাম করিবেন। ঠাকুর ছোট খাটটিতে বসিয়া আছেন। ছোকরা ভক্তদের দেখিতেছেন ও আনন্দে বিভোর হইতেছেন।

The Holy Mother, Sri Ramakrishna's wife, was living in the nahabat. Occasionally she would come to Sri Ramakrishna's room to attend to his needs. Mohinimohan had brought his wife and Nabin's mother with him to the temple garden from Calcutta. The ladies were with the Holy Mother; they were waiting for an opportunity to visit the Master when the men devotees would leave the room. 

[( 7 मार्च 1885 ) श्रीरामकृष्ण वचनामृत-109 ]

🙏राखाल की असाधारण अवस्था -नींद, जागृत अवस्था से भिन्न 'समाधि' अवस्था🙏

[রাখালের অসাধারণ অবস্থা- 'সমাধি' অবস্থা ঘুম ও জাগ্রত অবস্থা থেকে আলাদা।]

[Rakhal's extraordinary state -  'samadhi' state 

is different from the sleep and awake state. ] 

राखाल इस समय दक्षिणेश्वर में नहीं रहते । कुछ महीने बलराम के साथ वृन्दावन में थे; वहाँ से लौटकर इस समय घर पर रहते हैं ।

রাখাল এখন দক্ষিণেশ্বরে থাকেন না। কয় মাস বলরামের সহিত বৃন্দাবনে ছিলেন। ফিরিয়া আসিয়া এখন বাটীতে আছেন।

Sri Ramakrishna was sitting on the small couch. As he looked at the young devotees his Face beamed with joy. Rakhal was not then living at Dakshineswar with the Master. Since his return from Vrindavan he had been living at home.

श्रीरामकृष्ण (सहास्य) - राखाल इस समय पेन्शन ले रहा है । वृन्दावन से लौटकर घर पर रहता है। घर में उसकी स्त्री है । परन्तु उसने कहा है, 'हजार रुपया तनख्वाह देने पर भी नौकरी न करूंगा ।’

শ্রীরামকৃষ্ণ (সহাস্যে) — রাখাল এখন পেনশান খাচ্ছে। বৃন্দাবন থেকে এসে এখন বাড়িতে থাকে। বাড়িতে পরিবার আছে। কিন্তু আবার বলেছে, হাজার টাকা মাহিনা দিলেও চাকরি করবে না।

MASTER (smiling): "Rakhal is now enjoying his pension'. Since his return from Vrindavan he has been staying at home. His wife is there. But he said to me that he would not accept any work even if he were offered a salary of a thousand rupees.

"यहाँ लेटा हुआ कहता था, तुम्हारी भी संगत अब अच्छी नहीं लगती उसकी ऐसी एक असाधारण अवस्था हुई थी ।

“এখানে শুয়ে শুয়ে বলত — তোমাকেও ভাল লাগে না, এমনি তার একটি অবস্থা হয়েছিল।

Rakhal would lie down here and say to me that he didn't care even for my company. He was then passing through such an exalted state.

"भवनाथ ने विवाह किया है, परन्तु रात भर स्त्री के साथ धर्म की ही चर्चा करता है । दोनों ईश्वरी प्रसंग लेकर रहते हैं । मैंने कहा, 'अपनी स्त्री से कुछ आमोद-प्रमोद भी किया कर', तब गुस्से में आकर उसने कहा था, 'क्या ! हम लोग भी आमोद-प्रमोद (frivolity- छिछोरापन) लेकर रहेंगे?"

“ভবনাথ বিয়ে করেছে, কিন্তু সমস্ত রাত্রি স্ত্রীর সঙ্গে কেবল ধর্মকথা কয়! ঈশ্বরের কথা নিয়ে দুজনে থাকে। আমি বললুম, পরিবারের সঙ্গে একটু আমোদ-আহ্লাদ করবি, তখন রেগে রোখ করে বললে, কি! আমরাও আমোদ-আহ্লাদ নিয়ে থাকব?”

Bhavanath is married; but he spends the whole night in spiritual conversation with his wife. The couple pass their time talking of God alone. I said to him, 'Have a little fun with your wife now and then.' 'What?' he; retorted angrily. 'Shall we too indulge in frivolity?'"

श्रीरामकृष्ण अब नरेन्द्र के बारे में कह रहे हैं ।

ঠাকুর এইবার নরেন্দ্রের কথা কহিতেছেন।

Sri Ramakrishna began to talk about Narendra.

श्रीरामकृष्ण (भक्तों से) - परन्तु नरेन्द्र के लिए मुझे जितनी व्याकुलता हुई थी, उतनी उसके(छोटे नरेन्द्र के) लिए नहीं हुई ।

শ্রীরামকৃষ্ণ (ভক্তদের প্রতি) — কিন্তু নরেন্দ্রের উপর যত ব্যাকুলতা হয়েছিল, এর উপর (ছোট নরেনের উপর) তত হয় নাই।

MASTER (to the devotees): "I haven't felt the same strong longing for the younger Naren that I felt for Narendra.

(हरिपद से) - "क्या तू गिरीश घोष के यहाँ जाया करता है ?"

(হরিপদর প্রতি) “তুই গিরিশ ঘোষের বাড়ি যাস?”

(To Haripada) "Do you go to Girish Ghosh's house?"

हरिपद - हमारे घर के पास ही उनका घर है । प्रायः जाया करता हूँ ।

হরিপদ — আমাদের বাড়ির কাছে বাড়ি, প্রায়ই যাই।

HARIPADA: "Yes, I go there very often. He is our neighbour."

श्रीरामकृष्ण - क्या नरेन्द्र भी जाता है ?

শ্রীরামকৃষ্ণ — নরেন্দ্র যায়?

MASTER: "Does Narendra, too, go there?"

हरिपद - हाँ, कभी कभी तो देखता हूँ ।

হরিপদ — হাঁ, কখন কখন দেখতে পাই।

HARIPADA: "Yes, I see him there occasionally."

श्रीरामकृष्ण - गिरीश जो कुछ (मेरे अवतारत्व के सम्बन्ध में) कहता है, उस पर उसकी (?) क्या राय है ?

শ্রীরামকৃষ্ণ — গিরিশ ঘোষ যা বলে (অর্থাৎ ‘অবতার’ বলে) তাতে ও কি বলে?

MASTER: "What does he say in reply to Girish?" [Girish Ghosh spoke of Sri Ramakrishna as an Incarnation of God.]

हरिपद - नरेन्द्र तर्क में हार गये हैं ।

হরিপদ — তর্কে হেরে গেছেন।

HARIPADA: "Narendra has been defeated in the argument."

श्रीरामकृष्ण - नहीं, उसने(नरेन्द्र ने) कहा, 'गिरीश घोष को जब इतना विश्वास है, तो उस पर मैं कुछ क्यों कहूँ ?'

.শ্রীরামকৃষ্ণ — না, সে (নরেন্দ্র) বললে, গিরিশ ঘোষের এখন এত বিশ্বাস — আমি কেন কোন কথা বলব?

MASTER: "No, Narendra says, 'Girish Ghosh has such strong faith; why should I contradict him?'"

जज अनुकूल मुखोपाध्याय के जामाता के भाई आये हुए हैं । श्रीरामकृष्ण - तुम नरेन्द्र को जानते हो?

জজ অনুকূল মুখোপাধ্যায়ের জামায়ের ভাই আসিয়াছেন। শ্রীরামকৃষ্ণ — তুমি নরেন্দ্রকে জান?

The brother of Judge Anukal Mukhopadhyaya's son-in-law was in the room. The Master asked him, "Do you know Narendra?"

जामाता के भाई - जी हाँ, नरेन्द्र एक बुद्धिमान युवक है ।

জামায়ের ভাই — আজ্ঞা, হাঁ। নরেন্দ্র বুদ্ধিমান ছোকরা!

BROTHER: "Yes, sir. He is a very intelligent young man."

श्रीरामकृष्ण (भक्तों से) - ये अच्छे आदमी हैं, जब इन्होंने नरेन्द्र की तारीफ की । उस दिन नरेन्द्र आया था । त्रैलोक्य के साथ उस दिन उसने गाया भी; परन्तु उस दिन का गाना अलोना लगा । 

শ্রীরামকৃষ্ণ (ভক্তদের প্রতি) — ইনি ভাল লোক, যে কালে নরেন্দ্রের সুখ্যাতি করেছেন। সেদিন নরেন্দ্র এসেছিল। ত্রৈলোক্যের সঙ্গে সেদিন গান গাইলে। কিন্তু গানটি সেদিন আলুনী লাগল।

MASTER (to the devotees): "He must be a good man because he speaks highly of Narendra. Narendra was here the other day and sang with Trailokya Sannyal. But that day his singing seemed flat to me."

[( 7 मार्च 1885 ) श्रीरामकृष्ण वचनामृत-109 ]

🙏卐 'ज्ञान -अज्ञान' के परे होकर 'ज्ञान और कर्म 'दोनों ओर सम्भालने का उपदेश🙏卐  

[বাবুরাম ও ‘দুদিক রাখা’ — জ্ঞান-অজ্ঞানের পার হও ]

श्रीरामकृष्ण बाबूराम की ओर देखकर बातचीत कर रहे हैं । मास्टर जिस स्कूल में पढ़ाते हैं, बाबूराम उसी स्कूल की प्रवेशिका कक्षा में पढ़ते हैं ।

[बाबूराम घोष - स्वामी प्रेमानन्द (1861 - 1918)] - हुगली जिले के आंटपुर गांव में अपने नाना के घर में पैदा हुए थे । पिता का नाम तारापद घोष, माता का नाम मातंगिनी देवी था.   बाद में श्री रामकृष्ण संघ में बाबूराम को स्वामी प्रेमानंद के नाम से जाना गया। ] 

ঠাকুর বাবুরামের দিকে চাহিয়া কথা কহিতেছেন। মাস্টার যে স্কুলে অধ্যাপনা করেন, বাবুরাম সে স্কুলে এন্ট্রান্স ক্লাসে পড়েন।

Baburam was a student in the Entrance Class in the school where M. taught.

श्रीरामकृष्ण (बाबूराम से) - तेरी पुस्तकें कहाँ हैं ? तू लिखे-पढ़ेगा या नहीं ? (मास्टर से) वह दोनों ओर सँभालना चाहता है ।

শ্রীরামকৃষ্ণ (বাবুরামের প্রতি) — তোর বই কই? পড়াশুনা করবি না? (মাস্টারের প্রতি) ও দুদিক রাখতে চায়।

MASTER (to Baburam): "Where are your books? Aren't you attending to your studies? (To M.) He wants to stick to both. (God and the world.)

"बड़ा कठिन मार्ग है । उन्हें जरा सा समझ लेने से क्या होगा ? वशिष्ठ कितने बड़े थे, उन्हें भी पुत्रों के लिए शोक हुआ था । लक्ष्मण ने उन्हें शोक करते हुए देख आश्चर्य में आकर राम से पूछा । राम ने कहा, 'भाई, इसमें आश्चर्य क्या है ? जिसे ज्ञान है, उसे अज्ञान भी है । भाई, तुम ज्ञान और अज्ञान दोनों को पार कर जाओ ।' पैर में काँटा लगता है, तो एक और काँटा खोज लाना पड़ता है; उस काँटे से पहला काँटा निकाला जाता है; फिर दोनों ही काँटे फेंक दिये जाते हैं । इसीलिए अज्ञानरूपी काँटे को निकालने के लिए ज्ञानरूपी काँटा संग्रह करना पड़ता है; फिर ज्ञान और अज्ञान के पार जाया जाता है ।

“বড় কঠিন পথ, একটু তাঁকে জানলে কি হবে! বশিষ্ঠদেব, তাঁরই পুত্রশোক হল! লক্ষ্মণ দেখে অবাক্‌ হয়ে রামকে জিজ্ঞাসা করলেন। রাম বললেন, ভাই, এ আর আশ্চর্য কি? যার জ্ঞান আছে তার অজ্ঞানও আছে। ভাই, তুমি জ্ঞান-অজ্ঞানের পার হও! পায়ে কাঁটা ফুটলে, আর একটি কাঁটা খুঁজে আনতে হয়, সেই কাঁটা দিয়ে প্রথম কাঁটাটি তুলতে হয়, তারপর দুটি কাঁটাই ফেলে দিতে হয়। তাই অজ্ঞান কাঁটা তুলবার জন্য জ্ঞান কাঁটা যোগাড় করতে হয়। তারপর জ্ঞান-অজ্ঞানের পারে যেতে হয়!”

"That is very difficult. What will you gain by, knowing God partially? Vasishthadeva, great sage that he was, was overcome at the death of his sons. That amazed Lakshmana and he asked Rama the reason. Rama said: 'Brother, what is there to wonder at? He who has knowledge has ignorance also. Brother, go beyond both knowledge and ignorance.' If a thorn enters the sole of your foot, you get another thorn to take out the first one. Afterwards you throw both away. Likewise, one procures the thorn of knowledge to remove the thorn of ignorance; then one goes beyond both knowledge and ignorance."

बाबूराम (हँसकर) - मैं यही चाहता हूँ ।

বাবুরাম (সহাস্যে) — আমি ওইটি চাই। 

BABURAM (smiling): "That's what I want."

श्रीरामकृष्ण (सहास्य) - अरे, दोनों ओर रक्षा करने से क्या वह बात होती है ? उसे अगर तू चाहता है, तो चला आ निकलकर !

শ্রীরামকৃষ্ণ (সহাস্যে) — ওরে, দুদিক রাখলে কি তা হয়? তা যদি চাস তবে চলে আয়!

MASTER (smiling): "But, my child, can you attain it by holding to both? If you want that, then come away."

बाबूराम (हँसकर) - आप ले आइये ।

বাবুরাম (সহাস্যে) — আপনি নিয়ে আসুন!

BABURAM (smiling): "Take me away from the world."

श्रीरामकृष्ण (मास्टर के प्रति) - राखाल रहता था, वह बात और थी – उसमें उसके बाप की भी स्वीकृति थी । पर इन लड़कों के रहने पर तो गड़बड़ होगा ।

শ্রীরামকৃষ্ণ (মাস্টারের প্রতি) — রাখাল ছিল সে এক, তার বাপের মত ছিল। এরা থাকলে হাঙ্গাম হবে।

MASTER (to M.): "Rakhal lived with me, but that was different; his father agreed to it. If these boys stay here there will be trouble.

