मेरे बारे में

मंगलवार, 25 फ़रवरी 2025

$$$🔱*परिच्छेद ३, [ (3 दिसम्बर, 1881) श्री रामकृष्ण वचनामृत : परिच्छेद -३ ] 🔱Real Heroes वीर भक्त ।🕊 🏹भक्ति प्राप्त करके फिर कर्म किया जा सकता है ।मर्कट-वैराग्य $$ भोग (Bh) का अन्त हो जाने पर तब त्याग का समय होता है । उनकी माया में अनित्य नित्य-जैसा लगता है, स्त्री-पुत्र, भाई बहन, माँ-बाप, घर-बार मेरे ही हैं ऐसा ज्ञात होता है $$अविद्या माया =(तीनों ऐषणाओं में आसक्ति) ईश्वर की याद भुला देती है, और विद्या-माया (=आत्म ? ज्ञान, भक्ति, साधुसंग) - ईश्वर की ओर ले जाती है ।*श्रीरामकृष्ण मनोमोहन के घर पर*

 [ (3 दिसम्बर, 1881) श्री रामकृष्ण वचनामृत : परिच्छेद -3 ]

  *श्रीरामकृष्ण मनोमोहन के घर पर* 

(१)

*केशव सेन, राम, सुरेन्द्र आदि के संग में*

श्री मनोमोहन का घर, २३ नं. सिमुलिया स्ट्रीट, सुरेन्द्र के मकान के पास है । आज है शनिवार, ३ दिसम्बर १८८१ ई. । श्रीरामकृष्ण दिन के लगभग चार बजे मनोमोहन के घर पधारे हैं । मकान छोटासा है, दुमँजला; छोटासा आँगन भी है । श्रीरामकृष्ण नीचे मँजले के बैठकघर में बैठे हैं । यह कमरा गली से लगा हुआ ही है । भवानीपुर के ईशान मुखर्जी के साथ श्रीरामकृष्ण बातचीत कर रहे हैं । ईशान - आपने संसार क्यों छोड़ा ? शास्त्रों में तो संसार-आश्रम को श्रेष्ठ कहा गया है।

In the afternoon Sri Ramakrishna paid a visit to his householder disciple Manomohan, at 23 Simla Street, Calcutta. It was a small two-storey house with a courtyard. The Master was seated in the drawing-room on the first floor. Ishan of Bhawanipur asked him: "Sir, why have you renounced the world? The scriptures extol the householder's life as the best."

শ্রীযুক্ত মনোমোহনের বাটী; ২৩নং সিমুলিয়া স্ট্রীট; সুরেন্দ্রের বাটীর নিকট। আজ ৩রা ডিসেম্বর; শনিবার, ১৮৮১ খ্রীষ্টাব্দ (১৯শে অগ্রহায়ণ, ১২৮৮)। শ্রীরামকৃষ্ণ বেলা আন্দাজ ৪টা সময় শুভাগমন করিয়াছেন। বাটীটি ছোট — দ্বিতল — ছোট উঠান। ঠাকুর বৈঠকখানা ঘরে উপবিষ্ট। একতলা ঘর — গলির উপরেই ঘরটি। ভবানীপুরের ঈশান মুখুয্যের সঙ্গে শ্রীরামকৃষ্ণ কথা কহিতেছেন। ঈশান — আপনি সংসারত্যাগ করিয়াছেন কেন? শাস্ত্রে সংসার আশ্রমকে শ্রেষ্ঠ বলেছে।

श्रीरामकृष्ण - क्या भला है और क्या बुरा, यह मैं नहीं जानता । वे जो कुछ कराते हैं, वही करता हूँ; जो कहलाते हैं, वही कहता हूँ ।

MASTER: "I don't know much about what is good and what is bad. I do what God makes me do and speak what He makes me speak."

শ্রীরামকৃষ্ণ — কি ভাল কি মন্দ অত জানি না; তিনি যা করান তাই করি, যা বলান তাই বলি।

ईशान - सभी लोग यदि गृहस्थी को छोड़ दें, तो ईश्वर के विरुद्ध काम करना होता है ।

ISHAN: "If everybody renounced the world, they would be acting against God's will."

ঈশান — সবাই যদি সংসারত্যাগ করে, তাহলে ঈশ্বরের বিরুদ্ধে কাজ করা হয়।

श्रीरामकृष्ण - सभी लोग क्यों छोड़ेंगे ? और क्या उनकी यही इच्छा है कि सभी लोग पशुओं की तरह कामिनी-कांचन में मुँह डुबोकर रहें ? क्या और कुछ भी उनकी इच्छा नहीं है ? क्या तुम सब कुछ जानते हो कि क्या उनकी इच्छा है और क्या नहीं ?

MASTER: "Why should everybody renounce? On the other hand, can it be the will of God that all should revel in 'woman and gold' like dogs and jackals? Has He no other wish? Do you know what accords with His will and what is against it?

শ্রীরামকৃষ্ণ — সব্বাই ত্যাগ করবে কেন? আর তাঁর কি ইচ্ছা যে, সকলেই শিয়াল-কুকুরের মতো কামিনী-কাঞ্চনে মুখ জুবরে থাকে? আর কি কিছু ইচ্ছা তাঁর নয়? কোন্‌টা তাঁর ইচ্ছা, কোন্‌টা অনিচ্ছা কি সব জেনেছ?

"तुम कहते तो हो कि उनकी इच्छा है गृहस्थी करना (प्रवृत्ति मार्ग)। जब स्त्री-पुत्र मरते हैं, उस समय भगवान की इच्छा क्यों नहीं देख पाते ? जब खाने को नहीं पाते, उस समय - दारिद्र्य में - भगवान की इच्छा क्यों नहीं देख पाते ?

"You say that God wants everybody to lead a worldly life. But why don't you see it as God's will when your wife and children die? Why don't you see His will in poverty, when you haven't a morsel to eat?

“তাঁর ইচ্ছা সংসার করা তুমি বলছ। যখন স্ত্রী পুত্র মরে তখন ভগবানের ইচ্ছা দেখতে পাও না কেন? যখন খেতে পাওনা — দারিদ্র — তখন ভগবানের ইচ্ছা দেখতে পাও না কেন?

"माया जानने नहीं देती कि उनकी क्या इच्छा है । उनकी माया में अनित्य नित्य-जैसा लगता है, और फिर नित्य अनित्य-सा जान पड़ता है । संसार अनित्य है - अभी है, अभी नहीं, परन्तु उनकी माया से ऐसा लगता है कि यही ठीक है । उनकी माया से ‘मैं करता हूँ’ ऐसा बोध होता है, और ये सब स्त्री-पुत्र, भाई बहन, माँ-बाप, घर-बार मेरे ही हैं ऐसा ज्ञात होता है

"Maya won't allow us to know the will of God. On account of God's maya the unreal appears as real, and the real as unreal. The world is unreal. This moment it exists and the next it disappears. But on account of His maya it seems to be real. It is only through His maya that the ego seems to be the doer. Furthermore, on account of this maya a man regards his wife and children, his brother and sister, his father and mother, his house and property, as his very own.

“তাঁর কি ইচ্ছা মায়াতে জানতে দেয় না। তাঁর মায়াতে অনিত্যকে নিত্য বোধ হয়, আবার নিত্যকে অনিত্য বোধ হয়। সংসার অনিত্য — এই আছে এই নাই কিন্তু তাঁর মায়াতে বোধ হয়, এই ঠিক। তাঁর মায়াতেই আমি কর্তা বোধ হয়; আর আমার এই সব স্ত্রী-পুত্র, ভাই-ভগিনী, বাপ-মা, বাড়ি-ঘর — এই সব আমার বোধ হয়

"माया में विद्या और अविद्या दोनों हैं । अविद्या माया (तीनों ऐषणाओं में आसक्ति ईश्वर की याद ) भुला देती है, और विद्या-माया - ज्ञान, भक्ति, साधुसंग - ईश्वर की ओर ले जाती है ।

"There are two aspects of maya: vidya and avidya. Avidya deludes one with worldliness, and vidya — wisdom, devotion, and the company of holy men — leads one to God.

“মায়াতে বিদ্যা অবিদ্যা দুই আছে। অবিদ্যার সংসার ভুলিয়ে দেয় আর বিদ্যামায়া — জ্ঞান, ভক্তি, সাধুসঙ্গ — ঈশ্বরের দিকে লয়ে যায়।

"उनकी कृपा से जो माया से परे चले गये हैं, उनके लिए सभी एक-से हैं, - विद्या, अविद्या सभी एक-जैसी हैं ।“गृहस्थ-आश्रम भोग का आश्रम है । और फिर कामिनी-कांचन के भोग में रखा ही क्या है ? मिठाई गले के नीचे उतर जाते ही याद नहीं रहती कि खट्टी थी या मीठी

"He who has gone beyond maya, through the grace of God (माँ सारदा देवी) , views alike both vidya and avidya. Worldly life is a life of enjoyment. After all, what is there to enjoy in 'woman and gold'? As soon as a sweetmeat has gone down the throat, one doesn't remember whether it tasted sweet or sour.

তাঁর কৃপায় যিনি মায়ার অতীত, তাঁর পক্ষে সব সমান — বিদ্যা অবিদ্যা সব সমান।“সংসার আশ্রম ভোগের আশ্রম। আর কামিনী-কাঞ্চন ভোগ কি আর করবে? সন্দেশ গলা থেকে নেমে গেলে টক কি মিষ্টি মনে থাকে না

“परन्तु सब लोग क्यों त्याग करेंगे ? समय हुए बिना क्या त्याग होता है ? भोग का अन्त हो जाने पर तब त्याग का समय होता है । जबरदस्ती क्या कोई त्याग कर सकता है ?

