परिच्छेद ~ 92,
(१)
*भक्तों से वार्तालाप*
आज रविवार है; श्रीरामकृष्ण के कमरे में बहुत से भक्त एकत्रित हुए हैं । राम, महेन्द्र, मुखर्जी, चुनीलाल, मास्टर आदि बहुत से भक्त हैं । 21 सितम्बर, 1884। चुनीलाल अभी हाल ही वृन्दावन से आये हैं । वे और राखाल, बलराम के साथ वहाँ गये थे । राखाल और बलराम अब भी नहीं लौटे । श्रीरामकृष्ण चुनीलाल से वृन्दावन की बातें कर रहे हैं ।
আজ রবিবার, (শুক্লা দ্বিতীয়া) ৬ই আশ্বিন, ১২৯১, ২১শে সেপ্টেম্বর, ১৮৮৪। ঠাকুর শ্রীরামকৃষ্ণের ঘরে অনেকগুলি ভক্ত সমবেত হইয়াছেন। রাম, মহেন্দ্র মুখুজ্জে, চুনিলাল, মাস্টার ইত্যাদি অনেকে আছেন। চুনিলাল সবে শ্রীবৃন্দাবন হইতে ফিরিয়াছেন। সেখানে তিনি ও রাখাল বলরামের সঙ্গে গিয়াছিলেন। রাখাল ও বলরাম এখনও ফেরেন নাই। নিত্যগোপালও বৃন্দাবনে আছেন। ঠাকুর চুনিলালের সহিত বৃন্দাবনের কথা কহিতেছেন।
श्रीरामकृष्ण - राखाल कैसा है ?
শ্রীরামকৃষ্ণ — রাখাল কেমন আছে?
चुनी - जी, अब वे अच्छे हैं ।
চুনি — আজ্ঞে, তিনি এখন আছেন ভাল।
श्रीरामकृष्ण - नृत्यगोपाल आयगा या नहीं ?
শ্রীরামকৃষ্ণ — নিত্যগোপাল আসবে না?
चुनी - अभी तो मैं देखकर आ रहा हूँ, वहीं है ।
श्रीरामकृष्ण - तुम्हारे परिवार के लोग किसके साथ आ रहे हैं ?
चुनी - बलराम बाबू ने कहा है, मैं अच्छे आदमी के साथ भेज दूँगा । नाम उन्होंने नहीं बतलाया ।
চুনি — বলরামবাবু বলেছেন, ভাল উপযুক্ত লোকের সঙ্গে পাঠিয়ে দেব। নাম দেন নাই।
श्रीरामकृष्ण महेन्द्र मुखर्जी से नारायण की बातचीत कर रहे हैं । नारायण स्कूल में पढ़ता है । उम्र 16-17 साल की है । श्रीरामकृष्ण के पास कभी-कभी आया-जाया करता है । श्रीरामकृष्ण उसे बड़ा प्यार करते हैं ।
ঠাকুর মহেন্দ্র মুখুজ্জের সঙ্গে নারাণের কথা কহিতে লাগিলেন। নারাণ স্কুলে পড়ে। ১৬।১৭ বৎসর বয়স। ঠাকুরের কাছে মাঝে মাঝে আসে। ঠাকুর বড় ভালবাসেন।
श्रीरामकृष्ण - बड़ा निष्कपट है न ? 'निष्कपट' शब्द कहते ही श्रीरामकृष्ण का मन आनन्द से भर गया ।
শ্রীরামকৃষ্ণ — খুব সরল; না?‘সরল’ এইকথা বলিতে বলিতে ঠাকুর যেন আনন্দে পরিপূর্ণ হইলেন।
महेन्द्र - जी हाँ, बिल्कुल निष्कपट (guileless-गाईलेलेस) है ।
মহেন্দ্র — আজ্ঞে হাঁ, খুব সরল।
श्रीरामकृष्ण - उसकी माँ उस दिन आयी थी । अभिमानिनी थी, देखकर भय हुआ । इसके पश्चात् जब उसने देखा, यहाँ तुम आते हो, कप्तान आता है, तब उसने जरूर ही सोचा होगा, केवल नारायण और मैं (नारायण की माँ) कुल यही दो वहाँ नहीं जाते । (सब हँसने लगे ।) इस कमरे में मिश्री रखी हुई थी । उसने देखकर कहा, अच्छी मिश्री है । साथ ही समझा होगा, इसके खाने की विशेष असुविधा नहीं है । "शायद उन लोगों के सामने मैंने बाबूराम से कहा था, नारायण के लिए और अपने लिए ये सन्देश रख दे । इसके बाद गणु की माँ और वे सब कहने लगीं - 'नारायण अपनी माँ को नित्य प्रति यहाँ आने के लिए नाव का किराया माँगकर परेशान किया करता है ।’ "मुझसे कहा आप नारायण से कहिये जिससे विवाह करे । इस बात पर मैंने कहा, ये सब भाग्य की बातें हैं । क्यों मैं ऐसी बात के लिए जोर दूँ ? (सब हँसते हैं ।) "नारायण अच्छी तरह पढ़ने में जी नहीं लगाता । इस पर उसने कहा, आप कहिये, जरा अच्छी तरह पढ़े। मैंने कहा, पढ़ना रे ! तब उसने कहा, जरा अच्छी तरह कहिये । (सब हँसते हैं ।)
MASTER: "His mother came here the other day. I was a little frightened to see that she was a proud woman. That day she found that Captain, you and many others, too, visited me. Then she must have realized that she and her son were not the only people to come here. (All laugh.) There was some sugar candy in the room and she remarked that it was good. That made her feel there was no scarcity of food here. I happened to tell Baburam, in front of her, to keep some sweets for himself and Naran. Ganu's mother said that Naran always bothered his mother for the boat hire to come here. His mother said to me, 'Please ask Naran to consent to marry.' I replied, 'All that depends on one's fate.' Why should I interfere? (All laugh.) Naran is indifferent to his studies. His mother said, 'Please ask him to pay a little more attention.' So I said to Naran, 'Attend to your studies.' Then his mother said, 'Please tell him seriously.' (All laugh.)
{শ্রীরামকৃষ্ণ — তার মা সেদিন এসেছিল। অভিমানী দেখে ভয় হল। তারপর তোমরা এখানে আসো, কাপ্তেন আসে, — এ-সব সেদিন দেখতে পেলে। তখন অবশ্য ভাবলে যে, শুধু নারাণ আসে আর আমি আসি, তা নয়। (সকলের হাস্য) মিছরি এ-ঘরে ছিল তা দেখে বললে, বেশ মিছরি! তবেই জানলে, খাবার-দাবার কোন অসুবিধা নাই।“তাদের সামনে বুঝি বাবুরামকে বললুম, নারাণের জন্য আর তোর জন্য এই সন্দেশগুলি রেখে দে। তারপর গণির মা ওরা সব বললে, মা গো, নৌকাভাড়ার জন্য যা করে! আমায় বললে যে আপনি নারাণকে বলুন যাতে বিয়ে করে। সে কথায় বললুম, ও-সব অদৃষ্টের কথা। ওতে কথা দেব কেন? (সকলের হাস্য)“ভাল করে পড়াশুনা করে না; তাই বললে, আপনি বলুন, যাতে ভাল করে পড়ে। আমি বললুম, পড়িস রে। তখন আবার বলে, একটু ভাল করে বলুন। (সকলের হাস্য)
(चुनी से) “क्यों जी भला गोपाल क्यों नहीं आता ?”
(চুনির প্রতি) “হ্যাঁ গা, গোপাল আসে না কেন?”
चुनी - उसे पेचिश (dysentery) हो गया है , खून जा रहा है - आँव के साथ ।
চুনি — রক্ত আমেশা হয়েছে।
श्रीरामकृष्ण - दवा खा रहा है न ?
শ্রীরামকৃষ্ণ — ওষুধ খাচ্ছে?
[(21 सितंबर,1884) श्रीरामकृष्ण वचनामृत-92 ]
🔆🙏* भक्तों के साथ स्टार थियेटर में चैतन्यलीला-दर्शन *🔆🙏
🔆🙏 स्टार थियेटर की वैश्या अभिनेत्रीयों में माँ आनन्दमयी का रूप दर्शन🔆🙏
* वैष्णवी मुद्रा-आत्मवत सर्वभूतेषु *
अन्तर्लक्ष्यं बहिर्दृष्टिर्निमेषोन्मेषवर्जिता।
एषा सा वैष्णवी मुद्रा सर्वतन्त्रेषु गोपिता ॥
( शाण्डिल्योपनिषद् 1.14)
[बाहर की ओर निर्निमेष दृष्टि (निमेष-उन्मेष) अर्थात् पलक झपकने से विहीन या स्थिर दृष्टि हो , और भीतर की तरफ लक्ष्य (आत्मोन्मुख दृष्टि) हो, उसको सब तंत्रों में गुप्त वैष्णवीमुद्रा कहते हैं, जिससे ब्रह्म का साक्षात्कार होता है ।
[🔆🙏आत्मसाक्षात्कार की अवस्था से भी ऊँची अवस्था है -आत्मवत् सर्वभूतेषु🔆🙏सन्दर्भ - [ (4 जनवरी, 1886), श्री रामकृष्ण वचनामृत-133 ] > Sri Ramakrishna and the Vedanta — নিত্যলীলা দুই গ্রহণ ) > (4 श्री रामकृष्ण और वेदांत का सार - जो कुछ है सो तूँ ही है !/"हर देश में तूँ हर भेष में तूँ -तेरे नाम अनेक तूँ एक ही है !" [26/5/2024 -अपूर्व दास टाटा - নিত্যলীলা দুই গ্রহণ]सन्दर्भ ->[(21 सितंबर,1884) श्रीरामकृष्ण वचनामृत-92 * भक्तों के साथ स्टार थियेटर में चैतन्यलीला-दर्शन * स्टार थियेटर की वैश्या अभिनेत्रीयों में माँ आनन्दमयी का रूप दर्शन
* वैष्णवी मुद्रा-आत्मवत सर्वभूतेषु * स्वामी विवेकानन्द का शिकागो पोज़ *
अन्तर्लक्ष्यं बहिर्दृष्टिर्निमेषोन्मेषवर्जिता। एषा सा वैष्णवी मुद्रा सर्वतन्त्रेषु गोपिता ॥ ( शाण्डिल्योपनिषद् 1.14)बाहर की ओर निर्निमेष दृष्टि (निमेष-उन्मेष) अर्थात् पलक झपकने से विहीन या स्थिर दृष्टि हो , और भीतर की तरफ लक्ष्य (आत्मोन्मुख दृष्टि) हो, उसको सब तंत्रों में गुप्त वैष्णवीमुद्रा कहते हैं, जिससे ब्रह्म का साक्षात्कार होता है ।]
श्रीरामकृष्ण आज Star Theatre में 'चैतन्यलीला' नाटक देखने जायेंगे । (पहले स्टार थियेटर का अभिनय जहाँ पर होता था, वहाँ आजकल कोहिनूर थियेटर है ।) महेन्द्र मुखर्जी के साथ उन्हीं की गाड़ी पर चढ़कर अभिनय देखने जायेंगे । कहाँ बैठने पर अच्छी तरह दीख पड़ता है, यही बात हो रही है । किसी ने कहा, एक रुपयेवाली जगह से खूब दीख पड़ता है । राम ने कहा, ये 'बाक्स' से देखेंगे । श्रीरामकृष्ण हँस रहे हैं । किसी किसी ने कहा, वेश्याएँ अभिनय करती है । चैतन्यदेव, निताई, इनका पार्ट वे ही करती है ।
Sri Ramakrishna was planning to go to a performance of the Chaitanyalila at the Star Theatre. Mahendra Mukherji was to take him to Calcutta in his carriage. They were talking about choosing good seats. Some suggested that one could see the performance well from the one-rupee gallery. Ram said, "Oh, no! I shall engage a box for him." The Master laughed. Some of the devotees said that public women (आत्मवत सर्वभूतेषु?) took part in the play. They took the parts of Nimai, Nitai, and others.}
{ঠাকুর আজ কলিকাতায় স্টার থিয়েটারে চৈতন্যলীলা দেখিতে যাইবেন। স্টার থিয়েটারে তখন যেখানে অভিনয় হইত, আজকাল সেখানে কোহিনূর থিয়েটার। মহেন্দ্র মুখুজ্জের সঙ্গে তাঁহার গাড়ি করিয়া অভিনয় দেখিতে যাইবেন। কোন্খানে বসিলে ভাল দেখা যায়, সেই কথা হইতেছে। কেউ কেউ বললেন, একটাকার সিটে বসলে বেশ দেখা যায়। রাম বললেন, কেন, উনি বক্সে বসবেন।ঠাকুর হাসিতেছেন। কেহ কেহ বলিলেন, বেশ্যারা অভিনয় করে। চৈতন্যদেব, নিতাই এ-সব অভিনয় তারা করে।
श्रीरामकृष्ण – (भक्तों से) - मैं उन्हें माँ आनन्दमयी देखूँगा । "वे चैतन्य सजकर निकली हैं तो इससे क्या हुआ ? नकली फल देखिये तो यथार्थ फल की बात याद आ जाती है । "किसी भक्त ने रास्ते पर जाते हुए देखा, कुछ बबूल के पेड़ थे । देखते ही भक्त को भावावेश हो गया । उसे यह याद आया कि इसकी लकड़ी से श्यामसुन्दर के बगीचे की कुदार के लिए अच्छा बेंट हो सकता है । उसे श्यामसुन्दर की बात याद आ गयी थी । जब किले के मैदान में मुझे बेलून दिखाने के लिए ले गये थे, तब एक साहब का लड़का पेड़ के सहारे तिरछा होकर खड़ा था । उसे देखने के साथ ही कृष्ण की उद्दीपना ^ हो गयी । और मैं समाधिमग्न हो गया ।
(^ आमतौर पर कृष्ण की त्रिभंग छवि में शरीर 'सीधा' न होकर तीन (त्रि) स्थानों से मुड़ा (भंग) होता है, घुटने से एक दिशा में, कमर से दूसरी दिशा में और कन्धों के ऊपर से दूसरी दिशा में।
MASTER (to the devotees): "I shall look upon them as the Blissful Mother Herself. What if one of them acts the part of Chaitanya? An imitation custard-apple (मिट्टी का शरीफा) reminds one of the real fruit. Once, while going along a road, a devotee of Krishna noticed some babla-trees. Instantly his mind was thrown into ecstasy. He remembered that the wood of babla-trees was used for the handles of the spades that the garden of the temple of Syamasundar (A name of Krishna.) was dug with. The trees Instantly reminded him of Krishna. I was once taken to the Maidan in Calcutta to see a balloon go up. There I noticed a young English boy leaning against a tree, with his body bent in three places. It at once brought before me the vision of Krishna ^ and I went into samadhi. (^Images of Krishna are usually bent in three parts of the body, namely, the neck, the waist, and the knees.}
{শ্রীরামকৃষ্ণ (ভক্তদিগকে) — আমি তাদের মা আনন্দময়ী দেখব।“তারা চৈতন্যদেব সেজেছে, তা হলেই বা। শোলার আতা দেখলে সত্যকার আতার উদ্দীপন হয়। “একজন ভক্ত রাস্তায় যেতে যেতে দেখে, কতকগুলি বাবলাগাছ রয়েছে। দেখে ভক্তটি একেবারে ভাবাবিষ্ট। তার মনে হয়েছিল যে, ওই কাঠে শ্যামসুন্দর বাগানের কোদালের বেশ বাঁট হয়! অমনি শ্যামসুন্দরকে মনে পড়েছে! যখন গড়ের মাঠে বেলুন দেখতে আমায় নিয়ে গিয়েছিল, তখন একটি সাহেবের ছেলে একটা গাছে ঠেসান দিয়ে ত্রিভঙ্গ হয়ে দাঁড়িয়েছিল। দেখাও যা, অমনি কৃষ্ণের উদ্দীপন হল; অমনি সমাধিস্থ হয়ে গেলাম!
"चैतन्यदेव मेड़गाँव से होकर जा रहे थे । सुना, गाँव की मिट्टी से खोल बनते हैं । सुनने के साथ ही उन्हें भावावेश हो गया था । "श्रीमती (राधा) मेघ या मोरों की गरदन देख लेने पर फिर स्थिर नहीं रह सकती थीं । श्रीकृष्ण की ऐसी उद्दीपना होती थी कि उनका बाह्यज्ञान लुप्त हो जाता था ।
"Once Chaitanyadeva was passing through a village. Someone told him that the body of the drum used in the kirtan was made from the earth of that village, and at once he went into ecstasy. "Radha could not control herself at the sight of a cloud or the blue throat of a peacock. It would at once awaken in her mind the thought of Krishna, and she would go into ecstasy."
{“চৈতন্যদেব মেড়গাঁ দিয়ে যাচ্ছিলেন! শুনলেন, গাঁয়ের মাটিতে খোল তৈয়ার হয়! যাই শোনা অমনি ভাবাবিষ্ট হয়ে গেলেন।“শ্রীমতী মেঘ কি ময়ূরের কণ্ঠ দেখলে আর স্থির থাকতে পারতেন না। শ্রীকৃষ্ণের উদ্দীপন হয়ে বাহ্যশূন্য হয়ে যেতেন।”
श्रीरामकृष्ण जरा देर चुपचाप बैठे हैं । कुछ देर बाद फिर बातचीत करते हैं - "श्रीमती को महाभाव होता था । गोपियों के प्रेम में कोई कामना नहीं है । जो सच्चा भक्त है, वह कोई कामना नहीं करता । केवल शुद्धा भक्ति की प्रार्थना करता है कोई शक्ति या विभूति नहीं चाहता ।"
"Radha had attained mahabhava. There was. no desire behind the ecstatic love of the gopis. A true lover does not seek anything from God. He prays only for pure love. He doesn't want any powers or miracles.
