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गुरुवार, 23 जून 2011

विवेक वाहिनी के लिए खेल- कूद

वर्ष १९८९ में बंगला में प्रकाशित पुस्तिका 'खेला-धुला ' का हिन्दी अनुवाद 

भूमिका 
अखिल भारत विवेकानन्द युवा महामण्डल से अनुमोदित लगभग समस्त केन्द्रों में एक शिशु विभाग रहता है, जिसमें १४ वर्ष तक के लड़के एवं १२ वर्ष के उम्र तक की लडकियों को सदस्य के रूप में रखा जा सकता है. इसे ' विवेक-वाहिनी ' के नाम से जाना जाता है.वैसे केंद्र, जो महामण्डल के भावधारा के अनुरूप कार्य तो कर रहे हैं, किन्तु जिनको अभी तक अनुमोदन प्राप्त नहीं हुआ है, वहाँ के शिशु विभाग का नामकरण करने की कोई आवश्यकता नहीं है.
प्रत्येक केंद्र में शिशु विभाग को दक्षता पूर्वक संचालित करने के लिए कम से कम दो-तीन ' प्रशिक्षित- संचालक ' अवश्य रहने चाहिए. उन्हें प्रशिक्षित करने के लिए प्रतिवर्ष एक शिविर अलग से आयोजित किया जाता है.
महामण्डल का ' शिशु विभाग ' केवल खेल-कूद कराने के उद्देश्य से गठित नहीं हुआ है. इसका मूल उद्देश्य है, बच्चों को बचपन से ही ' जीवन-गठन ' के लिए उपयोगी विचारों से परिचित करवा दिया जाय. 
शिशु-विभाग के लिए अलग से एक साप्ताहिक पाठचक्र आयोजित किया जाता है, जिसमें बच्चों को ' श्रीरामकृष्ण-माँ सारदा- स्वामी विवेकानन्द ' के साथ साथ अन्यान्य महापुरुषों की जीवनी एवं ' शिक्षा मूलक कहानियाँ ' आदि सुनाई जातीं हैं. 
शिशु-विभाग में रामायण, महाभारत, उपनिषद, पुराणों आदि से प्रेरणादायक  कहानियाँ सुनाई जातीं हैं, तथा 'चरित्र-गठन ' एवं ' मनः संयोग ' के विषय पर उनके समझ में आने योग्य सरल भाषा में चर्चा की जाती है. विशेष अवसर पर सामूहिक प्रार्थना, संगीत, चित्रांकन-प्रतियोगिता आदि भी आयोजित किये जाते हैं. 
इसके अतिरिक्त नियमित रूप से सभी बच्चों को शारीरिक-व्यायाम, प्रश्नोत्तरी -स्पर्धा, तथा खेल-कूद कराया जाता है. शिशु विभाग की नियमावली तथा गानों के ऊपर अलग से पुस्तिकाएँ भी प्रकाशित हुई हैं. 
लगभग ३३ वर्षों से महामण्डल के विभिन्न केन्द्रों में ये सब कार्यक्रम हो रहे हैं.  सभी केन्द्रों को इस ओर विशेष ध्यान रखना चाहिए कि शिशु-विभाग में खेल-कूद या जो कुछ भी कार्य किये जाएँ, उन सबों का उद्देश्य केवल' चरित्र-गठन ' और ' अच्छा मनुष्य बनना ' ही हो. विवेक-वाहिनी प्रशिक्षण शिविर में विभिन्न केन्द्रों से आये प्रशिक्षुओं को इन्हीं सब विषयों का प्रशिक्षण दिया जाता है.
कुछ कुछ केन्द्रों में, संचालक लोग अपने मन-मर्जी के मुताबिक भाँति भाँति के खेल-कूद सिखाने लगते हैं, जिनका उद्देश्य सदैव ' चरित्र-गठन करना ' नहीं भी हो सकता है. इसीलिए बहुत दिनों से ऐसा महसूस किया जा रहा था कि, केन्द्रिय-संगठन  द्वारा ' व्यायाम एवं खेल-कूद ' की एक अनुमोदित क्रम-सूचि भी बनाई जानी चाहिए;  इस पुस्तिका में वही प्रयास किया गया है.
अभी तक जितने प्रकार के खेल-कूद केन्द्रिय सन्गठन द्वारा अनुमोदित किये जा चुके हैं, उन समस्त खेलों को ठीक-ठीक याद रखते हुए, एक ही ढंग से सभी शिशु- विभागों के संचालन में असुविधा हो रही थी,  उनको याद रखने में आसानी हो,  इसीलिए वैसे ही खेल-कूद को संग्रहित और सूचीबद्ध करके पुस्तिका के रूप में प्रकाशित किया जा रहा है. 
 आशा की जाती है कि, भविष्य में इस पुस्तिका के अनुसार समस्त केन्द्रों में अनुमोदित खेल-कूद को अच्छे ढंग से बच्चों को खेलवाने तथा सिखाने में सुविधा होगी. साथ ही साथ केंद्र के सचिव, अन्य सदस्य-गण, शिशु विभाग के संचालक-गण भी इस पुस्तिका की सहायता से सभी खेलों की विषयवस्तु को सही सही समझ सकेंगे. 
 प्रत्येक शिशु के भीतर जो असीम संभावनाएँ अन्तर्निहित हैं, उसको क्रमशः जाग्रत करा कर उनके जीवन को सुन्दर ढंग से गठित करने के लिए, महामण्डल के शिशु विभाग की जो महत्वपूर्ण भूमिका है, उसको क्रियान्वित करने में यदि यह पुस्तिका सहायक सिद्ध होगी, तब इसका प्रकाशन सार्थक मन जायेगा. 
 महामण्डल के शिशु विभाग को सर्वांग सुन्दर बनाने के लिए हमारे कई सदस्यों ने कई वर्षों से अथक परिश्रम एवं चिंतन-मनन किया है, एवं खेल के तरीके को उन्नत करने, उसे महामण्डल की भावधारा के अनुकूल बनाकर पुस्तिका के रूप में प्रकाशित करने में विभिन्न प्रकार से अपना योगदान दिया है, उन सभी को ठाकुर-माँ-स्वामीजी का आशीर्वाद प्राप्त हो. 
जो लोग शिशु विभाग के साथ प्रत्यक्ष रूप में जुड़े रहकर कार्य करते हैं, उन सभी को इन शिशु देवताओं की पूजा करने के फलस्वरूप सुन्दर-जीवन प्राप्त हो,उनके आशीर्वाद से शिशु विभाग के कार्य में संलग्न प्रत्येक व्यक्ति के जीवन की कली सुगन्धित पुष्पों के मानिन्द प्रस्फुटित हो जाये, ठाकुर-माँ-स्वामीजी से यही मेरी प्रार्थना है. 
श्रीनवनीहरण मुखोपाध्याय.
(अध्यक्ष,अखिल भारत विवेकानन्द युवा महामण्डल.)
१ स्वामीजी बोलो !
इस खेल को सारे बच्चे एक साथ मिल कर खेलेंगे. खेल को प्रारंभ करने के पहले, किसी २ बच्चे को चुन लेना होगा, जिनसे खेल को शुरू किया जायेगा. दोनों में से एक दुसरे को पकड़ने की चेष्टा करेगा, बाकी सारे बच्चे मैदान में फैले रहेंगे. खेल प्रारंभ होने के साथ साथ, उन दोनों में से एक जब दुसरे को पकड़ने के लिए दौड़ना शुरू करेगा, उस समय बाकी खिलाडियों के बीच में से कोई इन दोनों के बीच में से ' स्वामीजी ' बोल कर यदि भाग सके तो जो ख़िलाड़ी दुसरे ख़िलाड़ी को पकड़ने के लिए दौड़ रहा था, उसको छोड़ कर जो बच्चा ' स्वामीजी ' बोल कर भाग गया, अब वह इसको पकड़ने के लिए दौड़ेगा.
पुनः इन्ही के बीच में से कोई यदि पहले जैसा ' स्वामीजी ' बोलने के बाद इन दोनों के बीच से भाग जाये, तब पहले वाले बच्चे को छोड़ कर, जो ' स्वामीजी ' बोल कर भाग रहा है, उसको पकड़ने के लिए दौड़ेगा. इसी प्रकार खेल आगे चलता रहेगा. जो बच्चा आरम्भ से ही दुसरे ख़िलाड़ी को पकड़ने के लिए दौड़ रहा था, वह यदि और अधिक दौड़ नहीं सके, तो कोई दूसरा ख़िलाड़ी उस के स्थान पर आ जायेगा. खेल इसी प्रकार चलता रहेगा.
२ नेता खोजो !
यह खेल जितनी मर्जी हो उतने बच्चों को खेलवाया जा सकता है. सभी बच्चों को गोलाई में खड़ा कराकर, एक बच्चे को दुसरे ओर मुख करके खड़ा करवाकर, गोलाई के बीच में से किसी एक को नेता चुन कर खेल प्रारंभ करना होगा. जो लड़का पीठ फेर कर खड़ा था, वह गोलाई के भीतर आकर, नेता को ढूंढ़ निकालने की चेष्टा करेगा. उसको तीनबार ' नेता कौन है ' पूछा जायेगा. यदि इसी तीन अवसर के बीच उसने ' नेता ' को पहचान लिया तो, जो नेता था उसको उसी प्रकार अब जो नया नेता होगा, उसको ढूंढ़ कर बाहर निकलना होगा. तीन बार पूछने के बाद भी यदि वह ' नेता ' को नहीं ढूंढ़ सका तो उसको मैदान के बीच तीन बार घोलटनिया मारना होगा, या गोलाई का तीन चक्कर काटना होगा.
३ संवाद-संचार 
स खेल को एक से अधिक दल बना कर खेला जा सकता है. समान संख्या का दो दल बना कर, दोनों दलों को आमने-सामने एक लाइन में खड़ा करा देना चाहिए. प्रत्येक दल का बच्चा एक-दुसरे से कुछ फासला बना कर खड़ा रहेगा. इसके बाद, खेल का संचालक प्रत्येक दल के लिए, एक निर्दिष्ट समाचार किसी पन्ने पर लिखेंगे. दोनों दलों के लिए कागज अलग अलग रहेगा. अब दोनों पंक्ति में पहले स्थान पर बच्चा खड़ा हो उसे अपने पास बुलाकर संचालक उसके हाथ में दे देगा. इसका बाद वह पहला बच्चा उस खबर को पढ़ कर, उस कागज को संचालक को वापस कर देगा. एवं वापस लौट कर बाद वाले बच्चे के कान में वह खबर पहुंचा देगा. जो अंतिम बच्चा है, वह कागज-पेन लेकर बैठा रहेगा. जब वह खबर अंतिम बच्चे तक पहुँच जाएगी तब उस खबर को उसने जैसा सुना वही कागज पर लिख कर संचालक के पास जमा कर देगा. जब तक खेल चलता रहेगा आपस में कोई बातचीत नहीं करेगा. संचालक अपने कागज से मिलान करके देखेगा, उसके लिखे अनुसार जिस दल का लिखा एक होगा उसी दल को विजयी घोषित किया जायेगा.
४ जैसा था, उसी जैसा 
इस खेल को एक से अधिक समान संख्यक दल बना कर खेला जा सकता है. संचालक खिलाडियों को नम्बर के अनुसार गोलाई में खड़ा करवा देगा. इसके बाद गोलाई के बीच में, निशान बना कर जितने दल होंगे उन सभी के लिए निर्दिष्ट गेंदों को रख देगा. इसके बाद संचालक जो नम्बर पुकारेंगे, उसी नम्बर का बच्चा गोल निशान के चारो ओर एक बार आकर, अपनी जगह से प्रविष्ट होकर, गेन्द लेकर पुनः अपनी जगह से बाहर निकल कर बायीं ओर से एक बार घूम कर वापस आकर उसी बीच में बनाये गोल निशान में गेन्द वापस उसी प्रकार रख कर जो पहले अपने स्थान में खड़ा हो सकेगा, उसी का नम्बर होगा. गेन्द रखने के समय गोल निशान के बाहर रह गया तो कोई नम्बर नहीं मिलेगा. क्रमानुसार खेल इसी प्रकार चलता रहेगा.
जाने मत देना 
यह खेल खेलना हो तो, पहले सभी बच्चों को तीन या चार समान दल में विभक्त कर देना होगा. अब उन सब दलों को बड़े गोल में खड़ा करा देंगे. बड़े गोल के बीच में एक छोटा गोल निशान बना देना होगा. अब परिचालक जो नम्बर पुकारेंगे, उसी नम्बर के ४ बच्चे, उस छोटे गोल के चारो ओर खड़े हो जायेंगे. अब उन चारो में से कोई बच्चा छोटे गोल के बीच में खड़ा हो जायेगा. बाकी ३ बच्चे उसको घेर कर उसी छोटे गोल के बाहर खड़े रहेंगे. अब सिटी बजने पर गोल के बीच में खड़ा लड़का, बाहर निकल कर तीन लडकों को के बीच से पास कट कर यदि बड़े गोल में पहुँच जायेगा तो उसको २ पॉइंट मिलेगा. और यदि बाहर निकलते समय उन तीन लडकों में से जिसके हाथ में मोर होगा, उसको १ पॉइंट मिलेगा. एक एक करके चारो लडकों को खेलने का अवसर मिलेगा. इसी प्रकार एक दल के चले जाने के बाद, संचालक पुनः एक नम्बर पुकारेगा, तब उसी नम्बर के ४ लड़के आकर उसी प्रकार खेलंगे. खेल वैसे ही चलता रहेगा. खेल के अंत में सब दलों का नम्बर जोड़ने पर जिस दल को अधिक नम्बर मिलेगा उसी को विजयी घोषित किया जायेगा.
६ एक एक कर के सब 
यह खेल पहले दो से शुरू कर जितनी मर्जी उतनी समान संख्यक दल बना कर खेला जा सकता है. जितना दल बना है उन सब को पहले गोलाई में खड़ा करना होगा. इसके बाद दल के पहले बच्चे के हाथ में एक एक गेन्द दे देना होगा. जैसे ही संचालक खेल शरू करने की सिटी बजाएगा, पहला बच्चा  गोल का एक चक्कर लगा कर वापस अपनी जगह में लौट कर दूसरे बच्चे के हाथ में गेन्द देगा. दूसरा बच्चा चक्कर लगाने के बाद तीसरे बच्चे को देगा. इस प्रकार क्रमानुसार जब गेन्द अंतिम बच्चे के हाथ में पहुंचेगा, वह गेन्द लेकर एक चक्कर लगाने के बाद अपने स्थान से प्रविष्ट होकर बीच में गेन्द रख कर वापस अपनी जगह पर खड़ा हो सकेगा, वही दल प्रथम होगा. इसी प्रकार, फर्स्ट, सेकंड, थर्ड, का फैसला होने पर खेल समाप्त हो जायेगा.
७ पहले उठाओ 
यह खेल दो या उससे अधिक समान संख्यक दल बना कर खेला जा सकता है. संचालक पहले सबों को गोल में खड़ा करवा देंगे, एवं प्रत्येक दल के भाइयों का नम्बर बाँट देंगे. प्रत्येक को अपना अपना नम्बर याद रखना होगा. इसके बाद संचालक अपनी इच्छा से कोई एक नम्बर पुकारेगा. तब उसी नम्बर का ख़िलाड़ी दाहिनी ओर से गोल का एक चक्कर लगा कर अपने स्थान से प्रविष्ट होकर, गोल के बीच रखी गयी जो भी वस्तु हो, उसको पहले उठा सकेगा, उसीको नम्बर दिया जायेगा. इसी प्रकार क्रमांक के अनुसार खेल चलेगा.
८ सीधा-उल्टा दौड़ो 
दो दलों में विभक्त करके, दोनों को नम्बर देकर गोलाई में खड़ा करा देना होगा. इस बार संचालक जो नम्बर पुकारेगा, उस नम्बर के दो बच्चे, एक दूसरे को छूने के लिए, गोल के चारो ओर दौड़ेंगे, संचालक बीच बीच में एक एक सिटी बजाएँगे, पहली सिटी बजने पर सीध में दौड़ना होगा, एवं बाद वाली सिटी सुनने पर उल्टा दौड़ना है, फिर उसके बाद वाली सिटी सुनने पर सामने से दौड़ना है. इसीप्रकार एक निर्दिष्ट समय तक यह खेल चलाएंगे. इस बीच जो जिस को छू लेगा, उसीका नम्बर मिलेगा. खेल के अंत में जिस दल का नम्बर अधिक होगा वही दल विजयी होगा. 
९ लैंग चैंग
यह खेल दो दलों में होगा. एकदल गोल के भीतर, दूसरा दल गोल के बाहर खड़ा होगा. अब जो गोल के बाहर खड़ा है, उसमे से दो ब्च्चा एक पैर से गोल के भीतर प्रविष्ट होकर, जो गोल के अन्दर हैं उनको छुएगा. जब तक दूसरा पैर गिर नहीं जाता तबतक वह जितने अधिक बच्चों को छू सकता है. इसी प्रकार दो दो करके आते जाते रहेंगे. निर्दिष्ट समय के भीतर कितनो को छू सका यह देखना है. इसबार जो दल बाहर था, वह भीतर जायेगा और जो दल भीतर था वह बाहर खड़ा होगा. इसके बाद खेल पहले की तरह चलता रहेगा. खेल के अन्त में देखना होगा कि किस दल ने ज्यादा आउट किया है. जिस दल ने अधिक आउट किया हो, वही विजयी होगा.
१० काने काने 
इस खेल को एक से अधिक दल बना कर खेला जा सकता है. मैदान में दलों को थोड़ी अधिक दूरी रखकर बैठा देना है. संचालक बीच में खड़ा होगा, इसके बाद किसी एक दल से खेल शुरू होगा. प्रथम दल आकर दुसरे दल के दो बच्चों के नाम पुकारेगा, यदि दूसरे दल का वही दो लोग, पुकारने पर आ जायेंगे, तो वे पहले दल में चले जायेंगे. दो में से कोई एक भी आता है तो वह पहले दल में चला जायेगा. इसी पद्धति से खेल चलेगा. अन्त में किस दल कि संख्या सबसे अधिक है उसी को विजयी मन जायेगा.
    ११ गोल में खो खो 
इस खेल को दो दल बना कर खेलना होगा. एक दल को मैदान के एक कोने में बैठाना होगा, दुसरे दल को गोल आकार में खड़ा करवाना होगा. गोल में प्रत्येक ब्च्चा अपने पास वाले से मुख फेर कर खड़ा होगा. अब जो दल बैठा हुआ है, उस दल दो या तीन लोग आकर खड़े हो जायेंगे.इसके बाद जो लोग गोल में खड़े थे उनकी संख्या विषम बना देनी होगी.अब जो खिलाडी बच जायेगा वही खेल शुरू करेगा.पहले जिसका मुख गोल के भीतर की तरफ है, उसको छू लेगा, जिसको छू लिया है उसको भीतर ही दौड़ना होगा. वह बहार नहीं निकल सकेगा. अब जिस लडके का मुख बहार की और है उसको ' खो ' बोल कर छू लिया तो वह भी केवल बाहर ही दौड़ पायेगा. भीतर प्रविष्ट नहीं हो सकेगा. इसी प्रकार एक दूसरे को खो कह कर दूसरे दल के खिलाड़ीयों को छूने की चेष्टा करेगा. दूसरे दल के सबों को छू लेने के बाद जो दल गोल में खड़ा था, उनलोगों को इसबार दूसरा दल पहले जैसा छूने की चेष्टा करेगा.निर्दिष्ट समय तक खेल चलने के बाद जिस दल के अधिक संख्यक खिलाड़ी छू सका है, वही विजयी होगा.
