झुमरीतिलैया विवेकानन्द युवा महामण्डल
(अखिल भारत विवेकानन्द युवा महामण्डल से सम्बद्ध )
फोटो
सेवा में,
सचिव,
झुमरीतिलैया विवेकानन्द युवा महामण्डल
' तारा निकेतन '
बिशुनपुर रोड, झुमरीतिलैया, कोडरमा (झारखण्ड )
पिन : ८२५४०९
प्रवेश के लिए आवेदन प्रपत्र
महाशय,
मैंने महामण्डल की पुस्तिका ' उद्देश्य एवं कार्यपद्धति ' एवं महामण्डल की सदस्यता की शर्तों को पढ़ा है, तथा मैं इसके आदर्शों के प्रति पूर्ण निष्ठा रखता हूँ. मैं यह प्रतिज्ञान करता हूँ कि मैं अपने विचार, कर्म तथा वाणी के द्वारा महामण्डल के आदर्शों की मर्यादा को अक्षुण बनाये रखने के लिये सदैव प्रयासरत रहूँगा. मैं महामण्डल के सभी नियमों का निष्ठापूर्वक पालन करूँगा तथा
' महामण्डल-आन्दोलन ' को हर संभव तरीके से आगे बढ़ाने के प्रयास में सदैव तत्पर रहूँगा.
' महामण्डल-आन्दोलन ' को हर संभव तरीके से आगे बढ़ाने के प्रयास में सदैव तत्पर रहूँगा.
इस आवेदन-प्रपत्र के साथ मैं वित्तीय वर्ष-------------------तक का वार्षिक सदस्यता शुल्क--------
एवं आवश्यक प्रवेश शुल्क------जमा कर रहा हूँ. इस सन्दर्भ में मैं यह घोषणा करता हूँ कि मैं किसी भी राजनितिक दल का सदस्य नहीं हूँ. कृपया मुझे झुमरीतिलैया विवेकानन्द युवा महामण्डल की सदस्यता प्रदान की जाय. अन्य व्यक्तिगत विवरण नीचे दे रहा हूँ.
आपका विश्वासी
तिथि :-------------
आवेदक के हस्ताक्षर
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पूरा नाम :------------------------------------------------------
पिता का नाम :-------------------------------------------------
पूरा पता :-------------------------------------------------------
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फोन न० :--------------------------------------------------------
जन्म तिथि :--------------------शैक्षणिक योग्यता :---------------व्यवसाय :--------------------------
महामण्डल से परिचय किसने करवाया :----------------------------------
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कार्यालय उपयोग के लिये
प्रवेश शुल्क की रशीद संख्या :--------------तिथि :----------------
सदस्यता अस्वीकार करने का कारण :-----------------------------------------------------------------
सचिव का मन्तव्य :- स्वीकृत / अस्वीकृत
सचिव का हस्ताक्षर
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अखिल भारत विवेकानन्द युवा महामण्डल
शहर कार्यालय
६/ए० जस्टिस मन्मथ मुखर्जी रोड,
कोलकाता-७००००९
फोन न० (०३३) २३५०-६८९८ & २३५२-४७१४
E-mail : abvymcityoffice@gmail.com
Website : www.abvym.org
पंजीकृत कार्यालय
' भुवन-भवन '
खरदा उत्तरी २४ परगना
पश्चिम बंगाल -७००११६
महामण्डल केन्द्रों के लिए नियमावली
- महामण्डल के आदर्शों को कार्यरूप प्रदान करने में सहयोग देना.
- केन्द्रीय संगठन को हर संभव उपाय से विकासोन्मुखी रखने में सहायता करना.
- महामण्डल के प्रतीक-चिन्ह को इकाई के लिए स्वीकार करना.
- केंद्र द्वारा आयोजित किसी भी विशेष अवसर पर अथवा खेल के मैदान में प्रतिदिन महामण्डल-ध्वज को समारोह पूर्वक फहराने के बाद ' महामण्डल गान- संगच्छध्वं....' आदि को महामण्डल द्वारा स्वीकृत धुन के अनुसार गायन करना.( महामण्डल गान ऋगवेद के दशम मण्डल से लिया गया है, जिसमें एकताबद्ध होकर सफलता के लिए प्रयासरत रहने का सन्देश दिया गया है.)
- केंद्र के प्रत्येक सदस्य को स्वामी विवेकानन्द की जीवनी तथा उनके द्वारा रचित साहित्य का नियमित अध्यन करना चाहिए तथा महामण्डल की ' चरित्र-निर्माण एवं मनुष्य-निर्माणकारी पद्धति ' को अपने जीवन में आचरण द्वारा प्रतिष्ठित करने वाले स्वयं-सेवियों का दल संगठित करने की चेष्टा करनी चाहिए.
