(19 सितंबर,1884) श्रीरामकृष्ण वचनामृत-91]
*अभ्यासयोग*
(१)
महेंद्र के प्रति उपदेश - कप्तान की भक्ति और माता-पिता की सेवा]
दक्षिणेश्वर में महेन्द्र, राखाल,राधिका गोस्वामी आदि भक्तों के साथ
श्रीरामकृष्ण अपने कमरे में भक्तों के साथ बैठे हुए हैं । शरत् काल है । शुक्रवार, 19 सितम्बर, 1884 दिन के दो बजे होंगे । आज भादों की अमावास्या है , महालया । श्रीयुत महेन्द्र मुखोपाध्याय और उनके भाई श्रीयुत प्रिय मुखोपाध्याय, मास्टर, बाबूराम, हरीश, किशोर और लाटू जमीन पर बैठे हैं । कुछ लोग खड़े भी हैं - कोई कमरे में आ-जा रहे हैं । श्रीयुत हाजरा बरामदे में बैठे हैं । राखाल बलराम के साथ वृन्दावन में हैं ।
[শ্রীরামকৃষ্ণ দক্ষিণেশ্বর-কালীমন্দিরে সেই পূর্বপরিচিত ঘরে ভক্তসঙ্গে বসিয়া আছেন। শরৎকাল। শুক্রবার, ১৯শে সেপ্টেম্বর, ১৮৮৪; ৪ঠা আশ্বিন, ১২৯১; বেলা দুইটা। আজ ভাদ্র অমাবস্যা। মহালয়া। শ্রীযুক্ত মহেন্দ্র মুখোপাধ্যায় ও তাঁহার ভ্রাতা শ্রীযুক্ত প্রিয় মুখোপাধ্যায়, মাস্টার, বাবুরাম, হরিশ, কিশোরী, লাটু, মেঝেতে কেহ বসিয়া কেহ দাঁড়াইয়া আছেন, — কেহ বা ঘরে যাতায়াত করিতেছেন। শ্রীযুক্ত হাজরা বারান্দায় বসিয়া আছেন। রাখাল বলরামের সহিত বৃন্দাবনে আছেন।
IT WAS MAHALAYA, a sacred day of the Hindus, and the day of the new moon. At two o'clock in the afternoon Sri Ramakrishna was sitting in his room with Mahendra Mukherji, Priya Mukherji, M., Baburam, Harish, Kishori, and Latu. Some were sitting on the floor, some standing, and others moving about. Hazra was sitting on the porch. Rakhal was still at Vrindavan with Balaram.
श्रीरामकृष्ण - (महेन्द्रादि भक्तों से) - कलकत्ते में मैं कप्तान के घर गया था । लौटते हुए बड़ी रात हो गयी थी ।
“कप्तान का कैसा स्वभाव है ! कैसी भक्ति है ! छोटी धोती पहनकर आरती करता है । पहले तीन बत्तीवाले प्रदीप से आरती करता है - इसके बाद एक बत्तीवाले प्रदीप से और फिर कपूर से ।
"उस समय बोलता नहीं । मुझे इशारे से आसन पर बैठने के लिए कहा ।
"पूजा करते समय आँखें लाल हो जाती हैं, मानो बर्र ने काट लिया हो ।
"गाना तो नहीं गा सकता । परन्तु स्तवपाठ बहुत ही सुन्दर करता है ।
"वह अपनी माँ के पास नीचे बैठता है । माँ ऊँचे आसन पर बैठती हैं ।
[শ্রীরামকৃষ্ণ (মহেন্দ্রাদি ভক্তদের প্রতি) — কলিকাতায় কাপ্তেনের বাড়িতে গিছলাম। ফিরে আসতে অনেক রাত হয়েছিল।“কাপ্তেনের কি স্বভাব! কি ভক্তি! ছোট কাপড়খানি পরে আরতি করে। একবার তিন বাতিওয়ালা প্রদীপে আরতি করে, — তারপর আবার এক বাতিওলা প্রদীপে। আবার কর্পূরের আরতি।“সে সময়ে কথা হয় না। আমায় ইশারা করে আসনে বসতে বললে।“পূজা করবার সময় চোখের ভাব — ঠিক যেন বোলতা কামড়েছে!“এদিকে গান গাইতে পারে না। কিন্তু সুন্দর স্তব পাঠ করে।“তার মার কাছে নিচে বসে। মা — আসনের উপর বসবে।
MASTER (to the devotees): "I was at Captain's house in Calcutta. It was very late when I returned. What a sweet nature Captain has! What devotion! He performs the arati before the image. First he waves a lamp with three lights, then a lamp with one light, and last of all he waves burning camphor. When performing the worship he does not speak. Once he motioned to me to take my seat. During the worship his eyes become swollen from spiritual emotion, They look as if they have been stung by wasps. He cannot sing, but he chants hymns beautifully. In his mother's presence he sits on a lower level; she sits on a high stool.
"बाप अंग्रेज का हवलदार है । लड़ाई के मैदान में एक हाथ में बन्दूक रखता है और दूसरे हाथ से शिवजी की पूजा करता है । नौकर शिवमूर्ति बना दिया करता है । बिना पूजा किये जल ग्रहण भी नहीं करता । सालाना छः हजार रुपये पाता है ।
[“বাপ ইংরাজের হাওয়ালদার। যুদ্ধক্ষেত্রে একহাতে বন্দুক আর-এক হাতে শিবপূজা করে। খানসামা শিব গড়ে গড়ে দিচ্ছে। শিবপূজা না করে জল খাবে না। ছয় হাজার টাকা মাহিনা বছরে।"
His father was a havildar in the English army. He would hold a gun with one hand and with the other worship Siva. His servant made a clay image of Siva for him. He wouldn't even touch water before performing the worship. He earned six thousand rupees a year.
"कभी कभी अपनी माँ को काशी भेजता है । वहाँ उसकी माँ की सेवा पर बारह तेरह आदमी रहते हैं । बड़ा खर्च होता है । वेदान्त, गीता, भागवत, कप्तान को कण्ठाग्र हैं ।
"वह कहता है, कलकत्ते के बाबुओं का आचार बहुत ही भ्रष्ट है ।
[“মাকে কাশীতে মাঝে মাঝে পাঠায়। সেখানে বার-তেরো জন মার সেবায় থাকে। অনেক খরচা। বেদান্ত, গীতা, ভাগবত — কাপ্তেনের কণ্ঠস্থ!“সে বলে, কলিকাতার বাবুরা ম্লেচ্ছাচার।"
Captain sends his mother to Benares now and then. Twelve or thirteen servants attend her there; it is very expensive. Captain knows the Vedanta, the Gita, and the Bhagavata by heart. He says that the educated gentlemen of Calcutta follow the ways of the mlechchhas.
"पहले उसने हठयोग किया था, इसलिए जब मुझे समाधि या भावावस्था होती है तब सिर पर हाथ फेरने लगता है ।
"कप्तान की स्त्री के दूसरे इष्ट देवता है, गोपाल । अब की बार उसे उतनी कंजूसी करते नहीं देखा । वह भी गीता जानती है, कैसी भक्ति है उनकी !
[“আগে হঠযোগ করেছিল — তাই আমার সমাধি কি ভাবাবস্থা হলে মাথায় হাত বুলিয়ে দেয়।“কাপ্তেনের পরিবার — তার আবার আলাদা ঠাকুর, গোপাল। এবার তত কৃপণ দেখলাম না। সেও গীতা-টীতা জানে। ওদের কি ভক্তি!
"In his earlier years he practised hathayoga. That is why he strokes my head gently when I am in samadhi. His wife worships the Deity in another form — that of Gopala. This time I didn't find her so miserly. She too knows the Gita and other scriptures. What devotion they have!
- मुझे जहाँ भोजन कराया, वहीं हाथ मुँह भी धुलाया । दाँत खोदने की सींक भी वहीं दी ।
"मेरे खा चुकने पर कप्तान या उसकी पत्नी पंखा झलती है ।
— আমি যেখানে খাব সেইখানেই আঁচাব। খড়কে কাঠিটি পর্যন্ত।“পাঁঠার চচ্চড়ি করে, — কাপ্তেন বলে পনর দিন থাকে, — কিন্তু কাপ্তেনের পরিবার বললে — ‘নাহি নাহি, সাত রোজ’। কিন্তু বেশ লাগল। ব্যঞ্জন সব একটু একটু। আমি বেশ খাই বলে, আজকাল আমায় বেশি দেয়।“তারপর খাবার পর, হয় কাপ্তেন, নয় তার পরিবার বাতাস করবে।”
"They cooked a goat curry. Captain said they could eat it for fifteen days, but she said, 'No, no! Only seven days.' But I liked the taste of it. They serve a very small quantity of each dish, but nowadays they give me good portions since I eat more than they do. After the meal either Captain or his wife fans me.
[जंग बहादुर के पुत्र कप्तान के साथ (1875 -76) में पहुंचे -
नेपाली ब्रह्मचारिणी द्वारा गीत-गोविंद गीत - "मैं भगवान की दासी हूँ"]
[Jung Bahadur-এর ছেলেদের কাপ্তেনের সঙ্গে আগমন ১৮৭৫-৭৬
— নেপালী ব্রহ্মচারিণীর গীতগোবিন্দ গান — “আমি ঈশ্বরের দাসী” ]
"उनमें बड़ी भक्ति है । साधुओं का बड़ा सम्मान करते हैं । पश्चिम के आदमियों में साधुओं के प्रति भक्ति ज्यादा है । जंग बहादुर के लड़के और उसके भतीजे कर्नल यहाँ आये थे । जब आये तब पतलून उतारकर मानो बहुत डरते हुए आये ।
"कप्तान के साथ उसके देश की एक स्त्री भी आयी थी । बड़ी भक्त थी - विवाह अभी नहीं हुआ था । गीतगोविन्द के गाने कण्ठाग्र थे । द्वारका बाबू आदि उसका गाना सुनने के लिए बैठे थे । जब उसने गीतगोविन्द का गाना गाया तब द्वारका बाबू रूमाल से आँसू पोंछने लगे । विवाह क्यों नहीं किया, इस प्रश्न के पूछने पर उसने कहा - ईश्वर की दास हूँ ? और किसकी दासी होऊँगी ।’ और सब लोग उसे देवी समझकर बहुत मानते हैं - जैसा पुस्तकों में लिखा हुआ मिलता है ।
[“ওদের কিন্তু ভারী ভক্তি, — সাধুদের বড় সম্মান। পশ্চিমে লোকেদের সাধুভক্তি বেশি। জাঙ্-বাহাদুরের ছেলেরা আর ভাইপো কর্ণেল এখানে এসেছিল। যখন এলো পেন্টুলুণ খুলে যেন কত ভয়ে।“কাপ্তেনের সঙ্গে একটি ওদের দেশের মেয়ে এসেছিল। ভারী ভক্ত, — বিবাহ হয় নাই। গীতগোবিন্দ গান কণ্ঠস্থ। তার গান শুনতে দ্বারিকবাবুরা এসে বসেছিল। আমি বললাম, এরা শুনতে চাচ্ছে, লোক ভাল। যখন গীতগোবিন্দ গান গাইলে তখন দ্বারিকবাবু রুমালে চক্ষের জল পুছতে লাগল। বিয়ে কর নাই কেন, জিজ্ঞাসা করাতে বলে, ‘ঈশ্বরের দাসী, আবার কার দাসী হব?’ আর সব্বাই তাকে দেবী বলে খুব মানে — যেমন পুঁথিতে (শাস্ত্রে) আছে।"
They are very pious souls and show great respect to holy men. The people of upper India are greatly devoted to sadhus. The sons and nephews of the Jung Bahadur of Nepal once visited the temple garden; before me they showed great respect and humility. Once a young girl of Nepal came to see me with Captain. She was a great devotee, and unmarried; she knew the whole of the Gitagovinda by heart. Dwarika Babu (A son of Mathur Babu) and the others wanted to hear her music. When she sang the Gitagovinda, Dwarika Babu was profoundly moved and wiped the tears from his eyes with his handkerchief. She was asked why she was not married. She said: 'I am the handmaid of God. Whom else shall I serve?' Her people respect her as a goddess, as the scriptures enjoin.
(महेन्द्रादि से) "आप लोग आते हैं, जब सुनता हूँ कि इससे कुछ उपकार होता है तब मन बहुत अच्छा रहता है । (मास्टर से) यहाँ आदमी क्यों आते हैं ? - वैसा पढ़ा लिखा भी तो नहीं हूँ ।"
—”(To Mahendra Mukherji and the others) "I shall feel very happy to know that you are being benefited by your visits here. (To M.) Why do people come here? I don't know much of reading and writing."
[(মহেন্দ্রাদির প্রতি) — “আপনারা যে আসছো, তাতে কিছু কি উপকার হচ্ছে? শুনলে মনটা বড় ভাল থাকে। (মাস্টারের প্রতি) এখানে লোক আসে কেন? তেমন লেখাপড়া জানি না
मास्टर - जी, कृष्ण जब स्वयं सब चरवाहे और गौएँ बन गये (ब्रह्मा के हर लेने पर) तब चरवाहों की माताएँ नये बच्चों को पाकर फिर यशोदा के पास नहीं गयीं ।
[মাস্টার — আজ্ঞা, কৃষ্ণ যখন নিজে সব রাখাল গরুটরু হলেন (ব্রহ্মা হরণ করবার পর) তখন রাখালদের মা’রা নূতন রাখালদের পেয়ে যশোদার বাড়িতে আর আসেন না। গাভীরাও হাম্বা রবে ওই নূতন বাছুরদের পিছে পিছে গিয়ে পড়তে লাগল।
श्रीरामकृष्ण - इससे क्या हुआ ?
मास्टर - ईश्वर स्वयं ही चरवाहे बने थे कि नहीं, इसीलिए उनमें इतना आकर्षण था । ईश्वर की सत्ता रहने से ही मन खिंच जाता है ।
{মাস্টার — ঈশ্বর নিজেই সব হয়েছেন কি না, তাই এত আকর্ষণ। ঈশ্বর বস্তু থাকলেই মন টানে।}
M: "God's power is in you. That is why there is such power of attraction. It is the Divine Spirit that attracts."