१२ पहले आओ- पहले पाओ 
यह खेल दो दलों के बीच खेला जायेगा. समा संख्यक दो दल बना कर, गोलाई में खड़ा करवा कर, निर्दिष्ट नम्बर कर देना होगा. अब संचालक जिस नम्बर को पुकारेगा. उसी नम्बर का दोनों खिलाड़ी दौड़ कर एक दूसरे के स्थान को ग्रहण कर लेगा.जो सबसे पहले दौड़ कर दूसरे के जगह पर पहुँच जायेगा, उसको एक नम्बर मिलेगा. इस प्रकार खेल समाप्त होने पर, जिस दल का नम्बर अधिक है, वही दल जीतेगा.
१३ जैसा करता हूँ करो और पकड़ो.
यह खेल दो दलों में बंट कर खेला जायेगा, दोनों को गोलाकार खड़ा करना होगा. इसबार संचालक जो नम्बर पुकारेंगे, उसी नम्बर के दो बच्चे एक दूसरे को छुएगा, अब प्रथम बच्चा जो करेगा, दूसरे बच्चे को जल्दी जल्दी वही करके पकड़ने की चेष्टा करनी होगी. इसीप्रकार एक निर्दिष्ट समय तक खेल चलेगा, दोनों को सुयोग मिलेगा. निर्दिष्ट समय के भीतर जो छू सकेगा उसको पॉइंट मिलेगा. इसीप्रकार सबों में खेल होगा.
१४ खाली जगह में लाठी चलाओ 
यह खेल एकाधिक समान-संख्यक दल बना कर खेला जा सकता है. दलों को लम्बा लम्बी रूप में खड़ा करवा कर दूसरी और चिन्ह बना  देना है. अब जो लड़का दल में पहले खड़ा है, उसके हाथ में एक लाठी दे देनी है. अब खेल की सिटी बजने पर, दोनों हाथ से पकड़ कर, पैरों के नीचे से लाठी घुसा कर, माथा के ऊपर से सामने लाना होगा. इसप्रकार निशाना तक घूम कर अपनी जगह पर जो वापस आ पायेगा, उसको एक पॉइंट मिलेगा. यह खेल इसीप्रकार क्रमानुसार चलता रहेगा. इस खेल को दो तरीकों से खेलाया जा सकता  है.
१. पहले दो समान संख्यक दल खड़ा करना होगा. इसकेबाद उनका नम्बर देना होगा. संचालक जो नम्बर पुकारेगा, उसी नम्बर का दो बच्चा दाहीने और से गोल के चारो ओर एकबार घूम आएगा, आने पर अपने जगह में जाकर भीतर ढुक कर संचालक जिस स्थान पर गोल के मध्य खड़ा है उसके पास जायेगा. उस समय संचालक उस गोल में खड़े किसी एक बच्चे का नाम पुकारेगा, तब दोनों उसको छूने की चेष्टा करेगे. जो उसको पहले छू लेगा उसको १ पॉइंट मिलेगा.
२. इसी प्रकार नम्बर देकर गोल में खड़ा करा देना होगा. अब संचालक जो नम्बर पुकारेगा, उसी नम्बर का दो बच्चा संचालक के पास जायेगा.संचालक उन दोनों की आखें मूंद कर एक सिटी बजाएगा, तभी गोल में खड़े सभी बच्चे बिना आवाज किये धीरे धीरे गोल में घूमना शुरू कर देंगे, उसके बाद और एक सिटी सुनने पर वे रुक जायेंगे.संचालक गोल में खड़े किसी एक बच्चे का नाम पुकारेगा, उसी समय ये दोनों उसको छूने के लिए दौड़ेंगे.जो पहले छू लेगा उसको १ पॉइंट मिलेगा. इस प्रकार खेल चलेगा.
१५ गेन्द से गेन्द पर निशाना लगाना 
समान संख्यक दल बना कर गोल के बीच खड़ा करा देना होगा. अब किसी एक दल से खेल शुरू हो सकता है. जो दल खेल शुरू करेगा उसके पहले बच्चे के हाथ में गेन्द दे दिया जायेगा. गोल के ठीक बीच में एक गेन्द रखना होगा. प्रत्येक को तीन बार गेन्द फेंकने का अवसर मिलेगा. पहला बच्चा यदि यदि गेन्द फेंक कर बीच में रखे गेन्द पर निशाना लगा पायेगा उसको एक पॉइंट मिलेगा. तीन गेंदों में से जितनी बार निशाना ठीक लगेगा, उतने ही पॉइंट मिलेंगे. इसप्रकार सभी दल इस खेल को खेलेंगे. जिस दल का सर्वाधिक पॉइंट होगा वही जीतेगा.
१६ पिरामिड बनाओ 
यह खेल एकाधिक दल बना कर खेला जा सकता है. दलों एक तरफ लम्बाई में खड़ा करा देना है. मैदान में दूसरी ओर कुछ ग्लास को एकत्र कर, संचालक किस प्रकार पिरामिड बनाया जायेगा, बना कर दिखा देंगे. इसके बाद उसको बिखरा दिया जायेगा. सिटी बजाने पर जो पहले खड़ा बच्चा है, दौड़ कर जायेगा एवं प्रत्येक बच्चा इसी प्रकार पिरामिड बनाएगा, बनाने के बाद जो दौड़ कर अपने दल में सबसे पहले पहुंचेगा उसको एक पॉइंट मिलेगा. खेल के अन्त में जिस दल को सबसे ज्यादा पॉइंट होगा, वही जीतेगा.
१७ दुर्ग पर कब्जा 
इस खेल को दो दलों के बीच खेलाया जा सकता है. दोनों दल के नाम भिन्न भिन्न होंगे. मानलो एक दल का नाम है-क,दूसरे का- ख, पहला क दल जो एक गोलाकार निशान बनाया रहेगा उससे समान संख्यक बराबर दूरी पर खड़ा रहेगा. ख दल का सभी सदस्य गोलाई के बाहर खड़ा रहेगा. बड़े गोल के भीतर एक छोटा गोल निशान बनाया रहेगा. क दल पहरेदार के रूप में खड़ा रहेगा. ओर ख दल क दल के खिलाडियों को छका कर उस छोटे गोल के भीतर प्रवेश करने की चेष्टा करेगा. बड़े गोल के निशान से छोटे गोल के भीतर प्रवेश करते समय यदि क दल का कोई खिलाड़ी उसे छू देगा तो वह आउट हो जायेगा. प्रत्येक दल में जितने खिलाड़ी रहेंगे, उसके आधे खिलाड़ी इस छोटे गोल के भीतर क दल के खिलाड़ी हैं उनको छका कर प्रवेश करने पर १ नम्बर होगा. दूसरे दल के खिलाड़ी की संख्या विषम होने पर उस संख्या के साथ १ जोड़ देने पर जितने लोग होंगे, उसके आधे खिलाड़ी को छोटे गोल में प्रवेश करना होगा. इसके बाद ख दल पहरेदार की भूमिका करेगा. ओर क दल उनको छका कर भीतर प्रवेश करने की चेष्टा करेगा.
१८ कटे चित्र को जोड़ दो 
इस खेल को व्यक्तिगत तरीके से ओर दल बना कर भी खेला जा सकता है. व्यक्तिगत तरीके से खेलने के लिए जितने खिलाड़ी हैं उतने लोगों के लिए एक ही चित्र को अलग अलग जोगाड़ करना होगा. ओर दल बना कर खेलने के लिए जितने दल होंगे, उतने के लिए एक ही तरह का चित्र जोगाड़ करना होगा. चित्र को हाथ से भी बनाया जा सकता है. किसी जानवर का मुंह, चिड़िया का मुंह, मनुष्य का मुंह, आदि हो सकता है. प्रत्येक चित्र को चार,पाँच या छ टुकरों में फाड़ा जायेगा. किन्तु याद रखना होगा कि, सभी चित्रों के टुकरों की संख्या एक ही होगी, तथा सभी टुकरों को एक ही तरीके से फाड़ना होगा. खेल शुरू करने के पहले उस चित्र को सभी के पास एक एक चित्र दे दिया जायेगा. (व्यक्तिगत होने पर सबको दलगत खेल होने पर प्रत्येक दल को). संचालक के सिटी बजाते ही प्रत्येक को उस कटे चित्र को जोड़ कर वास्तविक चित्र में परिणत करना होगा. जो खिलाड़ी या जो दल पहले इस कार्य को पूरा करेगा वही खिलाड़ी या दल विजयी होगा. 
(१९) " एक ,दो , तीन, चार - स्वामीजी "
इस खेल को व्यक्तिगत रूप से खेलाया जा सकता है. सभी को गोलाई में खड़ा कर देना है. अब परिचालक खेल शुरू करने की अनुमति देकर जिसकी तरफ ऊँगली दिखायेगा, उस खिलाड़ी को १ बोलना होगा. उसके दाहीने ओर जो खिलाड़ी है, वो तुरंत बोलेगा-२,उसके बाद वाला कहेगा-३, चौथा लड़का बोलेगा-४, किन्तु पाँचवा लड़का बोलेगा- स्वामीजी (यदि वह ५ बोल देगा तो आउट हो जायेगा), किन्तु उसके बाद जो खड़ा है उसको फिर कहना होगा-६, इसी प्रकार सात, आठ, नौ, बोलने के बाद जो लड़का दसवें स्थान पर खड़ा है, उसको दस नहीं कहकर बोलना होगा- स्वामीजी. अर्थात, ५,१०,१५, २०, २५, ३०, ३५ इत्यादि का खिलाडी अंक नहीं कह कर, कहेगा- स्वामीजी. खेल इसी प्रकार से चलता रहेगा. १०० तक हो जाने के बाद फिर १ से शुरू किया जा सकता है. जिसको स्वामीजी कहना था, यदि उसने ' स्वामीजी ' न कह कर अंक बोल देगा तो वह आउट हो जायेगा. इस प्रकार खलाड़ी कम होते होते जो अन्तिम खिलाडी बच जायेगा, वही विजयी होगा.
  २० वही करो- जो कहता हूँ.
जितनी इच्छा उतनी खिलाडियों के साथ यह खेल हो सकता है. एक गोल रहेगा, उसके चारो और सभी गोल में खड़े हो जाएँगे. संचालक भी सभी के साथ गोल में खड़े होंगे. यह खेल दो प्रकार से खेलाया जा सकता है.
१. संचालक जो करेंगे, उनके साथ ही साथ सबों को वही करना पड़ेगा. किन्तु संचालक मुख से जो कह रहे हैं, वैसा नहीं भी कर सकते हैं. किन्तु संचालक मुख से बोल रहे हों उस ओर ध्यान दिए बिना; जो कर रहे हैं उसी ओर दृष्टि रखनी होगी, और वही करना भी पड़ेगा. जो गलती कर देगा आउट हो जायेगा.
२. संचालक जो बोलेंगे सबों को वैसा ही करना पड़ेगा. परिचालक जो बोल रहे हैं वे यदि खुद वैसा न भी कर रहे हों, तो भी सभी को उनके बोलने के अनुरूप ही करना होगा. इस पद्धति में भी जो गलती करेगा वह आउट हो जायेगा.
दोनों पद्धतियों के अनुसार खेलते हुए, जो खिलाडी अन्त तक मैदान में बचा रहेगा, वही विजयी होगा.
२१ बेंग दौड़ 
यह खेल दल बनाकर खेला जायेगा. इस खेल में कमसे कम दो दल रहने चाहिए. प्रत्येक दल के सामने एक लकीर खींच देनी होगी. इस लकीर से समान दुरी पर और एक लकीर खींच दी जाएगी. परिचालक जैसे ही खेल शुरू करने की सिटी बजायेंगे, वैसे ही प्रत्येक दल का पहला लड़का बेंग के जैसा बन कर दौड़ना शुरू करेगा. इसी मुद्रा में सामने जहाँ लकीर है, उसको छू कर पुनः उसी प्रकार बेंग की मुद्रा में दौड़ते हुए वापस अपने दल के पास लौट कर अपने दल के दुसरे लड़के को छू कर अपने दल के ठीक पीछे खड़ा होना होगा. पहले लड़के द्वारा छू लेते ही दूसरा लड़का बेंग की मुद्रा में दौड़ना शुरू करेगा, और पहले लड़के जैसा, सामने की लकीर छू कर, पुनः अपने दल के पास लौट कर तीसरे लड़के को छू कर दल के पीछे खड़ा होना होगा. अब तीसरा लड़का भी उसी प्रकार दौड़ना शुरू करेगा, इसी प्रकार दल के प्रत्येक लड़के को दौड़ना पड़ेगा. जो दल बिना कोई गलती किये सबसे पहले यह दौड़ पूरा कर लेगा वही विजयी होगा.
२२ अभिनय  का खेल
दल बना कर इस खेल को खेलने से बहुत मजा आता है. परिचालक प्रत्येक दल के लिए १० या १५ मिनट का समय निर्धारित कर देंगे. इसी निर्दिष्ट समय के भीतर प्रत्येक दल किसी शिक्षामूलक घटना को अभिनय के माध्यम से अभिव्यक्त करके दिखाने की चेष्टा करेंगे. समय समाप्त होने पर परिचालक उनको अपनी प्रस्तुति बंद करने को कहेंगे. परिचालक से निर्देश मिलते ही पत्येक दल एक के बाद एक अपने अपने निर्दिष्ट शिक्षामूलक घटना को अभिनय के माध्यम से सब के सामने प्रस्तुत करेंगे. इस प्रकार जब सभी दलों की प्रस्तुती समाप्त हो जाएगी तब परिचालक यह निर्णय करेंगे कि किस दल का अभिनय सबसे अच्छा हुआ है, तथा किसने निर्दिष्ट समय के भीतर समाप्त किया है, और जिस घटना को प्रस्तुत किया है, वह कितना ग्रहण करने योग्य है. इसी मानदण्ड के अनुरूप विजयी दल कि घोषणा करेंगे. प्रत्येक दल का समय निर्दिष्ट कर देना होगा. अभिनय के लिए ५ मिनट या अधिक से अधिक ७ मिनट से ज्यादा समय देना उचित नहीं होगा. इससे ज्यादा समय देने पर खेल का आनन्द नष्ट हो जायेगा.
२३ स्मरण -शक्ति 
जितनी ख़ुशी उतने खिलादितों के साथ इस खेल को खेला जा सकता है. सभी गोल होकर खड़े रहेंगे या बैठेंगे. परिचालक के सिटी बजाते ही कोई लड़का किसी भी नाम ( जैसे - मनुष्य का नाम, फूल का नाम, फल का नाम, खिलाड़ी का नाम, पंछी का नाम, देश का नाम, महापुरुष आदि का नाम आदि ) को कहेगा. उसकी दाहिनी ओर जो लड़का खड़ा है, उसको पहले वाले लड़के ने जो भी नाम कहा है वही बोलने के बाद, अपनी ओर से कोई नाम कहेगा. उसके बाद वाला लड़का पहले कहे गए दोनों नामों को बारी-बारी से कहने के बाद, स्वयं कोई और नाम बोलेगा. इसी प्रकार खेल चलेगा. जो खिलाड़ी बारी-बारी से कहे गये नाम को सही सही नहीं कह पायेगा तो वह आउट हो जायेगा. परिचालक यह तय करेंगे कि किस वस्तु के नाम से खेल शुरू किया जायेगा. जैसे यदि परिचालक ने कह दिया कि ' फल ' का नाम कहना होगा, तो सबों को फल का ही नाम कहना होगा.
२४ तालाब में उतरो, घाट पर चढ़ो
यह खेल सबों को एक साथ लेकर खेला जायेगा. खेल शुरू होने पहले सभी खिलाड़ी गोल हो कर खड़े होंगे. खिलाड़ी लोग गोल लकीर के बराबर खड़े रहेंगे. अब परिचालक खेल शुरू करने कि सिटी बजा कर कहेगा-
' तालाब में उतरो ' ! कहने के साथ साथ दोनों पैरों पर एक साथ उछल कर भीतर कि ओर कूद जाना होगा. अब परिचालक कहेंगे- ' घाट पर चढ़ो ' प्रत्येक खिलाड़ी को दोनों पैरों को जोड़ कर एक पैर जैसा बना कर पीछे की ओर कूदना होगा. परिचालक जैसा निर्देश देंगे बारी बारी से वैसा ही करना होगा. कोई यदि देर करेगा, या गलती करेगा तो आउट हो जायेगा. उदाहरन के लिए, मन लो कि सभी तालाब में खड़े हैं. परिचालक ने कहा - ' घाट पर चढो '. कोई कोई तालाब में ही खड़ा रह गया, तब वह खिलाड़ी आउट हो जायेगा. या मानलो सभी तालाब में खड़े है, परिचालक ने कहा-' तालाब में उतरो '. यह आवाज सुन कर हो सकता है उनमे से कोई पीछे कूद कर घाट पर चढ़ जायेगा.  ऐसा होने पर जो घाट पर चढ़ेगा वह आउट हो जायेगा. अब मानलो परिचालक ने कहा- ' पानी पर चढ़ो ' या ' घाट में उतरो '. दोनों बात उल्टा कहा गया है. इसी लिए प्रत्येक खिलाड़ी को अपने अपने जगह में ही खड़ा रहना चाहिए. जैसे ही कोई अपना जगह छोड़ेगा, वैसे ही आउट हो जायेगा. क्योंकि सही वाक्य है- ' तालाब में उतरो ' , ' घाट पर चढ़ो '. ' तालाब में चढ़ो ' ' घाट पर उतरो ' बोलना गलत है. इसी प्रकार बोलते बोलते अन्त तक जो खिलाड़ी बच जायेगा, उसी को विजयी घोषित किया जायेगा.
२५ गेन्द का धोका 
सभी खिलाडियों को एक साथ लेकर यह खेल हो सकता है. परिचालक सबों को दोनों हाथ पीछे कि ओर रख कर गोल में खड़ा होने का निर्देश देगा. परिचालक अपने हाथ में एक गेन्द लेकर बीच में खड़ा होगा. अब खेल शुरू होने की सिटी सुन कर उस हाथ के गेन्द को किसी खिलाड़ी की ओर फेंकने का स्वांग करके किसी न किसी खिलाड़ी को अपना हाथ सामने लाने के लिए बाध्य करना होगा. मान लो कि परिचालक गेन्द हाथ में लेकर ऐसा स्वांग किये मानो वे किसी निर्दिष्ट खिलाड़ी को वह गेन्द दे रहे हों. वह खिलाड़ी तुरंत अपना हाथ पीछे से सामने कर देगा. पर वास्तव में परिचालक गेन्द फेंकने का स्वांग करके भी गेन्द को फेंकेगे नहीं. अब ऐसा भी हो सकता है कि परिचालक सचमुच किसी खिलाड़ी कि ओर उस गेन्द को फेंक भी देंगे. पर वह खिलाड़ी अपना हाथ पीछे ही रख कर खड़ा रह गया. तब वह खिलाड़ी आउट हो जायेगा. अर्थात, परिचालक सचमुच किसी खिलाड़ी की ओर यदि गेन्द फेंक दिये तो उस खिलाड़ी को हाथ आगे लाकर गेन्द को कैच करना होगा. यदि नहीं कर सका तो आउट हो जायेगा. इसी प्रकार एक निर्धारित समय तक खेल चलता रहेगा. अन्त तक जितने खिलाड़ी बच जायेंगे वे सभी विजयी होंगे.
