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Tuesday, June 24, 2025

" प्रश्नोत्तर रत्नमालिका"- (श्रीमद् आद्य शङ्कराचार्य कृत)

 प्रश्नोत्तर रत्नमालिका

      श्रीमद् आद्य शंकराचार्यजी की रचना है जिसमें १८१ प्रश्नोत्तर सहित ६७ श्लोक है। उसमें भी प्रथम और अंतिम श्लोक की रचना उनके शिष्यों की है । प्रश्नोत्तर के रूपमें यह रचना हमारे जीवन एवं वैदिक धर्म के सनातन मूल्यों (महावाक्य आदि) को प्रस्तुत करती है, जो देश, काल एवं परिस्थिति से परे है । जीवन के कठिन मार्ग पर चलते हुए ये सभी सिद्धांत हमें सही पथ दिखाते हुए हमारा जीवन उन्नत करते हैं ।
॥1॥
कः खलु नालङ्क्रियते दृष्टादृष्टार्थसाधनपटीयान् ।
अमुया कण्ठस्थितया प्रश्नोत्तररत्नमालिकया ॥ १॥

जीवन के दृश्य एवं अदृश्य ध्येय को पाने के लिए आवश्यक ऐसी यह 

प्रश्नोत्तर रत्न मालिका को पहन के (याद कर के) कौन खुद को अलंकृत 

नहीं करना चाहेगा?

॥ 2 ॥ 1, 2, 3 ॥

भगवन् किमुपादेयं गुरुवचनं हेयमपि किमकार्यम् ।
को गुरुः अधिगततत्त्वः शिष्यहितायोद्यतः सततम् ॥ २॥

भगवन् किमुपादेयं ? - गुरु वचनम् ! 

हेयमपि किम् ?  - अकार्यम्। 

को गुरुः ? 

      - अधिगततत्त्वः शिष्यहितायोद्यतः सततम् । 
 
क्या स्वीकार्य है? --गुरु के वचन (शिक्षा)।

क्या त्याज्य है?- जो धर्म के विरुद्ध है।

गुरु कौन है? 

--जिसने सत्य को पा लिया है और जो सदैव अपने शिष्य के लिए सही 

सोचता है।

॥ 3 ॥ 4, 5 ॥

त्वरितं किं कर्तव्यं विदुषां संसारसन्ततिच्छेदः ।
किं मोक्षतरोर्बीजं सम्यक्ज्ञानं क्रियासिद्धम् ॥ ३॥

त्वरितं किं कर्तव्यं विदुषां ? 
 
             -संसारसन्ततिच्छेदः !

 किम् मोक्षतरोः बीजम् ? 

           -- सम्यक्ज्ञानं क्रियासिद्धम् !  

समझदार व्यक्ति को कौन सी बात त्वरित करनी चाहिए ?

           - जन्म मृत्यु के चक्र का छेदन ।

मोक्ष के वृक्ष का बीज क्या है?

          - आचरण में लाया हुआ सही ज्ञान। 

॥ 4 ॥ 6, 7, 8, 9 ॥

कः पथ्यतरो धर्मः कः शुचिरिह यस्य मानसं शुद्धम् ।
कः पण्डितो विवेकी किं विषमवधीरणा गुरुषु ॥ ४॥

कः पथ्यतरः ? - धर्मः ! 

कः शुचिः इहः ? -यस्य मानसं शुद्धम् ।

 कः पण्डितः ? विवेकी ! 

किम् विषम् ? - अवधीरणा गुरुषु !  

सबसे श्रेष्ठ हितकारक क्या है?--धर्म।

 सबसे शुद्ध (व्यक्ति) कौन है?
          
         -जिसका मन शुद्ध है वह ।

समझदार कौन है? 

         --जो विवेकी है। (जो सही-गलत, धर्म- अधर्म, शाश्वत-नश्वर का भेद पहचानता है)। 

विष क्या है? ---बड़ों की आज्ञा की अवज्ञा।

॥ 5 ॥ 10, 11 ॥

किं संसारे सारं बहुशोऽपि विचिन्त्यमानमिदमेव ।
किं मनुजेष्विष्टतमं स्वपरहितायोद्यतं जन्म ॥ ५॥

किं संसारे सारम् ? 
      
      -बहुशोऽपि चिन्त्यमानं इदमेव ! 

किं मनुजेषु इष्टतमम् ? 

      -स्वपर हिताय उद्यतं जन्म !  

संसार का सार क्या है?
      
      --उस तत्व के लिए निरंतर चिंतन करना । 

मनुष्य के लिए इष्ट क्या है?

       -  खुद के और दूसरों के लिए जीवन समर्पित करना।

॥ 6 ॥ 12, 13, 14, 15 ॥ 

मदिरेव मोहजनकः कः स्नेहः के च दस्यवो विषयाः ।
का भववल्लि तृष्णा को वैरी यस्त्वनुद्योगः ॥ ६॥

मदिरेव मोहजनकः कः ? - स्नेहः !

 के च दस्यवः ? -- विषयाः । 

का भववल्लि ? - तृष्णा ! 

को वैरी? - यस्तु अनुद्योगः !
 
मदिरा की तरह कैफ़ी (भ्रामक) क्या है?

         - स्नेह।

चोर कौन है? - विषय (इन्द्रिय सुख)।

जन्म का कारण क्या है?-  तृष्णा (इच्छा)। 

शत्रु कौन है? -आलस, प्रमाद ।

॥ 7 ॥ 16, 17, 18 ॥

कस्माद्भयमिह मरणादन्धादिह को विशिष्यते रागी ।
कः शूरो यो ललनालोचनबाणैर्न च व्यधितः ॥ ७॥

कस्मात् भयं इह ? - मरणात् ! 

अन्धात् इह को विशिष्यते ? -रागी ! 
 
 कः शूरः ?

     - यो ललना लोचन बाणैः न च व्यधित
 
भय किससे है?-मृत्यु से। 

अंधे से भी बुरा (व्यक्ति) कौन है? 
     
       -रागी (इच्छाओं में फंसा हुआ।) 

शूर कौन है?
       
     - सुंदर स्त्री की नज़रों के बाणों से व्यथित न होने वाला ।

॥ 8 ॥ 19, 20 ॥

पान्तुं कर्णाञ्जलिभिः किममृतमिह युज्यते सदुपदेशः ।
किं गुरुताया मूलं यदेतदप्रार्थनं नाम ॥ ८॥

पान्तुं कर्णाञ्जलिभिः किं अमृतं इह युज्यते ?

