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शनिवार, 21 जनवरी 2012

" भारत का कायाकल्प करें ! Rejuvenate India ! " [महामण्डल के संस्थापक सचिव श्री नवनीहरन मुखोपाध्याय द्वारा 30 दिसंबर 2011 को दिया गया भाषण: (The speech delivered by Nabani-da on 30 Dec 2011)]

[30 दिसम्बर 2011 को महामण्डल के अध्यक्ष श्री नवनीहरण मुखोपाध्याय द्वारा, वार्षिक युवा प्रशिक्षण शिविर में  प्रदत्त भाषण : " The Goal of Human Life" ( The speech delivered by Nabani-da on 30 Dec 2011 at our last annual camp. ] 
ॐ सहनाववतु । सह नौ भुनक्तु । सह वीर्यं करवावहै ।
तेजस्वि नावधीतमस्तु । मा विद्विषावहै ॥
ॐ शान्तिः शान्तिः शान्तिः ॥ हरिः ॐ तत सत ।।
'मैं शरीर से अलग हूँ ' तो स्मृति भ्रम का कारण क्या है ? : क्या बोलूँ, जो सोचा था वह बात तो अभी मन में नहीं है। मेरे शरीर की ओर देखने से मेरे उम्र का सही अंदाज लगा पाना किसी के लिए भी मुश्किल है। मैं अपने जीवन का अस्सीवाँ वर्ष  पूरा करने जा रहा हूँ। मेरे जीवन के 81 वें वर्ष  को मैं समाप्त करने जा रहा हूँ, और मैंने बहुत कम उम्र से (17-18 से) ही बहुत मेहनत की है। जब मैं बहुत कम उम्र का था, तरुण ही था , तभी मुझे बहुत परिश्रम करना  पड़ता था। मुझे पारिवारिक परिस्थतियों के कारण 17 वर्ष की उम्र में ही नौकरी करनी पड़ी, नौकरी से अपने परिवार की और दूसरों की आर्थिक मदत के साथ-साथ किसी तरह पढाई भी करना था , रात्रि -कॉलेज से शिक्षा ग्रहण करनी पड़ी,और इसी प्रकार जीवन आगे बढ़ता गया। लेकिन मैं हर हाल में हमेशा बहुत प्रसन्न  रहता था, मैं कभी उदास नहीं होता था। Depression ' अवसाद क्या चीज है; मुझे अपने जीवन में उसका कोई अनुभव नहीं है; मेरा मन हर समय उत्साह और जोश से भरा रहता है, और (आन्दोलन के लिए) यह बहुत आवश्यक है। 
  [I am going to finish eighty-first year of my life. 81, I am going to finish, and I have worked very hard from very lower age. when I was very young, I had to work very hard. I entered into service at the age of seventeen, then some how putting on education, family affairs, helping others, studying etc and it all went on...but I was always very happy, I was never depressed. What is depression I have no experience in my life; full of enthusiasm all the time, and that is very necessary. ]
महामण्डल के आविर्भूत होने की पृष्ठभूमि : मैं यह दावा नहीं करता कि मैंने कुछ बहुत बड़ा  काम कर लिया है; लेकिन श्री रामकृष्ण, श्री श्री माँ सारदा देवी, स्वामी विवेकानन्द के आशीर्वाद से, मुझे स्वयं इस युवा -प्रशिक्षण शिविर को देखकर आश्चर्य हो रहा है,  कि यहाँ मुझसे यहाँ यह पूछा जा रहा है कि युवाओं के लिए ऐसे उपयोगी शिविर का प्रारम्भ कैसे हुआ ? 
आप लोगों को शायद यह मालूम नहीं होगा कि जिस समय मैं नौकरी करते हुए नाईट कॉलेज में पढ़ाई भी कर रहा था , उसी समय एक बार स्वामी रंगनाथानन्दजी के मुख से सुना कि रामकृष्ण मठ के कुछ वरिष्ठ संन्यासी उनके साथ केवल मेरे पितामह (grandfather दादाजी) से मिलने के लिए हमारे घर (भुवन-भवन, खड़दह)  आना चाहते हैं। क्योंकि जब स्वामी विवेकानन्द 1897 में विश्वविजयी होकर अमेरिका से भारत लौटे थे तब वे दक्षिणेश्वर-पंचवटी आदि दर्शन करने गए थे, और वहाँ उपस्थित सभी लोगों ने उनसे अनुरोध किया था कि स्वामीजी हमें भी कुछ उपदेश दीजिये, हमसे भी कुछ कहिये। तब वहाँ स्वामीजी ने 5 - 7 मिनट का छोटा सा उपदेश दिया था। और संयोग से वहाँ उपस्थित मेरे पितामह को भी उन्हें देखने और सुनने का सौभाग्य प्राप्त हुआ था।
 गोलपार्क रामकृष्ण मठ-मिशन के असिस्टेन्ट सेक्रेटरी स्वामी भाष्यानन्द जी का ट्रांसफर शिकागो हो रहा था, उन्होंने कहा " मैं अमेरिका जाने वाला हूँ , मुझको शिकागो भेजा जा रहा है। लेकिन एक बात है कि मैंने अभी तक किसी ऐसे व्यक्ति को नहीं देखा है, जिसने स्वामी विवेकानन्द को साक्षात् देखा हो। मैंने सुना है कि तुम्हारे पितामह ने स्वामीजी को देखा है , इसीलिये मैं तुम्हारे पितामह से मिलने तुम्हारे घर पर आऊँगा। " यह जानना चाहते थे कि स्वामी जी ठीक कितनी देर तक उपदेश दिए होंगे , क्योंकि पर पितामह उस समय वहाँ उपस्थित थे -वे चाहते थे कि उनसे मिलकर सही समय जान लिया जाये। .... इसके बाद मेरे घर जाने का एक दिन तय हो गया। उस दिन मेरे घर पर कौन -कौन साधु गए थे , उन सब का नाम मुझे याद नहीं है। किन्तु, 8 -10 संन्यासी  लोग तो आये ही थे। स्वामी रंगनाथानन्द जी भी आये थे। भाष्यानन्द जी गोलपार्क से ट्रांसफर होकर शिकागो जा रहे थे , इसलिए उनकी जगह पर असिस्टेंट सेक्रेटरी होकर लंदन से स्वामी अनन्यानन्द जी आ गए थे। तो वे , भाष्यानन्द जी , स्वामी निरामयानन्द जी इत्यादि कई वरिष्ठ संन्यासी दो तीन गाड़ियों में बैठकर खड़दह आये थे। 
नवनीदा रंगनाथानन्द जी को सुनने गोलपार्क जाते थे पर अद्वैत आश्रम क्यों नहीं जाते थे : हमारे देश की संस्कृति में घर पर पधारे हुए संन्यासियों की अभ्यर्थना जिस रीति से की जाती है , उसके अनुसार प्रवेशद्वार पर उन सभी के चरणों को पखारा -पोंछा गया। फिर मेरे पितामह ने प्रत्येक साधु के गले में फूलों की माला पहना दी। उसके बाद पितामह के साथ वर्तमान शिक्षा-प्रणाली आदि विषयों पर चर्चा होने लगी।  उनकी बैठक बहुत देर तक चली , फिर  साथ बैठकर भोजन ग्रहण किया। भोजनोपरान्त वापस लौटने के समय मुझे यह ज्ञात हुआ कि कौन साधु कहाँ से आये थे। ज्ञात हुआ कि उनमें दो साधु 'अद्वैत आश्रम' से भी आये थे। उनमें से एक संन्यासी स्वामी स्मरणानन्द जी (जयराम महाराज ) वर्तमान में 'रामकृष्ण मठ एवं मीशन के वर्तमान उपाध्यक्ष (2010 में ),  अभी (2022 में) अध्यक्ष भी आये थे।  उस समय मैं उनको नहीं पहचानता था। उनके साथ मेरा परिचय नहीं हुआ था। जाने के समय जयराम महाराज ने कहा, " नवनी बाबू आप अद्वैत आश्रम क्यों नहीं आते हैं ? मैंने कहा , ' महाराज , बहुत से स्थानों में जाना सम्भव नहीं हो पाता । मैं तो पहले गोलपार्क भी नहीं जाता था। अभी रंगनाथानन्दजी के व्याख्यानों को सुनने के लिए वहाँ जाता हूँ और अन्यान्य स्थानों में भी कभी -कभी गया हूँ। " [वास्तव में अद्वैत आश्रम, मायावती तो पूर्वजन्म में कैप्टन सेवियर के रूप में  नवनीदा के द्वारा ही स्थापित किया गया था !  1967 में परानुकरण की पराकाष्ठा के प्रति युवा -विक्षोभ (Youth Unrest जीवन नदी के हर मोड़पर -पृष्ठ 122 ) : 
कुछ दिनों बाद स्वामी अनन्यानन्द जी (गोविन्द महाराज) भी गोलपार्क से ट्रांसफर होकर अद्वैत आश्रम चले आये। और बाद में मैंने भी अद्वैत आश्रम में आना-जाना शुरू कर दिया। फलस्वरूप , प्रतिदिन गोलपार्क नहीं जा पाता था। ऑफिस के बाद रोज अद्वैत आश्रम ही जाया करता था , वह निकट भी पड़ता था। आते-जाते ऐसा हो गया कि वहाँ पहुँचते ही पहले मुझे तीसरे तल्ले पर ले जाकर कुछ चाय -नाश्ता आदि करवाते थे। चाय पीकर शाम के समय जयराम महाराज और स्वामी अनन्यानन्द जी - दोनों व्यक्ति टहलने के लिए थोड़ा बाहर जाते थे। वे लोग अद्वैत आश्रम से निकल कर पार्क सर्कस तक घूम आते थे ; मैं भी उनके साथ जाया करता था। उन दिनों (1967 ई० के आसपास) विशेषकर कोलकाता में एवं अन्य कई प्रांतों के युवाओं के भीतर एक प्रकार की छटपटाहट, विक्षोभ का भाव दृष्टिगोचर होने लगा था। जैसे उनके भीतर-भीतर  मानों कुछ उबल रहा हो। एक विशेष प्रकार का अस्थैर्य (Student Unrest) जैसे भीतर ही भीतर  कोई चीज उन्हें कचोटे जा रही थी। अब वे किसी की भी बात मान लेने को तैयार नहीं थे , कुछ भी सुनना नहीं चाहते थे। " [जीवननदी के हर मोड़ पर -पृष्ठ 124]            
     
