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गुरुवार, 1 जुलाई 2010

[30 ] " स्वामीजी के घर में रामनाम-संकीर्तन गान "

प्रथम दिन वेदान्त मठ जाने पर जिन वीरेश्वर चक्रवर्ती महोदय का गायन सुना था, बाद में क्रमशः उनके साथ परिचय भी हुआ. परिचय होने पर यह दिखायी दिया कि, जिनका परिचय एक प्रसिद्ध रेडिओ आर्टिस्ट और बहुत बड़े गायक के रूप में दिया गया था; वे निःसंदेह बहुत अच्छा गाते थे- किन्तु उनमे अभिमान का लेशमात्र भी नहीं था. उनका रहन-सहन बिल्कुल सामान्य लोगों जैसा ही था. उनके साथ जब प्रथम बार बात-चीत हुई, उसी समय उन्होंने मुझको बिल्कुल अपने सगे भाई के जैसा महा आनन्द प्रकट करते हुए अपने ह्रदय से जोड़ लिया. 
ज्ञात हुआ कि जब वे हाफ-पैन्ट पहनते थे (किशोरावस्था), तभी से गाना गाया करते थे,किन्तु जब हमलोगों के साथ उनका परिचय हुआ था, तब वे ' कलकाता रेडिओ ' पर संगीत के पाँच विविध विषयों के " A "- क्लास आर्टिस्ट थे. 
उन दिनों वेदान्त मठ में सप्ताह में एक दिन रामनाम-संकीर्तन भी गाया जाता था, उनके साथ रहते रहते इतनी प्रगाढ़ता हो गयी थी कि रामनाम-संकीर्तन गाने वाली उनकी मण्डली के साथ बैठ कर मैं भी गाने लगा. बहुत दिनों तक यह सिलसिला चलता रहा.उसके बाद नौकरी के जीवन में मुझे एक बार फिर से कलकाता के बाहर स्थानान्तरित होकर जाना पड़ा.
जब पुनः वहाँ से वापस लौट आया तो एकदिन मैं फिरसे वेदान्त मठ गाया. वहाँ पहुँचने पर मेरे पूर्व-परिचित लोगों ने, विशेषकर ' रामनाम-संकीर्तन गायन मण्डली ' के भाईओं ने कहा- " आप बहुत दिनों के बाद आये हैं, हमलोगों की मण्डली के साथ रामनाम-संकीर्तन गाने के लिये आप भी चलिए. 
" इसपर स्वामी सदात्मानन्दजी ने हँसते हुए कहा- " तोमरा जाओ, ओ एइखाने बासुक, आर रामनाम गाईबे ना, ओर भूत छेड़े गेछे."- " तुम लोग जाओ, उसे यहीं पर बैठने दो, वह अब और रामनाम-संकीर्तन नहीं गायेगा, उसका भूत उतर गया है."  
एक दिन स्वामीजी के घर में बैठकर रामनाम-संकीर्तन गाने का परम-सौभाग्य भी हमलोगों को प्राप्त हुआ था. उस समय स्वामीजी के दोनों भाई, महेन्द्रनाथ दत्त और भूपेन्द्रनाथ दत्त जीवित थे. रामनाम-संकीर्तन करने वाली पूरी गायक मण्डली तथा कुछ अन्य लोगों के साथ वीरेश्वरदा भी थे, और हम सभी लोग एक साथ मिलकर स्वामीजी के घर जा रहे थे!
जाते समय मन में विचार उठ रहा था- ' स्वामीजी के घर जा रहा हूँ! ' उनका पुराना वाला घर जाने के लिये एक गली से होकर जाने पर बायीं ओर दरवाजा पड़ता था. उस दरवाजे से प्रविष्ट होते ही, दाहिनी ओर के एक स्थान पर कमरा है. उसी कमरे में महेन्द्रनाथ दत्त लेटे हुए थे, तब उनकी आयू अधिक हो चुकी थी, और शरीर भी उतना स्वस्थ नहीं था.
मैं उस स्थान पर पहुँचा तो थोड़ी देर तक खिड़की के सामने खड़ा हुआ. यहाँ उस घटना का उल्लेख करना ठीक होगा य़ा नहीं कह नहीं सकता किन्तु जो कुछ हुआ था...वह हुआ,(जो बिल्कुल सत्य था)!
पुराने ढंग का मकान था इसी लिये उस कमरे के सामने केवल एक दरवाजा था और एक छोटी सी खिड़की थी, कमरे में कोई बत्ती नहीं जल रही थी;किन्तु स्वयं उनके ही शरीर से ही मानो किसी प्रकार की ज्योतिर्वलय य़ा प्रभा-मण्डल की किरणें निःसृत हो रही थीं।  जिसके फल-स्वरूप वह पूरा कमरा मानो प्रकाशित हो उठा था. (एक दिन बातचीत के क्रम में नवनीदा ने कहा था, वह प्रभावलय पानी के एक छड़ी के जैसा खिड़की से बाहर की ओर जाता हुआ दिखा था।)
महेन्द्रनाथ दत्त ने अपनी " श्रीरामकृष्ण का अनुध्यान " शीर्षक एक पुस्तक में ठीक ऐसी ही घटना का जिक्र करते हुए लिखा है, कि ठाकुर के शरीर से भी इसी तरह की प्रकाश-किरणों को निःसृत होते हुए सभी लोगों ने बार-बार देखा है.तथा उस जगह उन्होंने इसे 'Effluvium' (या efflux बहिः स्त्रवण) कहा है. बिल्कुल अद्भुत घटना है. उन्हों ने इसी प्रकार की आश्चर्यजनक घटनाओं से भरपूर कई पुस्तकें लिखी हैं.