       -  सदुपदेशः । 

किं गुरुताया मूलं ?

    - यत् एतत् अप्रार्थनं नाम  ! 
 
वह क्या है, जो अमृत की तरह कानों से पीया जाए?
   
        -सही उपदेश।

महानता का मूल क्या है? 
 
      -किसी से कुछ भी याचना न करना ।
 
॥9॥ 21, 22, 23, 24॥

किं गहनं स्त्रीचरितं कश्चतुरो यो न खण्डितस्तेन ।
किं दुःखं असन्तोषः किं लाघवमधमतो याच्ञा ॥ ९॥

किं गहनं ? --स्त्रीचरितम् !

 कः चतुरः ? - यो न खण्डितः तेन ! 

किं  दुःखम् ? -असन्तोषः ! 

किं लाघवम् ? - अधमतो याच्ञा ! 

गहन क्या है?- स्त्री का चरित्र ।

 चतुर कौन है?- 

   - स्त्री का चरित्र जिसे जीत नहीं पाता वह।

 दुःख क्या है?- असंतोष । 

लघुता क्या है? 

      -अधम (नीच) व्यक्ति से याचना करना। 

॥ 10 ॥ 25, 26, 27, 28 ॥

किं जीवितमनवद्यं किं जाड्यं पाठतोऽप्यनभ्यासः ।
को जागर्ति विवेकी को निद्रा मूढता जन्तोः ॥ १०॥

 किं जीवितम् ? -अन्वद्यम् !

 किं जाड्यम् ? - पाठतोSपि अनभ्यासः ! 

को जागर्ति? - विवेकी ! 

का निद्रा - मूढता जन्तोः !
 
जीवित कौन है?-जो निष्कलंक है, जिसमें कोई दोष नहीं है ।
 
 मूर्खता क्या है?-जो सीखा हुआ है, उसका अभ्यास न करना।

जागृत कौन है? 

    -जो विवेकी है। (जो सही-गलत, धर्म-अधर्म, शाश्वत-नश्वर का भेद पहचानता है।) 

निद्रा क्या है?-मनुष्य की अज्ञानता।
 
॥ 11 ॥ 29, 30 ॥

नलिनीदलगतजलवत्तरलं किं यौवनं धनं चायुः ।
कथय पुनः के शशिनः किरणसमाः सज्जना एव ॥ ११॥

नलिनी दल गत जलवत् तरलं किं ?
     
          - यौवनं धनं चायुः ।
 
कथय पुनः के शशिनः किरणसमाः ? 

            - सज्जना एव! 

कमल के पत्ते पे गिरि हुई पानी की बूंद के सामान क्षणिक क्या है?

        - यौवन, धन और आयु।

चन्द्र के किरणों के सामान कौन है?

         -सज्जन व्यक्ति। 

॥ 12 ॥ 31, 32, 33, 34 ॥

को नरकः परवशता किं सौख्यं सर्वसङ्गविरतिर्या ।
किं सत्यं भूतहितं प्रियं च किं प्राणिनामसवः ॥ १२॥

को नरकः ? - परवशता !

किं सौख्यं ? - सर्वसङ्ग विरतिः या ! 

किं साध्यम् ?-भूतहितं ! 

 प्रियं च किं प्राणिनां ? - असवः !   

नरक क्या है?- दूसरों के वश में रहना। 

सुख क्या है? 
    
     -सभी प्रकार के लगाव से मुक्ति।

प्राप्त करने योग्य क्या है?

        - प्राणीमात्र का हित। 

प्राणीमात्र को प्रिय क्या है?

       - खुद की जिंदगी।  

॥ 13 ॥ 35, 36, 37 ॥
कोऽनर्थफलो मानः का सुखदा साधुजनमैत्री ।
सर्वव्यसनविनाशे को दक्षः सर्वथा त्यागी ॥ १३॥

को अनर्थ फलः ? - मानः ! 

का सुखदा ? - साधुजनमैत्री !

सर्व व्यसन विनाशे को दक्षः ? - सर्वथा त्यागी ! 
 
किसका परिणाम दुर्गति है?- मान का। 

सुखदायक क्या है?-सज्जनों से मैत्री। 

सभी प्रकार के दुखों को नाश करने के लिए सक्षम कौन है?

      -जो सदैव त्यागी है वह।

॥ 14 ॥ 38, 39, 40 ॥

किं मरणं मूर्खत्वं किं चानर्घं यदवसरे दत्तम् ।
आमरणात् किं शल्यं प्रच्छन्नं यत्कृतं पापम् ॥ १४॥

किं मरणम्- मूर्खत्वम्  ! 

किं च अनर्घम् ? -  यदवसरे दत्तम् ! 

आमरणात् किं शल्यम्  ?-प्रच्छन्नं यत् कृतं पापम् ! 
  
मृत्यु क्या है?-मूर्खता। 

अमूल्य क्या है?
    
      - जो सही समय पर दिया गया है वह।

क्या है जो ज़िंदगीभर कांटे की तरह चुभता है?
      
     - छिपकर किया हुआ पाप।
॥ 15 ॥ 41, 42 ॥

कुत्र विधेयो यत्नो विद्याभ्यासे सदौषधे दाने ।
अवधीरणा क्व कार्या खलपरयोषित्परधनेषु ॥ १५॥

कुत्र विधेयो यत्नः ? 

       -विद्याभ्यासे सदौषधे दाने । 

अवधीरणा क्व कार्या ?

        -  खलु परयोषितु परधनेषु ! 

 प्रयत्न किसके लिए होना चाहिए?

       - विद्याप्राप्ति, औषधि की खोज और दान के लिए।

किसकी उपेक्षा करनी चाहिए?

        - दुर्जनों की, दूसरों की पत्नी और दूसरों के धन की।

॥16॥ 43, 44॥

काहर्निशमनुचिन्त्या संसारासारता न तु प्रमदा ।
का प्रेयसी विधेया करुणा दीनेषु सज्जने मैत्री ॥ १६॥

कः अहिर्निशं अनुचिन्त्या ?

         - सन्सार असारता,   न तु प्रमदा ।

 का प्रेयसी विधेया?

          - करुणा दीनेषु सज्जने मैत्री।  

दिन-रात क्या सोचते रहना चाहिए?

       - संसार की क्षणिकता, न की स्त्री की सुंदरता।

प्यार के लिए विषयवस्तु क्या होनी चाहिए?

