*परिच्छेद~ ११४*
नरेन्द्र आदि भक्तों को उपदेश*
(१)
[(शनिवार, मई 9, 1885) श्रीरामकृष्ण वचनामृत-114]
🔱🙏नरेन्द्र तथा हाजरा महाशय🔱🙏
নরেন্দ্র ও হাজরা মহাশয়
श्रीरामकृष्ण बलराम के दुमँजले के बैठकखाने में भक्तों के बीच में प्रसन्नतापूर्वक बैठे हुए उनसे वार्तालाप कर रहे हैं । नरेन्द्र, मास्टर, भवनाथ, पूर्ण, पल्टू, छोटे नरेन्द्र, गिरीश, रामबाबू, द्विज, विनोद आदि बहुत से भक्त चारों ओर से घेरकर बैठे हुए हैं ।
It was about three o'clock in the afternoon. Sri Ramakrishna sat in Balaram's drawing-room in a happy mood. Many devotees were present. Narendra, M., Bhavanath, Purna, Paltu, the younger Naren, Girish, Ram, Binode, Dwija, and others sat around him.
ঠাকুর শ্রীরামকৃষ্ণ বলরামের দ্বিতলের বৈঠকখানায় ভক্তসঙ্গে বসিয়া আছেন। সহাস্যবদন। ভক্তদের সঙ্গে কথা কহিতেছেন। নরেন্দ্র, মাস্টার, ভবনাথ, পূর্ণ, পল্টু, ছোট নরেন, গিরিশ, রামবাবু, দ্বিজ, বিনোদ ইত্যাদি অনেক ভক্ত চতুর্দিকে বসিয়া আছেন।
आज शनिवार है । दिन के तीन बजे होंगे । वैशाख की कृष्णा दशमी है । ९ मई, १८८५ । बलराम घर में नहीं हैं । शरीर अस्वस्थ होने के कारण वायुपरिवर्तन के लिए मुँगेर गये हुए हैं । उनकी बड़ी कन्या ने श्रीरामकृष्ण और भक्तों को बुलाकर महोत्सव किया है । भोजन के पश्चात् श्रीरामकृष्ण जरा विश्राम कर रहे हैं ।
Balaram was not there. He had gone to Monghyr for a change of air. His eldest daughter had invited Sri Ramakrishna and the devotees and celebrated the occasion with a feast. The Master was resting after the meal.
আজ শনিবার (২৭শে বৈশাখ, ১২৯২) — বেলা ৩টা — বৈশাখ কৃষ্ণাদশমী, ৯ই মে, ১৮৮৫। বলরাম বাড়িতে নাই, শরীর অসুস্থ থাকাতে, মুঙ্গেরে জলবায়ু পরিবর্তন করিতে গিয়াছেন। জ্যেষ্ঠা কন্যা (এযন স্বর্গগতা) ঠাকুর ও ভক্তদের নিমন্ত্রণ করিয়া আনিয়া মহোৎসব করিয়াছেন। ঠাকুর খাওয়া-দাওয়ার পর একটু বিশ্রাম করিতেছেন।
[(शनिवार, मई 9, 1885) श्रीरामकृष्ण वचनामृत-114]
🔱🙏समाधि के बाद 'सतोगुणी अहं' उदार हो जाता है🔱🙏
श्रीरामकृष्ण मास्टर से बार बार पूछ रहे हैं, 'बताओ तो सही, क्या मैं उदार हूँ ?’ भवनाथ ने हँसकर कहा, 'ये और क्या कहेंगे, चुप रहने के सिवा ?
Again and again the Master asked M.: "Am I liberal-minded? Tell me."
BHAVANATH (smiling): "Why do you ask him? He will only keep quiet."
ঠাকুর মাস্টারকে বারবার জিজ্ঞাসা করিতেছেন, “তুমি বল, আমি কি উদার?” ভবনাথ সহাস্যে বলিতেছেন, “উনি আর কি বলবেন, চুপ করে থাকবেন!”
उत्तरप्रदेश का एक भिक्षुक गाने के लिए आया । भक्तों ने दो गाने सुने । गाने नरेन्द्र को अच्छे लगे। उन्होंने गानेवाले से कहा, 'और गाओ ।'
A beggar entered the room. He wanted to sing. The devotees listened to a song or two. Narendra liked his singing and asked him to sing more.
একজন হিন্দুস্থানী ভিখারী গান গাইতে আসিয়াছেন। ভক্তেরা দুই-একটি গান শুনিলেন। গান নরেন্দ্রের ভাল লাগিয়াছে। তিনি গায়ককে বলিলেন, ‘আবার গাও।’
श्रीरामकृष्ण - बस बस, अब रहने दो, पैसे कहाँ हैं ? - (नरेन्द्र से) - कह तो दिया तूने !
MASTER: "Stop! Stop! We don't want any more songs. Where is the money? (To Narendra) You may order the music, but who will pay?"
শ্রীরামকৃষ্ণ — থাক্ থাক্, আর কাজ নাই, পয়সা কোথায়? (নরেন্দ্রের প্রতি) তুই তো বললি!
भक्त (हँसकर) - महाराज, आपको इसने अमीर समझा है । आप तकिये के सहारे बैठे हुए हैं न - (सब हँसते हैं)
A DEVOTEE (smiling): "Sir, the beggar may think you are an amir, a wealthy aristocrat, the way you are leaning against that big pillow." (All laugh.)
ভক্ত (সহাস্যে) — মহাশয়, আপনাকে আমীর ঠাওরেছে; আপনি তাকিয়া ঠেসান দিয়া বসিয়া আছেন — (সকলের হাস্য)।
श्रीरामकृष्ण - (सहास्य) - यह भी तो सोच सकता है कि बीमार हैं ।
MASTER (smiling): "He may also think I am ill."
শ্রীরামকৃষ্ণ (হাসিয়া) — ব্যারাম হয়েছে, ভাবতে পারে।
हाजरा के अहंकार की बात होने लगी । किसी कारण से दक्षिणेश्वर के कालीमन्दीर से हाजरा को चला जाना पड़ा ।
The conversation drifted to Hazra and his egotism. For some reason he had had to go away from Dakshineswar.
হাজরার অহংকারের কথা পড়িল। কোনও কারণে দক্ষিণেশ্বরের কালীবাটী ত্যাগ করিয়া হাজরার চলিয়া আসিতে হইয়াছিল।
नरेन्द्र - हाजरा अब मानता है कि उसे अहंकार हुआ था !
NARENDRA: "Hazra now admits he was egotistic."
নরেন্দ্র — হাজরা এখন মানছে, তার অহংকার হয়েছিল।
श्रीरामकृष्ण - इस बात पर विश्वास न करना । दक्षिणेश्वर में फिर से आने के लिए उस तरह की बातें कह रहा होगा । (भक्तों से) नरेन्द्र केवल यही कहता है कि हाजरा तो बड़ा अच्छा है ।
MASTER: "Don't believe him. He says so in order to come back to Dakshineswar. (To the devotees) Narendra always insists that Hazra is a grand person."
শ্রীরামকৃষ্ণ — ও-কথা বিশ্বাস করো না। দক্ষিণেশ্বরে আবার আসবার জন্য ওরূপ কথা বলছে। (ভক্তদিগকে) নরেন্দ্র কেবল বলে, ‘হাজরা খুব লোক।’
नरेन्द्र - मैं अब भी कहता हूँ ।
NARENDRA: "Even now I say so."
নরেন্দ্র — এখনও বলি।
श्रीरामकृष्ण - क्या इतनी बातें सुनने पर भी ?
MASTER: "Why? You have heard so much about him, and still you think so?"
শ্রীরামকৃষ্ণ — কেন? এত সব শুনলি।
नरेन्द्र - दोष कुछ ही हैं, परन्तु गुण उसमें बहुत से हैं ।
NARENDRA: "He has slight defects but many virtues."
নরেন্দ্র — দোষ একটু, — কিন্তু গুণ অনেকটা।
श्रीरामकृष्ण - हाँ, निष्ठा है । उसने मुझसे कहा - अभी तो मैं तुम्हें नहीं सुहाता, परन्तु पीछे से फिर मुझे खोजना होगा । श्रीरामपुर से अद्वैतवंश का एक गोस्वामी आया हुआ था । दक्षिणेश्वर में दो-एक रात रहने की उसकी इच्छा थी । मैंने उसकी खातिर की और उससे रहने के लिए कहा । हाजरा ने कहा, इसे खजांची के पास भेज दो ।
MASTER: "I admit that he has devotion to his ideal. He said to me, 'You don't care for me now, but later you will be seeking my company.' A goswami came from Srerampore. He was a descendant of Advaita Goswami. He intended to spend a night or two at the temple garden. I asked him very cordially to stay. Do you know what Hazra said to me? He said, 'Send him to the temple officer.'
শ্রীরামকৃষ্ণ — নিষ্ঠা আছে বটে।“সে আমায় বলে, এখন তোমার আমাকে ভাল লাগছে না, — কিন্তু পরে আমাকে তোমায় খুঁজতে হবে। শ্রীরামপুর থেকে একটি গোঁসাই এসেছিল, অদ্বৈত বংশ। ইচ্ছা, ওখানে একরাত্রি দুরাত্রি থাকে। আমি যত্ন করে তাকে থাকতে বললুম। হাজরা বলে কি, ‘খাজাঞ্চীর কাছে ওকে পাঠাও’।
उसके इस तरह कहने का मतलब यह था कि कहीं वह गोस्वामी कुछ माँग बैठे तो हाजरा के हिस्से से ही न देना हो ! मैंने कहा - 'क्यों रे साला, उसे गोस्वामी समझकर मैं तो लम्बा दण्डवत करता हूँ और तू संसार में रहकर कामिनी और कांचन लेकर अब कुछ जप करके इतना अहंकार कर रहा है ? - तुझे लज्जा नहीं आती ?'
What was in his mind was that the goswami might ask for milk or food, and that he might have to give him some from his own share. I said to Hazra: 'Now, you rogue! Even I prostrate myself before him because he is a goswami. And you, after leading a worldly life and indulging a great deal in "woman and gold", have so much pride because of a little japa! Aren't you ashamed of yourself?'
এ-কথার মানে এই যে, দুধটুধ পাছে চায়, তাহলে হাজরার ভাগ থেকে কিছু দিতে হয়। আমি বললুম, — তবে রে শালা! গোঁসাই বলে আমি ওর কাছে সাষ্টাঙ্গ হই, আর তুই সংসারে থেকে কামিনী-কাঞ্চন লয়ে নানা কাণ্ড করে — এখন একটু জপ করে এত অহংকার হয়েছে! লজ্জা করে না!
[(शनिवार, मई 9, 1885) श्रीरामकृष्ण वचनामृत-114]
🔱🙏समाधि के बाद सतोगुणी 'अहं ' ही माँ की भक्ति करता है🔱🙏
“सतोगुण से ईश्वर मिलते हैं, रजोगुण और तमोगुण ईश्वर से अलग कर देते हैं । सतोगुण की उपमा सफेद रंग से दी गयी है, रजोगुण की लाल और तमोगुण की काले से । मैंने एक दिन हाजरा से पूछा - 'तुम बताओ, किसमें कितना सतोगुण हुआ है ?' उसने कहा, 'नरेन्द्र को सोलह आना और मुझे एक रुपया दो आना ।' मैंने अपने लिए पूछा, 'मुझमें कितना है ?' उसने कहा, 'तुम्हारी तो ललाई अभी हट रही है, - तुम्हें बारह आना है ।' (सब हँसे)
"One realizes God through sattva. Rajas and tamas take one away from Him. The scriptures describe sattva as white, rajas as red, and tamas as black. Once I asked Hazra: Tell me what you think of the people that come here. How much sattva does each one possess?' He said, 'Narendra has one hundred per cent and I have one hundred and ten per cent.' 'What about me?' I asked. And he said: 'You still have a trace of pink. You have only seventy-five per cent, I should say.' (All laugh.)
