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सोमवार, 5 जुलाई 2021

$ परिच्छेद ~ 88,[(6सितंबर,1884) श्रीरामकृष्ण वचनामृत ] Sweet is Thy name -दीनशरण हे ! --O Refuge of the humble! *ठाकुर अन्तर्यामी हैं -जाति नहिं चरित्र देखते हैं *जाबे कि हे दिन आमार विफले चलिये,आछि नाथ, दिवानिशि आशापथ निरखिये। *श्रीगौरांग सुन्दर नव नटवर तप्तकांचनकाय' सुनते ही ठाकुर की मुहूर्मुहु समाधि और नृत्य *शास्त्र-निषिद्ध कर्म नहीं करना *श्री रामकृष्ण के भक्तों में जातिभेद नहीं होता *गुरु-शिष्य व्यवहार

 परिच्छेद ~ 88 [ श्रीरामकृष्ण वचनामृत (6सितंबर,1884)] साभार ~ श्री महेन्द्रनाथ गुप्त(बंगाली), कवि श्री पं. सूर्यकान्त त्रिपाठी ‘निराला’(हिंदी अनुवाद)/साभार विद्युत् संस्करण ~ रमा लाठ] 

परिच्छेद-८८  

*कीर्तनानन्द में श्रीरामकृष्ण*

(१)

*अधर के घर में नरेन्द्रादि भक्तों के संग में*

श्रीरामकृष्ण अधर के घर के बैठकखाने में भक्तों के साथ बैठे हुए हैं । बैठकखाना दुमंजले पर है । श्रीयुत नरेन्द्र, दोनों भाई मुखर्जी, भवनाथ, मास्टर, चुनीलाल, हाजरा आदि भक्त श्रीरामकृष्ण के पास बैठे हैं । दिन के तीन बजे होंगे । आज शनिवार है, 6 सितम्बर 1884 ।

[ঠাকুর শ্রীরামকৃষ্ণ অধরের বাটীর বৈঠকখানায় ভক্তসঙ্গে বসিয়া আছেন। বৈঠকখানা দ্বিতলের উপর। শ্রীযুক্ত নরেন্দ্র, মুখুজ্জে ভ্রাতৃদ্বয়, ভবনাথ, মাস্টার, চুনিলাল, হাজরা প্রভৃতি ভক্তেরা তাঁর কাছে বসিয়া আছেন। বেলা ৩টা হইবে। আজ শনিবার, ২২শে ভাদ্র, ১২৯১; ৬ই সেপ্টেম্বর, ১৮৮৪। কৃষ্ণা প্রতিপদ তিথি।

Saturday, September 6, 1884; About three o'clock in the afternoon Sri Ramakrishna was seated in Adhar's parlour on the second floor. Narendra, the Mukherji brothers, Bhavanath, M., Hazra, and other devotees were with the Master.

भक्तगण प्रणाम कर रहे हैं । मास्टर के प्रणाम करने के बाद श्रीरामकृष्ण अधर से पूछते हैं, क्या निताई डाक्टर न आयेगा ?

श्रीयुत नरेन्द्र गायेंगे, इसके लिए बन्दोबस्त हो रहा है । तानपूरा बाँधते समय तार टूट गया । श्रीरामकृष्ण ने कहा, अरे यह क्या किया ! तब नरेन्द्र अपना तबला ठीक करने लगे । श्रीरामकृष्ण कहते हैं - अरे तुम तबला ठोंक रहे हो पर मुझे तो ऐसा मालूम होता है मानो कोई मेरे गाल पर चपत मार रहा हो ।

[শ্রীযুক্ত নরেন্দ্র গান গাইবেন, তাহার আয়োজন হইতেছে। তানপুরা বাঁধিতে গিয়া তার ছিঁড়িয়া গেল। ঠাকুর বলিতেছেন, ওরে কি করলি। নরেন্দ্র বাঁয়া তবলা বাঁধিতেছেন। ঠাকুর বলিতেছেন। তোর বাঁয়া যেন গালে চড় মারছে!

Arrangements were being made for Narendra to sing: While he was tuning the tanpura, one of the strings snapped, and the Master exclaimed, "Oh! What have you done?" Narendra then tuned the drums. The Master said to him, "You are beating that drum, and I feel as if someone were slapping my cheek.

कीर्तन के गीत के सम्बन्ध में बातचीत हो रही है । नरेन्द्र कह रहे हैं - कीर्तन में ताल-सम आदि कुछ नहीं हैं, इसीलिए इतना Popular (जनप्रिय) है और लोग उसे पसन्द करते हैं ।

{কীর্তনাঙ্গের গান সম্বন্ধে কথা হইতেছে। নরেন্দ্র বলিতেছেন, “কীর্তনে তাল সম্‌ এ-সব নাই — তাই অত Popular — লোকে ভালবাসে।”}

Referring to the kirtan, Narendra said: "There is not much rhythm in the kirtan. That's why it is so popular and people love it so much."

श्रीरामकृष्ण - यह तू क्या कह रहा है ? गाना करुणापूर्ण होता है, इसीलिए लोग इतना चाहते हैं ।

{"শ্রীরামকৃষ্ণ — সে কি বললি! করুণ বলে তাই অত — লোকে ভালবাসে।} 

"How silly! People like it because it is so tender and full of pathos.

