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बुधवार, 18 जुलाई 2012

🏹"अतीत या भावी युग के नायक ?"🏹 ["स्वामी विवेकानन्द और हमारी सम्भावना " (प्रथम अध्याय ) : स्वामी विवेकानन्द~"व्यक्ति और मन " [ (SVHS-1.1) : (Swami Vivekananda ~ Person and Mind) ]

  " स्वामी विवेकानन्द और हमारी सम्भावना "

लेखक 

 श्री नवनीहरन मुखोपाध्याय  

(संस्थापक सचिव : अखिल भारत विवेकानन्द युवा महामण्डल)   


अखिल भारत विवेकानन्द युवा महामण्डल की मासिक हिन्दी संवाद पत्रिका : 'विवेक-अंजन' [वर्ष-7, अंक 1] के सम्पादक, प्रकाशक, प्रकाशन कार्यालय तथा प्राप्ति-स्थान का विवरण 

Registered Office :

'Tara Niketan'

Vishunpur Road, Jhumritilaiya

District - Koderma, Jharkhand -825409

पंजीकृत कार्यालय :

 'तारा निकेतन'

विशुनपुर रोड, झुमरीतिलैया 

जिला - कोडरमा, झारखण्ड -825409 


सम्पादक सह प्रकाशक :

श्री विजय कुमार सिंह,      

उप सम्पदाक 

1. श्री रामचन्द्र मिश्र  

2 . श्री अजय कुमार पाण्डेय 

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प्रकाशन कार्यालय,  मुद्रक, प्राप्ति स्थान :

प्रकाशक: 
श्री विजय कुमार सिंह  
उपाध्यक्ष,  
अखिल भारत विवेकानंद युवा महामंडल।  

प्रकाशन कार्यालय:  

'हरिओम भवन'  

हरिओम प्रेस (चतुर्थ तल)  

अड्डी बंगला रोड,  

झुमरीतिलैया, कोडरमा, 
 
झारखंड - 825 409
  
मोबाइल:

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Publisher:  

Shri Bijay Kumar Singh 
 
Vice President, 
 
Akhil Bharat Vivekananda Yuva Mahamandal  

Publishing Office and Printer: 
 
'Hariom Bhawan'  

4th Floor, Hariom Press 
 
Addi Bangla Road,  

Jhumritilaiya, Koderma,
  
Jharkhand - 825 409  
Mobile:

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सम्पादकीय : दिनांक 12 जनवरी 2025  
        स्वामी विवेकानन्द ने कहा था श्रीरामकृष्ण की जन्मतिथि से सत्ययुग का प्रारम्भ हो चुका है। 14 जनवरी, 1985 को 'विवेकानन्द ज्ञान मन्दिर पुस्तकालय' (सह युवा चरित्र-निर्माणकारी संस्था) जो स्वामी विवेकानन्द की साक्षात् प्रेरणा से बेलाटांड़ दुर्गा मण्डप झुमरीतिलैया, कोडरमा, जिला हजारीबाग, तत्कालीन बिहार में स्थापित हुआ था। वही युवा चरित्र-निर्माणकारी संगठन-अवतार वरिष्ठ श्रीरामकृष्ण परमहंसदेव और माँ श्री सारदा देवी के आशीर्वाद से, विगत वर्ष,  14 जनवरी 2024 को  अभ्रक नगरी (Mica city) नाम से प्रसिद्ध झुमरीतिलैया शहर में राँची रामकृष्ण मिशन के सचिव श्रीमत स्वामी भवेशानन्द जी महाराज के तत्वधान में जिला कोडरमा, झारखण्ड  के झण्डा चौक पर स्वामी विवेकानन्द के जन्मदिवस पालन के साथ 'अखिल भारत विवेकानन्द युवा महामण्डल- झुमरीतिलैया शाखा ' में रूपान्तरित होकर स्थापित हो गया है।  