“সত্ত্বগুণে ঈশ্বরকে পাওয়া যায়; রজঃ, তমোগুণে ঈশ্বর থেকে তফাত করে। সত্ত্বগুণকে সাদা রঙের সঙ্গে উপমা দিয়েছে, রজোগুণকে লাল রঙের সঙ্গে, আর তমোগুণকে কালো রঙের সঙ্গে। আমি একদিন হাজরাকে জিজ্ঞাসা করলাম, তুমি বল কার কত সত্ত্বগুণ হয়েছে। সে বললে, ‘নরেন্দ্রের ষোল আনা; আর আমার একটাকা দুইআনা।’ জিজ্ঞাসা করলাম, আমার কত হয়েছে? তা বললে, তোমার এখনও লালচে মারছে, — তোমার বার আনা। (সকলের হাস্য)
"दक्षिणेश्वर में बैठकर हाजरा जप करता था और उसी के भीतर से दलाली की भी कोशिश करता था । घर में कुछ हजार रुपया कर्ज था - उस कर्ज के अदा करने की फिक्र में था । भोजन पकानेवाले ब्राह्मणों के सम्बन्ध में उसने कहा था, 'इस तरह के आदमियों से क्या हम कभी बातचीत करते हैं ?'
"Hazra used to practise japa at Dakshineswar. While telling his beads, he would also try to do a little brokerage business. He has a debt of a few thousand rupees which he must clear up. About the brahmin cooks of the temple he remarked, 'Do you think I talk with people of that sort?'
“দক্ষিণেশ্বরে বসে হাজরা জপ করত। আবার ওরই ভিতর থেকে দালালির চেষ্টা করত! বাড়িতে কয় হাজার টাকা দেনা আছে — সেই দেনা শুধতে হবে। রাঁধুনী বামুনদের কথায় বলেছিল, ও-সব লোকের সঙ্গে আমরা কি কথা কই!”
[(शनिवार, मई 9, 1885) श्रीरामकृष्ण वचनामृत-114]
🔱🙏ऐषणाएँ ही मनुष्य जीवन के लक्ष्य को निर्धारित नहीं करने देतीं🔱🙏
[Lust and Lucre -ईश्वर (अन्तर्निहित निःस्वार्थपरता या ब्रह्मत्व) की अभिव्यक्ति में बाधक हैं]
[কামনা ঈশ্বরলাভের বিঘ্ন — ঈশ্বর বালকস্বভাব ]
"बात यह है कि थोड़ी भी कामना के रहते ईश्वर को कोई पा नहीं सकता । धर्म की गति सूक्ष्म है । सुई के छेद में सूत डाल रहे हो, परन्तु अगर जरा भी सूत उकसा हुआ हो तो छेद के भीतर कदापि नहीं जा सकता ।
"The truth is that you cannot attain God if you have even a trace of desire. Subtle is the way of dharma. If you are trying to thread a needle, you will not succeed if the thread has even a slight fibre sticking out.
“কি জানো, একটু কামনা থাকলে ভগবানকে পাওয়া যায় না। ধর্মের সূক্ষ্ম গতি! ছুঁচে সুতা পরাচ্ছ — কিন্তু সুতার ভিতর একটু আঁস থাকলে ছুঁচে ভিতর প্রবেশ করবে না।
[(शनिवार, मई 9, 1885) श्रीरामकृष्ण वचनामृत-114]
[39 वां राष्ट्रीय युवा दिवस मनाने के बाद भी....या ]
🔱🙏मनुष्य का चरित्र गठन क्यों नहीं होता🔱🙏
"तीस साल तक लोग माला फेरते रहते हैं, फिर भी कुछ नहीं होता – क्यों ? “विषैला घाव (gangrenous sore) होने पर कण्डे की आग से सेंका जाता हैं । साधारण दवा से आराम नहीं होता ।
"There are people who perform japa for thirty years and still do not attain any result. Why? A gangrenous sore requires very drastic treatment. Ordinary medicine won't cure it.
“ত্রিশ বছরর মালা জপে, তবু কেন কিছু হয় না? ডাকুর ঘা হলে ঘুঁটের ভাবরা দিতে হয় না। না হলে শুধু ঔষধে আরাম হয় না।
“कामना के रहते हुए चाहे जितनी साधना करो, सिद्धि नहीं मिल सकती । परन्तु एक बात है, ईश्वर की कृपा होने पर, उनकी दया होने पर क्षण भर में सिद्धि मिलती है; जैसे हजार साल का अन्धेरा कमरा - एकाएक अगर कोई दिया ले जाता है तो क्षण भर में प्रकाशित हो जाता है ।
"No matter how much sadhana you practise, you will not realize the goal as long as you have desire. But this also is true, that one can realize the goal in a moment through the grace of God, through His kindness. Take the case of a room that has been dark a thousand years. If somebody suddenly brings a lamp into it, the room is lighted in an instant.
“কামনা থাকতে, যত সাধনা কর না কেন, সিদ্ধিলাভ হয় না। তবে একটি কথা আছে — ঈশ্বরের কৃপা হলে, ঈশ্বরের দয়া হলে একক্ষণে সিদ্ধিলাভ করতে পারে। যেমন হাজার বছরের অন্ধকার ঘর, হঠাৎ কেউ যদি প্রদীপ আনে, তাহলে একক্ষণে আলো হয়ে যায়!
“जैसे गरीब का लड़का बड़े आदमी की दृष्टि में पड़ गया हो; उसके साथ उसने अपनी लड़की का विवाह कर दिया । एक साथ ही चरचकवा- गाड़ी (equipage) -घोड़े, दास-दासी, माल-असबाब, घर-द्वार, सब कुछ हो गया ।"
"Suppose a poor man's son has fallen into the good graces of a rich person. He marries his daughter. Immediately he gets an equipage, clothes, furniture, a house, and other things."
[( 9 मई , 1885 ) श्रीरामकृष्ण वचनामृत-114 ]
🔱🙏ईश्वर का स्वभाव बालक जैसा है, माँगने पर नहीं; बिन माँगे देता है।🔱🙏
एक भक्त - महाराज, कृपा किस तरह होती है ?
A DEVOTEE: "Sir, how does one receive God's grace?"
একজন ভক্ত — মহাশয়, কৃপা কিরূপে হয়?
श्रीरामकृष्ण - ईश्वर बालस्वभाव हैं, जैसे कोई लड़का अपनी धोती के पल्ले में रत्न भरे बैठा हो । कितने ही आदमी रास्ते से चले जा रहे हैं । उससे बहुतेरे रत्न माँग रहे हैं, परन्तु वह कपड़े में हाथ डाले हुए कहता है, 'नहीं, मैं न दूँगा ।' पर किसी एक ने चाहा ही नहीं, अपने रास्ते चला जा रहा है । उसके पीछे दौड़कर उसने उसकी स्वयं खुशामद करके उसे रत्न दे दिये ।
MASTER: "God has the nature of a child. A child is sitting with gems in the skirt of his cloth. Many a person passes by him along the road. Many of them pray to him for gems. But he hides the gems with his hands and says, turning away his face, 'No, I will not give any away.' But another man comes along. He doesn't ask for the gems; and yet the child runs after him and offers him the gems, begging him to accept them.
শ্রীরামকৃষ্ণ — ঈশ্বর বালকস্বভাব। যেমন কোন ছেলে কোঁচড়ে রত্ন লয়ে বসে আছে! কত লোক রাস্তা দিয়ে চলে যাচ্ছে। অনেকে তার কাছে রত্ন চাচ্ছে। কিন্তু সে কাপড়ে হাত চেপে মুখ ফিরিয়ে বলে, না আমি দেব না। আবার হয়ত যে চায়নি, চলে যাচ্ছে, পেছনে পেছনে দৌড়ে গিয়ে সেধে তাকে দিয়ে ফেলে!
[( 9 मई , 1885 ) श्रीरामकृष्ण वचनामृत-114 ]
🔱🙏पहले त्याग - तब समाधि🔱🙏
[ত্যাগ — তবে ঈশ্বরলাভ — পূর্বকথা — সেজোবাবুর ভাব ]
"त्याग के बिना ईश्वर नहीं मिलते ।"मेरी बात कौन लेता है ? मैं आदमी खोज रहा हूँ, - अपने भाव का आदमी । जिसे अच्छा भक्त देखता हूँ, उसके लिए सोचता हूँ कि वह शायद मेरा भाव ले सके । फिर देखता हूँ, वह एक दूसरे ढँग का हो जाता है ।
"One cannot realize God without renunciation. Who will accept my words? I have been seeking a companion, a sympathetic soul who will understand my feelings. When I see a great devotee, I say to myself, 'Perhaps he will accept my ideal.' But later on I find that he behaves in a different way.
শ্রীরামকৃষ্ণ — ত্যাগ না হলে ঈশ্বরকে পাওয়া যায় না।“আমার কথা লবে কে? আমি সঙ্গী খুঁজছি, — আমার ভাবের লোক। খুব ভক্ত দেখলে মনে হয়, এই বুঝি আমার ভাব নিতে পারবে। আবার দেখি, সে আর-একরকম হয়ে যায়!
"एक भूत अपना साथी खोज रहा था । शनिवार या मंगल को अपघात मृत्यु होने पर भूत होता है । भूत जब कभी देखता था कि शनिवार या मंगल को उसी तरह किसी की मृत्यु होनेवाली है तब उसके पास दौड़ जाता था । सोचता था, अब मुझे एक साथी मिला । परन्तु वह उसके पास गया नहीं कि वह आदमी उठकर बैठ जाता था । छत से गिरकर कोई बेहोश हुआ भी किसी तरह होश में आ जाता था ।
"A ghost sought a companion. One becomes a ghost if one dies from an accident on a Saturday or a Tuesday. So whenever the ghost found someone who seemed to be dying from an accident on either of these days, he would run to him. He would say to himself that at last he had found his companion. But no sooner would he run to the man than he would see the man getting up. The man, perhaps, had fallen from a roof and after a few moments regained consciousness.
“একটা ভূত সঙ্গী খুঁছিল। শনি মঙ্গলবারে অপঘাত-মৃত্যু হলে ভূত হয়। ভূতটা, যেই দেখে কেউ শনি মঙ্গলবারে ওইরকম করে মরছে, অমনি দৌড়ে যায়। মনে করে, এইবার বুঝি আমার সঙ্গী হল। কিন্তু কাছেও যাওয়া, আর সে লোকটা দাঁড়িয়ে উঠেছে। হয়তো ছাদ থেকে পড়ে অজ্ঞান হয়েছে, আবার বেঁচে উঠেছে।
"मथुरबाबू को भावावेश (भाव-विभोर) हुआ । वे सदा मतवाले की तरह रहते थे - कोई काम न कर सकते थे । तब लोग कहने लगे, ‘इस तरह रहोगे तो जायदाद कौन सम्हालेगा ? छोटे भट्टाचार्य (श्रीरामकृष्ण) ने ही कोई यन्त्र-मन्त्र किया होगा ।'
"Once Mathur Babu was in an ecstatic mood. He behaved like a drunkard and could not look after his work. At this all said: 'Who will look after his estate it he behaves like that? Certainly the young priest (Sri Ramakrishna, who was at that time a priest in the Kali temple.) has cast a spell upon him.'
“সেজোবাবুর ভাব হল। সর্বদাই মাতালের মতো থাকে — কোনও কাজ করতে পারে না। তখন সবাই বলে, এরকম হলে বিষয় দেখবে কে? ছোট ভট্চার্জি নিশ্চয় কোনও তুক্ করেছে।”
[( 9 मई , 1885 ) श्रीरामकृष्ण वचनामृत-114 ]
🔱🙏नरेंद्र ने पहले -पहल समाधि को बेहोशी समझा 🔱🙏
"नरेन्द्र जब पहले-पहल आया था, तब इसकी छाती पर हाथ रखते ही यह बेहोश हो गया । फिर होश में आकर रोते हुए कहने लगा - 'अजी, मुझे तुमने ऐसा क्यों कर दिया ? – मेरे बाबूजी हैं - मेरी माँ जो हैं ।' 'मेरा-मेरा' करना, वह अज्ञान से होता है ।
"During one of Narendra's early visits I touched his chest and he became unconscious. Regaining consciousness, he wept and said: 'Oh, why did you do that to me? I have a father! I have a mother!' This 'I' and 'mine' spring from ignorance.