[I have not done, very much, something very big, but somehow with the blessings of sri Ramakrishna,the holy Mother, Swami Vivekananda, it seems me at least this matter,and I am surprised already in this camp, I had to relate how it started ? it comes to my mind and before I tell you, perhaps all of you have not heard, for some period; when I was in service, some sanyasins of the Ramakrishna order,led by Swami Ranganathanandaji, wanted to go to our house, just to meet my grand father, who had the good fortune to be present, when Swamiji after returning to India, went to Dakshineshvar, and their he was requested by everyone- Swamiji tell us something, tell us something. Swamiji spoke for five to seven minutes, it might be, they can find out the exact time, because that matter is with me, so they went. Swami Ranganathanandaji and a few others swamis; Swami Ananyanandaji, who is lying very sick at Belur-math for along time, years have passed. there was one swami....' 
ये सब था, वहाँ हम जाते थे, और जाते जाते जाते जाते, एक रोज वहाँ के दो महाराज, जयराम महाराज और अनन्यानन्दजी महाराज, हमको बोलते थे हमलोग थोडा टहलने के लिए जाते हैं, अद्वैत आश्रम से आप भी क्यों नहीं आते है, ऑफिस के बाद यहाँ ? तो ऑफिस का काम खत्म होने के बाद मैं वहाँ जाने लगा. हम तीनों वहाँ से निकल कर के, इंटाली में एक पार्क है, थोड़ी दूर में, बहुत समय नहीं लगता था, पाँच-सात मिनट मैक्सिमम.. ऐसा होगा, सात-आठ मिनट या अधिक अधिक से दस मिनट हो सकता है, और लौट कर आना।  हाँ, तो एक रोज जब हमलोग जा रहे थे, तो एक लड़का फुटपाथ के किनारे कहीं खड़ा था, वहाँ और भी बहुत से लड़के खड़े थे। वहाँ खड़े युवाओं के झुण्ड में से एक लड़का थोड़ा अधिक हुआ खीझा हुआ लग रहा था। उस लड़के ने स्वामी अनन्यानन्द और जयराम महाराज की ओर ऊँगली दिखाते हुए कहा ..देखो, देखो इन लोगों ने दूसरों के पैसों को खा-खा कर अपना शरीर कैसा तंदरुस्त बना लिया है ! [it was almost rush,.. he just,.. that boy, he was a boy, he showed his finger to these swamijis - at Jayram maharaj and Ananyanandaji, see see how the money from other people they eat so much.. that such ( huge) bodies they have now!]  
अँ ? देखो तुम लोग भी हँसे...हंसी..तो, तो,.. साधू लोग भी थोड़ा थोड़ा हँसने की कोशिश कर रहे थे, लेकिन वह हँसी उतनी स्वाभाविक रूप से नहीं निकली है, उनकी भाव-भंगिमा को देखने से मुझे समझ में आया कि, उनको बहुत बुरा महसूस हो रहा था; मुझे भी बहुत खराब लगा था।  तो अनन्यानन्दजी ने मुझसे कहा-' नवनी बाबु देखते हैं, इन युवकों की क्या स्थिति हो रही है, इन लडकों में भी सुधार हो सके, इसके लिए क्या आप कुछ उपाय सोच सकते हैं ?' Remoulding of their character, remoulding  of their mind,..हो सकता है ? अंग्रेजो द्वारा लिखित विकृत इतिहास को पढ़ने से  युवाओं में जो पूर्वाग्रह ग्रस्त औपनिवेशिक मानसिकता 'colonial mindset'  बैठ गयी है, उनके मन की सोचने -समझने की क्षमता और विचारों की दिशा को बदल कर क्या उन्हें 'रामकृष्ण -विवेकानन्द वेदान्त शिक्षक -प्रशिक्षण परम्परा' में पुनः प्रशिक्षित किया जा सकता है ? ये जो युवकगण कुमार्ग पर चले जा रहे हैं ,अजीब ढंग के होते जा रहे हैं , उनलोगों के भीतर अनुशासन नाम की कोई चीज है ही नहीं , उनके व्यवहार में थोड़ी भी विनम्रता नहीं झलकती -मालूम पड़ता है जैसे वे परिवर्तन की हड़बड़ी में सबकुछ तोड़-फोड़ कर परिवर्तन लाना चाहते हैं, इन लोगों के लिए कुछ करना अब अनिवार्य हो गया है। ... थोड़ा चिन्तन कर के बताइए जिससे इन लड़कों में थोड़ा परिवर्तन हो सके,... उनके चरित्र को फिर से 'मनुष्य' (साम्यभाव में स्थित प्रथम युवा नेता श्रीरामकृष्ण) की साँचे में ढाला जा सके। " 
तुरन्त फिर दोनों (गोविन्द महाराज और जयराम महाराज) सम्मिलित रूप से कहने लगे - " किन्तु यह कार्य सन्यासियों के माध्यम से होने वाला नहीं है ! " क्योंकि जैसे ही संन्यासी लोग युवाओं के बीच किसी योजना को क्रियान्वित करने जायेंगे (उनके मुण्डित मस्तक और वेशभूषा आदि को देखकर) सामान्य युवाओं के मन में हमलोगों द्वारा बचपन में सुनी हुई 'दो छोटे भाई और ट्यूटर की कहानी'  के समान पहले से ही कुछ शंकायें उठने लगेंगी ! ... ट्यूटर जब पढ़ाने गए तो बच्चों से बातचीत करते हुए कहा -'वाह  तुम्हारा बरामदा तो काफी बड़ा है ! छत की ओर इशारा करते हुए कहा ' बताओ तो इसमें कितने बीम और कड़ियाँ लगी हैं ? छोटा भाई बड़े भाई को कुहनी मारते हुए कहता है - " भाइये कुछ समझे ? ये मास्टर साहेब तो हमें गणित सिखाएंगे रे !! उसी प्रकार संन्यासियों को देखकर ही उनके मन में शंका उठेगी कि कहीं वे हमलोगों को भी कहीं संन्यासी बन जाने के लिए तो नहीं कहेंगे ? इसीलिए यह कार्य संन्यासियों के माध्यम से होने वाला नहीं है। संन्यासी नहीं कुछ सद्गृहस्थ लोग यदि सामने आएं और इस कार्य को करने का बीड़ा उठा लें -तभी उसका कुछ फल हो सकता है। यही है इस 'एक नया युवा-आंदोलन' रूपी युवा -महामण्डल के आविर्भूत होने की पृष्ठभूमि ! " पेज 126/              
मैं रात को घर वापस गया, कागज की एक शीट ली, और स्वामी विवेकानन्द के 'शिकागो चित्र' के सामने बैठकर युवाओं को 'स्वामी विवेकानन्द - कैप्टन सेवियर वेदान्त लीडरशिप ट्रेनिंग परम्परा - Be and Make ' में प्रशिक्षित करने की एक छोटी सी योजना को, एक  ऐसे युवा संगठन की परिकल्पना को कागज पर उतार लिया; जो सम्पूर्ण भारत में युवाओं को स्वामी विवेकानन्द की 'Man-making and Character-building education ' (मनुष्य-निर्माण और चरित्र-निर्माणकारी शिक्षा) का प्रचार -प्रसार करने का काम कैसे करेगा। पहले - बस एक छोटी सी योजना को कागज पर उतार लिया कि , कैसे एक युवा संगठन है, जो पूरे भारत में काम करेगा ...? फिर आपस में निर्णय लिया गया कि विभिन्न स्थानों में श्रीरामकृष्ण-विवेकानन्द भावधारा के ऊपर कई छोटे -छोटे संगठन कार्य कर रहे हैं , उनमें से जो लोग यहाँ (अद्वैत आश्रम) में आना-जाना करते हैं , उनमें से कुछ लोगों को बुलाकर अद्वैत आश्रम में एक मीटिंग आयोजित किया जाए ; और उस बैठक में यह विचार किया जाये कि युवाओं को साथ लेकर इस योजना को कैसे क्रियान्वित किया जा सकता हैं ?    