(19 सितंबर,1884) श्रीरामकृष्ण वचनामृत-91]
श्रीरामकृष्ण - यह योगमाया का आकर्षण था - वह जादू डाल देती है । जटिला #के डर से बछड़े को उठाये हुए सुबल का रूप धरकर राधिका जा रही थीं; जब उन्होंने योगमाया # की शरण ली तब जटिला ने भी उन्हें आशीर्वाद दिया । "हरि की सब लीलाएँ योगमाया की सहायता से हुई थीं ।
[जटिला # मथुरा, भगवान कृष्ण की जन्मस्थली और भारत की परम प्राचीन तथा जगद्-विख्यात नगरी है। मथुरा के जावट गाँव में स्थित जटिला की हवेली के निकट एक खिड़क है। यहीं से निकलकर राधा सुबल के वेश में श्रीकृष्ण से मिलने गयी थीं। पुराणों के उल्लेखानुसार जटिला श्रीराधा रानी की सास थी, जो कि जावट ग्राम में रहा करती थी। श्री कृष्ण के सखा सुबल ने अपने बछड़े के खो जाने के बहाने जटिला जी को वंचित कर राधिका को अपने वेश में कृष्ण से मिलने के लिए भेजा था। जावट गाँव के पश्चिम भाग में ऊँचे टीले पर जटिला की हवेली है इसमें जटिला, कुटिला # और अभिमन्यु की मूर्तियाँ हैं। यहाँ जटिला की कन्या कुटिला अपने कुटिल स्वभाव के कारण सदैव राधिका पर नाना प्रकार से आक्षेप करती थी। झूठ-मूठ राधिका पर दोषों का आरोप लगाती थी। उसने किसी समय यहीं पर कृष्ण को राधिका से मिलते हुए देखा तो उसने उस कमरे का दरवाज़ा बन्द कर दिया। तथा हो-हल्ला मचाकर अपनी मैया जटिला, भैया अभिमन्यु छोटा भैया दुर्मद आदि सबको एकत्र कर लिया तथा उनसे कहने लगी- इसी कोठरी में मैंने कलंकिनी बहू को कृष्ण के साथ बन्द कर रखा है। परन्तु सबके सामने जब कपाट खोला गया तो वहाँ सबने राधा जी को काली मूर्ति की पूजा करते हुए देखा फिर क्या था? सभी लोग कुटिला को व्यर्थ ही किसी पर कलंक लगाने के लिए डाँटने लगे। वह बेचारी मुँह लटकाये हुए वहाँ से चली गई।आज भी अभिमन्यु (राधा का पती) का यह खिड़क वत्सखोर के नाम से प्रसिद्ध है। अब यहाँ पर वर्तमान समय में श्रीराधाकान्त जी का मन्दिर है, जिसमें राधा एवं कृष्ण के दर्शन होते हैं।
खिड़क का प्रसंग >किसी समय राधिका मान करके बैठ गई और कुछ दिनों तक कृष्ण से नहीं मिलीं। सखियाँ उनको विविध प्रकार से मान परित्याग करने के लिए समझा रही थीं। किन्तु इस बार उनका मान बड़ा ही दुर्जेय था। इधर श्रीकृष्ण, राधा के विरह में अत्यन्त कातर हो रहे थे। उनको अत्यन्त विरहातुर देखकर सुबल सखा उनका राधा जी से मिलन कराने का उपाय सोचने लगा। वह वयस तथा रूप, बोली आदि में ठीक राधिका के समान था तथा अनेक कलाओं में पारदर्शी था। उसने कृष्ण को सांत्वना देते हुए कहा- तुम इतने व्याकुल क्यों हो रहे हो? तुम इसी कुञ्ज में थोड़ी देर प्रतीक्षा करो, मैं प्रिया जी के साथ तुम्हारा मिलन कराता हूँ। ऐसा कहकर वह जावट ग्राम चला गया।
वहाँ जटिला ने उसे देखकर कहा- अरे सुबल ! तू तो लम्पट कृष्ण का सखा है। इधर हमारी हवेली के पास क्यों मँडरा रहा है? जल्दी यहाँ से भाग जा। सुबल ने कहा- मैया ! मेरा एक बछड़ा खो गया है, वह कहीं मिल नहीं रहा है मैं उसको खोजने के लिए आया हूँ। जटिला ने कहा- यहाँ तेरा कोई बछड़ा–बछड़ा नहीं आया तू शीघ्र भाग जा, किन्तु सुबल के बारम्बार अनुरोध करने पर उसने कहा- मैं अभी कण्डे बना रही हूँ। तुम खिड़क में जाकर देख लो। यदि तुम्हारा बछड़ा हो तो ले जाओ।
सुबल जी प्रसन्न होकर खिड़क से होते हुए राधिका जी की अटारी में पहुँचे। उन्होंने कृष्ण के विरह का ऐसा वर्णन किया कि राधिका जी का हृदय पिघल गया तथा वे तुरन्त कृष्ण को सांत्वना देने के लिए (जाने के लिए) प्रस्तुत हो गईं। किन्तु जाएँ तो कैसे? सुबल ने अपने वस्त्र देकर राधिका जी का ठीक अपने जैसा वेश बना दिया। सिर पर टेढ़ी पाग, कमर में धोती, हाथ में लठिया, गले में गुञ्जा माला और गोदी में एक छोटा सा बछड़ा मानो सुबल ही अपने खोये हुए बछड़े को अपनी गोदी में लेकर मुस्कराता हुआ जा रहा है। गोदी में बछड़ा इसलिए कि कोई भी उनका वक्षस्थल देखकर शक न कर सके। इधर सुबल राधिका का वेश धारण कर सखियों के साथ बातें करने लगा। जब राधिका जी सुबल के वेश में खिड़क से निकल रही थीं, उस समय जटिला ने उन्हें देखकर कहा- क्या बछड़ा मिल गया? राधिका जी ने सुबल के स्वर में कहा- मैया! बछड़ा मिल गया, देखो- यही मेरा बछड़ा है, जटिला को तनिक भी सन्देह नहीं हुआ।
राधिका सुबल के बतलाये हुए संकेतों से कृष्ण के निकट पहुँचीं तो कृष्ण ने विरह में दु:खी होकर पूछा– सखे! मेरी प्रिया जी को नहीं ला सके, मेरे प्राण निकल रहे हैं मैं क्या करूँ, कहाँ जाऊँ? कृष्ण की ऐसी दशा देखकर राधिका जी से रहा नहीं गया। उन्होंने बछड़े को रख दिया और कृष्ण से लिपट गई। राधा जी का कोमल स्पर्श और अंगों का सौरभ पाकर कृष्ण सब कुछ समझ गये। उनका सारा खेद दूर हो गया। वे सुबल की बुद्धि की पुन:-पुन: प्रशंसा करते हुए प्रिया जी के साथ क्रीड़ा-विनोद करने लगे। कुछ देर बाद सुबल भी यहाँ उपस्थित हो गया और दोनों का मिलन देख बड़ा ही प्रसन्न हुआ।
कुटिला दूषण, नन्दगाँव- मथुरा से यह स्थान 30 किलोमीटर दूर है। वृन्दावन से 28 मील पश्चिम में नन्दगाँव स्थित है। नंद यहीं पर रहते थे। यहाँ एक पहाड़ी पर नन्द बाबा का मन्दिर है।भगवान कृष्ण के पालक पिता से सम्बद्ध होने के कारण यह स्थान तीर्थ बन गया है। देवाधिदेव महादेव शंकर ने अपने आराध्यदेव श्रीकृष्ण को प्रसन्न कर यह वर माँगा था कि मैं आपकी बाल्यलीलाओं का दर्शन करना चाहता हूँ। श्रीकृष्ण परम वैष्णव शंकर की अभिलाषा पूर्ण करने के लिए नन्दीश्वर पर्वत पर ब्रजवासियों विशेषत: नन्दबाबा, यशोदा मैया तथा गोप सखाओं के साथ अपनी बाल्य एवं पौगण्ड अवस्था की मधुर लीलाएँ करते हैं।
देवी योगमाया # भगवान श्रीकृष्ण की बहन थी, जो उनसे बड़ी थीं। द्वापर युग में जब भगवान विष्णु ने श्रीकृष्ण के रूप में जन्म लिया, ठीक उनके पहले मां दुर्गा ने योग माया के रूप में जन्म लिया था। मां दुर्गा का यह दिव्य अवतार कुछ समय के लिए था। गर्गपुराण के अनुसार भगवान कृष्ण की मां देवकी के सातवें गर्भ को योगमाया ने ही बदलकर कर रोहिणी के गर्भ में पहुंचाया था, जिससे बलराम का जन्म हुआ। योगमाया ने यशोदा के गर्भ से जन्म लिया था। इनके जन्म के समय यशोदा गहरी नींद में थीं और उन्होंने इस बालिका को देखा नहीं था। वहीं कंस के कारागार में देवकी के आठवें पुत्र के जन्म लेने के बाद वसुदेव उस बालक को नंद के यहां यशोदा के पास लिटा दिया, जिससे बाद में आंख खुलने पर यशोदा ने बालिका के स्थान पर पुत्र को ही पाया। और वसुदेव यशोदा के यहां जन्मी बालिका( योगमाया) को मथुरा वापस आ गये और जब कंस ने उस बालिका को मारना चाहा तो वह हाथ से छूट कर आकाशवाणी करती हुई चली गईं। देवी योगमाया के बारे में कहा जाता है कि वे भगवान श्रीकृष्ण की बहन थी, जो उनसे बड़ी थीं। मां योगमाया ने कृष्ण के साथ योगविद्या और महाविद्या बनकर कंस, चाणूर और मुष्टिक आदि शक्तिशाली असुरों का संहार कराया था। श्रीमद्भागवद्पुराण में देवी योगमाया को ही विंध्यवासिनी कहा गया है, जो हमारी (राठौर राजपूतों की) कुलदेवी हैं । दिल्ली में मां योगमाया का मंदिर है। यह प्राचीन मंदिर महाभारत के समय से है। इस प्राचीन मंदिर ने दिल्ली को कई बार उजड़ते और बसते हुए देखा है। यह मंदिर है दिल्ली के महरौली में स्थित है। अपनी माया से जादू डाल कर के मोहित कर देती है , सिंहशावक अपने को भेंड़ समझने लगता है !]
MASTER: "Yes, this is the attraction of Yogamaya, the Divine Sakti. She casts the spell. God performs all His lila through the help of Yogamaya.
[শ্রীরামকৃষ্ণ — এ যোগমায়ার আকর্ষণ — ভেলকি লাগিয়ে দেয়। রাধিকা সুবোল বেশে বাছুর কোলে — জটিলার ভয়ে যাচ্ছে; যখন যোগমায়ার শরণাগত হলো তখন জটিলা আবার আশীর্বাদ করে।“হরিলীলা সব যোগমায়ার সাহায্যে!
(19 सितंबर,1884) श्रीरामकृष्ण वचनामृत-91]
🔆🙏गोपियों को परकीया प्रेम रति का प्रेमोन्माद हुआ था🔆🙏
"गोपियों का प्यार क्या है, परकीया रति है । कृष्ण के लिए गोपियों को प्रेमोन्माद हुआ था । अपने स्वामी के लिए इतना नहीं होता । अगर कोई कहे, 'अरी तेरा स्वामी आया है’, तो कहती है, 'आया है तो आये - खुद भोजन कर लेगा ।’ परन्तु अगर दूसरे पुरुष आया की बात सुनती है कि बड़ा रसिक है, बड़ा सुन्दर है और रसपण्डित है तो दौड़कर देखने के लिए जाती है - और ओट से झाँककर देखती है ।
"The love of the gopis was like the attachment of a woman to her paramour. They were intoxicated with ecstatic love for Sri Krishna. A woman cherishing illicit love is not very keen about her own husband. If she is told that her husband has come, she will say: 'What if he has? There is food in the kitchen. He can help himself.' But if she is told of the arrival of a stranger — jovial, handsome, and witty — she will run to see him and peep at him from behind a screen.}
{“গোপীদের ভালবাসা — পরকীয়া রতি। কৃষ্ণের জন্য গোপীদের প্রেমোন্মাদ হয়েছিল। নিজের সোয়ামীর জন্য অত হয় না। যদি কেউ বলে, ওরে তোর সোয়ামী এসেছে! তা বলে, ‘এসেছে, তা আসুকগে, — ওই খাবে এখন! কিন্তু যদি পর পুরুষের কথা শুনে, — রসিক, সুন্দর, রসপণ্ডিত, — ছুটে দেখতে যাবে, — আর আড়াল থেকে উঁকি মেরে — দেখবে।"
"अगर कहो कि उन्हें तो हमने देखा ही नहीं फिर गोपियों की तरह उन पर चित्त कैसे लग सकता है ? - तो इसके लिए यह कहना है कि सुनने पर भी वह आकर्षण होता है ।
"एक बंगला गाने में कहा है~ " ना जेने, नाम सुने काने; मन गिये ताय ते लिप्त होलो। " अर्थात बिना जाने ही, उनका नाममात्र सुनकर मन उनमें आकर लिप्त हो गया ।"
"You may raise an objection and say: 'We have not seen God. How can we feel attracted to Him as the gopis felt attracted to Krishna?' But it is possible. 'I do not know Him. I have only heard His name, and that has fixed my mind upon Him.' उनके नाम का उच्चारण जैसे ही गुरुदेव ने किया -मन जाकर उनकी छवि से लिप्त हो गया !}
{“যদি খোঁচ ধর যে, তাঁকে দেখি নাই, তাঁর উপর কেমন করে গোপীদের মতো টান হবে? তা শুনলেও সে টান হয় —“না জেনে নাম শুনে কানে মন গিয়ে তায় লিপ্ত হলো।”
(19 सितंबर,1884) श्रीरामकृष्ण वचनामृत-91]
🔆🙏योगभ्रष्ट साधकों को भोग समाप्त होने पर ही ईश्वरलाभ होता है।🔆🙏
एक भक्त - अच्छा महाशय , वस्त्रहरण का क्या अर्थ है ?
[একজন ভক্ত — আজ্ঞা, বস্ত্রহরণের মানে কি?
A DEVOTEE: "Sir, what is the significance of Sri Krishna's stealing the gopis' clothes?"
श्रीरामकृष्ण - आठ पाश (fetters-बन्धन) हैं । गोपियों के सब पाश छिन्न हो गये थे, केवल लज्जा बाकी थी । इसलिए उन्होंने उस पाश का भी मोचन कर दिया । ईश्वर-प्राप्ति होने पर सब पाश चले जाते हैं ।
(महेन्द्र मुखर्जी आदि भक्तों से) "ईश्वर पर सब का मन नहीं लगता । आधारों (special souls) की विशेषता होती है । संस्कार के रहने से होता है । नहीं तो बागबाजार में इतने आदमी थे, उनमें केवल तुम्हीं यहाँ कैसे आये? "मलय-पर्वत की हवा के लगने पर सब पेड़ चन्दन के हो जाते हैं; सिर्फ पीपल, बट, सेमर, ऐसे ही कुछ पेड़ चन्दन नहीं बनते ।
(पूर्वजन्म के अच्छे संस्कार-born with good tendencies. के रहने से ही इस जन्म में ईश्वर या सत्य को जानने की जिज्ञासा होती है , नहीं तो 1987 के महामण्डल कैम्प में जाने के लिए झुमरीतिलैया से 10 लोगों ने नाम भेजे थे, उनमें से केवल तुम ही वहाँ कैसे पहुँचे ? )
MASTER: "There are eight fetters that bind a person to the world. The gopis were free from all but one: shame. Therefore Krishna freed them from that one, too, by taking away their clothes. On attaining God one gets rid of all fetters. (To Mahendra Mukherji and the others) By no means all people feel attracted to God. There are special souls who feel so. To love God one must be born with good tendencies. Otherwise, why should you alone of all the people of Baghbazar come here? You can't expect anything good in a dunghill. The touch of the Malaya breeze turns all trees into sandal-wood, no doubt. But there are a few exceptions — the banyan, the cotton-tree, and the aswattha, for example.
[শ্রীরামকৃষ্ণ — অষ্টপাশ, — গোপীদের সব পাশই গিয়েছিল, কেবল লজ্জা বাকী ছিল। তাই তিনি ও পাশটাও ঘুচিয়ে দিলেন। ঈশ্বরলাভ হলে সব পাশ চলে যায়।(মহেন্দ্র মুখুজ্জে প্রভৃতি ভক্তদের প্রতি) — “ঈশ্বরের উপর টান সকলের হয় না, আধার বিশেষ হয়। সংস্কার থাকলে হয়। তা না হলে বাগবাজারে এত লোক ছিল কেবল তোমরাই এখানে এলে কেন? আদাড়েগুলোর হয় না।“মলয় পর্বতের হাওয়া লাগলে সব গাছ চন্দন হয়; কেবল শিমূল, অশ্বত্থ, বট আর কয়েকটা গাছ চন্দন হয় না।
(मुखर्जी भाइयों के प्रति ) "तुम लोगों को रुपये-पैसे का कुछ अभाव थोड़े ही है । योगभ्रष्ट होने पर भाग्यवानों के यहाँ जन्म होता है, इसके पश्चात् फिर वह ईश्वर के लिए तपस्या करता है ।"
(To the Mukherji brothers) "You are well off. If a man slips from the path of yoga, then he is reborn in a prosperous family and starts again his spiritual practice for the realization of God."}
{“তোমাদের টাকা-কড়ির অভাব নাই। যোগভ্রষ্ট হলে ভাগ্যবানের ঘরে জন্ম হয়, — তারপর আবার ঈশ্বরের জন্য সাধনা করে।”
महेन्द्र मुखर्जी - मनुष्य क्यों योगभ्रष्ट होता है ?
[মহেন্দ্র মুখুজ্জে — কেন যোগভ্রষ্ট হয়?
MAHENDRA: "Why does one slip from the path of yoga?"
श्रीरामकृष्ण - पूर्वजन्म में ईश्वर की चिन्ता करते हुए एकाएक भोग करने की लालसा हुई होगी । इस तरह होने पर योगभ्रष्ट हो जाता है । और दूसरे जन्म में फिर उसी के अनुसार जन्म होता है ।
MASTER: "While thinking of God the aspirant may feel a craving for material enjoyment. It is this craving that makes him slip from the path. In his next life he will be born with the spiritual tendencies that he failed to translate into action in his present life."
[শ্রীরামকৃষ্ণ — পূর্বজন্মে ঈশ্বরচিন্তা করতে করতে হয়তো হঠাৎ ভোগ করবার লালসা হয়েছে। এরূপ হলে যোগভ্রষ্ট হয়। আর পরজন্মে ওইরূপ জন্ম হয়।
महेन्द्र - इसके बाद उपाय ?
[মহেন্দ্র — তারপর, উপায়?
MAHENDRA: "Then what is the way?"
(19 सितंबर,1884) श्रीरामकृष्ण वचनामृत-91]
🔆🙏विवेक क्या है ?🔆🙏
श्रीरामकृष्ण - कामना के रहते, भोग की लालसा के रहते, मुक्ति नहीं होती । इसलिए खाना-पहनना, रमण करना, यह सब कर लेना । (सहास्य) तुम क्या कहते हो ? स्वकीया के साथ या परकीया के साथ? मास्टर, मुखर्जी, ये लोग हँस रहे हैं ।
[प्रेम , प्रेम , प्रेम यही सम्पदा है/ 48 jnkhmp ......
यह प्रसिद्ध उक्ति किसने नहीं सुनी होगी - "जीवे प्रेम करे जेई जन, सेई जन सेविछे ईश्वर।" - अर्थात 'जो जीव मात्र से प्रेम करता है, वही ईश्वर से प्रेम करता है।' यह पंक्ति स्वामी विवेकानन्द द्वारा लिखित कविता 'सखार प्रति।' (सखा के प्रति) से ली गई है। इस कविता को स्वामी विवेकानन्द के जीवन का वेद कहा जा सकता है। जिस समय उन्होंने इस कविता को लिखी थी, उस समय वे नरेन्द्रनाथ थे- तबतक विवेकानन्द नहीं बने थे। उस समय उनकी उम्र तीस से भी कम थी। वे रवीन्द्रनाथ टैगोर से दो वर्ष छोटे थे, किन्तु उनका जीवन लम्बा नहीं था -मात्र 39 वर्ष जीवित रहे थे। इस छोटे से जीवन में उन्होंने जो महान कार्य किया है उसे पुनः दोहराने की जरूरत नहीं है। हम यहां उनके जीवन दर्शन और कार्यक्षेत्र पर चर्चा नहीं करेंगे. हम 'सखा के प्रति' कविता पर अपना ध्यान केंद्रित करेंगे।
संस्कृत, बांग्ला और अंग्रेजी भाषाओं पर स्वामीजी का पूरा अधिकार था। फ़ारसी, उर्दू भी जानते थे। उनके अंग्रेजी पत्रों की भाषा को देखकर आश्चर्य होता है, क्योंकि उस समय वैसी भाषा शैली प्रचलन में नहीं थी। सुना जाता है कि उनके प्राच्य और पाश्चात्य (ईस्ट ऐंड वेस्ट) के प्रकाशन के बाद रवीन्द्रनाथ ने मुग्ध होकर कहा था कि भविष्य में बंगला भाषा में लेखन स्वरूप ऐसा ही होगा! स्वामीजी द्वारा लिखित कविताओं की संख्या बहुत कम हैं। अधिकांश अंग्रेजी में हैं। उपलब्ध कुछ बांग्ला कविताओं से पता चलता है कि वह छन्द के मामले में वे मनमानी तुकबन्दी करते थे। यह सोचना अत्यंत मूर्खतापूर्ण होगा कि स्वामीजी को लय-छन्द की समझ नहीं थी;वे संस्कृत व्याकरण में पारंगत थे। बल्कि उन्होंने छंद-लय की तुकबंदी को भावना पर हावी नहीं होने दिया।
क्या रखा है मनुष्य के शरीर में ? वह भाव तो रूप के पीछे छिपा है। अपनी कविता सखा (सुबल ? के प्रति? ) में स्वामीजी कहते हैं - यह संसार माया का राज्य है , इसीलिए यहाँ सबकुछ विपरीत रूप में दिखाई पड़ता है। जैसे -जहाँ परिणाम दुःख है,उसी दुःख में सुख का अनुभव होता है। यहाँ वह बुरी वस्तु -जिसमें बाद में अवसाद आता है, वही वस्तु बिना विवेक-प्रयोग किये ऊपर से देखने पर अच्छी प्रतीत होती है।
सखार प्रति
आंधारे आलोक-अनुभव, दुःखे सुख, रोगे स्वास्थ्यभान ;
प्राण-साक्षी शिशुर क्रन्दन, हेथा सुख इच्छ मतिमान ?
