सोमवार, 23 जून 2014

' विवेकानन्द - दर्शनम् ' - श्री नवनीहरण मुखोपाध्यायः (24)

' विवेकानन्द - दर्शनम् ' 
२४.
प्रेम ही मैदान जीतेगा

(अखिल- भारत- विवेकानन्द- युवमहामण्डलम् अध्यक्षः  श्री नवनीहरण मुखोपाध्यायः विरचित )
[In this book, within quotes, the words are of Swami Vivekananda. The ideas, of course, are all his.
इस पुस्तिका में, उद्धरण के भीतर लिखे गये शब्द स्वामी विवेकानन्द के हैं। निस्सन्देह विचार भी उन्हीं के हैं।]

 
श्री श्री माँ सारदा और आप , मैं ...या कोई भी ... 


नमस्ते सारदे देवि दुर्गे देवी नमोsस्तुते |
वाणि लक्ष्मि महामाये मायापाशविनाशिनी ||
नमस्ते सारदे देवि राधे सीते सरस्वति |
सर्वविद्याप्रदायिण्यै संसाराणवतारिणी ||
सा मे वसतु जिह्वायां मुक्तिभक्तिप्रदायिनी ||
सारदेति जगन्माता कृपागङ्गा प्रवाहिनी ||


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विशुद्ध भावनाज्ञानतत्वप्रख्या च दर्शनम्
' विवेकानन्द - वचनामृत '  
२४.
न मन्येsस्ति तस्य भावो न शक्नोति यदीश्वरः। 
दातुं क्षाममुखे चान्नमनार्थिन्य श्रुमोचनम् ॥  

' I do not believe in a God or religion which cannot wipe the widow's tears or bring a piece of bread to the orphan's mouth.'

