॥ श्री नन्द जी ॥
दोहा:-
कोई  वस्तु अनित्य नहीं, रहत सदा ही नित्य । 
रूपान्तर ह्वै जात है, कैसे भई अनित्य ॥१॥ 
जैसे नैना बन्द करि, देखो कहूँ न कोय । 
वैसे हरि को खेल यह, हर दम ऐसै होय ॥२॥ 
जब जानौ तुम ध्यान को, देखौ सर्गुन खेल । 
जब पहुँचो तुम लय दशा, वहां न खेल न मेल ॥३॥ 
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डाक्टर मोहम्मद इक़बाल 
लब पे आती है दुआ बनके तमन्ना मेरी,
ज़िन्दगी शमअ की सूरत हो ख़ुदाया मेरी।दूर दुनिया का - मेरे दम अँधेरा हो जाये,
हर जगह मेरे चमकने से उजाला हो जाये।
हो मेरा काम ग़रीबों की हिमायत  करनादर्द-मंदों से- ज़इफ़ों से मोहब्बत करना !
मेरे अल्लाह बुराई से बचाना मुझको;
नेक जो राह हो उस राह पे चलाना मुझको।
शब्दार्थ :शमा की सूरत=दीपक की भाँति; ज़ीनत=शोभा; इल्म की शमा=ज्ञान का दीपक;  ज़ईफ़ों=बूढ़े लोगों 
नया शिवाला 
 सच कह दूँ ऐ ब्रह्मण गर तूँ बुरा न माने,
तेरे सनम कदों के बुत हो गये पुराने.
अपनों से बैर रखना तूने बुतों से सीखा,
जंग-ओ- जदल सिखाया वाइज़ को भी खुदा ने,
तंग आके आखिर में मैंने दैर-ओ-हरम को छोड़ा,
वाइज़  का वाज़ छोड़ा, छोड़े तेरे फ़साने, 
पत्थर की मूर्तियों में समझा है तू खुदा है,
खाक-ए-वतन का मुझ को हर ज़र्रा देवता है.
आ गैरत के परदे इक बार फिर उठा दें,
बिछड़ों को फिर मिला दें, नक़्शे दूरी मिटा दें.
सूनी पड़ी हुई है मुद्दत से दिल की बस्ती,
आ इक नया शिवाला इस देश में बना दें।
दुनिया के तीर्थों से ऊँचा हो अपना तीरथ 
दामन-ए-आसमां से इस का कलश मिला दें.
हर सुबह मिल के गायें मन्तर वो मीठे मीठे, 
सारे पुजारियों को मय प्रीत की पिला दें.
शक्ति भी शान्ति भी भक्तों के गीत में है,
धरती के वासियों की मुक्ति प्रीत में है. खुली आँखों से ध्यान तराना-ए-हिन्द
सारे जहाँ से अच्छा हिन्दोस्ताँ हमारा,
हम बुलबुलें हैं उसकी ये गुलसिताँ हमारा।
ग़ुरबत में हों अगर हम रहता है दिल वतन में
समझो वहीं हमें भी दिल हो जहाँ हमारा
पर्बत वो सब से ऊँचा हमसाया आसमाँ का
वो सन्तरी हमारा वो पासबाँ हमारा
गोदी में खेलती हैं जिसकी हज़ारों नदियाँ
गुलशन है जिस के दम से रश्क-ए-जिनाँ हमारा
ऐ आब-ए-रूद-ए-गंगा, वो दिन है याद तुझ को
उतरा तेरे किनारे जब कारवाँ हमारा
मज़हब नहीं सिखाता आपस में बैर रखना
हिन्दी हैं हम, वतन है हिन्दोस्ताँ हमारा
यूनान-ओ-मिस्र-ओ-रोमा सब मिट गये जहाँ से,
अब तक मगर है बाक़ी नाम-ओ-निशाँ हमारा।
कुछ बात है कि हस्ती मिटती नहीं हमारी,
सदियों रहा है दुश्मन दौर-ए-ज़माँ हमारा।
'इक़बाल' कोई महरम अपना नहीं जहाँ में
मालूम क्या किसी को दर्द-ए-निहाँ हमारा।
अटल बिहारी वाजपेयी
" यक्ष  प्रश्न "
 जो कल  थे,
वे आज नहीं हैं।
जो आज हैं,
वे कल नहीं होंगे।
होने, न होने का क्रम,
इसी तरह चलता रहेगा,
हम हैं, हम रहेंगे,
यह भ्रम भी सदा पलता रहेगा।
सत्य क्या है?