Mahendranath Dutta's Sri Ramakrishner Anudhyan, ("Sacred Memories of Sri Ramakrishna"),
पृथ्वी की उत्पत्ति कैसे हुई, सूर्य की उत्पत्ति के विषय में य़ा अन्य कितने ही खगोलीय विषयों (Astronomy) के ऊपर बिल्कुल नवीन सिद्धान्तों (Theories) को आविष्कृत करने वाली उनकी अनेकों पुस्तकें- उपलब्ध हैं. ठाकुर-देव के ऊपर, स्वामीजी के ऊपर, उनके जीवन की घटनाओं के सम्बन्ध में भी कितनी ही पुस्तकें उन्होंने लिखी हैं.
उपरोक्त घटना का उल्लेख करते हुए, वे अपनी पुस्तक " श्रीरामकृष्णेर अनुध्यान " में लिखते हैं- ".... हमसभी कलकाता के शिक्षित परिवार से तथा बड़े घरों में रहने वाले लड़के थे, और केवल 'राम डाक्टर ' के कहने पर....उनके इस अति-साधारण दिखने वाले ' गुरु ' को देखने के लिये आये थे. किन्तु वहाँ पहुँचने पर देखते हैं कि- " परमहंस महोदय '(ठाकुर-देव) के शरीर से मानो किसी प्रकार की एक आभा (Effluvium) य़ा शक्ति.... निःसृत होकर समस्त कमरे को आपूरित कर रही थी ...और उस कमरे की खिड़की के फाँक से होते हुए, बाहर निकलते हुए बरामदे में मानो किरणों का ज्वार आया हुआ हो ऐसा आभास उत्पन्न कर रही थीं. " 
Chambers English Dictionary में Effluvium - शब्द का अर्थ लिखा है, " Minute particles that flow out from bodies ". (- अर्थात चैंबर के डिक्सनरी में Effluvium शब्द का अर्थ लिखा हुआ है- " वैसे अतिसूक्ष्म कण जो शरीर से निःसृत होते हैं.")  
भूपेन्द्रनाथ दत्त उम्र में स्वामीजी से छोटे थे, वे अमेरिका आदि कई देशों में गये थे तथा कई विषयों के ज्ञाता भी थे. वे  वेदान्त मठ अक्सर जाया करते थे तथा प्रज्ञानन्द महाराज के साथ भी उनका घनिष्ट सम्बन्ध था.हमलोग उसदिन जब रामनाम-संकीर्तन करने के लिये स्वामीजी के घर में प्रविष्ट कर रहे थे उस समय वे थोड़े अनमनस्क हो कर/ विरक्त होकर घर से बाहर निकल रहे थे.तेजी से जाते हुए कह रहे थे- ' यह देखो हनुमान लोग आ गया है, अभी सब मिल कर रामनाम करेगा.हनुमान सब आ गया है, इसीलिये मुझे यहाँ जाना चाहिये.' इसप्रकार कहते हुए चले गये और वेदान्त मठ जाकर प्रज्ञानन्द महाराज के साथ बातचीत करने लगे. 
उधर स्वामीजी के घर में बैठ कर रामनाम-संकीर्तन गाने में हमलोगों को जो अपूर्व आनन्द मिला था, उसको याद करने से अभी भी कैसी अनुभूति हो रही है.अब तो उसे घटित हुए कई वर्ष बीत चुके हैं.उस दिन वहाँ से कुछ मिठाई-विठाई खा कर महा आनन्द मानते हुए बाहर निकले. 
हमलोग वेदान्त मठ में ही एकत्रित होकर स्वामीजी के घर तक आये थे, पुनः सभी लोग मठ में ही लौट रहे थे की वहीं से सभी अपने-अपने घर लौट जायेंगे. वेदान्त मठ लौटने पर देखे कि भूपेन दत्त महोदय भी प्रज्ञानन्द महाराज के साथ बैठ कर बातें कर रहे हैं. जैसे ही हमलोगों को देखे तो बोल पड़े- ' यह देखो, हनुमान सब लौट आया है. अब मुझे घर लौट जाना चाहिये.' कहते हुए घर लौट गये.  
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{The long cherished wish of countless admirers and followers of Swami Vivekananda came true when the ancestral house of Swamiji, renovated and restored by Ramakrishna Mission, was inaugurated on September 26th 2004 by revered Swami Ranganathanandaji Maharaj, the President of Ramakrishna Order. About 500 monks and nearly a lakh devotees visited this sacred place to pay their reverential homage to Swamiji. Doordarshan telecast the programme live on its Calcutta Channel.