{ঠাকুর একটু চুপ করিয়া বসিয়া আছেন। কিয়ৎক্ষণ পরে আবার কথা কহিতেছেন — “শ্রীমতীর মহাভাব। গোপীপ্রেমে কোন কামনা নাই। ঠিক ভক্ত যে, সে কোন কামনা করে না। কেবল শুদ্ধাভক্তি প্রার্থনা করে; কোন শক্তি কি সিদ্ধাই কিছু চায় না।”
(२)
[(21 सितंबर,1884), श्रीरामकृष्ण वचनामृत -92]
🔆🙏तोतापुरीजी की शिक्षा - अष्ट सिद्धियाँ ईश्वर-लाभ में विघ्नरूप हैं🔆🙏
श्रीरामकृष्ण - विभूति (Occult Powers, सिद्धियों) का होना एक आफत है । नागे (तोतापुरी) ने मुझे सिखलाया - एक सिद्ध समुद्र के तट पर बैठा हुआ था । उसी समय एक तूफान आया । तूफान से कष्ट होने का भय हुआ । उसने कहा, 'तूफान रुक जा ।' उसकी बात झूठ होने की नहीं थी, तूफान रुक गया। उधर एक जहाज जा रहा था । उसमें पाल लगा हुआ था । तूफान ज्योंही एकाएक रुक गया कि जहाज डूब गया । जहाज भर के आदमी उसीके साथ डूब गये । अब इतने आदमियों के मरने से जो पाप होने को था, सब उसी को हुआ। उसी पाप से उसकी विभूति भी चली गयी और उसे नरक भी हुआ।
Nangta taught me this by a story. A man who had acquired occult powers was sitting on the seashore when a storm arose. It caused him great discomfort; so he said, 'Let the storm stop.' His words could not remain unfulfilled. At that moment a ship was going full sail before the wind. When the storm ceased abruptly the ship capsized and sank. The passengers perished and the sin of causing their death fell to the man. And because of that sin he lost his occult powers and went to hell.
{শ্রীরামকৃষ্ণ — সিদ্ধাই থাকা এক মহাগোল। ন্যাংটা আমায় শিখালে — একজন সিদ্ধ সমুদ্রের ধারে বসে আছে, এমন সময় একটা ঝড় এল। ঝড়ে তার কষ্ট হল বলে সে বললে, ঝড় থেমে যা। তার বাক্য মিথ্যা হবার নয়। একখানা জাহাজ পালভরে যাচ্ছিল। ঝড় হঠাৎ থামাও যা আর জাহাজ টুপ করে ডুবে গেল। এক জাহাজ লোক সেই সঙ্গে ডুবে গেলো। এখন এতগুলি লোক যাওয়াতে যে পাপ হল, সব ওর হলো। সেই পাপে সিদ্ধাইও গেল, আবার নরকও হলো।
"एक साधु के बहुत सी विभूतियाँ हुई थी और उनका उसे अहंकार भी था, परन्तु था वह कुछ अच्छा आदमी । उसमें तपस्या भी थी । भगवान छद्मवेश धारण कर एक दिन साधु के पास आये । आकर कहा, महाराज, मैने सुना है, आपके पास बहुत सिद्धियाँ हैं । साधु ने उनकी खातिर करके बैठाया । उसी समय एक हाथी उधर से जा रहा था । तब छद्मवेशधारी साधु ने कहा, अच्छा महाराज, आप चाहें तो क्या इस हाथी को मार सकते है ? साधु ने कहा, हाँ, क्यों नहीं ? यह कहकर साधु ने धूल पढ़कर हाथी पर ज्योंही छोड़ी कि वह छटपटाकर मर गया । तब जो साधु आया था, उसने कहा, 'वाह ! आपमें तो बड़ी शक्ति है । हाथी को आपने मार डाला !' वह साधु हँसने लगा । तब नये साधु ने कहा, अच्छा इसे आप अब जिला सकते हैं ? उसने कहा, 'हाँ, ऐसा भी हो सकता है । यह कहकर ज्योंही धूल पढ़कर उसने हाथी पर छोड़ी कि हाथी तुरन्त उठकर खड़ा हो गया । तब इस साधु ने कहा - 'आप में बड़ी शक्ति है परन्तु एक बात मैं आपसे पूछता हूँ। आपने हाथी को मारा और फिर से जिला दिया, इससे आपका क्या हुआ ? आपकी अपनी उन्नति क्या हुई ? इससे क्या आप ईश्वर को पा गये ?' यह कहकर वह साधु अन्तर्धान हो गये ।
Once upon a time a sadhu acquired great occult powers. He was vain about them. But he was a good man and had some austerities to his credit. One day the Lord, disguised as a holy man, came to him and said, 'Revered sir, I have heard that you have great occult powers.' The sadhu received the Lord cordially and offered him a seat. Just then an elephant passed by. The Lord, in the disguise of the holy man, said to the sadhu, 'Revered sir, can you kill this elephant if you like?' The sadhu said, 'Yes, it is possible.' So saying, he took a pinch of dust, muttered some mantras over it, and threw it at the elephant. The beast struggled awhile in pain and then dropped dead. The Lord said: 'What power you have! You have killed the elephant!' The sadhu laughed. Again the Lord spoke: 'Now can you revive the elephant?' 'That too is possible', replied the sadhu. He threw another pinch of charmed dust at the beast. The elephant writhed about a little and came back to life. Then the Lord said: 'Wonderful is your power. But may I ask you one thing? You have killed the elephant and you have revived it. But what has that done for you? Do you feel uplifted by it? Has it enabled you to realize God?' Saying this the Lord vanished.
[“একটি সাধুর খুব সিদ্ধাই হয়েছিল, আর সেই জন্য অহংকারও হয়েছিল। কিন্তু সাধুটি লোক ভাল ছিল, আর তার তপস্যাও ছিল। ভগবান ছদ্মবেশে সাধুর বেশ ধরে একদিন তার কাছে এলেন। এসে বললেন, ‘মহারাজ! শুনেছি আপনার খুব সিদ্ধাই হয়েছে’। সাধু খাতির করে তাঁকে বসালেন। এমন সময়ে একটা হাতি সেখান দিয়ে যাচ্ছে। তখন নূতন সাধুটি বললেন, ‘আচ্ছা মহারাজ, আপনি মনে করলে এই হাতিটাকে মেরে ফেলতে পারেন?’ সাধু বললেন, ‘য়্যাসা হোনে শক্তা’। এই বলে ধুলো পড়ে হাতিটার গায়ে দেওয়াতে সে ছটফট করে মরে গেল। তখন যে সাধুটি এসেছে, সে বললে, ‘আপনার কি শক্তি! হাতিটাকে মেরে ফেললেন।’ সে হাসতে লাগল। তখন ও সাধুটি বললে, ‘আচ্ছা, হাতিটাকে আবার বাঁচাতে পারেন?’ সে বললে, ‘ওভি হোনে শক্তা হ্যায়।’ এই বলে আবার যাই ধুলো পড়ে দিলে, অমনি হাতিটা ধড়মড় করে উঠে পড়ল। তখন এ-সাধুটি বললে, ‘আপনার কি শক্তি! কিন্তু একটা কথা জিজ্ঞাসা করি। এই যে হাতি মারলেন, আর হাতি বাঁচালেন, আপনার কি হল? নিজের কি উন্নতি হল? এতে কি আপনি ভগবানকে পেলেন?’ এই বলিয়া সাধুটি অন্তর্ধান হলেন।"
[(21 सितंबर,1884), श्रीरामकृष्ण वचनामृत-92]
🔆🙏आठ सिद्धियों में एक भी सिद्धि (desire) के रहते भगवान नहीं मिलते 🔆🙏
[ तंत्र-मंत्र की शक्ति (Occult power) आ जाने पर, अहंकार का बढ़ना निश्चित है ,
और अहंकारी व्यक्ति ईश्वर को भूल जाता है !
[Occult power is sure to beget pride, and pride makes one forget God.]
"धर्म की सूक्ष्म गति है । जरा सी कामना रहने पर भी कोई ईश्वर को पा नहीं सकता । सुई के भीतर सूत को जाना है, जरा सा रोवाँ भी बाहर रह गया तो फिर नहीं जा सकता । "कृष्ण ने अर्जुन से कहा था, भाई, मुझे अगर पाना चाहते हो, तो समझ लो कि आठ सिद्धियों में एक भी सिद्धि के रहते मैं नहीं मिलता ।
[ गहना कर्मणो गतिः~ अर्थात कर्म की गति बड़ी गहन है। (गीताः 4.17) में कहा गया है -कर्मणो ह्यपि बोद्धव्यं बोद्धव्यं च विकर्मणः।अकर्मणश्च बोद्धव्यं गहना कर्मणो गतिः॥ 'कर्म का स्वरूप भी जानना चाहिए और अकर्म का स्वरूप भी जानना चाहिए तथा विकर्म का स्वरूप भी जानना चाहिए, क्योंकि कर्म की गति गहन है।' कर्म ऐसे करें कि कर्म विकर्म न बनें, दूषित या बंधनकारक न बनें, वरन् अकर्म में बदल जायें, कर्ता अकर्ता हो जाय और अपने परमात्म-पद को पा लें। तुलसीदास जी कहते हैं-करम प्रधान बिस्व करि राखा। जो जस करइ सो तस फलु चाखा॥]
Subtle are the ways of dharma. One cannot realize God if one has even the least trace of desire. A thread cannot pass through the eye of a needle if it has the smallest fibre sticking out." Krishna said to Arjuna, 'Friend, if you want to realize Me, you will not succeed if you have even one of the eight occult powers.' This is the truth. Occult power is sure to beget pride, and pride makes one forget God.
[“ধর্মের সূক্ষ্মা গতি। একটু কামনা থাকলে ভগবানকে পাওয়া যায় না । ছুঁচের ভিতর সুতো যাওয়া একটু রোঁ থাকলে হয় না।"“কৃষ্ণ অর্জুনকে বলেছিলেন, ভাই আমাকে যদি লাভ করতে চাও তাহলে অষ্টসিদ্ধির একটা সিদ্ধি থাকলে হবে না।“কি জান? সিদ্ধাই থাকলে অহংকার হয়, ঈশ্বরকে ভুলে যায়।
[(21 सितंबर,1884), श्रीरामकृष्ण वचनामृत-92 ]
🔆🙏कर्ता अकर्ता हो जाय -कर्तापन का अहंकार रखने से ईश्वर की प्राप्ति नहीं होती🔆🙏
[तंत्र-मंत्र की शक्ति-(occult power) दिखलाने से अहंकार और पुष्ट होता है,]
"एक बाबू आया था, वह कंजा था । उसने कहा, 'आप परमहंस हैं तो अच्छा है, परन्तु जरा आपको मेरे लिए स्वस्त्ययन करना होगा' कितनी नीच बुद्धि है ! परमहंस कहता है और फिर स्वस्त्ययन भी कराना चाहता है ! स्वस्त्ययन करके अमंगलबाधा दूर कर देना (मुकदमा जीतना आदि में ) विभूति का प्रयोग (तंत्र-मंत्र की शक्ति-occult power) दिखलाना है । अहंकार से ईश्वर की प्राप्ति नहीं होती । अहंकार कैसा है जानते हो ? जैसे ऊँची जमीन, वहाँ बरसात का पानी नहीं ठहरता, बह जाता है । नीची जमीन में पानी जमता है और अंकुर उगते है । फिर पेड़ होते हैं और फल लगते हैं ।
"Once a cross-eyed rich man came here. He said to me: 'You are a paramahamsa. That is good. You must perform a swastyayana ceremony for me.' What a small-minded person he was! He called me a paramahamsa yet wanted me to perform that ceremony. To secure welfare by means of swastyayana is to exercise occult power. "An egotistic person cannot realize God. Do you know what egotism like? It is like a high mound, where rain-water cannot collect: the water runs off. Water collects in low land. There seeds sprout and grow into trees. Then the trees bear fruit.
{“একজন বাবু এসেছিল — ট্যারা। বলে, আপনি পরমহংস, তা বেশ, একটু স্বস্ত্যয়ন করতে হবে। কি হীনবুদ্দি। ‘পরমহংস’; আবার স্বস্ত্যয়ন করতে হবে। স্বস্ত্যয়ন করে ভাল করা, — সিদ্ধাই। অহংকারে ঈশ্বরলাভ হয় না। অহংকার কিরূপ হান? যেন উঁচু ঢিপি, বৃষ্টির জল জমে না, গড়িয়ে যায়। নিচু জমিতে জল জমে আর অঙ্কুর হয়; তারপর গাছ হয়; তারপর ফল হয়।”}
ठाकुरदेव की भाषा में प्रह्लाद का उदाहरण देकर वेदान्त की परिभाषा
सभी से प्रेम करना चाहिए। कोई पराया नहीं है।
सब प्राणियों में श्रीहरि (नृसिंह भगवान) का ही वास हैं।
🔆सकलके भालो बासते होय। केउ पर नय। सर्वभूतेई सेई हरिई आछेन। 🔆
[ সকলকে ভালবাসতে হয়। কেউ পর নয়। সর্বভূতেই সেই হরিই আছেন।]
"इसीलिए हाजरा से कहता हूँ कि-- "कभी मत सोचो कि तुम अकेले ही सच्ची समझ रखते हो और बाकि सब मूर्ख हैं।'' सभी से प्रेम करना चाहिए। कोई पराया नहीं है। सब प्राणियों में श्रीहरि (नृसिंह भगवान) का ही वास हैं। उन्हें छोड़ किसी भी वस्तु का अस्तित्व नहीं है ।"
Therefore I say to Hazra, 'Never think that you alone have true understanding and that others are fools.' One must love all. No one is a stranger. It is Hari alone who dwells in all beings. Nothing exists without Him.]
[“হাজরাকে তাই বলি, আমি বুঝেছি, আর সব বোকা — এ-বুদ্ধি করো না। সকলকে ভালবাসতে হয়। কেউ পর নয়। সর্বভূতেই সেই হরিই আছেন। তিনি ছাড়া কিছুই নাই।"
[श्रीठाकुरजी ने (नृसिंह भगवान ने) प्रह्लाद से कहा, 'मुझसे कोई वरदान मांगो।' प्रह्लाद ने कहा, 'आपके दर्शन हो गये' -इतना ही पर्याप्त है , मुझे और कुछ नहीं चाहिए। श्री ठाकुरजी ने न छोड़ा। तब प्रह्लाद ने कहा, 'यदि आप मुझे वरदान देना ही चाहते , तो यही वर दें कि -'मुझे जिन लोगों ने कष्ट दिया है , उन्हें दण्ड न भुगतना पड़े ! ' इसका अर्थ यह हुआ कि , वे श्रीहरि ही थे जिन्होंने अत्याचारी के रूप में प्रह्लाद को यातनायें दी थीं , और यदि बदले में उन्हें (अत्याचारी चंगेजखान को) दण्ड मिलता है, तो वह कष्ट भी श्रीहरि को ही भुगतना होगा !
The Lord said to Prahlada, 'Ask a boon of Me.' 'I have seen You', replied Prahlada. 'That is enough. I don't need anything else.' But the Lord insisted. Thereupon Prahlada said, 'If You must give me a boon, let it be that those who have tortured me may not have to suffer punishment.' The meaning of those words is that it was God who tortured Prahlada in the form of his persecutors चंगेजखान?, and, if they suffered punishment, it would really be God who suffered.
{প্রহ্লাদকে ঠাকুর বললেন, তুমি বর নাও। প্রহ্লাদ বললেন, আপনার দর্শন পেয়েছি, আমার আর কিছু দরকার নাই। ঠাকুর ছাড়লেন না। তখন প্রহ্লাদ বললেন, যদি বর দেবে, তবে এই বর দেও, আমায় যারা কষ্ট দিয়েছে তাদের অপরাধ না হয়। " “এর মানে এই যে, হরি একরূপে কষ্ট দিলেন। সেই লোকদের কষ্ট দিলে হরির কষ্ট হয়।”
(३)
[(21 सितंबर,1884), श्रीरामकृष्ण वचनामृत-92]
🔆🙏ॐ क्षौं क्षौं🔆🙏 ~मानसिक तनाव दूर करने का चमत्कारी मंत्र
[प्रेमोन्माद , भक्ति का उन्माद - 'क्षौं क्षौं खट्वांगधारिणी~ और ज्ञानोन्माद]
🔆🙏 प्रेमोन्माद , भक्ति का उन्माद और ज्ञानोन्माद तथा जाति-विचार🔆🙏
[पूर्ववृत्त 1857 ई. में - दक्षिणेश्वर काली मंदिर की स्थापना के बाद
'एक बुद्धिमान पागल का दर्शन '
[পূর্বকথা ১৮৫৭ — কালীমন্দির প্রতিষ্ঠার পর জ্ঞানীপাগলদর্শন — হলধারী ]
श्रीरामकृष्ण - श्रीमती (राधिका-Bh) को प्रेमोन्माद था । और भक्ति का उन्माद भी है जैसे हनुमान को हुआ था । सीताजी को अग्नि में प्रवेश करते हुए देखकर वे रामचन्द्र को मारने चले थे । एक और ज्ञानोन्माद है। एक ज्ञानी को मैंने पागल की तरह देखा था । कालीमन्दिर की प्रतिष्ठा के कुछ ही समय बाद की बात है । लोगों ने कहा, वह राममोहन राय की ब्राह्मसभा का एक आदमी था । एक पैर में फटा जूता था, हाथ में बाँस की पतली छड़ी, और एक हण्डी में लगा आम का पौधा । गंगाजी में उसने डुबकी लगायी, फिर कालीमन्दिर में गया । हलधारी उस समय काली मन्दिर में बैठा था । वह मस्त होकर स्तवपाठ करने लगा - 'ॐ क्षौं क्षौं खट्वांगधारिणी ^' आदि ।
(^ खट्वांग - शिव के हाथ का एक आयुध। इसमें दंड के ऊपर पशु के खुर के बीच मानव खोपड़ी लगी होती है !^ Khatwang - An armament of Shiva's hand. In this, the human cranium is attached between the hoof of the animal above the Rod .]
"Radha was mad with prema, ecstatic love of God. But there is also the madness of bhakti. Hanuman's was such. When he saw Sita entering the fire he was going to kill Rama. Then, too, there is the madness of Knowledge I once saw a jnani behaving like a madman. He came here very soon after the temple garden was dedicated. People said he belonged to the Brahmo Sabha of Rammohan Roy. He had a torn shoe on one foot, a stick in one hand, and a potted mango-plant in the other. After, a dip in the Ganges he went to the Kali temple where Haladhari was seated. With great fervour he began to chant a hymn --'क्षौं क्षौं खट्वांगधारिणी ^' to the Divine Mother.