२६ सांप पकड़ो 
खेल शुरू करने के पहले अपने में से एक खिलाड़ी को ' संपेरा ' बना लेना होगा. जो ' संपेरा ' बनेगा उसके पास ६ से ८ फुट लम्बा एक मोटा रस्सी होगा. उसी रस्सी को ' सांप ' कहा जायेगा. ' संपेरा ' के अलावा बाकि खिलाड़ी मैदान में चारो ओर फ़ैल जायेंगे. खेल शुरू होने पर जो लड़का ' संपेरा ' बना है, वह अपने पीछे सांप के मुख को दोनों हाथ से पकड़ कर मैदान में चारों ओर दौड़ेगा. उसके इस प्रकार दौड़ते समय, सांप मानो सब समय जमीन के तरफ जाना चाह रहा है. जब वह दौड़ता रहेगा और सांप का जो मुख जमीन की तरफ गिरना चाहता है, उस समय दुसरे सारे खिलाड़ी सांप के मुख को अपने हाथ से पकड़ने की चेष्टा करेगा. किसी भी समय कोई खिलाड़ी पैर से दबा कर उस सांप को नहीं पकड़ सकेगा. जो खिलाड़ी सबसे पहले उस संपेरा के सांप का मुख हाथ से पकड़ कर गिरा सकेगा, वही बाद में संपेरा बन कर उसी तरह से खेलेगा. 
२७ दोस्त कौन ?
१० से ३० लडकों के साथ यह खेल चलेगा. किसी एक लड़के के आँखों को रुमाल से बांध कर, बीच में खड़ा करके, उसके चारों ओर अन्य सभी खिलाड़ी गोल में खड़े रहेंगे. खेल आरम्भ होने पर, वह लड़का जिसका आँख बंधा है, उसे छोड़ कर अन्य सभी लड़के घूमते रहेंगे. और जैसे ही आँख-मुंदा लड़का ताली बजाएगा, वैसे अन्य सभी लड़के खड़े हो जायेंगे. अब आंख-मुंदा लड़का अपने हाथो से किसी खिलाड़ी को छू कर उसका नाम बताने की चेष्टा करेगा. यदि वह सही नाम बता देगा तो जिसका नाम बताया है, उसकी आँखों को मूंद कर इसी प्रकार खेल आगे चलता रहेगा. आँखों पर पट्टी बंधा खिलाड़ी जब तक किसी दुसरे खिलाड़ी का सही नाम नहीं बता पाता है, तबतक उसकी पट्टी नहीं खुलेगी.
२८ मनीषियों के नाम 
जितनी ख़ुशी उतने खिलाड़ी के साथ इस खेल को खेला जा सकता है. जितने लोग खेलेंगे, उनमे से किसी एक को 'नेता ' चुन लेना होगा. प्रत्येक खिलाड़ियो के हाथ में एक एक कागज और पेन्सिल दे दिया जायेगा. खेल शुरू होने पर जो नेता है, वो बीच में बैठेगा, और बाकि खिलाड़ी उसके चारों ओर गोल बना कर बैठेंगे. इसके बाद नेता हिन्दी भाषा में जितने स्वर-वर्ण और व्यंजन वर्ण हैं उनसे बना हुआ, अपने देश के मनीषियों के नामों को लिखने के लिए कहेंगे. अर्थात मनीषियों के नाम में प्रथम अक्षर के साथ इन सब स्वर-वर्ण या व्यंजन वर्ण का मेल रहना चाहिए. जिस किसी एक स्वरवर्ण या व्यंजन वर्ण लगा हुआ एक नाम से अधिक नाम नहीं लिखा जा सकेगा. नेता एक समय निर्धारित कर देंगे, एवं उसी समय के भीतर, सभी खिलाडियों को नाम लिख कर कागज को नेता के हाथ में देना होगा. जो खिलाड़ी निर्दिष्ट समय के भीतर,  सबसे अधिक मनीषियों का नाम लिख सकेगा, वही विजयी घोषित होगा.
खेल शुरू करने के पहले, यदि प्रत्येक खिलाड़ी अपना अपना कागज पर जितने भी स्वरवर्ण एवं व्यंजनवर्ण होते हैं उनको लिख कर रख लें तो अच्छा होगा. इससे यह सुविधा होगी कि, नेता जैसे ही खेल शुरू करने का आदेश देगा, खिलाड़ी एक एक स्वर वर्ण और व्यंजन वर्ण के सामने सामने मनीषियों के नामों को लिखता जायेगा.
यह खेल कई रूपों में खेला जा सकता है. जैसे मानलो नेता ने कहा- अब ' कवियों ' के नाम लिखो. अगली बार कह सकते हैं- ' देशों ' के नाम लिखो, या किसी ' नामी फुटबाल खिलाड़ी ' का नाम लिखो. इत्यादि. इस प्रकार काफी समय तक यह खेल चल सकता है.
२९ वाक्य बोलो 
यह खेल कमसे कम दो दलों के बीच खेला जा सकता है. दोनों दल आमने-सामने मुख करके खड़े हो जायेंगे. दोनों दल क्रमिक संख्या में खड़े होंगे. पहले दोनों दलों के १नम्बर के बीच खेल शुरू होगा. परिचालक कोई एक शब्द जोर से उच्चारण करेगा. मानलो, उसने कहा- 'मैं ' ; सुनते ही दोनों दलों के १ नम्बर के खिलाड़ी ' मैं ' शब्द से वाक्य रचना करेंगे, एवं उस वाक्य को जोर से कहेंगे. मानलो एक कहता है- ' मैं आम खाऊंगा.' एवं एक ने कहा-' मैं सोऊंगा '. दोनों वाक्य सही हैं. किन्तु जो पहले बोल देगा, उसी दल को १ नम्बर मिल जायेगा. इसीप्रकार बारी बारी से प्रत्येक नम्बर के बीच प्रतियोगिता होगी. सभी का हो जाने के बाद जिस दल को अधिक नम्बर मिलेगा वही विजयी होगा.
३० पहाड़ा  खेल 
सभी खिलाड़ी एक साथ गोल होकर खड़े हो जायेंगे. परिचालक उस गोल के भीतर रहेगा. परिचालक पहाड़ा बोल कर खेल शुरू करेगा. उनके बोलने में ताल और छंद का मेल रहेगा. जैसे वे कहेंगे- ' पाँच एकम पाँच, पाँच दुनी दस' परिचालक के बोलने के बाद सभी मिल कर उसको उसी सुर में दोहराएंगे. यही परिचालक किसी एक से पूछ बैठेंगे - ' पाँच सते कितना होगा ?' जिसको पूछे उसको तुरंत बताना पड़ेगा- ' पाँच सते पैंतीस होगा '. बताने में गलती होने या देरी होने पर या ताल या छंद भूल जाने पर वह आउट हो जायेगा. जब किसी खास लड़के कि ओर ऊँगली उठा कर प्रश्न किया जायेगा, तो बाकि सभी चुप रहेंगे, जिससे प्रश्न पूछा गया हो, वही उत्तर देगा. इसी प्रकार जो लड़का अन्त तक रह जायेगा, वो विजयी होगा.
३१ शक्तिमान 
समस्त खिलाडियों को दो दलों में बाँट कर खेल शुरू होगा. दोनों दल आमने सामने एक सीध में मुख करके खड़े होंगे. उनके बीचोबीच बराबर माप का एक पैर कि दुरी पर एक छोटा वृत्त बना देना होगा. उस वृत्त के दोनों ओर एक-डेग दूर एक एक चिन्ह लगा देना होगा. परिचालक के खेल शुरू करने के आदेश को सुनकर, प्रत्येक दल के संख्यानुसार दोनों दलों के एक एक लड़के आयेंगे, एवं दोनों गोल के बीच में एक पैर, और दूसरा पैर चिन्ह पर रख कर दोनों दोनों के साथ हाथ मिलायेंगे, और दोनों एक दुसरे को अपनी ओर खींचने कि चेष्टा करेंगे. इसमें जो सफल होगा उसको १ पॉइंट मिलेगा. इसी प्रकार सभी खिलाडियों के बीच मुकाबला हो जाने के बाद जो दल अधिक नम्बर लायेगा, वो विजयी होगा.
३२ बातीघर 
इस खेल को दो समान संख्यक दल बना कर खेला जायेगा. मैदान के एक कोने में एक छोटा गोल चिन्ह बना कर उसके बीच में परिचालक खड़ा रहेगा. अब दोनों दलों के बीच एक दल के नेता यह तय कर देंगे कि उनके खिलाड़ी कहाँ कहाँ छिटक कर खड़े रहेंगे. और दूसरा दल जहाँ परिचालक खड़ा है, उसके ठीक बिपरीत दिशा में सभी आँख बांध कर खड़े रहेंगे. परिचालक खेल शुरू करने की सिटी बजायेंगे, तब जिनलोगों की आँखे बंधी हैं वे सभी धीरे धीरे बतीघर की ओर बढना शुरू करेंगे. बतिघर का लोकेशन बताने के लिए, परिचालक बीच बीच में सिटी बजायेंगे. जाते समय प्रत्येक लड़का यह चेष्टा करेगा कि दुसरे दल के जो लड़के पुरे मैदान में जहाँ तहां खड़े हैं उनके साथ किसी से न तो धक्का लगे न देह छुए. यदि धक्का लग जायेगा तो जिससे धक्का लगा वो खेलाडी वहीं बैठ जायेगा. इस प्रकार खिलाड़ी कम होते होते जितने भी खिलाड़ी बिना किसी से टकराए बतीघर के पास पहुंच जाने में सफल हो जायेंगे, उस दल को उतने पॉइंट मिलेंगे.मानलो पाँच लोगो ने बतिघर को स्पर्श कर लिया है. तब उस दल को ५ पॉइंट मिलेगा. जिस दल की आँखें बंद नही है, और मैदान में इधर उधर खड़े हैं, वे खड़े रह कर कोई शब्द नहीं करेंगे. इसके बाद ठीक इसी प्रकार दूसरा दल खेल शुरू करेगा. जिस दल का पॉइंट ज्यादा होगा वही विजयी होगा. 
३३ गेन्द नचाओ 
दो अथवा उससे अधिक दल बना कर इस खेल को खेला जा सकता है. मैदान के बीच में एक बड़ा गोल बनाकर उसके चारों ओर सभी खिलाड़ी दलगत रूप में खड़े हो जायेंगे. परिचालक हाथ में एक छोटा गेन्द लेकर बड़े गोल के बीच में खड़ा होगा.किसी भी दल के एक एक खिलाड़ी को बुला कर उसके हाथ में गेन्द दे कर उसे नचाने के लिए कहेंगे. मानलो कि पहले लड़के ने ४५ बार गेन्द को नचाया, दुसरे ने ३०, तीसरे ने ७०, इस प्रकार इस दल के प्रत्येक सदस्य का गेन्द पर हाथ मार कर उछालते रहने की संख्याओं को जोड़ कर जितना टोटल होगा, वही उस दल का पॉइंट मन जायेगा. इसी प्रकार सभी दलों को गेन्द नचाने का अवसर देना होगा. सभी दल का गेन्द नचाना हो जाने पर जिस दल अधिक पॉइंट मिला होगा, वही विजयी होगा. जितने दल हैं, उतनी गेंदें रहने पर सभी दल एक साथ खेल सकते हैं. इससे समय बच सकता है.
३४ शब्द भेदन 
दो अथवा दो से अधिक जोड़ संख्यक खिलाड़ी रहने से यह खेल हो सकता है. दो दो खिलाड़ी को एक साथ खेल खेलाना होगा. जो दो लड़के पहले खेल शुरू करेंगे, उनके आँख पर पट्टी बांध कर थोड़ी दुरी पर दोनों को खड़ा करा देना है. एक लड़का ताली बजा कर दुसरे स्थान में खड़ा हो जायेगा. और दूसरा लड़का उस ताली की आवाज को सुन कर, उसको पकड़ने की चेष्टा करेगा. इसी तरह जब वह ताली बजा रहा हो, और दूसरा लड़का उसको पकड़ लेगा तो, जो लड़का ताली बजा रहा था, उसको अब दुसरे को पकड़ने की कोशिस करनी होगी. इस प्रकार दोनों के पकड़ा जाने पर अन्य दो लडकों के बीच खेल इसी प्रकार चलेगा. सभी खिलाड़ी खेल लेंगे तो खेल खत्म हो जायेगा.  
३५ फूलों की माला 
यह खेल सभी को एक साथ लेकर खेला जा सकता है. खेल शुरू करने के पहले परिचालक सभी खिलाडियों को समान संख्यक कोई फूल, एक सूई, कुछ धागा आदि समान दे देंगे. अब परिचालक के सिटी बजाने पर प्रत्येक खिलाड़ी सूई में धागा पिरो कर माला गूंथने की चेष्टा करगा. जिसका माला सबसे पहले बन जायेगा, साथ ही साथ सुन्दर भी होगा, उसीको विजयी घोषित किया जायेगा.
३६ बास्केट - बाल
यह खेल फुटबाल के जैसा खेलाया जायेगा. फुटबाल की जगह पर छोटा रबर का गेन्द लिया जायेगा. मैदान के दोनों किनारों पर गोलपोस्ट के बदले, दो छोटे छोटे गोल निशान बना लेना होगा, ताकि उन दोनों गोल निशान के भीतर दोनों दलों के गोलकीपर खड़े हो सकें. फुटबाल खेलने में जैसे गोलकीपर अपने इलाके का गोल रक्षा करता है, इस खेल में ठीक इसके विपरीत होगा. एक दल का गोलकीपर दुसरे दल के अधिकार क्षेत्र में जो गोल निशान लगाया हुआ है, वहाँ जाकर खड़ा होगा. दोनों दलों के खिलाड़ी जब, अपने अपने स्थान में खड़े हो जायेंगे, तब परिचालक खेल शुरू करने की सिटी बजा कर गेन्द को हवा में उछाल देगा. जो खिलाड़ी उस गेन्द को पकड़ेगा वह तुरंत गेन्द को अपने दल के खिलाड़ी को पास देगा. इसी प्रकार आपस में गेन्द देना-लेना करते हुए, दुसरे दल के सीमाक्षेत्र में, प्रवेश करके, गोलकीपर के हाथ में वह गेन्द फेंक देना होगा. गोलकीपर यदि निर्दिष्ट गोल के भीतर रहते हुए, उस गेन्द को कैच कर लेगा, तो वह दल एक गोल से आगे हो जायेगा. गोलकीपर जहाँ खड़ा है, उसको रोकने के लिए, विपक्षी दल का एक या दो खिलाड़ी, खड़ा रहेगा. अर्थात गोल करने के लिए जब किसी दल का खिलाड़ी अपने गोलकीपर को लक्ष्य करके जब गेन्द फेंकेगा, तो दुसरे दल का खिलाड़ी उस गेन्द को अटकाने की चेष्टा करेगा. कोई भी खिलाड़ी गेन्द को हाथ में पकड़ कर खड़ा नहीं रहेगा. गेन्द हाथ में रहने की अवस्था में उसको लगातार ड्रॉप करते रहना होगा. खेल के कुल समय को दो भागों में बाँट देना होगा. फर्स्ट हाफ का खेल हो जाने के बाद, दोनों का स्थान आपस में बदल दिया जायेगा, जैसा फुटबाल में भी होता है. जो दल गोल खायेगा, दुबारा खेल शुरू करने के लिए, उसी दल के खिलाड़ी के हाथ में गेन्द देना होगा. खेल के अन्त तक जो दल अधिक गोल करगा, उसी को विजयी घोषित किया जायेगा.
गोल करने के लिए दुसरे दल के सीमाक्षेत्र में घुसते ही गेन्द फेकना पड़ेगा. अपने सीमाक्षेत्र में खड़े रह कर गेन्द फेंक कर गोल करने से, उसे गोल नहीं मन जायेगा.
३७ पत्ता संग्रह 
यह खेल व्यक्तिगत रूप से खेलाया जायेगा. परिचालक जब खेल शुरू करने की सिटी बजायेंगे तो सभी खिलाड़ी पत्ता संग्रह करने को चले जायेंगे. जब सभी खिलाड़ी पत्ता संग्रह करके वापस आजायेंगे, तो परिचालक सबों को गोल में खड़ा होने कहेंगे. जब प्रत्येक खिलाड़ी पत्ता जमा केंगे तो साथ साथ उस पत्ता का नाम भी बताना पड़ेगा. जो खिलाड़ी सबसे अधिक किस्म का पत्ता संग्रह करके लायेगा, वही सबसे अधिक पॉइंट पाकर विजयी होगा. इस खेल के लिए सबों को एक निर्धारित समय में पत्ता लाने बोलना होगा.
३८ गोल के भीतर गेन्द डालो 
यह खेल के लिए जितने भी दल बनाये जाएँ उतने गेन्द जोगाड़ करने होंगे. प्रत्येक खिलाड़ी दल के हिसाब से गोल बना कर खड़े होंगे. बड़े गोल के बीच में एक छोटा गोल निशान बनाया रहेगा. खेल शुरू करने के पहले, प्रत्येक दल के १ नम्बर खिलाड़ी के पैर के सामने, एक एक निर्दिष्ट रंग का गेन्द रहेगा. खेल शुरू होने की सिटी पड़ने पर, प्रत्येक लड़का सामने रखे गेन्द को एक पैर से (दूसरा पैर हवा में उठा रहेगा) ठेलते ठेलते, छोटे गोल के भीतर ले जायेगा.जो दल पहले पहुंच जायेगा, उसीको १ पॉइंट होगा. अब इन गेंदों को निर्दिष्ट दलों के २ नम्बर खिलाड़ी के पैरों के सामने रख कर उसी प्रकार खेलना होगा. इसीप्रकार सभी खिलाड़ी का खेल हो जाने के बाद, जिस दल का अधिक पॉइंट होगा वही विजयी होगा.     
३९ हरिन शिकार 
इस खेल को सभी एकसाथ मिलके खेलेंगे. इस खेल के परिचालक होंगे हरिन और बाकी सभी शिकारी बनेंगे. खेल शुरू होने के पहले सभी खिलाड़ी एक ओर मुख करके खड़े हो जायेंगे, और परिचालक उन सब खिलाडियों से दुरी रखते हुए, उनके पीछे घूम कर खड़ा होगा. खेल शुरू करने की सिटी देने पर खिलाड़ी चल कर दौड़ कर परिचालक को छूने की चेष्टा करेंगे. अर्थात परिचालक को छूना माने हरिन का शिकार करना माना जायेगा. परिचालक जितनी देर तक पीछे तरफ घूम कर खड़ा रहेगा, उतने समय तक जितना सम्भव हो सभी परिचालक की ओर अग्रसर होने की चेष्टा करेगा. परिचालक बीच बीच में खिलाडियों की ओर मुख घुमा कर खड़ा होगा, फिर पीछे की ओर जाकर जिस निशान से खेल शुरू हुआ था, वहाँ चले जायेंगे. प्रत्येक खिलाड़ी को समझना होगा कि परिचालक कब उनलोगों कि तरफ घूम सकते हैं. उनके घुमने के पहले ही जितना सम्भव हो सके आगे जाने कि चेष्टा करनी होगी. परिचालक जैसे ही खिलाडियों कि तरफ घूमेंगे, वैसे ही सभी खिलाडियों को, ' स्टैचू' अवस्था में खड़ा हो जाना होगा. हिलडोल बिलकुल नहीं करना होगा. इस प्रकार एक निर्दिष्ट समय तक खेल चलने के बाद, जो खिलाड़ी परिचालक को छू लेगा, वही विजयी माना जायेगा.
४० सिटी की आवाज पर दल गठन 