होना या न होना?
या दोनों ही सत्य हैं?
जो है, उसका होना सत्य है,
जो नहीं है, उसका न होना सत्य है।
मुझे लगता है कि
होना-न-होना एक ही सत्य के
दो आयाम हैं,
शेष सब समझ का फेर,
बुद्धि के व्यायाम हैं।
किन्तु न होने के बाद क्या होता है,
यह प्रश्न अनुत्तरित है।
प्रत्येक नया नचिकेता,
इस प्रश्न की खोज में लगा है।
सभी साधकों को इस प्रश्न ने ठगा है।
शायद यह प्रश्न, प्रश्न ही रहेगा।
यदि कुछ प्रश्न अनुत्तरित रहें
तो इसमें बुराई क्या है?
हाँ, खोज का सिलसिला न रुके,
धर्म की अनुभूति,
विज्ञान का अनुसंधान,
एक दिन, अवश्य ही
रुद्ध द्वार खोलेगा।
प्रश्न पूछने के बजाय
यक्ष स्वयं उत्तर बोलेगा।
जो आज हैं,
वे कल नहीं होंगे।
होने, न होने का क्रम,
इसी तरह चलता रहेगा,
हम हैं, हम रहेंगे,
यह भ्रम भी सदा पलता रहेगा।
सत्य क्या है?
होना या न होना?
या दोनों ही सत्य हैं?
जो है, उसका होना सत्य है,
जो नहीं है, उसका न होना सत्य है।
मुझे लगता है कि
होना-न-होना एक ही सत्य के
दो आयाम हैं,
शेष सब समझ का फेर,
बुद्धि के व्यायाम हैं।
किन्तु न होने के बाद क्या होता है,
यह प्रश्न अनुत्तरित है।
प्रत्येक नया नचिकेता,
इस प्रश्न की खोज में लगा है।
सभी साधकों को इस प्रश्न ने ठगा है।
शायद यह प्रश्न, प्रश्न ही रहेगा।
यदि कुछ प्रश्न अनुत्तरित रहें
तो इसमें बुराई क्या है?
हाँ, खोज का सिलसिला न रुके,
धर्म की अनुभूति,
विज्ञान का अनुसंधान,
एक दिन, अवश्य ही
रुद्ध द्वार खोलेगा।
प्रश्न पूछने के बजाय
यक्ष स्वयं उत्तर बोलेगा।
शेख सादी
हर शै में देख लीजै उसका ही नूर है । 
तिल भर नहीं है खाली हर दम हुजूर है ॥६॥ 
है सब में सब से न्यारा मानो वचन हमारा । 
श्री कौशिला का प्यारा, यशुमति कहै दुलारा ॥७॥ 
कहते खुदा हैं उसको- खुद आने वाला जानो । 
     है फिक्र सब की उसको खुद खाने वाला जानो ॥८॥ 
जिसका है नाम सुनिये उसका है रूप गुनिये । 
सूरति शब्द में लागै तब तन मन हरि में पागै ॥९॥ 
देखैं हम रूप हर दम कहने की क्या रहै गम । 
धुनि रोम रोम जारी छूटै जगत से यारी ॥१०॥ 
कहते हैं शेखसादी मुरशिद के पास जाओ । 
तन मन से प्रेम कीजै तब इसका भेद पाओ ॥११॥ 
 ॥ श्री नाभा जी ॥   
दोहा:-
रा  रकार रघुनाथ जी, मा मकार महरानि । 
आखिर दोनों एक हैं, रूप राशि गुनखानि ॥१॥ 
शेर:-
यह  राम कृष्ण प्यारे आँखों के मेरे तारे । 
क्या खेल हैं पसारे औ रहते सब से न्यारे ॥१॥
क्या खेल हैं पसारे औ रहते सब से न्यारे ॥१॥
छन्द:-
नाम  रूप लीला धाम चारों नित्य जानिये । 
सर्व शक्तिमान को अनित्य कैसे मानिये ॥१॥
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सर्व शक्तिमान को अनित्य कैसे मानिये ॥१॥
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