[( 23 अक्टूबर, 1885 ) श्री रामकृष्ण वचनामृत-124]
श्रीरामकृष्ण तथा डा. सरकार
(१)
पूर्वकथा
श्रीरामकृष्ण चिकित्सा के लिए श्यामपुकुरवाले मकान में भक्तों के साथ रहते हैं । आज शरद पूर्णिमा है, शुक्रवार २३ अक्टूबर १८८५ । दिन के दस बजे का समय होगा । श्रीरामकृष्ण मास्टर के साथ बातचीत कर रहे हैं । मास्टर उनके पैरों में मोजा पहना रहे हैं ।
Friday, October 23, 1885, IT WAS THE DAY of the full moon following the Durga Puja, the worship of the Divine Mother. At ten o'clock in the morning Sri Ramakrishna was talking to M., who was helping him with his socks.
ঠাকুর শ্রীরামকৃষ্ণ শ্যামপুকুর বাটীতে চিকিৎসার্থ ভক্তসঙ্গে বাস করিতেছেন। আজ কোজাগর পূর্ণিমা, শুক্রবার (৮ই কার্তিক, ১২৯২)। ২৩শে অক্টোবর, ১৮৮৫, বেলা ১০টা। ঠাকুর মাস্টারের সহিত কথা কহিতেছেন। মাস্টার তাঁহার পায়ে মোজা পরাইয়া দিতেছেন।
श्रीरामकृष्ण (सहास्य) - मफलर को काटकर पैरों में न पहन लिया जाय ? वह खूब गरम है ।
मास्टर हँस रहे हैं ।
MASTER (smiling): "Why can't I cut my woolen scarf into two pieces and wrap them around my legs like socks? They will be nice and warm."
শ্রীরামকৃষ্ণ (সহাস্যে) — কম্ফর্টার্টা কেটে পায় পরলে হয় না? বেশ গরম। [মাস্টার হাসিতেছেন।]
कल बृहस्पतिवार की रात को डाक्टर सरकार के साथ बहुतसी बातें हुई थीं । उनका वर्णन करते हुए श्रीरामकृष्ण हँसकर मास्टर से कह रहे हैं – ‘कल कैसा मैंने तूँऊँ-तूँऊँ कहा !’
M. smiled. The previous evening Sri Ramakrishna had a long conversation with Dr. Sarkar. Referring to it, the Master said laughingly, "I told him the story of the calf, and about egotism being the cause of all suffering."
গতকল্য বৃহস্পতিবার রাত্রে ডাক্তার সরকারের সহিত অনেক কথা হইয়া গিয়াছে। ঠাকুর সে সকল কথা উল্লেখ করিয়া মাস্টারকে হাসিতে হাসিতে বলিতেছেন — “কাল কেমন তুঁহু তুহু বললুম!”
कल श्रीरामकृष्ण ने कहा था, "त्रिताप की ज्वाला में जीव झुलस रहे हैं, फिर भी कहते हैं - 'हम बड़े मजे में हैं ।' हाथ में काँटा चुभ गया है, धर-धर खून बह रहा है, फिर भी कहते हैं, 'हमारे हाथ में कहीं कुछ नहीं हुआ ।' ज्ञानाग्नि में इस काँटे को जलाना होगा ।" इन बातों को याद कर छोटे नरेन्द्र कह रहे हैं - "कल के टेढ़े काँटेवाले की बात बड़ी अच्छी थी । ज्ञानाग्नि में जला देना ।"
The younger Naren reminded Sri Ramakrishna that he, the Master, had told the doctor about people's suffering from the threefold misery of the world and still bragging about their well-being. The disciple said, "That was a very nice thing you said yesterday about the thorn, and also about burning it in the fire of Knowledge."
ঠাকুর কাল বলিয়াছিলেন, — “জীবেরা ত্রিতাপে জ্বলছে, তবু বলে বেশ আছি। বেঁকা কাঁটা দিয়ে হাত কেটে যাচ্ছে। দরদর করে রক্ত পড়ছে — তবু বলে, ‘আমার হাতে কিছু হয় নাই।’ জ্ঞানাগ্নি দিয়ে এই কাঁটা তো পোড়াতে হবে।” ছোট নরেন ওই কথা স্মরণ করিয়া বলিতেছেন — ‘কালকের বাঁকা কাঁটার কথাটি বেশ! জ্ঞানাগ্নিতে জ্বালিয়ে দেওয়া।’
MASTER: "I had direct visions of those things. One day I was passing back of the kuthi when my whole body burst into flames, as it were, like the fire in a homa. Padmalochan once said to me, 'I shall convene an assembly of pundits and proclaim your spiritual experiences before all.' But he died shortly after."
শ্রীরামকৃষ্ণ — আমার সাক্ষাৎ ওই সব অবস্থা হত।“কুঠির পেছন দিয়ে যেতে যেতে — গায়ে যেন হোমাগ্নি জ্বলে গেল!“পদ্মলোচন বলেছিল, ‘তোমার অবস্থা সভা করে লোকদের বলব!’ তারপর কিন্তু তার মৃত্যু হল।”
ग्यारह बजे के लगभग श्रीरामकृष्ण का संवाद लेकर डाक्टर सरकार के यहाँ मणि गये । हाल सुनकर डाक्टर उन्हीं के सम्बन्ध में बातचीत करने लगे और उनका हाल सुनने के लिए उत्सुकता प्रकट करने लगे ।
At eleven o'clock M. went to Dr. Sarkar's house to report Sri Ramakrishna's condition. The doctor showed great eagerness to hear about him.
বেলা এগারটার সময় ঠাকুরের সংবাদ লইয়া ডাক্তার সরকারের বাটীতে মণি আসিয়াছেন।ডাক্তার ঠাকুরের সংবাদ লইয়া তাঁহারই বিষয় কথাবার্তা কহিতেছেন — তাঁহার কথা শুনিতে ঔৎসুক্য প্রকাশ করিতেছেন।
[( 23 अक्टूबर, 1885 ) श्री रामकृष्ण वचनामृत-124]
🔱अहंकार (निराकार) को वशीभूत करने में ज्ञान और भक्ति (साकार) दोनों आवश्यक🙏
डाक्टर (सहास्य) – मैंने कल कैसा कहा, 'तूँऊँ-तूँऊँ’ कहने के लिए धुनिये के हाथ में जाना पड़ता है !
(धुनिया = नेता वरिष्ठ के सानिध्य में 40 साल तक रहना पड़ता है ?)
DOCTOR (laughing): "How well I told him yesterday that in order to be able to say 'Tuhu! Tuhu!', 'Thou! Thou!', one must fail into the hands of an expert carder!"
ডাক্তার (সহাস্যে) — আমি কাল খেমন বললাম, ‘তুঁহু তুঁহু’ বলতে গেলে তেমনি ধুনুরির হাতে পড়তে হয়!
मणि - जी हाँ, उस तरह के गुरु के हाथ में बिना पड़े अहंकार दूर नहीं होता । “कल भक्तिवाली बात कैसी रही । भक्ति स्त्री है, वह अन्तःपुर तक जा सकती है ।”
M: "It is true, sir. One cannot get rid of egotism without the help of a capable teacher. How well he spoke last night of bhakti! Bhakti, like a woman, can go into the inner court."
মণি — আজ্ঞা হাঁ, তেমন গুরুর হাতে না পড়লে অহংকার যায় না।
डाक्टर – हाँ, वह 'बात' (कि भक्ति स्त्री है, वह अन्तःपुर तक जा सकती है) बड़ी अच्छी है । परन्तु इसलिए कहीं ज्ञान थोड़े ही छोड़ दिया जा सकता है!
DOCTOR: "Yes, that is very nice. But still one cannot give up jnana."
“কাল ভক্তির কথা কেমন বললেন! — ভক্তি মেয়েমানুষ, অন্তঃপুর পর্যন্ত যেতে পারে।”
मणि - श्रीरामकृष्णदेव ऐसा करने को कहते भी तो नहीं हैं । वे ज्ञान और भक्ति दोनों लेते हैं, - साकार और निराकार । वे कहते हैं, ‘भक्ति की शीतलता से जल का कुछ अंश बर्फ बना, फिर ज्ञानसूर्य के उगने पर वह बर्फ गल गया, अर्थात् भक्तियोग से साकार और ज्ञानयोग से निराकार ।’
M: "But he does not say that. He accepts both knowledge and love, the Impersonal Truth and the Persona! God. He says that through the cooling influence of bhakti, a part of the Reality takes the solid form of the Personal God; and with the rise of the sun of jnana the ice of form melts again into the formless water of the Absolute. In other words, you realize God with form through bhakti yoga, and the formless Absolute through jnana-yoga.
মণি — পরমহংসদেব তা তো বলেন না। তিনি জ্ঞান-ভক্তি দুই-ই লন — নিরাকার-সাকার। তিনি বলেন, ভক্তি হিমে জলের খানিকটা বরফ হল, আবার জ্ঞানসূর্য উদয় হলে বরফ গলে গেল। অর্থাৎ ভক্তিযোগে সাকার, জ্ঞানযোগে নিরাকার।
[( 23 अक्टूबर, 1885 ) श्री रामकृष्ण वचनामृत-124]
🙏काली कुल की साधना में सिद्ध श्रीरामकृष्ण की अद्भुत पर्यवेक्षण शक्ति एवं उपदेश🙏
"और आपने देखा है, ईश्वर को (माँ काली को) वे इतना समीप देखते हैं कि उनसे बातचीत भी करते हैं । छोटे बच्चे की तरह कहते हैं - 'माँ, दर्द बहुत होता है ।’
"You must have noticed that he sees God so near him that he always converses with Him. When suffering from illness, he says to God, like a small child, 'Oh, Mother, it is hurting me!'
“আর দেখেছেন, ঈশ্বরকে এত কাছে দেখেছেন যে তাঁর সঙ্গে সর্বদা কথা কচ্ছেন। ছোট ছেলেটির মতো বলছেন, ‘মা, বড় লাগছে!’
“और उनका Observation (दर्शन-पर्यवेक्षण) भी कितना अद्भुत है ! म्यूजियम में उन्होंने लकड़ी तथा जानवरों को देखा था जो फॉसिल (पत्थर) हो गये हैं । बस वहीं उन्हें साधु-संग की उपमा मिल गयी । जिस तरह पानी और कीच के पास रहते हुए लकड़ी आदि पत्थर हो गये हैं, उसी तरह साधु के पास रहते हुए आदमी साधु बन जाता है ।”
(प्रमोद दा-अपूर्वा-रजक सीख)
"How wonderful his power of observation is! He saw a fossil in the museum. At once he gave it as an example of the effect of companionship with holy persons. Just as an object is turned into stone by remaining near the stone, so does a man become holy by living with a holy man."