"But why should everybody renounce? Is renunciation possible except in the fullness of time? The time for renunciation comes when one reaches the limit of enjoyment. Can anybody force himself into renunciation?

“তবে সকলে কেন ত্যাগ করবে? সময় না হলে কি ত্যাগ হয়? ভোগান্ত হয়ে গেলে তবে ত্যাগের সময় হয়। জোর করে কেউ ত্যাগ করতে পারে?

"एक प्रकार का वैराग्य है, जिसे कहते हैं मर्कट-वैराग्य हीन-बुद्धिवालों को वह वैराग्य होता है । जैसे विधवा का लड़का, - माँ सूत कातकर गुजर करती है - लड़के की मामूली नौकरी थी, वह भी अब नहीं रही । तब वैराग्य हुआ - गेरुआ वस्त्र पहना, काशी, चला गया । फिर कुछ दिनों के बाद पत्र लिख रहा है - 'मुझे एक नौकरी मिली है । दस रुपये माहवारी वेतन है ।' उसी में से सोने की अँगूठी और धोती-कमीज खरीदने की चेष्टा कर रहा है ! भोग की इच्छा जायगी कहाँ ?"

There is a kind of renunciation known as 'monkey renunciation'. Only small-minded people cultivate it. Take the case of a fatherless boy. His poor widowed mother earns her livelihood by spinning. The boy loses his insignificant job and suddenly is seized with a fit of renunciation. He puts on the ochre cloth of a monk and goes to Benares. A few days later he writes home, 'I have secured a job for ten rupees a month.' In the mean time he tries to buy a gold ring and beautiful clothes. How can he stifle his desire for enjoyment?"

“একরকম বৈরাগ্য আছে, তাকে বলে মর্কট বৈরাগ্য, হীনবুদ্ধি লোকের ওই বৈরাগ্য হয়। রাঁড়ীপুতি (বিধবার ছেলে), মা সুতা কেটে খায় — ছেলের একটু কাজ ছিল, সে কাজ গেছে — তখন বৈরাগ্য হল, গেরুয়া পরলে, কাশী চলে গেল। আবার কিছুদিন পরে পত্র লিখছে — আমার একটি কর্ম হইয়াছে, দশ টাকা মাহিনা; ওরই ভিতর সোনার আংটি আর জামা-জোড়া কেনবার চেষ্টা করছে। ভোগের ইচ্ছা যাবে কোথায়?

(२)

*उपाय – अभ्यासयोग*

(मनमोहन के मंदिर में)

ब्राह्म भक्तों के साथ केशव आये हैं । श्रीरामकृष्ण आँगन में बैठे हैं । केशव ने आकर अति भक्ति भाव से प्रणाम किया । वे श्रीरामकृष्ण की बायीं ओर बैठे । दाहिनी ओर राम बैठे हैं । थोड़ी देर में भागवत-पाठ होने लगा । पाठ के बाद श्रीरामकृष्ण बातचीत कर रहे हैं । आँगन के चारों ओर गृहस्थ भक्तगण बैठे हैं ।

Keshab arrived with some Brahmo devotees and respectfully saluted the Master. He took a seat on Sri Ramakrishna's left, Ram on his right. For some time a reader recited from the Bhagavata and explained the text.

ব্রাহ্মভক্তগণ সঙ্গে কেশব আসিয়াছেন। শ্রীরামকৃষ্ণ প্রাঙ্গণে বসিয়া আছেন। কেশব আসিয়া অতি ভক্তিভাবে প্রণাম করিলেন। ঠাকুরের বামদিকে কেশব বসিলেন আর দক্ষিণদিকে রাম উপবিষ্ট। কিয়ৎকাল ভাগবত পাঠ হইতে লাগিল

श्रीरामकृष्ण - (भक्तों के प्रति) - संसार का काम बड़ा कठिन है । खाली गोल-गोल घूमने से सिर में चक्कर आकर मनुष्य बेहोश हो जाता है, परन्तु खम्भा पकड़कर गोल-गोल चक्कर काटने से फिर गिरने का भय नहीं रहता । काम करो, परन्तु ईश्वर को न भूलो

MASTER (to the devotees): "It is very difficult to do one's duty in the world. If you whirl round too fast you feel giddy and faint; .but there is no such fear if you hold on to a post. Do your duty, but do not forget God.

শ্রীরামকৃষ্ণ (ভক্তদের প্রতি) — সংসারের কর্ম বড় কঠিন; বনবন করে ঘুরলে মাথা ঘুরে যেমন অজ্ঞান হয়ে পড়ে। তবে খুঁটি ধরে ঘুরলে আর ভয় নাই। কর্ম কর কিন্তু ঈশ্বরকে ভুল না

"यदि कहो, 'यह तो बड़ा कठिन है, फिर उपाय क्या है ?' - तो उपाय है अभ्यासयोग । (3H विकास का 5 अभ्यास ?) उस देश(कामारपुकुर) में भड़भूजों की औरतों को देखा; - वे एक ओर तो चिउड़ा कूट रही हैं, हाथ पर मूसल गिरने का भय है, फिर दूसरी ओर बच्चे को दूध पिला रही हैं, और फिर खरीददार के साथ बात भी कर रही हैं; कह रही हैं, 'देखो, तुम्हारे ऊपर इतने पैसे बाकी हैं, सो दे जाना ।'

"You may ask, 'If worldly life is so difficult, then what is the way?' The way is constant practice. At Kamarpukur I have seen the women of the carpenter families flattening rice with a husking-machine. They are always fearful of the pestle's smashing their fingers; and at the same time they go on nursing their children and bargaining with customers. They say to the customers, 'Pay us what you owe before you leave.'

“যদি বল, যেকালে এত কঠিন? উপায় কি? “উপায় অভ্যাসযোগ। ও-দেশে ছুতোরদের মেয়েরা দেখছি, তারা একদিকে চিঁড়ে কুটছে, ঢেঁকি পড়বার ভয় আছে হাতে; আবার ছেলেকে মাই দিচ্ছে; আবার খরিদ্দারদের সঙ্গর কতা কইছে; বলছে — তোমার যা পাওনা আছে দিয়ে যেও

"व्यभिचारिणी औरत गृहस्थी के सभी कामों को करती है, परन्तु मन सदा उप-पति की ओर रहता है ।

"An immoral woman goes on performing her household duties, but all the time her mind dwells on her sweetheart.

“নষ্ট মেয়ে সংসারের সব কাজ করে, কিন্তু সর্বদা উপপতির দিকে মন পড়ে থাকে।

"परन्तु मन की ऐसी अवस्था होने के लिए थोड़ी साधना चाहिए, बीच-बीच में निर्जन  में जाकर (साधुसंग के लिए बेलुड़ मठ, मायेर बाड़ी, राँची मिशन आश्रम का भक्त-सम्मेलन या camp में जाकर) भगवान को पुकारना चाहिए । भक्ति प्राप्त करके फिर कर्म किया जा सकता है। ऐसे ही यदि कटहल काटने जाओ तो हाथ में चिपक जायगा, पर हाथ में तेल लगाकर कटहल काटने से फिर नहीं चिपकेगा ।"

"But one needs spiritual discipline to acquire such a state of mind; one should pray to God in solitude every now and then. It is possible to perform worldly duties after obtaining love for God. If you try to break a jack-fruit, your hands will be smeared with its sticky juice. But that won't happen if, beforehand, you rub them with oil."

“তবে এটুকু হবার জন্য একটু সাধন চাই। মাঝে মাঝে নির্জনে গিয়ে তাঁকর ডাকতে হয়। ভক্তিলাভ করে কর্ম করা যায়। শুধু হাতে কাঁঠাল ভাঙলে হাতে আঠা লাগবে — হাতে তেল মেখে কাঁঠাল ভাঙলে আর আঠা লাগবে না।”

अब आँगन में कीर्तन हो रहा है । श्री त्रैलोक्य गा रहे हैं । श्रीरामकृष्ण आनन्द से नृत्य कर रहे हैं। साथ-साथ केशव आदि भक्तगण भी नाच रहे हैं । जाड़े का समय होने पर भी श्रीरामकृष्ण के शरीर में पसीना झलक रहा है ।

The kirtan began. Trailokya was singing. The Master danced, Keshab and the other devotees dancing with him. Though it was winter the Master became hot and perspired.

এইবার প্রাঙ্গণে গান হইতেছে। ক্রমে শ্রীযুক্ত ত্রৈলোক্যও গান গাহিতেছেন:জয় জয় আনন্দময়ী ব্রহ্মরূপিণী।ঠাকুর আনন্দে নাচিতেছেন। সঙ্গে সঙ্গে কেশবাদি ভক্তগণ নাচিতেছেন। শীতকাল, ঠাকুরের গায়ে ঘাম দেখা দিতেছে।

कीर्तन के बाद जब सब लोग बैठ गये तो श्रीरामकृष्ण ने कुछ खाने की इच्छा प्रकट की । भीतर से एक थाली में मिठाई आयी । केशव उस थाली को पकड़े रहे और श्रीरामकृष्ण खाने लगे । खाना होने पर केशव जलपात्र से श्रीरामकृष्ण के हाथों में पानी डालने लगे और फिर अँगौछे से उनका मुँह पोंछ दिया । उसके बाद पंखा झलने लगे

After the music he wanted something to eat. A plate of sweetmeats was sent from the inner apartments. Keshab held the plate before Sri Ramakrishna and the Master ate. When he had finished, Keshab poured water on his hands and then dried the Master's hands and face with a towel. Afterwards he began to fan the Master.

