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सोमवार, 28 मई 2012

' चरित्र एक सामग्रिक-वस्तु है '[40] परिप्रश्नेन

४०.प्रश्न : आत्म-समीक्षा तालिका में जिन २४ गुणों का उल्लेख किया गया है, उसमें से कुछ गुणों को चुन कर केवल उन्हीं गुणों के विषय में यदि आत्म-समीक्षा करूँ तो क्या ठीक नहीं होगा ?
उत्तर : एकदम खराब नहीं होगा. सब गुणों को आत्मसात नहीं कर सके, पर जितने गुणों को कर सकोगे, उतने को ही आत्मसात करने की चेष्टा कर सकते हो। चरित्र एक सामग्रिक-वस्तु है, अनेक वस्तुओं को चरित्र नहीं कहते हैं। 
 हमलोग मन ही मन चरित्र को कई भागों में बाँटने की कोशिश करते हैं। जबकि चरित्र एक सामग्रिक वस्तु है। सामग्रिक वस्तुओं में, जैसे सत्य, या न्याय के लिए अपनी प्रतिबद्धता इत्यादि जो विभिन्न गुण हैं, उनमें से प्रत्येक गुण दूसरे गुण के साथ संयुक्त है। इसीलिए प्रारंभ में यदि केवल कुछ गुणों को ही धारण करने का अभ्यास करो, तो क्रमशः दूसरे गुण भी खींचे चले आयेंगे।
जिन जिन गुणों पर विशेष ध्यान दोगे, स्वाभाविक रूप से वे गुण अधिक विकसित होंगे. जैसे किसी व्यक्ति ने काफी हद तक, अच्छे तरीके से बहुत से गुणों को आत्मसात कर लिया है, किन्तु यह दिख रहा है कि समय निष्ठा के उपर उसका कोई ध्यान नहीं है। परन्तु जब उसका ध्यान इस कमी की ओर जायेगा, तो वह स्वयं निर्णय लेगा की - यदि वह punctuality या समय की पाबंदी पर ध्यान देता तो उसके लिए बहुत फायदेमन्द हो सकता था।
 इसीलिए यह परामर्श दिया जाता है, कि पहले जो मूख्य गुण (आत्मश्रद्धा,आत्मविश्वास आदि) हैं, उसकी ओर विशेष ध्यान दो, और धीरे धीरे स्वयं को मनुष्य कहलाने योग्य मनुष्य के रूप में विकसित करने की चेष्टा करते रहो, तथा समस्त गुणों पर ध्यान देने से वे सब भी क्रमशः बढ़ने लगेंगे।