“আর কি অব্জর্ভেশন (দর্শন)! মিউজিয়াম-এ (যাদুঘরে) ফসিল (জানোয়ার পাথর) হয়ে গেছে দেখেছিলেন। অমনি সাধুসঙ্গের উপমা হয়ে গেল! পাথরের কাছে থেকে থেকে পাথর হয়ে গেছে, তেমনি সাধুর কাছে থাকতে থাকতে সাধু হয়ে যায়।”
[( 23 अक्टूबर, 1885 ) श्री रामकृष्ण वचनामृत-124]
🙏Science रूपी अख़बार में अवतार की बात नहीं, तो क्या दशावतार नहीं हुए थे ?🙏
डाक्टर - ईशानबाबू कल अवतार-अवतार कर रहे थे । अवतार कौनसी बला है - आदमी को ईश्वर कहना ?
DOCTOR: "Yesterday Ishan Babu talked of the Incarnation of God. What is that? To call man God!"
ডাক্তার — ঈশানবাবু কাল অবতার অবতার করছিলেন। অবতার আবার কি! — মানুষকে ঈশ্বর বলা!
मणि - उन लोगों का जैसा विश्वास हो, इस पर तर्कवितर्क क्यों ?
M: "Everyone has his own faith. What is the use of interfering with it?"
মণি — ওঁদের যা যা বিশ্বাস, তা আর ইন্টারফিয়ার (তাতে হস্তক্ষেপ) করে কি হবে?
डाक्टर – हाँ, क्या जरूरत ?
DOCTOR: "Yes, what is the use?"
ডাক্তার — হাঁ, কাজ কি!
मणि - और उस बात से कैसा हँसाया उन्होंने ! - एक आदमी ने देखा था कि मकान धँस गया है, परन्तु अखबार में वह बात लिखी नहीं थी, अतएव उस पर विश्वास कैसे किया जाता !
M: "How the Master made us laugh when he told us about a certain man who refused to believe that a house had collapsed because it was not published in the newspaper!"
মণি — আর ও-কথাটিতে কেমন হাসিয়াছেন! — ‘একজন দেখে গেল, একটা বাড়ি পড়ে গেছে কিন্তু খপরের কাগজে ওটি লিখা নাই। অতএব ও-বিশ্বাস করা যাবে না।’
डाक्टर चुप हैं; क्योंकि श्रीरामकृष्ण ने कहा था, 'तुम्हारे Science (विज्ञान) में अवतार की बात नहीं है, अतएव तुम्हारी दृष्टि से अवतार नहीं हो सकता ।'
Doctor Sarkar remained silent. Sri Ramakrishna had said to him, "Your 'science' does not speak of God's Incarnation; therefore you say that God cannot incarnate Himself as man."
ডাক্তার চুপ করিয়া আছেন — কেননা ঠাকুর বলিয়াছিলেন, ‘তোমার সাইয়েন্স-এ অবতারের কথা নাই, অতএব অবতার নাই!’
दोपहर का समय है । डाक्टर मणि को साथ लेकर गाड़ी पर बैठे । दूसरे रोगियों को देखकर अन्त में श्रीरामकृष्ण को देखने जायेंगे ।
It was midday. Doctor Sarkar took M. with him in his carriage. He was going to visit Sri Ramakrishna after seeing his other patients.
বেলা দ্বিপ্রহর হইল। ডাক্তার মণিকে লইয়া গাড়িতে উঠিলেন। অন্যান্য রোগী দেখিয়া অবশেষে ঠাকুর শ্রীরামকৃষ্ণকে দেখিতে যাইবেন।
डाक्टर उस दिन गिरीश का निमन्त्रण पाकर 'बुद्धलीला' अभिनय देखने गये थे । वे गाड़ी में बैठे हुए मणि से कह रहे हैं, ‘बुद्ध को दया का अवतार कहना अच्छा था; -विष्णु का अवतार क्यों कहा ?’
A few days before, at Girish's invitation, Doctor Sarkar had seen his play about Buddha's life. He said to M.: "It would have been better to speak of Buddha as the Incarnation of Compassion. Why did he speak of him as an Incarnation of Vishnu?"
ডাক্তার সেদিন গিরিশের নিমন্ত্রণে ‘বুদ্ধলীলা’ অভিনয় দেখিতে গিয়াছিলেন। তিনি গাড়িতে বসিয়া মণিকে বলিতেছেন, “বুদ্ধকে দয়ার অবতার বললে ভাল হত — বিষ্ণুর অবতার কেন বললে?”
डाक्टर ने मणि को हेदुए (Cornwallis Square) के चौराहे पर उतार दिया ।
The doctor set M. down at the corner of Cornwallis Square.
ডাক্তার মণিকে হেদুয়ার চৌমাথায় নামাইয়া দিলেন।
(२)
[( 23 अक्टूबर, 1885 ) श्री रामकृष्ण वचनामृत-124]
🔱🙏श्रीरामकृष्ण की परमहंस अवस्था🔱🙏
दिन के तीन बजे का समय है । श्रीरामकृष्ण के पास दो-एक भक्त बैठे हुए हैं । बालक की तरह अधीर होकर श्रीरामकृष्ण बार बार पूछ रहे हैं, 'डाक्टर कब आयेगा ? क्या बजा है?' आज सन्ध्या के बाद डाक्टर आनेवाले हैं ।
It was three o'clock in the afternoon. One or two devotees were seated near Sri Ramakrishna. He became impatient, like a child. Repeatedly he asked the devotees, "When is the doctor coming?" "What time is it now?" Doctor Sarkar was expected in the evening.
বেলা ৩টা। ঠাকুরের কাছে ২/১টি ভক্ত বসিয়া আছেন। তিনি ‘ডাক্তার কখন আসিবে’ আর ‘কটা বেজেছে’ বালকের ন্যায় অধৈর্য হইয়া বারবার জিজ্ঞাসা করিতেছেন। ডাক্তার আজ সন্ধ্যার পরে আসিবেন।
एकाएक श्रीरामकृष्ण की बालक जैसी अवस्था हो गयी, - तकिया गोद में लेकर वात्सल्य-रस से भरकर बच्चे को जैसे दूध पिला रहे हों । भावावेश में हैं, बालक की तरह हँस रहे हैं, और एक खास ढंग से धोती पहन रहे हैं ।मणि आदि आश्चर्य में आकर देख रहे हैं ।
Suddenly Sri Ramakrishna was overwhelmed with a strange mood. He placed his pillow on his lap. Filled with maternal love, he began to caress it and hold it to his breast as if it were his child. He was in an ecstatic mood. His face was lighted with a childlike smile. He put on his cloth in a strange manner. The devotees looked at him in amazement.
হঠাৎ ঠাকুরের বালকের ন্যায় অবস্থা হইয়াছে। বালিশ কোলে করিয়া যেন বাৎসল্যরসে আপ্লুত হইয়া ছেলেকে দুধ খাওয়াইতেছেন! ভাবাবিষ্ট বালকের ন্যায় হাসিতেছেন — আর-একরকম করিয়া কাপড় পরিতেছেন! মণি প্রভৃতি অবাক্ হইয়া দেখিতেছেন।
कुछ देर बाद भाव का उपशम हुआ । श्रीरामकृष्ण के भोजन का समय आ गया । उन्होंने थोड़ी सूजी की खीर खायी ।
A little later Sri Ramakrishna was in his normal mood. It was time for his meal. He ate a little boiled farina.
কিয়ৎক্ষণ পরে ভাব উপশম হইল। ঠাকুরের খাবার সময় হইয়াছে, তিনি একটু সুজি খাইলেন।
मणि को एकान्त में बहुत ही गुप्त बातें बतला रहे हैं ।
He was talking to M. about his mystic experiences.
মণির কাছে নিভৃতে অতি গুহ্যকথা বলিতেছেন।
श्रीरामकृष्ण (मणि से, एकान्त में) - अब तक भावावस्था में मैं क्या देख रहा था, जानते हो ? – सिऊड़ के रास्ते में तीन-चार कोस का एक मैदान है, वहाँ मैं अकेला हूँ । बड़ के नीचे मैंने जो १५-१६ साल के लड़के की तरह एक परमहंस देखा था, फिर ठीक उसी तरह देखा ।
MASTER (to M., aside): "Do you know what I saw just now in my ecstatic state? There was a meadow covering an area of seven or eight miles, through which lay the road to Sihore. I was alone in that meadow. I saw a sixteen-year-old Paramahamsa boy exactly like the one I had seen in the Panchavati.
শ্রীরামকৃষ্ণ (মণির প্রতি একান্তে) — এতক্ষণ ভাবাবস্থায় কি দেখছিলাম জান? — তিন-চার ক্রোশ ব্যাপী সিওড়ে যাবার রাস্তার মাঠ। সেই মাঠে আমি একাকী! — সেই যে পনের-ষোল বছরের ছোকরার মতো পরমহংস বটতলায় দেখেছিলাম, আবার ঠিক সেইরকম দেখলাম!
चारों ओर आनन्द का कुहरा-सा छाया है - उसी के भीतर से १३-१४ साल का एक लड़का निकला, केवल उसका मुँह दीख पड़ता था । पूर्ण की तरह का था । हम दोनों ही दिगम्बर ! - फिर आनन्दपूर्वक मैदान में दोनों ही दौड़ने और खेलने लगे ।
"A mist of bliss lay all around. Out of it emerged a boy thirteen or fourteen years old. I saw his face. He looked like Purna. Both of us were naked. Then we began to run around joyfully in the meadow.
“চতুর্দিকে আনন্দের কোয়াসা! — তারই ভিতর থেকে ১৩/১৪ বছরের একটি ছেলে উঠলো মুখটি দেখা যাচ্ছে! পূর্ণর রূপ। দুইজনেই দিগম্বর! — তারপর আনন্দে মাঠে দুইজনে দৌড়াদৌড়ি আর খেলা!
दौड़ने से पूर्ण को प्यास लगी । एक पात्र में उसने पानी पिया, पानी पीकर मुझे देने के लिए आया । मैंने कहा, 'भाई, तेरा जूठा पानी तो मैं न पी सकूँगा ।' तब वह हँसते हुए गिलास धोकर मेरे लिए पानी ले आया ।
Purna felt thirsty. He drank some water from a tumbler and offered me what was left. I said to him, 'Brother, I cannot take your leavings.' Thereupon he laughed, washed the glass, and brought me fresh water."
“দৌড়াদৌড়ি করে পূর্ণর জলতৃষ্ণা পেল। সে একটা পাত্রে করে জল খেলে। জল খেয়ে আমায় দিতে আসে। আমি বললাম, ‘ভাই, তোর এঁটো খেতে পারব না।’ তখন সে হাসতে হাসতে গিয়ে গ্লাসটি ধুয়ে আর-একগ্লাস জল এনে দিলে।”
[( 23 अक्टूबर, 1885 ) श्री रामकृष्ण वचनामृत-124]
🔱🙏भयंकरा 'काल-कामिनी' - माँ काली जो कुछ दिखा रही हैं,
सबकुछ जादू (माया का सम्मोहन) है ! 🔱🙏
[‘ভয়ঙ্করা কালকামিনী’ — দেখাচ্ছেন, সব ভেলকি ]
श्रीरामकृष्ण समाधिमग्न हैं । कुछ देर बाद प्राकृत अवस्था में आकर मणि के साथ बातचीत कर रहे हैं ।
Sri Ramakrishna was again in samadhi. He regained consciousness and began to talk to M.