और फिर हम आ गए, उस प्रथम बैठक में कितने लोग आये थे , मुझे ठीक से याद नहीं है -फिर भी कुल 12 -14 व्यक्ति से अधिक नहीं रहे होंगे। आपस में विचार-विमर्श हुआ , बैठक में मैंने भी अपनी कार्य योजना को उनके समक्ष  रखा। वे सभी लोग मेरे लिए अपरिचित थे और मैं भी उनके लिए अपरिचित था।  उनमें से कोई मुझे पहचानता तो नहीं था , लेकिन सभी ने एक स्वर में कहा कि आपकी परिकल्पना बहुत उपयोगी है।  और उनकी अद्वैत आश्रम में जो प्रथम बैठक थी, उसमें जो लोग उपस्थित थे, उसमें से एक लड़का (दीपक दा, दीपक रंजन सरकार की ओर इशारा करते हुए)} यहाँ अभी उपस्थित हैं। वह उस समय अद्वैत आश्रम के निकट एक कॉलेज में पढ़ रहा था, इसलिए वह अद्वैत आश्रम में आया -जाया करता था, वह मौजूद था और एक या दो अन्य लोग, वे भी रामकृष्ण मठ और मिशन में जाते थे, वे वहां मौजूद थे।  इसलिए उन सभी लोगों ने कहा- " जिस प्रकार स्वामी विवेकानन्द द्वारा प्रतिपादित 'मनुष्य -निर्माण और चरित्र-निर्माणकारी शिक्षा' की पृष्ठभूमि में ठाकुर हैं - ( श्रीरामकृष्ण के सानिध्य में  दक्षिणेश्वर और काशीपुर उद्यान बाड़ी  में गुरुगृह वास में दी गयी शिक्षा है) माँ हैं (माँ सारदा देवी की प्रेरणा और हिम्मत बढ़ाने का मार्गदर्शन है) ठीक उन्हीं भावों की बुनियाद पर , युवाओं के जीवन को गठित करना अनिवार्य है। और इसी कार्य को पूरा करने के लिए यह संस्था गठित की जाएगी। और अगर आप इस संगठन का नेतृत्व करते हैं, तो आपको ही पूरा प्रभार लेना होगा, योजना आदि बनाना होगा । हम लोग आपकी यथासंभव मदद करेंगे, तो चलिए एक संगठन शुरू करते हैं।" 
[ Remoulding of their character, remoulding  of their mind,..हो सकता है ? I went back home at night,took a sheet of paper, and before the port rate of Swami Vivekananda - just a short planing, how to have a youth organization, which will work throughout India...? हाँ,and then we came, and their was a meeting at Adwaita Ashram, the persons who were present their one {pointing to Dipak da, the Dipak Ranjan Sarkar ) } is hereHe was studying in a college now, so he used to come to Adwait Ashram, he was present and one or two other people, they also used to go to Ramakrishna Math and Mission,they were present there, so they all said-" If you take the lead, you have to take the charge, the planing etc. you have to do, we will help you as far as we can, so let us start one organization." They did not know many things, so gradually the registration of the Organization, और इस प्रकार कंसटीच्युशन बनाना, तथा इस युवा-संगठन के गठित होने का समाचार कैसे कैसे दूसरों के पास पहुँचाना, वह सब मैं करने लगा। जहाँ जहाँ परिचित लोग थे, सभी को पत्र के द्वारा इसका संवाद भेजने लगा,देखिये ऐसे ऐसे उद्देश्य को रख कर एक संगठन बना है,तो वहाँ उस मीटिंग में बात हुई, कि इस संगठन का नाम क्या होगा ? 
विवेकानन्द युवा महामण्डल के अभी तीन सौ पंद्रह केंद्र कार्यरत हैं : तो मैंने कहा आप लोग जो रखना चाहें वो हो सकता है, लेकिन दो चीज, दो शब्द इसमें रहना चाहिए, एक स्वामी विवेकानन्द का नाम इसमें रहना चाहिए and because that it is an youth organization, this youth, this is for the youth...इस लिए ' युवा ' ये दोनों बातों का उल्लेख इसमें स्पष्ट रूप से रहना चाहिए; इसीलिए संस्था का नाम रखा गया- विवेकानन्द युवा महामण्डल, और चूँकि इसका area of work होगा all of India, so " अखिल भारत विवेकानन्द युवा महामण्डल " इस प्रकार आगे बढ़ते बढ़ते, थोड़ा सा कम-ज्यादा हो सकता है, लास्ट जो रिपोर्ट हमने देखा, उसके अनुसार इस समय पूरे भारत में इस संगठन की 315  शाखाएं कार्यरत हैं ! 
क्या आप किसी अन्य युवा संगठन का नाम बता सकते हैं, जिसके पूरे भारत में तीन सौ से अधिक इकाइयाँ, केंद्र हों ? लेकिन इन समस्त केंद्रों की स्थापना लगभग बिल्कुल स्वचालित ढंग से हो गयी है ! हमें इसके लिए बहुत अधिक जोर नहीं लगाना पड़ा है , पेपर -मिडिया आदि में प्रचार..,ये सब कुछ नहीं करना पड़ा है। महामण्डल के वार्षिक युवा प्रशिक्षण शिविर में  भारत के विभिन्न स्थानों से आये जिन युवाओं को  'नया भारत गढ़ने' 'Building a New India' की 'Be and Make ' योजना की भव्यता और सुन्दरता का अनुभव हुआ , जो युवाओं के विचार और जीवन को सही दिशा प्रदान कर सकती है, उन लोगों ने ही अपने -अपने स्थानों पर इसकी शाखाएं स्थापित कर लीं। 
औपनिवेशिक मानसिकता (Colonial Mindset) को बदलने के लिए 'प्रशिक्षक -प्रशिक्षण शिविर' (SPTC या OTC ) का आयोजन : तो इस प्रकार युवाओं की औपनिवेशिक मानसिकता (Colonial Mindset) को बदलने का युवा -प्रशिक्षण कार्यक्रम प्रारम्भ हो गया। जिसके फलस्वरूप अभी पूरे भारत में 315 केन्द्र कार्यरत हैं। किन्तु पहले -पहल केवल छः युवा संगठन इसमें शामिल थे , फिर उनकी संख्या क्रमशः बढ़ती चली गयी।  इस प्रकार वर्ष में एकबार 20, 30, 40, 50 इकाइयों में कार्यरत सभी युवाओं को एक साथ सम्मिलित करके, कम से कम एकबार महामण्डल द्वारा छः दिवसीय वार्षिक युवा प्रशिक्षण शिविर आयोजित किया जाने लगा। इसके अतरिक्त साल में चार बार आवधिक 'प्रशिक्षक -प्रशिक्षण शिविर' (periodical OTC/ या PSTC ) का आयोजन भी होने लगा।     
[Three hundred and fifteen centers are there! Can you find out any other organization, of which there are more than three hundred units, centers in the whole of India? But almost automatically, dose not much pushing or bugle, all of them people there, as they came to know about this organization, and the beauty and the grandeur of the plane, which can really remould the life of youths...who can build a New India ! Any how gaining Independence is not enough, we are ashamed of meaning of independence now a days, every where, wherever we go, we see this is a spurious independence, we don't have real independence; what is that in India ? That can come only..if we have proper Men !..who must have love for the country, love for their parents, mother first, father and there are other elderly people, they must have deep respect for them, they must be ready to serve them as much as possible for him, and not to look so much at his own happiness, and ease etc. no not like that. 
 so it went on and this plane came to the mind, that are so many units now, when there were only  20 units, 30 units, 40 units, 50 units like that it went on rising gradually, so they must be brought together at least at times,at least once a year, previously two-three times a year 
अभी जैसा अखिल भारतीय स्तर पर एनुअल कैम्प - होता है, ऐसा कैम्प पहले सम्भव नहीं होता था। तब हमलोग देश के चार दिशाओं के अनुसार कैम्प एरिया भाग करके  बारी बारी से छोटा -छोटा कैम्प आयोजित किया करते थे। इधर के अमुक स्थान पर नोर्थ इंडिया का कैम्प होगा, अमुक स्थान पर  साऊथ इंडिया का, अमुक स्थान में मध्य भारत (middle of India) , इधर ईस्ट उधर वेस्ट, हमलोग पहले तय कर लेते थे कि, भारत के किन राज्यों को मिलाकर इस बार क्षेत्रीय कैम्प होना चाहिए।  
और मेरे साथ ऐसा होता था, कि कोई न कोई कहीं से आकर मुझे हेल्प करता था, और इसी प्रकार से  मैंने सम्पूर्ण भारत का भ्रमण कर लिया ,  whole of India I went round, हिमालय (अल्मोड़ा और मायावती) से ले कर कन्याकुमारी तक और उधर पूर्व में आसाम , अरुणाचल ,...जहाँ तक है, वहाँ से लेकर मुंबई तक, ऐसा कोई कोना नहीं बचा है, जहाँ मैं नहीं गया हूँ !  और गया भी किस तरह ? अभी मुझे याद नहीं आ रहा है, मेरी यादास्त बहुत खराब हो गयी है। पहले हमारा कहीं के किसी अन्य संगठन से हमारा कोई परिचय नहीं था।  कोई संपर्क नहीं था, मैंने कभी किसी संगठन (जैसे मैं हिन्दी स्पीकर खोजने बेलूड़ मठ या राँची रामकृष्ण मिशन गया था ?) को पहले से यह सूचित नहीं किया कि मैं  एक उद्देश्य के लिए जा रहा हूं, जो मैं जाने पर आपको समझाऊंगा, मुझे इन बातों को समझाने का कोई मौका नहीं मिला था। एक बार मैं नोर्थ-वेस्ट में किसी जगह पर गया था। बिलकुल नोर्थ-वेस्ट में at the top , वहाँ पहुँचने के बाद एक-दो सहृदय व्यक्ति पूछने लगे- ' आप अपने उद्देश्य की पूर्ति के लिए यहाँ किससे मिलना चाहेंगे ? कहाँ जाना चाहेंगे ? " मैंने कहा -  ' नहीं किसी को तो मैं यहाँ जनता नहीं हूँ, किसी के साथ मेरा परिचय नहीं है। तब एक व्यक्ति ने 'महामण्डल के उद्देश्य और कार्यक्रम' पर मुझसे कुछ देर तक बातचीत की , और उसके प्रति अपनी अभिरुचि (Interest-दिलचस्पी) दिखलाते हुए कहा कि तुम इस राज्य के मुख्य न्यायधीश (chief Judge) के पास जाओ, वह बहुत अच्छा आदमी है, बहुत मददगार है। तब मैं बिना किसी पूर्व-परिचय के उस राज्य के मुख्य न्यायाधीश से मिलने मैं उसके घर चला गया ! उनके गार्ड ने पूछा आप कौन हैं , उनसे क्यों मिलना चाहते हैं ? [ previously we don't have any contact, I have not informed any body that I am going for a purpose, which I will explain to you when I go, I had not got any chance to explain these things to them. So some one took interest and talked to me for some time, and said you go to the chief, judge, of the state, he is very good man, very helpful, chief justice of that state, I went to his house,उनके गार्ड ने पूछा-मैं कौन हूँ ?
मैं बोला, भाई मैं बहुत दूर से आया हूँ, उनके साथ मिलना चाहता हूँ।  वह फिर पूछा - किसलिए, कारण बताइए ? मैंने कहा, उन्हीं से काम है, बहुत जरुरी काम है।  भीतर जाकर उनको बताया, वे तुरंत मुझे अपने घर के भीतर बुलवाए।  जब उनको मैनें सारी बातें बताई, (युवाओं के लिए स्वामी विवेकानन्द की 'Man making and Character building education' मनुष्य निर्माणकारी और चरित्र-निर्माणकारी शिक्षा ' के व्यावहारिक युवा प्रशिक्षण पद्धति Be and Make  पर चर्चा की)  तो वे आश्चर्य से बोले- ऐसा सुन्दर काम हो रहा है ! तब उन्होंने कहा यह बहुत अच्छी बात है , इसलिए उन्होंने उस स्थान के सभी सरकारी पदाधिकारियों , जानेमाने लोगों , स्कूलों , कॉलेजों , प्रसिद्द युवा क्लबों के लिए इसी विषय पर एक सर्क्युलर जारी कर दिया। इसके बाद तीन दिनों के भीतर एक सभी प्रबुद्ध लोगों की एक बड़ी बैठक हुई। उस सम्मेलन में मैंने युवाओं के (mindset बदलने की), 3H-विकास Education पद्धति के विषय में उन्हें समझाया। इसी प्रकार महामण्डल का कार्य तब तक आगे बढ़ता गया, जब तक कि महामंडल के केंद्रों की कुल संख्या ऐसा ही कुछ  तीन सौ, या तीन सौ पंद्रह से अधिक न हो जाए! हाँ...ऐसा कैसे हो गया भाई? 
