[(16 अक्टूबर, 1883)परिच्छेद ~ 57, श्रीरामकृष्ण वचनामृत ]
[साभार ~ श्री महेन्द्रनाथ गुप्त(बंगाली), कवि श्री पं. सूर्यकान्त त्रिपाठी ‘निराला’(हिंदी अनुवाद)साभार विद्युत् संस्करण ~ रमा लाठ]
परिच्छेद ५७
[दक्षिणेश्वर में -कोजागरी लक्ष्मी पूर्णिमा (कार्तिकी पूर्णिमा)]
(१)
*एक स्वामी भिन्न पोशाक ~ उदार भक्त सभी देवी-देवताओं को मानते हैं*
[Liberal-minded devotees worship all gods and goddesses ]
आज मंगलवार, 16 अक्टूबर, 1883 ई.। बलराम के पिता दूसरे भक्तों के साथ उपस्थित हैं । बलराम के पिता परम वैष्णव हैं । हाथ में हरिनाम की माला रहती है, सदा जप करते रहते हैं ।
कट्टर वैष्णवगण अन्य सम्प्रदाय के लोगों को उतना पसन्द नहीं करते । बलराम के पिता बीच बीच में श्रीरामकृष्ण का दर्शन करते हैं, उनका उन वैष्णवों का-सा भाव नहीं है ।
श्रीरामकृष्ण- जिनका उदार भाव है (जो Liberal-minded devotees है) वे सभी देवताओं को मानते हैं, - कृष्ण, काली, शिव, राम आदि ।
[শ্রীরামকৃষ্ণ — যাদের উদার ভাব তারা সব দেবতাকে মানে — কৃষ্ণ, কালী, শিব, রাম ইত্যাদি।
MASTER: "Liberal-minded devotees accept all the forms of God: Krishna, Kali, Siva, Rama, and so on."
बलराम के पिता — "हाँ, जेमन 'एक स्वामी भिन्न पोशाक' हाँ, जिस प्रकार एक पति, अलग अलग पोशाक में ।
[বলরামের পিতা — হাঁ, যেমন এক স্বামী ভিন্ন পোশাক।
"Yes, sir. It is like a woman's recognizing her husband, whatever clothes he wears."
श्रीरामकृष्ण- परन्तु निष्ठाभक्ति (single-minded devotion) एक चीज है । गोपियाँ जब मथुरा में गयीं तो पगड़ी पहने हुए कृष्ण को देखकर उन्होंने घूँघट काढ़ लिया और कहा, ‘यह कौन है ! हमारे पीतवस्त्रधारी, मोहनचूड़ावाले श्रीकृष्ण कहाँ है ?’
“हनुमान की भी निष्ठाभक्ति है । द्वापर युग में , जब हनुमान द्वारका में आए तो कृष्ण ने रुक्मिणी से कहा, 'तुम सीता बनकर बैठो ! ‘हनुमान रामरूप न देखने से संतुष्ट न होगा ।’ इसलिए रामरूप में उन्हें दर्शन दिया!
[শ্রীরামকৃষ্ণ — কিন্তু নিষ্ঠাভক্তি একটি আছে। গোপীরা যখন মথুরায় গিয়েছিল তখন পাগড়ি-বাঁধা কৃষ্ণকে দেখে ঘোমটা দিল, আর বললে, ইনি আবার কে, আমাদের পীতধড়া মোহনচূড়া-পরা কৃষ্ণ কোথায়? হনুমানেরও নিষ্ঠাভক্তি। দ্বাপর যুগে দ্বারকায় যখন আসেন কৃষ্ণ রুক্মিণীকে বললেন, হনুমান রামরূপ না দেখলে সন্তুষ্ট হবে না। তাই রামরূপ ধরে বসলেন।
MASTER: "But again, there is a thing called nishtha, single-minded devotion. When the gopis went to Mathura they saw Krishna with a turban on His head. At this they pulled down their veils and said, 'Who is this man? Where is our Krishna with the peacock feather on His crest and the yellow cloth on His body?' Hanuman also had that unswerving devotion. He came to Dwaraka in the cycle of Dwapara. Krishna said to Rukmini, His queen, 'Hanuman will not be satisfied unless he sees the form of Rama.' So, to please Hanuman, Krishna assumed the form of Rama.
[श्रीरामकृष्ण की विलक्षण अवस्था ]
[The eccentric state of Sri Ramakrishna]
*श्रीरामकृष्ण का नित्य-लीलायोग*
“कौन जाने भाई, मेरी यही एक स्थिति है । मैं केवल नित्य से लीला में उतर आता हूँ और फिर लीला से नित्य में चला जाता हूँ ।
[“কে জানে বাপু, আমার এই একরকম অবস্থা। আমি কেবল নিত্য থেকে লীলায় নেমে আসি, আবার লীলা থেকে নিত্যে যাই।]
I am in a peculiar state of mind. My mind constantly descends from the Absolute to the Relative, and again ascends from the Relative to the Absolute.]
“नित्य में पहुँचने का नाम है ब्रह्मज्ञान । बड़ा कठिन है । विषयबुद्धि एकदम नष्ट हुए बिना कुछ नहीं होता । हिमालय के घर जब भगवती ने जन्म लिया तो पिता को अनेक रूपों में दर्शन दिया । हिमालय ने उनसे कहा, ‘माँ , मैं ब्रह्मदर्शन की इच्छा करता हूँ ।’ तब भगवती ने कहा, ‘पिताजी, यदि वैसी इच्छा हो तो सत्संग करना पड़ेगा । संसार से अलग होकर बीच बीच में निर्जन में साधुसंग कीजिए ।
[“নিত্যে পঁহুছানোর নাম ব্রহ্মজ্ঞান। বড় কঠিন। একেবারে বিষয়বুদ্ধি না গেলে হয় না। হিমালয়ের ঘরে যখন ভগবতী জন্মগ্রহণ করলেন, তখন পিতাকে নানারূপে দর্শন দিলেন।১ হিমালয় বললেন, মা, আমি ব্রহ্মদর্শন করতে ইচ্ছা করি। তখন ভগবতী বলছেন, পিতা, যদি তা ইচ্ছা করেন তাহলে আপনার সাধুসঙ্গ করতে হবে। সংসার থেকে তফাত হয়ে নির্জনে মাঝে মাঝে সাধুসঙ্গ করবেন।
"The attainment of the Absolute is called the Knowledge of Brahman. But it is extremely difficult to acquire. A man cannot acquire the Knowledge of Brahman unless he completely rids himself of his attachment to the world. When the Divine Mother was born as the daughter of King Himalaya, She showed Her various forms to Her father. The king said, 'I want to see Brahman.' Thereupon the Divine Mother said: 'Father, it that is your desire, then you must seek the company of holy men. You must go into solitude, away from the world, and now and then live in holy company.' (Annual Camp में C-IN-C नवनीदा के सानिध्य में 6 दिन गुजारिये तो सही !)’