- महामण्डल द्वारा समय समय पर दिये जानेवाले निर्देशों, नियमों तथा अनुबंधों का निष्ठापूर्वक पालन करना तथा वैसी किसी भी गतिविधि में संलग्न न होना जो महामण्डल के आदर्शों के विपरीत हो. इस सम्बन्ध में महामण्डल द्वारा मांगी गयी किसी भी जानकारी या स्पष्टीकरण को प्रस्तुत करना.
- केन्द्र द्वारा आयोजित किये जानेवाले समस्त कार्यक्रमों का नियमित ब्यौरा मुख्यालय को भेजना.
- केन्द्र की समस्त गतिविधियों का संचालन वार्षिक आम बैठक (AGM) में विधिवत गठित कार्यकारिणी सामिति करेगी. प्रतिवर्ष नवगठित कार्यकारिणी सामिति के सदस्यों की सूचि को मुख्यालय भेज कर संपुष्टि करा लेनी होगी. एवं स्थायी-प्रतिनिधि का परिवर्तन करने के लिए मुख्यालय से पूर्वानुमति लेनी होगी.
- सभी केन्द्रों में अनुमोदित सदस्यों की पंजी होगी तथा सभी बैठकों की प्रोसिडिंग को एक ' Minute-Book ' या कार्यवाही पुस्तिका में लिखना होगा.
- केन्द्र के कार्यकर्मों के लिए किसी भी प्रकार की सहायता राशी केवल रशीद देने के बाद ही स्वीकार्य होगी, तथा सभी खर्च का ब्यौरा सही ढंग से लिखकर उसका अंकेक्षण करवा लिया जायेगा.
- इस प्रकार अंकेक्षण कराकर आय-व्यय का ब्यौरा केन्द्र की वार्षिक आम बैठक में, रखा जायेगा. तथा इस आय-व्यय के व्योरे को केन्द्र की कार्यक्रमों की वार्षिक-व्योरे के साथ, वार्षिक आम बैठक (AGM) होने के एक महीने के भीतर मुख्यालय अवश्य भेज देना होगा. केन्द्र का लेखा-वर्ष " अप्रैल से मार्च " माना जायेगा.
- महामण्डल को यह अधिकार होगा कि वह केन्द्र की लेखा-पंजी या कार्यवाही-पुस्तिका में लिखे किसी भी ब्योरों का कभी भी निरिक्षण कर सकता है.
- केन्द्रीय मुख्यालय द्वारा निर्मित " memorandum of association " -अर्थात संस्था के बहिर्नियम को अंगीकार करना होगा, तथा उसका अनुपालन करना होगा.
- केन्द्र की कार्यकारिणी समिति के किसी पदाधिकारी या सदस्य को किसी भी राजनितिक दल से किसी प्रकार का संबन्ध नहीं रखना होगा.
नोट : मान्यता प्राप्त इकाइयों को ' affiliation fee ' या संबद्धीकरण शुल्क के रूप में १०० /= रुपया प्रतिवर्ष महामण्डल में जमा करना है. सभी महामण्डल केन्द्रों से अनुरोध किया जाता है कि यदि संभव हो तो अपने सामर्थ्य के अनुसार नियमित रूप से कुछ सहायता-राशी इसके अतिरिक्त भी भेजने की चेष्टा करें. किन्तु यह सगयोग-राशी अनिवार्य नहीं, स्वैच्छिक रूप से होनी चाहिए.
प्रत्येक केन्द्र को महामण्डल की द्विभाषी संवाद पत्रिका (अंग्रेजी और बंगला भाषा में ) " Vivek -Jivan " का ग्राहक बनना चाहिए तथा सभी सदस्यों को इसे नियमित रूप से पढ़ना चाहिए. " Vivek -Jivan " का वार्षिक सदस्यता शुल्क ४०/= रु० मात्र है. इसका हिन्दी अनुवाद " विवेक-अंजन " के नाम से त्रैमासिक पत्रिका के रूप में झुमरीतिलैया विवेकानन्द युवा महामण्डल द्वारा प्रकाशित किया जाता है, जिसका वार्षिक सदस्यता शुल्क ५०/= रु० मात्र है.
