(The Charm of Almora : Appendix B -'A Letter ')
['अलमोड़ा का आकर्षण' से सम्बन्धित ]
🔱🙏श्री अश्विनी कुमार दत्त द्वारा श्री 'म ' को लिखित ~ ' एक पत्र '🔱🙏
पत्र की पृष्ठभूमि : श्री रामकृष्णवचनामृत तृतीय खण्ड के Appendix B में दिये इस पत्र को समझने के लिये पहले (The Gospel of Sri Ramakrishna के Appendix A को देखना आवश्यक है।
अश्विनीकुमार दत्त (1856-1923) - 19 वीं शताब्दी के , अविभाजित बंगाल (पूर्वी बंगाल) के बारीसाल शहर में जन्मे भारत के प्रसिद्ध राजनीतिज्ञ, सामाजिक कार्यकर्ता और देश भक्त थे। उनके पिता ब्रज मोहन दत्त डिप्टी कलक्टर थे, जो बाद में ज़िला न्यायाधीश भी बने थे। अश्विनी कुमार ने इलाहाबाद और कलकत्ता (वर्तमान कोलकाता) से अपनी क़ानून की शिक्षा प्राप्त की थी।एक अध्यापक के रूप में उन्होंने अपना व्यावसायिक जीवन प्रारम्भ किया था। बाद में वर्ष 1880 में बारीसाल से वकालत की शुरुआत की। उन्होंने वर्ष 1896 में कांग्रेस के 12 वें कोलकाता अधिवेशन में प्रतिनिधि के रूप में भाग लिया था। और अल्मोड़ा में 1897 ई. में 'नरेन्द्रनाथ दत्त ' (स्वामी विवेकानन्द) से उनकी मुलाकात के बाद अमरावती में 27-29 दिसम्बर,1897 आयोजित 13वां सत्र में कांग्रेस के सम्मेलनों को "तीन दिन का तमाशा" कहा था। 1897 की अमरावती कांग्रेस में उन्होंने कहा था - "यदि कांग्रेस का 'Vedanta' संदेश- ग्रामीण जनता तक नहीं पहुँचा तो यह सिर्फ़ तीन दिन का तमाशा बनकर रह जाएगी।" श्री अश्विनीकुमार दत्त के इन विचारों का प्रभाव ही था कि वर्ष 1898 में उनको पंडित मदनमोहन मालवीय, दीनशावाचा आदि के साथ कांग्रेस का नया संविधान बनाने का काम सौपा गया था।
अतएव आज के कॉंग्रेसी नेताओं को (या इंडि गठबंधन के नेताओं को )भारत की ग्रामीण जनता तक अद्वैत वेदान्त के सार - "जो कुछ है सो तूँ ही है " को पहुँचाने में सक्षम मार्गदर्शक युवा नेताओं का जीवन गठन करने में समर्थ नेताओं का प्रशिक्षण -शिविर आयोजित करना होगा।
श्री रामकृष्ण देव का साक्षात् दर्शन उन्हें पहली बार 1881 ई० में प्राप्त हुआ था। इस प्रथम दर्शन के आलावा भी वे अन्य कुछ बार उनसे मिले थे। अश्विनीकुमार प्रथम बार जब श्री रामकृष्ण से मिलने दक्षिणेश्वर गये थे, उसी दिन केशव सेन भी वहाँ आने वाले थे। केशव सेन उस दिन संध्या के समय भक्तों के साथ वहाँ पहुँचे थे, और उनके साथ ईश्वरीय चर्चा करते हुए ठाकुर समाधिस्थ भी हो गए थे। उनकी अवस्था को देखकर ठाकुर के प्रथम दर्शन में ही अश्विनीकुमार यह जान गए थे कि श्री रामकृष्णदेव एक 'सच्चे परमहंस' हैं! ठाकुर के साथ वे चार-पाँच बार ही मिले थे, लेकिन इस थोड़े समय में ही वे श्री रामकृष्णदेव के अंतरंग शिष्यों में एक शिष्य बन गए थे। श्रीरामकृष्णदेव (ठाकुर) के साथ होने वाले
इन चन्द मुलाकातों की अनुभूति ने ही उनके जीवन को मीठी सुगन्ध से भर दिया था।
अश्विनीकुमार के पिता ने भी श्रीरामकृष्ण का दर्शन प्राप्त किया था ।
श्री रामकृष्ण (ठाकुरदेव) चाहते थे
कि अश्विनीकुमार स्वयं उस नरेन्द्र से मिलें जो भविष्य में सम्पूर्ण मानवजाति को 'राजयोग विद्या' से परिचित करवाने के उद्देश्य से भावी मार्गदर्शक नेताओं (जीवनमुक्त शिक्षकों) का निर्माण करने के लिये