[শ্রীরামকৃষ্ণ — শ্রীমতীর প্রেমোন্মাদ। আবার ভক্তি-উন্মাদ আছে। যেমন হনুমানের। সীতা আগুনে প্রবেশ করেছে দেখে রামকে মারতে যায়। আবার আছে জ্ঞানোন্মআদ। একজন জ্ঞানী পাগলের মতো দেখে ছিলাম। কালীবাড়ির সবে প্রতিষ্ঠার পর। লোকে বললে, রামমোহন রায়ের ব্রাহ্মসভার একজন। একপায়ে ছেঁড়া জুতা, হাতে কঞ্চি আর একটি ভাঁড়, আঁবচারা। গঙ্গায় ডুব দিলে। তারপর কালীঘরে গেল। হলধারী তখন কালীঘরে বসে আছে। তারপর মত্ত হয়ে স্তব করতে লাগল —ক্ষ্রৌং ক্ষ্রৌং খট্টাঙ্গধারিণীম্ ইত্যাদি
“कुत्ते के पास पहुँचकर उसने उसके कान पकड़ उसका जूठा खाया । कुत्ते ने कुछ भी न किया । मेरी भी उस समय यही अवस्था हो चली थी । मैं हृदय के गले से लिपटकर कहने लगा - क्यों रे हृदय, क्या मेरी भी यही दशा होगी ?
Then he went up to a dog, held it by the ear, and ate some of its food. The dog didn't mind. Just at that time I too was about to experience the state of divine madness. I threw my arm around Hriday's neck and said, 'Oh, Hride! Shall I too fall into that plight?'
[“কুকুরের কাছে গিয়ে কান ধরে তার উচ্ছিষ্ট খেলে — কুকুর কিছু বলে নাই। আমারও তখন এই অবস্থা আরম্ভ হয়েছে। আমি হৃদের গলা ধরে বললাম, ওরে হৃদে, আমারও কি ওই দশা হবে?
[(21 सितंबर,1884), श्रीरामकृष्ण वचनामृत-92 ]
🔆 ज्ञानोन्माद अवस्था (divine madness) में जाति-भेद समाप्त🔆🙏
"मेरी उन्माद-अवस्था थी । नारायण शास्त्री ने आकर देखा, कन्धे पर एक बाँस रखकर टहल रहा था । तब उसने आदमियों से कहा - अः ! इसे तो उन्माद हो गया है । उस अवस्था में जाति का कोई विचार नहीं रहता था । एक आदमी नीच जाति का था, उसकी स्त्री शाक बनाकर भेजती थी और मैं खाता था ।
I became mad. Narayan Shastri came here and saw me roaming about with a bamboo pole on my shoulder. He said to the people, 'Ah, he is mad!' In that state I could not observe any caste restrictions. The wife of a low-caste man used to send me cooked greens, and I ate them.
[“আমার উন্মাদ অবস্থা! নারায়ণ শাস্ত্রী এসে দেখলে, একটা বাঁশ ঘাড়ে করে বেরাচ্ছি। তখন সে লোকদের কাছে বললে ওহ্, উন্মস্ত্ হ্যায়। সে অবস্থায় জাত বিচার কিছু থাকতো না। একজন নীচ জাতি, তার মাগ শাক রেঁধে পাঠাতো, আমি খেতুম।"
[(21 सितंबर,1884), श्रीरामकृष्ण वचनामृत-92 ]
🔆🙏तबले के बोल मुख से कहना सरल हाथों से निकालना बहुत कठिन🔆🙏
"कालीमन्दिर में कंगले खा जाते थे, मैं उनकी जूठी पत्तलें सिर पर और मुँह में छुआता था । हलधारी ने तब मुझसे कहा, 'तू कर क्या रहा है ? कंगलों का जूठा तूने खा लिया ? अरे, तेरे बच्चों का अब विवाह कैसे होगा ?" तब मुझे बड़ा गुस्सा आया । हलधारी मेरा दादा लगता था; परन्तु इससे क्या ? मैंने कहा - क्यों रे ! तू यही गीता और वेदान्त पढ़ता है ? यही तू लोगों को सिखलाता है, ब्रह्म सत्य है और संसार मिथ्या ? तूने खूब सोच रखा है, मेरे लड़के बच्चे भी होंगे ? आग लगे ऐसे तेरे गीता पढ़ने में ।’
"I touched my head and lips with the leaf-plates from which the beggars ate their food in the guest-house of the Kali temple. Thereupon Haladhari said to me: 'What have you done? You have taken the food left by beggars. How will you marry off your children?'13 These words aroused my anger. Haladhari was my cousin, older than myself. But could that restrain me? I said to him: 'You wretch! Isn't it you who take pride in the study of the Gita and the Vedanta? Isn't it you who teach people that Brahman alone is real and the world illusory? And yet you imagine that I shall beget children! May your mouth that recites from the Gita be blighted!'
[“কালীবাড়িতে কাঙালীরা খেয়ে গেল, তাদের পাতা মাথায় আর মুখে ঠেকালুম। হলধারী তখন আমায় বললে, তুই করছিস কি? কাঙালীদের এঁটো খেলি, তোর ছেলেপিলের বিয়ে হবে কেমন করে? আমার তখন রাগ হল। হলধারী আমার দাদা হয়। তাহলে কি হয়? তাকে বললাম, তবে রে শ্যালা, তুমি না গীতা, বেদান্ত পড়? তুমি না শিখাও ব্রহ্ম সত্য, জগৎ মিথ্যা? আমার আবার ছেলেপুলে হবে তুমি ঠাউরেছ! তোর গীতাপাঠের মুখে আগুন!
(मास्टर से) "देखो, सिर्फ पढ़ने और लिखने से कुछ नहीं होता । तबले के बोल आदमी कह खूब सकता है, परन्तु हाथ से निकालना बड़ा मुश्किल है ।"
(To M.) "You see, mere study of books avails nothing. One may recite the written part for the drum glibly from memory, but to play the drum is exceedingly difficult."
{(মাস্টারের প্রতি) — “দেখ, শুধু পড়াশুনাতে কিছু হয় না। বাজনার বোল লোকে মুখস্থ বেশ বলতে পারে, হাতে আনা বড় শক্ত!”
[(21 सितंबर,1884), श्रीरामकृष्ण वचनामृत-92 ]
🔆🙏बजरा पर नवद्वीप की सैर - बाल्य सखा चीने शंखारी के साथ समदर्शी भाव🔆🙏
श्रीरामकृष्ण फिर अपनी ज्ञानोन्माद-अवस्था (divine madness) का वर्णन कर रहे हैं –
ঠাকুর আবার নিজের জ্ঞানোন্মাদ অবস্থা বর্ণনা করিতেছেন।
The Master continued with the description of his divine madness:
"सेजो (मथुर) बाबू के साथ कुछ दिन बजरा (house-boat) पर खूब सैर की । उसी यात्रा में नवद्वीप भी गया था । बजरे में देखा, केवट खाना पका रहे थे । उसके पास में खड़ा हुआ था । सेजो बाबू ने कहा, बाबा, वहाँ क्या कर रहे हो ? मैंने हँसकर कहा, ये केवट बड़ा अच्छा खाना पका रहे हैं । सेजो बाबू समझ गये कि ये अब माँगकर भी खा सकते हैं । इसलिए कहा, बाबा, वहाँ से चले आओ ।
"Once, for a few days, I was out on an excursion with Mathur Babu in his house-boat. We took the trip for a change of air. During that trip we visited Navadvip. One day I saw the boatmen cooking their meal and stood and watched them. Mathur said to me, 'What are you doing there?' I replied with a smile, 'The boatmen are cooking, and their food looks very good.' Mathur felt that I might ask the boatmen to give me a portion of their food; so he said: 'Come away! Come away!'
[“সেজোবাবুর সঙ্গে কদিন বজরা করে হাওয়া খেতে গেলাম। সেই যাত্রায় নবদ্বীপেও যাওয়া হয়েছিল। বজরাতে দেখলাম মাঝিরা রাঁধছে। তাদের কাছে দাঁড়িয়ে আছি, সেজোবাবু বললে, বাবা ওখানে কি করছ? আমি হেসে বললাম, মাঝিরা বেশ রাঁধছে। সেজোবাবু বুঝেছে যে, ইনি এবারে চেয়ে খেতে পারেন! তাই বললে বাবা সরে এসো সরে এসো!
"परन्तु अब वैसा नहीं होता । वह अवस्था अब नहीं है । अब तो ब्राह्मण हो, आचारी हो, श्रीठाकुरजी का प्रसाद हो, तभी खा सकता हूँ ।
"But I cannot do such a thing now. I am no longer in that mood. Now the food must be cooked by a brahmin observing ceremonial purity, and be offered to the Deity; then only can I eat it.
[“এখন কিন্তু আর পারি না। সে অবস্থা এখন নাই। এখন ব্রাহ্মণ হবে, আচারী হবে, ঠাকুরের ভোগ হবে, তবে ভাত খাব।
"ओह , कैसी कैसी अवस्थाएँ सब पार हो गयी हैं ! कामारपुकुर में मेरे बचपन का दोस्त चीने शँखारी तथा अन्य मित्रों से मैंने कहा था -' देखो , मैं तुम्हारे पैर पड़ता हूँ , बस एक बार 'हरि बोलो ', तुमसे विनती करता हूँ बस एक बार श्रीहरि का नाम लो ! सबके पैर भी पड़ने चला था । तब चीने ने कहा - ' अरे , तुम्हारे प्रेमोन्माद का यह प्रथम आवेग है , इसीलिए यह समदर्शी भाव आया है !' पहले पहल आँधी के आने पर जब धूल उड़ती है, तब आम और इमली सब एक जान पड़ते हैं । कौनसा आम है, और कौनसी इमली, यह समझ में नहीं आता ।"
[ब्राह्मण होकर भी शूद्र (कहार) मित्र-जनार्दन प्रसाद का भी पैर छूना चाहते हो , जूठा खाना चाहते हो ? ब्राह्मण और चाण्डाल में कोई भेद नहीं देखते ?]
"Oh, what moods I passed through! At Kamarpukur I said to Chine Sankhari and the other chums of my boyhood days, 'Oh, I fall at your feet and beg of you to utter the name of Hari.' I was about to prostrate myself before them all. Thereupon Chine said, 'This is the first outburst of your divine love; so you don't see any distinction between one man and another.' When the storm breaks and raises the dust, then mango and tamarind trees look the same. One cannot distinguish the one from the other."
{“কি অবস্থা সব গেছে! দেশে চিনে শ্যাঁকারী আর আর সমবয়সীদের বললাম, ওরে তোদের পায়ে পড়ি একবার হরিবোল বল! সকলের পায়ে পড়তে যাই! তখন চিনে বললে, ওরে তোর এখন প্রথম অনুরাগ তাই সব সমান বোধ হয়েছে। প্রথম ঝড় উঠলে যখন ধুলা উড়ে তখন আমগাছ তেঁতুলগাছ সব এক বোধ হয়। এটা আমগাছ এটা তেঁতুলগাছ চেনা যায় না।”
[(21 सितंबर,1884), श्रीरामकृष्ण वचनामृत-92 ]
🔆🙏क्या गृहस्थ भी सर्वस्व त्याग करेंगे ? केशव सेन की शंका🔆🙏
एक भक्त - यह भक्ति का उन्माद, प्रेम का उन्माद या ज्ञान का उन्माद अगर संसारी आदमी (गृहस्थ) को हो तो भला कैसे चल सकता है ?
[ यदि कोई गृहस्थ व्यक्ति (बिजनेस मैन या राजा) भी इस प्रकार के प्रेमोन्माद , भक्ति का उन्माद या ज्ञानोन्माद के आवेग से अभिभूत हो गया , तो फिर वह अपने गृहस्थ धर्म/राज-धर्म का पालन कैसे कर सकेगा ? ]
"How can a householder keep on with his worldly duties if he is overwhelmed by such bhakti-madness or Love-madness or Knowledge-madness?"
{একজন ভক্ত — এই ভক্তি উন্মাদ, কি প্রেম উন্মাদ, কি জ্ঞান উন্মাদ, সংসারী লোকের হলে কেমন করে চলবে?
[(21 सितंबर,1884), श्रीरामकृष्ण वचनामृत -92]
🔆🙏 योगी दो तरह के होते हैं - प्रकट और छिपे ; राजर्षि जनक छुपे योगी थे !🔆🙏
[गृहस्थ (जिसने विवाह किया है) के लिए मन से त्याग है, बाहर से नहीं ।]
श्रीरामकृष्ण - (संसारी भक्तों को देखकर) - योगी दो तरह के होते हैं । एक व्यक्त योगी और दूसरे गुप्त योगी । संसार (गृहस्थ जीवन) में गुप्त योगी होते हैं । उन्हें कोई समझते नहीं । संसारी के लिए मन से त्याग है, बाहर से नहीं ।
[योगी दो प्रकार के होते हैं, 'प्रकट' और 'छिपे हुए'। गृहस्थ एक 'छिपा हुआ' योगी हो सकता है।उसे कोई नहीं पहचानता। गृहस्थ को बाह्य रूप से (त्याग) नहीं करना चाहिए, मानसिक रूप से ऐषणाओं (कामिनी-कांचन और नामयश में अनासक्त होना चाहिए ।"]
"There are two kinds of yogis, the 'revealed' and the 'hidden'. The householder may be a 'hidden' yogi. None recognizes him. The householder should renounce mentally, not outwardly."
{ শ্রীরামকৃষ্ণ (সংসারীভক্ত দৃষ্টে) — যোগী দুরকম। ব্যক্ত যোগী আর গুপ্ত যোগী। সংসারে গুপ্ত যোগী। কেউ তাকে টের পায়ে না। সংসারীর পক্ষে মনে ত্যাগ, বাহিরে ত্যাগ নয়।
राम - आपकी बच्चों को फुसलाकर समझानेवाली बात है । संसारी (गृहस्थ) ज्ञानी हो सकता है, पर विज्ञानी (संन्यासी ?) नहीं हो सकता ।
RAM: "You talk as if you were consoling children. A householder may be a jnani but never a vijnani."
[রাম — আপনার ছেলে ভুলানো কথা। সংসারে জ্ঞানী হতে পারে বিজ্ঞানী হতে পারে না।
श्रीरामकृष्ण - वह अन्त में चाहे तो विज्ञानी (संन्यासी) हो सकता है । पर जबरन संसार छोड़ना अच्छा नहीं ।
"He may become a vijnani in the end. But it is not good to force oneself into renunciation."
{শ্রীরামকৃষ্ণ — শেষে বিজ্ঞানী হয় হবে। জোর করে সংসারত্যাগ ভাল নয়।
राम - केशव सेन कहते थे, उनके पास आदमी इतना क्यों जाते हैं ? एक दिन चुपचाप जब डंक चुभो देंगे तब भागना होगा ।
"Keshab Sen used to say: 'Why do people go to him so much? One day he will sting them and they will flee from him.'
{রাম — কেশব সেন বলতেন, ওঁর কাছে লোকে অত যায় কেন? একদিন কুটুস করে কামড়াবেন, তখন পালিয়ে আসতে হবে।
[(21 सितंबर,1884), श्रीरामकृष्ण वचनामृत-92 ]
🔆🙏अपने गृहस्थ धर्म का पालन करते हुए, ईश्वर को भी पुकारो ! 🔆🙏
[एओ कर, ओओ कर ; संसारओ कर; ईश्वरकेओ डाक !]
[এও কর, ওও কর; সংসারও কর; ঈশ্বরকেও ডাক।]
[Do your worldly duties and call on God as well.]
श्रीरामकृष्ण – डंक चुभों क्यों दूंगा ? मैं तो आदमियों से कहता हूँ, यह भी करो और वह भी करो । संसार भी करो और ईश्वर को भी पुकारो । सब कुछ छोड़ने के लिए तो मैं कहता नहीं । (हँसकर) केशव सेन ने एक दिन लेक्चर दिया । कहा 'हे ईश्वर ऐसा करो कि हम लोग भक्ति-नदी में गोते लगा सकें और गोते लगाकर सच्चिदानन्द-सागर में पहुँच जायँ ।'
"Why should I sting people? I say to people: 'Do this as well as that. Do your worldly duties and call on God as well.' I don't ask them to renounce everything. (With a smile) One day Keshab was delivering a lecture. He said, 'O Lord, grant us that we may dive into the river of divine love and go straight to the Ocean of Satchidananda.'
{শ্রীরামকৃষ্ণ — কুটুস করে কেন কামড়াব? আমি তো লোকদের বলি, এও কর, ওও কর; সংসারও কর; ঈশ্বরকেও ডাক। সব ত্যাগ করতে বলি না। (সহাস্যে) কেশব সেন একদিন লেকচার দিলে; বললে, ‘হে ঈশ্বর, এই কর, যেন আমরা ভক্তিনদীতে ডুব দিতে পারি, আর ডুব দিয়ে যেন সচ্চিদানন্দ-সাগরে গিয়ে পড়ি’।
स्त्रियाँ सब 'चिक' की ओट में बैठी थीं । मैंने केशव से कहा, 'एक ही साथ सब आदमियों के गोते लगाने से कैसे होगा ? तो इन लोगों(स्त्रियों) की दशा क्या होगी ? कभी कभी किनारे पर लग जाया करना । फिर गोते लगाना, फिर ऊपर आना ।' केशव और दूसरे लोग हँसने लगे ।
The ladies were seated behind the screen. I said to Keshab, 'How can you all dive once for all?' Pointing to the ladies', I said: 'Then what would happen to them? Every now and then you must return to dry land. You must dive and rise alternately.' Keshab and the others laughed.
মেয়েরা সব চিকের ভিতরে ছিল। আমি কেশবকে বললাম, একেবারে সবাই ডুব দিলে কি হবে! তাহলে এদের (মেয়েদের) দশা কি হবে? এক-একবার আড়ায় উঠো; আবার ডুব দিও, আবার উঠো! কেশব আর সকলে হাসতে লাগল।
🔆🙏 $$ 🔆🙏"हाजरा कहता है, 'तुम रजोगुणी आदमियों को बड़ा प्यार करते हो, जिनके रुपया-पैसा, मान-मर्यादा खूब है ।’ (हाजरा मुझसे कहता हैं, 'तुम सबसे अधिक प्रेम उन लोगों से करते हो जो रजोगुण- संपन्न हैं, जिनके पास बहुत धन, नाम और प्रसिद्धि है !) अगर ऐसी बात है तो हरीश, लाटू, इन्हें क्यों प्यार करता हूँ ? नरेन्द्र को क्यों प्यार करता हूँ ? उसके तो भूना भण्टा खाने को नमक भी नहीं है ।
🔆🙏 $$ 🔆🙏Hazra says to me, 'You love most those endowed with rajas, those who have great wealth and name and fame.' If that is so, then why do I love people like Harish and Noto? (Referring to Latu.) Why do I love Narendra? He can't even afford salt to season his roast banana!"