“নরেন্দ্র যখন প্রথম প্রথম আসে, ওর বুকে হাত দিতে বেহুঁশ হয়ে গেল। তারপর চৈতন্য হলে কেঁদে বলতে লাগল, ওগো আমায় এমন করলে কেন? আমার যে বাবা আছে, আমার যে মা আছে গো! ‘আমার’, ‘আমার’ করা, এটি অজ্ঞান থেকে হয়।
[( 9 मई , 1885 ) श्रीरामकृष्ण वचनामृत-114 ]
गुरु के शिष्य की दो कहानियां
🔱🙏'संसार मिथ्या है, तू मेरे साथ निकल चल ।' 🔱🙏
The world is illusory. Come away with me.'
“गुरु ने शिष्य से कहा, 'संसार मिथ्या है, तू मेरे साथ निकल चल ।' शिष्य ने कहा, 'महाराज, ये सब मुझे इतना चाहते हैं - मेरे बाबूजी, मेरी माँ, मेरी स्त्री - इन्हें छोड़कर मैं कैसे जाऊँ ? गुरु ने कहा, 'तू मेरा-मेरा करता तो है, और कहता है कि ये सब प्यार करते हैं, परन्तु यह सब भूल है । मैं तुझे एक उपाय बतलाता है, उसे करके देख, तो तू समझ जायेगा कि ये लोग तुझे सचमुच प्यार करते हैं या इसमें दिखावट है ।'यह कहकर एक दवा उन्होंने उसके हाथ में दी और कहा, 'इसे खा लेना, खाने पर तू मुर्दे की तरह हो जायेगा तेरा ज्ञान नष्ट न होगा, तू सब देख-सुन सकेगा । फिर मेरे आने पर क्रमश: तेरी पहले की अवस्था हो जायेगी ।'
"A guru said to his disciple: 'The world is illusory. Come away with me.' 'But, revered sir,' said the disciple, 'my people at home — my father, my mother, my wife — love me so much. How can I give them up?' The guru said: 'No doubt you now have this feeling of "I" and "mine" and say that they love you; but this is all an illusion of your mind. I shall teach you a trick, and you will know whether they love you truly or not.' Saying this, the teacher gave the disciple a pill and said to him: 'Swallow this at home. You will appear to be a corpse, but you will not lose consciousness. You will see everything and hear everything. Then I shall come to your house and gradually you will regain your normal state.'
“গুরু শিষ্যকে বললেন, সংসার মিথ্যা; তুই আমার সঙ্গে চলে আয়। শিষ্য বললে, ঠাকুর এরা আমায় এত ভালবাসে — আমার বাপ, আমার মা, আমার স্ত্রী — এদের ছেড়ে কেমন করে যাব। গুরু বললেন, তুই ‘আমার’ ‘আমার’ করছিস বটে, আর বলছিস ওরা ভালবাসে, কিন্তু ও-সব ভুল। আমি তোকে একটা ফন্দি শিখিয়ে দিচ্ছি, সেইটি করিস, তাহলে বুঝবি সত্য ভালবাসে কি না! এই বলে একটা ঔষধের বড়ি তার হাতে দিয়ে বললেন, এইটি খাস, মড়ার মতন হয়ে যাবি! তোর জ্ঞান যাবে না, সব দেখতে শুনতে পাবি। তারপর আমি গেলে তোর ক্রমে ক্রমে পূর্বাবস্থা হবে।
"शिष्य ने ठीक वैसा ही किया । घर में सब रोने लगे । उसकी माता, स्त्री, सब के सब उल्टी पछाड़ें खाने लगी । इसी समय एक ब्राह्मण ने आकर पूछा, 'यहाँ क्या हुआ है ?" उन लोगों ने कहा, "महाराज, इस लड़के को राम ले गये ।' ब्राह्मण ने उस मुर्दे का हाथ देखकर कहा, 'यह क्या - यह तो मरा नहीं है । मैं एक दवा देता हूँ, उसके खाने से यह अभी चंगा हो जायेगा । उस समय डूबते हुए को जैसे सहारा मिल गया, - घरवाले बड़े प्रसन्न हुए । तब ब्राह्मण ने कहा, ‘परन्तु एक बात है, पहले एक दूसरे आदमी को दवा खानी पड़ेगी, फिर इसे । परन्तु पहले जो दवा खायेंगे, उनकी मृत्यु अनिवार्य है । इसके तो अपने आदमी बहुत हैं, कोई न कोई दवा अवश्य ही खा लेगा । इसकी माँ और इसकी स्त्री बहुत रो रही हैं, ये लोग तो अनायास ही दवा खा लेंगी ।'
"The disciple followed the teacher's instructions and lay on his bed like a dead person. The house was filled with loud wailing. His mother, his wife, and the others lay on the ground weeping bitterly. Just then a brahmin entered the house and said to them, 'What is the matter with you?' 'This boy is dead', they replied. The brahmin felt his pulse and said: 'How is that? No, he is not dead. I have a medicine for him that will cure him completely.' The joy of the relatives was unbounded; it seemed to them that heaven itself had come down into their house. 'But', said the brahmin, 'I must tell you something else. Another person must take some of this medicine first, and then the boy must swallow the rest. But the other person will die. I see he has so many dear relatives here; one of them will certainly agree to take the medicine. I see his wife and mother crying bitterly. Surely they will not hesitate to take it.'
“শিষ্যটি ঠিক ওইরূপ করলে। বাড়িতে কান্নাকাটি পড়ে গেল। মা, স্ত্রী, সকলে আছড়া-পিছড়ি করে কাঁদছে। এমন সময় একটি ব্রাহ্মণ এসে বললে, কি হয়েছে গা? তারা সকলে বললে, এ ছেলেটি মারা গেছে। ব্রাহ্মণ মরা মানুষের হাত দেখে বললেন, সে কি, এ তো মরে নাই। আমি একটি ঔষধ দিচ্ছি, খেলেই সব সেরে যাবে! বাড়ির সকলে তখন যেন হাতে স্বর্গ পেল। তখন ব্রাহ্মণ বললেন, তবে একটি কথা আছে। ঔষধটি আগে একজনের খেতে হবে, তারপর ওর খেতে হবে। যিনি আগে খাবেন, তাঁর কিন্তু মৃত্যু হবে। এর তো অনেক আপনার লোক আছে দেখছি, কেউ না কেউ অবশ্য খেতে পারে। মা কি স্ত্রী এঁরা খুব কাঁদছেন, এঁরা অবশ্য পারেন।
"तब वे सब की सब रोना-धोना बन्द करके चुप हो रहीं । माता ने कहा, 'ऐं, यह इतना बड़ा परिवार, मैं अगर मर गयी तो इन सब की देख-रेख के लिए कौन रहेगा ?’ - यह कहकर वे सोचने-विचारने लगीं । उसकी स्त्री कुछ देर पहले रो रही थी - ‘अरी मेरी दीदी, मुझे यह क्या हो गया – री - ' उसने कहा, 'अरे उन्हें जो होना था, सो तो हो चुका, मेरे दो-तीन नाबालिग लड़के-बच्चे हैं, मैं अगर मर गयी तो फिर इन्हें कौन देखेगा ?'
"At once the weeping stopped and all sat quiet. The mother said: 'Well, this is a big family. Suppose I die; then who will look after the family?' She fell into a reflective mood. The wife, who had been crying a minute before and bemoaning her ill luck, said: 'Well, he has gone the way of mortals. I have these two or three young children. Who will look after them if I die?'
“তখন তারা সব কান্না থামিয়ে, চুপ করে রহিল। মা বললেন, তাই তো এই বৃহৎ সংসার, আমি গেলে, কে এই সব দেখবে শুনবে, এই বলে ভাবতে লাগলেন। স্ত্রী এইমাত্র এই বলে কাঁদছিল — “দিদি গো আমার কি হল গো!’ সে বললে, তাই তো, ওঁর যা হবার হয়ে গেছে। আমার দুটি-তিনটি নাবালক ছেলেমেয়ে — আমি যদি যাই এদের কে দেখবে।
"शिष्य सब देख-सुन रहा था । वह उठकर खड़ा हो गया और कहा, 'गुरुजी, चलिये, आपके साथ चलता हूँ ।' (सब हँसते हैं)
"The disciple saw everything and heard everything. He stood up at once and said to the teacher: 'Let us go, revered sir. I will follow you.' (All laugh.)
“শিষ্য সব দেখছিল শুনছিল। সে তখন দাঁড়িয়ে উঠে পড়ল; আর বললে, গুরুদেব চলুন, আপনার সঙ্গে যাই। (সকলের হাস্য)
[( 9 मई , 1885 ) श्रीरामकृष्ण वचनामृत-114 ]
🔱🙏हठयोगी द्वारा 'पत्नी-प्रेम की जाँच' 🔱🙏
"एक शिष्य और था । उसने अपने गुरु से कहा था, "मेरो स्त्री मेरी बड़ी सेवा करती है, गुरुजी, मैं उसी के लिए संसार नहीं छोड़ सकता ।' वह शिष्य हठयोग करता था । गुरु ने उसे भी 'पत्नी-प्रेम की जाँच' की एक करतब बतलाया । एकाएक उसके घर में खूब रोना-धोना मच गया । पड़ोसवालों ने आकर देखा, घर में आसन लगाकर हठयोगी बैठा हुआ था, - देह के पुर्जे-पुर्जे टेढ़े हो गये थे ।
."Another disciple said to his teacher: 'Revered sir, my wife takes great care of me. It is for her sake that I cannot give up the world.' The disciple practised hathayoga. The teacher taught him, too, a trick to test his wife's love. One day there was a great wailing in his house.
“আর-একজন শিষ্য গুরুকে বলেছিল, আমার স্ত্রী বড় যত্ন করে, ওর জন্য গুরুদেব যেতে পারছি না। শিষ্যটি হঠযোগ করত। গুরু তাকেও একটি ফন্দি শিখিয়ে দিলেন। একদিন তার বাড়িতে খুব কান্নাকাটি পড়েছে।
सब ने समझा, उसके प्राण निकल गये हैं । स्त्री पछाड़ें खा रही थी - 'अरे, मेरे भाग्य में क्या यही लिखा था रे - हम अनाथों को छोड़कर तुम कहाँ चले गये – राम - अरी मेरी दीदी री - ऐसा होगा यह मैं नहीं जानती थी री –’ इधर उसके आत्मीय और मित्र खाट ले आये । उसे घर से निकालने लगे ।
The neighbours came running and saw the hathayogi seated in a posture, his limbs paralysed and distorted. They thought he was dead. His wife fell on the ground, weeping piteously: 'Oh, what has befallen me? How have you provided for our future? Oh, friends, I never dreamt I should meet such a fate!'