ঠাকুর আবার সমাধিস্থ। কিয়ৎক্ষণ পরে প্রকৃতিস্থ হইয়া আবার মণির সহিত কথা কহিতেছেন —
[( 23 अक्टूबर, 1885 ) श्री रामकृष्ण वचनामृत-124]
🔱🙏वास्तविक और प्रातिभासिक मनुष्य : माँ सिंहवाहिनी और सिंह-शावक 🔱🙏
(नित्य भी सत्य , लीला भी सत्य ? या बाजीगर (माँ काली) ही सत्य है और सब मिथ्या है ?)
श्रीरामकृष्ण - अवस्था फिर बदल रही है । अब मैं प्रसाद नहीं ले सकता । सत्य और मिथ्या एक हुए जा रहे है ! - फिर क्या देखा, जानते हो ? - ईश्वरी रूप ! भगवती मूर्ति ! - पेट के भीतर बच्चा है - उसे निकालकर फिर निगल रही हैं ! - भीतर बच्चे का जितना अंश जा रहा है, उतना बिलकूल शून्य हुआ जा रहा है । मुझे दिखला रही थीं कि सब शून्य है । “मानो कह रही हैं, देख, तू भानुमती का खेल देख !”
[>>>The Divine Mother. माँ सिंह वाहिनी : एक देवी जिन्होंने अनेक असुरों का वध किया और जो आदि शक्ति मानी जाती हैं: "नवरात्र में लोग जगह-जगह दुर्गा की प्रतिमा स्थापित करते हैं।" जिसने ने सिंह-शावक को जन्म दिया और स्वयं का शरीर त्याग दिया। मानों कह रही हों - 'आबरा का डाबरा। ' ..... ‘खुल जा सिम-सिम’ ‘गिली-गिली छू’ या ‘आबरा-का-डाबरा’ सुनते ही हमें पता चल जाता है कि अब कोई जादू होने वाला है। वैसे तो ये तीनों ही ‘मंत्र’ हाथ की सफाई दिखाते हुए इस्तेमाल किए जाते हैं, लेकिन शुरूआती दो वाक्यांश चीजों को बिना हाथ लगाए खोलने या गायब करने वाला कमाल दिखाने तक ही सीमित हैं। वहीं आबरा-का-डाबरा एक ऐसा मंतर है जिसे दोहराकर कोई भी जादू किया जा सकता है। ]
MASTER: "My mind is undergoing a change. I cannot take Prasad anymore. The Real and the Appearance are becoming one to me. Do you know what I saw just now? A divine form — a vision of the Divine Mother. She had a child in Her womb. She gave birth to it and the next instant began to swallow it, and as much of it as went into Her mouth became void. It was revealed to me that everything is void. The Divine- Mother said to me, as it were: 'Come confusion! Come delusion! Come!'"
“আবার অবস্থা বদলাচ্ছে! — প্রসাদ খাওয়া উঠে গেল! সত্য-মিথ্যা এক হয়ে যাচ্ছে! আবার কি দেখছিলাম জান? ঈশ্বরীয় রূপ! ভগবতী মূর্তি — পেটের ভিতর ছেলে — তাকে বার করে আবার গিলে ফেলছে! — ভিতরে যতটা যাচ্ছে, ততটা শূন্য হয়! আমায় দেখাচ্ছে যে, সব শূন্য! “যেন বলছে, লাগ্! লাগ্! লাগ্ ভেলকি! লাগ!”
मणि श्रीरामकृष्ण की बात सोच रहे हैं, 'बाजीगर ही सत्य है और सब मिथ्या है ।'
This reminded M. of Sri Ramakrishna's saying that the magician alone is real and all else unreal.
“যেন বলছে, লাগ্! লাগ্! লাগ্ ভেলকি! লাগ!”
[( 23 अक्टूबर, 1885 ) श्री रामकृष्ण वचनामृत-124]
🔱🙏सिद्धाई अच्छी नहीं है - निम्न स्तर की विद्या है सिद्धाई 🔱🙏
[সিদ্ধাই ভাল নয় — নিচু ঘরের সিদ্ধাই ]
श्रीरामकृष्ण - उस समय पूर्ण पर मैंने आकर्षण का प्रयोग किया, परन्तु क्यों कुछ न हुआ ? उससे विश्वास घटा जा रहा है ।
MASTER: "Well, how is it that the other time I tried to attract Purna but failed? This weakens my faith a little."
শ্রীরামকৃষ্ণ — আচ্ছা, তখন পূর্ণকে আকর্ষণ কল্লাম, তা হল না কেন? এইতে একটু বিশ্বাস কমে যাচ্ছে!
मणि - ये तो सब सिद्धियाँ हैं ।
M: "But to attract a person is to work a miracle."
মণি — ও-সব তো সিদ্ধাই।
श्रीरामकृष्ण - निरी सिद्धि !
MASTER: "Yes, a downright miracle."
শ্রীরামকৃষ্ণ — ঘোর সিদ্ধাই!
मणि - उस दिन अधर सेन के यहाँ से गाड़ी पर हम लोग आपके साथ जब दक्षिणेश्वर जा रहे थे, तब बोतल फूट गयी थी । एक ने कहा, 'आप बतलाइये, इससे क्या हानि होगी ?' आपने कहा, 'मुझे क्या गरज जो यह सब बतलाऊँ ? - यह सब तो सिद्धि का काम है ।'
M: "You remember, one day we were returning to Dakshineswar in a carriage from Adhar's house, when a bottle broke. One of us said to you: 'Does this mean that any harm will befall us? What do you think?' You said: 'What do I care? Why should I bother about it? That would be miracle-working.'"
মণি — সেই অধর সেনের বাড়ি থেকে গাড়ি করে আপনার সঙ্গে আমরা যখন দক্ষিণেশ্বরে আসছিলাম — বোতল ভেঙে গেল। একজন বললে যে, এতে কি হানি হবে, আপনি একবার দেখুন। আপনি বললেন, দায় পড়েছে, দেখবার জন্য — ও-সব তো সিদ্ধাই!
श्रीरामकृष्ण – हाँ, लोग बीमार बच्चों को जमीन पर लिटा देते हैं और फिर कुछ लोग भगवान का नाम लेकर मन्त्र जपने लगते हैं जिससे वह अच्छा हो जाय । इसी प्रकार लोग अन्य बीमारियाँ भी मन्तर-जन्तर से अच्छी कर देते हैं । ये सब विभूतियाँ हैं । जिनका स्थान बहुत ही निम्न है वे ही लोग रोग अच्छा करने के लिए ईश्वर को पुकारते हैं ।
MASTER: "Yes, people lay ailing children down on the ground where men chant the name of God, in order that they may be cured; or people cure disease through occult powers. All this is miracle-working. Only those whose spiritual experience is extremely shallow call on God for the healing of disease."
শ্রীরামকৃষ্ণ — ওইরকম হরির লুটের ছেলে — রোগ ভাল করা — এ-সব সিদ্ধাই। যারা অতি নিচু ঘর, তারাই ঈশ্বরকে ডাকে রোগ ভালর জন্য।
(३)
[( 23 अक्टूबर, 1885 ) श्री रामकृष्ण वचनामृत-124]
🔱🙏श्रीमुखकथित चरितामृत🔱🙏
शाम हो गयी । श्रीरामकृष्ण चारपाई पर बैठे हुए जगन्माता की चिन्ता करते हुए उनका नाम ले रहे हैं । कई भक्त चुपचाप उनके पास बैठे हुए हैं ।
It was evening. Sri Ramakrishna was seated on his bed, thinking of the Divine Mother and repeating Her hallowed name. The devotees sat near him in silence.
সন্ধ্যা হইল। শ্রীরামকৃষ্ণ শয্যায় বসিয়া মার চিন্তা ও নাম করিতেছেন। ভক্তেরা অনেকে তাঁহার কাছে নিঃশব্দে বসিয়া আছেন।
कमरे में लाटू, शशि, शरद, छोटे नरेन्द्र, पल्टू, भूपति, गिरीश आदि बहुत से भक्त बैठे हुए हैं । गिरीश के साथ स्टार -थिएटर के श्रीयुत रामतारण भी आये हैं - ये गाना गायेंगे । कुछ देर बाद डाक्टर सरकार आये ।
Latu, Sashi, Sarat, the younger Naren, Paltu, Bhupati, Girish, and others were present. Ramtaran of the Star Theatre had come with Girish to entertain Sri Ramakrishna with his singing. A few minutes later Dr. Sarkar arrived.
ঘরে লাটু, শশী, শরৎ, ছোট নরেন, পল্টু, ভূপতি, গিরিশ প্রভৃতি অনেক ভক্তেরা আসিয়াছেন। গিরিশের সঙ্গে স্টার থিয়েটারের শ্রীযুক্ত রামতারণ আসিয়াছেন — গান গাইবেন।কিয়ৎক্ষণ পরে ডাক্তার সরকার আসিয়া উপস্থিত হইলেন।
[( 23 अक्टूबर, 1885 ) श्री रामकृष्ण वचनामृत-124]
🔱🙏अवतार वरिष्ठ /नेता वरिष्ठ (C-IN-C) के प्रति स्नेह ही भक्ति है🔱🙏
डाक्टर (श्रीरामकृष्ण से) - कल रात तीन बजे तुम्हारे लिए मुझे बड़ी चिन्ता हुई थी । पानी बरसने लगा, तब मैंने सोचा, ‘परमात्मा जाने, तुम्हारे कमरे की दरवाजे - खिड़कियाँ खुली हैं या बन्द कर दी गयी हैं ।’
DOCTOR (to the Master): "I was much worried about you last night at three o'clock. It was raining. I said to myself, 'Who knows whether or not the doors and windows of his room are shut?'"
ডাক্তার (শ্রীরামকৃষ্ণের প্রতি) — কাল রাত তিনটার সময় আমি তোমার জন্য বড় ভেবেছিলাম। বৃষ্টি হল, ভাবলুম দোর-টোর খুলে রেখেছে — না কি করেছে, কে জানে!
[( 23 अक्टूबर, 1885 ) श्री रामकृष्ण वचनामृत-124]
🔱🙏जब तक शरीर है, उसको स्वस्थ रखने का प्रयत्न करना चाहिए🔱🙏
डाक्टर का स्नेह (Mindful Meditation- सचेतन ध्यान- thoughtfulness for him) देखकर श्रीरामकृष्ण प्रसन्न हुए । और कहा - "कहते क्या हो ! जब तक देह है, तब तक उसके लिए प्रयत्न करना पड़ता है । "
"Really?" said Sri Ramakrishna. He was much pleased at the doctor's love and thoughtfulness for him. and said - "As long as there is the body, one should take care of it.