        - दीन व्यक्ति के प्रति करुणा, और सज्जनों से मैत्री।

॥ 17 ॥ 45 ॥

कण्ठगतैरप्यसुभिः कस्य ह्यात्मा न शक्यते जेतुम् ।
मूर्खस्य शङ्कितस्य च विषादिनो वा कृतघ्नस्य ॥ १७॥

कण्ठगतैरपि असुभिः कस्य हि आत्मा न शक्यते जेतुम् ?

           -मूर्खस्य शङ्कितस्य च विषादिनो वा कृतघ्नस्य। 

मृत्यु के समय भी किस व्यक्ति को सही रस्ते पे नहीं लाया जा सकता?

       -मूर्ख, शंकाशील, निरानंद (उदास) और कृतघ्नी व्यक्ति को।

॥ 18 ॥ 46, 47, 48 ॥

कः साधुः सदवृत्तः कमधममाचक्षते त्वसद्वृत्तम् ।
केन जितं जगदेतत्सत्यतितिक्षावता पुंसा ॥ १८॥

कः साधुः ? सदवृत्तः ! 

कं अधमं आचक्षते ? - तु असदवृत्तं ! 

केन जितं जगदेतत् ?
 
      - सत्य तितिक्षावता पुंसा ! 

सज्जन कौन है?- जिसकी वृत्ति शुद्ध है।

 अधम (नीच) किसे कहा जाए?

          - जिसकी वृत्ति अशुद्ध है ।

 विश्व को कौन जीत सकता है?

         - जिसके पास सत्य और सहनशीलता (धैर्य) है। 

॥ 19 ॥ 49, 50 ॥  

कस्मै नमांसि देवाः कुर्वन्ति दयाप्रधानाय ।
कस्मादुद्वेगः स्यात्संसारारण्यतः सुधियः ॥ १९॥

कस्मै नमांसि देवाः कुर्वन्ति ? - दयाप्रधानाय। 

कस्मात् उद्वेगः स्यात् ?

             - संसार अरण्यतः सुधियः! 
 
देवता किसको नमन करते हैं?
  
          -जिसका प्रमुख गुण दया है। 

उद्वेग किससे निर्माण होता है?

           - संसाररूपी जंगल उद्वेग निर्माण करता है।

॥ 20 ॥ 51, 52 ॥

कस्य वशे प्राणिगणः सत्यप्रियभाषिणो विनीतस्य ।
क्व स्थातव्यं न्याय्ये पथि दृष्टादृष्टलाभाढ्ये ॥ २०॥

कस्य वशे प्राणिगणः? 

       -सत्यप्रियभाषिणो विनीतस्य ।

 क्व स्थातव्यं ?

      - न्याय्ये पथि दृष्ट अदृष्ट लाभाढ्ये। 

व्यक्ति को कहाँ स्थिर होना चाहिए?

      - इस विश्व में और उसके परे जो लाभदायी है, ऐसे सच्चे पथ पर। 

॥ 21 ॥ 53, 54, 55 ॥

कोऽन्धो योऽकर्यरतः को बधिरो यो हितानि न श‍ृणोति ।
को मूको यः काले प्रियाणि वक्तुं न जानाति ॥ २१॥

को अन्धः ? - यो अकार्य रतः। 

को बधिरः ? -यो हितानि न श‍ृणोति।

 को मुकः ? 

     - यः काले प्रियाणि वक्तुं न जानाति।  

अंधा कौन है?- जो बुरे कर्मों में लिप्त है। 

बहरा कौन है?
     
        -जो अपने हित की बातें नहीं सुनता। 

गूँगा /मूक कौन है? 

       -सही समय पर जो सही बात नहीं बोलता। 

॥22॥ 56, 57, 58, 59॥ 

किं दानमनाकाङ्क्षं किं मित्रं यो निवारयति पापात् ।
कोऽलङ्कारः शीलं किं वाचां मण्डनं सत्यम् ॥ २२॥

किं दानम् ? - अनाकाङ्क्षम्  !  

किं मित्रम् ? - यो निवारयति पापात् ।

को अलङ्कारः ? - शीलं ! 

किं वाचाम् मण्डनम् ? -सत्यम् !
 
दान क्या है?

    - जो बिना किसी अपेक्षा से किया है।

मित्र कौन है? 

       - जो पाप से बचाता है।

अलंकर क्या है?

         - अच्छा चरित्र। 

वाणी को कौन सजाता है? - सत्य।

॥23॥ 60, 61॥

विद्युद्विलसितचपलं किं दुर्जनसङ्गतिर्युवतयश्च ।
कुलशीलनिष्प्रकम्पाः के कलिकालेऽपि सज्जना एव ॥ २३॥

विद्युद्विलसितचपलं किम् ?
     
       - दुर्जनसङ्गतिः युवतयश्च !

 कुलशीलनिष्प्रकम्पाः के कलिकाले अपि ? 

          - सज्जना एव!
 
बिजली के सामान क्षणिक क्या है?

         -दुर्जन का संग और युवती। 

कलियुग में भी कौन अपने अच्छे चरित्र से विचलित नहीं होता?

        - सिर्फ सज्जन व्यक्ति। 

॥24॥ 62, 63॥

चिन्तामणिरिव दुर्लभमिह किं कथयामि तच्चतुर्भद्रम् ।
किं तद्वदन्ति भूयो विधुततमसा विशेषेण ॥ २४॥

चिन्तामणिरिव दुर्लभं इह किम् ? - कथयामि तत् चतुर्भद्रं !

 किं तद्वदन्ति भूयो  विधुततमसो  विशेषेण? 
   
चिंतामणि के सामान दुर्लभ क्या है?

          -चार बातें, जो मैं कह रहा हूँ।

 प्रबुद्ध व्यक्ति द्वारा मार्गदर्शित, 

                   वह बातें क्या है?

॥ 25 ॥ 63 ॥

दानं प्रियवाक्सहितं ज्ञानमगर्वं क्षमान्वितं शौर्यम् ।
वित्तं त्यागसमेतं दुर्लभमेतच्चतुर्भद्रम् ॥ २५॥

दानम् प्रियवाक् सहितं, ज्ञानं अगर्वं, क्षमान्वितं शौर्यम्। 

वित्तं त्यागसमेतं दुर्लभं एतत् च्तुर्भद्र्म्।   

मीठी वाणी के साथ किया हुआ दान, गर्व रहित ज्ञान, 

क्षमा सहित शौर्य और संपत्ति की ओर त्याग (उदारता) की दृष्टि 

         – यह चार बातें दुर्लभ है।

॥26॥ 64, 65, 66॥

किं शोच्यं कार्पण्यं सति विभवे किं प्रशस्तमौदार्यम् ।
कः पूज्यो विद्वद्भिः स्वभावतः सर्वदा विनीतो यः ॥ २६॥
 
किं शोच्यं ? -कार्पण्यं !
 
