" मनसा द्वीप रामकृष्ण मिशन "
यह जो महामण्डल का कार्य चल रहा है, ऐसा प्रतीत होता है कि यह प्रयास बहुत ही महत्वपूर्ण है .और स्वामीजी भी तो यही चाहते थे- ' जगत का कल्याण '. सम्पूर्ण जगत का कल्याण, सभी देश के मनुष्यों का कल्याण. और माँ सारदा कि भाषा में वेदान्त का सार भी है- " कोई पराया नहीं, संसार  तुम्हारा है ! " सभी को अपना जान कर यथासाध्य सबों के लिये कुछ (उनके मन को जगाने का प्रयास) करते जाना. किन्तु इस प्रयास में कूद पड़ने के पहले जो करनीय है, वह है -स्वयं को थोड़ा तैयार कर लेना. स्वयं थोड़ा तैयार हुए बिना यह कार्य होना सम्भव नहीं है. 
महामण्डल का कार्य कई स्थानों में चल रहा है. प०बंगाल के बिल्कुल दक्षिण में बंगोपसागर (बंगाल की खाड़ी) है. उसके बिल्कुल छोर पर अनेकों द्वीप हैं. हममे से वे लोग जो बीच में निवास करते हैं, हममे से कई लोगों ने केवल उनकी चर्चा सुनी है, परन्तु अपने आँखों से एक आध को ही देखा होगा. किन्तु उसकी धारणा नही की जा सकती. सुन्दरवन में एकसौ से भी अधिक द्वीप हैं.
उनमे से सागरद्वीप सबसे बड़ा है. सागरद्वीप में 'मनसाद्वीप रामकृष्ण मिशन ' केन्द्र है.उस अँचल के मनुष्यों के पास शिक्षा नहीं है, किन्तु उन पुराने सन्यासियों के बारे में कितने लोगों को पता है, जिन्होंने अपने ह्रदय में ठाकुर-माँ-स्वामीजी के उपदेशों के मर्म को धारण करके, वहाँ के लोगों के बीच इनकी शिक्षाओं को पहुँचा देने के लिये अपने प्राणों को न्योछावर करके कई वर्षों तक कार्य चलाया है?
उस अँचल में गुरु विवेकानन्द के नाम पर अदभुत उत्साह जाग्रत हुआ था. कितने ही वर्षों पहले स्कूल कि स्थापना हुई है. उस स्कूल में एक सन्यासी उसकी स्थापना के समय से ही, कार्य किये थे. जब उनकी उम्र बहुत ज्यादा हो गयी तो उनका शरीर बिल्कुल जीर्ण-शीर्ण हो गया तब वे बेलुड मठ में invalid chair - पर बैठे कर इधर उधर का कुछ कार्य देखते थे. एक दिन उनका दर्शन करने का सौभाग्य मुझे प्राप्त हुआ था. वे उसी चेयर पर बैठे हुए थे, उनके सेवक गण उनके कान के निकट तेज आवाज में बोल बोल कर थोड़ा परिचय देने की चेष्टा किये. इस प्रकार एक महामण्डल नामक संस्था है, ये उसमे कार्य करते हैं. उन्होंने प्रसन्न होकर कहा था- ' वाः वाः बहत अच्छी बात है ! ' इनकी प्रसन्नता को देखने से जो आनन्द होता है, उसकी कल्पना भी नही की जा सकती.
परवर्ती काल में अनेकों साधु उसी सुन्दरवन में जाकर उस आश्रम के सञ्चालन का दायित्व ग्रहन किया है.आश्रम के बाहर सबसे पहले आता है- काकद्वीप. उसी रास्ते से होकर मनसाद्वीप जाने का मार्ग है.
इसीलिये वहाँ के कुछ निवासियों को मनसाद्वीप के सिद्धिदानन्दजी ने वहाँ पर श्रीरामकृष्ण जन्मोत्सव मानाने की बात कही. सबसे पहले वहाँ पर रहने वाले नदिया के चाँद साहा एवं उनके व्यवसाई मित्र निर्मल पाल से इस सम्बन्ध में बातचीत किये. उनलोगों ने भी जन्मोत्सव के आयोजन के प्रति बहुत उत्साह और आग्रह दिखाया. किन्तु स्थानाभाव के कारण पहला उत्सव नदे बाबू के घर के छत पर ही आयोजित करना पड़ा. बाद में यह उत्सव एक क्लब के मैदान में आयोजित होने लगा और उन्हीं लोगों के उत्साह से काकद्वीप में भी ठाकुर का एक मन्दिर स्थापित हो गया.