শ্রীরামকৃষ্ণ ডাক্তারের স্নেহ দেখিয়া প্রসন্ন হইয়াছেন। আর বলিতেছেন, বল কিগো! “যতক্ষণ দেহটা আছে ততক্ষণ যত্ন করতে হয়।
[( 23 अक्टूबर, 1885 ) श्री रामकृष्ण वचनामृत-124]
🔱🙏कामिनी- कांचन (lust and lucre) से बिल्कुल अनासक्त हो जाने के बाद
> खोपड़ा अलग< गोला अलग यानि आत्मस्वरूप में स्थिति 🔱🙏
देह म्यान है और आत्मा तलवार
the body is the sheath and the soul is the sword
गिरीश (भक्तों के प्रति) - पण्डित शशधर ने इनसे कहा था, 'आप समाधि की अवस्था में शरीर की ओर मन को ले आया करें तो बीमारी अच्छी हो जाय ।' और इन्हें भाव में ऐसा दिखा कि शरीर केवल हाड़-माँस का एक ढेर है ।
GIRISH (to the devotees): "Pundit Shashadhar said to him [meaning the Master]: 'Please bring your mind to bear on the body during samadhi. That will cure your illness.' And he, the Master, saw in a vision that the body was nothing but a loose mass of flesh and bones."
গিরিশ — পণ্ডিত শশধর বলেছিলেন, ‘আপনি সমাধি অবস্থায় দেহের উপর মনটা আনবেন, — তাহলে অসুখ সেরে যাবে। ইনি ভাবে ভাবে দেখলেন যে শরীরটা যেন ধ্যাড় ধ্যাড় করছে।
[( 23 अक्टूबर, 1885 ) श्री रामकृष्ण वचनामृत-124]
🔱🙏मियूजिअम में कंकाल -दर्शन और शारीरिक कष्ट हटाने की प्रार्थना से विरति 🔱🙏
[পূর্বকথা — মিয়জিয়াম দর্শন ও পীড়ার সময় প্রার্থনা ]
श्रीरामकृष्ण - बहुत दिन हुए, मुझे उस समय सख्त बीमारी थी । कालीमन्दिर में मैं बैठा हुआ था । माता के पास प्रार्थना करने की इच्छा हुई । पर ठीक ठीक खुद न कह सका । कहा, ‘माँ, हृदय मुझसे कहता है कि मैं तुम्हारे पास अपनी बीमारी की बात कहूँ ।’ पर और अधिक मैं न कह सका ।
MASTER: "Once, a long time ago, I was very ill. I was sitting in the Kali temple. I felt like praying to the Divine Mother to cure my illness, but couldn't do so directly in my own name. I said to Her, 'Mother, Hriday asks me to tell You about my illness.' I could not proceed any further.
শ্রীরামকৃষ্ণ — অনেকদিন হল, — আমার তখন খুব ব্যামো। কালীঘরে বসে আছি, — মার কাছে প্রার্থনা করতে ইচ্ছা হল! কিন্তু ঠিক আপনি বলতে পাল্লাম না। বললুম, — মা হৃদে বলে তোমার কাছে ব্যামোর কথা বলতে। আর বেশি বলতে পাল্লাম না —
माँ से कहना शुरू करने वाला ही था, कि एसियाटिक सोसायटी के अजायबघर(Asiatic Society's Museum) की याद आ गयी । वहाँ का तारों से बँधा हुआ मनुष्य का अस्थिपंजर आँखों के सामने आ गया । झट मैंने कहा, 'माँ, मैं केवल यही चाहता हूँ कि तुम्हारा नाम-गुण गाता रहूँ । इतने के लिए ही इस शरीर के अस्थिपंजर को तारों से कसे भर रखना, उस अजायबघर के अस्थिपंजर की तरह ।' "सिद्धि (occult powers) की प्रार्थना मुझसे होती ही नहीं ।
At once there flashed into my mind the Museum of the Asiatic Society, and a human skeleton strung together with wire. I said to Her, 'Please tighten the wire of my body like that, so that I may go about singing Your name and glories.' It is impossible for me to ask for occult powers.
বলতে বলতে অমনি দপ্ করে মনে এলো সুসাইট্ (Asiatic Society's Museum) সেখানকার তারে বাঁধা মানুষের হাড়ের দেহ (Skeleton) অমনি বললুম, মা, তোমার নামগুণ করে বেড়াব — দেহটা একটু তার দিয়ে এঁটে দাও, সেখানকার মতো! সিদ্ধাই চাইবার জো নাই!
[( 23 अक्टूबर, 1885 ) श्री रामकृष्ण वचनामृत-124]
🔱🙏सिद्धियाँ- जैसे हवा से मिठाई, अंगूर के गुच्छे, गुलाब मंगवा लेना
विष्ठा के सामान त्याज्य होती हैं 🔱🙏
पहले-पहल हृदय ने कहा था - मैं हृदय के 'अण्डर'(आधीन) था न - 'माँ से कुछ विभूति माँगो ।' मैं कालीमन्दिर में प्रार्थना करने के लिए गया । जाकर देखा एक अधेड़ विधवा, कोई ३०-३५ वर्ष की होगी, तमाम मल से सनी हुई है । तब मुझे यह स्पष्ट हुआ कि सिद्धियाँ इस मल के सदृश ही हैं । तब तो हृदय पर मुझे बड़ा क्रोध आया, - क्यों उसने मुझसे कहा कि मैं सिद्धियों के लिए प्रार्थना करू ?"
"At first Hriday asked me — I was then under his control — to pray to the Mother for powers. I went to the temple. In a vision, I saw a widow thirty or thirty-five years old, covered with filth. It was revealed to me that occult powers are like that filth. I became angry with Hriday because he had asked me to pray for powers."
“প্রথম প্রথম হৃদে বলেছিল, — হৃদের অণ্ডার (under) ছিলাম কি না — ‘মার কাছে একটু ক্ষমতা চেও।’ কালীঘরে ক্ষমতা চাইতে গিয়ে দেখলাম — ত্রিশ-পঁয়ত্রিশ বছরের রাঁড় — কাপড় তুলে ভড়ভড় করে হাগছে। তখন হৃদের উপর রাগ হল — কেন সে সিদ্ধাই চাইতে শিখিয়ে দিলে।”
श्री रामतारण के गीत - ठाकुर देव की मनोदशा
[শ্রীযুক্ত রামতারণের গান — ঠাকুরের ভাবাবস্থা ]
रामतारण का गाना हो रहा है । गिरीश घोष के 'बुद्धदेव' नाटक का एक गीत वे गा रहे हैं ।
गीत -
आमार एई साधेर विणे, यत्ने गाँथा तारेर हार।
जे यत्न जाने , बजाये विणे, उठे सूधा अनिवार।
ताने माने बाँधले डूरी , शत धारे बय माधुरी।
बाजे ना आलगा तारे, टाने छिंड़े कोमल तार।।
(भावार्थ) "मेरी यह वीणा मुझे बड़ी प्रिय है । उसके तार बड़े यत्न से गूँथे हुए हैं । उस वीणा को जो यत्नपूर्वक रखना जानता है वही उसे बजाता है, और तब उससे अनवरत सुधा-धारा बह चलती है । ताल-मान के साथ उसके तारों को कसने पर माधुरी शत धाराओं से होकर प्रवाहित होने लगती है । तारों के ढीले रहने पर वह नहीं बजती, और अधिक खींचने से उसके कोमल तार टूट जाते हैं ।"
Ramtaran began to sing: Behold my vina, my dearly beloved, My lute of sweetest tone; If tenderly you play on it, The strings will waken, at your touch,To rarest melodies. Tune it neither low nor high, And from it in a hundred streams The sweetest sound will flow, But over-slack the strings are mute, And over-stretched they snap in twain.
গান:
আমার এই সাধের বীণে, যত্নে গাঁথা তারের হার ৷
যে যত্ন জানে, বাজায় বীণে, উঠে সুধা অনিবার ॥
তানে মানে বাঁধলে ডুরী, শত ধারে বয় মাধুরী ৷
বাজে না আলগা তারে, টানে ছিঁড়ে কোমল তার ॥
डाक्टर (गिरीश से) - क्या यह सब गान मौलिक है ?
DOCTOR (to Girish): "Is it an original song?"
ডাক্তার (গিরিশের প্রতি) — গান এ-সব কি অরিজিন্যাল (নূতন)?
गिरीश - नहीं, ये एड्विन आर्नल्ड के भाव हैं ।
GIRISH: "No, it is an adaptation from Edwin Arnold."
গিরিশ — না, Edwin Arnold-এর thought (আর্নল্ড সাহেবের ভাব লয়ে গান)।
रामतारण 'बुद्धदेव' नाटक का एक गीत, गा रहे हैं :
जुड़ाइते चाई , कोथाय जुड़ाई,
कोथा हते आसि, कोथा भेसे जाई।
फिरे फिरे आसि, कत काँदि हासि ,
कोथा जाई सदा भावि गो ताई।।
कर हे चेतन, के आछे चेतन ,
"जुड़ाना चाहता हूँ,.... परन्तु कहाँ जुड़ाऊँ ? न जाने कहाँ से आकर कहाँ बहा जा रहा हूँ ! बार बार आता हूँ, न जाने कितना हँसता और कितना रोता हूँ । सदा मुझे यही सोच लगा रहता है कि मैं कहाँ जा रहा हूँ ।... ऐ जागनेवाले, मुझे भी जगा दो ।
कत दिने आर भांगीबे स्वपन ?
के आछे चेतन, घुमायो ना आर ,
दारुण ए -घोर निबिड़ आँधार,
कर तम नाश,हओ हे प्रकाश ,
तोमा बिना आर नाहिको उपाय ,
तव पदे ताई शरण चाई।।
हाय ! कब तक और यह स्वप्न चलता रहेगा ? क्या तुम सचमुच जाग रहे हो, यदि नहीं तो अब अधिक मत सोओ ? ऐ सोनेवाले ! नींद से उठो, और कहीं फिर मत सो जाना । यह घोर निबिड़ अन्धकार बड़ा दारुण है, बड़ा कष्टदायी है । इस अन्धकार का नाश करो, हे प्रकाश ! तुम्हारे बिना और कोई उपाय ही नहीं है - तुम्हारे श्रीचरणों में मैं शरण चाहता हूँ !"
Ramtaran sang from the play, The Life of Buddha: We moan for rest, alas! hut rest can never find; We know not whence we come, nor where we float away. Time and again we tread this round of smiles and tears; In vain we pine to know whither our pathway leads, And why we play this empty play. We sleep, although awake, as if by a spell bewitched; Will darkness never break into the light of dawn? As restless as the wind, life moves unceasingly: We know not who we are, nor whence it is we come; We know not why we come, nor where it is we drift; Sharp woes dart forth on every side. How many drift about, now gay, now drowned in tears! One moment they exist; the next they are no more. We know not why we come, nor what our deeds have been, Nor, in our bygone lives, how well we played our parts; Like water in a stream, we cannot stay at rest; Onward we flow for evermore. Burst Thou our slumber's bars, O Thou that art awake! How long must we remain enmeshed in fruitless dreams? Are you indeed awake? Then do not longer sleep! Thick on you lies the gloom fraught with a million woes. Rise, dreamer, from your dream, and slumber not again! Shine forth, O Shining One, and with Thy shafts of light Slay Thou the blinding dark! Our only Saviour Thou! We seek deliverance at Thy feet.
