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सोमवार, 12 अक्टूबर 2009

' स्वतंत्रता-दिवस '

" उत्साह की अग्नि से ह्रदय को भर लो और देश के कोने-कोनेतक फ़ैल जाओ !"
' स्वतंत्रता-दीवस ' को धूम-धाम से मनाने की प्रथा का निर्वहन प्रतिवर्ष की भाँति इस वर्ष भी आमतौर से कर लिया गया है। हर वर्ष की तरह इस वर्ष भी स्वाधीनता-दीवस की पूर्वसंध्या पर भारत की गरीब अशिक्षित जनता के उत्थान के लिए लम्बे-चौड़े वादे करने की प्रथा को भी एक बार फिर से दुहरा जरुर लिया गया था।  
किन्तु आजके दिन हमलोग उन शहीदों को याद करना आवश्यक नहीं समझते, जिन्होंने स्वाधीनता की बलिवेदी पर अपने जीवन का उत्सर्ग किया था। हो सकता है कि हमारी इन उक्तियों को कुछ लोग नकारात्मक भी कहें। परन्तु किसी राष्ट्र के लिए ' स्वतंत्रता ' का क्या मूल्य है इस बात को हम ठीक से समझ नहीं सके हैं। क्योंकि इसे प्राप्त करने के लिए हमने यथेष्ट मूल्य नहीं चुकाया है। इसीलिये स्वतंत्रता कि उल्टी गिन्ती का प्रारम्भ होते समय ही हमलोग डगमगा गए थे; जिसके परिणाम स्वरुप ब्रिटिश संसद ने भारतवर्ष को तीन  टुकड़ों में बाँट कर दी जाने इस आजादी को  " India Independence Act "  बिल पास करवा कर, हमारे ऊपर जबरन थोप दिया था। 
यह आजादी अंग्रेजों को इसीलिये देनी पड़ी, क्योंकि नेताजी सुभाष के नेतृत्व में हिन्दू-मुसलमानों ने अंग्रेजों से लोहा लेने के लिए, मिलजुल कर " आज़ाद हिन्द फ़ौज " का निर्माण किया था, एवं राष्ट्र को स्वाधीन करवाने के लिए ' सर्वोच्च बलिदान ' का जैसा उदाहरण प्रस्तुत किया था ; उसके कारण जो भारतीय सैनिक ब्रिटश-राज के प्रति वफादार थे,  उनके वफ़ादारी की वह ' बुनियाद ' ही हिल चुकी थी जिनके दम पर अंग्रेज-सरकार अभी तक टिकी हुई थी, टूट-टूट कर बिखरने लगी थी।उधर हँसते हँसते फाँसी के फंदों पर झूल जाने वाले क्रन्तिकारी शहीदों के भूत से भी ब्रिटिश राज-शाही भयभीत हो गयी थी। द्वितीय-विश्वयुद्ध ने ब्रिटिश-राजशाही की कमर को ही तोड़ डाला था। वे जान चुके थे कि उनका खेल अब ख़त्म हो चुका है। 
और इस प्रकार ' ब्रिटिश-राष्ट्रमंडल ' (British Commonwealth) के अर्न्तगत १४ एवं १५ अगस्त १९४७ को दो " स्वतंत्र उपनिवेशों " (Independent Dominions) का जन्म हुआ। विभाजित भारतवर्ष के बड़े भूखंड को ही ' India ' कहा जाने लगा, और स्वतंत्र India  के चाटुकारों ने अन्तिम ब्रिटिश वाइसराय " British Viceroy "  या " बड़े लाट-साहब " को अपना पहला गवर्नर जनरल (first Governor General ) बनने के लिए आमन्त्रित किया ! 
 अंग्रेजों की ' फूट डालो और राज करो ' की नीति के कारण जो भारत सन्तानें (हिन्दू-मुसलमान) आपस में लड़ते रहते थे, उनको नेताजी ने 'आजाद हिन्द फौज़ ' का निर्माण करके फिर से एक कर दिया था। किन्तु अंग्रेजों ने इस देश को स्थाई रूप से कमजोर बना देने की एक चाल चली; तथा इस देश को तीन टुकड़ों में बाँट दिया - ताकि ये दोनों भाई धर्म और भाषा के नाम पर, अनादि काल तक एक दुसरे से झगड़ते रहें।इस प्रकार देश को छोड़ने के पहले अंग्रेजों ने,हिंदुस्तान-पाकिस्तान-बंगलादेश की बुनियाद डाल कर भारतवर्ष के उन सन्तानों के बीच ही फूट पैदा करवा दिया। 
अन्ततोगत्वा - इसी अन्तिम British Viceroy ने हमारे एकमात्र संगठित राष्ट्रीय स्वतंत्रता आन्दोलन के अन्तिम अवशेष ' आज़ाद हिन्द फ़ौज ' को चतुराई से ( नेहरू-एडविना प्रसंग को प्रोत्साहित कर ) धूल में मिला दिया। उनके द्वारा लूट लिए जाने के बाद भी हम लोगगर्वान्वित थे और हमे किसी बात की कोई चिंता नहीं थी। और हमारे तत्कालीन बूढ़े, थके-माँदे, सौदेबाज तथा सत्ता के लोभी नेताओं ने ' भारत माता ' को इस प्रकार तीन टुकडों में काटे जाना स्वीकार भी कर लिया।

