गुरुवार, 24 मई 2012

औचित्य-बोध को निरन्तर जागरूक रखना चाहिए

७ प्रश्न : किसी अशुभ प्रभाव (पाश्चात्य भोगवादी संस्कृति के बढ़ते प्रभाव ) से मन की रक्षा कैसे कर सकता हूँ ? 
उत्तर : महामण्डल में जीवन-गठन की पद्धति के उपर चर्चा की जाती है, उस पद्धति को धीरे धीरे जानने की चेष्टा करनी होगी. महामण्डल द्वारा प्रकाशित पुस्तकों के अध्यन से भी इन विषयों को समझा जा सकता है. इनमें बताये गये सभी अभ्यासों को समग्र रूपसे तथा नियमित रूपसे जीवन में उतारने का प्रयास करें, तभी हमलोग अशुभ प्रभाव से मन की रक्षा कर सकते हैं.
अशुभ प्रभाव से मन को बचाने का कोई एक फ़ॉर्मूला निर्धारित कर देना संभव नहीं है. यदि हमलोग सर्वदा अपने जीवन को शुभ या मंगल की ओर लेजाने के लिए प्रयासरत रहें, तभी अशुभ प्रभाव हमलोगों के उपर कम पड़ेगा. इसके अतिरिक्त अन्य कोई उपाय नहीं है.
हमलोग जो कुछ कर रहे हों, जो कुछ  सोच रहे हों, जिसकी संगति में रहते हों, जैसे परिवेश में हमें रहना पड़ता हो, वह सब यदि अच्छा नहीं हो, तो वह कहीं मेरे मन को कहीं प्रभावित न करदे -इसके लिए सर्वदा हमलोगों को अपना विवेक स्वयं जाग्रत रखना होगा, औचित्य-बोध को प्रतिमुहूर्त जगा कर रखना होगा. ऐसे सतत विवेकी मन के चारों ओर दृढ-संकल्प का एक मानसिक कवच धारण किये रहना होगा- मन को अशुभ प्रभाव से बचाने का यही उपाय है.
 इसके लिए हमलोगों के मन में एक स्पष्ट धारणा होनी चाहिए कि हमारे लिए शुभ या मंगलकर क्या है, फिर उस धारणा पर अटल रहने के लिए संकल्प में दृढ रहना भी आवश्यक है. क्योंकि कभी कभी औचित्य-बोध याद रखता हूँ, कभी कभी भूल जाता हूँ -यदि ऐसी ढुल-मुल इच्छाशक्ति हो जाती हो, तो वैसे मौके पर अशुभ प्रभाव मेरे उपर पड़ भी सकता है.
इसीलिए सर्वदा शुभ या मंगल विचारों को ही मन में प्रविष्ट होने देना चाहिए, विवेक या औचित्य-बोध को निरन्तर जागरूक रखना चाहिए, तथा अपने जीवन को सुंदर रूप से गठित करने के दैनन्दिन अभ्यास में कभी ढिलाई दिए बिना, अध्यवसाय के साथ स्वयं को मंगल की ओर ले जाने की चेष्टा करते रहने से, स्वयं को अशुभ प्रभाव से बचाया जा सकता है.

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