(बाबूराम से) - "तू कमजोर है । तुझ में हिम्मत कम है । देख तो छोटा नरेन्द्र कैसे कहता है, 'मैं जब आऊँगा, तब एकदम चला आऊँगा ।"

বাবুরামের প্রতি) — “তুই দুর্বল। তোর সাহস কম! দেখ দেখি ছোট নরেন কেমন বলে, ‘আমি একবারে এসে থাকব’!”

(To Baburam) "You have no strength of mind; you haven't much courage. Just see how the younger Naren says, 'I will come away for good.'"

अब श्रीरामकृष्ण भक्त-बालकों के बीच में चटाई पर आकर बैठे । मास्टर उनके पास बैठे हुए हैं ।

এতক্ষণে ঠাকুর ছোকরা ভক্তদের মধ্যে আসিয়া মেঝেতে মাদুরের উপর বসিয়াছেন। মাস্টার তাঁহার কাছে বসিয়া আছেন।

Sri Ramakrishna came down from the small couch and sat among the youngsters on the floor. M. sat by his side.

 [( 7 मार्च 1885 ) श्रीरामकृष्ण वचनामृत-109 ]

🙏卐श्रीरामकृष्ण कामिनी कांचन-त्यागी (संन्यासी) खोज रहे हैं !🙏卐

[श्रीरामकृष्ण ऐसा गृहस्थ खोज रहे हैं जिसने 

धन और वासना में आसक्ति का त्याग कर दिया हो।]    

[কামিনী কাঞ্চন-ত্যাগীকে খুঁজছেন শ্রীরামকৃষ্ণ!]

[Sri Ramakrishna is looking for a householder 

who has given up attachment to money and lust.] 

श्रीरामकृष्ण (मास्टर से) - मै कामिनी कांचन-त्यागी खोज रहा हूँ । सोचता हूँ, यह शायद यहाँ रह जायेगा । पर सब के सब कोई न कोई अड़ंगा लगा देते हैं ।

শ্রীরামকৃষ্ণ (মাস্টারকে) — আমি কামিনী-কাঞ্চনত্যাগী খুঁজছি। মনে করি, এ বুঝি থাকবে! সকলেই এক-একটা ওজর করে!

MASTER (to M.): "I have been seeking one who has totally renounced 'woman and gold'. When I find a young man, I think that perhaps he will live with me; but everyone raises some objection or other.

"एक भूत अपना साथी खोज रहा था । शनि या मंगलवार को अपघात मृत्यु होने पर मनुष्य भूत होता है । इसलिए वह भूत जब कभी देखता कि कोई छत पर से गिरकर बेसुध हो गया है, तब वहाँ वह यह सोचकर दौड़ा हुआ जाता कि इसकी अपघात-मृत्यु हुई, अब यह भूत होकर मेरा साथी होगा । परन्तु उसका ऐसा दुर्भाग्य कि सब के सब बच जाते ! उसे कोई साथी नहीं मिलता

“একটা ভূত সঙ্গী খুঁজছিল। শনি-মঙ্গলবারে অপঘাতে মৃত্যু হলে ভূত হয়, তাই সে ভূতটা যেই দেখত কেউ ছাদ থেকে পড়ে গেছে, কি হোঁচট খেয়ে মূর্ছিত হয়ে পড়েছে, অমনি দৌড়ে যেত, — এই মনে করে যে, এটার অপঘাত মৃত্যু হয়েছে, এবার ভূত হবে, আর আমার সঙ্গী হবে। কিন্তু তার এমনি কপাল যে দেখে, সব শালারা বেঁচে উঠে! সঙ্গী আর জোটে না।

"A ghost sought a companion. It is said that a man who dies on a Saturday or Tuesday becomes a ghost. Therefore, whenever the ghost saw anybody fall from a roof or stumble and faint on the road on either of those days, he would run to him, hoping that the man, through an accidental death, would become a ghost and be his companion. But such was his ill luck that everyone revived. The poor thing could not get a companion.

"इसी तरह देखो न, राखाल भी 'बीबी-बीबी' करता है, कहता है, 'मेरी बीबी का क्या होगा । नरेन्द्र की छाती पर मैंने हाथ रखा तो बेहोश हो गया और चिल्लाया, 'अजी, यह तुम क्या कर रहे हो ? मेरे बाप-माँ जो हैं !'

“দেখ না, রাখাল ‘পরিবার’ ‘পরিবার’ করে। বলে, আমার স্ত্রীর কি হবে? নরেন্দ্র বুকে হাত দেওয়াতে বেহুঁশ হয়ে গিছল, তখন বলে, ওগো তুমি আমার কি করলে গো! আমার যে বাপ-মা আছে গো!

"Just see, Rakhal always gives his wife as an excuse. He says, 'What will become of her?' When I touched Narendra on the chest, he became unconscious; then he cried out: 'Oh, what have you done to me? Don't you know that I have a father and mother?'

 [( 7 मार्च 1885 ) श्रीरामकृष्ण वचनामृत-109 ]

🙏卐जो किसी अवतार को एक बार भी प्रणाम करता है, उसे मोक्ष की प्राप्ति होती है।🙏卐

[যারা একবার অবতার -নমস্কার করবে তারা উদ্ধার হয়ে যাবে।] 

[Whoever salutes an Incarnation, even once, obtains liberation.]

"मुझे उन्होंने इस अवस्था में ^ क्यों रखा है ? चैतन्यदेव ने संन्यास धारण किया, इसलिए कि सब लोग प्रणाम करेंगे, जो लोग अवतार को एक बार प्रणाम करेंगे; उनका उद्धार हो जायेगा ।"

[ इस अवस्था में ^ क्यों रखा ? स्पष्ट है कि श्रीरामकृष्ण यहाँ अपने वैरागी (संन्यासी) अवस्था की ओर इंगित कर रहे हैं ! ]

“আমায় তিনি এ-অবস্থায় রেখেছেন কেন? চৈতন্যদেব সন্ন্যাস করলেন — সকলে প্রণাম করবে বলে, যারা একবার নমস্কার করবে তারা উদ্ধার হয়ে যাবে।”

"Why has God made me lead this kind of life? ^  Chaitanyadeva became a sannyasi so that all would salute him. Whoever salutes an Incarnation, even once, obtains liberation."

[^Evidently Sri Ramakrishna was referring to his monastic life.

श्रीरामकृष्ण के लिए मोहिनीमोहन बाँस की टोकरी में सन्देश लाये हैं ।

ঠাকুরের জন্য মোহিনীমোহন চ্যাংড়া করিয়া সন্দেশ আনিয়াছেন।

Mohinimohan had brought a basket of sweetmeats for Sri Ramakrishna.

श्रीरामकृष्ण - ये सन्देश कौन लाया है ?

শ্রীরামকৃষ্ণ — এ সন্দেশ কার?

MASTER: "Who has brought these sweets?"

बाबूराम ने मोहिनीमोहन की ओर उँगली उठाकर इशारा किया ।

বাবুরাম মোহিনীকে দেখাইয়া দিলেন।

Baburam pointed to Mohinimohan.

श्रीरामकृष्ण ने प्रणव का उच्चारण करके सन्देशों को छुआ और उसमें से थोड़ासा ग्रहण करके प्रसाद कर दिया । फिर भक्तों को थोड़ा बाँटने लगे । छोटे नरेन्द्र को, और भी दो एक भक्त-बालकों को खुद खिला रहे हैं !

ঠাকুর প্রণব উচ্চারণ করিয়া সন্দেশ স্পর্শ করিলেন ও কিঞ্চিৎ গ্রহণ করিয়া প্রসাদ করিয়া দিলেন। অতঃপর সেই সন্দেশ লইয়া ভক্তদের দিতেছেন। কি আশ্চর্য, ছোট নরেনকে ও আরও দুই-একটি ছোকরা ভক্তকে নিজে খাওয়াইয়া দিতেছেন।

Sri Ramakrishna touched the sweets, uttering the word "Om", and ate a little. Then he distributed them among the devotees. To the surprise of the others, he fed the younger Naren and a few of the boys with his own hand.

श्रीरामकृष्ण (मास्टर से) - इसका एक अर्थ है । शुद्धात्माओं के भीतर नारायण का प्रकाश अधिक है । कामारपुर में जब मैं जाता था, तब वहाँ किसी किसी लड़के को खुद खिला देता था । चीने शाँखारी कहता था, 'ये हमें क्यों नहीं खिलाते ?" मैं किस तरह खिलाता ? वे दुराचारी जो थे । भला उन्हें कौन खिलायेगा ?

শ্রীরামকৃষ্ণ (মাস্টারের প্রতি) — এর একটি মানে আছে। নারায়ণ শুদ্ধাত্মাদের ভিতর বেশি প্রকাশ। ও-দেশে যখন যেতুম ইওরূপ ছেলেদের কারু-কারু মুখে নিজে খাবার দিতাম। চিনে শাঁখারী বলত ‘উনি আমাদের খাইয়ে দেন না কেন?’ কেমন করে দেব, কেউ ভাজ-মেগো! কেউ অমুক-মেগো, কে খাইয়ে দেবে!

MASTER (to M.): "This has a meaning. There is a greater manifestation of God in men of pure heart. In former years, when I used to go to Kamarpukur, I would feed some of the young boys with my own hand. Chine Sankhari would say, 'Why doesn't he feed us that way?' But how could I? They led an immoral life. Who would feed them?"

[चीने शाँखारि (श्रीनिवास शाँखारि)  कामारपुकुर में रहने वाले श्रीनिवास या चिनू नामक एक धार्मिक व्यक्ति थे । चीने शाँखारि एक बहुत उच्च कोटि के वैष्णव साधक थे। चिनू ने बचपन में ही गदाधर के अवतारी होने के रहस्य को समझ लिया था। उनका दृढ़ विश्वास था कि चैतन्य स्वयं गदाधर के रूप में प्रकट हुए हैं । वे श्रीरामकृष्ण देव के बाल्य-लीला के संगी थे, लेकिन अपने इष्टदेवता के रूप में उनकी पूजा करते थे। चीनू प्रतिदिन श्रीमद्भगवद गीता और अन्य शास्त्रों का पाठ करते थे। बाद में, जब उनके बाल्य सखा 'गदाधर ' (ছেলেবেলার বন্ধু) श्री रामकृष्ण देव के रूप में कामारपुकुर आते , तब भी वे अपने चीनूदादा  के साथ अपने बचपन के सम्बन्धों को पूर्ववत बनाये रखते थे। चीनू एक दीर्घायु व्यक्ति थे और अपने जीवन के अंतिम दिनों में भी ठाकुरदेव के प्रति भक्ति-श्रद्धा अक्षुण बनाये रखे थे। 

চিনে শাঁখারি (শ্রীনিবাস শাঁখারি) — শ্রীনিবাস বা চিনু নামে অভিহিত কামারপুকুর নিবাসী ধার্মিক ব্যক্তি। চিনে শাঁখারি খুব উঁচুদরের বৈষ্ণব সাধক ছিলেন। গদাধরের শৈশবেই চিনু তাঁহার দৈবী স্বরূপ বুঝিয়াছিলেন। তাঁহার দৃঢ় বিশ্বাস ছিল যে স্বয়ং চৈতন্যদেব গদাধররূপে আবির্ভূত হইয়াছেন। তিনি তাঁহাকে ইষ্টদেবতারূপে পূজা করিতেন ও তাঁহার বাল্যলীলার সঙ্গী ছিলেন। তিনি প্রত্যহ শ্রীমদ্ভগবদ্‌ গীতা ও অন্যান্য ধর্মগ্রন্থ পাঠ করিতেন। পরবর্তী কালে শ্রীরামকৃষ্ণরূপে ঠাকুর যখন কামারপুকুরে আসিতেন তখনও তিনি তাঁহার চিনুদাদার সহিত পূর্ববর্তী সম্পর্ক বজায় রাখিতেন। চিনু দীর্ঘজীবী ছিলেন এবং জীবনের শেষদিন পর্যন্ত ঠাকুরের প্রতি ভক্তিশ্রদ্ধা করিয়া গিয়াছেন।]

(२)

* ज्ञान तथा भक्ति*

[( 7 मार्च 1885 ) श्रीरामकृष्ण वचनामृत-109 ]

🙏पाश्चत्य सभ्यता या औद्योगिक सभ्यता का भारतीय संस्कृति पर दुष्प्रभाव🙏  

शुद्धात्मा भक्तों को प्राप्त कर श्रीरामकृष्ण आनन्द में मग्न हो रहे हैं । अपने छोटे तखत पर बैठे हुए कीर्तन गानेवाली के नाज-नखरे दिखा दिखाकर उन्हें हँसा रहे हैं । कीर्तन गानेवाली सजधजकर अपने साथियों के साथ गा रही है । वह हाथ में रंगीन रूमाल लिए हुए खड़ी है; बीच बीच में खाँसने का ढोंग कर रही है और नथ उठाकर थूक रही है

गाते समय अगर किसी विशिष्ट मनुष्य का आना होता है, तो वह गाते हुए ही उसकी अभ्यर्थना के लिए, 'आइये, बैठिये' आदि शब्दों का प्रयोग करती है । फिर कभी कभी हाथ का कपड़ा हटाकर बाजूबन्द, अनन्त आदि गहने दिखाती है ।

ঠাকুর শ্রীরামকৃষ্ণ শুদ্ধাত্মা ভক্তদিগকে পাইয়া আনন্দে ভাসিতেছেন ও ছোট খাটটিতে বসিয়া বসিয়া তাহাদিগকে কীর্তনীয়া ঢঙ দেখাইয়া হাসিতেছেন। কীর্তনী সেজে-গুজে সম্প্রদায় সঙ্গে গান গাইতেছে। কীর্তনী দাঁড়াইয়া, হাতে রঙ্গিন রুমাল, মাঝে মাঝে ঢঙ করিয়া কাশিতেছে ও নথ তুলিয়া থুথু ফেলিতেছে। আবার যদি কোনও বিশিষ্ট ব্যক্তি আসিয়া পড়ে, গান গাইতে গাইতেই তাহকে অভ্যর্থনা করিতেছে ও বলিতেছে ‘আসুন’! আবার মাঝে মাঝে হাতের কাপড় সরাইয়া তাবিজ অনন্ত ও বাউটি ইতাদি অলঙ্কার দেখাইতেছে।

Sri Ramakrishna was in the happiest mood with his young and pure-souled devotees. He was seated on the small couch and was doing funny imitations of a kirtani. The devotees laughed heartily. The kirtani is dressed lavishly and covered with ornaments. She sings, standing on the floor, a coloured kerchief in her hand. Now and then she coughs to draw people's attention and blows her nose, raising her nose-ring. When a respectable gentleman enters the room, she welcomes him with appropriate words, still continuing her song. Now and then she pulls her sari from her arms to show off her jewels.