 इसके बाद हमलोगों ने उद्दात लक्ष्य एवं सिद्धान्तों से भरपूर, संसार के सबसे भारी- भरकम संविधान के रूप में ' Constitution of India ' की रचना की। इस संविधान द्वारा निर्धारित राष्ट्र को संचालित करने की पद्धति पूरी तरहसे पाश्चात्य देशों, विशेष कर England के संविधान को आँख मूंद कर की गई नक़ल है।सच्चाई तो यह है कि भारत की राष्ट्रीयता (Nationality of India) क्या है ? - हम लोग पहले एक भारतीय हैं, या किसी खास राज्य के नागरिक - बिहारी, बंगाली,गुजराती, या मराठी-मानुष हैं ?  ' एक भारत एक-राष्ट्र ' के गौरव  को आज तक हम भारतियों को समझने ही नहीं दिया गया है।

क्योंकि जिन दिनों England के संविधान का अन्धानुकरण किया जा रहा था, उस समय भारत की  साधारण जनता से लेकर यहाँ के नेता तक - हम सभी लोग, किसी भी British चीज की नक़ल करने में अपनी शान समझते थे। आजकल हम लोग England का अन्धानुकरण करने के बदले US का अन्धानुकरण करने में अपनी शान समझते हैं।
किन्तु स्वामी विवेकानन्द ने विदेशी शासन के कारण मिलने वाली गुलामी या परतन्त्रता के दमनकारी टीस या कसक को बहुत गहराई से महसूस किया था। उन्होंने भारत वासियों के ह्रदय में ' राष्ट्रीय- गौरव ' की चेतना को जाग्रत कराया था, तथा भारत को अंग्रेजों की गुलामी से मुक्त करवाने के लिए युवाओं को ' युग-नायक ' ने समस्त भारतियों को एक सच्चा देश-भक्त (Hero) बनने का आह्वान करते हुए कहा था -" उत्तिष्ठत् ! जाग्रत् ! प्राप्य वरान्नी बोधत ! "
उन्होंने ' भारत माता ' से ही प्रेम करने को कहा था, इस एकमात्र जाग्रत आराध्या देवी के लिए आहुतिप्रदान करने को कहा था।उन्होंने राष्ट्र के युवाओं को, भारत के ग्रामो की झोपड़ीयों में निवास करने वाले करोडों पददलित जाग्रत देवी-देवताओं की सेवा तन मन धन से करने के लिए पुकारा था। " उत्तिष्ठत् ! जाग्रत् ! प्राप्य वरान्नी बोधत ! " - अर्थात उठो ! जागो ! और लक्ष्य प्राप्त किए बिना विश्राम मत लो ! और उनके इस आह्वान को नेताजी ' सुभाष ' ने विशेष रूप से अपने ह्रदय में धारण कर लिया था। आज एक बार फ़िर उसी राष्ट्र-चेतना को पुनरुज्जीवित करने की आवश्यकता है। 
किन्तु स्वतंत्र भारत के क्रमशःविकसित होते हुए इतिहास में ' सच्चा राष्ट्रवाद ' विकसित नहीं हो सका है।देश के विकास की योजनाओं में शिक्षा और स्वाथ्य को बहुत कम महत्व दिया गया।नैतिकता या युवाओं के चरित्र-निर्माण के लिए स्वतंत्र भारत की शिक्षा-निति में कोई स्थान नहीं दिया गया। जिसके फलस्वरूप आजादी के प्रारंभिक दिनों में " भ्रष्टाचार " को कुछ हद तक बर्दास्त किया जाने लगा, किन्तु बाद में भ्रष्टाचार को प्रत्येक स्तर पर व्याप्त ' एक आवश्यक बुराई(Necessary Evil) ' के रूप में स्वीकृति प्रदान कर दी गई।