सति विभवे किं  प्रशस्तम् ? -औदार्यम् !  

कः पूज्यः विद्वद्भिः ?  -स्वभावतः सर्वदा विनीतो यः। 
 
शोक करने लायक क्या है?

       - कार्पण्य (जिसने संपत्ति का ना ही उपभोग किया, ना ही दान)।

समृद्ध होने पर कौन पूज्य है?
    
           -जो स्वाभाव से सदैव विनम्र है।

॥ 27 ॥ 67, 68 ॥

कः कुलकमलदिनेशः सति गुणाविभवेऽपि यो नम्रः ।
कस्य वशे जगदेतत्प्रियहितवचनस्यधर्मनिरतस्य ॥ २७॥

कः कुलकमल दिनेशः ? 

      - सति गुण विभवेऽपि यो नम्रः।

 कस्य वशे जगदेतत् ? 

       - प्रियहित वचनस्य धर्मनिरतस्य ! 

ज्ञानियों द्वारा कौन पूज्य है ?- जिसके पास औदार्य (उदारता) है।

कमल रूपी कुल (कुटुंब) को खिलनेवाला सूर्य कौन है?

- सर्वगुण संपन्न होने के बावजूद जो विनम्र है।

 विश्व किसके वश में है?

-जिसकी वाणी मधुर, हितकारक है और जो धर्मपरायण है।

॥28॥ 69, 70॥

विद्वन्मनोहरा का सत्कविता बोधवनिता च ।
कं न स्पृशति विपत्तिः प्रवृद्धवचनानुवर्तिनं दान्तम् ॥ २८॥

विद्वन्मनोहरा का ?

       - सत्कविता बोधवनिता च । 

कं न स्पृशति विपत्तिः ? 

        - प्रवृद्धवचनानुवर्तिनं दान्तं। 

क्या विद्वानों को मोहित करता है?

       -उन्नत करती हुई कविता और ज्ञान रुपी स्त्री। 

विपत्ति किसे स्पर्श नहीं कर सकती?

       -जो बड़ों की आज्ञा को अनुसरता है और संयमी है। 

॥ 29 ॥ 71, 72 ॥

कस्मै स्पृहयति कमला त्वनलसचित्ताय नीतिवृत्ताय ।
त्यजति च कं सहसा द्विजगुरुसुरनिन्दाकरं च सालस्यम् ॥ २९॥

कस्मै स्पृहयति कमला ? - तु अनलसचित्ताय नीतिवृत्ताय । 

त्यजति च कं सहसा? -  द्विज गुरु सुर निन्दाकरं  च सालस्यम्। 

देवी लक्ष्मी को कौन पसंद है?

      - जिसका मन आलसी नहीं है तथा जिसका आचरण और चरित्र शुद्ध है।

और वह तत्क्षण किसका त्याग करती है?

       -जो ब्राह्मण, गुरुजन (बुजुर्गों) एवं देवों की निंदा करता है, और जो आलसी है। 

॥ 30 ॥ 73, 74 ॥

कुत्र विधेयो वासः सज्जननिकटेऽथवा काश्याम् ।
कः परिहार्यो देशः पिशुनयुतो लुब्धभूपश्च ॥ ३०॥

कुत्र विधेयो वासः ?

        -सज्जननिकटे अथवा काश्याम् ! 

कः परिहार्यो देशः?

        -पिशुनयुतो  लुब्धभूपश्च।
 
व्यक्ति को कहाँ रहना चाहिए?

         - सज्जनों के समीप या काशी में। 

किस जगह को छोड़ना चाहिए?

         - जहाँ के लोग नीच है एवं राजा लालची और कंजूस है।

॥ 31 ॥ 75, 76 ॥

केनाशोच्यः पुरुषः प्रणतकलत्रेण धीरविभवेन ।
इह भुवने कः शोच्यः सत्यपि विभवे न यो दाता ॥ ३१॥

केन अशोच्यः पुरुषः ?

       -  प्रणतकलत्रेण धीरविभवेन । 

इह भुवने को शोच्यः?

         -सत्यपि विभवे न यो दाता। 
 
क्या व्यक्ति को शोकमुक्त करता है ? 

          -आज्ञाकारी पत्नी और स्थायी समृद्धि। 

विश्व में क्या शोक करने जैसा है?

     - समृद्ध होते हुए भी जो दान नहीं करता है।

॥ 32 ॥ 77, 78 ॥  

किं लघुताया मूलं प्राकृतपुरुषेषु या याच्ञा ।
रामादपि कः शूरः स्मरशरनिहतो न यश्चलति ॥ ३२॥

किं लघुताया मूलं ? 

       - प्राकृतपुरुषेषु या याच्ञा ।

 रामादपि कः शूरः? 

       -स्मरशरनिहतो न  यः  चलति! 
 
मानहानि (उपहास) का कारण क्या है?

         -नीच व्यक्ति से मांगना। 

राम से भी बहादुर कौन है?

        -कामदेव के बाणों से जिसका मन चालित नहीं होता है।

॥ 33 ॥ 79, 80 ॥

किमहर्निशमनुचिन्त्यं भगवच्चरणं न संसारः ।
चक्षुष्मन्तोऽप्यन्धाः के स्युः ये नास्तिका मनुजाः ॥ ३३॥

किं अहर्निशं अनुचिन्त्य ? 

        - भगवच्चरणं न संसारः । 

चक्षुष्मन्तोSपि अन्धाः के स्युः ?  

          -ये नास्तिका मनुजाः! 

दिन रात किसका चिंतन करना चाहिए?

      - प्रभु के चरणों का, न कि सांसारिक जीवन का। 

आँखे होने के बावजूद अँधा कौन है?

     -जो ईश्वर के अस्तित्व को नहीं मानता है और जो वेदों की निंदा करता है।

॥ 34 ॥ 81, 82 ॥

कः पङ्गुरिह प्रथितो व्रजति च यो वार्द्धके तीर्थम् ।
किं तीर्थमपि च मुख्यं चित्तमलं यन्निवर्तयति ॥ ३४॥ 

कः पङ्गु इह प्रथितः ? 

     - व्रजति च यो वार्द्धके तीर्थम् !

 किं तीर्थमपि च मुख्यं?
 
         -चित्तमलं यन्निवर्तयति।

अपंग कौन है?