उनका यह अभिनय देखकर भक्तगण ठहाका मारकर हँस रहे हैं । पल्टू तो हँसते हँसते लोटपोट हो रहे हैं । श्रीरामकृष्ण पल्टू की ओर देखकर मास्टर से कह रहे हैं, "बच्चा है न, इसीलिए लोटपोट हुआ जा रहा है । (पल्टू से, हँसकर) ये सब बातें अपने बाप से न कहना । तो फिर जो कुछ लगन (मेरे पास आने के लिए) है, वह भी न रह जायेगी । एक तो ऐसे ही वे लोग इंग्लिशमैन हैं ।

অভিনয়দৃষ্টে ভক্তরা সকলেই হো-হো করিয়া হাসিতে লাগিলেন। পল্টু হাসিয়া গড়াগড়ি দিতেছেন। ঠাকুর পল্টুর দিকে তাকাইয়া মাস্টারকে বলিতেছেন, “ছেলেমানুষ কিনা, তাই হেসে গড়াগড়ি দিচ্ছে।”শ্রীরামকৃষ্ণ (পল্টুর প্রতি সহাস্যে) — তোর বাবাকে এ-সব কথা বলিসনি। যাও একটু (আমার প্রতি) টান ছিল তাও যাবে। ওরা একে ইংলিশম্যান লোক।

The devotees were convulsed with laughter at this mimicry by Sri Ramakrishna. Paltu rolled on the ground. Pointing to him, the Master said to M.: "Look at that child! He is rolling with laughter." He said to Paltu with a smile: "Don't report this to your father, or he will lose the little respect he has for me. You see, he is an 'Englishman'."

[( 7 मार्च 1885 ) श्रीरामकृष्ण वचनामृत-109 ]

🙏कहाँ आह्निक जप और गंगा स्नान के समय सांसारिक बातें और कहाँ समाधि 🙏卐 

[हरीश आमाय छेड़े एक दण्डओ थाकते पारे ना !]  

[আহ্নিক জপ ও গঙ্গাস্নানের সময় কথা ]

(भक्तों से ) - “बहुतेरे तो सन्ध्योपासना करते हुए ही दुनिया भर की बातें करते हैं; परन्तु बातचीत करने की मनाही है, इसलिए ओठ दबाये हुए ही हर तरह का इशारा करते हैं । यह ले आओ - वह ले आओ – ऊ – हूँ – हूँ - यही सब किया करते हैं । (सब हँसते हैं ।)

[आह्निक जप ^ दैनिक धार्मिक कृत्य]  

(ভক্তদের প্রতি) “অনেকে আহ্নিক করবার সময় যত রাজ্যের কথা কয়; কিন্তু কথা কইতে নাই, — তাই ঠোঁট বুজে যত প্রকার ইশারা করতে থাকে। এটা নিয়ে এস, ওটা নিয়ে এস, হুঁ উহুঁ — এই সব করে। (হাস্য)

MASTER (to the devotees): "There are people who indulge in all kinds of gossip at the time of their daily devotions. As you know, one is not permitted to talk then; so they make all kinds of signs, keeping their lips closed. In order to say, 'Bring this', 'Bring that', they make sounds like 'Huh', 'Uhuh'. All such things they do! (Laughter.)

"और कोई कोई ऐसे हैं कि माला जपते हुए ही मछलीवाली से मछली का मोल-तोल करते हैं । जप करते हुए कभी ऊँगली से इशारा करके बतला देते हैं कि वह मछली निकाल । जितना हिसाब है, सब उसी समय होता है । (सब हँसते हैं ।)

“আবার কেউ মালাজপ করছে; তার ভিতর থেকেই মাছ দর করে! জপ করতে করতে হয় তো আঙুল দিয়ে দেখিয়ে দেয় — ওই মাছটা! যত হিসাব সেই সময়ে! (সকলের হাস্য)

"Again, there are some who bargain for fish while telling their beads. As they count the rosary, with a finger they point out the fish, indicating, 'That one, please.' They reserve all their business for that time! (Laughter.)

"स्त्रियाँ गंगा नहाने के लिए आती हैं, तो उस समय ईश्वर का चिन्तन करना तो दूर रहा, उसी समय दुनिया भर की बातें करने लग जाती हैं । पूछती हैं, 'तुम्हारे लड़के का विवाह हुआ, तुमने कौन-कौन से गहने दिये ?'; 'अमुक को कठिन बीमारी हैं'; 'अमुक की बेटी अपनी ससुराल से आयी या नहीं';'अमुक आदमी लड़की देखने गया था, वह खूब देगा और खर्च भी खूब करेगा'; 'हमारा हरीश मुझसे इतना हिला हुआ है कि मुझे छोड़कर एक क्षण भी नहीं रह सकता'; 'माँ, मैं इतने दिनों तक इसीलिए नहीं आ सकी कि अमुक की लड़की के 'देखुआ' आये थे - अब की बार विवाह पक्का होनेवाला था, इसलिए मुझे फुरसत नहीं मिली ।'

“কেউ হয়তো গঙ্গাস্নান করতে এসেছে। সে সময় কোথা ভগবানচিন্তা করবে, গল্প করতে বসে গেল! যত রাজ্যের গল্প! ‘তোর ছেলের বিয়ে হল, কি গয়না দিলে?’ ‘অমুকের বড় ব্যামো’, ‘অমুক শ্বশুরবাড়ি থেকে এসেছে কি না’, ‘অমুক কনে দেখতে গিছলো, তা দেওয়া-থোওয়া সাধ-আহ্লাদ খুব করবে’, ‘হরিশ আমার বড় ন্যাওটা, আমায় ছেড়ে একদণ্ড থাকতে পারে না’, ‘এতো দিন আসতে পারিনি মা — অমুকের মেয়ের পাকা দেখা, বড় ব্যস্ত ছিলাম।’

"There are women who come to the Ganges for their bath and, instead of thinking of God, gossip about no end of things. 'What jewels did you offer at the time of your son's marriage?' — 'Has so-and-so returned from her father-in-law's house?' — 'So-and-so is seriously ill.' — 'So-and-so went to see the bride; we hope that they will offer a magnificent dowry and that there will be a great feast.' — 'Harish always nags at me; he can't stay away from me even an hour.' — 'My child, I couldn't come to see you all these days; I was so busy with the betrothal (सगाई , रिंग सेरोमनी) of so-and-so's daughter.'

“देखो न, कहाँ तो गंगा नहाने के लिए आयी हैं, और कहाँ दुनिया भर की बातें !"

“দেখ দেখি, কোথায় গঙ্গাস্নানে এসেছে! যত সংসারের কথা!”

"You see, they have come to bathe in the holy river, and yet they indulge in all sorts of worldly talk."

श्रीरामकृष्ण छोटे नरेन्द्र को एकदृष्टि से देख रहे हैं । देखते ही देखते समाधिमग्न हो गये । क्या आप शुद्धात्मा भक्तों के भीतर नारायण के दर्शन कर रहे हैं ?

[ঠাকুর ছোট নরেনকে একদৃষ্টে দেখিতেছেন। দেখিতে দেখিতে সমাধিস্থ হইলেন! শুদ্ধাত্মা ভক্তের ভিতর ঠাকুর কি নারায়ণ দর্শন করিতেছেন?

The Master began to look intently at the younger Naren and went into samadhi. Did he see God Himself in the pure-souled devotee?

भक्तगण निर्निमेष नयनों से वह समाधिचित्र देख रहे हैं । इतना हँसी-मजाक हो रहा था, सब बन्द हो गया, जैसे कमरे में एक भी आदमी न हो । श्रीरामकृष्ण का शरीर निःस्पन्द है, दृष्टि स्थिर है, हाथ जोड़कर चित्रवत् बैठे हुए हैं ।

ভক্তেরা একদৃষ্টে সেই সমাধিচিত্র দেখিতেছেন। এত হাসি খুশি হইতেছিল, এইবার সকলেই নিঃশব্দ, ঘরে যেন কোন লোক নাই। ঠাকুরের শরীর নিস্পন্দ, চক্ষু স্থির, হাতজোড় করিয়া চিত্রার্পিতের ন্যায় বসিয়া আছেন।

The devotees silently watched the figure of Sri Ramakrishna motionless in samadhi. A few minutes before there had been so much laughter in the room; now there was deep silence, as if no one were there. The Master sat with folded hands as in his photograph.

कुछ देर बाद समाधि छूटी । श्रीरामकृष्ण की वायु स्थिर हो गयी थी । अब उन्होंने एक लम्बी साँस छोड़ी । क्रमशः मन बाह्य संसार में आ रहा है । भक्तों की ओर वे देख रहे हैं ।अब भी भावमग्न हैं । अब भक्तों को सम्बोधित करके, किसे क्या होगा, किसकी कैसी अवस्था (आध्यात्मिक प्रगति   कैसी है ?) है, संक्षेप में कह रहे हैं।

কিয়ৎপরে সমাধিভঙ্গ হইল। ঠাকুরের বায়ু স্থির হইয়া গিয়াছিল, এইবার দীর্ঘনিঃশ্বাস ত্যাগ করিলেন। ক্রমে বহির্জগতে মন আসিতেছে। ভক্তদের দিকে দৃষ্টিপাত করিতেছেন। এখনও ভাবস্থ হইয়া রহিয়াছেন। এইবার প্রত্যেক ভক্তকে সম্বোধন করিয়া কাহার কি হইবে, ও কাহার কিরূপ অবস্থা কিছু কিছু বলিতেছেন। 

After a short while his mind began to come down to the relative plane. He heaved a long sigh and became aware of the outer world. He looked at the devotees and began to talk with them of their spiritual progress.

[( 7 मार्च 1885 ) श्रीरामकृष्ण वचनामृत-109 ]

🙏नेता के प्रति स्वतःस्फूर्त भक्ति और तर्क आधार पर भक्ति🙏卐

"स्वामी जी का ठाकुरदेव के प्रति प्रेमाभक्ति" 

श्रीरामकृष्ण (छोटे नरेन्द्र से) - तुझे देखने के लिए मैं व्याकुल हो रहा था । तेरी बन जायेगी । कभी कभी आया कर । अच्छा, तू क्या चाहता है - ज्ञान या भक्ति ?

(ছোট নরেনের প্রতি) “তোকে দেখবার জন্য ব্যাকুল হচ্ছিলাম। তোর হবে। আসিস এক-একবার। — আচ্ছা তুই কি ভালবাসিস? — জ্ঞান না ভক্তি?”

MASTER (to the younger Naren): "I have been eager to see you. You will succeed. Come here once in a while. Well, which do you prefer — jnana or bhakti?"

छोटे नरेन्द्र - केवल भक्ति ।

ছোট নরেন — শুধু ভক্তি।

THE YOUNGER NAREN: "Pure bhakti."

श्रीरामकृष्ण - बिना जाने तू किसकी भक्ति करेगा ? (मास्टर को दिखाकर, सहास्य) इन्हें अगर तू जाने ही नहीं, तो इनकी भक्ति कैसे कर सकेगा ? (मास्टर से) परन्तु शुद्धात्मा ने जब कहा है कि केवल भक्ति चाहिए तो इसका अर्थ भी अवश्य है । “आप ही आप भक्ति का आना संस्कार के बिना नहीं होता । यह प्रेमाभक्ति का लक्षण है । ज्ञान-भक्ति है विचार के बाद होनेवाली भक्ति ।

শ্রীরামকৃষ্ণ — না জানলে ভক্তি কাকে করবি? (মাস্টারকে দেখাইয়া সহাস্যে) এঁকে যদি না জানিস, কেমন করে এঁকে ভক্তি করবি? (মাস্টারের প্রতি) — তবে শুদ্ধাত্মা যে কালে বলেছে — ‘শুধু ভক্তি চাই’ এর অবশ্য মানে আছে

MASTER: "But how can you love someone unless you know him? (Pointing to M., with a smile) How can you love him unless you know him? (To M.) Since a pure-souled person has asked for pure bhakti, it must have some meaning .  " One does not seek bhakti of one's own accord without inborn tendencies. This is the characteristic of prema-bhakti. There is another kind of bhakti, called jnana-bhakti, which is love of God based on reasoning.

(छोटे नरेन्द्र से) – “देखूँ तेरी देह, कुर्ता उतार तो जरा । छाती खूब चौड़ी है - तो काम सिद्ध है । कभी कभी आना ।"

(ছোট নরেনর প্রতি) — “দেখি, তোর শরীর দেখি, জামা খোল দেখি। বেশ বুকের আয়তন; — তবে হবে। মাঝে মাঝে আসিস।”

(To the younger Naren) "Let me look at your body; take off your shirt. Fairly broad chest. You will succeed. Come here now and then."

श्रीरामकृष्ण अब भी भावस्थ हैं । दूसरे भक्तों में हरएक को सम्बोधित करके, उनके भविष्य के विषय में स्नेहपूर्वक कह रहे हैं।

ঠাকুর এখনও ভাবস্থ। অন্য অন্য ভক্তদের সস্নেহে এক-একজনকে সম্বোধন করিয়া আবার বলিতেছেন।

Sri Ramakrishna was still in the ecstatic mood. He spoke tenderly to the other devotees about their future.

(पल्टू से) – “तेरी भी मनोकामना सिद्ध होगी; परन्तु कुछ समय लगेगा ।

(পল্টুর প্রতি) — “তোরও হবে। তবে একটু দেরিতে হবে।

MASTER (to Paltu): "You will succeed, too, but it will take a little time.

(बाबूराम से) - “तुझे इसलिए नहीं खींचता हूँ कि अन्त में कहीं गुलगपाड़ा न मच जाय ।

(বাবুরামের প্রতি) — “তোকে টানছি না কেন? শেষে কি একটা হাঙ্গামা হবে!

(To Baburam) "Why don't I attract you to me? It is just to avoid trouble.

[( 7 मार्च 1885 ) श्रीरामकृष्ण वचनामृत-109 ]

🙏ब्रह्मज्ञान के बाद भागवत पण्डित को लोकशिक्षा के लिए माँ पुनः शरीर में रख देती हैं 🙏 

[ভাগবত পণ্ডিতকে মা  সংসারে রেখেছেন লোকশিক্ষার জন্য]

[Divine Mother has kept the pundit bound for the good of men.]