द्वन्द्वयूद्ध चले अनिवार, पिता पुत्रे नाहि देय स्थान ;
'स्वार्थ' स्वार्थ सदा एई रव, हेथा कोथा शान्तिर आकार ?
साक्षात् नरक स्वर्गमय - केबा पारे छाड़िते संसार ?
कर्म-पाश गले बाँधा जार -क्रीतदास बोलो कोथा जाय ?
योग-भोग, गार्हस्थ्य -संन्यास, जप-तप, धन-उपार्जन ,
व्रत त्याग तपस्या कठोर, सब मर्म देखेछि एबार ;
जेनेछि सुखेर नाहि लेश, शरीरधारण विडम्बन;
जतो उच्च तोमार हृदय, तत दुःख जानिह निश्चय।
हृदिवान निःस्वार्थ प्रेमिक ! ए जगते नाहि तव स्थान ;
लौहपिण्ड सहे जे आघात, मर्मर -मूरित ता कि सय ?
होउ जड़प्राय , अति नीच , मुखे मधु, अन्तरे गरल -
सत्यहीन, स्वार्थपरायण, तबे पाबे ए संसारे स्थान।
विद्याहेतु करि प्राणपण, अर्धेक करेछि आयुक्षय -
प्रेमहेतु उन्मादेर मतो, प्राणहीन धरेछि छायाय;
धर्म तरे करि कत मत, गंगातीर श्मशाने आलय,
नदीतीर पर्वत गह्वर, भिक्षाशने कत काल जाय।
असहाय -छिन्नवास ध'रे द्वारे द्वारे उदरपूरन -
भग्नदेह तपस्यार भारे, कि धन करिनु उपार्जन ?
शोन बोली मरमेर कथा, जेनेछि जीवने सत्य सार -
तरंग -आकुल भवघोर, एक तरी करे पारापार -
यंत्र-तंत्र, प्राण-नियमन, मतामत, दर्शन -विज्ञान,
त्याग-भोग बुद्धिर विभ्रम ; 'प्रेम' 'प्रेम - एई मात्र धन।
जाब ब्रह्म, मानव ईश्वर, भूत -प्रेत -आदि देवगण,
पशु -पक्षी कीट -अनुकीट -एई प्रेम हृदये सबार।
'देव' 'देव' -बोलो आर केबा ? केवा बोलो सबारे चालाय ?
पुत्र तरे माये देय प्राण, दस्यू हरे -प्रेमेर प्रेरण।।
होय वाक्य-मन -अगोचर, सुख-दुःख तिनि अधिष्ठान,
महाशक्ति काली मृत्युरूपा, मातृभावे तांरि आगमन।
रोग शोक, दारिद्र -यातना, धर्माधर्म, शुभाशुभ फल ,
सब भावे तांरि उपासना, जीवे बोलो केवा किवा करे ?
भ्रान्त सेई जेवा सुख चाय, दुःख चाय उन्माद से जन -
मृत्यु माँगे सेउ जे पागल, अमृततत्व वृथा आकिंचन।
जतोदूर जतोदूर जाओ, बुद्धिरथे करि आरोहण ,
एई सेई संसार -जलधि, दुःख सुख करे आवर्तन।
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वीर वाणी
पक्षहीन शोन विहंगम, ए जे नहे पथ पालाबार ,
बारंबार पाईछो आघात, केनो कोरो वृथाय उद्यम ?
छाड़ो विद्या जप यज्ञ बल, स्वार्थहीन प्रेम जे संबल ;
देखो, शिक्षा देय पतंगम -अग्निशिखा करि आलिंगन।
रूपमुग्ध अंध कीटाधम, प्रेममत्त तोमार ह्रदय ;
हे प्रेमिक, स्वार्थ -मलिनता अग्निकुण्डे करो विसर्जन।
भिक्षुकेर कबे बोलो सुख ? कृपापात्र होय किवा फल ?
दाओ आर फिरे नाहि चाओ, थाके यदि हृदये संवल।
अन्तरे तुमि अधिकारी प्रेमसिन्धु हृदे विद्यमान ,
दाओ, दाओ -जेवा फिरे चाय, तार सिन्धु बिन्दु होय जान।
ब्रह्म होते कीट -परमाणु, सर्वभूते सेई प्रेममय ,
मन प्राण शरीर अर्पण करो सखे, ए सबार पाय।
बहुरूपे सन्मुखे तोमार, छाड़ि कोथा खूंजिछो ईश्वर ?
जीवे प्रेम करे जेई जन, सेई जन सेविछे ईश्वर।
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सखा के प्रति
गूँज रहा रव घोर स्वार्थ का , कहाँ शांति का आकार वहां ?
जहाँ नरक प्रत्यक्ष स्वर्ग दीखता है , कौन छोड़ सकता संसार ?
कर्मपाश से बंधा गला, वह क्रीतदास जाये किस ठौर ?
शिशु के प्राणों का साक्षी है रोदन जहाँ - वहाँ विवेकी सुख की आश कैसे करे ?
बस एक नाव जो करती पार - तंत्र,मंत्र , नियमन प्राणो का।
...त्याग, भोग, भ्रम घोर बुद्धि का, 'प्रेम-प्रेम ' धन लो पहचान।
'देव देव ' वह और कौन है ? कहो चलाता सबको कौन ?
प्रेरण , एक प्रेम का ही ! वे हैं मन-वाणी से अज्ञात !
अग्निशिखा को आलिंगन कर रूपमुग्ध वह कीट पतंग शिक्षा देता मत्त प्रेम का।
प्रेम वत्स ! प्रेम , प्रेम , प्रेम यही सम्पदा है। ..... देव,देव -वह और कौन है ? कहो चलाता सबको कौन ? प्रेम,प्रेम -धन लो पहचान। ९/३२४)
सब कुछ वे ही बने हैं। हर भेष में तू , हर देश में तूँ -तेरे नाम अनेक तूँ एक ही है। क्या रखा है मनुष्य के शरीर में- अंत में सबकुछ यहीं छोड़ना पड़ेगा। जो सब किसी से प्रेम करता है , जो दूसरों के लिए जीता है, वही जीवित है , जो स्वार्थी है वह मृत से भी अधम है। (४/३१०) यह उपदेश लेक्चर देने के लिए नहीं है, बल्कि अपने ह्रदय में बैठाने के लिए है। ]
[শ্রীরামকৃষ্ণ — কামনা থাকতে — ভোগ লালসা থাকতে — মুক্তি নাই। তাই খাওয়া-পরা, রমণ-ফমন সব করে নেবে। (সহাস্যে) তুমি কি বল? স্বদারায় না পরদারায়? (মাস্টার, মুখুজ্জে, এঁরা হাসিতেছেন)
MASTER: "No salvation is possible for a man as long as he has desire, as long as he hankers for worldly things. Therefore fulfil all your desires regarding food, clothes, and sex. (Smiling) What do you say about the last one? Legitimate or illegitimate? (M. and Mahendra laugh.)
(२)
(19 सितंबर,1884)
*श्रीमुख द्वारा कथित आत्मचरित*
🔆🙏 ठाकुर की विभिन्न इच्छायें -पूर्ववृत्त - कलकत्ता के नाथ बगान में प्रथम - गंगा स्नान🔆🙏
श्रीरामकृष्ण - भोग-लालसा का रहना अच्छा नहीं । इसीलिए मेरे मन में जो कुछ उठता था, मैं कर डालता था । "बड़ा बाजार के रंगे सन्देश खाने की इच्छा हुई । इन लोगों ने मँगा दिया । मैने खूब खाया, फिर बीमार पड़ गया ।
[শ্রীরামকৃষ্ণ — ভোগ লালসা থাকা ভাল নয়। আমি তাই জন্য যা যা মনে উঠতো আমনি করে নিতাম।“বড়বাজারের রঙকরা সন্দেশ দেখে খেতে ইচ্ছা হল। এরা আনিয়া দিলে। খুব খেলুম, — তারপর অসুখ।"
It is not good to cherish desires and hankerings. For that reason I used to fulfil whatever desires came to my mind. Once I saw some coloured sweet-meats at Burrabazar and wanted to eat them. They brought me the sweets and I ate a great many. The result was that I fell ill.
"लड़कपन में गंगा नहाते समय, एक लड़के की कमर में सोने की करधनी देखी थी । इस अवस्था के बाद उस करधनी के पहनने की इच्छा हुई । परन्तु अधिक देर रख सकता ही न था, करधनी पहनी तो भीतर से सरसराकर हवा ऊपर की ओर चढ़ने लगी - देह में सोना छू गया न ? जरा देर रखकर उसे खोल डाला । नहीं तो उसे तोड़ डालना पड़ता ।
[“ছেলেবেলা গঙ্গা নাইবার সময়, তখন নাথের বাগানে, একটি ছেলের কোমরে সোনার গোট দেখেছিলাম। এই অবস্থার পর সেই গোট পরতে সাধ হল। তা বেশিক্ষণ রাখবার জো নাই, — গোট পরে ভিতর দিয়ে সিড়সিড় করে উপরে বায়ু উঠতে লাগল — সোনা গায়ে ঠেকেছে কি না? একটু রেখেই খুলে ফেলতে হল। তা না হলে ছিঁড়ে ফেলতে হবে।"
In my boyhood days, while bathing in the Ganges, I saw a boy with a gold ornament around his waist. During my state of divine intoxication I felt a desire to have a similar ornament myself. I was given one, but I couldn't keep it on very long. When I put it on, I felt within my body the painful uprush of a current of air. It was because I had touched gold to my skin. I wore the ornament a few moments and then had to put it aside. Otherwise I should have had to tear it off.
🔆🙏शम्भु और राजनारायण का चण्डी श्रवण - ठाकुर की साधुसेवा🔆🙏
"धनियाखाली का कोईचूर (एक तरह की मिठाई), खानाकुल कृष्णनगर का सरभाजा (एक तरह की मिठाई) खाने की भी इच्छा हुई थी । (सब हँसते हैं ।)"शम्भू के चण्डी-गीत सुनने की इच्छा हुई थी । उसके सुन लेने के बाद फिर राजनारायण के चण्डी-गीतों के सुनने की इच्छा हुई । उसके गीतों को भी मैंने सुना ।
[“ধনেখালির খইচুর, খানাকুল কৃষ্ণনগরের সরভাজা, তাও খেতে সাধ হয়েছিল।” (সকলের হাস্য)“শম্ভুর চন্ডীর গান শুনতে ইচ্ছা হয়েছিল! সে গান শোনার পর আবার রাজনারায়ণের চন্ডী শুনতে ইচ্ছা হয়েছিল। তাও শোনা হল।"
I once felt a desire to eat the famous sweetmeats of different cities. (All laugh.) I had a desire to hear Sambhu's musical recital of the Chandi. After fulfilling that desire I wanted to hear the same thing by Rajnarayan. That desire also was satisfied.
"उस समय बहुत से साधु आते थे । इच्छा हुई कि उनकी सेवा के लिए एक अलग भण्डार किया जाय । सेजो बाबू ने वैसा ही किया । उसी भण्डार से साधुओं को सीधा, लकड़ी आदि सब दिया जाता था ।
[“অনেক সাধুরা সে সময়ে আসত। তা সাধ হল, তাদের সেবার জন্য আলাদা একটি ভাঁড়ার হয়। সেজোবাবু তাই করে দিলে। সেই ভাঁড়ার থেকে সাধুদের সিদে কাঠ, এ-সব দেওয়া হত।"
At that time many holy men used to visit the temple garden. A desire arose in my mind that there should be a separate store-room to supply them with their provisions. Mathur Babu arranged for one. The sadhus were given food-stuffs, fuel, and the like from that store-room.
"एक बार जी में आया कि खूब अच्छा जरी का साज पहनूँ और चाँदी की गुड़गुड़ी में तम्बाकू पीऊँ । सेजो बाबू ने नया साज, गुड़गुड़ी सब भेज दिया । साज पहना, गुड़गुड़ी कितनी ही तरह से पीने लगा ।
एक बार इस ओर से, एक बार उस ओर से - खड़ा होकर और बैठकर । तब मैंने कहा, मन, देख ले, इसी का नाम है चाँदी की गुड़गुड़ी में तम्बाकू पीना । बस इतने से ही गुड़गुड़ी का त्याग हो गया । साज थोड़ी देर में खोल डाला । - पैरों से उसे रौंदने लगा - कहा, इसी का नाम है साज ! इसी पोशाक के कारण रजोगुण बढ़ता है ।"
“একবার মনে উঠল যে খুব ভাল জরির সাজ পরব। আর রূপার গুড়গুড়িতে তামাক খাব। সেজোবাবু নূতন সাজ, গুড়গুড়ি, সব পাঠিয়ে দিলে। সাজ পরা হল। গুড়গুড়ি নানারকম করে টানতে লাগলুম। একবার এপাশ থেকে, একবার ওপাশ থেকে, — উঁচু থেকে নিচু থেকে। তখন বললাম, মন এর নাম রূপার গুড়গুড়িতে তামাক খাওয়া! এই বলে গুড়গুড়ি ত্যাগ হয়ে গেল। সাজগুলো খানিক পরে খুলে ফেললাম, — পা দিয়ে মাড়াতে লাগলাম — আর তার উপর থু থু করতে লাগলাম — বললাম, এর নাম সাজ! এই সাজে রজোগুণ হয়!”
"Once the idea came to me to put on a very expensive robe embroidered with gold and to smoke a silver hubble-bubble. Mathur Babu sent me the new robe and the hubble-bubble. I put on the robe. I also smoked the hubble-bubble in various fashions. Sometimes I smoked it reclining this way, and sometimes that way, sometimes with head up, and sometimes with head down. Then I said to myself, 'O mind, this is what they call smoking a silver hubble-bubble.' Immediately I renounced it. I kept the robe on my body a few minutes longer and then took it off. I began to trample it underfoot and spit on it, saying: 'So this is an expensive robe! But it only increases man's rajas.'"
[पूर्ववृत्त : 1881 में राखाल की पहली भावावस्था]
🔆🙏वृंदावन में राखाल और बलराम🔆🙏
बलराम के साथ राखाल वृन्दावन में हैं । पहले-पहल वे वृन्दावन की बड़ी तारीफ करके चिट्ठी लिखते थे। मास्टर को चिट्ठी लिखी थी - 'यह बड़ी अच्छी जगह है - मोर नाचते रहते हैं - और नृत्य गीत, सदा ही आनन्द होता है । इसके पश्चात् उन्हें बुखार आया, वृन्दावन का बुखार ! श्रीरामकृष्ण को बड़ी चिन्ता रहती है । उनके लिए चण्डी के नाम पर उन्होंने मन्नत की है ।
[বলরামের সহিত রাখাল বৃন্দাবনে আছেন। প্রথম প্রথম বৃন্দাবনের খুব সুখ্যাত করিয়া আর বর্ণনা করিয়া পত্রাদি লিখিতেন। মাস্টারকে পত্র লিখিয়াছিলেন, ‘এ বড় উত্তম স্থান, আপনি আসবেন, — ময়ূর-ময়ূরী সব নৃত্য করছে — আর নৃত্যগীত, সর্বদাই আনন্দ!’ তারপর রাখালের অসুখ হইয়াছে — বৃন্দাবনের জ্বর। ঠাকুর শুনিয়া বড়ই চিন্তিত আছেন। তাঁর জন্য চন্ডীর কাছে মানসিক করেছেন।
Rakhal had been staying at Vrindavan with Balaram. At first he had written excited letters praising the holy place. He had written to M.: "It is the best of all places. Please come here. The peacocks dance around, and one always hears and sees religious music and dancing. There is an unending flow of divine bliss." But then Rakhal had been laid up with an attack of fever. Sri Ramakrishna was very much worried about him and vowed to worship the Divine Mother for his recovery. So he began to talk about Rakhal.
श्रीरामकृष्ण राखाल की बातें कर रहे हैं - "यहाँ बैठकर पैर दबाते समय राखाल को पहले-पहल भाव हुआ था । एक भागवती पण्डित इस कमरे में बैठा हुआ भागवत की बातें कह रहा था । उन्हीं बातों को सुन-सुनकर राखाल सिहर-सिहर उठता था। इसके बाद वह बिलकुल स्थिर हो गया ।
[ ঠাকুর রাখালের কথা কহিতেছেন — “এইখানে বসে পা টিপতে টিপতে রাখালের প্রথম ভাব হয়েছিল। একজন ভাগবতের পণ্ডিত এই ঘরে বসে ভাগবতের কথা বলছিল। সেই সকল কথা শুনতে শুনতে রাখাল মাঝে মাঝে শিউরে উঠতে লাগল; তারপর একেবারে স্থির!
MASTER: "Rakhal had his first religious ecstasy while sitting here massaging my feet. A Bhagavata scholar had been expounding the sacred book in the room. As Rakhal listened to his words, he shuddered every now and then. Then he became altogether still.