হাজরা বলে, তুমি রজোগুণী লোক বড় ভালবাস। যাদের টাকা-কড়ি মান-সম্ভ্রম, খুব আছে। তা যদি হল তবে হরিশ, নোটো ওদের ভালবাসি কেন? নরেন্দ্র্রকে কেন ভালবাসি? তার তো কলাপোড়া খাবার নুন নাই!
श्रीरामकृष्ण कमरे से बाहर आये; मास्टर से बातचीत करते हुए झाऊतत्ले की ओर जा रहे हैं । एक भक्त गडुआ और अँगौछा लेकर साथ साथ जा रहे हैं । श्रीरामकृष्ण कलकत्तें में आज 'चैतन्यलीला' नाटक देखने जायेंगे, उसी की बाते हो रही हैं । श्रीरामकृष्ण - (मास्टर से )- राम सब रजोगुण की बातें कह रहा है । इतने अधिक दाम खर्च करके बैठने की क्या जरूरत है? बाक्स का टिकट न लिया जाय, श्रीरामकृष्ण का यह उद्देश्य है ।
Sri Ramakrishna left his room and went toward the pine-grove talking with M. A devotee followed them with water and towel. The Master was talking about his intended visit to the Star Theatre. He said to M.: "What Ram says applies to rajasic people. What is the use of reserving an expensive seat?"
[শ্রীরামকৃষ্ণ ঘরের বাহিরে আসিলেন ও মাস্টারের সহিত কথা কহিতে কহিতে ঝাউতলার দিকে যাইতেছেন। একটি ভক্ত গাড়ু ও গামছা লইয়া সঙ্গে সঙ্গে যাইতেছেন। কলিকাতায় আজ চৈতন্যলীলা দেখিতে যাইবেন সেই কথা হইতেছে। শ্রীরামকৃষ্ণ (মাস্টারের প্রতি, পঞ্চবটীর নিকট) — রাম সব রজোগুণের কথা বলছে। এত বেশিদাম দিয়ে বসবার কি দরকার। বক্সের টিকিট লইবার দরকার নাই ঠাকুর বলিতেছেন।
(४)
परिच्छेद ~ 92
[(21 सितंबर,1884), श्रीरामकृष्ण वचनामृत-92 ]
🔆🙏हाथीबागान में भक्त के घर । श्री महेन्द्र मुखर्जी की सेवा🔆🙏
श्रीरामकृष्ण श्रीयुत महेन्द्र मुखर्जी की गाड़ी पर चढ़कर दक्षिणेश्वर से कलकत्ता आ रहे हैं । आज रविवार है, 21 सितम्बर, 1884 । दिन के पाँच का समय है । गाड़ी में महेन्द्र मुखर्जी, मास्टर और दो-एक व्यक्ति और हैं । गाड़ी के कुछ बढ़ते ही ईश्वरचिन्तन करते हुए श्रीरामकृष्ण भाव-समाधि में मग्न हो गये ।
About five o'clock that afternoon Sri Ramakrishna was on his way to Calcutta. M., Mahendra Mukherji, and a few other devotees accompanied him in Mahendra's carriage. Thinking of God, the Master soon went into an ecstatic mood.
[শ্রীরামকৃষ্ণ শ্রীযুক্ত মহেন্দ্র মুখুজ্জের গাড়ি করিয়া দক্ষিণেশ্বর হইতে কলিকাতায় আসিতেছেন। রবিবার, ৬ই আশ্বিন, ২১শে সেপ্টেম্বর, ১৮৮৪; আশ্বিন শুক্লা দ্বিতীয়া। বেলা ৫টা। গাড়ির মধ্যে মহেন্দ্র মুখুজ্জে, মাস্টার ও আরও দু-একজন আছেন। একটু যাইতে যাইতে ঈশ্বরচিন্তা করিতে করিতে ঠাকুর ভাবসমাধিতে মগ্ন হইলেন।
बड़ी देर के बाद समाधि छूटी । श्रीरामकृष्ण कह रहे हैं, “ हाजरा आबार आमाय शेखाये ! श्याला!" अब हाजरा भी मुझे शिक्षा देता है ! कुछ देर बाद फिर कह रहे हैं - में पानी पीऊँगा । बाह्य संसार में मन को उतारने के लिए समाधि के भंग होने पर प्रायः श्रीरामकृष्ण यह बात कहते थे ।
After a long time he regained consciousness of the world, He observed: "That fellow Hazra dares teach me! The rascal!" After a short pause he said, "I shall drink some water." He often made such remarks in order to bring his mind down to the sense plane.]
[ অনেকক্ষণ পরে সমাধিভঙ্গ হইল। ঠাকুর বলিতেছেন, “হাজরা আবার আমায় শেখায়! শ্যালা!” কিয়ৎক্ষণ পরে বলিতেছেন, “আমি জল খাব।” বাহ্য জগতে মন নামাইবার জন্য ঠাকুর ওই কথা প্রায়ই সমাধির পর বলিতেন।
महेन्द्र मुखर्जी – (मास्टर से) - तो कुछ जलपान के लिए मँगा लिया जाय ।
MAHENDRA (to M.): "May I get some refreshments for him?"
[মহেন্দ্র মুখুজ্জে (মাস্টারের প্রতি) — তাহলে কিছু খাবার আনলে হয় না?
मास्टर - नहीं, इस समय ये न खायेंगे ।
[মাস্টার — ইনি এখন খাবেন না।
M: "No, he won't eat anything now."
श्रीरामकृष्ण - (भावस्थ) - मैं खाऊँगा और थोड़ा फ्रेश भी होऊँगा ।
[শ্রীরামকৃষ্ণ (ভাবস্থ) — আমি খাব; — বাহ্যে যাব।
MASTER (still in ecstatic mood): "I shall eat."
हाथीबागान में महेन्द्र मुखर्जी की आटे की चक्की है । उसी कारखाने में श्रीरामकृष्ण को लिए जा रहे हैं। वहाँ जरा देर विश्राम करके स्टार थियेटर में चैतन्यलीला नाटक देखने जायेंगे । महेन्द्र का मकान बाग-बाजार में है, श्रीमदनमोहनजी के कुछ उत्तर तरफ । श्रीरामकृष्ण को उनके पिता नहीं जानते; इसीलिए महेन्द्र उन्हें घर नहीं ले गये । उनके भाई प्रियनाथ भी श्रीरामकृष्ण के भक्त हैं ।
Mahendra took the Master to his flour-mill located at Hathibagan. After a little rest Sri Ramakrishna was to go to the theatre. Mahendra did not care to take him to his own house, for the Master was not well acquainted with his father. Priyanath, Mahendra's second brother, was also a devotee of the Master.
[মহেন্দ্র মুখুজ্জের হাতিবাগানে ময়দার কল আছে। সেই কলেতে ঠাকুরকে লইয়া যাইতেছেন। সেখানে একটু বিশ্রাম করিয়া স্টার থিয়েটারে চৈতন্যলীলা দেখিতে যাইবেন। মহেন্দ্রের বাড়ি বাগবাজার ৺মদনমোহনজীর মন্দিরে কিছু উত্তরে। পরমহংসদেবকে তাঁহার পিতাঠাকুর জানেন না। তাই মহেন্দ্র ঠাকুরকে বাড়িতে লইয়া যান নাই। তাঁহার দ্বিতীয় ভ্রাতা প্রিয়নাথও একজন ভক্ত।
[মহেন্দ্রের কলে তক্তপোশের উপর সতরঞ্চি পাতা। তাহারই উপরে ঠাকুর বসিয়া আছেন ও ঈশ্বরের কথা কহিতেছেন।
Sri Ramakrishna was sitting on a cot over which a carpet had been spread, and was engaged in spiritual talk.
महेन्द्र के कारखाने में तख्त पर दरी बिछी हुई है । उसी पर श्रीरामकृष्ण बैठे हुए ईश्वर-प्रसंग कर रहे हैं।
[(21 सितंबर,1884), श्रीरामकृष्ण वचनामृत-92 ]
🔆🙏साहस और दुस्साहस के बीच अंतर🔆🙏
(Difference between Courage and Audacity)
श्रीरामकृष्ण – (मास्टर और महेन्द्र से) - चैतन्यचरितामृत (श्रीचैतन्य महाप्रभु की जीवनी) सुनते हुए हाजरा कहता है, 'यह सब शक्ति की लीला है – इसके भीतर विभु नहीं हैं ।' विभु को छोड़कर शक्ति कभी रह सकती है ? यहाँ के मत को उलट देने की चेष्टा ( audacity-ऐसी धृष्टता, दुस्साहस) !
{ ^ विभु = " Omnipresent " सर्वव्यापी-आत्मा (All-pervasive Spirit), ब्रह्म -- वह सबसे बड़ी (बृहद) परम और नित्य चेतन सत्ता जो जगत का मूल कारण और सत्, चित्त, आनन्दस्वरूप (Existence-Consciousness-Bliss) मानी गयी है।)
" Once, while listening to the various incidents of the life of Chaitanya, Hazra said that these were manifestations of Sakti, and that Brahman, the All-pervasive Spirit, had nothing to do with hem. But can there be Sakti without Brahman? Hazra wants to nullify the teachings of this place. (Referring to himself.)
{শ্রীরামকৃষ্ণ (মাস্টার ও মহেন্দ্রের প্রতি) — শ্রীচৈতন্যচরিতামৃত শুনতে শুনতে হাজরা বলে, এ-সব শক্তির লীলা — বিভু এর ভিতর নাই। বিভু ছাড়া শক্তি কখন হয়? এখানকার মত উলটে দেবার চেষ্টা!
[(21 सितंबर,1884), श्रीरामकृष्ण वचनामृत-92 ]
🔆🙏ब्रह्म (दिव्यता) बिभूरुप से सर्वभूतों में हैं -
Each soul is potentially divine:🔆🙏
"मैं जानता हूँ, ब्रह्म और शक्ति अभेद हैं । जैसे जल और उसकी हिमशक्ति, अग्नि और उनकी दाहिका शक्ति । ब्रह्म विभु (the All-pervasive Consciousness,दिव्यता-चैतन्य) के रूप से सर्व भूतों में विराजमान हैं, परन्तु कहीं उनकी शक्ति का अधिक और कहीं कम प्रकाश है । हाजरा यह भी कहता है, 'ईश्वर को पा जाने पर उन्हीं की तरह मनुष्य षड़ैश्वर्यशाली हो जाता है । षड़ैश्वर्य रहेंगे जरूर, फिर वह उन्हें अपने काम में लाये या न लाये ।’"
"I have realized that Brahman and Sakti are identical, like water and its wetness, like fire and its power to burn. Brahman dwells in all beings as the Bibhu; the All-pervasive Consciousness, though Its manifestation is greater in some places than in others. Hazra says, further, that anyone who realizes God must also acquire God's supernatural powers; that he possesses these powers, though he may or may not use them."
[“আমি জানি, ব্রহ্ম আর শক্তি অভেদ। যেমন জল আর জলের হিমশক্তি। অগ্নি আর দাহিকা শক্তি। তিনি বিভুরূপে সর্বভূতে আছেন; তবে কোনওখানে বেশি শক্তির, কোনখানে কম শক্তির প্রকাশ। হাজরা আবার বলে, ভগবানকে পেলে তাঁর মতো ষড়ৈশ্বর্যশালী হয়, ষড়ৈশ্বর্য থাকবে ব্যবহার করুক আর না করুক।
[(21 सितंबर,1884), श्रीरामकृष्ण वचनामृत -92]
🔆🙏गुरुगिरि करने वाले ही नाम-यश चाहते हैं, शुद्ध भक्त कभी षडैश्वर्य नहीं चाहता🔆🙏
(A pure devotee never wants Supernatural Powers )
मास्टर - षड़ैश्वर्य (अलौकिक शक्ति) मुट्ठी में रहने चाहिए । (सब हँसते हैं ।)
M: "Yes, one must have control over these supernatural powers!" (All laugh.)
[মাস্টার — ষড়ৈশ্বর্য হাতে থাকা চাই। (সকলের হাস্য)
श्रीरामकृष्ण - (सहास्य) - हाँ, मुट्ठी में रहने चाहिए । कैसी हीन बुद्धि हैं । जिसने ऐश्वर्य का कभी भोग नहीं किया, वह 'ऐश्वर्य ऐश्वर्य' चिल्लाकर अधीर होता है । जो शुद्ध भक्त है, वह कभी ऐश्वर्य के लिए प्रार्थना नहीं करता ।
"Yes, one must have them in one's grasp! How mean! He who has never enjoyed power and riches becomes impatient for them. But a true devotee never prays to God for them."
{ শ্রীরামকৃষ্ণ (সহাস্যে) — হাঁ, হাতে থাকা চাই! কি হীনবুদ্ধি! যে ঐশ্বর্য কখন ভোগ করে নাই, সেই ঐশ্বর্য ঐশ্বর্য করে অধৈর্য হয়। যে শুদ্ধভক্ত সে কখনও ঐশ্বর্য প্রার্থনা করে না।
श्रीरामकृष्ण शौच को जायेंगे । महेन्द्र ने गडुए में पानी मँगवाया और गडूए को खुद हाथ में ले लिया । श्रीरामकृष्ण को साथ लेकर मैदान की ओर जायेंगे । श्रीरामकृष्ण ने सामने मणि को देखकर महेन्द्र से कहा, तुम्हें न लेना होगा, इन्हें दे दो । मणि गडुआ लेकर श्रीरामकृष्ण के साथ कारखाने के भीतरवाले मैदान की ओर गये ।
[কলবাড়িতে পান সাজা ছিল না। ঠাকুর বলিতেছেন, পানটা আনিয়েলও। ঠাকুর বাহ্যে যাইবেন। মহেন্দ্র গাড়ু করিয়া জল আনাইলেন ও নিজে গাড়ু হাতে করিলেন। ঠাকুরকে সঙ্গে করিয়া মাঠের দিকে লইয়া যাইবেন। ঠাকুর মণিকে সম্মুখে দেখিয়া মহেন্দ্রকে বলিলেন, “তোমার নিতে হবে না — এঁকে দাও?” মণি গাড়ু লইয়া ঠাকুরের সঙ্গে কলবাড়ির ভিতরের মাঠের দিকে গেলেন। মুখ ধোয়ার পর ঠাকুরকে তামাক সেজে দেওয়া হইল।
हाथ-मुख धो चुकने के बाद श्रीरामकृष्ण मास्टर से कह रहे हैं, “क्या सन्ध्या हो गयी ? सन्ध्या होने पर सब काम छोड़कर ईश्वरचिन्तन करना चाहिए ।"
यह कहकर श्रीरामकृष्ण हाथ के रोएँ देख रहे हैं - गिने जा सकते हैं या नहीं । रोएँ अगर न गिने जा सकें तो समझना चाहिए कि सन्ध्या हो गयी ।
Sri Ramakrishna washed his face. A smoke was prepared for him. He said to M.: "Is it dusk. now? If it is, I won't smoke. During the twilight hour of the dusk you should give up all other activities and remember God." Saying this he looked at the hairs on his arm. He wanted to see whether he could count them. If he could not, it would be dusk.
[ঠাকুর মাস্টারকে বলিতেছেন, সন্ধ্যা কি হয়েছে? তাহলে আর তামাকটা খাই না, “সন্ধ্যা হলে সর্ব কর্ম ছেড়ে হরি স্ম রণ করবে।” এই বলিয়া ঠাকুর হাতের লোম দেখিতেছেন — গনা যায় কি না। লোম যদি গনা না যায়, তাহা হইলে — সন্ধ্যা হইয়াছে।
(५)
[(21 सितंबर,1884), श्रीरामकृष्ण वचनामृत-92 ]
🔆🙏स्टार थियेटर में चैतन्यलीला । बॉक्स में श्रीरामकृष्ण-सबकुछ वे ही हुए हैं !🔆🙏
[ बाबूराम, नित्यानन्द-वंश के भक्त, महेंद्र मुखर्जी, गिरीश चन्द्र घोष ]
श्रीरामकृष्ण बीडन स्ट्रीट में स्टार थियेटर के सामने आ गये । रात के साढ़े आठ बजे का .समय होगा । साथ में मास्टर, बाबूराम, महेन्द्र, मुखर्जी तथा दो-एक भक्त और है । टिकट खरीदने का बन्दोबस्त हो रहा है । थियेटर (नाट्यागार) के मैनेजर श्रीयुत गिरीश घोष कुछ कर्मचारियों के साथ श्रीरामकृष्ण की गाड़ी के पास आये । स्वागत करके आदरपूर्वक उन्हें ऊपर ले गये । गिरीश बाबू ने श्रीरामकृष्णदेव का नाम सुना था । वे चैतन्यलीला-अभिनय देखने के लिए आये हैं, यह सुनकर उन्हें बड़ा आनन्द हुआ है । श्रीरामकृष्ण को लोगों ने दक्षिण-पश्चिमवाले बाक्स में बैठाया । पीछे बाबूराम तथा और भी दो-एक भक्त बैठे ।
About half past eight in the evening the carriage with the Master and the devotees drew up in front of the Star Theatre on Beadon Street. He was accompanied by M., Baburam, Mahendra, and two or three others. They were talking about engaging seats, when Girish Chandra Ghosh, the manager of the theatre, accompanied by several officials, came out to the carriage, greeted the Master, and took him and the party upstairs. Girish had heard of the Master and was very glad to see him at the theatre. The Master was conducted to one of the boxes. M. sat next to him; Baburam and one or two devotees sat behind.