 (मोहिनीमोहन से) – “और तुम्हारे बारे में सब कुछ ठीक ही है । केवल थोड़ी कसर बाकी है । जब वह भी पूर्ण हो जायेगी तब कुछ शेष न रह जायेगा - न कर्तव्य, न कर्म, और न खुद संसार ही क्यों, सभी कुछ छूट जाना क्या अच्छा है ?” 

(মোহিনীমোহনের প্রতি) — “তুমি তো আছই! — একটু বাকী আছে, সেটুকু গেলে কর্মকাজ সংসার কিছু থাকে না। — সব যাওয়া কি ভাল।”

(To Mohinimohan) "As for you, you are all right. There is a little yet to be done. When that is achieved, nothing will remain — neither duty nor work nor the world itself. Is it good to get rid of everything?"

यह कहकर उनकी ओर सस्नेह एक निगाह से देख रहे हैं, जैसे उनके अन्तरतम प्रदेश के सब भाव देख रहे हों । क्या मोहिनीमोहन यही सोच रहे हैं कि ईश्वर के लिए सब कुछ छूट जाना ही अच्छा है । कुछ देर बाद श्रीरामकृष्ण ने फिर कहा, “भागवत पण्डित को एक पाश देकर ईश्वर संसार में रख देते हैं, - नहीं तो भागवत फिर कौन सुनाये ! रख देते हैं लोकशिक्षा के लिए, माता ने तुम्हें इसीलिए संसार में रखा है ।"

এই বলিয়া তাঁহার দিকে একদৃষ্টে সস্নেহে তাকাইয়া রহিলেন, যেন তাঁহার হৃদয়ের অন্তরতম প্রদেশের সমস্ত ভাব দেখিতেছেন! মোহিনীমোহন কি ভাবিতেছিলেন, ঈশ্বরের জন্য সব যাওয়াই ভাল? কিয়ৎপরে ঠাকুর আবার বলিতেছেন — ভাগবত পণ্ডিতকে একটি পাশ দিয়ে ঈশ্বর রেখে দেন, তা না হলে ভাগবত কে শুনাবে। — রেখে দেন লোকশিক্ষার জন্য। মা সেইজন্য সংসারে রেখেছেন।

As Sri Ramakrishna spoke these words he looked at Mohini affectionately, as if scanning his inmost feelings. Was Mohini really wondering whether it would be wise to renounce all for God? After a while Sri Ramakrishna said, "God binds the Bhagavata pundit to the world with one tie; otherwise, who would remain to explain the sacred book? He keeps the pundit bound for the good of men. That is why the Divine Mother has kept you in the world."

[( 7 मार्च 1885 ) श्रीरामकृष्ण वचनामृत-109 ]

🙏卐गुरुगृह वास का तीसरा दिन- ब्रह्मज्ञानी की अवस्था और जीवनमुक्त 🙏卐

[জ্ঞানযোগ ও ভক্তিযোগ — ব্রহ্মজ্ঞানীর অবস্থা ও ‘জীবন্মুক্ত’ ]

अब ब्राह्मण युवक से बातें कर रहे हैं ।

श्रीरामकृष्ण (युवक से) - तुम ज्ञान की चर्चा छोड़ो; भक्ति लो - भक्ति ही सार है । आज क्या तुम्हें तीन दिन हो गये ?

এইবার ব্রাহ্মণ যুবকটিকে সম্বোধন করিয়া বলিতেছেন।শ্রীরামকৃষ্ণ (যুবকের প্রতি) — তুমি জ্ঞানচর্চা ছাড়ো — ভক্তি নাও — ভক্তিই সার! — আজ তোমার কি তিনদিন হল?

Now Sri Ramakrishna spoke to the young brahmin. MASTER: "Give up knowledge and reasoning; accept bhakti. Bhakti alone is the essence. Is this the third day of your stay here?"

ब्राह्मण युवक (हाथ जोड़कर) - जी हाँ ।

ব্রাহ্মণ যুবক (হাতজোড় করিয়া) — আজ্ঞা হাঁ।

BRAHMIN (with folded hands): "Yes, sir."

श्रीरामकृष्ण – विश्वास करो - उन पर निर्भरता लाओ - तो तुम्हें कुछ भी न करना होगा । माँ काली सब कुछ कर लेंगी ।

শ্রীরামকৃষ্ণ — বিশ্বাস করো — নির্ভর করো — তাহলে নিজের কিছু করতে হবে না! মা-কালী সব করবেন!

MASTER: "Have faith. Depend on God. Then you will not have to do anything yourself. Mother Kali will do everything for you.

[( 7 मार्च 1885 ) श्रीरामकृष्ण वचनामृत-109 ]

🙏卐शुद्ध आत्मा में विद्या और अविद्या दोनों है किन्तु वह उनसे निर्लिप्त है🙏卐 

[उस निर्लिप्त शुद्ध आत्मा तक केवल भक्ति के सहारे पहुँचा जा सकता है !]

“ज्ञान की पहुँच सदर दरवाजे तक ही है । भक्ति घर के भीतर भी जाती है । शुद्ध आत्मा निर्लिप्त है । उसमें विद्या और अविद्या दोनों हैं परन्तु वह निर्लिप्त है । वायु में कभी सुगन्ध मिलती है, कभी दुर्गन्ध; परन्तु वायु निर्लिप्त है । 

“জ্ঞান সদর মহল পর্যন্ত যেতে পারে। ভক্তি অনদর মহলে যায়। শুদ্ধাত্মা নির্লিপ্ত; বিদ্যা, অবিদ্যা তাঁর ভিতর দুইই আছে, তিনি নির্লিপ্ত। বায়ুতে কখনও সুগন্ধ কখনও দুর্গন্ধ পাওয়া যায়, কিন্তু বায়ু নির্লিপ্ত।

"Jnana goes as far as the outer court, but bhakti can enter the inner court. The Pure Self is unattached. Both vidya and avidya are in It, but It is unattached. Sometimes there is a good and sometimes a bad smell in the air, but the air itself is unaffected.

व्यासदेव यमुना पार कर रहे थे । वहाँ गोपियाँ भी थीं । वे भी पार जाना चाहती थीं, - दही, दूध और मक्खन बेचने के लिए पर वहाँ नाव न थी, सब सोच रही थीं, कैसे पार जायँ । इसी समय व्यासदेव ने कहा, 'मुझे बड़ी भूख लगी है ।" तब गोपियाँ उन्हें दही, दूध, मक्खन, रबड़ी, सब खिलाने लगीं । व्यासदेव लगभग सब साफ कर गये ।

 ব্যাসদেব যমুনা পার হচ্ছিলেন, গোপীরাও সেখানে উপস্থিত। তারাও পারে যাবে — দধি, দুধ, ননী বিক্রী করতে যাচ্ছে, কিন্তু নৌকা ছিল না কেমন করে পারে যাবেন — সকলে ভাবছেন।“এমন সময়ে ব্যাসদেব বললেন, আমার বড় ক্ষুধা পেয়েছে। তখন গোপীরা তাঁকে ক্ষীর, সর, ননী সমস্ত খাওয়াতে লাগলেন। ব্যাসদেবের প্রায় সমস্ত খেয়ে ফেললেন!

"Once Vyasadeva was about to cross the Jamuna. The gopis also were there. They wanted to go to the other side of the river to sell curd, milk, and cream. But there was no ferry at that time. They were all worried about how to cross the river, when Vyasa said to them, 'I am very hungry.' The milkmaids fed him with milk and cream. He finished almost all their food. 

"फिर व्यासदेव ने यमुना से कहा, 'यमुने, अगर मैंने कुछ भी नहीं खाया, तो तुम्हारा जल दो भागों में बँट जाय, बीच से राह हो जाय और हम लोग निकल जायँ ।' ऐसा ही हुआ । यमुना के दो भाग हो गये, बीच से उस पार जाने की राह बन गयी । उसी रास्ते से गोपियों के साथ व्यासदेव पार हो गये ।

“তখন ব্যাসদেব যমুনাকে সম্বোধন করে বললেন — ‘যমুনে! আমি যদি কিছু না খেয়ে থাকি, তাহলে তোমার জল দুইভাগ হবে আর মাঝে রাস্তা দিয়ে আমরা চলে যাব।’ ঠিক তাই হল! যমুনা দুইভাগ হয়ে গেলেন, মাঝে ওপারে যাবার পথ। সেই পথ দিয়ে ব্যাসদেব ও গোপীরা সকলে পার হয়ে গেলেন!

Then Vyasa said to the river, 'O Jamuna, if I have not eaten anything, then your waters will part and we shall walk through.' It so happened. The river parted and a pathway was formed between the waters. Following that path, the gopis and Vyasa crossed the river.

"मैंने नहीं खाया, इसका अर्थ यह है । मैं वही शुद्ध आत्मा हूँ, शुद्ध आत्मा निर्लिप्त है, प्रकृति के परे है । उसे न भूख है, न प्यास; न जन्म है, न मृत्यु; वह अजर, अमर और सुमेरुवत् है !

“আমি ‘খাই নাই’ তার মানে এই যে আমি সেই শুদ্ধাত্মা, শুদ্ধাত্মা নির্লিপ্ত — প্রকৃতির পার। তাঁর ক্ষুধা-তৃষ্ণা নাই। জন্মমৃত্যু নাই, — অজর অমর সুমেরুবৎ!

 Vyasa had said, 'If I have not eaten anything'. That means, the real man is Pure Atman. Atman is unattached and beyond Prakriti. It has neither hunger nor thirst; It knows neither birth nor death; It does not age, nor does It die. It is immutable as Mount Sumeru^ .

[Mount Sumeru^"सुमेरु" पर्वत पृथ्वी की नाभि पर स्थित है। कैसे? इसके लिए सर्वप्रथम "नाभि" को समझना होगा। "नाभि" क्या है? किसी भी वस्तु की "नाभि" उसका "center of gravity" होता है। ऐसा बिंदु जहाँ से उस वस्तु के प्रत्येक बिंदु पर समान बल आरोपित किया जा सके। और हर तरफ समान भार हो। मनुष्य ने हर कल्पना स्वयं अपनी देह से की है। देह का "सेंटर ऑफ ग्रेविटी"-"center of gravity of the body " उसका "नाभिक्षेत्र" होता है। मनुष्य यदि दूसरे मनुष्य को ऊपर उठाना चाहे,  तो एक हाथ अवश्य ही "नाभि" के निकट रखकर बल लगाना होगा।ये तो थी एक असमान आकृति की मनुष्य- देह की बात। पृथ्वी की बात करें तो "नाभि" क्षेत्र क्या होगा? एक ठोस गोले का नाभि क्षेत्र उसका केंद्र होता। यदि केंद्र तक न पहुँच सकें और सतह पर ही "नाभि" खोजनी हो तो सतह  का प्रत्येक बिंदु नाभि क्षेत्र की भांति व्यवहार करता है। इसकी तुलना "Hammer Throw" में प्रयुक्त किये जाने वाले लोहे के गोले और जंजीर के जुड़ाव से कीजिये। गोले की सतह का प्रत्येक बिंदु "नाभि" की भांति कार्य करता है, जंजीर को कहीं भी लगा दीजिये। अतः ये सबसे बड़ा संभ्रम है कि कोई एक ही बिंदु पृथ्वी का "नाभिक्षेत्र" है। "नैमिषारण्य" को पृथ्वी का "नाभि-गयाक्षेत्रे" कहा गया है। कहीं कहीं महाकाल की नगरी "उज्जैन" को "नाभि" माना गया है। एक रोज़ किसी उत्साही वैज्ञानिक के शोधपत्र में, मैंने "श्रीहरिकोटा" को भी "नाभि" लिखा हुआ पढ़ा।"बनारस" को भी कहीं कहीं "नाभि" अभिहित किया हुआ है। क्या आप जानते हैं, ज्ञान के दो रूप होते हैं : "सांद्रित" (Concentrated) और "तनु" (Diluted)। वेदों -उपनिषदों का ज्ञान "सांद्रित" है। पुराणों, रामायण व् महाभारत का ज्ञान "तनु" है। पुराणों की निर्मिति ही इस हेतु से की गयी है कि जिन लोगों को वेदों के "सांद्रित" ज्ञान का बोध न हो सके, वे पुराणों में वर्णित सरल और रोचक कथानकों के माध्यम से सीख प्राप्त करेंधर्म का ज्ञान बहुधा गूढ़ होता है, "सांद्रित" होता है। किंतु विज्ञान हर बात को व्याख्यायित करता है, "तनु" होता है उसका ज्ञान। "सुमेरु" पर्वत चौरासी हज़ार योजन ऊंचा है। इसका अर्थ ये नहीं कि वाकई में चौरासी हज़ार योजन है। बल्कि इसका अर्थ है : " Unselfishness Tends to Infinity"। अर्थात् निःस्वार्थपरता ही अनन्त के करीब है । "सुमेरु" रात्रि में सुनहला चमकता है। क्यों? उसका कारण है, सुमेरु के दक्षिण में असुरों (रात्रिचरों) का स्थान होना। वे लोग रात्रि में अग्नि प्रज्ज्वलित कर, नृत्य आदिक उत्सव करते थे।  और भू विज्ञान कहता है कि यही कोई बाधा न हो तो साठ किमी दूर के बिंदु पर आकाश और पृथ्वी एक दूसरे से स्पर्श होते प्रतीत होते हैं।वर्तमान में "सुमेरु" पर्वत का स्थान तिब्बत में "मानसरोवर" के आसपास ही मानिए, थोड़ा सा उत्तर दिशा में। इसके उत्तर में "रम्यकवर्ष" (रूस) और दक्षिण में "भारतवर्ष" यथावत स्थित हैं। साभार http://veidika.blogspot.com/2019/01/blog-post_91.html] 

[( 7 मार्च 1885 ) श्रीरामकृष्ण वचनामृत-109 ] 

🙏गुरु-शिष्य परम्परा में समाधि जन्य ब्रह्मज्ञान और ईसा के इल्हाम का अन्त🙏 
 
[इल्हाम =ईश्वर की ओर से हृदय में आयी हुई बात, देववाणी, आकाशवाणी।]