কীর্তনানন্দের পর সকলে উপবেশন করিলে শ্রীরামকৃষ্ণ কিছু খাইতে চাহিলেন। ভিতর হইতে একটি থালা করিয়া মিষ্টান্নাদি আসিল। কেশব ওই থালাখানা ধরিয়া রহিলেন, ঠাকুর খাইতে লাগিলেন। কেশব জলপাত্রও ওইরূপ ধরিলেন; গামছা দিয়া মুখ মুছাইয়া দিলেন। তৎপরে ব্যজন করিতে লাগিলেন।

श्रीरामकृष्ण - (केशव आदि के प्रति) - जो लोग गृहस्थी में रहकर उन्हें पुकार सकते हैं, वे वीर भक्त हैं । सिर पर बीस मन का बोझा है, फिर भी ईश्वर को पाने के लिए चेष्टा कर रहा है, - इसी का नाम है वीर भक्त ।

MASTER (to Keshab and the other devotees): "They are heroes indeed who can pray to God in the midst of their worldly activities. They are like men who strive for God-realization while carrying heavy loads on their heads. Such men are real heroes.

শ্রীরামকৃষ্ণ এইবার সংসারে ধর্ম হয় কিনা আবার সেই কথা কহিতেছেন। শ্রীরামকৃষ্ণ (কেশবাদির প্রতি) — যারা সগসারে তাঁকে ডাকতে পারে, তারা বীরভক্ত। মাথায় বিশ মন বোঝা, তবু ঈশ্বরকে পাবার চেষ্টা করছে। এরই নাম বীরভক্ত

"तुम कहोगे, यह बड़ा कठिन है । पर क्या ऐसी कोई कठिन बात है, जो भगवान की कृपा से नहीं होती ? उनकी कृपा से असम्भव भी सम्भव हो जाता है । हजार वर्ष से अँधेरे कमरे में यदि प्रकाश लाया जाय (सद्गुरु स्वामी विवेकानन्द आ जायें ?) तो क्या उजाला धीरे-धीरे होगा ? कमरा एकदम आलोकित हो जायगा ।"

 You may say that this is extremely difficult. But is there anything, however hard, that cannot be achieved through God's grace? His grace makes even the impossible possible. If a lamp is brought into a room that has been dark a thousand years, does it illumine the room little by little? The room is lighted all at once."

“যদি বল এটি অতি কঠিন। কঠিন হলেও ভগবানের কৃপায় কিনা হয়। অসম্ভবও সম্ভব হয়। হাজার বছরের অন্ধকার ঘরে যদি আলো আসে, সে কি একটু একটু করে আসবে? একবারে ঘর আলোকিত হবে।”

ये सब आशाजनक बातें सुनकर केशव आदि गृहस्थ भक्तगण आनन्दित हो रहे हैं ।

These reassuring words gladdened the hearts of Keshab and the other householder devotees.

এই সকল আশার কথা শুনিয়া কেশবাদি গৃহস্থ ভক্তগণ আনন্দ করিতেছেন।

केशव - (राजेन्द्र मित्र - राम और मनमोहन के मौसा के प्रति, हँसते हुए) - यदि आपके घर पर एक दिन ऐसा उत्सव हो तो बहुत अच्छा है ।

KESHAB (to Rajendra Mitra, the uncle of Ram and Manomohan): "Wouldn't it be nice if you could arrange a festival like this at your house one day?"

কেশব (রাজেন্দ্র মিত্রের প্রতি, সহাস্যে) — আপনার বাড়িতে এরূপ একদিন হলে বেশ হয়। রাজেন্দ্র, রাম ও মনোমোহনের মেসোমশাই।

राजेन्द्र - बहुत अच्छा, यह तो उत्तम बात है । राम, तुम पर सब भार रहा ।

RAJENDRA: "Very good, I will. Well, Ram, you'll have to take charge of everything."

রাজেন্দ্র — আচ্ছা তাতো বেশ! রাম, তোমার উপর সব ভার।

अब श्रीरामकृष्ण को ऊपर के कमरे में ले जाया जा रहा है । वहाँ पर वे भोजन करेंगे । मनोमोहन की माँ श्रीमती श्यामसुन्दरी ने सारी तैयारी की है । श्रीरामकृष्ण आसन पर बैठे, नाना प्रकार की मिठाई तथा उत्तमोत्तम पदार्थों को देखकर वे हँसने लगे और खाते खाते कहने लगे - “मेरे लिए इतना तैयार किया है !" एक ग्लास में बरफ डाला हुआ जल भी पास ही था ।

Sri Ramakrishna was asked to go to the inner apartments, where Manomohan's mother had prepared his meal. A glass of ice-water, of which the Master was very fond, was placed near his plate.

এইবার ঠাকুরকে উপরে অন্তঃপুরে লইয়া যাওয়া হইতেছে। সেখানে তিনি সেবা করিবেন। মনোমোহনের মাতাঠাকুরাণী শ্যামাসুন্দরী সমস্ত আয়োজন করিয়াছেন। শ্রীরামকৃষ্ণ আসন গ্রহণ করিলেন। নানাবিধ মিষ্টান্নাদি উপাদেয় খাদ্যদ্রব্য দেখিয়া ঠাকুর হাসিতে লাগিলেন ও খাইতে খাইতে বলিতেছেন — আমার জন্য এত করেছো। এক গ্লাস বরফ জলও কাছে ছিল।

केशव आदि भक्तगण भी आँगन में बैठकर खा रहे हैं । श्रीरामकृष्ण नीचे आकर उन्हें खिलाने लगे । उनके आनन्द के लिए पूड़ी-मिठाई का गाना गा रहे हैं और नाच रहे हैं ।

Keshab and the other devotees sat in the courtyard and were treated to a sumptuous feast. The Master joined them and watched them eat. He danced and sang to entertain the guests.

কেশবাদি ভক্তগণ প্রাঙ্গণে বসিয়া খাইতেছেন। ঠাকুর নিচে আসিয়া তাঁহাদিগকে খাওয়াইতে লাগিলেন। তাঁহাদের আনন্দের জন্য লুচিমণ্ডার গান গাহিতেছেন ও নাচিতেছেন।

अब श्रीरामकृष्ण दक्षिणेश्वर को रवाना होंगे । केशव आदि भक्तों ने उन्हें गाड़ी पर बिठा दिया और पदधूलि ग्रहण की ।

When it was time for Sri Ramakrishna to leave for Dakshineswar, Keshab and the other devotees took the dust of his feet and saw him off in a hired carriage.

এইবার দক্ষিণেশ্বর যাত্রা করিবেন। কেশবাদি ভক্তগণ তাঁহাকে গাড়িতে তুলিয়া দিলেন ও পদধূলি গ্রহণ করিলেন।

=======================





गुरुवार, 23 जनवरी 2025

🔱🕊 🏹 🙋*परिशिष्ट -2 * [ (आषाढ़ महीना, 1881) श्री रामकृष्ण वचनामृत- परिच्छेद- 2] 🏹 The Absolute and the Relative belong to the same Reality. जिनका नित्य (इन्द्रियातीत सत्य) है, उन्हीं की लीला (सापेक्षिक सत्य) है . । 🏹

  🔱🕊 🏹 🙋*परिशिष्ट -2 *

 [(आषाढ़ महीना, 1881) श्री रामकृष्ण वचनामृत- परिच्छेद- 2]   

*सुरेन्द्र के मकान पर श्रीरामकृष्ण*

(१)

राम, मनोमोहन, त्रैलोक्य तथा महेन्द्र गोस्वामी आदि के साथ 

आज श्रीरामकृष्ण भक्तों के साथ सुरेन्द्र के घर पधारे हैं । १८८१ ई., आषाढ़ महीना है । सन्ध्या होनेवाली है । श्रीरामकृष्ण ने इसके कुछ देर पहले श्री मनोमोहन के मकान पर थोड़ी देर विश्राम किया था ।

[One day during the rainy season of 1881 Sri Ramakrishna and a number of devotees visited Surendra's house. It was about dusk.

আজ শ্রীরামকৃষ্ণ ভক্তসঙ্গে সুরেন্দ্রের বাড়িতে আসিয়াছেন। ১৮৮১ খ্রীষ্টাব্দ, আষাঢ় মাসের একদিন। সন্ধ্যা হয় হয়। শ্রীরামকৃষ্ণ কিয়ৎক্ষণ পূর্বে বৈকালে শ্রীযুক্ত মনোমোহনের বাড়িতে একটু বিশ্রাম করিয়াছিলেন।

सुरेन्द्र के दूसरे मँजले के बैठकघर में अनेक भक्तगण बैठे हुए हैं । महेन्द्र गोस्वामी, भोलानाथ पाल आदि पड़ोसी भक्तगण उपस्थित हैं । श्री केशव सेन आनेवाले थे, परन्तु आ न सके । ब्राह्मसमाज के श्री त्रैलोक्य सान्याल तथा अन्य कुछ ब्राह्म भक्त आये हैं

The Master entered the drawing-room on the second floor, where several of Surendra's neighbours had already, gathered. Keshab had also been invited but could not come. Trailokya and a few Brahmo devotees were present.