इस खेल को सभी एक साथ मिल कर खेलेंगे. परिचालक सभी खिलाड़ी को मैदान में इधर उधर बिखरे हुए खड़ा होने का  निर्देश देंगे. अब परिचालक खेल शुरू करने का संकेत देकर अपनी इच्छानुसार रुक रुक कर सिटी बजा कर समझा देंगे कि, कितने लोगों को इकठ्ठा करके दल बनाना होगा. मानलो उन्होंने दो बार सिटी बजाया है, इसका अर्थ हुआ कि सभी खिलाड़ी को दो दो लडको का दल बनाना है. अन्त में जो खिलाड़ी दल नहीं गठित कर पायेगा, अर्थात अधिक हो जायेगा, वह आउट हो जायेगा. किन्तु खेल से बहार नहीं होगा. छोटा सा ढेला लेकर पाकेट में रख लेगा. परिचालक लम्बी सिटी देकर दो लडको के गठित दल को भंग करने का निर्देश देगा. अब मानलो कि परिचालक ने ५ बार सिटी बजाई है, अर्थ हुआ कि इस बार ५ लडकों का दल गठित करना है. तब प्रतेक लड़का ५ लडकों का दल बनाने कि चेष्टा करेगा. अन्त में जो बाकी बच जायेंगे, उनमे से प्रत्येक एक एक ढेला या कंकड़ उठा कर पाकेट में रख लेंगे. मानलो किसी दल ने गलती से ५ लडको का दल न बना कर ६ लडको का दल बना  लिया है. अब जो ६ खिलाड़ी आउट होंगे वे सभी खिलाड़ी एक एक कंकड़ पाकेट में रख लेंगे. दल बना लेने के बाद प्रत्येक एक दुसरे का हाथ पकड़ कर गोल में खड़ा हो जायेंगे. इसप्रकार एक निर्दिष्ट समय तक खेल हो जाने के बाद, परिचालक खेल समाप्त करने कि सिटी बजायेंगे. एवं देखेंगे कि कौन खिलाड़ी सब से कम ढेला जमा कीया है, उसी को विजयी माना जायेगा. 
Observation Test
   ४१ अवलोकन कसौटी
यह खेल दल बना कर खेलना होगा. परिचालक खेल शुरू करने के पहले, सभी खिलाडियों को लेकर समान संख्यक दल में ( २, ३ या ४ दल में ) विभक्त करके खड़ा करायेंगे. खिलाड़ी लोग जहाँ खड़े हैं वहां से कुछ दुरी पर, परिचालक कई प्रकार की वस्तुएं संग्रह कर के एक जगह में जमा रखेंगे. ( जैसे-पेन, पेन्सिल, कापी, कागज, रबर, फटा अख़बार, सूई, धागा, रंगीन कागज, लकड़ी का टुकड़ा, कांच का टुकड़ा इत्यादि ) ये सभी वस्तुएं किसी चीज से ढकी रहेंगी. परिचालक जब खेल शुरू करने की सिटी बजायेंगे, जो कोई दल सामने आ कर खड़ा होगा, परिचालक उसको ढकना खोल कर दिखा देंगे. उस दल के सभी खिलाड़ी, उन वस्तुओं को बहुत ध्यानपूर्वक अवलोकन करेंगे, एक निर्धारित समय के बाद, सिटी बजा कर परिचालक पुनः उन वस्तुओं को उसी प्रकार ढंक देंगे. उसके बाद दूसरा दल आकर उसी प्रकार, सभी वस्तुओं का अवलोकन करेगा. इस प्रकार जब सभी दल अवलोकन कर लेंगे, तब प्रत्येक दल दलगत रूप में देखे गए सभी वस्तुओं के नाम एक कागज में लिखेंगे. (यथासम्भव सही सही नाम लिखने की चेष्टा करेंगे.) लिख्लेने के बाद प्रत्येक दल दलगत रूप से अपने अपने कागज परिचालक के पास जमा कर देंगे. जो दल सबसे ज्यादा संख्या में उन वस्तुओं के नाम सही सही लिख लिए हैं, उसी दल को विजयी माना जायेगा. 
४२ संख्या सजाओ 
इस खेल के लिए पहले २" x २ " या १.५ " x १.५ " के ढेर सारे कागज के टुकड़े काटने होंगे. अब इन में से ५ कागजों पर ९ से लेकर ० तक अर्थात १, २, ३, ४, ५, ६, ७, ८, ९, ० इन संख्याओं को लिखना होगा. पाँच कागजो के ऊपर १ लिखा रहेगा. २ लिखा रहेगा ५ कागज पर, इस प्रकार सभी संख्याओं को ५-५ कागज पर लिख लेना होगा. इस प्रकार लिखने पर कुल ५० कागज इकठ्ठा हो जायेंगे. 
इस खेल को दलगत तरीके से खेलना होगा. परिचालक सभी खिलाडियों को समान संख्यक २, ३, या ४ दल में विभक्त कर देंगे. सभी खिलाड़ी गोल में खड़े होंगे. परिचालक गोल के बिच में उन ५० कागज के टुकड़ों को मिला-जुला कर रख देगा. अब परिचालक खेल शुरू करने की सिटी बजा कर नम्बर के अनुसार ४ दल से ४ लडकों को गोल के बिच में आने के लिए कहेंगे. अब मानलो परिचालक ने कहा- १०५८५ . अब एक खिलाड़ी को बिच में रखे कागजों में से प्रयोजन के अनुसार संख्याओं को चुनकर उपरोक्त - ' १०५८५ ' संख्या को सजा कर दिखाना होगा. जो खिलाड़ी बिना गलती किये पहले सजा लेगा उसको १ पॉइंट मिलेगा. इस बार पुनः संख्याओं को मिलाजुला करके बाद वाले खिलाड़ीयों  को बुलाएँगे. अब कोई दूसरी संख्या- जैसे ' ६९९९ ' तैयार करने को कहेंगे. इस बार भी खिलाड़ी लोग प्रयोजनीय संख्या को खोज कर - ' ६९९९ ' बनायेंगे. जो पहले करेगा उसको १ पॉइंट मिलेगा. इस प्रकार सभी दल के सभी खिलाडियों को खेलने का सुयोग मिलेगा. अंत में जिस दल को सबसे अधिक पॉइंट मिलेगा, व्ही विजयी होगा. 
४३ गद्दी
नियम- इस खेल में समान संख्यक खिलाड़ी रहेंगे. पहले एक चतुष्कोण कमरा तैयार करना होगा, बाद में उसको तीन भाग में विभक्त करके बीचमे बराबर और एक लाइन खींचना होगा.इस प्रकार कि उस घर में में आठ बराबर भाग पड़ जाये. एक दल के चार लोग प्रथम दाग में खड़े होंगे. तीन प्रस्थ दाग में तीन व्यक्ति और एक दीर्घ दाग में एक व्यक्ति. दूसरा दल के ४ खिलाड़ी नुनघर नामक घर में खड़ा होंगे. उनलोगों को किसी प्रकार दाग पर खड़े खिलाड़ी को हाथ बढ़ा कर छूने कि इजाजत नहीं होगी. परिचालक सिटी बजायेंगे तो खेल शुरू होगा. जो लोग दाग पर खड़े हैं, वे लोग अगल-बगल में फैलाएँगे, या आगे वाले घर की और बढ़ा सकेंगे. एवं निर्दिष्ट दाग पर ही घूमफिर सकेंगे, घर के खिलाड़ी दाग पर खड़े खिलाडियों को धोखा देकर किसी प्रकार सभी घरों में घूमेंगे. किसी भी खिलाड़ी को घर के खिलाड़ी को सब घर में पैर रखते हुए नूनघर में पहुंचना होगा. इनक्तु उसी समय के बीच बाकि घर के खिलाड़ी, को नून घर से बाहर निकल जाना होगा. घर के खिलाडियों के बीच का एक लड़का दाग में खड़े खिलाडियों को धखा दे कर सब घर में पैर रख कर नून घर में आ पहुंचने पर, पॉइंट होगा, एवं दल बदल हो जायेगा. इसी प्रकार क्रमागत खेल चलेगा.
४४ घर बदल 
एक साथ २१ या २५ लडके खेल सकते हैं. नियम- मैदान के चार कोण में चार चतुष्कोण चौका पुर लिया जायेगा. प्रत्येक घर में ५ या ६ खिलाड़ी रहेंगे. चारो घर कर के ठीक बीच में एक अतिरिक्त खिलाड़ी रहेगा.  सिटी बजने के साथ ही साथ आमने-सामने या आस-पास के घर के खिलाड़ी आपस में घर बदल कर लेंगे.घर बदलते समय, बीच में खड़े अतिरिक्त खिलाड़ी घर के खिलाडियों को छूने की चेष्टा करेगा. जो लोग छू लिए जायेंगे, उनको बाहर बैठना होगा. ५ मिनट के बाद सिटी बजने पर सभी खिलाड़ी जिस घर में हैं वे उसी घर में रहेंगे. देखना होगा कि किसके कम खिलाड़ी बैठे हैं , वे ही विजयी होंगे. घर बदलते समय एक घर के खिलाड़ी जिस घर में जायेंगे, उस घर के सभी को इस एक ही घर में जाना होगा.
४५ सिंह और सियार 
गोल होकर जोड़ा जोड़ा होकर आगे पीछे खड़ा होंगे. एक लड़का सियार और एक लड़का सिंह रहेगा. सियार दौड़ते हुए, जिस दल के सामने खड़ा हो जायेगा, उस दल का पीछे वाला लड़का तब सियार हो जायेगा. सिंह जब सियार को छू देगा तब सियार सिंह हो जायेगा एवं सिंह सियार हो जायेगा. इसी प्रकार खेल निर्दिष्ट समय तक चलेगा.
४६ रुमाल संग्रह 
समान संख्यक खिलाड़ी दो दल में विभक्त होकर, आमने-सामने खड़े होंगे. प्रत्येक का अपना नम्बर होगा. दोनों दलों से समान दुरी पर बीचोबीच में एक वृत्त के बीच में रुमाल रखा रहेगा. परिचालक जिसका नम्बर पुकारेगा, दोनों दलों के उक्त नम्बरधारी दोनों लडके दौड़ कर रुमाल उठाने की कोशिस करेंगे, जो खिलाड़ी पहले रुमाल उठा कर भाग सकेगा, उसी दल को पॉइंट मिलेगा. इसीप्रकार सभी नम्बर के खिलाडियों को लेकर, खेल हो जाने पर, जिस दल को अधिक पॉइंट मिलेगा, वही विजयी होगा.
४७ ' 8 ' रिले रेस 
समान संख्यक खिलाड़ी दो दल में विभक्त होकर आमने सामने खड़ा होंगे. खेला शुरू होगा कोनाकोनी अवस्था में . परिचालक द्वारा खेल शुरू होने की सिटी बजाने पर, दोनों दल के १ नम्बर खिलाड़ी कोनाकोनी रूप में '8 ' जैसा आकर बना कर दौड़ कर अपनी जगह में वापस लौट कर अपने दल के परवर्ती खिलाड़ी को छूते ही, २ नम्बर का खिलाड़ी उसी तरह दौड़ शुरू करेगा. इसी प्रकार सभी खिलाड़ी दौड़ सम्पूर्ण करेंगे. जो पहले कर लेंगे, वही दल विजयी होगा.
४८ साँप की पूँछ 
कम से कम दो दल बना कर यह  खेल होगा. प्रत्येक दल अपने दल के खिलाडियों की कमर पकड़ कर खड़ा होगा. प्रत्येक दल आखरी लडके की कमर में एक हाथ लम्बी रस्सी या रुमाल खोंसा रहेगा. परिचालक के खेल शुरू करने की सिटी देने पर, प्रत्येक दल के पहले लडके को, दूसरे दल के पीछे वाले खिलाड़ी के कमर में खोंसे रस्सी या रुमाल को खींच लेना होगा. अभी परिचालक को एक बात पर विशेष ध्यान देना होगा कि, जब कोई दल दूसरे दल की रस्सी या रुमाल संग्रह करेगा, उस समय उसका अपना दल सम्पूर्ण रहे अर्थात तितरबितर न हो जाये. जो दल पहले संग्रह करेगा वही विजयी होगा.
४९ दिशा ठीक करो 
 यह सभी ख्लादियों को लेकर खेल्या जायेगा. सभी खिलाड़ी फाइल में खड़े होंगे. परिचालक खेल शुरू करने की सिटी देकर दक्षिण, पश्चिम, पूरब, उत्तर, उर्ध्व, अधः  जिस ओर का नाम बोलेगा, उसी दिशा में कूद कर सभी खिलाडियों को घूमना होगा. किन्तु परिचालक जब उर्ध बोलेंगे, उस समय सर ऊँचा, और जब अधः बोलेंगे, तब सर निचे करके सभी खिलाडियों को खड़ा रहना होगा. जो खिलाड़ी गलती करेगा वो आउट हो जायेगा. इसी प्रकार खेल के अंत तक जो बचा रहेगा, वही विजयी होगा.
५० गेन्द से बचो 
खिलाडियों की संख्या सुविधानुसार होगी. एक छोटा फुटबाल रखना होगा. समान संख्यक दो दल बनाना होगा. एक दल क दूसरा दल ख नाम से परिचित होगा. परिचालक नाम देंगे. खेल में दो वृत्त होंगे. खिलाडियों की संख्या के अनुसार वृत्त बड़ा होगा. एक दल वृत्त के भीतर रहेगा. ताकि उनमे से कुछ लोग को वृत्त के भीतर रहते हुए शरीर झुकाने या उछल कर तेजी से स्थान परिवर्तन करने का अवसर मिले. वृत्त की परिधि रेखा से एक हाथ दुरी पर, एक दूसरी परिधि रेखा खींचनी होगी. इन दोनों परिधि रेखा के बीच में एक पैर रख कर, या बाहर में एक पैर रख कर, दूसरा दल गोल होकर खड़ा होगा. 
मानलो की दल क ने टॉस जित लिया और वृत्त के बीच में खड़ा हो गया. ख दल दोनों परिधि रेखा के बीच में दौड़ेगा. ५ से १० मिनट खेल होगा. प्रथम ५ मिनट के बाद दोनों दल परस्पर स्थान बदल लेंगे. एवं और ५ मिनट यथा नियम खेलेंगे. ख दल हाथ में फुटबाल लेकर एक हाथ से वृत्त के भीतर खड़े खिलाडियों को बल फेंक कर मारने की चेष्टा करेगा. जिस खिलाड़ी के शरीर पर बाल लगेगा, वह बाहर जाकर बैठेगा. इस प्रकार ५ मिनट के भीतर क दल के जितने लडके बैठ जायेंगे, ख दल को उतने ही पॉइंट मिलेंगे. सिटी बजने के साथ ही साथ दोनों दल अपना स्थान बदल लेंगे. फिर सिटी बजने पर खेल पहले के ही तरह शुरू होगा. अब क दल बाहर ख दल भीतर रहेगा. ५ मिनट बाद सिटी बजने पर खेल खत्म होगा. क और ख दल में जो अधिक पॉइंट लायेगा वही जीतेगा. किन्तु ध्यान रखना होगा कि दोनों दल का कोई भी सदस्य एक बार से अधिक बाल नहीं फेंक सकेगा. यदि समय बचा हुआ हो तब दूसरी बार फेंकने का मौका मिलेगा.
५१ टोकरी में गेन्द डालो 
यह खेल बहुत हद तक बास्केट बाल के खेल जैसा है. एक तरफ टोकरी लगी होगी. एक हैंडल कि सहायता से खेल होगा. उत्तर भारत में कहीं कहीं यह खेल प्रचलित है. दो समान संख्यक दल होंगे. प्रत्येक दल में ११ खिलाड़ी रह सकते हैं. ५, ६ लडको की टीम बना कर भी यह खेल हो सकता है. एक आयताकार क्षेत्र में यह खेल होगा. सुविधानुसार किसी मैदान में हो सकता है. मैदान एक ओर गोलपोस्ट के जैसा एक खूंटा या या बांस गाड़ा जायेगा. जमीन से उसकी ऊंचाई ४ या ४.५ फुट होगी. बांस के उपरी भाग पर एक बिन पेंदी का टीना या टोकरी सीधा करके सख्ती से बंधा रहेगा. खूंटा से ४ फुट की दुरी पर एक निशान बना रहेगा. टॉस जित कर एक दल अर्थात क, खूंटी के विपरीत दिशा में मुख करके खड़ा होगा. दूसरा दल ख खूंटी क सामने खड़ा होकर पहले वाले दल को रोकेगा. सिटी बजने पर परिचालक बाल को क दल की ओर फेंक देगा. क दल अपने दल के बीच बाल देते लेते हुए, खूंटी सामने दाग तक जायेंगे और बाल को टोकरी में डालेंगे. पुनः खेल के आरम्भ जगह में जाकर खेल शुरू करेगा. ख दल के खिलाड़ी क दल के खिलाडियों को आगे बढने में बाधा देंगे. जिससे क दल टोकरी में बाल न डाल सके. कोई सदस्य ५ गिनने में जितना समय लगता है, उससे अधिक समय तक बाल हाथ में नहीं रख सकेगा. रखने से फाउल माना जायेगा. बाल को जमीन पर ड्रॉप करते करते आगे बढना होगा. बाल को एक ही हाथ से ड्रॉप करना होगा. पकड़ते समय दोनों हाथ से पकड़ सकते हैं. १० मिनट के बाद दूसरा दल ख, अब बाल को टोकरी में डालेगा, और क दल बाधा देगा, पहले जैसा . जो दल जितनी बार टोकरी में बाल डालेगा, उसी हिसाब से जित हर का फैसला होगा. इसी प्रकार क्रमागत खेल चलता रहेगा. 
५२ बूढ़ी  बसंत 
समान संख्यक और समान शक्ति के दो दल बनाये जायेंगे. एक चतुष कोण का घर काटना होगा. उसके सामने जितनी दूर सम्भव हो, एक २ फुट व्यास का वृत्त खींचना होगा. टॉस जित कर एक दल घर में रहेगा. और अपने दल के एक सदस्य को वृत्त के भीतर बैठायेगा- उसका नाम होगा, बूढ़ी. विपक्षी दल के खिलाड़ी चारों ओर बिखरे रहेंगे. और ध्यान रखेंगे, जैसे वह बूढ़ी के घर में घुस न जाये. घर के खिलाड़ी का एक एक लड़का मुख से चू... ऐसा शब्द करते करते विपक्षी दल के खिलाड़ी को छूने की चेष्टा करगा. जिसको छू लेगा उसको इस दल खेल समाप्त होने तक बाहर बैठना पड़ेगा. जाते समय या आते समय यदि वह साँस लेगा और विपक्षी दल उसको छू लेगा, तो वह भी बैठ जायेगा. घर से बाहर निकल कर यदि वह खिलाड़ी एक साँस में घर में वापस न आ सकेगा तो बढ़ी के घर में पहुँचने पर भी चलेगा, एवं बाद में दूसरा एक खिलाड़ी चू कहते हुए उसको वापस अपने घे में ले आ सकेगा. १५ बार दम साध कर बूढ़ी के घर में आना ही पड़ेगा. १५ बार के पहले बूढ़ी कोअगर मौका मिलेगा तो वह घर में आने सकेगा. किन्तु १५ बार से ज्यादा नहीं होगा. बूढ़ी घर में आने के पहले पथ में विपक्ष दल का कोई बूढ़ी को छू लेगा तो विपक्षी दल घर पायेगा. एक बार बूढ़ी के घर में आ सकने पर ही, जो दल घर में रहेगा, उसका एक बूढ़ी होगा. इसी बूढ़ी की संख्या पर जीत हार होगा. इसीप्रकार क्रमागत खेल चलता रहेगा.   
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सोमवार, 20 जून 2011