"दूसरी बार बलराम के घर में भाव हुआ था । भावावेश में लेट गया था ।
"राखाल साकार की श्रेणी (Personal God) का है, निराकार (Impersonal) की बात सुनकर उठ जायगा ।
[“দ্বিতীয় বার ভাব বলরামের বাটীতে — ভাবেতে শুয়ে পড়েছিল।“রাখালের সাকারের ঘর — নিরাকারের কথা শুনলে উঠে যাবে।"
His second ecstasy was at Balaram Bose's house. In that state he could not keep himself sitting upright; he lay flat on the floor. Rakhal belongs to the realm of the Personal God. He leaves the place if one talks about the Impersonal.
"उसके लिए मैंने चण्डी की मन्नत की । उसने घर-द्वार सब छोड़कर मेरा सहारा लिया था न ? उसकी स्त्री के पास उसे मैं ही भेज दिया करता था, भोग कुछ बाकी रह गया था ।
[“তার জন্য চন্ডীকে মানলুম। সে যে আমার উপর সব নির্ভর করেছিল — বাড়িঘর সব ছেড়ে! তার পরিবারের কাছে তাকে আমিই পাঠিয়ে দিতাম — একটু ভোগের বাকী ছিল।"
I have taken a vow to worship the Divine Mother when he recovers. You see, he has renounced his home and relatives and completely surrendered himself to me. It was I who sent him to his wife now and then. He still had a little desire for enjoyment.
“वृन्दावन से इन्हें लिख रहा है, यह बड़ा अच्छा स्थान है - मोरों का नृत्य हुआ करता है । अब मोरों ने विपत्ति में डाल दिया ।
[বৃন্দাবন থেকে এঁকে লিখেছে, এ বেশ জায়গা — ময়ূর-ময়ূরী নৃত্য করছে — এখন ময়ূর-ময়ূরী বড়ই মুশকিলে ফেলেছে!
(Pointing to M.) "Rakhal has written him from Vrindavan that it is a grand place — the peacocks dance around. Now let the peacocks take care of him. He has really put me in a fix.
"वहाँ बलराम के साथ है । अहा, बलराम का क्या स्वभाव है ! मेरे लिए उस देश में नहीं जाता । उसके भाई ने उसे मासिक व्यय देना बन्द कर दिया था और लिखा था – 'तुम यहाँ आकर रहो, वाहियात क्यों इतना रुपया खर्च करते हो !’ परन्तु उसने उसकी बात नहीं सुनी, मुझे देखने के लिए ।
"कैसा स्वभाव है ! दिन-रात केवल देवताओं को लेकर रहता है । माली फूलों की माला बनाते ही रहते हैं । रुपये बचेंगे, इस विचार से दो महीने वृन्दावन में रहेगा । दो सौ का मुसहरा पाता है ।
[“সেখানে বলরামের সঙ্গে আছে! বলরামের কি স্বভাব! আমার জন্য ওদেশে (উড়িষ্যায় কোঠারে) যায় না। ভাই মাসহারা বন্ধ করেছিল আর বলে পাঠিয়েছিল, ‘তুমি এখানে এসে থাকো, মিছামিছি কেন অত টাকা খরচ কর।’ — তা সে শুনে নাই — আমাকে দেখবে বলে।“কি স্বভাব! — রাতদিন কেবল ঠাকুর লয়ে; — মালীরা ফুলের মালাই গাঁথছে! টাকা বাঁচবে বলে বৃন্দাবনে চার মাস থাকবে। দুশ টাকা মাসহারা পায়।“
"Rakhal has been staying with Balaram at Vrindavan. Ah, what a nice nature Balaram has! It is only for my sake that he doesn't go to Orissa, where his family owns an estate. His brother stopped his monthly allowance and wrote to him: 'Come and stay with us here. Why should you waste so much money in Calcutta?' But he didn't listen. He has been living in Calcutta because he wants to see me. What devotion to God! He is busy day and night with his worship. His gardener is always making garlands of flowers for the Deity. He has decided to spend four months a year at Vrindavan to reduce his expenses. He gets a monthly allowance of two hundred rupees.
🔆🙏 *पूर्ववृत्त -1881, नरेन्द्र का प्रथम दर्शन, नरेन्द्र के लिए रोना🔆🙏
(पूर्ववृत्त-बेलघड़िया कैम्प-1987, antecedents, राँची कैम्प)
"लड़कों को क्यों प्यार करता हूँ ? उनके भीतर कामिनी और कांचन (lust and greed ) का प्रवेश अब तक नहीं हो पाया । मैं उन्हें नित्यसिद्ध देखता हूँ !
[“ছোকরাদের ভালবাসি কেন? — ওদের ভিতর কামিনী-কাঞ্চন এখনও ঢুকে নাই। আমি ওদের নিত্যসিদ্ধ দেখি!"
Why am I so fond of the youngsters? They are still untouched by 'woman and gold'. I find that they belong to the class of the nityasiddhas, the ever-perfect.
🔆🙏नरेन्द्र जब पहली बार ठाकुर से मिले तब मैली चादर थी परन्तु आँखों में चमक🔆🙏
"नरेन्द्र जब पहले-पहल आया, एक मैली चादर ओढ़े हुए था, परन्तु उसका मुँह और उसकी आँखें देखकर जान पड़ता था कि उसके भीतर कुछ है । तब ज्यादा गाने न जानता था । दो एक गाने ।
[“নরেন্দ্র যখন প্রথম এলো — ময়লা একখানা চাদর গায়ে, — কিন্তু চোখ মুখ দেখে বোধ হল ভিতরে কিছু আছে। তখন বেশি গান জানতো না। দুই-একটা গাইলে,:‘মন চল নিজ নিকেতনে’ আর ‘যাবে কি হে দিন আমার বিফলে চলিয়ে।’
"When Narendra first came here he was dressed in dirty clothes; but his eyes and face betokened some inner stuff. At that time he did not know many songs. He sang one or two: 'Let us go back once more, O mind, to our own abode!' and 'O Lord, must all my days pass by so utterly in vain?'.
🔆🙏कैम्प ऑडोटोरियम में नेता (CINC) केवल भावी नेता की ओर देखकर बोलते हैं🔆🙏
"जब आता था तब घर भर आदमी रहते थे, परन्तु मैं उसी की ओर नजर करके बातचीत करता था । जब वह कहता था - 'इससे भी बातचीत कीजिये’ - तब दूसरे लोगों से बातचीत करता था ।
“যখন আসত, — একঘর লোক — তবু ওর দিক পানে চেয়েই কথা কইতাম। ও বলত, ‘এঁদের সঙ্গে কথা কন’, — তবে কইতাম।"
Whenever he came here, I would talk only with him, though the room was filled with people. He would say to me, 'Please talk to them', and then I would talk with the others.
"यदु मल्लिक के बगीचे में रोया करता था - उसे देखने के लिए मैं पागल हो गया था । यहाँ भोलानाथ का हाथ पकड़कर मैं रोने लगा ! भोलानाथ ने कहा, एक कायस्थ के लड़के के लिए आपको इस तरह का रोना शोभा नहीं देता । मोटे ब्राह्मण ^ ने एक दिन हाथ जोड़कर कहा - 'वह बहुत कम पढ़ा-लिखा है, उसके लिए भी आप इतना रोते हैं ?’
[“যদু মল্লিকের বাগানে কাঁদতুম, — ওকে দেখবার জন্য পাগল হয়েছিলাম। এখানে ভোলানাথের হাত ধরে কান্না! — ভোলানাথ বললে, ‘একটা কায়েতের ছেলের জন্য মশায় আপনার এরূপ করা উচিত নয়।’ মোটা বামুন একদিন হাতজোড় করে বললে, ‘মশায়, ওর সামান্য পড়াশুনো, ওর জন্য আপনি এত অধীর কেন হন?’
"I became mad for the sight of him and wept for him in Jadu Mallick's garden house. 'I wept here, too, holding Bholanath's hand. Bholanath said, 'Sir, you shouldn't behave that way for a mere kayastha boy.' One day the 'fat brahmin'1 said to me about Narendra, with folded hands, 'Sir, he has very little education; why should you be so restless for him?'
[^ मोटा ब्राह्मण = ठाकुर देव के एक भक्त प्राणकृष्ण का उपनाम।]
"भवनाथ नरेन्द्र की जोड़ी है - दोनों जैसे पति-पत्नी । इसीलिए भवनाथ से मैंने नरेन्द्र के पास ही मकान भाड़े पर लेने को कहा । वे दोनों ही अरूप (formless Reality) के दर्जे के हैं ।
[“ভবনাথ নরেন্দ্রের জুড়ি — দুজনে যেন স্ত্রী-পুরুষ! তাই ভবনাথকে নরেন্দ্রের কাছে বাসা করতে বললুম। ওরা দুজনেই অরূপের ঘর।”
"Bhavanath and Narendra are a pair. They are like man and woman. So I asked Bhavanath to rent a house near Narendra's. Both of them belong to the realm of the formless Reality.
(3)
[(19 सितंबर,1884) श्रीरामकृष्ण वचनामृत ]
🔆🙏घोषपाड़ा सम्प्रदाय की स्त्रियाँ और रागकृष्ण की खोज🔆🙏
"मैं लड़कों को मना कर देता हूँ जिससे वे औरतों के पास आया-जाया न करें । “हरिपद एक घोषाल-औरत (Ghoshpara sect) के फेर में पड़ा है । वह वात्सल्यभाव (maternal feeling) करती है । हरिपद बच्चा है, कुछ समझता तो है नहीं, मैंने सुना, हरिपद उसकी गोद में सोता है । और वह अपने हाथ से उसे भोजन कराती है । मैं उससे कह दूंगा, यह सब अच्छा नहीं । इसी वात्सल्यभाव से फिर हीन भाव पैदा हो जाते हैं ।
"उन लोगों की वर्तमान साधना आदमी को लेकर की जाती है । आदमी को वे लोग श्रीकृष्ण समझती हैं। वे उसे ‘रागकृष्ण' कहती हैं । गुरु पूछता है, 'रागकृष्ण' तुझे मिले ? वे कहती हैं हाँ, मिले ।
[“আমি ছোকরাদের মেয়েদের কাছে বেশি থাকতে বা আনাগোনা করতে বারণ করে দিই।“হরিপদ এক ঘোষপাড়ার মাগীর পাল্লায় পড়েছে। সে বাৎসল্যভাব করে। হরিপদ ছেলেমানুষ, কিছু বোঝে না। ওরা ছোকরা দেখলে ওইরকম করে। শুমলাম হরিপদ নাকি ওর কোলে শোয়। আর সে হাতে করে তাকে খাবার খাইয়ে দেয়। আমি ওকে বলে দিব — ও-সব ভাল নয়। ওই বাৎসল্যভাব থেকেই আবার তাচ্ছল্যভাব হয়।"“ওদের বর্তমানের সাধন — মানুষ নিয়ে সাধন। মানুষকে মনে করে শ্রীকৃষ্ণ। ওরা বলে ‘রাগকৃষ্ণ’। গুরু জিজ্ঞাসা করে, ‘রাগকৃষ্ণ পেয়েছিস?’ সে বলে ‘হাঁ, পেয়েছি।’
I forbid the youngsters to spend a long time with women or visit them too frequently. Haripada has fallen into the clutches of a woman of the Ghoshpara sect. She shows maternal feeling for him; but Haripada is a child and doesn't understand its real meaning. The women of that sect act that way when they see young boys. I understand that Haripada lies on her lap and that she feeds him with her own hands. I shall tell him that this is not good. This very maternal feeling leads to a downfall. The women of that sect practise spiritual discipline in the company of men; they regard men as Krishna. A teacher of that sect asks a woman devotee, 'Have. you found your Krishna?' and she says, 'Yes, I have found my Krishna.'
"उसी दिन वह औरत आयी थी । उसकी चितवन का ढंग मैंने देखा, अच्छा नहीं है । उसी के भावों में उससे कहा, हरिपद के साथ जैसा चाहो करो; परन्तु बुरा भाव न लाना ।
[“সেদিন সে মাগী এসেছিল। তার চাহুনির রকম দেখলাম, বড় ভাল নয়। তারি ভাবে বললাম, ‘হরিপদকে নিয়ে যেমন কচ্চো কর — কিন্তু অন্যায় ভাব এনো না।’
"The other day that woman came here. I watched the way she looked around and I didn't approve of it. I said to her, 'You may treat Haripada any way you like, but don't have any wrong feeling for him.'
,[(19 सितंबर,1884) श्रीरामकृष्ण वचनामृत ]
🔆🙏संन्यासियों का कठिन नियम । लोकशिक्षार्थ त्याग🔆🙏
"लड़कों की यह साधना की अवस्था है । इस समय केवल त्याग (renunciation,त्यागमय जीवन या भोग से निवृत्ति ) करना चाहिए । संन्यासियों को स्त्रियों का चित्र भी न देखना चाहिए । मैं उनसे कहता हूँ, स्त्री अगर भक्त भी हो तो भी उसके पास बैठकर बातचीत न करनी चाहिए । खड़े होकर चाहे कुछ कह लिया जाय । सिद्ध होने पर भी इसी तरह चलना पड़ता है - अपनी सावधानी के लिए भी और लोकशिक्षा के लिए भी । औरतों के आने पर मैं थोड़ी ही देर में कहता हूँ, तुम लोग जाकर देवताओं के दर्शन करो । इससे भी अगर वे न उठी तो मैं खुद उठ जाता हूँ । मुझे देखकर दूसरे शिक्षा ग्रहण करेंगे।
[“ছোকরাদের সাধনার অবস্থা। এখন কেবল ত্যাগ। সন্ন্যাসী স্ত্রীলোকের চিত্রপট পর্যন্ত দেখবে না। আমি ওদের বলি, মেয়েমানুষ ভক্ত হলেও তাদের সঙ্গে বসে কথা কবে না; দাঁড়িয়ে একটু কথা কবে। সিদ্ধ হলেও এইরূপ করতে হয় — নিজের সাবধানের জন্য, — আর লোকশিক্ষার জন্য। আমিও মেয়েরা এলে একটু পরে বলি, তোমরা ঠাকুর দেখগে। তাতে যদি না উঠে, নিজে উঠে পড়ি। আমার দেখে আবার সবাই শিখবে।”
"The youngsters are now in the stage of sadhana. They are aspirants. For them the only thing now is renunciation. A sannyasi must not look even at the portrait of a woman. I say to them: 'Don't sit beside a woman and talk to her, even if she is a devotee. You may say a word or two to her, standing.' Even a perfect soul must follow this precept for his own protection and also to set an example to others. When women come to me, I too say to them after a few minutes, 'Go-and visit the temples.' If they don't get up, I myself leave the room. Others will learn from my example.
[(19 सितंबर,1884) श्रीरामकृष्ण वचनामृत ]
🔆🙏अवतार का आकर्षण 🔆🙏
[पिछला जीवन (Antecedents-पूर्ववृत्त) - फुलुई श्यामबाजार में गौरांग दर्शन 1880 ]
"अच्छा, ये जो सब लड़के आ रहे हैं, इसका क्या अर्थ है ? और तुम लोग जो आ रहे हो, इसका भी क्या अर्थ है ? इसके (अपने को दिखाकर) भीतर कुछ है जरूर, नहीं तो आकर्षण फिर कैसे होता ?
{“আচ্ছা, এই যে সব ছেলেরা আসছে, আর তোমরা সব আসছো, এর মানে কি? এর (অর্থাৎ আমার) ভিতরে অবশ্য কিছু আছে, তা না হলে টান হয় কেমন করে — কেন আকর্ষণ হয়?"
"Can you tell me why all these youngsters (निवृत्ति मार्गी) , and you people (प्रवृत्ति मार्गी) , too, visit me? There must be something in me, or why should you all feel such a pull, such attraction?}
"उस देश में जब मैं हृदय के घर (Near Kamarpukur, Sihore.शिहड़ ) में था, मुझे वे लोग श्यामबाजार ले गये थे । मैं समझा, गौरांग के भक्त हैं यहाँ । गाँव में घुसने से पहले ही मुझे माँ ने दिखा दिया - साक्षात् गौरांग! फिर वहाँ इतना आकर्षण हुआ कि सात दिन और सात रात लोगों की भीड़ लगी रही । सदा ही कीर्तन और आनन्द मचा हुआ था। इतने आदमी आये कि चार-दीवार और पेड़ों पर भी आदमी चढ़कर बैठे थे ।
{“ও-দেশে যখন হৃদের বাড়িতে (কামারপুকুরের নিকট, সিওড়ে) ছিলাম। তখন শ্যামবাজারে নিয়ে গেল। বুঝলাম গৌরাঙ্গভক্ত। গাঁয়ে ঢোকবার আগে দেখিয়ে দিলে। দেখলাম গৌরাঙ্গ! এমনি আকর্ষণ — সাতদিন সাতরাত লোকের ভিড়! কেবল কীর্তন আর নৃত্য। পাঁচিলে লোক! গাছে লোক!
वही आकर्षण एक गाँव में मैंने दादा के लिए देखा है -पटापट पैरों में लोट रहे थे। "Once I visited Hriday's house at Sihore. From there I was taken to Syambazar. I had a vision of Gauranga before I entered the village, and I realized that I should meet Gauranga's devotees there. For seven days and nights I was surrounded by a huge crowd of people. Such attraction! Nothing but kirtan and dancing day and night. People stood in rows on the walls and even were in the trees.}
"मैं नटवर गोस्वामी के यहाँ ठहरा था । वहाँ रातदिन भीड़ लगी रहती । मैं वहाँ से भागकर एक ताँती (जुलाहे) के यहाँ सुबह को बैठा करता था । फिर देखा, थोड़ी ही देर में सब लोग वहाँ भी पहुँच गये थे । सब खोल-करताल ले गये । - फिर 'तिरकिट् तिरकिट' कर रहे थे । भोजन आदि तीन बजे होता था।
[“নটবর গোস্বামির বাড়িতে ছিলাম। সেখানে রাতদিন ভিড়। আমি আবার পালিয়ে গিয়ে এক তাঁতীর ঘরে সকালে গিয়ে বসতাম। সেখানে আবার দেখি, খানিক পরে সব গিয়েছে। সব খোল-করতাল নিয়ে গেছে! — আবার ‘তাকুটী! তাকুটী!’ করছে। খাওয়া দাওয়া বেলা তিনটার সময় হতো!"