*नित्य से ही लीला है : ~ एक हो गया/गयी अनेक*
[Relative truth emerges from absolute truth]
[the Relative (नश्वर ) from the Absolute.(अविनाशी )~ The One has become Many ]
" उस 'एक' से ही 'अनेक' हुए हैं – नित्य से ही लीला है । एक ऐसी अवस्था (शाश्वत चैतन्य -स्पंदन की अवस्था) है जिसमें ‘अनेक’ (Relative) का बोध नहीं रहता और न ‘एक’ (Absolute) का ही; क्योंकि ‘एक’ के रहते ही ‘अनेक’ आ जाता है । वे तो उपमाओं से रहित हैं – उन्हें उपमा देकर समझाने का उपाय नहीं है ! अन्धकार और प्रकाश के मध्य में हैं । हम जिस प्रकाश को देखते हैं, ब्रह्म वह प्रकाश नहीं है – ब्रह्म यह जड़ आलोक नहीं है ।*
[“সেই এক থেকেই অনেক হয়েছে — নিত্য থেকেই লীলা। এক অবস্থায় ‘অনেক’ চলে যায়, আবার ‘এক’ও চলে যায় — কেননা এক থাকলেই দুই। তিনি যে উপমারহিত — উপমা দিয়ে বুঝাবার জো নাই। অন্ধকার ও আলোর মধ্যে। আমরা যে আলো দেখি সে আলো নয় — এ জড় আলো নয়।”২
"The manifold has come from the One alone, the Relative from the Absolute. There is a state of consciousness where the many disappears, and the One, as well; for the many must exist as long as the One exists. Brahman is without comparison. It is impossible to explain Brahman by analogy. It is between light and darkness. It is Light, but not the light that we perceive, not material light.
[*ब्रह्म यह जड़ आलोक नहीं है-– “तत् ज्योतिषां ज्योतिः ।” हिरण्मये परे कोशे विरजं निष्कलं ब्रह्म वर्तते तत् शुभ्रं तत् ज्योतिषां ज्योतिः आत्मविदः यत् विदुः ॥ In the supreme, bright sheath (हिरण्मये परे कोशे) is (वर्तते) Brahman (ब्रह्म), free from taints and without parts (विरजं निष्कलम्). It is pure (तत् शुभ्रम्), and is the Light of lights (तत् ज्योतिषां ज्योतिः). It is that which the knowers of the Self realize (आत्मविदः यत् विदुः).] उस परम हिरण्मय कोश में निष्कलंक, निरवयव 'ब्रह्म' निवास करता है 'वह' 'शुभ्र-भास्वर' है, वह 'ज्योतियों' की 'ज्योति' है, 'वही' है जिसे आत्म-ज्ञानी जानते हैं।– (मुण्डक उपनिषद्, २/२/९)( एक ऐसी अवस्था (शाश्वत चैतन्य -स्पंदन की अवस्था) है जिसमें ‘अनेक’ (Relative) का बोध नहीं रहता और न ‘एक’ (Absolute) का ही; क्योंकि ‘एक’ (भगवान-रस -कृष्ण ) के रहते ही ‘दो’ (भक्त-रसिक -राधा) आ जाता/जाती है ।)]
“फिर (व्युत्थान अवस्था ?) जब वे मेरे मन की अवस्था को बदल देते हैं – जिस समय लीला में मन को उतार लाते हैं – तब देखता हूँ ईश्वर, माया, जीव, जगत् – वे सब कुछ बने हुए हैं ।
[ त्वं जातो भवसि विश्वतोमुखः॥ -You are born with your face to every side.”]
[“আবার যখন তিনি অবস্থা বদলে দেন — যখন লীলাতে মন নামিয়ে আনেন — তখন দেখি ঈশ্বর-মায়া-জীব-জগৎ — তিনি সব হয়ে রয়েছেন।”৩
"Again, when God changes the state of my mind, when He brings my mind down to the plane of the Relative, I perceive that it is He who has become all these — the Creator, maya, the living beings, and the universe.
"त्वं स्त्री त्वं पुमानसि त्वं कुमार उत वा कुमारी। त्वं जीर्णो दण्डेन वञ्चसि त्वं जातो भवसि विश्वतोमुखः॥(श्वेताश्वतरोपनिषद् -४.३) 'तुम' ही स्त्री हो तथा 'तुम' ही पुरुष हो; 'तुम' ही कुमार हो एवं 'तुम' ही पुनः कुमारी कन्या हो; 'तुम' ही तो जरा-जीर्ण वृद्ध पुरुष हो जो अपने दण्ड के सहारे झुककर चलता है। अहो, 'तुम' ही तो ईश्वर-माया -जीव -जगत बने हो ; जन्म लेते हो तथा सम्पूर्ण विश्व तुम्हारे ही नाना रूपों से परिपूर्ण है। “You are the woman and you are the man. You are the boy and you are the girl. You are the old person tottering on a staff. You are born with your face to every side.” This Upanishadic view of the human being connects to the unity of all. ]
*बागवान और उसका बगीचा*
[Owner and his garden]
*हे ईश्वर ! तुम ही कर्ता हो और यह जगत भी तुम्हारा है *
“फिर कभी वे दिखाते हैं कि उन्होंने इस जीव-जगत् को बनाया है- जैसे मालिक और उसका बगीचा । “वे कर्ता हैं और उन्हीं का यह सब जीव-जगत् है, इसी का नाम है ज्ञान । और ‘मैं’ करनेवाला हूँ’, ‘मैं गुरु हूँ’, ‘मैं पिता हूँ’, इसी का नाम है अज्ञान । फिर मेरे हैं ये सब घर-द्वार, परिवार, धन, जन, आदि – इसी का नाम है अज्ञान ।”
[“আবার কখনও তিনি দেখান তিনি এই সমস্ত জীবজগৎ করেছেন — যেমন বাবু আর তার বাগান। তিনি কর্তা আর তাঁরই এই সমস্ত জীবজগৎ — এইটির নাম জ্ঞান। আর ‘আমি কর্তা’, ‘আমি গুরু’, ‘আমি বাবা’ — এরই নাম অজ্ঞান। আর আমার এই সমস্ত গৃহপরিবার, ধন, জন — এরই নাম অজ্ঞান।”
"Again, sometimes He shows me that He has created the universe and all living beings. He is the Master, and the universe His garden."He is the Master, and the universe and all its living beings belong to Him' — that is Knowledge. And, 'I am the doer', 'I am the guru', 'I am the father' — that is ignorance. 'This is my house; this is my family; this is my wealth; these are my relatives' — this also is ignorance."]