        मेरा प्रथम वार्षिक शिविर बेलघड़िया में 1987 में आयोजित युवा प्रशिक्षण शिविर से हुए था। उसी शिविर मैंने इस पुस्तक के सहित महामण्डल द्वारा प्रकाशित समस्त बंगला-अंग्रेजी पुस्तकों का दो-दो सेट खरीद लिया था। किन्तु बंगला पढ़ना बिल्कुल नहीं जानता था। अखिल भारत विवेकानन्द युवा महामण्डल द्वारा 1987 में बेलघड़ीया में आयोजित 20 वां वार्षिक युवा प्रशिक्षण शिविर, मेरे लिए महामण्डल का प्रथम कैम्प था। वह शिविर मेरे लिए विवेक-वाहिनी के संस्थापक सचिव C-IN-C श्री नवनीहरण मुखोपाध्याय' नवनीदा को साक्षात् देखने और "सत्ययुग स्थापित करने की पद्धति" - चरित्रवान मनुष्य बनने और बनाने के संकल्प ग्रहण प्रशिक्षण- 'Be and Make' से परिचित होने का पहला अवसर था।
 उसमें मैंने यह सीखा कि की जीवन में सुख-दुःख दोनों आते हैं दुःख-विपदा आने पर यदि हम भयभीत हो जायें, आवेग में क्रोधित हो जायें तो समस्या का सही समाधन नहीं खोज सकते। अतएव हमारा पहला काम है -अपने अन्तर्निहित दिव्यता 'Inherent Divinity' है , एकात्मकता (Oneness-तुम जो हो वही मैं भी हूँ !) की भावना से युक्त मन या जो विवेक-शिखा भय-चिन्ता से छोटी पड़ रही थी उसको अवतार वरिष्ठ श्रीरामकृष्ण देव (ठाकुर) माँ श्री सारदा देवी की इच्छा और 'प्राण-सखा' स्वामी विवेकानन्द की प्रेरणा से उन्मेषित (जो हाथ पकड़ कर सही मार्ग  से कर्मफल को श्रीरामकृष्ण अर्पणं अस्तु बुद्धि से/ ईश्वरार्पणं बुद्धि से उन्मेषित होकर किया जाने वाला कर्म -मैं कर्ता नहीं हूँ ! इस दृष्टि से  विवेक-युक्त इच्छाशक्ति से प्रेरित और अन्तर्निहित दिव्यता विवेक-शिखा से उन्मेषित होकर कर्म करने का प्रशिक्षण : क्योंकि अपने सत्य स्वरूप में आप कुछ कर ही नहीं सकते। पर चार सप्ताह से अधिक एक ही स्थान पर रह नहीं सकते की अमोघ इच्छाशक्ति से प्रेरित होकर कर्म करने का प्रशिक्षण। 
Be and Make : " स्वयं मनुष्य बनो और दूसरों को मनुष्य बनने में सहायता करो'  की स्थिति एक पारस्परिक रूप से लाभकारी परिणाम है जहाँ शामिल सभी लोग सकारात्मक परिणाम का अनुभव करते हैं। यह शून्य-योग खेल के विपरीत है, जहाँ एक पक्ष दूसरे की कीमत पर लाभ कमाता है।" किन्तु पशु से मनुष्य में, और मनुष्य से देवत्व (100 % निःस्वार्थपरता) में उन्नत होने का प्रयास पहले स्वयं से ही शुरू करना होगा।   
['A win-win situation' is a mutually beneficial outcome where everyone involved experiences a positive result. It's the opposite of a zero-sum game, where one party gains at the expense of another.] 

 क्योंकि आप और हम अलग नहीं हैं। कोई पराया नहीं सारा जगत ही अपना है।  इस पद्धति में ऐसा नहीं होता, जहाँ एक पक्ष दूसरे को हानि पहुँचाकर खुद लाभ कमाना चाहता है' और दोनों पक्षों का कुल जोड़ ही शून्य का खेल 'zero-sum game' बन जाता है