[ঠাকুরের গাড়ি বিডন স্ট্রীটে স্টার থিয়েটারের সম্মুখে আসিয়া উপস্থিত। রাত প্রায় সাড়ে আটটা। সঙ্গে মাস্টার, বাবুরাম, মহেন্দ্র মুখুজ্জে ও আরও দু-একটি ভক্ত। টিকিট কিনিবার বন্দোবস্ত হইতেছে। নাট্যালয়ের ম্যানেজার শ্রীযুক্ত গিরিশ ঘোষ কয়েকজন কর্মচারী সঙ্গে ঠাকুরের গাড়ির কাছে আসিয়াছেন অভিবাদন করিয়া তাঁহাকে সাদরে উপরে লইয়া গেলেন। গিরিশ পরমহংশদেবের নাম শুনিয়াছেন। তিনি চৈতন্যলীলা অভিনয় দর্শন করিতে আসিয়াছেন, শুনিয়া পরম আহ্লাদিত হইয়াছেন। ঠাকুরকে দক্ষিণ-পশ্চিমের বক্সে বসানো হইল। ঠাকুরের পার্শ্বে মাস্টার বসিলেন। পশ্চাতে বাবুরাম, আরও দু-একটি ভক্ত।
रंगमंच में बत्ती जल गयी । नीचे बहुत से आदमी बैठे हुए थे । श्रीरामकृष्ण की बाईं और ड्रापसीन दीख पड़ रहा है । कितने ही बाक्सों में भी आदमी आ गये हैं । बाक्स के पीछे से हवा करने के लिए एक एक पंखा झलनेवाला नौकर है । श्रीरामकृष्ण को भी हवा के लिए गिरीश आदमी ठीक कर गये ।रंगमंच देखकर श्रीरामकृष्ण को बालकों की तरह प्रसन्नता हुई है । श्रीरामकृष्ण – (मास्टर से हँसते हुए) - वाह ! यहाँ तो बड़ा अच्छा है । आकर बड़ा अच्छा हुआ । बहुत से आदमियों के एक साथ होने से उद्दीपना होती है । तब मैं यथार्थ ही देखता हूँ कि वे ही सब हुए हैं।
The hall was brilliantly lighted. The Master looked down at the pit and saw that it was crowded. The boxes also were full. For every box there was a man to fan those who occupied it. Sri Ramakrishna was filled with joy and said to M., with his childlike smile: "Ah, it is very nice here! I am glad to have come. I feel inspired when I see so many people together. Then I clearly perceive that God Himself has become everything."
{নাট্যালয় আলোকাকীর্ণ। নিচে অনেক লোক। ঠাকুরের বামদিকে ড্রপসিন দেখা যাইতেছে। অনেকগুলি বক্সে লোক হইয়াছে। এক-একজন বেহারা নিযুক্ত, বক্সের পশ্চাতে দাঁড়াইয়া হাওয়া করিতেছে। ঠাকুরকে হাওয়া করিতে গিরিশ বেহারা নিযুক্ত করিয়া গেলেন।ঠাকুর নাট্যালয় দেখিয়া বালকের ন্যায় আনন্দিত হইয়াছেন।শ্রীরামকৃষ্ণ (মাস্টারের প্রতি, সহাস্যে) — বাঃ, এখান বেশ! এসে বেশ হল। অনেক লোক একসঙ্গে হলে উদ্দীপন হয়। তখন ঠিক দেখতে পাই, তিনিই সব হয়েছেন।
मास्टर - जी हाँ ।
মাস্টার — আজ্ঞা, হাঁ।
M: "It is true, sir."
श्रीरामकृष्ण - यहाँ कितना लेगा ?
[শ্রীরামকৃষ্ণ — এখানে কত নেবে?
MASTER: "How much will they charge us here?"
मास्टर - जी, कुछ न लेंगे । आप आये हैं, इसलिए उन्हें बड़ा हर्ष है ।
M: "They won't take anything. They are very happy that you have come to the theatre."
[মাস্টার — আজ্ঞা, কিছু নেবে না। আপনি এসেছেন ওদের খুব আহ্লাদ।
श्रीरामकृष्ण - सब माँ का माहात्म्य है ।
"It is all due to the grace of the Divine Mother."
{শ্রীরামকৃষ্ণ — সব মার মাহাত্ম্য!
ड्रापसीन उठ गया । एक साथ ही दर्शकों की दृष्टि रंगमंच पर पड़ी । पहले पाप और छ: रिपुओं की सभा थी । फिर अरण्य-मार्ग में विवेक, वैराग्य और भक्ति की बातचीत थी ।
The Chaitanyalila was about to be performed. It was a play about the early life of Sri Chaitanya, who was also known as Nimai, Gaur, Gora, and Gauranga. The curtain rose; the attention of the audience was fixed on the stage. The first scene depicts a council of Sin and the Six Passions. On a forest path behind them walk Viveka, Vairagya, and Bhakti, engaged in conversation.
{ড্রপসিন উঠিয়া গেল। এককালে দর্শকবৃন্দের দৃষ্টি রঙ্গমঞ্চের উপর পড়িল। প্রথমে, পাপ আর ছয় রিপুর সভা। তারপর বনপথে বিবেক, বৈরাগ্য ও ভক্তির কথাবার্তা।
भक्ति कह रही है - नदिया में गौरांग ने जन्म ग्रहण किया है, इसलिए विद्याधरियाँ और ऋषि मुनि छद्मवेश धारण कर उनके दर्शन करने जा रहे हैं । विद्याधरियाँ और ऋषि-मुनि गौरांग को अवतार मानकर उनकी स्तुति कर रहे हैं । वे गा रही हैं : "वास्तव में धन्य है पृथ्वी! गौर का जन्म जो नादिया में हुआ है! देखो, विद्याधारी [अर्धदेवियाँ अर्थात वैसी स्त्रियाँ जो दिव्यभाव में उन्नत हो चुकी हैं - (Demi goddesses - a mortal raised to divine rank)], रथों में उसकी पूजा करने के लिए आ रहे हैं, मुनियों और ऋषियों को देखो, जो उनके प्रेम के जादू से आकर्षित होकर दौड़े जा रहे हैं।"
Bhakti says to her companions: "Gauranga is born in Nadia. Therefore the vidyadharis, (Demigoddesses.) the munis, and the rishis have come down to earth in disguise to pay their respects to him." She sings:Blest indeed is the earth! Gora is born in Nadia!Behold the vidyadharis, coming in chariots to adore him;Behold the munis and rishis, who come, allured by the spell of Love.
[ভক্তি বলিতেছেন, গৌরাঙ্গ নদীয়ায় জন্মগ্রহণ করিয়াছেন। তাই বিদ্যাধরীগণ আর মুনিঋষিগণ ছদ্মবেশে দর্শন করিতে আসিতেছেন। -ধন্য ধরা নদীয়ায় এলো গোরা।দেখ, দেখ না বিমানে বিদ্যাধরীগণে, আসিতেছে হরি দরশনে।দেখ, প্রেমানন্দে হইয়া বিভোল, মুনি ঋষি আসিছে সকল।-ধন্য ধরা নদীয়ায় এলো গোরা।দেখ, দেখ না বিমানে বিদ্যাধরীগণে, আসিতেছে হরি দরশনে।দেখ, প্রেমানন্দে হইয়া বিভোল, মুনি ঋষি আসিছে সকল।
श्रीरामकृष्ण उन्हें देखकर भाव में विभोर हो रहे हैं । मास्टर से कह रहे हैं, अहा ! देखो, कैसा है !
Sri Ramakrishna watched the scene and was overpowered with divine ecstasy. He said to M.: "Look at it! Ah! Ah!"
বিদ্যাধরীগণ আর মুনিঋষিরা গৌরাঙ্গকে ভগবানে অবতারজ্ঞানে স্তব করিতেছেন। ঠাকুর শ্রীরামকৃষ্ণ তাঁহাদের দেখিয়া ভাবে বিভোর হইতেছেন। মাস্টারকে বলিতেছেন, আহা! কেমন দেখো!
विद्याथरियाँ और ऋषि-मुनि गाकर श्रीगौरांग की स्तुति कर रहे हैं –
विद्याधरियों ने जब गाया –ऋषि: हे केशव, अपनी कृपा प्रदान करो, अपने भाग्यहीन सेवकों पर यहाँ! हे केशव, जो प्रसन्न हैं, वृन्दावन के घाटों और उपवनों में घूमने के लिए!
বিদ্যাধরীগণ ও মুনিঋষিগণ গান করিয়া স্তব করিতেছেন:
पुरुषगण - केशव कुरु करुणा दीने कुंज-कानन-चारी ।
পুরুষগণ — কেশব কুরু করুণা দীনে, কুঞ্জকাননচারী।
स्त्रियाँ - माधव मनमोहन मोहन-मुरलीधारी ।
देवियाँ: हे माधव, हमारे मन के मोहक! प्यारे, जो हमारे दिलों को चुरा लेते हैं, तेरी बांसुरी पर मधुरता से बजाते हुए!
স্ত্রীগণ — মাধব মনোমোহন মুহন মুরলীধারী।
सब मिलकर - हरि बोल, हरि बोल, हरि बोल, मन आमार ।
सहगान: जप, हे मन, हरि का नाम, हरि का नाम जोर से गाओ, भगवान हरि के नाम की स्तुति करो!
সকলে — হরিবোল, হরিবোল, হরিবোল, মন আমার ।
पुरुष - ब्रजकिशोर कालीय-हर कातर-भय-भंजन ।
ऋषि: हे ब्रज के शाश्वत युवा, भयंकर कालिया के ताने, पीड़ितों के भय का नाश!
পুরুষগণ — ব্রজকিশোর কালীয়হর কাতর-ভয়-ভঞ্জন।
स्त्रियाँ – नयन बाँका, बाँका शिखिपाखा, राधिका-हृदिरंजन ।
देवियां: धनुषाकार आंखों वाली और धनुषाकार मोर पंख के साथ शिखा, श्री राधा के दिल के आकर्षक!
স্ত্রীগণ — নয়ন বাঁকা, বাঁকা শিখিপাখা, রাধিকা হৃদিরঞ্জন।
पुरुष - गोवर्धन धारण, वनकुसुम - भूषण, दामोदर कंसदर्पहारी ।
ऋषि: गोवर्धन के शक्तिशाली भारोत्तोलक, आप, सभी को माला पहनाई जाती है रेशम के फूलों के साथ!हे दामोदर, कंस का अभिशाप!देवियों: हे अंधेरे, जो आनंद में खेलती हैं प्यारी वृंदावन की गोपी दासियों के साथ।
পুরুষগণ — গোবর্ধনধারণ, বনকুসুমভূষণ, দামোদের কংসদর্পহারী।
स्त्रियाँ - श्याम रासरसबिहारी ।
कोरस: जप, हे मन, हरि का नाम, हरि का नाम गाओ, भगवान हरि के नाम की स्तुति करो !जैसे ही विद्याधरियों ने पंक्तियाँ गाईं, चुभती आँखों वाली प्यारी और धनुषाकार मोर पंख के साथ शिखा! गुरु गहरी समाधि में चले गए।
सब - हरि बोल, हरि बोल, हरि बोल, मन आमार ।
সকলে — হরিবোল, হরিবোল, হরিবোল, মন আমার।
বিদ্যাধরীগণ আর মুনিঋষিরা গৌরাঙ্গকে ভগবানে অবতারজ্ঞানে স্তব করিতেছেন। ঠাকুর শ্রীরামকৃষ্ণ তাঁহাদের দেখিয়া ভাবে বিভোর হইতেছেন। মাস্টারকে বলিতেছেন, আহা! কেমন দেখো! বিদ্যাধরীগণ ও মুনিঋষিগণ গান করিয়া স্তব করিতেছেন: বিদ্যাধরীগণ যখন গাইলেন —নয়ন বাঁকা, বাঁকা শিখিপাখা, রাধিকা-হৃদিরঞ্জন’ তখন ঠাকুর শ্রীরামকৃষ্ণ গভীর-সমাধি-মধ্যে মগ্ন হইলেন। কনসার্ট (ঐকতানবাদ্য) হইতেছে। ঠাকুরের কোন হুঁশ নাই।
ऑर्केस्ट्रा बजता था, लेकिन उसे बाहरी दुनिया का पता नहीं था ‘नयन बाँका, बाँका शिखिपाखा राधिका-हृदिरंजन’(Beloved with the arching eyes, And crest with arching peacock feather!), तब श्रीरामकृष्ण गम्भीर समाधि में मग्न हो गये । कन्सर्ट(concert) में कई वाद्य एक साथ बज रहे हैं । श्रीरामकृष्ण को कोई होश नहीं ।
Sages: O Kesava, bestow Thy grace, Upon Thy luckless servants here! O Kesava, who dost delight, To roam Vrindavan's glades and groves! Goddesses: O Madhava, our mind's Bewitcher! Sweet One, who dost steal our hearts, Sweetly playing on Thy flute! Chorus: Chant, O mind, the name of Hari, Sing aloud the name of Hari, Praise Lord Hari's name! Sages:O Thou Eternal Youth of Braja,Tamer of fierce Kaliya, Slayer of the afflicted's fear!Goddesses: Beloved with the arching eyes And crest with arching peacock feather, Charmer of Sri Radha's heart!Sages: Govardhan's mighty Lifter, Thou,All garlanded with sylvan flowers!O Damodara, Kamsa's Scourge!Goddesses: O Dark One, who dost sport in bliss With sweet Vrindavan's gopi maids.Chorus: Chant, O mind, the name of Hari, Sing aloud the name of Hari,Praise Lord Hari's name!As the vidyadharis sang the lines,Beloved with the arching eyes And crest with arching peacock feather!the Master went into deep samadhi. The orchestra played on, but he was not aware of the outer world
(६)
[(21 सितंबर,1884), श्रीरामकृष्ण वचनामृत-92 ]
🔆🙏चैतन्यलीला-दर्शन । गौर-प्रेम में उन्मत्त श्रीरामकृष्ण🔆🙏
जगन्नाथ मिश्र (श्रीगौरांग के पिता) के घर एक अतिथि आये हैं । बालक निमाई अपने साथियों के साथ आनन्दपूर्वक गा ^ रहे हैं ।
(^इस गीत में बालक गौरांग स्वयं की तुलना कृष्ण के साथ कर रहे हैं ।)
कहाँ मेरा वृन्दावन , कहाँ यशोदा माई।
कहाँ मेरा नन्द पिता ,कहाँ बलाई भाई।।
कहाँ मेरी धवली श्यामली , कहाँ मेरी मोहन मुरली।
श्रीदाम सुदाम राखाल गण कहाँ में पाई।।
कहाँ मेरी यमुना तट , कहाँ मेरी वंशीबट।
कहाँ गोपनारी मेरी , कहाँ हमारी राई।।
কাঁহা মেরা বৃন্দাবন, কাঁহা যশোদা মাই।
কাঁহা মেরা নন্দ পিতা, কাঁহা বলাই ভাই ৷৷
কাঁহা মেরি ধবলী শ্যামলী, কাঁহা মেরি মোহন মুরলী।
শ্রীদাম সুদাম রাখালগণ কাঁহা মে পাই ৷৷
কাঁহা মেরি যমুনাতট, কাঁহা মেরি বংশীবট।
কাঁহা গোপনারী মেরি, কাঁহা হামারা রাই ৷৷
अतिथि आँखें मूँदकर भगवान को भोग लगा रहे हैं । निमाई दौड़कर अतिथि के पास पहुँचे और अतिथि के नैवेद्य को खाने लगे । अतिथि समझ गये कि ये ईश्वर के अवतार हैं । वे दस अवतारों की स्तुति को बालक के सामने पढ़कर उसे प्रसन्न करने लगे । मिश्र और शची के पास से विदा होते समय उन्होंने फिर गाकर स्तुतिपाठ किया –
"जय नित्यानन्द गौरचन्द्र जय जय भवतारण !
अनाथत्राण जीवप्राण भीतमयवारण !
युगे युगे रंग, नव लीला नव रंग,
नव तरंग, नव प्रसंग, धराभार-धारण !
तापहारी प्रेमवारि वितर रासरस-बिहारी,
दीनआश, कलुषनाश, दुष्टत्रासकारण !"
অতিথি চক্ষু বুজিয়া ভগবানকে অন্ন নিবেদন করিতেছেন। নিমাই দৌড়িয়া গিয়া সেই অন্ন ভক্ষণ করিতেছেন। অতিথি ভগবান বলিয়া তাঁহাকে জানিতে পারিলেন ও দশাবতারের স্তব করিয়া প্রসন্ন করিতেছেন। মিশ্র ও শচীর কাছে বিদায় লইবার সময় তিনি আবার গান করিয়া স্তব করিতেছেন —
জয় নিত্যানন্দ গৌরচন্দ্র জয় ভবতারণ।
অনাথত্রাণ জীবপ্রাণ ভীতভয়বারণ ॥
যুগে যুগে রঙ্গ, নব লীলা নব রঙ্গ,
নব তরঙ্গ নব প্রসঙ্গ ধরাভার ধারণ।
তাপহারী প্রেমবারি, বিতর রাসরসবিহারী,
দীনআশ-কলুষনাশ দুষ্ট-ত্রাসকারণ।
स्तुति सुनते ही सुनते श्रीरामकृष्ण को फिर भावावेश हो रहा है ।
স্তব শুনিতে শুনিতে ঠাকুর আবার ভাবে বিভোর হইতেছেন।
अब नवद्वीप के गंगातट का दृश्य आया । गंगा नहाकर ब्राह्मणों की स्त्रियों और पुरुष घाट पर बैठे हुए पूजा कर रहे हैं । निमाई नैवेद्य छीन छीनकर खा रहे हैं । एक ब्राह्मण बहुत गुस्सा हो गये । उन्होंने कहा, क्यों रे दुष्ट, विष्णुपूजा का नैवेद्य छीनता है ? - तेरा सर्वनाश होगा । निमाई ने फिर भी नैवेद्य छीनकर खाया और फिर वहाँ से चल दिया । बहुत सी औरतें थीं, जो उसे बड़ा प्यार करती थीं । निमाई को जाते देखकर उन्हें जो हार्दिक कष्ट हुआ, उसे वे सह न सकीं । वे उच्च स्वर से पुकारने लगी, 'निमाई, लौट आ, निमाई लौट आ', पर निमाई ने उनकी एक न सुनी ।
নবদ্বীপের গঙ্গাতীর — গঙ্গাস্নানের পর ব্রাহ্মণেরা, মেয়ে পুরুষ ঘাটে বসিয়া পূজা করিতেছেন। নিমাই নৈবেদ্য কাড়িয়া খাইতেছেন। একজন ব্রাহ্মণ ভারী রেগে গেলেন, আর বললেন, আরে বেল্লিক! বিষ্ণুপূজার নৈবিদ্যি কেড়ে নিচ্ছিস — সর্বনাশ হবে তোর! নিমাই তবুও কেড়ে নিলেন, আর পলায়ন করিতে উদ্যত হইলেন। অনেক মেয়েরা ছেলেটিকে বড় ভালবাসে। নিমাই চলে যাচ্ছে দেখে তাদের প্রাণে সইল না। তারা উচ্চৈঃস্বরে ডাকিতে লাগিল, নিমাই, ফিরে আয়; নিমাই ফিরে আয়। নিমাই শুনিলেন না।
[(21 सितंबर,1884), श्रीरामकृष्ण वचनामृत-92 ]
🔆🙏 निमाई का उपनयन संस्कार 🔆🙏
स्त्रियों में एक निमाई को लौटाने का महामन्त्र जानती थीं । उसने 'हरि बोल, हरि बोल' कहना आरम्भ कर दिया । बस निमाई 'हरि बोल, हरि बोल' कहते हुए लौट पड़े ।
একজন নিমাইকে ফিরাইবার মহামন্ত্র জানিতেন। তিনি “হরিবোল হরিবোল” বলিতে লাগিলেন। অমনি নিমাই ‘হরিবোল’ ‘হরিবোল’ বলিতে বলিতে ফিরিলেন।
मणि श्रीरामकृष्ण के पास बैठे हुए हैं । कहा – अहा !