बलराम के पिता- जी हाँ ।
श्रीरामकृष्ण- जब तक यह बुद्धि नहीं होती कि ‘ईश्वर, तुम्हीं करता हो’ तब तक बारम्बार लौटकर आना ही होगा, बारम्बार जन्म लेना पड़ेगा । फिर जब यह ज्ञान हो जाएगा कि तुम्हीं कर्ता हो, तब जन्म नहीं होगा ।
“जब तक ‘तू ही, तू ही’ न करोगे तब तक छुटकारा नहीं । आना-जाना, पुनर्जन्म होगा ही-मुक्ति न होगी । और ‘मेरा मेरा’ कहने से भी क्या होगा ? बाबू का मुनीम कहता है, ‘यह हमारा बगीचा है, हमारी खाट, हमारी कुर्सी है ।’ परन्तु बाबू जब उसे नौकरी से निकाल देते हैं , तो अपनी आम की लकड़ी से बनी छोटीसी सन्दूकची तक ले जाने का उसे अधिकार नहीं रहता ।
[[শ্রীরামকৃষ্ণ — যতদিন না “তুমি কর্তা” এইটি বোধ হয় ততদিন ফিরে ফিরে আসতে হবে — আবার জন্ম হবে। “তুমি কর্তা” বোধ হলে আর পূর্নজন্ম হবে না।“যতক্ষণ না তুঁহু তুঁহু করবে ততক্ষণ ছাড়বে না। গতায়াত পুর্নজন্ম হবেই — মুক্তি হবে না। আর ‘আমার’ ‘আমার’ বললেই বা কি হবে। বাবুর সরকার বলে ‘এটা আমাদের বাগান, আমাদের খাট, কেদারা।‘ কিন্তু বাবু যখন তাড়িয়া দেন, তার নিজের আম কাঠের সিন্দুকটা নিয়ে যাবার ক্ষমতা থাকে না!
MASTER: "As long as you do not feel that God is the Master, you must come back to the world, you must be born again and again. There will be no rebirth when you can truly say, 'O God, Thou art the Master.' As long as you cannot say, 'O Lord, Thou alone art real', you will not be released from the life of the world. This going and coming, this rebirth, is inevitable. There will be no liberation. Further, what can you achieve by saying, 'It is mine'? The manager of an estate may say, 'This is our garden; these are our couches and furniture.' But when he is dismissed by the master, he hasn't the right to take away even a chest of worthless mango-wood given to him for his use.]
“मैं और मेरा’ (माया =आवरण और विक्षेप शक्ति) ने सत्य को छिपा रखा है- जानने नहीं देता !
[‘আমি আর আমার’ সত্যকে আবরণ করে রেখেছে — জানতে দেয় না।”
"The feeling of 'I and mine' has covered the Reality. )
*अद्वैत -चैतन्य -नित्यानन्द*
*अद्वैत ज्ञान और चैतन्य दर्शन ( vision of Divine Consciousness )*
“अद्वैत का ज्ञान हुए बिना चैतन्य का दर्शन नहीं होता । चैतन्य का दर्शन होने पर सब नित्यानन्द होता है। परमहंसस्थिति में यही नित्यानन्द है ।
["The feeling of 'I and mine' has covered the Reality. Because of this we do not see Truth. Attainment of Chaitanya, Divine Consciousness, is not possible without the knowledge of Advaita, Non-duality. After realizing Chaitanya one enjoys Nityananda, Eternal Bliss. One enjoys this Bliss after attaining the state of a paramahamsa..]
“वेदान्तमत में अवतार नहीं है । इस मत में चैतन्यदेव (पैगम्बर या नेता CINC नवनीदा) अद्वैत के एक बुलबुला हैं ।
[“বেদান্তমতে অবতার নাই। সে-মতে চৈতন্যদেব অদ্বৈতের একটি ফুট।]
"Vedanta does not recognize the Incarnation of God. According to it, Chaitanyadeva is only a bubble of the non-dual Brahman.
“चैतन्य का दर्शन ( vision of Divine Consciousness ) कैसा ? दियासलाई जलाने से अँधेरे कमरे में जिस प्रकार एकाएक रोशनी हो जाती है!
[“চৈতন্যদর্শন কিরূপ? এক-একবার চিনে দেশলাই জ্বেলে অন্ধকার ঘরে যেমন হঠাৎ আলো।”
"Do you know what the vision of Divine Consciousness is like? It is like the sudden illumination of a dark room when a match is struck.
*मनुष्यों में रत्न ही अवतार या नेता (पैगम्बर वरिष्ठ -CINC नवनीदा) हैं *
भक्तिमत में अवतार मानते हैं । कर्ताभजा सम्प्रदाय की एक स्त्री मेरी स्थिति को देखकर कह गयी, ‘बाबा, भीतर वस्तुप्राप्ति हुई है उतना नाचना-कूदना नहीं, अंगूर के फल को रुई पर यत्न से रखना होता है । (আঙুর ফল তুলোর উপর যতন করে রাখতে হয়।) पेट में बच्चा होने पर सास अपनी बहू का धीरे धीरे काम बन्द करा देती है । भगवान् के दर्शन का लक्षण है, धीरे धीरे कर्म त्याग होना । यह (श्रीरामकृष्ण) मनुष्य ‘नर रत्न’ है ।’
[“ভক্তিমতে অবতার। কর্তাভজা মেয়ে আমার অবস্থা দেখে বলে গেল, ‘বাবা, ভিতরে বস্তুলাভ হয়েছে, অত নেচো-টেচো না, আঙুর ফল তুলোর উপর যতন করে রাখতে হয়। পেটে ছেলে হলে শাশুড়ী ক্রমে ক্রমে খাটতে দেয় না। ভগবান দর্শনের লক্ষণ, ক্রমে কর্মত্যাগ হয়। এই মানুষের ভিতর মানুষ রতন আছে।
"The Incarnation of God is accepted by those who follow the path of bhakti. A woman belonging to the Kartabhaja sect observed my condition and remarked: 'You have inner realization. Don't dance and sing too much. Ripe grapes must be preserved carefully in cotton. The mother-in-law lessens her daughter-in-law's activities when the daughter-in-law is with child. One characteristic of God-realization is that the activities of a man with such realization gradually drop away. Inside this man [meaning Sri Ramakrishna] is the real Jewel.'
“मेरे खाते समय वह कहती थी, ‘बाबा, तुम खा रहे हो या किसी को खिला रहे हो ?
[“আমার খাওয়ার সময় সে বলত, বাবা তুমি খাচ্ছো, না কারুকে খাওয়াচ্ছো?
Watching me eat, she remarked, 'Sir, are you yourself eating, or are you feeding someone else?']
“इस ‘अहं’ ज्ञान ने ही आवरण बनाकर रखा है । नरेंद्र ने कहा था, यह ‘मैं’ जितना जाएगा, ‘उनका मैं’ उतना ही आएगा; केदार कहता है, घड़े के भीतर जितनी अधिक मिट्टी रहेगी” अन्दर उतना ही जल कम रहेगा ।
[“এই ‘আমি’ জ্ঞানই আবরণ করে রেখেছে। নরেন্দ্র বলেছিল ‘এ আমি যত যাবে, তাঁর আমি তত আসবে।’ কেদার বলে কুম্ভের ভিতরের মাটি যতখানি থাকবে, ততখানি এদিকে জল কমবে।
"The feeling of ego has covered the Truth. Narendra once said, 'As the "I" of man recedes, the "I" of God approaches.' Kedar says, 'The more clay there is in the jar, the less water it holds.'