রামতারণ প্রথমে বুদ্ধরচিত হইতে গান গাহিতেছেন:
জুড়াইতে চাই, কোথায় জুড়াই,
কোথা হতে আসি, কোথা ভেসে যাই।
ফিরে ফিরে আসি, কত কাঁদি হাসি,
কোথা যাই সদা ভাবি গো তাই ॥
কর হে চেতন, কে আছে চেতন,
কত দিনে আর ভাঙিবে স্বপন?
কে আছে চেতন, ঘুমায়ো না আর,
দারুণ এ-ঘোর নিবিড় আঁধার,
কর তম নাশ, হও হে প্রকাশ,
তোমা বিনা আর নাহিক উপায়,
তব পদে তাই শরণ চাই ॥
यह गीत सुनते ही सुनते श्रीरामकृष्ण को भावावेश हो रहा है ।
As Sri Ramakrishna listened to the song he went into samadhi. Ramtaran sang again:
এই গান শুনিতে শুনিতে ঠাকুর ভাবাবিষ্ট হইয়াছেন।
गाना – “सन् सन् सन् चल री आँधी ।”
Blow, storm! Rage and roar! . . .
গান — কোঁ কোঁ কোঁ বহরে ঝড়।
गाने के समाप्त होने पर श्रीरामकृष्ण ने कहा, "यह क्या किया ? खीर खिलाकर फिर नीम की तरकारी ? "इन्होंने ज्योंही गाया ‘करो तमोनाश’ त्योंही मैंने देखा सूर्य ! - उदय होने के साथ ही चारों ओर का अन्धकार दूर हो गया । और उसी के चरणों में सब लोग शरणागत होकर गिर रहे हैं!"
When the song was over, Sri Ramakrishna said to the singer: "What is this? Why this decoction of bitter neem-leaves after the rice pudding? The moment you sang —Shine forth, O Shining One, and with Thy shafts of light Slay Thou the blinding dark! I had a vision of the Sun. As He arose, the darkness vanished, and all men took refuge at His feet."
এই গানটি সমাপ্ত হইলে ঠাকুর বলিতেছেন, “এ কি করলে! পায়েসের পর নিম ঝোল! —“যাই গাইলে — ‘কর তম নাশ’, অমনি দেখলাম সূর্য — উদয় হবা মাত্র চারদিকের অন্ধকার ঘুচে গেল! আর সেই সূর্যের পায়ে সব শরণাগত হয়ে পড়ছে!”
रामतारण फिर गा रहे हैं –
गाना -
दीनतारिणी, दुरितवारिणी, सत्त्वरजस्तम त्रिगुणधारिणी,
सृजनपालन-निधनकारिणी, सगुणा निर्गुणा सर्वस्वरूपिणी। ....
गाना -
धरम करम सकली गेलो, श्यामापूजा बुझी होलो ना !
मन निवारित नारि कोन मते, छि, छि, कि ज्वाला बोलो ना।।
मेरा धर्म और कर्म सब तो चला गया, परन्तु मेरी श्यामापूजा शायद पूरी नहीं हुई ! ....
Ramtaran sang again: O Mother, Saviour of the helpless. Thou the Slayer of sin! In Thee do the three gunas dwell — sattva, rajas, and tamas. Thou dost create the world; Thou dost sustain it and destroy it; Binding Thyself with attributes, Thou yet trandescendest them; For Thou, O Mother, art the All. Kali Thou art, and Tara, and Thou the Ultimate Prakriti; Thou art the Fish, the Turtle, the Boar, and all other Avatars; Earth, water, air, and fire art Thou, and Thou the sky, O Mother of the Absolute! The Samkhya, Patanjala, Mimamsaka, and Nyaya Forever seek to fathom Thee and know Thine inmost nature; Vedanta and Vaiseshika are searching after Thee; But none of them has found Thee out. Though free of limitations, beginningless and without end, Yet for Thy loving bhaktas' sake Thou wearest varying forms. The terrors of this world Thou dost remove, and Thou dost dwell Alike in present, past, and future.Thou dost appear with form, to him who loves Thee as a Person; Thou art the Absolute, to him who worships formless Truth. Some there are who speak alone of the resplendent Brahman; Even this, O Blissful Mother, is nothing else but Thee! Each man, according to his measure, makes his image of the Truth, Calling it the Highest Brahman. Beyond this does Turiya shine, the Indescribable; O Mother of all things, who dost pervade the universe, Every one of these art Thou! Then he sang: Dear friend, my religion and piety have come to an end: No more can I worship Mother Syama; my mind defies control. Oh, shame upon me! Bitter shame! I try to meditate on the Mother with sword in hand, Wearing Her garland of human heads; But it is always the Dark One,(Krishna) wearing His garland of wild wood-flowers And holding the flute to His tempting lips, That shines before my eyes. I think of the Mother with Her three eyes, but alas! I see Him alone with the arching eyes, and I forget all else! Oh, shame upon me! Bitter shame!I try to offer fragrant flowers at the Mother's feet But the ravishing thought of His graceful form unsettles my helpless mind,And all my meditations meant for the Naked One (Syama) are drawn away By the sight of His yellow scarf.
রামতারণ আবার গাইতেছেন:
(১) — দীনতারিণী দূরিতবারিণী, সত্ত্বরজঃতমঃ ত্রিগুণধারিণী,
সৃজন পালন নিধনকারিণী, সগুণা নির্গুণা সর্বস্বরূপিণী।
(২) — ধরম করম সকলি গেল, শ্যামাপূজা বুঝি হল না!
মন নিবারিত নারি কোন মতে, ছি, ছি, কি জ্বালা বল না ॥
यह गीत सुनकर श्रीरामकृष्ण फिर भावाविष्ट हो गये ।
Sri Ramakrishna was in an ecstatic mood as he listened to the song.
এই গান শুনিয়া ঠাকুর আবার ভাবাবিষ্ট হইলেন।
गवैये ने फिर गाया, “ओ माँ, तेरे चरणों में लाल जवा फूल किसने चढ़ाया ?..”
The musician sang again: O Mother, who has offered these red hibiscus flowers at Thy feet? I beg of Thee, O Mother, place one or two upon my head. Then I shall cry aloud to Thee, "Oh, Mother! Mother! "And I shall dance around Thee and clap my hands for joy, And Thou wilt look at me and laugh, and tie the flowers in my hair.
(४)
* संन्यासी तथा गृहस्थ के कर्तव्य*
गाना समाप्त हो गया । भक्तों में बहुतों को भावावेश हो गया है । सब चुपचाप बैठे हैं । छोटे नरेन्द्र ध्यानमग्न हो काठ के पुतले की तरह बैठे हुए हैं ।
The singing was over. Many of the devotees were in a rapturous mood. There was a deep silence in the room. The younger Naren was absorbed in meditation. He sat like a stump.
গান সমাপ্ত হইল। ভক্তেরা অনেকে ভাবাবিষ্ট। নিস্তব্ধ হইয়া বসিয়া আছেন। ছোট নরেন ধ্যানে মগ্ন। কাষ্ঠের ন্যায় বসিয়া আছেন।
श्रीरामकृष्ण - (छोटे नरेन्द्र को दिखाकर, डाक्टर से) - यह बहुत ही शुद्ध है । इसमें विषय-बुद्धि छू भी नहीं गयी । डाक्टर नरेन्द्र को देख रहे हैं । अब भी उनका ध्यान नहीं छूटा ।
Pointing him out to the doctor, Sri Ramakrishna said, "A very pure soul, unstained by the slightest touch of worldliness."
শ্রীরামকৃষ্ণ (ছোট নরেনকে দেখাইয়া, ডাক্তারকে) — এ অতি শুদ্ধ। বিষয়-বুদ্ধির লেশ এতে লাগে নাই। ডাক্তার নরেনকে দেখিতেছেন। এখনও ধ্যানভঙ্গ হয় নাই।
मनोमोहन (डाक्टर से हँसकर) - आपके बच्चे की बात पर ये (श्रीरामकृष्ण) कहते हैं, ‘बच्चा अगर मिल जाय तो मुझे उसके बाप की चाह नहीं है ।’
MANOMOHAN (to the doctor): "He (pointing to the Master) says of your son, 'I don't care for the father if I have the son.'"
মনোমোহন (ডাক্তারের প্রতি, সহাস্যে) — আপনার ছেলের কথায় বলেন, ‘ছেলেকে যদি পাই, বাপকে চাই না।’
डाक्टर - यही तो ! इसीलिए तो कहता हूँ, तुम लोग बच्चे को लेकर भूल जाते हो ! (अर्थात् मनुष्य बच्चे को - ईश्वर के अवतार (श्रीरामकृष्ण) को – लेकर, पिता को - ईश्वर (सच्चिदानन्द) को - भूल जाता है ।)
DOCTOR: "Ah, you see! That is why I say that you forget everything else when you have the 'Son'." (1^A man forgets God the Father, being engrossed in the Son, the Avatar or Incarnation.)
ডাক্তার — অই তো! — তাইতো বলি, তোমরা ছেলে নিয়েই ভোলো! (অর্থাৎ ঈশ্বরকে ছেড়ে অবতার বা ভক্তকে নিয়ে ভোলো।)
श्रीरामकृष्ण (सहास्य) - मैं यह नहीं कहता कि मुझे बाप की कुछ भी चाह नहीं है ।
MASTER (smiling): "I don't say that I do not want the Father."
শ্রীরামকৃষ্ণ (সহাস্যে) — বাপকে চাই না — তা বলছি না।
श्रीरामकृष्ण - तुम्हारा लड़का बड़ा सरल है । शम्भु ने मुँह लाल करके कहा था, 'सरल भाव से उन्हें पुकारने पर वे अवश्य ही सुनेंगे ।' मैं लड़कों को इतना प्यार क्यों करता हूँ, जानते हो ? वे सब निखालस दूध है – थोड़ासा गरम कर लेने से ही श्रीठाकुरजी की सेवा में लगाया जा सकता है। "जिस दूध में पानी मिला रहता है, उसे बड़ी देर तक गरम करना पड़ता है, बहुत लकड़ी खर्च होती है ।
MASTER: "Your boy is quite guileless. One day Sambhu's face became red as he said, 'God will surely listen to a man's prayer if he prays to Him with sincerity.' "Why am I so fond of the boys? They are like unadulterated milk: only a little boiling is needed. Moreover it can be offered to the Deity. But milk adulterated with water needs much boiling. It consumes a large quantity of fuel.
শ্রীরামকৃষ্ণ — তোমার ছেলেটি বেশ সরল। শম্ভু রাঙামুখ করে বলেছিল। ‘সরলভাবে ডাকলে তিনি শুনবেনই শুনবেন।’ ছোকরাদের অত ভালবাসি কেন, জান? ওরা খাঁটি দুধ, একটু ফুটিয়ে নিলেই হয় — ঠাকুর সেবায় চলে।“জোলো দুধ অনেক জ্বাল দিতে হয় — অনেক কাঠ পুড়ে যায়।
"बच्चे सब मानो नयी हण्डियाँ हैं, पात्र अच्छा है, इसलिए निश्चिन्त होकर दूध रखा जा सकता है । उन्हें ज्ञानोपदेश देने पर बहुत शीघ्र चैतन्य होता है । विषयी आदमियों को शीघ्र होश नहीं होता । जिस हण्डी में दही जमाया जा चुका है, उसमें दूध रखते भय होता है कि कहीं दूध नष्ट न हो जाय।
"The boys are like fresh earthen pots, good vessels in which one can keep milk without any worry. Spiritual instruction arouses their inner consciousness without delay. But it is not so with the worldly-minded. One is afraid to keep milk in a pot that has been used for curd. The milk may turn sour.