"जिसे यह ब्रह्मज्ञान हुआ हो, वह जीवन्मुक्त है । वह ठीक समझता है कि आत्मा अलग है और देह अलग । ईश्वर के दर्शन करने पर फिर देहात्मबुद्धि नहीं रह जाती । दोनों अलग अलग हैं । जैसे नारियल का पानी सूख जाने पर भीतर का गोला और ऊपर का खोपड़ा अलग अलग हो जाते हैं । आत्मा भी उसी गोले की तरह मानो देह के भीतर खड़खड़ाती हो । उसी तरह विषयबुद्धिरूपी पानी के सूख जाने पर आत्मज्ञान होता है । तब आत्मा एक अलग चीज जान पड़ती है और देह एक अलग चीज । कच्ची सुपारी या कच्चे बादाम के भीतर का गूदा छिलके से अलग नहीं किया जा सकता । “परन्तु जब पक्की अवस्था होती है, तब सुपारी और बादाम छिलके से अलग हो जाते हैं । पक्की अवस्था में रस सूख जाता है । ब्रह्मज्ञान के होने पर विषय-रस सूख जाता है

“যার এই ব্রহ্মজ্ঞান হয়েছে, সে জীবন্মুক্ত! সে ঠিক বুঝতে পারে যে, আত্মা আলাদা আর দেহ আলাদা। ভগবানকে দর্শন করলে দেহাত্মবুদ্ধি আর থাকে না! দুটি আলাদা। যেমন নারিকেলের জল শুকিয়ে গেলে শাঁস আলাদা আর খোল আলাদা হয়ে যায়। আত্মাটি যেন দেহের ভিতর নড়নড় করে। তেমনি বিষয়বুদ্ধিরূপ জল শুকিয়ে গেলে আত্মজ্ঞান হয়। আত্মা আলাদা আর দেহ আলাদা বোধ হয়। কাঁচা সুপারি বা কাঁচা বাদামের ভিতরের সুপারি বা বাদাম ছাল থেকে তফাত করা যায় না। “কিন্তু পাকা অবস্থায় সুপারি বা বাদাম আলাদা — ও ছাল আলাদা হয়ে যায়। পাকা অবস্থায় রস শুকিয়ে যায়। ব্রহ্মজ্ঞান হলে বিষয়রস শুকিয়ে যায়।

"He who has attained this Knowledge of Brahman is a jivanmukta, liberated while living in the body. He rightly understands that the Atman and the body are two separate things. After realizing God one does not identify the Atman with the body. These two are separate, like the kernel and the shell of the coconut when its milk dries up. The Atman moves, as it were, within the body. When the 'milk' of worldly-mindedness has dried up, one gets Self-Knowledge. Then one feels that Atman and body are two separate things. The kernel of a green almond or betel-nut cannot be separated from the shell; but when they are ripe the juice dries up and the kernel separates from the shell. After the attainment of the Knowledge of Brahman, the 'milk' of worldly-mindedness dries up.

“परन्तु वह ज्ञान होना बड़ा कठिन है । कहने से ही किसी को ब्रह्मज्ञान नहीं हो जाता । कोई ज्ञान होने का ढोंग करता है । (हँसकर) एक आदमी बहुत झूठ बोलता था । इघर यह भी कहता था कि मुझे ब्रह्मज्ञान हो गया है । किसी दूसरे के तिरस्कार करने पर उसने कहा, 'क्यों जी, संसार तो स्वप्नवत् है ही, अतएव सब अगर मिथ्या हो तो सच बात ही कहाँ से सही होगी ? झूठ भी झूठ है और सच भी झूठ ही है ।" (सब हँसते हैं ।).

“কিন্তু সে জ্ঞান বড় কঠিন। বললেই ব্রহ্মজ্ঞান হয় না! কেউ জ্ঞানের ভান করে। (সহাস্য) একজন বড় মিথ্যা কথা কইত, আবার এদিকে বলত — আমার ব্রহ্মজ্ঞান হয়েছে। কোনও লোক তাকে তিরস্কার করাতে সে বললে, কেন জগৎ তো স্বপ্নবৎ, সবই যদি মিথ্যা হল সত্য কথাটাই কি ঠিক! মিথ্যাটাও মিথ্যা, সত্যটাও মিথ্যা!” (সকলের হাস্য)

"But it is extremely difficult to attain the Knowledge of Brahman. One doesn't get it by merely talking about it. Some people feign it. (Smiling) There was a man who was a great liar; but, on the other hand, he used to say he had the Knowledge of Brahman. When someone took him to task for telling lies, he said: 'Why, this world is truly like a dream. If everything is unreal, then can truth itself be rea1? Truth is as unreal as falsehood.'" (All laugh.)

(३)

 [( 7 मार्च 1885 ) श्रीरामकृष्ण वचनामृत-109 ]

*अवतारलीला तथा योगमाया आद्या-शक्ति*

🙏卐  सिंह-शावक का अज्ञान और भ्रम गुरुदेव की पदसेवा करने से दूर हो जाता है🙏卐   

 শ্রীরামকৃষ্ণের পদসেবা করলে অজ্ঞান অবিদ্যা (मोह) একেবারে চলে যায়। 

[Through this service -'The stroking of HIS feet'

 the ignorance and illusion (मरीचिका) will be completely destroyed.]

श्रीरामकृष्ण भक्तों के साथ जमीन पर चटाई पर बैठे हुए हैं । प्रसन्नमुख हैं । भक्तों से कह रहे हैं, "मेरे पैरों पर जरा हाथ तो फेर दो ।" भक्तगण उनके पैर दाब रहे हैं । मास्टर से हँसकर कहते हैं, "इसके (पैर दाबने के) बहुत अर्थ हैं ।" फिर अपने हृदय पर हाथ रखकर कह रहे हैं, "यदि इसके भीतर कुछ है तो (पद सेवा करने पर) अज्ञान, अविद्या (भ्रम) सब दूर हो जायेंगे ।"

শ্রীরামকৃষ্ণ ভক্তসঙ্গে মেঝেতে মাদুরের উপর বসিয়া আছেন। সহাস্যবদন। ভক্তদের বলিতেছেন, আমার পায়ে একটু হাত বুলিয়ে দে তো। ভক্তেরা পদসেবা করিতেছেন। (মাস্টারের প্রতি, সহাস্যে) “এর (পদসেবার) অনেক মানে আছে।”আবার নিজের হৃদয়ে হাত রাখিয়া বলিতেছেন, “এর ভিতর যদি কিছু থাকে (পদসেবা করলে) অজ্ঞান অবিদ্যা একেবারে চলে যায়।”

Sri Ramakrishna sat with the devotees on the mat on the floor. He was smiling. He said to the devotees, "Please stroke my feet gently." They carried out his request. He said to M:, "There is great significance in this." (The stroking of his feet) Placing his hand on his heart, the Master said, "If there is anything here, then through this service the ignorance and illusion of the devotees will be completely destroyed."

 [( 7 मार्च 1885 ) श्रीरामकृष्ण वचनामृत-109 ]

भगवान श्री रामकृष्ण द्वारा परम् सत्य का उद्घाटन 

[ 'राम की शक्तिपूजा' (श्री दुर्गारूप की पूजा) श्री रामकृष्ण वचनामृत के हिन्दी अनुवादक श्री पं. सूर्यकान्त त्रिपाठी ‘निराला’ द्वारा रचित काव्य है। यह एक कथात्मक कविता है, इसलिए संश्लिष्ट होने के बावजूद इसकी सरचना अपेक्षाकृत सरल है। इस कविता पर  बांग्ला के कृतिवास रामायण का प्रभाव स्पष्ट  देखा जाता है। निराला बाल्यावस्था से लेकर युवाववस्था तक बंगाल में ही रहे और बंगाल में ही सबसे अधिक शक्ति का रूप दुर्गा की पूजा होती है।  युद्ध के प्रारंभ में शक्ति माँ दुर्गा  रावण के साथ है। युद्ध के अंत में वह रावण का साथ छोड़कर राम के साथ हो जाती है। 'शक्ति' की इस छीनाझपटी में शक्ति का अपना मूल्य और सिद्धांत क्या है? रावण उसे तपस्या से पाता है, राम को भी यही सलाह दी जाती है। सलाह देने वाले जामवंत जी एक चतुर नौकरशाह के गुणों से संपन्न व्यक्ति हैं। रावण तो अशुद्ध है। यदि अशुद्ध होकर वह शक्ति का पक्ष पा सकता है, तो तुम तो उससे भी कम समय में 'शक्ति' को 'सिद्ध' कर सकते हो, तुम्हें पूजन करना होगा। युद्ध के आरंभ में राम यद्यपि अपूर्व पराक्रम से लड़ते हैं, फिर भी पलड़ा रावण का भारी रहता है। राम यह देखकर हैरत से भर जाते हैं कि स्वयं दुर्गा जो शक्ति की प्रतीक हैं, वह रावण के पक्ष में खड़ी हुई हैं। राम भी यह सोचकर निस्तब्ध हैं-

"अन्याय जिधर, हैं उधर शक्ति! कहते छल छल;

हो गए नयन, कुछ बूंद पुनः ढलके द्रगजल।"

युद्ध के प्रारंभ में शक्ति माँ दुर्गा  रावण के साथ है। युद्ध के अंत में वह रावण का साथ छोड़कर राम के साथ हो जाती है। 'शक्ति' की इस छीनाझपटी में शक्ति का अपना मूल्य और सिद्धांत क्या है? रावण उसे तपस्या से पाता है, राम को भी यही सलाह दी जाती है। सलाह देने वाले जामवंत जी एक चतुर नौकरशाह के गुणों से संपन्न व्यक्ति हैं। रावण तो अशुद्ध है। यदि अशुद्ध होकर वह शक्ति का पक्ष पा सकता है, तो तुम तो उससे भी कम समय में 'शक्ति' को 'सिद्ध' कर सकते हो, तुम्हें पूजन करना होगा।  भगवान राम  इस दैवीय विधान को समझ नहीं पाते कि शक्ति का यह कैसा खेल है, जिसमें नियति, न्याय के पक्ष को ही कमजोर बना रही है। इसलिए जब देवी दुर्गा राम की परीक्षा लेने के लिए यज्ञ के पूर्ण होने से पहले ही एक पुष्प को गायब कर देती हैं, तो राम का धैर्य जवाब दे जाता है।" क्षण भर के लिए विचलित होकर वह पुनः संभल जाते हैं। पुष्प के स्थान पर अपने नयन का अर्पण प्रस्तुत करके वह शक्ति को प्रसन्न कर देते हैं। कवि (Kavi Nirala) ने 'राम की शक्तिपूजा' (श्री दुर्गारूप की पूजा) की अंतिम पंक्तियों में  मां दुर्गा की आराधना में भगवान राम द्वारा अपने नेत्र समर्पित करने की घटना को बड़े ही सुंदर ढंग से प्रस्तुत किया है-

"कहती थीं माता मुझको सदा राजीवनयन,

दो नील कमल हैं शेष अभी, यह पुरश्चरण,

पूरा करता हूं देकर मात एक नयन। "

कहकर देखा तूणीर ब्रह्मशर रहा झलक,

ले लिया हस्त लक लक करता वह महाफलक

ले अस्त्र वाम पर, दक्षिण कर दक्षिण लोचन

ले अर्पित करने को उद्यत हो गये सुमन

जिस क्षण बंध गया बेधने को दृग दृढ़ निश्चय,

कांपा ब्रह्माण्ड, हुआ देवी का त्वरित उदय.

"साधु, साधु, साधक धीर, धर्म-धन धन्य राम !"

कह, लिया भगवती ने राघव का हस्त थाम।

देखा राम ने, सामने श्री दुर्गा, भास्वर

वामपद असुर स्कन्ध पर, रहा दक्षिण हरि पर।

ज्योतिर्मय रूप, हस्त दश विविध अस्त्र सज्जित,

मन्द स्मित मुख, लख हुई विश्व की श्री लज्जित।

हैं दक्षिण में लक्ष्मी, सरस्वती वाम भाग,

दक्षिण गणेश, कार्तिक बायें रणरंग राग,

मस्तक पर शंकर! पदपद्मों पर श्रद्धाभर

श्री राघव हुए प्रणत मन्द स्वरवन्दन कर।

“होगी जय, होगी जय, हे पुरूषोत्तम नवीन।”

कह महाशक्ति राम के वदन में हुई लीन।

Revealation of the Absolute Truth by Lord Sri Ramakrishna

 [( 7 मार्च 1885 ) श्रीरामकृष्ण वचनामृत-109 ]

🙏卐 सच्चिदानन्द को हर युग में अवतार लेकर शक्ति की पूजा करनी पड़ती है🙏卐  

সচ্চিদানন্দকে প্রতিটি যুগে অবতার হয়ে শক্তির আরাধনা করতে হয়।

एकाएक श्रीरामकृष्ण गम्भीर हो गये, जैसे कोई गूढ़ विषय कहनेवाले हों ।

হঠাৎ শ্রীরামকৃষ্ণ গম্ভীর হইলেন, যেন কি গুহ্যকথা বলিবেন।

Suddenly Sri Ramakrishna became serious, as if about to reveal a secret.

श्रीरामकृष्ण (मास्टर से) - यहाँ दूसरा कोई आदमी नहीं है । उस दिन यहाँ हरीश था - मैंने देखा - गिलाफ को (देह* को) छोड़कर सच्चिदानन्द बाहर हो आया; निकलकर उसने कहा, 'हरएक युग में मैं ही अवतार लेता हूँ ।' तब मैंने सोचा, यह मेरी ही कोई कल्पना होगी । फिर चुपचाप देखने लगा - तब मैंने देखा, वह स्वयं कह रहा है, "शक्ति की आराधना चैतन्य को भी करनी पड़ी थी ।’ (*श्रीरामकृष्ण की देह)

শ্রীরামকৃষ্ণ (মাস্টারের প্রতি) — এখানে অপর লোক কেউ নাই। সেদিন — হরিশ কাছে ছিল — দেখলাম — খোলটি (দেহটি) ছেড়ে সচ্চিদানন্দ বাহিরে এল, এসে বললে, আমি যুগে যুগে অবতার! তখন ভাবলাম, বুঝি মনের খেয়ালে ওই সব কথা বলছি। তারপর চুপ করে থেকে দেখলাম — তখন দেখি আপনি বলছে, শক্তির আরাধনা চৈতন্যও করেছিল

MASTER (to M.): "There is no outsider here. The other day, when Harish was with me, I saw Satchidananda come out of this sheath. (Sri Ramakrishna's body.) It said 'I incarnate Myself in every age.' I thought that I myself was saying these words out of mere fancy. I kept quiet and watched. Again Satchidananda Itself spoke, saying, 'Chaitanya, too, worshipped Sakti.'

सब भक्त आश्चर्यचकित होकर सुन रहे हैं । कोई कोई सोच रहे हैं, क्या सच्चिदानन्द भगवान् ही श्रीरामकृष्ण का रूप धारण कर हमारे पास बैठे है ? भगवान् क्या फिर अवतीर्ण हुए हैं ?