नरेन्द्र गा रहे हैं –

(१) सुंदर तोमारि नाम दीनशरण हे;

बरशे अमृतधार, जूडाय शरण, ओ प्राणरमण हे॥

एक तव नाम धन, अमृत-भवन हे,

अमर होय सेजन, जे करे कीर्तन हे।

गभीर विषादराशि निमेये बिनाशे,

जखोनि तव नामसूधा श्रवणे परशे;

हृदय मधूमय तव गाने, होय हे हृदयनाथ चिदनन्दघन हे॥

(१)हे  दीनशरण ! तुम्हारा नाम बड़ा ही मधुर है । यह हमारे कानों में सबसे मधुर अमृत की तरह  वर्षित होता है, और हमें सुकून देता है, हे प्राणप्रिय! 

সুন্দর তোমার নাম দীনশরণ হে।}

{Sweet is Thy name, O Refuge of the humble! It falls like sweetest nectar on our ears, And comforts us, Beloved of our souls! 

(२) 

जाबे कि हे दिन आमार विफले चलिये,

आछि नाथ, दिवानिशि आशापथ निरखिये।

तुमि त्रिभुवन नाथ, आमि भिखारि अनाथ,

केमोन बोलिबो तोमाय ‘एशो हे मम हृदय।’

हृदय कूटीर द्वार, खूले राखि अनिबार,

कृपा करि एकबार, एशे कि जूडाबे हिये। 

(२) क्या मेरे दिन व्यर्थ ही चले जायेंगे ? हे नाथ ! सदा ही आशा-पथ पर मेरी दृष्टि लगी हुई हैं ।

[গান - যাবে কি হে দিন আমার বিফলে চলিয়ে। আছি নাথ দিবানিশি আশাপথে নিরখিয়ে।

(O Lord, must all my days pass by so utterly in vain? Down the path of hope I gaze with longing, day and night. Thou art the Lord of all the worlds, and I but a beggar here; How can I ask of Thee to come and dwell within my heart? My poor heart's humble cottage door is standing open wide; Be gracious, Lord, and enter there but once, and quench its thirst!}

श्रीरामकृष्ण - (हाजरा से, सहास्य) - इसने पहली भेंट के समय यही गाना गाया था ।

{"শ্রীরামকৃষ্ণ (হাজরার প্রতি, সহাস্যে) — প্রথম এই গান করে!} 

MASTER (to Hazra, smiling): "That was the first song he sang for me.

नरेन्द्र ने और भी दो-एक गाने गाये । फिर वैष्णवचरण ने एक गाना गाया -

चिनिबो केमने हे तोमाय (हरि), 

श्रीरामकृष्ण – " हरि हरि बलो रे वीणे ! (ऐ वीणा ! तू ईश्वर का नाम ले)’ यह गाना एक बार गाओ

वैष्णवचरण गा रहे  हैं –"ऐ वीणा, तू ईश्वर का नाम ले । उनके श्रीचरणों को छोड़ तुझे परम तत्त्व की प्राप्ति न होगी । उनके नाम से पाप और ताप दूर हो जाते हैं । तू 'हरे कृष्ण' 'हरे कृष्ण' कहती जा । उनकी कृपा होगी तो मैं भवसागर में फिर न रह जाऊँगा, न उसके लिए मुझे कोई चिन्ता होगी । वीणा, एक ही बार उनका नाम ले; नाम के सिवा और दूसरा अवलम्ब नहीं है । गोविन्ददास कहते हैं, दिन चले जा रहे हैं, सावधान रहना जिससे कि मैं अपार समुद्र में कहीं बह न जाऊँ ।"

{হরি হরি বল রে বীণে! শ্রীহরির চরণ বিনে পরম তত্ত্ব আর পাবিনে।।হরিনামে তাপ হরে, মুখে বল হরে কৃষ্ণ হরে,হরি যদি কৃপা করে, তবে ভবে আর ভাবিনে।বীণে একবার হরি বল, হরি নাম বিনে নাহি সম্বল,দাস গোবিন্দ কয় দিন গেল, অকুলে যেন ভাসিনে।।}

Vaishnavcharan sang: O vina, sing Lord Hari's name! Without the blessing of His feet, You cannot know the final Truth. The name of Hari slays all grief: Sing Hari's name! Sing Krishna's name! If only Hari shows His grace, Then I shall never be distressed. O vina, sing His name but once; No earthly gem is half so rare. Govinda says: In vain my days Have passed. No longer may I float Here in life's trackless ocean waste! 

[ঠাকুরের মুহুর্মুহুঃ সমাধি ও নৃত্য ]

* 'श्रीगौरांग सुन्दर नव नटवर तप्तकांचनकाय' सुनते ही ठाकुर की मुहूर्मुहु समाधि और नृत्य *

गाना सुनते ही श्रीरामकृष्ण को भावावेश हो गया है । वे उसी आवेश में कहते हैं - 'अहा ! हरे कृष्ण कहो - हरे कृष्ण कहो ।'

यह कहते हुए श्रीरामकृष्ण समाधिमग्न हो गये । भक्तगण चारों ओर बैठे हुए श्रीरामकृष्ण को देख रहे हैं । कमरा आदमियों से भर गया है ।

[গান শুনিতে শুনিতে ঠাকুর শ্রীরামকৃষ্ণ ভাবাবিষ্ট হইয়া বলিতেছেন — আহা! আহা! হরি হরি বল!এই কথা বলিতে বলিতে ঠাকুর সমাধিস্থ হইলেন। ভক্তেরা চতুর্দিকে বসিয়া আছেন ও দর্শন করিতেছেন। ঘর লোকে পরিপূর্ণ হইয়াছে।

While listening to the song, the Master became abstracted. Saying "Ah me! Ah me!", he went into samadhi. The devotees were sitting around him, their eyes riveted on him. The room was filled with people.