      -जो बूढा होने के बाद तीर्थयात्रा करता है।

 महत्वपूर्ण तीर्थ कौन सा है?

     -जो मन की अशुद्धि (बुरी वासनाओं) को दूर करे।

॥ 35 ॥ 83, 84 ॥

किं स्मर्त्तव्यं पुरुषैः हरिनाम सदा न यावनी भाषा ।
को हि न वाच्यः सुधिया परदोषश्चानृतं तद्वत् ॥ ३५॥

किं स्मर्त्तव्यं पुरुषैः ?

      -हरिनाम सदा,  न यावनी भाषा । 

को हि न वाच्यः सुधिया ?

        -परदोषश्च  अनृतं तद्वत् !

क्या सदैव याद रखना चाहिए?- हरि का नाम, न कि हीन व्यक्तियों की भाषा।

सज्जनों के लिए अनिर्वचनीय क्या है?- दूसरों के दोष एवं असत्य।

॥ 36 ॥ 85, 86, 87 ॥

किं सम्पाद्यं मनुजैः विद्या वित्तं बलं यशः पुण्यम् ।
कः सर्वगुणविनाशी लोभः शत्रुश्च कः कामः ॥ ३६॥

किं सम्पाद्यं मनुजैः ? 

     -विद्या वित्तं बलं यशः पुण्यम् । 

कः सर्वगुणविनाशी ? -लोभः ! 

शत्रुश्च कः ? - कामः ! 

व्यक्ति को किसका उपार्जन करना चाहिए?

          - विद्या, वित्त, बल, यश और पुण्य।

 सभी सद्गुणों को कौन नाश करता है?- लोभ।

शत्रु कौन है?

       -काम (वासना)।

॥ 37 ॥ 88, 89 ॥

का च सभा परिहार्या हीना या वृद्धसचिवेन ।
इह कुत्रावहितः स्यान्मनुजः किल राजसेवायाम् ॥ ३७॥ 

का च सभा परिहार्या ? 

          -हीना या वृद्धसचिवेन । 

इह कुत्र अवहितः स्यात् मनुजः ? 

            -किल राजसेवायाम्! 

कौन सी सभा का त्याग करना चाहिए?

        - जिसमें कोई अनुभवी सचिव नहीं है। 

व्यक्ति को किस में सतर्क रहना चाहिए?

          -राजा की सेवा करने में।

॥ 38 ॥ 90, 91 ॥

प्राणादपि को रम्यः कुलधर्मः साधुसङ्गश्च ।
का संरक्ष्या कीर्तिः पतिव्रता नैजबुद्धिश्च ॥ ३८॥

प्राणादपि को रम्यः ? 

      - कुलधर्मः साधुसङ्गश्च । 

का संरक्ष्या ? 

    -कीर्तिः  पतिव्रता नैज बुद्धिश्च ॥ ३८॥

प्राण से भी प्यारा क्या है? 

        -परंपरागत धर्म का पालन एवं सज्जनों की संगति।

किसका संरक्षण करना चाहिए?

        - कीर्ति, पतिव्रता स्त्री और अपनी विवेकपूर्ण बुद्धि का।

॥ 39 ॥ 92, 93॥

का कल्पलता लोके सच्छिष्यायार्पिता विद्या ।
कोऽक्षयवटवृक्षः स्यात्विधिवत्सत्पात्रदत्तदानं यत् ॥ ३९॥

का कल्पलता लोके ? 

       -सच्छिष्याय अर्पिता विद्या ! 

को अक्षयवटवृक्षः स्यात् ?

       -विधिवत् सत्पात्रदत्त दानं यत् ! 

इच्छापूर्ती करने वाली लता कौन सी है?

      -सुपात्र शिष्य को दी हुई विद्या। 

क्षय न होने वाला वृक्ष कौन सा है?

       -सुपात्र व्यक्ति को नियमानुसार दिया हुआ दान।

॥ 40 ॥ 94, 95, 96, 97 ॥

किं शस्त्रं सर्वेषां युक्तिः माता च का धेनुः ।
किं नु बलं यद्धैर्यं को मृत्युः यदवधानरहितत्वम् ॥ ४०॥

किं शस्त्रं सर्वेषां ?-युक्तिः ! 

 माता च का -धेनुः ! 

किं नु बलं ? - यद्धैर्यं ! 

को मृत्युः? - यत् अवदानरहितत्वम् ! 

सभी के लिए शस्त्र क्या है?- युक्ति। 

माता कौन है?- गाय। 

बल क्या है?-साहस।

मृत्यु क्या है?- असावधानी (लापरवाही)।

॥ 41 ॥ 98, 99, 100, 101 ॥

कुत्र विषं दुष्टजने किमिहाशौचं भवेतृणं नृणाम् ।
किमभयमिह वैराम्यं भयमपि किं वित्तमेव सर्वेषाम् ॥ ४१॥

कुत्र विषं? - दुष्टजने !

किमिह अशौचं भवेत् ? - ऋणं  नृणाम् । 

किं अभयं इह ?- वैराम्यं ! 

भयमपि किं? -वित्तमेव सर्वेषाम् ॥  

विष कहाँ है?- दुर्जनों के पास। 

कलंक (अपावित्र्य) क्या है?- किसी का ऋणी रहना।

अभय किससे प्राप्त होता है?- वैराग्य (दुनियावी चीजों के अलगाव) से।

 भय क्या है?- संपत्ति।

॥ 42 ॥ 102, 103, 104 ॥

का दुर्लभा नराणां हरिभक्तिः पातकं च किं हिंसा ।
को हि भगवत्प्रियः स्यात्योऽन्यं नोद्वेजयेदनुद्विग्नः ॥ ४२॥

का दुर्लभा नराणाम् ?-हरिभक्तिः! 

पातकं च किम् ? -हिंसा ।

 को हि भगवत्प्रियः स्यात् ?

     - योSन्यं न उद्वेजयेत् अनुविद्वग्नः !  

क्या पाना मनुष्य के लिए दुर्लभ है?

       -हरि भक्ति। 

पातक (पाप) क्या है?

      - हिंसा (किसी भी सजीव को शारीरिक या मानसिक पीड़ा देना)। 

कौन भगवान को प्रिय है?

      -जो दूसरों को उद्विग्न नहीं करता एवं खुद भी उद्विग्न नहीं होता।

॥ 43 ॥ 105, 106, 107, 108 ॥

कस्मात् सिद्धिः तपसः बुद्धिः क्व नु भूसुरे कुतो बुद्धिः ।
वृद्धोपसेवया के वृद्धा ये धर्मतत्त्वज्ञाः ॥ ४३॥

कस्मात् सिद्धिः ? -तपसः !