    उस शिविर से लौटने के बाद 12 जनवरी 1988 को ही 'झुमरीतिलैया विवेकानन्द ज्ञान मन्दिर ' का विलय 'झुमरीतिलैया विवेकानन्द युवा महामण्डल ' में कर दिया गया था । और महामण्डल का बिहार राज्य स्तरीय प्रथम तीन दिवसीय युवा प्रशिक्षण शिविर, सी. एच. हाई स्कूल में 27 से 29 मई 1988 को आयोजित हुआ। जिसमें महामण्डल के केन्द्रीय समीति के सभी सदस्यों का (केवल अध्यक्ष अमियो दा को छोड़कर) झुमरीतिलैया में पदार्पण हुआ। उस शिविर के बाद से ही जितनी आवश्यक पुस्तकें थीं उनका हिन्दी अनुवाद करने लगा, क्योंकि मेरे मित्र मण्डली में कुछ बंगाली मित्र [विशेष रूप से श्री देवब्रत सरकार (तात्कालीन बैंक ऑफ़ बड़ौदा के ब्रांच मैनेजर - जिन्होंने अपने बैंक में महामण्डल का खाता खोला थे ; और वर्तमान में सेवानिवृत्त चेयरमैन यूनियन बैंक ऑफ़ इण्डिया)], सपन चटर्जी और सनत कुमार दास] भी थे। उनकी सहायता से बंगला पढ़ना और बंगला बोलना सीखने लगा। 1988 के वार्षिक शिविर से ही मुझे शिविर में दिए गए बंगला-अंग्रेजी भाषणों को सुनकर तुरन्त उसका हिन्दी सारांश बोलने का उत्तरदायित्व नवनीदा ने मेरे ऊपर सौंपा था। 

सम्पादक /प्रकाशक : 

श्री विजय कुमार सिंह 

फोन न ० 9386699949 
 


प्रकाशक का निवेदन 

        अखिल भारत विवेकानन्द युवा महामण्डल के संस्थापक श्री नवनीहरन मुखोपाध्याय द्वारा बंगाली भाषा में लिखित ग्रन्थ ~ "स्वामी विवेकानन्द ओ आमादेर सम्भावना " का हिन्दी अनुवाद तथा हिन्दी पुस्तिका के रूप में "स्वामी विवेकानन्द और हमारी सम्भावना (भाग -1)" शीर्षक के साथ उसका प्रथम हिन्दी संस्करण 25 दिसम्बर, 2016 को प्रकाशित हुआ था। 
   
       यह बड़े हर्ष की बात है कि झुमरीतिलैया विवेकानन्द युवा महामण्डल के हिन्दी प्रकाशन विभाग ने उपरोक्त पुस्तक के हिन्दी अनुवाद में - जुलाई, 2012 में बंगाली भाषा में प्रकाशित ग्रंथ "স্বামী বিবেকানন্দ ও আমাদের সম্ভাবনা" के 10 अध्यायों में विभक्त समस्त लेखों के संशोधित और परिमार्जित अनुवाद को झुमरीतिलैया शाखा से प्रकाशित महामण्डल की मासिक हिन्दी संवाद पत्रिका " विवेक अंजन " में क्रमवार ढंग से पुनः छापने का निर्णय लिया है। करोना महामारी आदि विभिन्न कारणों से महामण्डल की हिन्दी संवाद पत्रिका 'विवेक अंजन ' का प्रकाशन बंद हो गया था , जिसे सितम्बर, 2024 से नियमित रूप में प्रकाशित करने का संकल्प लिया गया है।      