ভক্তেরা সকলে অবাক্‌ হইয়া শুনিতেছেন। কেহ কেহ ভাবিতেছেন — সচ্চিদানন্দ ভগবান কি শ্রীরামকৃষ্ণের রূপ ধারণ করিয়া আমাদের কাছে বসিয়া আছেন? ভগবান কি আবার অবতীর্ণ হইয়াছেন?

The devotees listened to these words in amazement. Some wondered whether God Himself was seated before them in the form of Sri Ramakrishna??? 

श्रीरामकृष्ण ने मास्टर से फिर कहा, "मैंने देखा, इस समय पूर्ण आविर्भाव है, परन्तु ऐश्वर्य सत्त्व गुण का है ।" भक्तगण विस्मित होकर सुन रहे हैं ।

শ্রীরামকৃষ্ণ কথা কহিতেছেন। মাস্টারকে সম্বোধন করিয়া আবার বলিতেছেন — “দেখলাম, পূর্ণ আর্বিভাব। তবে সত্ত্বগুণের ঐশ্বর্য।ভক্তেরা সকলে অবাক্‌ হইয়া এই সকল কথা শুনিতেছেন।

The Master paused a moment. Then he said, addressing M., "I saw that it is the fullest manifestation of Satchidananda; but this time the Divine Power is manifested through the glory of sattva."The devotees sat spellbound.

🙏योगमाया  आद्याशक्ति और अवतारलीला-Leadership 🙏  

[যোগমায়া আদ্যাশক্তি ও অবতারলীলা ]

 [( 7 मार्च 1885 ) श्रीरामकृष्ण वचनामृत-109 ]

🙏शेर (CINC) की मांद में जाने वालों के पदचिन्ह मिलते हैं लौटने वालों के नहीं- क्यों ?🙏 

[जीवनमुक्त गुरु ये नेता से मिलने उनके पास जो जाते हैं, वे पुनः लौटते नहीं ! 

नरेन्द्र का विवेकानन्द बन जाना यही दर्शाता है !] 

श्रीरामकृष्ण (मास्टर से) - "अभी अभी मैं माँ से कह रहा था, माँ, अब मुझसे बका नहीं जाता और कह रहा था, एक बार छू देने पर ही आदमी को चैतन्य हो । योगमाया की महिमा भी ऐसी है कि वह गोरखधन्धे में डाल देती है वृन्दावन की लीला के समय योगमाया ने वैसा ही किया । और उसी के बल से सुबल ने श्रीकृष्ण से श्रीमती को मिला दिया था । जो आद्याशक्ति हैं, उस योगमाया में एक आकर्षण शक्ति है । मैंने उसी शक्ति का आरोप किया था ।

শ্রীরামকৃষ্ণ (মাস্টারের প্রতি) — এখন মাকে বলছিলাম, আর বকতে পারি না। আর বলছিলাম, ‘মা যেন একবার ছুঁয়ে দিলে লোকের চৈতন্য হয়।’ যোগমায়ার এমনি মহিমা — তিনি ভেলকি লাগিয়ে দিতে পারেন। বৃন্দাবনলীলায় যোগমায়া ভেলকি লাগিয়ে দিলেন। তাঁরই বলে সুবোল কৃষ্ণের সঙ্গে শ্রীমতীর মিলন করে দিছলেন। যোগমায়া — যিনি আদ্যাশক্তি — তাঁর একটি আকর্ষণী শক্তি আছে। আমি ওই শক্তির আরোপ করেছিলাম।

MASTER (to M.): "Just now I was saying to the Mother, 'I cannot talk much.' I also said to Her, 'May people's inner consciousness be awakened by only one touch!' You see, such is the power of Yogamaya that She can cast a spell. She did so at Vrindavan. That is why Subol (One of the companions of Sri Krishna.) was able to unite Sri Krishna and Radhika. Yogamaya, the Primal Power, has a power of attraction. I applied that power myself.

“अच्छा जो लोग आते हैं, उन्हें कुछ होता है ?"[आध्यत्मिक अनुभव -मिथ्या अहं की विलुप्ति ??] 

“আচ্ছা, যারা আসে তাদের কিছু কিছু হচ্ছে?”

(To M.) "Well, do you think that those who come here are realizing anything?"

मास्टर - जी हाँ, होता क्यों नहीं ?

মাস্টার — আজ্ঞা হাঁ, হচ্ছে বইকি।

M: "Yes, sir, it must be so."

श्रीरामकृष्ण - तुम्हें मालूम कैसे हुआ ?

শ্রীরামকৃষ্ণ — কেমন করে জানলে?

MASTER: "How do you know?"

मास्टर (सहास्य) - सब कहते हैं, उनके पास जो जाते हैं, वे लौटते नहीं

মাস্টার (সহাস্যে) সবাই বলে, তাঁর কাছে যারা যায় তারা ফেরে না!

M. (smiling): "Everyone says, 'Whoever goes to him (C-IN-C) doesn't return to the world.'"

श्रीरामकृष्ण (सहास्य ) - एक बड़ा मेढक पनियां साँप के पाले पड़ा था । साँप न उसे निगल सकता था, न छोड़ सकता था ! मेंढक भी आफत में पड़ा था; लगातार टें टें कर रहा था और साँप की भी जान आफत में थी । परन्तु वह मेढक अगर गोखुरे साँप के पाले पड़ता तो दो ही एक पुकार में उसे ठण्डा हो जाना पड़ता ! (सब हँसते हैं ।)

শ্রীরামকৃষ্ণ (সহাস্যে) — একটা কোলাব্যাঙ হেলেসাপের পাল্লায় পড়েছিল। সে ওটাকে গিলতেও পারছে না, ছাড়তেও পারছে না! আর কোলাব্যাঙটার যন্ত্রণা — সেটা ক্রমাগত ডাকছে! ঢোঁড়াসাপটারও যন্ত্রণা। কিন্তু গোখরোসাপের পাল্লায় যদি পড়ত তাহলে দু-এক ডাকেই শান্তি হয়ে যেত। (সকলের হাস্য)

MASTER (smiling): "A bullfrog was caught by a water-snake. The snake could neither swallow the frog nor let it go. As a result the frog suffered very much; he croaked continuously. And the snake suffered too. But if the frog had been seized by a cobra, he would have been quiet after one or two croaks. (All laugh.)

 [( 7 मार्च 1885 ) श्रीरामकृष्ण वचनामृत-109 ]

🙏किशोर विवेक -वाहिनी का पाठचक्र 🙏

(किशोर भक्तों से) - “तुम लोग त्रैलोक्य की वह पुस्तक - 'भक्ति चैतन्यचन्द्रिका’ – पढ़ना । उससे एक किताब माँग लेना । उसमें चैतन्यदेव की बड़ी अच्छी बातें लिखी हैं ।"

(ছোকরা ভক্তদের প্রতি) — “তোরা ত্রৈলোক্যের সেই বইখানা পড়িস — ভক্তিচৈতন্যচন্দ্রিকা। তার কাছে একখানা চেয়ে নিস না। বেশ চৈতন্যদেবের কথা আছে।”

(To the young devotees) "Read the Bhaktichaitanyachandrika by Trailokya. Ask Trailokya for a copy. He has written well about Chaitanyadeva."

एक भक्त - क्या वे देंगे ?

একজন ভক্ত — তিনি দেবেন কি?

A DEVOTEE: "Will he give it to us?"

श्रीरामकृष्ण (सहास्य) - क्यों, खेत में अगर बहुत सी ककड़िया हुई हों, तो मालिक दो तीन मुफ्त ही दे सकता है । (सब हँसते हैं ।) क्या मुफ्त नहीं देगा – तू क्या कहता है ?

শ্রীরামকৃষ্ণ (সহাস্যে) — কেন, কাঁকুড়ক্ষেত্রে যদি অনেক কাঁকুড় হয়ে থাকে তাহলে মালিক ২/৩টা বিলিয়ে দিতে পারে! (সকলের হাস্য) অমনি কি দেবে না — কি বলিস?

MASTER (smiling): "Why not? If a farmer has a good crop of melons he can easily give away two or three. (All laugh.) Won't Trailokya give you the book free?

(पल्टू से) - "यहाँ एक बार आना ।"

শ্রীরামকৃষ্ণ (পল্টুর প্রতি) — আসিস এখানে এক-একবার।

(To Paltu) "Come here now and then."

पल्टू - हो सका तो आऊँगा ।

পল্টু — সুবিধা হলে আসব।

PALTU: "I shall come whenever I can."

श्रीरामकृष्ण - मैं कलकत्ते में जहाँ जाऊँ, वहाँ तू जायेगा या नहीं ?

শ্রীরামকৃষ্ণ — কলকাতায় যেখানে যাব, সেখানে যাবি?

MASTER: "Will you see me in Calcutta when I go there?"

पल्टू - जाऊँगा; कोशिश करूँगा ।

পল্টু — যাব, চেষ্টা করব।

PALTU: "Yes, I shall try."

श्रीरामकृष्ण - यह पटवारी बुद्धि है ।

শ্রীরামকৃষ্ণ — ওই পাটোয়ারী!

MASTER: "That's the answer of a calculating mind."

पल्टू - 'कोशिश करूँगा' यह अगर न कहूँ तो बात झूठ हो सकती है ।

পল্টু — ‘চেষ্টা করব’ না বললে যে মিছে কথা হবে।

PALTU: "If I don't say, 'I shall try', I may be a liar."

श्रीरामकृष्ण (मास्टर से) - इनकी बातों को मैं झूठ में शामिल नहीं करता, क्योंकि वे स्वाधीन नहीं हैं ।

শ্রীরামকৃষ্ণ (মাস্টারের প্রতি) — ওদের মিছে কথা ধরি না, ওরা স্বাধীন নয়।

MASTER (to M.): "I don't mind the lies of these boys. They are not free.

(हरिपद से) - "महेन्द्र मुखर्जी क्यों नहीं आता ?”

ঠাকুর হরিপদর সঙ্গে কথা কহিতেছেন।শ্রীরামকৃষ্ণ (হরিপদর প্রতি) — মহেন্দ্র মুখুজ্জে কেন আসে না?

(To Haripada) "Why hasn't Mahendra Mukherji come here lately?"

हरिपद - मैं ठीक ठीक नहीं कह सकता ।

হরিপদ — ঠিক বলতে পারি না।

HARIPADA: "I'm not quite sure why."

मास्टर - (सहास्य) - वे ज्ञानयोग कर रहे हैं ।

মাস্টার (সহাস্যে) — তিনি জ্ঞানযোগ করছেন।

M. (smiling): "He Is practicing jnana yoga!"

श्रीरामकृष्ण - नहीं, उस दिन प्रह्लाद-चरित्र दिखाने के लिए उसने गाड़ी भेजने के लिए कहा था, परन्तु फिर भेज नहीं सका, शायद इसीलिए आता भी नहीं ।

শ্রীরামকৃষ্ণ — না, সেদিন প্রহ্লাদচরিত্র দেখাবে বলে গাড়ি পাঠিয়ে দেবে বলেছিল। কিন্তু দেয় নাই, বোধ হয় এইজন্য আসে না।

MASTER: "No, it's not that. The other day he promised to send me in his carriage to the theatre to see a play about the life of Prahlada; but he didn't send the carriage. Perhaps that is why he doesn't come."

मास्टर - एक दिन महिम चक्रवर्ती से मुलाकात हुई थी, बातचीत भी हुई थी । जान पड़ता है, वे (महेन्द्र) उनके पास आया-जाया करते हैं ।

মাস্টার — একদিন মহিম চক্রবর্তীর সঙ্গে দেখা ও আলাপ হয়েছিল। সেইখানে যাওয়া আসা করেন বলে বোধ হয়।

M: "One day I saw Mahima Chakravarty and had a talk with him. It seems that Mahendra visits him."

श्रीरामकृष्ण - क्यों, महिम तो भक्ति की बातें भी करता है । वह तो कहता भी है खूब – ‘आराधितो यदि हरिस्तपसा ततः किम् ।'

শ্রীরামকৃষ্ণ — কেন মহিমা তো ভক্তির কথাও কয়। সে তো ওইটে খুব বলে, ‘আরাধিতো যদি হরিস্তপসা ততঃ কিম্‌।’

MASTER: "But Mahima talks about bhakti also. He loves to recite the hymn: 'What need is there of penance if God is worshipped with love?'"

मास्टर (हँसकर) - आप कहलाते हैं, इसीलिए वह कहता है । श्री गिरीश घोष श्रीरामकृष्ण के पास पहले-पहल आने-जाने लगे हैं । आजकल वे सदा श्रीरामकृष्ण की ही बातों में रहते हैं ।

মাস্টার (সহাস্যে) — সে আপনি বলান তাই বলে! শ্রীযুক্ত গিরিশ ঘোষ ঠাকুরের কাছে নূতন যাতায়াত করিতেছেন। আজকাল তিনি সর্বদা ঠাকুরের কথা লইয়া থাকেন।

M. (smiling): "He says that because you make him say it." Girish Chandra Ghosh was always talking to the devotees about the Master.

हरि - गिरीश घोष आजकल कितनी ही तरह के दर्शन करते हैं । यहाँ से लौटने पर सर्वदा ईश्वरी भाव में रहते हैं ।

হরি — গিরিশ ঘোষ আজলাল অনেকরকম দেখেন। এখান থেকে গিয়ে অবধি সর্বদা ঈশ্বরের ভাবে থাকেন — কত কি দেখেন!

HARIPADA: "Girish Ghosh sees many visions nowadays. After going home from here he remains absorbed in spiritual moods and sees many things."

श्रीरामकृष्ण - यह हो सकता है, गंगा के पास जाओ तो कितनी ही तरह की चीजें दीख पड़ती हैं - नाव, जहाज - कितनी चीजें ।

শ্রীরামকৃষ্ণ — তা হতে পারে, গঙ্গার কাছে গেলে অনেক জিনিস দেখা যায়, নৌকা, জাহাজ — কত কি।

MASTER: "That may be true. Coming to the Ganges, one sees many things — boats, ships, and what not."

