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शुक्रवार, 27 अगस्त 2010

[50] युवाओं के समक्ष सबसे बड़ी चुनौती:सम्पूर्ण पृथ्वी को आर्य बनाओ !

' सम्पूर्ण पृथ्वी को आर्य बनाओ ! ' आर्य बनाओ ' कहने का तात्पर्य क्या है ? इसीको स्वामीजी कहते हैं- पशु मानव को देव मानव में उन्नत करो ! ' कृण्वन्तो विश्वं आर्यं !' -- वैश्वीकरण के इस महत आदर्श का जन्म भारतवर्ष में ही हुआ था। भारतवर्ष के वेदों का जयघोष था- सम्पूर्ण पृथ्वी को आर्य बनाओ ! ' सुसंस्कृत बनाओ.अर्थात उनके जीवन और आचरण में शुभ संस्कारों को भरो. भारतवर्ष का यही संदेष था. सम्पूर्ण पृथ्वी के मनुष्यों को सुसंस्कृत बनाना होगा, उन्हें सभ्य बनाना होगा.' 
सुसंस्कृत ' करो अर्थात - ' पृथ्वी के समस्त मनुष्यों के मन पर शुभ-संस्कारों की छाप डाल कर उन्हें एक सभ्य मनुष्य में परिणत करो ! 'सम्पूर्ण पृथ्वी पर शुभ-संस्कारों की छाप डालना भारत का ही उत्तरदायित्व था.किन्तु आज क्या हो रहा है ? आज अर्थनैतिक वैश्वीकरण (इकनोमिक ग्लोबलाइजेशन) हो रहा है. इसके माध्यम से हो क्या रहा है ? 'आर्य' बनने के बजाय धनी लोग और भी ज्यादा धनी बन रहे हैं.
स्वामीजी ने अमेरिका के पार्लियामेंट ऑफ़ रिलिजन में भाषण दिया था. हमलोग कहते नहीं अघाते कि, स्वामीजी ने भाषण का प्रारम्भ हठात - " सिस्टर्स ऐंड ब्रदर्स ऑफ़ अमेरिका "  कह कर किया जिसे सुनकर, अमेरिका मतवाला हो उठा था. किन्तु उस स्थान पर भाषण देने के पहले भी स्वामीजी और भी कई भाषण दे चुके थे. उनमे से उनका एक भाषण अत्यन्त महत्वपूर्ण है.एकबार अमेरिका के
'सोशल साइंस एसोसिएशन ' में उनको भाषण देने के लिये कहा गया था. वहाँ पर इकोनॉमिक्स -के उपर चर्चा हो रही थी. उनको मोनेटरी इकोनॉमिक्स के विषय में भाषण देना था. किसी अर्थशास्त्री के लिये भी यह विषय अत्यन्त कठिन है. वहाँ पर स्वामीजी को इसी विषय पर बोलने के लिये कहा गया था, एवं स्वामीजी ने इस पर भाषण देते हुए कहा था-" दी यूज ऑफ़ सिल्वर इन इंडिया " - ' भारतवर्ष में चाँदी का व्यवहार |'  
उस समय वहाँ पर ' गोल्ड स्टैण्डर्ड , सिल्वर स्टैण्डर्ड ' को लेकर चर्चा चल रही थी. यह भाषण उन्होंने १८९३ ई० में दिया था. और अमेरिका के पार्लियामेंट में वर्ष १८९१ - १८९५ तक के लिये निर्वाचित एक सदस्य भी उसी सभा में उपस्थित थे जिन्होंने एक भाषण भी दिया था. वे उत्तर अमेरिका के एक छोटे से राज्य के प्रतिनिधि थे. वे एक नामी ' वक्ता ' थे. जिस प्रकार इंगलैंड के प्रसिद्ध वक्ता थे ' वार्क 'महोदय - एक विश्वविख्यात वक्ता थे, जिनके विख्यात भाषणों को कलकाता यूनीवर्सिटी में भी बहुत दिनों तक पढाया जाता था. उन्ही  के स्तर के एक वक्ता वहाँ भी थे जिनका नाम था ' ब्रायन '. वे उसी वक्ता के द्वारा कथित उक्ति को अपने भाषण में कोट करते हुए कहते हैं- " ब्रायन वाज़ राइट व्हेन हे सेड , दैट  दिस गोल्ड स्टैण्डर्ड इज मेकिंग दी पुअर पुअरर. दी रिच रिचर. "  - अर्थात ब्रायन ने बिल्कुल खरी बात कही थी कि-  बैंकिंग प्रणाली में स्वर्ण को मानक बना कर किसी देश की मुद्रा का मूल्य निर्धारित करने का कूफल यह हो रहा है कि, इसके द्वारा दरिद्र दिन पर दिन और ज्यादा दरिद्र होते जा रहे हैं और, जो पहले से धनी देश हैं वे और भी ज्यादा धनी हो रहे हैं | " आज भी क्या हो रहा है ? 