সুরেন্দ্রের দ্বিতলের বৈঠকখানার ঘরে ভক্তেরা আসিয়াছেন। মহেন্দ্র গোস্বামী, ভোলানাথ পাল ইত্যাদি প্রতিবেশীগণ উপস্থিত আছেন। শ্রীযুক্ত কেশব সেনের আসিবার কথা ছিল কিন্তু আসিতে পারেন নাই। ব্রাহ্মসমাজের শ্রীযুক্ত ত্রৈলোক্য সান্যাল ও আরও কতকগুলি ব্রাহ্মভক্ত আসিয়াছেন।

बैठकघर में दरी और चद्दर बिछायी गयी है - उस पर एक सुन्दर गलीचा तथा तकिया भी है । श्रीरामकृष्ण को ले जाकर सुरेन्द्र ने उसी गलीचे पर बैठने के लिए अनुरोध किया । श्रीरामकृष्ण कह रहे हैं, “यह तुम्हारी कैसी बात है ?" ऐसा कहकर महेन्द्र गोस्वामी के पास बैठ गये ।

 A mat covered with a white sheet was spread on the floor, and on it had been placed a beautiful carpet with a cushion. Surendra requested the Master to sit on the carpet; but Sri Ramakrishna would not listen to him and sat on the mat next to Mahendra Goswami, one of Surendra's neighbours.  

বৈঠকখানা ঘরে সতরঞ্চি ও চাদর পাতা হইয়াছে — তার উপর একখানি সুন্দর গালিচা ও তাকিয়া। ঠাকুরকে লইয়া সুরেন্দ্র ওই গালিচার উপর বসিতে অনুরোধ করিলেন।শ্রীরামকৃষ্ণ বলিতেছেন, একি তোমার কথা! এই বলিয়া মহেন্দ্র গোস্বামীর পার্শ্বে বসিলেন।

महेन्द्र गोस्वामी - (भक्तों के प्रति ) - मैं इनके (श्रीरामकृष्ण के) पास कई महीनों तक प्रायः सदा ही रहता था । ऐसा महान् व्यक्ति मैंने कभी नहीं देखा । इनके भाव साधारण नहीं हैं ।

MAHENDRA (to the devotees): "For several months I spent most of my time with him [meaning Sri Ramakrishna]. I have never before seen such a great man. His spiritual moods are not of the ordinary kind."

যদু মল্লিকের বাগানে যখন পারায়ণ হয় শ্রীরামকৃষ্ণ সর্বদা যাইতেন। কয়মাস ধরিয়া পারায়ণ হইয়াছিল। মহেন্দ্র গোস্বামী (ভক্তদের প্রতি) — আমি এঁর নিকট কয়েক মাস প্রায় সর্বদা থাকতাম। এমন মহৎ লোক আমি কখনও দেখি নাই। এঁর ভাব সকল সাধারণ ভাব নয়

श्रीरामकृष्ण - (गोस्वामी के प्रति) - यह सब तुम्हारी कैसी बात है ? मैं छोटे से छोटा, दीन से भी दीन हूँ । मैं प्रभु के दासों का दास हूँ । कृष्ण ही महान् हैं

MASTER (to Mahendra): "How dare you say that? I am the most insignificant of the insignificant, the lowliest of the lowly. I am the servant of the servants of God. Krishna alone is great.

শ্রীরামকৃষ্ণ (গোস্বামীর প্রতি) — ও-সব তোমার কি কথা! আমি হীনের হীন, দীনের দীন; আমি তাঁর দাসানুদাস; কৃষ্ণই মহান।

 [(आषाढ़ महीना, 1881) श्री रामकृष्ण वचनामृत- परिच्छेद- 2] 

 🏹 परम् सत्य (नित्य=ब्रह्म) और सापेक्षिक सत्य (लीला=जीव) 

एक ही सिक्के के दो पहलू (aspect) हैं ! 🏹

(जीवो ब्रह्मैव नापरः !)    

"जो अखण्ड सच्चिदानन्द हैं, वे ही श्रीकृष्ण हैं । दूर से देखने पर समुद्र नीला दिखता है, पर पास जाओ तो कोई रंग नहीं । जो सगुण हैं, वे ही निर्गुण हैं । जिनका नित्य है, उन्हीं की लीला है

"Krishna is none other than Satchidananda, the Indivisible Brahman. The water of the ocean looks blue from a distance. Go near it and you will find it colourless. He who is endowed with attributes is also without attributes. The Absolute and the Relative belong to the same Reality.

[निर्गुण निराकार सच्चिदानन्द , परम् सत्य या अचल इन्द्रियातीत सत्य या 'ब्रह्म' - तथा सापेक्षिक सत्य या  नाम-रूप सहित परिवर्तनशील इन्द्रियगोचर जगत ('शक्ति') दोनों एक ही सत्यता (Reality-काली?? सिक्का) के दो पहलू हैं!]  

"श्रीकृष्ण त्रिभंग क्यों हैं ? - राधा के प्रेम से ।

"Why is Krishna tribhanga, bent in three places? Because of His love for Radha.

[ब्रह्म सगुण ईश्वर अवतार वरिष्ठ ठाकुर क्यों बने ? - राधा के (जीव के या मेरे ?) प्रेम से।]   

“শ্রীকৃষ্ণ ত্রিভঙ্গ কেন? রাধার প্রেমে।

"जो ब्रह्म हैं, वे ही काली, आद्याशक्ति हैं, सृष्टि-स्थिति-प्रलय कर रहे हैं । जो कृष्ण हैं, वे ही काली हैं । " मूल एक है - यह सब उन्हीं का खेल है, उन्हीं की लीला है ।

"That which is Brahman is also Kali, the Adyasakti, who creates, preserves, and destroys the universe. He who is Krishna is the same as Kali. The root is one — all these are His sport and play.

“যিনিই ব্রহ্ম তিনিই কালী, আদ্যাশক্তি সৃষ্টি-স্থিতি-প্রলয় করছেন। যিনি কৃষ্ণ তিনিই কালী।“মূল এক — তাঁর সমস্ত, লীলা।”

 [(आषाढ़ महीना, 1881) श्री रामकृष्ण वचनामृत- परिच्छेद- 2] 

 🏹 भगवान के दर्शन करने का उपाय  🏹 

"उनका दर्शन किया जा सकता है शुद्ध मन, शुद्ध बुद्धि से उनका दर्शन किया जा सकता है । कामिनी-कांचन में आसक्ति रहने से मन मैला हो जाता है

"God can be seen. He can be seen through the pure mind and the pure intelligence. Through attachment to 'woman and gold' the mind becomes impure.

তাঁকে দর্শন করা যায়। শুদ্ধ মন, শুদ্ধ বুদ্ধিতে দর্শন করা যায়। কামিনী-কাঞ্চনে আসক্তি থাকলে মন মলিন হয়।

"मन पर ही सब कुछ निर्भर है । मन धोबी के यहाँ का धुला हुआ कपड़ा जैसा है; जिस रंग में रँगवाओगे उसी रंग की हो जायगा । मन से ही ज्ञानी, और मन से ही अज्ञानी है । जब तुम कहते हो कि अमुक आदमी खराब हो गया है, तो अर्थ यही है कि उस आदमी के मन में खराब रंग आ गया है ।"

"The mind is everything. It is like a white cloth just returned from the laundry. It will take any colour you dye it with. Knowledge is of the mind, and ignorance is also of the mind. When you say that a certain person has become impure, you mean that impurity has coloured his mind."

“মন নিয়ে কথা। মন ধোপা ঘরের কাপড়; যে রঙে ছোপাবে, সেই রঙ হবে! মনেতেই জ্ঞানী, মনেতেই অজ্ঞান। অমুক লোক খারাপ হয়ে গেছে অর্থাৎ অমুক লোকের মনে খারাপ রঙ ধরেছে।”

শ্রীযুক্ত ত্রৈলোক্য সান্যাল ও অন্যান্য ব্রাহ্মভক্ত এইবার আসিয়া আসন গ্রহণ করিলেন।

सुरेन्द्र माला लेकर श्रीरामकृष्ण को पहनाने आये । पर उन्होंने माला हाथ में ले ली, और फेंककर एक ओर रख दी । इससे सुरेन्द्र के अभिमान में धक्का लगा और उनकी आँखें डबडबा गयीं । सुरेन्द्र पश्चिम के बरामदे में जाकर बैठे - साथ राम तथा मनोमोहन आदि हैं ।

सुरेन्द्र प्रेमकोप करके कह रहे हैं, “मुझे क्रोध हुआ है; राढ़ देश # का ब्राह्मण है, इन चीजों की कद्र क्या जाने ? कई रुपये खर्च करके यह माला लायी । मैं गुस्से में आकर कह बैठा ‘और सब मालाएँ दूसरों के गले में डाल दो ।’

[#लाल मिट्टी का देश]

"अब समझ रहा हूँ मेरा अपराध, भगवान पैसे से खरीदे नहीं जा सकते । वे अहंकारी के नहीं हैं । मैं अहंकारी हूँ, मेरी पूजा क्यों लेने लगे ? मेरी अब जीने की इच्छा नहीं है ।" कहते कहते आँसू की धाराएँ उनके गालों और छाती पर से बहती हुई नीचे गिरने लगीं

Surendra approached the Master with a garland and wanted to put it around his neck. But the Master took it in his hand and threw it aside. Surendra's pride was wounded and his eyes filled with tears. He went to the west porch and sat with Ram, Manomohan, and the others. 