एक सन्यासी ने वहाँ आ कर उस मन्दिर के सञ्चालन का भार ग्रहण किया. उसके बादसे उसी जगह में उत्सव आदि होने लगे. वहाँ पर छोटे बच्चों के के लिये एक स्कूल निर्मित हो गया. इन सभी कार्यों में नदे बाबू का सहयोग मिला था, नदे बाबू एक गृहस्थ होने के बावजूद वयवसाय आदि में ज्यादा सिर नहीं खपाते थे.ठाकुर माँ स्वामीजी के विषय में पढना, रात रात भर जाग कर पढना और सर्वदा इसी को लेकर अपनी पूरी जिन्दगी समर्पित कर दिये थे. उस अँचल के घर घर में ठाकुर-माँ-स्वामीजी का भाव पहुँच गया है. वहाँ बहुत वर्षों से लगातार ठाकुर माँ स्वामीजी का उत्सव आयोजित होता आ रहा है. पर अब वही और भी अधिक फैलने लगा था.
इस प्रकार होते होते अन्यान्य द्वीपों में भी ठाकुर का उत्सव मनाया जायेगा ऐसी योजना बनी. महामण्डल गठित होने के समय से ही प्रति वर्ष मुझे उस उत्सव में जाने के लिये कहते थे, और मैं जाया करता था. जहाँ तक मुझे याद है मैं लगातार पचीस-तीस वर्षों तक इन द्वीपों में प्रति वर्ष इधर उधर के कम से कम आठ, दस, बारह , चौदह द्वीपों तक के उत्सव में भाग लिया हूँ.केवल इस मनसा द्वीप में ही नहीं, इस प० बंगाल का सिवाना जहाँ तक है, वहाँ तक के कई द्वीपों में ठाकुर का उत्सव हुआ है. वहाँ पर जाने में अदभुत आनन्द मिलता था. किन्तु उन द्वीपों तक पहुँच पाना तब बहुत कष्टकर हुआ करता था, इधर सुनता हूँ कुछ उन्नति हुई है.
इस प्रकार की अनेकों घटनाएँ अनेकों लोगों को देखा हूँ. एक बार मनसा द्वीप में उत्सव हो रहा है, संध्या अनुष्ठान हो जाने के बाद रात्रि में ' जात्रा-पार्टी ' का भी कार्यक्रम होने वाला है.उत्सव में बहुत भारी भीड़ इकट्ठी हुई है.महाराज मंच पर बैठे हुए हैं, चेयर नहीं था, तो टेबल के ऊपर ही बैठ गये हैं. रात्रि के अन्त में पौ फटते समय उठ कर देखता हूँ कि जात्रा उस समय तक भी चल रहा था और महाराज उसी प्रकार बैठे हुए हैं. वे इसीलिये बैठे हैं कि जो लोग जात्रा कर रहे हैं, उनको वहाँ बैठे देख कर आनन्दित होंगे. इसीलिये (दूसरों को आनन्द देने के लिये) रात भर टेबल के ऊपर बैठे हुए रह गये हैं, पीठ भी टिकाने का अवसर नहीं मिला है, पर चेहरे पर कोई थकान नहीं हैं. मनुष्य को कोई साधु ही इतनी मर्यादा-दान कर सकता है, हमारे जैसे साधारण लोग तो जात्रा करने वाले मनुष्यों को गवैया-नचैया ही समझते हैं.
ngrove forest, manik, Sundarbans
Sundarbans is the Sundarbans is situated Bangladesh and India both country.The Sundarbans features a complex network of tidal waterways, mudflats and small islands of salt-tolerant mangrove forests.Located about 320 km. south-west of Dhaka and spread over an area of about 60000 sq, km of deltaic swamps along the coastal belt of Khulna.Sundarbans is accessed from Kolkata ( Calcutta) by traveling either towards the South East or the South West. The  South West route takes one through Diamond Harbour to Kakdwip and  Namkhana. You can take a boat from these places or from Gangadharpur and  visit Lothian Island and surrounding areas.The South Eastern route is  more popular. You drive 86 kms through wetlands and agricultural land to  reach Sonakhali. You can take a 3 hour boat ride from Sonakhali jetty  to Sajnekhali Tourist Lodge or cross over to Basanti. From Basanti you  can take an auto-rickshaw ride to Gadkhali (11kms). At Gadkhali take the  ferry to cross the Bidya river to arrive at Gosaba. A Cycle Rickshaw  ride will take you to Pakhiralaya in about half hour. Sajnekhali is  across the water from Pakhiralaya. A UNESCO World Heritage Site (awarded  in ’97) , Sundarban is a vast area covering 4262 square kms in India  alone, with a larger portion in Bangladesh. The total area of the Indian  part of the Sundarban forest, lying within the latitude between  21°13’-22°40’ North and longitude 88°05’-89°06’ East, is about 4,262 sq  km, of which 2,125 sq km is occupied by mangrove forest across 56  islands and the balance is under water.