[Very good, very good, so he issued circulars to schools, colleges, etc. big clubs, known people, so in three days time a big meeting was held, I explained to them, like that went on,
[Very good, very good, so he issued circulars to schools, colleges, etc. big clubs, known people, so in three days time a big meeting was held, I explained to them, like that went on,and went on, until the total numbers of the centers of the Mahamandal has exceeded three hundred; three hundred fifteen or something like that.हाँ...ऐसा कैसे हो गया भाई,? ] 
इस युवा -संगठन से कोई आर्थिक लाभ उठाने की बात तो बिलकुल नहीं हो सकती है, यहाँ किसी विशेष व्यक्ति का नाम -यश, प्रतिष्ठा पाने की भी बात नहीं है ; कि देखो अमुक व्यक्ति कितना महान है, कि वही व्यक्ति इसका Founder (प्रतिष्ठापक)  है ! बिलकुल नहीं, महामण्डल में ऐसी कोई बात नहीं होती है।  और उस समय Philosophy के एक प्रोफेसर थे (श्री अमियो कुमार मजूमदार)  , जिनके साथ मेरा अच्छा परिचय था।  उनको संस्था का प्रेसिडेंट बनया गया, और ये था- दीपक दा ( श्री दीपक रंजन सरकार की ओर इशारा करते हुए }, देखो यह नटखट लड़का यहाँ है ! यह था, उस समय ये लड़का था, कॉलेज में पढ़ता था. बहुत कम उम्र था, उस समय विचार हुआ ये तो नवयुवक है, और यह युवा संगठन है, इसको भी कैम्प कमिटी का सदस्य बनाना चाहिए, So I am very happy, that he is present here today. (इसलिए मैं बहुत खुश हूं कि वह आज यहां मौजूद हैं।) तो कम से कम वह इस बात की पुष्टि कर सकता है कि उस दिन क्या हुआ था,   जो मैं आपको बता रहा हूं, वह मेरे कथन 'vouchsafe' सत्य होने की गवाही दे सकता है, वह कह सकता है- हां! यह ऐसा हुआ था। नहीं तो आप यह सोच सकते हैं कि, मैं आपको कोई कपोलकल्पित कथा सुना रहा हूँ , जिसे मैंने कभी स्वप्न में देख लिया होगा। नहीं, यह नींद में देखे किसी स्वप्न का वर्णन नहीं है, यह वास्तव में हुआ था ! [otherwise you may think that, I am telling you about a sleep that I had. no, it is not a sleeps description,this actually happened, and then see why it happened? so at least he can vouchsafe that what I am telling you ,at least that day what happened, what I am telling you, he can vouchsafe, he can say- yes ! it was like that. otherwise you may think that, I am telling you about a sleep that I had.no, it is not a sleeps description, this actually happened!  and then see why it happened? ]
 We have been chosen, to belong to this Organization ! और फिर देखें कि ऐसा सब कुछ क्यों और कैसे सम्भव हो गया  ?  यह सब सम्भव हुआ है भगवान श्री रामकृष्ण देव, जगन्माता सारदा और सभी युवाओं के 'आदर्श' (Hero, नायक-महावीर) स्वामी विवेकानन्द  की अव्यक्त इच्छा (latent या unexpressed desire) के कारण ! 1967 में इस आन्दोलन के प्रारम्भ होने से लेकर अभी तक,  (विगत 45 अब 2022 में  55 वर्षों तक) और अभी भी समाप्त नहीं होने के दौरान, हम सभी के पास यही विश्वास होना चाहिए कि  हाँ, सचमुच ये ठाकुर-माँ -स्वामीजी जी ही हैं, जो कदम -कदम पर हमारा मार्गदर्शन कर रहे हैं, और हम उनके द्वारा चुने हुए यंत्र के सिवा और कुछ भी नहीं हैं! हम सभी इस संगठन के एक विनम्र सेवक या कर्मी हैं ! और हम इस युवा -आंदोलन के दास होकर बहुत खुश हैं, हम बहुत भाग्यशाली हैं कि हमें इस संगठन (विवेकानन्द युवा आन्दोलन ) से सम्बद्ध हो जाने के लिए चुना गया है! हमें स्वामी विवेकानन्द के नेतृत्व में , उनके दास बनकर इस युवा -आन्दोलन को अधिक से अधिक प्रचार-प्रसार करते हुए देश के उन युवाओं को भी इस आन्दोलन से सम्बद्ध करना है जो रामकृष्ण -विवेकानन्द वेदान्त भावधारा से अभी तक वंचित (untouched -अछूता , अपरिष्कृत) रह गए हैं। हम सौभाग्य शाली हैं , We are Privileged की हमें सभी युवाओं को यह बताने , यह समझाने के लिये चुना गया है, कि 'प्रत्येक आत्मा अव्यक्त ब्रह्म है' ~ अतः पशुओं के समान केवल खाना-पीना और मौज उड़ाना ही मनुष्य जीवन का उद्देश्य नहीं हो सकता।     
[It happened because of the unexpressed desire of Bhgwan Sri Ramakrishna Dev, Jaganmata Sarada and the hero of all youths Swami Vivekananda, ever pushing, ever helping, during all this movement's thirty (or 45?) years, and still not ending, we must have  that faith, that conviction, that yes, it is they who are guiding us, we are nothing ! We are servants of this Organization ! and we are very happy, we are very lucky, that we have been chosen, to belong to this organization ! and to help this to grow further and to spread more to involve more youths, who have remained untouched so far, and to tell them and make them understand, that eating, drinking and being merry is not the whole of life, it can not be the goal of human life.]
(The Goal of human life - is to Rejuvenate India!)  भारत की पुण्य-भूमि पर जन्म लेने वाले मनुष्य के जीवन का उद्देश्य भारत को पुनरुज्जीवित करना ! मानव जीवन का लक्ष्य है, दूसरों के कल्याण के लिए (अपने देशवासियों की भलाई के लिए) जितना सम्भव हो उतना देना। जो अपने प्राणों को भी जनताजनार्दन की सेवा में न्योछावर कर देने से पीछे नहीं हटता, वही सबसे बड़ा व्यक्ति (the greatest person, ब्रह्म-बृहद) है !  इस दृष्टिकोण से श्री रामकृष्ण सबसे बड़ा व्यक्ति (ब्रह्म) सिद्ध होते हैं, उस थ्रोट कैंसर को अपने गले में धारण करने के बावजूद, ठाकुर अपना सब कुछ युवाओं के प्रशिक्षण में अर्पित कर देते हैं!  जगन्माता सारदा के पास साधारण शिक्षा (की कोई डिग्री) नहीं थी , लेकिन उनमें केवल मनुष्यों के लिए ही नहीं, बल्कि जितने भी प्राणी हैं , जिसमें जीवन का रंग परिलक्षित होता हो ,उन सभी के लिये मातृ भावना (motherly feeling) थी ! वे ह्रदय से यह महसूस करती थीं कि वे सभी की माँ हैं!   
भाईयो, हमें अपना धन, अपनी शिक्षा, जीवनी-शक्ति (ऊर्जा -Energy) को व्यर्थ में-सिर्फ खाने-पीने और मौज-मस्ती करने में बर्बाद (waste -अपव्यय) नहीं करना चाहिए; जीवन में करने के लिए इससे भी बड़े काम करने हैं , उच्चतर कार्य करना है - (ब्रह्म विद बनने की सम्भावना को व्यक्त करना है।) स्वामी जी निश्चलदास को उद्धृत करते हुए कहते थे -जो ब्रह्मविद वह ब्रह्म है ताको वाणी वेद, संस्कृत या    भाषा में करत भरम का छेद॥ "      
 [The goal of human life is to give as much as of yourself as possible for the good of others, one who can give that, is the greatest person, Thakur gives His all in-spite of carrying that Cancer in his throat, the holy Mother, in no ordinary education, she had that feeling, motherly feeling, and she felt that she was the mother of not only of human beings, but all short of creatures, all that is alive, every thing that has a tinge of life in it, is the holy Mothers child. Brother we must not waste our life, we must not west our energies, our money our education or something, just in eating and drinking and being merry, no, their are bigger things, higher things to do. ( जो ब्रह्मविद वह ब्रह्म है ताको वाणी वेद,.... )
महामंडल विगत 52 वर्षों से इस विचार को (रामकृष्ण -विवेकानन्द वेदान्त भावधारा Be and Make को) भारत के युवाओं तक पहुंचाने का प्रयास करता चला आ रहा है ; और उसीका परिणाम है कि आज इस युवा प्रशिक्षण शिविर में भारत के 1600 युवा एकत्रित हुए हैं। यह एक अद्भुत बात है, अद्भुत अनुभव है , भविष्य में शायद इससे भी बड़ी संख्या में युवा लोग आयेंगे।  लेकिन मैं कब तक लड़ सकता हूं? उम्र सीमित है, अब इक्यासी साल की उम्र में मेरे दिन गिने-चुने बचे हैं हो सकता है दस-बीस साल और हों, या हो सकते हों, लेकिन नहीं भी हो सकता है। 
मुझे आगे से अब खुद कुछ नहीं करना होगा , दूसरे लोग को सामने आयेंगे, और मेरे करने लायक कुछ भी कार्य छोड़े बिना सम्पूर्ण आन्दोलन की जिम्मेवारी अपने कन्धों पर उठा लेंगे। निश्चित रूप से कई लोग सामने आये हैं , कई जिम्मेदारी उठा भी लिए हैं। आजकल मुझे सभी पत्रों का जवाब अपने हाथों से खुद लिखकर देने की जरूरत नहीं पड़ती । एक समय था, जब कार्यालय से लौटकर, मैं प्रतिदिन शाम को महामंडल कार्यालय में जाया करता था।  रात दस बजे या 10.30 या 11 बजे, मैं घर लौटता था। और घर जाकर रात के खाने के बाद फिर से टेबल पर बैठकर पत्र या  विवेक-जीवन के लिए लिखना, अन्य बातों के लिए लिखना, ये सब बातें चलती रहती थीं।
तो भाइयो, मुझे बहुत खुशी है कि मैं इन तीस वर्षों या (45 वर्षों से ) या उससे अधिक समय से जो भार उठा रहा था, उसे देखकर कई लोग सामने आये , और उसे तुम्हारे सहयोग से उतार सका। आशा है कि तुम सभी इस आन्दोलन के महत्व को अच्छी तरह से समझ गए होगे। अतः अब अन्य बातों के मोह में न पड़ो , -जैसे नाम-यश, पद-प्रतिष्ठा आदि तुच्छ विषयों के फेरे में न पड़ो ! यह  संसार तो लोभ से भरपूर है ही, जो ऋषियों के मन को भी चंचल बना सकता है। इसलिए पहले सोचो कि जो हितकर नहीं है, स्वस्थ नहीं है, मनुष्य के वास्तविक विकास के लिए नहीं है, तो उन सब (भोग-विलास आदि)  बातों को भूल जाओ; और केवल यही काम करो!
अपनी शिक्षा प्राप्त करो, कुछ कमाने की कोशिश करो, अपने परिवार की मदद करो, अपने पड़ोस में किसी और की मदद करो, जिसे कुछ मदद की ज़रूरत है, और यह काम भी करो ! क्योंकि उन्हें पैसे देकर, या कपड़े-दवाइयाँ देकर, यहां तक कि पैसे का ढेर देकर भी तुम सभी लोगों के सभी दुखों को दूर नहीं कर सकते,  उनके सिर पर लदे बोझ को सम्पूर्णतः हटा नहीं सकते। तुम उन्हें जीवन -जीने का तरीका बतलाओ; यह समझाओ कि जीने के लिये पैसा जरुरी है, लेकिन वे जानेंगे कि उसे ईमानदारी से भी कमाया जा सकता है। 'No dishonest deals ' क्रय-विक्रय में कोई कपट नहीं , बेईमानी नहीं , वे जानेंगे की पैसा ईमानदारी से कमाना चाहिए, ईमानदारी से जीना चाहिए । लेकिन यह समझ लेना चाहिए कि जीने का अर्थ खाना, पीना और मौज-मस्ती करना या वंश -विस्तार करते रहना नहीं है। मानवजीवन का अर्थ पहले लूटमार करना फिर रोगी होकर मर जाना नहीं है।         
 