कीर्तिनिया उस गाने को समाप्त कर एक दूसरा गाना गाने लगा - 'শ্রীগৌরাঙ্গ সুন্দর নব নটবর, তপত কাঞ্চন কায়।' श्रीगौरांग सुन्दर नव नटवर तप्तकांचनकाय' वह गा रहा था, श्रीरामकृष्ण उठकर खड़े हो गये और नृत्य करने लगे । फिर बैठकर बाँहें फैलाकर स्वयं उसके पद गा रहे हैं ।

गाते ही गाते श्रीरामकृष्ण को फिर भावावेश हो गया । सिर झुकाये हुए समाधिलीन हो गये । सामने तकिया पड़ा हुआ है, उस पर सिर झुककर ढुलक गया है । कीर्तनिया फिर गा रहे हैं –

“हरिनाम के सिवा संसार में और कौनसा धन है ? मधाई, मधुर स्वर से तू उनके नाम का कीर्तन कर । हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे, हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे ।"

कीर्तनिया ने एक गाना और गाया । श्रीरामकृष्ण प्रेमोन्मत्त हो गये, नृत्य कर रहे हैं । वह अपूर्व नृत्य देखकर नरेन्द्र आदि भक्तगण स्थिर न रह सके । सब श्रीरामकृष्ण के साथ नृत्य करने लगे ।

नृत्य करते हुए श्रीरामकृष्ण को समाधि हो रही है । उस समय उनको अन्तर्दशा हो गयी । जबान बन्द हो गयी । सर्वांग स्थिर हो गया । भक्तगण उन्हें घेरकर नाच रहे हैं । प्रेमोन्मत्त की तरह ।

कुछ प्राकृत दशा में आते ही श्रीरामकृष्ण ने गाना शुरू किया ।

अर्धबाह्यदशा - जैसी चैतन्यदेव को हुआ करती थी - उसी प्रकार ठाकुर सिंहविक्रम से नृत्य कर रहे हैं। उस समय भी जबान बन्द है। प्रेमोन्मत्त की तरह।

आज अधर का बैठकखाना श्रीवास का आँगन हो रहा है । हरिनाम की ध्वनि सुनकर आम सड़क पर कितने ही आदमी एकत्र हो गये हैं ।

{কীর্তনিয়া ওই গান সমাপ্ত করিয়া নূতন গান ধরিলেন।

শ্রীগৌরাঙ্গ সুন্দর নব নটবর, তপত কাঞ্চন কায়।কীর্তনিয়া যখন আখর দিচ্ছেন, “হরিপ্রেমের বন্যে ভেসে যায়,” ঠাকুর দণ্ডায়মান হইয়া নৃত্য করিতে লাগিলেন। আবার বসিয়া বাহু প্রসারিত করিয়া আখর দিতেছেন। — (একবার হরি বল রে)ঠাকুর আখর দিতে দিতে ভাবাবিষ্ট হইলেন ও হেঁটমস্তক হইয়া সমাধিস্থ হইলেন। তাকিয়াটি সম্মুখে। তাহার উপর শিরদেশ ঢলিয়া পড়িয়াছে। কীর্তনিয়া আবার গাইতেছেন:‘হরিনাম বিনে আর কি ধন আছে সংসারে, বল মাধাই মধুর স্বরে।’

হরে কৃষ্ণ হরে কৃষ্ণ কৃষ্ণ কৃষ্ণ হরে হরে।

হরে রাম হরে রাম রাম রাম হরে হরে।।

গান - হরি বলে আমার গৌর নাচে।

নাচে রে গৌরাঙ্গ আমার হেমগিরির মাঝে।

রাঙ্গাপায়ে সোনার নূপুর রুণু ঝুণু বাজে।।

থেকো রে বাপ নরহরি থেকো গৌরের পাশে।

রাধার প্রেমে গড়া তনু, ধূলায় পড়ে পাছে।।

বামেতে অদ্বৈত আর দক্ষিণে নিতাই।

তার মাঝে নাচে আমার চৈতন্য গোঁসাই।।

ঠাকুর আবার উঠিয়াছেন ও আখর দিয়া নাচিতেছেন।

(প্রেমে মাতোয়ারা হয়ে রে)!

