परम राष्ट्रभक्त स्वामी विवेकानन्द ने अपने १२ वर्षों के दुःसाध्य परिव्राजक जीवन में, कश्मीर से कन्याकुमारी तक भ्रमण करते समय तब के "अखण्ड भारत" को अत्यन्त करीब से देखा था। तथा उन्हों ने ह्रदय से यह
अनुभव
किया था, कि देवताओं और ऋषि-मुनियों कि करोड़ो संतानें आज पशुतुल्य जीवन जीने को
बाध्य हैं! यहाँ लाखों लोग भूख से मर जाते हैं और शताब्दियों से मरते आ रहे हैं। अज्ञान के काले बादल ने पूरे भारतवर्ष को ढांक लिया है। उन्होंने अनुभव किया था कि मेरे
ही रक्तमांस-मय देह स्वरूप मेरे देशवासी दिन पर दिन डूबते जा रहे
हैं !
यथार्थ शिक्षा के आभाव ने इन्हें शारीरिक,मानसिक और आध्यात्मिक रूप से
दुर्बल बना दिया है। सम्पूर्ण
भारतवर्ष एक ओर "घोर- भौतिकवाद" तो दूसरी ओर इसीके प्रतिक्रियास्वरूप
उत्पन्न "घोर-रूढिवाद" जैसे दो विपरीत ध्रुवों पर केंद्रित हो गया है। भारत कि इस
दुर्दशा ने उन्हें विह्वल कर दिया। इस असीम वेदना ने उनके ह्रदय में
करुणा का संचार किया उन्होंने इसकी अवनति के कारण को ढूंढ़ निकला: वह कारण
था -'आत्मश्रद्धा का विस्मरण'।
[महामण्डल द्वारा आयोजित ४९ वाँ वार्षिक युवा प्रशिक्षण शिविर-२०१५ में
महामण्डल के अध्यक्ष, श्री नवनीहरण मुखोपाध्याय एवं सचिव, श्री बिरेन्द्र कुमार चक्रवर्ती
के साथ शिविर के समस्त कैम्प कमांडर]
(All Camp Commanders with Birenda and Nabanida — Tapan Ghosh, Debkumar Halder, Sabyasachi Mondal, Jayanta Dutta, Prasanta Nayek, Manas Bera, Dipankar Das, Anup Bangal, Riddhi Kayal, Adrish Bhaumik, Chandi Charan Chakravorty and Prithhish Bal. Amitda and Bijay Kumar Singh. )
आज देश के बारह राज्यों में इसकी तीन सौ से भी अधिक शाखाएं हैं। इसके सदस्यों को न तो गृह त्याग करना है, न अपना अध्यन ही छोड़ना है, और न अपने दैनंदिन जीवन के अन्य दायित्वों का ही त्याग करना है। उन्हें केवल अपनी अतिरिक्त शक्ति,समय और यदि सम्भव हो सके तो कुछ धन देना है। महामण्डल धर्म, जाती, संप्रदाय आदि के आधार पर, मनुष्यों में कोई भेद-भाव नहीं करता।
अखिल भारत विवेकानन्द युवा महामण्डल की आस्था
*स्वामी विवेकानन्द कहते हैं-" कोई भी राष्ट्र इसलिए महान या अच्छा नहीं होता कि उसकी पार्लियामेन्ट ने यह या वह बिल पासकर दिया है, बल्कि वह इसलिए महान या अच्छा होता कि उस राष्ट्र के नागरिक महान और अच्छे (अर्थात चरित्रवान ) हैं।"
* " मेरी आशा,मेरा विश्वास नविन पीढ़ी के नवयुवकों पर है। उन्हीं में से मैं अपने कार्यकर्ताओं का संग्रह करूँगा, वे सिंहविक्रम से देश कि यथार्थ उन्नति सम्बन्धी सारी समस्याओं का समाधान करेंगे।" .....वे एक केन्द्र से दुसरे केन्द्र का विस्तार करेंगे ,और इस प्रकार हम समग्र भारत में फ़ैल जायेंगे।
* संसार चाहता है चरित्र ! संसार को आज ऐसे लोगों कि आवश्यकता है, जिनके ह्रदय में निःस्वार्थ प्रेम प्रज्वलित हो रहा है। उस प्रेम से निःसृत प्रत्येक शब्दका प्रभाव 'बज्रवत' पड़ेगा।
*
" वत्स! मैं चाहता हूँ,'लोहे जैसी मांसपेशियाँ' और 'फौलाद के स्नायु'
जिनके अन्दर ऐसे मन का वास हो जो ' वज्र ' के उपादानों (महर्षि दधिची के
त्याग और सेवा की भावना) से गठित हो।...तुम्हारे अन्दर पूर्ण शक्ति निहित
है ! तुम सब कुछ करने में समर्थ हो ! इस शक्ति को पहिचानो !