और स्वतंत्र भारत में ' नेताजी ' को नगण्य बना दिया गया। किन्तु यदि सचमुच वे एक ' नाचीज़ ' हैं, तो उनसे जुड़ी हुयी समस्त फाइलों को अनन्त कल तक ' गोपनीय ' रखना क्यों आवश्यक है ? पिछले जाँच आयोग के अनुसार - ' नेताजी ' उस हवाई जहाज दुर्घटना में मर गए जो कभी दुर्घटना ग्रस्त हुआ ही नहीं था।और ' स्वामीजी ' ? स्वतंत्र भारत में स्वामी विवेकानन्द को केवल एक हिन्दू आध्यात्मिक नेता का तगमा लगाकर किनारे कर दिया गया।
भारत के जन-जन में ' सच्चे राष्ट्रवाद ' की चेतना को जाग्रत करा देने में समर्थ - स्वामी विवेकानन्द द्वारारचित जिस ' स्वदेश मन्त्र ' को पढने से श्री मोहनदास करमचंद गाँधी की राष्ट्र भक्ति हज़ार गुना बढ़ गई थी, उसे आजादी के बाद - ' स्वाधीन भारत की शिक्षा व्यवस्था ' में उचित स्थान देना भी आवश्यक नहीं समझा गया।
 उसी प्रकार राजनैतिक तथा राष्ट्रीय परिपेक्ष्य में स्वामी विवेकानन्द द्वारा प्रदत्त  भारत-निर्माण सूत्र -' Be & Make ' -' तुम स्वयंमनुष्य बनो और दूसरों को मनुष्य बनने में सहायता करो ' को शिक्षा व्यवस्था में जोड़ने का प्रयास अभी तक नहीं किया गया ? किन्तु भारत की जनता इतनी मूर्ख नहीं है, धीरे धीरे शिक्षा-व्यवस्था की सच्चाई साधारण जनता के सामने आ रही है।अब यह समय आ गया है कि भारत के युवा स्वयं अपने ' heroes ' का चुनाव करें। क्योंकि युवा काल में तुम इसी तरह अपने आदर्श का चुनाव करते हो। इस समय तुम जिसे अपने ' आदर्श-पुरूष ' के रूप में चुन लोगे वही तुम्हारे भावी जीवन की क्रिया-कलापों को निर्देशित करेगा।

अन्तर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष (IMF) के शीर्षस्थ अर्थ-शास्त्री भले ही यह सोंचे,कि ' वैश्विक आर्थिक मन्दी ' अब समाप्त हो चुकी है; किन्तु विश्व-व्याप्त  'भुखमरी ' को समाप्त होने में अभी बहुत लम्बा समय लगेगा। हमारे देश के बहुत से राज्यों में यह बढ़ रही है। भारत में २३ करोड़ मनुष्य कुपोषण के शिकार हैं। दीर्घ दिनों तक खाली पेट रहने से गंभीर तरह की स्वास्थ्य सम्बन्धी समस्याएँ उत्पन्न हो जातीं हैं, जिसके कारण अक्सर मौत भी हो जाती है। किन्तु ' लाल-फीता शाही ' इस मौत को, कभी - भूख से हुई मौत को नहीं मानती है; वे कहते हैं, यहाँ (झारखण्ड ) की आदिवासी- दरिद्र जनता को क्या कहना चाहिये यह पता नहीं है, जंगल के जहरीले जड़ी-बूटी या गुठली खाने से मौतें होती हैं।