 The  South West route takes one through Diamond Harbour to Kakdwip and  Namkhana. You can take a boat from these places or from Gangadharpur and  visit Lothian Island and surrounding areas.The South Eastern route is  more popular. You drive 86 kms through wetlands and agricultural land to  reach Sonakhali. You can take a 3 hour boat ride from Sonakhali jetty  to Sajnekhali Tourist Lodge or cross over to Basanti. From Basanti you  can take an auto-rickshaw ride to Gadkhali (11kms). At Gadkhali take the  ferry to cross the Bidya river to arrive at Gosaba. A Cycle Rickshaw  ride will take you to Pakhiralaya in about half hour. Sajnekhali is  across the water from Pakhiralaya. A UNESCO World Heritage Site (awarded  in ’97) , Sundarban is a vast area covering 4262 square kms in India  alone, with a larger portion in Bangladesh. The total area of the Indian  part of the Sundarban forest, lying within the latitude between  21°13’-22°40’ North and longitude 88°05’-89°06’ East, is about 4,262 sq  km, of which 2,125 sq km is occupied by mangrove forest across 56  islands and the balance is under water.   The  Sundarbans is the world's biggest mangrove forest - the home of the  Royal Bengal tiger. The Royal Bengal tiger being the most famous, but  also including many birds, spotted deer,crocodiles and snakes.the  Sundarbon Indian restaurant in Monk Street, Abergavenny, is an exotic  treasure just waiting to be discovered. Specialising in aromatic Bengali  dishes, our chefs are masters in the art of preparing flavoursome food  for diners who enjoy an authentic Indian experience.These dense mangrove  forests are criss-crossed by a network of rivers and creeks.
The  Sundarbans is the world's biggest mangrove forest - the home of the  Royal Bengal tiger. The Royal Bengal tiger being the most famous, but  also including many birds, spotted deer,crocodiles and snakes.the  Sundarbon Indian restaurant in Monk Street, Abergavenny, is an exotic  treasure just waiting to be discovered. Specialising in aromatic Bengali  dishes, our chefs are masters in the art of preparing flavoursome food  for diners who enjoy an authentic Indian experience.These dense mangrove  forests are criss-crossed by a network of rivers and creeks.
November to March is best time to visit this forest.
उनमे से सागरद्वीप सबसे बड़ा है. सागरद्वीप में 'मनसाद्वीप रामकृष्ण मिशन ' केन्द्र है.उस अँचल के मनुष्यों के पास शिक्षा नहीं है, किन्तु उन पुराने सन्यासियों के बारे में कितने लोगों को पता है, जिन्होंने अपने ह्रदय में ठाकुर-माँ-स्वामीजी के उपदेशों के मर्म को धारण करके, वहाँ के लोगों के बीच इनकी शिक्षाओं को पहुँचा देने के लिये अपने प्राणों को न्योछावर करके कई वर्षों तक कार्य चलाया है?
उस अँचल में गुरु विवेकानन्द के नाम पर अदभुत उत्साह जाग्रत हुआ था. कितने ही वर्षों पहले स्कूल कि स्थापना हुई है. उस स्कूल में एक सन्यासी उसकी स्थापना के समय से ही, कार्य किये थे. जब उनकी उम्र बहुत ज्यादा हो गयी तो उनका शरीर बिल्कुल जीर्ण-शीर्ण हो गया तब वे बेलुड मठ में invalid chair - पर बैठे कर इधर उधर का कुछ कार्य देखते थे. एक दिन उनका दर्शन करने का सौभाग्य मुझे प्राप्त हुआ था. वे उसी चेयर पर बैठे हुए थे, उनके सेवक गण उनके कान के निकट तेज आवाज में बोल बोल कर थोड़ा परिचय देने की चेष्टा किये. इस प्रकार एक महामण्डल नामक संस्था है, ये उसमे कार्य करते हैं. उन्होंने प्रसन्न होकर कहा था- ' वाः वाः बहत अच्छी बात है ! ' इनकी प्रसन्नता को देखने से जो आनन्द होता है, उसकी कल्पना भी नही की जा सकती.