The large house in which Swamiji was born had been built by his great grandfather Rammohan Dutta 300 years ago. Rammohan was an associate of an English solicitor and earned a lot of wealth through his profession. The house was located in Simla Palli, a locality in north Calcutta. During Swamiji's time the house was surrounded by a garden and beyond that there was a large open space. 
But in later years, owing to the city's growth and the overcrowding of buildings, the approach road to the house got narrowed into a lane, now known as Gour Mohan Mukherjee Street.


Swamiji's house, originally, was a large structure. A massive doorway opened to the street outside. On one side of the doorway there was a small room meant for the durwan or gatekeeper.


As you entered the premises by the doorway, you would see the spacious courtyard, at a corner of which there was a stable for horses. The courtyard was bordered on two sides by the main building which had two parts. To the right was a single-storied structure having rooms for men-folk. In front of these rooms was a long veranda where feasts were laid out for guests on special occasions.
Facing the doorway and across the courtyard, adjoining the men's rooms, rose the ladies' apartment, two storeys in height. The ground floor of this was used as kitchen and dining hall. Above this were the dwelling chambers. From the latticed enclosure here the purdah ladies could watch the grand Pujas and other religious ceremonies held in the courtyard. The roof of this building served as the place where the ladies met, talked, and moved freely. It was in a small temporary shed on this roof that the future Swami Vivekananda was born. It may be mentioned here that, as in some other religious traditions, in Hindu religious tradition also 'accouchement' प्रसूति गृह or giving birth used to be regarded as a form of social defilement 'दूषित करना' and so it was arranged either in an outhouse or a shed on the roof. This is the reason why Swamiji's actual birthplace happened to be on the roof of his house.

The untimely death of Naren's father brought out the weak links in family relationships. Hardly had the days of mourning been over when some of the relatives put forth claims to the ownership of the property. The dispute was taken to the court and the legal battle dragged on. After the high court case was settled, the whole property was divided into ten parts. A portion of the house was demolished to make a common passage for the occupants of the building. After the time of Swami Vivekananda and his mother, his two younger brothers Mahendranath Dutta and Bhupendranath Dutta continued to live in a part of the building till the end of their lives.}
                             

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