* मत समझो कि तुम निर्बल हो, तुम बिना किसी कि सहायता लिए सब कुछ करने में समर्थ हो ! सारी शक्ति तो तुम्हारे ही अन्दर विद्यमान है ! उठो ! और अपना अन्तस्थ ब्रह्मभाव अभिवयक्त करो !"
*सर्वोत्तम
शक्ति,युवा शक्ति है-इस शक्ति का सदुपयोग करने के लिए सर्वोत्तम कार्य
युवा वर्ग के बीच कार्य करना है। आज के युवा ही हमारे लिए कल की आशायें
हैं।
*सफलता का सम्पूर्ण रहस्य "संगठन" में है,शक्ति संचय में है और इच्छा-शक्ति के समन्वय में है। इसीलिए संघबद्ध होकर आगे बढो !
*आवश्यकता
सच्चे अर्थों में महान मनुष्यों की है। शेष सबकुछ अपने आप ठीक हो
जायगा।आवश्यकता है, ' वीर्यवान, तेजस्वी, श्रद्धासम्पन्न, दृढ़-विश्वासी,
निष्कपट - नवयुवकों की।'आवश्यकता है- ' चरित्र ' की और ' इच्छा शक्ति ' को
सबल बनने की।
*जब हमारे देश में सच्चे अर्थों में 'मनुष्य' ( चरित्रवान नागरिक ) तैयार हो जायेंगे, तो अपने देश से आकाल-बाढ़ आदि दैवी विपत्तियों तथा सर्वोपरि ' भ्रष्टाचार ' को दूर करने में -कितना समय लगेगा ?
*हमलोगों को जीवन गठित करने वाली,चरित्र-निर्माण करने वाली,मनुष्य निर्माणकारी शिक्षा को अपनाना ही पड़ेगा।
*सबसे
महत्वपूर्ण वस्तु है - "उत्तम चरित्र" ! इसीलिए हमारा सर्वोच्च कर्तव्य
है - " अपने चरित्र का निर्माण" " अपना चरित्र-कमल पूर्णरूपेण खिलने दो "-
उत्तम परिणाम अवश्य निकलेंगे।
*भारत पुनर्निमाण के लिये स्वामी विवेकानन्द द्वारा सुझाया गया परामर्श है : "Be and Make ! अर्थात तुम स्वयं ' मनुष्य बनो और दूसरों को भी मनुष्य बनने' में सहायता करो ! "
*भारत पुनर्निमाण के लिये स्वामी विवेकानन्द द्वारा सुझाया गया परामर्श है : "Be and Make ! अर्थात तुम स्वयं ' मनुष्य बनो और दूसरों को भी मनुष्य बनने' में सहायता करो ! "
* स्वयं मनुष्य बनने, तथा दूसरों को मनुष्य बनाने या चरित्र-निर्माण की प्रक्रिया- को सम्पूर्ण भारतवर्ष में साथ-साथ फैला देना होगा।ताकि देश में एक बेहतर व्यवस्था (भ्रष्टाचार रहित व्यवस्था ) कायम हो सके।
" मनुष्य निर्माण की प्रक्रिया "
*मनुष्य के तीन प्रधान अवयवों (components 3-H's ) के विकास पर आधारित हैं:-ये हैं शारीरिक शक्ति का विकास (Hand), मानसिक शक्ति का विकास (Head), तथा आत्मिक शक्ति का विकास (Heart)।जिन्हें हम क्रमशः अपने हाथ,मस्तिष्क और ह्रदय के द्वारा व्यक्त करते हैं।
*युवाओं के इन तीनो अवयव ( बाहू-बल, बुद्धि-बल और आत्म-बल ) के समुचित ' विकास एवं प्रकाश ' के लिए विभिन्न कार्यक्रमों का सञ्चालन करना।
*युवकों में 'आत्म-अनुशासन' की भावना,'सामाजिक दायित्व' के निर्वहन की चेतना, स्वामी विवेकानन्द के नाम से जुड़े समस्त युवा-संगठनों के 'सम्मिलित प्रयास' के प्रति सजगता, एवं स्वयं के प्रति ' श्रद्धा- भाव ' को जाग्रत करना।
*स्वामी विवेकानंद के मनुष्य निर्माणकारी तथा चरित्र निर्माण के आदर्शों में सन्निहित मूल्यों का प्रचार-प्रसार विशेषतः युवा वर्ग में करना।
*महामण्डल इन तीनों के समुचित विकास के लिए "युवा पाठ-चक्र" (Youth Study Circle) तथा "युवा प्रशिक्षण शिविर" (Youth Training Camp) आदि विभिन्न कार्यक्रमों का संचालन करता है।