I stayed at Natavar Goswami's house. It was crowded day and night. In the morning I would run away to the house of a weaver for a little rest. There too I found that people would gather after a few minutes. They carried drums and cymbals with them, and the drum constantly played: 'Takuti! Takuti!' We would have our meal at three in the afternoon.
"चारों ओर अफवाह फैल गयी थी कि एक ऐसा आदमी आया है जो सात बार मरकर सातों बार जी उठता है । मुझे सर्दी-गर्मी न हो जाय इस डर से हृदय मुझे बाहर मैदान में घसीट ले जाता था । वहाँ फिर चीटियों की पाँत की तरह आदमी उमड़ चलते थे - फिर वही खोल-करताल और ‘तिरकिट' । हृदय ने खूब फटकारा, कहा - 'क्या हम लोगों ने कभी कीर्तन सुना नहीं ?"
[“রব উঠে গেল — সাতবার মরে, সাতবার বাঁচে, এমন এক লোক এসেছে! পাছে আমার সর্দিগর্মি হয়, হৃদে মাঠে টেনে নিয়ে যেতো; — সেখানে আবার পিঁপড়ের সার! আবার খোল-করতাল। — তাকুটী! তাকুটী! হৃদে বকলে, আর বললে, ‘আমরা কি কখনও কীর্তন শুনি নাই?’
"The rumour spread everywhere that a man had arrived who died (Referring to the Master's samadhi.) seven times and came back to life again. Hriday would drag me away from the crowd to a paddy-Held for fear I might have an attack of heat apoplexy. The crowd would follow us there like a line of ants. Again the cymbals and the never-ending 'Takuti! Takuti!' of the drums. Hriday scolded them and said: 'Why do you bother us like this? Have we never heard kirtan?'
🔆🙏पूर्व वृत्त -नेता कहते है -'जड़ की रे सब चैतन्य' और लोग मन्त्रमुग्ध 🔆🙏
"वहाँ के गोस्वामी झगड़ा करने के लिए आये थे । उन्होंने सोचा था कि ये लोग हमारा चढ़ाव हड़पने के लिए आये हैं । उन्होंने देखा, मैंने एक जोड़ा धोती तो क्या एक लोग सूत भी नहीं लिया । किसी ने कहा ब्रह्मज्ञानी है । इस पर गोस्वामी सब थाह लेने के लिए आये । एक ने पूछा, इनके माला, तिलक क्यों नहीं हैं ? उन्हीं में से किसी ने कहा, नारियल का पत्ता आप ही निकलकर गिर गया है । नारियल के पत्तेवाली बात मैंने वहीं सीखी थी । ज्ञान के होने पर उपाधियाँ आप छूट जाती हैं ।
“সেখানকার গোঁসাইরা ঝগড়া করতে এসেছিল। মনে করেছিল, আমরা বুঝি তাদের পাওনাগণ্ডা নিতে এসেছি। দেখলে, আমি একখানা কাপড় কি একগাছা সুতাও লই নাই। কে বলেছিল ‘ব্রহ্মজ্ঞানী’। তাই গোঁসাইরা বিড়তে এসেছিল। একজন জিজ্ঞাসা করলে, ‘এঁর মালা তিলক, নাই কেন?’ তারাই একজন বললে, ‘নারকেলের বেল্লো আপনা-আপনি খসে গেছে’। ‘নারকেলের বেল্লো’ ও কথাটি ওইখানেই শিখেছি। জ্ঞান হলে উপাধি আপনি খসে পড়ে যায়।"
{"The Vaishnava priests of the village came and almost started a quarrel. They thought I would take their share of the fees from the devotees. But soon they discovered that I didn't touch a piece of cloth or even a thread. Someone remarked that I was a Brahmajnani. So the Vaishnava pundits wanted to test me. One said, 'Why hasn't he beads, and a mark on his fore-head?' Another of them replied, 'They have dropped from him, as the dry branch from a coconut tree.' It was there that I learnt this illustration of the dry branch of a coconut tree. The upadhis, limitations, drop when one attains Knowledge.
[ नारियल के पेड़ से जब कोई डाल सूख कर अपने आप गिर जाता है , तो केवल उसका एक दाग पेड़ पर रह जाता है ; ब्रह्मज्ञानी या जीवनमुक्त शिक्षक (नेता) का अहंकार भी वैसा ही होता है। ज्ञान के होने पर उपाधियाँ - मन, बुद्धि, चित्त , अहंकार से तादात्म्य आप छूट जाती हैं। 'जड़ की रे सब चैतन्य ' दादा ने एक कैम्प में केवल यही दिखलाया था। (पूर्ववृत्त (Antecedents-पिछला जीवन) 1994? में :- जानीबीघा कैम्प में माँ की जीवनी पर दादा को सुनने हजारों अनपढ़ ग्रामीण औरतें उमड़ कैसे आयीं थीं ? जीवनमुक्त शिक्षक या नेता (समाधि से व्युत्थान के बाद, लीला करते समय ?) योगमाया- आत्मा की दिव्य शक्ति की मदद से लोगों को आकर्षित करते हैं। लोग मंत्रमुग्ध हो जाते हैं।"]
"दूर के गाँवों से लोग आकर इकट्ठे होते थे । वे लोग रात को वहीं रहते थे । जिस घर में हम लोग थे, उसके आंगन में रात को औरतें सोई हुई थीं । लघुशंका करने के लिए बाहर जा रहा था, उन लोगों ने कहा, पेशाब यहीं (आंगन में ही) करो ।
"आकर्षण किसे कहते हैं, यह मैं वहीं समझा था । ईश्वर की लीला में योगमाया की सहायता से आकर्षण होता है, एक तरह का जादू-सा चल जाता है ।”
{ “দূর গাঁ থেকে লোক এসে জমা হতো। তারা রাত্রে থাকত। যে বাড়িতে ছিলাম, তার উঠানে রাত্রে মাগীরা অনেক সব শুয়ে আছে। হৃদে প্রস্রাব করতে রাতে বাহিরে যাচ্ছিল, তা বলে, ‘এইখানেই (উঠানে) করো।’“আকর্ষণ কাকে বলে, ওইখানেই (শ্যামবাজারে) বুঝলাম। হরিলীলায় যোগমায়ার সাহায্যে আকর্ষণ হয়, যেন ভেলকি লেগে যায়!”
"People came thronging from distant villages. They even spent the night there. At Syambazar I learnt the meaning of divine attraction. When God incarnates Himself on earth He attracts people through the help of Yogamaya, His Divine Power. People become spellbound."
(३)
🔆🙏ठाकुर श्रीरामकृष्ण और श्री राधिका गोस्वामी🔆🙏
दोनों मुखर्जी भाइयों से बातचीत करते हुए दिन के तीन बज गये । श्रीयुत राधिका गोस्वामी ने आकर प्रणाम किया । उन्होंने श्रीरामकृष्ण को पहली ही बार देखा है । उम्र तीस के भीतर होंगी । गोस्वामी ने आसन ग्रहण किया ।
[মুখুজ্জে ভ্রাতৃদ্বয় প্রভৃতি ভক্তগণের সহিত কথা কহিতে কহিতে বেলা প্রায় তিনটা বাজিয়াছে। শ্রীযুক্ত রাধিকা গোস্বামী আসিয়া প্রণাম করিলেন। তিনি ঠাকুর শ্রীরামকৃষ্ণকে এই প্রথম দর্শন করলেন। বয়স আন্দাজ ত্রিশের মধ্যে। গোস্বামী আসন গ্রহণ করিলেন।
It was about three o'clock in the afternoon. The Master had been conversing with the Mukherji brothers and the other devotees, when Radhika Goswami, a Vaishnava scholar, arrived and bowed before him. This was his first visit to the Master. Radhika Goswami took a seat.
श्रीरामकृष्ण - क्या आप लोग अद्वैत-वंश ^ के हैं ?
[শ্রীরামকৃষ্ণ — আপনারা কি অদ্বৈতবংশ?
MASTER: "Are you a descendant of Advaita?" (An intimate companion of Sri Chaitanya.)
गोस्वामी - जी हाँ , महाशय।
[গোস্বামী — আজ্ঞা, হাঁ।
GOSWAMI: "Yes, sir."
यह सुनकर कि श्री राधिका गोस्वामी अद्वैताचार्य (सनातन गोस्वामी :1488 -1558) के वंशज (descendent) हैं , ठाकुर ने हाथ जोड़कर उन्हें प्रणाम किया।
[ঠাকুর অদ্বৈতবংশ শুনিয়া গোস্বামীকে হাতজোড় করিয়া প্রণাম করিতেছেন।
At this the Master saluted him with folded hands.
[जब भी इस भूमि पर भगवान अवतार लेते हैं तो उनके साथ उनके पार्षद भी आते हैं^ अद्वैताचार्य श्री चैतन्य के एक अंतरंग पार्षद (An intimate companion of Sri Chaitanya.) थे ]
[(19 सितंबर,1884) श्रीरामकृष्ण वचनामृत ]
🔆🙏शाण्डिल्य और भरद्वाज गोत्र में जन्मे दोषयुक्त ब्राह्मण भी पूज्य माने जाते हैं🔆🙏
श्रीरामकृष्ण - खानदान का गुण तो होता ही है ।
"अच्छे आम के पेड़ में अच्छे ही आम लगते हैं । (सब हँसे) खराब आम नही होते । केवल मिट्टी के गुण से कुछ छोटे-बड़े हो जाते हैं । आपकी क्या राय है ?"
[শ্রীরামকৃষ্ণ — অদ্বৈতগোস্বামী বংশ, — আকরের গুণ আছেই!“নেকো আমের গাছে নেকো আমই হয়। (ভক্তদের হাস্য) খারাপ আম হয় না। তবে মাটির গুণে একটু ছোট বড় হয়। আপনি কি বলেন?”
MASTER: "You are descended from Advaita Goswami. You must have inherited some of his traits. A sweet-mango tree produces only sweet mangoes and not sour ones. Of course, it happens that some trees produce large mangoes and some small; that depends on the soil. Isn't that true?"
गोस्वामी - (विनयपूर्वक) - जी, मैं क्या जानू ?
গোস্বামী (বিনীতভাবে) — আজ্ঞে, আমি কি জানি।
GOSWAMI (humbly): "Sir, what do I know?"
श्रीरामकृष्ण - तुम कुछ भी कहो, दूसरे आदमी क्यों छोड़ने लगे ? "ब्राह्मण में चाहे लाख दोष हों परन्तु उसे भरद्वाज गोत्र और शाण्डिल्य गोत्र का समझकर लोग उसकी पूजा करते हैं । (मास्टर से) शंखचील की कहानी (सफेद परवाली चील की कहानी) जरा सुना तो दो ।"
[শ্রীরামকৃষ্ণ — তুমি যাই বল, — অন্য লোকে ছাড়বে কেন?“ব্রাহ্মণ, হাজার দোষ থাকুক — তবু ভরদ্বাজ গোত্র, শাণ্ডিল্য গোত্র বলে সকলের পূজনীয়। (মাস্টারের প্রতি) শঙ্খচিলের কথাটি বল তো!”
MASTER: "Whatever you may say, others will not let you off so easily. Brahmins, however imperfect they may be, are worshipped by all on account of their having been born in the lines of great sages. (To M.) Tell us the story of the samkhachila." (A bird similar to the kite.)
मास्टर चुपचाप बैठे हुए हैं । यह देखकर श्रीरामकृष्ण स्वयं कह रहे हैं –
"किसी वंश में अगर महापुरुष का जन्म हुआ हो तो वे खींच लेंगे, चाहे लाख दोष भी हों । जब गंधर्वो ने कौरवों को बाँध लिया तब युधिष्ठिर ने उन्हें मुक्त कर दिया । जिस दुर्योधन ने इतनी शत्रुता की थी, जिसके लिए युधिष्ठिर को वनवास भी सहना पड़ा, उसी को उन्होंने मुक्त कर दिया ।
{মাস্টার চুপ করিয়া আছেন দেখিয়া ঠাকুর আবার কথা কহিতেছেন —শ্রীরামকৃষ্ণ — বংশে মহাপুরুষ যদি জন্মে থাকেন তিনিই টেনে নেবেন — হাজার দোষ থাকুক। যখন গন্ধর্ব কৌরবদের বন্দী করলে যুধিষ্ঠির গিয়ে তাদের মুক্ত করলেন। যে দুর্যোধন এত শত্রুতা করেছে, যার জন্য যুধিষ্ঠিরের বনবাস হয়েছে তাকেই গিয়ে মুক্ত করলেন!
M. sat in silence.MASTER: "If one of your ancestors was a great soul, he will certainly pull you up, however unworthy you may be. When King Duryodhana and his brothers were taken captive by the gandharvas, Yudhisthira released them in spite of the fact that King Duryodhana was his enemy and had banished him to the forest.
[(19 सितंबर,1884) श्रीरामकृष्ण वचनामृत ]
🔆🙏शंखचील को देखकर प्रणाम क्यों करते हैं - महापुरुषों के वंश में जन्म🔆🙏
"इसके सिवा भेष का भी आदर किया जाता है । भेष देखकर सत्य वस्तु की उद्दीपना होती है । चैतन्य देव ने गधे को भेष पहनाकर साष्टांग प्रणाम किया था ।
{“তা ছাড়া ভেকের আদর করতে হয়। ভেক দেখলে সত্য বস্তুর উদ্দীপন হয়। চৈতন্যদেব গাধাকে ভেক পরিয়ে সাষ্টাঙ্গ হয়েছিলেন।
"Besides, one must show respect to the religious garb (वैष्णव की कंठी-माला) . Even the mere garb recalls to mind the real object. Chaitanya once dressed an ass in a religious garb and then prostrated himself before it.}
“शंखचील (सफेद परवाली चील) को देखकर लोग प्रणाम क्यों करते हैं ? कंस जब मारने के लिए चला था तब भगवती (माँ बिंध्यवासिनी देवी) शंखचील का रूप धारण कर उड़ गयी थीं । इसलिए अब भी जब लोग शंखचील ^ देखते हैं, तो उसे प्रणाम करते हैं ।
[“শঙ্খচিলকে দেখলে প্রণাম করে কেন? কংস মারতে যাওয়াতে ভগবতী শঙ্খচিল হয়ে উড়ে গিয়েছিলেন। তা এখনও শঙ্খচিল দেখলে সকলে প্রণাম করে।”
"Why do people bow before a samkhachila? When Kamsa was about to kill the Divine Mother, She flew away taking the form of a samkhachila. ^ So even now people salute the bird.}
{ ^ शाण्डिल्य गोत्र के राठौर शाक्त राजपूतों की कुल देवी हैं माँ बिन्ध्यवासिनी देवी : श्रीमद्भागवत पुराण की कथा अनुसार देवकी के आठवें गर्भ से जन्में श्री कृष्ण को वसुदेवजी ने कंस से बचाने के लिए रातोंरात यमुना नदी को पार गोकुल में नन्दजी के घर पहुंचा दिया था। तथा वहां यशोदा के गर्भ से पुत्री के रूप में जन्मीं आदि पराशक्ति योगमाया को चुपचाप वे मथुरा के जेल में ले आए थे। बाद में जब कंस को देवकी की आठवीं संतान के जन्म का समाचार मिला तो वह कारागार में पहुंचा। उसने उस नवजात कन्या को पत्थर पर पटककर जैसे ही मारना चाहा, वह कन्या अचानक कंस के हाथों से छूट गयी और शंख चील का रूप धारण कर आकाश में उड़ गई। और वहाँ अपना दिव्य स्वरूप प्रदर्शित कर कंस के वध की भविष्यवाणी की और अंत में वह भगवती विन्ध्याचल वापस लौट गई।
" चानक -छावनी (cantonment of Chanak.) के पल्टन के भीतर एक अंग्रेज को आते हुए देखकर सिपाहियों ने सलाम किया । कुँवर सिंह ने मुझे समझाया कि अंग्रेजों का राज्य है, इसीलिए अंग्रेजों को सलामी दी जाती है ।
{“চানকের পল্টনের ভিতর ইংরাজকে আসতে দেখে সেপাইরা সেলাম করলে। কোয়ার সিং আমাকে বুঝিয়ে দিলে, ‘ইংরাজের রাজ্য তাই ইংরাজকে সেলাম করতে হয়’।”
"An Englishman arrived at the cantonment of Chanak. The sepoys saluted him. Koar Singh explained to me: 'India is under the rule of the English. Therefore one should salute an Englishman.'