यद्यपि इस पुस्तक का चतुर्थ बंगला संस्करण 4 जुलाई 2012 को प्रकाशित हो चुका है , तथापि हिन्दी में यह पुस्तक अनुपलब्ध रहने के कारण हिन्दी पाठक इस पुस्तक का लाभ लेने से अबतक वंचित थे। 
        उल्लेखनीय है कि महामण्डल द्वारा प्रकाशित समस्त बंगला एवं अंग्रेजी साहित्य एवं व्याख्यानों का हिन्दी अनुवाद इस पुस्तक के अनुवादक द्वारा वर्षों से किया जा रहा है , और अधिकांश पुस्तकों को हिन्दी में प्रकाशित भी किया जा चुका है। यह बंगला पुस्तक मोटी थी, इसलिए इसका छपाई व्यय बहुत अधिक आता, यही सोचकर इसका प्रकाशन संभव नहीं हो पा रहा था। 
          किन्तु, अनुवादक जब इस पुस्तक का अनुवाद कर रहे थे तब इसमें समाहित लेखों को पढ़ने के बाद यह महसूस किये कि इस पुस्तक में मानवजाति और पूरे समाज की उन्नति के लिए अमूल्य सामग्री है, जिसे शीध्रता से प्रकाशित करने की आवश्यकता है। इस महती आवश्यकता को ध्यान में रखते हुए 'झुमरीतिलैया विवेकानन्द युवा महामण्डल के हिन्दी प्रकाशन विभाग' ने इसे पुनः प्रकाशित करने का निर्णय लिया है। 
         किन्तु पुस्तक की मोटाई और आर्थिक अभाव को देखते हुए इसे प्रकाशित करना सम्भव नहीं हो पा रहा था, अतएव महामण्डल के केन्द्रीय कार्यालय से अनुमति लेकर इसे खण्डों में प्रकाशित करने का निर्णय लिया गया ताकि यह आसानी से छपता रहे और छात्र-छात्राओं को भी कम मूल्य पर प्राप्त होता रहे। 
      "स्वामी विवेकानन्द और हमारी सम्भावना (भाग -1)"  ग्रन्थ के प्रथम अध्याय का शीर्षक होगा -" स्वामी विवेकानन्द ~ व्यक्ति और मन " (Swami Vivekananda ~ The Person and his Mind) शीर्षक इस अध्याय में कुल नौ लेखों को समावेशित किया गया है। इसी प्रकार आगे के लेखों को अलग -अलग अध्यायों के शीर्षक के अनुसार विभाजित कर क्रमशः प्रकाशित किया जायेगा। प्रथम बंगला संस्करण के कुछ लेखों को इसके चतुर्थ संस्करण से हटा दिए गए थे, उन्हें यहाँ पुनः यथास्थान समाहित किया जा रहा है। 

'विवेक-अंजन', (महामण्डल की मासिक संवाद पत्रिका) सितम्बर -2024 :
मूल्य :  एक प्रति - 6 रु , वार्षिक -वार्षिक -60 रु। 
 

Editor: Bijay Kumar Singh. Assistant Editors : Ramchandra Mishra & Ajay Pandeya 
  
Publication Office :

4th Floor, Hariom Press.  

Jhumri Telaiya, Koderma (Jharkhand)

Phone : Ajay, Ramchandra, Sudeep   
  
 Publisher :

 Sri Bijay Kumar Singh

Vice President,  

Akhil Bharat Vivekananda Yuva Mahamandal 

6/1A , Justice Manmatha Mukherjee Row,

Kolkata, India -700009

Phone - 9386699949 
E-mail : singhbijay50@gmail.com
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अक्टूबर 1984 में बंगाली भाषा में प्रकाशित : 'स्वामी विवेकानन्द ओ आमादेर सम्भावना' के  प्रथम प्रकाश के समय प्रकाशक का -