“ছোকরারা যেন নূতন হাঁড়ি — পাত্র ভাল — দুধ নিশ্চিন্ত হয়ে রাখা যায়। তাদের জ্ঞানোপদেশ দিলে শীঘ্র চৈতন্য হয়। বিষয়ী লোকদের শীঘ্র হয় না। দই পাতা হাঁড়িতে দুধ রাখতে ভয় হয়, পাছে নষ্ট হয়!
"तुम्हारे लड़के में अभी विषय-बुद्धि – कामिनी-कांचन का प्रवेश नहीं हुआ ।"
"Your boy is still free from worldliness, untouched by 'women and gold'."
“তোমার ছেলের ভিতর বিষয়বুদ্ধি — কামিনী-কাঞ্চন — ঢোকে নাই।”
डाक्टर - बाप की कमाई उड़ा रहे है न ! अपने को करना पड़ता तब मैं देखता कि ये अपने को सांसारिकता से कैसे अलग रख सकते थे ।
DOCTOR: "That is because he is living on his father's earnings. I should love to see how free he would keep himself from worldliness if he had to earn his own livelihood."
ডাক্তার — বাপের খাচ্চেন, তাই! —“নিজের করতে হলে দেখতুম, বিষয়বুদ্ধি ঢোকে কি না!”
[ ( 23 अक्टूबर, 1885 ) श्री रामकृष्ण वचनामृत-124]
🔱🙏कामिनी और कांचन का त्याग - संन्यासियों के लिए है, गृहस्थों के लिए नहीं 🔱🙏
[সন্ন্যাসী ও নারীত্যাগ — সন্ন্যাসী ও কাঞ্চনত্যাগ ]
श्रीरामकृष्ण - यह ठीक है । परन्तु बात यह है कि विषय-बुद्धि से वे बहुत दूर हैं, नहीं तो वे मुट्ठी में ही हैं । (सरकार और डाक्टर दोकौड़ी से) कामिनी और कांचन का त्याग आप लोगों के लिए नहीं है । आप लोग मन ही मन त्याग करेंगे । गोस्वामियों से इसलिए मैंने कहा, 'तुम लोग त्याग की बात क्यों कर रहे हो ? - त्याग करने से तुम्हारा काम नहीं - चल सकता - श्यामसुन्दर की सेवा जो है ।'
MASTER: "Yes, yes. That is true. But God is far, far away from the worldly-minded. For those who have renounced the world, He is in the palm of the hand. (To Dr. Sarkar and Dr. Dukari) "But renunciation of 'woman and gold' is not meant for you. You may renounce these mentally. That is why I said to the goswamis: 'Why do you speak of renunciation? That will not do for you. You have to attend the daily worship of Syamasundar.'
শ্রীরামকৃষ্ণ — তা বটে, তা বটে। তবে কি জানো, তিনি বিষয়বুদ্ধি থেকে অনেক দূর, তা না হলে হাতের ভিতর। (সরকার ও ডাক্তার দোকড়ির প্রতি) কামিনী-কাঞ্চনত্যাগ আপনাদের পক্ষে নয়। আপনারা মনে ত্যাগ করবে। গোস্বামীদের তাই বললাম — তোমরা ত্যাগের কথা কেন বলছো? — ত্যাগ করলে তোমাদের চলবে না — শ্যামসুন্দরের সেবা রয়েছে।
[ ( 23 अक्टूबर, 1885 ) श्री रामकृष्ण वचनामृत-124]
🔱🙏स्त्री चाहे लाख भक्त हो उससे अधिक बातचीत नहीं करनी चाहिये🔱🙏
"त्याग संन्यासी के लिए है । उसके लिए स्त्रियों का चित्र भी देखना निषिद्ध है । स्त्री उसके लिए विष की तरह है । कम से कम दस हाथ की दूरी पर रहना चाहिए । अगर बिलकुल न निर्वाह हो तो एक हाथ का अन्तर स्त्रियों से हमेशा रखना चाहिए । स्त्री चाहे लाख भक्त हो, परन्तु उससे अधिक बातचीत नहीं करनी चाहिए । "यहाँ तक कि संन्यासी को ऐसी जगह रहना चाहिए जहाँ स्त्रियाँ बिलकुल नहीं या बहुत कम जाती हों ।
"Total renunciation is for sannyasis. They must not look even at the picture of a woman. To them a woman is poison. They must keep themselves at least ten cubits away from her; and if that is not possible, at least one cubit. And they must not talk much with a woman, no matter how devout she may be. Further, they should choose their dwelling at a place where they will never, or scarcely ever, see the face of a woman.
“সন্ন্যাসীর পক্ষে ত্যাগ। তারা স্ত্রীলোকের চিত্রপট পর্যন্ত দেখবে না। মেয়েমানুষ তাদের পক্ষে বিষবৎ। অন্ততঃ দশহাত অন্তরে, একান্তপক্ষে একহাত অন্তরে থাকবে। হাজার ভক্ত স্ত্রীলোক হলেও তাদের সঙ্গে বেশি আলাপ করবে না। “এমনকি সন্ন্যাসীর এরূপ স্থানে থাকা উচিত, যেখানে স্ত্রিলোকের মুখ দেখা যায় না; — বা অনেক কাল পরে দেখা যায়।
[ ( 23 अक्टूबर, 1885 ) श्री रामकृष्ण वचनामृत-124]
🙏पैसा में आसक्ति से रजोगुण भड़कता है, रजोगुण रहने से ही तमोगुण होता है।🙏
" संन्यासी के लिए तो रुपया भी विषवत् है । रुपये के पास रहने से ही चिन्ताएँ, अहंकार, देह-सुख की चेष्टा, क्रोध आदि सब आ जाते हैं । रजोगुण की वृद्धि होती है । और रजोगुण के रहने से ही तमोगुण होता है । इसलिए संन्यासी कांचन का स्पर्श नहीं करते । कामिनी-कांचन ईश्वर को भुला देते हैं ।
"Money, too, is like poison to a sannyasi. If he keeps money with him, he has worries, pride, anger, and the desire for physical comforts. Money inflames his rajas, which brings Tamas on its train. Therefore a sannyasi must not touch 'gold'. 'Woman and gold' makes him forget God.
“টাকাও সন্ন্যাসীর পক্ষে বিষ। টাকা কাছে থাকলেই ভাবনা, অহংকার, দেহের সুখের চেষ্টা, ক্রোধ, — এই সব এসে পড়ে। রজোগুণ বৃদ্ধি করে। আবার রজোগুণ থাকলেই তমোগুণ। তাই সন্ন্যাসী কাঞ্চন স্পর্শ করে না। কামিনী-কাঞ্চন ঈশ্বরকে ভুলিয়ে দেয়।”
[ ( 23 अक्टूबर, 1885 ) श्री रामकृष्ण वचनामृत-124]
🔱🙏साईं इतना चाहिये जामें कुटुम्ब समाय, आसक्ति रहने से ऐषणाएँ होंगी 🔱🙏
"तुम्हें यह समझना चाहिए कि रुपये से दाल-रोटी मिलती है, पहनने के लिए वस्त्र मिलता है, रहने की जगह (अटैच बाथरूम के साथ साफसुथरा रूम) मिलती है, श्रीठाकुरजी की सेवा होती है और साधुओं तथा भक्तों की सेवा होती है ।
"For householders money is a means of getting food, clothes, and a dwelling-place , worshipping the Deity, and serving holy men and devotees.
“তোমরা জানবে যে, টাকাতে ডাল-ভাত হয়, পরবার কাপড়, — থাকবার একটি স্থান হয়, ঠাকুরের সেবা — সাধু-ভক্তের সেবা হয়।
"धन संचय की चेष्टा मिथ्या है । मधुमक्खी बड़े कष्ट से छत्ता तैयार करती है, और कोई दूसरा आकर उसे तोड़ ले जाता है ।"
"It is useless to try to hoard money. With great labor, the bees build a hive, but a man breaks it and takes the honey away."
“জমাবার চেষ্টা মিথ্যা। অনেক কষ্টে মৌমাছি চাক তৈয়ার করে — আর-একজন এসে ভেঙে নিয়ে যায়।”
डाक्टर - लोग रुपये इकट्ठा करते हैं । किसके लिए ? एक बदमाश बच्चे के लिए ।
DOCTOR: "Whom shall we hoard for? — For a wicked son, perhaps."
ডাক্তার — জমাচ্ছেন কার জন্য? — না একটা বদ ছেলের জন্য!
श्रीरामकृष्ण - लड़का ही आवारा निकला या बीबी किसी दूसरे के साथ फँस गयी – शायद तुम्हारी ही घड़ी और चेन अपने यार को लगाने के लिए दे दे !
MASTER: "It is not a wicked son alone. Perhaps the wife is unchaste. She may have a secret lover. Perhaps she will give him your watch and chain!
শ্রীরামকৃষ্ণ — বদ ছেলে! — পরিবারটা হয়তোও নষ্ট — উপপতি করে। তোমারই ঘড়ি, তোমারই চেন তাকে দেবে!
"परन्तु स्त्री का बिलकुल त्याग करना तुम्हारे लिए नहीं है । अपनी पत्नी से उपभोग करने में दोष नहीं है; परन्तु लड़के बच्चे हो जाने पर भाई-बहन की तरह रहना चाहिए ।
"You should not renounce woman completely. It is not harmful for a householder to live with his wife. But after the birth of one or two children, husband and wife should live as brother and sister.
“তোমাদের পক্ষে স্ত্রীলোক একেবারে ত্যাগ নয়। স্ব-দারায় গমন দোষের নয়। তবে ছেলেপুলে হয়ে গেলে, ভাই-ভগ্নীর মতো থাকতে হয়।
“कामिनी और कांचन (प्रकृति -तीन गुण या तीनों ऎषणाओं) में आसक्ति के रहने पर विद्या का अहंकार, धन का अहंकार, उच्च पद का अहंकार - यह सब होता है ।”
"It is attachment to 'woman and gold' that begets pride of learning, pride of money, and pride of social position.
“কামিনী-কাঞ্চনে আসক্তি থাকলেই বিদ্যার অহংকার, টাকার অহংকার, উচ্চপদের অহংকার — এই সব হয়।”
(५)
[ ( 23 अक्टूबर, 1885 ) श्री रामकृष्ण वचनामृत-124]
🔱🙏डॉक्टर सरकार को उपदेश अहंकार अच्छा नहीं,
किन्तु विद्या का 'मैं', भक्त का दास 'मैं' अच्छा है-
क्योंकि तभी शंकराचार्य, रामानुजाचार्य आदि जैसे (पैगम्बर, जीवनमुक्त शिक्षक) नेता
द्वारा लोकशिक्षा (Lecture) होती है। 🔱🙏
But the 'I' of Vidya, the slave 'I' is good -
because only then public education (lecture) takes place.