পাড়ার লোকেরা এসে দেখে হঠযোগী ঘরে আসনে বসে আছে — এঁকে বেঁকে, আড়ষ্ট হয়ে। সব্বাই বুঝতে পারলে, তার প্রাণবায়ু বেরিয়ে গেছে। স্ত্রী আছড়ে কাঁদছে, ‘ওগো আমাদের কি হল গো — ওগো তুমি আমাদের কি করে গেলে গো — ওগো দিদি গো, এমন হবে তা জানতাম না গো!’ এদিকে আত্মীয় বন্ধুরা খাট এনেছে, ওকে ঘর থেকে বার করছে।
"इसी समय एक अड़चन हुई । सब देह टेढ़ी हो जाने के कारण, लाश कोठरी के द्वार से निकलती न थी । तब एक पड़ोसी दौड़कर कटारी लेकर चौखट काटने लगा । स्त्री अधीर होकर रो रही थी । वह काटने की आवाज सुनकर दौड़ी हुई आयी । रोते हुए उसने पूछा - 'यह क्या करते हो – दा - दा –’ उन लोगों ने कहा, 'ये नहीं निकलते इसलिए चौखट काट रहा हूँ ।'
"In the mean time the relatives and friends had brought a cot to take the corpse out. But suddenly a difficulty arose as they started to move it. Since the body was twisted and stiff, it could not be taken out through the door. A neighbour quickly brought an axe and began to chop away the door-frame. The wife was crying bitterly, when she heard the sound of the axe. She ran to the door. 'What are you doing, friends?' she asked, still weeping. The neighbour said, 'We can't take the body out; so we are chopping away the door-frame.'
“এখন একটি গোল হল। এঁকে বেঁকে আড়ষ্ট হয়ে থাকাতে দ্বার দিয়ে বেরুচ্ছে না। তখন একজন প্রতিবেশী দৌড়ে একটি কাটারি লয়ে দ্বারের চৌকাঠ কাটতে লাগল। স্ত্রী অস্থির হয়ে কাঁদছিল, সে দুমদুম শব্দ শুনে দৌড়ে এল। এসে কাঁদতে কাঁদতে জিজ্ঞাসা করলে, ওগো কি হয়েছে গো! তারা বললে, ইনি বেরুচ্ছেন না, তাই চৌকাঠ কাটছি। তখন স্ত্রী বললে, ওগো, অমন কর্ম করো না গো।
तब स्त्री ने कहा - 'अरे मेरे दादा - ऐसा काम न करो, मैं तो राँड़ अब हो ही गयी हूँ । मेरे घर का सम्हालनेवाला तो अब कोई रहा ही नहीं, कुछ नाबालिग बच्चे हैं, उन्हें पालकर आदमी बनाना है ! यह दरवाजा चला जायेगा तो दूसरा होने का है ही नहीं, उन्हें जो होना था, सो तो हो ही चुका - उन्हीं के हाथ-पैर काट दो ।' तब हठयोगी उठकर खड़ा हो गया । तब दवा का असर जाता रहा था ।
"'Please', said the wife, 'don't do any such thing. I am a widow now; I have no one to look after me. I have to bring up these young children. If you destroy this door, I shall not be able to replace it. Friends, death is inevitable for all, and my husband cannot be called back to life. You had better cut his limbs.'
— আমি এখন রাঁড় বেওয়া হলুম। আমার আর দেখবার লোক কেউ নাই, কঠি নাবালক ছেলেকে মানুষ করতে হবে! এ দোয়ার গেলে আর তো হবে না। ওগো, ওঁর যা হবার তা তো হয়ে গেছে — হাত-পা ওঁর কেটে দাও! তখন হঠযোগী দাঁড়িয়া পড়ল। তার তখন ঔষধের ঝোঁক চলে গেছে।
खड़ा होकर उसने कहा - 'क्यों री साली, हाथ-पैर कटाती है ?' यह कहकर घर छोड़ गुरु के पास चला गया । (सब हँसते हैं)
The hathayogi at once stood up. The effect of the medicine had worn off. He said to his wife: 'You evil one! You want to cut off my hands and feet, do you?' So saying, he renounced home and followed his teacher. (All laugh.)
দাঁড়িয়ে বলছে, ‘তবে রে শালী, আমার হাত-পা কাটবে।’ এই বলে বাড়ি ত্যাগ করে গুরুর সঙ্গে চলে গেল। (সকলের হাস্য)
"बड़ा ढोंग करके स्त्रियाँ रोती हैं । रोने की खबर मिलती है, तो पहले नथ खोल डालती हैं, फिर और और गहने खोलकर सन्दूक के अन्दर ताला लगाकर सुरक्षित रख देती हैं । फिर पछाड़ खा-खाकर रोती हैं - 'अरी दीदी - मेरा यह क्या हुआ री –’ "
"Many women make a show of grief. Knowing beforehand that they will have to weep, they first take off their nose-rings and other ornaments, put them securely in a box, and lock it. Then they fall on the ground and weep, 'O friends, what has befallen us?'"
“অনেকে ঢং করে শোক করে। কাঁদতে হবে জেনে আগে নৎ খোলে আর আর গহনা খোলে; খুলে বাক্সর ভিতর চাবি দিয়ে রেখে দেয়। তারপর আছড়ে এসে পড়ে, আর কাঁদে, ‘ওগো দিদিগো, আমার কি হল গো’!”
(२)
[( 9 मई , 1885 ) श्रीरामकृष्ण वचनामृत-114 ]
🔱🙏 श्रीरामकृष्ण माँ काली के अवतार हैं- बिना प्रमाण के विश्वास कैसे करें ?🔱🙏
नरेन्द्र - Proof (प्रमाण) के बिना कैसे विश्वास करूँ कि ईश्वर आदमी होकर आते हैं ?
NARENDRA: "How can I believe, without proof, that God incarnates Him self as a man?"
নরেন্দ্র — Proof (প্রমাণ) না হলে কেমন করে বিশ্বাস করি যে, ঈশ্বর মানুষ হয়ে আসেন।
गिरीश - विश्वास ही Sufficient Proof (यथेष्ट प्रमाण) है । यह वस्तु यहाँ है, इसका क्या प्रमाण है ? विश्वास ही इसका प्रमाण है ।
GIRISH: "Faith alone is sufficient. What is the proof that these objects exist here? Faith alone is the proof."
গিরিশ — বিশ্বাসই sufficient proof (যথেষ্ট প্রমাণ)। এই জিনিসটা এখানে আছে, এর প্রমাণ কি? বিশ্বাসই প্রমান।
[( 9 मई , 1885 ) श्रीरामकृष्ण वचनामृत-114 ]
🔱🙏दृष्टिगोचर बाह्य जगत केवल एक अप्रतिरोध्य विश्वास है 🔱🙏
[The visible external world is only an irresistible belief]
দৃশ্যমান বাহ্যিক জগত শুধুমাত্র একটি অপ্রতিরোধ্য বিশ্বাস
एक भक्त - External World (बहिर्जगत्) बाहर है, इस बात को क्या कोई Philosopher ( दार्शनिक) Prove (प्रमाणित) कर सका है ? केवल कहा है - Irresistible Belief (अप्रतिरोध्य विश्वास) ।
A DEVOTEE: "Have philosophers been able to prove that the external world exists outside us? But they say we have an irresistible belief in it."
একজন ভক্ত — External world (বহির্জগৎ) বাহিরে আছে ফিলসফার (দার্শনিকরা) কেউ Prove করতে পেরেছে? তবে বলেছে irresistible belief (বিশ্বাস)।
गिरीश (नरेन्द्र से) - ईश्वर सामने आने पर भी तो तुम विश्वास नहीं करोगे । यदि ईश्वर कहेंगे, 'मैं ईश्वर हूँ, मनुष्य के शरीर में आया हुआ हूँ’, तुम शायद कहोगे कि वे झूठ बोल रहे हैं - धोखा दे रहे हैं ।
GIRISH (to Narendra): "You wouldn't believe, even if God appeared before you. God Himself might say that He was God born as a man, but perhaps you would say that He was a liar and a cheat."
গিরিশ (নরেন্দ্রের প্রতি) — তোমার সম্মুখে এলেও তো বিশ্বাস করবে না! হয়তো বলবে, ও বলছে আমি ঈশ্বর, মানুষ হয়ে এসেছি, ও মিথ্যাবাদী ভণ্ড।
[( 9 मई , 1885 ) श्रीरामकृष्ण वचनामृत-114 ]
🔱🙏क्या देवता अमर होते हैं ?🔱🙏
अब यह बात चली कि देवता अमर हैं ।
The conversation turned to the immortality of the gods.
দেবতারা অমর এই কথা পড়িল।
नरेन्द्र - इसका प्रमाण क्या है ?
NARENDRA: "What is the proof of their immortality?"
নরেন্দ্র — তার প্রমাণ কই?
गिरीश - पर तुम्हारे सामने आने पर भी तो विश्वास नहीं करोगे ।
GIRISH: "You wouldn't believe it even if the gods appeared before you."
গিরিশ — তোমার সামনে এলেও তো বিশ্বাস করবে না!
नरेन्द्र - अमर, अतीतकाल में थे इसका प्रमाण भी तो चाहिए । मणि फुसफुसाकर पल्टू से कुछ कह रहे हैं ।
NARENDRA: "That the immortals existed in the past requires proof."
নরেন্দ্র — অমর, past-ages-তে ছিল, প্রুফ চাই।
[( 9 मई , 1885 ) श्रीरामकृष्ण वचनामृत-114 ]
🔱🙏तीन तत्व हैं अनादि….भगवान, जीव और माया।🔱🙏
पल्टू (नरेन्द्र से, हँसकर) - अमर के लिए अनादि की क्या जरूरत है ? होना है तो अनन्त होना चाहिए ।
M. whispered something to Paltu.PALTU (smiling, to Narendra): "What need is there for the immortals to be without beginning? To be immortal one need only be without end."
মণি পল্টুকে কি বলিতেছেন। পল্টু (নরেন্দ্রের প্রতি, সহাস্যে) — অনাদি কি দরকার? অমর হতে গেলে অনন্ত হওয়া দরকার।
श्रीरामकृष्ण (सहास्य) - नरेन्द्र वकील का लड़का है, पल्टू डिप्टी का लड़का है । (सब हँसते हैं)
MASTER (smiling): "Narendra is the son of a lawyer, but Paltu of a deputy magistrate." (All laugh.)
শ্রীরামকৃষ্ণ (সহাস্যে) — নরেন্দ্র উকিলের ছেলে, পল্টু ডেপুটির ছেলে। (সকলের হাস্য)
सब कुछ देर चुप हो रहे ।
All kept silent awhile.
সকলে একটু চুপ করিয়া আছেন।
योगीन्द्र (गिरीश आदि भक्तों से, सहास्य) - नरेन्द्र की बातों में ये (श्रीरामकृष्ण) अब नहीं आते ।
JOGIN (smiling): "He [meaning the Master] doesn't accept Narendra's words any more."
যোগীন (গিরিশাদি ভক্তদের প্রতি সহাস্যে) — নরেন্দ্রের কথা ইনি (ঠাকুর) আর লন না।
श्रीरामकृष्ण (हँसकर) - मैंने एक दिन कहा था, चातक आकाश के पानी के सिवा और पानी नहीं पीता । नरेन्द्र ने कहा, 'चातक यह पानी भी पीता है ।' तब मैंने माँ से कहा, 'माँ, ये सब बातें क्या झूठ हो गयीं ?' मुझे बड़ी चिन्ता थी । एक दिन नरेन्द्र आया । कमरे के भीतर कुछ चिड़ियाँ उड़ रही थीं । देखकर उसने कहा, 'यही है - यही है !' मैंने पूछा, ‘क्या ?' उसने कहा, 'यही चातक है ।' मैंने देखा, कुछ चमगीदड़ उड़ रहे थे ! तभी से मैं उसकी बातों को ग्रहण नहीं करता । (सब हँसते हैं)
MASTER (smiling): "One day I remarked that the chatak bird doesn't drink any water except that which falls from the sky. Narendra said, 'The chatak drinks ordinary water as well.' Then I said to the Divine Mother, 'Mother, then are my words untrue?' I was greatly worried about it. Another day, later on, Narendra was here. Several birds were flying about in the room. He exclaimed, 'There! There!' 'What is there?' I asked. He said, 'There is your chatak!' I found they were only bats. Since that day I don't accept what he says. (All laugh.)