 [ Mahamandal has tried to bring this idea to the youths of India, and as result today 1600 youths of India have assembled here. It is a wonderful thing, wonderful experience, more perhaps will come, but how long can I fight ? My days are limited now at the age of eighty one, may be another ten-twenty years, may be, but may not be also. Others will come forward, and take whole charge, without leaving for me any thing, that I will have to do myself. Of-course they have taken many things, now a days I don't have to reply to all letters. There was time, when after returning from office, and going to the Mahamandals office in the evening, at night  ten o'clock or 10.30 or 11o'clock, I return to home,and after the supper a little, I used to seat with letters etc, writing for Vivek-Jivan, writing for other things, all these things went on.So brothers, I am very happy that I could unload the weight that I have been carrying for these thirty years and more, you all come forward, I hope you understand this, thoroughly, don't be allured by other things, the world is full of  allurements, therefor first think, that which is not beneficial, not healthy, not for real growth of human beings, so forget all those things; do this work ! have your education, try to earn something, help your family ,help any body else in your neighborhood, who needs some help, and do this work, because you can not remove all sufferings of all people, by giving them money, heaps of money even, on their heads, you don't do that. Let them know some thing how to live, and for living money is necessarythey will know how to earn money through honesty, no dishonest deals, honest living, honestly you must earn money, honestly you must live. But must know that living dose not mean, eating, drinking and be merry or having some offspring, and then diseases, then plundering,
'मनुष्य-निर्माण करना (3H विकास करना)  ही सबसे बड़ा धर्म है !' जीवन-काल में कितनी- कितनी तरह  .... की चोरी-डकैती करनी पडती है ! और वह सब करते जाने से, मनुष्यों को न जाने कितने-कितने तरह के दुःख-कष्ट झेलने पड़ते हैं। महामण्डल आन्दोलन के साथ सम्बद्ध हो जाने से , इन सबों में से कुछ भी दुःख तुम्हारे नजदीक आ ही नहीं सकेंगे।  इनमें से कोई भी विपत्ति मुझे मेरे मार्ग से विचलित नहीं कर पायेगी, क्योंकि महामण्डल ने हमारे सामने जीवन का एक निश्चित लक्ष्य रख दिया है; वह क्या है? भारत को पुनर्जीवित करने के लिए 'Be and Make' ! यह भी कहा है कि भारत को पुनर्जीवित करने के लक्ष्य को जब तक हम प्राप्त नहीं कर लेते , जब तक हम उस लक्ष्य तक नहीं पहुंच जाते, तब तक हम काम करना बंद नहीं करेंगे। भारत को पुनर्जीवित करने के लिए निरंतर मेहनत करते रहेंगे and until we reach that Goal, we will not stop working. work hard for it, what is that ? to rejuvenate India. और दर्द ? ये तो सब जगह में होगा न, पैर में दर्द है, घुटनों में दर्द है, इधर दर्द है, उधर दर्द है, इस दर्द दूर करना चाहिए।  शरीर (Hand)  स्वस्थ होगा, बुद्धि (Head) तीक्ष्ण होगी, हृदय (Heart) प्रेम से भरा होगा, यह प्रेम सबों के लिए होगा, पर गरीबों -दुखियों के लिए अधिक; इसी को  तो- 'मनुष्य बनना' कहते हैं भाई ! 
हमारा (महामण्डल का ) मानना है कि, (3H में विकसित) 'मनुष्य-निर्माण करना ही सबसे बड़ा धर्म है!' और स्वामी विवेकानन्द भी इस विचार से सहमत हैं ! ' Man- making ' is the greatest Religion, Swamiji also subscribe to this idea !  मनुष्य -निर्माण या ' Man- making ''  का तात्पर्य यह है कि 'हमारी मांस-पेशियाँ लोहे की होंगी, अर्थात शरीर के मसल्स मजबूत होंगे, और बहुत नरम दिल होगा, लेकिन साथ ही साथ यह दिमाग भी बहुत तेज होना चाहिए, इतना तेज जो समुद्र की गहराई में जाकर भी सत्य का पता लगाने में सक्षम होगा ! महामण्डल द्वारा निर्देशित "3H विकास के 5 अभ्यास " द्वारा इन तीनों चीजों का ऐसा संयोजन, तुम में से हर कोई कर सकता है ! और यदि तुम ऐसा कर सकते हो ; तभी तुम  सच्चे भारतीय नागरिक हो, भारत माता की सच्चे सन्तान हो ! क्योंकि भारत माता की जो सच्चे सन्तान होंगे , सच्चे बेटे या बेटियां होंगी, उनके जीवन का लक्ष्य मातृभूमि की सेवा करने, इस धरती पर जन्म लेने वाले हर प्राणी की सेवा करने के अलावा अन्य कुछ भी नहीं हो सकता। तो अब और कुछ ज्यादा न कहते हुए,  मुझे रुक जाना चाहिए,  तुम लोग क्या कहते  हो ?' 
   [ हम कहते हैं - ' Man- making ' is the greatest Religion, Swamiji also subscribe to this idea,' Man- making ' means : ' We shall have strong mussels, and a very soft heart, this brain must be very sharp, so combination of these things, every one of you can do that, and if you can do that then only you are true Indian nationals, true sons or even daughters also, sons and daughters of Mother India will have nothing beyond serving the motherland,serving every being that is born on this soil. so I think I should stop now, what do you say?
अच्छा, अच्छा, मुझे क्षमा करें, मुझे क्षमा करें, तुम्हें  पहले ही मुझे रोक देना चाहिए था ! भाई, तुम  सभी के लिए मेरा प्यार, तुम सभी को मेरा  प्यार पहुँचता है !  मैं तुम सभी के मंगल की प्रार्थना करता हूँ , अपने देश के मंगल की प्रार्थना करता हूँ। और उन सभी के कल्याण की प्रार्थना करता हूँ जो पीड़ित हैं ,अभी कष्ट भोग रहे हैं , जिनमें अभी अपूर्णता (deficiencies-दोष-त्रुटियाँ)  है, ताकि वे भी पूर्ण हो सकें!  जिससे वे भी ठाकुर, माँ, स्वामीजी को समझ सकें। इन दिनों, इस युग में, इस नव वेदान्त के युग में, वे ही "देवता-शिव " हैं, जो हर जीव की सेवा -सुश्रुषा करने को तत्पर हैं ! वे [ ठाकुर और माँ सारदाभी कमो-बेश ( more or less, करीब -करीब) मूर्ख  ही हैं ! स्कूल, कॉलेज या विश्वविद्यालय की तो बात क्या करना,..उन्होंने कोई शिक्षा ग्रहण नहीं की थी,,,, लेकिन हाँ, वैसी विद्या जो उनके पास है , और किसके पास है ? 
[अच्छा, अच्छा I am sorry, I am sorry, you should have stopped me earlier, भाई, my love to you all, my love to you all, I prey for you all, and prey for the country and every body,who is suffering, who has deficiencies,so that can become full, so that they can understand Thakur, Ma, Swamiji. In these days, in this yuga, in this yuga, in this period of time, they are " the Deities " , who will take care of every body. They are also more or less murkha's, हाँ ! , no education,not to speak of school or college, or university,..हाँ , लेकिन वैसी विद्या किनके पास है ?]
 ठाकुर के पास जो विद्या थी, माँ के पास जो विद्या थी,स्वामीजी के पास जो विद्या थी, वैसी विद्या -(स्वयं मनुष्य बनने और दूसरों को मनुष्य बनने में सहायता करते, करते,-स्वयं को (ब्रह्मविद) भगवान बना लेने वाली ' विद्या ')  और कहाँ है ? वह ' विद्या ' उनके पास है, जो हमारे अपने माता-पिता हैं ! वे उस  विद्या को एक थाती के रूप में, हमें सौंप देने के लिए, उनके पास है, जो हमारे माता पिता हैं ! क्योंकि  हमलोग उनकी सन्तान हैं, इसलिए उस विद्या पर (मनुष्य बनते बनते भगवान में परिणत हो जाने वाली विद्या पर) हमारा जन्मसिद्ध अधिकार है ! ठाकुर माँ की सन्तान और स्वामी विवेकानन्द का छोटा भाई होने के कारण, उनके उत्तराधिकारी होने के कारण उनकी विद्या (मनुष्य -निर्माणकारी शिक्षा: जिससे ह्रदय विशाल होता है , बुद्धि तीक्ष्ण होती है , शरीर मजबूत होता है ) वह विश्वास , आत्मविश्वास (आत्मश्रद्धा), और वह प्रतिबद्धता (commitment) प्राप्त होती है , कि यदि जरूरत पड़ी तो भारत को पुनरुज्जीवित करने के लिए मैं अपने प्राणों को भी ख़ुशी -ख़ुशी न्योछावर कर दूँगा ! वैसी प्रतिबद्धता  पर हमारा जन्मसिद्ध अधिकार है!    
[we have right on ' That ' education, to have that broadness of heart, and that intelligence, and विश्वास, that आत्मविश्वास !  that even if necessary, I will give up my body even, my life even, let my life also go, but let me be happy,... ]    
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स्मृति भ्रम का कारण : ध्रुव जी, अवध कुंज , कच्ची तलाव , पटना 28 जनवरी 2022, खान सर का बिहार बंद, बिहटा-दनियावां -कुर्थौल रोड से होते हुए तिलैया की यात्रा। बिहार के करोड़पति युवा दुर्गेश - स्लिमिंग डायटिंग, मैरेज बंगलोर इन्विटेशन, अमित - ध्रुव ईश्वर हैं ? और पुनर्जन्म होता है? ध्रुव - जागा है पर उम्र 76 और मेडिसिन पर आधारित जीवन के कारण निश्चल नहीं रह सकता। उदय -कमीशन लिया बहन से। ध्रुव के चचेरे भाई - का पत्नी को कैंसर की आशंका से रोना -'पंचभूतेर फाँदे ब्रह्म पड़े कांदे " हम हैं न तुमको मदद करेंगे। ब्रह्म राम का सीता वियोग में रोना और पार्वती जी का शंशय इस मनुष्य को आपने प्रणाम क्यों किया ? परीक्षा - परिणाम पर ध्रुव जी से चर्चा ! गीता 5 /19 -दुर्लभ साम्य - अर्थात समभाव या पूर्णता की अभिव्यक्ति दृश्य के रूप में नहीं होती , अनुभव के रूप में होती है ,  बिना माँ काली की कृपा ही साम्य में  स्थित होने का उपाय है। शशि के बुढ़ापे का कारण ईर्ष्या , सलाह, तारा -स्मृति नाम करो होटल का। मनोज राणा की दुआ - भइया आप 72 साल के हो गए!! देवराहा बाबा की तरह आप भी 200 -300 साल तक रहिये। कुर्थौल- ज्ञान : जगरनाथ का बेटा दिनेश का कहना -12,000 /= की नौकरी करता हूँ। चाचा बैजनाथ हमारे दुश्मन होगये बहन की शादी मर्डर के अभियुक्त से करवा दिए , उसका केस लड़ना , भगना का पालन-करने में 3 कट्ठा खेत 50,000/- रेट के जमाने में करना पड़ा। अब भी कुछ खेत बचा हुआ है। दीपक-राजदेव बाबू की उद्यमशीलता-पाउच पैकिंग का लाइसेंस तिलैया में मिलेगा ? अजय -उदय- उषा से 5 लाख कमीशन लिया।  कार्तिक-अकाउंट जानता है - को चचानी के यहाँ खाये-पीये में दिक्क्त था, इसीलिए हड़बड़ी में  गृह-प्रवेश करना पड़ा। राजू-नरेन् परम् भोला -मंटू सिंह सोनपुरिया लगा है -तीनो भाई को लड़वा कर साला की जमीन हड़पो।   
महामण्डल के संस्थापक सचिव श्री नवनीहरन मुखोपाध्याय द्वारा 30 दिसंबर 2011 को दिया गया भाषण :नकली स्वतंत्रता (Spurious Independence) से प्राप्त औपनिवेशिक मानसिकता (Colonial Mindset) को बदलना अनिवार्य है : भारत की आजादी के 75 वां वर्ष का अमृत महोत्स्व पर 29 जनवरी 2022 को आयोजित  'Beating The retreat ' समारोह : इस वर्ष जब गणतंत्र दिवस समारोह की समाप्ति 'Beating The retreat ' (जो युद्ध में विजय के बाद , सेना की बैरक वापसी का प्रतिक है) को रायसीना हिल्स स्थित राजपथ के 'विजय चौक ' पर आयोजित किया गया तब भारत की थल सेना , वायु सेना और नौसेना की बैण्ड ने पहली बार अपनी पारम्परिक धुनों की समाप्ति 'हे मेरे वतन के लोगों को जरा आँख में भर लो पानी' की धुन बजाकर किया। इसके पहले तक 1857 ई ० में लिखित एक इसाई भजन (Christian hymn) "Abide with Me"  की धुन को गाँधीजी की प्रिय धुन बताकर की जाती थी, जबकि गाँधी की प्रिय धुन -'रघुपति राघव राजाराम' , और 'वैष्णवजन तो तेने कहिये' है। विकसित देशों ने जिन रास्तों और संसाधनों का इस्तेमाल करके खुद तो तरक्की कर ली लेकिन वे नहीं चाहते कि विकासशील देश भी उन्हीं तरीकों का इस्तेमाल करके आगे बढ़ें।  'आज दुनिया में कहीं भी किसी भी देश की कोई कॉलोनी नहीं है लेकिन यह औपनिवेशिक मानसिकता, यह गुलामी की मानसिकता 'Colonial Mindset' अब भी बरकरार है। यह औपनिवेशिक मानसिकता इस विश्वास के साथ मेल खाती है कि उपनिवेशक देश या अंग्रेज-जाति के सांस्कृतिक मूल्य स्वाभाविक रूप से अपने आप से श्रेष्ठ हैं। अंग्रेजों के उपनिवेशीकरण गुलामी की मानसिकता के परिणामस्वरूप लोगों द्वारा महसूस की गई जातीय या सांस्कृतिक हीनता का आंतरिक दृष्टिकोण। यानी भारत पर राज करने वाला उपनिवेशक देश (ईसाई -मुगल देशों या जातियों)  के सांस्कृतिक मूल्य स्वाभाविक रूप से अपने आप से श्रेष्ठ हैं, तभी तो उन्हें (हिन्दू जाति को) दूसरे समूह द्वारा उपनिवेशित या गुलाम बनाया जा सका है। इसी गुलामी की मानसिकता से पीड़ित होकर राजाराम मोहन राय ने viceroy को पत्र में लिखा था कि संस्कृत पढ़ने से भारत तरक्की नहीं कर सकता, जिसके परिणाम स्वरुप मैकाले की शिक्षानीति भारत पर थोप दी गयी।  इस मानसिकता ने कई विकृत विचारों को जन्म दिया है। इसका सबसे बड़ा उदाहरण पर्यावरण को मुद्दा बनाकर विकासशील देशों की प्रगति की राह में अड़चने खड़ा करना है।  औपनिवेशिक मानसिकता का अजेंडा ही विकासशील देशों की प्रगति को रोकना है। तब भारत के लोगों को यह समझ में आया कि.......... ] " किसी भी प्रकार से केवल स्वतंत्रता प्राप्त कर लेना ही पर्याप्त नहीं है ! बल्कि औपनिवेशिक मानसिकता (Colonial Mindset) को बदलना भी अनिवार्य है। विगत 70 वर्षों से   भारत में स्वतंत्रता का जो अर्थ समझकर- ' तूँ हूँ लूटऽ हमहूँ लूटीं, लूटे के आजादी बा,  सबले अधिका उहे लूटी, जेकरा देह पर खादी बा। ' देश को जिस प्रकार लूटा जा रहा है - उसे देखकर  हम शर्मिंदा हैं।  हर जगह, जहाँ भी हम जाते हैं, हम देखते हैं कि यह एक नकली स्वतंत्रता है (Spurious Independence), हमारे पास वास्तविक स्वतंत्रता नहीं है;  भारत में ऐसा क्या है? अभी भी देशपर जो औपनिवेशिक मानसिकता (Colonial Mindset) हावी है, उसे बदलना आवश्यक है। वह तभी सम्भव हो सकता है..अगर हमारे पास 'Proper Men' योग्य और चरित्रवान मनुष्य' (3H में विकसित मनुष्य) हों! ऐसे मनुष्य तैयार किये जाएँ ..जिनमें अपने देश के प्रति प्रेम हो,   अपने माता-पिता के लिए प्यार हो, माता पहले, फिर पिता और अन्य बुजुर्ग लोग हैं, उनके लिए गहरा सम्मान होना चाहिए। युवाओं को जितना संभव हो सके, अपने आराम ,अपनी मौज-मस्ती और दिखावा करना छोड़कर, अपने माता-पिता तथा घर के अन्य बुजुर्ग की   सेवा करने के लिए तैयार रहना चाहिए।
और यह तभी सम्भव है जब हम मैकाले शिक्षा व्यवस्था में आधारित औपनिवेशिक मानसिकता (Colonial Mindset) को बदल कर 'रामकृष्ण -विवेकानन्द वेदान्त नेतृत्व -प्रशिक्षण परम्परा' में प्रशिक्षित लीडरशिप परम्परा "Be and Make " को लागु कर सकें।                                                                                                                                                                                                                                  