* महामण्डल युवा प्रशिक्षण-शिविर का लक्ष्य है, राष्ट्र-निर्माण के लिए युवा वर्ग में, 'निःस्वार्थ-सेवा' की भावना को जाग्रत करा कर युवाशक्ति का अनुशासित सदुपयोग करना।
"महामण्डल की प्रमुख विशेषतायें "
स्वामी विवेकानन्द ने कहा था- " मनुष्य- निर्माण ही मेरे जीवन का व्रत है, ...ज्यों ज्यों मेरी उम्र बढ़ती जा रही है, मुझे यह स्पष्ट होता जा रहा है कि- सबकुछ 'पौरुष'में ही अन्तर्निहित है ! यही मेरा नया धर्म-सिद्धान्त (सुसमाचार) है !" -एवं उनके के सपने का नया भारत गढ़ना ही महामण्डल का व्रत है।
* युवा लोग जहाँ कहीं भी एकसाथ एकत्र होते हैं ,महामण्डल वहीं पहुँच कर उनके साथ कार्य करता है।
*युवाओं के लिए तथा उनके मन पर कार्य करता है।
*उनमे आत्म-विश्वास जगाता है तथा अपने आप पर श्रद्धा करना सिखाता है।
*युवाओं को एक विधेयात्मक जीवन-दृष्टि और जीवन-लक्ष्य प्रदान करता है।
*सम्पूर्ण भारत के युवाओं को उन्हीं की भाषा में 'आत्म-विकास' और 'व्यक्तित्व-निर्माण' की वैज्ञानिक पद्धति से अवगत कराता है।
*वे युवा, जो स्वामी विवेकानन्द के नेतृत्व में विश्वास रखते हैं, मनुष्य-जाती के प्रति उनके अमर संदेशों में तथा राष्ट्र के नाम उनके आत्मझंकिर्त कर देने वाली उनकी पुकार में आस्था रखते हैं; महामण्डल वैसे युवाओं का आह्वान करता है-कि वे महामण्डल से जुड़ कर " मनुष्य-निर्माणऔर चरित्र-निर्माणकारी आन्दोलन " को भारत के गाँव-गाँव तक ले जा कर , भारत का पुनर्निमाण करने के महान उद्देश्य में जुट जाएँ।
* युवा लोग जहाँ कहीं भी एकसाथ एकत्र होते हैं ,महामण्डल वहीं पहुँच कर उनके साथ कार्य करता है।
*युवाओं के लिए तथा उनके मन पर कार्य करता है।
*उनमे आत्म-विश्वास जगाता है तथा अपने आप पर श्रद्धा करना सिखाता है।
*युवाओं को एक विधेयात्मक जीवन-दृष्टि और जीवन-लक्ष्य प्रदान करता है।
*सम्पूर्ण भारत के युवाओं को उन्हीं की भाषा में 'आत्म-विकास' और 'व्यक्तित्व-निर्माण' की वैज्ञानिक पद्धति से अवगत कराता है।
*वे युवा, जो स्वामी विवेकानन्द के नेतृत्व में विश्वास रखते हैं, मनुष्य-जाती के प्रति उनके अमर संदेशों में तथा राष्ट्र के नाम उनके आत्मझंकिर्त कर देने वाली उनकी पुकार में आस्था रखते हैं; महामण्डल वैसे युवाओं का आह्वान करता है-कि वे महामण्डल से जुड़ कर " मनुष्य-निर्माणऔर चरित्र-निर्माणकारी आन्दोलन " को भारत के गाँव-गाँव तक ले जा कर , भारत का पुनर्निमाण करने के महान उद्देश्य में जुट जाएँ।
- महामण्डल का उद्देश्य : भारत का कल्याण
- भारत के कल्याण का सच्चा उपाय : 'मनुष्य' निर्माण एवं चरित्र-निर्माण !
- महामण्डल के आदर्श : चिर-युवा स्वामी विवेकानन्द !
- महामण्डल का आदर्श वाक्य (Motto): " मनुष्य बनो और बनाओ ! " Be and Make !"
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3 टिप्पणियां:
स्वागत है...शुभकामनायें.
हिन्दी ब्लॉग की दुनिया में आपका तहेदिल से स्वागत है....
Anek shubhkamnayonsahit swagat hai...
Shama
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