परवर्ती काल में अनेकों साधु उसी सुन्दरवन में जाकर उस आश्रम के सञ्चालन का दायित्व ग्रहन किया है.आश्रम के बाहर सबसे पहले आता है- काकद्वीप. उसी रास्ते से होकर मनसाद्वीप जाने का मार्ग है.
इसीलिये वहाँ के कुछ निवासियों को मनसाद्वीप के सिद्धिदानन्दजी ने वहाँ पर श्रीरामकृष्ण जन्मोत्सव मानाने की बात कही. सबसे पहले वहाँ पर रहने वाले नदिया के चाँद साहा एवं उनके व्यवसाई मित्र निर्मल पाल से इस सम्बन्ध में बातचीत किये. उनलोगों ने भी जन्मोत्सव के आयोजन के प्रति बहुत उत्साह और आग्रह दिखाया. किन्तु स्थानाभाव के कारण पहला उत्सव नदे बाबू के घर के छत पर ही आयोजित करना पड़ा. बाद में यह उत्सव एक क्लब के मैदान में आयोजित होने लगा और उन्हीं लोगों के उत्साह से काकद्वीप में भी ठाकुर का एक मन्दिर स्थापित हो गया.
एक सन्यासी ने वहाँ आ कर उस मन्दिर के सञ्चालन का भार ग्रहण किया. उसके बादसे उसी जगह में उत्सव आदि होने लगे. वहाँ पर छोटे बच्चों के के लिये एक स्कूल निर्मित हो गया. इन सभी कार्यों में नदे बाबू का सहयोग मिला था, नदे बाबू एक गृहस्थ होने के बावजूद वयवसाय आदि में ज्यादा सिर नहीं खपाते थे.ठाकुर माँ स्वामीजी के विषय में पढना, रात रात भर जाग कर पढना और सर्वदा इसी को लेकर अपनी पूरी जिन्दगी समर्पित कर दिये थे. उस अँचल के घर घर में ठाकुर-माँ-स्वामीजी का भाव पहुँच गया है. वहाँ बहुत वर्षों से लगातार ठाकुर माँ स्वामीजी का उत्सव आयोजित होता आ रहा है. पर अब वही और भी अधिक फैलने लगा था.
इस प्रकार होते होते अन्यान्य द्वीपों में भी ठाकुर का उत्सव मनाया जायेगा ऐसी योजना बनी. महामण्डल गठित होने के समय से ही प्रति वर्ष मुझे उस उत्सव में जाने के लिये कहते थे, और मैं जाया करता था. जहाँ तक मुझे याद है मैं लगातार पचीस-तीस वर्षों तक इन द्वीपों में प्रति वर्ष इधर उधर के कम से कम आठ, दस, बारह , चौदह द्वीपों तक के उत्सव में भाग लिया हूँ.केवल इस मनसा द्वीप में ही नहीं, इस प० बंगाल का सिवाना जहाँ तक है, वहाँ तक के कई द्वीपों में ठाकुर का उत्सव हुआ है. वहाँ पर जाने में अदभुत आनन्द मिलता था. किन्तु उन द्वीपों तक पहुँच पाना तब बहुत कष्टकर हुआ करता था, इधर सुनता हूँ कुछ उन्नति हुई है.
किसी
 भी द्वीप में ठाकुर के जन्मोत्सव के उपलक्ष्य में दिन भर उत्सव मनाया जाता
 था, उसके बाद संध्या के समय थोड़ा गाना हुआ, आध्यात्मिक चर्चा सम्मलेन 
(आलोचना सभा) हुई, उसके बाद रात्रि में सभी एक साथ बैठ कर ' लंगर ' में 
भोजन किये. उस समय हमलोगों का एक प्रकार का यह अभ्यास सा ही हो गया था कि, 
एक द्वीप पर उत्सव समाप्त होते ही अगले द्वीप के उत्सव में भाग लेने के 
लिये निकल पड़ते थे.
 उत्सव समाप्त होते होते रात्रि के बारह बज जाते थे, साढ़े बारह एक बजे तक 
भी हमलोग नौका में चढ़ कर सो रहते थे. एक द्वीप से दूसरे द्वीप तक आवागमन 
का साधन यह नौका ही थी, परन्तु तब आज के जैसा मोटर चालित नावें नहीं हुआ 
करतीं थी, पतवार से चलने वाली नावें ही हुआ करती थीं. 