निवेदन    

      मानव-समाज के समक्ष कुछ न कुछ समस्या हर देश और हर युग में रहती है। कभी -कभी तो समस्यायें राष्ट्रीय संकट का रूप धारण कर लेती हैं। इन दिनों अधिकांश लोग मानने लगे हैं कि हमारा देश भारी संकट के दौर से गुजर रहा है। गरीबी, अशिक्षा,अनैतिकता और आम जनता के प्रति सच्ची सहानुभूति का अभाव, दूसरों को हानी पहुँचाकर भी अपना स्वार्थ पूरा करने का निर्लज्ज प्रयास, तथा मानवीय मूल्यों एवं आत्मविश्वास का घोर आभाव देखकर बहुत से लोगो को पीड़ा  होती है। किन्तु, इसके लिए दूसरों पर दोषारोपण कर निश्चिन्त हो जाते हैं। 
     हम लोग इस सच्चाई से ऑंखें मूंदे रहते हैं कि मनुष्य की आन्तरिक शक्ति और संभावनाओं को विकसित कर ही अवस्था में परिवर्तन लाया जा सकता है। मनुष्य के अन्तर्निहित दिव्यता के विकास की कोई सीमा नहीं है, तथा उन दिव्य सम्भावनाओं के विकास की भी कोई सीमा नहीं है। रचनात्मक विचार तथा कठोर परिश्रम की सहायता से इस संभावना को  प्रकाशित एवं विकसित कर ही हम समाज में परिवर्तन ला सकते हैं। 
     असाधारण हृदयवत्ता, मानव-प्रेम और उच्च मनीषा के अधिकारी स्वामी विवेकानन्द ने मानव समाज विशेषतः भारत के जन-जीवन के असीम दुःख-दैन्य के मूल कारण को समझा था एवं उसे मिटाने का उपाय भी बताया था। युवाओं की समस्यायों को देखकर समस्त विचारशील व्यक्तियों का ह्रदय व्यथित होता ही है। किन्तु स्वामी विवेकानन्द ने युवा जीवन में ही सम्पूर्ण समाज की सम्यक उन्नति के बीज को निहित पाया था तथा युवा समाज के सर्वांगीण उन्नति के सपने को साकार करने के उद्देश्य से उन्होंने समस्त युवाओं को अपनी-अपनी सम्भावनाओं को प्रस्फुटित करने आह्वान किया था।
        इस पुस्तक में संकलित निबंधों का उद्देश्य स्वामी विवेकानन्द के इसी आह्वान को आमजन तक विशेष कर युवाओं के समक्ष सरल भाषा में प्रस्तुत करना है। महामण्डल विगत 56 वर्षों से विभिन्न कार्यक्रमों के माध्यम से यही करता चला आ रहा है। इसकी मासिक द्विभाषी पत्रिका "विवेक-जीवन" भी विगत 54 वर्षों से प्रकाशित होती आ रही है। इस संकलन के अधिकांश लेख ' विवेक-जीवन ' के विभिन्न अंकों में सम्पादकीय के रूप में प्रकाशित हो चुके हैं। किन्तु सभी लेख ही प्रकाशित हुई हों ऐसा नहीं हैं। इनमें से कई शिविर की कक्षाओं में दिए गए व्याख्यान भी हैं जिन्हें बाद में सम्पादकीय के रूप में प्रकाशित किया गया है। इसीलिये यह संभव है कि सम्पूर्ण पुस्तक में भाषा और भाव की अभिव्यक्ति में कहीं कहीं अंतर दिखाई दे, और कहीं- कहीं एक ही विषय का दुबारा उल्लेख भी दिखे
    इधर बहुत दिनों से कुछ पाठक और महामंडल के शुभचिंतक ' विवेक-जीवन ' के सम्पादकीय लेखों को संकलित कर प्रकाशित करने का अनुरोध कर रहे थे। किन्तु, धन के अभाव में यह  संभव नहीं हो पा रहा था। यह समस्या अब भी रहने के बावजूद इसे प्रकाशित किया जा रहा है। इस पुस्तक की बिक्री से प्राप्त राशि का व्यय महामण्डल के कार्यों में ही किया जायेगा। आगे चल कर धन की सुविधा होने पर अंग्रेजी सम्पादकीय लेखों को भी संकलित कर प्रकाशित करने का प्रयास किया जायेगा   
    विवेक-जीवन के सम्पादकीय लेखों के आलावा कुछ अन्य रचनाएँ भी आलोच्य विषय की  व्याख्या में सहायक सिद्ध होंगी -अतएव इसमें उन्हें भी समावेशित कर लिया गया है। जैसे- ' स्वामी विवेकानन्द एवं युवा समाज ' तथा ' राष्ट्रिय एकता एवं स्वामी विवेकानन्द ' ये दो लेख रामकृष्ण मिशन सारदा-पीठ की वार्षिक स्मारिका 'सारदा' में प्रकशित हो चुके हैं। ' युवा समस्या और स्वामी विवेकानन्द ' लेख बलराम मन्दिर में श्री श्री ठाकुर के पदार्पण की  शतवार्षिकी समारोह के अवसर पर प्रकाशित स्मारिका में मुद्रित हुआ था। इन तीनो लेखों के पुनर्मुद्रण की अनुमति देने के लिये हम रामकृष्ण मिशन सारदापीठ एवं बलराम मन्दिर के अध्यक्ष महोदय के प्रति आभार प्रकट करते हैं। 'काँथी रामकृष्ण मिशन आश्रम ' द्वारा आयोजित युवा सम्मेलन के अवसर पर उनके अनुरोध पर लिखित लेख- ' नारि-जाती की उन्नति के संदर्भ  में स्वामी विवेकानन्द के विचार ' को भी इसमें सम्मिलित किया गया है। ' स्वामी विवेकानन्द और आज के हमलोग ' कई वर्ष पूर्व दिए गये व्याख्यान से लिया गया है । ये दोनों लेख पहले कहीं प्रकाशित नहीं हुए हैं।
 यदि इस संकलन में प्रकशित निबन्धों के अध्यन से थोड़े भी युवा विवेकानन्द के भाव को ग्रहण करने की प्रेरणा प्राप्त कर सकें तो हमारा परिश्रम सार्थक हो जाये। 