সেই অপূর্ব নৃত্য দেখিয়া নরেন্দ্র প্রভৃতি ভক্তেরা আর স্থির থাকিতে পারিলেন না, সকলেই ঠাকুরের সঙ্গে নাচিতে লাগিলেন।

নাচিতে নাচিতে ঠাকুর এক-একবার সমাধিস্থ হইতেছেন। তখন অন্তর্দশা। মুখে একটি কথা নাই। শরীর সমস্ত স্থির। ভক্তেরা তখন তাঁহাকে বেড়িয়া বেড়িয়া নাচিতেছেন।কিয়ৎক্ষণ পরেই অর্ধবাহ্যদশা — চৈতন্যদেবের যেরূপ হইত, — অমনি ঠাকুর সিংহবিক্রমে নৃত্য করিতেছেন। তখনও মুখে কথা নাই — প্রেমে উন্মত্তপ্রায়!যখন একটু প্রকৃতিস্থ হইতেছেন — অমনি একবার আখর দিতেছেন।আজ অধরের বৈঠকখানার ঘর শ্রীবাসের আঙিনা হইয়াছে। হরিনামের রোল শুনিতে পাইয়া রাজপথে অসংখ্য লোক জমিয়া গিয়াছে।

The musician sang again. As he improvised new lines describing ecstatic love of God, the Master stood up and danced. He himself improvised lines and sang them with outstretched arms. Soon he went into samadhi and sat down, with his head resting on the bolster in front of him. The musician was also carried away with emotion and sang new songs. Sri Ramakrishna again stood up and began to dance. The devotees could not control themselves. They too danced with the Master. While dancing, Sri Ramakrishna every now and then went into deep samadhi. When he was in the deepest samadhi he could not utter a word and his whole body remained transfixed. The devotees danced encircling him. After a while, regaining partial consciousness, he danced with the strength of a lion, intoxicated with ecstatic love. But even then he could not utter a word. Finally, regaining more of the consciousness of the world, he sang again, improvising the lines. An intense spiritual atmosphere was created in Adhar's parlour. At the sound of the loud music a large crowd had gathered in the street.} 

भक्तों के साथ बड़ी देर तक नृत्य करके श्रीरामकृष्ण ने आसन ग्रहण किया । भावावेश अब भी है । उसी अवस्था में नरेन्द्र से कह रहे हैं, "वही गाना गा, 'माँ, मुझे पागल कर दे।’”

[ভক্তসঙ্গে অনেকক্ষণ নৃত্যের পর ঠাকুর আবার আসন গ্রহণ করিয়াছেন। এখনও ভাবাবেশ। সেই অবস্থায় নরেন্দ্রকে বলিতেছেন — সেই গানটি — “আমায় দে মা পাগল করে।”

Sri Ramakrishna danced a long time in the company of the devotees. When he resumed his seat, still tinged with the lingering glow of divine fervour, he asked Narendra to sing "O Mother, make me mad with Thy love".

श्रीरामकृष्ण की आज्ञा पाकर नरेन्द्र ने गाया –

आमाय दे मा पागल करे (ब्रह्ममयी !)

आर काज नाई मा  ज्ञान विचारे। 

 तोमार प्रेम्रेर सुरा पाने करो मातोआरा,

ओ मा भक्तचित्तहरा डुबा ओ  प्रेमसागरे ॥

 तोमार ए पागला गारदे केह हासे केह कांदे। 

 केह नाचे आनंद करे,

ईशा मुसा श्रीचैतन्य, ओमा प्रेमेर भरे अचैतन्य। 

हाय कबे हबो मा धन्य, (ओ मा) मिशे तार भितरे ॥

 स्वर्गेते पागलेर मेला, जेमन गुरु तेमनि चेला

                        प्रेमेर खेला के बुझते पारे। 

तुई प्रेमे उन्मादिनी, ओ मा पागलेर शिरोमणि। 

            प्रेमधने करो मा धनी, कांगाल प्रेमदासेरे ॥

रचयिता -त्रैलोक्यनाथ सांन्याल:

‘माँ मुझे पागल कर दे ।’ हे माँ, मुझे अपने प्यार में पागल कर दो! मुझे ज्ञान या विचार-शक्ति की क्या आवश्यकता है? . . .

আমায় দে মা পাগল করে (ব্রহ্মময়ী)

আর কাজ নাই জ্ঞানবিচারে।।

তোমার প্রেমের সুরা, পানে কর মাতোয়ারা।

ও মা ভক্ত চিত্তহরা ডুবাও প্রেমসাগরে।।

তোমার এ পাগলা গারদে, কেহ হাসে কেহ কাঁদে,

কেহ নাচে আনন্দ ভরে।

ঈশা মুসা শ্রীচৈতন্য, ওমা প্রেমের ভরে অচৈতন্য,

হায় কবে হব মা ধন্য, (ওমা) মিশে তার ভিতরে।।

স্বর্গেতে পাগলের মেলা, যেমন গুরু তেমনি চেলা,

প্রেমের খেলা কে বুঝতে পারে।

তুই প্রেমে উন্মাদিনী, ওমা পাগলের শিরোমণি,

প্রেমধনে কর মা ধনী, কাঙ্গাল প্রেমদাসেরে।।

{O Mother, make me mad with Thy love! What need have I of knowledge or reason? . . .}

श्रीरामकृष्ण ने एक दूसरा गाना - 'चिदानन्द सिन्धुनीरे' - गाने के लिए कहा ।

{শ্রীরামকৃষ্ণ — আর ওইটি “চিদানন্দ সিন্ধুনীরে।”}

 "And that one — Upon the Sea of Blissful Awareness'."