'मैं उस भगवान या धर्म पर विश्वास नहीं करता, जो न विधवाओं के आँसू पोंछ सकता है और न अनाथों के मुँह में एक टुकड़ा रोटी ही पहुँचा सकता है।' ३/३२२ 
प्रसंग : [स्वामी जी द्वारा २७ अक्तूबर, १८९४ को श्री आलासिंगा पेरुमल को लिखित पत्र स्वामीजी के 
महावाक्य - " योर कंट्री रीक्वाइरर्स हीरोज; बी हीरोज!"  " तुम्हारे देश के लिये वीरों की आवश्यकता है-'वीर' बनो !" " बीलीवर (believer)=आस्तिक= वीर =हीरो !" " चरित्र की ही सर्वत्र विजय होती है!"  " सत्ता का नशा और ईर्ष्या से सावधान!"]
विषयवस्तु : प्रिय आलासिंगा, तुम्हें मेरा  शुभाशीर्वाद !
मैं तुम लोगों को चिट्ठी द्वारा डाँटता हूँ, इसके लिये कुछ बुरा न मानना। तुम सभी को मैं किस हद तक प्यार करता हूँ, यह तुम अच्छी तरह जानते हो। मैं यहां वही काम कर रहा हूँ, जो भारतवर्ष में करता था- ' सदा ईश्वर पर भरोसा रखना और भविष्य के लिये कोई संकल्प न करना।' तुमने, जी.जी. ने और मद्रासवासी मेरे सभी मित्रों ने मेरे लिये जो अत्यन्त निःस्वार्थ और वीरतापूर्ण कार्य किया है उसके लिये अपनी कृतज्ञता किन शब्दों में व्यक्त करूँ? 
लेकिन स्मरण रखना कि तुमलोगों ने जो कुछ किया है, वो मुझे आसमान पर चढ़ा देने के लिये नहीं थे, वरन तुम लोगों को अपने  स्वयं में अन्तर्निहित असीम शक्ति प्रति की जागरूक करा देने के लिये थे। मैं एक त्यागी संन्यासी हूँ और मैं केवल एक ही वस्तु चाहता हूँ। मैं उस भगवान या धर्म पर विश्वास नहीं करता, जो न विधवाओं के आँसू पोंछ सकता है और न अनाथों के मुँह में एक टुकड़ा रोटी ही पहुँचा सकता है। यदि किसी धर्म का सिद्धान्त, चाहे वह कितना भी उद्दात हो एवं उसका दर्शन कितना ही सुगठित क्यों न हो, जब तक वह केवल कुछ पुस्तकों एवं-सिद्धान्त बघारने तक सीमित है, आचरण में नहीं दीखता- मैं उसे धर्म मानने के लिये तैयार नहीं हूँ। आँखें सामने की ओर लगीं हैं, सिर के पीछे नहीं। इसका अर्थ है- आगे बढ़ो; जिसे तुम अपना धर्म मानकर गर्व का अनुभव करते हो, उसे अपने आचरण में उतार कर दिखाओ! और ईश्वर कृपा करते ही हैं। मेरी ओर मत देखो, अपनी ओर देखो। मुझे इस बात की ख़ुशी है कि मैं धर्म को आचरण में उतारने के लिये कुछ उत्साह संचारित कर सका। अब तो तुम जान ही गये हो कि तुम कितनी असीम शक्ति छुपी हुई है, तुम क्या कर सकते हो; क्योंकि ' तुम मद्रासवासी युवको, तुम्हीं ने वास्तव में सब कुछ किया है; मैं तो चुपचाप खड़ा रहा। 
इससे लाभ उठाओ, इसीके सहारे बढ़ चलो। सब कुछ ठीक हो जायेगा। संघ बनाने की शक्ति मुझमें नहीं है, मेरी प्रकृति अध्यन और ध्यान की ओर झुकती है। मैं सोचता हूँ कि मैं बहुत कुछ कर चुका, अब मैं विश्राम करना चाहता हूँ। और उनको थोड़ी-बहुत शिक्षा देना चाहता हूँ, जिन्हें मेरे गुरुदेव ने मुझे सौंपा है। प्रेम कभी निष्फल नहीं होता मेरे बच्चे, कल हो या परसों या युगों के बाद, पर सत्य की जय अवश्य होगी। प्रेम ही मैदान जीतेगा। क्या तुम अपने भाई-मनुष्य जाति को प्यार करते हो ? ईश्वर को ढूँढने कहाँ चले हो- ये सब गरीब, दुःखी, दुर्बल मनुष्य (अपराध-हिंसा-बलत्कार करना जिनकी प्रवृत्ति बन चुकी है) क्या ईश्वर नहीं हैं ? इन्हीं की पूजा पहले क्यों नहीं करते ? गंगा-तट पर कुआँ -खोदने क्यों जाते हो ?
'चरित्र ' की ही सर्वत्र विजय होती है: प्रेम की असाध्य-साधिनि शक्ति (omnipotent power) पर विश्वास करो। इस झूठ जगमगाहट वाले (मिथ्या व्यक्तित्व को महिमामण्डित करने वाले) नाम-यश की परवाह कौन करता है ? समाचार पत्रों में क्या छपता है, क्या नहीं, इसकी मैं खबर ही नहीं लेता। क्या तुम्हारे पास प्रेम है ? तब तो तुम सर्वशक्तिमान हो ! क्या तुम सम्पूर्णतः निःस्वार्थ हो ? यदि हो ? तो फिर तुम्हें कौन रोक सकता है ? चरित्र की ही सर्वत्र विजय होती है। भगवान (श्रीरामकृष्णदेव) समुद्र के तल में भी अपनी सन्तानों की रक्षा करते हैं। 