हरि - गिरीश घोष कहते हैं, 'अब सिर्फ कर्म लेकर रहूँगा, सुबह को घड़ी देखकर दवात-कलम लेकर बैठूँगा और दिन भर वही काम (पुस्तकें लिखना) किया करूँगा ।' इस तरह कहते हैं, पर कर नहीं सकते । हम लोग जाते हैं तो बस यहीं की बातें किया करते हैं । आपने नरेन्द्र को भेजने के लिए कहा था; गिरीश बाबू ने कहा, 'नरेन्द्र को किराये की गाड़ी कर दूंगा ।’

হরি — গিরিশ ঘোষ বলেন, ‘এবার কেবল কর্ম নিয়ে থাকব, সকালে ঘড়ি দেখে দোয়াত কলম নিয়ে বসব ও সমস্ত দিন ওই (বই লেখা) করব।’ এইরকম বলেন কিন্তু পারেন না। আমরা গেলেই কেবল এখানকার কথা। আপনি নরেন্দ্রকে পাঠাতে বলেছিলেন। গিরিশবাবু বললেন, ‘নরেন্দ্রকে গাড়ি করে দিব।’

HARIPADA: "Girish Ghosh says: 'From now on I shall occupy myself only with my work. In the morning, on the stroke of the clock, I shall sit down with my pen and ink-pot and write for the whole day.' He makes the resolve, no doubt, but cannot carry it out. No sooner do we visit him than he begins to talk about you. You asked him to send Narendra here in a carriage. He said, 'I shall hire a carriage for Narendra.'"

पाँच बजे हैं, छोटे नरेन्द्र घर जा रहे हैं । श्रीरामकृष्ण उत्तरपूर्ववाले लम्बे बरामदे में खड़े हुए एकान्त में उन्हें अनेक प्रकार के उपदेश दे रहे हैं । कुछ देर बाद श्रीरामकृष्ण को प्रणाम कर वे बिदा हुए; और भी कितने ही भक्तों ने बिदाई ली ।

৫টা বাজিয়াছে। ছোট নরেন বাড়ি যাইতেছেন। ঠাকুর উত্তর-পূর্ব লম্বা বারান্দায় দাঁড়াইয়া একান্তে তাঁহাকে নানাবিধ উপদেশ দিতেছেন। কিয়ৎপরে তিনি প্রণাম করিয়া বিদায় গ্রহণ করিলেন। অন্যান্য ভক্তেরাও অনেকে বিদায় গ্রহণ করিলেন।

At five o'clock the younger Naren was ready to go home. Sri Ramakrishna stood by his side on the northeast verandah and gave him various instructions. Then the boy saluted the Master and departed. Many of the devotees also took their leave.

श्रीरामकृष्ण छोटे तखत पर बैठे हुए मोहिनीमोहन से बातचीत कर रहे हैं । लड़के के गुजर जाने पर उनकी स्त्री एक तरह से पागल सी हो गयी है । कभी रोती है, कभी हँसती है । श्रीरामकृष्ण के पास आकर बहुत कुछ शान्त हो जाती है ।

শ্রীরামকৃষ্ণ ছোট খাটটিতে বসিয়া মোহিনীর সঙ্গে কথা কহিতেছেন। পরিবারটি পুত্রশোকের পর পাগলের মতো। কখন হাসেন, কখনও কাঁদেন, দক্ষিণেশ্বরে ঠাকুরের কাছে এসে কিছু শান্তভাব হয়।

Sri Ramakrishna was sitting on the small couch talking to Mohini. Mohini's wife was almost mad with grief on account of her son's death. Sometimes she laughed and sometimes she wept. But she felt peaceful in Sri Ramakrishna's presence.

श्रीरामकृष्ण - तुम्हारी स्त्री इस समय कैसी है ?

শ্রীরামকৃষ্ণ — তোমার পরিবার এখন কিরকম?

MASTER: "How is your wife now?"

मोहिनी - यहाँ आने ही से शान्त हो जाती है, वहाँ तो कभी-कभी बड़ा उत्पात मचाती है । अभी उस दिन मरने पर तुली हुई थी ।

মোহিনী — এখানে এলেই শান্ত হন, সেখানে মাঝে মাঝে বড় হাঙ্গাম করেন। সেদিন মরতে গিছলেন।

MOHINI: "She becomes quiet whenever she is here; but sometimes at home she becomes very wild. The other day she was going to kill herself."

श्रीरामकृष्ण सुनकर कुछ देर सोचते रहे । मोहिनीमोहन ने विनयपूर्वक कहा, "आप दो-एक बातें बता दीजिये ।"

ঠাকুর শুনিয়া কিয়ৎকাল চিন্তিত হইয়া রহিলেন। মোহিনী বিনীতভাবে বলিতেছেন, “আপনার দু-একটা কথা বলে দিতে হবে।”

When Sri Ramakrishna heard this he appeared worried. Mohini said to him humbly, "Please give her a few words of advice."

श्रीरामकृष्ण - उससे भोजन न पकवाना । इससे सिर और भी गरम हो जाता है । और साथ-साथ आदमी रखे रहना ।

শ্রীরামকৃষ্ণ — রাঁধতে দিও না। ওতে মাথা আরও গরম হয়। আর লোকজনের সঙ্গে রাখবে।

MASTER: "Don't allow her to cook. That will heat her brain all the more. And keep her in the company of others so that they may watch her."

(४)

 [( 7 मार्च 1885 ) श्रीरामकृष्ण वचनामृत-109 ]

*श्रीरामकृष्ण की अद्भुत संन्यासावस्था*

शाम हो गयी, श्रीठाकुरबाड़ी में आरती के लिए तैयारी हो रही है । श्रीरामकृष्ण के कमरे में दिया जला दिया गया और धूनी भी दी जा चुकी । श्रीरामकृष्ण छोटे तखत पर बैठे हुए जगन्माता को प्रणाम कर मधुर स्वर से उनका नाम ले रहे हैं । कमरे में और कोई नहीं है, सिर्फ मास्टर बैठे हुए हैं । श्रीरामकृष्ण उठे । मास्टर भी खड़े हो गये ।

সন্ধ্যা হইল। ঠাকুরবাড়িতে অরতির উদ্যোগ হইতেছে। শ্রীরামকৃষ্ণের ঘরে আলো জ্বালা ও ধুনা দেওয়া হইল। ঠাকুর ছোট খাটটিতে বসে জগন্মাতাকে প্রণাম করিয়া সুস্বরে নাম করিতেছেন। ঘরে আর কেহ নাই। কেবল মাস্টার বসিয়া আছেন।

It was dusk. Preparations were going on in the temples for the evening worship. The lamp was lighted in the Master's room and incense was burnt. Seated on the small couch, Sri Ramakrishna saluted the Divine Mother and chanted Her name in a tender voice. There was nobody in the room except M., who was sitting on the floor.

श्रीरामकृष्ण ने कमरे के पश्चिम और उत्तर के दरवाजों को दिखाकर उन्हें बन्द कर देने के लिए कहा । मास्टर दरवाजे बन्द कर बरामदे में श्रीरामकृष्ण के पास आकर खड़े हुए ।श्रीरामकृष्ण ने कहा, "अब मैं कालीमन्दिर जाऊँगा ।" यह कहकर मास्टर का हाथ पकड़ उनके सहारे कालीमन्दिर के सामने मन्दिर के चबूतरे पर जाकर बैठे । बैठने के पहले कह रहे हैं, "तुम उसे बुला तो लो ।" मास्टर ने बाबूराम को बुला दिया ।

ঠাকুর গাত্রোত্থান করিলেন। মাস্টারও দাঁড়াইলেন। ঠাকুর ঘরের পশ্চিমের ও উত্তরের দরজা দেখাইয়া মাস্টারকে বলিতেছেন, “ওদিকগুলো (দরজাগুলি) বন্ধ করো।” মাস্টার দরজাগুলি বন্ধ করিয়া বারান্দায় ঠাকুরের কাছে আসিয়া দাঁড়াইলেন। ঠাকুর বলিতেছেন, “একবার কালীঘরে যাব।” এই বলিয়া মাস্টারের হাত ধরিয়া ও তাঁহার উপর ভর দিয়া কালীঘরের সম্মুখের চাতালে গিয়া উপস্থিত হইলেন আর সেই স্থানে বসিলেন। বসিবার পূর্বে বলিতেছেন, “তুমি বরং ওকে ডেকে দাও।” মাস্টার বাবুরামকে ডাকিয়া দিলেন।

Sri Ramakrishna rose from the couch. M. also stood up. The Master asked him to shut the west and north doors of the room. M. obeyed and stood by Sri Ramakrishna on the porch. The Master said that he wanted to go to the Kali temple. Leaning on M.'s arm, he came down to the terrace of the temple. He asked M. to call Baburam and sat down.

श्रीरामकृष्ण काली के दर्शन कर उस बड़े आँगन से होकर अपने कमरे की ओर लौट रहे हैं । मुख से "माँ ! माँ ! राज राजेश्वरी !" कहते जा रहे हैं । कमरें में आकर अपने छोटे तखत पर बैठ गये । श्रीरामकृष्ण की एक अद्भुत अवस्था है । किसी धातु की वस्तु को छू नहीं सकते ।

ঠাকুর মা-কালী দর্শন করিয়া বৃহৎ উঠানের মধ্য দিয়া নিজের ঘরে ফিরিতেছেন। মুখে “মা! মা! রাজরাজেশ্বরী!”ঘরে আসিয়া ছোট খাটটিতে বসিলেন। ঠাকুরের একটি অদ্ভুত অবস্থা হইয়াছে। কোন ধাতুদ্রব্যে হাত দিতে পারিতেছেন না।

After visiting the Divine Mother, the Master returned to his room across the court, chanting, "O Mother! Mother! Rajarajesvari!"Sri Ramakrishna entered his room and sat on the small couch. He had been passing through an extraordinary state of mind: he could not touch any metal. 

उन्होंने कहा था, "माँ अब ऐश्वर्य की बातें शायद मन से बिलकुल हटा दे रही हैं ।” अब वे केले के पत्ते में भोजन करते हैं । मिट्टी के बर्तन में पानी पीते हैं । गडुआ नहीं छू सकते । इसीलिए भक्तों से मिट्टी के बर्तन ले आने के लिए कहा था । गडुए या थाली में हाथ लगाने से हाथ में झुनझुनी-सी चढ़ जाती है, दर्द होने लगता है, - जैसे सिंगी मछली का काँटा चुभ गया हो ।

বলিয়াছিলেন, “মা বুঝি ঐশ্বর্যের ব্যাপারটি মন থেকে একেবারে তুলে দিচ্ছেন!” এখন কলাপাতায় আহার করেন। মাটির ভাঁড়ে জল খান। গাড়ু ছুঁইতে পারেন না, তাই ভক্তদের মাটির ভাঁড় আনিতে বলিয়াছিলেন। গাড়ুতে বা থালায় হাত দিলে ঝন্‌ঝন করে, যেন শিঙ্গি মাছের কাঁটা বিঁধছে।

He had said a few days before, "It seems that the Divine Mother has been removing from my mind all ideas of possession." He had been eating from plantain-leaves and drinking water from an earthen tumbler. He could not touch a metal jar; so he had asked the devotees to get a few earthen jars for him. If he touched metal plates or pots, his hand ached as if stung by a horned fish.

प्रसन्न कुछ मिट्टी के बर्तन ले आये हैं, परन्तु वे बहुत छोटे हैं । श्रीरामकृष्ण हँसकर कह रहे हैं, "ये बर्तन बहुत छोटे हैं । पर यह लड़का बड़ा अच्छा है । मेरे कहने पर मेरे सामने नंगा होकर खड़ा हो गया ! कैसा लड़कपन है !"

প্রসন্ন কয়টি ভাঁড় আনিয়াছিলেন, কিন্তু বড় ছোট। ঠাকুর হাসিয়া বলিতেছেন, “ভাঁড়গুলি বড় ছোট। কিন্তু ছেলেটি বেশ। আমি বলাতে আমার সামনে ন্যাংটো হয়ে দাঁড়ালো। কি ছেলেমানুষ!”

Prasanna had brought a few earthen pots, but they were very small. The Master said with a smile: "These pots are too small. But he is a nice boy. Once I asked him to take off his clothes, and he stood naked in front of me. What a child he is!"

 [( 7 मार्च 1885 ) श्रीरामकृष्ण वचनामृत-109 ]

🙏विशालाक्षी नदी का भँवर-'धन और वासना (कामिनी)' से 'साधु सावधान'🙏

[‘ভক্ত ও কামিনী’ — ‘সাধু সাবধান’ ]

'Bhakt Aur Kamini' -Devotee and lust- 'Sadhu Beware'

बेलघर के तारक एक मित्र के साथ आये । श्रीरामकृष्ण छोटे तखत पर बैठे हुए हैं, कमरे में दिया जल रहा है । मास्टर तथा दो एक और भक्त बैठे हुए हैं । तारक ने विवाह किया है । उनके माँ-बाप उन्हें श्रीरामकृष्ण के पास आने नहीं देते ।

বেলঘরের তারক একজন বন্ধুসঙ্গে উপস্থিত হইলেন। ঠাকুর ছোট খাটটিতে বসিয়া আছেন। ঘরে প্রদীপ জ্বলিতেছে। মাস্টার ও দুই-একটি ভক্তও বসিয়া আছেন। তারক বিবাহ করিয়াছেন। বাপ-মা ঠাকুরের কাছে আসিতে দেন না। 

Tarak of Belgharia arrived with a friend and bowed low before Sri Ramakrishna, who was sitting on the small couch. The room was lighted by an oil lamp. A few devotees were sitting on the floor.Tarak was about twenty years old, and married. His parents did not allow him to come to Sri Ramakrishna.

कलकत्ते के बहूबाजार के पास एक मकान है, आजकल तारक वहीं रहा करते हैं । तारक को श्रीरामकृष्ण चाहते भी बहुत हैं । उनके साथ का लड़का जरा तमोगुणी जान पड़ता है । धर्म-विषय और श्रीरामकृष्ण के सम्बन्ध में उसका कुछ व्यंगाभाव-सा है । तारक की उम्र लगभग बीस साल की होगी । तारक ने आकर भूमिष्ठ हो श्रीरामकृष्ण को प्रणाम किया ।

কলিকাতায় বউবাজারের কাছে বাসা আছে, সেইখানেই আজকাল তারক প্রায় থাকেন। তারককে ঠাকুর বড় ভালবাসেন। সঙ্গী ছোকরাটি একটু তমোগুণী। ধর্মবিষয় ও ঠাকুরের সম্বন্ধে একটু ব্যঙ্গভাব। তারকের বয়স আন্দাজ বিংশতি বৎসর। তারক আসিয়া ঠাকুরকে ভূমিষ্ঠ হইয়া প্রণাম করিলেন।

He lived mostly at his home near Bowbazar. The Master was very fond of him. Tarak's friend had a tamasic nature; he rather scoffed at the Master and religious ideas in general.