“कृष्ण ने अर्जुन से कहा था, ‘भाई, अष्टसिद्धियों में से एक भी सिद्धि के रहते तक मुझे न पाओगे । उससे थोडीसी शक्ति अवश्य मिल जाती है, पर बस केवल इतना ही । गुटिकासिद्धि, झाड़-फूक, दवा देना इत्यादि से लोगों का कुछ थोड़ा-बहुत उपकार भर हो जाता है, क्यों है न यही ?
[“কৃষ্ণ অর্জুনকে বলেছিলেন, ভাই! অষ্টসিদ্ধির একটা সিদ্ধি থাকলে আমায় পাবে না। একটু শক্তি হতে পারে! গুটিকা সিদ্ধি; ঝাড়ানো, ফোঁকানো; ঔষধ-দেওয়া ব্রহ্মচারী; তবে লোকের একটু উপকার হয়। কেমন?
"Krishna said to Arjuna: 'Brother, you will not realize Me if you possess even one of the eight siddhis.' These give only a little power. With healing and the like one may do only a little good to others. Isn't that true?
“इसीलिए माँ से मैंने केवल शुद्ध भक्ति माँगी थी । सिद्धि नहीं माँगी ।”
[“তাই মার কাছে আমি কেবল শুদ্ধাভক্তি চেয়েছিলাম; সিদ্ধাই চাই নাই।”
"Therefore I prayed to the Divine Mother for pure love only, a love that does not seek any return. I never asked for occult powers."
बलराम के पिता, वेणी पाल, मास्टर, मणि मल्लिक आदि से यह बात कहते कहते श्रीरामकृष्ण समाधिमग्न हो गए । बाह्यज्ञानशून्य होकर चित्र की तरह बैठे हैं ।
समाधि भंग हो जाने के बाद श्रीरामकृष्ण गाना गा रहे हैं- 'होलाम जार जोन्ने पागोल तारे कोई कोई पेलाम सई ...
(भावार्थ) – “सखि ! जिसके लिए पागल बनी उसे कहाँ पा सकी ?”
अब आपने रामलाल से गाना गाने के लिए कहा । वे गा रहे हैं - क्या देखा रे , केशव भारती ^ की कुटिया में ? जिसमें बताया गया है कि चैतन्य महाप्रभु (गौरांग) ने संन्यास-जीवन कैसे अपनाया : -
[^ श्री चैतन्य के संन्यासी गुरु]
कि देखिलाम रे केशव भारतीर कुटिरे,
अपरुप ज्योति : श्रीगौरांग मूरति,
दूनयने प्रेम बहे शतधारे।
गौर मत्तमातंगेर प्राय, प्रेमावेशे नाचे गाय,
कभु धराते लुटाये, नयनजले भाशे रे,
काँदे आर बोले हरि, स्वर्ग- मर्त्य भेद कोरि, सिंहरवे रे;
आबार दंते तृण लोये कृतांजली होये,
दास्य मूक्ती याचेन द्वारे द्वारे॥
(भावार्थ) – “केशवभारती की कुटिया में मैंने क्या देखा-असाधारण ज्योतिवाली श्रीगौरांग की मूर्ति, जिसकी दोनों आँखों से शत धाराओं से प्रेमवारि बह रही है । गौर पागल हाथी की तरह प्रेम के आवेश में आकर नाचते हैं, गाते हैं; कभी भूमि पर लोटते हैं । आँसू बह रहे हैं । वे रोते हैं और हरिनाम उच्चारण करते हैं, उनका सिंह-नाद (सिंह -गर्जना) जैसा उच्च स्वर आकाश को भी भेद रहा है । फिर वे दाँतों में तिनका लेकर हाथ जोड़कर द्वार द्वार पर दास्यभाव द्वारा मुक्ति की प्रार्थना कर रहे हैं ।”
কি দেখিলাম রে কেশব ভারতীর কুটিরে,
चैतन्यदेव के इस ‘पागल’ प्रेमोन्माद-अवस्था के वर्णन के बाद श्रीरामकृष्ण के कहने पर रामलाल फिर गोपियों की उन्माद स्थिति का गाना गा रहे हैं-
धरो ना धरो ना रथचक्र, रथ कि चक्रे चले।
जे चक्रेर चक्री हरि, जार चक्रे जगत चले।
धरो ना धरो ना बाजी, ए बाजी नय भेल्किबाजी,
फुरालो प्रेमेर बाजी, (आज) बाजी भोर होलो गोकुले।
मिछे दोषो रे सारथि, ए सारथि असार अति,
बिना रथीर अनुमति, कारो कोथा रथ एमनि चले॥
(भावार्थ) – “रथचक्र को न पकड़ो, न पकड़ो, क्या रथ चक्र से चलता है ? उस चक्र के चक्री हरि हैं, जिसके चक्र से जगत् चलता है ।”
नव-नीरदबरन किसे गण्य श्यामचाँद रूप हेरे।
करेते बाँशी अधरे हांसि , रुपे भुबन आलो करे।
जड़ित पीतबसन, तड़ित जिनी झलमल,
आन्दोलित चरणावधि हृदिसरोजे बनमाल,
निते युवती-जाति कुल, आलो करे जमुनाकुल,
नन्दकुल चंद्र जतो, चंद्र जिनि बिहरे।
श्यामगुणधाम पशि, हाम हृदि-मंदिरे,
प्राण मन ज्ञान सखी हरे निलो बांशीर स्वरे,
गंगानारायणेर जे दु:ख शे कथा बोलिबो कारे,
जानते यदि जेते गो सखी जमुनाय जल अनिबारे।
নবনীরদবরণ কিসে গণ্য শ্যামচাঁদ রূপ হেরে।
করেতে বাঁশি অধরে হাসি, রূপে ভুবন আলো করে।
(भावार्थ) – “श्यामरुपी चन्द्र का दर्शन कर नवीन बादल की कहाँ गिनती है ? हाथ में बंसरी और ओठों पर मुस्कान लिये वह अपने रूप से जगत् को आलोकित कर रहा है ।”
(२)
*अनन्य प्रेम की उपमा - एक राम घनश्याम हित, चातक तुलसीदास।*
[Example of Chatak for the uniqueness of love]
हरिभक्ति होने पर फिर जाति का विचार नहीं रहता । श्रीरामकृष्ण मणि मल्लिक से कह रहे हैं, “तुम 'चातक -तुलसीदास' वाली वह उक्ति कहो तो ।”
[The Master asked Mani Mallick to quote the words of Tulsidas to the effect that one who had developed love of God could not observe caste distinctions.