শ্রীরামকৃষ্ণ (সহাস্যে) — আমি একদিন বলছিলাম, চাতক আকাশের জল ছাড়া আর কিছু খায় না। নরেন্দ্র বললে, চাতক এ-জলও খায়। তখন মাকে বললুম, মা এ-সব কথা কি মিথ্যা হয়ে গেল! ভারী ভাবনা হল। একদিন আবার নরেন্দ্র এসেছে। ঘরের ভিতর কতকগুলি পাখি উড়ছিল দেখে বলে উঠল, ‘ওই! ওই!’ আমি বললাম, কি? ও বললে, ‘ওই চাতক! ওই চাতক!’ দেখি কতকগুলো চামচিকে। সেই থেকে ওর কথা আর লই না। (সকলের হাস্য)
[( 9 मई , 1885 ) श्रीरामकृष्ण वचनामृत-114 ]
🔱🙏भगवान-का दर्शन हो जाना क्या मन का भ्रम है?🔱🙏
Is seeing God an illusion of the mind?
[ঈশ্বর-রূপদর্শন কি মনের ভুল? ]
"यदु मल्लिक के बगीचे में नरेन्द्र ने कहा, 'तुम ईश्वर के रूप जितने देखते हो, सब तुम्हारे मन का भ्रम है ।' तब आश्चर्य में आकर मैंने उससे कहा, 'क्यों रे, वे बातचीत जो करते हैं ।' नरेन्द्र ने कहा, 'मनुष्य ऐसा ही सोचता है ।' तब माँ के पास आकर मैं रोने लगा । कहा, 'माँ, यह क्या हुआ ? - क्या सब झूठ है ? नरेन्द्र ऐसी बातें कहता है ।'
"At Jadu Mallick's garden house Narendra said to me, 'The forms of God that you see are the fiction of your mind.' I was amazed and said to him, 'But they speak too!' Narendra answered, 'Yes, one may think so.' I went to the temple and wept before the Mother. 'O Mother,' I said, 'what is this? Then is this all false? How could Narendra say that?'
শ্রীরামকৃষ্ণ — যদু মল্লিকের বাগানে নরেন্দ্র বললে, তুমি ঈশ্বরের রূপ-টুপ যা দেখ, ও মনের ভুল। তখন অবাক্ হয়ে ওকে বললাম, কথা কয় যে রে? নরেন্দ্র বললে, ও অমন হয়। তখন মার কাছে এসে কাঁদতে লাগলাম! বললাম, মা, এ কি হল! এ-সব কি মিছে? নরেন্দ্র এমন কথা বললে!
तब माँ ने दिखलाया, चैतन्य - अखण्ड चैतन्य - चैतन्यमय रूप । और उन्होंने कहा, 'अगर ये बातें झूठ होगी, तो ये सब मिलती किस तरह हैं ?' तब मैंने नरेन्द्र से कहा, 'साला, तूने अविश्वास पैदा कर दिया था । तू साला अब यहाँ मत आना ।’"
Instantly I had a revelation. I saw Consciousness — Indivisible Consciousness — and a divine being formed of that Consciousness. The divine form said to me, 'If your words are untrue, how is it that they tally with the facts?' Thereupon I said to Narendra: 'You rogue! You created unbelief in my mind. Don't come here any more.'"
তখন দেখিয়ে দিলে — চৈতন্য — অখণ্ড চৈতন্য — চৈতন্যময় রূপ। আর বললে, ‘এ-সব কথা মেলে কেমন করে যদি মিথ্যা হবে!’ তখন বলেছিলাম, ‘শালা, তুই আমায় অবিশ্বাস করে দিছলি! তুই আর আসিস নি!’
[( 9 मई , 1885 ) श्रीरामकृष्ण वचनामृत-114 ]
🔱🙏 शास्त्र भी ईश्वर की वाणी - आकाशवाणी या इहलाम है 🔱🙏
[ঠাকুর শ্রীরামকৃষ্ণ — শাস্ত্র ও ঈশ্বরের বাণী — Revelation ]
फिर विचार होने लगा । नरेन्द्र तर्क कर रहे हैं । नरेन्द्र की उम्र इस समय बाईस वर्ष चार मास की है ।
The discussion continued. Narendra was arguing. He was then slightly over twenty-two years of age.
আবার বিচার হইতে লাগিল। নরেন্দ্র বিচার করিতেছেন! নরেন্দ্রের বয়স এখন ২২ বৎসর চার মাস হইবে।
नरेन्द्र (गिरीश, मास्टर आदि से) - शास्त्रों पर भी कैसे विश्वास करूँ ? महानिर्वाण-तन्त्र एक बार तो कहता है, ब्रह्मज्ञान के बिना नरक होगा । फिर कहता है, पार्वती की उपासना को छोड़ और उपाय नहीं है । मनुसंहिता में मनुजी कुछ लिखते हैं - वे उन्हीं की अपनी बातें हैं । Moses (मूसा) लिखते हैं Pentateuch (पेन्टट्यूच-या पंचग्रंथ बाइबिल में मूसा की पांच पुस्तकें हैं), - उसमें भी उन्होंने अपनी ही मृत्यु का वर्णन लिखा है ।
[>>>पेन्टट्यूच-या पंचग्रंथ : बाइबल के प्रथम पाँच पुस्तकों के नाम हैं, जिन्हें बाइबल के रूढ़ीवादी धर्मविज्ञानी मूसा के द्वारा लिखा हुआ मानते हैं। जबकि पंचग्रन्थ में ऐसे कई वचन पाए जाते हैं, जो ऐसा प्रतीत होता है कि मूसा के अतिरिक्त किसी अन्य के द्वारा जोड़े गए हैं — उदाहरण के लिए, व्यवस्थाविवरण 34:5-8, जो मूसा की मृत्यु और उसके गाड़े जाने का विवरण देता है — तथापि, अधिकांश विद्वान इन पुस्तकों में से अधिकांश भागों को मूसा के द्वारा ही लिखे हुआ होना मानते हैं। इसमें निहित शिक्षा और प्रकाशन मूसा के द्वारा परमेश्वर की ओर से आया हुआ होना प्रमाणित होता है, और यह विषय कोई अर्थ नहीं रखता कि किसने इन्हें लिखा, तौभी अन्तिम रूप से लेखक परमेश्वर ही है, और यह पुस्तकें अभी भी प्रेरणा प्रदत्त हैं।]
NARENDRA (to Girish, M., and the others): "How am I to believe in the words of scripture? The Mahanirvana Tantra says, in one place, that unless a man attains the Knowledge of Brahman he goes to hell; and the same book says, in another place, that there is no salvation without the worship of Parvati, the Divine Mother. Manu writes about himself in the Manusamhita; Moses describes his own death in the Pentateuch.
আবার বিচার হইতে লাগিল। নরেন্দ্র বিচার করিতেছেন! নরেন্দ্রের বয়স এখন ২২ বৎসর চার মাস হইবে।নরেন্দ্র (গিরিশ, মাস্টার প্রভৃতিকে) — শাস্ত্রই বা বিশ্বাস কেমন করে করি! মহানির্বাণতন্ত্র একবার বলছেন, ব্রহ্মজ্ঞান না হলে নরক হবে। আবার বলে, পার্বতীর উপাসনা ব্যতীত আর উপায় নাই! মনুসংহিতায় লিখছেন মনুরই কথা। মোজেস লিখছেন পেন্ট্যাটিউক্, তাঁরই নিজের মৃত্যুর কথা বর্ণনা!
“सांख्यदर्शन लिखते हैं, 'ईश्वरासिद्धेः ^***(सांख्य दर्शन 1/92)', ईश्वर हैं यह कोई प्रमाणित नहीं कर सकता । फिर कहते हैं, वेद मानना चाहिए, वेद नित्य हैं ।
"इससे मैं यह नहीं कह रहा हूँ कि ये सब नहीं हैं । मैं समझ नहीं सकता, मुझे समझा दो । शास्त्रों का अर्थ जिसके जी में जैसा आया उसने वैसा ही किया है । अब मैं किस-किसका ग्रहण करूँ ? White light (सफेद रोशनी) red medium (लाल शीशे) के भीतर से आती है तो लाल दीख पड़ती है और green medium (हरे शीशे) के भीतर से आती है तो हरी दीख पड़ती है !"
"The Samkhya philosophy says that God does not exist, because there is no proof of His existence. Again, the same philosophy says that one must accept the Vedas and that they are eternal.
"But I don't say that these are not true. I simply don't understand them. Please explain them to me. People have explained the scriptures according to their fancy. Which explanation shall we accept? White light coming through a red medium appears red, through a green medium, green."
“সাংখ্য দর্শন বলছেন, ‘ঈশ্বরাসিদ্ধেঃ’। ঈশ্বর আছেন, এ প্রমাণ করবার জো নাই। আবার বলে, বেদ মানতে হয়, বেদ নিত্য।
“তা বলে এ-সব নাই, বলছি না! বুঝতে পারছি না, বুঝিয়ে দাও! শাস্ত্রের অর্থ যার যা মনে এসেছে তাই করেছে। এখন কোন্টা লব? হোয়াইট লাইট (শ্বেত আলো) রেড মীডিয়ম-এর (লাল কাচের) মধ্য দিয়ে এলে লাল দেখায়। গ্রীন্ মীডিয়ম-এর মধ্য দিয়ে এলে গ্রীন দেখায়।”
एक भक्त - गीता भगवान की उक्ति है ।
A DEVOTEE: "The Gita contains the words of God."
একজন ভক্ত — গীতা ভগবান বলেছেন।
श्रीरामकृष्ण - गीता सब शास्त्रों का सार है । संन्यासी के पास और चाहे कुछ न रहे, परन्तु एक छोटी-सी गीता जरूर रहेगी ।
MASTER: "Yes, the Gita is the essence of all scriptures. A sannyasi may or may not keep with him another book, but he always carries a pocket Gita."
শ্রীরামকৃষ্ণ — গীতা সব শাস্ত্রের সার। সন্ন্যাসীর কাছে আর কিছু না থাকে, গীতা একখানি ছোট থাকবে।
एक भक्त - गीता श्रीकृष्ण की उक्ति है ।
A DEVOTEE: "The Gita contains the words of Krishna."
একজন ভক্ত — গীতা শ্রীকৃষ্ণ বলেছেন!
नरेन्द्र - श्रीकृष्ण की उक्ति है या दूसरे किसी की ।
NARENDRA: "Yes, Krishna or any fellow for that matter!"
নরেন্দ্র — শ্রীকৃষ্ণ বলেছেন, না ইয়ে বলেছেন! —
श्रीरामकृष्ण निर्वाक् रहकर नरेन्द्र की ये सब बातें सुन रहे हैं ।
Sri Ramakrishna was amazed at these words of Narendra.
ঠাকুর শ্রীরামকৃষ্ণ অবাক্ হইয়া নরেন্দ্রের এই কথা শুনিতেছেন।
श्रीरामकृष्ण - ये सब अच्छी बातें हो रही हैं । "शास्त्रों के दो अर्थ हैं, एक शब्दार्थ और दूसरा मर्मार्थ । ग्रहण मर्मार्थ का ही करना चाहिए, जो अर्थ ईश्वर की वाणी के साथ मिलता हो । चिट्ठी की बातों में, और जिसने चिट्ठी लिखी है उसकी बातों में बड़ा अन्तर है । शास्त्र हैं - चिट्ठी की बातें । ईश्वर की वाणी है - उनके मुख की बातें । मैं उस बात को ग्रहण नहीं करता जो माँ की बात से नहीं मिलती ।"
MASTER: "This is a fine discussion. There are two interpretations of the scriptures: the literal and the real. One should accept the real meaning alone — what agrees with the words of God. There is a vast difference between the words written in a letter and the direct words of its writer. The scriptures are like the words of the letter; the words of God are direct words. I do not accept anything unless it agrees with the direct words of the Divine Mother."