" महामण्डल-संगठन का ज्ञापन-पत्र एवं इससे सम्बद्ध इकाइयों के लिए नियम-अधिनियम "

Memorandum of Association and 
Regulations of the Affiliated Units of  
अखिल भारत विवेकानन्द युवा महामण्डल 
(Registered under W.B. Act XXVI of 1961)
Registered Office:
BHUBAN-BHAVAN
P.O. Balaram Dharma Sopan
Khardah, 24-Pargnas.
    WEST BENGAL
CHAPTER-1
NAME, OBJECT, AND CHARACTER 
नाम, उद्देश्य, एवं स्वरुप 
१. इकाई का नाम : ----------------------------(स्थान) विवेकानन्द युवा महामण्डल .
२. कार्यालय : -----------------------------------(पता)
                   -----------------------------------(ग्राम, पोस्ट, अंचल )
                   -----------------------------------(थाना, अनुमंडल)
                   ------------------------------------(जिला, राज्य)
                   --------------------(पिन कोड )
३. क्षेत्र : जिस स्थान में केंद्र स्थित है, वही इस केंद्र का कार्य-क्षेत्र होगा, आवश्यकता पड़ने पर सीमा के बाहर भी कार्य कर सकता है.
४. सम्बद्धता : जिन इकाइयों को अखिल भारत विवेकानन्द युवा महामण्डल से सम्बद्धता प्राप्त हो जाएगी वे इसके आगे ' महामण्डल ' के नाम से जाने जायेंगे, तथा पंजीकृत -कार्यालय भुवन-भवन, पोस्ट- बलराम धर्म सोपान, खरदह, उत्तर,२४-परगना, प० बंगाल, का अंग माने जायेंगे. अब वे केंद्र महामण्डल-ध्वज, प्रतीक-चिन्ह, एवं महामण्डल का ' संघ-गान ' का उपयोग कर सकते हैं.
५. उद्देश्य  :
(i) स्वामी विवेकानन्द के चरित्र-निर्माणकारी एवं मनुष्य-निर्माणकारी आदर्शों में समाहित स्थाई भारतीय-संस्कृति के मूल्यों का प्रचार-प्रसार विशेष रूप से युवाओं के बीच करना.
(ii) युवाओं की उर्जा को निःस्वार्थ-सेवा के माध्यम से अनुशासित एवं संयमित करके, राष्ट्र-निर्माण के कार्यों में उसका  सदुपयोग करना तथा उनको अपना चरित्र-निर्माण करने के उद्देश्य से संगठित करना.
(iii) साप्ताहिक ' पाठ-चक्र ' (भ्रम-भंजक गोष्ठियों ) को आयोजित करना, शास्त्रार्थ, वाद-विवाद, सभा-सम्मलेन, वाचनालय-पुस्तकालय, शारीरिक व्यायाम, खेल-कूद, कोचिंग-क्लास, प्रार्थना-संगीत, 
विभिन्न प्रशिक्षणों के लिए शिशु-विभाग स्थापित करना, प्रौढ़-शिक्षा केंद्र, दातव्य-औषधालय तथा अन्य स्वास्थ्य योजनायें, सुरक्षा-सेवा दल,  पोषक-आहार दूध-फल आदि वितरण, 
शैक्षणिक कार्यकर्म विद्यालय एवं विद्यार्थी निवास, प्राथमिक उपचार प्रशिक्षण एवं प्राथमिक-चिकित्सा केंद्र, संगीत-प्रशिक्षण, सेवा-केंद्र, रामकृष्ण-विवेकानन्द वेदान्त साहित्य विक्रय केंद्र.
(iv) सर्वसाधारण के लिए विशेष तौर पर युवाओं के लिए, ' कुटीर-उद्द्योग के उत्पादन का प्रशिक्षण ', ' संस्कृति का प्रोत्साहन ', ' संस्कृत-शिक्षण ' को प्रोत्सहित करने का केंद्र, 
(v) पत्र-पत्रिकाओं का प्रकाशन, दीवाल -पत्रिका आदि लेखन .
(vi) स्वामी विवेकानन्द के आदर्शों के अनुरूप जीवन-गठन करने के लिए, विविध प्रकार से युवाओं का मार्गदर्शन करना.
(vii)  सभी प्रकार की संकीर्ण-दलबन्दी एवं राजनीती से दूर रहते हुए, राष्ट्रीय-एकता को अक्षुण रखने के लिए कार्य करना.
CHAPTER -II
REGULATIONS (नियम-अधिनियम)
१. सदस्यता :
(क) सभी सदस्य निर्धारित प्रवेश-शुल्क अदा करने के बाद सदस्यता ग्रहण करेंगे, तथा वार्षिक या मासिक चन्दा भी देंगे.
(ख) केंद्र के अभियान में मदत करने के लिए कोई सदस्य यदि अतिरिक्त चन्दा या दान देना चाहें तो उसे कृतज्ञता पूर्वक स्वीकार किया जायेगा.
(ग) जिस किसी व्यक्ति में महामण्डल के आदर्श और उद्देश्य के प्रति निष्ठा है, उनको कार्यकारिणी समिति से स्वीकृति लेने के बाद ' मानद-सदस्यता ' दी जा सकती है.वैसे सदस्य को कोई भी शुल्क या चन्दा देने से छूट प्राप्त होगी.
(घ) जो व्यक्ति संस्था के उद्देश्य को प्रोत्साहित करने के लिए, विशेष-धन अथवा जमीन दान में देंगे, उनको कार्यकारिणी समिति केंद्र का ' संरक्षक ' बना सकती है.
२. सदस्य बनने की योग्यता :            
जो भी व्यक्ति महामण्डल केंद्र का सदस्य बनना चाहता हो, उसे स्वामी विवेकानन्द की शिक्षाओं एवं महामण्डल के प्रति, सच्ची-निष्ठा अवश्य रहनी चाहिए.
उसमे कोई पद-लोलुपता, नाम-यश पाने का अथवा कोई विशेष- अधिकार प्राप्त करने, या किसी अन्य प्रकार का लाभ उठाने की ललक नहीं रहनी चाहिए.
  उसे भारत की सांस्कृतिक-विरासत को सम्मान देना होगा तथा केंद्र के नियमों को स्वीकार करना होगा. उसे धर्म, जाती या संप्रदाय के नाम पर किसी भी प्रकार के भेद-भाव में संलिप्त नहीं रहना होगा,
महामण्डल का सदस्य किसी भी राजनितिक- दल के साथ संयुक्त नहीं होगा.
३. सदस्य बनने की अयोग्यता  :
जो भी व्यक्ति कंडिका २ में दिए शर्तों का अनुपालन नहीं करेगा, उसे महामण्डल का सदस्य अथवा पदाधिकारी बनने के अयोग्य समझा जायेगा. या कोई व्यक्ति यदि विगत ५ वर्षों में घोषित तौर पर दिवालिया, पागल, या सजा-याफ्ता मुजरिम होगा या किसी प्रकार के नैतिक-भ्रष्टता में संलिप्त रहा है, तो उसे भी सदस्य बनने के अयोग्य माना जायेगा.
४. सदस्यता प्रदान करने की प्रक्रिया :
जो व्यक्ति सदस्यता ग्रहण करना चाहेगा उसे एक सादे कागज पर या केंद्र के निर्धारित प्रपत्र में केंद्र के सचिव को अपना आवेदन देगा. यदि उसने केंद्र के आदर्श और उद्देश्य में तथा उसके कार्यक्रमों में रूचि दिखाई है, उस व्यक्ति में सदस्य बनने की योग्यता है, और वह व्यक्ति निश्चित रूप से किसी राजनितिक दल का सदस्य नहीं है, यदि कार्यकारिणी समिति इन विषयों में   संतुष्ट हो जाती हो, तब समिति उस व्यक्ति को महामण्डल की सदस्यता प्रदान कर देगी.
५. सदस्यों का उत्तरदायित्व :
सभी सदस्यों का यह पुनीत-कर्त्तव्य होगा कि वह, केंद्र को उसका उद्देश्य-पूर्ण करने में, इसके समस्त कार्यक्रमों को सफलता पूर्वक संचालित करने में, समस्त योजनाओं को क्रियान्वित करने में हर प्रकार (तन-मन-धन) से सहायता करेगा, तथा महामण्डल के उद्देश्य को आगे बढ़ाने में सदैव तत्पर रहे.
६. सदस्यों के अधिकार एवं विशेषाधिकार :
सभी सदस्यों को यह अधिकार होगा कि वह केंद्र के समस्त कार्यक्रमों में भाग ले, तथा केंद्र के कार्यकारिणी समिति का चुनाव करने में अपना मतदान का प्रयोग कर सके. किसी भी संरक्षक-सदस्य तथा मानद-सदस्य को  पदाधिकारियों के निर्वाचन में मतदान करने का अधिकार नहीं होगा, और न उन्हें किसी पद के लिए निर्वाचित किया जायेगा. 
७. सदस्यता को रद्द करने की प्रक्रिया :
यदि कोई सदस्य एक वर्ष से ज्यादा समय से सदस्यता -शुल्क का भुगतान नहीं कर रहा हो, बिना उचित कारण के लगातार तीन बैठकों में अनुपस्थित रहे, इकाई  अथवा महामण्डल के उद्देश्य को हानी पहुँचाने वाले गतिविधियों में संलिप्त रहता हो, या इन तीन कारणों में से कोई भी एक अयोग्यता हो, तो कार्यकारिणी-समिति उस व्यक्ति की सदस्यता को समाप्त कर सकती है.कार्यकारिणी समिति द्वारा लिए गए इस प्रकार के किसी निर्णय के विरुद्ध अपील केवल ' साधारण-सभा ' में की जा सकती है.
८. अविश्वास-प्रस्ताव :
कार्यकारिणी-समिति या किसी पदाधिकारी के विरुद्ध जब केंद्र के कम से कम एक तिहाई वैसे सदस्य जिन्हें मतदान करने का अधिकार प्राप्त है, कोई भी अविश्वास-प्रस्ताव लाना चाहें तो सचिव के लिए यह बाध्यता रहेगी कि वह अपने इकाई के विशेष-रूप से बुलाई गयी ' साधारण-सभा ' के समक्ष उस प्रस्ताव को विचारार्थ रखे, तथा साधारण सभा में उपस्थित दो-तिहाई सदस्य यदि इस प्रकार के किसी प्रस्ताव को अनुमोदित कर दें तो उसे पारित करे.
९. सदस्यता से त्यागपत्र :
(क) त्यागपत्र के आवेदनों पर निर्णय कार्यकारिणी की बैठक में ही लिया जा सकेगा.
(ख) यदि इकाई के किसी सदस्य के निष्कासन या त्यागपत्र के ऊपर कोई विवाद हो तो उस विषय में महामण्डल के निर्णय को अंतिम माना जायेगा. 
(ग) जब किसी इकाई की नयी-कार्यकारिणी का निर्वाचन सम्पन्न हो जाये,अथवा नियमानुसार जैसे ही कोई नयी  समिति गठित या पुनर्गठित हो जाए, तत्काल-प्रभाव से पूर्ववर्ती समिति को भंग मान लिया जायेगा, भले ही उस समिति के सदस्य या पदाधिकारी लिखित में त्यागपत्र दिए हों या नहीं. 
CHAPTER-III
MANAGEMENT (प्रबन्धक-तंत्र )
१. कार्यकारिणी समिति :
(क) वार्षिक आम सभा में सबसे पहले, अधिक से अधिक ११ सदस्यों को कार्यकारिणी समिति के लिए निर्वाचित किया जायेगा, तथा इस केंद्र के समस्त कार्यक्रमों को संचालित करने की सारी जिम्मेवारी, उन्हीं कार्यकारिणी समिति के सदस्यों के ऊपर होगी.कार्यकारिणी समिति के सदस्य निम्नलिखित पदाधिकारियों का चयन करेंगे.अध्यक्ष-१, उपाध्यक्ष - १ या २, सचिव-१,सहायक सचिव-१,कोषनायक-१ 
(ख) कार्यकारिणी समिति का गठन प्रत्येक वर्ष ' वार्षिक आम सभा ' में किया जायेगा. यदि सर्व सम्मति से समिति का गठन सम्भव न हो सके, केवल उसी परिस्थिति में सदस्य लोग अपने मताधिकार का प्रयोग करके कार्यकारिणी समिति को निर्वाचित करेंगे.
(ग) चुनाव होने के उपरान्त समिति के सदस्य एवं पदाधिकारियों की सूचि उसके अनुमोदन के लिए अध्यक्ष तथा सचिव के संयुक्त-हस्ताक्षर के साथ महामण्डल को भेज दी जाएगी. 
२. कार्यकारिणी समिति का कार्यकाल: 
(क) निर्वाचन तिथि से एक वर्ष तक समिति अपना कार्य-निर्वहन करेगी. विशेष परिस्थिति में महामण्डल की अनुमति से यह अगले छः महीने तक यह समिति क्रियाशील रह सकती है.
(ख) कार्यकारिणी समिति अपने कार्यकाल के दौरान किसी रिक्त पद पर दुसरे किसी सदस्य को मनोनीत कर सकती है, एवं उस परिवर्तन को अनुमोदन के लिए महामण्डल में भेजना होगा.
३. कार्यकारिणी समिति का कर्तव्य एवं उत्तरदायित्व :
(i ) कार्यकारिणी समिति अपने इकाई के कार्यक्रमों को संचालित करेगी, तथा साधारण सभा के प्रति नैतिक रूप से उत्तरदायी रहेगी.
(ii) कोष संग्रह करेगी तथा आय-व्यय को नियन्त्रित करेगी. 
(iii) इसे अपने क्रियाकलापों को संचालित करने के लिए किसी कर्मचारी को नियुक्त करने या हटाने का अधिकार होगा, उस कर्चारी के कर्तव्य एवं वेतन तय करने का भी अधिकार होगा.
(iv) अपनी आवश्यकता के अनुसार उप-नियम और कायदा-कानून बना सकती है, एवं उसके अनुमोदन के लिए महामण्डल के पास भेज सकती है. ये नियम-उपनियम महामण्डल द्वारा अनुमोदित होने के बाद ही लागु होंगे.
(v) यह समिति प्रत्येक वर्ष के लिए आय-व्यय का लक्ष्य (बजट) निर्धारित करेगी.
(vi) यह समिति केंद्र के प्रत्येक विभागों का निरिक्षण करेगी.
 (vii ) आवश्यकता पड़ने पर विशेष योजना के लिए 'उप-समिति ' का गठन करगी.
(viii) इसको किसी सदस्य को फटकार लगाने या दण्ड देने का अधिकार होगा तथा किसी नए आवेदन कर्ता को सदस्यता प्रदान करने का भी अधिकार होगा.
(ix) सचिव के द्वारा विचारार्थ प्रस्तुत समस्त चालू-खाता या बचत-खाता की जाँच-पड़ताल कर सकती है.
(x) यह समिति सदस्यता-पंजी बनाएगी, जिस में सदस्य का नाम, पता, व्यवसाय, फोन नम्बर, सदस्यता स्वीकार की तिथि, सदस्यता समाप्ति की तिथि आदि का उल्लेख रहेगा. किसी भी सदस्य द्वारा मांगने पर सचिव उस पंजी को देखने की अनुमति देगा.
४. अध्यक्ष के अधिकार एवं उत्तरदायित्व :
(i) अध्यक्ष इकाई के समस्त शासकीय बैठकों की अध्यक्षता करेगा.
(ii) बैठक के दौरान अनुशासन बनाये रखेगा.
(iii) नियम-काएदा के अनुसार आवश्यक कागजों पर हस्ताक्षर करेगा.
(iv) अध्यक्ष को मतदान करने का अधिकार होगा, किन्तु अध्यक्ष वैसे किसी बैठक की अध्यक्षता नहीं कर सकता जिसमे उसीके विरुद्ध कोई प्रस्ताव लाया गया हो. 
(v) किसी अत्यन्त महत्वपूर्ण समस्या पर अध्यक्ष द्वारा लिया गया निर्णय अन्तिम माना जायेगा.
५. उपाध्यक्ष की जिम्मेदारी :
(i) प्रत्येक मामले में उपाध्यक्ष अध्यक्ष की सहायता करेगा.
(ii) अध्यक्ष की अनुपस्थिति में बैठकों का संचालन करेगा.
६. सचिव की जिम्मेवारी :
(i) सचिव केंद्र के समस्त गतिविधियों का प्रबन्ध तथा देखभाल करेगा .
(ii) महामण्डल, सभी उप-समितियों,  तथा इकाई के सभी सदस्यों के साथ सम्पर्क बनाये रखेगा, तथा केंद्र की गतिविधियों के ऊपर नियमानुसार रिपोर्ट भेजता रहेगा.
(iii) केंद्र के कार्यालय का संचालन एवं निर्वहन करेगा तथा इकाई की समस्त चल-अचल संपत्तियों की देखरेख का जिम्मेवार होगा.
(iv) समस्त बैठकों को आयोजित करेगा, तथा इकाई के समस्त कार्यक्रमों एवं समारोहों आदि के लिए उत्तरदायी होगा.
(v) सचिव ही होने वाली बैठकों, सम्मेलनों आदि के विचार की विषय-वस्तु (एजेंडा) की कार्यसूची तैयार करेगा, तथा करवाई-पुस्तिका में केंद्र की गतिविधियों, आम राय से पारित प्रस्ताव आदि के लखित-विवरण(मिनट्स ) को रजिस्टर में यथार्ततः दर्ज करेगा. 
(vi) केंद्र के सभी विभागों के आय-व्यय के हिसाब को कोषनायक (ट्रेजरर) की सहायता से देखरेख करेगा. सचिव सभी तरह की प्राप्त राशी के लिए के लिए अपने हस्ताक्षर से यथायोग्य रसीद जारी करेगा.
(vii) अपने केंद्र के अध्यक्ष एवं कार्यकारिणी के निर्देशों तथा नियम-कानून का पालन करेगा.
(viii) सचिव को १०००/= तक की राशी को स्व-विवेक से खर्च करने का अधिकार होगा, इससे अधिक राशी का भुगतान करना हो तो उसे कार्यकारिणी समिति से पूर्वानुमति लेनी होगी.
(ix) वह १०००/= से अधिक राशी सामान्य नियमित खर्च के लिए नकदी के रूप में अपने पास नहीं रखेगा.
(x) सभी प्रकार के डाक-खातों या बैंक-खातों में संचित राशी को कार्यकारिणी समिति द्वारा मनोनीत किसी दूसरे सदस्य के साथ संयुक्त रूप में हस्ताक्षर करके ही निकालने का अधिकारी होगा.
(xi) जब और जहाँ न्यालय में जाने की आवश्यकता पड़ेगी तो सचिव ही अपनी इकाई का प्रतिनिधित्व करेगा.
(xii) महामण्डल के ध्वज, प्रतिक-चिन्ह, तथा इकाई के समस्त मुहर एवं रबड़ की मुहर आदि को अपने संरक्षण में रखेगा तथा आवश्यकतानुसार उनको प्रयोग में लायेगा.
(xiii) इकाई के वार्षिक साधारण बैठक में समस्त गतिविधियों के ऊपर सचिव का प्रतिवेदन एवं आय-व्यय का खाता को जाँच के लिए कार्यकारिणी के समक्ष प्रस्तुत करेगा.
(xiv) केंद्र के समस्त विभागों की गतिविधिओं के लिए कार्यकारिणी समिति के समक्ष जवाबदेह होगा, तथा किसी भी सदस्य के अनुशासनहीनता के विरुद्ध अनुकूल कार्यवाही का विशेषाधिकार सचिव का होगा.
(xv) विशेष परिस्थिति में सचिव किसी भी बाहरी व्यक्ति को किसी भी बैठक में उपस्थित रहने के लिए आमंत्रित कर सकता है.
(xvi) कुल सदस्यों के एकतिहाई संख्या से अनुरोध मिलने पर, सचिव को किसी भी प्रस्ताव पर विचार-विमर्श करने के लिए विशेष-बैठक बुलाना होगा.
(xvii) किसी भी सदस्य के द्वारा या किसी बाहरी व्यक्ति के द्वारा गबन या समरसता-भंग करने पर, केंद्र के हित को ध्यान में रख कर उसकी तरफ से न्यालय में मुकदमा कायम करने का अधिकार सचिव को होगा.
७. सहायक सचिव की जवाबदेही :
सहायक सचिव केंद्र के सचिव को सभी कार्यों में सहायता  करेगा, तथा सचिव की अनुपस्थिति में उसके निर्देशों के अनुसार सचिव के समस्त कर्तव्यों का अनुपालन करेगा.
८. कोषनायक की जवाबदेही :
(i) सचिव की तरफ से कोषनायक सभी प्रकार के चन्दों, दान, अनुदान, को स्वीकार करेगा बैंक में संचित राशी आदि का सही ढंग से हिसाब-किताब रखेगा.
(ii) सचिव के प्रतिनिधि के रूप में रोकड़-बही, लेखा-बही आदि समस्त खातों का हिसाब-किताब रखेगा तथा समेकित (कोन्सोलीडेटेड) वार्षिक आय-व्यय का व्यवरा एवं तुलन-पत्र (बैलेंसशीट) तैयार करके उसे किसी  लेखा-परीक्षक (ऑडिटर) के द्वारा हिसाब की जाँच करवा लेगा.
(iii) किसी भी समय में १०००/= से अधिक राशी नकदी के रूप में अपने पास नहीं रखेगा.
CHAPTER-IV
MEETINGS (बैठक-अधिवेशन)
१. सचिव समस्त बैठकों को आयोजित करेगा. सचिव की अनुपस्थिति में सहायक-सचिव इस प्रकार की बैठकों को आयोजित करेगा. उप-समितियों के संयोजक भी सचिव की सहमती से उप-समिति की बैठकों को आयोजित कर सकता है.
२. किसी भी बैठक के लिए एकतिहाई सदस्यों की उपस्थिति निर्दिष्ट संख्या
( कोरम ) मानी जायगी.
३. प्रति वर्ष कम से कम कार्यकारिणी समिति की ६-बैठकें एवं साधारण-सभा की एक बैठक को आयोजित करना अनिवार्य होगा.
४. सभी तरह के प्रस्तावों पर इन बैठकों में विस्तार से चर्चा होगी एवं यदि आवश्यक हुआ तो मंजूर की हुई राय (संकल्प) को बहुमत से पारित किया जायेगा. किन्तु जहाँ तक सम्भव हो सभी निर्णयों को सर्वसम्मति से पारित करने की चेष्टा की जाएगी.
5. GENERAL MEETING (आम-सभा )
(i) कम से कम एक आम-सभा प्रत्येक वर्ष आयोजित की जाएगी, सभी सदस्यों को इसकी सुचना १५ दिन पहले ही दे दी जाएगी.
(ii) यदि आवश्यक हुआ तो कार्यकारिणी समिति की सहमती से विशेष आम-सभा बुलाई जा सकती है, तथा आवश्यकतानुसार मात्र ७ दिनों की सुचना के बाद इस अधिवेशन को आयोजित किया जा सकता है.
(iii) विगत वार्षिक आमसभा की बैठक की तिथि से १५ महीनों के भीतर वार्षिक आमसभा (AGM ) की बैठक अवश्य आयोजित हो जानी चाहिए. महामण्डल से अनुमति प्राप्त किये बिना किसी भी हाल में इस समय-सीमा का उलंघन नहीं हो सकता है.
वार्षिक आम सभा में केंद्र की गतिविधियों के ऊपर सचिव का वार्षिक-प्रतिवेदन, लेखा-परीक्षक द्वारा विगत वर्ष का अंकेक्षित विवरण एवं वर्तमान-वर्ष के आय-व्यय का लेखा (बजट) को सभा के सामने रखा जायेगा.
 वार्षिक आमसभा में एक नयी कार्यकारिणी समिति को निर्वाचित किया जायेगा, एवं एक लेखा-परीक्षक को नियुक्त किया जायेगा.
सामान्यतया यह वार्षिक-आम-सभा (AGM) वित्तीय-वर्ष समाप्त हो जाने के एक महीने के भीतर ही हो जानी चाहिए.
6. EXECUTIVE COMMITTEE MEETINGS(कार्यकारिणी समिति की बैठक )
कार्यकारिणी समिति की बैठक को न्यूनतम ३ दिनों की नोटिस पर आयोजित किया जा सकता है. तथा आकस्मिक-बैठक को १ दिन की नोटिस पर भी आयोजित किया जा सकता है.
CHAPTER-V
FINANCIAL MATTERS ( वित्तीय-विषयवस्तु )
केंद्र के उद्देश्यों को आगे बढ़ाने के लिए अपने सदस्यों से चन्दा तथा प्रवेश-शुल्क लेने के आलावा, केंद्र के उद्देश्यों को पूरा करने तथा कार्य को आगे बढ़ने के लिए विभिन्न श्रोतों से चन्दा उगाही करके या उधार लेकर धन एकत्र करने की कार्यकारिणी समिति को छूट रहेगी.
किसी व्यक्ति, या निगम एवं सरकार से नकदी या वस्तु के रूप में दिया गया दान तभी स्वीकार किया जायेगा, जब वे महामण्डल के आदर्श और उद्देश्य को जानकर बिना किसी शर्त के दान देंगे. 
यदि अनुदान के लिए किसी कानून या विधान की बाध्यता होगी तभी उसके नियमों को स्वीकार किया जा सकेगा.
किसी भी प्रकार की नकदी या वस्तु के रूप में प्राप्त अनुदान के लिए उचित रशीद दिया जायेगा. 
कार्यकारिणी समिति के के निर्णय के अनुसार ही बैंक खातों से धन की निकासी की जा सकती है.
सभी प्रकार के वित्त से सबंधित विषयों को सचिव अपने कोषनायक की मदत से देखभाल करेगा.
CHAPTER-VI
RELATION WITH THE MAHAMANDAL (THE CENTRAL ORGANIZATION)
केंद्रीय-संगठन अर्थात महामण्डल के साथ केंद्र का आपसी सम्बन्ध 
१. केंद्र महामण्डल के प्रति पूर्ण निष्ठा रखेगा तथा समस्त वर्तमान नियम-कानून एवं केंद्र के समस्त निर्देशों का पालन करेगा.
२. महामण्डल के अधिवेशनों में केंद्र का प्रतिनिधित्व करने के लिए, तथा महामण्डल के साथ सम्पर्क बनाय के उद्देश्य से, कार्यकारिणी समिति किसी सदस्य को महामण्डल की स्वीकृति लेकर स्थायी-प्रतिनिधि के रूप में मनोनीत करेगी. स्थायी प्रतिनिधि को अनिवार्य रूप से महामण्डल का सदस्य होना चाहिए. यदि वह कार्यकारिणी समिति का सदस्य या सचिव न भी हो तो उसे कार्यकारिणी समिति के समस्त बैठकों में उपस्थित रहने के लिए अनिवार्य रूप से आमन्त्रित किया जायेगा. महामण्डल से अनुमोदन कराने के बाद ही कार्यकारिणी समिति स्थायी-प्रतिनिधि को बदल सकती है. 
३. यदि केंद्र के सामने कोई समस्या खड़ी हो जाये तो उसका समाधान कराने के लिए महामण्डल से निर्देश माँगा जायेगा. केंद्र के प्रशासन को चलाने के लिए नियमों की जो व्याख्या (अर्थ) महामण्डल देगा उसीको अंतिम माना जायेगा.
४. किसी भी सम्पत्ति जमीन-जायदाद को दान में, या नकद भुगतान देकर अर्जित करने के पहले महामण्डल से उसकी पूर्वानुमति प्राप्त करना  आवश्यक है. उसी प्रकार कोई नयी योजना का प्रारम्भ करने या सरकार अथवा बैंक या अन्य किसी भी संस्था से कोई ऋण या अनुदान स्वीकार करने के पहले भी महामण्डल की पूर्वानुमति लेना आवश्यक है. 
५. केंद्रीय संगठन अर्थात महामण्डल को किसी भी केंद्र के खाता-बही, करवाई-पुस्तिका के विवरण आदि का निरिक्षण करने का अधिकार होगा. तथा विशेष परिस्थिति में केंद्र के प्रबन्धन को अपने आधीन ले सकती है, या उसके प्रबन्धन में परिवर्तन लाने का निर्देश दे सकती है.
महामण्डल को यदि ऐसा प्रतीत हो कि कोई केंद्र अपनी निष्क्रियता या महामण्डल के आदर्श और उद्देश्य को हानी पहुँचाने वाले कार्यों में संलग्न है, तो महामण्डल को यह अधिकार होगा कि वह उस केंद्र को असम्बद्ध करके महामण्डल के ज्ञापन-पत्र  में लिखे नियम-कानून के अन्तर्गत उस केंद्र को विवेकानन्द युवा महामण्डल के रूप में कार्य करने कि मान्यता को रद्द कर दे. 
६. केंद्र अपने आसपास में स्थित सभी केन्द्रों की हरसम्भव मदत करेगा.
७. केंद्र अपने क्षेत्र में या आस-पास के क्षेत्रों में, जहाँ कहीं भी अतिरिक्त इकाई स्थापित होने की सम्भावना हो, वहां केंद्रीय-संगठन से पूर्वानुमति प्राप्त करके महामण्डल के कार्यों को फ़ैलाने की चेष्टा करेगा.जब महामण्डल इस प्रकार के नयी इकाइयों को सम्बद्धता प्राप्त करने योग्य समझेगा तब उन्हें अपने साथ सम्बद्ध कर लेगा. 
CHAPTER-VII
AMENDMENT OF MEMORANDUM AND REGULATIONS
ज्ञापन-पत्र एवं नियमों का संशोधन 
किसी केंद्र के नियमों में संशोधन महामण्डल द्वारा अनुमोदित कराने के लिए उस केंद्र कुल सदस्यों की संख्या के तीन-चौथाई बहुमत  के आधार पर किया जा सकता है. कोई भी नियम जोड़ने, हटाने, या परिवर्तित करने के लिए केंद्र को महामण्डल से पूर्वानुमति प्राप्त करनी होगी. महामण्डल द्वारा किया गया कोई भी संशोधन तत्काल प्रभाव से लागु माना जायेगा.
CHAPTER-VIII
BYE-LAWS
उप-नियम
महामण्डल से अनुमोदन प्राप्त करके कार्यकारिणी समिति को केंद्र के गतिविधियों को निर्बिघ्न चलाने के लिए, नए उपनियम बनाने, परिवर्तित करने, रद्द करने का अधिकार होगा. ये उपनियम तभी से प्रभावी होंगे जब महामण्डल उनका अनुमोदन कर देगा.
CHAPTER-IX
DISSOLUTION 
विघटन 
यदि किसी केंद्र को विघटित कर देना बहुत आवश्यक प्रतीत होता है, तो उस केंद्र के समस्त दावों एवं देनदारियों का भुगतान करने के बाद, शेष बचे  चल-अचल सम्पत्ति को सदस्यों के बिच वितिरित या हस्तान्तरित नहीं किया जा सकेगा,  समिति को उसे महामण्डल को सौंप देना होगा. 
इतनी कार्यवाई के बाद केंद्र के समूर्ण सदस्य-संख्या के तीन-चौथाई बहुमत के आधार पर केंद्र को विघटित कर दिया जायेगा, किन्तु इस प्रकार की कार्यवाई करने के पहले महामण्डल को समस्त तथ्यों से अवगत कराना होगा, तथा उनकी अनुमति प्राप्त करनी होगी.
MISCELLANEOUS
विविध-फुटकर 
केंद्र का वित्तीय वर्ष १अप्रिल से अगले वर्ष के ३१ मार्च तक होगा. केंद्र के लेखा-पुस्तिकाओं को वर्ष के अंत में किसी योग्यता-प्राप्त लेखा-निरीक्षक(ऑडिटर)  से अंकेक्षित (औडिट) करवाना होगा.
प्रत्येक सदस्य को लेखा-पुस्तिका एवं लेखा-परीक्षा विवरण को देखने का अधिकार होगा.
वार्षिक-आमसभा में वार्षिक-प्रतिवेदन, एवं अंकेक्षित-लेखा विवरण के प्रमाणिक प्रतियों को पारित करवाने के बाद बैठक की तिथि से १५ दिनों के भीतर महामण्डल के पास भेज देना होगा. 
ANTHEM OF THE MAHAMANDAL
महामण्डल-गान 