[হরিভক্তি হইলে আর জাতবিচার থাকে না। শ্রীযুক্ত মণি মল্লিককে বলিতেছেন, তুমি তুলসীদাসের সেই কথাটি বল তো।]
मणि मल्लिक- तुलसीदास कृत (दोहावली - भाग १३) के एक दोहा को उद्धरित करते हैं -
एक भरोसो एक बल, एक आस बिस्वास।
एक राम घनश्याम हित, चातक तुलसीदास।।
अर्थ :-प्रस्तुत दोहे में तुलसीदासजी कहते हैं कि-मुझे अपने इष्टदेव श्रीराम (ठाकुर जी) पर पूरा भरोसा है। एक ही बल, एक ही आशा और एक उन्हीं पर अटूट विश्वास है। मानो एक रामरूपी श्यामघन (मेघ) के लिए ही यह तुलसीदास 'चातक' बना हुआ है।।
प्रेम की अनन्यता के लिये चातक का उदाहरण : चातक की प्यास से छाती फटी जाती है-गंगा, यमुना, सरयू आदि कितनी नदियाँ और तालाब हैं, परन्तु वह कोई भी जल नहीं पीता। वह केवल जब स्वाति नक्षत्र तुंगस्थ हो (लग्न में हो) , तब उसकी वर्षा के जल के लिए ही मुँह खोले रहता है !
[মণি মল্লিক — চাতক, তৃষ্ণায় ছাতি ফেটে যায় — গঙ্গা, যমুনা, সরযূ আর কত নদী ও তড়াগ রয়েছে, কিন্তু কোন জল খাবে না। কেবল স্বাতিনক্ষত্রের বৃষ্টির জলের জন্য হাঁ করে থাকে।
"The throat of the chatak bird is pierced with thirst. All around are the waters of the Ganges, the Jamuna, the Saraju, and of innumerable other rivers and lakes; but the bird will not touch any of these. It only looks up expectantly for the rain thai falls when the star Svati is in the ascendant.'"
श्रीरामकृष्ण- अर्थात् उनके चरणकमलों में भक्ति ही सार है शेष सब मिथ्या ।
[শ্রীরামকৃষ্ণ — অর্থাৎ তাঁর পাদপদ্মে ভক্তিই সার আর সব মিথ্যা।
"That means that love for the Lotus Feet of God is alone real, and all else illusory."]
*तुलसी राम भजन बिन, चारों बरन चमार-ईश्वर का नाम-जप करने से मनुष्य पवित्र बनता है *
मणि मल्लिक- तुलसीदास जी द्वारा "तुलसी सतसई" में कही गयी एक और बात बहुत मार्मिक है -
चतुराई चूल्हे पड़ी, घूरे पड़ा अचार।
तुलसी राम भजन बिन, चारों बरन चमार।।
~ यदि आप बहुत चतुर और अच्छे आचरण के हैं, किन्तु ईश्वर प्रेम नहीं किया तो सब व्यर्थ है। तुलसीदास कहते हैं कि, ऐसी चतुराई चूल्हे की आग में डालने और ऐसा आचारण कचरे के गड्डे में फेंकने योग्य है।
अगर मनुष्य में ईश्वर (श्रीराम, श्रीकृष्ण, बुद्ध , ईसा ,.... अवतारवरिष्ठ श्रीरामकृष्ण ) के प्रति प्रेम/भक्ति नहीं है तो चारों वर्ण केवल चर्म (चमड़ी या त्वचा) से प्रेम करनेवाले चमार हैं।]
सठ सुधरहिं सतसंगति पाई।
पारस परस कुधात सुहाई॥
भावार्थ-दुष्ट भी सत्संगति पाकर सुधर जाते हैं, जैसे पारस के स्पर्श से लोहा सुहावना हो जाता है (सुंदर सोना बन जाता है)
स्पर्शमणि से लगते ही, अष्टधातु सोना बन जाती है । उसी प्रकार सभी जातियाँ – चमार चाण्डाल तक हरिनाम लेने पर शुद्ध हो जाती हैं । और वैसे तो ‘बिना हरिनाम चार जात चमार !’
[মণি মল্লিক — আর একটি তুলসীদাসের কথা — অষ্টধাতু পরশমনী ছোঁয়ালে সোনা হয়ে যায়। তেমনি সব জাতি — চামার, চণ্ডাল পর্যন্ত হরিনাম করলে শুদ্ধ হয়। “বিনা হর্নাম চার জাত চামার।”
MANI: "Tulsi also said: 'At the touch of the philosopher's stone, the eight metals become gold. Likewise all castes, even the butcher and the untouchable, become pure by repeating Hari's name. Without Hari's name the people of the four castes are but butchers.']
श्रीरामकृष्ण- जिस चमड़े की खाल छूनी भी नहीं चाहिए, उसी को पका लेने के बाद फिर देवमन्दिर में भी ले जाते हैं !
[শ্রীরামকৃষ্ণ — যে চামড়া ছুঁতে নাই, সেই চামড়া পাট করার পর ঠাকুরঘরে লয়ে যাওয়া যায়।
“ईश्वर के नाम से मनुष्य पवित्र होता है । इसीलिए नामसंकीर्तन का अभ्यास करना चाहिये । मैंने यदु मल्लिक की माँ से कहा था, ‘जब मृत्यु आएगी, तब यही संसार की चिन्ता होगी । परिवार, लड़के-लड़कियों की चिन्ता, वसीयत करने की चिन्ता – यही सब चिन्ताएँ आएँगी; भगवान् की चिन्ता न आयगी । उपाय है उनके नाम का जप करना, नाम-कीर्तन का अभ्यास करना । यदि अभ्यास रहा, तो मृत्यु के समय में उन्हीं का नाम मुँह में आयगा । बिल्ली के पकड़ने पर चिड़िया की ‘च्याँ, च्याँ’ बोली ही निकलेगी । उस समय वह ‘राम राम’ ‘हरे कृष्ण’ न बोलेगी ।’
[“ঈশ্বরের নামে মানুষ পবিত্র হয়। তাই নামকীর্তন অভ্যাস করতে হয়। আমি যদু মল্লিকের মাকে বলেছিলাম, যখন মৃত্যু আসবে তখন সেই সংসার চিন্তাই আসবে। পরিবার, ছেলেমেয়েদের চিন্তা — উইল করবার চিন্তা — এই সব আসবে; ভগবানের চিন্তা আসবে না। উপায় তাঁর নামজপ, নামকীর্তন অভ্যাস করা। এই অভ্যাস যদি থাকে মৃত্যু সময় তাঁরই নাম মুখে আসবে। বিড়াল ধরলে পাখির ক্যাঁ ক্যাঁ বুলিই আসবে, তখন আর ‘রাম রাম’ ‘হরে কৃষ্ণ’ বলবে না।
"Man becomes pure by repeating the name of God. Therefore one should practise the chanting of God's name. I said to Jadu Mallick's mother: 'In the hour of death you will think only of worldly things — of family, children, executing the will, and so forth. The thought of God will not come to your mind. The way to remember God in the hour of death is to practise, now, the repetition of His name and the chanting of His glories. If one keeps up this practice, then in the hour of death one will repeat the name of God. When the cat pounces upon the bird, the bird only squawks and does not say, 'Rama, Rama, Hare-Krishna'.]
*पाश्चात्य -बुढ़ऊ लोगों के लिए अनिवार्य उपदेश -मृत्यु समय के लिए तैयार होना अच्छा है *
[ It is good to prepare for death.]
