51. प्रश्न :कृपा करके यह बताने का कष्ट करें, कि महामंडल के आदर्श से अनुप्राणित होने पर क्या आर्थिक
समस्या का समाधान भी हो सकता है ?
समस्या का समाधान भी हो सकता है ?
उत्तर : आर्थिक समस्याओँ का मूल कारण है,
समाज में चरित्र का आभाव। हमलोगों में मनुष्यत्व का आभाव।
हमलोग भोगपारायण हैं, इसीलिए व्यक्तिगत सुख-भोग के लिए हमलोगों में झुकाव
अधिक होता है। अर्थ उपार्जन के क्षेत्र में हमलोग अन्यायपूर्वक दूसरों का शोषण करके, अर्थ संग्रह करते हैं, इसीलिए
बहुत से लोग वंचित रह जाते हैं। वे लोग आर्थिक कष्ट में रहते हैं, एवं जैसा चल रहा है, उससे तो देश की आर्थिक समस्या का समाधान होना मुश्किल ही दिखाई देता है। इसके पीछे और भी बहुत से कारण हैं। किन्तु मूल कारण समझ कर यदि हमलोग चरित्र गठन के व्रती बन जाएँ एवं देश के अधिकांश मनुष्य यदि
चरित्रवान हों, हृदयवान हों,
मनुष्यत्व अर्जन करें,तो जिस अर्थनैतिक समस्या से आज भारत के करोड़ो करोड़
मनुष्य दुःख भोग रहे हैं, उनका दुःख कम हो जायेगा, इसमें कोई संदेह नहीं है। इसीलिए अर्थनैतिक समस्या के समाधान के लिए कोई अलग से योजना या कार्य हमलोग नहीं चलाते, चलाना उचित भी नहीं है, और
कारगर भी नहीं होगा। 65 वर्षों में स्वाधीन भारतवर्ष के उत्कृष्ट मस्तिष्क वाले बहुत सोच-विचार करके भी कुछ कर नहीं सके। विदेशी ऋण के बोझ से भारत दब गया है।
केन्द्रीय सरकार अब यह समझ गयी है कि योजना आयोग अपना कार्य ठीकसे नहीं कर रहा है। सरकार को जैसे सुझाव देने से, योजना बनाने से सचमुच भारतवर्ष की उन्नति हो सकती थी, वह नहीं हो सकी है। अब 65 वर्ष बीत जाने के बाद यह समझ में आने लगा है कि 65 बर्षों से यह कार्य गलत दिशा में जा रहा था। इसीलिए
मनुष्य दुःख भोग रहे हैं, उनका दुःख कम हो जायेगा, इसमें कोई संदेह नहीं है। इसीलिए अर्थनैतिक समस्या के समाधान के लिए कोई अलग से योजना या कार्य हमलोग नहीं चलाते, चलाना उचित भी नहीं है, और
कारगर भी नहीं होगा। 65 वर्षों में स्वाधीन भारतवर्ष के उत्कृष्ट मस्तिष्क वाले बहुत सोच-विचार करके भी कुछ कर नहीं सके। विदेशी ऋण के बोझ से भारत दब गया है।
केन्द्रीय सरकार अब यह समझ गयी है कि योजना आयोग अपना कार्य ठीकसे नहीं कर रहा है। सरकार को जैसे सुझाव देने से, योजना बनाने से सचमुच भारतवर्ष की उन्नति हो सकती थी, वह नहीं हो सकी है। अब 65 वर्ष बीत जाने के बाद यह समझ में आने लगा है कि 65 बर्षों से यह कार्य गलत दिशा में जा रहा था। इसीलिए
इससे कोई लाभ नहीं होगा। भारत की समस्त समस्याओं की रामबाण औषधि है - 'चरित्र-निर्माण ' !
व्यक्ति-चरित्र का निर्माण प्राथमिक आवश्यकता है, इसे पूरा किये बिना व्यवस्था में परिवर्तन नहीं हो
सकता ! केवल सत्ता परिवर्तन से व्यवस्था में परिवर्तन नहीं हो सकता। पारिवारिक,सामाजिक,आर्थिक, या
राजनीतिक समस्त प्रकार की व्यवस्था मनुष्यों के चरित्र पर ही निर्भर करती हैं।
व्यक्ति-चरित्र का निर्माण प्राथमिक आवश्यकता है, इसे पूरा किये बिना व्यवस्था में परिवर्तन नहीं हो
सकता ! केवल सत्ता परिवर्तन से व्यवस्था में परिवर्तन नहीं हो सकता। पारिवारिक,सामाजिक,आर्थिक, या
राजनीतिक समस्त प्रकार की व्यवस्था मनुष्यों के चरित्र पर ही निर्भर करती हैं।
जबतक हृदयवान मनुष्य, सहानुभूति सम्पन्न मनुष्य, मनुष्यत्व एवं चरित्र के अधिकारी मनुष्य तैयार नहीं होंगे,यथार्थ मनुष्यों का निर्माण जब तक बहुत बड़ी संख्या में नहीं होगा, तबतक चाहे जितनी भी योजना
बनाई जाये, नये नये प्रोग्राम या कुछ भी कर लिया जाय, किसी भी उपाय से आर्थिक समस्या को दूर नहीं
किया जा सकेगा। इस बात की गाँठ बांध लेनी चाहिए।
किया जा सकेगा। इस बात की गाँठ बांध लेनी चाहिए।
इसीलिए चरित्र या जीवन-गठन के कार्य में सभी भारत-वासी कमर कस कर लग जाएँ तो,बहुत सी समस्याएं स्वतः ही मिट जायेंगी।स्वामीजी ने यही परामर्श दिया था। किन्तु आज तक हमलोग उनकी बातों को समझ नहीं सके हैं।
( भ्रष्टाचार : चरित्र-निर्माण से ही मिटेगा, लोकपाल बिल से नहीं,काला धन ले आने के बाद ? काला धन बनना कैसे रुकेगा ? )
( भ्रष्टाचार : चरित्र-निर्माण से ही मिटेगा, लोकपाल बिल से नहीं,काला धन ले आने के बाद ? काला धन बनना कैसे रुकेगा ? )