श्रीरामकृष्ण (तारक के मित्र से) - जरा ये मन्दिर देख आओ न ।

শ্রীরামকৃষ্ণ (তারকের বন্ধুর প্রতি) — একবার দেবালয় সব দেখে এস না।

MASTER (to Tarak's friend): "Why don't you go and visit the temples?"

मित्र - यह सब देखा हुआ है ।

বন্ধু — ও-সব দেখা আছে।

FRIEND: "Oh, I've seen them before."

श्रीरामकृष्ण - अच्छा, तारक यहाँ आता है । क्या यह बुरा है ?

শ্রীরামকৃষ্ণ — আচ্ছা, তারক যে এখানে আসে, এটা কি খারাপ?

MASTER: "Is it wrong for Tarak to come here?"

मित्र - यह तो आप ही जानें ।

বন্ধু — তা আপনি জানেন।

FRIEND: "You know best."

श्रीरामकृष्ण - ये(मास्टर) हेडमास्टर हैं ।

শ্রীরামকৃষ্ণ — ইনি (মাস্টার) হেডমাস্টার।

MASTER (pointing to M.): "He is a headmaster."

मित्र - ओह ।

বন্ধু — ওঃ।

FRIEND: "Oh!"

श्रीरामकृष्ण तारक से कुशल-प्रश्न पूछ रहे हैं और उनसे बहुत-सी बातें कर रहे हैं । अनेक प्रकार की बातें करके तारक ने बिदा होना चाहा । श्रीरामकृष्ण उन्हें अनेक विषयों में सावधान कर रहे हैं।

ঠাকুর তারককে কুশল প্রশ্ন করিতেছেন। আর তাঁহাকে সম্বোধন করিয়া অনেক কথা কহিতেছেন। তারক অনেক কথাবার্তার পর বিদায় গ্রহণ করিতে উদ্যত হইলেন। ঠাকুর তাহাকে নানা বিষয়ে সাবধান করিয়া দিতেছেন।

Sri Ramakrishna asked about Tarak's health and talked with him at length. Tarak was ready to leave. Sri Ramakrishna asked him to be careful about many things.

श्रीरामकृष्ण (तारक से) - साधो सावधान रहो ! कामिनी और कांचन से सावधान रहो । स्त्री की माया में एक बार भी डूब गये तो बाहर आने की सम्भावना नहीं है । वह विशालाक्षी नदी का भँवर है, जो एक बार भी फँसा वह फिर नहीं निकल सकता । और यहाँ कभी-कभी आना ।

শ্রীরামকৃষ্ণ (তারকের প্রতি) — সাধু সাবধান! কামিনী-কাঞ্চন থেকে সাবধান! মেয়েমানুষের মায়াতে একবার ডুবলে আর উঠবার জো নাই। বিশালক্ষীর দ; যে একবার পড়েছে সে আর উঠতে পারে না! আর এখানে এক-একবার আসবি।

MASTER: "My good man, beware. Beware of 'woman and gold'. Once you sink in the maya of a woman, you will not be able to rise. It is the whirlpool of the Visalakshi. (A stream near Kamarpukur) He who has fallen into it cannot pull himself out again. Come here now and then."

तारक - घरवाले नहीं आने देते ।

তারক — বাড়িতে আসতে দেয় না।

TARAK: "My people at home don't let me."

एक भक्त - अगर किसी की माँ कहे कि तू दक्षिणेश्वर न जाया कर, और कसम खाये कि जो तू वहाँ जाय, तो तू मेरा खून पिये, तो ? –

একজন ভক্ত — যদি কারু মা বলেন তুই দক্ষিণেশ্বরে যাস নাই। যদি দিব্য দেন আর বলেন, যদি যাস তো আমার রক্ত খাবি! —

A DEVOTEE: "Suppose someone's mother says to him, 'Don't go to Dakshineswar.' Suppose she curses him, saying, 'If you go there you will be drinking my blood!'"


 [( 7 मार्च 1885 ) श्रीरामकृष्ण वचनामृत-109 ]

🙏केवल भगवान के लिए गुरु-वाक्य (पासवर्ड) का उल्लंघन🙏

[শুধু ঈশ্বরের জন্য গুরুবাক্য লঙ্ঘন ]

" No harm in disobeying your elders for the sake of God."

श्रीरामकृष्ण - जो माँ ऐसी बात कहे, वह माँ नहीं है, वह अविद्या की मूर्ति है । उस माँ की बात अगर न मानी जाय तो कोई दोष नहीं । वह माँ ईश्वर-प्राप्ति के मार्ग में विघ्न डालती है । ईश्वर के लिए गुरुजनों की बात का उल्लंघन किया जाय तो इसमें कोई दोष नहीं होता । भरत ने राम के लिए कैकेयी की बात नहीं मानी । गोपियों ने श्रीकृष्ण-दर्शन के लिए पति की मनाई नहीं सुनी । प्रह्लाद ने ईश्वर के लिए बाप (हिरण्यकशिपु) की बात पर ध्यान नहीं दिया । बलि ने ईश्वर की प्रीति के लिए अपने गुरु शुक्राचार्य की बात नहीं सुनी । विभीषण ने राम को पाने के लिए अपने बड़े भाई रावण की बातों पर ध्यान नहीं दिया ।

শ্রীরামকৃষ্ণ — যে মা ও কথা বলে সে মা নয়; — সে অবিদ্যারূপিণী। সে-মার কথা না শুনলে কোন দোষ নাই। সে-মা ঈশ্বরলাভের পথে বিঘ্ন দেয়। ঈশ্বরের জন্য গুরুজনের বাক্য লঙ্ঘনে দোষ নাই। ভরত রামের জন্য কৈকেয়ীর কথা শুনে নাই। গোপীরা কৃষ্ণদর্শনের জন্য পতিদের মানা শুনে নাই। প্রহ্লাদ ঈশ্বরের জন্য বাপের কথা শুনে নাই। বলি ভগবানের প্রীতির জন্য গুরু শুক্রাচার্যের কথা শুনে নাই। বিভীষণ রামকে পাবার জন্য জ্যেষ্ঠভ্রাতা রাবণের কথা শুনে নাই।

MASTER: "A mother who says that is no mother; she is the embodiment of avidya. There is no sin in disobeying such a mother. She obstructs her son's path to God. There is no harm in disobeying your elders for the sake of God. For Rama's sake Bharat did not obey his mother Kaikeyi.5 The gopis did not obey their husbands when they were forbidden to visit Krishna. Prahlada disobeyed his father for God. Vali disregarded the words of Sukracharya, his teacher, in order to please God. Bibhishana went against the wishes of Ravana, his elder brother, to please Rama. 

"परन्तु 'ईश्वर के मार्ग पर न जाना’ इस बात को छोड़ और सब बातें मानो ।" "देखूँ तो तेरा हाथ" यह कहकर श्रीरामकृष्ण तारक के हाथ का वजन परख रहे हैं । 

“তবে ঈশ্বরের পথে যেও না, এ-কথা ছাড়া আর সব কথা শুনবি! দেখি, তোর হাত দেখি।”

এই বলিয়া ঠাকুর তারকের হাত কত ভারী যেন দেখিতেছেন। 

But you must obey your elders in all other things. Let me see your hand."Sri Ramakrishna took Tarak's hand into his own and seemed to feel its weight.

कुछ देर बाद कह रहे हैं, “कुछ (बाधा) है, परन्तु वह न रह जायेगी । उनसे जरा प्रार्थना करना, और यहाँ कभी-कभी आना - वह दूर हो जायेगी । क्या कलकत्ते के बहूबाजार में तूने मकान किराये से लिया है ?"

একটু পরে বলিতেছেন, “একটু (আড়) আছে — কিন্তু ওটুকু যাবে। তাঁকে একটু প্রার্থনা করিস, আর এখানে এক-একবার আসিস — ওটুকু যাবে! কলকাতার বউবাজারের বাসা তুই করেছিস?”

 A few moments later he said: "There is a little crookedness in your mind; but that will go. Pray to God a little and come here now and then. Yes, that twist will go. Is it you that have hired the house at Bowbazar?"

तारक - जी, मैंने नहीं लिया, उन्हीं लोगों ने लिया है ।

তারক — আজ্ঞা — না, তারা করেছে।

TARAK: "Not I, sir, but my parents."

श्रीरामकृष्ण (हँसकर) - उन लोगों ने लिया है या तूने ? बाघ के डर से न ? श्रीरामकृष्ण कामिनी को बाघ कह रहे हैं । तारक प्रणाम करके बिदा हुए ।

[तारक के लिये उसकी युवा स्त्री क्या एक बाघ जितनी खतरनाक है ?] 

শ্রীরামৃষ্ণ (সহাস্যে) — তারা করেছে না তুই করেছিস? বাঘের ভয়ে?ঠাকুর কামিনীকে কি বাঘ বলিতেছেন?

MASTER (smiling): "They or you? Is it because you are afraid of the 'tiger'?"Tarak had a young wife. Did the Master mean that a woman is like a tiger to a man?

श्रीरामकृष्ण छोटे तखत पर लेटे हुए हैं, - तारक के लिए सोच रहे हों ।एकाएक मास्टर से कहने लगे, "इन लोगों के लिए मैं इतना व्याकुल क्यों होता हूँ ?" मास्टर चुपचाप बैठे हुए हैं, जैसे उत्तर सोच रहे हों । श्रीरामकृष्ण फिर पूछते हैं, और कहते हैं, "कहो न ।"

তারক প্রণাম করিয়া বিদায় গ্রহণ করিলেন।ঠাকুর ছোট খাটটিতে শুইয়া আছেন, যেন তারকের জন্য ভাবছেন। হঠাৎ মাস্টারকে বলিতেছেন, — এদের জন্য আমি এত ব্যাকুল কেন? মাস্টার চুপ করিয়া আছেন — যেন কি উত্তর দিবেন, ভাবিতেছেন। ঠাকুর আবার জিজ্ঞাসা করিতেছেন, আর বলিতেছেন, “বল না।”

Tarak saluted Sri Ramakrishna and took his leave. The Master lay down on the small couch. He seemed worried about Tarak. Suddenly he said to M., "Why do I worry so much about these young boys?" M. kept still. He was thinking over a reply. The Master asked him, "Why don't you speak?"

इघर मोहिनीमोहन की स्त्री श्रीरामकृष्ण के कमरे में आकर उन्हें प्रणाम करके एक ओर बैठी हुई हैं । श्रीरामकृष्ण तारक के साथी की बात मास्टर से कह रहे हैं ।

এদিকে মোহিনীমোহনের পরিবার ঠাকুরের ঘরে আসিয়া প্রণাম করিয়া একপাশে বসিয়া আছেন। ঠাকুর তারকের সঙ্গীর কথা মাস্টারকে বলিতেছেন।

Mohini's wife entered the room and sat at one side. Sri Ramakrishna spoke to M. about Tarak's friend.

श्रीरामकृष्ण - तारक क्यों उसे अपने साथ ले आया ?

শ্রীরামকৃষ্ণ — তারক কেন ওটাকে সঙ্গে করে আনলে?

MASTER: "Why did Tarak bring that fellow with him?"

मास्टर - रास्ते में साथ के विचार से ले आया होगा । दूर तक चलना पड़ता है । इस बात के बीच में श्रीरामकृष्ण एकाएक मोहिनीमोहन की स्त्री से कहने लगे, "अपघात-मृत्यु के होने पर स्त्री प्रेतनी होती है । सावधान रहना ! मन को समझाना । इतना देख-सुनकर भी अन्त में क्या यही चाहती हो?”

মাস্টার — বোধ হয় রাস্তার সঙ্গী। অনেকটা পথ, তাই একজনকে সঙ্গে করে এনেছে।এই কথার মধ্যে ঠাকুর হঠাৎ মোহিনীর পরিবারকে সম্বোধন করে বলছেন, অপঘাত মৃত্যু হলে প্রেতনী হয়। সাবধান! মনকে বুঝাবে! এত শুনে-দেখে শেষকালে কি এই হল!

M: "Perhaps he wanted a companion for the road. It is a long way from Calcutta; so he brought a friend with him."The Master suddenly addressed Mohini's wife and said: "By unnatural death one becomes an evil spirit. Beware. Make it clear to your mind. Is this what you have come to after hearing and seeing so much?"

मोहनीमोहन अब बिदा होने लगे । श्रीरामकृष्ण को भूमिष्ठ होकर प्रणाम कर रहे हैं । उनकी स्त्री ने भी प्रणाम किया । श्रीरामकृष्ण अपने कमरे के उत्तर तरफवाले दरवाजे के पास आकर खड़े हुए । मोहिनीमोहन की पत्नी आँचल से सिर ढाँककर श्रीरामकृष्ण से कुछ कह रही हैं

মোহিনী এইবার বিদায় গ্রহণ করিতেছেন। ঠাকুরকে ভূমিষ্ঠ হইয়া প্রণাম করিতেছেন। পরিবারও ঠাকুরকে প্রণাম করিতেছেন। ঠাকুর তাঁহার ঘরের মধ্যে উত্তর দিকের দরজার কাছে দাঁড়াইতেছেন। পরিবার মাথায় কাপড় দিয়া ঠাকুরকে আস্তে আস্তে কি বলিতেছেন

Mohini was about to take his leave. He saluted Sri Ramakrishna. His wife also saluted the Master, who stood near the north door of the room. Mohini's wife spoke to him in a whisper.

श्रीरामकृष्ण - यहाँ रहोगी ?

শ্রীরামকৃষ্ণ — এখানে থাকবে?

MASTER: "Do you want to stay here?"

पत्नी - कुछ दिन यहाँ आकर रहूँगी । नौबतखाने में माँ हैं, उनके पास ।

পরিবার — এসে কিছুদিন থাকব। নহবতে মা আছেন তাঁর কাছে।

MOHINI'S WIFE: "Yes, I want to spend a few days with the Holy Mother at the nahabat. May I?"

श्रीरामकृष्ण - अच्छा तो है, परन्तु तुम मरने की बात जो कहती हो, इसी से भय होता है । फिर गंगाजी भी पास ही हैं !

শ্রীরামকৃষ্ণ — তা বেশ। তা তুমি যে বল — মরবার কথা — তাই ভয় হয়। আবার পাশে গঙ্গা!

MASTER: "That will be all right. But you talk of dying. That frightens me. And the Ganges is so near!"

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