नरेन्द्र गा रहे हैं –

चिदानंदे सिंधुनीरे प्रेमानंदेर लहरी,

महाभाव रसलीला कि माधुरी मरि मरि। 

विविध विलास रंग प्रसंग, कोतो अभिनव भाव-तरंग,

डुबिछे उठिछे करिछे रंग नवीन नवीन रूप धरि। 

(हरि हरि बोल)

महायोगे समुदाय एकाकार होइलो, 

देशकाल, व्यवधान, भेदाभेद घुचिलो।  

(आशा पुरिलो रे - आमार सकल साध मिटे गेलो)

एखोन आनंदे मातिया दुबाहु, 

तुलिया बोलो रे मन हरि हरि।   

"चिदानन्द सिन्धु में प्रेमानन्द की तरंगें उठ रही हैं । वह महाभाव है, उस रसलीला की माधुरी का मैं क्या वर्णन करूँ ! महायोग में सब कुछ एकाकार हो गया । देश-काल की सीमा, भेदाभेद, सब दूर हो गये । अब आनन्द में मस्त होकर बाहुओं को उठा, मन ! उनके नाम का कीर्तन कर ।"

চিদানন্দ সিন্ধুনীরে প্রেমানন্দের লহরী।

মহাভাব রসলীলা কি মাধুরী মরি মরি।।

মহাযোগে সমুদায় একাকার হইল।

দেশ-কাল ব্যবধান ভেদাভেদ ঘুচিল।।

এখন আনন্দে মাতিয়া দুবাহু তুলিয়া,

       বল রে মন হরি হরি।।

{Upon the Sea of Blissful Awareness waves of ecstatic love arise: Rapture divine! Play of God's Bliss! Oh, how enthralling! . . .} 

श्रीरामकृष्ण - (नरेन्द्र से) - और 'चिदाकाश' वाला ? - नहीं, रहे, वह बड़ा लम्बा है, न ? अच्छा धीरे-धीरे सही ।

चिदाकाशे होलो पूर्ण प्रेमचंद्रोदय हे,

उथलिलो प्रेमसिंधू कि आनंदमय हे। 

(जय दयामय, जय दयामय, जय दयामय )

चारिदिके झलमल कोरे भक्त ग्रहदल,

भक्तसंगे भक्तसखा लीलारसमय हे। 

(जय दयामय, जय दयामय, जय दयामय )

स्वर्गेर दुआर खुली, आनंदलहरी तूली, 

नवविधान वसंत समीरन बय। 

छूटे ताहे मंद मंद लीलारस प्रेमगंध,

घ्राणे जोगिवृंद जोगानंदे मत्त होये हे। 

(जय दयामय, जय दयामय, जय दयामय)

भवसिंधू जले, विधान कमले, आनंदमयी विराजे,

आवेशे आकूल, भक्त अलिकूल, पिये सूधा तार माझे। 

देखे देखे मायेर प्रसन्न वदन, चित्त विनोदन भूवन मोहन,

पदतले दले दले साधुगण नाचे गाय प्रेमे होईये मगन। 

किबा अपरूप आहा मरी मरी जुडाईलो प्राण दरशन कोरी,

प्रेमदासे बोले सबे पाये धोरी, गाओ भाई मायेर जय। 

(ऋतम्भरा) प्रज्ञा के आकाश में प्रेम का चन्द्रमा पूर्ण रूप से उदय हो रहा है, और उस प्रेम के  ज्वार-भाटा की उत्ताल तरंगें - हर तरफ बह रही है। हे माँ जगदम्बा , तुम कितने आनंद से भरी हुई हैं! प्रेम दास सभी के पैर पकड़ कर कहता है , भाई माता की जयजयकार करो !... 

{শ্রীরামকৃষ্ণ (নরেন্দ্রের প্রতি) — আর ‘চিদাকাশে’? — না, ওটা বড় লম্বা, না? আচ্ছা, একটু আস্তে আস্তে!} 

"And that one too — 'In Wisdom's firmament'. Perhaps it is too long. Do you think so? All right, sing it slowly."

नरेन्द्र ने वह गाना भी गाया -

চিদাকাশে হল পূর্ণ প্রেমচন্দ্রোদয় হে।

উথলিল প্রেমসিন্ধু কি আনন্দময় হে।। 

{In Wisdom's firmament the moon of Love is rising full, And Love's flood-tide, in surging waves, is flowing everywhere. O Lord, how full of bliss Thou art! Victory unto Thee! . . .

 श्रीरामकृष्ण ने एक और गाना - " हरिरस मदिरा " गाने के लिए कहा, नरेन्द्र ने उसे भी गाया ।

{শ্রীরামকৃষ্ণ — আর ওইটে — ‘হরিরস মদিরা?’}

 "And won't you sing that one — The Wine of Heavenly Bliss'?"

{Be drunk, O mind, be drunk with the Wine of Heavenly Bliss! Roll on the ground and weep, chanting Hari's sweet name! Fill the arching heavens with your deep lion roar, Singing Hari's sweet name! With both your arms upraised, Dance in the name of Hari and give His name to all. Swim by day and by night in the bliss of Hari's love; Slay desire with His name, and blessed be your life!

हे मन, नशे में रहो, स्वर्गीय आनंद की मदिरा के नशे में रहो! जमीन पर लुढ़क कर रोओ, हरि के मधुर नाम का जप करो! अपने गगनभेदी सिंह की दहाड़ से आकाश को भर दें, हरि का मधुर नाम गाते हुए! अपनी दोनों भुजाओं को ऊपर उठाकर, हरि के नाम पर नाचो और सबको उनका  नाम सुना दो। हरि के प्रेम के आनंद में दिन-रात तैरते रहो; उनके नाम से भोगेच्छाओं का वध कर दो, और तुम्हारा जीवन धन्य हो!