मंगलवार, 10 जनवरी 2012

स्वप्न की कहानी

हमलोगों में, ऐसा कौन होगा, जो स्वप्न नहीं देखता हो? कोई अपवाद नहीं होंगे, ऐसा भी नहीं कहा जा सकता. किन्तु अक्सर नीन्द टूट जाने के बाद स्वप्न की कहानी याद नहीं रहती. कभी कभी ऐसा स्वप्न भी आता है, जिसका प्रभाव बहुत देर तक हमलोगों पर बना रहता है. यह भी सुनने में आता है कि, स्वप्न में देखी गयी कुछ कुछ घटनाएँ बाद में सच्चाई का पूर्वाभास साबित हुई हैं.
श्रीरामकृष्ण के जन्म के पहले उनके पिताजी गया तीर्थ में एक स्वप्न देखे थे- नारायण स्वयं उनकी सन्तान बन कर आविर्भूत होना चाहते हैं. स्वामी विवेकानन्द की माँ भूवनेश्वरी देवी प्रतिदिन बहुत देर तक भगवान शिव की आरधना में तन्मय हो कर अपना समय व्यतीत करती थीं, एवं उनसे एक पुत्र सन्तान पाने की मन्नत मांगती थी. एकदिन पूजा-घर में ही उनको नीन्द आ गयी, उस समय स्वप्न में देखती हैं कि जटाजूटधारी  शिव उनके सामने आविर्भूत होकर शिशु का रूप धारण कर लेते हैं, मानों वे उनकी ही सन्तान हों. इसीके कुछ दिनों बाद स्वामीजी का जन्म हुआ था.
मन के जिस क्रियाकलाप को हमलोग थोड़ा जान पाते हैं, उसे मन का चेतन स्तर कहा जाता है. किन्तु मन केवल उतना ही नहीं है, उसका अधिकांश हिस्सा हमलोगों के सामान्य चेतना के स्तर से देख नहीं पाते हैं. इसीलिए उसको मन का अवचेतन स्तर कहा जाता है. मनोवैज्ञानिक लोग कहते हैं कि, अवचेतन मन में जो कुछ चलता रहता है, उसीका कुछ अंश स्वप्न में दिखने लगता है.
  हमलोग सचेतन होकर जो कुछ सोचते हैं, मन में जो कामनाएँ दबी रह जाती हैं, मन रूपी कैमरा उसका एक फोटो खींच लेता है, और वही सब फोटो या कार्बन कॉपी अवचेतन मन में संचित रह जाता है. इसीलिए जो विचार, जो अनुभूति या तजुर्बा हमारे मन के उपर गहरी लकीरें डाल देते हैं, वे ही सब कई बार किसी न किसी तरीके से स्वप्न में दिखाई पड़ने लगते हैं.
रेन्द्रनाथ जब तरुणाई में पदार्पण किये थे, तब कुछ समय तक रोज रात में एक ही स्वप्न देखते थे. पहले देखते कि वे राज-ऐश्वर्य और प्रभावशाली व्यक्तित्व के अधिकारी हैं, बाद में देखते कि वे एक महावैराग्यवान परिव्राजक सन्यासी हैं. सम्भव है, उन दिनों उनके सामने ' बड़ा ' (बृहत) बनने के दो विकल्प खुले हुए थे, और मन चाहता हो कि इन दोनों में जो श्रेष्ठ मार्ग हो उसी को सारे जीवन के लिए चुन लिया जाय.
अत्यन्त प्राचीन काल से मानव समाज में स्वप्न को बहुत अधिक महत्व दिया गया है. मेसोपोटामिया की प्राचीन सभ्यता के बारे में सुमेर के लिखित कहानी से महाराज गिल्गामेश के जीवन में स्वप्न का कितना महत्वपूर्ण स्थान था, उसका पता चलता है.
[ मेसोपोटामिया का अर्थ होता है-दो नदियोँ के बीच की भूमि। दजला (टिगरिस) और फ़ुरात (इयुफ़्रेट्स) नदियों के बीच के क्षेत्र को कहते हैं । इसमें आधुनिक इराक़, उत्तरपूर्वी सीरिया, दक्षिणपूर्वी तुर्की तथा ईरान का क़ुज़ेस्तान प्रांत के क्षेत्र शामिल हैं । यह ताम्रकांस्ययुगीन सभ्यता का पालना रहा है ।
यहाँ सुमेर, अक्कदी सभ्यता, बेबीलोन तथा असीरिया के साम्राज्य शामिल हैं । सुमेरियन सभ्यता के प्रमुख शहर उर,किश,निपुर,एरेक,एरिडि,लारसा,लगाश,निसीन,निनिवेह आदि थे। निपुर इस सभ्यता का सर्वप्रमुख नगर था जिसका काल लगभग 5262ई. पू. बताया जाता है।
इस नगर का प्रमुख देवता एनलिल समस्त देश में पूजनीय माना जाता था। सुमेर सभ्यता मेँ परोहित वर्ग ही मुख्यतः राजा होता था।अक्कादियन साम्राज्य की राजधानी बेबीलोन थी,अतः इसे बेबीलोनियन सभ्यता भी कहा जाता है। बेबीलोनियन सभ्यता की प्रमुख विशेषता हमूराबी की(2123-2080 ई. पू.)विधि संहिता है।बेबीलोनियन सभ्यता का प्रमुख ग्रन्थ्र गिल्गामेश महाकाव्य था।
महाकाव्य गिल्गामेश एक वास्तविक सुमेरियन राजा गिल्गामेश के शासन के जीवन पर आधारित है जो २६०० ईसा पूर्व मेसोपोटामिया पर राज करता था. पुस्तक को पढने से शुरुआत में यह महसूस होता है कि गिल्गामेश एक अभिमानी व्यक्ति है. वह एक अहंकारी राजा के रूप में अपने अधिकारों की सीमा का उलंघन करता है. वह अपने शहर की कुंवारीयों के साथ नाजायज संबंध स्थापित करता है. आगे चल कर उसके जीवन में कई ऐसी घटनाएँ घटती हैं, जो उसकी मानसिकता को बदल देती हैं, और उसे एक बेहतर मनुष्य के रूप में परिणत कर देती है. पहले वह अपने आप को ही पृथ्वी का सर्वश्रेष्ठ मनुष्य समझता था. 
यह कहानी पशु, मनुष्य, और देवता के बीच की सीमा रेखा के महत्व पर प्रकाश डालने साथ साथ; मनुष्य के द्वारा अमरत्व की खोज के सम्बन्ध में भी है. इस काव्य में समाज में स्त्रियों के महत्व पूर्ण सीमाओं का निर्धारण भी किया गया है. इन सीमाओं वेश्या शम्हत, इश्तर, सिदुरी, सराय की मालकिन, और उतानापिश्तिम की पत्नी निंसून के द्वारा निर्धारित किया गया हैं. महिलाओं को ज्ञान-दात्री तथा पशु से, मनुष्य,और देवता की सीमा तक उठा देने में समर्थ-ज्ञान-दात्री महिलाओं की भूमिका देकर, गिल्गामेश महाकाव्य यह दर्शाता है कि कैसे मेसोपोटेमिया समाज में महिलाओं को भी वास्तव में महत्वपूर्ण स्थान प्रप्त था है.
  यह एक वैसे व्यक्ति के जीवन की कहानी है, जो भयभीत है और सम्मानित भी है, एक व्यक्ति जो प्यार करता है और नफरत भी करता है, एक व्यक्ति है जो जीतता है और खो देता है.
 गिल्गामेश के माध्यम से, मानव जाति के भाग्य परिवर्तन की अनिवार्य कारक का भी वर्णन किया गया है.  
गिल्गामेश महाकाव्य में जीवन लक्ष्य चुनने का अधिकार और तदनुसार परिणाम की अनिवार्यता को भी दिखलाया गया है . हमारे द्वारा आज किए गए निर्णय का परिणाम, वर्ष तक तो क्या पूरे जीवन भर भुगतना पद सकता है. गिल्गामेश और एन्किडू दोनों ने जो विकल्प चूने उसने उनके जीवन को ही हमेशा के लिए बदल दिया
हमारे पास दो विकल्पों (श्रेय और प्रेय) में से एक का चयन करने का अधिकार तो है, किन्तु उसका परिणाम सकारात्मक और नकारात्मक दोनों हो सकते हैं, और यह परिणाम समान रूप से लम्बे समय तक भोगना पड़ता है. गिल्गामेश की कहानी में इसी बात को दर्शाया गया है.
 क्योंकि गिल्गामेश, बहुत अभिमानी और दमनकारी था, वह एक अच्छा राजा होने में सक्षम नहीं था, इसीलिए एन्किडू को बनाया गया था. अपने दोस्त एन्किडू की मौत के बाद गिल्गामेश पाता है कि वह खुद भी मरने से डर रहा है. यह डर ही गिल्गामेश को अमरत्व कि खोज में लगा देता है. उस समय लोग ऐसा मानते थे कि अमरत्व की शक्ति किसी स्त्री से ही प्राप्त हो सकती है, क्योंकि यह भी एक तथ्य है कि केवल वे ही जननी बन सकती हैं, और पुन: संसार में ला सकती हैं. यह संकल्प ही उसे एक एक लंबे और थकाऊ यात्रा के बाद उस भूमि पर ले जाता है,जहां कोई नश्वर प्राणी उसके पहले नहीं गया था. 
मुख्य पात्र
गिल्गामेश :२७००ई.पू. प्राचीन उरुक (वर्तमान इराक में) जन्म एक युवा राजा था. सदियों से, इस राजा के बारे में कई किंवदंतियाँ प्रचलित हैं, जिसमें यह वर्णन मिलता है कि उसके पास कुछ अलौकिक शक्तियाँ भी थीं. उसके बारे यह मान्यता है कि वह दो - तिहाई परमात्मा (असीम- Head and Heart) और एक तिहाई मानव (ससीम-Hand) था. हालांकि, वह एक मनुष्य ही था, इसीलिए जैसा कि सभी मनुष्यों के भाग्य में अंत में मरना ही लिखा होता है, उसको भी मरना पड़ा था. इस महाकाव्य का युवा नायक ' गिल्गामेश ' एक अड़ियल शासक है, जो अपनी प्रजा का शोषण करता है, अपने शक्ति का प्रदर्शन करने तथा अपनी प्रतिष्ठा बढ़ाने के लिए चुनौतियों और रोमांचक कारनामों में लगा रहता था.
.इस संबंध में, उसकी तुलना बाद के सदियों में होने वाले, सिकंदर महान, नेपोलियन बोनापार्ट, और जनरल जॉर्ज पैटन आदि सैन्य नेताओं के साथ की जा सकती है, जिन्होंने युद्ध के मैदान में शौर्य प्रदर्शित किया था. उसकी तुलना उन वर्तमान राष्ट्रपतियों, प्रधानमंत्रियों, और तानाशाहों से भी की जा सकती है जो सस्ती लोकप्रियता पाने के लिए, बिना परिणाम पर विचार किये दुसरे देशों को बेतहाशा युद्ध करने के लिए मजबूर कर देते हैं.अंततः. गिल्गामेश, उसके दोस्त, एनकिंडू, की मौत के बाद, गहरे अवसाद के दौर से गुजर कर, अपनी पाशविक-प्रवृत्तियों पालतू बना लेता है, या उन्हें वश में कर लेता है.
  एन्किडू : एक दूसरा शक्तिशाली नायक है, जिसे ग्लिगामेश की निरंकुश सत्ता को संतुलित करने के लिए देवताओं ने गढ़ा था. वह पहले ( दुसरे भेंड़ों या जानवरों के समान घांस चरते हुए जंगलों में ही रहा करता था) क्योंकि उसे मनुष्य और मनुष्य के रहन-सहन के बारे में कुछ भी पता नहीं था. ग्लिगामेश के स्वप्न में मिले पूर्वाभास को सुन कर, बाद में उसकी माँ ने, प्रेम की देवी के मंदिर से,शम्हत नामक एक वेश्या को उसे लुभाने के लिए भेजा, फिर  वह शम्हत की मदद से मनुष्यों के रहन-सहन का तरीका सिख लिया, तब पशुओं ने उसे अपने साथ रखने से इंकार कर दिया. खुद को  गिल्गामेश से भी बड़ा योद्धा समझ कर वह उससे युद्ध करने उरुक पहुँच गया. बहुत देर तक घनघोर युद्ध करने के बाद, दोनों एक दुसरे के अविभाज्य मित्र बन गये. 
और बाद में गिल्गामेश तथा एनकिंडू ने मिल कर, देवदार के जंगलों का राक्षसी संरक्षक,और स्वर्ग के सांढ़ हम्बबा को मार डाला, तब गुस्सा से भरे देवताओं ने आदेश दिया इनमें से एक मनुष्य-एन्किडू को मरना ही होगा.
अनु: देवताओं के पिता. वे मूर्तमान स्वर्ग हैं.
अरुरु: सृजन की देवी. जिसने मिट्टी से एन्किडू तैयार किया था. 
निंसून : एक देवी तथा गिल्गामेश की माँ.
लुगुल्बंदा: उरुक का दिवंगत राजा और गिल्गामेश का पिता.
इश्तर : प्रेम की देवी, गिल्गामेश ने उसके शादी के प्रस्ताव को ठुकरा दिया.
एन्लिल : पृथ्वी और वायु के देवता. इसीने हुम्बाबा को देवदार जंगल का संरक्षक बनाया था.    
 तम्मुज़ : प्रजनन और वनस्पति के भगवान. वह एक इश्तर के कई प्रेमियों में से एक था, जिसे उसने सज़ा दिया और अस्वीकार कर दिया था.
निनुर्ता : युद्ध के देवता
शम्हत : इश्तर मंदिर की वेश्या जो एन्किडू को लुभाने के लिए भेजी गयी थी.
हुम्बाबा : एक दानव है जो देवदार वन का संरक्षक है.
शमाश : सूर्य देवता. वह गिल्गामेश को देवदार के जंगल में प्रवेश करने और हुम्बाबा को मारने की योजना को मंजूरी देता है .
बिच्छू मैन: आधा आदमी और आधा बिच्छू. वह देवदार वन का गार्ड है.
उत्नापिश्तिम the Faraway : जो देवताओं के द्वारा भेजे गये महान बाढ़ के बाद भी जीवित रहता है. गिल्गामेश उससे ही अनन्त जीवन के रहस्य को जानने की आशा रखता है.
उत्नापिश्तिम की पत्नी: उसने भी महान बाढ़ के बाद अमरत्व का वरदान पाया था.वह गिल्गामेश के उपर दया करती है, और अपने पति से प्रार्थना करती है कि वह उसे एक गुप्त लता की जानकारी देदे जिसके खाने से अमरत्व प्राप्त हो सकता है.
सिदुरी: देवताओं के लिए शराब बनाती है: वह समुद्र के निकट एक खूबसूरत बगीचे में रहती है. हालांकि वह गिल्गामेश को सलाह देती है कि उसका अनन्त जीवन की खोज असफल हो जायेगी, फिर भी वह उसे उत्नापिश्तिम के निवास का पता बता देती है, जो गिल्गामेश को उसके खोज का उत्तर दे सकता है.
उर्शनाबी : एक केवट जो गिल्गामेश को उस घाट पर पहुंचा देता है, जहाँ उत्नापिश्तिम का निवास था. 
मुख्य कहानी
गिल्गामेश, उरुक के युवा राजा के रूप में, अपनी प्रजा का रक्षक है.लेकिन कभी कभी वह अपनी शक्तियों का लाभ उठाता है, लोगों को और अपनी इच्छाओं को संतुष्ट करने के लिए खुले आम जोर जबरदस्ती किसी भी औरत का उपयोग करने के लिए, लोगों पर अत्याचार भी करता है. इसपर उसकी प्रजा स्वर्ग के देवताओं से शिकायत करती है. जवाब में, देवी माँ अरुरु एक नया मनुष्य, एन्किडू को उत्पन्न करती है, जो डील-डौल और आकृति से गिल्गामेश का प्रतिद्वंद्वी प्रतीत होता है. 
 निनुर्ता, युद्ध के देवता, उसको महान शक्ति का उपहार देता है.पृथ्वी और उसके जीव के बारे में एन्किडू को कोई ज्ञान नहीं रहने के कारण, वह अन्य जंगली जानवरों के समान और उनके ही साथ साथ घास खाता है और पानी पिता है. वह शिकारियों के लगाये गये जाल को कट कर पशुओं को मुक्त करता है, उनकी रक्षा करता है.उसके विशाल आकार को देख कर शिकारी घबड़ा जाते थे. उधर उरुक में गिल्गामेश भी एक सपना देखता है, जिसमें एन्किडू के आने का पूर्वाभास मिलता है. उसकी माँ, देवी निन्सून, उसके द्वारा देखे गये सपने की व्याख्या करते हुए, एन्किडू का वर्णन करते हुए बताती है कि गिल्गामेश और एन्किडू आगे चल कर अविभाज्य मित्र बन जायेंगे.
इस बीच, उरुक जाने के रास्ते पर, एक वेश्या उसे तथा अन्य चरवाहों को रोटी और शराब प्रदान करती है.वह कुछ समय तक उनके साथ रहता है, जंगली पशुओं से उनकी रक्षा करके अपने रहन-सहन में सुधार कर लेता है.जब एन्किडू उरुक में आता है, तो उसके आसपास लोगों का झुण्ड इकट्ठा हो जाता है, और उसकी प्रशंसा करते हुए कहते हैं कि वह निश्चित रूप से गिल्गामेश के बराबर है. 
 इस समय, गिल्गामेश एक नई दुल्हन के,पति से मिलने के पहले ही उसके बिस्तर पर आक्रमण करने  की योजना बना रहा होता है.रात में, जब वह अपने पति के लिए इंतजार कर रही होती है, गिल्गामेश उसके घर पहुँच जाता है. हालांकि, एन्किडू उसे गली में देख लेता है,और खुद को उसके समकक्ष साबित करने के लिए, उस घर के गेट तक पहुँचने के पहले ही रोक लेता है. दोनों हिंसक पशुओं की तरह लड़ने लगते हैं.एक दुसरे पर जीत हासिल करने के संघर्ष में घर के दरवाजे टूट जाते हैं, दीवारें हिलने लगती हैं.अंत में, गिल्गामेश एन्किडू को जमीन पर पटक देता है. लेकिन बजाय लड़ाई जारी रखने के, एन्किडू गिल्गामेश के ताकत की प्रशंसा करता हुआ कहता है कि उसकी बराबरी का पृथ्वी पर अन्य कोई नहीं है. वे एक-दुसरे से गले मिलते हैं, और अन्तरंग मित्र बन जाते हैं. 
अमरत्व प्राप्ति की लालसा : गिल्गामेश अमरत्व पाने व्याकुल हो जाता है. अपने कर्मों से वीरत्व प्रदर्शित करके, उरुक की दीवार के निर्माण के साथ अन्य अच्छे अच्छे कामों को करता है, और अनन्त प्रसिद्धि हासिल करता है. लेकिन एक चीज, जिसे वह सबसे अधिक पाना चाहता है, वह पृथ्वी पर शाश्वत काल तक जीवित रहना चाहता है, वह उसे कभी प्राप्त नहीं हो सकता है.इस संबंध में, वह हम सब के मनुष्य की तरह ही है. हम सभी लोग पृथ्वी पर हमेशा के लिए जीना चाहते हैं, और अपने नश्वर जीवन को जितना अधिक हो सके लम्बा करना चाहते हैं. हालांकि, अंत में केवल हमारी अच्छाईयाँ और उपलब्धियों के किस्से ही जीवित रहते हैं, मनुष्य को मरना ही पड़ता है. 