सभी पत्राचार, मनीआर्डर, रिपोर्ट आदि महामण्डल के पंजीकृत कार्यालय के पते पर ही भेजने चाहिए. कोई भी सहयोग-राशी चेक या ड्राफ्ट से अ० भा० वि० यु० महामण्डल, कोलकाता के नाम से भेजना चाहिए. पत्राचार करते समय प्रेषक का पूरा पता तथा किस उद्देश्य से सहयोग राशी भेजी गयी है, उसका पूरा विवरण लिखना चाहिए.
सचिव
श्री वीरेन्द्र कुमार चक्रवर्ती
अखिल भारत विवेकानन्द युवा महामण्डल .
पाठ-चक्र क्या है?
महामण्डल के प्रत्येक केन्द्रों में शैक्षिक सत्र (या पाठ -चक्र ) का नियमित आयोजन होना अत्यन्त आवश्यक है. इस पाठ-चक्र में सर्वप्रथम महामण्डल का ' संघ-गीत ' पहले संस्कृत में तत्पश्चात हिन्दी या अन्य किसी भारतीय भाषा में लयबद्ध तरीके से गाना चाहिए.
महामंडल का संघ-मंत्र (प्रार्थना-गीत)
संगच्ध्वं संग्वदध्वं संग वो मनांसि जानताम् ।
देवा भागं यथा पूर्वे संजानाना उपासते ।।
समानो मन्त्रः समितिः समानी । समानं मनः सः चित्त्मेषाम ।।
समानं मन्त्रः अभिम्न्त्रये वः ।समानेन वो हविषा जुहोमि ।।
समानी व् आकुतिः समाना हृदयानि वः ।
समानमस्तु वो मनो यथा वः सुसहासति ।।
(ऋग्वेद :१०/१९१/२-४ )
हिन्दी भाव -
एक साथ चलेंगे ,एक बात कहेंगे ।
हम सबके मन को एक भाव (शिव ज्ञान से जीव सेवा का भाव) से गढ़ेंगे ।
देव गण जैसे बाँट हवि लेते हैं | हम सब सब कुछ बाँट कर ही लेंगे ।।
याचना हमारी हो एक अंतःकरण एक हो| हमारे विचार में सब जीव एक हैं!
एक्य विचार के मन्त्र को गा कर| देवगण तुम्हें हम आहुति प्रदान करेंगे ||
हमारे संकल्प समान, ह्रदय भी समान, भावनाओं को एक करके परम ऐक्य पायेंगे |
एक साथ चलेंगे, एक बात कहेंगे.......
English translation by Sri Ajay Agarvala
Let us move together,
Let us speak in harmony,
Let our minds think in unison,
As Gods share with one another,
We too shall care to share,
Let us pray in consistency,
Let our hearts be in uniformity,
Let us be one with infinity,
Let us chant in unison,
Let us act in unison,
Let that unison be our prayer.
We'll unify our heart, feelings and determination,
To realise and to be –
Let us speak in harmony,
Let our minds think in unison,
As Gods share with one another,
We too shall care to share,
Let us pray in consistency,
Let our hearts be in uniformity,
Let us be one with infinity,
Let us chant in unison,
Let us act in unison,
Let that unison be our prayer.
We'll unify our heart, feelings and determination,
To realise and to be –
One with all and all in one !
Let us move together,
Let us speak in harmony,
Let our minds think in unison,Let us move together,
Let us speak in harmony,
Let us chant in unison,
Let us act in unison,
Let that unison be our prayer.
" स्वदेश- मन्त्र "
हे भारत ! यह परानुवाद ,परानुकरण ,परमुखापेक्षा ,इन दासों की सी दुर्बलता ,इस घृणित ,जघन्य निष्ठुरता से ही, तुम बड़े बड़े अधिकार प्राप्त करोगे ?क्या इसी लज्जास्पद कापुरुषता से , तुम वीरभोग्या स्वाधीनता प्राप्त करोगे ?
हे भारत ! मत भूलना की ,तुम्हारी नारी जाति का आदर्श -सीता,सावित्री और दमयन्ती है ।मत भूलना कि , तुम्हारे उपास्य -उमानाथ ! सर्वत्यागी शंकर हैं !
मत भूलना कि ,तुम्हारा विवाह ,धन,और तुम्हारा जीवन ,इन्द्रिय-सुख के लिए ,अपने व्यक्तिगत सुख के लिए नही है !