শ্রীরামকৃষ্ণ — এ-সব বেশ কথা হচ্ছে।“শাস্ত্রের দুইরকম অর্থ — শব্দার্থ ও মর্মার্থ। মর্মার্থটুকু লতে হয়; যে ঈশ্বরের বাণীর সঙ্গে মিলে। চিঠির কথা, আর যে ব্যক্তি চিঠি লিখেছে তার মুখের কথা, অনেক তফাত। শাস্ত্র হচ্ছে চিঠির কথা; ঈশ্বরের বাণী মুখের কথা। আমি মার মুখের কথার সঙ্গে না মিললে কিছুই লই না।”
अब पुनः अवतार की बात होने लगी ।
The conversation again turned to Divine Incarnation.
नरेन्द्र की यह बात सुनकर श्रीरामकृष्ण ने हाथ जोड़ उन्हें नमस्कार करके कहा – ‘अहा !’
As Sri Ramakrishna heard the words, "Infinite is the universe; infinite are the Incarnations", he said with folded hands, "Ah!"
‘অনন্ত ব্রহ্মাণ্ড’, ‘অনন্ত অবতার’ শুনিয়া শ্রীরামকৃষ্ণ হাতজোড় করিয়া নমস্কার করিলেন ও বলিতেছেন, ‘আহা!’
मणि भवनाथ से कुछ कह रहे हैं ।
भवनाथ - ये कहते हैं, हाथी को जब हमने नहीं देखा तो वह सुई के छेद के अन्दर से जा सकता है या नहीं, यह हमें कैसे विश्वास हो ? ईश्वर को हम जानते नहीं, फिर वे आदमी के रूप में अवतार ले सकते हैं या नहीं, किस तरह हम इसका विचार करके समझें ?
M. whispered something to Bhavanath.BHAVANATH: "M. says: 'As long as I have not seen the elephant, how can I know whether it can pass through the eye of a needle? I do not know God; how can I understand through reason whether or not He can incarnate Himself as man?"
মণি ভবনাথকে কি বলিতেছেন।ভবনাথ — ইনি বলেন, ‘হাতি যখন দেখি নাই, তখন সে ছুঁচের ভিতর যেতে পারে কিনা কেমন করে জানব? ঈশ্বরকে জানি না, অথচ তিনি মানুষ হয়ে অবতার হতে পারেন কিনা, কেমন করে বিচারে দ্বারা বুঝব!’
श्रीरामकृष्ण - सब कुछ है । वे जादू चला देते हैं । बाजीगर गले में छूरी मार लेता है, उसे फिर निकाल लेता है । कंकड़-पत्थर खा जाता है ।
MASTER: "Everything is possible for God. It is He who casts the spell. The magician swallows the knife and takes it out again; he swallows stones and bricks."
শ্রীরামকৃষ্ণ — সবই সম্ভব। তিনি ভেলকি লাগিয়ে দেন! বাজিকর গলার ভিতর ছুরি লাগিয়ে দেয়, আবার বার করে। ইট-পাটকেল খেয়ে ফেলে!
(३)
[( 9 मई , 1885 ) श्रीरामकृष्ण वचनामृत-114 ]
🔱🙏श्रीरामकृष्ण-विवेकानन्द वेदान्त परम्परा में युवाओं को सौंपा गया कर्म🔱🙏
"The Task" entrusted to youth
in Sri Ramakrishna-Vivekananda Vedanta tradition .
শ্রী রামকৃষ্ণ-বিবেকানন্দ বেদান্ত ঐতিহ্যে যুবকদের হাতে অর্পিত "দ্য টাস্ক"।
भक्त - ब्राह्मसमाज के आदमी कहते हैं, संसार में कर्म करना ही अपना कर्तव्य है । इस कर्म के त्याग करने से कुछ न होगा ।
A DEVOTEE: "The Brahmos say that a man should perform his worldly duties. He must not renounce them."
ভক্ত — ব্রাহ্মসমাজের লোকেরা বলেন, সংসারের কর্ম করা কর্তব্য। এ-কর্ম ত্যাগ করলে হবে না।
गिरीश - मैंने देखा, 'सुलभसमाचार' में यही बात लिखी है । परन्तु ईश्वर को जानने के लिए जो कर्म हैं, ^* वे ही तो पूरे नहीं हो पाते, फिर ऊपर से दूसरे कर्म !
GIRISH: "Yes, I saw something like that in their paper, the Sulabha Samachar. But a man cannot even finish all the works that are necessary for him in order to know God, and still he speaks of worldly duties."
গিরিশ — সুলভ সমাচারে ওইরকম লিখেছে, দেখলাম। কিন্তু ঈশ্বরকে জানবার জন্য যে সব কর্ম — তাই করে উঠতে পারা যায় না, আবার অন্য কর্ম!
श्रीरामकृष्ण जरा मुस्कराकर मास्टर की ओर देखकर इशारा कर रहे हैं - 'वह जो कुछ कहता है, वही ठीक है ।'
Sri Ramakrishna smiled a little, looked at M., and made a sign with his eye, as if to say, "What he says is right."
শ্রীরামকৃষ্ণ ঈষৎ হাসিয়া মাস্টারের দিকে তাকাইয়া নয়নের দ্বারা ইঙ্গিত করিলেন, ‘ও যা বলছে তাই ঠিক’।
मास्टर समझ गये, कर्मकाण्ड बड़ा ही कठिन है ।
M. understood that this question of performing duties was an extremely difficult one.
মাস্টার বুঝিলেন, কর্মকাণ্ড বড় কঠিন।
पूर्ण आये हैं । [पूर्ण=100 % Unselfishness नर रूप में आये हैं !]
Purna arrived.
পূর্ণ আসিয়াছেন।
श्रीरामकृष्ण - किसने तुम्हें खबर दी ?
MASTER: "Who told you about our being here?"
শ্রীরামকৃষ্ণ — কে তোমাকে খবর দিলে!
पूर्ण - शारदा ने ।
PURNA: "Sarada."
পূর্ণ — সারদা
श्रीरामकृष्ण - (पास की स्त्री-भक्तों से) - इसे कुछ जलपान करने के लिए देना ।
MASTER (to the woman devotees): "Give him some refreshments."
শ্রীরামকৃষ্ণ (উপস্থিত মেয়ে ভক্তদের প্রতি) — ওগো একে (পূর্ণকে) একটু জলখাবার দাও তো।
* * *
[( 9 मई , 1885 ) श्रीरामकृष्ण वचनामृत-114 ]
🔱🙏मधुर है तेरा नाम, दीनों के शरण हे !🔱🙏
"सुन्दर तोमार नाम- 'नवनी हरन' हे !"
Sweet is Thy name, O Refuge of the humble!
अब नरेन्द्र का गाना होगा । श्रीरामकृष्ण तथा भक्तों की सुनने की इच्छा है । नरेन्द्र गा रहा हैं –
Narendra was preparing to sing. The Master and the devotees were eager to hear his music. Narendra sang:
He sang :
(१)
“परवत पाथार ।
व्योमे जागो रुद्र उद्यत बाजो ।
देव-देव महादेव, काल-काल महाकाल,
धर्मराज शंकर शिव, तारो हरो पाप ।"
* * *
Siva, Thy ready thunderbolt rules over
meadows, hills, and sky!
O God of Gods! O Slayer of Time!
Thou the Great Void, the King of Dharma!
Siva, Thou Blessed One, redeem me;
take away my grievous sin.
"And make me a man ! "
এইবার নরেন্দ্র গান গাইবেন। ঠাকুর শ্রীরামকৃষ্ণ ও ভক্তেরা শুনিবেন। নরেন্দ্র গাইতেছেন:
গান —
পরবত পাথার।
ব্যোমে জাগো রুদ্র উদ্যত বাজ।
দেব দেব মহাদেব, কাল কাল মহাকাল,
ধর্মরাজ শঙ্কর শিব তার হর পাপ।
(२)
सुन्दर तोमार नाम 'दीनशरण' हे ,
सुन्दर तोमार नाम 'नवनी हरन' हे !
बहिछै अमृत धार, जुड़ाय श्रवण, प्राणरमण हे।
"हे दीनों को शरण देनेवाले ! तुम्हारा नाम 'नवनी हरन' बड़ा मधुर है । बड़ा सुन्दर है। ऐ प्राणों में रमण करनेवाले ! अमृत की धारा बह रही है, श्रवण शीतल हो जाते हैं ।"
He sang again:
Sweet is Thy name, O Refuge of the humble! It falls like sweetest nectar on our ears And comforts us, Beloved of our souls! . . .
সুন্দর তোমার নাম দীনশরণ হে,
বহিছে অমৃতধার, জুড়ায় শ্রবণ, প্রাণরমণ হে।
* * *
(३)
"जो विपत्ति और भय से परित्राण करनेवाले हैं, ऐ मन, तुम उन्हें क्यों नहीं पुकारते ? मिथ्या भ्रम में पड़े हुए इस घोर संसार में डूब रहे हो, यह बड़े दुःख की बात है ।"
बिपदभय बारन , जे करे ओरे मन , तांरे केन डाक ना ,
मिछे भ्रमे भूले सदा , रयेछे, भवघोरे मजि, एकि बिडंबना।
हे मेरे मन ! तुम उन्हें (सच्चिदानन्द प्रेममय को) क्यों कभी नहीं पुकारते ? जिनका नाम तत्क्षण मृत्यु- भय को भी दूर कर देता है? माया (नाम-रूप) के छलावे में तुम अपने सच्चे स्वरुप को क्यों भूल जाते हो ? तुम क्यों दुनिया के (तीनों ऐषणाओं के) द्वारा मोहित (hypnotized/ enamoured) होकर कई जन्मों से - जल भँवर या 'water vortex' में चक्कर काट रहे हो ? अजर -अमर -अविनाशी आत्मा के साथ यह कैसा 'मजाक' (mockery-उपहास) चल रहा है !
Why, O mind, do you never call on Him, Who takes away all fear of danger? Tricked by delusion you forget yourself, Enamoured of the world's bleak wilderness. Alas, what mockery is here!
ए धन जन, ना रबे हेन तांरे जेन भूलो ना,
छाड़ि असार , भजह सार, जाबे भव यातना।
मित्रमण्डली (परिवार -कुटुम्ब) और दौलत (Lust and Lucre) तुम हमेशा नहीं रख सकते; खयाल रखना कि कहीं तुम उसे (नवनी हरन को) कहीं बिलकुल ही न भूल जाओ ? असत्य को (कामिनी -कांचन में आसक्ति को) त्यागो, 'O mind! Adore the Real' और हे मन! तुरीय सत्य, असली सत्य (परम् सत्य -इन्द्रियातीत सत्य) की पूजा करो; और देखोगे कि तुम्हारे जीवन से सारे दुख दूर हो जाएंगे। मेरी नेक सलाह को अपने दिल में रख।
Comrades and wealth you cannot always keep; Take care lest you forget Him quite. Give up the false, O mind! Adore the Real; And all the grief will vanish from your life. Keep my good counsel in your heart.
एखन हित बचन शोन , जतने करि धारणा।
बदन भरी ,नाम हरि , सतत करो घोषणा।
यदि ए -भवे पार होबे , छाड़ विषय वासना ;
संपिये तनु ह्रदय मन, तांर करो साधना।
अब भी गुरुदेव के कल्याणकारी उपदेश - " सर्व भूते सेई प्रेममय !" को सुनो और उसकी पक्की धारणा बना लो। और गूँजती हुई वाणी से भगवान 'हरि' के नाम (नवनी हरन) की घोषणा कर दो! और अपनी झूठी ऐषणाओं को दूर हटा दो, यदि तुम इस भव-सागर, जन्म-मृत्यु के सागर को पार करना चाहते हो तो ; तन, मन और आत्मा (3H) को उनके चरणों में समर्पित कर दो, और सारे संशय हटाकर पूरे विश्वास और प्रेम से उनकी (कमाण्डर वरिष्ठ,C-IN-C नवनी हरन स्वरुप सच्चिदानन्द की) आराधना करो।
With sounding voice proclaim Lord Hari's name, And cast away your false desires, If you would cross the ocean of this life; Surrender to Him body, mind, and soul, And worship Him with trusting love.