মণি ঠাকুরের কাছে বসিয়া আছেন। বলিতেছেন, আহা!
श्रीरामकृष्ण स्थिर न रह सके । 'अहा' कहते हुए मणि की ओर देखकर प्रेमाश्रु वर्षण कर रहे हैं ।
ঠাকুর আর স্থির থাকিতে পারিলেন না। ‘আহা’ বলিতে বলিতে মণির দিকে তাকাইয়া প্রেমাশ্রু বির্সজন করিতেছেন।
श्रीरामकृष्ण - (बाबूराम और मास्टर से) - देखो, अगर मुझे भावसमाधि हो, तो तुम लोग शोरगुल न मचाना; संसारी आदमी समझेंगे - ढकोसला है ।
শ্রীরামকৃষ্ণ (বাবুরাম ও মাস্টারকে) — দেখ, যদি আমার ভাব কি সমাধি হয়, তোমরা গোলমাল করো না। ঐহিকেরা ঢঙ মনে করবে।
[दूसरा दृश्य :] निमाई का उपनयन हो रहा है । निमाई संन्यासी के वेश में हैं । शची और पड़ोसिनें चारों ओर खड़ी हैं । निमाई गाकर भिक्षा माँग रहे हैं ।
दे गो भिक्षा दे।
आमि नूतन योगी फिरि केंदे केंदे।
ओगो ब्रजवासी तोदेर भालोबासी।
ओगो ताइतो आसि, देख माँ उपवासी।
देख माँ द्वारे योगी बोले -'राधे राधे। '
बेला गेलो जेते होबे फिरे ,
एकाकी थाकि माँ यमुनातिरे ,
आँखिनिरे मिशे नीरे ,
चले धीरे धीरे धारा मृदु नादे।
देगो भिक्षा दे ......
अन्य पात्र सब चले गये । निमाई अकेले खड़े हैं । देव और देवियाँ ब्राह्मण और ब्राह्मणियों के वेश में उनकी स्तुति कर रहे हैं –
[Another scene: Nimai is invested with the sacred thread of the brahmins. He puts on the traditional ochre robe of the sannyasi. Mother Sachi and the women of the neighbourhood stand about while he begs for alms, singing:
নিমাই-এর উপনয়ন। নিমাই সন্ন্যাসী সাজিয়াছেন। শচী ও প্রতিবাসিনিগণ চতুর্দিকে দাঁড়াইয়া। নিমাই গান গাইয়া ভিক্ষা করিতেছেন:
দে গো ভিক্ষা দে।
আমি নূতন যোগী ফিরি কেঁদে কেঁদে।
ওগো ব্রজবাসী তোদের ভালবাসি,
ওগো তাইতো আসি, দেখ মা উপবাসী।
দেখ মা দ্বারে যোগী বলে ‘রাধে রাধে’।
বেলা গেল যেতে হবে ফিরে,
একাকী থাকি মা যমুনাতীরে
আঁখিনীরে মিশে নীরে,
চলে ধীরে ধীরে ধারা মৃদু নাদে।
সকলে চলিয়া গেলেন। নিমাই একাকী আছেন। দেবগণ ব্রাহ্মণ-ব্রাহ্মণী বেশে তাঁহাকে স্তব করিতেছেন।
पुरुषगण - चन्द्रकिरण अंगे, नमो वामनरूपधारी ।
পুরুষগণ — চন্দ্রকিরণ অঙ্গে, নমো বামনরূপধারী।
स्त्रियाँ - गोपीगणमनमोहन, मंजुकुंजचारी ।
স্ত্রীগণ — গোপীগণ মনোমোহন, মঞ্জুকুঞ্জচারী।
निमाई - जय राधे, श्रीराधे ।
নিমাই — জয় রাধে শ্রীরাধে।
पुरुष - व्रज बालक-संग, मदन-मान-भंग ।
পুরুষগণ — ব্রজবালক সঙ্গ, মদন মান ভঙ্গ।
स्त्रियाँ - उन्मादिनी व्रजकामिनी उन्माद-तरंग ।
স্ত্রীগণ — উন্মাদিনী ব্রজকামিনী, উন্মাদ তরঙ্গ।
पुरुष – दैत्य-छलन नारायणसुरगण-भय-हारी ।
পুরুষগণ — দৈত্যছলন, নারায়ণ, সুরগণভয়হারী।
स्त्रियाँ - व्रज बिहारी, गोपनारी-मान-भिखारी ।
স্ত্রীগণ — ব্রজবিহারী গোপনারী-মান-ভিখারী।
निमाई - जय राधे, श्रीराधे
নিমাই — জয় রাধে শ্রীরাধে।
श्रीरामकृष्ण यह गाना सुनते सुनते समाधिमग्न हो गये ।
ঠাকুর শ্রীরামকৃষ্ণ এই গান শুনিতে শুনিতে সমাধিস্থ হইলেন। যবনিকা পতন হইল। কনসার্ট বাজিতেছে।
[(21 सितंबर,1884), श्रीरामकृष्ण वचनामृत-92 ]
🔆🙏जीवन का एकमात्र उद्देश्य अवतार-वरिष्ठ की भक्ति प्राप्त करना है🔆🙏
अब दूसरा अंक शुरू हुआ । अद्वैत के घर के सामने श्रीवास आदि बातें कर रहे हैं । मुकुन्द मधुर कण्ठ से गा रहे हैं -
आर घुमाइओ न मन।
मायाघोरे कोतोदिन रबे अचेतन ?
के तुमि , की हेतु एले , आपनारे भूले गेले ?
चाहरे नयन मेले त्यज कूस्वप्न।।
रयेछो अनित्य ध्याने नित्यानन्द हेर प्राणे,
तम परिहरि हेर तरुण तपन।।
[ श्रीवास और अन्य भक्तगण अद्वैत के घर के सामने वार्तालाप में व्यस्त हैं। मुकुंद गाते हैं: " हे मन , अब और मत सो! मोह-निद्रा में कब तक सोये रहोगे? हे मन? तुम कौन हो? क्यों जन्मे हो? तुम अपने सच्चे स्वरूप को भूल गए हो। हे मन, अब अपनी आँखों को खोलो और बुरे स्वप्नों से स्वयं को जगाओ। मेरे मूर्ख मन , तुम्हें कोई दूसरा नहीं बाँधता। तुम स्वयं अपने को मैं-मेरा से बाँध लेते हो; इस प्रकार जीवन के परिवर्तनशील दृश्यों को भी सच समझकर उससे बंध जाते हो, जब कि तुम्हारे भीतर, ह्रदय में ही शाश्वत आनंद रहता है। हे मूर्ख मन, अंधकार से बाहर निकलो! बाहर निकलो और उगते हुए सूर्य का स्वागत करो!"]
[A new scene: Srivas and other devotees are engaged in conversation in front of Advaita's house. Mukunda sings: " Sleep no more! How long will you lie; In maya's slumber locked, O mind? Who are you? Why have you been born? Forgotten is your own true Self. O mind, unclose your eyes at last And wake yourself from evil dreams; A fool you are to bind yourself ; So to the passing shows of life, When in you lives Eternal Bliss. Come out of the gloom, O foolish mind! Come out and hail the rising Sun!]
অদ্বৈতের বাটীর সম্মুখে শ্রীবাসাদি কথা কহিতেছেন। মুকুন্দ মধুর কণ্ঠে গান গাইতেছেন:
আর ঘুমাইও না মন। মায়াঘোরে কতদিন রবে অচেতন।
কে তুমি কি হেতু এলে, আপনারে ভুলে গেলে
চাহরে নয়ন মেলে ত্যজ কুস্বপন ॥
রয়েছো অনিত্য ধ্যানে নিত্যানন্দ হের প্রাণে,
তম পরিহরি হের তরুণ তপন ॥
श्री रामकृष्ण ने मणि से गायक के कण्ठ की बहुत प्रशंसा की।
মুকুন্দ বড় সুকণ্ঠ। শ্রীরামকৃষ্ণ মণির নিকট প্রশংসা করিতেছেন।
लीला का दूसरा अंक : निमाई घर में हैं । श्रीवास # इनसे भेंट करने के लिए आये हैं । पहले शची से भेंट हुई । शची रोने लगीं, 'मेरा पुत्र संसार-धर्म में मन नहीं देता । जब से विश्वरूप चला गया है, तब से सदा ही मेरे प्राण काँपते रहते हैं कि कहीं निमाई भी संन्यासी न हो जाय ।'
[Another scene: Nimai is staying at home. Srivas comes to visit him. First he meets Sachi. The mother weeps and says: "My son doesn't attend to his household duties. My eldest son, Viswarupa, has renounced the world, and my heart has ached ever since. Now I fear that Nimai will follow in his steps."]
নিমাই বাটীতে আছেন। শ্রীবাস দেখা করিতে আসিয়াছেন। আগে শচির সঙ্গে দেখা হইল। শচী কাঁদিতে লাগিলেন। বলিলেন, পুত্র আমার গৃহধর্মে মন দেয় না। ‘যে অবধি গেছে বিশ্বরূপ, প্রাণ মম কাঁপে নিরন্তর, পাছে হয় নিমাই সন্ন্যাসী।’
[श्रील श्रीवास पंडित # का घर निमाई के घर से 200 गज उत्तर की ओर स्थित था। नवद्वीप में श्रीवास आचार्य का घर, जिसे श्रीवास आंगन के नाम से जाना जाता है, मायापुर में एक पवित्र तीर्थ स्थान है और नवद्वीप परिक्रमा में सबसे महत्वपूर्ण स्थानों में से एक है। उनके आलीशान घर में बड़े-बड़े आरामदायक कमरे, एक ऊँची सुरक्षा दीवार और हरे-भरे बगीचे और उपवन थे। हर रात श्री गौरांग महाप्रभु और उनके प्रिय मित्र यहाँ आनंदपूर्ण कीर्तन का आनंद लेते थे और वृंदावन की मधुर वादियों का आनंद लेते थे। श्रीवास आंगन में ही क्रोधित मुस्लिम काजी ने श्री कृष्ण के संकीर्तन आंदोलन को रोकने के लिए अपनी मूर्खतापूर्ण कोशिश में पवित्र मृदंग को तोड़ा था। तब से श्रीवास के घर को खोल बंगा डांगा (वह स्थान जहाँ मृदंग तोड़ा गया था) के नाम से जाना जाता है। जैसे-जैसे निमाई बड़े हुए और ज्ञान प्राप्त किया, वे एक प्रसिद्ध शिक्षक बन गए और धार्मिक सिद्धांतों के प्रति कुछ अहंकार और तिरस्कार प्रदर्शित किया। एक दिन श्रीवास पंडित ने उनसे बात करने का फैसला किया।
श्रीवास बोले, "लोग अध्ययन क्यों करते हैं? ताकि वे समझ सकें कि श्रीकृष्ण की भक्ति क्या है। यदि कोई व्यक्ति विद्या और विद्वता से श्रीकृष्ण की भक्ति प्राप्त नहीं करता, तो उसका सारा अध्ययन व्यर्थ है। यह समय की बर्बादी के अलावा और कुछ नहीं है। यदि तुमने वास्तव में कुछ सीखा है तो अभी से श्रीकृष्ण की भक्ति शुरू कर दो। जल्दी करो। यही तुम्हारे जीवन का एकमात्र उद्देश्य है।" निमाई हँसे और उन्होंने उत्तर दिया, "आपकी कृपा से अवश्य ही ऐसा होगा। यदि आप सभी मुझ पर इतनी कृपा करेंगे, तो अवश्य ही मुझे श्रीकृष्ण की भक्ति प्राप्त होगी।"इसके कुछ समय बाद महाप्रभु गया पहुँचे जहाँ उनकी मुलाकात ईश्वर पुरी से हुई और उन्होंने उनसे दीक्षा स्वीकार की। इस प्रकार धीरे-धीरे उन्होंने कृष्ण भक्ति के प्रसार का अपना वास्तविक कार्य शुरू कर दिया। एक दिन, दिव्य भाव में श्री गौरांग ने श्रीवास के घर में प्रवेश किया और उन्हें एक दबंग स्वर में संबोधित किया, "श्रीवास, वह कौन है जिसकी आप प्रतिदिन पूजा करते हैं? आप किसका ध्यान करते हैं? अब अपनी दोनों आँखों से उसी व्यक्ति को अपने सामने खड़े हुए देखें।" यह कहकर महाप्रभु श्रीवास के घर के पूजा कक्ष में प्रवेश कर गए और भगवान विष्णु के सिंहासन पर बैठ गए , और अपना चतुर्भुज रूप प्रकट किया, जिसमें शंख, चक्र, गदा और कमल का फूल था। उस रूप को देखकर श्रीवास पंडित पूरी तरह से स्तब्ध रह गए। श्री गौरसुन्दर ने तब कहा, "तुम्हारा संकीर्तन और नाद (श्री अद्वैत आचार्य) की जोरदार गर्जना ही मुख्य कारण हैं कि मैं वैकुंठ को छोड़कर अपने सनातन पार्षदों के साथ इस नश्वर संसार में उतरने के लिए बाध्य हुआ। मैं दुष्टों का नाश करूंगा और धर्मात्माओं का उद्धार करूंगा। अब तुम बिना किसी भय के मेरी अर्चना करो ।"भगवान के इन भय दूर करने वाले वचनों को सुनकर श्रीवास ने भूमि पर गिरकर उन्हें प्रणाम किया और फिर भगवान की स्तुति में भजन-कीर्तन करने लगे।
साभार /https://www.srigaurangashram.in/Srivasa%20Pandit.htm]
[(21 सितंबर,1884), श्रीरामकृष्ण वचनामृत-92 ]
🙏जिन्होंने विवाह किया है, वे दोनों ओर सम्भालने के लिए कहते हैं🙏
[“সংসারী লোক দুদিক রাখতে বলে” — গঙ্গাদাস ও শ্রীবাস ]
इसी समय निमाई आते हुए दीख पड़े । शची श्रीवास से कह रही हैं, ‘देखो – जान पड़ता है पागल है - आँसुओं से हृदय प्लावित हुआ जा रहा है, कहो, कहो – किस तरह इसका यह भाव दूर हो ?’निमाई श्रीवास को देखकर रो रहे हैं - 'कहाँ, प्रभु ! कहाँ मुझे कृष्णभक्ति हुई ? अधम जन्म तो व्यर्थ ही कटा जा रहा है !'
এমন সময় নিমাই আসিতেছেন। শচী শ্রীবাসকে বলিতেছেন —‘আহা দেখ দেখ পাগলের প্রায়,আঁখিনীরে বুক ভেসে যায়, বল বল এ ভাব কেমনে যাবে?’নিমাই শ্রীবাসকে দেখিয়া তাঁহার পায়ে জড়াইয়া কাঁদিতেছেন — আর বলিতেছেন —কই প্রভু কই মম কৃষ্ণভক্তি হলো,অধম জনম বৃথা কেটে গেল।বল প্রভু, কৃষ্ণ কই, কৃষ্ণ কোথা পাব,দেহ পদধূলি বনমালী যেন পাই।
श्रीरामकृष्ण मास्टर की ओर देखकर कुछ बोलना चाहते हैं पर बात नहीं निकलती । गला भर गया है । कपोलों पर आँसुओं की धारा बहती जा रही है । अनिमेष लोचनों से देख रहे हैं - निमाई श्रीवास के पैरों पर पड़े हुए कह रहे हैं - 'कहाँ, प्रभु ! कृष्ण की भक्ति तो मुझे नहीं हुई !’
শ্রীরামকৃষ্ণ মাস্টারের দিকে তাকাইয়া কথা কহিতে যাইতেছেন, কিন্তু পারিতেছেন না। গদগদ স্বর! গণ্ডদেশ নয়নজলে ভাসিয়া গেল। একদৃষ্টে দেখিতেছেন, নিমাই শ্রীবাসের পা জড়াইয়া রহিয়াছেন। আর বলিতেছেন, ‘কই প্রভু কৃষ্ণভক্তি তো হল না।’
इधर निमाई पाठशाला के छात्रों को अब पढ़ा भी नहीं सकते । निमाई ने गंगादास से पढ़ा था । वे निमाई को समझाने आये हैं । उन्होंने श्रीवास से कहा - 'श्रीवासजी, हम लोग भी तो ब्राह्मण हैं, विष्णुपूजा भी किया करते हैं, परन्तु अब देखा जाता है, आप लोग उसके संसार को नष्ट-भ्रष्ट कर डालेंगे ।'
এদিকে নিমাই পড়ুয়াদের আর পড়াইতে পারিতেছেন না। গঙ্গাদাসের কাছে নিমাই পড়িয়াছিলেন। তিনি নিমাইকে বুঝাইতে আসিয়াছেন। শ্রীবাসকে বলিলেন — শ্রীবাস ঠাকুর, আমরাও ব্রাহ্মণ, বিষ্ণুপূজা করে থাকি, আপনারা মিলে দেখছি সংসারটা ছারখার করলেন।
श्रीरामकृष्ण - (मास्टर से) - यह संसारी की शिक्षा है, यह भी करो और वह भी करो । संसारी मनुष्य (जिसने विवाह किया है ) जब शिक्षा देता है तब, वह परिवार और ईश्वर दोनों से समझौता करने के लिए कहता है।
["That is the advice of the worldly-wise: Do 'this' as well as 'that'. When the worldly man teaches spirituality he always advises a compromise between the world and God."]