मत भूलना कि ,तुम जन्म से ही माता के लिए ,बलिस्वरूप रखे गए हो !मत भूलना कि ,तुम्हारा समाज उस विराट महामाया कि छाया मात्र है ! मत भूलना कि ,नीच ,अज्ञानी ,चमार और मेहतर ;तुम्हारा रक्त और तुम्हारे भाई हैं ! हे वीर !साहस का अवलम्बन करो ,गर्व से बोलो ,कि मै भारतवासी हूँ !और प्रत्येक भारतवासी मेरा भाई है । तुम गर्व से कहो कि ,अज्ञानी भारतवासी ,दरिद्र भारतवासी ,ब्राह्मण भारतवासी ,चांडाल भारतवासी सब मेरे भाई हैं !
तुम भी कटिमात्र वस्त्राविर्त हो कर ,गर्व से पुकार कर कहो कि भारतवासी मेरे भाई हैं !भारतवासी मेरे प्राण हैं !भारत के सभी देवी -देवता मेरे ईश्वर हैं !
भारत का समाज मेरी शिशुशय्या ,मेरे यौवन का उपवन और मेरे वार्धक्य कि वाराणसी है।भाई,बोलो कि भारत की मिट्टी मेरा स्वर्ग है !भारत के कल्याण में, मेरा कल्याण है । और रात-दिन कहते रहो कि ; हे गौरीनाथ ! हे जदम्बे !मुझे मनुष्यत्व दो !माँ ! मेरी दुर्बलता और कापुरुषता दूर कर दो ! माँ, मुझे मनुष्य बना दो !
हे भारत ! मत भूलना की ,तुम्हारी नारी जाति का आदर्श -सीता,सावित्री और दमयन्ती है ।मत भूलना कि , तुम्हारे उपास्य -उमानाथ ! सर्वत्यागी शंकर हैं !
मत भूलना कि ,तुम्हारा विवाह ,धन,और तुम्हारा जीवन ,इन्द्रिय-सुख के लिए ,अपने व्यक्तिगत सुख के लिए नही है !
मत भूलना कि ,तुम जन्म से ही माता के लिए ,बलिस्वरूप रखे गए हो !मत भूलना कि ,तुम्हारा समाज उस विराट महामाया कि छाया मात्र है ! मत भूलना कि ,नीच ,अज्ञानी ,चमार और मेहतर ;तुम्हारा रक्त और तुम्हारे भाई हैं ! हे वीर !साहस का अवलम्बन करो ,गर्व से बोलो ,कि मै भारतवासी हूँ !और प्रत्येक भारतवासी मेरा भाई है । तुम गर्व से कहो कि ,अज्ञानी भारतवासी ,दरिद्र भारतवासी ,ब्राह्मण भारतवासी ,चांडाल भारतवासी सब मेरे भाई हैं !
तुम भी कटिमात्र वस्त्राविर्त हो कर ,गर्व से पुकार कर कहो कि भारतवासी मेरे भाई हैं !भारतवासी मेरे प्राण हैं !भारत के सभी देवी -देवता मेरे ईश्वर हैं !
भारत का समाज मेरी शिशुशय्या ,मेरे यौवन का उपवन और मेरे वार्धक्य कि वाराणसी है।भाई,बोलो कि भारत की मिट्टी मेरा स्वर्ग है !भारत के कल्याण में, मेरा कल्याण है । और रात-दिन कहते रहो कि ; हे गौरीनाथ ! हे जदम्बे !मुझे मनुष्यत्व दो !माँ ! मेरी दुर्बलता और कापुरुषता दूर कर दो ! माँ, मुझे मनुष्य बना दो !
----स्वामी विवेकानंद ।
परस्पर चर्चा करके या अनौपचारिक बातचीत के माध्यम से, स्वामी विवेकानन्द एवं महामण्डल की विचार-धारा को आत्मसात कर लेना ही पाठ-चक्र का उद्देश्य है.इसीलिए वरिष्ठ सदस्यों को एक महिना पहले आगामी महीने के पाठ-चक्र के विषय को निर्धारित कर लेना चाहिए.
तथा इस ओर भी दृष्टि रहनी चाहिए कि सभी सदस्य उस ' शैक्षिक-गोष्ठी ' में सक्रीय रूप से भाग लें एवं उन विचारों को भली भाँति समझ सकें. इसीलिए साप्ताहिक पाठ-चक्र में केवल ' सत्य-नारायण कथा ' के समान बाँच लेना भर नहीं समझना चाहिए.