বিপদভয় বারণ, যে করে ওরে মন, তাঁরে কেন ডাক না;
মিছে ভ্রমে ভুলে সদা, রয়েছ, ভবঘোরে মজি, একি বিড়ম্বনা।
এ ধন জন, না রবে হেন তাঁরে যেন ভুল না,
ছাড়ি অসার, ভজহ সার, যাবে ভব যাতনা।
এখন হিত বচন শোন, যতনে করি ধারণা;
বদন ভরি, নাম হরি, সতত কর ঘোষণা।
যদি এ-ভবে পার হবে, ছাড় বিষয় বাসনা;
সঁপিয়ে তনু হৃদয় মন, তাঁর কর সাধনা।
* * *
(४)
[( 9 मई , 1885 ) श्रीरामकृष्ण वचनामृत-114 ]
🔱🙏"सब भूतों में वही प्रेममय हैं!" मैं इसी सत्य का प्रचार करूँगा।🔱🙏
पल्टू - यह गाना आप गाइयेगा ?
PALTU: "Won't you sing that one?"
পল্টু — এই গানটি গাইবেন?
नरेन्द्र - कौनसा ?
NARENDRA: "Which one?"
নরেন্দ্র — কোন্টি?
पल्टू -
"देखिले तोमार सेई अतुल प्रेम-आनने ।
कि भय संसार शोक घोर विपद शासने ।”
- अर्थात "'जब मैं आपके अतुलनीय चेहरे को निहारता हूं।' तो फिर संसार का दुःख , घोर विपदायें भी वशीभूत हो जाती हैं।
PALTU: "'When I behold Thy peerless face.'"
পল্টু —দেখিলে তোমার সেই অতুল প্রেম-আননে,
কি ভয় সংসার শোক ঘোর বিপদ শাসনে।
नरेन्द्र गा रहे हैं –
"देखिले तोमार सेई अतुल प्रेम-आनने ।
कि भय संसार शोक घोर विपद शासने ॥
जब मैं आपके प्रेम से मुस्कराता हुआ अनुपम चेहरे को देखता हूँ,हे प्रभु, फिर मेरा सांसारिक दुःख या विपदाओं की भृकुटी का डर न जाने कहाँ गायब हो जाता है ?
When I behold Thy peerless face, beaming with love, O Lord,What fear have I of earthly woe or of the frown of sorrow?
দেখিলে তোমার সেই অতুল প্রেম-আননে,কি ভয় সংসার শোক ঘোর বিপদ শাসনে।
अरुण उदये आँधार जेमन जाय जगत् छाड़िये ।
तेमनि देव तोमार ज्योति मंगलमय विराजिले ।
भगत-हृदय वीतशोक तोमार मधुर सान्त्वने ॥
जिस प्रकार उदित होते हुए सूर्य की पहली किरण अन्धकार को दूर कर देती है, उसी प्रकार हे प्रभु, जब तुम्हारी मंगलमयी ज्योति ह्रदय में प्रस्फुटित होती है, तब यह हमारे सारे दुःख और दर्द पर मधुर मलहम सा बिखेर देती है।
As the first ray of the dawning sun dispels the dark, So too, Lord, when Thy blessed light bursts forth within the heart, It scatters all our grief and pain with sweetest balm.
অরুণ উদয়ে আঁধার যেমন যায় জগৎ ছাড়িয়ে,তেমনি দেব তোমার জ্যোতিঃ মঙ্গলময় বিরাজিলে,ভকত হৃদয় বীতশোক তোমার মধুর সান্ত্বনে।
तोमार करुणा तोमार प्रेम हृदये प्रभु भाविले।
उथले हृदये नयनवारि राखे के निवारिये ॥
जब मैं अपने हृदय की गहराइयों में, तुम्हारे प्रेम और अनुग्रह पर विचार करता हूँ, तब मेरे गालों पर खुशी के आंसू स्वतः बह निकलते हैं जो रोके नहीं रुकते।
When on Thy love and grace I ponder, in my heart's deepest depths,Tears of joy stream down my cheeks beyond restraining.
তোমার করুণা, তোমার প্রেম, হৃদয়ে প্রভু ভাবিলে,উথলে হৃদয় নয়ন বারি রাখে কে নিবারিয়ে?
जय करुणामय, जय करुणामय, तोमार प्रेम गाहिये ।
जाय यदि जाक प्राण तोमार कर्म साधने ॥"
जय हो, दयामय प्रभु! जय हो, प्रेममय ! तुम्हारे 'कर्म साधन में', तुम्हारे द्वारा सौंपे हुए कार्य - 'प्रेम' का सन्देश - "सब भूतों में वही प्रेममय हैं!" मैं इसी सत्य का प्रचार करूँगा। अब मेरी यही कामना है कि न राजसिक, न तामसिक केवल सात्विक इच्छा-"बहुजन हिताय , बहुजन सुखाय - चरैवेति, चरैवेति" चलते रहो, चलते रहो, करते हुए मेरे प्राण निकलें।
Hail, Gracious Lord! Hail, Gracious One! I shall proclaim Thy love. May my life-breath depart from me as I perform Thy works!
জয় করুণাময়, জয় করুণাময় তোমার প্রেম গাইয়ে,যায় যদি যাক্ প্রাণ তোমার কর্ম সাধনে।
[(9 मई, 1885) श्रीरामकृष्ण वचनामृत-114 ]
🔱🙏मनःसंयोग : हरि-रस मदिरा पिये मम मानस मातो रे 🔱🙏
" मनःसंयोग हेतु मूर्त 'हरि-रस मदिरा ' ब्राण्ड का चयन"
मास्टर के अनुरोध से नरेंद्रनाथ फिर गा रहे हैं । मास्टर और भक्तगण हाथ जोड़े हुए गाना सुन रहे हैं –
At M.'s request Narendra sang again, M. and many of the devotees listening with folded hands:
মাস্টারের অনুরোধে আবার গাইতেছেন। মাস্টার ও ভক্তেরা অনেকে হাতজোড় করিয়া গান শুনিতেছেন।
(१) “ऐ मेरे मन ! हरि-रस मदिरा का पान करके तुम मत्त हो जाओ । पृथ्वी पर लोटते हुए तुम उनका नाम ले लेकर रोओ ।"
Be drunk, O mind, be drunk with the Wine of Heavenly Bliss! Roll on the ground and weep, chanting Hari's sweet name! . . .प्रेममय हरि (नवनीहरण) के प्रेम-रस मदिरा रूपी सन्देश की मदिरा- 'सर्व भूते सेई प्रेममय' घोषणा की मदिरा' का पान करके तुम मत्त हो जाओ !
हरि-रस मदिरा पिये मम मानस मातो रे,
एक बार लुटोई अवनीतल, हरि हरि बोली काँद रे।
(गति कर कर बोले।)
গান — হরিরসমদিরা পিয়ে মম মানস মাতোরে।
একবার লুটহ অবনীতল, হরি হরি বলি কাঁদ রে।
(গতি কর কর বলে)।
Meditate, O my mind, on the Lord Hari, The Stainless One, Pure Spirit through and through.
भगवान हरि (प्रेममय -नवनीदा -श्री नवनीहरन मुखोपाध्याय) पर, एकाग्रता का अभ्यास करो! हे मेरे मन, निष्कलंक स्वरुप स्टेनलेस वन, शुद्ध आत्मा के माध्यम से और उसके माध्यम से।
Meditate, O my mind, on the Lord Hari, The Stainless One, Pure Spirit through and through.
গভীর নিনাদে হরিনামে গগন ছাও রে,
নাচো হরি বলে দুবাহু তুলে, হরিনাম বিলাও রে।
(লোকের দ্বারে দ্বারে)।
হরিপ্রেমানন্দরসে অনুদিন ভাস রে,
গাও হরিনাম, হও পূর্ণকাম, নীচ বাসনা নাশ রে।।
(२) स्वामी विवेकानन्द द्वारा गाई हुई - गुरुवाणी :
[Aarti – “गगन मै थालु” – Gagan Mein Thaal/ साभारhttps://wholisticwellnessspace.wordpress.com/2022/11/28/aarti-gagan-mein-thaal/]
(३) हे मनुष्यों , "उसी एक पुरुषपुरातन - निरंजन पर तुम अपने चित्त को समाहित करो, जो सभी कारणों का कारण है, जो निर्मल है, अनादि सत्य है। प्राण के रूप में वह अनंत ब्रह्मांड में व्याप्त है; श्रद्धावान व्यक्ति आदमी उसे देखता है, जीवित, देदीप्यमान (resplendent), सभी का मूल। . . .
Fasten your mind, O man, on the Primal Purusha, Who is the Cause of all causes, The Stainless One, the Beginningless Truth. As Prana He pervades the infinite universe; The man of faith beholds Him, Living, resplendent, the Root of all. . . .
नारायण के अनुरोध करने पर नरेन्द्र ने फिर गाया ।
(भावार्थ) “ऐ हृदयरमा माँ - प्राणों की पुतली ! आओ, तुम हृदय के आसन पर आसीन हो जाओ, मैं दृष्टि को तृप्त करता हुआ तुम्हें देखूँ । जन्म से ही मैं तुम्हारा मुँह जोह रहा हूँ । ऐ माँ, तुम जानती हो, मैं कितना दुःख भोग चुका हूँ । ऐ आनन्दमयी, एक बार तो हृदय-पद्म को विकसित करके वहाँ अपना प्रकाश दिखा दो ।"
At Narayan's request Narendra sang:
Come! Come, Mother! Doll of my soul! My heart's Delight! In my heart's lotus come and sit, that I may see Thy face. Alas! sweet Mother, even from birth I have suffered much; But I have borne it all. Thou knowest, gazing at Thee. Open the lotus of my heart, dear Mother! Reveal Thyself there.
এসো মা এসো মা, ও হৃদয়-রমা, পরাণ-পুতলী গো।
হৃদয়-আসনে, হও মা আসীন, নিরখি তোরে গো ॥
আছি জন্মাবধি তোর মুখ চেয়ে,
জান মা জননী কি দুখ পেয়ে,
একবার হৃদয়কমল বিকাশ করিয়ে,
প্রকাশ তাহে আনন্দময়ী ॥
[( 9 मई , 1885 ) श्रीरामकृष्ण वचनामृत-114 ]
🔱🙏 ठाकुर देव के ब्रह्मज्ञान की अवस्था 🔱🙏
[श्री रामकृष्ण का देश-काल-निमित्त (C) को transcendent करके
जगत (B) से ब्रह्म (A) में या 'समाधि' में पहुँचना ]
[শ্রীরামকৃষ্ণ সমাধিমন্দিরে — তাঁহার ব্রহ্মজ্ঞানের অবস্থা ]
फिर नरेंद्र ने अपनी पसंद का गाना [soul-enthralling, या आत्मविश्लेषण गीत -soul-searching song) गाया –[स्वामी विवेकानन्द का प्रिय काली-कीर्तन]
निविड़ आँधरे माँ तोर चमके ओ रूपराशि।
ताई योगी ध्यान धरे होय गिरि-गुहावासी।।
अनन्त आंधार कोले , महानिर्वाण हिल्लोले।
चिरशान्ति परिमल , अविरल जाय भासि।।
महाकाल रूपो धरि , आँधारो वसन पोरी।
समाधी -मन्दिरे ओ माँ, के तुमि गो एका बोसि।।
अभयपद-कमले प्रेमेर बिजोली ज्वले।
चिन्मय मुख-मण्डले शोभे अट्ट -अट्ट हाँसी।।
ताई योगी ध्यान धरे होय गिरि-गुहावासी।। .....