শ্রীরামকৃষ্ণ (মাস্টারকে) — এ সংসারীর শিক্ষা — এও কর, ওও কর। সংসারী যখন শিক্ষা দেয়, তখন দুদিক রাখতে বলে।
मास्टर - जी हाँ ।
गंगादास निमाई को फिर समझा रहे हैं - "क्यों जी, निमाई तुम्हें तो अब शास्त्रज्ञान भी हो गया है । तुम हमारे साथ तर्क करो । संसार-धर्म से बड़ा और कौन धर्म है ? हमें समझाओ - तुम गृही हो, गृही की तरह आचरण न करके विपरीत आचरण क्यों करते हो ?"
[Gangadas continues his argument with Nimai. He says: "Nimai, undoubtedly you are versed in the scriptures. Reason with me. Explain to me if any other duty is superior to worldly duties. You are a house-holder. Why disregard the duties of a householder and follow others' duties?"]
গঙ্গাদাস নিমাইকে আবার বুঝাইতেছেন — ‘ওহে নিমাই, তোমার তো শাস্ত্রজ্ঞান হয়েছে? তুমি আমার সঙ্গে তর্ক কর। সংসারধর্ম অপেক্ষা কোন্ ধর্ম প্রধান, আমায় বোঝাও। তুমি গৃহী, গৃহীর মতো আচার না করে অন্য আচার কেন কর?’
श्रीरामकृष्ण - (मास्टर से) - देखा ? दोनों ओर सम्हालने के लिए कह रहा है ।
["Did you notice? He's trying to persuade Nimai to make a compromise."]
শ্রীরামকৃষ্ণ (মাস্টারকে) — দেখলে? দুইদিক রাখতে বলছে!
मास्टर - जी हाँ ।
निमाई ने कहा,
" प्रभु कौन हेतु किछु नाहि जानी ,
प्राण टाने कि कोरी की करि ,
भाबि कूले रई , कूले आर रहिते ना पारी,
प्राण धाय बुझाले ना फेरे ,
सदा चाय झाँप दिते अकूल पाथारे। "
"मैं अपनी इच्छा से संसार-धर्म की उपेक्षा नहीं कर रहा हूँ । मेरी तो यही इच्छा है कि लोक परलोक दोनों बनें । परन्तु प्रभु न जाने क्यों प्राण उधर को खींचते हैं । समझाने पर भी नहीं समझते । अगाध समुद्र में कुदाना चाहते हैं ।"
[Nimai says to Gangadas: "I am not wilfully indifferent to a householder's duties. On the contrary, it is my desire to hold to all sides. But, revered sir, I don't know what it is that draws me on. I don't know what to do. I want to cling to the shore but I cannot. My soul wanders away. I am helpless. My soul constantly wants to plunge headlong into the boundless Ocean."
নিমাই বলিলেন, আমি ইচ্ছা করে সংসারধর্ম উপেক্ষা করি নাই; আমার বরং ইচ্ছা যাতে সব বজায় থাকে। কিন্তু —
প্রভু কোন্ হেতু কিছু নাহি জানি,
প্রাণ টানে কি করি কি করি,
ভাবি কুলে রই, কুলে আর রহিতে না পারি,
প্রাণ ধায় বুঝালে না ফেরে,
সদা চায় ঝাঁপ দিতে অকুল পাথারে।
श्रीरामकृष्ण – अहा !
(७)
(21 सितंबर,1884)
[(21 सितंबर,1884), श्रीरामकृष्ण वचनामृत-92 ]
* नाट्यालय में नित्यानन्द के वंशजः तथा श्रीरामकृष्ण का उद्दीपन*
[ स्टार थियेटर में मास्टर, बाबूराम और खड़दह के नित्यानंद वंश के गोस्वामी के संग श्री ठाकुर चैतन्यलीला देख रहे हैं ]
The scene changes: (नाट्यालय में दृश्य परिवर्तन)
नवद्वीप में नित्यानन्द आये हुए हैं । वे निमाई को खोज रहे हैं, उसी समय निमाई से भेंट हो गयी । निमाई भी उनको खोज रहे थे । मुलाकात होने पर निमाई कह रहे हैं -" सार्थक जीवन ; सत्य मम फोलेछे स्वप्न ; लुकाइले स्वप्ने देखा दिये !" "मेरा जीवन सार्थक है । मेरा स्वप्न सत्य हुआ । तुम मुझे स्वप्न में दर्शन देकर छिप गये थे ।"
{ "Blessed is my life! Fulfilled is my dream! You visited me in a dream and then disappeared."}
নবদ্বীপে নিত্যানন্দ আসিয়াছেন, তিনি নিমাইকে খুঁজিতেছেন এমন সময় নিমাই-এর সহিত দেখা হইল। নিমাইও তাঁহাকে খুঁজিতেছিলেন। মিলনের পর নিমাই বলিতেছেন —সার্থক জীবন; সত্য মম ফলেছে স্বপন;লুকাইলে স্বপ্নে দেখা দিয়ে।
श्रीरामकृष्ण - (मास्टर से गद्गद स्वरों में) - निमाई कहते हैं कि स्वप्न में मैंने देखा है ।
{The Master said in a voice choked with emotion, "Nimai said he had seen him in a dream."
শ্রীরামকৃষ্ণ (মাস্টারকে গদ্গদ স্বরে) — নিমাই বলছে, স্বপ্নে দেখেছি!
श्रीवास ने षड्भुजा मूर्ति देखी है और स्तव कर रहे हैं ।
শ্রীবাস ষড়্ভুজ দর্শন করছেন, আর স্তব করছেন।
श्रीरामकृष्ण भावावेश में षड्भुजा-मूर्ति के दर्शन कर रहे हैं ।
ঠাকুর শ্রীরামকৃষ্ণ ভাবাবিষ্ট হইয়া ষড়্ভুজ দর্শন করিতেছেন।
गौरांग को इश्वरावेश हुआ है । वे अद्वैत, श्रीवास, हरिदास आदि के साथ भावावेश में बातचीत कर रहे हैं।
গৌরাঙ্গের ঈশ্বর আবেশ হইয়াছে। তিনি অদ্বৈত, শ্রীবাস, হরিদাস ইত্যাদির সহিত ভাবে কথা কহিতেছেন।
गौरांग का भाव समझकर नित्यानन्द गा रहे हैं – “क्यों री सखी, कुंज में श्रीकृष्ण कब आये ?"
গৌরাঙ্গের ভাব বুঝিতে পারিয়া নিতাই গান গাইতেছেন:কই কৃষ্ণ এল কুঞ্জে প্রাণ সই! দে রে কৃষ্ণ দে, কৃষ্ণ এনে দে, রাধা জানে কি গো কৃষ্ণ বই।
श्रीरामकृष्ण गाना सुनते ही समाधिमग्न हो गये । बड़ी देर तक उसी अवस्था में रहे । वाद्य बज रहे हैं । श्रीरामकृष्ण की समाधि छूटी । अब नाट्यालय के बॉक्स में खड़दह के एक बाबू आये, वे नित्यानन्द के वंशज थे । वे श्रीरामकृष्ण की कुर्सी के पीछे खड़े हुए । उम्र तीस पैंतीस की होगी । श्रीरामकृष्ण को उन्हें देखकर अपार आनन्द हुआ । उनका हाथ पकड़कर उनसे कितनी ही बातें कह रहे हैं । कभी कभी उनसे कहते हैं - यहाँ बैठो, बैठो न, तुम्हारे यहाँ रहने पर बड़ी उद्दीपना होगी ।' स्नेहपूर्वक उनका हाथ पकड़ मानो. खेल कर रहे हैं । उनके मुँह पर हाथ फेरकर कितना ही स्नेह कर रहे हैं ।
[শ্রীরামকৃষ্ণ গান শুনিতে শুনিতে সমাধিস্থ হইলেন। অনেকক্ষণ ওইভাবে রহিলেন। কনসার্ট চলিতে লাগিল। ঠাকুরের সমাধি ভঙ্গ হইল। ইতিমধ্যে খড়দার নিত্যানন্দ গোস্বামীর বংশের একটি বাবু আসিয়াছেন ও ঠাকুরের চেয়ারের পশ্চাতে দাঁড়াইয়া আছেন। বয়স ৩৪/৩৫ হইবে। ঠাকুর তাঁহাকে দেখিয়া আনন্দে ভাসিতে লাগিলেন। তাঁহার হাত ধরিয়া কত কথা কহিতেছেন। মাঝে মাঝে তাঁহাকে বলিতেছেন, “এখানে বসো না; তুমি এখানে থাকলে খুব উদ্দীপন হয়।” সস্নেহে তাহার হাত ধরিয়া যেন খেলা করিতেছেন। সস্নেহে মুখে হাত দিয়া আদর করিতেছেন।
At this song Sri Ramakrishna went into samadhi. He remained in that state a long time. The orchestra played on. Gradually his mind came down to the relative plane. In the mean time a young man of Khardaha, born in the holy family of Nityananda, had entered the box. He was standing behind the Master's chair. Sri Ramakrishna was filled with delight at the sight of him. He held his hand and talked to him affectionately. Every now and then he said: "Please sit down here. Your very presence awakens my spiritual feeling." He played tenderly with the young man's hands and lovingly stroked his face.
गोस्वामी के चले जाने पर मास्टर से कह रहे हैं - "वह बड़ा पण्डित है । उसका बाप बड़ा भक्त है । जब मैं खड़दह के श्यामसुन्दर का दर्शन करने गया था, तब सौ रुपये देने पर भी जो भोग नहीं मिलता, वही भोग लाकर मुझे उसने खिलाया था ।
"इसके लक्षण बड़े अच्छे हैं । जरा हिला-डुला देने से चेतना हो जायगी । उसे देखते ही उद्दीपना होती है और खूब होती है । और जरा देर रहता तो मैं खड़ा हो जाता ।”
[গোস্বামী চলিয়া গেলে মাস্টারকে বলিতেছেন, “ও বড় পণ্ডিত, বাপ বড় ভক্ত। আমি খড়দার শ্যামসুন্দর দেখতে গেলে, যে ভোগ একশ টাকা দিলে পাওয়া যায় না সেই ভোগ এনে আমায় খাওয়ায়। “এর লক্ষণ বড় ভাল; একটু নেড়েচেড়ে দিলে চৈতন্য হয়। ওকে দেখতে দেখতে বড় উদ্দীপন হয়। আর একটু হলে আমি দাঁড়িয়া পড়তুম।”
After he had left, Sri Ramakrishna said to M.: "He is a great scholar. His father is a great devotee of God. When I go to Khardaha to visit Syamasundar, the father entertains me with sacred offerings such as one cannot buy even for a hundred rupees. This young man has good traits. A little shaking will awaken his inner spirit. At the sight of him my spiritual mood is aroused. I should have been overwhelmed with ecstasy it he had stayed here a little longer."
पर्दा उठ गया । राजपथ पर नित्यानन्द सिर पर हाथ लगाये हुए खून का बहना रोक रहे हैं । मधाई ने कलसी का टुकड़ा फेंककर मारा है । परन्तु नित्यानन्द का ध्यान मधाई की ओर नहीं है । गौरांग के प्रेम से वे पूरे मतवाले हो रहे हैं ।
যবনিকা উঠিয়া গেল। রাজপথে নিত্যানন্দ মাথায় হাত দিয়া রক্তস্রোত বন্ধ করিতেছেন। মাধাই কলসির কানা ছুঁড়িয়া মারিয়াছেন; নিতাইয়ের ভ্রূক্ষেপ নাই। গৌরপ্রেমে গরগর মাতোয়ারা! ঠাকুর ভাবাবিষ্ট। দেখিতেছেন, নিতাই জগাই মাধাইকে কোল দিবেন। নিতাই বলিতেছেন:
প্রাণ ভরে আয় হরি বলি, নেচে আয় জগাই মাধাই।
মেরেছ বেশ করেছ, হরি বলে নাচ ভাই ॥
বলরে হরিবোল; প্রেমিক হরি প্রেমে দিবে কোল।
তোল রে তোল হরিনামের রোল ॥
পাওনি প্রেমের স্বাদ, ওরে হরি বলে কাঁদ, হেরবি হৃদয় চাঁদ।
ওরে প্রেমে তোদের নাম বিলাব, প্রেমে নিতাই ডাকে তাই ॥
श्रीरामकृष्ण को भावावेश हुआ है । देख रहे हैं, मारकर पश्चाताप करनेवाले मधाई को और उसके साथी जगाई को नित्यानन्द गले से लगा रहे हैं ।अब निमाई शची देवी से संन्यास की बात कह रहे हैं ।सुनकर शची देवी मूर्च्छित हो गयीं । उनको मूर्च्छित देखकर कितने ही दर्शक हाहाकार कर रहे हैं । श्रीरामकृष्ण तिल भर भी विचलित न होकर एकदृष्टि से देख रहे हैं । केवल आँखों के कोरों में एक एक बूँद आँसू झलक रहा है ।
Nimai speaks to Sachi of his desire to enter the monastic life. His mother faints and falls to the ground. At this point many in the audience hurst into tears. Sri Ramakrishna remained still and looked intently at the stage. A single tear appeared in the corner of teach eye. The performance was over.
[এইবার নিমাই শচীকে সন্ন্যাসের কথা বলিতেছেন।শচী মূর্ছিতা হইলেন। মূর্ছা দেখিয়া দর্শকবৃন্দ অনেকে হাহাকার করিতেছেন। শ্রীরামকৃষ্ণ অণুমাত্র বিচলিত না হইয়া একদৃষ্টে দেখিতেছেন; কেবল নয়নের কোণে একবিন্দু জল দেখা দিয়াছে!
(८)
[(21 सितंबर,1884), श्रीरामकृष्ण वचनामृत-92 ]
🔆🙏श्रीरामकृष्ण का भक्त-प्रेम🔆🙏
अभिनय समाप्त हो गया । श्रीरामकृष्ण गाड़ी पर चढ़ रहे हैं । एक भक्त ने पूछा, आपने कैसा देखा ? श्रीरामकृष्ण ने हँसते हुए कहा, असल और नकल एक देखा ।
{"I found the representation the same as the real." "मैंने अभिनय को वास्तविक के समान ही पाया।" “আসল নকল এক দেখলাম।”
Sri Ramakrishna was about to enter a carriage. A devotee asked him how he had enjoyed the play. The Master said with a smile, "I found the representation the same as the real."
[অভিনয় সমাপ্ত হইল। ঠাকুর গাড়িতে উঠিতেছেন। একজন ভক্ত জিজ্ঞাসা করিলেন কেমন দেখলেন? ঠাকুর হাসিতে হাসিতে বলিলেন, “আসল নকল এক দেখলাম।”
गाड़ी महेन्द्र मुखर्जी के कारखाने में जा रही है । एकाएक श्रीरामकृष्ण को भावावेश हो गया । कुछ देर बाद प्रेमपूर्वक आप ही आप कह रहे हैं - "हा कृष्ण ! हे कृष्ण ! ज्ञान कृष्ण ! प्राण कृष्ण ! मन कृष्ण ! आत्मा कृष्ण ! देह कृष्ण !” फिर कह रहे हैं – “प्राण हे गोविन्द मेरे जीवन !”
The carriage proceeded toward Mahendra's mill. Suddenly Sri Ramakrishna went into an ecstatic mood and murmured to himself in loving tones: "O Krishna! O Krishna! Krishna is knowledge! Krishna is soul! Krishna is mind! Krishna is life! Krishna is body!" He continued: "O Govinda, Thou art my life! Thou art my soul!"
{গাড়ি মহেন্দ্র মুখুজ্জের কলে যাইতেছে। হঠাৎ ঠাকুর ভাবাবিষ্ট হইলেন। কিয়ৎক্ষণ পরে প্রেমভরে আপনা-আপনি বলিতেছেন, —“হা কৃষ্ণ! হে কৃষ্ণ! জ্ঞান কৃষ্ণ! প্রাণ কৃষ্ণ! মন কৃষ্ণ! আত্মা কৃষ্ণ! দেহ কৃষ্ণ!” আবার বলিতেছেন, “প্রাণ হে গোবিন্দ, মম জীবন!”
गाड़ी मुखर्जी के कारखाने में पहुँची । बड़े आदर-सत्कार के साथ महेन्द्र ने श्रीरामकृष्ण को भोजन कराया । मणि पास बैठे हुए हैं । श्रीरामकृष्ण स्नेहपूर्वक उनसे कह रहे हैं, तुम भी कुछ खाओ । हाथ से उठाकर मिष्टान्न प्रसाद दिया ।
The carriage reached the mill. Mahendra fed the Master tenderly with various dishes. M. sat by his side. 'Affectionately he said to M., "Here, eat a little." He put some sweets in his hands.
[গাড়ি মুখুজ্জেদের কলে পৌঁছিল। অনেক যত্ন করিয়া মহেন্দ্র ঠাকুরকে খাওয়াইলেন। মণি কাছে বসিয়া। ঠাকুর সস্নেহে তাঁহাকে বলিতেছেন, তুমি কিছু খাও না। হাতে করিয়া মেঠাই প্রসাদ দিলেন।
*गौरांगप्रेम के नशे में मतवाले श्री रामकृष्ण*
अब श्रीरामकृष्ण दक्षिणेश्वर कालीमन्दिर जा रहे हैं । गाड़ी में महेन्द्र मुखर्जी तथा और भी दो-तीन भक्त हैं । महेन्द्र कुछ आगे बढ़कर छोड़ आयेंगे । श्रीरामकृष्ण आनन्दपूर्वक श्रीगौरांग पर रचा गया एक गाना गा रहे हैं -
गौर निताई तोमरा दूभाई, परम दयाल हे प्रभू।
(आमि ताई शुने एशेछि हे नाथ)
आमि गियेछिलाम काशीपूरे, आमाय कोये दिलेन काशी विश्वेश्वरे।
ओ शे परब्रह्म शचिर घरे !