कई
 बार तो ऐसा भी होता था कि नौका रात भर चलती रहती थी. प्रातः काल में य़ा 
सुबह होने के बाद नौका किसी द्वीप में जाकर किनारे से लगती थी. उस
 द्वीप में नाव वाला घुटने तक जल में ही उतरने को कहता था, वह स्थान भी 
कादो-कीचड़ से भरा होता था. वहाँ उतरने के बाद किसी तरह कहीं थोड़ा सा जल 
मिला तो वहाँ रुक कर हाँथ पाँव धो कर फिर चलते चलो पैदल ही चलते जाना होता 
था क्योंकि जब रोड जैसा कुछ था ही नहीं तो किसी यान-वाहन का प्रश्न ही कहाँ
 उठता था.टेंढ़े-मेंढे पगडंडियों से होकर य़ा बांध के ऊपर से चलते चलते आधा
 घन्टा, एक घन्टा, डेढ़ घन्टा पैदल चलने के बाद जहाँ उत्सव होने वाला होता 
वहाँ हमलोग पहुँच पाते थे. जैसे तैसे वहाँ पहुँचने के बाद 
स्नान-भोजन-भजन समाप्त करके थोड़ा विश्राम करने के बाद संध्या में उत्सव में
 भाग लेते थे. वहाँ से कार्यक्रम समाप्त होने के बाद फिर अगले द्वीप पर 
उत्सव में भाग लेने के लिये निकलना होता था. इस प्रकार अनेकों बार हुआ है. 
प्रत्येक वर्ष वहाँ के उत्सव में जाने का सौभाग्य मिला है. 
वहाँ
 के निवासियों में ठाकुर-माँ स्वामीजी के प्रति अदभुत आकर्षण, प्रेम, 
श्रद्धा निवेदन की चेष्टा को देखने से बहुत आश्चर्य होता था. वहाँ के 
अधिकांश निवासी अशिक्षित थे. किसी किसी द्वीप में स्कूल भी है, वहाँ के 
निवासी शिक्षित भी मिलते थे. उस समय मनसाद्वीप में जो सन्यासी थे, वे वहाँ 
बहुत दिनों से थे तथा उनकी उम्र भी बहुत अधिक हो गयी थी, और वे एक अत्यन्त 
अच्छे मनुष्य थे.दुबला-पतला शरीर, दीर्घ चेहरा, ऐसा लगता मानो उनको 
चलने-फिरने में थोड़ा कष्ट का अनुभव भी होने लगा था. किन्तु उनके चेहरे पर 
कभी थकान नही दिखता था. माइल पर माइल पैदल ही चलते जा रहे हैं, तो जा रहे 
हैं. उनकी एक दो बातें याद जिन्हें मैं बांटना चाहूँगा. 
वे
 एक समय में रामकृष्ण मिशन के एक बड़े स्कूल में प्रधान शिक्षक के पद पर 
कार्यरत थे. वहाँ पर एक दिन एक ब्रह्मचारी आकर उनसे कहते हैं- ' कल तो 
प्राइज डिस्ट्रीब्युसन होने वाला है, उसके साथ सभी लडकों को सर्टिफिकेट आदि
 भी दिये जायेंगे, ढेर सारे सर्टिफिकेट देने हैं, इन सब पर आप आज ही 
हस्ताक्षर करके रख दीजिये.' जब वे एक सर्टिफिकेट पर हस्ताक्षर करने के बाद 
उस पर तारीख डालने ही वाले थे तो ब्रह्मचारीजी ने कहा- ' महाराज, आज की 
तारीख मत डालियेगा, वहाँ पर कल की तारीख डालनी होगी, क्योंकि यह सर्टिफिकेट
 तो कल देना होगा.' वे थोड़ी देर तक उस ब्रह्मचारी के चेहरे की ओर देख कर
 एक ओर रखने के बाद बोले- ' आज हस्ताक्षर कराना चाहते हो तो इस पर आज का ही
 तारीख दिया जायेगा, यदि कल की तारीख चाहते हो तो हस्ताक्षर भी कल ही 
होगा.'