गरीब और भी गरीब बनते जा रहे हैं, बड़े आदमी और भी ज्यादा बड़े (धनी ) होते जा रहे हैं. यही तो है आज के ग्लोबलाइजेशन का फल! किन्तु हमारे देश एवं विदेश के यथेष्ट बड़े बड़े अर्थशास्त्री हैं जो इस प्रकार के ' वैश्वीकरण ' को पूरी तरह से गलत मानते हैं. किन्तु हमलोग उनकी चेतावनी की ओर थोड़ा भी ध्यान नहीं दे रहे हैं.
अभी हाल में ही वर्ष २००१ ई० में नोबेल प्राइज़ प्राप्त एक अर्थनीतिविद कलकाता आये थे. वे कैलिफोर्निया यूनिवर्सिटी में Economics के प्राध्यापक हैं. अभी हाल में ही कलकाता में एक  नया यूनिवर्सिटी स्थापित हुआ है- " West Bengal National University of Juridical Science . " वहाँ पर आयोजित एक सम्मेलन में भाषण देते हुए उन्होंने बतलाया है कि, यह जो वैश्वीकरण चला हुआ है, उसका कुपरिणाम क्या होगा ? " उसका सबसे बड़ा कुपरिणाम तो यही होगा कि गरीबों का (गरीब देशों का) पैसा बड़े लोगों (अमीर देशों ) के हाथ में चला जायेगा."  
आज के युग में (वेदान्ता के लिये उड़ीसा में जमीन लेने य़ा जमुना एक्सप्रेस वे के लिये यूपी में जमीन लेने के युग में ) साधारण मनुष्यों ( कर्ज की बोझ में दब कर आत्महत्या कर लेने वाले किसानों ) का स्थान कहाँ है ? साधारण मनुष्यों ( पिपली लाइव के ' नत्था ') की तरफ देखने की फुर्सत भी किसको है ? गरीबों की उन्नति के लिये बड़ी बड़ी योजनायें चलायी जा रहीं हैं. ('नरेगा' का नाम बदल कर ' मनरेगा ' कर दिया गया है !)
इसमें दावा तो है कि प्रत्येक गरीब को १०० दिनों के रोजगार की गारन्टी है ! पर कई जगह की रिपोर्ट है कि केवल पाँच दिनों का काम मिला है, उससे अधिक काम नहीं मिल सका. काम (रोजगार ) है कहाँ ? कौन देगा काम ? गरीबों के लिये राशन देने की व्यवस्था भी की जा रही है. BPL कार्ड पर मुफ्त राशन य़ा सस्ती दर पर राशन उपलब्ध कराने का दावा किया जाता है. पर उस तालिका में कितने गरीबों के नाम दर्ज हैं ? उनलोगों का राशन चुरा लिया जाता है, य़ा बरसात में भींग कर करोड़ो टन सरकारी अनाज सड़ जा रहे हैं, इन सबको कौन देख रहा है ?  
भ्रष्टाचार से देश भरा हुआ है, यह भ्रष्टाचार, बहुत दिनों से, भारतवर्ष के स्वाधीन होने के समय से ही चला आ रहा है, एवं पार्लियामेन्ट में तो यहाँ तक कह दिया गया है कि -  " जे खाने अनेक टाका खरच हय सेखाने एकटू चुरी हयेई थाके | "
 " - जहाँ पर ( जिस पंच वर्षीय योजनाओं में ) करोड़ो- करोड़ रुपये खर्च होते हैं, वहाँ थोड़ी बहुत चोरी (य़ा घपला ) तो चलता ही रहता है ! "   
  जो लोग देश के कर्णधारहैं, जिनके हाथों में देश की बागडोर है, जो लोग प्रधान सेवक हैं देश के - ' वही ' लोग यदि (भ्रष्टाचार को बिल्कुल हलके से लें और ) यह कहना शुरू कर दें कि-" चुरी एकटू हयई थाके !" " - थोड़ी बहुत चोरी तो होती ही रहती है !"
तो देश से भ्रष्टाचार दूर कैसे होगा ? क्या उपाय है इस भ्रष्टाचार को समूल नष्ट करने का ? यदि मनुष्य का चरित्र गठन हो जाये तो वह भ्रष्ट-आचरण (भ्रष्टाचार) कभी कर ही नहीं सकता. मनुष्य यदि ' मनुष्य ' ( T के शब्दों में जिसको अपने मान का होश हो- मानहुश !) बन जाये तो भर्ष्टाचार स्वतः मिट जायेगा. मनुष्य अभी तक मनुष्य नहीं बन सका है, इसी लिये तो भ्रष्टाचार चल रहा है.