बुद्धिः क्व नु ? -भूसुरे ! 

कुतो बुद्धिः? -वृद्धोपसेवया! 

के वृद्धा?- ये धर्मतत्त्वज्ञाः ॥ 

सिद्धि किससे मिलती है?- तप से। 

बुद्धि कहाँ है? -ब्राह्मण में।

 बुद्धि कैसे मिलती है?- वृद्धों की सेवा से।

 वृद्ध कौन है?- जो धर्म और सत्य जानते हैं।

॥ 44 ॥ 109, 110, 111 ॥

सम्भावितस्य मरणादधिकं किं दुर्यशो भवति ।
लोके सुखी भवेत्को धनवान्धनमपि च किं यतश्चेष्टम् ॥ ४४॥

सम्भावितस्य मरणात्  अधिकं किम्  ?
     
        - दुर्यशो भवति । 

लोके सुखी भवेत् कः ? -धनवान् ! 

धनमपि च किम् ?-यतश्चेष्टम् ! 

प्रतिष्ठित व्यक्ति के लिए मृत्यु से भी बुरा क्या है?

- अपयश (बदनामी)। विश्व में सुखी कौन है?-  जो धनवान है।

धन क्या है?-  जिससे इच्छापूर्ती होती है।

॥ 45 ॥ 112, 113, 114 ॥

सर्वसुखानां बीजं किं पुण्यं दुःखमपि कुतः पापात् ।
कस्यैश्वर्यं यः किल शङ्करमाराधयेद्भक्त्या ॥ ४५॥

सर्वसुखानां बीजं किं ? पुण्यं ! 

दुःखमपि कुतः ?-पापात् । 

कस्य ऐश्वर्यं ?

      -यः किल शङ्करं आराधयेत् भक्त्या ! 
  
सभी सुखों का बीज क्या है?- पुण्य।

और दुखों का?- पाप।

 अधिपत्य किसका हो सकता है? 

      - जो भक्तहृदय से भगवान शंकर की आराधना करता है।

॥ 46 ॥ 115, 116, 117 ॥

को वर्द्धते विनीतः को वा हीयेत यो दृप्तः ।
को न प्रत्येतव्यो ब्रूते यश्चानृतं शश्वत् ॥ ४६॥

को वर्द्धते ?- विनीतः !

को वा हीयेत ? -यो दृप्तः ।

 को न प्रत्येतव्यः ? -ब्रूते यश्च अनृतं शश्वत् ॥ 

वृद्धि किसकी होती है?-जो विनम्र है।

 अधःपतित कौन होता है?-दंभी व्यक्ति। 

कौन विश्वासपात्र नहीं है?- जो सदैव असत्य कहता है ।

॥ 47 ॥ 118, 119 ॥

कुत्रानृतेऽप्यपापां यच्चोक्तं धर्मरक्षार्थम् ।
को धर्मोऽभिमतो यः शिष्टानां निजकुलीनानाम् ॥ ४७॥

कुत्र अनृतेSपि अपापम्  ? 

         -यच्चोक्तं धर्मरक्षार्थम् । 

को धर्मः ? 

       - अभिमतो यः शिष्टानां निजकुलीनानाम् ॥
 
कब असत्य भी पातक नहीं रहता?- जब धर्म रक्षणार्थ कहा गया हो।

 धर्म क्या है ?

- कुल के महान एवं पवित्र पूर्वजों द्वारा स्वीकृत शिष्टाचार और नैतिक मूल्य।

॥ 48 ॥ 120, 121, 122, 123 ॥

साधुबलं किं दैवं कः साधुः सर्वदा तुष्टः ।
दैवं किं यत्सुकृतं कः सुकृती श्लाघ्यते च यः सद्भिः ॥ ४८॥ 

साधुबलं किम्  ? दैवम् !

 कः साधुः ? -सर्वदा तुष्टः । 

दैवं किम् ? -यत् सुकृतम् ! 

 कः सुकृती ?  -श्लाघ्यते च य सद्भिः ! 

सज्जनों का बल क्या है?- प्रारब्ध।

 सज्जन कौन है?- जो सदैव संतुष्ट है।

प्रारब्ध क्या है?- सत्कर्म। 

सुकृती (सत्कर्म करने वाला) कौन है?

       -गुणीजन जिसकी प्रशंसा करते हैं वह।

॥ 49 ॥ 124, 125, 126 ॥

गृहमेधिनश्च मित्रं किं भार्या को गृही च यो यजते ।
को यज्ञो यः श्रुत्या विहितः श्रेयस्करो नृणाम् ॥ ४९॥

गृहमेधिनश्च मित्रं किं ? -भार्या ! 

को गृही च ? -यो यजते । 

को यज्ञः ?

   -यः श्रुत्या विहितः श्रेयस्करो नृणाम् ! 

गृहस्थ का मित्र कौन है?-पत्नी।

गृहस्थ कौन है?-जो यज्ञ करता है।

यज्ञ क्या है?

- जो वेदों में कहा गया है और जो मानवता के लिए हितकारक है।

॥ 50 ॥ 127, 128, 129 ॥

कस्य क्रिया हि सफला यः पुनराचारवां शिष्टः ।
कः शिष्टो यो वेदप्रमाणवां को हतः क्रियाभ्रष्टः ॥ ५०॥

कस्य क्रिया हि सफला ?

      - यः पुनः आचारवान्  शिष्टः । 

कः शिष्टः ? - यो वेदप्रमाणवान् ! 

को हतः ? - क्रियाभ्रष्टः ॥ 

किसका कर्म फलप्रद है? 

- जिसका आचरण शुद्ध है और जो शिष्ट है।

 शिष्ट कौन है?- जो वेद को प्रमाण मानता है ।

 कौन मृत्यु को प्राप्त होता है?-स्वधर्म को भूला हुआ।

॥ 51 ॥ 130, 131, 132, 133 ॥

को धन्यः संन्यासी को मान्यः पण्डितः साधुः ।
कः सेव्यो यो दाता को दाता योऽर्थितृप्तिमातनुते ॥ ५१॥

को धन्यः? -संन्यासी ! 

को मान्यः ? -पण्डितः साधुः ।

 कः सेव्यः ? -यो दाता ! 

को दाता ? - यो अर्थतृप्तिम्  आतनुते !
 
धन्य (जीवन के उच्चतम ध्येय को प्राप्त करनेवाला) कौन है?