प्रकाशक 

प्रथम बंगला संस्करण : अक्टूबर, 1984


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बंगाली भाषा में प्रकाशित चतुर्थ संस्करण की भूमिका 

    पूर्व में प्रकाशित समस्त संस्करणों के समाप्त हो जाने के बाद, आठ नये निबन्धों को जोड़ कर तथा कुछ लेखों को हटाकर पुनः नये परिष्कृत कलेवर में इस ग्रन्थ का चतुर्थ संस्करण प्रकाशित हो रहा है। इस ग्रन्थ में स्वामीजी का दो नया चित्र भी इसमें डाला गया है, जिसमें से एक चित्र अमेरिका स्थित 'वेदान्ता सोसायटी ऑफ़ सेंट लुईस ' के अध्यक्ष स्वामी चेतनानन्द के सौजन्य से प्राप्त हुआ है। स्वामी विवेकानन्द के सार्धशततम जन्म जयन्ती के अवसर पर महामण्डल प्रकाशन द्वारा प्रस्तावित प्रकाशन में से एक ग्रन्थ यह है। 
      भारत के राष्ट्रियकृत बैंकों में से एक 'यूनियन बैंक ऑफ़ इंडिया ' के प्राधिकारी वर्ग ने इस ग्रन्थ को प्रकाशित करने में विशेष रूप से आर्थिक सहायता प्रदान की है। उनके प्रति, विशेष रूप से यूनियन बैंक के चेयरमैन श्री देवब्रत सरकार [Shri D. Sarkar (Ex-Chairman, Union Bank of India)]  के प्रति हम अपनी विनम्र आंतरिक कृतज्ञता व्यक्त करते हैं। 
तरह सर्वश्री अमित कुमार दत्त, भूपेन्द्र चन्द्र भट्टाचार्य, अरुणाभ सेनगुप्त, तथा विश्वनाथ पाल आदि ने भी इस ग्रन्थ के प्रकाशन में कई तरह से सहायता पहुँचाई है। ग्रन्थ की रूपसज्जा श्री सुकेश मण्डल के सौजन्य से हुई है। श्रीरामकृष्ण-माँ सारदा-स्वामीजी का आशीर्वाद सबों के उपर वर्षित हो, यही प्रार्थना है।
 
  आर्थिक सहायता मिलने से भी इस संवर्धित संस्करण के कलेवर में वृद्धि तथा अन्य प्रासंगिक व्यय में अत्यधिक होने से न चाहते हुए भी ग्रन्थ के मूल्य में थोड़ी सी वृद्धि करनी पड़ी है। आशा करते हैं, इस विशेष संस्करण को सुधि पाठक वृन्द स्वीकार करेंगे, तथा स्वामीजी के सार्धशततम जन्म जयंती में साक्षात् भाग लेने के आनन्द का उपभोग करेंगे। -प्रकाशक

Publisher 

Shri Ranen Mukherjee,

Convener, Special Publications Sub-Committee,

Akhil Bharat Vivekananda Yuva Mahamandal

'Bhuvan- Bhavan',

Po : Balaram Dharmasopan

Khardah, North Twenty Four Parganas 7000116

West Bengal

4 जुलाई 2012  
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स्वामी विवेकानन्द और हमारी सम्भावना 
 
