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शनिवार, 26 मई 2012

चरित्र के गुणों का आत्मसातीकरण कैसे करें ? [30] परिप्रश्नेन

३०.प्रश्न : यदि यह बात सत्य है, कि सभी मनुष्यों में अच्छे-बुरे गुण सम-भाव से विद्यमान रहते हैं;  तो अच्छे-बुरे गुणों की अभ्व्यक्ति में तारतम्य क्यों रहता है ?
उत्तर :  तुमने यह बात कैसे सोचा या कहाँ पढ़ा है, मैं समझ नहीं पा रहा हूँ. सभी मनुष्यों में अच्छे और बुरे गुण सम-भाव में तो विद्यमान नहीं रहते हैं। किसी व्यक्ति में अच्छे गुण अधिक होते हैं, किसी व्यक्ति में बुरे गुण अधिक होते हैं। यह हो सकता है कि किसी व्यक्ति में जैसे अच्छे गुण हों, वैसे ही उसमें कुछ बुरे गुण भी स्पष्ट दिख सकते है। किन्तु यह स्वाभाविक नहीं है। हाँ स्वाभाविक रूप से गुणों में तारतम्य तो रहता ही है। 
अभिव्यक्ति में तारतम्य क्यों होता है ?
 वह इसीलिए होता है, कि तुम जिस गुण को अधिक प्रश्रय दोगे, वही गुण तुम्हारे भीतर से अधिक अभिव्यक्त होगा। यदि तुम अच्छे गुणों (पवित्रता--धैर्य--अध्यवसाय ) से अधिक प्रेम करो, एवं अभ्यास द्वारा जीवन में 
उतारने की चेष्टा करते रहो, तो उन्हीं गुणों की अभिव्यक्ति अधिक होगी। उसी प्रकार यदि तुम्हारे भीतर जो बुरे गुण हैं, उनको यदि अधिक प्रश्रय दो, तथा उसी गुण के द्वारा संचालित होकर बीच बीच में वैसे कार्य करते रहोगे तो उसकी अधिक अभिव्यक्ति होगी।  इसीलिए गुणों की अभिव्यक्ति तुम्हारे व्यक्तिगत विवेक-प्रयोग क्षमता के उपर निर्भर करती है। 
तुम अपनी बुद्धि से भले-बुरे में अन्तर के औचित्य-बोध को कितना व्यवहार में ला पाते हो, उस पर निर्भर 
करता है, कि तुम अपने भीतर अच्छे गुणों को बढ़ा पाओगे, या तुम्हारे भीतर बुरे गुण ही बढ़ते जायेंगे ? यह तुम्हारे व्यक्तिगत-विवेक के उपर निर्भर करता है।चरित्र के गुणों का आत्मसातीकरण विवेक-प्रयोग पर निर्भर है।