 महामंडल का संघ-मंत्र 
संगच्ध्वं संग्वदध्वं संग वो मनांसि जानताम् ।
देवा भागं यथा पूर्वे संजानाना उपासते ।।
समानो मन्त्रः समितिः समानी ।
समानं मनः सः चित्त्मेषाम ।।
समानं मन्त्रः अभिम्न्त्रये वः ।
समानेन वो हविषा जुहोमि ।।
समानी व् आकुतिः समाना हृदयानि वः ।
समानमस्तु वो मनो यथा वः सुसहासति ।। 
(ऋग्वेद :१०/१९१/२-४ )
हिन्दी भावानुवाद
एक साथ चलेंगे ,एक बात कहेंगे । हम सबके मन को एक भाव से भरेंगे ।
देव गण जैसे बाँट हवि लेते हैं | हम सब सब कुछ बाँट कर ही लेंगे ।। 
याचना हमारी हो एक अंतःकरण एक हो| हमारे विचार में सब जीव एक हैं!
एक्य विचार के मन्त्र को गा कर| देवगण तुम्हें हम आहुति प्रदान करेंगे ||
हमारे संकल्प समान, ह्रदय भी समान, भावनाओं को एक करके परम ऐक्य पायेंगे |  
एक साथ चलेंगे, एक बात कहेंगे....... 
"हम अपने सारे निर्णय एक मन हो कर ही करेंगे ,क्योंकि देवता लोग एक मन रहने के कारण ही असुरों पर विजय प्राप्त कर सके थे । अर्थात एक मन बन जाना ही समाज-गठन का रहस्य है ......" 
' English Translation of संगचछ्ध्व्म '

 Let us move together 
 Let us speak in harmony,
Let our minds think in unison,

As Gods share with one another,
We too shall care to share,

Let us pray in consistency,
Let our hearts be in uniformity,
Let us be one with infinity,

Let us chant in unison,
Let us act in unison,
Let that unison be our prayer.

We'll unify our heart, feelings and determination,
To realise and to be - One with All !

Let us move together,
Let us speak in harmony.
========
    
( - Translated by Sri Ajay agarwal on 20/4/2012)
     
1 BE UNITED; SPEAK IN HARMONY; LET YOUR MINDS BE ALL OF ONE ACCORD; FOR THE DAYS OF YORE; THE GOD'S BEING OF ONE MINDED WERE ENABLED TO RECEIVE OBLATIONS.
2. COMMON BE YOUR PRAYERS; COMMON BE YOUR ASSEMBLY; COMMON BE YOUR INTENTION; COMMON BE YOUR DELIBERATION; A COMMON PURPOSE DO I LAY BEFORE YOU; AND WORSHIP WITH YOUR GENERAL OBLATION.
3. COMMON BE YOUR DESIRES; UNITED BE YOUR HEARTS; UNITED BE YOUR INTENTIONS; PERFECT BE THE UNION AMONGST YOU.
 