ডাক্তার সরকারকে উপদেশ — অহংকার ভাল নয়
বিদ্যার আমি ভাল — তবে লোকশিক্ষা (Lecture) হয়
श्रीरामकृष्ण - अहंकार के बिना गये ज्ञानलाभ (Enlightenment) नहीं होता । ऊँचे टीले पर पानी नहीं रुकता । नीची जमीन में ही चारों ओर का पानी सिमटकर भर जाता है ।
Sri Ramakrishna — "One cannot attain divine knowledge till one gets rid of ego/pride. Water does not stay on the top of a mound, but flows into low land in torrents from all sides."
শ্রীরামকৃষ্ণ — অহংকার না গেলে জ্ঞানলাভ করা যায় না। উঁচু ঢিপিতে জল জমে না। খাল জমিতে চারিদিককার জল হুড়হুড় করে আসে।
डाक्टर - परन्तु नीची जमीन में जो चारों ओर का पानी आता है, उसके भीतर अच्छा पानी भी रहता है और दूषित भी । पहाड़ के ऊपर भी नीची जमीन है । नैनीताल, मानसरोवर ऐसे स्थान हैं जहाँ आकाश का ही शुद्ध पानी रहता है ।
DOCTOR: "But the water that flows into the lowland from all sides contains good water and bad water, muddy water and ditch water. Again, there are hollows on mountaintops as well, as at Nainital and Manasoravar. These contain only pure water from the sky."
ডাক্তার — কিন্তু খাল জমিতে যে চারিদিকের জল আসে, তার ভিতর ভাল জলও আছে, খারাপ জলও আছে, — ঘোলো জল, হেগো জল, এ-সবও আছে। পাহাড়ের উপরও খাল জমি আছে। নৈনিতাল, মানস সরোবর — যেখানে কেবল আকাশের শুদ্ধ জল।
श्रीरामकृष्ण - आकाश का ही शुद्ध पानी - यह बहुत अच्छा है !
MASTER: "Only pure water from the sky — that is good!"
শ্রীরামকৃষ্ণ — কেবল আকাশের জল, — বেশ।
डाक्टर - इसके आलावा ऊँचे स्थान से पानी चारों ओर वितरित भी किया जा सकता है ।
DOCTOR: "Further, from an elevated place the water can be distributed on all sides."
ডাক্তার — আর উঁচু জায়গার জল চারিদিকে দিতে পারবে।
श्रीरामकृष्ण (सहास्य) - एक व्यक्ति ने (श्री रामानुजाचार्य स्वामी ? अपने गुरु से )सिद्ध मन्त्र पाया था । उसने पहाड़ पर खड़े होकर चिल्लाते हुए कह दिया – ‘तुम लोग इस मन्त्र को जपकर ईश्वर-लाभ कर सकोगे ।’
[^ एक पवित्र शब्द - 'श्री रामोकृष्णो ' या 'Be and Make' ? दिया था जिसे जपने से व्यक्ति को पूर्णता प्राप्त होती है। गुरु ने दूसरे को बताने से मना किया था।]
MASTER (smiling): "A certain man came to possess a Siddha mantra.2 He then went to the top of a hill and cried aloud. 'Repeat this mantra and you will realize God.'"
শ্রীরামকৃষ্ণ (সহাস্যে) — একজন সিদ্ধমন্ত্র পেয়েছিল। সে পাহাড়ের উপর দাঁড়িয়ে চিৎকার করে বলে দিলে — তোমরা এই মন্ত্র জপে ঈশ্বরকে লাভ করবে।
डाक्टर – हाँ ।/DOCTOR: "Yes."
श्रीरामकृष्ण - परन्तु एक बात है, जब ईश्वर के लिए प्राण विकल होते हैं, तब यह विचार नहीं रहता कि यह पानी अच्छा है और यह बुरा । तब उन्हें जानने के लिए कभी भले आदमी के पास जाया जाता है, कभी बुरे आदमी के पास । उनकी कृपा होने पर गँदले पानी से कोई नुकसान नहीं होता। जब वे ज्ञान देते हैं, तब यह सुझा देते हैं कि कौन अच्छा है और कौन बुरा ।
MASTER: "But you must remember one thing. When his soul feels restless for God, a man forgets the difference between good water and ditch water. In order to know God, he sometimes goes to good men, sometimes to imperfect men. Dirty water cannot injure an aspirant if God's grace descends on him. When God grants him Knowledge, He reveals to the aspirant what is good and what is bad.
শ্রীরামকৃষ্ণ — তবে একটি কথা আছে, যখন ঈশ্বরের জন্য প্রাণ ব্যাকুল হয়, ভাল জল — হেগো জল — এ-সব হিসাব থাকে না। তাঁকে জানবার জন্য কখন ভাল লোকের কাছেও যায় কাঁচা লোকের কাছেও যায়। কিন্তু তাঁর কৃপা হলে ময়লা জলে কিছু হানি করে না। যখন তিনি জ্ঞান দেন, কোন্টা ভাল কোন্টা মন্দ, সব জানিয়ে দেন।
"पहाड़ के ऊपर नीची जमीन रह सकती है, परन्तु वैसी जमीन बदजात 'मैं' (the hill of the 'wicked ego')- रूपी पहाड़पर नहीं रहती । विद्या का 'मैं' ('ego of Knowledge'), भक्त का 'मैं' (ego of bhakti) यदि हो, तभी आकाश का शुद्ध पानी आकर जमता है ।
"There may be hollows on the top of a hill, but they cannot exist on the hill of the 'wicked ego'. Only if it is an 'ego of Knowledge' or an 'ego of bhakti', does the pure water from the sky collect there.
“পাহাড়ের উপর খাল জমি থাকতে পারে, কিন্তু বজ্জাৎ-আমি-রূপ পাহাড়ে থাকে না। বিদ্যার আমি, ভক্তের আমি, যদি হয়, তবেই আকাশের শুদ্ধ জল এসে জমে।
“ऊँची जगह का पानी चारों ओर काम में लगाया जा सकता है, यह ठीक है । परन्तु यह काम विद्या के 'मैं' - रूपी पहाड़ से ही सम्भव है ।
"It is true that the water from a hill-top may flow in all directions, but that is possible only from the hill of the 'ego of Knowledge'.
উঁচু জায়গার জল চারিদিকে দিতে পারা যায় বটে। সে বিদ্যার আমি রূপ পাহাড় থেকে হতে পারে।
"उनके आदेश (चपरास ?) के बिना लोक-शिक्षा नहीं होती । शंकराचार्य ने मानवजाति को शिक्षा के लिए ज्ञान प्राप्त करने के बाद विद्या का 'मैं' रखा था (अर्थात ज्ञान का अहंकार बनाये रखा था)। लेकिन उन्हें प्राप्त किये बिना ही कोई (कच्चा मैं?) लेक्चर देने लगे ! तो इससे आदमियों का क्या उपकार होगा?
"One cannot teach men without the command of God. After attaining Knowledge, Sankaracharya retained the ego of Knowledge' in order to teach mankind. But to lecture without realizing God! What good will that do?
“তাঁর আদেশ না হলে লোকশিক্ষা হয় না। শঙ্করাচার্য জ্ঞানের পর ‘বিদ্যার আমি’ রেখেছিলেন — লোকশিক্ষার জন্য। তাঁকে লাভ না করে লেকচার! তাতে লোকের কি উপকার হবে?”
[ ( 23 अक्टूबर, 1885 ) श्री रामकृष्ण वचनामृत-124]
नंदन बागान के ब्रह्मसमाज में समाध्यायी का lecture
[সামাধ্যায়ীর লেকচার — নন্দনবাগান সমাজ দর্শন ]
🔱🙏जिन्हें ईश्वर का दर्शन हो गया उनको लिखकर भाषण नहीं देना पड़ता🔱🙏
"मैं नन्दनबाग के ब्राह्मसमाज में गया था । उपासना आदि के बाद उनके प्रचारक ने एक वेदी पर (raised platform-व्यासपीठ पर) बैठकर लेक्चर दिया । उन्होंने वह लेक्चर घर पर तैयार किया था । लेक्चर वे पढ़ते जाते थे और चारों ओर देखते भी जाते थे । ध्यान करते समय वे कभी कभी आँखें खोलकर लोगों को देखते जाते थे !
"I went to the Nandanbagan Brahmo Samaj. After the worship, the preacher gave a lecture from the raised platform. He had written it at home. As he read from the manuscript he looked around. While meditating he opened his eyes from time to time to look at people.
“নন্দনবাগান ব্রাহ্মসমাজে গিছলাম। তাদের উপাসনার পর বেদীতে বসে লেকচার দিলে। — লিখে এনেছে। — পড়বার সময় আবার চারদিকে চায়। — ধ্যান কচ্ছে, তা এক-একবার আবার চায়!
"जिसने ईश्वर के दर्शन नहीं किये, उसका उपदेश असर नहीं करता । एक बात अगर ठीक हुई, तो दूसरी बेसिर-पैर की निकल जाती है।
"The instruction of a man who has not seen God does not produce the right effect. He may say one thing rightly, but he becomes confused about the next.
“যে ঈশ্বরদর্শন করে নাই, তার উপদেশ ঠিক ঠিক হয় না। একটা কথা ঠিক হল, তো আর-একটা গোলমেলে হয় যায়।
"सामाध्यायी ने लेक्चर दिया । कहा, 'ईश्वर वाणी और मन से परे हैं । उनमें कोई रस नहीं है - तुम लोग अपने प्रेम और भक्तिरस से उनकी अर्चना किया करो ।’ देखो, जो रसस्वरूप हैं, आनन्द-स्वरूप हैं, उनके लिए ऐसी बातें कही जा रही थीं । इस तरह के लेक्चर से क्या होगा ? इसमें क्या कभी लोक-शिक्षा होती है ? एक आदमी ने कहा था ‘मेरे मामा के यहाँ गोशाले भर घोड़े हैं ।’ गोशाले में घोड़ा ! (सब हँसते हैं) इससे समझना चाहिए कि घोड़ा-वोड़ा कहीं कुछ भी नहीं है !"
"Samadhyayi delivered a lecture. He said: 'God is beyond words and mind; He is dry. Worship Him through the bliss of your love and devotion.' Just see, he thus described God, whose very nature is Joy and Bliss! (Cosmic Bliss) What will such a lecture accomplish? Can it teach people anything? Such a lecturer is like the man who said, 'My uncle's cow shed is full of horses.' Horses in the cow shed! (All laugh.) From that, you can understand that there were no horses at all."
“সামাধ্যায়ী লেকচার দিলে। বলে, — ঈশ্বর বাক্য মনের অতীত — তাঁতে কোন রস নাই — তোমরা প্রেমভক্তিরূপ রস দিয়ে তঁর ভজনা কর। দেখো যিনি রসস্বরূপ, আনন্দস্বরূপ, তাঁকে এইরূপ বলছে। এ-লেকচারে কি হবে? এতে কি লোকশিক্ষা হয়?