महामण्डल के आदर्श हैं, चिरयुवा स्वामी विवेकानन्द, अतः महामण्डल के सभी सदस्यों को स्वामीजी की जीवन- की स्पष्ट धारणा होनी चाहिए. इसीलिए स्वामी विवेकानन्द की जीवनी भी पाठ-चक्र में पढ़नी चाहिए. महामण्डल की हिन्दी त्रयेमासिक पत्रिका ' विवेक-अंजन ' एवं द्विभाषी मासिक पत्रिका " Vivek-Jivan " एक संग्रहणीय पत्रिका है, इसमें प्रकशित लेख-निबन्ध आदि जीवन के शाश्वत मूल्यों पर आधारित होते हैं, इसीलिए इसका कोई भी अंक पुराना होने से कभी अप्रासंगिक नहीं हो जाता.
अतः इसके किसी भी नये या पुराने अंक से चर्चा करने से लाभ होता है. क्रमशः महामण्डल द्वारा प्रकाशित समस्त पुस्तक-पुस्तिओं को पहले व्यक्तिगत रूप से पढ़ कर, बाद में उसके उपर सामूहिक रूप से चर्चा करना अत्यन्त आवश्यक है.
स्वामीजी ने पूरे देश को, और विशेष रूप से युवाओं को जो सन्देश दिया है, उसकी मूलधारा का परिचय पाना चाहते हों तो वह केवल महामण्डल द्वारा प्रकशित पुस्तकों को पढ़ने से ही प्राप्त होगा. स्वामीजी के द्वारा कथित उक्तियों की छोटो छोटी पुस्तिकाओं को भी पाठ-चक्र में पढ़ कर उस पर चर्चा करने से लाभ होगा. उसमें से कुछ प्रमुख हिन्दी पुस्तकों के नाम निम्न लिखित हैं-
- स्वामी विवेकानन्द का राष्ट्र को आह्वान !
- स्वामी विवेकानन्द के शक्तिदायी विचार.
- नया भारत गढ़ों.
- विवेकानन्द साहित्य संचयन .
- कोलम्बो से अल्मोड़ा तक स्वामीजी का भाषण. (हिन्दी विवेकानन्द साहित्य ५ वाँ खंड )
- पत्रावली .
- स्वामी शिष्य संवाद. (वि०.सा०.६ था खंड )
किन्तु पाठ-चक्र में विवेकानन्द साहित्य के १० खंडों में से उपरोक्त २ खंडों में से चुने हुए अंशों के अलावा अन्य किसी भी खंड को नहीं पढना ही अच्छा है. जब सभी पुस्तकों को धारावाहिक रूप से पढ़ लिया जाय, तभी पुनः उसी पुस्तक पर विस्तार से और गहराई से चर्चा होनी चाहिए.
विशेष रूप से महामण्डल की जिन पुस्तकों का हिन्दी अनुवाद उपलब्ध है, उनमें से निम्न लिखित पुस्तकों को पाठ-चक्र अवश्य पढना चाहिए-
- मनः संयोग.
- चरित्र-निर्माण की पद्धति.
- चरित्र के गुण.
- अखिल भारत विवेकानन्द युवा महामण्डल का आदर्श, उद्देश्य एवं कार्यपद्धति.
- नेति से इति.
- नेतृत्व का अर्थ एवं गुण.
- एक युवा आन्दोलन.
- स्वामी विवेकानन्द एवं युवा आन्दोलन.
- जीवन नदी के हर मोड़ पर.
पाठ-चक्र में महामण्डल के आदर्श एवं उद्देश्य के विषय से संबंधित सी.डी. को भी सुना जा सकता है. महामण्डल की समस्त पुस्तिकाओं को पढ़ने से प्रत्येक युवा बहुत लाभान्वित होंगे. किशोरावस्था अथवा अल्पायु में मानव जीवन का मूल्य तथा जीवन-गठन की अनिवार्यता समझ में नहीं आती है, किन्तु उम्र बढ़ जाने के बाद, इस दिशा में प्रयास करने पर हताशा ही हाथ लगती है.यदि कम उम्र में ही कोई तरुण इन महामण्डल पुस्तकों का अध्यन करले तो वैसी संभावना नहीं रहेगी.
' चरित्र- गठन ' एवं ' चरित्र-निर्माण की पद्धति ' को बहुत ध्यान पूर्वक पढ़ने की आवश्यकता है. इसके साथ साथ ' मनः संयोग ' पुस्तिका भी ध्यान से पढ़नी है. इसके बाद ही महामण्डल की दूसरी पुस्तिकाओं या विवेक-जीवन का अध्यन करना चाहिए.
इन समस्त महामण्डल पुस्तिकाओं का अध्यन करने तथा उनमें दिए गये परामर्शों को अमल में लाने पर युवाओं के जीवन में विफलता कभी नहीं आ सकती.