 " Your country requires Heroes; be Heroes!" 
 " योर कंट्री रीक्वाइरर्स हीरोज; बी हीरोज! "
अर्थात तुम्हारे देश के लिये वीरों (फ़िल्मी हीरो नहीं) की आवश्यकता है-'वीर' बनो ! ईश्वर तुम्हारा मंगल करें। [सं : जो अपनी जान की परवाह किये बिना अपने भाइयों की सेवा करने के लिये भयंकर से भयंकर नक्सल प्रभावित गाँवों में भी जा सकता है, वही हीरो होता है। स्वामी जी ने 'हीरो' को परभाषित करते हुए अन्यत्र कहा है - 'Believers are heroes'; अर्थात 'बीलीवर' (believer=आस्तिक) ही वीर (हीरो) है! क्योंकि वह जानता है कि भगवान (श्रीरामकृष्णदेव) समुद्र के तल में - अर्थात भयंकर से भयंकर संकट में घिर जाने पर भी अपनी सन्तानों की रक्षा करते हैं, उसी को बिलीवर कहते हैं।] 
सभी लोग मुझे भारत लौटने को कहते हैं। वे सोचते हैं कि मेरे लौटने पर अधिक काम हो सकेगा। किन्तु मेरे दोस्तों -यह उनका भ्रम है। इस समय भारत में मेरे नाम पर जो उत्साह पैदा हुआ है, वह किंचित देश-प्रेम भर ही है (भारत-पाकिस्तान क्रिकेट मैच में तिरंगा स्टिकर गालों में साटकर तिरंगा लहराने वाला क्षणिक देश-प्रेम) - उसका कोई खास मूल्य नहीं ! यदि वह सच्चा उत्साह है, तो बहुत शीघ्र देखोगे कि सैकड़ो 'वीर योद्धा' युवक सामने आकर इस चरित्र-निर्माण और मनुष्य-निर्माण -आन्दोलन को आगे बढ़ा रहे हैं ! अतः जान लो कि वास्तव में तुम्हीं ने सब कुछ किया है, और आगे बढ़ते चलो। मेरे भरोसे मत रहो। यहाँ मेरे सामने एक बहुत विशाल कार्यक्षेत्र पड़ा हुआ है। 
मुझे इस 'वाद' के या उस "वाद" (धार्मिक कट्टरता या सम्प्रदायवाद) से क्या लेना देना है ? मैं तो भगवान श्रीरामकृष्ण का दास हूँ, और उनके सर्वधर्म-समन्वय आदि समस्त उदार विचारों के विस्तार के लिये-इस देश से अच्छा क्षेत्र मुझे कहाँ मिलेगा ? यहाँ यदि एक आदमी मेरे विरुद्ध हो, तो सौ आदमी मेरी सहायता करने को तैयार हैं। यहाँ के पुरुष, अपने देशवासियों के दुःख-कष्ट को महसूस करते हैं, उनके सहायता करने में असमर्थ होने पर रोते हैं, और यहाँ की नारियाँ तो देवीस्वरूपा हैं।  प्रशंसा मिलने पर तो मूर्ख (पप्पू) भी खड़ा हो सकता है, और कायर भी साहसी का सा डौल दिखा सकता है - पर तभी, जब सब कामों का परिणाम शुभ होना निश्चित हो; परन्तु सच्चा वीर चुपचाप काम करता जाता है। एक बुद्ध के प्रकट होने के पहले कितने बुद्ध चुपचाप काम कर गये ! 
मेरे बच्चे, मैं ईश्वर से प्यार करता हूँ, साथ ही मनुष्य से भी प्यार करता हूँ-'आदमी हूँ आदमी से प्यार करता हूँ ! दुःखी लोगों की सहायता करने में मैं विश्वास करता हूँ और दूसरों को बचाने के लिये, मैं नरक तक जाने को भी तैयार हूँ। 
पाश्चात्य देशवालों की बात करते हो ? यहाँ उन्होंने मुझे भोजन और आश्रय दिया, मुझसे मित्र का सा व्यव्हार किया, और मेरी रक्षा की --यहाँ तक कि अत्यन्त कट्टर ईसाई लोगों ने भी। किन्तु जब इनका कोई पादरी भारत जाता है, तो तुम उसको छूते तक नहीं- वे तो म्लेच्छ हैं ! मेरे बेटे, कोई मनुष्य, कोई जाति, दूसरों से घृणा करते हुए जी नहीं सकती। भारत के भाग्य का निपटारा उसी दिन हो गया था, जब उसने दूसरे रंग-रूप के मनुष्यों के लिये 'म्लेच्छ' शब्द का आविष्कार किया और दूसरों से अपना नाता तोड़ लिया। खबरदार, जो तुमने इस कट्टर-जातिवाद या धर्मवाद के नाम पर अपने से भिन्न या मनुष्यों को म्लेच्छ कहने की जुर्रत की ! वेदान्त की बातें बघारना तो बहुत सरल है, पर इसके छोटे से छोटे महावाक्यों को जीवन में उतार कर दिखाना कितना कठिन ?
तुम्हारा चिर कल्याणकांक्षी, विवेकानन्द 
PS. Take care of these two things — love of power and jealousy. Cultivate always "faith in yourself".
पुनश्च. ' सत्ता का नशा और ईर्ष्या ' --इन दो बातों से सावधान रहना ! सदा आत्मश्रद्धा में स्थित रहने का अभ्यास करते रहना ! 
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