सोमवार, 21 अक्टूबर 2024

🔱🕊 🏹 🙋परिच्छेद 138 ~नरेन्द्र के प्रति उपदेश [(17 अप्रैल, 1886) -श्री रामकृष्ण वचनामृत-138] 🔱🏹ध्यान द्वारा मनुष्य उपाधियों से छूट कर अपने यथार्थ स्वरुप को पहचानता है🏹🔱शोक भक्ति को हटा देता है 🔱🔱लज्जा (modesty-शील) नारीजाति का आभूषण है 🔱 🕊 🏹🙋श्रीरामकृष्ण 'परमहंस' फूलचन्दन से अपनी पूजा (=अपने अन्तरात्मा की पूजा) स्वयं करते हैं-भक्तों को प्रसाद देते हैं। 🙋 जॉर्ज बर्कले का Transcendental Idealism : अतीन्द्रिय मायावाद (बाह्य शून्यवाद) सिद्धान्त-*क्या बुद्ध ईश्वर के अस्तित्व में विश्वास करते थे? "Esse est percipi" (“To be is to be perceived”) :जब तक इन्द्रियों का काम चल रहा है, तभी तक संसार है।'एस्से एस्ट परसिपी': 🙋 🏹 🙋ईश्वर के द्वारा मनुष्य को दिए गए तीन अनमोल उपहार > मनुष्य-जन्म, ईश्वर को जानने की व्याकुलता और महापुरुष का संग ! 🏹 🙋 🏹 🙋 🏹 🙋 महापुरुष-संश्रयः भक्तिमार्ग में रहने पर ही देह की ओर मन आता हैं !🏹 🙋काशीपुर उद्यान में भक्तों का संकीर्तन🏹🙋 [CINC अपने कमरे में मास्टर और बाबूराम के साथ बैठकर गाने का आनन्द लेते हैं] 🏹[(21अप्रैल, 1886) -श्री रामकृष्ण वचनामृत-138] 🏹🙋ईश्वर (परम् सत्य-Oneness) को तर्क से नहीं जाना जा सकता।🏹🙋 केवल विश्वास (अनुभव)से ही मनुष्य ईश्वर को देख सकता है और उसके साथ घनिष्ठ हो सकता है] 🙋 🏹 गुरु-भक्ति के बिना सेवा नहीं हो सकती🏹

परिच्छेद १३८~नरेन्द्र के प्रति उपदेश"  (१) नरेन्द्र आदि भक्तों के संग में श्रीरामकृष्ण भक्तों के साथ काशीपुर के बगीचे में हैं । शरीर ...