शनिवार, 26 अक्तूबर 2019

सिंहल और बंगाल के राजा का बिगड़ैल लड़का -विजय सिंह।

'यूरोप यात्रा के संस्मरण : 
 (सिंहल और बौद्धधर्मं : अतीत के कंकाल समूह ) 
 [ वि० सा० हिन्दी ख ० 8 पेज 167 -168]
("बंगला/  ষষ্ঠ খণ্ড - পরিব্রাজক -/ভারত-বর্তমান ও ভবিষ্যৎ/ অতীতের কঙ্কালচয়!)
" आमादेर छेले विजय सिंह लंका करिया जय। सिंहल नामे रेखे गेछे तार , निज शौर्येर परिचय !..... भारत महासागर में जितना जहाज पश्चिम की ओर चलेगा, उतना ही तूफ़ान बढ़ेगा। .... सामने कोलम्बो है।  यही सिंहल, लंका है। श्री रामचन्द्र ने सेतु बाँधकर सागर पार हो लंका के राजा रावण पर विजय प्राप्त की थी। वह रामसेतु तो देख रहा हूँ, सेतुपति महाराजा के महल पभगवान रामचन्द्र द्वारा प्रदत्त पत्थर पर खुदा अधिकार -चिन्ह भी लगा था वह भी देख रहा हूँ। लेकिन सिलोनी बौद्ध लोग इस पापी राजा (रावण) को अपना राजा स्वीकार नहीं करना चाहते, कहते हैं, हमारे देश में तो ऐसी एक किम्वदन्ती भी नहीं है। अरे ! नहीं है, कहने से क्या होगा ? गोसाईं जी ने क्या अपनी पोथी में ऐसे ही लिख दिया है ? ये लंका वाले वे अपने देश को कभी सिंहल नहीं कहते। कहेंगे कहाँ से ? उनके चरित्र में तो कहीं से तीखापन -लंकापन बचा ही नहीं है ! घाँघरा पहने, चोटी बाँधे जनानी सूरत के ! दुबले-पतले नाटे कोमल शरीर वाले ! ये कभी हो सकते हैं -रावण-कुम्भकर्ण के औलाद ? लो हो चूका ! ये कहते हैं -हमारा राजा तो बंगाल से आया था। 
बंगाल में भी एक विशेष प्रकार का दल उमड़ रहा है जो औरतों जैसी तिरछी -तिरछी चाल में चलते हैं, पैदा होने के दिन से ही- मोहब्बत पर शायरी लिखते हैं, और विरह की आग में जलते हुए छाती पीटकर - ' हाय हुसैन, हाय हसन ' कहते हैं -ये जनाब लोग सीलोन क्यों नहीं जाते ? एक था बंगाली राजा का महादुष्ट लड़का -नाम विजय सिंह , जो बाप से झगड़कर लंका टापू पहुँच गया, वहाँ के जंगली राजा को मारकर राज पर कब्जा कर लिया। उसकी लड़की से शादी कर लिया , बाद में उस लड़की को छोड़ कर बंगाली लड़की अनुराधा से विवाह कर लिया। ..... ८/१७३/