In a voice choked with sadness he said: "I am really angry. How can a poor brahmin know the value of a thing like that? I spent a lot of money for that garland, and he refused to accept it. I was unable to control my anger and said that the other garlands were to be given away to the devotees. Now I realize it was all my fault. God cannot be bought with money; He cannot be possessed by a vain person. I have really been vain. Why should he accept my worship? I don't feel like living any more." Tears streamed down his cheeks and over his chest.

সুরেন্দ্র অশ্রুপূর্ণ লোচনে পশ্চিমের বারান্দায় গিয়া বসিলেন; সঙ্গে রাম ও মনোমোহন প্রভৃতি। সুরেন্দ্র অভিমানে বলিতেছেন; — আমার রাগ হয়েছে; রাঢ় দেশের বামুন এ-সব জিনিসের মর্যাদা কি জানে! অনেক টাকা খরচ করে এই মালা; ক্রোধে বললাম সব মালা আর সকলের গলায় দাও। এখন বুঝতে পারছি আমার অপরাধ; ভগবান পয়সার কেউ নয়; অহংকারেরও কেউ নয়! আমি অহংকারী, আমার পূজা কেন লবেন। আমার বাঁচতে ইচ্ছা নাই। বলিতে বলিতে অশ্রুধারা গণ্ড বহিয়া পড়িতে লাগিল ও বুক ভাসিয়া যাইতে লাগিল।

इधर कमरे के अन्दर त्रैलोक्य गाना गा रहे हैं । श्रीरामकृष्ण मतवाले होकर नृत्य कर रहे हैं । जिस माला को उन्होंने फेंक दिया था, उसी को उठाकर गले में पहन लिया । वे एक हाथ से माला पकड़कर तथा दूसरे हाथ से उसे हिलाते हुए गाना गा रहे हैं और नृत्य कर रहे हैं

सुरेन्द्र यह देखकर कि श्रीरामकृष्ण गले में उसी माला को पहनकर नाच रहे हैं, आनन्द में विभोर हो गये । मन ही मन कह रहे हैं, 'भगवान गर्व का हरण करनेवाले हैं । जरूर, परन्तु (दीनों के, निर्धनों के धन भी हैं) !"

In the mean time Trailokya was singing inside the room. The Master began to dance in an ecstasy of joy. He put around his neck the garland that he had thrown aside; holding it with one hand, he swung it with the other as he danced and sang. Now Surendra's joy was unbounded. The Master had accepted his offering. Surendra said to himself, "God crushes one's pride, no doubt, but He is also the cherished treasure of the humble and lowly."

এদিকে ঘরের মধ্যে ত্রৈলোক্য গান গাহিতেছেন। শ্রীরামকৃষ্ণ মাতোয়ারা হইয়া নৃত্য করিতেছেন। যে মালা ফেলিয়া দিয়াছিলেন, সেই মালা তুলিয়া গলায় পড়িলেন। এক হাতে মালা ধরিয়া, অপর হাতে দোলাতে দোলাতে গান ও নৃত্য করিতেছেন। —(জগৎ-চন্দ্র-হার পরেছি!)সুরেন্দ্র আনন্দে বিভোহৃদয় পরশমনী আমার —আখর দিতেছেন —(ভূষণ বাকি কি আছে রে!)র — ঠাকুর গলায় সেই মালা পরিয়া নাচিতেছেন! মনে মনে বলিতেছেন, ভগবান দর্পহারী। কিন্তু কাঙালের অকিঞ্চনের ধন!

শ্রীরামকৃষ্ণ নিজে গান ধরিলেন:

যাদের হরি বলতে নয়ন ঝুরে

তারা তারা দুভাই এসেছে রে।

(যারা মার খেয়ে প্রেম যাচে)

(যারা আপনি মেতে জগৎ মাতায়)

(যারা আচণ্ডালে কোল দেয়)

(যারা ব্রজের কানাই বলাই)

श्रीरामकृष्ण अब स्वयं गाने लगे, -

जादेर हरि बोलते नयन झरे,

तारा तारा दूभाई ऐसेछे रे। 

(जारा मार खेये प्रेम याचे) 

(जारा आपनि मेते जगत माताय) 

(जारा आचाण्डाले कोल देय)  

[जारा व्रजेर कानाई (कन्हैया) बलाई (बलराम)]  

गाना - (भावार्थ) –

"हरिनाम लेते हुए जिनकी आँखों से आँसू बहते हैं, वे दोनो भाई आये हैं ! - वे, जो मार खाकर प्रेम देते हैं, जो स्वयं मतवाले बनकर जगत् को मतवाला बनाते हैं, जो चाण्डाल तक को गोद में ले लेते हैं, जो दोनों ब्रज के कन्हैया-बलराम थे ।"

The Master now sang:Behold, the two brothers have come, who weep while chanting Hari's name, The brothers who, in return for blows, offer to sinners Hari's love !Behold them, drunk with Hari's love, who make the world drunk as well, Embracing everyone as brother, even the outcaste shunned by men. Behold, the two brothers have come, who once were Kanai and Balai of Braja. . . .

अनेक भक्त श्रीरामकृष्ण के साथ-साथ नृत्य कर रहे हैं ।कीर्तन समाप्त होने पर सभी बैठ गये और ईश्वर की बातें करने लगे । श्रीरामकृष्ण सुरेन्द्र से कह रहे हैं, "मुझे कुछ खिलाओगे नहीं ?" यह कहकर वे उठकर घर के भीतर चले गये । स्त्रियों ने आकर भूमिष्ठ हो भक्तिभाव से उन्हें प्रणाम किया । भोजन करने के बाद थोड़ी देर विश्राम करके वे दक्षिणेश्वर लौट आये ।

Many of the devotees danced while Sri Ramakrishna sang this song. When the kirtan was over, everyone sat around the Master and became engaged in pleasant conversation. Sri Ramakrishna said to Surendra, "Won't you give me something to eat?" Then he went into the inner apartments, where the ladies saluted him. After the meal Sri Ramakrishna left for Dakshineswar.

অনেকগুলি ভক্ত ঠাকুরের সঙ্গে নৃত্য করিতেছেন।সকলে উপবিষ্ট হইলেন ও সদালাপ করিতেছেন।শ্রীরামকৃষ্ণ সুরেন্দ্রকে বলিতেছেন, “আমায় কিছু খাওয়াবে না?”এই বলিয়া গাত্রোত্থান করিয়া অন্তঃপুরে গমন করিলেন। মেয়েরা আসিয়া সকলে ভূমিষ্ঠ হইয়া অতি ভক্তভরে প্রণাম করিলেন।আহারান্তে একটু বিশ্রাম করিয়া দক্ষিণেশ্বরে যাত্রা করিলেন।

===========

[ राढ़ देश # ‘राढ़’ शब्द को लेकर सामान्य जनमानस में कई तरह की भ्रांतियां हैं।  जबकि, इसका अर्थ बहुत स्पष्ट है।  प्राचीन आष्ट्रिक भाषा में ‘राढ़’ या ‘राढ़ी’ शब्द का अर्थ है- रक्त मृत्तिका का देश, रांगामाटी या लाल मिट्टी का देश।  

बताया गया है कि ‘राढ़’ अथवा ‘राढ़ी’ प्राचीन और मध्य काल में (विशेषकर सेनवंशीय नरेशों के शासन काल में) बंगाल के चार प्रांतों में से एक था. ये प्रांत थे- ‘वरेंद्र’, ‘बागरा’, ‘बंग’ और ‘राढ़’. वरेंद्र उत्तर बंगाल का प्राचीन व मध्य युगीन नाम था. वंग या ‘बंग’ बंगाल का प्राचीन नाम है।  राढ़ क्षेत्र को दो भागों में बांटा गया- पूर्वी राढ़ और पश्चिमी राढ़। 

1856 में जब सौंताल परगना जनपद बना, तब वीरभूम से पाकुड़ और राजमहल महकमा को काट कर सौंताल परगना तथा कांदी महकमा को मुर्शिदाबाद को दे दिया गया।  पंचकोट या पांचेट या मानभूम में वर्त्तमान पुरुलिया जनपद, दामोदर का दक्षिणांश (चास, चंदनकियारी, बोकारो), पूर्व हजारीबाग जनपद (वर्त्तमान बोकारो जनपद) का जरीडीह, पेटरवार, कसमार तथा रांची का रामगढ़ अंचल शामिल था.