[कुँवर सिंह (कोयर सिंह) - श्री रामकृष्ण के विशेष नानकपन्थी सिक्ख भक्त। दक्षिणेश्वर-कालीबाड़ी के उत्तर की ओर अवस्थित सरकारी बरूदखाना (gunpowder-magazine) बैरकों में सिक्ख सेना के हवलदार थे। कुंवर सिंह श्री रामकृष्ण की पूजा 'गुरु नानक' के ज्ञान से करते थे और अक्सर ठाकुर का सानिध्य पाने के लिए आते थे। ठाकुर का भी उनसे विशेष लगाव था। कुंवर सिंह ठाकुर को साधुभोजन में आमंत्रित करते थे और ठाकुर भी सहर्ष इसे स्वीकार कर लिया करते थे ।
কুমার সিং (কুঁয়ার সিং) — শ্রীরামকৃষ্ণের বিশেষ অনুরাগী নানকপন্থী শিখভক্ত। দক্ষিণেশ্বর-কালীবাড়ির উত্তর পাশে সরকারী বারুদখানায় শিখসৈন্যগণের হাবিলদার ছিলেন। কুঁয়ার সিং শ্রীরামকৃষ্ণকে ‘গুরু নানাক’ জ্ঞানে ভক্তি করিতেন এবং প্রায়ই ঠাকুরের পূতসঙ্গ লাভ করিতে আসিতেন। ঠাকুরও তাঁহাকে বিশেষ স্নেহ করিতেন। কুঁয়ার সিং সাধুভোজন করাইবার সময় ঠাকুরকে নিমন্ত্রণ করিতেন, ঠাকুরও সানন্দে তাহা স্বীকার করিতেন।]
[(19 सितंबर,1884) श्रीरामकृष्ण वचनामृत ]
🔆🙏 राधिका गोस्वामी से वैष्णवमत और शाक्तमत में साम्प्रदायिकता की निन्दा🔆🙏
[গোস্বামীর কছে সাম্প্রদায়িকতার নিন্দা — শাক্ত ও বৈষ্ণব ]
"शाक्तों का तन्त्र मत है । वैष्णवों का पुराण मत । वैष्णव जो साधना करते हैं उसके कहने में दोष नहीं है । तान्त्रिक को सब कुछ गुप्त रखना पड़ता है । इसीलिए तान्त्रिक (शाक्त मत के अनुयायी) को अच्छी तरह कोई समझ नहीं सकता ।
{“শাক্তের তন্ত্র মত বৈষ্ণবের পুরাণ মত। বৈষ্ণব যা সাধন করে তা প্রকাশে দোষ নাই। তান্ত্রিকের সব গোপন। তাই তান্ত্রিককে সব বোঝা যায় না।
"The Saktas follow the Tantra, and the Vaishnavas the Purana. There is no harm for the Vaishnavas in speaking publicly of their spiritual practices. But the Saktas maintain secrecy about theirs. For this reason it is difficult to understand a Sakta.}
(गोस्वामी से) “आप लोग अच्छे हैं । कितना जप करते हैं ? और हरिनाम की संख्या क्या है ?"
{(গোস্বামীর প্রতি) — “আপনারা বেশ — কত জপ করেন, কত হরিনাম করেন।”
(To Goswami) " You are all good people. How much japa you practise ! How much you chant the name of Hari!"}
गोस्वामी - (विनय भाव से) - जी, मैं क्या करता हूँ । मैं अत्यन्त अधम - नीच हूँ ।
{গোস্বামী (বিনীতভাবে) — আজ্ঞা, আমরা আর কি করছি! আমি কত অধম।
GOSWAMI (humbly): "Oh, no! We do very little. I am a great sinner."}
श्रीरामकृष्ण - (सहास्य) - दीनता, यह अच्छा तो है । एक भाव और है - 'मैं उनका नाम ले रहा हूँ, मुझे फिर पाप कैसा !' जो लोग, दिन रात 'मैं पापी हूँ, मैं अधम हूँ' ऐसा किया करते हैं, वे वैसे ही हो जाते हैं । कितना अविश्वास है ! उनका इतना नाम ले करके भी पाप-पाप कहता है !
{শ্রীরামকৃষ্ণ (সহাস্যে) — দীনতা; আচ্ছা ও তো আছে। আর এক আছে, ‘আমি হরিনাম কচ্ছি, আমার আবার পাপ! যে রাতদিন ‘আমি পাপী’ ‘আমি পাপী’ ‘আমি অধম’ ‘আমি অধম’ করে, সে তাই হয়ে যায়। কি অবিশ্বাস! তাঁর নাম এত করেছে আবার বলে, ‘পাপ, পাপ!’
"You have humility. That is good. But there is also another way: 'I chant the name of Hari. How can I be a sinner?' He who constantly repeats: 'I am a sinner! I am a wretch!' verily becomes a sinner. What lack of faith! A man chants the name of God so much, and still he talks of sin!"}
राधिका गोस्वामी यह बात आश्चर्यचकित हो सुन रहे हैं ।
[গোস্বামী এই কথা অবাক্ হইয়া শুনিতেছেন।
Radhika Goswami listened to these words in amazement.
🔆🙏पूर्ववृत्त - 1868 ई ० में ठाकुरदेव के द्वारा वृंदावन में वैष्णव का भेष धारण🔆🙏
श्रीरामकृष्ण - मैंने भी वृन्दावन में भेष (वैष्णवों का) धारण किया था । पन्द्रह दिन तक रखा था । (भक्तों से) सब भावों की उपासना कुछ-कुछ दिनों तक करता था । तब शान्ति होती थी ।
(सहास्य) “मैंने सब तरह किया है - सब शास्त्रों को मानता हूँ । शाक्तों को भी मानता हूँ और वैष्णवों को भी । उधर वेदान्तवादियों को भी मानता हूँ । यहाँ इसीलिए सब मतों के आदमी आया करते हैं । और सब यही सोचते हैं कि ये हमारे मत के आदमी हैं । आजकल के ब्राह्म-समाजवालों (आधुनिक ब्रह्मज्ञानी) को भी मानता हूँ ।
{শ্রীরামকৃষ্ণ — আমিও বৃন্দাবনে ভেক নিয়েছিলাম; — পনর দিন রেখেছিলাম। (ভক্তদের প্রতি) সব ভাবই কিছুদিন করতাম, তবে শান্তি হতো।(সহাস্যে) “আমি সবরকম করেছি — সব পথই মানি। শাক্তদেরও মানি, বৈষ্ণবদেরও মানি, আবার বেদান্তবাদীদেরও মানি। এখানে তাই সব মতের লোক আসে। আর সকলেই মনে করে, ইনি আমাদেরই মতের লোক। আজকালকার ব্রহ্মজ্ঞানীদেরও মানি।
MASTER: "At Vrindavan I myself put on the garb of the Vaishnavas and wore it for fifteen days. (To the devotees) I have practised the disciplines of all the paths, each for a few days. Otherwise I should have found no peace of mind. (Smiling) I have practised all the disciplines; I accept all paths. I respect the Saktas, the Vaishnavas, and also the Vedantists. Therefore people of all sects come here. And every one of them thinks that I belong to his school. I also respect the modern Brahmajnanis. (The members of the Brahmo Samaj.)
"एक आदमी के पास एक रंग का गमला था । उस गमले में एक बड़े आश्चर्य का गुण यह था कि जिस किसी रंग में वह कपड़े रंगना चाहता था, उसी रंग में कपड़े रंग जाते थे ।
"परन्तु किसी होशियार आदमी ने कहा, तुमने इसमें जो रंग घोला है वही रंग (नाम-जप ) मुझे दो । (श्रीरामकृष्ण और सब हँसते हैं ।)
{“একজনের একটি রঙের গামলা ছিল। গামলার আশ্চর্য গুণ যে, যে রঙে কাপড় ছোপাতে চাইবে তার কাপড় সেই রঙেই ছুপে যেত।“কিন্তু একজন চালাক লোক বলেছিল, ‘তুমি যে-রঙে রঙেছো, আমায় সেই রঙটি দিতে হবে।’ (ঠাকুর ও সকলের হাস্য)"
"A man had a tub of dye. Such was its wonderful property that people could dye their clothes any colour they wanted by merely dipping them in it. A clever man said to the owner of the tub, 'Dye my cloth the colour of your dye-stuff.' (तुमने अपने चित्त को जिस नाम के रंग से रंगा है , वही रंग (हरिनाम) मुझे देदो।) All laugh.)
"एक ही ढरें का (one-sided) मैं क्यों हो जाऊँ ? 'अमुक मत के आदमी फिर न आयेंगे' इसका भय नहीं है । कोई आये चाहे न आये, मुझे इसकी जरा भी परवाह नहीं है । लोग मेरी मुट्ठी में रहेंगे, ऐसी कोई बात मेरे मन में है ही नहीं । अधर सेन ने बड़ी नौकरी के लिए माँ से कहने के लिए कहा था - उसको वह काम नहीं मिला । वह अगर इसके लिए कुछ सोचे तो मुझे इसकी जरा भी परवाह नहीं है ।
{“কেন একঘেয়ে হব? ‘অমুক মতের লোক তাহলে আসবে না।’ এ ভয় আমার নাই। কেউ আসুক আর না আসুক তাতে আমার বয়ে গেছে; — লোক কিসে হাতে থাকবে, এমন কিছু আমার মনে নাই। অধর সেন বড় কর্মের জন্য মাকে বলতে বলেছিল — তা ওর সে কর্ম হল না। ও তাতে যদি কিছু মনে করে, আমার বয়ে গেছে!”
"Why should I be one-sided? The idea that the people of a particular sect will not come to me does not frighten me. I don't care a bit whether people come to me or not. The thought of keeping anyone under my control never crosses my mind. Adhar Sen asked me to ask the Divine Mother for a big position for him, but he didn't get it. If that makes him think differently about me, what do I care?
🔆 पूर्ववृत्त - केशव सेन के मकान पर निराकारभाव का चिंतन - विजय गोस्वामी का चरित्र]🔆
"केशव सेन के घर जाने पर एक और भाव हुआ । वे लोग निराकार-निराकार किया करते हैं । इस पर, जब भावावेश हुआ तो मैंने कहा - माँ, यहाँ न आना, ये लोग तेरे रूप को नहीं मानते ।"
{“আবার কেশব সেনের বাড়ি গিয়ে আর এক ভাব হল। ওরা নিরাকার নিরাকার করে; — তাই ভাবে বললুম, ‘মা এখানে আনিসনি, এরা তোর রূপ-টুপ মানে না’।”
"Once at Keshab's house I found myself in a new mood. The Brahmos always speak of the Impersonal; therefore I said to the Divine Mother in an ecstatic mood: 'Mother, please don't come here. They don't believe in Your forms.'}
[(19 सितंबर,1884) श्रीरामकृष्ण वचनामृत ]
🔆🙏विजयकृष्ण गोस्वामी (2 अगस्त 1841 – 4 June 1899)की अद्भुत अवस्था 🔆🙏
साम्प्रदायिकता (sectarianism) के विरोध की बात सुनकर गोस्वामीजी चुपचाप बैठे हुए हैं ।
[সাম্প্রদায়িকতার বিরুদ্ধে এই সকল কথা শুনিয়া গোস্বামী চুপ করিয়া আছেন।
Radhika Goswami listened to these words of the Master against sectarianism and remained silent.
श्रीरामकृष्ण - (सहास्य) - विजय ^ (किसी समय में निराकारवादी) इस समय बहुत अच्छा हो गया है । " हरिनाम करते हुए जमीन पर गिर जाता है ।
[[विजय ^विजयकृष्ण गोस्वामी (2 अगस्त 1841 – 4 June 1899।"विजय आजकल मन की अद्भुत स्थिति में है। वह हरि के नाम का जाप करते हुए जमीन पर गिर जाता है।"Vijay3 is in a wonderful state of mind nowadays. He falls to the ground while chanting the name of Hari. उनका जन्म हालांकि एक वैष्णव परिवार में हुआ था, परन्तु पाश्चात्य शिक्षा के दुष्प्रभाव से वे आगे चलकर ब्रह्म समाज (निराकारवादी सम्प्रदाय) के सदस्य बन गए थे। उस समय बंगाल में #ब्रह्म समाज का जोरशोर था आप भी इसी समाज से जुड़ गये। श्रीरामकृष्ण देव के सानिध्य में रहने के कारण बाद में उन्हें पुनः ईश्वर के साकार अस्तित्व पर विश्वास हो गया था। एक बार गया में #आकाश मार्ग से (अलौकिक रूप) से प्रकटअपने गुरु से दीक्षा लेने के बाद वे ईश्वर के सगुण साकार अवतार (Personal God) को मानने लगे थे। साधना के दौरान श्री चैतन्य महाप्रभु की कृपा से विजय ने दिव्य भगवत प्रेम प्राप्त किया। दीक्षा # (=प्रभु-नाम का मंत्र) देने वाले सद्गुरु के संबंध में इनका कहना था-'यह संपूर्ण रूप से स्वयं भगवान् के द्वारा दिया जाने वाला दान है, जिन्हें भगवत् निर्देश ( अर्थात अपने गुरु से चपरास) प्राप्त हो केवल वे ही दीक्षा दे सकते है।' ^Vijaykrishna Goswami. Though born in a Vaishnava family, he became a member of the Brahmo Samaj. Later he returned to the worship of the Personal God.]
“प्रातः चार बजे तक कीर्तन और ध्यान, यह सब लेकर रहता है । इस समय गेरुआ पहने हुए है । देव-विग्रह देखता है तो एकदम साष्टांग प्रणाम करता है ।
“जहाँ गदाधर ^ की पाठशाला थी वहाँ विजय को ले गया था और कहा, यहीं वे ध्यान करते थे । बस कहने के साथ ही उसने साष्टांग प्रणाम किया । (^ एक प्रसिद्ध वैष्णव साधु)
"चैतन्यदेव के चित्र के सामने फिर साष्टांग प्रणाम किया ।"
[শ্রীরামকৃষ্ণ (সহাস্যে) — বিজয় এখন বেশ হয়েছে।“হরি হরি বলতে বলতে মাটিতে পড়ে যায়!“চারটে রাত পর্যন্ত কীর্তন, ধ্যান এই সব নিয়ে থাকে। এখন গেরুয়া পরে আছে। ঠাকুর-বিগ্রহ দেখলে একেবারে সাষ্টাঙ্গ!“চৈতন্যদেবের পটের সম্মুখে আবার সাষ্টাঙ্গ!”
MASTER (smiling): "Vijay3 is in a wonderful state of mind nowadays. He falls to the ground while chanting the name of Hari. He devotes himself to kirtan, meditation, and other spiritual practices till four in the morning. He now puts on an ochre robe and prostrates himself before the images of God. Once he accompanied me to Gadadhar's (A celebrated Vaishnava saint.) schoolhouse. I pointed out the place where Gadadhar used to meditate. At once Vijay prostrated himself there. Again he fell prostrate before the picture of Chaitanyadeva."
गोस्वामी - राधाकृष्ण की मूर्ति के सामने ?
[গোস্বামী — রাধাকৃষ্ণ মূর্তির সম্মুখে?
GOSWAMI: "What about the image of Radha-Krishna?"
श्रीरामकृष्ण - साष्टांग प्रणाम ! और बड़ा आचारी है ।
[শ্রীরামকৃষ্ণ — সাষ্টাঙ্গ! আর আচারী খুব।
MASTER: "He prostrated himself there too. Vijay also follows all the. conventions of religious life."
गोस्वामी - अब उन्हें वैष्णव समाज में लिया जा सकता है ।
[গোস্বামী — এখন সমাজে নিতে পারা যায়।
GOSWAMI: "He can now be accepted in Vaishnava society."
श्रीरामकृष्ण - लोग क्या कहेंगे, इसकी उसे कोई चिन्ता नहीं है ।
[শ্রীরামকৃষ্ণ — সে লোকে কি বলবে, তা অত চায় না।
MASTER: "People's opinions don't count for much with him."
गोस्वामी - ऐसे आदमी को प्राप्त कर समाज भी कृतार्थ हो सकता है ।
[গোস্বামী — না, সমাজ তাহলে কৃতার্থ হয় — অমন লোককে পেলে।
GOSWAMI: "I don't mean that. By accepting him Vaishnava society will honour itself."
श्रीरामकृष्ण - मुझे बहुत मानता है । " उसे पाना ही मुश्किल हो रहा है । आज ढाके से बुलावा आता है तो कल किसी दूसरी जगह से; इस तरह सदा ही काम में उलझा रहता है । " उसके साधारण ब्रह्म समाज ^ वालों में बड़ी गडबड़ी मची हुई है ।"
[केशव के साथ मतभेद होने के कारण, ^विजय और उनके कई मित्र , केशव के संगठन से अलग हो गए और साधारण ब्रह्म समाज की स्थापना की थी।^Vijay and several of his friends, on account of a disagreement with Keshab, seceded from Keshab's organization and founded the Sadharan Brahmo Samaj.]
[শ্রীরামকৃষ্ণ — আমায় খুব মানে।“তাকে পাওয়াই ভার। আজ ঢাকায় ডাক, কাল আর এক জায়গায় ডাক। সর্বদাই ব্যস্ত।“তাদের সমাজে (সাধারণ ব্রাহ্মসমাজে) বড় গোল উঠেছে।”
MASTER: "He respects me very much. But it is difficult to reach him. One day he is called to Dacca, the next day to some other place. He is always busy. His presence has created great trouble in the Sadharan Brahmo Samaj."4
गोस्वामी – क्यों ?
[গোস্বামী — আজ্ঞা, কেন?
GOSWAMI: "Why so, sir?"
श्रीरामकृष्ण - उसे लोग कह रहे हैं, तुम साकारवादियों के साथ मिल रहे हो, तुम पौत्तलिक (idolater मूर्ति पूजक) हो । “और बड़ा उदार और सरल है । सरल हुए बिना ईश्वर की कृपा नहीं होती ।"
[শ্রীরামকৃষ্ণ — তাকে বলছে, ‘তুমি সাকারবাদীদের সঙ্গে মেশো! — তুমি পৌত্তলিক।’“আর অতি উদার সরল। সরল না কলে ঈশ্বরের কৃপা হয় না।”
MASTER: "The Brahmos tell him: 'You mix with people who worship God with form. You are an idolater.' Vijay is liberal and straightforward. Unless a man is guileless, he doesn't receive the grace of God."
[(19 सितंबर,1884) श्रीरामकृष्ण वचनामृत ]
🔆 'लकड़हारा,आगे बढ़ो -'मन ही मनुष्यों के बन्धन और मुक्ति का कारण है अभ्यासयोग🔆
अब श्रीरामकृष्ण मुखर्जियों से बातचीत कर रहे हैं । महेन्द्र उनमें बड़े हैं, व्यवसाय करते हैं, किसी की नौकरी नहीं करते । छोटे प्रियनाथ इंजीनियर थे, अब उन्होंने कुछ धनोपार्जन कर लिया है, अब नौकरी नहीं करते । बड़े भाई की उम्र 35-36 के लगभग होगी । उनका मकान केदेटी मौजे में है । कलकत्ते के बागबाजार में भी उनका अपना मकान है ।
[এইবার ঠাকুর মুখুজ্জেদের সঙ্গে কথা কহিতেছেন। জ্যেষ্ঠ মহেন্দ্র ব্যবসা করেন কাহারও চাকরি করেন না। কনিষ্ঠ প্রিয়নাথ ইঞ্জিনিয়ার ছিলেন। এখন কিছু সংস্থান করিয়াছেন। আর চাকরি করেন না। জ্যেষ্ঠের বয়স ৩৫/৩৬ হইবে। তাঁহাদের বাড়ি কেদেটি গ্রামে। কলিকাতা বাগবাজারের তাঁহাদের বসতবাটী আছে।
Sri Ramakrishna talked to the Mukherji brothers. Mahendra, the elder, had his own business. Priyanath, the younger, had been an engineer. After making some provision for himself, he had given up his job. Mahendra was thirty-five or thirty-six years old. The brothers had homes both in the country and in Calcutta.