“मृत्यु समय के लिए तैयार होना अच्छा है । अन्तिम दिनों में निर्जन में जाकर केवल ईश्वर का चिन्तन तथा उनका नाम जपना । हाथी को नहलाकर यदि हाथीखाने में ले जाया जाए तो फिर वह अपनी देह में मिट्टी-कीचड़ नहीं लगा सकता ।”
[“মৃত্যু সময়ের জন্য প্রস্তুত হওয়া ভাল। শেষ বয়সে নির্জনে গিয়া কেবল ঈশ্বরচিন্তা ও তাঁহার নাম করা। হাতি নেয়ে যদি আস্তাবলে যায় তাহলে আর ধুলো কাদা মাখতে পারে না।”
It is good to prepare for death. One should constantly think of God and chant His name in solitude during the last years of one's life. If the elephant is put into the stable after its bath it is not soiled again by dirt and dust.]
बलराम के पिता, मणि मल्लिक, वेणी पाल ये अब वृद्ध हो गए हैं; क्या इसीलिए श्रीरामकृष्ण उनके कल्याण के लिए ये सब उपदेश दे रहे हैं ?
श्रीरामकृष्ण फिर भक्तों को संबोधित करके बातचीत कर रहे हैं ।
श्रीरामकृष्ण- एकान्त में उनका चिन्तन और नाम-स्मरण करने के लिए क्यों कहता हूँ ? संसार में रात-दिन रहने पर अशान्ति होती है । देखो न, एक गज जमीन के लिए भाई-भाई में मार-काट होती है ।
“सिक्खों ने मुझसे कहा था कि -जमीन, जोरू और जायदाद (land, woman, and money) –झगड़े की जड़ होती है। इन्हीं तीनों के लिए इतनी गड़बड़ तथा अशान्ति होती है ।
[ [শ্রীরামকৃষ্ণ — নির্জনে তাঁর চিন্তা ও নাম করতে বলেছি কেন? সংসারে রাতদিন থাকলে অশান্তি। দেখ না একহাত জমির জন্য ভায়ে ভায়ে খুনোখুনি। শিখরা (Sikhs) বলে, জমি, জরু আর টাকা এই তিনটির জন্য যত গোলমাল অশান্তি।]
"Why do I ask you to think of God and chant His name in solitude? Living in the world day and night, one suffers from worries. Haven't you noticed brother killing brother for a foot of land? The Sikhs said to me, 'The cause of all worry and confusion is these three: land, woman, and money.'
*साधक-अवस्था में परिवार - 'धोखे की टट्टी'; और सिद्धावस्था में - "आनन्द की हवेली' *
[योगवाशिष्ठ का प्रसंग-क्या संसार ईश्वर से अलग है ? ]
“तुम लोग संसार में हो तो इसमें भय क्या है ? राम ने जब संसार छोड़ने की बात कही, तो दशरथ चिन्तित होकर वशिष्ठ की शरण गए । वशिष्ठ ने राम से कहा, ‘राम, तुम क्यों संसार को छोड़ोगे ? मेरे साथ विचार करो, क्या संसार ईश्वर से अलग है ? क्या छोड़ोगे और क्या ग्रहण करोगे ? उनके अतिरिक्त और कुछ नहीं है । वे ईश्वर, माया, जीव, जगत् सभी रूप में प्रकट हो रहे हैं ।’
[“তোমরা সংসারে আছ তা ভয় কি? রাম যখন সংসারত্যাগ করবার কথা বললেন, দশরথ চিন্তিত হয়ে বশিষ্ঠের শরণাগত হলেন। বশিষ্ঠ রামকে বললেন, রাম তুমি কেন সংসার ত্যাগ করবে? আমার সঙ্গে বিচার কর, ঈশ্বর ছাড়া কি সংসার? কি ত্যাগ করবে, কি বা গ্রহণ করবে? তিনি ছাড়া কিছুই নাই। তিনি ‘ঈশ্বর-মায়া-জীব-জগৎ’ রূপে প্রতীয়মান হচ্ছেন।”
"You are leading a householder's life. Why should you be afraid of the world? When Rama said to Dasaratha that He was going to renounce the world, it worried His father, and the king sought counsel of Vasishtha. Vasishtha said to Rama: 'Rama, why should You give up the world? Reason with me. Is this world outside God? What is there to renounce and what is there to accept? Nothing whatever exists but God. It is Brahman alone that appears as Isvara, maya, living beings, and the universe.'"
बलराम के पिता-बड़ा कठिन है ।বলরামের পিতা — বড় কঠিন।"It is very difficult, sir."
श्रीरामकृष्ण- साधना के समय यह संसार धोखे की टट्टी है, फिर ज्ञान प्राप्त करने के बाद, उनके दर्शन के बाद, वही संसार – *आनन्द की कुटिया* है ।
[শ্রীরামকৃষ্ণ — সাধনের সময় এই সংসার “ধোঁকার টাটি”; আবার জ্ঞানলাভ হবার পর, তাঁকে দর্শনের পর, এই সংসার “মজার কুটি”।
MASTER: "The aspirant, while practising spiritual discipline, looks upon the world as a 'framework of illusion'. Again, after the attainment of Knowledge, the vision of God, this very world becomes to him a 'mansion of mirth.'
*अवतार-पुरुष में ईश्वर का दर्शन । अवतार चैतन्यदेव*
“वैष्णव-ग्रन्थ में कहा है, विश्वास से कृष्ण मिलते हैं, वे तर्क से बहुत दूर हैं ।’ केवल विश्वास !
[“বৈষ্ণবগ্রন্থে আছে, বিশ্বাসে মিলয়ে কৃষ্ণ তর্কে বহুদূর।
"It is written in the books of the Vaishnavas: 'God can be attained through faith alone; reasoning pushes Him far away.' Faith alone!
“कृष्णकिशोर का क्या ही विश्वास है ! वृन्दावन में कुएँ से एक नीच जाति के पुरुष ने जल निकाला; कृष्णकिशोर ने उससे कहा, ‘तू बोल शिव;’ उसके शिवनाम लेते ही उसने जल पी लिया । वह कहता था, ‘ईश्वर का नाम लिया है, फिर भी धन आदि खर्च करके प्रायश्चित्त करना होगा ? कैसी विडम्बना है!’
“कृष्णकिशोर यह देख कर आश्चर्यचकित हो गया कि लोग अपने शारीरिक रोगों से छूटकर पानेके लिए भगवान् को तुलसीदल चढ़ा रहे हैं ।
“साधुदर्शन की बात पर हलधारी ने कहा था, ‘और क्या देखने जाऊँ-पंचभूतों का पिंजरा !’ कृष्णकिशोर ने क्रुद्ध होकर कहा, ‘ऐसी बात हलधारी ने कही है !’ क्या वह नहीं जानता कि साधुओं की देह चिन्मय होती है !’
“कालीबाड़ी के घाट पर हमसे कहा था, ‘तुम लोग आशीर्वाद दो कि राम राम कहते मेरे दिन कट जाएँ!’