राढ़ क्षेत्र विश्व के अति प्राचीनतम क्षेत्रों में एक है। पश्चिमी राढ़ क्षेत्र में बहने वाली राढ़ नदी भी राढ़ शब्द के औचित्य को दर्शाती है।

पूर्वी राढ़ के अंतर्गत पश्चिमी मुर्शिदाबाद, बीरभूम जिले का उत्तरी भाग, पूर्वी बर्धमान, हुगली, हावड़ा क्षेत्र, पूर्वी मेदिनीपुर तथा बांकुड़ा जनपद का इंदास थाना क्षेत्र आते हैं।  पश्चिमी राढ़ में संथाल परगना, बीरभूम के अन्य क्षेत्र, बर्धमान का पश्चिमी भाग, बांकुड़ा (इंदास थाना क्षेत्र को छोड़कर), पुरुलिया, धनबाद, बोकारो व हजारीबाग के कुछ इलाके, रांची के कुछ इलाके, सिंहभूम तथा मेदिनीपुर के कुछ क्षेत्र सम्मिलित हैं।  मोटे तौर पर कहें तो झूमर और भगता (चड़क, गाजान) परब जहां तक मूल रूप से प्रचलित है, वह राढ़ क्षेत्र है। विश्व का सबसे प्राचीनतम क्षेत्र है ‘राढ़’ यानी अबुआ झारखंड  इस सभ्यता सिद्धांत का प्रतिपादन वर्ष 1981 में हुआ है।  महान दार्शनिक व मैक्रो हिस्टोरियन प्रभात रंजन सरकार इसके प्रतिपादक हैं. यह मानव सभ्यता के विकास से संबंधित नवीनतम सिद्धांत है। झारखंड का एक बड़ा भूभाग राढ़ भूमि का एक हिस्सा है और यहां के मूल में भी राढ़ी सभ्यता-संस्कृति का इतिहास रहा है। 

मुगलों के जमाने में समग्र राढ़ कई स्वशासित जनपदों में विभक्त हो गया. उनमें वीरभूम, गोपभूम, सामंतभूम, शेखरभूम, मल्लभूम, सोनभूम, सिंहभूम, धवलभूम, भज्जभूम, सप्तमी परगना, भूरिश्रेष्ठ या भूरशूट परगना, बराहभूम तथा पंचकोट या पांचेट या मानभूम का नाम शामिल है।  वीरभूम राज्य पूर्व में सौंताल परगना जनपद के पाकुड़ और राजमहल महकमा, वर्तमान वीरभूम जनपद के रामपुर हाट महकमा, मुर्शिदाबाद जनपद के कांदी महकमा और भागीरथी नदी के पश्चिमवर्ती अंश को लेकर बना था। 

ऐसी मान्यता है कि राजा मानसिंह देव के नाम पर इस राज्य का नामकरण मानभूम हुआ था. इसकी राजधानी मानबाजार थी. इस राज्य के उत्तर में दामोदर, दक्षिण में बराहभूम, पूरब में शुशुनिया पहाड़ तथा पश्चिम में चुटिया-नागपुर था. अंगार के समीप जहां पर पहाड़ शेष होकर रांची का समतल प्रारंभ होता है, वही मानभूम की पश्चिम दिशा थी। 

सिंहभूम का मतलब सिर्फ झारखंड का सिंहभूम न होकर एक विस्तृत इलाका है।  इसमें ओडिशा के धालजोरी, क्योंझर, महागिरि और सिमलीपाल जैसी जगहें भी शामिल हैं। ’ उन्होंने यह भी कहा है कि ‘यहां मिले खास तरह के अवसादी चट्टानों से उनकी उम्र का पता लगाकर यह जाना जा सका है कि ये 310 से 320 करोड़ साल पुराने हैं।  यहां मिले बलुआ पत्थर से शोध में मदद मिली। ]



रविवार, 19 जनवरी 2025

विवेक वाहिनी के नये तराने : " चल चल चल ; उर्ध गगने बाजे मादल !"

  विवेक वाहिनी के नये तराने- 



1.चल चल चल ; उर्ध गगने बाजे मादल !


चल चल चल 
उर्ध गगने बाजे मादल,
निम्ने उतला धरनी-तल, 
अरुण प्रातेर तरुण दल ,
चल रे, चल रे चल।  


ऊषार दूयारे हानि आघात ,
आमरा आनिबो रांगा प्रभात। 

आमरा टूटाबो तिमिर रात ,
बाधार बिन्ध्याचल। 

नव नबीनेर गाहिया गान, 
सजीब क़रीबो महा श्मशान ,
आमरा दानिबो नतून प्राण ,
बाहूते नवीन बल। 

चल रे नउ जोयान ,
शोन रे पातिया कान !
चल रे नउ जोयान ,
शोन रे पातिया कान !
मृत्यु तोरण दूआरे दूआरे ,
जीवनेर आह्वान। 


भाँग रे भाँग आगल,
चल रे चल रे चल ,
भाँग रे भाँग आगल,
चल रे चल रे चल ,
चल चल चल,
चल चल चल .....   

-काजी नजरुल इस्लाम
1.চল চল চল, উর্দ্ধ গগনে বাজে মাদল। 


চল চল‌ চল‌,
চল চল‌ চল‌...

ঊর্ধ্ব গগনে বাজে মাদল
নিম্নে উতলা ধরণী–তল
অরুণ প্রাতের তরুণ দল
চল‌ রে চল‌ রে চল‌‌-2


ঊষার দুয়ারে হানি আঘাত
আমরা আনিব রাঙা প্রভাত
আমরা টুটাব তিমির রাত
বাধার বিন্ধ্যাচল।-2


নব নবীনের গাহিয়া গান
সজীব করিব মহাশ্মশান
আমরা দানিব নতুন প্রাণ
বাহুতে নবীন বল।-2

চল‌‌ রে নও জোয়ান
শোন‌ রে পাতিয়া কান
চল‌‌ রে নও জোয়ান
শোন‌ রে পাতিয়া কান
মৃত্যু তোরণ, দুয়ারে দুয়ারে
জীবনের আহ্বান।

ভাঙ রে ভাঙ আগল
চল‌ রে চল রে চল‌
ভাঙ রে ভাঙ আগল
চল‌ রে চল রে চল‌
চল চল‌ চল,
চল চল‌ চল...

ঊর্ধ্ব আদেশ হানিছে বাজ,
শহীদী-ঈদের সেনারা সাজ,
দিকে দিকে চলে কুচ-কাওয়াজ
খোল রে নিদ-মহল-2


কবে সে খেয়ালী বাদশাহী,
সেই সে অতীতে আজো চাহি'
যাস মুসাফির গান গাহি'
ফেলিস অশ্রুজল।-2 

যাক রে তখত-তাউস
জাগ রে জাগ বেহুঁশ।
যাক রে তখত-তাউস
জাগ রে জাগ বেহুঁশ।

ডুবিল রে দেখ কত পারস্য
কত রোম গ্রিক রুশ,
জাগিল তারা সকল,
জেগে ওঠ হীনবল
জাগিল তারা সকল,
জেগে ওঠ হীনবল

আমরা গড়িব নতুন করিয়া
ধুলায় তাজমহল

চল চল‌ চল‌,
চল চল‌ চল‌...
ঊর্ধ্ব গগনে বাজে মাদল
নিম্নে উতলা ধরণী–তল
অরুণ প্রাতের তরুণ দল
চল‌ রে চল‌ রে চল‌‌

চল চল‌ চল‌,
চল চল‌ চল‌,
চল চল‌ চল‌,
চল চল‌ চল‌...
চল্‌ চল্‌ চল্‌। 
চল্‌ চল্‌ চল্‌।

=================

2. शुभ कर्मपथे धर निर्भय गान। 



शुभ कर्मपथे धर निर्भय गान। 
सब दुर्बल संशय होक अवसान। 

चिर शक्तिर निर्झर नित्य झरे , 
लह ' से अभिषेक ललाट ' परे। 

तव जाग्रत निर्मल नूतन प्राण ,
त्यागब्रते निक दीक्षा -
बिघ्न हते निक शिक्षा -
निष्ठुर संकट दिक् सम्मान। 
दुःखई होक तव बित्त महान। 
शुभ कर्मपथे धर निर्भय गान।
 
चल ' यात्री, चल ' दिनरात्रि -
कर ' अमृत लोकपथ अनुसन्धान। 

जड़ता तामस होओ उत्तीर्ण ,
क्लान्तिजाल कर ' दीर्घ बिदीर्ण -

दिन-अन्ते अपराजित चित्ते 
मृत्युतरण तीर्थे कर स्नान।। 

शुभ कर्मपथे धर निर्भय गान।
सब दुर्बल संशय होक अवसान। 


-रबीन्द्रनाथ टैगोर         


2. শুভ কর্মপথে ধর' নির্ভয় গান।

শুভ     কর্মপথে ধর' নির্ভয় গান।
সব      দুর্বল সংশয় হোক অবসান।
চির-    শক্তির নির্ঝর নিত্য ঝরে
লহ'          সে অভিষেক ললাট'পরে।
তব     জাগ্রত নির্মল নূতন প্রাণ
ত্যাগব্রতে নিক দীক্ষা,
বিঘ্ন হতে নিক শিক্ষা--
নিষ্ঠুর সঙ্কট দিক সম্মান।
দুঃখই হোক তব বিত্ত মহান।
চল' যাত্রী, চল' দিনরাত্রি--
কর' অমৃতলোকপথ অনুসন্ধান।
জড়তাতামস হও উত্তীর্ণ,
ক্লান্তিজাল কর' দীর্ণ বিদীর্ণ--
দিন-অন্তে অপরাজিত চিত্তে
মৃত্যুতরণ তীর্থে কর' স্নান ॥
=========

3.हासिते खेलिते आसिनी ए जगते ,करिते होबे मोदेर मायेरई साधना। 
(आशा -भैरवी / कहरवा) 
 

हासिते खेलिते आसिनी ए जगते ,
करिते होबे मोदेर मायेरई साधना।-2  

देखाते हबे आजि जगतबासी सबे, 
एखोनो भारतेर जायनी रे चेतना। 

हासिते खेलिते आसिनी ए जगते ,
करिते होबे मोदेर मायेरई साधना।-2  

गभीर हुँकारे हुँकारी दे रे डाक,
सिहरि उठूक बिश्व , मेदिनी टा फेटे जाक। 

गभीर हुँकारे हुँकारी दे रे डाक,
सिहरि उठूक बिश्व , मेदिनी टा फेटे जाक। 

आमादेर जन्मभूमि देवतार लीलाभूमि ,
देवगण आसूक, नेमे , पूर्ण होक वासना। 

देखाते हबे आजि जगतबासी सबे, 
एखोनो भारतेर जायनी रे चेतना। 

सार्थक हबे तबे ए जनम सबाकार,
छेलेर गौरवे हबे गर्विणी माँ आमार। 

जगत लूटिबे पाय , घूचे जाबे जत दाय ,
मिटे जाबे मुकुन्देर चिरदीनेर कामना। 

हासिते खेलिते आसिनी ए जगते ,
करिते होबे मोदेर मायेरई साधना।-2  

-चारण कवि मुकुन्द दास 
 

3.হাসিতে খেলিতে আসিনি এ জগতে,

হাসিতে খেলিতে আসিনি এ জগতে,
করিতে হবে মোদের মায়েরই সাধনা।

দেখাতে হবে আজি জগৎবাসী সবে,
এখোনো ভারতের যায়নি রে চেতনা।

গভীর ওঙ্কারে হুঙ্কারি দে রে ডাক,
শিহরি উঠুক বিশ্ব, মেদিনীটা ফেটে যাক।

আমাদের জন্মভূমি দেবতার লীলাভূমি,
দেবগণ আসুক নেমে, পূর্ণ হোক বাসনা।

সার্থক হবে তবে এ জনম সবাকার,
ছেলের গৌরবে হবে গরবিণী মা আমার!