(भावार्थ) "माँ, तेरा अपरूप रूप घोर अँधेरे में चमक रहा है । इसीलिए गिरि-गुहाओं में योगीजन तुम्हारा ध्यान करते हैं ।"
[ 2022 गंगाधरपुर कैम्प का अनुभव : घोर अन्धकार में (मृत्यु के अंधकार में - माँ काली -का 'निराकार रूप' -अर्थात मूर्ति या चित्र का जीवन्त हो उठना, पलक झपकाना या सांसे लेना), हे माँ, तेरा निराकार सौन्दर्य जगमगाता है; इसलिए योगी एक अंधेरी पहाड़ी गुफा में ध्यान करते हैं।
Then Narendra sang a song of his own choice: In dense darkness, O Mother, Thy formless beauty sparkles; Therefore the yogis meditate in a dark mountain cave. . . .
লিরিক্স:
নিবিড় আঁধারে মা তোর চমকে ও রূপরাশি ৷
তাই যোগী ধ্যান ধরে হয়ে গিরিগুহাবাসী ৷৷
অনন্ত আঁধার কোলে, মহার্নিবাণ হিল্লোলে ৷
চিরশান্তি পরিমল, অবিরল যায় ভাসি ৷৷
মহাকাল রূপ ধরি, আঁধার বসন পরি ৷
সমাধিমন্দিরে মা কে তুমি গো একা বসি ৷৷
অভয়-পদ-কমলে প্রেমের বিজলী জ্বলে ৷
চিন্ময় মুখমণ্ডলে শোভে অট্ট অট্ট হাসি ৷৷
[(भावार्थ) - "माँ, घने अन्धकार में तेरा रूप चमकता है । इसीलिए योगी पर्वत की गुफा में निवास करता हुआ ध्यान लगाता है । तुम्हारे अभय चरणकमलों में प्रेम की जो बिजली चमकती हैं, वही तुम्हारे चिन्मय मुखमण्डल पर हास्य बन कर शोभायमान है । महाकाल का रूप धारण कर, अन्धकार का वस्त्र पहन, माँ, समाधिमन्दिर में अकेली बैठी हुई तुम कौन हो ? अनन्त अन्धकार की गोदी में, महानिर्वाण के हिल्लोल में चिर शान्ति का परिमल लगातार बहता जा रहा है । "
In dense darkness, O Mother, Thy formless beauty sparkles; Therefore the yogis meditate in a dark mountain cave. From the Lotus of Thy fear-scattering Feet flash Thy love's lightnings; Thy Spirit-Face shines forth with laughter terrible and loud! Taking the form of the Void, in the robe of darkness wrapped, Who art Thou, Mother, seated alone in the shrine of samadhi? In the lap of boundless dark, on Mahanirvana's waves upborne, Peace flows serene and inexhaustible.
जैसे ही श्री रामकृष्ण ने इस आत्म-मोहक (आत्मविश्लेषण गीत -soul-searching song) गीत को सुना, वे समाधि में चले गए।
As Sri Ramakrishna heard this soul-enthralling (आत्म-विश्लेषण गीत,soul-searching song) , he went into samadhi (A) .
সমাধির এই গান শুনিতে শুনিতে ঠাকুর সমাধিস্থ হইতেছেন।
नरेंद्र ने फिर गाया:
'मत्त ' हो जाओ, हे मन, 'हरि-रस (आनंद) की मदिरा' पीकर मदहोश हो जाओ! . . .
Narendra again sang:Be drunk, O mind, be drunk with the Wine of Heavenly Bliss! . . .
নরেন্দ্র আর একবার সেই গানটি গাইতেছেন —
হরিরসমদরিরা পিয়ে মম মানস মাতোরে।
श्रीरामकृष्ण को भावावेश है । उत्तरास्य हो, दीवार के सहारे, पैर लटकाये हुए तकिये पर बैठे हुए हैं । चारों ओर भक्तगण बैठे हैं ।
The Master was in samadhi. He was sitting on a pillow, dangling his feet, facing the north and leaning against the wall. The devotees were seated around him.
শ্রীরামকৃষ্ণ ভাবাবিষ্ট। উত্তরাস্য হইয়া দেওয়ালে ঠেসান দিয়া পা ঝুলাইয়া তাকিয়ার উপর বসিয়া আছেন। ভক্তেরা চতুর্দিকে উপবিষ্ট।
भावावेश में श्रीरामकृष्ण माँ जगदम्बा से बातें कर रहे हैं । कह रहे हैं - "भोजन करके इस समय चला जाऊँगा । तू आयी ? पोटली बाँधकर, जहाँ रहेगी वह घर ठीक करके तू आयी है क्या ?"अब मुझे कोई नहीं सुहाता । "माँ, मैं संगीत क्यों सुनूँ ? उससे तो मन कुछ बाहर चला जाता है ।"
"In an ecstatic mood Sri Ramakrishna talked to the Divine Mother. He said: "I shall take my meal now. Art Thou come? Hast Thou found Thy lodging and left Thy baggage there and then come out?" He continued: "I don't enjoy anybody's company now. Why should I listen to the music, Mother? That diverts part of mv mind to the outside world."
ভাবাবিষ্ট হইয়া ঠাকুর মার সঙ্গে একাকী কথা কহিতেছেন। ঠাকুর বলিতেছেন — “এই বেলা খেয়ে যাব। তুই এলি? তুই কি গাঁট্রি বেঁধে বাসা পাকড়ে সব ঠিক করে এলি?”
ঠাকুর কি বলিতেছেন, মা তুই কি এলি? ঠাকুর আর মা কি অভেদ?“এখন আমার কারুকে ভাল লাগছে না।”“মা, গান কেন শুনব? ওতে তো মন খানিকটা বাইরে চলে যাবে!”
[( 9 मई , 1885 ) श्रीरामकृष्ण वचनामृत-114 ]
🔱🙏अर्जुन ने भीष्म पितामह को मारा तो क्या उन्हें पाप नहीं लगा ?🔱🙏
[उस अवस्था में पहुँचकर लौटने के बाद प्रेममय की हिंसा ? की जा सकती है !]
क्रमश: श्रीरामकृष्ण को बाह्य संसार का ज्ञान हो रहा है । भक्तों की ओर देखकर उन्होंने कहा, - "हण्डी में पानी भरकर किसी को उसमें मछलियों को रखते हुए देख पहले मुझे बड़ा आश्चर्य होता था । मैं सोचता था, ये लोग बड़े हत्यारे हैं, अन्त में इन मछलियों को मार डालेंगे । अवस्था जब बदलने लगी, तब मैंने देखा, यह शरीर ऊपर का ढक्कन है । न इसके रहने से कुछ बनता-बिगड़ता है, न जाने से ।"
The Master was gradually regaining consciousness of the outer world. Looking at the devotees he said: "Years ago I used to be amazed to see people keeping kai fish alive in a pot of water. I would say: 'How cruel these people are! They will finally kill the fish.' But later, as changes came over my mind, I realized that bodies are like pillow-cases. It doesn't matter whether they remain or drop off."
ঠাকুর ক্রমে ক্রমে আরও বাহ্যজ্ঞান লাভ করিতেছেন। ভক্তদের দিকে তাকাইয়া বলিতেছেন, ‘আগে কইমাছ জীইয়ে রাখা দেখে আশ্চর্য হতুম; মনে করতুম এরা কি নিষ্ঠুর, এদের শেষকালে হত্যা করবে! অবস্থা যখন বদলাতে লাগল তখন দেখি যে, শরীগুলো খোল মাত্র! থাকলেও এসে যায় না, গেলেও এসে যায় না!”
भवनाथ - तो क्या मनुष्यों की हिंसा करने से पाप नहीं होगा ? हिंसा की जा सकती है ? हत्या की जा सकती है ?
BHAVANATH: "Then may one injure a man without incurring sin? Kill him?"
ভবনাথ — তবে মানুষ হিংসা করা যায়! — মেরে ফেলা যায়?
श्रीरामकृष्ण - हाँ, 'उस अवस्था' ^* में की जा सकती है । वह अवस्था [प्रतिबन्धकों के कारण] सब की नहीं होती । वह ब्रह्मज्ञान की अवस्था है ।
MASTER: "Yes, it is permissible if one has achieved that state of mind, But not everyone has it. It is the state of Brahmajnana.
শ্রীরামকৃষ্ণ — হাঁ, এ-অবস্থায় হতে পারে১। সে অবস্থা সকলের হয় না। — ব্রহ্মজ্ঞানের অবস্থা।
[( 9 मई , 1885 ) श्रीरामकृष्ण वचनामृत-114 ]
🔱🙏माँ काली की कृपा से समाधि अवस्था से सामान्य भूमि पर लौटने के बाद
उस ब्रह्मविद (नवनीदा) के लिए
[Secular (worldly-सांसारिक) and Sacred (Divine-दिव्य, ईश्वरीय )]
में कोई भेद नहीं रह जाता , इसीलिए -
किसी पर नाराज होना या 'क्रोध करना'- नामुमकिन है।🔱🙏
"दो-एक स्तर उतरने पर भक्ति और भक्त अच्छे लगते हैं ।“ईश्वर में विद्या और अविद्या दोनों हैं । यह विद्या-माया जीव को ईश्वर की ओर ले जाती है, अविद्या-माया ईश्वर से जीव को दूर बहकाकर ले जाती है । विद्या की क्रीड़ा ज्ञान, भक्ति, दया और वैराग्य हैं । इनका आश्रय लेने पर मनुष्य ईश्वर के पास पहुँच सकता है । ‘‘एक सीढ़ी और चढ़ने पर ईश्वर मिलते हैं - ब्रह्मज्ञान होता है । इस अवस्था में सच्चा ज्ञान होता है - तब वास्तव में समझ पड़ता है कि मैं ठीक देख रहा हूँ, वे ही सब कुछ [^*हाजरा और नरेन्द्र भी?] उस समय त्याज्य और ग्राह्य (Secular and Sacred)नहीं रहते । किसी पर क्रोध करने की जगह नहीं रहती।
"By coming down a step or two from samadhi I enjoy bhakti and bhakta. "There exist in God both vidya and avidya. Vidyamaya leads one to God, and avidyamaya away from Him. Knowledge, devotion, compassion; and renunciation belong to the realm of vidya. With the help of these a man comes near God. One step more and he attains God, Knowledge of Brahman. In that state he clearly feels and sees that it is God who has become everything. He has nothing to give up and nothing to accept. It is impossible tor him to be angry with anyone.
“ঈশ্বরেতে বিদ্যা-অবিদ্যা দুই আছে। এই বিদ্যা মায়া ঈশ্বরের দিকে লয়ে যায়, অবিদ্যা মায়া ঈশ্বর থেকে মানুষকে তফাত করে লয়ে যায়। বিদ্যার খেলা — জ্ঞান, ভক্তি, দয়া, বৈরাগ্য। এই সব আশ্রয় করলে ঈশ্বরের কাছে পৌঁছানো যায়। “আর-একধাপ উঠলেই ঈশ্বর — ব্রহ্মজ্ঞান! এ-অবস্থায় ঠিক বিধ হচ্চে — ঠিক দেখছি — তিনিই সব হয়েছেন। ত্যাজ্য-গ্রাহ্য থাকে না! কারু উপর রাগ করবার জো থাকে না।
[( 9 मई , 1885 ) श्रीरामकृष्ण वचनामृत-114 ]
🔱🙏 बाद ब्रह्मज्ञान के (Exalted State के) बाद लीला का स्वाद🔱🙏
समाधि के बाद व्युत्थान में लीला का स्वाद
ব্রহ্মজ্ঞানের পর লীলা-আস্বাদন! সমাধির পর নিচে নামা!
[( 9 मई , 1885 ) श्रीरामकृष्ण वचनामृत-114 ]
🔱🙏 तुम मुझे मन दो, मैं तुम्हें ज्ञान दूँगा !🔱🙏
'Give me your mind and I shall give you Knowledge.'
তুমি আমায় মন দাও, আমি তোমায় জ্ঞান দিচ্ছি।