 प्रथम अध्याय 

 स्वामी विवेकानन्द : व्यक्ति और मन ]

[Swami Vivekananda :Person and Mind]

(1) 

🏹🔱🕊 अतीत या भावी युग के नायक 🏹🔱🕊

     स्वामी विवेकानन्द के व्याख्यानों में प्रयुक्त कई शब्दों के अर्थ, सामान्यतः प्रचलित अर्थों से इतने भिन्न हैं कि हम प्रायः इनका अर्थ लगा बैठते हैं। दरअसल विवेकानन्द को पढ़ने एवं उनकी शिक्षाओं को गहराई से समझने की हमने अबतक कोशिश
 ही नहीं की है, इसलिए हम उन्हें एक धार्मिक भय ( religious awe) के रूप में देखते हैं, तथा उन्हें भी अपने देश के केवल महान धार्मिक सन्त समझकर उनके प्रति एक भयमिश्रित आदर का भाव पाल लेते हैं। इसी कारण हम उन्हें ठीक से समझ नहीं पाते हैं, और यह भययुक्त आदर का भाव उनके प्रति सच्ची श्रद्धा में परिणत नहीं हो पाता। तथा उनका अनुसरण करने की बात तो 
हम सोच भी नहीं पाते। उनके व्याख्यानों में आसानी से समझ में नहीं आने वाले बहुत से शब्दों को सुनकर हम उन्हें एक सामान्य प्राचीन धर्म प्रवक्ता समझ बैठते हैं। क्योंकि जिस समय उनका आना हुआ था उस समय से हम बहुत आगे निकल चुके हैं। अब तो हम चाँद पर पाँव रखने का गर्व करने वाले मनुष्य बन चुके हैं
       समय के साथ-साथ हम भी प्रवाहित हो रहे हैं। हम समय के साथ कदम मिलाकर चलना चाहते हैं। क्योंकि समय के साथ चलने वालों को ही आधुनिक कहा जाता है नहीं तो पुरातनपंथी समझा जाता है।  समय के साथ नहीं चल पाने के दो कारण हो सकते हैं - एक समय से पीछे रह जाना और दूसरा समय से आगे निकल जाना। इन दोनों अवस्थाओं में वर्तमान के साथ कदम नहीं मिल सकते। जब समय के साथ कदम नहीं मिलते तब उसे पुरातन-पंथी समझते हुए हम अपने को अत्यन्त प्रगतिवादी मान बैठते हैं। किन्तु जो समय के साथ नहीं चलते वे समय से आगे हो सकते हैं या पीछे भी हो सकते हैं।  
      स्वामी जी उस समूह के एक व्यक्ति थे, जिनके कदम समय से आगे रहते हैं वे अतीत के बजाय भविष्य के मनुष्य थे।  यहाँ तक कि वर्तमान को देखने के लिए भी उन्हें पीछे मुड़कर देखना पड़ता था।  विवेकानंद समय से आगे की बात सोचने वाले युवा- दल के नेता थे। वे तो अतीत के विपरीत भविष्यद्रष्टा थे ! यहाँ तक कि वर्तमान को देखने के लिए उन्हें पीछे मुड़कर देखना पड़ता था। इसलिए वे तत्कालीन भारत के आलस्य एवं जड़ता आदि सैकड़ों कारणों से वे पीड़ा का अनुभव करते थे। 
    जिस युग में स्वामी विवेकानन्द आविर्भूत हुए थे, उस समय हमारे देश में पश्चिमी आधुनिकता का सैलाब आया हुआ था और हमारा नव शिक्षित समुदाय उस सैलाब में डूब-उतरा रहा था। उस समय स्वामी विवेकानन्द ने घोषणा की थी कि वे उन अनाड़ी आधुनिकों में से नहीं हैं जो ईश्वर को भी तड़ित के  परिणाम विशेष जैसा प्रमाणित करने की चेष्टा करते। वे ऐसे अत्याधुनिक व्यक्ति थे जो एक ही  दृष्टि में दिगंत तक विस्तृत अतीत से वर्तमान एवं उससे आगे भविष्य को भी इन्द्रधनुष के समान स्पष्ट रूप से देखने  में समर्थ थे। 