জগৎ লুটিবে পায়, ঘুচে যাবে যত দায়,
মিটে যাবে মুকুন্দের চিরদিনের কামনা।


========= 

4. हे स्वामीजी ! आमरा युवक दल , 

(ताल -दादरा )


हे स्वामीजी ! आमरा तरुण दल 

हे स्वामीजी ! आमरा युवक दल , 

तोमार आशिस तोमार वाणी कोरेछि संबल। 

तुमि मोदेर इष्टदेव, तुमि चलार पथ। 

एई जीवनेर लक्ष्य तुमि, तुमि आलोर रथ।

तुमि मोदेर सकल आशा , देहे नवीन बल। 

तोमार वाणी वक्ष निये शपथ निबो , 

मातृभूमिर कल्याणे जीवन सौंपीबो। 

ताईतो मोरा तोमाय नमि , तोमार दूटी चरण चूमि, माताबो एई धरणीतल। 

तोमार आशिस तोमार वाणी कोरेछि संबल। 

-स्वामी आत्मकामानन्द 
 

4. হে স্বামীজী আমরা যুবকদল , 

হে স্বামীজী আমরা যুবকদল , 

তোমার আশিস, তোমার বাণী করেছি সম্বল। 

তুমি মোদের ইষ্ট , তুমি চলার পথ। 

যেই জীবনের লক্ষ্য তুমি , তুমি আলোর রথ ,

তুমি মোদের সকল আশা , দেহে নবীন বল। 


তোমার বাণী বক্ষে নিয়ে শপথ নিব,

 মাতৃভূমির কল্যাণে জীবন সঁপিব। 

তাইতো মোরা তোমায় নমি, তোমার দুটি চরণ চুমি। 

মাতবো এই ধরণীতল।

তোমার আশিস, তোমার বাণী করেছি সম্বল। 

=====================

5. आमाय रक्त दाओ, आमि तोमाय स्वाधीनता देबो  

आमाय रक्त दाओ, आमि तोमाय स्वाधीनता देबो !!-२  

शिकल पोड़ा देश माता के मुक्तो कोरे निबो। 

ए कथा शुधू - नेताजी सुभाष तुमि बोलते पारो।  

शुधू तुमि बोलते पारो। 

आमाय रक्त दाओ, आमि तोमाय स्वाधीनता देबो-२  


तोमार मुखेर जोय हिन्द ध्वनि , स्वधीनतार सञ्जीवनी,
तोमार मुखेर जोय हिन्द ध्वनि स्वधीनतार सञ्जीवनी,
 
कदम कदम बढ़ाये जा , ऐशो प्रेमेर परश मणि। 
कदम कदम पाड़ाय जा ऐशो प्रेमेर परश मणि। 

झड़ेर मुखे प्रदीप होये ,झड़ेर मुखे प्रदीप होये, 
तुमि ज्वलिते पारो; शुधू तुमि ज्वलिते पारो। 

आमाय रक्त दाओ, आमि तोमाय स्वाधीनता देबो-२ 
आमाय रक्त दाओ, आमि तोमाय स्वाधीनता देबो-२ 

तोमार जीवन गल्पेर मोतो , तोमार वाणी  जीवनेर ब्रतो।
तोमार जीवन गल्पेर मोतो , तोमार वाणी  जीवनेर ब्रतो।

हजार बाँधार प्राचीर भेंगे ; तोबू तोमार शीर उन्नतो। 
हजार बाँधार प्राचीर भेंगे, तोबू तोमार शीर उन्नतो। 

पथेर काँटा पाएर निचे, पथेर काँटा पाएर निचे,
 तुमि दोलते पारो। शुधू तुमि दोलते पारो। 
आमाय रक्त दाओ, आमि तोमाय स्वाधीनता देबो-२ 
आमाय रक्त दाओ, आमि तोमाय स्वाधीनता देबो-२ [३.१०]  

शिकल कोरा देश माता के मुक्तो कोरे नेबो। 
ए कथा शुधू नेताजी सुभाष तुमि बोलते पारो। 
शुधू तुमि बोलते पारो। शुधु तुमि बोलते पारो।
 
आमाय रक्त दाओ, आमि तोमाय स्वाधीनता देबो-२  
आमाय रक्त दाओ, आमि तोमाय स्वाधीनता देबो-२  

"तुम मुझे खून दो, मैं तुम्हें आजादी दूंगा !"

" तुम मुझे खून दो, मैं तुम्हें आजादी दूंगा !" देशवासियों से ऐसा आह्वान एकमात्र नेताजी [ ही कर सकते हैं ! एक मात्र बालक नेताजी ही उत्तर दे सकते थे -  कि भारत की पराधीनता के लिए कौन उत्तरदायी है? कटक (उड़ीसा) स्कूल के प्रधानाध्यापक बेनीमाधव बाबू ने पूछा तो नेताजी ने कहा कि हम बंगाली ही इसके लिए जिम्मेदार हैं, यदि हमलोग थोड़ा प्रतिरोध करते तो भारत पराधीन न होता। वह अपनी मां को पत्र लिख रहे हैं कि मुझे जो बीस रुपए की छात्रवृत्ति मिलेगी, उसे अपने देश के गरीब लोगों की सेवा में खर्च करूंगा। मां ने चींटी को उसकी किताब के पीछे रखी तीन रोटियां खाते देखा तो पूछा तो नन्हे सुभाष ने कहा आप मुझे भरपेट खाने को देते हैं, लेकिन रोज एक गरीब जाता है, मैं उसे एक रोटी देती हूं, पर वह तीन दिन से नहीं आया। बालकपन में वे ध्यान-ध्यान का खेल खेलते थे, जिससे उसका साहस और धैर्य बहुत बढ़ गया था। नेताजी के आदर्श थे -स्वामीजी ! और भारत के स्वतंत्रता सेनानियों के आदर्श हैं नेताजी ! क्यों? क्योंकि वे ही एकमात्र ऐसे प्रमुख स्वतंत्रता सेनानी हैं, जिनका जन्मदिन 23 जनवरी को ज्ञात है पर उनकी पुण्यतिथि या तिरोधान दिवस किसी को ज्ञात नहीं है। इसलिए वे हमेशा रहेंगे ! 

[प्लासी का युद्ध, बंगाल के नवाब सिराजुद्दौला और ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी के बीच 23 जून, 1757 को लड़ा गया था। यह युद्ध  उत्तर-पूर्वी भारत में भागीरथी नदी के किनारे 'प्लासी' नामक स्थान में हुआ था जो वर्तमान में पश्चिम बंगाल के नदिया जिले में मुर्शिदाबाद के दक्षिण में 22 मील दूर स्थित है।  इस युद्ध में रॉबर्ट क्लाइव के नेतृत्व में ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी की जीत हुई थी। कलाइव ने लड़कर नहीं षडंयत्र करके युद्ध जीत लिया था। इस युद्ध को भारत के लिए बहुत दुर्भाग्यपूर्ण माना जाता है। इस युद्ध के परिणामस्वरूप ही भारत में अंग्रेजों ने पैर जमा लिये। इस युद्ध में नवाब सिराजुद्दौला के सेनापति मीर जाफ़र, तथा राज्य के अमीर सेठ जगत सेठ आदि ने  धोखा देकर अंग्रेज के साथ दलबदल किया था। नवाब की तो पूरी सेना ने युद्ध मे भाग भी नही लिया था। ने प्लासी के युद्ध के समय अंग्रेजों के पास मात्र 300 सिपाही थे और सिराजुदौला के पास बीस हजार भारतीय सिपाही थे, जो खड़े होकर युद्ध देख रहे थे। यदि एक-एक ढेला भी मारते तो भारत कभी गुलाम नहीं होता। इस युद्ध के बाद, अंग्रेज़ों ने बंगाल पर नियंत्रण हासिल कर लिया था।  इस युद्ध ने भारत के अन्य हिस्सों में ब्रिटिश विस्तार की संभावना को भी खोल दिया था। इस युद्ध के बाद, ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी भारत में सबसे बड़ी आर्थिक और सैन्य शक्ति बन गई। बीरेन दा ने बहरागोड़ा कैम्प में अपने भाषण में कहा था।]      

"Give me blood, I will give you freedom" - only Netaji can say, who is responsible for India's subjugation? Asked Benimadhav Babu, the headmaster of Cuttack School, Netaji said that we are Bengalis, if we had resisted a little, India would not have been subjugated. He is writing a letter to his mother, saying that I will spend the twenty rupees scholarship that I will get in the service of the poor people of my country. Mother saw Ant eating three rotis kept behind his book, and when she asked, little Subhash said, "You give me plenty to eat, but every day a poor person goes, I give him one roti, but he has not come for three days. As a boy, he used to meditate and play, which increased his courage and patience. Swamiji was Netaji's ideal, his Netaji is the ideal of the freedom fighters of India, why? He is the only prominent freedom fighter whose birthday is on 23 January but his death anniversary or death anniversary is not known.