-संन्यासी (संसार में जकड़ी हुई बेड़ी को जिसने तोड़ दिया है)।

सम्माननीय (आदरपात्र) कौन है? 

-जो ज्ञानी एवं सरल है ।

पूजनीय कौन है?-जो दाता है।

 दाता कौन है?

-ज़रूरतमंद को संतुष्ट करनेवाला।

॥ 52 ॥ 134, 135, 136, 137 ॥

किं भाग्यं देहवतामारोग्यं कः फली कृषिकृत् ।
कस्य न पापं जपतः कः पूर्णो यः प्रजावां स्यात् ॥ ५२॥

किं भाग्यं  देहवताम् ? आरोग्यं !

 कः फली ? -कृषिकृत् । 

कस्य न पापं ? -जपतः!  

कः पूर्णः ? - यः प्रजावान् स्यात् !

देहधारी के लिए आशिष (भाग्य) क्या है? -आरोग्य।

फल का आनंद कौन लेता है?-जो बोता है (प्रयत्नशील है)।

निष्पाप कौन है?- जो जप करता है (निरंतर मननशील)।

पूर्ण कौन है?- जिनकी संतान है।

॥ 53 ॥ 138, 139 ॥

किं दुष्करं नराणां यन्मनसो निग्रहः सततम् ।
को ब्रह्मचर्यवां स्यात्यश्चास्खलितोर्ध्वरेतस्कः ॥ ५३॥

किं दुष्करं नराणां ?-यन्मनसो निग्रहः सततम् ! 

 को ब्रह्मचर्यवान् स्यात् ?  -यश्च अस्खलित ऊर्ध्वरेतस्कः !  

मनुष्यों के लिए कठिन क्या है?- मन का निरंतर नियंत्रण।

ब्रह्मचारी कौन है?-जिसने अपनी शक्ति का उदात्तीकरण किया है, न कि व्यय।

॥ 54 ॥ 140, 141, 142 ॥

का च परदेवतोक्ता चिच्छक्तिः को जगत्भर्ता ।
सूर्यः सर्वेषां को जीवनहेतुः स पर्जन्यः ॥ ५४॥

का च परदेवता उक्ता ?- चिच्छक्तिः !

 को जगत्भर्ता ? -सूर्यः ! 

सर्वेषां को जीवनहेतुः?- स पर्जन्यः ॥

सर्वश्रेष्ठ देवी कौन है?- चेतनाशक्ति (माँ अम्बा)।

जगत का संरक्षक कौन है?-सूर्य।

सभी के जीवन का स्रोत क्या है?-वर्षा।

॥ 55 ॥ 143, 144, 145, 146 ॥

कः शुरो यो भीतत्राता त्राता च कः सद्गुरुः ।
को हि जगद्गुरुरुक्तः शम्भुः ज्ञानं कुतः शिवादेव ॥ ५५॥

कः शूरः ? -यो भीतत्राता !

 त्राता च कः ?-सद्गुरुः । 

को हि जगद्गुरुरुक्तः? -शम्भुः! 

 ज्ञानं कुतः ?- शिवादेव ! 

शूर कौन है?-जो भयभीत का रक्षक है।

रक्षक कौन है?-गुरु।

 जगद्गुरु कौन है?

-भगवान शिव

ज्ञान कहाँ से प्राप्त होता है?-भगवान शिव से

॥ 56 ॥ 147, 148, 149 ॥

मुक्तिं लभेत कस्मान्मुकुन्दभक्तेः मुकुन्दः कः ।
यस्तारयेदविद्यां का चाविद्या यदात्मनोऽस्फूर्तिः ॥ ५६॥

मुक्तिं लभेत् कस्मात् ?- मुकुन्दभक्तेः !  

मुकुन्दः कः ?- यस्तारयत्   अविद्याम् ! 

का च अविद्या ? - यत् आत्मनो अस्फूर्तिः ! 

मुक्ति किससे प्राप्त होती है?- मुकुंद (विष्णु) भक्ति से।

 मुकुंद कौन है?-अविद्या से तारने वाला।

अविद्या क्या है?-स्वयं को न जानना।

॥ 57 ॥ 150, 151, 152, 153 ॥

कस्य न शोको यः स्याद्क्रोधः किं सुखं तुष्टिः ।
को राजा रञ्चनकृकश्च त्कश्च श्वा नीचसेवको यः स्यात् ॥ ५७॥

कस्य न शोकः ?- यः स्यात् अक्रोधः ! 

किं सुखम्  ? -तुष्टिः । 

को राजा ? -रञ्चनकृत् ! 

कश्च श्वा ? - नीचसेवको यः स्यात् ! 

कौन शोकरहित है?-कभी क्रोधित न होनेवाला। 

सुख क्या है?-संतोष। 

राजा कौन है?- दूसरों को खुश करने वाला (जो विषयों को खुश करता है, न कि विषय उन्हें)।

कुत्ता कौन है?

-नीच व्यक्ति की सेवा करने वाला।

॥ 58 ॥ 154, 155, 156, 157 ॥

को मायी परमेशः क इन्द्रजालायते प्रपञ्चोऽयम् ।
कः स्वप्ननिभो जाग्रद्व्यवहारः सत्यमपि च किं ब्रह्म ॥ ५८॥

को मायी ? - परमेशः !

  कः इन्द्रजालायते ?-प्रपञ्चोऽयम् । 

कः स्वप्ननिभः ?- जाग्रत् व्यवहारः !  

सत्यमपि च किं ? - ब्रह्म !

माया का रचयिता कौन है?- सर्वोत्तम ईश्वर (अवतार वरिष्ठ)। 

इन्द्रजाल (सर्वश्रेष्ठ दैवी जादू) क्या है?-यह सम्पूर्ण जगत।

 स्वप्नवत् क्या है?- जागृत अवस्था में जो कुछ भी हो रहा है।

 सत्य क्या है?- ब्रह्म

॥ 59 ॥ 158, 159, 160, 161 ॥

किं मिथ्या यद्विद्यानाश्यं तुच्छं तु शशविषाणादि ।
का चानिर्वाच्या माया किं कल्पितं द्वैतम् ॥ ५९॥

किं मिथ्या ? -यद्विद्यानाश्यं ! 

तुच्छं तु ? - शशविषाणादि !

 का च अनिवर्चनीया ?-माया!  

किं कल्पितम्  ?- द्वैतम् ! 

मिथ्या (भ्रम) क्या है?