(N -दादा कहते हैं- बाकी सब पशु पक्षी पूर्ण हो कर आये हैं, उनको कुछ बनना नहीं पड़ता है- स्कूल जाना नहीं पड़ता है, किसी गुरु के पास जाना नहीं पड़ता है. पर मनुष्य अधुरा है उसको मनुष्य बनने की साधना - मन को अपने वश में रखने साधना , " मनः संयोग " ही सीखना पड़ता है. जो व्यक्ति मन को वश में करके मनुष्य बन जाने की चेष्टा नहीं करता वह नीचे गिर कर केवल पशु ही नहीं राक्षस बन जाता है ! )
मनुष्य यदि " मनुष्य " बन जाता तो दुर्नीति (बेईमानी) कहीं दिखाई भी नहीं पडती ! स्वाधीन भारत की शिक्षानीति में - " मनुष्य " बनने (चरित्रवान मनुष्य बनने की शिक्षा ) की शिक्षा देने का प्रयास कभी किया ही नहीं गया है. इसीलिये स्वामीजी ने कहा था - 

" तोदेर देशे मानूष कोथाय रे ? "
 " - तुमलोगों के देश में मनुष्य कहलाने योग्य मनुष्य कहाँ हैं रे ? "मनुष्यों का निर्माण करने से क्या होगा ? उन सज्जन ने स्वामीजी से यही जानना चाह था, की क्या करने क्या हो सकता है ? उन्होंने उत्तर में कहा था-"मेक मैन फर्स्ट"- पहले मनुष्यों का निर्माण करो ! "
क्या मनुष्यों का निर्माण कर लेने से सब कुछ ठीक हो जायेगा ? हाँ, जब यथेष्ट संख्यक मनुष्य निर्मित हो जायेंगे तो सेष सब कुछ अपने आप हो जायेगा ! क्योंकि हमारे देश आभाव केवल चरित्रवान मनुष्यों का ही है. ( बाकी तो शश्यश्यामला रत्नगर्भा भारत भूमि पहले से ही है !) स्वामीजी ने यह बात १००  वर्ष पहले कहा था, वह आज तक नहीं किया गया है. आज तक सरकारी प्रयास के द्वारा देशव्यापी स्तर पर " मनुष्य निर्माण करने की कोई पञ्च वर्षीय योजना ",  नहीं ही बनाई जा सकी है ! 
विश्वविद्यालय की तो देश में भरमार है, अभी भारतवर्ष में ३५० विश्वविद्यालय हैं, और नये नये खुलते भी जा रहे हैं. इतना ही नहीं विदेश के विश्वविद्यालय भारत में अपनी शाखायें खोल रहे हैं. अपने देश के विश्वविद्यालय को दूसरे देशो में ले जाने का प्रयास चल रहा है. तर्क है कि इस प्रकार करने से ' विद्या ' का आदान प्रदान होगा. कौन सी ' विद्या ' ली और दी जाएगी ? 
" अर्थकरी- विद्या " इस विद्या में मनुष्य के द्वारा ' मनुष्यत्व ' अर्जित करने की ओर कोई ध्यान नहीं रखा जाता है.इसमें बस यही सिखया जाता है कि किस उपाय से और भी अधिक धन उपार्जित किया जा सकता है ? 
विश्व को  इस अवस्था से (आर्थिक वैश्वीकरण के कुपरिणाम से ) यदि कोई विचारधारा रक्षा कर सकती है, तो वह केवल स्वामी विवेकानन्द की विचारधारा ही है ! स्वामीजी की विचारधारा कहने का अर्थ श्री रामकृष्ण परमहंस देव ( ठाकुर ) की विचारधारा ही है, और ठाकुर की विचारधारा का अर्थ ही है श्री श्री माँ सारदा देवी की विचारधारा ! इन तीनों में एक ही भाव का मिलन है, पूर्ण स्वीकृति है ! 
शायद इसीलिये मुझ से कुछ दिनों पहले एक स्थान पर, अर्थात महामण्डल चलते हुए बहुत वर्ष बीत जाने के बाद, किसी जगह यह प्रश्न पूछा गया कि, इस महामण्डल कि स्थापना किस प्रकार हुई ? प्रश्न को सुनने के साथ ही साथ मेरे मन में जो विचार उठते हैं, उसीको तत्काल मुझे कह देना पड़ता है. बहुत सोंच विचार करके कुछ बोलने कि क्षमता भी मुझमे नहीं है. इसीलिये बरबस मुख से निकल पड़ा था-
" The will of Sri Ramakrishna, the blessings of the Holy Mother, and enthusiasm of Swami Vivekananda mingled to form this organization ."  
" - ठाकुर की इच्छा,  माँ का आशीर्वाद और स्वामीजी का उत्साह-  इन तीन भावों  के सम्मलित होने से ही इस संगठन ' अखिल भारत विवेकानन्द युवा महामण्डल ' की सृष्टि हुई है ! " 
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