       
           
           


गुरुवार, 16 जून 2011

अखिल भारत विवेकानन्द युवा महामण्डल का निवेदन

हम अपने उन सभी युवा भाइयों, जो स्वामी विवेकानन्द के नेतृत्व में, मानव जाती के प्रति उनके द्वारा प्रदत्त अमर-संदेष में, तथा आत्मा को झंकिर्त कर देने वाले उनके ' राष्ट्र को आह्वान ' में आस्था रखते हों; से अपील करते हैं कि वे आगे आयें और " महामण्डल " के सदस्य बनें, एवं  समाचार पत्रों में अपना नाम छपा देखने के पाखण्ड से ऊपर उठ कर, नीरवता से चुप-चाप, मनुष्य-निर्माणकारी एवं चरित्र-गठनकारी शिक्षा के माध्यम से एक अग्रदूत ( जैसे श्रीरामकृष्ण ने नरेन्द्रनाथ को केवल मनुष्य नहीं, बल्कि  मनुष्य-निर्माण करने में समर्थ मनुष्य या 'अग्रदूत ' स्वामी विवेकानन्द बनाया था ) के साँचे में स्वयं के जीवन को ढाल लेने के कार्य में जुट जाएँ; क्योंकि मनुष्य जाति में परिव्याप्त समस्त प्रकार कि बुराइयों के लिए यही एकमात्र रामबाण-दवा है,यही सर्व रोग निवारक औषधि है !इस दिशा में अभिरुचि रखने वाला कोई भी व्यक्ति, संस्थान, संघ या संगठन हमारे निम्नलिखित पंजीकृत- कार्यालय के पते पर सम्पर्क स्थापित कर सकते हैं.


Secretary,
AKHIL BHARAT VIVEKANANDA YUVA MAHAMANDAL 
' BHUVAN BHAVAN '
P.O. Balram Dharm Sopan.
Khardah,
North 24 Parganas.
West Bengal, India.
 Pin- 700116
अथवा 
City Office.
6/1A, Justice Manmatha Mukherjee Row,
KOLKATA, INDIA-7OOOO9
Phone : (033) 2350-6898
महामण्डल के वास्तविक अंगप्रत्यंग हैं : 
इसकी विभिन्न इकाइयाँ 
महामण्डल के वास्तविक अंगप्रत्यंग (मनुष्य- निर्माणकारी तथा चरित्र-गठनकारी शिक्षा केन्द्रों के रूप में क्रियाशील ) इसकी इकाइयाँ हैं,जिनके माध्यम से इसमें प्राण स्पन्दित होता है, यह कार्य करता है,और मनुष्य के चारित्रिक गुणों में परिवर्तन लाता है. इसप्रकार इसकी शाखा-प्रशाखाएँ आगे फैलती जाती हैं, और जिसके कारण इसका अस्तित्व निरन्तर बना रहता है.
हमारा ' केंद्रीय-संगठन ' अर्थात " महामण्डल ", - विभिन्न राज्यों  में क्रियाशील इकाइयों को सीमेंट से जोड़े रखने वाली शक्ति के रूप में कार्य करता है, जो महामण्डल के उद्देश्य एवं आदर्श को कार्यरूप देने वाले वास्तविक केंद्र है, इस प्रकार यह उन्हें एक बहुत विशालकाय शरीर के सजीव-अंगप्रत्यंग के रूप में संचालित रखता है.
 इस समय, जनवरी २००९ तक भारत के विभिन्न राज्यों, यथा पश्चिम बंगाल, त्रिपुरा, आसाम, बिहार, झारखण्ड, ओरिसा, आन्ध्र प्रदेश, कर्नाटक, गुजरात एवं दिल्ली आदि में महामण्डल से सम्बद्ध - ३५० ' मनुष्य-निर्माणकारी ' केंद्र क्रियाशील हैं.
कार्य-कलाप (ACTIVITIES ) 
इकाइयों के द्वारा सामाजिक कार्य के रूप में, निःशुल्क कोचिंग, प्रौढ़ शिक्षा, खेल-कूद, अनुशासित कवायद प्रशिक्षण, पाठ चक्र (साप्ताहिक भ्रम-भंजन गोष्ठी या Study -Circles ), शारीरिक प्रशिक्षण, दुर्गा-पूजा आदि अवसरों पर रामकृष्ण-विवेकानन्द  वेदान्त- साहित्य पुस्तक-विक्रय केंद्र,
पुस्तकालय सह वाचनालय, गन्दी-बस्ती में रहने वालों की सेवा, प्राथमिक-चिकित्सा, प्राथमिक-चिकित्सा में प्रशिक्षण, संगीत कला में प्रशिक्षण, स्वाथ्य योजनायें, पौष्टिक आहार एवं भोजन योजनायें, कुटीर-उद्द्योग, स्टुडेंट्स होम, आदि ' समाज-सेवाओं ' का उत्तरदायित्व समाचार पत्रों में अपना फोटो छपवाने के उद्देश्य से नहीं, बल्कि अपने चरित्र-गठन के उद्देश्य को सामने रख कर लिया जाता है
इसके अतिरिक्त इसके केन्द्रों द्वारा समय समय पर सांस्कृतिक आयोजन किये जाते हैं, महत्वपूर्ण उत्सवों को समारोह पूर्वक मनाया जाता है, एवं सार्वजनिक अधिवेशन, शैक्षणिक प्रतियोगिताएँ, सामूहिक भोजन, वस्त्रों का वितरण, निर्धन व्यक्तियों तथा प्राकृतिक आपदाओं में राहत सामग्री वितरण करने के आलावा अन्य विविध प्रकार के सामाजिक कार्यों का उत्तरदायित्व महामण्डल के केन्द्रों द्वारा संयुक्त रूप से या अलग अलग लिया जाता है. 
जीवन-गठन के ऊपर परिचर्चा करने के लिए संयुक्त-अधिवेशन सत्र या नियतकालिक ' विशेष प्रशिक्षण शिविर ' (SPTC) जिसे " शिक्षा एवं समीक्षा का विशेष सत्र "  का आयोजन होता है, जिस में हमारे क्रिया-कलापों के साथ निकट से जुड़े विभिन्न चित्ताकर्षक विषयों पर 'व्याख्यान और प्रश्नोत्तरी' के कार्यक्रम को बहुधा प्रतिष्ठित शिक्षा विद सम्बोधित करते हैं. 
 इस अवसर पर प्रत्येक केंद्र के सक्रिय सदस्यों तथा कार्यकर्ताओं को- अपनी चरित्र-निर्माणकारी धारणाओं के सम्बन्ध में उनके तद्रूप दुसरे केन्द्रों के कर्मियों के साथ, आदान-प्रदान करने का सुयोग भी प्राप्त होता है.  
" सर्व भारतीय युवा प्रशिक्षण शिविर "
" THE ANNUAL ALL INDIA YOUTH TRAINING CAMP "
महामण्डल का सबसे बड़ा संयुक्त कार्यक्रम इसका वार्षिक युवा प्रशिक्षण शिविर है, जो प्रशिक्षनार्थियों के '3H's- Hand (body शरीर ), Head (mind मन ) एवं Heart (soul आत्मा ) के प्रशिक्षण के मध्य एक संतुलन स्थापित करने का प्रयास करता है. इसके सार्वजानिक कार्यक्रमों में ' मनः संयोग ' (मन को एकाग्रचित्त करना ), शारीरिक प्रशिक्षण, नेतृत्व-क्षमता विकास प्रशिक्षण, चरित्र-निर्माण की व्यावहारिक पद्धति, परेड, प्राथमिक-चिकित्सा प्रशिक्षण, खेल-कूद, शिशु-विभाग ' विवेक-वाहिनी ' को  प्रारंभ करने का प्रशिक्षण, 
 नियमित प्रार्थना एवं संगीत प्रशिक्षण के साथ साथ भारत की सांस्कृतिक विरासत (cultural heritage of India) के ऊपर संभाषण, समाज विज्ञान, सदाचार, स्वास्थ्य आदि विषयों के साथ साथ स्वामी विवेकानन्द की शिक्षाओं को समाविष्ट किया जाता है.यह शिविर अपने सहभागियों को  आत्माभिव्यक्ति के लिए पर्याप्त कार्यक्षेत्र भी उपलब्ध कराता है. 
" लोकल (स्थानिक) युवा प्रशिक्षण शिविर "
(Local Youth Training Camps)
विभिन्न राज्यों के विभिन्न केन्द्रों के द्वारा जिला-स्तरीय शिविर, राज्य-स्तरीय शिविर, अंतर्राज्य -स्तरीय शिविर भी लगभग प्रतिवर्ष आयोजित किये जाते हैं. संगठनकर्ताओं के लिए, अलग से विशेष प्रशिक्षण शिविर भी आयोजित किये जाते हैं. 

महामण्डल का द्विभाषी मुखपत्र :
" THE VIVEK- JIVAN "
महामण्डल अपने देश के युवाओं को ' विवेकपूर्ण- जीवन ' में दीक्षित करने, विभिन्न केन्द्रों द्वारा संचालित गतिविधियों में समन्वय स्थापित करने, तथा स्वामी विवेकानन्द द्वारा प्रदत्त भारत-पुनर्निर्माण सूत्र - " Be and Make " का देश-व्यापी प्रचार-प्रसार करने के लिए, अपने रजिस्टर्ड ऑफिस से, एक द्विभाषी (अंग्रेजी और बंगला ) मासिक मुखपत्र " VIVEK-JIVAN " प्रकाशित करता है. इस मासिक पत्रिका के प्रकाशक एवं सम्पादक इस संस्था के अध्यक्ष श्री नवनिहरण मुखोपाध्याय हैं, तथा उन्हीं के द्वारा इसे 'विवेकानन्द मुद्रणालय ' चकदह, नदिया से मुद्रित भी किया जाता है, श्री अरुणाभ सेनगुप्ता इसके उपसम्पादक हैं.
देश के हिन्दी भाषी क्षेत्र के युवाओं को 'विवेक-पूर्ण जीवन ' में दीक्षित करने के उद्देश्य से, महामण्डल अपने  द्विभाषी मासिक मुखपत्र :" Vivek- Jivan  " का हिन्दी संस्करण त्रैमासिक पत्रिका के रूप में 
 " विवेक अंजन " का  प्रकाशन Jhumritelaiya Vivekananda Yuva Mahamandal, Tara Niketan, Bishunpur Road, P.O. Jhumritelaiya, Dist: Koderma, PIN: 825409  से कर रहा है. 
जिसका वार्षिक सदस्यता शुल्क ५०/= रुपया तथा एक प्रति का मूल्य १५/= रुपया है.


प्रकाशन 
महामण्डल जिन सिद्धांतों को उपयोगी समझता है, उनके ऊपर विभिन्न भाषाओँ (-हिन्दी, अंग्रेजी, बंगला, उड़िया, तेलगु, आदि ) में पुस्तिकाओं का प्रकाशन भी करता है.
हिन्दी में प्रकाशित पुस्तिकाओं की सूचि :
१.एक युवा आन्दोलन......१५/=
२. मनः संयोग ....७/=
३. जीवन-गठन ...७/=
४. चरित्र गठन...७/=
५.चरित्र के गुण ....७/=
६. नेतृत्व की अवधारणा तथा गुण- १५/=
७. अखिल भारत विवेकानन्द युवा महामण्डल का उद्देश्य एवं कार्य...२/=
८. चमत्कार जो आपकी आज्ञां का पालन करेगा....१/=
९. विवेकानन्द और युवा आन्दोलन .....प्रेस में.
१०. चरित्र-निर्माण कैसे करें ?....प्रेस में.
११. परिप्रश्नेन .....१२/=
महामण्डल ने युवाओं के अभिरुचि को ध्यान में रखते हुए, विभिन्न भाषाओँ में अभी तक १५० से अधिक पुस्तक-पुस्तिकाओं का प्रकाशन किया है.

The Mahamandal has so far published more than 150 books and booklets in different languages on subjects which may interest the youth.







 

बुधवार, 15 जून 2011

" झुमरीतिलैया विवेकानन्द युवा महामण्डल वर्ष (२०१०-२०११) के सचिव का वार्षिक प्रतिवेदन "

आज भारत में भ्रष्टाचार की विकराल समस्या से निबटने के लिए; एक ओर जहाँ  ' सरकार और सिविल सोसायटी (सभ्य-समाज के सदस्य) ' द्वारा  " लोकपाल बिल " लाने का प्रयास किया जा रहा है, वहीँ दूसरी ओर बाबा रामदेव भी " सत्ता " में नहीं, बल्कि " व्यवस्था (System) " में परिवर्तन लाकर भ्रष्टाचार मिटाने का प्रस्ताव जनमानस के समक्ष रख रहे हैं. "
  किन्तु सिस्टम को चलाता तो ' मनुष्य ' ही है, अतः मनुष्य (के चारित्रिक गुणों) में परिवर्तन लाना हमारा सबसे पहला कर्तव्य है "- स्वामी विवेकानन्द द्वारा दिए गए इस परामर्श के ऊपर शायद बाबा रामदेव  ने विशेष ध्यान नहीं दिया; इसीलिए व्यक्ति में परिवर्तन लाने का प्राथमिक-कार्य (व्यक्ति की चारित्रिक गुणवत्ता में परिवर्तन ) करना छोड़ कर  कानून में परिवर्तन हेतु सरकार के ऊपर दबाव बनाने के लिए अनशन पर बैठ गए, जिसका परिणाम क्या हुआ- हम सभी लोगों ने उसका " लाइव टेलीकास्ट " देखा है.  वास्तव में शिक्षा का उद्देश्य अच्छा  " मनुष्य " बनाना है। लेकिन न तो कोई" मनुष्य " बनना चाहता है न कोई बनाना. इसीलिए स्वामी विवेकानन्द द्वारा प्रदत्त एक दम सरल, भारत-पुनर्निर्माण सूत्र " Be and Make "  को सुनने समझने के लिए कोई तैयार नहीं है।
 आजादी के तुरत बाद ही हमारे देश के निति-निर्धारकों को स्वामी विवेकानन्द के परामर्श- " पहले मनुष्य निर्माण करो ! " पर ध्यान देते हुए
 - " चरित्र-निर्माणकारी एवं मनुष्य-निर्माणकारी शिक्षा पद्धति "  को देश-व्यापी स्तर पर इस प्रकार लागु कराना चाहिए था ताकि, आजादी के कम से कम २० वर्षों बाद (सन १९६७ तक ) देश की व्यवस्था संचालन में सुयोग्य चरित्रवान, ईमानदार एवं   देशभक्त  नागरिकों का निर्माण करना सम्भव हो जाता. 
किन्तु पाश्चात्य शिक्षा और भौतिकवादी संस्कृति के चकाचौंध से प्रभावित होकर हमने पहले २० वर्षीय ' मनुष्य-निर्माणकारी योजना ' न बना कर, हृदय का उदारीकण न करके आर्थिक-उदारीकरण पर आधारित पंच-वर्षीय योजनाओं पर ही अपना पूरा ध्यान केन्द्रित रखा. 
इसके दुष्परिणाम को स्पष्ट करते हुए, देश के एक युवा प्रधानमंत्री स्वर्गीय राजीव गाँधी ने पार्लियामेन्ट के भीतर और बाहर भी कहा था कि इन पंच-वर्षीय योजनाओं पर जितना धन हम केंद्र से आवंटित करते हैं उसका मात्र १५% धन ही उस योजना पर खर्च हो पाता है, ८५ % धन तो रस्ते में ही पाइप-लाइन में सूख जाता है.   
 हमलोगों को यह स्मरण रखना चाहिए था कि, अपने ' क्षुद्र अहं ' की तुष्टि एवं घोर स्वार्थपरता के कारण ही ३० करोड़ की जनसंख्या के देश को मात्र ४ करोड़ की जनसँख्या वाले अंग्रेजों ने २०० वर्षों तक गुलाम बना कर रखा था. पर हमने सत्ता के नशे में चूर होकर इतिहास के इस सबक को भुला दिया. एवं बचपन से मात्र २० वर्षों तक धैर्य के साथ चरित्रवान, निःस्वार्थी मनुष्य बनने और बनाने का परिशिक्षण देकर  मौलिक रूप से व्यक्ति के चारित्रिक गुणों में बदलाव लाने के बजाय अंग्रेजों की ही पद्धति को अपनाया गया, जिनका उद्देश्य ही समाज को बांटकर राज्य करना था।
मुश्किल यह है कि - तथाकथित सिविल सोसायटी के लोग भी स्वामी विवेकानन्द दिए गए परामर्श - " पहले मनुष्य निर्माण करो ! ";  पर ध्यान न देकर, मनुष्य की चारित्रिक गुणवत्ता में बदलाव लाये बिना ही व्यवस्था में बदलाव चाहते हैं, जो कि असम्भव है.
शिक्षा का मुख्य विषय 'मनुष्य-निर्माण होना चाहिये जबकि लोग समाज का निर्माण करने की योजना बनाते हैं और उनके लिये व्यक्ति निर्माण उनके लिये गौण हो जाता है।  चाहे बाबा रामदेव हों या सिविल सोसायटी के लोग हर कोई (जबरन -आमरण अनशन की धमकी देकर ) अपना विचार लादना चाहता है पर स्वामी विवेकानन्द द्वारा प्रदत्त भारत-पुनर्निर्माण सूत्र " Be and Make "  को सुनने समझने के लिए कोई तैयार नहीं है।
 इस वस्तु स्थिति को स्पष्ट करने के लिए स्वामी विवेकानन्द ने एक कहानी कही थी,- जो इस प्रकार है :-  
" अपने मत को अक्षुण रखने में प्रत्येक मनुष्य का एक विशेष आग्रह देखा जाता है... एक समय एक छोटे राज्य को जीतने के लिये एक दूसरे राजा ने दल-बल के साथ चढ़ाई की| शत्रुओं के हाथ से बचाओ कैसे हो, इस सम्बन्ध में विचार करने के लिये उस राज्य में एक बड़ी सभा बुलायी गयी|
 सभा में इंजीनियर, बढ़ई, चमार, लोहार, वकील, पुरोहित आदि सभी उपस्थित थे |इंजीनियर ने कहा- 'शहर के चारों ओर एक बहुत बड़ी खाई खुदवाइये|' बढ़ई बोला- ' काठ की एक दीवाल खड़ी कर ड़ी जाय|' 
चमार बोला- ' चमड़े के समान मजबूत और कोई चीज नहीं है, चमड़े की ही दीवाल खड़ी की जाय|'लोहार बोला- ' इस सबकी कोई आवश्यकता नहीं है; लोहे की दीवाल सबसे अच्छी होगी; उसे भेदकर गोली य़ा गोला नहीं आ सकता|'
वकील बोले- ' कुछ भी करने की आवश्यकता नहीं है; हमारा राज्य लेने का शत्रु को कोई अधिकार नहीं है- यही एक बात शत्रु को तर्क-युक्ति द्वारा (या अश्रु गैस, लाठी चार्ज से ?)समझा दी जाय|' 
 पुरोहित बोले- ' तुम लोग तो पागल जैसे बकते हो|होम-याग करो, स्वस्त्यन करो, तुलसी दो, शत्रु कुछ भी नहीं कर सकता|'
इस प्रकार उन्होंने राज्य को बचाने का कोई उपाय निश्चित करने के बदले अपने अपने मत का पक्ष लेकर घोर तर्क-वितर्क आरम्भ कर दिया|यही है मनुष्य का स्वभाव !"
 मानव मन के एकतरफा (एकपक्षीय ) झुकाव के बारे में;स्वामी जी यह कथा सुन कर बोले, '..ऐसे लोगों को झक्की कहते हैं|
हमसभी लोगों में इस प्रकार का कोई दुराग्रह य़ा झक्कीपन हुआ करता है. हमलोगों में उसे दबा रखने की क्षमता है. पागल में वह नहीं है. हमलोगों में और पागलों में भेद केवल इतना ही है|
 रोग, शोक, अहंकार, काम, क्रोध, ईर्ष्या य़ा अन्य कोई अत्याचार अथवा अनाचार से दुर्बल होकर, मनुष्य के अपने इस संयम को खो बैठने से ही सारी गड़बड़ी उत्पन्न हो जाती है!
मन के आवेग को वह फिर संभाल नहीं पाता. हमलोग तब कहते हैं, 'यह' पागल हो गया है. बस इतना ही ! " (१०:३२७,३२८) 
 स्वामी विवेकानन्द ने कहा था, " सभी सामाजिक और राजनीतिक व्यवस्थाएं (System ) मनुष्यों के भलेपन (चरित्र) पर टिकती हैं| कोई राष्ट्र इसलिए महान और अच्छा नहीं होता कि उसकी Parliament (संसद) ने यह य़ा वह (लोकपाल Bill) पास कर दिया है, वरन इसलिये होता है कि उसके नागरिक महान और अच्छे होते हैं|" (४:२३४) 
 " मनुष्य केवल मनुष्य भर चाहिये| बाकी सब कुछ अपने आप हो जायेगा| आवश्यकता है वीर्यवान, तेजस्वि, श्रद्धासमपन्न और दृढविश्वासी निष्कपट नवयुवकों की| ऐसे सौ मिल जाएँ, तो संसार का कायाकल्प हो जाय |"(५:११८)  
" सारी शिक्षा तथा समस्त प्रशिक्षण का एकमेव उद्देश्य मनुष्य का निर्माण होना चाहिये. परन्तु हम यह न कर केवल बहिरंग पर ही पानी चढाने का सदा प्रयत्न किया करते हैं.जहाँ व्यक्तित्व का ही आभाव है, वहाँ सिर्फ बहिरंग पर पानी चढाने का प्रयत्न करने से क्या लाभ? 
सारी शिक्षा का ध्येय है- मनुष्य का विकास! वह " मनुष्य " जो अपना प्रभाव सब पर डालता है, जो अपने संगियों पर जादू सा कर देता है, शक्ति का एक महान केन्द्र है, और जब वह मनुष्य तैयार हो जाता है, वह जो चाहे कर सकता है| यह व्यक्तित्व जिस वस्तु पर अपना प्रभाव डालता है, उसी वस्तु को कार्यशील बना देता है ! " (४:१७२)
"आत्मसंयम का अभ्यास करने से महान इच्छा-शक्ति का प्रादुर्भाव होता है; वह बुद्ध य़ा ईसा जैसे चरित्र का निर्माण करता है| मूर्खों को इस रहस्य का पता नहीं रहता, परन्तु फिर भी वे मनुष्य जाती पर शासन करने के इच्छुक रहते हैं!" (३:९) 
" मनुष्य के ' मन ' को प्रशिक्षित करने से ही समस्या का समाधान मिल सकता है. कोई कानून किसी व्यक्ति से वह कार्य नहीं करा सकता है, जिसे वह करना नहीं चाहता है.अगर मनुष्य अच्छा बनना चाहेगा, तभी वह अच्छा बन पायेगा.सम्पूर्ण विधान एवं विधान के पण्डित मिलकर भी उसे अच्छा नहीं बना सकते. सर्वशक्ति सम्पन्न तो कहेगा ही, ' मैं किसी की परवाह नहीं करता !' हम सब अच्छे (चरित्रवान-मनुष्य ) बनें, यही समस्या का हल है.(४:१५७)
  " ...यह तो हमें मान ही लेना चाहिये कि कानून,सरकार, राजनीति ऐसी अवस्थाएं हैं, जो किसी प्रकार अन्तिम नहीं हैं. उनसे परे एक एक ध्येय है, चरित्रवान-  मनुष्य,जिसके लिए किसी कानून की  आवश्यकता नहीं है...प्रभु ईसामसीह ने भी कहा था- ' विधि-नियम उन्नति का मूल नहीं हैं, केवल नैतिकता और पवित्रता ही शक्ति है|"(४:२३४)
आज भारत के गाँव गाँव तक, अखिल भारत विवेकाननद युवा महामण्डल के निर्देशन में संचालित 'विवेकानन्द युवा पाठचक्र' तथा 
' युवा महामण्डल ' रूपी " मनुष्य-निर्माणकारी शिक्षा केन्द्रों " को फैला देने की घोर आवश्यकता है, जहाँ स्वामी विवेकानन्द के सपनों के अनुरूप लाखों की संख्या में ऐसे युवाओं को ढाला जा सके - " जिसका विकास समन्वित रूप (3-H) से हुआ हो...ह्रदय से विशाल, मन से उच्च, कर्म में महान !"
 झुमरीतिलैया विवेकानन्द युवा महामण्डल विगत २६ वर्षों से स्वामीजी द्वारा सौंपे गए इसी कार्य को धरातल पर रूपायित करने के प्रयास में लगा हुआ है. इस धीमी-गति के मनुष्य-निर्माणकारी आन्दोलन के पहियों से अपना कन्धा लगा देने के प्रयास में इस वर्ष (२०११-१२) की निम्न-लिखित योजनाओं में स्थानीय युवाओं को सहयोग करने का आह्वान किया जा रहा है:-