और
 एक घटना है, इसी तरह किसी द्वीप में संध्या-सभा हो रही थी, वे ज्यादा 
बोलते नही थे, भाषण तो बिल्कुल ही नही देते थे. सभा के शुरुआत में एक दो 
बात कह दिया करते थे, जैसे- ' हमलोग कल अमुक जगह गये थे, आज यहाँ आये हैं, 
कल अमुक जगह जायेंगे. वहाँ पर ठाकुर का उत्सव हो रहा है. ' इसी प्रकार 
सामान्य ढंग से दो-चार बातें बता दिये करते थे, अधिक कुछ नही कहते थे. ऐसा 
नहीं था कि उनको बोलना नहीं  आता था, किन्तु ऐसा प्रतीत होता था कि वे 
बोलना नहीं चाहते थे. किन्तु सभी सभाओं में भाग लेते थे, और बैठे रहते थे. उनकी मौन सौम्य मूर्ति को देखने मात्र से ही सभी का मन आनन्द से भर उठता था. 
मुझे
 एकबार कि घटना याद आती आती है जिसे मैं बताये बिना नहीं रह सकता. कैसे 
कैसे सन्यासियों के दर्शन का सौभाग्य हुआ है, कितनो को ही देखा है. जब सभा 
समाप्त हो गया तो देखता हूँ वे माइक्रोफोन को पकड़ कर अपनी ओर खींच रहे हैं.
 हमलोगों को तो आश्चर्य हुआ ही, अन्य लोग भी थोड़ा विस्मित हुए कि जो महाराज
 कभी कुछ बोलना नहीं चाहते हैं, वे उसको अपनी पर खींच क्यों रहे हैं ? वे 
माइक पकड़ कर बोलते हैं - ' मुझसे उस समय बोलते समय एक भूल हो गयी है, मैंने
 कहा था कि कल मैं अमुक जगह गया था, वह भूल से निकल गया था, कल मैं वहाँ 
नहीं गया था, वहाँ तो मैं परसों गया था.' इस प्रकार से बोल कर उनहोंने अपने
 भूल को संशोधित कर लिया था. ' ऐसी सत्य निष्ठा ! कल्पना भी नहीं की जा सकती.
और
 एक वाकया है- मनसा द्वीप में मिशन के पास अपने धान के खेत हैं. उस जमीन 
में धान की पैदावार होने पर सरकार को एक ' लेभि ' चुकानी पड़ती है. लेभि के 
लिये सरकार नोटिस भेजती है. उसमे लिखा रहता है कि आपको जितना धान उपजा है 
उसका इतना अंश सरकार को देना होगा. मिशन में नोटिस आया था, उसके अनुसार 
लेभि का धान पहुँचा ही दिया गया था. उसके बाद वे उस नोटिस को देख रहे थे. 
बैठ कर उस नोटिश को अच्छी तरह से देखने के बाद लेभि की मात्रा का 
हिसाब-किताब करने लगे. उपज कितनी हुई और उसपर लेभि कितना दिया गया है, इसका
 हिसाब लगा कर उन्होंने देखा कि उसमे भूल हो गयी है. सरकार के नोटिश में 
जितनी लेभि मांगी गयी है, उसमे भूल है. 
जिस
 ऑफिस से नोटिश आया था वह आश्रम से दो माइल दूर है, गर्मी का दिन था और 
दोपहर का समय, वे उसी समय सिर पर छाता लगा कर पैदल ही चल पड़े. वहाँ जाकर 
उस अफसर के कमरे सामने जा कर खड़े हुए.साहब के दरवान ने कहा- ' साहब अभी 
व्यस्त हैं,भीतर मत जाइये.' थोड़ी देर बाद फिर देखने गये तब कहा कि, ' अभी 
साहब के पास कुछ लोग हैं, नही जाइये.' उसके बाद जब काफी देर हो गया तो वे 
खुद थोड़ा पर्दा खिसका कर देखने कि चेष्टा करते हैं. पर्दा खिसकते ही जो 
अफसर हैं- बोलते हैं, ' क्या है, आप को क्या काम है? ' 
तब
 वे हाथों में नोटिश लिये हुए थोड़ा आगे बढ़ कर, जैसे ही कमरे में प्रवेश 
किये हैं,उस कागज के रंग को देख कर ही साहेब पहचान गये है कि, यह लेभि जमा 
कराने का नोटिश है. दूर से ही देख कर कहते हैं, ' नहीं नहीं, अब इसमें कुछ 
भी नहीं किया जा सकता, बिल्कुल सही है, जितना है, एकदम ठीक है. अब उसमे कुछ
 भी नहीं किया जा सकता है.' अफसर समझ रहे थे कि महाराज उनके पास आवेदन करने
 आये होंगे कि लेभि ज्यादा लग गया है, इसको थोड़ा कम कर दिया जाय, इतना 
ज्यादा नहीं होना चाहिये. महाराज बोले,'
 नहीं नहीं, मेरी बात तो सुनिए, मैं किस लिये आया हूँ कमसे कम इतना तो 
सुनियेगा. ' ' बोलिए आपकी क्या बात सुनूँ ?' साधु कहते हैं- ' आप लोगों से 
हिसाब लगाने में भूल हो गयी है, लेभि तो और अधिक लगनी चाहिये थी, कानून के 
अनुसार हमलोगों को इतना मन धान और ज्यादा देना होगा.'