डाक्टर (सहास्य) – गौएँ भी न होंगी ! (सब हँसते हैं)/DOCTOR (smiling): "Nor cows either!" (All laugh.)
[(23 अक्टूबर,1885) श्री रामकृष्ण वचनामृत-124]
🙏अवतार वरिष्ठ ठाकुर देव की जन्मपत्री के अनुसार शिक्षित समाज शिष्य उनका था🙏
जिन भक्तों को भावावेश हो गया था, उनकी प्राकृत अवस्था हो गयी है । भक्तों को देखकर डाक्टर आनन्द कर रहे हैं । डाक्टर मास्टर से भक्तों का परिचय पूछ रहे हैं । पल्टू, छोटे नरेन्द्र, भूपति, शरद, शशी आदि लड़कों का, एक एक करके, मास्टर ने परिचय दिया । श्रीयुत शशी के सम्बन्ध में मास्टर ने कहा, 'ये बी. ए. की परीक्षा देंगे ।' डाक्टर कुछ अन्यमनस्क (inattentive) हो रहे थे ।
[^ श्री रामकृष्ण के प्रथम दर्शन शशि महाराज ने 1884 ई० में ही किये थे ।]
In the meantime, the devotees who had been in a rapturous state had regained their normal mood. The doctor was highly pleased with them and asked M. about them. M. introduced to him Paltu, the younger; Naren, Bhupati, Sarat, Sashi, and the other youngsters. About Sashi, M. said, "He is going to appear for the B. A. examination." The doctor was a little inattentive.
ভক্তদের মধ্যে যাহারা ভাবাবিষ্ট হইয়াছিলেন, সকলে প্রকৃতিস্থ হইয়াছেন। ভক্তদের দেখিয়া ডাক্তার আনন্দ করিতেছেন। মাস্টারকে জিজ্ঞাসা করিতেছেন, ‘ইনি কে’ ‘ইনি কে’। পল্টু, ছোট নরেন, ভূপতি, শরৎ, শশী প্রভৃতি ছোকরা ভক্তদিগকে মাস্টার এক-একটি করিয়া দেখাইয়া ডাক্তারের কাছে পরিচয় দিতেছেন।শ্রীযুক্ত শশী১ সম্বন্ধে মাস্টার বলিতেছেন — “ইনি বি. এ. পরীক্ষা দিবেন।”ডাক্তার একটু অন্যমনস্ক হইয়াছিলেন।
श्रीरामकृष्ण (डाक्टर से) - देखो जी, ये क्या कह रहे हैं । डाक्टर ने शशी का परिचय सुना ।
MASTER (to the doctor): "Look here! Listen to what he is saying." The doctor heard from M. about Sashi.
শ্রীরামকৃষ্ণ (ডাক্তারের প্রতি) — দেখো গো! ইনি কি বলছেন।
श्रीरामकृष्ण (मास्टर को बताकर, डाक्टर से) - ये स्कूल के लड़कों को उपदेश देते हैं ।
MASTER (to the doctor, pointing to M.): "He instructs the school-boys."
डाक्टर - यह मैंने सुना है ।/DOCTOR: "So I have heard."
[(23 अक्टूबर,1885) श्री रामकृष्ण वचनामृत-124]
🔱🙏ठाकुरदेव के मुख से अवतार होने का प्रमाण 🔱🙏
[डॉक्टर, गिरीश घोष आदि सभी भक्तों का एक ही अनुभव]
हार्टेर (हृदयेर) कथा हार्टई (ह्रदयई) जाने
श्रीरामकृष्ण - कितने आश्चर्य की बात है ! मैं मूर्ख (unlettered ) हूँ, फिर भी पढ़े-लिखे लोग यहाँ आते हैं । यह कितने आश्चर्य की बात है ! इससे तो मानना पड़ता है कि यह ईश्वर की लीला है।
MASTER: "I am unlettered and yet educated people come here. How amazing! You must admit that it is the play of God."
শ্রীরামকৃষ্ণ — কি আশ্চর্য, আমি মূর্খ! — তবু লেখাপড়াওয়ালারা এখানে আসে, এ কি আশ্চর্য! এতে তো বলতে হবে ঈশ্বরের খেলা!
आज शरद पूर्णिमा (कोजागर पूर्णिमा) है । रात के नौ बजे का समय होगा । डाक्टर छः बजे से बैठे हुए ये सब बातें सुन रहे हैं ।
It was nine o'clock in the evening. The doctor had been sitting there since six o'clock, watching all these things.
আজ কোজাগর পূর্ণিমা। রাত প্রায় নয়টা হইবে। ডাক্তার ছয়টা হইতে বসিয়া আছেন ও এই সকল ব্যাপার দেখিতেছেন।
गिरीश - (डाक्टर से) - अच्छा महाशय, आपको ऐसा कभी होता है कि यहाँ आने की इच्छा न होते हुए भी मानो कोई शक्ति खींचकर यहाँ ले आती हो ? मुझे तो ऐसा होता है और इसीलिए आपसे भी पूछ रहा हूँ ।
GIRISH (to the doctor): "Well, sir, does it ever happen to you that, though you do not intend to come here, you are drawn as if by a subtle force? I feel that way; that is why I am asking you."
গিরিশ (ডাক্তারের প্রতি) — আচ্ছা, মশায় এরকম কি আপনার হয়? — এখানে আসব না আসব না করছি, — যেন কে টেনে আনে — আমার নাকি হয়েছে, তাই বলছি।
डाक्टर - पता नहीं, परन्तु हृदय की बात हृदय ही जानता है । (श्रीरामकृष्ण से) और बात यह है कि यह सब कहने में लाभ ही क्या है ?
DOCTOR: "I don't know whether I feel that. But the heart alone knows the promptings of the heart. (To Sri Ramakrishna) Besides, there isn't much use in speaking about it."
ডাক্তার — তা এমন বোধ হয় না। তবে হার্ট-এর (হৃদয়ের) কথা হার্টই (হৃদয়ই) জানে। (শ্রীরামকৃষ্ণের প্রতি) আর এ-সব বলাও কিছু নয়।
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🔱🙏शक्ति साधना के दो कुल🔱🙏
भारतवर्ष में शक्ति साधना के दो कुल हैं। एक है काली कुल , जो बंगाल , आसाम आदि अंचल में प्रचलित है। और दूसरा है श्री कुल जो दक्षिण भारत में प्रचलित है। श्रीकुल की मान्यता है कि काली कुल की साधना में सिद्ध हुए बिना श्रीकुल साधना की योग्यता प्राप्त नहीं होती। और ठाकुर श्री रामकृष्ण देव के क्षेत्र में देखा जाता है कि, वे तो तूफान में टूटे हुए पेड़ के पत्ते के समान उनकी जगन्माता की इच्छानुसार ही समूची साधना कर रहे हैं। और जिस समय वे सचेतन भाव से साधना नहीं भी कर रहे हों तो जगत जननी उनको सबकुछ जुगाड़ कर दे रही हैं। जिस प्रकार साधना के उपकरण (बांस, रस्सी, कतार) का जुगाड़ कर दे रही हैं , उसी प्रकार विभिन्न प्रकार की साधना के लिए विभिन्न गुरु लोगों का भी जुगाड़ कर दे रही हैं। इसलिए यह देखा जाता है कि ठाकुर देव की साधना का प्रारम्भ शक्ति की साधना से हुआ है। माँ काली की साधना से शुरू।
माँ तारा भगवान शिवशंकर की भी माता हैं । तो तारा माँ की शक्ति का अंदाजा लगाइये। जब देव और दानव समुद्र-मंथन कर रहे थे तो उससे हलाहल विष निकला था, उस हलाहल से विश्व को बचाने के लिये शिव शंकर सामने आये उन्होंने उस विष का पान कर लिया। लेकिन गड़बड़ यह हुई के उनके शरीर का दाह रुकने का नाम नही ले रहा था। इसलिये माँ दूर्गा ने तारा माँ का रूप लिया और भगवान शिवजी ने शावक (सिंह -शावक) का रूप लिया। फिर माँ तारा देवी उन्हे स्तन से लगाकार उन्हे स्तनों का दूध पिलाने लगी। उस वात्सल्य पूर्ण स्तनपान से शिवजी का दाह कम हुआ। लेकिन माँ तारा के शरीर पर हलाहल का असर हुआ जिसके कारण वह नीले वर्ण की हो गयी। जिस माँ तारा ने शिवजी को स्तनपान कराया है, वो अगर हमारी भी वात्सल्यसिंधू बन जायेगी तो हमारा जीवन धन्य हो जायेगा। तारा माता भी मा काली जैसे सिर्फ कमर को हाथों की माला पहनती है। उसके गले मे भी खोपड़ियों की मुण्ड- माला है।
माँ काली आदि शक्ती का पहला रूप है। माँ काली का मतलब “कालिका” यानी समय कालिका (time clock)। इन्हें समय का साकार रूप माना जाता है। समय जो सबसे बलवान होता है। यह देवी हर प्रकार के बुराई का (सर्वोपरि मिथ्या अहंकार का ?) सर्वनाश करती है इसलिये उग्र रुप धारिणी है। माँ काली का ताण्डव शिवजी के ताण्डव से भी भयावह था। इसलिये उनकी ऊर्जा से कहीं सम्पूर्ण भूलोक ही नष्ट ना हो जाय, इसलिये शिवजी भूलोक और काली माँ के पैरो के बीच मे लेटकर उनके इस विनाशक शक्ती को खुद झेलते हुये दिखाई देते हैं। और हमे लगाता है, यह माँ काली तो शिवजी के उपर नाच रही है।
रक्तबीज नामक राक्षस को भी मारने के लिये माँ काली (जो कि माँ दुर्गा का ही रूप है) की योजना हुई थी। माँ काली का सबसे पोप्युलर तस्वीर रक्तबीज का संहार करने के युद्ध के दरमियान की है। देवि काली माँ बीमारी को नष्ट करती है। दुष्ट आत्मा के प्रभाव से हमे मुक्त करती है दुष्ट ग्रह स्थिती से हमे बचाती है। अकाल मृत्यु से बचाने की ताकत अगर किसी मे है तो वो स्वयम माँ काली (माँ सारदा देवी) मे है। क्योंकि माँ काली से स्वयम मृत्यु के देवता यमराज भी डरते हैं। माँ काली (माँ सारदा) के प्रसन्न होने से वाक- सिद्धि यानी हम जो बोलेंगे वो ही सत्य हो जाता है। इसलिये माँ काली कि शक्ति को विधिवत प्राप्त करे।
ता थैय्या ता थैय्या नाचे भोला, बं बबं बम बाजे गाल।
डिमि डिमि डमरू बाजे, डिमि डिमि डिमि डमरु बाजे,
डोले कपाल-माल ॥
गरजे गंगा जटा माझे, उगले अनल त्रिशूल राजे।
धक धक धक् मौली बन्ध,
धक धक धक् मौली बन्ध,
ज्वले शशांक भाल।।
.....ता थैय्या ता थैय्या नाचे भोला,
(https://hindi.speakingtree.in/blog//दस-महाविद्या-दस-महाविद्या-की-साधना-उपासना)
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