.. प्रकृति के लिए आदर: प्रकृति के लिए सम्मान की दृष्टि से देखने पर मेसोपोटेमिया भी वर्तमान  विश्वदृष्टि का ही अंश लगता है. उदाहरण के लिएहुम्बाबा दानव देवदार के जंगल में मनुष्यों को नहीं पहुँचने के लिए नजरदारी करता है, और उसका साथी एक बिच्छू आदमी है जो जुड़वां नुकीला पहाड़ माशू की गेट पर गार्ड के रूप उगते और डूबते सूरज की रक्षा के लिए खड़ा रहता है. सिदुरी, देवताओं के लिए शराब बनाती है, वह अपने अंगूर के बाग पर चौकस दृष्टि रखती है, और जब गिल्गामेश पहली बार उससे मिलने पहुँचता है तो, उसके लिए दरवाजा बन्द कर देती है.
उत्नापिश्तिम से जब गिल्गामेश मिलता है तो वह उससे कहते हैं, तुमको को अनन्त जीवन के योग्य साबित करने के लिए एक परीक्षण से गुजरना होगा. इसके लिए तुमको लगातार सात रातों तक पूरी तरह से जाग कर ही रहना होगा. लेकिन गिल्गामेश इस परीक्षण विफल रहता है. उत्नापिश्तिम अपनी पत्नी के अनुरोध पर, जो गिल्गामेश पर करुणा करती है; उत्नापिश्तिम राजा को एक दूसरा मौका देता है, वह उसको पानी के भीतर रहने वाली एक कांटेदार लता के बारे बतलाता है, जो उसको प्राप्त कर लेता है, वह सदा युवा रहता है. 
 समुद्र की गहराई में गोता लगाकर गिल्गामेश उस लता को खोज तो लेता है, इसे तुरंत खा नहीं पाता है. वह खुद खाने के बजाय, इसे वापस उरुक ले जाने का फैसला करता है, ताकि किसी उम्रदराज उरुक को पहले इसे खिला कर इसका तासीर जाँच लिया जाय.(यह यहाँ स्पष्ट नहीं है कि वह खुद को इस लता के सम्भावित बुरे प्रभावों से बचाना चाहता था या अपनी प्रजा को भी अपने सौभाग्य में शामिल करना चाहता था.) दुर्भाग्य से, उरुक करने के लिए वापस लौटते समय वह एक जगह स्नान करने के लिए रुकता है, और लता को किनारे पर रख देता है, एक सांप इसे चुरा कर खा लेता है, और फिर से युवा हो जाता है.
  इस प्रकार गिल्गामेश,उरुक बिना अनन्त जीवन प्राप्त किये ही उरुक लौट आता है. लेकिन जिस समय वह शहर छोड़ कर गया था, उस समय से अब वह बहुत समझदार हो चूका है. वह मृत्यु की अनिवार्यता को स्वीकार करता है, और यह जान कर आराम से जीवन बिताने लगता है कि उसने जो सुंदर शहर बसाया है, तथा दूसरों के कल्याण के लिए जितने महान कार्य किये हैं, उनके माध्यम से ही उसका नाम अमर रहेगा. और, इस प्रकार वह अपने लोगों के लिए एक महान राजा बन गया.जिसका नाम आज भी अमर है.
उस समय तक विज्ञान की कुछ विशेष प्रगति नहीं हुई थी. इसीलिए उन दिनों कूसंस्कार से निकली हुई अलौकिक व्याख्या का बहुत आदर होता था. युगों युगों से इन अंधविश्वासों ने मनुष्यों के मन पर ऐसा छाप लगा दिया है कि, आज के इस युक्तिवादी युग में भी बहुत से व्यक्ति इससे बाहर नहीं निकल पाए हैं. 
इसी विषय के उपर रविन्द्रनाथ टैगोर ने ' हिंग  टिंग छट् ' नामक कविता में अद्भुत हास्यरस का परिचय दिया है.
স্বপ্ন দেখেছেন রাত্রে হবুচন্দ্র ভূপ
অর্থ তার ভাবি ভাবি গবুচন্দ্র চুপ।


কহিলেন হতাশ্বাস হবুচন্দ্ররাজ,
ম্লেচ্ছদেশে আছে নাকি পন্ডিত সমাজ–
তাহাদের ডেকে আন যে যেখানে আছে,
অর্থ যদি ধরা পড়ে তাহাদের কাছে।‘
কটা-চুল নীলচক্ষু কপিশকপোল
যবন পন্ডিত আসে , বাজে ঢাক ঢোল ॥
গায়ে কলো মোটা মোটা ছাঁটাছোঁটা কুর্তি-
গ্রীষ্ম তাপে উষ্মা বাড়ে, ভারি উগ্রমূর্তি।
ভূমিকা না করি কিছু ঘড়ি খুলি কয়,
‘সতেরো মিনিট মাত্র রয়েছে সময়—-
কথা যদি থাকে কিছু বলো চট্পট্।‘
সভাসুদ্ধ বলি উঠে - হিং টিং ছট্।
স্বপ্ন মঙ্গলের কথা অমৃতসমান ।।

শুনিয়া সভাস্থ সবে করে ধিক্-ধিক ,
কোথাকার গন্ডমূ�র্খ পাষন্ড নাস্তিক!
স্বপ্ন শুধু স্বপ্ন মাত্র মস্তিষ্ক বিকার
এ কথা কেমন করে করিব স্বীকার !
জগৎ বিখ্যাত মোরা ‘ধর্মপ্রাণ‘ জাতি–
স্বপ্ন উড়াইয়ে দিবে! দুপুরে ডাকাতি!

হবুচন্দ্র রাজা কহে পাকালিয়া চোখে,
‘গবুচন্দ্র, এদের উচিত শিক্ষা হোক ।
হেঁটোয় কন্টক দাও , উপরে কন্টক,
ডালকুত্তাদের মাঝে করহ বন্টক‘।
সতেরো মিনিট—কাল না হইতে শেষ
ম্লেচ্ছ পন্ডিতের আর না মিলে উদ্দেশ।
সভাস্থ সবাই ভাসে আনন্দাশ্রুনীরে,
ধর্মরাজ্যে পুনর্বার শান্তি� এল ফিরে।
পন্ডিতেরা মুখচক্ষু করিয়া বিকট
পুনর্বার উচ্চারিল —- হিং টিং ছট্
স্বপ্ন মঙ্গলের কথা অমৃতসমান,
গৌড়ানন্দ কবি ভনে, শুনে পুণ্যবান।।
हाबुचन्द्र राजा ने एक अद्भुत सपना देखा था, उसकी व्याख्या करने की व्यर्थ चेष्टा करने में देश के लोग हैरान-परेशान हो गये, तब यूरोपीय विद्वान लोगों ने आकर कहा- यह तो निरा सपना है- इसकी विवेचना या स्पष्टीकरण की क्या जरूत है ? तब सभा में उपस्थित लोगों को बहुत क्रोध हुआ, और वे कहने लगे - हमलोग अपनी धर्म-परायणता के लिए विश्व विख्यात राष्ट्र हैं, क्या सपना को भी सत्य नहीं मानें ? सपना समझ कर भूल जाएँ ? ये लोग भरी दोपहरी में क्या डकैती डालना चाहते हैं ?  
इस प्रकार के कूसंस्कारों से बिलकुल दूर ही रहना चाहिए. स्पष्ट विचार, तार्किक निर्णय, वैज्ञानिक मनोभाव अर्जित करना होगा. स्वामी विवेकानन्द स्वयं इसके उदहारण स्वरूप थे. उनकी दृष्टि में कोई भी घटना अलौकिक  नहीं हो सकता था. फिर युक्ति-तर्क की कसौटी पर कसे बिना किसी घटना को झूठा या भ्रामक कह कर उड़ा देना भी वैज्ञानिक-मानसिकता में रोड़ा है. स्वामीजी प्रत्येक घटना को तर्क की कसौटी पर कस कर ही लेने के पक्षधर थे. 
एक बार  स्वामी विवेकानन्द ने पानी के जहाज से भूमध्य सागर पार करते समय एक अद्भुत स्वप्न देखा था, जिसका वर्णन वे इस प्रकार करते हैं- " स्वप्नावस्था में मैंने देखा कि सफेद दाढ़ी वाला  ऋषितुल्य एक वृद्ध सन्यासी मेरे पास आकर खड़ा हो गया और बोला- ' यह क्रीट द्वीप है, तुम आओ हमको पुनः प्रतिष्ठित कर दो. मैं ' थेरापुत्तस ' के प्राचीन पन्थ का अनुयायी हूँ, जो प्राचीन भारतीय ऋषियों की शिक्षाओं पर आधारित है. 
यहाँ हमारे थेरापुत्तस सन्यासी सम्प्रदाय से ' अससिनी ' सम्प्रदाय के लोगों ने उच्च विचारों को ग्रहण किये थे. जिस सत्य और जिन आदर्शों का हमने प्रचार किया, ईसाई लोग उनका ईसा मसीह द्वारा प्रचलित किया जाना बताते हैं; पर सच तो यह है कि ईसा मसीह नाम का कोई व्यक्ति कभी जन्मा ही नहीं. इस बात को सिद्ध करने के लिए यदि यहाँ खुदाई की जाय, तो कई प्रमाण मिल जायेंगे.'
  मैंने पूछा - ' कौन सी जगह खुदाई करने पर वे अवशेष और प्रमाण मिलेंगे ? उस श्वेतकेशी वृद्ध सन्यासी ने तुर्की के पास का एक स्थान बताकर कहा- ' वहाँ '. इतने में ही मैं जाग गया और तत्काल भागकर डेक पर मैंने जहाज के कप्तान से पूछा कि जहाज इस समय कहाँ है?
जहाज के कप्तान ने हाथ से दिखाते हुए कहा-''देखो, वह तुर्किस्तान है, और ' यह स्थान क्रीट द्वीप से मात्र ५० नौटिकल माईल की दुरी पर है" क्या यह एक स्वप्न मात्र ही था या उस स्वप्न में कोई सत्य छिपा था ? कौन जनता है ! (८/२८२)
' थेरापीउट ', अससिनी, मानिकी आदि सम्प्रदायों के बारे में, जिनसे वर्तमान ईसाई धर्म का उद्भव हुआ है, जिक्र करते हुए स्वामीजी कहते हैं- " यह लालसागर का किनारा प्राचीन सभ्यता का महान केंद्र है. वह उस पार अरब की मरुभूमि है; इस पार मिस्र. हिक्स वंश, फेरो वंश, ईरानी बादशाही, सिकन्दर टालेमी वंश, और रोमन एवं अरबी वीरों की रंगभूमि यही मिस्र है. उतने प्राचीन युग में भी ये लोग अपना वृतान्त पापिरस पत्रों में, पत्थर पर, मिट्टी के बर्तनों पर, चित्राक्षरों से खूब सावधानी से लिख गये हैं... इसी मिस्र में टलेमी बादशाह के वक्त सम्राट अशोक ने धर्म प्रचारक भेजे थे. वे लोग धर्म प्रचार करते थे, रोग अच्छा करते थे, निरामिषी होते थे, विवाह नहीं करते थे, सन्यासी शिष्य करते थे. उन्हीं लोगों ने अनेक सम्प्रदायों की सृष्टि की - थेरापीउट, अससिनी, मानकी आदि आदि- जिनसे वर्तमान ईसाई धर्म का उद्भव हुआ. यही मिस्र, टलेमियों के राज्यकाल में, सर्व विद्याओं का केंद्र हो गया था." (८/१८१)        
' थेरापुट्टी ' शब्द प्राचीन बौद्ध सन्यासी सम्प्रदाय ' थेरापूत्त ' ( स्थिवीरपुत्र) से निकला है. दो हजार वर्ष पहले बौद्ध सन्यासी लोग भूमध्य सागर क्षेत्र में धर्म के उपदेशों का प्रचार करने के लिए गये थे. ' अससिनी ' शब्द को उन्होंने सपने में सुना था या नहीं, यह स्वामीजी को ठीक से याद नहीं था, अनुमान से कहे थे. ' अससिनी ' लोग युहिदी धर्म के एक सम्प्रदाय थे, जो त्याग के उपर अधिक जोर देते थे.जिस समय ईसामसीह का जन्म हुआ था, ऐसा विश्वास किया जाता है, अर्थात आज २००० वर्ष पहले, उस समय भारतीय विचार का प्रभाव थेरापूत्त प्रचारकों के माध्यम से एसिनियों के उपर पड़ना असम्भव तो नहीं है, पर यह बात निश्चय से कहना भी मुश्किल है. 
 किन्तु स्वामीजी के शरीर त्याग करने के बहुत वर्षों बाद डेड सी के निकट एक गुफा में ( अलखल्ला झुलाये, पश्मीने लच्छों का एक बड़ा सा मोटा रुमाल सर से कसे हुए ८/१८२) ' बेडाईन ' अरब  व्यापारी लोगों ने बहुत से बड़े बड़े जार में पाए थे, जिसके भीतर बहुत सी बातों को पापिरस ( छालपत्र ) पर लिख कर  लपेट कर रखे गये थे, उनलोगों ने इसका महत्व नहीं समझा, फिर भी यह एक हाथ से दुसरे हाथ होते होते जब यूरोप के विद्वानों के पास जा पहुंचे, तब लोगों ने यह जाना कि - यह २००० वर्ष प्राचीन अससिनी सम्प्रदाय के उपदेश हैं.

The Dead Sea Scrolls were found in caves shown on this map
 The Dead Sea Scrolls were found in caves shown on this map.
 Definition:
Bedouin shepherds accidentally stumbled upon one of the most important religious discoveries of all time -- The Dead Sea Scrolls.
Seven ancient scrolls, written in Aramaic, Hebrew, and Greek, discovered by Bedouin shepherds in 1947, 13 miles east of Jerusalem, turned out to be from the period between 200 B.C. and A.D. 68. The scrolls held information about the Old Testament, including material never seen before in modern times.
The Dead Sea ("Sea of the Arabah," according to Dead Sea, from Bible Places) is a shrinking inland lake, fed by the Jordan River, that is so saline as to be lifeless. It is the lowest place on earth. Jewish Virtual Library approximates its dimensions as 1,300 feet (400 meters) below sea level, 34 miles (55 km.) long and between 11 miles (18 km.) and 2 miles (3 km.) in width, and 1,400 feet (430 m.) deep.
The Dead Sea is located between modern Jordan and Israel, and in the ancient world served as a barrier to Judah partially blocking entry from the east.
  Nobody knows for sure who wrote the Dead Sea Scrolls.
The origin of the Dead Sea Scrolls, which were written between 150 B.C. and 70 A.D., remains the subject of scholarly debate to this day. According to the prevailing theory, they are the work of a Jewish population that inhabited Qumran until Roman troops destroyed the settlement around 70 A.D. These Jews are thought to have belonged to a devout, ascetic and communal sect called the Essenes, one of four distinct Jewish groups living in Judaea before and during the Roman era. Proponents of this hypothesis note similarities between the traditions outlined in the Community Rule—a scroll detailing the laws of an unnamed Jewish sect—and the Roman historian Flavius Josephus’ description of Essene rituals. Archeological evidence from Qumran, including the ruins of Jewish ritual baths, also suggests the site was once home to observant Jews. Some scholars have credited other groups with producing the scrolls, including early Christians and Jews from Jerusalem who passed through Qumran while fleeing the Romans.
Qumran
One of the caves near Qumran in which fragments of the Dead Sea Scrolls were discovered.
Almost all of the Hebrew Bible is represented in the Dead Sea Scrolls.
The Dead Sea Scrolls include fragments from every book of the Old Testament except for the Book of Esther. Scholars have speculated that traces of this missing book, which recounts the story of the eponymous Jewish queen of Persia, either disintegrated over time or have yet to be uncovered. Others have proposed that Esther was not part of the Essenes’ canon or that the sect did not celebrate Purim, the festive holiday based on the book. The only complete book of the Hebrew Bible preserved among the manuscripts from Qumran is Isaiah; this copy, dated to the first century B.C., is considered the earliest Old Testament manuscript still in existence. Along with biblical texts, the scrolls include documents about sectarian regulations, such as the Community Rule,
The Nazarene Way of Essenic Studies
~ Incarnation and Reincarnation ~
The Re-Generation and Purification of the Soul