(आमि चिनेछि हे, परब्रह्म),
आमि गियेछिलाम अनेक ठांई, किन्तु एमोन दयाल देखि नाई (तोमादेर मतो)।
तोमरा ब्रजे छिले कानाई, बलाई एखोन नदे एशे होले गौर निताई (शे रुप लुकाये)।
ब्रजेर खेला छिलो दौड़ा-दौड़ी , एखोन नदेर खेला धूलाय गड़ा-गड़ी ।
(हरीबोल बोले हे) (प्रेम मत्त होये)।
छिलो ब्रजेर खेला उच्चरोल, आज नदेर खेला केवल हरि बोल।
(ओ हे प्राण गौर)
तोमार सकल अंग गेछे ढाका, केवल आछे दुटि नयन बांका।
तोमार पतितपावन नाम शुने बड भरसा पेयेछि मने।
(ओ हे पतितपावन)
बड़ो आशा कोरे एलाम धेये, आमाय राख चरण छाया दिये।
जगाई मधाई तरे गेछे, प्रभु शेई भरसा आमार आछे।
(ओ हे अधमतारण)।
तोमरा नाकि अचांडाले दाव कोले, कोले दिये बोल हरिबोल।
(ओ हे परमकरुण) (ओ कांगालेर ठाकूर)।
[(21 सितंबर,1884), श्रीरामकृष्ण वचनामृत-92 ]
🔆🙏जीवन धन्य (सार्थक blessed) होता है ~ अवतार (नेताश्रीहरि) पर भक्ति होने से🔆🙏
साथ साथ मणि भी गा रहे हैं । महेन्द्र तीर्थ जायेंगे । श्रीरामकृष्ण से उसी सम्बन्ध की बातें कर रहे हैं ।
श्रीरामकृष्ण - (महेन्द्र से सहास्य) - प्रेम के अंकुर के बिना उगते ही तीर्थ जाओगे, सब सूख न जायेगा ?
"परन्तु जल्दी आना । अहा, बहुत दिनों से तुम्हारे यहाँ आने की इच्छा हो रही थी । एक बार देख लिया, अच्छा हुआ ।"
"The divine love in you is barely a sprout now. Why should you let it wither? But come back very soon. Many a time I have thought of visiting your place. At last I have done it. I am so happy."
[শ্রীরামকৃষ্ণ (মহেন্দ্রের প্রতি, সহাস্যে) — প্রেমের অঙ্কুর না হতে হতে সব শুকিয়ে যাবে।“কিন্তু শীঘ্র এস। আহা অনেকদিন থেকে তোমার বাড়িতে যাব মনে করেছিলাম, তা একবার দেখা হল বেশ হল।”
[(21 सितंबर,1884), श्रीरामकृष्ण वचनामृत ]
🔆🙏नेता का जीवन सार्थक (blessed )कैसे होता है ?🔆🙏
[आपनार बापओ बेश ! निर्गुण राम का स्मरण करते हैं ! ]
महेन्द्र - जी, हम लोगों का जन्म और जीवन सार्थक (धन्य-blessed) हो गया ।
মহেন্দ্র — আজ্ঞা, জীবন সার্থক হল!
MAHENDRA: "My life is indeed blessed, sir."
श्रीरामकृष्ण - सार्थक तो तुम हो ही । तुम्हारे पिता भी अच्छे हैं । उस दिन देखा, 'अध्यात्म रामायण'^ पर विश्वास है ।
[^ आध्यात्म रामायण ग्रन्थ में भगवान् श्रीराम का वर्णन मूर्तिमान "आध्यात्मिक-तत्व" के रूप में किया गया हैं ! शायद ही किसी कांड में कोई सर्ग हो, जिसमें श्रीराम को अनंत-कोटि -ब्रह्मांडनायक श्रीविष्णु का स्वरूप नहीं बताया हो। अध्यात्म रामायण एक आख्यान के रूप में ब्रह्मांड पुराण के उत्तराखंड के अंतर्गत माना गया है...अत: इसके रचयिता महर्षि वेदव्यास ही हैं। इस पवित्र गाथा को साक्षात् भगवान विश्वनाथ ने अपनी प्रिया आदिशक्ति माता पार्वती को सुनाया था। उस कथा को एक कौवे ने भी सुन लिया। उसी कौवे का पुनर्जन्म काकभुशुण्डि के रूप में हुआ। काकभुशुण्डि को पूर्वजन्म में भगवान शंकर के मुख से सुनी वह राम कथा पूरी की पूरी याद थी। उन्होने यह कथा अपने शिष्यों सुनाया। इस प्रकार राम कथा का प्रचार प्रसार हुआ। ]
{"You were already blessed. Your father is also a good man. I saw him the other day. He has faith in the Adhyatma Ramayana."
[শ্রীরামকৃষ্ণ — সার্থক তো আছেনই। আপনার বাপও বেশ! সেদিন দেখলাম; অধ্যাত্মে বিশ্বাস।
महेन्द्र - जी कृपा रखियेगा, जिससे भक्ति हो ।
"Please bless me that I may have love for God."
श्रीरामकृष्ण - तुम बड़े उदार और सरल हो । उदार हुए बिना कोई ईश्वर को पा नहीं सकता । वे कपट से बहुत दूर हैं ।
"You are generous and artless. One cannot realize God without sincerity and simplicity. God is far, far away from the crooked heart."
{ শ্রীরামকৃষ্ণ — তুমি খুব উদার সরল। উদার সরল না হলে ভগবানকে পাওয়া যায় না। কপটতা থেকে অনেক দূর।
महेन्द्र श्यामबाजार के पास बिदा हुए । गाड़ी जा रही है ।
श्रीरामकृष्ण - (मास्टर से) - यदु मल्लिक ने क्या किया ?
मास्टर - (मन ही मन) - श्रीरामकृष्ण सब की कल्याण-कामना कर रहे हैं ।
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मंत्र - वेदों में मंत्र (ध्वनि) वह प्राथमिक स्रोत है जिससे ब्रह्मांड उत्पन्न हुआ है। (बाइबिल में: "आरंभ में यह क्रिया थी"); यह प्रत्येक वस्तु में मौजूद मौलिक कंपन है, जो ब्रह्मांड की मोटर है। मंत्रों के अध्ययन और खोज के माध्यम से प्राचीन ऋषियों ने यह पता लगाया है कि हम ब्रह्मांड और स्वयं के साथ कैसे सामंजस्य बिठा सकते हैं।
ॐ ( ओम् ) यह आदि ध्वनि है, ब्रह्मांड में मौजूद सभी का मैट्रिक्स है। इसका कोई विशेष अर्थ नहीं है, बल्कि यह एक पवित्र शब्दांश है जो उस महत्वपूर्ण ऊर्जा के सार का प्रतिनिधित्व करता है जिससे सृष्टि उत्पन्न हुई है। ॐ तीन ध्वनियों का संयोजन है: अ - उ - म । अ ब्रह्मा , सृजनकर्ता, विवेक, जागरण की स्थिति का प्रतिनिधित्व करता है । उ विष्णु , संरक्षक, अवचेतन, स्वप्न की स्थिति का प्रतिनिधित्व करता है । म शिव, संहारक, अचेतन, गहरी नींद की स्थिति का प्रतिनिधित्व करता है । यह देखा जा सकता है कि ये तीन अक्षर ब्रह्मांड की अंतहीन सांस के साथ कसकर सहसंबद्ध हैं, जिसमें सृजन, संरक्षण और विनाश की तीन शक्तियां लगातार एक दूसरे का अनुसरण करती हैं और वे मानव विवेक के तीन आयामों (सत-असत -मिथ्या) के साथ कैसे सहसंबद्ध हैं।
🔆🙏मानव -मन के तीन आयाम/जानें मन के तीन हिस्से- हम मन को तीन हिस्सों में बांट सकते हैं। मन का विवेक-विचार करने वाला आयाम बुद्धि कहलाता है, दूसरा है- मन-वस्तु या चीत्त या संग्रह करने वाला हिस्सा जो सूचनाएँ एकत्रित करता है; और जागरूकता जो प्रज्ञा कहलाती है। इस विभाजन को यदि आप अपनी जागरूकता से मिटा दें, फिर आपकी बुद्धि यह स्पष्ट कर देगी कि सत्य क्या है और क्या मिथ्या है ? तब आपकी बुद्धि चाक़ू के समान तेज़ हो जाती है और इस पर कुछ भी नहीं चिपकता ! अर्थात फिर यह छुरी की धार के समान तेज बुद्धि किसी चीज़ के साथ आसक्त नहीं होती। यह किसी वस्तु के साथ अपनी पहचान नहीं बनाती, यह हर चीज़ को वैसी दिखाती है जैसी वह है। यह आपके संग्रह से, आपकी पहचानों से, आपकी भावनाओं से प्रभावित नहीं होती। योग (-चित्त वृत्ति निरोध या समाधि) और ध्यान की संपूर्ण प्रक्रिया बस यही है। एक बार जब आप अपने स्वरुप (your self) और अपने मन (your mind) के बीच एक स्पष्ट अंतराल बना लेते हैं, तब आत्मा को (आपको नहीं) अपने ब्रह्मस्वरूप सच्चिदानन्द की अनुभूति होती है ! तो यह अस्तित्व का एक पूर्णतः भिन्न आयाम है- completely different dimension of existence.
शिव पुराण (1/10/श्लोक 18-19) में प्रणव को शिव के पांच मुखों से संबद्ध किया गया है:- अक्षर "ए" सबसे पहले उत्तरी मुख से आया; पश्चिमी से शब्दांश "यू"; दक्षिणी मुख से अक्षर "म" और पूर्वी मुख से बिंदु (बिंदु)। नाद (रहस्यमय ध्वनि) मध्य मुख से आती थी। इस प्रकार पूरा सेट पाँच गुना रूप में सामने आया। फिर वे सभी "ॐ" शब्द में एकाकार हो गये।
जो नित्य, आनंदमय, शांत, निर्विकल्प, निरामय, अनादि, अनंत शिव तत्व को जानते हैं, वे परमपद को प्राप्त होते हैं। भगवान शिव के दो रूप हैं- निष्कल (लिंग रूप) और सकल (मूर्ति रूप)। पहले ब्रह्मरूपता का बोध कराने के लिए निष्कल लिंग (निराकार) रूप प्रकट हुआ। और फिर अज्ञात ईश्वरत्व का साक्षात्कार कराने के निमित्त सकल रूप प्रकट हुआ। इसलिए भक्तगण लिंग (निराकार) और मूर्ति (साकार) दोनों ही रूपों में भगवान शिव की पूजा करते हैं।
भगवान शिव के 5 कृत्य
शिवपुराण में आता है कि ब्रह्मा और विष्णु के पूछने पर भगवान शिव कहते हैं, सृष्टि, पालन, संहार, तिरोभाव और अनुग्रह ये पांच ही मेरे जगत संबंधी कार्य हैं जो नित्यसिद्ध हैं। संसार की रचना का जो आरंभ है, उसी को सर्ग या सृष्टि कहते हैं। मुझसे पालित होकर सृष्टि का सुस्थिर रूप से रहना ही उसकी स्थिति है। उसका विनाश ही संहार है। प्राणों के उत्क्रमण (शरीर से प्राणों का निकलना) को तिरोभाव कहते हैं। इन सबसे छुटकारा मिल जाना ही अनुग्रह है। इस प्रकार मेरे पांच कृत्य हैं। सृष्टि आदि जो चार कृत्य हैं, वे संसार का विस्तार करने वाले हैं। पांचवां कृत्य अनुग्रह मोक्ष के लिए है। इसके बाद जीव सदा मुझमें ही अचल भाव से स्थिर रहता है।
इस तरह हुई पंचाक्षर मंत्र की उत्पत्ति
इन पांच कृत्यों का संबंध पांच भूतों (आकाश, वायु, अग्नि, जल, पृथ्वी) के साथ है। पृथ्वी (पृथ्वी से उत्पन्न अन्न) से सबकी सृष्टि होती है। जल से सबकी वृद्धि और जीवन रक्षा होती है। आग सबको जला देती है। वायु (प्राण) सबको एक स्थान से दूसरे स्थान को ले जाती है और सर्वव्यापक आकाश सबको अनुगृहीत करता है। इन पांच कृत्यों का भार वहन करने के लिए भगवान शिव के पांच मुख हैं।
चार दिशाओं में चार मुख और उनके बीच में पांचवां मुख है। शिव के उत्तरवर्ती मुख से अकार का, पश्चिम मुख से उकार का, दक्षिण मुख से मकार का, पूर्ववर्ती मुख से बिंदु का और मध्यवर्ती मुख से नाद का प्राकट्य हुआ। इस प्रकार पांच अवयवों से युक्त ओंकार का विस्तार हुआ है। इन सभी अवयवों से एकीभूत होकर वह प्रणव ‘ॐ’ नामक एक अक्षर हो गया। यह मंत्र शिव और शक्ति दोनों का बोधक है। इसी से पंचाक्षर मंत्र की उत्पत्ति हुई है।
प्रणव के दो भेद
प्रणव के दो भेद बताए गए हैं- स्थूल और सूक्ष्म। एक अक्षर रूप जो ‘ओम’- ॐ है उसे सूक्ष्म प्रणव जानना चाहिए और ‘ नमः शिवाय’ इस पांच अक्षर वाले मंत्र को स्थूल प्रणव समझना चाहिए। जिसमें पांच अक्षर व्यक्त नहीं हैं वह सूक्ष्म है और जिसमें पांचों अक्षर स्पष्ट रूप से व्यक्त हैं वह ‘स्थूल’ है। प्रणव में ‘प्र’ नाम है प्रकृति से उत्पन्न संसार रूपी महासागर का और ‘नव’ इससे पार कराने वाली नाव है। इस तरह से, देखा जाए तो प्रणव साधक को नव अर्थात नवीन (शिवस्वरूप) कर देता है।
इसलिए पवित्र है सावन माह
सूक्तिसुधाकर में श्री शिवसूक्ति श्लोक में आता है कि ‘हे शंकर। जो तुम्हें रव देता है यानी तुम्हारी स्तुति करता है, उसे तुम वर देते हो। जो मद प्रकट करता है, उसकी खबर तुम दम (दंड) से लेते हो। इस प्रकार अक्षरद्वय को उलट फेर करने का खेल तुमको बहुत पसंद है। तो फिर मेरे नमः कहने पर अपना मन क्यों नहीं फेरते?’ सावन महीना इस रूप में पवित्र है कि इसमें शिव के प्रति नम: का भाव धारण करने की सहज प्रवृत्ति बनती है।-बी. के. शर्मा/Navbharat Times - Hindi News/
ध्यानमूलं गुरोर्मूर्तिः पूजामूलं गुरोः पदम्।
मंत्रमूलं गुरोर्वक्यं मोक्षमूलं गुरोः कृपा ॥
नमो गुरुभ्यो गुरुपादुकाभ्यो,नमः परेभ्यः परपादुकाभ्यः।
आचार्यसिद्धेश्वरपादुकाभ्यो, नमोऽस्तु लक्ष्मीपतिपादुकाभ्यः।।
गुरु एवं गुरु की चरण पादुकाओं को प्रणाम; बड़ों और उनके पादुकाओं को नमस्कार। परफेक्शन के शिक्षक की चप्पलों को प्रणाम; लक्ष्मी के पति विष्णु की पादुकाओं को नमस्कार है।
🔆🙏बीज मंत्र- बीज का अर्थ है बीज, जड़। यह एक बहुत शक्तिशाली मंत्र है जिसमें आमतौर पर एक ही अक्षर होता है। बीज मंत्र प्रकृति या दिव्य के विशेष पहलुओं को उद्घाटित करता है, प्रत्येक देवता का अपना बीज होता है। सभी बीजों में सबसे बड़ा ओम या प्रणव है, क्योंकि यह पर-ब्रह्म का प्रतीक है।
ॐ - प्रणव मंत्र निर्गुण ब्रह्म (निरपेक्ष या इन्द्रियातीत सत्य) का प्रतिनिधित्व करता है, जो कल्पना से परे अनंत है।
ह्रीं - महामाया - भुवनेश्वरी/माया बीज, महालक्ष्मी की ध्वनि। सर्वव्यापी अस्तित्व। प आरक्षण, सत्व गुण, क्रिया की ऊर्जा।
ॐ भूर्भुवःस्वः, तत्सवितुर्वरेण्यं,भर्गो देवस्य धीमहि, धियो यो नः प्रचोदयात् ॐ।
ॐ. मैं उस दिव्य आत्मा की पूजा करता हूं जो भौतिक, सूक्ष्म और कारण तीनों लोकों को प्रकाशित करती है; मैं उस ईश्वर को प्रार्थना करता हूं जो सूर्य की तरह चमकता है। वह हमारी बुद्धि को प्रबुद्ध करें। गायत्री मंत्र सभी मंत्रों में सबसे महान माना जाता है, यह वेदों की जननी है, जिसका जाप सूर्योदय और सूर्यास्त के समय किया जाता है। जो लोग इस मंत्र का श्रद्धापूर्वक जप करते हैं, उनमें प्रखर बुद्धि, शरीर और मन का स्वास्थ्य, सफलता, शांति, समृद्धि और आध्यात्मिक ज्ञान की प्राप्ति होती है।
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महावाक्य ( महान कथन )
अहम् ब्रह्मास्मि
मैं भगवान हूं ( बृहदारण्यक उपनिषद से)
अयामाात्मा ब्रह्मा
आत्मा ही ईश्वर है (मा अण्डोक्या उपनिषद से)
प्रज् ण् आणं ब्रह्मा
ईश्वर शुद्ध चेतना है (तैतिरीय उपनिषद से)
तत् त्वमसि
वह तुम हो (च अण्डोग्य उपनिषद से)
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ॐ पूर्णमदः पूर्णमिदं पूर्णात्पूर्णमुदच्यते।
पूर्णस्य पूर्णमादाय पूर्णमेवावशिष्यते।।
वह पूर्ण है, यह पूर्ण है; उस संपूर्ण से, यह संपूर्ण प्रकट होता है। जब यह सम्पूर्ण निकाला जाता है,वह पूर्ण, पूर्ण ही रहता है।
[साभार https://www.aghori.it/mantra_eng.htm]
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