आशा है, इस वर्ष हमलोग अपने सम्मिलित प्रयास से उपरोक्त समस्त योजनाओं को अवश्य क्रियान्वित कर लेंगे.
क्योंकि स्वामी विवेकानन्द हमलोगों से ऐसी ही अपेक्षा रखते हैं. वे कहते थे-   " मेरा विश्वास युवा पीढ़ी में, नयी पीढ़ी में है; मेरे कार्यकर्ता उनमे से आयेंगे|सिंहों की भाँति वे समस्त समस्या का हल निकालेंगे|...वे एक केन्द्र से दूसरे केन्द्र में उस समय तक फैलेंगे, जब तक कि हम सम्पूर्ण भारत पर नहीं छा जायेंगे !" (४:२६१) 
केवल ३९ वर्ष तक के मनुष्यों को ही ' युवा ' नहीं कहते हैं, हमारे लिए युवा आदर्श के प्रतिक पूज्य नवनीदा तथा महामण्डल के अन्य वरिष्ट भ्रातागण हैं; जो विगत ४४ वर्षों से इस आन्दोलन को आगे बढ़ाते जा रहे हैं, आज इनमें से अधिकांश की आयु 60 plus हो गयी है, फिर भी युवाओं के जैसा भरपूर उत्साह से इस आन्दोलन को दिशा निर्देश दे रहे हैं.
किसी चुनौती को सामने देख कर जो व्यक्ति उसे स्वीकार करने के लिए ठीक उसी प्रकार कटिबद्ध हो जाता हो, जिस प्रकार शिव-धनुष तोड़ने के प्रसंग में राजा-जनक की निराशा उत्पन्न करने वाली टिप्पणी को सुनकर श्री लक्ष्मणजी क्षण भर में धनुष तोड़ने को कटिबद्ध हो गए थे; वैसा ही साहस और उत्साह जिसमे है, उसको ही   युवा समझना चाहिए, चाहे उसकी उम्र जो कुछ भी हो.  किसी ३५ साल के युवा के मुख से ऐसी वाणी निकले कि, मैं भला क्या कर सकता हूँ अब तो प्रलय ही होने वाला है, उसे ३५ साल का बूढ़ा ही समझना चाहिए. 
उस प्रसंग की एक बानगी देखिये, राजा जनक निराश हो कर जब कहते हैं-

* अब जनि कोउ भाखे भट मानी। बीर बिहीन मही मैं जानी॥
तजहु आस निज निज गृह जाहू। लिखा न बिधि बैदेहि बिबाहू॥2॥
भावार्थ:-अब कोई वीरता का अभिमानी नाराज न हो। मैंने जान लिया, पृथ्वी वीरों से खाली हो गई। अब आशा छोड़कर अपने-अपने घर जाओ, ब्रह्मा ने सीता का विवाह लिखा ही नहीं॥2॥
को सुनकर लक्ष्मणजी का उत्तर देखिये-
* रघुबंसिन्ह महुँ जहँ कोउ होई। तेहिं समाज अस कहइ न कोई॥
कही जनक जसि अनुचित बानी। बिद्यमान रघुकुल मनि जानी॥1॥
भावार्थ:-रघुवंशियों में कोई भी जहाँ होता है, उस समाज में ऐसे वचन कोई नहीं कहता, जैसे अनुचित वचन रघुकुल शिरोमणि श्री रामजी को उपस्थित जानते हुए भी जनकजी ने कहे हैं॥1॥
* सुनहु भानुकुल पंकज भानू। कहउँ सुभाउ न कछु अभिमानू॥
जौं तुम्हारि अनुसासन पावौं। कंदुक इव ब्रह्मांड उठावौं॥2॥
भावार्थ:-हे सूर्य कुल रूपी कमल के सूर्य! सुनिए, मैं स्वभाव ही से कहता हूँ, कुछ अभिमान करके नहीं, यदि आपकी आज्ञा पाऊँ, तो मैं ब्रह्माण्ड को गेंद की तरह उठा लूँ॥2॥ 
*काचे घट जिमि डारौं फोरी। सकउँ मेरु मूलक जिमि तोरी॥
तव प्रताप महिमा भगवाना। को बापुरो पिनाक पुराना॥3॥
भावार्थ:-और उसे कच्चे घड़े की तरह फोड़ डालूँ। मैं सुमेरु पर्वत को मूली की तरह तोड़ सकता हूँ, हे भगवन्‌! आपके प्रताप की महिमा से यह बेचारा पुराना धनुष तो कौन चीज है॥3॥
* बिस्वामित्र समय सुभ जानी। बोले अति सनेहमय बानी॥
उठहु राम भंजहु भवचापा। मेटहु तात जनक परितापा॥3
भावार्थ:-विश्वामित्रजी शुभ समय जानकर अत्यन्त प्रेमभरी वाणी बोले- हे राम! उठो, शिवजी का धनुष तोड़ो और हे तात! जनक का संताप मिटाओ॥3॥ 
ठीक श्री लक्ष्मणजी की वाणी में चिर-युवा स्वामी विवेकानन्द भी हुँकार करते हैं- 
" ऐसा न कहो कि मनुष्य पापी है| उसे बताओ की तू ब्रह्म है| यदि कोई शैतान हो, तो भी हमारा कर्तव्य यही है कि हम ब्रह्म का ही स्मरण करें, शैतान का नहीं|...हम यही कहें - 'हम हैं ', 'ईश्वर हैं और हम ईश्वर हैं|
' शिवोहम शिवोहम कहते हुए आगे बढ़ते चलो|जड़ (शरीर) नहीं, वरन चैतन्य (आत्मा) हमारा लक्ष्य है! नाम-रूप वाले सभी पदार्थ नाम-रूप हीन सत्ता (अस्ति,भाति,प्रिय) के अधीन हैं| इसी सनातन सत्य की शिक्षा श्रुति (गीता -उपनिषद आदि) दे रही है! प्रकाश को ले आओ, अन्धकार आप ही आप नष्ट हो जायेगा|वेदान्त -केसरी गर्जना करे, सियार अपने अपने बिलों में छिप जायेंगे!..यदि कोठरी में अन्धकार है, तो सदा अन्धकार का अनुभव करते रहने और अन्धकार अन्धकार चिल्लाते रहने से तो वह दूर नहीं  होगा, बल्कि प्रकाश को भीतर ले आओ, तब वह दूर हो जायेगा|
..आत्मा की शक्ति का विकास करो और सारे भारत के विस्तृत क्षेत्र में उसे ढाल दो, और जिस स्थिति की आवश्यकता है, वह आप ही आप प्राप्त हो जाएगी|अपने आभ्यन्तरिक ब्रह्मभाव को प्रकट करो और उसके चारों ओर सब कुछ समन्वित हो कर विन्यस्त हो जायेगा|
वेदों में बताये हुए- 'इन्द्र और विरोचन ' के उदाहरण को स्मरण रखो|दोनों को ही अपने ब्रह्मत्व का बोध कराया गया था, परन्तु असुर विरोचन अपनी देह को ही ब्रह्म मान बैठा|इन्द्र तो देवता थे, वे समझ गये कि वास्तव में आत्मा ही ब्रह्म है!!
तुम तो इन्द्र की सन्तान हो! तुम देवताओं के वंशज हो! जड़ पदार्थ तुम्हारा ईश्वर कदापि नहीं हो सकता; शरीर तुम्हारा ईश्वर कभी नहीं हो सकता!
भारत का पुनरुत्थान होगा, पर वह जड़ की शक्ति से नहीं, वरन आत्मा की शक्ति द्वारा| वह उत्थान विनाश की ध्वजा लेकर नहीं, वरन शान्ति और प्रेम की ध्वजा से-...ऐसा मत कहो कि हम दुर्बल हैं, कमजोर हैं|श्री रामकृष्ण के चरणों के दैवी स्पर्श से जिनका अभ्युदय हुआ है, उन मुट्ठी भर नवयुवकों की ओर देखो !
 उन्होंने उनके उपदेशों का प्रचार आसाम से सिंध तक और हिमालय से कन्याकुमारी तक कर डाला|
..उनपर कितने ही अत्याचार किये गये, पुलिस ने उनका पीछा किया, वे जेल में डाले गये, पर अन्त में जब सरकार को उनकी निर्दोषिता का निश्चय हो गया, तब वे मुक्त कर दिये गये!
अतएव, अपने अन्तःस्थित ब्रह्म को जगाओ, जो तुम्हें क्षुधा-तृष्णा, शीत-उष्ण सहन करने में समर्थ बना देगा |..आत्मा की इस अनन्त शक्ति का प्रयोग जड़ वस्तु पर होने से भौतिक उन्नति होती है, विचार पर होने से बुद्धि का विकास होता है और अपने ही पर होने से मनुष्य भी ईश्वर-तुल्य बन जाता है!
पहले हमें ईश्वर बन लेने दो! तत्पश्चात दूसरों को ईश्वर-तुल्य-
' मनुष्य ' बनाने में सहायता देंगे| बनो और बनाओ - Be and Make !यही हमारा मूल मंत्र रहे! " (९:३७९-३८०) 
" आवश्यकता है संघठन करने की शक्ति की, मेरी बात समझे ?क्या तुममें से किसी में यह कार्य करने की बुद्धि है ?यदि है तो तुम कर सकते हो|...हमें कुछ चेले (निष्ठावान आज्ञाकारी कर्मी ) भी  चाहिये- वीर युवक, समझे ? दिमाग में तेज और हिम्मत के पूरे, यम का सामना करने वाले, तैर कर समुद्र पार करने को तैयार - समझे? हमें ऐसे सैंकड़ो चाहिए- स्त्री और पुरुष, दोनों|जी -जान से इसीके लिये प्रयत्न करो !"(३:३५४)
" हे नर-नारियों ! उठो, आत्मा के सम्बन्ध में जाग्रत होओ, सत्य में विश्वास करने का साहस करो| संसार को कोई सौ (१००) साहसी नर-नारियों की आवश्यकता है ! अपने में साहस लाओ, जो सत्य को जान सके, जो जीवन में निहित सत्य को दिखा सके, जो मृत्यु से न डरे, प्रत्युत उसका स्वागत करे, जो मनुष्य को यह ज्ञान करा दे कि वह आत्मा है, और सारे जगत में ऐसी कोई भी वस्तु नहीं जो उसका विनाश कर सके|" (२:१८) 

" अपनी बहादुरी तो दिखाओ! प्रिय भाई, मुक्ति न मिली तो न सही, दो-चार बार नरक ही जाना पड़े तो हानि ही क्या है ? क्या भर्तृहरि का यह कथन असत्य है- 
मनसि  वचसि काये पुन्यपीयूषपूर्णः 
त्रिभुवनं-उपकारश्रेनिभिः प्रीयामानः  !
परगुणपरमाणुम पर्वतीकृत्य केचित 
निजहृदि विकसन्तः सन्ति सन्तः क्रियन्तः ||   
ऐसे साधु (सज्जन पुरुष ) कितने हैं, जिनके कार्य मन तथा वाणी पुण्यरूप  अमृत से परिपूर्ण  हैं और जो विभिन्न उपकारों के द्वारा त्रिभुवन की प्रीति सम्पादन कर दूसरों के परमाणु तुल्य अर्थात अत्यन्त स्वल्प गुण को भी पर्वतप्रमाण बढ़ा कर दूसरों से कहते रहते हैं- और इस प्रकार अपने हृदयों को विशाल बनाते रहते हैं!(' विवेकानन्द - राष्ट्र को आह्वान ' पुस्तिका का पृष्ठ २७)    

हमे तो कर्म ही करना है, फल अपने आप होता रहेगा|यदि कोई सामाजिक बन्धन तुम्हारे ईश्वर-प्राप्ति के मार्ग में बाधक है, तो आत्मशक्ति के सामने अपने आप ही वह टूट जायेगा|
भविष्य मुझे दीखता नहीं और मैं उसे देखने की चिन्ता भी नहीं करता| परन्तु मैं अपने सामने वह एक सजीव दृश्य तो अवश्य देख रहा हूँ कि हमारी यह प्राचीन भारत माता पुनः एक बार जाग्रत होकर अपने सिंहासन पर नवयौवनपूर्ण और पूर्व कि अपेक्षा अधिक महा महिमान्वित होकर विराजी है| शान्ति और आशीर्वाद के वचनों के साथ सारे संसार में उसके नाम की घोषणा कर दो ! सेवा और प्रेम में सदा तुम्हारा ,
विवेकानन्द (९:३८१)
आइये वर्ष (२०११-२०१२) में स्वामीजी के इस आह्वान का हमलोग एक स्वर से प्रतिउत्तर दें !