किन्तु क्या हम लोग, भारत की सामान्य जनता - देश की युवा शक्ति इस सीधी सी सच्चाई भी नहीं देख सकते ? वैश्विक भूख सूचकांक ( Global Hunger Index ) में शामिल ११९ देशों की सूचि में भारत ९४ वें क्रम में है। विश्व खाद्य परियोजना(World Food Program)द्वारा जारी " वर्ष २००९ के ग्रामीण भारत में खाद्य-असुरक्षा की स्थिति पर रिपोर्ट-( The State of Food Insecurity in Rural report 2009) में- न्यून-पोषित मनुष्यों की बढती हुई संख्या, गरीबग्रामीण-जनता की क्रय शक्ति (Purchasing Power) में ह्रास, खाद्य सामग्रियों के कीमतों में वृद्धि, बढती हुई बेरोजगारी की ' विकट-संकटावस्था ' को चित्रित किया गया है ।  
इस रिपोर्ट में कहा गया है-" दक्षिण एशिया में न्यून -पोषित (undernourished) मनुष्यों की संख्या में अभी तक हुई वृद्धि का सर्वाधिक अंशदान भारत में खाद्य एवं पौष्टिक-आहार सुरक्षा की स्थिति में बदलाव के कारण रहा है। " एक अग्रणी आर्थिक समाचार पत्र का रिपोर्ट है- "समालोचकों का कहना है कि उच्च आर्थिक विकास दर (High growth rates) केवल IT outsourcing तथा दूरसंचार (Telecommunications) जैसे कुछ अद्यौगिक एवं सेवा क्षेत्रों तक ही सीमित है; जबकि ग्रामीण भारतीय अर्थव्यवस्था में केवल २% के दर से वृद्धि हो रही है।
उनका यह भी कहना है कि पौष्टिक-खुराक योजनायें (Feeding Schemes) गाँवों कि गरीब जनता तक पहुँचने के पहले ही अक्सर कुछ भ्रष्ट राजनीतिज्ञों तथा नौकरशाहों के लूट की शिकार हो जातीं हैं। ' इस वर्ष हमलोग जब स्वाधीनता दिवस  मना रहे थे, तब आधा भारत घोर सूखे की चपेट में था। हमारे जो देश वासी सर्वाधिक कष्ट झेलने के लिए मजबूर हैं, उनकेलिए किसका ह्रदय रोता है ? और कब तक देश में इस प्रकार लूट-खसोट जारी रखने की अनुमति दीजायेगी ? कब तक ?

जबकि हमारा देश उच्च विकास दर को पाने की दिशा में तीव्र गति से आगे बढ़ रहा है, क्या स्वाधीनभारत के करोड़ो मनुष्यों के लिए दोनों शाम बिना रोटी, बिना पीने का पानी, बिना स्वास्थ्यकर-शौचालय (Hygienic toilet), बिना चिकित्सा सुविधा , तथा बहुत थोड़ी सी वह भी घटिया स्तर की प्राथमिक शिक्षा के साथ- जीना ही उनकी नियति बनी रहेगी ? क्या हम लोग स्वतंत्र हैं ? क्या हमलोग स्वतंत्रता के अर्थ और महत्व को समझते भी हैं ?
" हे भारत के युवाओं ! एक बार फ़िर - उठ कर खड़े हो जाओ ! सारी जिम्मेदारी अपने कन्धों पर ले लो ! और इस बात को अच्छीतरह से जान लो, कि भारत कि साधारण जनता के दुःख-दर्द को अपने ह्रदय में महसूस कर उसको दूर हटाने के लिए उच्चतम प्रयास करने वाला, तुम्हारे सिवा और दूसरा कोई मनुष्य शायद ही कहीं है। इससम्बन्ध में तुम्हारी ओर से दिखाई गई थोड़ी भी सुस्ती या लापरवाही देश के भविष्य को संकट में डालदेगा।
आज यदि स्वामी विवेकानन्द आज शरीर में रहते तो तुमसे यही कहते कि," उत्साह कि अग्नि से ह्रदय को भर लो और देश के कोने-कोने तक फ़ैल जाओ। " केवल युवाओं के भीतर रहने वाला अनम्य और हठीला (Uncompromising) जीवन-व्रत (missionary zeal) ही उन भारतवासियों के लिए भी एक उज्जवल भविष्य का निर्माण कर सकता है, जिन्हें आजतक सुख-आराम को देखने का अवसर नहीं मिला है।पहले अपने जीवन का गठन करो ! अपने चरित्र को सुंदर ढंग से गढो ! विध्वंषक नहीं, किन्तु ओजस्वी मनोभाव धारण करो। युवा-उत्साह और स्फूर्ति कि अग्नि से भारत के पुनर्निमाण के लिए कार्य करो ! कोई भी शक्ति अब हमे सफल होने से रोक नहीं सकती ! "

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