[The Battle of Plassey was fought between Siraj-ud-Daulah, the Nawab of Bengal, and the British East India Company on 23 June 1757. This war took place in north-eastern India. The British East India Company led by Robert Clive won this war. In this war, Nawab Siraj-ud-Daulah's commander Mir Jafar betrayed and defected to the British. The British army had only 300 soldiers in this war, and one lakh Indians were standing and watching the war. If even one stone had been thrown, India would never have been enslaved. After this war, the British had gained control over Bengal. This war also opened up the possibility of British expansion in other parts of India. After this war, the British East India Company became the largest economic and military power in India.

"আমায় রক্ত দাও , আমি তোমায় স্বাধীনতা দেব" - বলতে পারেন কেবল নেতাজি , ভারতের পরাধীনতা জন্যে কে দায়ী ? জিজ্ঞাসা করিলেন কাটাক স্কুলের হেডমাস্টার বেণীমাধব বাবু , নেতাজি বললেন আমরা বাঙালি রা , আমরা যদি একটু প্রতিরোধ করতাম ভারত পরাধীন হতো না।  মা কে চিঠি লিখছেন আমি কুড়ি টাকা যে স্কলারশিপ পাবো , তাকে আমি আমার দেশের গরিব মানুষের সেবায় খরচ করবো। মা দেখলেন পিঁপড়ে উনার কিতাব পিছনে রাখা তিন টি রুটি খাচ্ছে , জিগ্যেস করলেন তো ছোট সুভাষ বললো , তুমি আমাকে প্রচুর খেতে দাও , কিন্তু রোজ এক জন গরিব মানুষ যান আমি ওনাকে এক তা রুটি দি , কিন্তু তিন দিন হলো উনি আসছেন না। ছেলে বেলায় ধ্যান-ধ্যান খেলতেন তার  ফলে সাহস ওর ধৈর্য বেড়ে যায়। স্বামীজী ছিলেন নেতাজির  আদর্শ , ওর নেতাজি হলেন ভারতের স্বাধীনতা সংগ্রামীর আদর্শ , কেন ? উনি এক মাত্র প্রমুখ স্বতন্ত্রতা সেনানী যার জন্মদিবস ২৩ জনবরী আছে কিন্তু প্রয়াণ দিবস , বা তার তিরোধান দিবস জ্ঞাত নেই।  

==================================

6. मुक्तिर मंदिर सोपान तले कतो प्राण हलो बलिदान, 

लेखा आछे अश्रु जले !

कत बिप्लबी बन्धुर रक्ते राँगा, 

बन्दिशाला ओई शिकल भाँगा।   

ताँरा कि फिरिबे आज सुप्रभाते। 

जत तरुण अरुण गेछे अस्ताचले,  

मुक्तिर मंदिर सोपान तले कतो प्राण हलो बलिदान, 

लेखा आछे अश्रु जले !

जाँरा स्वर्गगत ताँरा एखनओ जाने ,

स्वर्गेर चेये प्रिय जन्मभूमि।  


एसो स्वदेशव्रतेर महा दीक्षा लभि,

जाँरा स्वर्गगत ताँरा एखनओ जाने ,

स्वर्गेर चेये प्रिय जन्मभूमि।  


सेई मृत्युंजयीदेर चरण चूमि , 

जाँरा जीर्ण जातिर बुके जागालो आशा ,

मौल मलिन मुखे जोगालो भाषा।   


आजि रक्त कमले गाँथा,   

आजि रक्त कमले गाँथा, माल्यखानि,  

বিজয় লক্ষ্মী দেবে তাঁদেরই গলে।

विजय लक्ष्मी देबे तांदेरई गले। 

मुक्तिर मंदिर सोपान तले कतो प्राण हलो बलिदान, 

लेखा आछे अश्रु जले !  

गायक: कलकत्ता कॉयर। संगीतकार: कृष्ण चंद्र डे। गीतकार: मोहिनी चौधरी। घराना : देशभक्ति

Muktira mandira sōpānatalē kato prāṇa halō balidāna

 lēkhā āchē aśru jalē ! 


মুক্তির মন্দির সোপানতলে কত প্রাণ হলো বলিদান,

‎লেখা আছে অশ্রুজলে। 

কত বিপ্লবী বন্ধুর রক্তে রাঙা,

বন্দীশালার ওই শিকল ভাঙ্গা। 

তাঁরা কি ফিরিবে আজ,

তাঁরা কি ফিরিবে আজ সুপ্রভাতে। 

যত তরুণ অরুণ গেছে অস্তাচলে, 

মুক্তির মন্দির সোপানতলে কত প্রাণ হলো বলিদান,

‎লেখা আছে অশ্রুজলে। 

যাঁরা স্বর্গগত তাঁরা এখনও জানে,

স্বর্গের চেয়ে প্রিয় জন্মভূমি।  

এসো স্বদেশব্রতের মহা দীক্ষা লভি, 


যাঁরা স্বর্গগত তাঁরা এখনও জানে

স্বর্গের চেয়ে প্রিয় জন্মভূমি। 

‎সেই মৃত্যুঞ্জয়ীদের চরণ চুমি, 

যাঁরা জীর্ণ জাতির বুকে জাগালো আশা,

মৌল মলিন মুখে জোগালো ভাষা। 

‎আজি রক্ত কমলে গাঁথা, 

‎আজি রক্ত কমলে গাঁথা মাল্যখানি, 

বিজয় লক্ষ্মী দেবে তাঁদেরই গলে। 

============

7.सबार आगे स्वास्थ चाई , आध्यात्मिक शक्ति चाई।

(ताल -दादरा) 

सबार आगे स्वास्थ चाई , आध्यात्मिक शक्ति चाई।

उपासना ज्ञाने कर्ममय जीवन चाई। 

पिता, माता , गुरुजनदेर कथा मत चलबो भाई। 

देशेर काजे मरते चाई। 

देशेर सेवाय लागते चाई।। 

निजेर दोष देखबो मोरा , परेर दोषे नजर नाई।। 

अल्ला , गॉड , भगवान एकई शक्ति जानि भाई।। 

स्वामीजीर आशीर्वादे मानुष आमरा होबोई भाई। 

7. সবার আগে স্বাস্থ্য চাই, আধ্যাত্মিক শক্তি চাই।  

সবার আগে স্বাস্থ্য চাই, আধ্যাত্মিক শক্তি চাই।  

উপাসনা জ্ঞানে কর্মময় জীবন চাই। 

পিতামাতা গুরুজনদের কথামত চলবো ভাই। 

দেশের কাজে মরতে চাই। 

অভিঃ মন্ত্রে দীক্ষা মোদের। 

বাধা বিঘ্ন ভয় নাই।.

নিজের দোষ দেখবো মোরা ,

পরের দোষে নজর নাই। 

আল্লা গড ভগবান একই শক্তি জানি ভাই। 

স্বামীজীর আশীর্বাদে মানুষ আমরা হবোই ভাই। 

======   
8. मानुष होबार आन्दोलने मानुष होते चाई ,
(ताल दादरा )
मानुष होबार आन्दोलने मानुष होते चाई ,
मानुष होय देशेर तरे जीवन देबो भाई। 

ऐ आन्दोलन तोमार आमार एका कारोर नय ,
सबाई मिले ऐसो आजी मानुष होते जाई। 

अग्निमन्त्रे दीक्षा मोदेर भय बा करी कारे ,
वीर सेनानी सबाई मोरा स्वामीजिर तरे। 

डाक दिएछेन सेनापति आर देरी नय भाई। 
एगिए चलो एगिए एसो देशेर काजे जाई।।  
   
===============

 9.'एकई मत, एकई पथ, आमरा भाई भाई '
  
एकई मत, एकई पथ, आमरा भाई भाई ,
 एकई मत, एकई पथ, आमरा भाई भाई ,

हिंसा द्वेष भूले मोरा बाँचते सोबाई चाई। 
मिले मिशे स्फूर्ति कोरे हासि खेली गान गाई -

गान गान , गाई गान।।  

======================

10. आय आय आय आयरे सब छूटे -
(ताल -कहरवा )
आय आय आय आयरे सब छूटे -
सब बाधाके पिछने फेले, 
आयरे छूटे सबाई। 

मानुष होय मानुष गोड़ार -
संकल्प नीएछी मोरा 
सेई संकल्प सार्थक करते 
नीएछि स्वामीजिर भावधारा। 
त्यागेरई मन्त्रे दीक्षा निये जे ,
ह्रदय के विराट करि ,
सब मानुषेर माझे निजेके देखार 
साधना जे नियत करि। 
-उत्पल सिंह 
===========