श्रीरामकृष्ण - (सहास्य) - कुछ उद्दीपना हो रही है, यह देखकर चुप्पी न साध जाना । बढ़ जाओ ! चन्दन की लकड़ी के बाद और भी चीजें हैं - चाँदी की खान - सोने की खान !
{শ্রীরামকৃষ্ণ (সহাস্যে) — একটু উদ্দীপন হচ্চে বলে চুপ করে থেকো না। এগিয়ে পড়। চন্দন কাঠের পর আরও আছে — রূপার খনি, সোনার খনি!
MASTER (smiling): "Don't sit idle simply because your spiritual consciousness has been awakened a little. Go forward. Beyond the forest of sandal-wood there are other and more valuable things — silver-mines, gold-mines, and so on."}
प्रिय - (सहास्य) - जी, पैरों में जो बेड़ियाँ पड़ी हुई हैं, उनके कारण बढ़ा नहीं जाता ।
[প্রিয় (সহাস্যে) — আজ্ঞা, পায়ে বন্ধন — এগুতে দেয় না।
PRIYA (smiling): "Sir, our legs are in chains. We cannot go forward."
श्रीरामकृष्ण - पैरों के बन्धन से क्या होता है ? बात असल मन की है ।
"मन के द्वारा ही आदमी बँधा हुआ है और उसी के द्वारा छूटता भी है । दो मित्र थे । एक वेश्या के घर गया । दूसरा भागवत सुन रहा था । पहला सोच रहा था, मुझे धिक्कार है, मेरा मित्र भागवत सुन रहा है और मैं वेश्या के यहाँ पड़ा हुआ हूँ । उधर दूसरा सोच रहा था, मैं बड़ा बेवकूफ हूँ, मेरा मित्र तो मजा लूट रहा है और मैं यहाँ आकर फँस गया । पर देखो, वेश्या के यहाँ जानेवाले को तो विष्णुदूत आकर वैकुण्ठ में ले गये और दूसरे को यमदूतों ने नरक में घसीटकर डाल दिया ।
{শ্রীরামকৃষ্ণ — পায়ে বন্ধন থাকলে কি হবে? — মন নিয়ে কথা।“মনেই বদ্ধ মুক্ত। দুই বন্ধু — একজন বেশ্যালয়ে গেল, একজন ভাগবত শুনছে। প্রথমটি ভাবছে — ধিক্ আমাকে — বন্ধু হরিকথা শুনছে আর আমি কোথা পড়ে রয়েছি। আর-একজন ভাবছে, ধিক্ আমাকে, বন্ধু কেমন আমোদ-আহ্লাদ করছে, আর আমি শালা কি বোকা! দেখো প্রথমটিকে বিষ্ণুদূতে নিয়ে গেল — বৈকুণ্ঠে। আর দ্বিতীয়টিকে যমদূতে নিয়ে গেল”।
"What if the legs are chained? The important thing is the mind. Bondage is of the mind, and freedom also is of the mind. "Listen to a story. There were two friends. One went into a house of prostitution and the other to hear a recital of the Bhagavata. 'What a shame!' thought the first. 'My friend is hearing spiritual discourse, but just see what I have slipped down to!' The second friend said to himself: 'Shame on me! My friend is having a good time, but how stupid I am!' After death the soul of the first was taken to Vaikuntha by the messenger of Vishnu, while that of the second was taken to the nether world of Yama."}
प्रिय - मन मेरे बस में भी तो नहीं है ।
[প্রিয় — মন যে আমার বশ নয়।
PRIYA: "But the mind is not under my control."
श्रीरामकृष्ण - यह क्या अभ्यासयोग (अनासक्ति पूर्वक मनःसंयोग का) -अभ्यास करो, फिर देखोगे मन को जिस ओर ले जाओगे, उसी ओर जायगा ।
"मन धोबी के यहाँ का कपड़ा है । वहाँ से लाकर उसे लाल रंग से रंगो तो लाल हो जायगा और आसमानी से रँगो तो आसमानी । जिस रंग से रंगोगे वहीं रंग उस पर चढ़ जायगा ।
{শ্রীরামকৃষ্ণ — সে কি! অভ্যাস যোগ। অভ্যাস কর, দেখবে মনকে যেদিকে নিয়ে যাবে, সেইদিকেই যাবে।“মন ধোপাঘরের কাপড়। তারপর লালে ছোপাও লাল — নীলে ছোপাও নীল। যে রঙে ছোপাবে সেই রঙ হয়ে যাবে।
MASTER: "How is that? There is such a thing as abhyasayoga, yoga through practice. Keep up the practice and you will find that your mind will follow in whatever direction you lead it. The mind is like a white cloth just returned from the laundry. It will be red if you dip it in red dye and blue if you dip it in blue. It will have whatever colour you dip it in.
(गोस्वामी से) “आपको कुछ पूछना तो नहीं है ?"
[(গোস্বামীর প্রতি) — “আপনাদের কিছু কথা আছে?”
(To Goswami) "Have you anything to ask?"
गोस्वामी - (बड़े ही विनय भाव से) - जी नहीं, दर्शन हो गये, और सब बातें तो सुनता ही था ।
{গোস্বামী (অতি বিনীতভাবে) — আজ্ঞে না, — দর্শন হল। আর কথা তো সব শুনছি।
GOSWAMI: "No, sir. I am satisfied that I have seen you and have been listening to your words."}
श्रीरामकृष्ण - देवताओं के दर्शन करो ।
{শ্রীরামকৃষ্ণ — ঠাকুরদের দর্শন করুন।
MASTER: "Go and visit the temples."}
गोस्वामी - (विनयपूर्वक) - कुछ महाप्रभु के गुणकीर्तन सुनना चाहता हूँ ।
[গোস্বামী (অতি বিনীতভাবে) — একটু মহাপ্রভুর গুণানুকীর্তন —
श्रीरामकृष्ण कीर्तन गाने लगे -
आमार अंग केनो गौर (ओ गौर होलो रे!)
कि करले धनी, अकाले सकाल कैले (कोइले)
अकालेते बरण धराले॥
अर्थात मेरा शरीर इतना गोरे रंग का क्यों हो गया ? यह तो होने का समय नहीं है: गौरांग रूप में प्रकट होने से पहले इस सुवर्ण कान्ति को प्राप्त करने में तो कई युग बीतने चाहिए थे !
ঠাকুর শ্রীরামকৃষ্ণ গোস্বামীকে গান শুনাইতেছেন:গান — আমার অঙ্গ কেন গৌর হলো!
The Master complied. He sang:Why has My body turned so golden? It is not time for this to be:Many the ages that must pass, before as Gauranga I appear! . . .
गान -2
गोरा चाहे वृन्दावन पाने , आर धारा बहे दूनयने।।
গান — গোরা চাহে বৃন্দাবনপানে, আর ধারা বহে দুনয়নে ৷৷ভাব হবে বইকি রে!) (ভাবনিধি শ্রীগৌরাঙ্গের)(যার অন্তঃ কৃষ্ণ বহিঃ গৌর) (ভাবে হাসে কাঁদে নাচে গায়)(বন দেখে বৃন্দাবন ভাবে) (সমুদ্র দেখে শ্রীযমুনা ভাবে)(গোরা আপনার পা আপনি ধরে)
Again:Gora gazes at Vrindavan and tears stream from his eyes;In an exuberance of joy, he laughs and weeps and dances and sings.He takes a wood for Vrindavan, the ocean for the blue Jamuna;He rolls on the ground for love of Hari.
[(19 सितंबर,1884) श्रीरामकृष्ण वचनामृत ]
🔆🙏श्री राधिका गोस्वामी को भक्त-नास्तिक, सर्वधर्म -समन्वय का उपदेश🔆🙏
कीर्तन के समाप्त हो जाने पर श्रीरामकृष्ण गोस्वामीजी से कह रहे हैं - यह तो आप लोगों के ढंग का हुआ । लेकिन अगर कोई शाक्त या घोषपाड़ा के मत का आदमी आ जाय तो मैं दूसरे ढंग के गाने गाऊँगा ।
{গান সমাপ্ত হইল — ঠাকুর কথা কহিতেছেন।শ্রীরামকৃষ্ণ (গোস্বামীর প্রতি) — এ তো আপনাদের (বৈষ্ণবদের) হল। আর যদি কেউ শাক্ত, কি ঘোষপাড়ার মত আসে, তখন কি বলব!
After singing, the Master went on with the conversation.MASTER (to Goswami): "I have sung these songs to suit your Vaishnava temperament. But I must sing differently when the Saktas or others come. (to Goswami): "I have sung these songs to suit your Vaishnava temperament. But I must sing differently when the Saktas or others come.
"यहाँ सब तरह के आदमी आते हैं – वैष्णव, शाक्त, कर्ताभजा, वेदान्तवादी और आजकल के ब्राह्म-समाजवाले आदि भी । इसलिए यहाँ सब तरह के भाव हैं ।
"उन्हीं की इच्छा से अनेक धर्मों और मतों का चलन हुआ ।
"जिसे जो सहय है उसे उन्होंने वही दिया है ।
"जिसकी जैसी प्रकृति, जिसका जैसा भाव, वह उसे ही लेकर रहता है ।
{“তাই এখানে সব ভাবই আছে — এখানে সবরকম লোক আসবে বলে; বৈষ্ণব, শাক্ত, কর্তাভজা, বেদান্তবাদী; আবার ইদানীং ব্রহ্মজ্ঞানী।“তাঁরই ইচ্ছায় নানা ধর্ম নানা মত হয়েছে।“তবে তিনি যার যা পেটে সয় তাকে সেইটি দিয়েছেন। মা সকলকে মাছের পোলোয়া দেয় না। সকলের পেটে সয় না। তাই কাউকে মাছের ঝোল করে দেন।
"Here (Referring to himself.) people of all sects come — Vaishnavas, Saktas, Kartabhajas, Vedantists, and also members of the modern Brahmo Samaj. Therefore one finds here all ideals and attitudes. It is by the will of God that different religions and opinions have come into existence. God gives to different people what they can digest. The mother does not give fish pilau to all her children. All cannot digest it; so she prepares simple fish soup for some. Everyone cherishes his own special ideal and follows his own nature.}
"किसी धार्मिक मेले में (Baroari या सार्वजनिक पूजोत्सव) अनेक तरह की मूर्तियाँ पायी जाती हैं, और वहाँ अनेक मतों के आदमी जाते हैं । राधा-कृष्ण, हर-पार्वती, सीता-राम, जगह जगह पर भिन्न भिन्न मूर्तियाँ रखी रहती हैं । और हरएक मूर्ति के पास लोगों की भीड़ होती है । जो लोग वैष्णव हैं उनकी अधिक संख्या राधा-कृष्ण के पास खड़ी हुई है, जो शाक्त हैं, उनकी भीड़ हर-पार्वती के पास लगी है । जो रामभक्त हैं, वे सीताराम की मूर्ति के पास खड़े हुए हैं ।
{“বারোয়ারিতে নানা মূর্তি করে, — আর নানা মতের লোক যায়। রাধা-কৃষ্ণ, হর-পার্বতী, সীতা-রাম; ভিন্ন ভিন্ন স্থানে ভিন্ন ভিন্ন মূর্তি রয়েছে, আর প্রত্যেক মূর্তির কাছে লোকের ভিড় হয়েছে। যারা বৈষ্ণব তারা বেশি রাধা-কৃষ্ণের কাছে দাঁড়িয়ে দেখছে। যারা শাক্ত তারা হর-পার্বতীর কাছে। যারা রামভক্ত তারা সীতা-রাম মূর্তির কাছে।
"They provide various images for the Baroari5 (^A religious festival, the cost of which is borne by the whole community.)because people of different sects assemble at it. You see there images of Radha-Krishna, Siva-Durga, and Sita-Rama — different images in different places. A crowd gathers before each image. The Vaishnavas spend most of their time before the image of Radha-Krishna, the Saktas before Siva-Durga, and the devotees of Rama before Sita-Rama.}
[(19 सितंबर,1884) श्रीरामकृष्ण वचनामृत ]
🔆मेलेमें नास्तिक कम्युनिस्टों के लिए आशिक को झाड़ू मारती वैश्या मूर्ति 🔆
"परन्तु जिनका मन किसी देवता की ओर नहीं है, उनकी और बात है । वेश्या अपने आशिक की झाडू से खबर ले रही है, ऐसी मूर्ति भी वहाँ बनायी जाती है । उस तरह के आदमी मुँह फैलाये हुए वही मूर्ति देखते और अपने मित्रों को चिल्लाते हुए उधर ही बुलाते भी हैं, कहते हैं - 'अरे वह सब क्या खाक देखते हो ? इधर आओ जरा, यहाँ तो देखो !” (सब हँसते हैं।)
सब हँस रहे हैं । श्री राधिका गोस्वामी प्रणाम करके बिदा हुए ।
{“তবে যাদের কোন ঠাকুরের দিকে মন নাই তাদের আলাদা কথা। বেশ্যা উপপতিকে ঝাঁটা মারছে, — বারোয়ারিতে এমন মূর্তিও করে। ও-সব লোক সেইখানে দাঁড়িয়ে হাঁ করে দেখে, আর চিৎকার করে বন্ধুদের বলে, ‘আরে ও-সব কি দেখছিস, এদিকে আয়! এদিকে আয়!” সকলে হাসিতেছেন। গোস্বামী প্রণাম করিয়া বিদায় গ্রহণ করিলেন।
"But it is quite different with those (Communists?) who are not spiritually minded at all. In the Baroari one sees another image also — a prostitute beating her paramour with a broomstick. Those people stand there with gaping mouths कौतुहल से मुँह बाये हुए and cry to their friends: 'What are you looking at over there? Come here! Look at this!'" (All laugh.) Radhika Goswami saluted the Master and took his leave.
(४)
[(19 सितंबर,1884) श्रीरामकृष्ण वचनामृत ]
🔆🙏 संस्कार तथा तपस्या का प्रयोजन । साधु-सेवा🔆🙏
दिन के पाँच बजे हैं । श्रीरामकृष्ण पश्चिमवाले बरामदे में हैं । बाबूराम, लाटू, दोनों मुखर्जी भाई, मास्टर आदि भक्त उनके साथ हैं ।
[বেলা পাঁচটা। ঠাকুর পশ্চিমের গোল বারান্দায়। বাবুরাম, লাটু। মুখুজ্জে ভ্রাতৃদ্বয়, মাস্টার প্রভৃতি সঙ্গে সঙ্গে আসিয়াছেন।
It was about five o'clock. The Master was on the semicircular west porch. Baburam, Latu, the Mukherji brothers, M., and some other devotees were with him.
श्रीरामकृष्ण - (मास्टर आदि से) - मैं क्यों एक ढरें का होऊँ ? वे लोग वैष्णव हैं, बड़े कट्टर (bigoted-धर्मान्ध, अपने मत का हठी ) हैं, सोचते हैं, हमारा ही धर्म ठीक है, और सब वाहियात है । मैंने जो बातें सुनायी हैं, उनसे उसे चोट पहुँची होगी । (हँसते हुए) हाथी के सिर पर अंकुश मारा जाता है । कहते हैं, वहीं उसके सिर पर कोष (कोमल अंग) रहता है । (सब हँसे)
{শ্রীরামকৃষ্ণ (মাস্টার প্রভৃতির প্রতি) — কেন একঘেয়ে হব? ওরা বৈষ্ণব আর গোঁড়া, মনে করে আমাদের মতই ঠিক, আর সব ভুল। যে কথা বলেছি, খুব লেগেছে। (সহাস্যে) হাতির মাথায় অঙ্কুশ মারতে হয়। মাথায় নাকি ওদের কোষ থাকে। (সকলের হাস্য)
"Why should I be one-sided? The goswamis belong to the Vaishnava school and are very bigoted. They think that their opinion alone is right and all other opinions are wrong. My words have hit him hard. (Smiling) One must strike the elephant on the head with the goad; that is the elephant's most sensitive spot."
[(19 सितंबर,1884) श्रीरामकृष्ण वचनामृत ]
🔆बाल्य, पौगण्ड , युवा को मछली का गंध युक्त पानी भी-ताकि लोकशिक्षा सके 🔆
श्रीरामकृष्ण लड़कों के साथ हँसी करने लगे । मास्टर (भक्तों से): "मैं युवाओं को शुद्ध शाकाहारी भोजन नहीं देता: कभी-कभी मैं उन्हें मछली की गंध वाला पानी देता हूं। अन्यथा, वे यहाँ क्यों आएं?"}
[ঠাকুর এইবার ছোকরাদের সঙ্গে ফষ্টিনাষ্টি করতে লাগলেন।শ্রীরামকৃষ্ণ (ভক্তদের প্রতি) — আমি এদের (ছোকরাদের) কেবল নিরামিষ দিই না। মাঝে মাঝে আঁশ ধোয়া জল একটু একটু দিই। তা না হলে আসবে কেন।
{Then Sri Ramakrishna told a few naughty jokes (ফষ্টিনাষ্টি) for the young men. "I don't give the youngsters a pure vegetarian diet: now and then I give them a little water smelling of fish. Otherwise, why should they come?"