ষষ্ঠ খণ্ড - পরিব্রাজক -/ভারত-বর্তমান ও ভবিষ্যৎ :  আর্য বাবাগণের জাঁকই কর, প্রাচীন ভারতের গৌরব ঘোষণা দিনরাতই কর, আর যতই কেন তোমরা 'ডম‍্ম‍্ম‍্' বলে ডম্ফই কর, তোমরা উচ্চবর্ণেরা কি বেঁচে আছে? তোমরা হচ্চ দশ হাজার বছরের মমি!!  ভূত-ভারত-শরীরের রক্তমাংসহীন-কঙ্কালকুল তোমরা, কেন শীঘ্র শীঘ্র ধূলিতে পরিণত হয়ে বায়ুতে মিশে যাচ্চে না? হুঁ, তোমাদের অস্থিময় অঙ্গুলিতে পূর্বপুরুষদের সঞ্চিত/  এরা সহস্র বৎসর অত্যাচার সয়েছে, নীরবে সয়েছে,—তাতে পেয়েছে অপূর্ব সহিষ্ণুতা। সনাতন দুঃখ ভোগ করছে,—তাতে পেয়েছে অটল জীবনীশক্তি। এরা এক মুঠো ছাতু খেয়ে দুনিয়া উলটে দিতে পারবে; আধখানা রুটি পেলে ত্রৈলোক্যে এদের তেজ ধরবে না; এরা রক্তবীজের প্রাণ-সম্পন্ন। আর পেয়েছে অদ্ভুত সদাচার-বল, যা ত্রৈলোক্যে নাই। এত শান্তি, এত প্রীতি, এত ভালবাসা, এত মুখটি চুপ ক'রে দিনরাত খাটা এবং কার্যকালে সিংহের বিক্রম!!  একটা ছিল মহা দুষ্টু রাজার ছেলে—বিজয়সিংহ ব'লে। সেটা বাপের সঙ্গে ঝগড়া-বিবাদ ক'রে, জাহাজে ক'রে ভেসে ভেসে লঙ্কা নামক টাপুতে হাজির। নো রাজা বড় খাতির ক'রে রাখলে, মেয়ে বে দিলে। তারপর বিজয়সিংহ হলেন রাজা, দুষ্টুমির এইখানেই বড় অন্ত হলেন না। তখন ভারতবর্ষ থেকে আরও লোকজন, আরও অনেক মেয়ে আনলেন। অনুরাধা বলে এক মেয়ে তো নিজে করলেন বিয়ে, আর সে বুনোর মেয়েকে জলাঞ্জলি দিলেন।...বাঙালি কবি সত্যেন্দ্রনাথ দত্তের  কবিতার চারটি লাইন,--‘আমাদের ছেলে বিজয় সিংহ, লঙ্কা করিয়া জয়সিংহল নামে রেখে গেছে তার, নিজ শৌর্যের পরিচয়।’ 
 বিজয় সিংহ নামের এক বাঙালি রাজকুমার অর্ণবপোতে চেপে ভারত মহাসাগর পাড়ি দিয়ে দখল করে নিয়েছিলেন আজকের শ্রীলংকা। শুধু দখল করেই ক্ষান্ত হননি তিনি। দ্বীপের নাম পালটে রেখেছিলেন সিংহল, নিজেদের বংশের নামে। এখান থেকেই সিংহলের ইতিহাস শুরু। সিংহলি জাতির সূত্রপাত। বিজয় সিংহের কাহিনি লিপিবদ্ধ রয়েছে শ্রীলংকার প্রাচীন সব পুস্তকে। দ্বীপবংশ, মহাবংশ, কুলবংশ, এগুলো হচ্ছে শ্রীলংকার প্রাচীন ইতিহাস। পালি ভাষায় লেখা এই সব পুস্তকে বিজয় সিংহের ঘটনা বেশ গুরুত্বের সাথে রয়েছে। তবে, বিজয় সিংহ ভাল মানুষ ছিল কী অত্যাচারী মানূষ ছিল তা এখন গৌণ বিষয়। মূখ্য হচ্ছে, আড়াই হাজার বছর আগে উত্তাল জলরাশি পাড়ি দিয়ে বিজয় সিংহের নেতৃত্বে একদল অদম্য সাহসী বাঙালি লংকা দখল করেছিল। নিজেদের নামে একটি রাষ্ট্রের, একটি জাতির আর একটি ভাষার জন্ম দিয়েছিল, যার অস্তিত্ব আজো বর্তমান। বঙ্গের সিংহপুরুষ বিজয় সিংহকে স্যালুট। সাভার https://blog.mukto-mona.com/साभार https://baniorachana.nltr.org/] 
----------------------





कोई टिप्पणी नहीं: