११प्रश्न
: यदि प्रत्येक मनुष्य के भीतर एक ही शक्ति रहती है, तो कोई व्यक्ति जन्म
से ही कम शक्तिशाली या कम मेधावी एवं कोई अधिक क्यों होता है ?
उत्तर : मानलो
१००० शक्ति का एक बल्ब जल रहा है. उसके उपर एक पतला सादा कागज रखो, उसका
प्रकाश कुछ कम हो जायेगा. एक मोटे कागज को रखने से और भी कम हो जायेगा. एक
मोटा काला कागज से ढँक दिया जाय तो हो सकता है, प्रकाश बिल्कुल भी बाहर न
निकल सके; तो क्या हम ऐसा कह सकते हैं, कि भीतर में स्थित प्रकाश की शक्ति
कम हो गयी है ? वह तो एक ही है. आन्तरिक शक्ति तो सभी मनुष्यों में एक समान है, पर उसके उपर जो आवरण (मन) पड़ा है, उसकी स्वच्छता में तारतम्य है।
उसी प्रकार हमलोगों की आन्तरिक शक्ति के उपर एक आवरण पड़ा रहता है-वह सबों में एक समान नहीं है, किसी का कम है, किसी का अधिक है. इसीलिए शक्ति या मेधा की अभिव्यक्ति में तारतम्य क्यों दिखाई देता है. किन्तु इस प्रश्न का उत्तर नहीं दिया जा सकता कि हमलोगों की आन्तरिक शक्ति के स्रोत के उपर आवरण क्यों पड़ जाता है ? इस आवरण को ही अज्ञान (अविद्या) कहते हैं.
तारतम्य होने का कारण है, प्रत्येक व्यक्ति इस आवरण को
दूर करने की चेष्टा कर रहा है, किन्तु इसमें जो जितना सक्षम हुआ है, उसकी
उतनी शक्ति या मेधा की अभिव्यक्ति हुई है. जन्म के समय से ही जो असमानता
दिखाई देती है, उसका कारण है- अपने पूर्व पूर्व जन्मों में इस आवरण को
उद्घाटित करने की चेष्टा में जो व्यक्ति जितना सफल हुआ है, उसका आवरण उतना
ही पतला हुआ है, जिसके फलस्वरूप शक्ति या मेधा में जन्म से ही तारतम्य
दिखाई देता है.
इसलिए, इस बात को जानकर,कि वास्तव में अक्षय-उर्जा (कभी न खत्म होने वाली असीम शक्ति का भण्डार ) हमारे ही भीतर है; यदि हमलोग उसको उद्घाटित करने का निरन्तर प्रयास करें तो आखरी तक (अध्याय के अंत में)
हम सभी लोग अनन्त शक्ति के, अनन्त मेधा के अधिकारी हो सकते हैं.
इस विश्वास
को सम्बल बनाकर यदि हमलोग प्रयास करते रहें, तो क्रमशः आवरण झीना होता
जायेगा एवं अपनी अन्तर्निहित दिव्यता की अनुभूति होते रहने से हमारा इसके
उपर विश्वास क्रमशः दृढ़तर होता जायेगा.