श्रीरामकृष्ण और भक्तगण जरा विश्राम कर रहे हैं । नरेन्द्र ने धीरे-धीरे श्रीरामकृष्ण के कानों में कहा - 'आप वह गाना जरा गाइयेगा ?' श्रीरामकृष्ण ने कहा, मेरा गला बैठ गया है । कुछ देर बाद उन्होंने पूछा, कौनसा गाना ? नरेन्द्र - 'भुवन-रंजन-रूप' श्रीरामकृष्ण ने धीरे-धीरे गाकर नरेन्द्र को सुना दिया । 

गौर को नादिया में कौन लाया है -

गौर, जिसकी सुंदरता से दुनिया मोहित हो जाती है?

उसका चेहरा, घुँघराले बालों के छल्लों से ढका हुआ,

मानो काले काले काले  बादलों में बिजली की तरह चमकता है। . . .

{ঠাকুর আস্তে আস্তে গাইতেছেন:ভুবনরঞ্জনরূপ নদে গৌর কে আনিল রে (অলকা আবৃত মুখ)(মেঘের গায়ে বিজলী) (আন হেরিতে শ্যাম হেরি)}

Who has brought Gaur to Nadia —Gaur, whose beauty delights the world?His face, covered with ringlets of hair, Shines like lightning against a dark cloud.   

इसके बाद ठाकुर एक और गीत गोपियों के कृष्ण -विरह का गाते हैं:

श्यामेर नागाल पेलाम ना (गो) सई

आमि कि सुखे आर घरे रोई॥

श्याम यदि मोर होतो माथार चूल

यतन कोरे बांधतुम बेणी सई, दिये बकुल फूल

(केशव-केश यतने बांधतुम सई) (केऊ नकते परतो ना सई)

(श्याम कालो आर केश कालो) (कालोय कालो मिशे जेतो गो)

श्याम यदि मोर बेशर होइतो) (नाशा माझे सतत रोइतो)

(अधर चांद अधरे र’त सई) (जा होबार नय, ता मने होयगो)

(श्याम केनो बेशर होबे’ सई)

श्याम मोर यदि कंकण होतो, बाहु माझे सतत रोईतो

(कंकण नाडा दिये चले जेतुम सई) (बाहु नाडा दिये)

(श्याम कंकण हात दिये, चले जेतुम सई, राजपथे)

শ্যামের নাগাল পেলাম না লো সই।

আমি কি সুখে আর ঘরে রই।।

শ্যাম যদি মোর হতো মাথার চুল।

যতন করে বাঁধতুম বেণী সই, দিয়ে বকুল ফুল।।

(কেশব-কেশ যতনে বাঁধতুম সই)  (কেউ নক্‌তে পারত না সই)

(শ্যাম কালো আর কেশ কালো)  (কালোয় কালোয় মিশে যেতো গো)।

শ্যাম যদি মোর বেশর হইত, নাসা মাঝে সতত রহিত, —

(অধর চাঁদ অধরে র’ত সই)(যা হবা নয়, তা মনে হয় গো)(শ্যাম কেন বেশর হবে সই?)।

শ্যাম যদি মোর কঙ্কণ হতো বাহু মাঝে সতত রহিত

(কঙ্কণ নাড়া দিয়ে চলে যেতুম সই) (বাহু নাড়া দিয়ে)

(শ্যাম-কঙ্কণ হাতে দিয়ে, চলে যেতুম সই) (রাজপথে)

 (6सितंबर,1884) 

(२)

*ठाकुर अन्तर्यामी हैं -जाति नहिं चरित्र देखते हैं *

गाना समाप्त हो गया । नरेन्द्र, भवनाथ आदि भक्तगण श्रीरामकृष्ण से वार्तालाप कर रहे हैं । हँसते हुए कह रहे हैं, हाजरा नाचा था ।

नरेन्द्र - (सहास्य) - जी हाँ, धीरे-धीरे !

श्रीरामकृष्ण - (सहास्य) - धीरे-धीरे ?

नरेन्द्र - (सहास्य) - उसकी तोंद भी नाचती थी ! (सब हँसते हैं ।)

पण्डित शशधर जिस मकान में हैं, उस मकान में श्रीरामकृष्ण के निमन्त्रण की बात हो रही है ।

{Pundit Shashadhar's host had been thinking of inviting the Master for dinner.

শশধর যে বাড়িতে আছেন, সেই বাড়িতে ঠাকুরের নিমন্ত্রণ হইবার কথা হইতেছে।}

नरेन्द्र - मकानवाला खिलायेगा ?

श्रीरामकृष्ण - सुना है, उसका स्वभाव अच्छा नहीं है, लुच्चा है ।

{MASTER: "I have heard that his host is not an honest man. He is immoral."শ্রীরামকৃষ্ণ — তার শুনেছি স্বভাব ভাল না — লোচ্চা।} 

नरेन्द्र - इसीलिए जिस दिन शशधर से आपकी प्रथम भेंट हुई थी, उस दिन उसके छुये हुए गिलास से आपने पानी नहीं पिया । आपने कैसे पहचाना कि उसका स्वभाव अच्छा नहीं है ?