“मैं कृष्णकिशोर के मकान पर जब जाता था, तब मुझे देखते ही वह नाचने लगता था !”
“श्रीरामचन्द्र ने लक्ष्मण से कहा था, ‘भाई, जहाँ पर उर्जित भक्ति देखोगे, जानो कि वहीँ पर मैं हूँ ।’
“जैसे चैतन्यदेव; प्रेम से हँसते हैं, रोते हैं, नाचते हैं, गाते हैं । चैतन्यदेव अवतार हैं- उनके रूप में ईश्वर अवतीर्ण हुए हैं ।
[“কৃষ্ণকিশোরের কি বিশ্বাস! বৃন্দাবনে কূপ থেকে নীচ জাতি জল তুলে দিলে, তাকে বললে, তুই বল শিব। সে শিবনাম করার পর অমনি জল খেলে। সে বলত ঈশ্বরের নাম করেছে আবার কড়ি দিয়ে প্রায়শ্চিত্ত! এ কি!“রোগাদি জন্য তুলসী দিচ্ছে, কৃষ্ণকিশোর দেখে অবাক্! “সাধুদর্শনের কথায় হলধারী বলেছিল, ‘কি আর দেখতে যাবো — পঞ্চভূতের খোল।’ কৃষ্ণকিশোর রাগ করে বললে, এমন কথা হলধারী বলেছে। সাধুর চিন্ময় দেহ জানে না। “কালীবাড়ির ঘাটে আমাদের বলেছিল, তোমরা বলো — রাম! রাম! বলতে বলতে যেন আমার দিন কাটে।“আমি কৃষ্ণকিশোরের বাড়ি যাই যেতাম, আমাকে দেখে নৃত্য।“রামচন্দ্র লক্ষ্মণকে বলেছিলেন, ভাই, যেখানে দেখবে ঊর্জিতাভক্তি সেইখানে জানবে আমি আছি।“যেমন চৈতন্যদেব। প্রেমে হাসে কাঁদে নাচে গায়। চৈতন্যদেব অবতার — ঈশ্বর অবতীর্ণ।”
"What faith Krishnakishore had! At Vrindavan a low-caste man drew water for him from a well. Krishnakishore said to him, 'Repeat the name of Siva.' After the man had repeated the name of Siva, Krishnakishore unhesitatingly drank the water. He used to say, 'If a man chants the name of God, does he need to spend money any more for the atonement of his sins? How foolish!' He was amazed to see people worshipping God with the sacred tulsi-leaf in order to get rid of their' illnesses. At the bathing-ghat here he said to us, 'Please bless me, that I may pass my days repeating Rama's holy name.' Whenever I went to his house he would dance with joy at the sight of me. Rama said to Lakshmana, 'Brother, whenever you find people singing and dancing in the ecstasy of divine love, know for certain that I am there.' Chaitanya is an example of such ecstatic love. He laughed and wept and danced and sang in divine ecstasy. He was an Incarnation. God incarnated Himself through Chaitanya."
श्रीरामकृष्ण गाना गा रहे हैं-
भाब होबे बै कि रे! भावनिधि श्री गौरांगेर।
भाब हासे कांदे नाचे गाय,
बन देखे वृंदावन भाबे; सुरधुनी देखे श्रीयमुना भाबे .
(गोरा फुकुरि फुकुरि कांदे)।
ভাব হবে বইকি রে ভাবনিধি শ্রীগৌরাঙ্গের।
ভাবে হাসে কাঁদে নাচে গায়! (ফুকুরি ফুকুরি কান্দে)।
(भावार्थ) – “ भावनिधि श्रीगौरांग का भाव तो होगा ही रे’ वे भावविभोर होकर हँसते हैं, रोते हैं, नाचते हैं, गाते हैं’ सिसक-सिसककर रोते हैं ।”
(३)
*अपने स्वयं के intuition-अंतःस्फुरण का पालन करें।*
बलराम के पिता , मणि मल्लिक, वेणी पाल आदि बिदा ले रहे हैं।
[Sri Ramakrishna sang a song describing the divine love of Chaitanya. Then Balaram's father, Mani Mallick, Beni Pal, and several other devotees took leave of the Master.
सायंकाल के बाद कंसारीपाड़ा की हरिसभा के भक्तगण आये हैं।
उनके साथ श्रीरामकृष्ण मतवाले हाथी की तरह नृत्य कर रहे हैं। नृत्य के बाद भाविभोर होकर कह रहे हैं , " मैं कुछ दूर अपने-आप जाऊंगा।"
किशोरी भावावस्था में चरणसेवा करने जा रहे हैं। श्रीरामकृष्ण ने किसी को छूने नहीं दिया।
[তাঁহাদের সঙ্গে শ্রীরামকৃষ্ণ মত্ত মাতঙ্গের ন্যায় নৃত্য করিতেছেন।নৃত্যের পর ভাবাবিষ্ট। বলছেন, আমি খানিকটা আপনি যাবো।কিশোরী ভাবাবস্থায় পদসেবা করিতে যাইতেছেন। শ্রীরামকৃষ্ণ কারুকে স্পর্শ করিতে দিলেন না।
In the evening, devotees from Kansaritola, Calcutta, arrived. The Master danced and sang with them in a state of divine fervour. After dancing, he went into a spiritual mood and said, "I shall go part of the way myself." Kishori came forward to massage his feet, but the Master did not allow anyone to touch him.
संध्या के बाद ईशान आये हैं। श्रीरामकृष्ण बैठे हैं -भावविभोर ! थोड़ी देर बाद ईशान के साथ बात कर रहे हैं। ईशान की इच्छा है , गायत्री का पुश्चरण करेंगे।
[সন্ধ্যার পর ঈশান আসিয়াছেন। শ্রীরামকৃষ্ণ বসিয়া আছেন — ভাবাবিষ্ট। কিছুক্ষণ পরে ঈশানের সঙ্গে কথা কহিতেছেন। ঈশানের ইচ্ছা, গায়ত্রীর পুরশ্চরণ করা।
Ishan arrived. The Master was seated, still in a spiritual mood. After a while he became engaged in talk with Ishan. It was Ishan's desire to practise the purascharana of the Gayatri.
श्रीरामकृष्ण (ईशान के प्रति) -तुम्हारे मन में जो (intuition-अंतःस्फुरण) होता है , वैसा ही करो , मन में और कोई संदेह तो नहीं रहा?
[শ্রীরামকৃষ্ণ (ঈশানের প্রতি) — তোমার যা মনোগত তাই করো। মনে আর সংশয় নাই তো?
"Follow your own intuition. I hope there is no more doubt in your mind. Is there any? The path of the Vedas is not meant for the Kaliyuga. The path of Tantra is efficacious."
[कलियुग में 'निगम' का नहीं -'आगम' का मार्ग लाभदायक है]
['कलौ आगमसम्मत:' -कलियुग के लिए वेद नहीं , तंत्र का मार्ग प्रभावशाली है।]
[ The path of the Vedas (निगम) is not meant for the Kaliyuga. The path of Tantra (आगम) is efficacious.