 
"Blessed are they who suffer many experiences, for they shall be made perfect: They shall be as the angels in Heaven and shall die no more, and neither shall they be reborn, for death and birth will no longer have dominion over them." Jesus, Gospel of the Holy Twelve
Jesus answered and said unto him, "Verily, verily, I say unto thee, Except a man be born again, he cannot see the kingdom of God. Marvel not that I said unto thee, Ye must be born again."
And his disciples asked him, saying, Master, who did sin, this man, or his parents, that he was born blind? John 9:2

When Jesus came into the coasts of Caesarea Philippi, he asked his disciples, saying, Whom do men say that I am? And they said, Some say that thou art John the Baptist: some, Elias; and others, Jeremias, or one of the prophets. Matthew 16:13-14
  • Incarnation and Reincarnation An incarnation is the process whereby the non-physical essence of a fragment-spirit is invested with bodily nature and form. It is a union of the physical plane of existence with the non-physical plane. Reincarnation is the re-cycling of the essence of the fragment-spirit into different physical forms, in different time periods, in different roles, as an experiencing arm of the Source.
  • Biblical References to Reincarnation The following citations from the Holy Bible must be considered when referenced in the context of reincarnation.
  • Regeneration of the Soul  And Iesus said unto them, Blessed are they who suffer many experiences, for they shall be made perfect through suffering: they shall be as the angels of God in Heaven and shall die no more, neither shall they be born any more, for death and birth shall have no more dominion over them.
  • Reincarnational Experiences We each consists of the sum total of all past experiences, from various perspectives, over eons of existence.
  • Karma is the physical manifestation of the law of balance and harmony. You are bound karmically to anything that you accept until you understand it. 
  • Cause and Effect The Principles of Karma. "Every Cause has its Effect; every Effect has its Cause; everything happens according to Law; Chance is but a name for Law not recognized; there are many planes of causation, but nothing escapes the Law."
   ' पड़ोसियों से प्रेम करो ' जैसे उपदेश ईसामसीह के उपदेशों के साथ तुलना करने योग्य हैं. ये सभी पन्ने ' Dead Sea Scroll ' के नाम से प्रसिद्द हैं. 
ये सब तो नीन्द में सपना देखने पर चर्चा हुई. जाग्रत अवस्था को भी कुछ लोग एक प्रकार का स्वप्न कहते हैं. अर्थात, जितना जाग्रत अभी हमलोग हैं, उससे भी अधिक जाग उठाना सम्भव है- और जब किसी किसी के जीवन में, वैसा जागरण घटित हो जाता है, तभी वह समझ पाता है कि - सामान्य तौर पर जिसको हमलोग जगे रहना कहते हैं, वह भी मानों एक सपनों का ही महल था, जिसमें रहकर कभी हम सुखद सपने देख रहे थे, तो कभी दुखद स्वप्न देखते थे.
जिस हमलोग नीन्द में स्वप्न देख रहे होते हैं, उस समय भी तो ऐसा प्रतीत होता है, मानों जगे हुए ही हों. पर जब सचमुच जाग उठते हैं, तभी तुलना करके समझ पाते हैं कि - पहले वाला तो सपना था. इस प्रकार हम समझ सकते है कि जाग्रत अवस्था के विभिन्न स्तर होते हैं. मनुष्य जिस समय जिस अवस्था में रहता है, उस समय वह केवल उसी के विषय में सचेतन रहता है, और उसी को जागरण की एकमात्र अवस्था समझने की भूल करता है.
  ' Neuro scientist ' स्नायु वैज्ञानिक कहते हैं कि, अलग अलग अवस्था में हमारा मस्तिष्क अलग अलग तरीके से विचार कर सकता है. सामान्य तौर पर हमलोग जिसको जाग्रत अवस्था कहते हैं, थोड़ा सा चिन्तन-मनन करने पर ही, हम देख पाएंगे कि वहाँ भी स्वप्न के जैसा ही मानों एक बाद एक पर्दा हटता जा रहा है.
स्वामी विवेकानन्द,१४ अगस्त, १९०० को पेरिस से भगिनी क्रिश्चिन को लिखित, ' हे स्वर्गीय स्वप्न ' नामक कविता में कहते हैं- 
' हे स्वप्न, तू धन्य है !' 
( Thou Blessed Dream)
 If things go ill or well —
If joy rebounding spreads the face,
Or sea of sorrow swells —
A play — we each have part,
Each one to weep or laugh as may;
Each one his dress to don —
Its scenes, alternative shine and rain.
 अच्छा या बुरा, समय बीतता ही जाता है-
कभी हर्षातिरेक से चेहरा चमक उठता है,
और कभी दुखों के सागर लहराने लगते हैं,
यहीं, हम सभी सुख-दुःख से प्रभावित हो,
कभी रोते और कभी हँसते हैं.
हम अपने अपने रंग में होते हैं,
और ये दृश्य अदल-बदलकर आते रहते हैं-
चाहे सुख चमके या दुःख बरसे.
Thou dream, O blessed dream!
Spread far and near thy veil of haze,
Tone down the lines so sharp,
Make smooth what roughness seems.
हे स्वप्न, तू धन्य है - स्वप्न !
यह कुहर-जाल फैलाकर सब कुछ ढक दो,
इन तीखी रेखाओं को कुछ और मधुर करो 
और जो खुरदरापन अनुभव हो, उसे और कोमल कर दो. 
No magic but in thee!
Thy touch make desert bloom to life.
Harsh thunder, sweetest song,
Fell death, the sweet release.
हे स्वप्न !


Swami Vivekananda
केवल तुम्हींमें जादू है, 
तुम्हारे स्पर्श से रेगिस्तान उपवन बनकर लहराते हैं,
कड़कती बिजलियों का भीषण घोष 
मधुर संगीत में बदल जाता है 
और मृत्यु एक सुखद मुक्ति बनकर आती है. 
 - Swami Vivekananda   
अपने छोटे छोटे इच्छाओं की पूर्ति होने और नहीं होने से जो आनंद और वेदना होती है, उन दोनों के साथ उठता-गिरता रहता हूँ. जिसका यह सपने का महल कट चूका है, वे कहते हैं, ' तुम व्यर्थ में ही अपने को लघु बना रखा है, तुम लघु नहीं हो, क्षूद्र शरीर मात्र नहीं हो, तुम बृहत हो, तुम महान हो, तुम तो अनन्त के अधिकारी हो.
अगस्त १८९८ में ' प्रबुद्ध भारत ' ( Awakened India ) पत्रिका के मद्रास से अल्मोड़ा में स्थानांतरित होने के अवसर पर लिखित ' प्रबुद्ध भारत - के प्रति ' अपनी कविता में कहते में हैं-
TO THE AWAKENED INDIA 
( ' प्रबुद्ध भारत ' - के प्रति ! )
 Once more awake!

    For sleep it was, not death, to bring thee life
    Anew, and rest to lotus-eyes for visions
    Daring yet. The world in need awaits, O Truth!
    No death for thee!
जागो फिर एक बार !
यह तो केवल निद्रा थी, मृत्यु नहीं थी,
नवजीवन पाने के लिए,
कमल नयनों के विराम के लिए  उन्मुक्त साक्षत्कार के लिए.
एक बार फिर जागो !
आकुल विश्व तुम्हें निहार रहा है,
हे सत्य ! तुम अमर हो !

Resume thy march,

    With gentle feet that would not break the
    Peaceful rest even of the roadside dust
    That lies so low. Yet strong and steady,
    Blissful, bold, and free. Awakener, ever
    Forward! Speak thy stirring words.
फिर से बढ़ो !
कोमल चरण ऐसे धरो कि एक रज-कण की भी शान्ति भंग न हो 
जो सड़क पर, नीचे पड़ा है. 
सबल, सुदृढ़, आनन्दमय, निर्भय, और मुक्त 
जागो, बढ़े चलो और उद्दत स्वर में बोलो -
Thy home is gone,

    Where loving hearts had brought thee up and
    Watched with joy thy growth. But Fate is strong—
    This is the law—all things come back to the source
    They sprung, their strength to renew.
तेरा घर छूट गया, जहाँ प्यारभरे हृदयों ने तुम्हारा पोषण किया 
और बड़े प्रेम से तुमको विकसित होते हुए भी देखा,
किन्तु, भाग्य प्रबल है- यही नियम है-सभी वस्तुएँ उद्गम को लौटती हैं,
वहीँ, जहाँ से निकली थीं और नव शक्ति लेकर फिर निकल पडती हैं.
Then start afresh

    From the land of thy birth, where vast cloud-belted
    Snows do bless and put their strength in thee,
    For working wonders new. The heavenly
    River tune thy voice to her own immortal song ;
    Deodar shades give thee eternal peace.
नये सिरे से आरम्भ करो, अपनी जननी-जन्मभूमि से ही,
जहाँ, विशाल मेघराशि से बद्धकटि, हिमशिखर तुममें नव शक्ति का संचार कर 
चमत्कारों की क्षमता देता है, जहाँ स्वर्गिक सरिताओं का स्वर 
तुम्हारे संगीत को अमरत्व प्रदान करता है,
जहाँ देवदारु की शीतल छाया में तुम्हें अपूर्व शान्ति मिलती है.

And all above,

    Himala's daughter Umâ, gentle, pure,
    The Mother that resides in all as Power
    And Life, who works all works and
    Makes of One the world, whose mercy
    Opens the gate to Truth and shows
    The One in All, give thee untiring
    Strength, which is Infinite Love.
 और सर्वोपरी ! जहाँ शैल-बाला उमा, कोमल और पावन- विराजती हैं !
जो देवी, ' सर्वभूते शक्ति रूपेण संस्थिता ' होकर - 
सभी प्राणियों की शक्ति और जीवन हैं,
जो सृष्टि के समस्त क्रिया-कलापों की मूलाधार हैं,
 जिनकी कृपा से सत्य के द्वार खुलते हैं 
और जो अनन्त करुणा और प्रेम की मूर्ति हैं;
जो अजस्र शक्ति की स्रोत हैं
और जिनकी अनुकम्पा से सर्वत्र एक ही सत्ता के दर्शन होते हैं.
They bless thee all,

    The seers great, whom age nor clime
    Can claim their own, the fathers of the
    Race, who felt the heart of Truth the same,
    And bravely taught to man ill-voiced or
    Well. Their servant, thou hast got
    The secret—'tis but One.
तुम्हें उन सबका आशीर्वाद मिला है, 
जो महान द्रष्टा रहे है, जो किसी एक युग अथवा प्रदेश के नहीं रहे हैं, 
जिन्होंने जाति को जन्म दिया,
सत्य की अनुभूति की,
साहस के साथ भले-बुरे सबको ज्ञान दिया.
हे ' उनके ' दासों के दास !
तुमने '  उनके ' एकमात्र रहस्य को पा लिया है.
Then speak, O Love!

    Before thy gentle voice serene, behold how
    Visions melt and fold on fold of dreams
    Departs to void, till Truth and Truth alone
    In all its glory shines—
 तब, हे मेरे प्यारे ! उनकी वाणी में बोलो-
तुम्हारा कोमल और पावन स्वर !
देखो, ये दृश्य कैसे ओझल होते हैं,
ये तह पर तह सपने कैसे उड़ जाते हैं,
और सत्य की महिमामयी आत्मा 
किस प्रकार विकीर्ण होती है !

And tell the world—

    Awake, arise, and dream no more!
    This is the land of dreams, where Karma
    Weaves unthreaded garlands with our thoughts
    Of flowers sweet or noxious, and none
    Has root or stem, being born in naught, which
    The softest breath of Truth drives back to
    Primal nothingness. Be bold, and face
    The Truth! Be one with it! Let visions cease,
    Or, if you cannot, dream but truer dreams,
    Which are Eternal Love and Service Free.
 और संसार से कहो- 
( सपने से ) जागो, उठो,  सपनों में मत खोये रहो !
यह सपनों की धरती है, जहाँ कर्म विचारों की सूत्रहीन मालाएँ गूंथता है,
वे फूल, जो मधुर होते हैं अथवा विषाक्त,
जिनकी न जड़ें हैं, न तने, जो शून्य में उपजते हैं,
जिन्हें सत्य पुनः प्रारम्भिक शून्य में ही विलीन कर देता है.
साहसी बनो और सत्य के दर्शन करो,
छायाभासों को शांत होने दो;
यदि सपने ही देखना चाहो तो-
' शाश्वत-प्रेम ' और ' निष्काम- सेवा ' के ही सपने देखो !


हमलोगों के पास भी  केवल वैसे  ही स्वप्न रहें, जो हमें स्वप्नों के संसार से परे, उच्चतर जागरण, उच्चतर सत्य की धारणा कर सकने की क्षमता प्रदान कर सकते हों.वे सपने हैं - निःस्वार्थ सेवा और सीमाहीन प्रेम के सपने. उन्हीं सपनों में  विभोर रहते हुए  हम सभी लोगों का जीवन मंगलमय हो!     
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( Vivek-Jivan August, 2011 স্বপ্নের কথা  का हिन्दी अनुसंधान अनुवाद            
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