      नव आधुनिकों की तरह वे जो कुछ भी प्राचीन है उसे त्याग देने के पक्षधर नहीं थे। उन्होंने कहा था कि वर्जन (Exclusion) शब्द उनके शब्दकोश में नहीं है। उन्होंने गौरवमयी अतीत से प्रेरणा लेकर वर्तमान के शिशु को अपने  पैरों पर खड़े होने तथा भविष्य को और भी अधिक महानता से गढ़ने की साधना में वीरतापूर्वक कदम आगे बढ़ाने का  आह्वान किया था।
     उन्होंने कामना का त्याग करने को कहा था। इसका अर्थ यह कदापि नहीं है कि सबको  कामनाहीन, निरुत्साही और निश्चेष्ट हो जाना चाहिए। बल्कि कामना के दास होने से बचना चाहिए। [निवृत्ति अस्तु महाफला] उन्होंने विश्वधर्म  के इतिहास का अध्यन करके यह जान लिया था कि केवल इसी देश में धर्म, अर्थ और कामना को सुसमन्वित अभ्यास (3'P') के द्वारा फलोपयोगी बनाया गया था ! अन्तिम पुरुषार्थ - 'मोक्ष' को सबके लिए अनिवार्य नहीं किया गया था। क्योंकि मनुष्यों में इहलोक और परलोक के सुख भोगों के प्रति स्वाभाविक लालसा रहती है। धर्म को समझने के क्रम में कई बार उन्होंने यहाँ तक कहा है कि पाश्चात्य के लोगों में धर्म के प्रति अधिक आग्रह है। क्योंकि हमलोगों ने अभी तक उनके समान भोग सामग्रियों का उपभोग करके उसकी निस्सारता का अनुभव किया ही नहीं है। बिना भोग किये योग में प्रवृत्त होने के लिए अपनी बड़ाई हाँकने प्रवृत्ति की उन्होंने 'ढोंग' कहकर घोर निंदा की है।  यह तो सात्विकता के आवरण में लिपटी हुई घोर तामसिकता है !  
    स्वामीजी गुणों के क्रम विकास में [क्षात्र वीर्य और ब्रह्मतेज में] विश्वास रखते थे। वे जिस प्रकार तमोगुण का परित्याग करते हुए रजोगुण के प्रकाश में सतोगुण में लीन शान्ति  का आश्रय ग्रहण करने के पक्षधर थे, ठीक उसी प्रकार सामाजिक जीवन में शूद्रों की एकता, वैश्यों का आदान-प्रदान, क्षत्रियों के शौर्य एवं उनकी  वीरता की उपलब्धी कर लेने के पश्चात साधना के द्वारा ब्रह्मतेज प्राप्त करने के मार्ग में सबको अग्रसर होने की प्रेरणा देते थे।   
      दरिद्रता, अशिक्षा और अज्ञानता के अंधकार को अतीत की गहरी खाई में फेंककर मनुष्य में अन्तर्निहित शाश्वत दिव्यता (inherent divinity) को उद्घाटित करा देना ही उनके कर्मयोग  का रहस्य है। वे केवल हमें इतना स्मरण करा देना चाहते थे कि- " सैंकड़ों ब्रह्मा और इन्द्र 'बुद्धत्व' पाये हुए नर-देवों के चरणों पर लोट जाने के लिए परस्पर प्रतिस्पर्धा करते हैं। तथा इस बुद्धत्व-प्राप्ति की अवस्था पर मनुष्य मात्र का जन्मसिद्ध अधिकार है। " ( वर्तमान भारत 9/204) 
      इस भविष्यद्रष्टा, वीर-योद्धा के समक्ष आधुनिकता की राग अलापना तो  नवजात शिशु का क्रंदन मात्र है। इसलिए प्रश्न यह उठता है कि स्वामीजी अतीत के नायक थे या भविष्य के ? 

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