निगम -आगम मूलक भारतीय संस्कृति का आधार जिस प्रकार निगम (वेद) है, उसी प्रकार आगम (तंत्र) भी है। दोनों स्वतंत्र होते हुए भी एक दूसरे के पोषक हैं। निगम कर्म, ज्ञान तथा उपासना का स्वरूप बतलाता है तथा आगम इनके उपायभूत साधनों का वर्णन करता है। आगम वेदमूलक और सम्पूरक हैं। इनके वक्ता प्रायः भगवान् शिव हैं। कलौ आगमसम्मत:। - कलियुग में आगम की पूजा-पद्धति विशेष उपयोगी तथा लाभदायक मानी जाती है। ऐसा भी कहा जाता है कि आगम शास्त्र का ज्ञान सुन कर या गुरमुख के द्वारा ही पाया जा सकता है। भगवान् महादेव के द्वारा ये दिव्य ज्ञान लोमश ऋषि को प्राप्त हुआ और फिर गुरुमुख द्वारा अन्य को। ]
ईशान - मैंने एक प्रकार से प्रायश्चित-अनुष्ठान ^* करने का संकल्प कर ही लिया है ।
[ঈশান — আমি একরকম প্রায়শ্চিত্তের মতো সঙ্কল্প করেছিলাম।
ISHAN: "I have almost resolved to perform an atonement ceremony."
[प्रायश्चित-अनुष्ठान ^* जैसे क्षार से वस्त्र की शुद्धि होती है वैसे ही प्रायश्चित्त से पापी की शुद्धि होती है।]
श्रीरामकृष्ण - इस पथ में (तंत्र-मार्ग में,तन्त्र का सामान्य अर्थ है विधि या उपाय। ) क्या यह नहीं होता ? जो ब्रह्म है , वही शक्ति काली है। 'काली ही ब्रह्म है ' --यह मर्म जान लेने के बाद मैंने धर्माधर्म सब छोड़ दिया है।
[শ্রীরামকৃষ্ণ — এ-পথে (আগমের পথে) কি তা হয় না? যিনিই ব্রহ্ম তিনিই শক্তি, কালী। ‘আমি কালীব্রহ্ম জেনে মর্ম ধর্মাধর্ম সব ছেড়েছি।’
MASTER: "Do you mean to say that one cannot follow the path of Tantra? That which is Brahman is also Sakti, Kali. Knowing the secret that Kali is one with the highest Brahman,I have discarded, once for all, both righteousness and sin."
ईशान -चण्डी -स्त्रोत्र में है , ब्रह्म ही आद्याशक्ति हैं। ब्रह्म और शक्ति अभिन्न हैं।
[ঈশান — চন্ডীর স্তবে আছে, ব্রহ্মই আদ্যাশক্তি। ব্রহ্ম-শক্তি অভেদ।
"It is mentioned in a hymn in the Chandi that Brahman alone is the Primal Energy. Brahman is identical with Sakti."
श्रीरामकृष्ण - यह मुंह से कहने से ही नहीं होगा , जब धारणा होगी तब ठीक होगा।
[শ্রীরামকৃষ্ণ — এইটি মুখে বললে হয় না, ধারণা যখন হবে তখন ঠিক হবে।
"It will not do simply to express that idea in words. Only when you assimilate it will all be well with you.]
" साधना के बाद चित्तशुद्धि होने पर यथार्थ ज्ञान होगा कि - वे ही कर्ता हैं। वे ही मन -प्राण-बुद्धि रूप हैं। मैं केवल यंत्ररूप हूँ ! '
'तुम कीचड़ में हाथी को फंसा देते हो , लंगड़े से पहाड़ लंघवाते हो ! '
[“সাধনার পর চিত্তশুদ্ধি হলে ঠিক বোধ হবে তিনিই কর্তা, তিনিই মন-প্রাণ-বুদ্ধিরূপা। আমারা কেবল যন্ত্রস্বরূপ। ‘পঙ্কে বদ্ধ কর করী, পঙ্গুরে লঙ্ঘাও গিরি।’
"When the heart becomes pure through the practice of spiritual discipline, then one rightly feels that God alone is the Doer. He alone has become mind, life, and intelligence. We are only His instruments.Thou it is that boldest the elephant in the mire;Thou, that helpest the lame man scale the loftiest hill.
" चित्तशुद्धि होने पर समझ में आएगा कि पुश्चरण इत्यादि कर्म भी वे ही करवाते हैं। 'उनका काम वे ही करते हैं ; लोग कहते हैं , मैं करता हूँ। '
[“চিত্তশুদ্ধি হলে বোধ হবে, পুরশ্চরণাদি কর্ম তিনিই করান। ‘যাঁর কর্ম সেই করে লোকে বলে করি আমি।’
"When your heart becomes pure, then you will realize that it is God who makes us perform such rites as the purascharana.
" उनके दर्शन होने पर सभी संदेह मिट जाते हैं। उस समय अनुकूल हवा बहती है। अनुकूल हवा बहने पर जिस प्रकार मांझी पाल उठाकर पतवार पकड़कर बैठा रहता है और तम्बाकू पीता है , उसी प्रकार भक्त भी निश्चिन्त हो जाता है। "
[“তাঁকে দর্শন হলে সব সংশয় মিটে যায়। তখন অনুকূল হাওয়া বয়। অনুকূল হাওয়া বইলে মাঝি যেমন পাল তুলে দিয়ে হালটি ধরে বসে থাকে, আর তামাক খায়, সেইরূপ ভক্ত নিশ্চিন্ত হয়।”
"All doubts disappear after the realization of God. Then the devotee meets the favourable wind. He becomes free from worry. He is like the boatman who, when the favourable wind blows, unfurls the sail, holds the rudder lightly, and enjoys a smoke."
ईशान के चले जाने पर श्रीरामकृष्ण मास्टर से एकांत में बात कर रहे हैं , पूछ रहे हैं , " नरेंद्र , राखाल , अधर , हाजरा , ये लोग तुम्हें कैसे लगते हैं ? सरल हैं या नहीं ? और मैं तुम्हें कैसा लगता हूँ ?
मास्टर कह रहे हैं , " आप सरल हैं , फिर गंभीर भी ! आपको समझना बहुत कठिन है। " श्रीरामकृष्ण हँस रहे हैं।
[ঈশান চলিয়া গেলে শ্রীরামকৃষ্ণ মাস্টারের সহিত একান্তে কথা কহিতেছেন। জিজ্ঞাসা করিতেছেন, নরেন্দ্র, রাখাল, অধর, হাজরা এদের তোমার কিরূপ বোধ হয়, সরল কি না। আর আমাকে তোমার কিরূপ বোধ হয়। মাস্টার বলিতেছেন, “আপনি সরল আবার গভীর — আপনাকে বুঝা বড় কঠিন।”
M. said: "You are simple and at the same time deep. It is extremely difficult to understand you."
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