 यही है ' सत्य-निष्ठा
 '- सत्य पर अटल रहना. ऊपर से इतनी अधिक उम्र में, दुबले पतले शरीर को 
लेकर इतनी दूर पैदल चल कर सत्य बतलाने की असाधारण चेष्टा की जितनी भी बड़ाई 
की जाये कम है.इस प्रकार की अनेकों घटनाएँ अनेकों लोगों को देखा हूँ. एक बार मनसा द्वीप में उत्सव हो रहा है, संध्या अनुष्ठान हो जाने के बाद रात्रि में ' जात्रा-पार्टी ' का भी कार्यक्रम होने वाला है.उत्सव में बहुत भारी भीड़ इकट्ठी हुई है.महाराज मंच पर बैठे हुए हैं, चेयर नहीं था, तो टेबल के ऊपर ही बैठ गये हैं. रात्रि के अन्त में पौ फटते समय उठ कर देखता हूँ कि जात्रा उस समय तक भी चल रहा था और महाराज उसी प्रकार बैठे हुए हैं. वे इसीलिये बैठे हैं कि जो लोग जात्रा कर रहे हैं, उनको वहाँ बैठे देख कर आनन्दित होंगे. इसीलिये (दूसरों को आनन्द देने के लिये) रात भर टेबल के ऊपर बैठे हुए रह गये हैं, पीठ भी टिकाने का अवसर नहीं मिला है, पर चेहरे पर कोई थकान नहीं हैं. मनुष्य को कोई साधु ही इतनी मर्यादा-दान कर सकता है, हमारे जैसे साधारण लोग तो जात्रा करने वाले मनुष्यों को गवैया-नचैया ही समझते हैं.
ngrove forest, manik, Sundarbans
Sundarbans  is the  largest mangrove forest in the world
Sundarbans is the Sundarbans is situated Bangladesh and India both country.The Sundarbans features a complex network of tidal waterways, mudflats and small islands of salt-tolerant mangrove forests.Located about 320 km. south-west of Dhaka and spread over an area of about 60000 sq, km of deltaic swamps along the coastal belt of Khulna.Sundarbans is accessed from Kolkata ( Calcutta) by traveling either towards the South East or the South West.
 The  South West route takes one through Diamond Harbour to Kakdwip and  Namkhana. You can take a boat from these places or from Gangadharpur and  visit Lothian Island and surrounding areas.The South Eastern route is  more popular. You drive 86 kms through wetlands and agricultural land to  reach Sonakhali. You can take a 3 hour boat ride from Sonakhali jetty  to Sajnekhali Tourist Lodge or cross over to Basanti. From Basanti you  can take an auto-rickshaw ride to Gadkhali (11kms). At Gadkhali take the  ferry to cross the Bidya river to arrive at Gosaba. A Cycle Rickshaw  ride will take you to Pakhiralaya in about half hour. Sajnekhali is  across the water from Pakhiralaya. A UNESCO World Heritage Site (awarded  in ’97) , Sundarban is a vast area covering 4262 square kms in India  alone, with a larger portion in Bangladesh. The total area of the Indian  part of the Sundarban forest, lying within the latitude between  21°13’-22°40’ North and longitude 88°05’-89°06’ East, is about 4,262 sq  km, of which 2,125 sq km is occupied by mangrove forest across 56  islands and the balance is under water.