दोनों मुखर्जी बरामदे से चले गये । बगीचे में कुछ देर टहलेंगे ।
[মুখুজ্জেরা বারান্দা হইতে চলিয়া গেলেন। বাগানে একটু বেড়াইবেন।
The Mukherji brothers left the porch. They went to the garden for a stroll.
श्रीरामकृष्ण – (हँसते हुए) – कहीं मुखर्जीयों ने हमारी हँसी को बुरा तो नहीं मान लिया ?
MASTER (to M.): "I wonder whether the Mukherjis have taken offence at my jokes?"
मास्टर – क्यों ? कप्तान ने तो कहा था, आपकी अवस्था बालक की है । ईश्वर-दर्शन करने पर बालक की अवस्था हो जाती है ।
{M: "Why should they? Captain said that you are like a child. After realizing God a man becomes childlike."}
श्रीरामकृष्ण - और बाल्य, कैशोर और युवा । कैशोर अवस्था में दिल्लगी-मजाक सूझता है । कभी कुछ तुच्छ बात मुँह से निकल जाता है । पर युवावस्था में सिंह की तरह लोकशिक्षा देता है ।
"तुम उन्हें मेरी मानसिक अवस्था समझा देना ।"
{শ্রীরামকৃষ্ণ — আর বাল্য, পৌগণ্ড, যুবা। পৌগণ্ড অবস্থায় ফচকিমি করে, হয়তো খেউর মুখ দে বেরোয়। আর যুবা অবস্থায় সিংহের ন্যায় লোকশিক্ষা দেয়।“তুমি না হয় ওদের (মুখুজ্জেদের) বুঝিয়ে দিও।”
MASTER: "Yes, and sometimes he behaves like a boy, and sometimes like a young man. As a boy he is very light-hearted. He may use frivolous language. As a young man he is like a roaring lion while teaching others. You had better explain my state of mind to the Mukherjis."
मास्टर - जी, मुझे समझाना न होगा । क्या वे जानते नहीं ?
[মাস্টার — আজ্ঞা, আমার বোঝাতে হবে না। ওরা কি আর জানে না?
M: "I don't have to do that. Haven't they the sense to see it?"
श्रीरामकृष्ण लड़कों के साथ आमोद-प्रमोद करते हुए एक भक्त से कह रहे हैं - "आज अमावास्या ^ है, माँ के मन्दिर में जाना ।”
[শ্রীরামকৃষ্ণ ছোকরাদের সঙ্গে একটু আমোদ-আহ্লাদ করিয়া একজন ভক্তকে বলিতেছেন, “আজ অমাবস্যা, মার ঘরে যেও!”
Again the Master became light-hearted with the boys. Then he said to one of the devotees: "Today is the new moon. Go to the Kali temple in the evening."6
{^अमावस्या की रात देवी माँ काली की पूजा के लिए विशेष रूप से शुभ होती है। ^The night of the new moon is especially auspicious for the worship of the Divine Mother.काली पूजा : देवी माँ काली को समर्पित यह पर्व कार्तिक मास की अमावस्या तिथि को मनाया जाता है, अर्थात उसी दिन जिस दिन पूरे भारत में दीपावली का पर्व और लक्ष्मी पूजा मनायी जाती है। यह मान्यता है कि इसी दिन देवी माँ काली 64,000 योगिनियों के साथ प्रकट हुई थीं। शक्ति के नौ स्वरूपों में मां काली को प्रसन्न करना सबसे अहम है, क्योंकि उन्हें साक्षात काल की देवी (काल को खा जाने वाली) कहा जाता है। दुष्टों और पापियों का संहार करने के लिए माता दुर्गा (Maa Durga) ने ही मां काली (Maa Kali) के रूप में अवतार लिया था। माना जाता है कि मां काली के पूजन से जीवन के सभी दुखों का अंत हो जाता है। पौराणिक कथा के अनुसार राक्षसों का वध करने के बाद भी जब महाकाली का क्रोध कम नहीं हुआ था तब भगवान शिव स्वयं उनके चरणों में लेट गए। भगवान शिव के शरीर स्पर्श मात्र से ही देवी महाकाली का क्रोध समाप्त हो गया। इसी की याद में उनके शांत रूप लक्ष्मी की पूजा की शुरुआत हुई जबकि इसी रात इनके रौद्ररूप काली की पूजा का विधान भी कुछ राज्यों में है। पश्चिम बंगाल में लक्ष्मी पूजा दशहरे के 6 दिन बाद की जाती है जबकि दिवाली के दिन काली पूजा होती है। }
[(19 सितंबर,1884) श्रीरामकृष्ण वचनामृत ]
🔆🙏ब्रह्ममयी माँ काली का दर्शन और भावावेश (ecstasy-भावातिरेक)🔆🙏
सन्ध्या के बाद आरती का शब्द सुनायी दे रहा है । श्रीरामकृष्ण बाबूराम से कह रहे हैं - "चल रे, चल काली-मन्दिर में ।” श्रीरामकृष्ण बाबूराम के साथ जा रहे हैं । साथ मास्टर भी हैं । हरीश बरामदे में बैठे हुए हैं, श्रीरामकृष्ण कह रहे हैं, जान पड़ता है, इसे भावावेश (ecstasy-भावातिरेक) हो गया ।
[সন্ধ্যার পর আরতির শব্দ শুনা যাইতেছে। ঠাকুর বাবুরামকে বলিতেছেন, “চল রে চল। কালীঘরে!” ঠাকুর বাবুরামের সঙ্গে যাইতেছেন — মাস্টারও সঙ্গে আছেন। হরিশ বারান্দায় বসিয়া আছেন দেখিয়া ঠাকুর বলিতেছেন, “এর আবার বুঝি ভাব লাগলো।ম”
It was dusk. They heard the sound of gongs, cymbals, and other instruments used in the evening service in the temples. The Master said to Baburam, "Come with me to the Kali temple." He and Baburam went toward the temple, accompanied by M. At the sight of Harish sitting on the porch, the Master said: "What is this? Is he in ecstasy?"
आँगन से जाते हुए श्रीरामकृष्ण ने जरा श्रीराधाकान्त की आरती देखी । फिर काली-मन्दिर की ओर जाने लगे । जाते ही जाते हाथ उठाकर जगन्माता को पुकारने लगे - "माँ - ओ – माँ – ब्रह्ममयी !” मन्दिर के चबूतरे पर मूर्ति के सामने पहुँचकर भूमिष्ठ हो माता को प्रणाम करने लगे । माता की आरती हो रही है । श्रीरामकृष्ण मन्दिर में प्रवेश कर चामर लेकर व्यजन करने लगे ।
[উঠান দিয়া চলিতে চলিতে শ্রীশ্রীরাধাকান্তের আরতি একটু দেখিলেন। তৎপরেই মা-কালীর মন্দিরের অভিমুখে যাইতেছেন। যাইতে যাইতে হাত তুলিয়া জগন্মাতাকে ডাকিতেছেন — “ও মা! ও মা! ব্রহ্মময়ী!” মন্দিরের সম্মুখের চাতালে উপস্থিত হইয়া মাকে ভূমিষ্ঠ হইয়া প্রণাম করিতেছেন। মার আরতি হইতেছে। ঠাকুর মন্দিরে প্রবেশ করিলেন ও চামর লইয়া ব্যজন করিতে লাগিলেন।
Going through the courtyard, the Master and the devotees stopped a minute in front of the Radhakanta temple to watch the worship. Then they proceeded to the shrine of Kali. With folded hands the Master prayed to the Divine Mother: "O Mother! O Divine Mother! O Brahmamayi!"
आरती समाप्त हो गयी । जो लोग आरती देख रहे हैं, सब ने एक ही साथ भूमिष्ठ हो प्रणाम किया । श्रीरामकृष्ण ने मन्दिर के बाहर आकर प्रणाम किया । महेन्द्र मुखर्जी आदि भक्तों ने भी प्रणाम किया ।
आज अमावस्या है । श्रीरामकृष्ण को पूर्ण मात्रा में भावावेश हो गया । बाबूराम का हाथ पकड़कर मतवाले की तरह झूमते हुए अपने कमरे में जा रहे हैं ।
{আরতি সমাপ্ত হইল। যাহারা আরতি দেখিতেছিলেন এককালে সকলে ভূমিষ্ঠ হইয়া প্রণাম করিলেন। ঠাকুর শ্রীরামকৃষ্ণও মন্দিরের বাহিরে আসিয়া প্রণাম করিলেন। মহেন্দ্র মুখুজ্জে প্রভৃতি ভক্তেরাও প্রণাম করিলেন।আজ অমাবস্যা। ঠাকুর ভাবাবিষ্ট হইয়াছেন। গরগর মাতোয়ারা! বাবুরামের হাত ধরিয়া মাতালের ন্যায় টলিতে টলিতে নিজের ঘরে ফিরিলেন।
The evening worship was over. The devotees "bowed before the Deity. It was the night of the new moon. The Master was in a spiritual mood. Gradually his mood deepened into intense ecstasy. He returned to his room, reeling like a drunkard and holding to Baburam's hand.}
कमरे के पश्चिमवाले गोल बरामदे में एक बत्ती जला दी गयी है।
श्रीरामकृष्ण उसी बरामदे में जाकर जरा बैठे । ‘हरि ॐ’ ‘हरि ॐ' 'हरि ॐ' कहते हुए अनेक प्रकार के तन्त्रोक्त बीज-मन्त्रों का भी उच्चारण कर रहे हैं ।
कुछ देर पश्चात् कमरे में अपने आसन पर पूर्वास्य होकर बैठे । भाव अभी भी पूर्ण मात्रा में हैं ।
दोनों मुखर्जी भाई, बाबूराम आदि भक्त जमीन पर आकर बैठे ।
[ঘরের পশ্চিমের গোল বারান্দায় ফরাশ একটি আলো জ্বালিয়া দিয়া গিয়াছে। ঠাকুর সেই বারান্দায় আসিয়া একটু বসিলেন, মুখে ‘হরি ওঁ! হরি ওঁ! হরি ওঁ’! ও তন্ত্রোক্ত নানাবিধ বীজমন্ত্র।কিয়ৎক্ষণ পরে ঠাকুর ঘরের মধ্যে নিজের আসনে পূর্বাস্য হইয়া বসিয়াছেন।
A lamp was lighted on the west porch. The Master sat there a few minutes, chanting: "Hari Om! Hari Om! Hari Om!" and other mystic syllables of the Tantra. Presently he returned to his room and sat on the small couch facing the east. He was still completely absorbed in divine fervour.
*भाषा की उत्पत्ति - प्रार्थना का दर्शन *
श्रीरामकृष्ण भावावेश में माता से बातचीत कर रहे हैं । कहते हैं - "माँ, मैं कहूँ तब तू करे, यह भी कोई बात है ? बातचीत करना क्या है - इशारा ही तो है । - कोई कहता है 'मैं खाऊंगा' - कोई कहता है, 'जा, मैं न सुनूँगा ।'
"अच्छा माँ, मान लो मैंने भले ही प्रकट रूप में यह न कहा हो कि मुझे भूख लगी है, तो क्या मुझे असल में भूख नहीं लगी है ? क्या यह सम्भव है कि तुम केवल उसी की प्रार्थना सुनो जो जोर जोर से पुकारता है और उसकी न सुनो जो भीतर ही भीतर व्याकुलतापूर्वक प्रार्थना करता रहता है ?
"तुम जो हो सो हो, फिर मै क्यों बोलता हूँ, क्यों प्रार्थना करता हूँ ?
"हाँ ! जैसा कराती हो, वैसा करता हूँ ।
"लो ! सब गोलमाल हो गया ! - क्यों विचार कराती हो ?"
{ঠাকুর শ্রীরামকৃষ্ণ ভাবাবিষ্ট হইয়া মার সহিত কথা কহিতেছেন — বলিতেছেন, “মা, আমি বলব তবে তুমি করবে — এ কথাই নয়।“কথা কওয়া কি? — কেবল ঈশারা বই তো নয়! কেউ বলছে, ‘আমি খাব’, — আবার কেউ বলছে, ‘যা! আমি শুনব না।’“আচ্ছা, মা! যদি না বলতাম ‘আমি খাব’ তাহলে কি যেমন খিদে তেমনি খিদে থাকত না? তোমাকে বললেই তুমি শুনবে, আর ভিতরটা শুধু ব্যাকুল হলে তুমি শুনবে না, — তা কখন হতে পারে।“তুমি যা আছ তাই আছ — তবে বলি কেন — প্রার্থনা করি কেন?“ও! যেমন করাও তেমনি করি।“যা! সব গোল হয়ে গেল! — কেন বিচার করাও!”
He said to the Divine Mother: "Mother, that I should first speak and You then act — oh, that's nonsense! What is the meaning of talk? It is nothing but a sign. One man says, 'I shall eat.' Again, another says, 'No! I won't hear of it.' Well, Mother, suppose I had said I would not eat; wouldn't I still feel hungry? Is it ever possible that You (माँ चेहरा देख कर जान लेती है कि बेटा भूखा है। )should listen only when one prays aloud and not when one feels an inner longing? You are what You are. Then why do I speak? Why do I pray? I do as You make me do. Oh, what confusion! Why do You make me reason?"
[(19 सितंबर,1884) श्रीरामकृष्ण वचनामृत ]
🔆 ईश्वर दर्शन के लिए चरित्र -संस्कार और तपस्या की आवश्यकता-द्रौपदी का कौपीन दान 🔆
श्रीरामकृष्ण जगन्माता के साथ बातचीत कर रहे हैं । - भक्तगण आश्चर्यचकित हो सुन रहे हैं । अब भक्तों पर श्रीरामकृष्ण की दृष्टि पड़ी ।
ঠাকুর ঈশ্বরের সহিত কথা কহিতেছেন। — ভক্তেরা অবাক্ হইয়া শুনিতেছেন। এইবার ভক্তদের উপর ঠাকুরের দৃষ্টি পড়িয়াছে।
As Sri Ramakrishna was thus talking to God, the devotees listened wonderstruck to his words. The Master's eyes fell upon them.
श्रीरामकृष्ण - (भक्तों से) - उन्हें प्राप्त करने के लिए अच्छी प्रवृत्तियों से निर्मित मनुष्योचित संस्कार चाहिए । कुछ किये रहना चाहिए । तपस्या - वह इस जन्म में ही हो या उस जन्म में ।
[अपनी असद प्रवृत्तियों ( bad tendencies) को सद -प्रवृत्तियों (good tendencies ) में प्रवर्तित करने के लिए या जन्मजात प्रवृति (inherent tendencies) को अभ्यास योग से बदलने की प्रक्रिया है (Man Making and Character building training' 'स्वामी विवेकानन्द -कैप्टन सेवियर वेदान्त शिक्षक-प्रशिक्षण परम्परा ' में प्रशिक्षित नेता (जीवनमुक्त शिक्षक) CINC नवनीदा से 3H विकास के 5 अभ्यास के प्रशिक्षण का प्रथम सोपान है -चरित्रवान मनुष्य बनने का संकल्प ग्रहण -सूत्र : Taking the resolve to become a man of character - Autosuggestion -form : (the hypnotic or subconscious adoption of an idea that one has originated oneself, e.g. through repetition of verbal statements to oneself in order to change behavior.) अब लौं नसानी, अब न नसैहों।रामकृपा भव-निसा सिरानी जागे फिर न डसैहौं॥ पायो नाम चारु चिंतामनि उर करतें न खसैहौं।- गोस्वामी तुलसीदास जी (' विनय-पत्रिका') भावार्थ : अब तक तो (यह आयु व्यर्थ ही ) नष्ट हो गयी, परन्तु अब इसे नष्ट नहीं होने दूंगा। श्री राम की कृपा से संसाररूपी रात्रि बीत गयी है (मैं संसार की माया-रात्रि से जग गया हूँ ) अब जागने पर फिर माया का बिछौना नहीं बिछाऊंगा, अब फिर माया के फंदे में नहीं फसूंगा। मुझे रामनाम रूपी सुन्दर चिंतामणि मिल गयी है। उसे हृदय रुपी हाथ से कभी नहीं गिरने दूंगा। -"स्याम रूप सुचि रुचिर कसौटी चित कंचनहिं कसैहौं॥"यह देखूंगा कि विवेक-दर्शन करने में मेरा मन सदा- सर्वदा लगा रहता है कि नहीं। जब तक मैं इन्द्रियों के वश में था, तब तक इन्द्रियों ने (मन माना नाच नचाकर) मेरी बड़ी हंसी उडाई। परन्तु अब स्वतंत्र (भ्रममुक्त -dehypnotized) होने पर यानी मन- इन्द्रियों को जीत लेने पर, उनसे अपनी हंसी नहीं कराऊंगा। अब तो मैं अपने मनरूपी भ्रमर को निरंतर त्रिदेव के चरण कमलों में लगे रहने का संकल्प-ग्रहण करके (प्रण या प्रतिज्ञा-पत्र पर हस्ताक्षर करके) लगा दूंगा, अर्थात् त्रिदेव के चरणों को छोड़कर दूसरी जगह अपने मन को नहीं जाने दूंगा। ]
{শ্রীরামকৃষ্ণ (ভক্তদের প্রতি) — তাঁকে লাভ করতে হলে সংস্কার দরকার। একটু কিছু করে থাকা চাই। তপস্যা। তা এ জন্মেই হোক আর পূর্বজন্মেই হোক।
MASTER (to the devotees): "One must inherit good tendencies to realize God. One must have done something, some form of tapasya, either in this life or in another.
"द्रौपदी का जब वस्त्रहरण किया गया था तब उसका बिकल होकर रोना श्रीठाकुरजी ने सुना था, तभी उन्होंने दर्शन दिये । और कहा, तुमने अगर किसी को कभी वस्त्र दिया हो तो याद करो, उससे लज्जा का निवारण होगा । द्रौपदी ने कहा एक ऋषि नहा रहे थे, उनका कौपीन बह गया था, मैंने अपने कपड़े से आधा फाड़कर उन्हें दिया था । श्रीठाकुरजी ने कहा, तो अब तुम कोई चिन्ता न करो ।”
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