{NARENDRA: "That is why you didn't drink the water he touched. It happened the first day you met Shashadhar at his house. How did you come to know he was immoral?"নরেন্দ্র — আপনি তাই — যেদিন শশধরের সহিত প্রথম সাক্ষাৎ হয় — তাদের ছোঁয়া জলের গেলাস থেকে জল খেলেন না। আপনি কেমন করে জানলেন যে লোকটার স্বভাব ভাল না?}

[পূর্বকথা — সিওড়ে হৃদয়ের বাটীতে হাজরা ও বৈষ্ণব সঙ্গে ]

*शास्त्र-निषिद्ध कर्म नहीं करना * 

[पृष्ठभूमि - शिहड़ में ह्रदय के घर में हाजरा और वैष्णव के साथ घटित - घटना]

श्रीरामकृष्ण - (सहास्य) - हाजरा एक घटना और जानता है । उस देश में - सिहोड़ में - हृदय के घर में वह हुई थी ।

हाजरा - वह एक वैष्णव है - मेरे साथ आपके दर्शन करने आया था । ज्योंही आकर बैठा कि आप उसकी ओर पीठ फेरकर बैठ गये ।

श्रीरामकृष्ण - सुना, अपनी मौसी से फँसा था - पीछे से पता चला । (नरेन्द्र से) पहले तो तू कहता था, ये सब मेरे मन के विकार (hallucination-मतिभ्रम) हैं। 

{"শ্রীরামকৃষ্ণ — মাসীর সঙ্গে নাকি নষ্ট ছিল — তারপর শোনা গেল। (নরেন্দ্রের প্রতি) আগে বলতিস আমার অবস্থা সব মনের গতিক। (hallucination)} 

MASTER: "We learnt later that he led an immoral life. (To Narendra) You used to say, at first, that these were all hallucinations.

नरेन्द्र मैं तब जानता थोड़े ही था । अब तो कई बार देखा - सब मिलते हैं ।

{"কে জানে! এখন তো অনেক দেখলাম — সব মিলেছে!} 

"How was I to know? Now I see that you are always right.

नरेन्द्र के कहने का तात्पर्य यह है कि अन्तर्यामी श्रीरामकृष्ण भावावस्था में लोगों का अन्तर भी देख लेते हैं ! इसी की उन्होंने कितनी ही बार परीक्षा ली है

{নরেন্দ্র বলিতেছেন, ঠাকুর ভাবাবস্থায় লোকের অন্তর বাহির সমস্ত দেখিতে পান — এটা তিনি অনেকবার মিলাইয়া দেখিলেন।}

[प्रभु श्री रामकृष्ण और भक्तों की जाति का निर्णय — Caste ]

[ঠাকুর শ্রীরামকৃষ্ণ ও ভক্তের জাতি বিচার — Caste]

श्रीरामकृष्ण और भक्तों की सेवा के लिए अधर ने बड़ा इन्तजाम किया है । उन्होंने भोजन के लिए सब को बुलाया ।

महेन्द्र और प्रियनाथ, दोनों मुखर्जी भाइयों से श्रीरामकृष्ण कह रहे हैं, क्यों जी, तुम भोजन करने न चलोगे ?

उन्होंने विनयपूर्वक कहा - जी, हमें अब रहने दीजिये ।

{"ঠাকুর ও ভক্তদের সেবার জন্য অধর অনেক আয়োজন করিয়াছিলেন। তিনি এইবার তাঁহাদিগকে আহ্বান করিতেছেন।মহেন্দ্র ও প্রিয়নাথ — মুখুজ্জে ভ্রাতৃদ্বয়কে — ঠাকুর বলিতেছেন, ‘কিগো, তোমরা খেতে যাবে না?’ তাঁহারা বিনীতভাবে বলিতেছেন — ‘আজ্ঞা, আমাদের থাক।’} 

Adhar had prepared a feast for the Master and the devotees, and now he invited them to the meal. The Master said to the Mukherji brothers: "What? Won't you eat?" They said humbly, "Please excuse us.

श्रीरामकृष्ण – (सहास्य) – ये लोग सब कुछ करते हैं । बस इतने ही से इन्हें संकोच है ।

“एक औरत के जेठों के नाम हरि और कृष्ण थे । उसे हरिनाम तो कहना ही होगा । इधर 'हरे कृष्ण' कहने से जेठों के नाम आते थे । इसलिए वह जपती थी –

'फरे फृष्ट, फरे फृष्ट, फृष्ट फृष्ट फरे फरे;

फरे राम, फरे राम, राम राम फरे फरे ।’

{“একজনের শ্বশুর ভাসুরের নাম হরি, কৃষ্ণ — এই সব। এখন হরিনাম তো করতে হবে? — কিন্তু হরে কৃষ্ণ, বলবার জো নাই। তাই সে জপ কচ্ছে —ফরে ফৃষ্ট, ফরে ফৃষ্ট, ফৃষ্ট ফৃষ্ট ফরে ফরে! ফরে রাম, ফরে রাম, রাম রাম ফরে ফরে!”}

अघर जाति के स्वर्णवणिक थे । इसीलिए कोई-कोई ब्राह्मण भक्त उनके यहाँ भोजन करते हुए संकोच करते थे । कुछ दिन बाद जब उन्होंने देखा, श्रीरामकृष्ण स्वयं भोजन कर रहे हैं, तब उनका वह भाव दूर हो गया ।