 The  South West route takes one through Diamond Harbour to Kakdwip and  Namkhana. You can take a boat from these places or from Gangadharpur and  visit Lothian Island and surrounding areas.The South Eastern route is  more popular. You drive 86 kms through wetlands and agricultural land to  reach Sonakhali. You can take a 3 hour boat ride from Sonakhali jetty  to Sajnekhali Tourist Lodge or cross over to Basanti. From Basanti you  can take an auto-rickshaw ride to Gadkhali (11kms). At Gadkhali take the  ferry to cross the Bidya river to arrive at Gosaba. A Cycle Rickshaw  ride will take you to Pakhiralaya in about half hour. Sajnekhali is  across the water from Pakhiralaya. A UNESCO World Heritage Site (awarded  in ’97) , Sundarban is a vast area covering 4262 square kms in India  alone, with a larger portion in Bangladesh. The total area of the Indian  part of the Sundarban forest, lying within the latitude between  21°13’-22°40’ North and longitude 88°05’-89°06’ East, is about 4,262 sq  km, of which 2,125 sq km is occupied by mangrove forest across 56  islands and the balance is under water.   The  Sundarbans is the world's biggest mangrove forest - the home of the  Royal Bengal tiger. The Royal Bengal tiger being the most famous, but  also including many birds, spotted deer,crocodiles and snakes.the  Sundarbon Indian restaurant in Monk Street, Abergavenny, is an exotic  treasure just waiting to be discovered. Specialising in aromatic Bengali  dishes, our chefs are masters in the art of preparing flavoursome food  for diners who enjoy an authentic Indian experience.These dense mangrove  forests are criss-crossed by a network of rivers and creeks.
The  Sundarbans is the world's biggest mangrove forest - the home of the  Royal Bengal tiger. The Royal Bengal tiger being the most famous, but  also including many birds, spotted deer,crocodiles and snakes.the  Sundarbon Indian restaurant in Monk Street, Abergavenny, is an exotic  treasure just waiting to be discovered. Specialising in aromatic Bengali  dishes, our chefs are masters in the art of preparing flavoursome food  for diners who enjoy an authentic Indian experience.These dense mangrove  forests are criss-crossed by a network of rivers and creeks.November to March is best time to visit this forest.
Kakdwip subdivision (Bengali: কাকদ্বীপ মহকুমা),  is a subdivision of the South 24 Parganas district in the  state of West Bengal, India. It consists of four community development  blocks: Kakdwip, Namkhana, Patharpratima and Sagar. The four blocks  contain 42 gram panchayats. The subdivision has its  headquarters at Kakdwip.
Area
The subdivision contains rural areas of 42 gram panchayats under four community development  blocks: Kakdwip, Namkhana, Patharpratima and Sagar.There is no urban area under these four blocks.
Blocks
Kakdwip block
Rural area under Kakdwip block consists of 11 gram panchayats, viz.  Bapuji, Rabindra, Sri Sri Ramkrishna, Swami Bibekananda, Madhusudanpur,  Ramgopalpur, Srinagar, Netaji, Rishi Bankimchandra, Suryanagar and  Pratapadityanagar.  Kakdwippolice statin serves this block.  Headquarters of this block is in Pakurberia.
Namkhana block
Rural area under Namkhana block consists of seven gram panchayats,  viz. Budhakhali, Haripur, Namkhana, Shibrampur, Frezarganj, Mausini and  Narayanpur.  Namkhana and Kakdwip police stations serve this block.  Headquarters of this block is in Namkhana.
Patharpratima block
Rural area under Patharpratima block consists of 15 gram panchayats,  viz. Achintyanagar, Dakshin Raipur, Gopalnagar, Ramganga,  Banashyamnagar, Digambarpur, Herambagopalpur, Sridharnagar,  Brajaballavpur, Durbachati, Laksmijanardanpur, Srinarayanpur  Purnachandrapur, Dakshin Gangadharpur, G Plot and Patharpratima.  Patharpratima police station serves this block.Headquarters of this block is in Ramganga . 
Sagar block
Rural area under Sagar block consists of nine gram panchayats, viz.  Dhablat, Dhaspara Sumatinagar–II, Ghoramara, Ramkarchar, Dhaspara  Sumatinagar–I, Muriganga–I, Rudranagar, Gangasagar and Muriganga–II  Sagar police station serves this block.  Headquarters of this block is in Rudranagar.
Legislative segments
As per order of the Delimitation  Commission in respect of the delimitation  of constituencies in West Bengal, the area under the Patharpratima  block forms the Patharpratima assembly constituency. The Kakdwip  block, along with two gram panchayats under the Namkhana block, viz. Budhakhali  and Narayanpur, will form the Kakdwip assembly constituency. The  other five gram panchayats under the Namkhana block along with the area  covered by the Sagar block will form the Sagar assembly constituency.  All the three constituencies will be assembly segments of the Mathurapur (Lok Sabha  constituency), which will be reserved for Scheduled castes (SC)  candidates.
As per orders of Delimitation Commission, 131. Kakdwip constituency  will cover Kakdwip CD Block and Budhakhali and Narayanpur gram  panchayats of Namkhana CD Block.