- सही ज्ञान के प्रकाश से जो नाश होता है।

अवर्णनीय क्या है?-माया। 

 तुच्छ क्या है?- खरगोश के सींग जैसी चीजें, जिनका अस्तित्व ही नहीं है।

कल्पनीय क्या है?

- द्वैतवाद (जीव और शिव का अलगाव)।

॥ 60 ॥ 162, 163, 164, 165 ॥

किं पारमार्थिकं स्यादद्वैतं चाज्ञता कुतोऽनादिः ।
वपुषश्च पोषकं किं प्रारब्धं चान्नदायि किं चायुः ॥ ६०॥

किं पारमार्थिकं स्यात् ? - अद्वैतम् !

 च  अज्ञता कुतः ? - अनादिः !  

वपुषश्च पोषकं किं ? -प्रारब्धम् ! 

च अन्नदायि किम् ? - च आयुः !

सर्वोत्तम सत्य क्या है?- अद्वैत। 

यह अज्ञानता कब से है?- अनादि से।

 शरीर का पोषक क्या है? 

-प्रारब्ध (पूर्व कर्म जिनके फल मिलने शुरू हुए है)। 

अन्न कौन देता है?- आयुष्य।  

॥ 61 ॥ 166, 167 ॥

को ब्रह्मणैरुपास्यो गायत्र्यर्काग्निगोचरः शम्भुः ।
गायत्र्यामादित्ये चाग्नौ शम्भ च किं नु तत्तत्त्वम् ॥ ६१॥

को ब्राह्मणैः उपास्यः ? - गायत्री अर्क अग्नि गोचरः शम्भुः ।

 गायत्र्याम् आदित्ये च अग्नौ शम्भो च किं नु ?- तत् तत्वम् ! 

ब्राह्मण को किसकी पूजा करनी चाहिए?

- गायत्री, ऊरी और अग्नि में जो व्याप्त है, ऐसे शिवजी की।

 गायत्री, सूर्य, अग्नि और शिव में क्या है?- परम सत्य।

॥ 62 ॥ 168, 169 ॥

प्रात्यक्षदेवता का माता पूज्यो गुरुश्च कः तातः ।
कः सर्वदेवतात्मा विद्याकर्मान्वितो विप्रः ॥ ६२॥ 

प्रात्यक्षदेवता का ? माता ! 

पूज्यो गुरुश्च कः ? -तातः । 

कः सर्वदेवतात्मा ?-विद्याकर्मान्वितो विप्रः ॥ 

प्रत्यक्ष देवता कौन है?- माता। 

पूजनीय एवं गुरु कौन है?- पिता। 

सभी देवता कहाँ स्थित है?

- ज्ञानी और कर्मनिष्ठ ब्राह्मण में।

॥ 63 ॥ 170, 171 ॥

कश्च कुलक्षयहेतुः सन्तापः सज्जनेषु योऽकारि ।
केषाममोघ वचनं ये च पुनः सत्यमौनशमशीलाः ॥ ६३॥ 

कश्च कुलक्षयहेतुः ? सन्तापः सज्जनेषु योऽकारि । 

केषां  अमोघ वचनं ?- ये च पुनः सत्य मौन शम शीलाः ! 
 
वंश के पतन का कारण क्या है?

-  सज्जनों को संताप देने वाले कर्म।

किसके शब्द विफल नहीं होते?

- जिसमें सत्य है, मौन (वाणी पर नियंत्रण) है और मन नियंत्रित है।

॥ 64 ॥ 172, 173, 174, 175 ॥

किं जन्म विषयसङ्गः किमुत्तरं जन्म पुत्रः स्यात् ।
कोऽपरिहार्यो मृत्युः कुत्र पदं विन्यसेच्च दृक्पूते ॥ ६४॥

किं जन्म ? - विषयसङ्गः !

 किं उत्तरं जन्म ? -पुत्रः स्यात् ।

 को अपरिहार्यः ?-मृत्युः !

कुत्र पदं विन्यसेच्च ? - दृक्पूते ॥  

जन्म का कारण क्या है?

-विषयों से आसक्ति। 

आगामी जन्म क्या है?- पुत्र।

अनिवार्य क्या है?-मृत्यु। 

व्यक्ति को कहाँ पैर रखना चाहिए?

- जहाँ अच्छाई मालूम हो।

॥ 65 ॥ 176, 177, 178 ॥

पात्रं किमन्नदाने क्षुधितं कोऽर्च्यो हि भगवदवतारः ।
कश्च भगवान्महेशः शङ्करनारायणात्मैकः ॥ ६५॥

पात्रं किं अन्नदाने ? -क्षुधितं !  

को अर्चयो हि ?  -भगवदवतारः ! 

कश्च भगवान् ? 

-  महेशः शङ्करनारायणात्मैकः ! 

कौन अन्नदान के पात्र है?-जो भूखा है।

कौन पूजनीय है?- भगवन के अवतार।

भगवान कौन है?

- वह परमेश्वर जिसमें शिव और नारायण व्याप्त (एक) है।

॥ 66 ॥ 179, 180, 181 ॥

फलमपि भगवद्भक्तेः किं तल्लोकस्वरुपसाक्षात्त्वम् ।
मोक्षश्च को ह्यविद्यास्तमयः कः सर्ववेदभूः अथ च ॐ ॥ ६६॥

फलमपि भगवद्भक्तेः किं ? -तल्लोक स्वरुप साक्षात्त्वम् ! 

मोक्षश्च कः ? -हि अविद्या स्तमयः !  

कः सर्ववेदभूः ?-अथ च ॐ ॥ 

भगवद् भक्ति का फल क्या है?

-  भगवद् तत्व की अनुभूति एवं स्व-स्वरूप की पहचान ।

 मोक्ष (मुक्ति) क्या है?

 - अज्ञान से मुक्ति (अविद्या का अंत)। 

वेदों का उद्भवस्थान क्या है?- ॐ ।

॥ 67 ॥

इत्येषा कण्ठस्था प्रश्नोत्तररत्नमालिका येषाम् ।
ते मुक्ताभरणा इव विमलाश्चाभान्ति सत्समाजेषु ॥ ६७॥

प्रश्नोत्तर रत्न मालिका स्वरूप इस रत्नों की माला को जो कोई भी अपने गले में पहनता है (इसे मन में याद कर लेता है), वह महान-सज्जनों की सभा में रोशन होता है (प्रशस्ति पाता है)।
साभार https://sanskritdocuments.org/hindi/translations/Prashnottara_Ratna_Malika_Hindi_Sagar_Pitroda.pdf
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