{MASTER: "But why? You are doing everything else. Why this hesitation only about eating the meal?"Adhar was a low-caste Hindu. Therefore some of the Master's brahmin devotees hesitated to eat at his house. They came to their senses at last when they saw Sri Ramakrishna himself eating.}

रात के नौ बजे नरेन्द्र, भवनाथ आदि भक्तों के साथ आनन्दपूर्वक श्रीरामकृष्ण ने भोजन किया ।

अब बैठकखाने में आकर विश्राम कर रहे हैं । फिर दक्षिणेश्वर लौटने का उद्योग होने लगा ।

कल रविवार है । दक्षिणेश्वर में श्रीरामकृष्ण के आनन्द के लिए मुखर्जी भ्राताओं ने कीर्तन का बन्दोबस्त किया है । श्यामदास कीर्तनिये का गाना होगा । श्यामदास को अपने यहाँ बुलाकर राम ने कीर्तन सीखा था

गुरु-शिष्य व्यवहार 

श्रीरामकृष्ण नरेन्द्र से कल दक्षिणेश्वर जाने के लिए कह रहे हैं। 

श्रीरामकृष्ण - (नरेन्द्र से ) - कल जाना , अच्छा ? 

{শ্রীরামকৃষ্ণ (নরেন্দ্রের প্রতি) — কাল যাবি — কেমন?)

नरेन्द्र - अच्छा जी , जाने की कोशिश करूँगा। 

{নরেন্দ্র — আচ্ছা, চেষ্টা করব।}

श्रीरामकृष्ण - स्नान -भोजन भी वहीं करना। 

{শ্রীরামকৃষ্ণ — সেখানে নাইবি খাবি।}

"ये (मास्टर) भी जायेंगे अगर कोई अड़चन न हो। (मास्टर से) तुम्हारी बीमारी तो अब अच्छी हो गयी है न ? -अब पथ्यवाली व्यवस्था तो नहीं है ? " 

{“ইনিও (মাস্টার) না হয় গিয়ে খাবেন। (মাস্টারের প্রতি) — তোমার অসুখ এখন সেরেছে? — এখন পত্তি (পথ্য) তো নয়?”}

मास्टर -जी नहीं - मैं भी जाऊँगा। 

{মাস্টার — আজ্ঞা না — আমিও খাব।}

नित्यगोपाल वृन्दावन में हैं। कई दिन हुए चुनीलाल वृन्दावन से लौटे हैं। श्रीरामकृष्ण उनसे नित्यगोपाल का हाल पूछ रहे हैं। अब दक्षिणेश्वर चलने की तैयारी होने लगी। मास्टर ने भूमिष्ट हो उनके पादपद्मों में माथा टेककर प्रणाम किया। 

{নিত্যগোপাল বৃন্দাবনে আছেন। চুনিলাল কয়েকদিন হইল বৃন্দাবন হইতে ফিরিয়াছেন। ঠাকুর তাঁহার কাছে নিত্যগোপালের সংবাদ লইতেছেন। ঠাকুর দক্ষিণেশ্বর যাত্রা করিবেন। মাস্টার ভূমিষ্ঠ হইয়া তাঁহার শ্রীপাদপদ্ম মস্তকের দ্বারা স্পর্শ করিয়া প্রণাম করিলেন।}

श्रीरामकृष्ण ने स्नेहपूर्वक उनसे कहा, तो अब आओ। 

{ঠাকুর সস্নেহে তাঁহাকে বলিতেছেন, ‘তবে যেও।’}

(नरेन्द्रादि भक्तों से सस्नेह )-

" नरेन्द्र भवनाथ , तुम लोग आना। "   

{(নরেন্দ্রাদির প্রতি, সস্নেহে) — ‘নরেন্দ্র ভবনাথ যেও।’}

नरेन्द्र , भवनाथ आदि भक्तों ने भी भूमिष्ठ हो उन्हें प्रणाम किया। उनके अपूर्व कीर्तनानन्द और भक्तों के साथ सुन्दर नृत्य की याद करते हुए भक्तगण घर लौटे। 

{নরেন্দ্র, ভবনাথ প্রভৃতি ভক্তেরা তাঁহাকে ভূমিষ্ঠ হইয়া প্রনাম করিলেন। তাঁহার অপূর্ব কীর্তনানন্দ ও কীর্তনমধ্যে ভক্তসঙ্গে অপূর্ব নৃত্য স্মরণ করিতে করিতে সকলে নিজ নিজ গৃহে ফিরিতেছেন।}

आज भादो की कृष्णा प्रतिपदा है , चांदनी रात है। श्रीरामकृष्ण भवनाथ , हाजरा आदि भक्तों के साथ गाड़ी पर बैठकर दक्षिणेश्वर की ओर जा रहे हैं। 

{আজ ভাদ্র কৃষ্ণাপ্রতিপদ। রাত্রি জ্যোৎস্নাময়ী — যেন হাসিতেছে। ঠাকুর শ্রীরামকৃষ্ণ, ভবনাথ, হাজরা প্রভৃতি ভক্তসঙ্গে দক্ষিণেশ্বরাভিমুখে যাইতেছেন।}

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